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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४
२८३ १.पे. नाम. विद्याविलास चउपई, पृ. १अ-१२अ, संपूर्ण, वि. १६५८, माघ शुक्ल, ९, ले.स्थल. लाभपुर, प्रले. मु. खिलू ऋषि;
राज्यकालरा. कवर, प्र.ले.पु. सामान्य. विद्याविलास रास, उपा. आज्ञासुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५१६, आदि: गोयम गणहर पय नमी; अंतिः प्रभाव मनोरथ
फलइ, गाथा-३५०. २. पे. नाम. जंबूस्वामी गीत, पृ. १२आ, संपूर्ण.
मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: मगधदेस भंझारि राजगृही; अंति: मोहन० जंबू जणणी इम भणइ, गाथा-१२. १०४६४४. (+) सर्वतीर्थनिर्वाणक्षेत्र पूजन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१-१(१)=४०, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:पंचप० निर्वाण०., संशोधित., दे., (३१.५४१२, ७४३६-४१).
सर्वतीर्थनिर्वाणक्षेत्र पूजन, पुहिं.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कोष्टक-प्रथम अष्टप्रकारीपूजा अपूर्ण से
कोष्टक-८ की जयमाला गाथा-२३ अपूर्ण तक है.) १०४६४९ (+) चैत्यवंदन कलक सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३४-१(१)=३३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:चै०वं०वृ०., पदच्छेद सूचक लकीरे-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (३०x११.५, १५-१६x६६-७५).
चैत्यवंदन कलक, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ से गाथा-१२ तक
चैत्यवंदन कुलक-टीका, आ. जिनकुशलसूरि, सं., गद्य, वि. १३८६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ की वृत्ति
अपूर्ण से गाथा-१२ की वृत्ति उत्सुत्रप्ररूपण विषये जमाली द्रष्टांत अपूर्ण तक है., वि. प्रसंगोपात कथा-दृष्टांत दिया गया
१०४६५०. (#) पिंडनियुक्ति सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १२७-९८(१ से ९८)=२९, प्रले. मेघ जानी;
उप. आ. लक्ष्मीसागरसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ६०००, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३०x१२, १७X४२-६४). पिंडनियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: विसोहिजुत्तस्स, गाथा-६७१, (पू.वि. गाथा-४६२ अपूर्ण
से है.)
पिंडनियुक्ति-वृत्ति, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: (-); अंति: धर्मः शरणमुत्तमः, ग्रं. ७०००. १०४६५१ (+) २४ जिन चरित्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३६-३(१ से ३)=३३, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., बीच-बीच के
कुछ पत्र भी नहीं है किन्तु पत्रक्रम न होने व अपूर्णता के कारण बीच के घटते पत्र का उल्लेख नहीं किया गया है., प्र.वि. हुंडी:महावीर चरित्र. पत्रांक का उल्लेख नहीं है तथा श्लोकानुक्रम क्रमशः नहीं है. २४ जिनों का क्रम व पाठानुसंधान के आधार पर क्रमबद्ध किया गया है. उपलब्ध पत्रों को गिनकर कुल पत्र दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (३१४१२, १३४४४). २४ जिन चरित्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अजितजिन चरित्र श्लोक-१८ अपूर्ण से महावीरजिन चरित्र
श्लोक-२२४ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०४६५२. (4) पंचाशक प्रकरण सह शिष्यहिता वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:प्रथमपंचाशकवृत्ति., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३१४११.५, १८-२०४६२-७३). पंचाशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण वद्धमाणं सावग; अंति: (-), (पू.वि. चैत्यवंदन विधि
अपूर्ण तक है.)
पंचाशक प्रकरण-शिष्यहिता वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२४, आदि: सदृष्टीनां समस्तार्थ; अंति: (-). १०४६५३. (+) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह वंदारु वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:वंदारुवृत्ति., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (३०x१२, १५४५६). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.म.प.मान्य, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहं० सव्वसाहण; अंति: (-),
(पू.वि. वंदित्तुसूत्र की गाथा-४३ अपूर्ण तक हैं.) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वंदारू टीका, आ. देवेंद्रसरि, सं., गद्य, आदि: वंदारुवृंदारुकवृंदवंद्यं; अंति: (-).
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