Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 24
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 476
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ९. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-दशपुरमंडण, मु. उदयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: दसपुरमंडण सोहें नोफण जग; अंति: गुणसागर०तास उदो करये माया, गाथा-४. १०. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सदा सर्वकार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ११. पे. नाम. सेनुंजय स्तुति, पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पुहि., पद्य, आदि: आगे पूरव वार निनाj; अंति: देवा कारिज सिद्ध हमारी जी, गाथा-४. १२. पे. नाम. नवपदसिद्धचक्र आंबिलतप विचार, पृ. २१अ-२२अ, संपूर्ण. नवपद तपविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं नमो अरिहंताणं; अंति: पूजा करें सक्तिसारू कीजै. १३. पे. नाम. पंचमीतप विधि, पृ. २२अ, संपूर्ण. पंचमीतप पारने की विधि, मा.ग., गद्य, आदि: पंचमी पांचवरस उपवास करे; अंति: चतुर्विधसंघनी भक्ति करें. १४. पे. नाम, अतीतअनागतवर्तमान २४ जिन नाम, पृ. २२आ-२३आ, संपूर्ण. ___मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अतीत चौईसी १केवलज्ञानी०; अंति: २४ श्रीप्रभाकरजी. १५. पे. नाम. २० विहरमानजिन नाम, पृ. २३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ श्रीसीमंधरजी; अंति: २० श्रीअजितवीर्यजी. १६. पे. नाम. ११ गणधर नाम, पृ. २४अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ इंद्रभूति गणधर; अंति: ११ प्रभात गणधर. १७. पे. नाम. २४ जिन १२० कल्याणक कोष्ठक, पृ. २४अ-२६आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: कार्तिकवदि १ नाणं; अंति: आसो सुदि चवण नेमिस्सउ १, (वि. अंत में दीपावली का गुणणा दिया है.) १०६३२३. (+) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७४१४.५, ७४३५). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं __ हैं., अध्ययन-३ अपूर्ण पाठ "अणोगखंभसयसंन्निविट्ठा पासादीया" तक है.) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिणकालने वि तिणसमएने; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ___ अध्ययन-१ अपूर्ण तक लिखा है.) १०६३२४. (+2) प्रवचनसारोद्धार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३८-१(१)=३७, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१५, ४४३५). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से २७४ अपूर्ण तक है.) प्रवचनसारोद्धार-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). १०६३२७. २४ जिन अष्टप्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-१८(१ से १८)-४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:चोवि.पू., चो.पू., दे., (२५.५४१५, ९-१८x१८-३९). २४ जिन अष्टप्रकारी पूजा-प्रत्येकजिनभिन्नभिन्न, मु. रामचंद्र, पुहिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सुपार्श्वनाथ पूजा अपूर्ण से पुष्पदंत पूजा अपूर्ण तक है.) । १०६३२८. गौतमपृच्छा बोल, संपूर्ण, वि. १९१२, श्रावण कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. देपर, प्रले. मु. केसरीचंद; पठ. सा. चांदकुँवरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१४.५, १३४२२-२५). गौतमपृच्छा ९७ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: कहो स्वामि कणां होय; अंति: पडाव्या तेहना प्रताप. For Private and Personal Use Only

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