Book Title: Kalplata Vivek
Author(s): Murari Lal Nagar, Harishankar Shastry
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 515
________________ कल्पलताविवेके . . . . 152 तमर्थमवलम्बन्ते [ध. 29 ] 133 10 | त्वन्मूले पुरुपायुषं 116 24. 155 17 त्वरितमथ 25 19 तया संवृतनानात्वाः दत्तानन्दाः प्रजानां 139 14 तरङ्गभ्रूभङ्गा [विक्रमो 4] (टि. 4)131 15 मयूरसूर्यशतके ] 261 17 तव शतपत्र 12. 15 | दन्तानिर्दलयद्रसां च 229 16 तस्मान्महासरोज 219 टि२ दर रइय 243 12 तस्य दक्षिणतः क्षेपो [भ.ना.शा.. 3.8 9 दर्शनादेव नटवद् 230 14 31 34] .. दशरश्मिशतोपमद्युति [रघु-८ 29] 155 10 तस्या अभिप्रायवशात् " तस्याङ्गानां प्रभेदा” [ध्व.का. 135 7 दानवीरं युद्धवीरं [भ. ना. शा. 83 22 35] 155 18 तस्या विनापि हारेण (टि. 4,137 16 दारिद्वेष्टवियोगैस्तु 286 25 138 18 "दिङ्मानं तूच्यते" [ध्व.का. 36 135 19 तं ताण सिरि सहोयर टि. 4)147 13 155 19 दीडि तेल्लु णाहि 123 26 ता कि पि कि पि दुराराधा राधा 18511 185 तापी नेयं नियतमथवा 164 1 दूराकर्षणमोह 127 22 "दूषणा न्यूनताणूक्तिः" ताला जायति गुणा [पञ्चबाणलीला] 19 - 21 63 22 __21 2 दृशा साध .::125 28 दृश्यं दृशाम् -228 12 तां मुखगौरवगात्र- [भ.ना.शा.] 297 20 दृष्टनष्टानुसरणे [भ. ना. शा. 104 1 .: 7 72 19 50] तिक्खारुणं तं . 252 17 दृष्टा[ष्ट्वा] दृष्टिमधो [नागा. 3 4] 97 20 तिष्ठद् द्वारि 228 . 6 दे आपसिय णियत्तसु . 108 12 तीव्रातपाहतवपुर्विशति देव्वाअत्तम्मि फले 140 18 तुङ्गात्मतास्तशिखरस्य दोर्दण्डाञ्चित 91 21 तेषां गोपवधविलाससुहृदां 132 149 | द्रुतविलम्बितमस्ति नभौ भरौ 215 13 त्रासाकुलः परिपतन् 152 22 द्विट् चित् वित् दिक् 225 1 द्विट् चिद्वित् दिक् स्रक् . 225 त्रिधा शब्दाविरोधस्तु 152 14 त्रिभिर्वस्तुभिर्वस्तु 164 | धन्यासि या कथयसि 7 त्रिविधस्तु मदः कार्यः [भ.ना.शा. 290 3 . द्विविधा शङ्का कार्या . . 288 | धाष्टजैह्मयादिसम्भूतम् [भ.ना.शा. 299 . त्रीणि स्थानान्युरः [भ.ना. शा. 101 25 19 40] | धार्यलचितयथोचितभूमौ 18 . 27

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