Book Title: Kaise Soche
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 10
________________ कैसे सोचें ? (१) प्रसिद्ध दार्शनिक देकार्ट ने कहा-'मैं सोचता हूं, इसलिए मैं हूं। मेरे अस्तित्व का प्रमाण है कि मैं सोचता हूं, और सोचता हूं इसलिए मैं हूं।' यदि मुझे कहना पड़े तो मैं इस तर्क की भाषा में कहूंगा-'मैं हूं और विकसित मस्तिष्क वाला प्राणी हूं इसलिए सोचता हूं।' ___ सोचना मस्तिष्क का लक्षण नहीं है। सोचना एक अभिव्यक्ति है। वह लक्षण नहीं बन सकता। हमारा अस्तित्व और चैतन्य चिन्तन से परे है, सोचने से परे हैं। सोचना ज्योति का एक स्फुलिंग मात्र है, समग्र ज्योति नहीं है। न सोचना-यह ज्योति का अखंड रूप है। ___ध्यान-साधना द्वारा हम उस स्थिति तक पहुंचना चाहते हैं, जहां सोचने की बात समाप्त हो जाती है, जहां साक्षात्कार संभव हो जाता है। जहां साक्षात् होता है वहां सोचने की आवश्यकता नहीं रहती। साक्षात् होने पर वस्तु 'हस्तामलकवत्' स्पष्ट हो जाती है। हथेली पर आंवला रखा हुआ है। वह जो कुछ है, उसका हमें साक्षात्कार हो रहा है। उसके विषय में सोचने की आवश्यकता नहीं होती। प्रत्यक्ष में दर्शन होता है, वहां चिन्तन नहीं होता और जहां चिंतन होता है, वहां दर्शन नहीं होता। हम तीन स्थितियों का अनुभव करते हैं-जागना, देखना और सोचना। एक आदमी ने पूछा-'आपके नौकर ने अमुक काम किया या नहीं?' मालिक बोला-'मुझे ज्ञात नहीं है। मै जानकारी करके बताऊंगा।' इस स्थिति में सोचने की बात प्राप्त नहीं होती। जो घटना किसी दूसरे से सम्बद्ध है, उसके लिए सोचा नहीं जा सकता। वहां चिन्तन काम नहीं देता। एक आदमी ने पूछा-'आपके घर में अमुक वस्तु है ?' उसने कहा-'भाई! याद नहीं है, देखकर बताऊंगा।' यहां भी सोचना काम नहीं आएगा। ___ एक घटना में है-'जानकारी करके बताऊंगा' और दूसरी घटना में है- देखकर बताऊंगा।' जहां जाना,और देखना होता है, वहां सोचना प्राप्त नहीं होता। जहां ये दोनों-जानना और देखना नहीं होते वहां सोचने की स्थिति आती है। जो परोक्ष है, अस्पष्ट है, जिसके विषय में सहसा कुछ कहा नहीं जा सकता, वहां सोचना होता है, चिंतन करना पड़ता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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