Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 24
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 480
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org १. पे. नाम. नवस्मरण-स्मरण ४ से ९, पृ. १अ - २०आ, संपूर्ण. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा. सं., प+ग, आदि (-); अति (-), प्रतिपूर्ण, २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी, अंति: लक्ष्मी० सयलसंघ जयकरू, डाल-२० (वि. अंत में पूजा विधि लिखी है.) " १०६३६६. नवस्मरण व सकलार्हत् स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९२० वैशाख शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. २०, कुल पे. २, दत्त श्राव. वीरचंद शाह (पिता श्राव. दीपाजी शाह); गुपि श्राव. दीपाजी शाह, गृही. मु. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: अजिश, शांतिव सकलाई, तिजयपो व नमिऊण, दे. (२६१४, ८x२० ). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे नाम. सकलात् स्तोत्र, पृ. २०आ, संपूर्ण, पे.वि. वास्तव में यह कृति पत्रांक १२ब से १५ब पर है. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलाईत्प्रतिष्ठानम; अंति: मरालायर्यते नमः, लोक-२६. १०६३७०. शांतिकर्म पूजा विधि, संपूर्ण, वि. १८८०, ज्येष्ठ शुक्ल, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३+३ (१ से ३) = ६, ले.स्थल. कास्मीरपुरनगर, प्रले. उपा. सुमतिसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: शांतीनाथजीना स्नात्रकलश, जैवे. (२६४१३.५, १४४३५-३८) शांतिस्नात्र विधि, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु. सं., पद्य, आदि अध प्रतिष्ठायां वा; अंतिः खेत्रदेवता पुजी नमी . १०६३७२. ऋषभदेवजी स्तवन, वीर थुई व पंचमी बृहत्स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९६, आश्विन कृष्ण, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३. जैवे. (२७४१७, १३४२८). १. पे. नाम ऋषभदेवजी स्तवन, पृ. १अ २अ संपूर्ण वि. १८९६, भाद्रपद शुक्ल, १४. आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदि जिणेसर तू परमेसर; अंति: भंजण मुक्तिवरंगण सोवरही, गाथा-२१. २. पे. नाम वीर थुई. पू. २अ- ३आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव बृहत् आ. अभवदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि जब जा समणे भयवं महावीर, अंति पढी कही अभवदेवसूरीणं, गाथा २२. ४६५ י 1 ३. पे. नाम. पंचमी बृहत्स्तवन, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, आदि प्रणमुं श्रीगुरु पाय; अंति: भगति भावप्रशंसयो, ढाल -३, गाथा - २४. १०६३७३. (१) विजयसेठविजयासेठाणी चौपड़-शीलप्रबंध, संपूर्ण वि. १८२१ आश्विन शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ५, प्रले. गंगाराम पंडित पठ. श्राव, मथुरादास ओसवाल (पिता श्राव, शुभकरणदास ओसवाल); गुपि श्राव. शुभकरणदास ओसवाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. २००, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७.५X१७, १७x४१). विजयसेठविजयासेठाणी चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: प्रणमी पास जिणंद पद, अंति: सवि उपसमइ निरमल हुवइ गात, ढाल ११. गाथा- १४१. १०६३७४ (+) भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १९३६, ज्येष्ठ कृष्ण, १३ अधिकतिथि, मध्यम, पृ. ११, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. दे., , (२६×१३.५, ५-१७४३२-३८). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., प+ग., वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३. १०६३७५. गोम्मटसार, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १७, वे. (२६४१४, ७४३३) 1 गोम्मटसार, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सुद्धं पणमिय, अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. अधिकार- १ गाथा १११ तक लिखा है.) १०६३९४. (+#) द्रव्यसंग्रह सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११२, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (३०.५X१४, ११×३१-३४). द्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि जीवमजीवं दव्वं जिणवर; अंति: मुणिणा भणियं जं, अधिकार-३, गाथा ५८. For Private and Personal Use Only

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