Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 24
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org कैलास ग्रंथसूची जैन हस्तलिखित साहित्य (खंड-१.१.२४) KAILASA ŚRUTASAGARA GRANTHASUCI Descriptive Catalogue of Jain Manuscripts G(Vol 1.1.24) बुदाणावादयाहा बदरिमीणासिवमा वादमरावता रानामाझिाडि यश्री कांगावनमहादार मानाधित आचा विश्रा कलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबा तीर्थ मन सामनाav नपा बाबादाम For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न २४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची (१.१.२४) श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर (जैन व प्राच्यविद्या शोध संस्थान एवं ग्रन्थालय) श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागार में संगृहीत हस्तलिखित ग्रंथों की विस्तृत सूची से आशीर्वाद व प्रेरणा आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी हामार भी अपतं तव प्रकाशक 6 श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ, गांधीनगर वीर सं. २५४४ ० वि.सं. २०७४ ० ई. २०१८ For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न २४ Āacārya Śhrī Kailāsasāgarasūri Smsti Granthasūcī - Ratna 24 कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची : १.१.२४ Kailāsa Śrutasāgara Granthasūcī:1.1.24 *संपादक मंडल * पं. संजयकुमार आर. झा पं. नवीनभाई वी. जैन पं. अरुणकुमार झा पं. राहुल त्रिवेदी पं. पंकज शर्मा सुश्री मीनाक्षी शिंदे पं.रामप्रकाश झा पं. गजेन्द्रभाई शाह पं. भाविन पंड्या पं. अश्विन भट्ट डॉ. जागृति बी. प्रजापति *संयोजक * डॉ. हेमन्त कुमार * संपादन सहयोग * परबत ठाकोर संजय गुर्जर * कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग * केतन डी. शाह For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न २४ श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर स्थित श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखितग्रंथानां विस्तृत सूची विभाग - १ : हस्तप्रत सूची वर्ग जैन साहित्य - - १ः खंड- २४ आशीर्वाद व प्रेरणा आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Descriptive Catalogue of Manuscripts Preserved in Śrī Devarddhigaṇi Kṣamāśramaṇa Hastaprat Bhāṇḍāgāra Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir (Jain, Indological Oriental Research Institute and Library) under the auspices of Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth Section - I : Manuscripts Catalogue Class - I : Jain Literature Volume - 24 Blessings & Inspiration Acharya Shri Padmasagarsurishwarji Publishers Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth, Gandhinagar, (Guj.) India 2018 For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasasagarsuri Memorial Catalogue Series - 24 Kailasa Śrutasagara Granthasūcī: 1.1.24 Descriptive Catalogue of Manuscripts - 1.1.24 Preserved in Śrī Dēvarddhigani Kṣamāśramana Hastaprat Bhāndāgāra Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir ©: Publisher • Vir Samvat 2544, Vikram Samvat 2074, A.D. 2018 Edition: First • प्रकाशन सौजन्य : श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ बावन जिनालय तीर्थ पेढी, भायंदर, मुंबई Shri Shankheshwar Parshwanath Bavan Jinalaya Tirth Pedhi, Bhayandar, Mumbai Available at: Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth O Publisher: Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar 382007. (Guj.) INDIA Tel: (079) 23276204, 23276205, 23276252, What'sApp: 07575001081 Web site: www.kobatirth.org E_mail: gyanmandir@kobatirth.org O Price: Rs. 1500/ O ISBN: 81-89177-00-1 (Set) 978-93-85803-25-3 (Vol.24) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir • Printer : Navprabhat Printing Press, Ahmedabad * उपलक्ष * श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के ८४ वें जन्मोत्सव पुनीत प्रसंग पर वि. सं. 2074, भाद्रपद सुद, 13, रविवार दि. 23-09-2018 For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कीर्तिसागरसूरीश्वरजी गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ॥ अर्हम् नमः ॥ मंगल कामना तीर्थंकरों की वाणी में सरस्वती का निवास है, श्री तीर्थंकर परमात्मा के श्रीमुख से निकली वाणी, जिसे गणधर भगवंतों ने सूत्ररूप में गुंफित किया है; ऐसे जिनागम की परंपरा को वाचना के द्वारा आज तक अविच्छिन्न रखनेवाले सभी आचार्य भगवंतों को वंदन. जिनागम को समर्पित निर्युक्तिकार-भाष्यकार - चूर्णिकार टीकाकार एवं ग्रंथों के प्रतिलेखक आदि श्रमण समूह का भी मैं ऋणस्वीकृतिपूर्वक पुण्य स्मरण करता है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनेक जैन संघों, श्रेष्ठियों तथा यतिवर्ग ने आज तक जैन साहित्य का संग्रह- संरक्षण करके अनुमोदनीय कार्य किया है, वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं. समय परिवर्तन के साथ परिस्थितिवश लोगों का गाँवों से शहर की ओर जाना प्रारंभ हुआ. यतिवर्ग भी लुप्तप्राय हुए. इन सभी कारणों से ग्रन्थभंडारों की स्थिति चिंतनीय बन गई. बहुत से ग्रन्थ विदेश जाने लगे, कुछ भंडार लोगों की उपेक्षा से नष्टप्राय होने लगे, ग्रन्थों की सुरक्षा भी एक समस्या बन गई. इन सब बातों को देखकर सर्वप्रथम सन् १९७४ में अहमदाबाद के चातुर्मास दौरान ग्रन्थ भंडारों को सुव्यवस्थित करने का मुझे विचार आया. परम श्रद्धेय आचार्य भगवंत श्रीमद् कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. से इस विषय में चर्चा करके उनके मंगल आशीर्वाद से कार्य प्रारंभ करने का संकल्प किया. श्रेष्ठीव स्व. कस्तुरभाई लालभाई आदि ने भी इस कार्य में सहयोग देने की भावना दर्शाई, सन् १९७९ में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र के नाम से कोबा में संस्था की स्थापना हुई. अनेक स्थानों व विविध प्रान्तों में विहार करके ग्रन्थों को संग्रह करने का कार्य प्रारंभ हुआ और धीरे-धीरे संग्रह समृद्ध बनता गया. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर आज भारत का एक सुव्यवस्थित समृद्ध ज्ञानभंडार है. प्राचीन प्रणाली को कायम रखते हुए भी इस ज्ञानमंदिर में आधुनिक साधनों का सुभग समन्वय हुआ है. ज्ञानभंडार को व्यवस्थित करने के साथ-साथ इस खंड से पूर्व की सूचियों में समाविष्ट अधिकांश ग्रंथों की मूलसूची बनाने का जो भगीरथ कार्य मुनि श्री निर्वाणसागरजी ने किया है तथा इस कार्य के लिए योग्य मार्गदर्शन देकर आचार्य श्री अजयसागरसूरिजी ने जो सहयोग दिया है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. अन्य मुनिराजों ने भी जो यथायोग्य बहुमूल्य सहयोग दिया है, उन सबकी मैं हार्दिक अनुमोदना करता हूँ. ज्ञानमंदिर के पंडितवर्ग ने जिस सूझ व धैर्य के साथ अस्तव्यस्त हस्तप्रतों को व्यवस्थित करने एवं प्रतों के बारीक अध्ययनपूर्वक अतिविवरणात्मक सूचीकरण के इस कार्य को उत्तरोत्तर गति प्रदान की, वह अपने आप में अनूठा व इतिहाससर्जक कार्य है. डॉ. हेमन्त कुमार, श्री संजयकुमार झा, श्री रामप्रकाश झा, श्री नवीनभाई जैन, श्री गजेन्द्रभाई शाह, श्री अरुणकुमार झा, श्री भाविन पंड्या, श्री राहुल त्रिवेदी, श्री अश्विन भट्ट, श्री पंकज शर्मा, डॉ. जागृति बी. प्रजापति, सुश्री मीनाक्षी शिंदे आदि सभी पंडितवरों, प्रोग्रामर श्री केतनभाई शाह एवं सभी सहयोगी कार्यकर्त्ताओं को मेरा हार्दिक धन्यवाद है. संस्था के अध्यक्ष श्री सुधीरभाई मेहता, ज्ञानमंदिर में चल रही विविध गतिविधियों की देख-रेख करनेवाले अन्य ट्रस्टीगण व कारोबारी सदस्य सभी को उनकी बहुमूल्य सेवाओं के लिए हार्दिक आशीर्वाद देता हूँ. अनेक श्रीसंघों, व्यक्तियों और जैन-जैनेतर लोगों ने भी इस कार्य में मुझे पूर्ण सहयोग दिया है, जिन्हें मैं धन्यवाद देता हूँ. ग्रन्थों के संरक्षण, सूचीकरण व प्रस्तुत २४वें खंड के प्रकाशन में आर्थिक सहयोग प्रदान करनेवाले श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ बावन जिनालय तीर्थ पेढी, भायंदर, मुंबई के प्रति भी धन्यवाद देता है. बड़ी संख्या में पूज्य साधु-साध्वीजी तथा विद्वान- शोधकर्ताओं द्वारा यहाँ के ग्रंथसंग्रह का सुंदर लाभ लिया जा रहा है, जो बड़ी ही प्रसन्नता का विषय है. इस ज्ञानभंडार के हस्तप्रतों के अपने-आप में विशिष्ट प्रकार के सूचीपत्र कैलास श्रुतसागर ग्रन्थसूची का २४वाँ खंड प्रकाशित हो रहा है, जो ज्ञानमंदिर के कार्य की सफलता का एक नया सोपान है. मुझे विश्वास है कि विश्वभर के विद्वज्जन इस ग्रंथसूची से महत्तम लाभान्वित होंगे. संस्था अपने विकासपथ पर उत्तरोत्तर आगे बढ़ती रहे, यही मेरी मंगल कामना है. I For Private and Personal Use Only पद्मसागर सूटि Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * प्रकाशकीय* जिनेश्वरदेव चरम तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी, श्रुतप्रवाहक पूज्य गणधर भगवंतों, योगनिष्ठ आचार्यदेव श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी तथा परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी की दिव्यकृपा से परम पूज्य आचार्यदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी के शिष्यप्रवर राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की प्रेरणा एवं कुशल निर्देशन में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखित जैन ग्रंथों की सूची के २४वें खंड को चतुर्विध श्रीसंघ के करकमलों में समर्पित करते हए श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबातीर्थ परिवार की अनुभूति कर रहा है. विश्व में बहुत से ग्रंथालय तथा ज्ञानभंडार हैं, किन्तु प्राचीन परम्पराओं के रक्षक ज्ञानतीर्थरूप आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर (जैन व प्राच्यविद्या शोध संस्थान एवं ग्रंथालय) में हस्तलिखित ग्रंथों का बेशुमार दुर्लभ खजाना पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा भारत के कोने-कोने से एकत्र किया गया है. यह ज्ञानभंडार इस भूमंडल पर अब अपना उल्लेखनीय स्थान प्राप्त कर चुका है. हस्तप्रतों की संप्राप्ति, संरक्षण, विभागीकरण, सूचीकरण तथा रख-रखाव के इस कार्य व मार्गदर्शन में राष्ट्रसंत पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरिजी के अधिकतर शिष्य-प्रशिष्यों का अपना योगदान रहा है. तपस्वी मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने तों के सूचीकरण हेतु वर्षों तक अहर्निश भगीरथ परिश्रम किया है. इस सूचीकरण की अवधारणा को और विकसित करने में तथा कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के कार्य में ग्रंथालय विज्ञान की प्रचलित प्रणालियों के स्थान पर महत्तम उपयोगिता व सूझबूझ का उपयोग करने में तथा समय-समय पर सहयोगी बनने हेतु आचार्य श्री अजयसागरसूरीश्वरजी तथा यहाँ के पंडितवर्यों, प्रोग्रामरों और कार्यकर्ताओं ने अपनी शक्तियों का यथासंभव महत्तम उपयोग किया है. इसी तरह पूज्य आचार्य भगवंत के अन्य विद्वान एवं प्रज्ञाशील शिष्यों का भी इस पूरी प्रक्रिया में विविध प्रकार का सहयोग प्राप्त होता रहा है, जिससे ज्ञानमंदिर की प्रवृत्तियों को विशेष बल एवं वेग मिलता रहा है. इस अवसर पर संस्था ज्ञात-अज्ञात सभी सहयोगियों व शुभेच्छुकों की अनुमोदना करते हुए हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करती है. सभी के मिले-जुले समर्पित सहयोग के बिना यह विशालकाय कार्य संभव नहीं था. पंडितों के साथ-साथ करीब पचास कार्यकर्ताओं के माध्यम से, श्रीसंघ के व्यापक हितों से संबद्ध ज्ञानमंदिर की अनेकविध प्रवृत्तियों के संचालन के लिए निरंतर बड़ी मात्रा में धनराशि की आवश्यकता रहती है. किसी भी प्रकार के सरकारी या अन्य किसी भी अनुदान को न लेकर मात्र संघों व समाज की ओर से मिलनेवाले आर्थिक व अन्य सहयोग के द्वारा कार्यरत इस संस्था में हस्तप्रत सूचीकरण व संलग्न अन्य विविध प्रवृत्तियाँ निरंतर गतिशील रहती हैं. इस भगीरथ कार्य हेत भारत व विदेश के श्रीसंघों, संस्थाओं व महानुभावों का आर्थिक सहयोग यदि नहीं मिल पाता तो इस कार्य को आगे बढ़ाना मुश्किल था. समस्त चतुर्विध संघ तथा संस्था के सभी शुभेच्छुकों को इस अवसर पर साभार-धन्यवाद दिया जाता है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में चल रहे श्रुतभक्ति के प्रत्येक कार्य में हमारे वर्तमान ट्रस्टीगण एवं कारोबारी सदस्य तो अत्यन्त उत्साही व सक्रिय रहे ही हैं, साथ-साथ ज्ञानमंदिर को आज की ऊँचाईयों तक पहुँचाने में भूतपूर्व ट्रस्टियों एवं कारोबारी सदस्यों का भी जो महत्त्वपूर्ण योगदान प्राप्त हुआ है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची-जैन हस्तलिखित साहित्य के इस २४वें खंड के वित्तीय सहयोग प्रदाता श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ बावन जिनालय तीर्थ पेढी, भायंदर, मंबई के प्रति संस्था कृतज्ञता व्यक्त करती है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची के इस २४वें रत्न का समाज में स्वागत किया जाएगा, ऐसा हमारा विश्वास है. श्री सुधीरभाई यु. महेता - प्रमुख श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र ट्रस्ट - कोबातीर्थ, गांधीनगर For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir શ્રી શંખેશ્વર પાર્શ્વનાથ બાવન જિનાલય તીર્થ ભાયંદર : એક પાવન પરિચય પૂજ્યપાદ સમર્થ સંઘનાયક શતાધિક જિનાલયપ્રણેતા યુગદિવાકર આ. ભ. શ્રી ધર્મસૂરીશ્વરજી મ.સા.ની પુણ્યપ્રેરણા ઝીલીને, મોદ્રકાનિવાસી દાનવીર-ધર્મવીર-કર્મવીર શ્રેષ્ટિવર્યશ્રી દેવચંદ જેઠાલાલ સંઘવીએ ભાયંદરની ભાગ્યવતીનગરીમાં પોતાની મોકાની ભૂમિ ઉપર બાવન જિનાલયતીર્થનાં મંડાણ કર્યા. વિ.સં. 2043માં મૂળનાયક શ્રી શંખેશ્વરપાર્શ્વનાથાદિ તમામ જિનબિંબોની પ્રતિષ્ઠા વૈશાખ શુદિ-11ના મંગલ મુહૂર્ત થઈ. | શેઠશ્રીના અવસાન બાદ તેમના ધર્મભાવનાશીલ સુપુત્રો શ્રી સુરેશભાઈ-શ્રી જિતેન્દ્રભાઈ-શ્રી અતુલભાઈના ટ્રસ્ટીપદે તીર્થનો વિકાસ નિરંતર ગતિશીલ રહ્યો છે. ત્યાર બાદ વિ.સં. 2058માં બે ગુરુમંદિરો અને દશ અધિષ્ઠાયક દેવોના મંદિરો તેમજ વિ.સં. 2062માં 108 ઇંચના કાઉસ્સગ્નમુદ્રાલીન શ્રી આદિશ્વરદાદાની પ્રતિષ્ઠા થઈ. વિ.સં. 2068માં બાવનજિનાલયતીર્થ પ્રતિષ્ઠાનો ભવ્યાતિભવ્ય રજત મહોત્સવ ઉજવાયો, વિ.સં. 2071માં પુણ્યવાન દાતા પરિવાર તરફથી દેવચંદનગર-શ્રાવિકા ઉપાશ્રય તથા આયંબિલભવનના પુનરુદ્ધાર થયા. તેમજ વિ.સં. 2073ના વર્ષે ગુરુમંદિર, ભૂગર્ભગૃહમાં નવનિર્મિત કલ્યાણમંદિર સંકુલની શાનદાર અંજનશલાકાપ્રતિષ્ઠાનું આયોજન થયું. _ઉપકારતીર્થ માતા-પિતાને સ્મરણાંજલિ “ઘટમાં ઘોડા થનગને, ને આતમ વીંઝે પાંખ; અણદીઠી એ ભોમ પર, માંડે યૌવન આંખ.” રાષ્ટ્રીય શાયર મેઘાણીની આ ઝીંદાદિલ પંક્તિ સાર્થક કરતાં હોય તેમ પૂ. પિતાશ્રી દેવચંદ જેઠાલાલ સંઘવી માત્ર 13 વર્ષની ઊગતી વયે મોઢુકા જેવા નાના ગામડામાંથી નસીબ અજમાવવા મુંબઇ આવ્યા અને ધીંગી કોઠાસુઝઅણિશુદ્ધવ્યવહારથી એમણે શૂન્યમાંથી સર્જન કર્યું. | મુંબઇના મલાડ તથા ભાયંદર ઉપનગરોમાં ‘દેવચંદનગર’નું નિર્માણ કરીને કેટલાય જ્ઞાતિજનોને એમણે પગભર કર્યા, તો “શેઠ દેવચંદ જેઠાલાલ હાઇસ્કૂલ” જેવી સંસ્થાઓ દ્વારા એમણે શૈક્ષણિક ક્ષેત્રે યોગદાન આપ્યું; પિતાશ્રી દેવચંદભાઇ સંઘવી મલાડમાં શાંતિનાથ જિનાલય, ભાયંદરમાં બાવન જિનાલય, હિંમતનગરમાં આદિનાથ જિનાલય, ઠાકુરદ્વારમાં 24 જીનાલય (મૂળનાયક શાંતીનાથ ભગવાન)ની સ્થાપના કરીને ધર્મશક્તિ કરી, તો સાતસો જ્ઞાતિજનોને બસ દ્વારા સમેતશિખરતીર્થયાત્રા કરાવીને એમણે તીર્થભક્તિ કરી. શ્રી હરસોલ 27 જ્ઞાતિના લાભાર્થે ભાયંદરમાં દેવવાટિકાના સંકુલનું ભવ્ય નિર્માણ કર્યું. પૂ. માતુશ્રી ચંપાબા તથા શાંતાબા પિતાશ્રીનાં સર્વ ધર્મકાર્યોમાં પ્રેરણામૂર્તિ બન્યા. ઉપરાંત ત્રણ ઉપધાન-50 0 આયંબિલ- વર્ષીતપ વર્ધમાનતપ- ઓળીઓ- નવપદજીઓળીઓ- અટ્રાઈઓ આદિ અનેકાનેક માતુશ્રી ચંપાબેન માતુશ્રી શાંતાબેન તપસ્યાઓ દ્વારા તેઓએ જીવનને તપોનિષ્ઠ બનાવ્યું હતું. | નિત્ય નવકારશી-ચોવિહાર-અનેક ધર્મનિયમો ધરાવતાં પૂ. ઉપકારતીર્થ પિતાશ્રીની ચિરવિદાયને પણ આ વર્ષે એકત્રીસ વર્ષ પૂર્ણ થઈ રહ્યા છે. જીવનયાત્રા - તા. 22-6-1912 તેઓએ દર્શાવેલ ધર્મમાર્ગે સદાય આગળ વધતા રહીએ એ શુભ ભાવના સાથે અનંતયાત્રા - તા. 18-7-1987 સમસ્ત પરિવારની હાર્દિક સ્મરણાંજલિ. | લિ. શેઠ દેવચંદ જેઠાલાલ સંઘવી સમસ્ત પરિવાર પ. પૂ. આ. ભ. શ્રી ધર્મસૂરીશ્વરજી મ. સા. ના આશિર્વાદથી પ. પૂ. રાષ્ટ્રસંત આ. ભ. શ્રી પાસાગરસૂરીશ્વરજી મ. સા. ની પ્રેરણાથી શ્રી દેવચંદ જેઠાલાલ સંઘવી પરિવાર સુરેશભાઈ-જ્યોત્નાબેન, જિતેન્દ્રભાઈ-શર્મિષ્ઠાબેન, અતુલભાઈ-ભારતીબેન, હર્ષિત-અમી, આનંદ-ક્રિષ્મા, સિદ્ધાર્થ-ફોરમ, આદિત્ય-અદિતી, સૌરભ-સમર્થ-નિર્મય-નેવીલ-ધ્રુવિલ-અનન્યા હેમલતા સુભાષચંદ્ર શાહ, સરસ્વતી પ્રફુલચંદ્ર દોશી, જયા પ્રદીપકુમાર વોરા, ઈલા પ્રફુલકુમાર શાહ, પલ્લવી ધીરેનકુમાર વખારીયા આદિ પરિવાર ' જ ' For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org * प्राक्कथन कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची प्रकाशन के अविरत सिलसिले में प्रकाशित हो रहे इस २४वें रत्न का प्रकाशन हमारे लिए गौरव की बात है. प्रस्तुत भाग में संस्कृत, प्राकृत व देशी भाषाओं की आगमिक साहित्य, कर्मसिद्धान्त की मूल, टीका, अवचूरि आदि महत्त्वपूर्ण कृतियों के अतिरिक्त देशी भाषाओं की रास, कथा, औपदेशिक - सुभाषित पद आदि अनेक कृतियाँ भी अप्रकाशित प्रतीत हो रही हैं. जिसमें तिलकाचार्य रचित श्राद्धलघुजीत व जीतकल्पसूत्र की टीका, हर्षकीर्तिसूरि रचित ज्योतिषसारोद्धार, धर्मचंद्र व गुणकीर्तिसूरि कृत सिंदुरप्रकर की टीका, सोमसुंदरसूरि रचित प्रत्याख्यानभाष्य की अवचूर्णि आदि. पुण्यसागर रचित अंजनासुंदरी रास, रूपविजय रचित अक्षरबावनी, गुणरत्नसूरि रचित आदिजिन रास, तत्त्वहंस रचित उत्तमकुमार चौपाई. महिमोदय रचित पंचांग गणित विधि आदि. इसी तरह दिगम्बर श्रावक द्यानतराय रचित लघुकृतियाँ तथा अन्य विद्वान रचित दिगंबर साहित्य काफी मात्रा में अप्रकाशित मिल रहे है. यहाँ ज्ञानमन्दिर में उपलब्ध सूचनाओं के अनुसार बहुत सी कृतियाँ अप्रकाशित प्रतीत हो रही हैं. इसमें यह संभावना भी है कि अभी भी बहुत सारे दिगम्बर साहित्य यहाँ संग्रहित नहीं हो पाये हैं. अतः उनकी सूचना न होने से भी ये कृतियाँ अप्रकाशित प्रतीत हो रही हैं. सभी विद्वानों से प्रार्थना है कि इनके अप्रकाशित होने के विषय में अन्य स्रोतों से भी आश्वस्त हो जाएँ. पू. आचार्य श्री ज्ञानविमलसूरि के अनेक स्तवनादि अप्रकाशित ज्ञात हुए हैं. हस्तप्रतों के वर्गीकरण से लेकर सूचीकरण तक का संपूर्ण कार्य बडा ही जटिल व कष्टसाध्य होता है, परंतु उनमें समाहित महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ, जो अद्यावधि विद्वद्वर्ग की नजरों से ओझल थीं, उन्हें आपके कर-कमलों में समर्पित करने का यह सुंदर परिणाम हमारे लिये अपार संतोषदायक सिद्ध हो रहा है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन साहित्य एवं साहित्यकार कोश परियोजना के अन्तर्गत शक्यतम सभी जैन ग्रंथों व उनमें अन्तर्निहित कृतियों का कम्प्यूटर पर सूचीकरण करना; एक बहुत ही जटिल व महत्वाकांक्षी कार्य है. इस परियोजना की सबसे बड़ी विशेषता है, ग्रंथों की 'सूचना पद्धति. अन्य सभी ग्रंथालयों में अपनायी गई, मुख्यतः प्रकाशन और पुस्तक पर ही आधारित द्विस्तरीय पद्धति के स्थान पर, यहाँ विविधस्तरीय सूचना पद्धति विकसित की गई है. इसे कृति, विद्वान, प्रत, प्रकाशन, सामयिक व पुरासामग्री; इस तरह छः भागों में विभक्त कर बहुआयामी बनाया गया है. इसमें प्रत, पुस्तक, कृति, प्रकाशन, सामयिक व एक अंश में संग्रहालयगत पुरासामग्री; इन सभी का अपने-अपने स्थान पर महत्त्व कायम रखते हुए भी इन सूचनाओं को परस्पर संबद्धकर एकीकरण का कार्य कर दिया गया है. कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची खंड- २४ से पूर्व के सभी खंडों में समाविष्ट अधिकांश प्रतों की मूल सूची श्रुतसेवी पूज्य मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने वर्षों की मेहनत से बनाई थी. उसी का अनुसरण करते हुए हमने यह संपादनकार्य किया है. मुनिश्री के हम चिरकृतज्ञ हैं. समग्र कार्य के दौरान श्रुतोद्धारक पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. तथा श्रुताराधक आचार्य श्री अजयसागरसूरीश्वरजी म. सा. की ओर से मिली प्रेरणा व मार्गदर्शन ने इस जटिल कार्य को करने में हमें सदा उत्साहित रखा है. साथ ही पूज्यश्री के अन्य शिष्य-प्रशिष्यों की ओर से भी हमें सदा सहयोग व मार्गदर्शन मिलता रहा है, जिसके लिए संपादक मंडल सदैव आभारी रहेगा. इस ग्रंथसूची के आधार से सूचना प्राप्त कर श्रमणसंघ व अन्य विद्वानों के द्वारा अनेक बहुमूल्य अप्रकाशित ग्रंथ प्रकाशित हो रहे हैं, यह जानकर हमारा उत्साह द्विगुणित हो जाता है; फलतः हमें अपना श्रम सार्थक प्रतीत होता है. प्रतों की प्राथमिक सूचनाओं की कम्प्यूटर में प्रविष्टि तथा सन्दर्भ हेतु पुस्तकें आदि शीघ्रतापूर्वक उपलब्ध कराने हेतु ज्ञानमन्दिर के सभी कार्यकर्त्ताओं को हार्दिक धन्यवाद. सूचीकरण का यह कार्य पर्याप्त सावधानीपूर्वक किया गया है. फिर भी जटिलता एवं अनेक मर्यादाओं के कारण क्वचित् भूलें रह गई होंगी. विद्वानों से करबद्ध आग्रह है कि इस प्रकाशन में रह गई भूलों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करें, जिससे भविष्य में प्रकाशित होनेवाले भागों में यथोचित सुधार किए जा सकें. - संपादक मंडल III For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुक्रमणिका मंगलकामना. प्रकाशकीय ................ii ................. iii प्राक्कथन ............................................................................. अनुक्रमणिका ..................................................................... .............iv प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत........................................ तपूना सदानपतपत............................................................................................ V-VI हस्तप्रत सूचीकरण सहयोग सौजन्य एवं सादर ग्रंथ समर्पण.................... .....vii-viii हस्तप्रत सूची...................... ........................................... .....................१-४७४ परिशिष्ट : कृति परिवार अनुसार प्रत-पेटाकृति अनुक्रम संख्या.... ....४७५-५९६ १. संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से कृति परिवार सह प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १. ........४७५-५३६ २. देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से कृति परिवार सह प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २. .......५३७-५९६ इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान/व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सबका विस्तृत विवरण व टाइप सेटिंग संबंधी सूचनाएँ भाग 7 के पृष्ठ VI एवं परिशिष्ट परिचय संबंधी सूचनाएँ भाग 7 के पृष्ठ 454 पर हैं. कृपया वहाँ पर देख लें. प्रस्तुत खंड २४ में निम्नलिखित संख्या में सूचनाओं का संग्रह है. * प्रत क्रमांक - १००९५१ से १०६४५५ * इस सूचीपत्र में मात्र जैन कृतियों वाली प्रतों का ही समावेश किए जाने के कारण वास्तविक रूप से इस खंड में २५८४ प्रतों की सूचनाओं का समावेश हुआ है. * समाविष्ट प्रतों में कुल ३०६९ कृति परिवारों का समावेश हुआ है. * इन परिवारों की कुल ३९३१ कृतियों का इस सूची में समावेश हुआ है. * सूची में उपरोक्त कृतियाँ कुल ६२३५ बार आई हैं. ____IV For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेपवसंकेत* .. कृति नाम के अंत में, विभिन्न अज्ञात विद्वान कर्तृक, अनेक अस्थिर टबार्थ व श्लोक संग्रह जैसी समान कृतियों के समुच्चय रूप या फुटकर कृति दर्शक संकेत. ............ कृति/प्रत/पेटांक नाम के बीच : का, की, के, इत्यादि विभक्ति सूचक. (-)........... प्रत क्रमांक के अंत में छोटे ऊर्ध्वाक्षरों में - दुर्वाच्य, अवाच्य, अशुद्ध पाठ - सूचक. (+).......... प्रत क्रमांक के अंत में छोटे ऊर्ध्वाक्षरों में - प्रत की महत्ता सूचक. - इस हेतु प्र.वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. कर्ता-कर्ता के शिष्य-प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित, रचना के समीपवर्ती काल में लिखित, संशोधित - शुद्धप्राय - टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पाठ में सुगमता हेतु विविध प्रकार के चिह्नयुक्त प्रत, यथा- अन्वय दर्शक अंक युक्त, पदच्छेद - संधि सूचक - वचन विभक्ति - क्रियापदसूचक चिह्न आदि वाली प्रत. ......... कृति नाम के बाद प्रयुक्त होने पर संयुक्त कृति की पहचान - यथा आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति, भाष्य व तीनों की लघुवृत्ति. (#) प्रत क्रमांक के अंत में छोटे ऊर्ध्वाक्षरों में. प्रत की अवदशा, पाठ नष्ट हो जाने से प्रत की उपयोगिता में कमी का सूचक. इस हेतु प्र.वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. मूल पाठ का, टीकादि का, मूल व टीका का, टिप्पणक का अंश नष्ट है. अक्षर फीके पड़ गये हैं, मिट गये हैं, पन्नों पर आमने-सामने छप गये हैं. अक्षर की स्याही फैल गई है. पत्र जीर्णतावश नष्ट होने लगे हैं, हो गये हैं. ($).......... कृति परिशिष्टों में प्रत क्रमांक के अंत में ऊर्ध्वाक्षरों से प्रत की अपूर्णता सूचक. अपूर्ण, लुटक, प्रतिअपूर्ण हेतु. (--)......... आदिवाक्य अनुपलब्ध. अप........... अपभ्रंश (कृति भाषा) अंति:......... अंतिमवाक्य (कृतिमाहिती) आ............ आचार्य (विद्वान स्वरूप) आदि......... आदिवाक्य (कृतिमाहिती) उप............ प्रत प्रतिलेखन उपदेशक. (प्र. ले. पु. विद्वान) उपा.......... उपाध्याय (विद्वान स्वरूप) ऋ............. ऋषि (विद्वान स्वरूप) क............. कवि (विद्वान स्वरूप) कुं............. कुंडली (कृति स्वरूप) कुल ग्रं....... मूल व टीका आदि का संयुक्तरूप से सर्वग्रंथाग्र परिमाण - प्रत व पेटाकति विशेष में. कुल पे....... कुल पेटाकृति (प्रतमाहिती स्तर) क्रीत.......... प्रत को खरीदनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) को........... कोष्टक (कृति स्वरूप) ग............. गणि (विद्वान स्वरूप) गडी.......... गडी किए हुए पत्रों वाली प्रत. गद्य.......... गद्यबद्ध (कृति प्रकार) गा............ गाथा (कृति परिमाण) गु............. गुजराती (कृति भाषा) गृही........... गृहीत. आदान-प्रदान में प्रत को प्राप्त करने वाला (प्र. ले. प. विद्वान) For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra गोटका. गोल, ग्रं. जै... जै.. जैदे. ते. दत्त.. दि... देना.. पं..... पं. पठ. पद्य. पा. पु. हिं.. पू. वि. पूर्व. . बंधे पत्रों वाली प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) क्वचित् | प्रे. गोटका शब्द भी प्रयुक्त होता है. ... . गोल कुंडलाकार प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) . ग्रंथाग्र (कृति परिमाण) . जैन कृति (कृति परिशिष्ट ) . जैन कवि (विद्वान स्वरूप) . जैन देवनागरी (प्रत लिपि) . जैन श्वेतांबर तेरापंथी कृति. (कृति परिशिष्ट) . आदान-प्रदान में प्रत देनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) . जैन दिगंबर कृति. (कृति परिशिष्ट) . देवनागरी (प्रत लिपि) प+ग.......... पद्य व गद्य संयुक्त (कृति प्रकार) . पद्यबद्ध (कृति प्रकार) . पाठक (विद्वान स्वरूप) प्र. सं. प्रा. .... पंजाबी (कृति भाषा ) . पंन्यास, पंडित (विद्वान स्वरूप) . पठनार्थ. जिसके पढ़ने हेतु प्रत लिखी या लिखवाई गई हो. (प्र. ले. पु. विद्वान) www.kobatirth.org पृ.. पे. नाम. . प्रतगत पेटाकृति नाम पे. वि......... प्रतगत पेटाकृति विशेष पै. कृतिमाहिती स्तर) . कृतिमाहिती में वर्ष प्रकार सूचक 'वि. 'श' आदि के बाद संवत् प्रवर्तन के पूर्व का वर्ष दर्शक... . पृष्ठ सूचना (प्रत माहिती स्तर पर व पेटाकृति स्तर पर) . पैशाची प्राकृत (कृति भाषा) प्र. वि..... प्रत विशेष. प्रले.. म. महा. मा. . पुरानी हिंदी (कृति भाषा ) . पूर्णता विशेष (प्रतमाहिती, पेटाकृति माहिती व विक्र.. वी.. प्र. ले. पु..... प्रतिलेखन पुष्पिका की - (प्रत/पेटाकृति/कृति स्तर) ('सामान्य, मध्यम' आदि उपलब्धता सूचक.) प्र.ले.श्लो.... प्रत, पेटाकृति व कृति हेतु प्रतिलेखक द्वारा लिखित प्रतिलेखन श्लोक (जलात् रक्षेत्... इत्यादि) . प्रति संशोधक . प्राकृत (कृति भाषा ) मा.गु. मु.. मु.. मूपू.. यं.. रा.. रा.. वा. वि.. . राजा (विद्वान स्वरूप) . राजस्थानी (कृति भाषा ) राज्ये. राज्यकाल ... जिस राजा के राज्य शासनकाल में प्रत लिखी गई हो. . जिस आचार्य के गच्छनायकत्व काल में प्रत का लेखन हुआ हो. . प्रत लिखवाने वाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) लिख. ले. स्थल..... लेखन स्थल (प्रतिलेखन पुष्पिका) . वाचक (विद्वान स्वरूप) . विक्रम संवत् (वर्ष माहिती) (प्र. ले. पु., कृति रचना वर्ष) . विक्रेता प्रत का. (प्र. ले. पु. विद्वान ) . वर्ष संख्या के पूर्व होने पर 'वीर संवत' यथा वी. २०००. वर्ष संख्या पश्चात् होने पर 'वी सदी'. यथा- ८वी सदी. (७१०-८००) (प्र. ले. पु., कृति रचना वर्ष) वै. व्या.प. श.... श्राव. श्रावि.. प्रतिलेखक, लहिया, (प्रतिलेखन पुष्पिका. प्रत, श्रु.. पेटाकृति, कृति माहिती स्तर पर.) वे. सं.. सम. सा. स्था. हिं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . प्रतलेखन प्रेरक. (प्र. ले. पु. विद्वान) . बौद्ध कृति (कृति परिशिष्ट) मराठी (कृति भाषा ) VI . महाराष्ट्री प्राकृत (कृति भाषा ) . मागधी प्राकृत (कृति भाषा) . मारुगुर्जर (कृति भाषा) . मुनि (विद्वान स्वरूप) . मुस्लिम धर्म (कृति परिशिष्ट) . जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक कृति (कृति परिशिष्ट) . यंत्र (कृति स्वरूप) . वैदिक कृति. (कृति परिशिष्ट) . व्याख्याने पठित - विद्वान द्वारा. (प्र. ले. पु. विद्वान ) . शक संवत् (वर्ष माहिती - प्र. ले. पु. कृति रचना वर्ष ) श्रावक (विद्वान स्वरूप) श्राविका (विद्वान स्वरूप) . श्रोता द्वारा व्याख्यान में श्रुत. (प्र. ले. पु. विद्वान ) . जैन श्वेतांबर कृति (कृति परिशिष्ट) . संस्कृत (कृति भाषा ) . समर्पक ज्ञानभंडार को प्रत समर्पित करनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) . साध्वीजी (विद्वान स्वरूप) . जैन श्वेतांबर स्थानकवासी (कृति परिशिष्ट) . हिंदी (कृति भाषा ) For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (*सुकृत केसहभागी*) * हस्तप्रत सूचीकरण में विशिष्ट आर्थिक सहयोगियों की नामावली * ट, मुंबई मुंबई १.शेठ आणंदजी कल्याणजी (धार्मिक धर्मादा ट्रस्ट), २५. श्री जुह स्कीम जैन संघ, विलेपार्ले (वे.) मुंबई पालडी अहमदाबाद |२६. श्री शांतिनाथ देरासर जैन पेढी, श्री शंखे. पार्श्व., २. श्री शांतिलाल भुदरमल अदाणी परिवार, अहमदाबाद | | बावन जिनालय, देवचंदनगर रोड, भायंदर (वे.) थाणा मुंबई ३. बाबु श्री अमीचंद पन्नालाल आदीश्वर ट्रस्ट, वालकेश्वर मुंबई २७. श्री जैन पंच महाजन मांडाणी (राज.) ४. शेठ श्री झवेरचंद प्रतापचंद सुपार्श्वनाथ जैन संघ, २८. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर (राज.) __ वालकेश्वर मुंबई २९. श्री संभवनाथ जैन ट्रस्ट बिसलपुर (राज.) ५. श्री प्लेजेंट पैलेस जैनसंघ मुंबई ३०. श्री पुष्पदंत श्वे. मू. पू. जैन संघ अहमदाबाद ६. श्री गोवालिया टैंक जैनसंघ |३१. श्री सेटेलाईट श्वे. मू. पू. जैन संघ अहमदाबाद ७. श्री प्रेमलभाई कापडिया ३२. श्री वेपेरी श्वे. मू. पू. जैन संघ चेन्नई ८. श्री जवाहरनगर जैन श्वे. मू. पू. जैन संघ, गोरेगांव मुंबई ३३. श्री शाहीबाग-गीरधरनगर जैन श्वे. मू. पू. संघ अहमदाबाद ९. जैन सेन्टर ऑफ नॉर्दर्न केलिफोर्निया अमेरिका ३४. श्रीमद यशोविजय जैन संस्कृत पाठशाला ___ महेसाणा १०. श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन बोर्डिंग अहमदाबाद ३५. श्री जैन सोसायटी जैन संघ अहमदाबाद ११. श्री शंभुकुमार कासलीवाल मुंबई |१२. शेठ मोतीशा जैन रिलीजियस एन्ड चेरीटेबल ट्रस्ट पाली-राज. मुंबई |३६. शेठ नवलचंद सुप्रतचंद जैन देवकी पेढी |१३. फेडरेशन ऑफ जैन एसोसिएसन इन नॉर्थ ३७. श्री माटुंगा जैन श्वे. मू. पू. तपगच्छ संघ मुंबई अमेरिका, 'जैना' हस्ते डॉ. प्रेमचंदजी गडा अमेरिका ३८. श्री दशापोरवाड सोसायटी जैन संघ अहमदाबाद १४. श्री एम. जे. फाउन्डेशन मुंबई ३९. श्री विले पार्ले (वे.) श्वे. मू. पू. संघ मुंबई १५. श्री कल्याण पार्श्वनाथ जैन संघ, चौपाटी ४०. श्री जैन श्वे. मू. पू. संघ, शिव, सायन मुंबई १६. श्री सांताक्रूज़ जैन तपगच्छ संघ, श्री कुंथुनाथ |४१. श्री सीमंधरस्वामी जिनमंदिर पेढी महेसाणा । जैन देरासर मार्ग, सांताक्रुज (वे.) ४२. श्री अदाणी फाउन्डेशन अहमदाबाद |१७. श्री महावीर जैन श्वे. मू. पू. संघ, पालडी अहमदाबाद | ४३. श्री शेढुंजय तीर्थधाम, भुवनभानु मानसमंदिर मुंबई १८. श्री श्वे. मू. पू. जैन संघ, नानपुरा, ४४. श्री घाटलोडीया जैन श्वे.मू.पू.संघ अहमदाबाद १९. श्री आंबावाडी मू. पू. जैन संघ अहमदाबाद |४५. श्री नवजीवन जैन श्वे.मू.पू. संघ, लेमीग्टन २०. श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ श्वे. मू. पू. जैन संघ, ४६. श्री बोरीवली जैन श्वे.मू.पू.तपा.संघ मुंबई आरे रोड, गोरेगाँव मुंबई |४७. श्री एरोमा केमीकल एजन्सी (इ) प्रा.ली. पारले २१. श्री राजस्थान जैन श्वे. मू. पू. संघ, जयनगर, बेंग्लोर ४८. श्री पार्श्वनाथ जैन श्वे. टेम्पल बेल्लारी |२२. श्री आदिनाथ जैन श्वे. मंदिर ट्रस्ट, चिकपेट, | ४९. श्री शांतिनाथ जैन संघ, मलाड (पू.) । २३. श्री महुडी जैन श्वे. मू. पू. ट्रस्ट, महुडी | ५०. आ.बुद्धिसागरसूरि समुदायना पू.ज्योतिप्रभाश्रीजी तथा २४. श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज़, मुंबई | पृ.जयरक्षिताश्रीजीना सदउपदेशथी भक्तगणो तरफथी मुंबई मुंबई सुरत मुंबई मुंबई बेंग्लोर मुंबई * हस्तप्रत सूचीकरण में आर्थिक सहयोगियों की नामावली * १. श्री नितिनभाई अशोकजी महेता २. श्री पंकजकुमार ज्ञानचंदजी गांधी, चार्टर्ड स्पीड प्रा. लि. कोईम्बतूर अहमदाबाद VII For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (* सुकत केसहभागी * ) हस्तप्रत सूचीकरण में 9 से २४ भाग के आर्थिक सहयोगियों की नामावली १. रमेशकुमार चोथमलजी, तारादेवी रमेशकुमार : सन्स | १४. डॉ. विनय के. जैन - प्रेसीडेन्ट (जीवदया फाउन्डेशन) ___ नोवी, हाल शिवगंज (राज.) यु.एस.ए. २. श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर १५. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद ३. घाणेराव (राजस्थान) निवासी श्रीमती मोहिनीबाई १६. श्री विजय देवसूर संघ श्री गोडीजी महाराज ___ एस. देवराजजी जैन चेन्नई __ जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज, पायधुनी मुंबई ४. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर १७. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ५. मांडवला (राज.) निवासी संघवी मुथा । १८. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद ___ मोहनलालजी रघुनाथमलजी सोनवाडीया परिवार चेन्नई १९. श्रीमती छगनकंवर अमृतलालजी गांधी परिवार ६. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर सिरोही-जोधपुर ७. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर २०. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद ८. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर २१. शेठ श्री देवीचंद, विकासकुमार, अनिलकुमार चोपड़ा ९. शेठ श्री आणंदजी कल्याणजी पेढी अहमदाबाद परिवार (बच्छराज डेवलपर्स) मुंबई १०. श्री भवानीपुर मूर्तिपूजक जैन श्वेताम्बर संघ कोलकाता २२. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद ११. श्रीमती तारादेवी हरखचंदजी कांकरिया परिवार २३. शेठ श्री सोहनराजजी बच्छराजजी सिंघवी परिवार कोलकाता कोलकाता १२. श्री सांताक्रुज जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ मुंबई २४. श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ बावन जिनालय तीर्थ पेढी, १३. डॉ. विनय के. जैन - प्रेसीडेन्ट (जीवदया फाउन्डेशन) भायंदर, मुंबई यु.एस.ए. * सादरसमर्पण* कल्याणस्वरूप तीर्थंकरों द्वारा स्थापित श्रमणप्रधान चतुर्विध श्रीसंघ के ___ करकमलों में... जिनके द्वारा यह श्रुतपरंपरा अक्षुण्ण रही. ० ० ० VIII For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥श्री महावीराय नमः॥ ॥ श्री बुद्धि-कीर्ति-कैलास-सुबोध-मनोहर-कल्याण-पद्मसागरसूरि सद्गुरुभ्यो नमः॥ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १००९५३. (+#) नवस्मरण, संपूर्ण, वि. १७८१, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. १४, ले.स्थल. गंगराड, प्रले. मु. सोमजी ऋषि (गुरु मु. अमराजी ऋषि, विजयगच्छ); गुपि. मु. अमराजी ऋषि (विजयगच्छ); पठ. मु. हरजी ऋषि (गुरु मु. सोमजी ऋषि, विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१०.५, १३४३०). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: जैनं जयति शासनम्, (वि. संतिकरं व कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं है तथा बृहत्शांति खरतरगच्छ की है.) १००९६६ (+) जोगचिंतामणि, संपूर्ण, वि. १८०४, वैशाख शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. १११, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. सभाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:जोगचिंता., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ४०००, जैदे., (२३४१०.५, १५४५०). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: यत्र वित्रासमायांति; अंति: योगचिंतामणिश्चिरम्, अध्याय-७. १००९६७. (#) हंसराजवत्सराज चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४-४(३ से ४,१०,४०)=४०, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४११, १५४२३). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदिसर आदे करि चउवीसे जिण; अंति: (-), (पृ.वि. खंड-४ ढाल-३५ गाथा-६ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १००९६८. (+#) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १५९८, वैशाख शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १३९-३(१,१२८ से १२९)=१३६, ले.स्थल, सीरोहिनगर, पठ. मु. हेमसमुद्र (गुरु ग. हर्षसमुद्र); गुपि.ग. हर्षसमुद्र (गुरु ग. लावण्यसमुद्र शिष्य); ग. लावण्यसमुद्र शिष्य (गुरु ग. लावण्यसमुद्र पंडित); ग. लावण्यसमुद्र पंडित (गुरु आ. सोमविमलसूरि); आ. सोमविमलसूरि; प्रले. श्राव. दूदा सा; अन्य. श्राव. रत्न सा; श्राव. ठाकुर सा; श्राव. थावर सा; श्राव. करमसि सा; श्राव. समरथ सा; श्राव. तेजसी सा; राज्यकाल रा. रायसिंह, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४१०.५, १३४३६-४२). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: अंगं जहा आयारस्स, अध्याय-१०, गाथा-१२५०, ग्रं. १३००, (पू.वि. सूत्र-१ अपूर्ण से है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: संशोधिता चेयम्, अध्याय-१०, ग्रं. ५६३०. १००९७० (+#) रायपसेणीयसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १९८-१(३१)=१९७, प्रले. मु. किसनस्वामी; अन्य. मु. मोतीराम ऋषि; ऋ. हरखचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:रायप्रष्णीका., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ३२८१, मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४११, ५४३०-३६). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: सुपस्सणीएणं नमो, सूत्र-१७५, ग्रं. २१००, (पू.वि. 'बहवे वेमाणिया देवादेवी सव्वढि ए जाव रवे' से 'सूरिया देवं पुरउपासउयमग्रेतोयसमणु गच्छति' पाठांश तक नहीं है.) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गद्य, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंति: तेह भणी नमस्कार थाओ, ग्रं. ५५००. १००९७१ (+) सामायिक अतिचार सह टीका, संपूर्ण, वि. १६६९, माघ कृष्ण, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. अहिपुर, पठ. श्रावि. वीरबाई डुंगरसी छजलाणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अतियर., पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, ४४३८). सामायिक अतिचार, प्रा., गद्य, आदि: नमो चउवीसाए; अंति: अरे समणे तहा संघे. सामायिक अतिचार-टीका, मु. कल्याणशिष्य, सं., गद्य, वि. १६४८, आदि: श्रीमद्वीरजिनं नत्वा सर्व; अंति: (१)तद्गुणादाविति गाथार्थ, (२)सर्वोभावोपदेशका, ग्रं. ६००. For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १००९७२. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८६-२ (६३*, ७७*) +२ (६४,७६)=८६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५X१०.५, ५X३६-३९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगा विप्यमुक्कस्स: अति: (-) (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. अध्ययन-२२ गाथा-३५तक लिखा है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा संग्रह, मु. पार्श्वचंद्रसूरि - शिष्य, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानजिनं; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. अध्ययन- १९ गाथा- १७ अपूर्ण से ६१ अपूर्ण तक व गाथा ६७ अपूर्ण से नहीं लिखा है.. वि. कथा रहित.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १००९७३ (+) लघुशांति सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५०-४५ (१ से ४५) =५, प्र. वि. प्रारंभिक ४५ पत्रों में नवस्मरण होना चाहिए., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४x११, ३x२२-२६). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शांति शांतिनिशांतं, अंति जैनं जयति शासनम्, श्लोक १९, संपूर्ण. लघुशांति-टबार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: श्रीशांतिनाथ प्रति अति जैन शासन जयवतो धावो, संपूर्ण १००९७४. (+) जीवविचार व नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी : जीवविचार., संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. जैदे. (२४.५४१९, ४२८-३२). , १. पे. नाम जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण " जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि भुवणपईव वीर नमिऊण भणामि ; अति रुद्धाओ | सूअ समुद्धाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-वार्थ* मा.गु., गद्य, आदि भुवनलोकनइ प्रकाशिवा दिपक, अति सिद्धांत समुद्र थकी. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुन्नं पावा अति: (-) (पू. वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा- टवार्थ*, मा.गु, गद्य, आदि जीवतत्त्व अजीवतत्त्व अंति: (-). १००९७६. (+४) बृहत्संग्रहणी, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९, प्र. वि. लेखक ८ की जगह पत्र ९ लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२४.५x११, १४४१). बृहत्संग्रहणी, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा. पद्य वि. ७पू, आदि नमिठं अरिहंताई ठिइ भवणो; अंति: (-), " (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा २४१ अपूर्ण तक लिखा है.) १००९७७ (+४) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी कल्पसूत्र, पदच्छेद सूचक लकीरें मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२४.५X१०.५, ८४२७-३०). " कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि नमो अरिहंताणं नमो अंति (-), (पू. वि. पाठ 'गामठ्ठाणेसु वा नगरठ्ठाणेसु वा' तक है.) १००९८० (+) यशोधर रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-४ (१ से ३,७)=५, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. हुंडी : यशोधररास., संशोधित., जैदे., (२५X११, १४X३६). यशोधरराजा रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६७१, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा- ४२ अपूर्ण से ९९ अपूर्ण तक व गाथा ११५ अपूर्ण से १५७ अपूर्ण तक है.) १००९८१ (+) बृहत्संग्रहणी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जै, (२४.५X१०.५, १५X४२-४६). " बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिठं अरिहंताई ठिह अंति (-), (पू.बि. गाथा २७६ तक है.) बृहत्संग्रहणी- बालावबोध, ग. दयासिंह, मा.गु., गद्य, वि. १४९७, आदि (१) नत्वा श्रीवीरजिनं, (२) चउवीसमु तीर्थंकर अंति: (-)१००९८२ (+) बृहत्संग्रहणी व लघुसंग्रहणी, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १५, कुल पे. २. प्र. वि. हुंडी संग्रणीसूत्र, पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२३.५X११, १०X३५-३८). 1 For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir w - महाह. हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १. पे. नाम. बृहत्संग्रहणी, पृ. १अ-१५आ, संपूर्ण, प्रले. मु. वेलसागर (गुरु पं. रूपसागर गणि); गुपि.पं. रूपसागर गणि (गुरु पं. भाग्यचंद गणि); पं. भाग्यचंद गणि; अन्य. मु. राजसागर (गुरु पं. रूपसागर गणि), प्र.ले.पु. सामान्य. आ. चंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३१४. २. पे. नाम. लघुसंग्रहणी, पृ. १५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) १००९८७. (+) भगवतीसूत्र-शतक ११ उद्देश ९ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१०(१ से १०)=८, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:भगव० ट०, भग०८०., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२२.५४१०.५, ५४२५-२८). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. 'छठछठेणं अणिखित्तेणं' पाठांश से 'आउयं च परिवसणा' पाठांश तक है.) भगवतीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १००९८८. यशोधरमहाराज चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-१(२)=५, दे., (२३.५४११, ७४२३-२६). यशोधरमहाराज चरित्र, मु. श्रुतसागरशिष्य, सं., पद्य, आदि: विद्यानंदीश्वरं देवं नाभि; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-६ अपूर्ण से १७ अपूर्ण तक नहीं है व श्लोक-५२ अपूर्ण तक लिखा है.) १००९८९ (-) आषाढा- चोढालिउ, अपूर्ण, वि. १८४९, कार्तिक कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. २६-१७(१ से १७)=९, ले.स्थल. धोराजी, प्रले. नथु; पठ. नानचंदजी जसराज रावत, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२२.५४११, ६४२६). आषाढाभूतिमुनि चौढालियो, मु. माल, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: वाणी अमरीत सारमी आपो सरसत; अंति: मालमुनी अधिकार रे, ढाल-४, संपूर्ण. १००९९०. (#) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १४-८(१ से ८)=६, प्र.वि. पत्रक्रम का उल्लेख क्रमशः नहीं है., मूल पाठ का अंश खंडित है, ., (२१४११.५, ९४३८). साधप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अतिचारसूत्र अपूर्ण से है व 'पडि० भंते वदपडिमाए' सूत्र अपूर्ण तक लिखा है.) १००९९५ (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र व धम्मोमंगल पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११, ९४२९). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. २. पे. नाम. धम्मोमंगल पद, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रमपुष्पिका अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: ___ साहुणो त्तिबेमि, गाथा-५. १००९९६ (+) षट्पंचाशिका व भुवनदीपक, संपूर्ण, वि. १७९४, पौष शुक्ल, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, प्रले. मु. धनविजय (गुरु पं. शांतिविजय गणि); गुपि.पं. शांतिविजय गणि (गुरु भट्टा. विजयरत्नसूरि); भट्टा. विजयरत्नसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १३४३६). १.पे. नाम. षट्पंचाशिका, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १७९४, पौष शुक्ल, ५, गुरुवार, पे.वि. हुंडी:षट्पंचाशि. आ. पृथुयशा, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य रविं; अंति: देशोवयोजातिश्च लग्नपात्. २.पे. नाम. भुवनदीपक, पृ. ३अ-१०आ, संपूर्ण, वि. १७९४, पौष शुक्ल, ११, बुधवार, पे.वि. हुंडी:भुवनदीपक, भुवनदीप. __ आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: कृतं श्रीपद्मसूरिभिः, श्लोक-१७३. १००९९८. (+#) चित्रसंभूति रास, अपूर्ण, वि. १७५७, वैशाख शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. २७-२(५,१८)=२५, प्रले. मु. रुपविजय; गुभा. ग. विमलविजय (गुरु ग. मानविजय, तपागच्छ); गुपि.ग. मानविजय (गुरु पंन्या. हर्षविजय, तपागच्छ); पंन्या. हर्षविजय (गुरु पंन्या. गुणविजय, तपागच्छ); पंन्या. गुणविजय (गुरु पंन्या. पुण्यविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:चित्रसंभूतरास., पदच्छेद सूचक लकीरें-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२४.५४१०.५, १५४३६-४४). For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चित्रसंभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: प्रथम नमुं परमेसरु; अंति: दीइं दोलति दीदारु रे, ढाल-३९, गाथा-७४५, ग्रं. ११००, (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., ढाल-६ की गाथा-८ अपूर्ण से ढाल-७ की गाथा-१२ अपूर्ण व ढाल-२८ की गाथा-४ से ढाल-२९ की गाथा-३ अपूर्ण तक नहीं है., वि. अंत में त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रगत ब्रह्मदत्तचक्रवर्ती का मंडलिकादि सत्तासमय दिया है.) १००९९९ (+) अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. अपोणानगर, प्रले. मु. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५४११, ११४२९). अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं संति; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. १०१००० (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(२)=५, ले.स्थल. उसमापुर, प्रले. मु. लब्धिचंद्र (गुरु उपा. भाणचंद्र गणि); गुपि. उपा. भाणचंद्र गणि; पठ. मु. नरचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, ५४३१). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४७, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से १६ अपूर्ण तक नहीं है.) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ, रा., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: आवतइ कालवली अनंतगुणा छइ. १०१००२ (+#) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६३-४९(१ से १६,१८ से २२,२५,२७ से ३८,४०,४२,४४ से ४९,५६ से ६२)=१४, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, ११४२८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मल्लयुद्धसंवाहन वर्णन सूत्र-६१ अपूर्ण से आदानानादाने लोच विधि वर्णन सूत्र-५७ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०१००३. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३१-६(१ से ५,२४)=२५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:उत्तरा०सूत्र., संशोधित., जैदे., (२५४११, १४४४१). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-४ गाथा-१२ अपूर्ण से अध्ययन-१९ गाथा-२२ अपूर्ण तक व अध्ययन-१९ गाथा-५५ अपूर्ण से अध्ययन-२३ गाथा-३० अपूर्ण तक है.) १०१००४. साधुवंदना व औपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२१.५४१०.५, १६४३१). १. पे. नाम. साधुवंदना सवैया, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: अखंड आचार पाले दोष सब दुर; अंति: ताकु वनणा हमारी है, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ.१आ, संपूर्ण. मु. बालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: तु तो मत बोल भाइ झट नीरा; अंति: बालचंद सुणो हो भवीक वृंद, गाथा-१. १०१००५ (#) औपदेशिक सज्झाय,लावणी व नेमराजिमती नवरसो, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४-१२(१ से १०,१२ से १३)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१.५४१०.५, ९४२३-२६). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ११अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से ७ अपूर्ण तक है.) २.पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १४अ-१४आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. रामकिसन ऋषि, पुहिं., पद्य, वि. १८६८, आदिः (-); अंति: से ए उपदेश सुणाया है, गाथा-२०, (पू.वि. गाथा-१२ __ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. नेमराजिमती नवरसो, पृ. १४आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत चंदलो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) १०१००६. (+#) गौतमपृच्छा चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-१(१)-६, प्रले. नगराज लेखक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:गो०च०, गो०चउप०., संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५४१०.५, ११४३३-३७). For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: (-); अंति: जाणुं वरस तणुं तुं नाम, गाथा-१११, (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से है.) १०१००७. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, पठ. श्रावि. अनोप, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१८x११, ११४२६). ___ कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण से है.) १०१०१० (4) नवपद विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४-९(२ से ४,६,८ से १२)=५, पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२०.५४११,७४२१-२४). नवपद विधि, रा., गद्य, आदि: प्रभातरो संझारा पडिक्कमणो; अंति: (-), (पू.वि. मतिज्ञान विधि अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) । १०१०११ (#) भीनमालपार्श्वनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. १८१८, चैत्र कृष्ण, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, प्रले. मु. उमेदरूचि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०४११, ८x२०-२३). पार्श्वजिन स्तवन-भीनमाल, मु. पुण्यकमल, मा.गु., पद्य, वि. १६६१, आदि: (-); अंति: सीस पुन्यकमल भवभय हरो, गाथा-५३, (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से है.) १०१०१२. योगचिंतामणि की चूर्णादि निर्माण विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२२.५४११.५, १६४३५-४१). योगचिंतामणि-चूर्णादि निर्माण विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: उदरैरी मीगणी टां १ नानी; अंति: (-), ___ (पू.वि. लुखमादि गुटिका विधि अपूर्ण तक है.) १०१०१३. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६३-१(१)-६२, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:उत्तरा., जैदे., (२३४१०, १३४४०-४८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ गाथा-१३ अपूर्ण से अध्ययन-३६ गाथा-२२५ अपूर्ण तक है.) १०१०१४ (+#) संग्रहणीरत्नसूत्र व देवांगना संख्यागाथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२-१(१)=११, कुल पे. २, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२४.५४११, १३४३६-४०). १. पे. नाम. बृहत्संग्रहणी सह अवचूरि, पृ. २अ-१२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: जा वीर जिणतित्थं, गाथा-२७६, (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण से है., वि. अंकस्थापना सहित.) बृहत्संग्रहणी-अवचूरि , सं., गद्य, आदि: (-); अंति: नपुंसकवेदांत, (पू.वि. गाथा-१७ की टीका अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. इंद्रपत्नीसंख्या गाथा, पृ. १२आ, संपूर्ण. देवांगनासंख्या गाथा, प्रा., पद्य, आदि: दो कोडा कोडीउ पंचासी; अंति: चवंति इंदस्स जम्मंमि, गाथा-२. १०१०१५ (+) कल्पसूत्र सह कल्पबोधिनी वृति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४६-२४(१,४२,४४,४६,५० से ५५,५७ से ५९,६९,१०२,१११ से ११२,१२२ से १२३,१२८,१३१ से १३४)=१२२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. त्रिपाठ-द्विपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १०४३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. महावीरजिन वंशवर्णन अपूर्ण है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) कल्पसूत्र-कल्पबोधिनी वृत्ति, मु. न्यायसागर, सं., गद्य, वि. १७७८, आदिः (-); अंति: (-). १०१०१६. (+#) संग्रहणी का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४५-१९(२,४ से ६,८ से १०,१३ से २२,३८,४३)=२६, ले.स्थल. बलुदा, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४३३-३८). For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, ग. दयासिंह, मा.ग., गद्य, वि. १४९७, आदिः (१)नत्वा श्रीवीरजिणं, (२)महावीर चउवीसमउ तीर्थंकर; अंति: एतलई प्रकारे उपयोग जाणवउ, (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं., वि. अंत में प्रशस्ति भाग नहीं है.) १०१०१७. (+) शत्रुजयतीर्थ कल्प सह अर्थ, अपूर्ण, वि. १७२९, चैत्र शुक्ल, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ९-४(१ से ४)=५, प्रले. सा. लावण्यलक्ष्मी; पठ. श्रावि. वेलबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में औपदेशिक दूहा लिखा है., संशोधित., पत्रांकभाग मूषकभक्षित है., जैदे., (२५४११, ११४३८-५४). शत्रुजयतीर्थ कल्प, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: देउलं सेजइ सिद्धं, गाथा-३९, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है.) शत्रुजयतीर्थ कल्प-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तीर्थनइ माहरउ नमस्कार हु. १०१०१८.(+) उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १७३६, पौष कृष्ण, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५-२५.०x११, ९४२९). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४. १०१०१९ (#) संबोधसप्ततिका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११, ९-१२४२१-२५). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६९ अपूर्ण तक १०१०२० (+#) पखीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, ले.स्थल. फतेपुर, पठ. मु. श्यामदत ऋषि; प्रले. मु. रीषभदत ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, ९-१२४२५-२८). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदिः (१)तित्थंकरे य तित्थे, (२)अन्नाणमोह दलणी जणणी; अंति: सययं जेसिं सुयसायरो भत्ती. १०१०२१. कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २२७-२२२(१ से १९५,१९७ से २२३)=५, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४.५४११, ४४४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. आदिनाथ चरित्र व्याख्यान सूत्र-२१२ अपूर्ण से २१६ अपूर्ण तक व समाचारी व्याख्यान सूत्र-४० अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०१०२२ (+) आर्यवसुधारानामधारणी महाविद्या, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०.५, १५४४७-५२). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रहितं; अंति: उपविश्य सावधान श्रृणोति. १०१०२४. (+) पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हुंडी:पाक्षिकसूत्र., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, १३४४३). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: (-), (पृ.वि. 'खलु महव्वय उच्चारणा काया इच्छामो सुत्त' पाठांश तक है.) १०१०२५. (+#) आवश्यकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:आवसगसूत्र., संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४११.५, ६४३४). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं करेमि; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-४ सूत्र-१६ अपूर्ण तक है.) आवश्यकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार होज्यो अरिहंत; अंति: (-). १०१०२६. (#) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६१, श्रावण शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. किसनगढ, प्रले. मु. रुपा (गुरु आ. कानजी ऋषि); गुपि.आ. कानजी ऋषि; राज्यकाल रा. मानसिंघजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कल्याणमं., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ६४४०). For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंतिः कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मंगलीकनुं घर उदार; अंति: मोक्षनी पामी छइ. १०१०२७. (+०) आराधना प्रकरण सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पू. ६, प्रले. मु, मतिवर्द्धन (गुरु ग. शिवलाभ वाचक); गुपि. ग. शिवलाभ वाचक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५X१०.५, ६x४१-४४). पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण भणइ एवं भयवं अति ते सासयं सोक्खं गाथा ६९. पर्यंताराधना-गाथा ७०-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीन; अंति: लहइ ते शास्वतुं सुख. १०१०२८ (#) देवसिप्रतिक्रमण विधि व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ४, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंड है, जैवे. (२५x१०.५, १०४३०-३३). १. पे. नाम देवसिप्रतिक्रमण विधि- खरतरगच्छीय, पू. १आ-८अ संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं अंति बोधव्वो सेसो संसारफल हेउ. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. ८अ, संपूर्ण.. वीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि महीमंडणं पुन्नसोवन्न अंति देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४, ३. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमानंद अति सा सिद्धायिका नायिका श्लोक-४. ४. पे. नाम लध्वीत्रीछंदसि स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं वंदे अति दद्यात्सौख्यम्, श्लोक १. १०१०२९. पुराणोक्ता श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे. (२३.५x१०.५, १४४४४). " पुराणहुंडी, मा.गु., सं., पद्य, आदिः यदि प्राणि वधे धर्म; अंतिः दीव गवां कोटी फलं लभेत् श्लोक-३०. १०१०३०. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें टीकादि का अंश नष्ट है, जैवे. (२४.५x११, ४x२६-२९). , 1 कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि सं., पद्म, वि. १वी, आदि कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अति कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि कल्याण कहिता मंगलीक तेहनो अति: पद्यते पामइ जे जीव. १०१०३४. (+०) उपासकदसासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१७ आश्विन शुक्ल, १५, शनिवार, मध्यम, पृ. २९, ले. स्थल, लीभाहेडा, प्र. मु. मनसाराम ऋषि (गुरु मु. रतनचंद, विजयगच्छ); गुपि. मु. रतनचंदविजय (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४X१०.५, ७-१०x४७-६०). उपासक दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: तेण कालेणं तेणं अति: दिवसेसु उद्दिसंति, अध्ययन- १०, " संपूर्ण. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणे काले ते समयने; अंति: विषई निश्र्चई कहई, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. अध्ययन-८ सूत्र ८ अपूर्ण से अध्ययन- ९ अपूर्ण तक टबार्य नहीं है.) १०१०३५. जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे. (२४.५X१०.५, १४४४०-४३). " For Private and Personal Use Only " जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुदाउ सुअस्समुद्दाउ, गाथा - ५१, (वि. अंत में नवतत्त्व प्रकरण की गाथा - १ का प्रारंभ करके छोड दिया है.) १०१०३६. (+०) शारदा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे. (२४४११, १५x४३). " सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. वप्यभट्टसूरि, सं., पद्य वि. ९वी, आदि: करमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३. १०१०३७ (+) वसुधारानामधारिणी महाविद्या संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. प्र. वि. संशोधित, जैये. (२३.५x१०.५, १३X३५-४०). Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य अंतिः श्रृणोति भोगं च करोति. १०१०३८. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, प्रले. मु. तिलकविजय (गुरु पं. हेमविजय); गुपि. पं. हेमविजय (गुरु मु. नरविजय): मु. नरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखक ने अंत में अवचूरि लिखा है वस्तुतः बार्थ है., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४X११, ३X२३-२६). बंदिसूत्र, संबद्ध प्रा., पद्य, आदि: वंदितु सव्वसिद्धे धम्मा; अंतिः वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. वंदित्सूत्र- बार्थ, मा.गु, गद्य, आदि बांबु सर्व सिद्ध प्रति; अंतिः तीर्थंकर प्रतिं नमस्कार. १०१०३९. (+#) गौतमपृच्छा सह टबार्थ, बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १७८८, कार्तिक शुक्ल, ९, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५०- ३ (१ से २,४५)=४७, ले.स्थल. चांचोडा, प्रले. पं. वनीतविजय (गुरु पं. दीपविजय गणि); गुपि. पं. दीपविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X१०.५, १४X३३-३६). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति: गोअमंपृच्छा महत्थावि, प्रश्न- ४८, गाथा ६४ (पू. बि. गाथा १४ अपूर्ण से है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) गौतमपृच्छा- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: शास्त्रें संक्षेपिं कहिउ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गौतमपृच्छा-वालावबोध, आ. जिनसूरि, मा.गु., गद्य, आदि (-): अंति: (१) हर्षपूरेण भावतः, (२) तेह माहि जाणिवा. गौतमपृच्छा-कथा संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: होइने मोक्ष पांमिस्यें. १०१०४६. (+) योगशास्त्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८८४, मध्यम, पृ. ८५, अन्य श्राव. चुनीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: योगसासत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५X१०.५, १५-१८x४५). योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: दंतैर्दंतानसंस्पृशन्. योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४ का बालावबोध, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, आदि (१) श्रीतपागणसरेज रविश्री, (२) प्रणम्य जिनसिद्धादीन्; अंति: छइ तिहां थकी जाणिवा, प्रकाश-४, (वि. प्रसंगोपात दृष्टांत कथा दी गई है.) १०१०५४. भक्तामर, कल्याणमंदिर स्तोत्र व पाक्षिक चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९१४-१९१५, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. ३, प्रले. पं. मानविजय गणि पठ. श्राव. मोतीचंद, अन्य. ग. मनोहर, प्र.ले.पु. सामान्य, वे. (२३.५x१०, ९४२३-२८). १. पे. नाम. भक्तामर महास्तोत्र, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण, वि. १९१४, श्रावण शुक्ल, २, ले.स्थल. मेगलवास. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ६अ १०आ, संपूर्ण आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि सं., पद्य वि. १वी आदि कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अति कुमुद० " ३. पे नाम. पाक्षिक चैत्यवंदन, पृ. १० आ-१२आ, संपूर्ण, वि. १९१५, पीष शुक्ल १२, रविवार. 3 त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: भावतोहं नमामि श्लोक-३२. ६० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. १०१०५५ (+#) विमान आवलि गाथा व जीवविचारसूत्र, संपूर्ण, वि. १७०९, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, अन्य. मु. सिरदारमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५X१०, ४x२७-३२). १. पे नाम. विमान आवलि गाथा, पृ. १अ संपूर्ण. गाथा संग्रह जैन*, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: वट्ठवट्ठसुउवरिं तं संत अंति: सोले गती सावली विमाणा. २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पू. १आ, , संपूर्ण . , जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी आदि भुवणपईव वीर नमिकण; अति . " संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. For Private and Personal Use Only जीवविचार प्रकरण- बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि विश्व सघलाइ दीवानी परि अतिः समुद्रमांहि उपर्यु १०१०५६. (+) विचारषट्त्रिंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०४ - १८१२, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. पं. जीवणसागर (गुरु पं. हेतुसागर); गुपि. पं. हेतुसागर (गुरु पं. राजसागर) पं. राजसागर (गुरु ग. लाभसागर) ग. लाभसागर, अन्य पं. फतेंद्र, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित, जैवे. (२३.५x१०.५, ४४३१). Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ. गाथा-४०, (वि. १८०४, भाद्रपद कृष्ण, ४, गुरुवार) दंडक प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: नमिउं क० नमस्कार करीनइं; अंति: आत्माने हितनी करणहार, (वि. १८१२, कार्तिक कृष्ण, १३, रविवार) १०१०५७ (+#) नवतत्त्व प्रकरण व ५६३ जीवभेद विचार, संपूर्ण, वि. १७०७, आश्विन शुक्ल, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. बरानपुरनगर, पठ. मु. लब्धिसुंदर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नवतत्त्वा।ट०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ५४३५). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४६. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अनेक सिद्ध आदिनाथ. २. पे. नाम. ५६३ जीवभेद विचार, पृ. ६अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: नारकी सात नरकना पर्याप्त; अंति: जीवना भेद ५६३ जाणवा. १०१०५८. (#) दंडक व नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९०९, आषाढ़ शुक्ल, १४, सोमवार, मध्यम, पृ. ११-६(१ से ६)=५, कुल पे. २, प्रले. मु. गुणचंद ऋषि (गुरु मु. टीकमचंद ऋषि, लुंकागच्छ-बृहन्नागोरी); गुपि. मु. टीकमचंद ऋषि (लुकागच्छ-बृहन्नागोरी); पठ. मु. गंभीरचंद (गुरु मु. गुणचंद ऋषि, लुंकागच्छ-बृहन्नागोरी), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१०, ९४३४). १. पे. नाम. दंडक प्रकरण, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. म. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदिः (-); अंति: लहिया एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४१, (पू.वि. गाथा-३१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ७आ-११अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५६. १०१०५९ (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १६-८(३ से ५,९ से १३)=८, प्र.वि. हुंडी:श्रीदशवै०., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ६४३९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किटुं; अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-३ गाथा-३ अपूर्ण से अध्ययन-४ सूत्र-३ अपूर्ण, सूत्र-१५ अपूर्ण तक व अध्ययन-५ गाथा-६२ अपूर्ण से नहीं है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: धमो कहता धर्मरूपीयो; अंति: (-), पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं १०१०६० (+) नवतत्त्व बोल, जीवविचार प्रकरण व विचारषट्त्रिंशिका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-८(२ से ९)=८, कुल पे. ३, प्र.वि. अंत में 'पोथी गंगारामजी की छै' ऐसा लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, ४४३०). १. पे. नाम. नवतत्त्व बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम प्राणधारै ते चेतना; अंति: ते मौक्षतत्त्व कहीय. २.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, प. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: भुवनक० त्रिभुवण तणो; अंति: (-). ३. पे. नाम. विचारषत्रिंशिका सह टबार्थ, पृ. १०अ-१६आ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: लिहिया एसा विनति अप्पहिया. गाथा-३८, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ ऋषभ, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) १०१०६१ (+) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण वि. १७५४, श्रावण शुक्ल, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. १९, ले. स्थल. बोरावडग्राम, प्रले. मु. ठाकुर ऋषि; पठ. मु. हरदास ऋषि (गुरु मु. हेमा ऋषि); गुपि. मु. हेमा ऋषि (गुरु मु. ठाकुर ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: दसवैका०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., ( २४.५X१०.५, १४X३८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मोमंगलमुकट्ठे; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि, अध्ययन- १० चूलिका २. १०१०६३ (०) मेघमाला, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १२. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५X११, १२X३१-३५). मेघमाला, मु. केवलिकीर्ति, प्रा. सं., मा.गु., पद्य, आदि तियसिंवनरिवनयं पणमि, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२९६ अपूर्ण "" तक है.) १०१०६५ (+) सम्यक्त्वसत्तिरी सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५X१०.५, ६x४०). सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि प्रा. पद्य, आदि दंसणसुद्धिपयासं, अति: दंसणसुद्धिं धुवं लहइ, गाथा- ७०. " सम्यक्त्वसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सम्यक्त्व निर्मलाईनु; अंति: निश्चई हुइ लहइ. १०१०६६ (+) भक्तामर स्तोत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १६५७, मध्यम, पृ. १२-१ (१) ११ ले स्थल. नित्रोटक, प्रले. ग. समयसागर (गुरु भु, विजयसागर तपागच्छ); गुपि. मु. विजयसागर (गुरु आ. विजयरत्नसूरि, तपागच्छ) पठ. मु. आनंदसागर (गुरुग समयसागर, तपागच्छ); अन्य. पं. यत्नसागर गणि (गुरु पं. आणंदसागर गणि) मु. सुमतिसागर (गुरु ग. समयसागर, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी: भ० टी०. अंत में 'यह प्रत सं. १७९२ आषाढ वदि १० दिन यत्नसागर को दी' ऐसा लिखा है. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-संधि सूचक चिह्न - क्रियापद संकेत- ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६x१०.५, १७४५६-७२). "" भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि (-); अंति मानतुंग० लक्ष्मी, श्लोक-४४ (पू.वि. लोक-३ अपूर्ण से है.) भक्तामर स्तोत्र बालहितैषिणी टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य वि. १६५२, आदि (-); अंति संख्या निवेदिता, ग्रं. ६९३. १०१०६७ (+४) नवतत्त्व व जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण वि. १७०३, पौष शुक्ल ४, गुरुवार, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. २, प्रले. नरसिंहदास एड दयालुदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५X१०.५, ४X३८). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४४. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टवार्थ, आ. राजचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि साचड वस्तुनउ स्वरुप ते; अंतिः कृता श्रीराजचंद्रसूरिणा २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ७ - १४आ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य वि. ११वी, आदि भुवणपईवं वीरं नमिऊण, अंति संतिसूरि० सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: स्वर्ग मर्त्य पाताल; अंति: रूप जे समुद्र तेह थकी. १०१०६८ (+४) संघयणी प्रकरण सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८५५ फाल्गुन कृष्ण, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०, प्रले. मु. लावण्यसागर गुभा. पं. तेजसागर गणि (गुरु पं. मनोहरसागर गणि); गुपि. पं. मनोहरसागर गणि (गुरु ग. हेतुसागर); ग. हेतुसागर (गुरु उपा. राजसागर गणि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैद, (२५X१०.५, ८X३६). For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११ 1 बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिऊ अरिहंताई ठिङ; अति जा वीरजिण तित्यं गाथा ४३५, संपूर्ण बृहत्संग्रहणी - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि अरिहंतादिकने नमस्कार करी अति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा ४२७ तक लिखा है.) १०१०६९. ज्योतिषसार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१, जैदे., (२५.५X१०.५, ५X३२-३६). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञजिनं नत्वा नार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, श्लोक १२३ तक लिखा है.) ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: माहरउ अरिहंत प्रतइं; अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०१०७० (+४) पाशाकेवली, संपूर्ण वि. १८१२ ज्येष्ठ १३, शुक्रवार, मध्यम, पू. ६, ले. स्थल घडसीसर, प्रले. पं. यशकर्ण गुपि. पं. जयकर्ण (गुरु ग. जगद्विशाल); ग. जगद्विशाल (गुरु ग. अभयराज); ग. अभयराज (गुरु ग. मतिसेन वाचक); ग. मतिसेन वाचक; प्रले. श्राव. रामचंद्र, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. हुंडी : शुकनाव०., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५X१०, १५X४३). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवती कुष्मांडिनी अति निगीर्णय सत्यापासककेवली, श्लोक-१८४. १०१०७१. (+) नवतत्त्व प्रकरणादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७६३, वैशाख कृष्ण, १२, शनिवार, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ४, ले.स्थल. फलवर्द्धिनगर, प्रले. पंडित. धीरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., जैवे. (२४.५x१०, ५४४५०५२). १. पे नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. १अ. संपूर्ण पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: संजम सिंहरी परे लेवे; अंति: किस खडु में जाय पडेगे हडु, गाथा-३. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-६०. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीव ज्ञानमयी अजीव; अंति: पुद्गल परावर्त्त कह्या. ३. पे नाम. सुभाषित लोक, पू. ६आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, मा.गु., सं., पद्य, आदि: उधारणं नैव कदापि देयं; अंति: दातव्यकाले भृकुटी करोति, श्लोक - १. ४. पे. नाम औषध संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह *, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०१०७३. चतुशरणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०५, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, मंगलवार, जीर्ण, पृ. ८, प्रले. पं. ताराचंद (गुरु ग. रामचंद्र); गुपि. ग. रामचंद्र (गुरु ग. विजयचंद्र ); ग. विजयचंद्र (गुरु ग. महिमाचंद्र); ग. महिमाचंद्र, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५x१०, ४X४३). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा - ६३. चतुः शरण प्रकीर्णक-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावद्य व्यापार त्यागरूप अति भणी नित्य चतुचरण करिवओ. १०१००४. सिंदूरप्रकरण सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८६८, मध्यम, पृ. २४, प्रले. मु. हर्षसागर (गुरु पं. सबलसागर); गुपि. पं. सबलसागर (गुरु पं. जिनरंगसागर, तपा. सागरशाखा); पं. जिनरंगसागर (गुरु पं. नित्यसागर); पं. नित्यसागर (तपा. सागरशाखा), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी सिंदूरप्रकरण., जैवे. (२६५११, ५३३) सिंदूरकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदुरप्रकरस्तपः करिसिरः; अंति: निशम्यमानेति शमेति नाशम् द्वार-२२, श्लोक ९९ (वि. १८६८, कार्तिक कृष्ण, ३, शुक्रवार) सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तपरूपीया हाथीरइ मस्तक; अतिः सोमप्रभाचार्यनो नाम० कहिउ, (वि. १८६८, कार्तिक शुक्ल, ५, मंगलवार) For Private and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०१०७५ (+) ज्योतिषसार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, प. २८, अन्य. पं. कीसनसागर, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अंत में 'पं. केसरसागररी परत छे' लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, ६x४०). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञजिनं नत्वा नार; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३३३ तक लिखा है.) ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीतीर्थंकर वीतराग देवनइ; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०१०७६ (+#) विचारपंचाशिका सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७०४, मध्यम, पृ. ५, प्रले. मु. धनविमल' (गुरु मु. विनयविमल, तपागच्छ); गुपि. मु. विनयविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १५-१८४३९-४५). विचारपंचाशिका, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि: वीरपयकयं नमिउं देवा; अंति: विमलसूरिवराणं विणएण, गाथा-५१. विचारपंचाशिका-स्वोपज्ञ अवचूरि, ग. विजयविमल, सं., गद्य, आदि: वीरपदकजं श्रीमहावीर; अंति: विधाय संशोध्यमिति. १०१०७७. नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.५, ले.स्थल. खेरवानगर, प्र.वि. हंडी:नवतत्त्व०., जैदे., (२४४१०.५, ९४२६-२९). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: गोअस्सओ अणंतभागो असिद्दगओ, गाथा-५०. १०१०७८. पाक्षिकसूत्र व पाक्षिक खामणा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, ले.स्थल. मणुंदग्राम, प्रले. श्राव. उत्तमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३६). १.पे. नाम, पाक्षिकसूत्र, पृ. १अ-९अ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अ तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. पाक्षिक खामणा, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: पारगा होह गुण गुरणे वढामो, आलाप-४. १०१०७९. (+#) सिंदूरप्रक्रम, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. हुंडी:सिंदूरप्र०., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १३४३९). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-९८. १०१०८० (+) वीर थुईद्वय व नमीपवज्जाज्झयण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:वीरथु०.न०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १२४३५). १.पे. नाम. वीरथुईनाम अज्झयण, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:वीरथुन्न०. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिस्सुणं समणा; अंति: आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. २.पे. नाम. वीर थुइ, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. ___ महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंति: जुबु स्वामी जाणिये, गाथा-८. ३. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ९ नमिपवज्जा, पृ. ३अ-५आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०१०८१. ज्ञानविषये नैगमादि सात नय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. हुंडी:उत्तरा०., जैदे., (२५४१०.५, १२४२९). उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन २८ मोक्षमार्गगति के २५ बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सो होइ निच्छयनउ जोअसित्त; अंति: निज ज्ञान कहि आवश्यकवत्. १०१०८२. (+) १४ गुणस्थानक ५३ भाव यंत्र व ३३ बोला की अल्पाबहत्व, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, २३४२२-५६). For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १. पे. नाम. १४ गुणस्थानक ५३ भाव यंत्र, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. ३३ बोला की अल्पाबहुत्व, पृ. ५आ, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र-संबद्ध ३३ बोल सिद्ध अल्पबहत्व, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०१०८४. (+) संबोधसत्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.६, प्र.वि. हुंडी:संबोध०. अंत में 'हीरविजेजी राधणपरना' लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४११, ५४५१). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: जयसेहर नत्थि संदेहो, गाथा-७२. संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमीनइ त्रैलोक्यनु; अंति: ते लहइ इहां संदेह नथी. १०१०८५ (#) साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९४, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. जालोरनगर, प्र.वि. श्रीमहावीरप्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ६४३५). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वार्छ निवर्तवा किहानु; अंति: निवर्तउ चउवीस जिन. १०१०८६ (+) पुण्य कुलक, गौतम कुलक व सुभाषितावली, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, ५४३८-४०). १. पे. नाम. पुन्य कुलक सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: इंदियत्तं माणुसत्तं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-१०. पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पांचइंद्री परवडा अनइ; अंति: मोक्षना सुख जरा रहित. २. पे. नाम. गौतम कुलक सह टबार्थ, पृ.१आ-४अ, संपूर्ण. गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लुद्धा लोभी नर मनुष्य; अंति: विषइ प्रमाद छाडी उदम करवउ. ३. पे. नाम. सुभाषितावली सह टबार्थ, पृ. ४अ-७अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: धम्मो मंगल मउलं उसह मूलं; अंति: दोसो जाया बहुमुदा होति, श्लोक-३३. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: ए संसारमांहि घणां मांगलीक; अंति: तेह घणे मुहडइ बोलइ. १०१०९४. विरविक्रमादित्य पंचदंड व औपदेशिक गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८७२, कार्तिक कृष्ण, ३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ७९, कुल पे. २, ले.स्थल. वणहेडा, प्रले. रायमल दुर्गादास चिडाला, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, ५४१०). १. पे. नाम. विक्रमादित्य पंचदंड प्रबंध, पृ. १अ-७९आ, संपूर्ण. म. नरपति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीब्रह्माणि विनवौ मागु; अंति: कवि नरपति करजोडी कहति, आदेश-५, गाथा-८५०. २.पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह-दान, पृ. ७९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहिं.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: चतुरा चतुराय सु कीजै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक १०१०९५. रणसिंह चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ५०, प्र.वि. हुंडी:रणसिंहचो०., जैदे., (२४४११, १२४३२-४८). रणसिंह चौपाई, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल समिहित; अंति: ज्ञानविमल० समकित पामी रे, ढाल-३५. १०१०९६. (+) परदेशी प्रबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १४४४८-५६). केशीगणधर प्रदेशीराजा चौपाई, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमी श्रीअरिहंत; अंति: पामियइ सिवसुख सार, ढाल-४१, गाथा-५८८. १०१०९७. इंद्रियपराजय, भववैराग्य व आदिनाथदेशनाशतक, संपूर्ण, वि. १८४२, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ३४, कुल पे. ३, ले.स्थल. घ्राणपुर नगर, प्रले. पं. चतुरविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, ५४३०-३५). १. पे. नाम. इंद्रियपराजयशतक सह टबार्थ, पृ. १अ-१२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:इंद्रीपरा, इंद्रियपरा०. For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची इंद्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदि सुचिअ सूरो सो; अति संवेगरसावणं निच्चं गाथा १००. इंद्रियपराजयशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेहज सूरवीर तेहज पंडित; अंति: संवेगमय रसायन नित्य. २. पे. नाम. भववैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ. १२आ-२४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : भववैराग्य०, भववैरा. वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि संसारंमि असारे नत्थि सुह; अंति: लहइ जिओ सासवं ठाणं, गाथा- १०४. वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असार मांहे नत्थि, अंति अनंतसुख लहे जीव शास्त्रतु. ३. पे. नाम. आदिनाथदेशनाशतक सह टवार्थ पू. २४आ- ३४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: आदिशत०. आदिनाथ देशनोद्धार, प्रा., पद्य, आदि संसारे नत्थि सुहं अंति: उप्पंजंता सिवंजति, गाथा-८८. " " आदिनाथ देशनोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसारमांहि नथी सुख; अंति: ग्यान क्रियासौ मोक्ष पामै. १०१०९८. (+) निशीथसूत्र व प्रायश्चित विधि, अपूर्ण, वि. १८१२-१८१४, मध्यम, पृ. ६२-१४ ( १, ३ से ११,२७,३१,४२,५१)=४८, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२५४१०.५, ६x४२-४८). १. पे नाम. निशीथसूत्र सह टवार्थ, पृ. २अ ६१अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. वि. १८१२ ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, ४, गुरुवार, ले. स्थल. गणोलीगाव, प्रले. मु. गुलाबचंद (गुरु मु खीवसीजी); गुपि. मु. खीवसीजी (गुरु मु. खेतसी); मु. खेतसी, प्र.ले.पु. सामान्य. " निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: सिसय सिसोव भोज्जचइ, उद्देशक- २०, ग्रं. ८९५ (पू.वि. उद्देश १ सूत्र ७ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) निशीथसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति शिक्षन भो० भणावानइ अर्थइ. २. पे. नाम. निशीथसूत्र प्रायश्चित विधि, पृ. ६१-६२अ संपूर्ण वि. १८१४ आश्विन, ले. स्थल. सोपरग्राम. 3 निशीथसूत्र - प्रायश्चित्तादि यंत्र, मा.गु., गद्य, आदि भिन्नमास कहता लघुल मास, अति तिम ६ मास सुधी जाणवो. १०११०० (०) सिंदूरप्रकर सह वालावबोध+कथा, संपूर्ण, वि. १८०३, चैत्र शुक्ल, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. ७९, ले. स्थल. पनवाड, प्रले. मु. आणंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. ३०२०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (१३८३) भग्नप्रष्टीकटी ग्रीवा, जैदे., (२५.५x११.५. १९१४४२). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी आदि सिंदुरप्रकरस्तपः करिसिरः; अंतिः सूक्तिमुक्तावलीयं, द्वार-२२, श्लोक - १००. सिंदूरकर - बालावबोध + कथा, पा. राजशील, मा.गु., सं., गद्य, आदि: शारदाचरणयुग्ममतीतपापं अति करैः मयि मूर्खे कृतक्षपैः १०११०१. धर्म अधर्म विचार, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५. प्र. वि. हुंडी धर्म अधर्म, वे. (२६११.५, ९४३२-३५)धर्म अधर्म विचार, मा.गु., गद्य, आदि: गुरुमुखी संभलि आगमवाणी अति: थोडा मांहिज्य प्रीछस्यई. १०११०२. (+) साधुवंदना बृहद्, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, ले. स्थल. अवरंगाबाद, प्रले. मु. नगराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६.५४११, ८x२३-२६). "" साधुवंदना बृहद्, मु. जेमल प्राषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि नमुं अनंत चोविशी ऋषभादिक; अंति: कहे एही ज तरणणो डाव, गाथा- १०८. For Private and Personal Use Only १०११०४ (+) विमलमंत्री प्रबंध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६६-५६ (१ से ५३, ६२ से ६३, ६५) = १०, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित, जैदे. (२६११, १५४२४-२८). " विमलमंत्री प्रबंध, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६८ आदि (-); अति: (-), (पू.वि. खंड-९ गाथा- १०२८ अपूर्ण से १९८८ अपूर्ण तक है, खंडगत विषयसूचनिका अपूर्ण से चूलिका गाथा १२३८ अपूर्ण तक व १२५६ अपूर्ण से १२७५ अपूर्ण तक है.) १०११०५ असज्झायसत्तरि, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र. वि. हुंडी असिज्झाय. दे. (२६.५x११.५ १५३६). अस्वाध्यायसित्तरी, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरुपय नमी नामी सीस अंति: आराधक भवसागर हेलीइ तर ए, गाथा- ७२. Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०११०६. (+) मयणरेखासतीनो रास, संपूर्ण, वि. १८६६, वैशाख कृष्ण, १४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. रूपनगढ, प्रले. सा. गुलाजी आर्या (गुरु सा. चनाजी आर्या); गुपि. सा. चनाजी आर्या (गुरु सा. हीराजी आर्या); सा. हीराजी आर्या (गुरु सा. उदाजी आर्या); पठ. श्रावि. कीरताजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:मणरे., संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १६४३४-४०). मदनरेखासती रास, मु. हीर ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: आददेव अरहंतजी आदतणो करतार; अंति: ढाल ज कीनी हीरसेवक चीतलाइ, गाथा-१५७. १०११०७. आलोयणा, संपूर्ण, वि. १९६८, आश्विन कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. सारंगपुर, प्रले. पदमसींग, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:आलोयणा., दे., (२५.५४११, १५४४९-५२). आलोयणा, मु. तिलोक, मा.गु., गद्य, आदि: ए हे आत्माने एणे भव; अंति: त्रीवीधे मीछामी दुक्कडं. १०११०८. (+) अवंतीसकमाल स्वाध्याय व औपदेशिक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५,११४३७). १.पे. नाम. अवंतिसुकमाल स्वाध्याय, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण, वि. १८२८, आश्विन शुक्ल, १५, मंगलवार. अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१३ गाथा-३ तक लिखा है.) २. पे. नाम, औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण. पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जीहां दाता तहां मुगती; अंति: हे सखी पडो दबावत पाव. १०११०९ (+) बंधउदयउदीरणासत्ता यंत्र कर्मविषयक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१(१)=६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ११४४३). १४ गुणस्थानके कर्मबंधउदयसत्ता व उदीरणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: गोत्रकर्म १ अंतराय ५, (पू.वि. "एवं मिली १२० प्रकृति बंधाश्रि उत्तरप्रकृति १२०" पाठ से है.) १०१११० (+#) श्रावकअतिचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १४४५५). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि; अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं. १०११११ (+) दंडकना बोल त्रीस, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २१, ले.स्थल. रोपा, प्रले. मु. मेघा ऋषि (गुरु मु. वीकाजी); गुपि. मु. वीकाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११,१५४३९-४६). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक लेस्या ट्ठिती उगाहणा; अंति: जावा- आंतरं मासमुं. १०१११२ (+) छूटक श्लोक सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४११, १४४३६). व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.ग.,सं., पद्य, आदि: जिनेंद्रपूजा गुरू; अंति: नाकीयाहवै इम सर्व मिली. व्याख्यानश्लोक संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत भगवंत असरण सरण; अंति: वलीए वोल सर्वहता तरस्यै. १०१११३. (+) भगवतीसूत्र-शतक ११ उद्देश १२ आलभियानगरी अधिकार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६०, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. धोलेराबंदर, प्रले. श्राव. त्रंबकलाल सुंदरजीभाई शेठ; दत्त. मु. कृष्णा (गुरु मु. मंगलस्वामी); गुपि. मु. मंगलस्वामी; गृही. सा. सेजकोरबाइ महासती, प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. हंडी:विवाह०.८०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२५.५४११, ५४३९). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. भगवतीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०१११४. भुवनदीपक सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २८, दत्त. श्राव. महीराज गांधी; श्राव. गेला गांधी; श्राव. नाना गांधी; श्राव. नाथा गांधी; गृही. श्रावि. कछकाइ, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५.५४११, १७X५०-६५). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७०. भुवनदीपक-टीका, आ. सिंहतिलकसूरि, सं., गद्य, वि. १३२६, आदि: अर्हदादीन् प्रणम्याथ; अंति: जगद्भावप्रकाशायः. For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०१११६. (+) ३३ आशातना विचार, १९ कायोत्सर्ग का बालाववोध व २५ साधुक्रिया बोल, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित. जैवे. (२६४११ १७४४८). १. पे. नाम. ३२ आशातना, पृ. १अ, संपूर्ण. ३३ आशातना विचार-गुरुसंबंधी, मा.गु., गद्य, आदि: पुरओ गुरु आगलि हींडइ; अंति: सरीखइ समइ आसणि बइसइ. २. पे. नाम. १९ कायोत्सर्गदोष गाथा का बालावबोध, पू. १अ १आ, संपूर्ण चैत्यवंदनभाष्य-हिस्सा १९ कायोत्सर्गदोष गाथा का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: घोडग घोडानी परि वांकइ पगि; अंति: आघउ पाछउ जोतु काउस्स.. ३. पे. नाम. २५ साधुक्रिया बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: काई अजयणाइ जो पाप कीजइ; अंति: ईर्यापथिकी क्रिया कही . १०१११७ (+#) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७०३, भाद्रपद कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ३९-५ (१ से ५)=३४, ले.स्थल. नोलाईनगर, प्रले. पंन्या. समयनिधान, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : उपा०.८०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६X११, ८x४२). , उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन-१०, ग्रं. ८१२, (पू.वि. अध्ययन- १ सूत्र - ४६ अपूर्ण से है . ) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति बह दिवसे श्रुतांग तिमज, ग्रं. १२०० १०१११८. (+) कर्मविपाकादि नव्य कर्मग्रंथ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१९ (१) = १२, कुल पे. ५, प्र. वि. संशोधित., जै., (२५.५X११.५, १३x४२). १. पे. नाम कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ १. पू. २अ ३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी १४वी, आदि: (-); अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा - ६०, ( पू. वि. गाथा- ११ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी १४वी, आदि तह थुणिमो वीरजिणं, अंति: देविंद बंदिअं नमह तं वीरं, गाथा- ३४. ३. पे. नाम, बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, पृ. ५अ- ६अ, संपूर्ण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा. पद्य वि. १३वी १४वी आदि बंधविहाणविमुक्कं बंद, अंति: नेयं कम्मत्ययं सोअं, गाधा- २४. ४. पे. नाम षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, पृ. ६अ-१०अ संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी- १४वी, आदि: नमिअ जिणं जिअमग्गण; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-८९. ५. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, पृ. १०अ १३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी १४वी आदि नमिअ जिणं ध्रुवबंधोदय अंति (-) (पू.वि. गाथा-८६ अपूर्ण तक है.) " १०१११९. (+) लघुशांति स्तव सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. मनोहरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: शांतिवृत्तिः, संशोधित, जैदे. (२६.५X११, १६४३९-४८). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांति निशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च श्लोक-१७. लघुशांति स्तव टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य वि. १६४४, आदि अहं श्रीशांतिजिन; अति: यायात् प्राप्नुयात्. १०११२०. नमस्कारमहामंत्र व साधारणजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, जैवे. (२६४११, १८x४८). १. पे. नाम. नमस्कारमहामंत्र सह बालावबोध व दृष्टांतकथा संग्रह, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि नमो अरिहंताणं, अति पदमं हवई मंगलम्, पद-९. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम सकलमंगलीको मूल; अंति: श्रावकनी पुत्रिकाने कीधो. नमस्कार महामंत्र-कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: भरतक्षेत्रयो पोतनपुरनगरि; अंति: सो पावइ सासयं ट्ठाणं, कथा-६. २. पे नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: अर्हंतो भगवंत इंद्रमहिताः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक - ९ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०११२१. (+) समवसरण बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. हुंडी:समोसरण. पत्रांक-१ पर १४ दण्डक कोष्ठक है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४११, १५४५०-५८). समवसरण बोल संग्रह, मा.ग., गद्य, आदि: जीवाय १ लेसा २ पक्खी ३; अंति: पहिला द्वारनी परे जाणवा, (वि. भगवतीसूत्र शतक-३० पर आधारित है.) १०११२२. (+) स्थूलभद्रमुनि कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १७X४४). स्थूलभद्रमुनि कथा, सं., गद्य, आदि: श्रीसंभूतिविजयस्य; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., 'पांडका मासक्षमण के ___पारणाहेतु नगरप्रवेश प्रसंग' अपूर्ण तक है.) १०११२४. (+) साधुप्रतिक्रमण सूत्र व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३-११(१ से ६,८,१० से १२,१६)=१२, कुल पे. ११, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४४६). १. पे. नाम. स्तंभनकपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: अभयदेव विन्निवइ आणंदिय, ___ गाथा-३०, (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ७आ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि० पगाम सिज्झाए; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१, (पू.वि. अढार सहस्स से आसोयणाए सदेवमणु तक व बीच का पाठांश नहीं है.) ३. पे. नाम. वंदित्तसूत्र, पृ. ९आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) ४. पे. नाम. सप्तस्मरण, पृ. १३अ-१५आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, म. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अजितशांति स्तवन गाथा-८ अपूर्ण से उवसग्गहर स्तोत्र गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ५. पे. नाम. सप्ततिशतजिन स्तवन, पृ. १७अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. तिजयपहत्त स्तोत्र, आ. मानदेवसरि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: निब्भंत निच्चमुच्चेह, गाथा-१४, (प.वि. मात्र गाथा-१४ अपूर्ण है.) ६. पे. नाम. नवग्रहस्तुतिगर्भितपार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तूतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति: जिणप्पहसूरिन पीडंति, गाथा-१०. ७. पे. नाम. आदिनाथजिन स्तोत्र, पृ. १७अ-१९अ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ८. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. १९अ-२०आ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: ___ कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. ९. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. २१अ-२२अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: विशदां दृष्टिं दयालो मयि, श्लोक-३०. १०. पे. नाम. महावीरदेव चरित्र, पृ. २२अ-२३आ, संपूर्ण. दरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीरं मोहपंको; अंति: सया पायप्पणामो तुह, गाथा-४४. ११. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. २३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०११२५. (+#) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. हुंडी:अणुत्तरो०.सू०., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३०-३९). अनुत्तरोपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स; अंति: कहाकहाणं तहा णेयव्वं, अध्याय-३३, ग्रं. १९२. १०११२६. फुटकर श्लोक प्रस्ताविक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८४७, पौष शुक्ल, ११, शनिवार, मध्यम, पृ. ८-२(४ से ५)=६, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. प्रेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ६४३१-३८). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: धर्मतः सकल मंगलावली; अंति: स्तस्माद्धर्मो विधीयते, श्लोक-६८, (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., श्लोक-३१ अपूर्ण से श्लोक-४९ अपूर्ण तक नहीं है.) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: धर्म थकी समस्त मंगली करी; अंति: (-), (प.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कुछेक स्थानों पर आंशिक टबार्थ लिखा है.) १०११२७. (+#) विपाकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६६-५९(१ से ५८,६२)=७, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:विपाक०.८०., पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४११, ७४३५). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-७ अपूर्ण से अध्ययन-७ संपूर्ण तक, अध्ययन-८ अपूर्ण से अध्ययन-९ अपूर्ण तक है.) विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०११२८. (+#) आचारांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-२०(१ से ५,७ से २१)=५, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:आचारांग., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४११, २-५४२०-४०). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उद्देशक-३ अपूर्ण से उद्देशक-४ अपूर्ण तक, अध्ययन-२ उद्देशक-५ अपूर्ण से उद्देशक-६ व अध्ययन-३ उद्देशक-१ अपूर्ण से उद्देशक-२ अपूर्ण तक है.) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०११२९ (+#) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ६x४९). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० इच्छा; अंति: (-), (पू.वि. पौषधसूत्र अपूर्ण तक है.) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)नमः अरिहंतेभ्यः, (२)हे क्षमाश्रमण इच्छामि; अंति: (-), (वि. मात्र नमस्कार महामन्त्र की छाया संस्तृत में है.) १०११३० (+) स्थानांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:स्थानांगसू., संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४४४-५५). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: (-), (पू.वि. स्थान-९ अपूर्ण तक है.) १०११३१ (+#) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४४९). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: (-), (पू.वि. उद्देशक-१२ अपूर्ण तक है.) १०११३२. (+#) कल्पसूत्र-सामाचारी अध्ययन सह टबार्थ व पट्टावली, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ७X४४-५०). १. पे. नाम. कल्पसूत्र-सामाचारी अध्ययन सह टबार्थ, पृ. १अ-१०आ, संपूर्ण, वि. १७९४, ले.स्थल, जैसलमेर. कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समय; अंति: भुज्जो उवदंसे त्तिवेमि. For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org १९ कल्पसूत्र - हिस्सा सामाचारी अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि तिणे कालइ ते समइ श्रमण; अंति देखाइ इम वार से कहि Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. पट्टावली तपागच्छीय, पृ. १०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: (-), (पू.वि. "तत्पट्टे श्रीमानदेवसूरि २८ तत्पट्टे" तक है.) १०११३३. (+) श्राद्धप्रतिक्रमण व साधुप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-२(१ से २)=३, कुल पे. २, ले. स्थल. प्रांणपुर, प्रले. मु. लालसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीआदिश्वरजी प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५X११, १४X३९). १. पे नाम. श्रद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. वंदित्सूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा ५०, ( पू. वि. गाथा ४९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ३अ -५अ, संपूर्ण. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंता; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र - २१. १०११३४ (+) जिनबिंबप्रवेशादि विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ५. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., 3 जैवे. (२६११, २१,४५०). १. पे. नाम. जिनबिंबप्रवेश विधि, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.. जिनबिंब प्रवेशस्थापना विधि, मा.गु., सं., गद्य, आदि प्रथम स्नात्रविधि शुद्ध अंति बिग स्थापनं क्रियते. २. पे नाम. गृहबिंबप्रवेशस्थापना विधि, पू. १आ-२आ, संपूर्ण. गृहबिंबस्थापना विधि, मा.गु., सं., गद्य, आदि: प्रथम मुहुर्त शुभ लग्नीक; अंति: बिंबनुं नाम १०८ वार स्मरे. ३. पे. नाम. अष्टोत्तरी स्नात्र विधि, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण अष्टोत्तरी शांतिस्नात्र विधि, मा.गु. सं., प+ग, आदि: तत्र प्रथम उपगरण; अति कुंभमध्ये लिखनमंत्रः. ४. पे नाम. ग्रहशांतिक विधि, पृ. ४अ ६आ, संपूर्ण. आचारदिनकर-नक्षत्रग्रहशांतिक विधि हिस्सा, आ. वर्द्धमानसूरि, सं. प+ग, आदि तत्र पूर्व ग्रह अंतिः पठेत् " , शांत्यर्थम्. ५. पे. नाम धारणा यंत्र, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. " २४ नाम, जिन राशि, नक्षत्र, योनि, गण, वर्ग, हंसक विवरण कोष्टक, मा.गु., को. आदि (-); अति (-). १०११३५. (+०) रायपसेणीयसूत्र, संपूर्ण, वि. १६४६, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ४५, ले. स्थल विक्रममहानगर, राज्यकाल रा. रावसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६X१०.५, १५X४२-५२). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: पस्से पस्सवणी णमो ए, सूत्र - १७५, ग्रं. २०७९. १०११३६. (+) वैराग्यशतक सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी वैरागसतक, पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६X११, ६X३९-४५). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि सुहं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. गाथा-१०३ तक है.) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंति: (-), अपूर्ण. १०११३७ (+#) लिंगानुशासनसूत्र, संपूर्ण, वि. १६४२, आश्विन शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ५, प्रले. श्राव. लक्खु लुंभा ( पिता श्राव. लुंभा); पट श्राव, जयमल श्राव. तोला राज्यकालरा रायसिंह अन्य पंन्या. सत्यलाभ (गुरु पं. शक्तिरंग गणि); गुपि. पं. शक्तिरंग गणि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. हुंडी: लिंगानुशा० सू०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूच लकीरें संशोधित टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२६X११, १४४५६). लिंगानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि पुल्लिंगं कटणथपभमयर; अंतिः समद्भदनुशासनानि लिंगाना, प्रकरण ८, लोक-१३८, प्र. १८१. १०११३८. (#) वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ५, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५X११, १५X४१). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदेन्यस्य; अंति: सुख सतावृद्धि करोतु सदाः For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०११३९ (+) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५१,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १२४३३-४३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: पज्जोसवणा कप्पो संमत्तो, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. १०११४० (#) जंबूस्वामी चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४१०.५, ६x२९-४५). जंबूस्वामी चरित्र, प्रा., प+ग., आदि: नमिऊण वद्धमाणं जस्स; अंति: (-), (पू.वि. "एग सहस्सं कन्नगाणं एगदि०" पाठांश तक है.) जंबूस्वामी चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करिने; अंति: (-). १०११४१ (+) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १८१६, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, मंगलवार, मध्यम, पृ. १०-३(१,४ से ५)-७, पठ. मु. नंदराम, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १४४४०-४६). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: अचिरान् मोक्षं प्रपद्यते, स्मरण-९, (पू.वि. नमिऊण स्तोत्र गाथा-६ अपूर्ण से अजितशांति स्तव गाथा-२३ अपूर्ण तक व भक्तामर स्तोत्र श्लोक-२३ अपूर्ण से है., वि. नवकार, उवसग्गहर व संतिकर स्तोत्र नहीं हैं.)। १०११४२ (+#) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-३(२,७ से ८)=७, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १४४३४-३९). नवस्मरण, म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., नमिऊण स्तोत्र गाथा-७ अपूर्ण से अजितशांति स्तोत्र गाथा-८ अपूर्ण तक, भक्तामरस्तोत्र श्लोक-४१ अपूर्ण से कल्याणमंदिर स्तोत्र श्लोक-७ तक व श्लोक-४३ से नहीं है., वि. संतिकर स्तोत्र व बृहत्शांति नहीं है.) १०११४३. (+#) अष्टप्राभत सह छाया, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १०४३९). अष्टप्राभूत, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., पद्य, आदि: काऊण णमोयारं जिणवरउसहस्स; अंति: (-), (पू.वि. प्राभृत-३ __ गाथा-३३ तक है.) अष्टप्राभत-छाया, सं., पद्य, आदि: श्रीवृषभस्य आदिजिनवरस्य; अंति: (-). १०११४४ (+) कल्पाध्ययन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८२९, कार्तिक शुक्ल, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. १७५-१६७(१ से १६७)=८, प्रले. मु. खेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४११, ६x२८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: जोसवणा कप्पो संमत्तो, व्याख्यान-९, (पू.वि. सामाचारी __अधिकार से है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: उपदेसे दिखाडें सामाचारी. १०११४५. कर्मग्रंथ १ से ६ सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७४-१(१)=७३, कुल पे. ६, प्र.वि. हुंडी:क०बा०., जैदे., (२५.५४११, १३४५७-६१). १.पे. नाम. कर्मविपाक सह बालावबोध, पृ. २अ-११अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदिः (-); अंति: लिहिओ देविंदसुरीहिं, गाथा-६०, (पू.वि. गाथा-४ से है.) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: श्रीदेवेंद्रसूरि कहिउ, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से २. पे. नाम, कर्मस्तव सह बालावबोध, पृ. ११अ-१४आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थणिमो वीरजिणं; अंति: देविंद वंदिअंनमह तं वीरं, गाथा-३४. For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: तिम श्रीमहावीर प्रति; अंति: ते महावीर प्रति नम्, (वि. अंत में १५८ प्रकृति बंधविचार दिया है.) ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ सह बालावबोध, पृ. १५अ-१८आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं वंद; अंति: देविंद०कम्मत्थयं सोउ, गाथा-२४. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: बंध सामित्त विचार; अंति: बंधसामित्व जाणिवउ. ४. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ सह बालावबोध, पृ. १८आ-२८आ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: विआरो लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: वीतरागदेव नमस्कार; अंति: लिखितं देवेंद्रसूरिहिं. ५.पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ सह बालावबोध, पृ. २८आ-४८आ, संपूर्ण, पे.वि. कर्मविपाक से शतक कर्मग्रंथ का एक साथ ग्रंथाग्र है.कुल ग्रं. २१५४५ शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअजिणं धुवबंधोदय; अंति: देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: वीतराग नमस्करीनइ; अंति: कीधउ परोपकारनइ काजिई. ६. पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रंथ सह बालावबोध, पृ. ४८आ-७४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सप्ततिका कर्मग्रंथ-६, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८२ तक है.) सप्ततिका कर्मग्रंथ-६-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्ध निश्चल जे छइ पदकर्म; अंति: (-). १०११४६. (+) नेमिजिन चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३१-१२५(१ से १२५)=६, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, ६४५२). नेमिजिन चरित्र, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अरिष्टनेमि नामकरण प्रसंग से गिरनार में सुरधारा नगरी निर्माण प्रसंग तक है.) नेमिजिन चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). १०११४७. (+) श्रीचंद्र चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९०-३०(१ से ३०)=६०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १४४१५-४७). श्रीचंद्र चरित्र, ग. शीलसिंह गणि, सं., पद्य, वि. १४९४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-२ श्लोक-४६५ अपूर्ण से अध्याय-४ श्लोक-९५४ अपूर्ण तक है.) १०११४९ (+#) अणुत्तरोववाईसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७३५, श्रावण शुक्ल, ११, शनिवार, मध्यम, पृ. १९-६(७ से १२)=१३, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ८००, मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४११,५४३२-३४). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समएणं; अंति: नवम अंगसम्मत्तं, अध्याय-३३, ग्रं. २००, (पू.वि. वर्ग-३ अध्ययन-१ प्रारंभिक भाग अपूर्ण से धन्ना अनगार नासिकोपमा वर्णन तक नहीं अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणइ कालि चुथा आरानइ अंति; अंति: अंगसूत्र अर्थ तेणि सहित, ग्रं. ६००. १०११५४. (+) पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४४४). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्धमान; अंति: तत्पट्टे श्रीहेमविमलसूरि. १०११५५ (#) पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-३(१ से ३)=९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४३१). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. तीसरे व्रतोच्चार अपूर्ण से आगम नामोच्चार तिकट्ट उव० पाठ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०११५६. (+#) शोभन स्तुतयः, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-९ (६) = ७, प्रले. पं. हितविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. लो. (१२) मंगलं लेखकानां च जैवे. (२६४११, ११४३१-३४). कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैकतरण; अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति- २४, श्लोक-९६, (पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., श्लोक-६८ अपूर्ण से श्लोक ८१ अपूर्ण तक नहीं है.) १०११५७ (७) नवकार रास, अपूर्ण, वि. १८५७ चैत्र शुक्ल, १५, सोमवार, मध्यम, पृ. २१-२ (१ से २ ) = १९, ले. स्थल, सादडीनगर, प्रले. ग. तेजसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीराणपुरजी प्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १२X३९). राजसिंहरत्नवती कथा नवकारप्रभावे, मु. गौडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: (-); अंति: गोडीराज० संघ मंगल करूं, ढाल -२४, गाथा - ६०५, ग्रं. ८८५ (पू. वि. डाल-३ गाथा १ अपूर्ण से है.) १०११५८. (+) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २० - ३ (१ से ३) = १७, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैये. (२४४१०.५, ६४३३). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्रारंभिक चैत्यवंदन अपूर्ण से देशावगासिक पच्चक्खाण अपूर्ण तक है.) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., जगचिंतामणिसूत्र अंतिम गाथा अपूर्ण से टबार्थ लिखा है.) १०११५९. (+) ताजिकसार सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९०८, उरगशुअनवेंदु, श्रावण शुक्ल, १५, सोमवार, मध्यम, पृ. २८-१ (१)=२७, ले. स्थल वीदपुरपत्तन प्रले. भगवान ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी ताजिकटी०, ताजिक० वर्ष हेतु शुभ्र ० संदिग्ध है. संशोधित., दे., (२६X११, १३X३३-४५). ताजिकसार, हरिभट्ट, सं., पद्य, श. ११०५, आदि (-) अंति द्विविधैः सुपचै, द्वार ४४, श्लोक-४००, (पू.वि. श्लोक-२ से है.) ताजिकसार- कारिका टीका, ग. सुमतिहर्ष, सं., गद्य वि. १६७७, आदि (-); अति रचिता तनुताच्चिरम्, (पू.वि. श्लोक-१ की टीका अपूर्ण से है.) १०११६१. (+#) अंजणासती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१ (१) = ६, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२५x११, २०५७). अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि (-) अंति: भार्या जगतनी मात तो, ढाल २२, गाथा १६५ (पू.वि. गाथा-२६ अपूर्ण से है.) १०११६३. (+5) द्रौपदी चौपाई, संपूर्ण वि. १८५४ माघ कृष्ण, ९, बुधवार, मध्यम, पू. ६, ले. स्थल मेरतानगर, प्रवे. सा. कुसाला (गुरु सा . नेतुजी); गुपि. सा. नेतुजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : द्रोपदीनी चौपा०, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२६४१०.५, १९४५३). द्रौपदीसती रास, मु. चोथमल ऋषि, रा. पद्य वि. १८५४, आदि सकल जिनेसर नित नमः अंति: पांचमीजी आणी मन हुलास. १०११६४ (४) पार्श्वनाथ स्तवन, स्तवन चौविसी व धन्नाकाकंदी सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. कुल पे. ३, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५x१०.५, १३४३४-४१). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, वा. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि आप अरूपी होय के अति: तुझ पद पंकज सेव हो, स्तवन- २४. ३. पे. नाम. धन्नाकाकंदी स्वाध्याय, पृ. ५आ, संपूर्ण. गाथा-७. २. पे नाम. स्तवनचीवीसी, पृ. १-५अ, संपूर्ण. २४ जिन गीत, मु. आनंद, मा.गु., पद्य, वि. १५८१, आदि आदि जिणंद मया करो; अंति: आणंद मुनि गुणगाया, For Private and Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ धन्नाअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवचनै वैरागीयो हो; अंति: वरत्यो जय जयकार, गाथा-१३. १०११६६. (+) शालिभद्र चौपाई व गौतमपृच्छा चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१०.५, १३४३६-३८). १.पे. नाम. शालिभद्र चउपई, पृ. १अ-१३आ, संपूर्ण, पठ. श्रावि. चंद्राउलि, प्र.ले.प. सामान्य. शालिभद्र रास, मु. साधुहंस, मा.गु., पद्य, वि. १४५५, आदि: देवि सरसति २ सकल; अंति: मुनि इम भणइ० घरि तेह तणइ, गाथा-२१४. २. पे. नाम. गौतमपच्छा चौपाई, पृ. १३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) १०११६७. (#) शीयलप्रकाश रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, ११४४०-४२). शीयलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदि: पहिलुं प्रणाम करूं; अंति: इमश्री० सेवज्यो, गाथा-७०, ग्रं. २५१. १०११६८ (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-५(१ से २,९ से ११)=७, प्र.वि. संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२४४११, ३४३०-३३). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५२, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से ३७ अपूर्ण तक व गाथा-५० अपूर्ण से है.) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सिद्ध एक समै अनेक सिद्ध. १०११६९ (+#) उत्तराज्झयणसूत्र-अध्ययन ३६, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रावण, १४, मंगलवार, जीर्ण, पृ. ९-१(१)=८, प्रले. मु. देदाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक का नाम अंकपल्लवी लिपि में ५३७५३२ ३३४ देदाजी उल्लिखित है व प्रतिलेखन संवत् खंडित है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १५४४७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सम्मए त्ति बेमि, ग्रं. २०००, (प्रतिअपूर्ण, - पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण से है.) १०११७० (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २५-१९(१ से ११,१३ से २०)-६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, ७४३८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-६ गाथा-८ अपूर्ण से अध्ययन-७ गाथा-८ अपूर्ण तक व अध्ययन-१० गाथा-३३ से अध्ययन-१२ गाथा-३९ तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-)... १०११७४. (#) महामंत्रमय पार्श्वजिन स्तव व जिनरक्षा स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५४१०.५, १३४२३-२७). १. पे. नाम. महामंत्रमय पार्श्वजिन स्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-बीजमंत्रयुक्त, मु. कुलप्रभ कवि, सं., पद्य, आदि: नत्वोपासित चरणं कमठे; अंति: (१)कविकुलप्रभुतया घटते, (२)कविकुलप्रभृतया घटते, श्लोक-१२. २. पे. नाम. जिनरक्षा स्तोत्र, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: सर्वातिशयसंपूर्णान; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-११ अपूर्ण तक है.) १०११७५ () दीवालीकल्प, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ९, पठ. सा. द्याली आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १३४३७). अपापाबृहत्कल्प, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., गद्य, वि. १३२७, आदि: पणमिअ वीरं वुच्छं; अंति: समत्थिओ एस सत्थिकरो, ग्रं. ४१६. For Private and Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची " १०११७६ (४) २४ जिन पूर्वभवादि आगमिक विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. १५-१०(१ से ९,१९) ५. पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २४.५X११, १३x४१). विचारगाथा संग्रह, प्रा. सं., प+ग, आदि (-) अंति: (-), (पू.वि. नमुचिराजा प्रसंग अपूर्ण है. वि. समवायांग, तीर्थोद्ालिक आदि विविध आगमादि से संकलित गाथा संग्रह.) , י १०११७७. गुणरत्नाकर छंद, अपूर्ण, वि. १७४२, कार्तिक कृष्ण, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. १७-८ (२, ४ से ९,१६)=९, ले. स्थल अमदावादनगर, जैवे. (२४.५४११, १५X४५). "" गुणरत्नाकर छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५७२, आदि: शशिकरनिकर समुज्वल; अंति: करो सहिजसुंदर मया, अध्याय- ४, गाधा ४०३, (पू.वि. अधिकार- १ गाथा १३ अपूर्ण से ३८ अपूर्ण तक, अधिकार २ गाथा- २ अपूर्ण से १४३ अपूर्ण तक व अधिकार-४ गाथा ४८ अपूर्ण से ७३ अपूर्ण तक नहीं है.) १०११७८. कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८५-५८ (१ से १२,१५,१७ से २०,२३ से २८,४१ से ४४,४६,५१,५३ से ५५,५७ से ६०,६२ से ८०,८२ से ८४) + १ (२२) २८. पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. हुंडी कल्प०.८०., जैदे., (२५x१०.५, ६x४२). " कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-) अंति (-), (पू.वि. प्रारंभिक सूत्र- १४ अपर्ण से श्रीवीर श्रामण्ये २१ उपमा वर्णन सूत्र- ११८ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति (-). *, १०११७९. (+) सज्जनचित्तवल्लभ काव्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. प्र. वि. हुंडी सज्जन०, संशोधित, जैदे., (२६११, ६x४२). सज्जनचित्तवल्लभ काव्य, आ. मल्लिषेण, सं., पद्य, आदि: नत्वा वीरजिनं; अंति: सततं संसारविच्छित्तये, श्लोक-२५. सज्जनचित्तवल्लभ काव्य-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने श्रीभगवंत अति जासी भवांकई आंतरई. . १०११८० (+) बृहत्संग्रहणी, संपूर्ण वि. १८४७ भाद्रपद शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. १२ ले स्थल भीलाडा, पठ. मु. चरंडुगा (गुरु पं. गुमान, खरतरगच्छ); गुपि. पं. गुमान (गुरु ग. कुशलसौभाग्य, खरतरगच्छ); ग. कुशलसौभाग्य ( खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२५.५४११.५, १३४३९). " बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊ अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२८१. १०११८६. (+४) सिद्धांतचंद्रिका पूर्वार्द्ध सह सुबोधिनी वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९४-१६ ( २२ से २३,२७,२९ से ४१) = ७८, प्र. वि. हुंडी : सिद्धांतचंद्रिकावृ०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५x११, १७-१८४५१-५४). सरस्वतीसूत्र प्रक्रिया सिद्धांतचंद्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, आदि: नमस्कृत्य महेशानं मर्त अति: (-) (प्रति अपूर्ण, पू.वि. सूत्र - लोम्नोपत्येषु बहुष्वकार' की टीका अपूर्ण से सूत्र - तकारस्थानजाद्वर्णादपि की टीका अपूर्ण तक सूत्र- 'वाम् शसि' अपूर्ण से सूत्र-'ईमौ' की टीका अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सिद्धांतचंद्रिका की सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., गद्य, वि. १७९९, आदि: पुराणपुरुषं ध्यात्वा अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. For Private and Personal Use Only १०११९० (+) जयत्रिभुवनद्वात्रिंशिका व नवकार मंत्र विवरण, संपूर्ण वि. १६४५, वैशाख शुक्ल, १५, रविवार, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २. प्र. मु. लक्खू (गुरु पं. शक्तिरंग गणि) गुपि. पं. शक्तिरंग गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X१०.५, १५×५५-६०). १. पे नाम. जयत्रिभुवनद्वात्रिंशिका सह वृत्ति, पृ. १अ ५अ, संपूर्ण. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि जय तिहुयणवरकप्परुक्ख जय अंति: अभयदेव " विणिव आणिदिय, गाथा- ३०. जयतिहुअण स्तोत्र- टीका, सं., गद्य, आदि अत्रायं वृद्धसंप्रदायः अंतिः त्रिलोकलोकश्लाघितः ग्रं. २५०. २. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र सह अर्थ, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि नमो अरिहंताणं; अंतिः पढमं हवइ मंगलं, पद- ९. Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ नमस्कार महामंत्र-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: माहरउ नमस्कार अरहतारहइ; अंति: प्रथम मंगल ए हुइ. १०११९१. वंदित्तुसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, जैदे., (२६४११, १७४४०-४५). वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्ध; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-५ तक है.) वंदित्तुसूत्र-अर्थदीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४९६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्रारंभिक पाठ अपूर्ण से गाथा-५ की टीका अपूर्ण तक है.) १०११९२. (+) स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. कीर्ति, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.७, १८४४०-४४). स्तवनचौवीसी, म. ललितविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जिणंदा साहिब ऋषभ; अंति: गाया ललितविजय दवाजै रे, स्तवन-२५, (वि. अंतिम २५वाँ स्तवन प्रशस्ति रूप है.) १०११९४ (+) अष्टान्हिकामाहात्म्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९११, माघ शुक्ल, ९, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४१, लिख. मु. गुलाबचंद ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, ६४३७). पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि: स्मृत्वा पार्श्व; अंति: विलसिता नंद हेतुः सकाम, श्लोक-६२४. पर्यषणाष्टाह्निका व्याख्यान-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: समरीने श्रीपार्श्वजी; अंति: रीऋषभदेवे धर्म मारग कह्यो. १०११९५ (+) दानशीयलतपभावना चोढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १२४३२-३४). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समयसुंदर० सुजगीसो रे, ढाल-४, गाथा-९४, ग्रं. १३५. १०११९६. (+) व्यवहारशुद्धि चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४१०.५, १४४३८). व्यवहारशुद्धि चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९६, आदि: शांतिनाथ सोलनु; अंति: सीझई वंछित काज, ढाल-९, गाथा-१६१. १०१२०२. (+) बुढापा रास व दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:बुढारा., संशोधित., दे., (२५४१०, १०x२४). १. पे. नाम. बुढापा रास, पृ. १अ-९अ, संपूर्ण, वि. १९३९, चैत्र कृष्ण, ३०, शनिवार, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. सुमतिचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. अंत में श्रीतपागच्छ की पोसाल में लिखे जाने का उल्लेख है. मु. चंद, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: दया ज माता वीनवु; अंति: सुणज्यो कलजुग नीसांणी, ढाल-१४, (वि. प्रतिलेखक ने ढाल-१४ दी हैं व ढाल-१२ का दो बार उल्लेख किया है.) २.पे. नाम. दहा संग्रह, पृ. ९अ, संपूर्ण. दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: नींच तणों नवि कीजै संग; अंति: नरमी भली न नाथीया, गाथा-३. १०१२०३ (+) सुविधिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८८, ६, शनिवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. राधनपुरनगर, प्रले. मु. ऋद्धिविजय; लिख. सा. सुंदरश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, ९४२३). सुविधिजिन स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: श्रीयसुवधिजिणंद; अंति: गुण देवाधिदेवनारे, ___ ढाल-२, गाथा-२९. १०१२०४. (+) शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. हुंडी:स@जय., संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३१-३९). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: देही सण जयकरो, ढाल-१२, गाथा-१२०. १०१२०५ (+#) चतुर्विंशतिजिन स्तवनानि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८,प्र.वि. हंडी:चोविसि., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १३४३७). For Private and Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्तवनचौवीसी, ग. विनीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदीसर अरज अमांरी अवधारो; अंति: रिवराजनो विनीतविजय जयकारी, स्तवन-२४. १०१२०६. (#) चोविस दंडक प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७५६, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. पं. ऋद्धिचंद गणि (गुरु पं. विनयचंद गणि); गुपि. पं. विनयचंद गणि (गुरु उपा. धर्मचंद गणि); उपा. धर्मचंद गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १८४५०-५३). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चोवीसजिणे; अंति: लहिया एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४२. दंडक प्रकरण-बालावबोध , मा.गु., गद्य, वि. १५७९, आदि: ऋषभादिक चोवीस तिर्थंकर; अंति: ए वीनती स्तुति कीधी. १०१२०७. (#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७४-५४(१ से ५०,५२ से ५५)=२०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२३.५४१०.५, १३-१७४४६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. व्याख्यान-६ महावीरजिन चरित्र अपूर्ण से __ व्याख्यान-९ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. प्रतिलेखक ने यत्र-तत्र टबार्थ नहीं लिखा है.) कल्पसूत्र-कथा संग्रह *, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पार्श्वजिन चरित्र से स्थूलभद्र संबंध तक है., वि. टीकागत कथा है.) १०१२०८. (+) चंदनबालासती सज्झाय, गोडीपार्श्वनाथ स्तवन व चित्तसंभूति चौढालियो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, १३४३६). १.पे. नाम. चंदनबालासती सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: कोसंबीनगरी पधारिया; अंति: सती सहस्र परिवार, गाथा-४३. २. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथजी स्तवन, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपर गोडीजी इतिहास वर्णन, म. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मवादनी जग; अंति: जिण नाम अभिराम मंते, ढाल-५, गाथा-५५. ३. पे. नाम. चित्तसंभुति चौढालियो, पृ. ४आ-५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: प्रणमुं सरसति सामुणी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-८ अपूर्ण तक है.) १०१२०९ (#) पद व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ.७, कुल पे. ११, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१२, ९४३५). १. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. हकम, पुहिं., पद्य, आदि: ध्यान में ध्यान में हं; अंति: हुकम० पामे केवलग्यानमें, गाथा-५. २. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ औपदेशिक पद-गुरुगुण, मु. हुकम, मा.गु., पद्य, आदि: (१)भवी सेवौ शदगुरु तमे, (२)विरजीनेसर साहीब साचौ सासन; अंति: हुकम० सीववहु कर घ्रहीये, गाथा-९. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. हकम, पुहि., पद्य, आदि: संतीजीनेसर साहीब साचौ; अंति: हुकम० संत पणु चीतवास रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. हुकम, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन तु अभीमाने भरीयौ; अंति: हुकम०मिलसे सीवसुख मेवो रे, गाथा-३. ५. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अबधु क्या वीभाव में सुता; अंति: (-). ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. म. धरमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: धरमवि० सरधा वसे चीतयाणां, गाथा-१३. For Private and Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ७. पे. नाम. पार्श्वजिन प्रभाती, पृ. ४अ-६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन प्रभाति, मा.गु., पद्य, आदि: चालो ने चेतन० जिनमंदीर; अंति: (-). ८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मु. हुकम, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: मुनि हुकम० अनुभव जगा, गाथा-४. ९. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. हकम, पुहि., पद्य, आदि: गीरीनारी सोरठ कोइ समजावौ; अंति: हुकम० सहज विलासी वडवीर रे, गाथा-४. १०. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. मु. हुकम, पुहि., पद्य, आदि: चेतनरूप अनूप सोभागी जास; अंति: हुकम० रेवा थओ हूं रागी, गाथा-४. ११. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ७अ, संपूर्ण. ___ मु. हुकम, पुहि., पद्य, आदि: समज साधु जीनसेना; अंति: हुकम० सीवरमणी रंग भीना, गाथा-३. १०१२१० (+#) प्रास्ताविक, औपदेशिक व सुभाषित श्लोकगाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ.८,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४११, १३४३६). प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अरिहंतदेव सुसाधुगुरु धर्म; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मिथ्यात्व विषयक श्लोक-१ तक लिखा है., वि. अलग-अलग विषय पर कबीरदास, चरणदास व गंगदास आदि के भी पद्य संलग्न है.) १०१२११. (+) सिंदूरप्रकर सह व्याख्या व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १५४४८-५४). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-९२ तक लिखा है.) सिंदूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनं नत्वा; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. रप्रकर-टीका की कथा, सं., गद्य, आदिः (१)विप्र प्रार्थितवान, (२)क्षेत्रेस्मिन भरतेखिले; अंति: (-), (अपूर्ण, "प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वि. मेघकुमार दृष्टांत तक लिखा है.) १०१२१२ (+) वंदित्तुसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हुंडी:वंदित्तु, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ४४२३-३०). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्ध धम्मा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. गाथा-४९ अपूर्ण तक है.) वंदित्तुसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: वांदीनइ अरिहंत सिद्ध; अंति: (-), अपूर्ण. १०१२१३ (+) पापबुद्धिराजाधर्मबुद्धिमंत्री रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १३४३४). __पापबुद्धिराजाधर्मबुद्धिमंत्री रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण से ९९ अपूर्ण तक है.) १०१२१४. (+#) रामविनोद वैद्यक, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ८९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:रामविनोद वैद्यक., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १५४३८-४४). रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सिद्धि बुद्धि दायक; अंति: (-), (पू.वि. अधिकार-८ त्रिविधनाडीलक्षण विचार अपूर्ण तक है.) १०१२१५. (+) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७९९, श्रावण शुक्ल, ९, गुरुवार, मध्यम, पृ. ७१-६(४९ से ५३,६१)=६५, ले.स्थल. लींबडी, प्रले. मु. भाणविजय (गुरु पं. देवविजय); गुपि. पं. देवविजय (गुरु पं. अमृतविजय); पं. अमृतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, ६४३०-३६). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, (पू.वि. अध्ययन-७ सूत्र-२ अपूर्ण से सूत्र-५ अपूर्ण तक व बीच के पाठांश नहीं हैं.) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालनइ विषइ ते समयनइ; अंति: अध्ययन कह्या ईग्यारमो अंग. For Private and Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०१२१७ (+#) उपदेशमाला सह अवचूरि व टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ४५, ले.स्थल. संग्रामपुर, प्रले. मु. युक्तिरंग; गुभा. मु. सुमतिरंग (गुरु मु. चंद्रकीर्ति, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि. मु. चंद्रकीर्ति (गुरु वा. हर्षकल्लोल, बृहत्खरतरगच्छ); वा. हर्षकल्लोल (गुरु पं. विनयकल्लोल पंडित, बृहत्खरतरगच्छ); मु. समयकीर्ति (गुरु मु. गुणप्रमोद, बृहत्खरतरगच्छ); अन्य. श्राव. जोधा, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, प्र.ले.श्लो. (१३८८) भग्नपृष्टि कटिग्रवा, जैदे., (२५४११, ६x४१). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४, (वि. १७०३, पौष शुक्ल, ७) उपदेशमाला-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथमानम्य; अंति: प्रयत्ने सादरतयेति. उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी सामान्यकेवली; अंति: यतन करी सोधियो मया करीनइ, (वि. १७०३, फाल्गुन शुक्ल, ३) १०१२१८. सौभाग्यपंचमी कथा व सुव्रतऋषि कथा-मौनएकादशी, अपूर्ण, वि. १८०१, भाद्रपद कृष्ण, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. ९-४(१ से ४)=५, कुल पे. २, ले.स्थल. सुणसरग्राम, प्रले. मु. हीराचंद्र (गुरु पं. सामलचंद्र गणि); गुपि.पं. सामलचंद्र गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:मौनएकादशी कथा., जैदे., (२६४११.५, १५४३७). १. पे. नाम. सौभाग्यपंचमी कथा, पृ. ५अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. सौभाग्यपंचमी कथा-व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सिद्धि नवनिधि पामीजे, (वि. व्याख्यान फलश्रुति अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. मौनएकादसीदिन आराधनविषये सुव्रतऋषि कथा, पृ. ५अ-९अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व व्याख्यान-सुव्रतश्रेष्ठिकथा, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो पार्श्वनाथाय; अंति: ते माटि ए पर्व विशेष कहउ. १०१२१९ (+#) आदिजिन स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ११-२(२,६)=९, कुल पे. १५, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, पत्रांक खंडित है., जैदे., (२६४१२, ११४२४). १.पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आदिजिन स्तवन-आबुतीर्थमंडन, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आबुगढ रलीयामणो जिनराजै छ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) । २. पे. नाम, पलवीयापार्श्वजिन स्तवन, प. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. पार्श्वजिन स्तवन-पल्लविया, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: रंग० अविचल पद निरधार, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-३ से है.) ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद वखाण्यौ; अंति: कांतिसा० सुख पाया रे, गाथा-१०. ४. पे. नाम. १७ भेदी पूजा सज्झाय, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण.. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सतरभेद पूजा फल सांभल; अंति: तेह तर्याने तारे रे, गाथा-९. ५. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ मु. विजयहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४७, आदि: सकल सुरासुर सेवित; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ६. पे. नाम, नेमिजिन स्तवन, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण. पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तोरण आवी कंत पाछा; अंति: जिननेम अनुभव फलीआ रे, गाथा-१५. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ.८अ-८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पुरूषादानीय, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरुष परमातमा; अंति: प्रगटे झाकझमाल हो, गाथा-७. ८.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ८आ-९आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ पंन्या. खिमाविजय , मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद जगत उपकारी; अंति: सिद्धि निदान जी, गाथा-७. ९. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. ९आ, संपूर्ण. मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजिनेसरने नमो भावें भवि; अंति: किर्ति कहें तुम्हे धीर, गाथा-३. १०. पे. नाम. शांतिनाथ प्रथम चैत्यवंदन, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. शांतिजिन प्रथम चैत्यवंदन, म. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांतिकरण जिन सांतिनाथ अचि; अंति: तणो किर्ति कहे मुझ तारि, गाथा-३. ११. पे. नाम, नेमिजिन चैत्यवंदन, प. १०अ-१०आ, संपूर्ण. म. कीर्तिविजय, मा.ग., पद्य, आदि: नेमजिन बावीसमों; अंति: तुम सेवना होयो मुझ नितमेव, गाथा-६. १२. पे. नाम, पासजिन चैत्यवंदन, पृ. १०आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुरिसादाणी पासजिण तेवीसमो; अंति: प्रभु तुम तणि कीरति, गाथा-३. १३. पे. नाम. वीरजिन चैत्यवंदन, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. महावीरजिन चैत्यवंदन, म. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद चोविसमो भविजन भा; अंति: मोहनतणो किर्त्ति नमें पाय, गाथा-३. १४. पे. नाम. वीरस्तुति, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. ___महावीरजिन स्तुति, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंछित पूरण कल्पतरु; अंति: तुम तणी पदवी आपो कीरत भणी, गाथा-४. १५.पे. नाम. आदिजिन स्तति-आनंदपुरमंडन, पृ. ११आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आदिजिन स्तवन-आनंदपरमंडन, मा.ग., पद्य, आदि: आनंदपुरमंडन आदिजिणेसर; अंति: (-), (प.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) १०१२२० (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. सुरतबंदर, प्रले. पं. विवेकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ३४३१-३६). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुणं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-५३. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ*, मा.ग., गद्य, आदि: जीवा क० जीवतत्त्व; अंति: एक समय अधिको जाणिवओ. १०१२२१. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, जैदे., (२६४११, ३४३३-३६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण भणामि; अंति: रुदाउ सुअस्समुदाउ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मु. सुमति, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन कहितां त्रणि; अंति: रूपी आ समुद्रमांहि थी. १०१२२२. (#) भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११,१३४५०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: किल इति संभावने; अंति: तेह रहइ लक्ष्मी छइजी. १०१२२६. (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला-प्रथम कांड, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१०, ११४३३-४३). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०१२२८. (+) भुवनदीपकसूत्र सह बालावबोध व उच्चनीचग्रहविचार गाथा, संपूर्ण, वि. १७४७, चैत्र शुक्ल, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. २, प्रले. मु. लाभसागर (गुरु ग. धनसागर); गुपि. ग. धनसागर; पठ. ग. भाग्यसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:भुवनदीपक., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १५४३९). १. पे. नाम. भुवनदीपकसूत्र सह बालावबोध, पृ. १अ-१५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य वि. १३५, आदि सारस्वतं नमस्कृत्य अति श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक १७०, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भुवनदीपक-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती तणउ तेजु नमस्कारी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, पुत्र-पुत्री पृच्छा तक लिखा है.) २. पे. नाम. उच्चनीचग्रहविचार गाथा, पृ. १५आ, संपूर्ण. उच्चनीचग्रह विचार गाथा, सं., पद्य, आदि: उच्चलः सूर्य उच्चैर्न; अंति: राहु केतौ विकर्मणौ, गाथा-२. १०१२२९. (+) लीलावती भाषानुवाद, संपूर्ण, वि. १८२९ आश्विन शुक्ल, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १८, ले. स्थल. चांणोदनगर, प्रले. पं. मनोहरसागर गणि (गुरु ग. हेतुसागर); गुपि. ग. हेतुसागर (गुरु उपा. राजसागर गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीअचिरानंदनजिन प्रसादात्., संशोधित, जैदे., (२५.५X११, १५x५५). लीलावती भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि सोभित सिंदूर पुर अति ऐ वरतो जनसुख काज, अध्याय १६, गाथा- ७०७. १०१२३१ (४) पाशाकेवली, संपूर्ण वि. १८४३, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, रविवार, मध्यम, पृ. ५, ले. स्थल पीपाड, प्रले. मु. जसरूप ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीगुरुप्रसादात्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १३X३८). पाशाकेवली भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः ॐ नमो भगवती; अतिः पुस्तकनै पूजे मनोरथ फलसी. १०१२४२. (+) आचारांगसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६-२ (१ से २) = १४, पू. वि. बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. हुंडी: आचारंगसूत्र, पंचपाठ-संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२६४१९, ४-१२x२१-२८). " आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- १ उद्देश १ सूत्र ४ अपूर्ण से "" अध्ययन-२ उद्देश-१ सूत्र- १ अपूर्ण तक है.) आचारांगसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०१२४३. (+#) उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२७४११, ११४२५-२८). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा - १०२ अपूर्ण तक है.) १०१२४५. प्रतिक्रमणविधि संग्रह - खरतरगच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०-२० ( १ से १८, २४ से २५ ) = १०, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. जैदे. (२६११, ६४१८-२२). "" प्रतिक्रमणविधि संग्रह खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि (-); अति (-) (पृ. वि. प्रारंभिक सामायिक विधि अपूर्ण से पीषधपडिलेहण विधि अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०१२४६. (+) वृहत्क्षेत्रसमास नव्य की अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पू. ११, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैये. (२६.५४१९, २४४६४). विशेष बृहत्क्षेत्रसमास नव्य-अवचूरि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरजिनवरेंद्र, अंति: कृतावचूरि विरचितेयं. १०१२४७. अनंतव्रतोद्यापनपूजा विधि, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र. वि. हुंडी अनंतव्रत, जैवे. (२६.५x११.५, ८४३२-३८). अनंतव्रतोद्यापनपूजा विधि, सं., प+ग, आदि वृषभाद्यनंतपय्यैतान्; अति: निर्व्वियामीति स्वाहा. יי १०१२४८. (+#) उपासकदशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १८, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अं खंडित है, जैदे. (२६.५४११. १५४४६). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन- १०, ग्रं. ८१२. १०१२४९. (+) निशीथसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०, पठ. पं. बुद्धिविजय गणि (गुरु पं. वल्लभविजय गणि); गुपि. पं. वल्लभविजय गणि (गुरु पं. गुणविजय गणि); पं. गुणविजय गणि (गुरु उपा. यशोविजय गणि); उपा. यशोविजय गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी: निशीथ सूत्र., पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११, १३x४८). निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि जे भिखु हत्थकम्मं करेति अति: पसिस्सोवभोज्जं च उद्देशक- २०. For Private and Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०१२५० (+) श्राद्धजीतकल्प सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५२८, श्रावण कृष्ण, ८, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, अन्य. चिमन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ५-८४५७-६५). श्राद्धजीतकल्प, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: कयपवयणप्पणामो जीयगयं; अंति: रइयं सोहंतु गीयत्था, गाथा-१४२. श्राद्धजीतकल्प-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (१)श्रीधर्मघोषसूरि पादा, (२)कृत प्रवचनस्य द्वादशंनस्य; अंति: पात्रे परीक्षित गुणे. १०१२५१ (+#) व्याश्रयमहाकाव्य सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४९-५(२,२८ से ३१)+१(३२)=४५, पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, २०४६०-६४). व्याश्रयमहाकाव्य, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: अर्हमित्यक्षरं ब्रह; अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-३ श्लोक-५० तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) व्याश्रयमहाकाव्य-टीका, ग. अभयतिलक, सं., गद्य, वि. १३१२, आदि: श्रीभूर्भुवः स्वस्त्रितया; अंति: (-). १०१२५४. (+#) उणादिगणसूत्र सह स्वोपज्ञ विवरण, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५९-१(१)=५८, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. २५००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १५४४५). सिद्धहेमशब्दानुशासन-उणादिगणसूत्र, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: वहेः क्विप् सश्च डः, सूत्र-१००६, (पू.वि. सूत्र-५ से है.) सिद्धहेमशब्दानुशासन-उणादिगणसूत्र का स्वोपज्ञ विवरण, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १२वी, ___ आदि: (-); अंति: अने वहति अनड्वान्वृषभः, ग्रं. ३२५०, (पू.वि. सूत्र-४ के विवरण अपूर्ण से है.) १०१२५५. पिंडविशुद्धि प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ११, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:पिंडविसुद्धः., कुल ग्रं. ४००, जैदे., (२६४१२, ११४२९). पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देविंदविंदवंदिय पयार; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१०० अपूर्ण तक है.) पिंडविशुद्धि प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देव तणां इंद्रने समूहे; अंति: (-). १०१२५६. (+) ज्योतिषसार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८००, पौष कृष्ण, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. ४०, ले.स्थल. द्रोणाडानगर, प्रले. मु. हरचंद ऋषि; पठ. म. जीवनचंद ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ५४३५-४०). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतं जिनं नत्वा; अंति: भवत्सिद्धिकरस्तदा, श्लोक-२८३. ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीतीर्थंकर वीतरागदेव.; अंति: करणहार सुखनो दातार. १०१२५७. (+) पर्यषणाकल्प सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १७७१, मध्यम, पृ. १७९-२(६१ से ६२)=१७७, पठ. सा. अमरबाई आर्या (गुरु सा. अगर आर्या); गुपि. सा. अगर आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६.५४१०.५, २-५४२७-४७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: भुज्जो उवदंसेइ त्तिबेमि, व्याख्यान-८, ग्रं. १२१६, (पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., सूत्र-९६ अपूर्ण से १०० अपूर्ण तक नहीं है.) कल्पसूत्र-टबार्थ+कथा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नमो अर्हभ्यः० ते काल जे; अंति: (-), (पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., थिरावली के सूत्र-२९ अपूर्ण तक का टबार्थ लिखा है, उसके बाद मूल के साथ मात्र कथा है.) १०१२५८. (+#) गौतमपृच्छा सह टीका व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:गौतमपृच्छा०, संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १२४४०). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४९ तक है.) गौतमपच्छा-टीका, म. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, वि. १७३८, आदि: वीर जिनं प्रणम्यादौ; अंति: (-), (प.वि. गाथा-४९ की टीका अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गौतमपृच्छा-कथा, म. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, आदि: एकस्मिन् ग्रामे एको; अंति: (-), (पू.वि. दरिद्रोपरि नि:पुण्यक कथा तक है.) १०१२५९ (+#) भक्ष्याभक्ष्य विचारगाथा संग्रह व अमरसेनवज्रसेन कथा, अपूर्ण, वि. १५वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५-१९४३७-४४). १. पे. नाम. भक्ष्याभक्ष्य विचारगाथा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: डगराय बार पुहरा वीसंपिसि; अंति: उप्पज्जंति अंबुजीवाण, गाथा-१६, (वि. अंत में एक सुभाषित श्लोक २. पे. नाम, अमरसेनवयरसेन कथा, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अमरसेनवज्रसेन कथा, सं., गद्य, आदि: अस्ति भरतक्षेत्रे अमरपुर; अंति: (-), (पू.वि. अमरसेन द्वारा स्नात्रपूर्वक राज्य देने के प्रसंग अपूर्ण तक है.) १०१२६०. (+#) गर्भापहार विचार, जिनजन्ममहोत्सवादि विचार व अरिष्टनेमिजिन चरित्र, अपर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४५-१३३(१ से ४६,४८ से ८५,८९ से १३७)=१२, कुल पे. ४, प्र.वि. कल्पसूत्र व्याख्यानगत विषय लगता है किन्तु पाठ न मिलने से स्वतंत्र रूप से लिया गया है., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, १४४४५). १. पे. नाम, गर्भापहार विचार, पृ. ४७अ-४७आ, संपूर्ण. गर्भपरावर्तन विचार-अन्यशास्त्रोक्त, सं., गद्य, आदि: अत्राह कोपि शिवशासनी; अंति: (१)बलभद्रं बलाश्रयात्, (२)विधाव्यतिकरा बहूनि संति. २. पे. नाम. ५६ दिक्कुमारीक़त जिनजन्ममहोत्सव विचार, पृ. ८६अ-८७अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: भगवतो जन्मोत्सवं० अष्टौ; अंति: जन्मो० स्वस्थानेषु गताः. ३. पे. नाम. इंद्रकृत जिनजन्ममहोत्सव विचार, पृ. ८७अ-८८आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: तस्मिन् समये शक्रस्य आसनं; अंति: स्वस्वस्थाने विमाने गताः, (वि. अंत में दासी द्वारा सिद्धार्थराजा को जिनजन्म प्रसंग की सूचना देने के बाद वर्धापन वर्णन अपूर्ण तक है.) ४. पे. नाम, अरिष्टनेमिजिन चरित्र, पृ. १३८अ-१४५आ, संपूर्ण. नेमिजिन चरित्र *, सं., गद्य, आदि: अरिष्टनेमिस्तु जन्म शौरी; अंति: ययौ राजीमती शिवं, (वि. दशवैकालिकसूत्रटीकागत संदर्भ मिलता है.) १०१२६१ (+) पंचतीर्थी स्तव प्रस्तावे श्रीशांतिजिन स्तव, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १३४४५-५०). शांतिजिन स्तवन, ग. सूरचंद्र, सं., पद्य, आदि: यद्वक्त्राभ्रमविभ्रमेण; अंति: ततमतिः सन् सूरचंद्रर्षिणा, श्लोक-४१. १०१२६२ (+#) कालिकाचार्य कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२-४(१ से ४)=८, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३-१६x४७-५५). कल्पसूत्र-कालिकाचार्य कथा, संबद्ध, प्रा.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (१)स्थविरा बभूवुः, (२)आज्ञा आचंद्रार्क निर्वहतु, (पू.वि. दीक्षा प्रसंग अपूर्ण से है., वि. साधु समाचारी संलग्न है.) १०१२६३. (+) महावीरजिन चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, पठ. सा. राजविजया; सा. कल्याणविजया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ५४३१-४६). दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीरं मोहपंको; अंति: सया पायप्पणामो तुह, गाथा-४४. दरिअरयसमीर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: दुरितकष्टतहूयणीरज तिहा; अंति: प्रमाणाम नमस्कार तो भणी. १०१२६४. पौषधविधि प्रकरण व पौषध विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, जैदे., (२६४१०.५, १३-१६x४४-५०). १.पे. नाम. पौषधविधि प्रकरण, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जस्सुद्धट्ठियमुल्लसि; अंति: गुणंतु विहिरया. For Private and Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ २. पे. नाम, पोसह विहि, पृ. ५अ-७आ, संपूर्ण. पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: संपज्झंतु पुव्व लिंगिउ; अंति: सहत्थद्धदसद्ध बहि पउणो. १०१२६५ (+#) वज्जालग्ग सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१३९८) भग्न पृष्ठि कटि ग्रीवा, जैदे., (२५४१०.५, १७X५४-६२). वज्जालग्ग, क. जयवल्लभ, प्रा., पद्य, आदि: सव्वन्नुवयणं पंकयनिव; अंति: गुरुत्तणं लहइ सो पुरिसो, गाथा-७१५, ग्रं. १२३०, (वि. प्रारंभ में संस्कृत छाया का उल्लेख मात्र दिया है.) वज्जालग्ग-वृत्ति, ग. रत्नदेव, सं., गद्य, वि. १३९३, आदि: अहं कविः श्रुतदेवतां; अंतिः सहस्त्रत्रितय ननु. १०१२६६. (+) भक्तामर स्तोत्र व बृहद्शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १०४३३). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम. बृहच्छांतिस्तवस्तोत्र, पृ. ४आ-६अ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयतु शासनम्. १०१२६७.(+) ३६३ पाखंडी भेद व आगमिक आलापक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १०४३७-४०). १. पे. नाम, ३६३ पाखंडी भेद सह बालावबोध, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. ३६३ पाखंडीभेद विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: तत्थ णं जे से पढमट्ठाणस्स; अंति: सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति, (वि. सूत्रकृतांगसूत्र श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-२ सूत्र ६७२ से ६७३.) ३६३ पाखंडीभेद-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तिहाँ जे अधर्म पक्ष छइ; अंति: ते जैननउ बोल्यउ ए भाव. २. पे. नाम, आगमिक आलापक संग्रह सह बालावबोध, पृ. ४अ-२०आ, संपूर्ण. आगमिकपाठ संग्रह, प्रा.,सं., प+ग., आदि: तत्थ खलु भगवता परिन्ना; अंति: लोमया से तं लोगोवयार विणए, (वि. विविध विषयक.) आगमिकपाठ संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तिहाँ खलु निश्चइ भगवंतइ; अंति: (१)गीतार्थ पूछी निर्णय करिवउ, (२)यस्य तस्य कार्यः परिग्रहः. १०१२६८. दृष्टांतशतक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, दे., (२५.५४११, १३४३९). दृष्टांतशतक, सं., पद्य, आदि: नत्वा श्रीवृषभं सदावृषधरं; अंति: धीरैर्विशोध्यं वरै, श्लोक-१०२. १०१२६९ (+#) नवतत्त्वप्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३६, प्रले. पं. चिमनसागर; अन्य. पंन्या. फतेंद्रसागर गणि (परंपरा गच्छाधिपति विजयदेवेंद्रसूरि), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ३-२१४३१-४७). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाश्जीवार पुण्णं३ पावा४; अंति: परियट्टो चेव संसारो, गाथा-४१. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: कंधार्थं यदत्र विहितं खलु, (वि. आदिवाक्य खंडित है.) १०१२७०. पच्चक्खानसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४११, २४३४). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: अप्पाणं वोसरामि. प्रत्याख्यानसूत्र-बालावबोध *, पुहिं.,मा.गु., गद्य, आदि: उगई सूर्यइ प्रहिवहिसति; अंति: देहनी सोभास्नान विलेपन. १०१२७१ (+) उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४३०-३८). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-२६२ अपूर्ण तक है.) १०१२७२ (+) आचारांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:आचा०सू०., संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४४७). For Private and Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-८ उद्देशक- ३ गाथा- २ अपूर्ण तक है.) , १०१२७३. (+) भक्तामरस्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. २५, प्र. वि. संशोधित, जै.. (२६११, ११४३९). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमीलि अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र वालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य वि. १५२७, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर अति लक्ष्मी स्वयंवर 3 वरइ. १०१२७४. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३५-८ (२ से ४,२०,२२ से २३,२५,२९)=२७, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. जैवे. (२६४११, ११४१३-३६) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य वि. १५वी आदि वीरं जयसेहरपयपयडिय; अति: (-), -, , (पू. वि. गाधा-४ से १२ अपूर्ण तक, गाथा १७० अपूर्ण से १८० तक व गाथा १९० से नहीं हैं.) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि : देव कुरु उत्तर कुरुनां; अंति: (-). १०१२७५. (4) आवश्यकसूत्र की नियुक्ति अस्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५X११.५, ११x२९). आवश्यक सूत्र- निर्युक्ति, आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति (-), प्रतिपूर्ण १०१२७६. (+) पद्मनंदीपंचविंशतिका सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७७, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें. जैवे. (२६४११, १२४३७) पद्मनंदीपंचविंशतिका, मु. पद्मनंदी, प्रा. सं., पद्य, आदि कायोत्सर्गायतांगो जयति अंति (-), (पू.वि. एकत्वसप्तति, श्लोक-१८ तक है.) पद्मनंदीपंचविंशतिका-टीका, सं., गद्य, आदि: स जिनपतिः जयति कथंभूतो; अंति: (-). १०१२७७. (+) कल्पसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ११९-७(१ से २,७,२४,८८,९५ से ९६) = ११२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें. जैवे. (२५.५x१०.५, ५X३५) " कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अति (-), (पू. वि. पाठ- "भारहेवासेदाहिणदभरहे" से "वारएसारएधारएपारए" तक, "विहरइ १३ तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्केदेविदे" से "इभंसुभंसव्वल" तक, "सहसुहमलक्खण पसच्छविच्छिन्न" से "महाविमाणाठ बत्तीसंसाग तक, "पुव्वनकालसमयंसि उत्तरकुराए से "तिवासअद्धनवमासाहि"तक, व "तेणं कालेणं २ उसभेअरहाकोसलीए" से "कुच्छंसिवभूइयंपियं कोसि" तक के पाठ हैं.) कल्पसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-) अति (-). १०१२७८. (०) बृहत्संग्रहणी सह टवार्थ व अल्पबहुत्व विचार, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पू. ६७-११ (३,१५ से १६,३५ से ४२ ) =५६, कुल पे. २, ले.स्थल. विक्रमपुरनगर, प्रले. पं. ईश्वरसागर, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५x११, ३ १३४३८-४२). १. पे नाम बृहत्संग्रहणी सह टवार्थ, पृ. १आ- ६५आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताइं ठिइ; अंतिः संखोभागो अनंतजीवोचयइएइ, गाथा-३५०, (अपूर्ण, पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से १३ अपूर्ण, ६९ अपूर्ण से ८४ अपूर्ण व १८३ अपूर्ण से २३५ अपूर्ण तक नहीं हैं.) बृहत्संग्रहणी-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि नमिओ कहता वांदीने; अंति: कोडाकोडि सागरोपम हुवइ, संपूर्ण. २. पे. नाम. अल्पबहुत्व विचार, पृ. ६६-६७आ, संपूर्ण. जीव अल्पबहुत्व ९८ पदविचार, सं., गद्य, आदि सर्वस्तोका गर्भज; अंति: सर्वजीवा विशेषाधिका १०१२७९. (+) चंद्रधवलभूप धर्मदत्तश्रेष्ठी कथा सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ६. पू.वि. अंत के पत्र नहीं है.. प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५.५४११.५, ९४४८). "" For Private and Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " चंद्रधवल भूपधर्मदत्तश्रेष्ठि कथा, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि चतुर्थी कथा प्रोक्ता अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४५ अपूर्ण तक है.) चंद्रधवलभूपधर्मदत्तश्रेष्ठि कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चउथी कथा कही पोसह; अंति: (-). १०१२८०. वैद्यवल्लभ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र. वि. हुंडी : वैद्यवल्लभे, जैदे., (२५.५X११.५, ७X३३-३६). वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: सरस्वतीं हृदि, अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., विलास-५ श्लोक-२३ अपूर्ण तक है.) वैद्यवल्लभ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: शारदा हृदये ध्याइन, अंति (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, विलास - १ श्लोक-१२ अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) " १०१२८९. महावीरजिन स्तुति सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. त्रिपाठ. जैवे. (२५x११, १९४७-५६). संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीरं सम्मोह; अंति: देहि मे सारम्, श्लोक-४. संसारदावानल स्तुति-अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., गद्य, आदि: अहं वीरं नमामीति: अंतिः इति पंचाशकवृत्ती. १०१२८२. (*) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पू. ६५-३१ (१ से ९, ११, १३ से ३१,५६,६१) = ३४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५४११, ६x२१-२५). , ३५ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अति: (-), (पू.वि. शक्रस्तव अपूर्ण से महावीरजिन चातुर्मास वर्णन . पूर्ण है बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०१२८३ (+) नवतत्त्वप्रकरण सह टबार्थ, वासुदेव, प्रतिवासुदेव, चक्रवर्त्ती आदि के नाम, अपूर्ण, वि. १८७८, वैशाख शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ३५-१(१)= ३४, कुल पे. ५, ले. स्थल. वाराणसी, प्रले. पं. भावसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्राविका पठनार्थ संशोधित., जैदे., (२५.५X११, ३X२१-२४). १. पे. नाम. नवतत्त्वप्रकरण सह टवार्थ, पृ. २अ-३५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवा२ पुन्नं३; अंति: दुचक्की केसचक्कीय, गाथा- ९३, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति जय ११ केसव १२चक्रवर्ती, (अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभिक पाठ अपूर्ण से है . ) २. पे. नाम. ९ वासुदेव नाम, पृ. ३५अ, संपूर्ण. मा.गु. गद्य, आदि: त्रिपृष्ठि १ द्विपू० अति दत्त७ नारायण८ कृष्ण ९. ३. पे. नाम. ९ बलदेव नाम, पृ. ३५अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अचल१ विजय२ भद्र३; अंति: श्रीराम८ श्रीबलभद्र९. ४. पे. नाम. प्रतिवासुदेव के नाम, पृ. ३५आ, संपूर्ण. ९ प्रतिवासुदेव नाम, मा.गु., गद्य, आदि अश्वग्रीव१ तारकर मेरुक३: अंतिः प्रह्लाद७ रावण८ जरासिंधु९. ५. पे. नाम चक्रवर्ती के नाम, पृ. ३५आ, संपूर्ण. " १२ चक्रवर्ती नाम, मा.गु., गद्य, आदि: भरथ १ सगर २ मघवा ३; अंति: जय११ ब्रह्मदत्त १२. १०१२८४. महावीरजिन २७ भव वर्णन, संपूर्ण, वि. १७५८, कार्तिक शुक्ल, १०, मध्यम, पू. ५, जैदे. (२५.५४११, १७४४५-४८). महावीरजिन २७ भव वर्णन, सं., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणमित्यादि अंति भवे श्रीमहावीर देवो जातः, १०१२८५. ५६३ जीवभेद ५६० अजीवभेद विचार, संपूर्ण, वि. १९१४, कार्तिक शुक्ल, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. मु. हिराचंद, पठ. मु. लीलाधर ऋषि, गृही. झवेरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी चरचानाबोल., वे. (२४.५४११, १२४३५-३८). , For Private and Personal Use Only ५६३ जीवभेद ५६० अजीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीवना भेद पाचसे त्रेसठ; अंति: भेद लाभे पुरवला ८ लाभे. १०१२८६. धर्मोपदेशादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदे. (२६४११, १२४३५-४८). अंति: औपदेशिक गाथा संग्रह - विविध विषयक विविध ग्रंथोद्धृत, प्रा.सं., पद्य, आदि पूआ जिणंदेसु रई वरसु : जोगाणय अप्पसत्थाणं. Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०१२८७. (+) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र व श्रमणअतिचार, अपूर्ण, वि. १८७०, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ९-१(१)=८, कुल पे. २, प्रले. महताबचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५४११.५, ९४२७). १.पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. २अ-५अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. श्रमण अतिचार, पृ. ५अ-९अ, संपूर्ण. साधुपाक्षिकअतिचार-मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. १०१२८८.(#) पार्श्वजिन पद-चिंतामणि व साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-४(२ से ४,८)=६, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ९-१३४२१-२८). १.पे. नाम. पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, पृ. १अ, संपूर्ण. वा. कीर्त्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचिंतामणि पासजी; अंति: कीरतिविजय० ध्यावै ध्यान, गाथा-५. २. पे. नाम. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, पृ. १आ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाण; अंति: (-), (पू.वि. जं किंचि सूत्र से संसारदावानल स्तुति श्लोक-१ अपूर्ण तक, वंदित्तुसूत्र गाथा-६ अपूर्ण से २८ अपूर्ण तक व जयतिहुअण स्तोत्र गाथा-१० अपूर्ण से नहीं है.) १०१२९० (+) धर्मरत्नप्रकरण सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५६-४(१ से ४)=५२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:धर्मरत्नप्र.टीका, संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०.५, १५-१८४५५-६०). धर्मरत्न प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२७१, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ से ९१ अपूर्ण तक है.) धर्मरत्न प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, आ. शांतिसूरि, सं., गद्य, वि. १२७१, आदि: (-); अंति: (-). १०१२९१ (+#) अनुयोगद्वारसूत्र सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ११-१(१)=१०, प्र.वि. पंचपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११, ९४२७-३०). अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्रारंभिक पाठ - "यस्सढिउद्दे ४उक्कालियस्स वि उद्दे ४इमं पुण पठवणं पडुच्च" से "सेकिंतं णेगम ववहाराणं" तक है.) अनुयोगद्वारसूत्र-अवचूरि*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं. १०१२९२. प्रत्येकबुद्ध चतुष्पदी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४-२८(१ से २८)=६, प्र.वि. कुल ग्रं. १२५६, जैदे., (२५.५४११, १५४४२). प्रत्येकबुध चतुष्पदी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: समयसुंदर० आणंद लील विलास, ढाल-९, (प.वि. ढाल-३ गाथा-१७ अपर्ण से है.. वि. खंड-४) १०१२९३. (+#) नंदिषेणमनि रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १६x४२). नंदिषेणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: सुत सिद्धारथ भूपनो; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१३ गाथा-२३८ अपूर्ण तक है.) १०१२९५ (+#) चिंतामणिपार्श्व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १३४४५). पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधबीजं ददातु, श्लोक-११. १०१२९६. सूर्यदेवाष्टक व पंचकारण स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-३(१ से ३)=२, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १४४४६). १.पे. नाम. सूर्यदेवाष्टक, पृ. ४अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं., ले.स्थल. चाणसमा. ____ कानडदास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कानडकहे जोतिभांण जगचर कयो, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पंचकारण स्तवन, पृ. ४अ-५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ३७ ५ कारण स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथ सुत वंदीइं; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ गाथा-५१ अपूर्ण तक है.) १०१३०० (+) नवस्मरण व लघुशांति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११, १०४३४). १.पे. नाम. नवस्मरण-१ से ५, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण. नवस्मरण, म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. संतिकरम्, भक्तामर, कल्याणमंदिर व बृहच्छांति स्तोत्र नहीं है.) २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. ८अ, संपूर्ण. ___ आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) १०१३०१ (+#) भक्तामर स्तोत्र व साधारणजिन गीत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ८x२७). १. पे. नाम, भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम. साधारणजिन गीत, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति देवी मन रंग; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) १०१३०२. (+#) नवस्मरण व लघुशांति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १३४४४). १.पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १अ-११आ, संपूर्ण. म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम; अंति: अचिरान मोक्षं प्रपद्यते, (प्रतिपूर्ण, पू.वि. तिजयपहुत्त स्तोत्र नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. ११आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-६ अपूर्ण तक है.) १०१३०३. (+#) जतीपाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १६३९, आश्विन कृष्ण, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. १३-१(३)=१२, ले.स्थल. झंझनू, प्रले. ग. विनयचंद्र; पठ. पं. माणिक्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पाखिसूत्र., संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२५.५४११, १०४३४-३८). आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा पाक्षिकसूत्र व खामणासूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: सिहियं जेस सुयसायरे भत्ती, (पू.वि. "मंदयाए किडयाए तिगारव" पाठ अपूर्ण से "मुसावओ भासिओ वा" अपूर्ण तक है.) १०१३०४. (+) उपदेशमाला सह टबार्थ व कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-२(१ से २)=७, प्र.वि. हुंडी:उपदेश०., संशोधित., जैदे., (२५४११, ३-६४३९). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१७ से ४२ तक है.) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. उपदेशमाला-कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य गुरुपादाब्जं; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., कथा-१२ तक १०१३०५ (+) जीवविचार प्रकरण सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६५२, चैत्र शुक्ल, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. अमरसरनगर, प्र.वि. हुंडी:जीववि०.वृत्ति०., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १८-२३४५०-७०). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुय समुद्दाओ, गाथा-५१. For Private and Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जीवविचार प्रकरण- टीका, पा. रत्नाकर, सं., गद्य, वि. १६१०, आदि: सज्ञानभास्करं वीरं; अंति: पाठकरत्नाकरः सुगमम्. १०१३०६. (#) चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, पत्रांक खंडित है. जैवे. (२४.५४१०.५, ६x४०). , " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . चतुः शरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई अति (-) (पू.वि. गाथा ६३ अपूर्ण तक है.) " चतुःशरण प्रकीर्णक-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि सावद्ययोग कहतां पाप अंति: (-). १०१३०७ (+४) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२५.५४१०.५, ११४३९). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अनंतगुणा, गाथा- ४०. १०१३०८. नवकार प्रभाव कथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२४X११, १४X३६). नवकार प्रभाव कथा, मा.गु., गद्य, आदि एही ज भरथ क्षेत्रे अति: (-) (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., शिवकुमार कथा तक लिखा है, वि. अंत में पार्श्वरेखा के बाहर सुभाषित श्लोक दिये हैं.) १०१३०९. () पार्श्वजिन षट्पदी सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १, प्र. वि. पंचपाठ, टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५X१०.५, ९-२१४४२-६८). पार्श्वजिन षट्पदी-गूढार्थगर्भित, मु. सूरचंद्र कवि, सं., पद्य, आदि: राजा लाघव संयमोच्छबलभो; अंति: कला एष ध्रुवांक क्रमः, का. २. - पार्श्वजिन षट्पदी- गूढार्थगर्भित स्वोपज्ञ टीका, मु. सूरचंद्र कवि, सं., गद्य, आदि हे अर्हन् जिन नः अस्मान्; अति निबद्धा बुद्धि वृद्धये. १०१३१० (+) जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण वि. १७७९ श्रावण शुक्ल, १३, रविवार, मध्यम, पू. ३, ले. स्थल, पाशखंडमहानगर, प्रले. उपा. मेघविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : जीव०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५X११, १२X३४-३८). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि प्रा. पद्य वि. ११वी आदि भुवणपईव वीरं नमिऊण; अति रुदाओ सुय " समुदाओ, गाथा-५१. " १०१३१२. गौतम कुलक व धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांतश्लोक, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. ३, कुल पे. २, जैदे., (२३.५x११, ३-६X३७-४४). १. पे नाम ऋषिभाषित कुलक, पू. १अ ३आ, संपूर्ण, गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि सुद्धा नरा अत्थपरा; अंतिः सेवित्तु सुहं लहंति, गाधा-२० २. पे नाम धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांतलोक, पृ. ३आ, संपूर्ण. धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांत श्लोक, सं., पद्य, आदि: लज्जातो भयतो वितर्क; अंति: धर्म्ममनिशं तेषाममेयं फलं, श्लोक-१. १०१३१३. (+#) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. हुंडी : जीव विचार., संशोधित-टिप्पणयुक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२३.५X११, ६x४२). " जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण भणामि; अंति: रुद्दाओ सुय समुद्दाओ, गाधा-५१, (वि. १७४६, रसांगमुनिचंद्राब्दे, पौष कृष्ण, १३, पठ. श्रावि. वीरा, प्र.ले.पु. सामान्य ) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन लोकनइ विषइ दीवा समान; अंति: समुद्र थकी ए हिवहूयाइ, (वि. १७५१, चंदसमुदशिवाष्यसशि, पौष शुक्ल, १४, प्रले. मु. तिलोकसी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य ) १०१३१४. (+) गौतमस्तुति सह व्याख्या, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. त्रिपाठ संशोधित, जैदे., (२५x११, ३४३३). गौतमगणधर स्तुति, आ. विजयराजसूरि, सं., पद्य, आदि सार्व्वस्तुत श्रीवसुभूति अतिः श्रियै दीपमहे नितांत, श्लोक १. " गौतम गणधर स्तुति व्याख्या, आ. विजयानंदसूरि, सं., गद्य, आदि: हे वसुभूतिपुत्र, अंतिः नीति चतुर्थस्तुत्यार्थः. १०१३१५. अजितशांति स्तव, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. ४, दे. (२४.५४१०, ५, ७२७), "" For Private and Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ अजितशांति स्तव लघु-खरतरगच्छीय, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उल्लासिक्कमनक्ख; अंति: दुरिअमखिलु पिथुणंतह, गाथा-१७. १०१३१६. (+) वज्जालग्ग सह छाया व टीका, संपूर्ण, वि. १८५०, फाल्गुन शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३१, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. पं. माणिक्यराज मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १९-२६x६६-७५). वज्जालग्ग, क. जयवल्लभ, प्रा., पद्य, आदि: सव्वणवयणं पंकयनिवासिणिं; अंति: गुरुत्तणं लहइ सो पुरिसो, गाथा-७९५, ग्रं.१२३०. वज्जालग्ग-छाया, सं., गद्य, आदि: प्राकृतसुभाषितवल्या; अंति: गुरुत्वं लभते स पुरुष. वज्जालग्ग-वृत्ति, ग. रत्नदेव, सं., गद्य, वि. १३९३, आदि: अहं कविः श्रुतदेवतां; अंति: सहस्रत्रितय ननु. १०१३१७. (+#) सिंदूर प्रकरण सह पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०-२(१ से २)=८, प्र.वि. हुंडी:सिंदूरप्रकरकाव्य., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १९४४५-५०). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः (-); अंति: पराज्ञा सुक्तमुक्तावलीयं, द्वार-२२, श्लोक-१००, (पू.वि. श्लोक-२१ अपूर्ण से है.) सिंदूरप्रकर-पद्यानुवाद भाषा, श्राव. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १६९१, आदि: (-); अंति: निगोद तेरा घर रे, अधिकार-२२, गाथा-९९. १०१३१८. उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन २९-३४ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७७०, मार्गशीर्ष, मध्यम, पृ. १०४-८७(१ से ८६,८८)=१७, जैदे., (२५.५४१०.५, ७४३५-३८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अध्ययन-२९ गाथा-७२ अपूर्ण से अध्ययन-३० गाथा-५ अपूर्ण तक व गाथा-२२ अपूर्ण से है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. १०१३१९ (+#) देवसिराई प्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-१(२)=५, ले.स्थल. मेडता, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४४५-५०). देवसिराई प्रतिक्रमणसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो सि; अंति: बोधव्वो सेसो संसार फल हेऊ, (पृ.वि. 'नमोत्थुणसूत्र' अपूर्ण से 'जावंतकेविसूत्र' अपूर्ण तक नहीं है.) १०१३२२. (+) गौतमपृच्छा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४३०-३३). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवइ चउवीसमु; अंति: सांभलता सुख संपतिकार, गाथा-१०२. १०१३२४. भक्तामर स्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १६-८(१ से ८)=८, दे., (२४.५४१०.५, १०४४४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतंगसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., श्लोक-२० अपूर्ण से है व श्लोक-३९ तक लिखा है.) भक्तामर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३९ की टीका अपूर्ण तक लिखा है.) १०१३२८. (#) अभिधानचिंतामणिनाममाला सह सारोद्धार टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. १०७-१(१)=१०६, प्र.वि. हुंडी:नामसारोद्धार. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्. श्रीजिनकुसलसूरि प्रसादात्., त्रिपाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२६४११, २२४४४-६२). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः (-); अंति: रोषोक्ताव नतौ नमः, कांड-६, ग्रं. १४५२, (पू.वि. कांड-१ श्लोक-१५ अपूर्ण से है.) अभिधानचिंतामणि नाममाला-सारोद्धार टीका, उपा. वल्लभ, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: (-); अंति: च शास्त्राणि भवंतीति, ग्रं.८०००. For Private and Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०१३३७ (+) सिंदूरप्रकर, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित., "" जी., (२५x१०.५, ११४२८) सिंदूरकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी आदि सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४४ अपूर्ण तक है.) १०१३३८. (+) कल्पसूत्र सामाचारी अध्ययन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१, प्र. वि. हुंडी : सोलमीवाच., संशोधित., जैदे., (२५.५X११, १६x४७-५०). कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पग, आदि: तेणं कालेणं तेणं समय; अंति: भुज्जो उवदंसे त्तिवेमि. कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे पर्युषणा सामाचारी; अंति: करता श्रीमंगली कमाला संपजइ. १०१३३९ (+) उपासकदशांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३१-२ (४,११) - २९, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी: उपासक, पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, जैवे. (२६४१०.५, ११४३९-४५). "" उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि तेणं कालेणं तेणं, अंति (-), (पू.वि. अध्ययन- १ सूत्र- ९ अपूर्ण, अध्ययन- २ सूत्र- २० अपूर्ण से २१ अपूर्ण व अध्ययन-९ अपूर्ण से नहीं है.) १०९३४१ (+) १२ भाव विचार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैये. (२६४१०.५, १५x५४-६४). १२ भाव विचार, सं., गद्य, आदि: प्रथम रवि दिशा प्रवेश; अंति: (-), (पू.वि. रोहिणी दिशा मध्ये भौमांतर्दशा फलविचार तक है.) १०१३४२. इग्यार प्रतिमानो विचार, दस श्रावक विचार व गुरु स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २- १(१ ) =१, कुल पे. ४, जैवे. (२५.५x११. १५४४६) "" १. पे. नाम. इग्यार प्रतिमानो विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. श्रावक ११ प्रतिमा गाथा, प्रा., पद्य, आदि: दंसण वय सामाई पोसह; अंति: विजए समण भूएय, गाथा - १. २. पे. नाम. दशश्रावकनो विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. १० श्रावक उपसर्ग विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अवधिनुं उपसर्गापि शावनओ; अंति: नउं बिहुंने उपसर्ग न हुआ. ३. पे. नाम गुरु स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण प्रभातिमंगल स्तुति, प्रा., पद्य, आदि गोयम सोहम जंबू पभवो अंति: पडमं हवई मंगलं, गाथा-१५. ४. पे. नाम. नक्षत्र फल विचार, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नक्षत्रराशिफल विचार, मा.गु., गद्य, आदि अश्विनी मांहि चालेनु, अंति: (-), (पू.वि. कर्क राशि तक का वर्णन दिया है.) १०१३४३ (#) पंचसंग्रह गाथा ६१८-६४३ सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २५४-२४८ (१ से २४८) =६, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. हुंडी पंचसं०वृ०. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५x११, १५४५१-५५)पंचसंग्रह, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, आदि (-) अति (-) (पू.वि. गाथा ६१८ से गाथा ६४३ तक है.) पंचसंग्रह-टीका, आ. मलयगिरिसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). "" १०१३४४. (+#) पर्यूषणाकल्प सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६४-१५४ (१ से १०५, ११५ से १६३) = १०, अन्य. सा. मृघ आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : कल्पटबा०., संशोधित - प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. सो. (४९०) अज्ञानाच्च मतिभ्रंसा, जैदे. (२५११, ५३५). " 19 कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि (-): अंति: भुज्जो उवदंसेइ तिबेमि, व्याख्यान- ९ नं. १२१६. (पू.वि. नेमिजिन जन्मवर्णन पाठ "अरिट्ठनेमि नामेणं अरहा अरिट्ठनेमि " से आदिजिन जन्मवर्णन पाठ "सेसं तहेव चारगसोहणं" तक व स्थविरावली फलवर्णन पाठ "सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति" से है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र - टवार्थ", मा.गु, गद्य, आदि (-); अति इति ब्रवीमि कहइ. For Private and Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०१३५१ (+) सुबाहकुमार संधि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४४३). सुबाहकुमार संधि, उपा. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६०४, आदि: पणमि पास जिणेसर केरा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८५ अपूर्ण तक है.) १०१३५२. (+) कर्मग्रंथ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७००, माघ शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ४६-३(८,१० से ११) ४३, कुल पे. ६, प्रले. उपा. धनविजय (गुरु उपा. कल्याणविजय, तपागच्छ); गुपि. उपा. कल्याणविजय (तपागच्छ); राज्यकाल आ. विजयदेवसरि (गुरु गच्छाधिपति सेनसरि', तपागच्छ), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कर्म०ट०, संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ३०००, जैदे., (२५.५४१०.५, ५४४६). १. पे. नाम, कर्मविपाक नव्यकर्मग्रंथ-१ सह टबार्थ, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६१. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वीरजिन वांदीनइ कर्मना; अंति: लिखी देवेंद्रसूरिइ. २.पे. नाम. कर्मस्तव नव्यकर्मग्रंथ-२ सह टबार्थ, पृ. ९अ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से १९ अपूर्ण तक है.) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३.प. नाम, बंधस्वामित्व नव्यकर्मग्रंथ-३सह टबार्थ, पृ. १२अ-१५अ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: बंधविधान कर्मबंधना; अंति: सांभलीने जाणिवो. ४. पे. नाम. षडशीति नव्यकर्मग्रंथ-४ सह टबार्थ, पृ. १५अ-२४आ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांदीनइ तीर्थंकर प्रति; अंति: लिख्यउ श्रीदेवेंद्रसूरि. ५. पे. नाम. शतक नव्यकर्मग्रंथ-५ सह टबार्थ, पृ. २४आ-३५आ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणमीनइ जिनप्रतइ पहिलो; अंति: संभारवानइ अर्थइ. ६. पे. नाम. प्राचीनकर्मग्रंथ-६ सह टबार्थ, पृ. ३५आ-४६अ, संपूर्ण.. सप्ततिका कर्मग्रंथ-६, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: एगुणा होइ नउईउ, गाथा-९३. सप्ततिका कर्मग्रंथ-६-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: सिद्ध निश्चल पद छइ; अंति: उणी नेउ गाथा होइ. १०१३५३. (+#) चौवीसदंडक सूत्र, अपूर्ण, वि. १८१०, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ६-१(५)=५, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, ७X२८). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चौवीस जिणे; अंति: लहिया एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४६, (पू.वि. गाथा-३३ से ४२ नहीं है.) १०१३५४. (+) दंडकस्तुति सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. सुमतिशेखर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १०४३८). २४ दंडक स्तुति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: रुचितरुचि महामणि स्वर्ण; अंति: दद्यादलं भारती भारती, श्लोक-४. २४ दंडक स्तुति-वृत्ति, मु. अमरकीर्तिसूरि शिष्य, सं., गद्य, आदि: अहं तीर्थेश्वरं जिनं; अंति: भारती वीणाः प्रसंद्यात्. For Private and Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०१३५५. (+) शत्रुंजयमाहात्म्य-सर्ग ४ श्लोक २३९ से ४९२, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित, जैये., (२५X१०.५, १६-१९४५१-५५). शत्रुंजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि (-); अंति (-), प्रतिपूर्ण १०१३५६. (+#) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ १ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे. (२५.५x१०.५, ४३६). प्र.वि. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ १ आ. देवेंद्रसूरि, प्रा. पद्य वि. १३वी २४वी, आदि सिरिवीरजिणं बंदिअ अति: (-), 1 " (पू.वि. गाथा-५८ अपूर्ण तक है.) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वीरजिन वांदीनइ कर्मना; अंति: (-). १०१३५७. (+#) अभक्ष्यानंतकाय गाथा सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पंचपाठ - संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२५.५x१०, ७-१०X२६-२९). " अभक्ष्यानंतकाय गाथा, प्रा., पद्य, आदि सव्वावि कंदजाई सूरण, अंति: वज्जह दव्वाणि बावीसं, गाथा ७. अभक्ष्यानंतकाय गाथा- अवचूरि, सं., गद्य, आदि सर्वैव कंदजातिः अंति भव्यजना वर्जयत परिहरतेति. १०१३५८. हरिदत्तराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २६- ५ ( १५ से १९) = २१. पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. दे., " (२५X१०.५, ११x४० ). हरिदत्तराजा चौपाई, ग. महिमासागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: श्रीआदिसर आदि अधिक; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२१ गाथा-३ अपूर्ण से ढाल २८ गाथा-४ अपूर्ण व ढाल ३७ गाथा-८ से नहीं है.) १०१३५९. (+#) महावीरजिन स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, प्र. वि. हुंडी : भावा ०बाला०., भा०बा०., पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४१०.५, १४४५७). महावीर जिन स्तव समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा. सं., पद्य, आदि भावारिवारणनिवारणदारु; अति " विशदां दृष्टिं दयालो मयि, श्लोक-३०. महावीरजिन स्तव- समसंस्कृतप्राकृत- बालावबोध, वा. महिमासिंह, मा.गु., गद्य वि. १६८१, आदि: श्रीपार्श्वजिन नत्वा, अंतिः शिवतातिर्वाच्यमानस्तात्. १०१३६०. (*) नवतत्त्व प्रकरण सह वालाववोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ८-३ (१ से २,६) =५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२४.५x१०.५, १५४४३). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से १९ तक व २२ से २८ तक है.) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति: (-). १०१३६१. (+) दीवालिका कल्प, संपूर्ण, वि. १८१७ चैत्र कृष्ण, १२. गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले. स्थल अहिपुर, पठ. सा. सोभागश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: दीवालीक., संशोधित., जैदे., (२४.५X१०.५, १०X३३). दीपावलीपर्व कल्प-लघु, मा.गु., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीसुदातारं; अंति: सहुकोने परमानद ऊपनो. १०१३६३. (+) धन्ना अणगार चरित्र, संपूर्ण वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १८, प्रले. ग. देवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: धना., धन्ना०., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १५X३४). धन्ना अणगार रास, वा. मतिशेखर, मा.गु, पद्य वि. १५१४, आदि (अपठनीय); अति (अपठनीय), गाथा- ३२७, (वि. पत्र चिपके होने के कारण आदि व अंतिमवाक्य अस्पष्ट एवं अपूर्ण है.) २०१३६४. . (4) आवक १२ व्रत विचार, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८- १ (१) =७, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १२X३५). " आवक १२ व्रत विचार, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-) (पू.वि. सम्यक्त्वव्रत अपूर्ण से पोषचव्रत अपूर्ण तक है.) १०१३६५. ९९ प्रकारी पूजा- शत्रुंजयमहिमागर्भित, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७-१ (६) =६, जैवे. (२५x११, १२x२६)९९ प्रकारी पूजा शत्रुंजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु, पद्म, वि. १८८४, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी अति (-), (पू.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं. पूजा-९ गाथा- २ अपूर्ण से पूजा १० गाथा-८ अपूर्ण तक व पूजा १२ गाथा-६ से नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०१३६६ (+) हंसराजवछराज प्रबंध, अपूर्ण, वि. १७२९ आश्विन कृष्ण, बुधवार, मध्यम, पृ. ३३-१ (१) -३२, ले. स्थल, सुलतानपुर, प्रले. पं. धीरविमल (गुरु ग. मानविजय); गुपि. ग. मानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५X११, १५X३९). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि (-); अति जिनोदयसू० हुवे जयकार, खंड-४, गाथा-९१०, (पू.वि. खंड-१ ढाल - १ गाथा - १४ अपूर्ण से है., वि. ढाल - ४८) १०१३६७ (+४) जीवविचार प्रकरण व नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८५०, वैशाख कृष्ण, ८, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, ले. स्थल. प्रांणपुर, प्रले. मु. लालसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १२X४०-४५). १. पे. नाम जीवविचार प्रकरण, पू. १३-३अ, संपूर्ण आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा - ५१. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पू. ३२.६आ, संपूर्ण. २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. आ. मानदेवसूरि. सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांत अंतिः पूज्यमाने जिनेश्वरे, लोक-१८. नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा९८. १०१३६८ (+४) नवस्मरण व लघुशांति, संपूर्ण वि. १८६३ श्रावण अधिकमास शुक्ल, ७, मध्यम, पू. १३ कुल पे. २, ले. स्थल, शुभटपुर, प्रले. मु. गुमानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे., (२५.५X१०.५, १३X३९-४२). १. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १आ- १२आ, संपूर्ण. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., पग, आदि नमो अरिहंताणं हवइ मंगलम् अंतिः अचिरान्मोक्षप्रतिपद्यंते, स्मरण-९, (वि. उवसग्गहर स्तोत्र नहीं है.) ४३ १०१३६९. (+) औपदेशिक गाथासंग्रह, संपूर्ण, वि. १६२४, आश्विन शुक्ल, १, बुधवार, मध्यम, पृ. २४, प्रले. शिवा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६४१०, १९४४९). " अंति: औपदेशिक गाथा संग्रह-विविध विषयक विविध ग्रंथोद्धृत, प्रा.सं., पद्य, आदि: पूआ जिणंदेसु रई वएसु; . सव्वन्नूहंति अरिहंता, १०१३७० (+) व्यवहारसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८५, कार्तिक कृष्ण, ३०, सोमवार, मध्यम, पृ. ३३, ले. स्थल. भगवंतगढ, प्रले. मु. रुघनाथ; गृही. सा. लालाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : ववहारसू०. विवहारसू०., वेवहारसू०., पदच्छेद सूचक लकीरें जैये. (२५x१०.५, ८४३८). व्यवहारसूत्र, आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि जे भिक्खू मासिय; अति महापज्जवसाणे भवइ, उद्देशक- १०, ग्रं. ३७३. व्यवहारसूत्र -टबार्थ, मा.गु, गद्य, आदि जे० जे कोइ भि० साधु अंति: क्षय करवारूप फल हुइ. १०१३०९. नवतत्त्व प्रकरण सह अर्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २५-१३(१ से १३) = १२, पू. वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., For Private and Personal Use Only (२४.५X१०.५, १५X३८-५०). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा- ३४ से ४७ तक है.) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०१३०२ (+) धन्नाशालिभद्र चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १५-१ (१) = १४, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी हैं. दे. (२६१०.५, १५x२९). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८ आदि (-) अंति (-) (पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं, ढाल १ गाथा-९ अपूर्ण से ढाल १६ गाथा १३ अपूर्ण तक व ढाल १८ गाथा १७ अपूर्ण से ढाल २१ गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०१३७३. (+#) दशदृष्टांत, संपूर्ण, वि. १८५०, भाद्रपद शुक्ल, १२, मंगलवार, मध्यम, पृ. २४, ले.स्थल. चाहडवास, प्रले. पं. युक्तनंदन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:दशदृष्टांत., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४७). ___ मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत, सं., गद्य, आदि: संसारे चतसृषु गतिषु; अंति: न शक्यते जीवेन. १०१३७४. (+) शत्रुजय रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०,११४३२). शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी आणी; अंति: समयसुंदर० आणंद थाय, ढाल-६, गाथा-१२१. १०१३७७. (-#) कुमतिविध्वंसन चौपाई, संपूर्ण, वि. १७५९, भाद्रपद कृष्ण, १, जीर्ण, पृ. ९, ले.स्थल. आसोपनगर, प्रले. पं. उत्तमविजय (गुरु ग. वृद्धिविजय); गुपि.ग. वृद्धिविजय (गुरु पं. लक्ष्मीविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत मे मंत्र विधि सहित लिखे गए हैं., अवाच्य. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (८८९) यादृसं पुस्तकं दृष्टवा, जैदे., (२४.५४९.५, १५४३२-३६). आगमवचन चौपाई, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., पद्य, वि. १६१७, आदि: वंदु चउवीसे जिणराय; अंति: ही हीरकलस ए चउपई कही, गाथा-२१२. १०१३८०. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ५, जैदे., (२६४१०.५, १७७५२). १. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र दशअध्ययन सज्झाय, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, वा. कमलहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: मंगलिक महिमा निलो रे; अंति: दिन रे पूगे वंछित आसो रे, अध्याय-१०. २. पे. नाम. शिक्षा स्वाध्याय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण, वि. १७८३, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, सोमवार, ले.स्थल. आदनपुर, प्रले. मु. राम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल करण नमी जिनचरण; अंति: ए करे गर्भवास नही ते वरे, गाथा-२६. ३. पे. नाम. नववाडी स्वाध्याय, पृ. ५अ-७अ, संपूर्ण, वि. १७८४, आश्विन शुक्ल, ८, सोमवार, ले.स्थल. कृष्णगढ. जेनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीनेमीश्वर चरणयुग; अंति: जिनहरष० जुगती नववाडि. ढाल-११, गाथा-१०६. ४. पे. नाम. १४ गुणठाणा सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. १४ गणस्थानक सज्झाय, म. कर्मसागरशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणेसर नमी रे सहिगरु; अंति: भणैरे तस मन जिणवर आणो रे, गाथा-१८. ५. पे. नाम. त्रिशष्टिशलाकापुरुष सज्झाय, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. त्रिषष्टिशलाकापुरुष सज्झाय, मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिजिन वार इहूं; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) १०१३८१ (+#) मृगावती चरित्र, संपूर्ण, वि. १६९८, वसुनिधिरसरजनीकर, चैत्र कृष्ण, ६, रविवार, मध्यम, पृ. १७, ले.स्थल. खेजडला, प्रले. पं. रत्नसी (गुरु ग. सुखसागर, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि. ग. सुखसागर (परंपरा भट्टा. जिनभद्रसूरि, बृहत्खरतरगच्छ); भट्टा. जिनभद्रसूरि (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीजिनदत्तसूरि, श्रीजिनकुशलसूरि प्रसादाभ्यां संपूर्ण कता., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (११६०) तैलात् रक्षेत् जलात् रक्षेत्, जैदे., (२५.५४१०.५, १८४५१-५८). मृगावतीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: समरु सरसति सामिणी; अंति: वृद्धि सुजगीसा, खंड-३, गाथा-७४५, ग्रं. ११००, (वि. ढाल-३७) १०१३८२ (+) चेतनकर्मचरित्र व सप्तभंगीपंचविंशतिका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. १५, कल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ११४४०). For Private and Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १.पे. नाम. चेतनकर्मचरित्र, पृ. १अ-१५अ, संपूर्ण, वि. १८७८, चैत्र शुक्ल, १२, शनिवार, ले.स्थल. योधनयर, प्रले. पं. गिरधारीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य. चेतन वृतांत, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७३६, आदि: श्रीजिनचरण प्रणाम; अंति: रचना कही अनादि, गाथा-२९६. २. पे. नाम, सप्तभंगीपंचविंशतिका, पृ. १५अ, संपूर्ण. सप्तभंगी पंचविंशतिका, मु. भीमराज, मा.गु., पद्य, वि. १८२९, आदि: श्रीजिनआगम प्रणमि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखी है.) १०१३८३. (#) गुणावली चौपाई, संपूर्ण, वि. १७६७, आश्विन शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. १७, ले.स्थल. गुंदवच नगर, प्रले. पं. गजविजय गणि (गुरु ग. वृद्धिविजय); गुपि.ग. वृद्धिविजय; पठ. ग. केसरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशंखेश्वरप्रसादात्., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १६x४१-४८). गुणावलि चौपाई, ग. गजकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: सकलमनोरथ पूरवइ श्रीशंखेसर; अंति: मुझनइ नितनित सुख आणंदा रे, ढाल-२९, गाथा-५१३. १०१३८४. (+) अवंतिसकमाल चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. हरजी ऋषि (गुरु मु. जेसिंघजी पंडित); गुपि. मु. जेसिंघजी पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चोपीअय., संशोधित., दे., (२४.५४१०.५, १३४४२). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्त किणहेक; अंति: शांतिहरख सुख पावै रे, ढाल-१३, गाथा-१०५. १०१३८५. (#) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४३०-३३). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: (-), (पू.वि. नमिऊण गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) १०१३८७. संबोध सत्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२५४१०.५, ८४३८-४४). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: जयसेहर०नत्थि संदेहो, गाथा-९५. संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमीजै त्रैलोक्यगुरु; अंति: स्थानक पामि गति जाइं. १०१३८८. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१९, चैत्र कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ७१, ले.स्थल. जयपुर, प्रले. मु. भोजराजजी (गुरु मु. नाथुराम); गुपि. मु. नाथुराम (गुरु मु. मनजी); मु. मनजी; राज्यकालरा. माधोसंघ, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५४१०.५, ४४३८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि, अध्ययन-१०, (वि. चूलिका-२) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं वीरता; अंति: तुझ प्रत्यइक हो, (वि. प्रारंभ में पीठिका, शब्दार्थ व मांगलिकादि का संक्षिप्त वर्णन किया है.) १०१३८९ (+) चातुर्मासिकप्रभाति व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. चाहडवास, प्र.वि. हुंडी:चउमा व्या., संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १४४३८-४४). आषाढकार्तिकफाल्गुनचातुर्मासिक व्याख्यान, सं., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वसुखमागारं; अंति: कर्तव्यमिति श्रेयः. १०१३९१ (+#) क्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १७७६, श्रावण शुक्ल, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. चंपावती, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों ___ की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १०४३६). बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण; अंति: झाएज्जा सम्मदिट्ठीए, गाथा-२३७. १०१३९२. पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १६५६, मध्यम, पृ. १४, ले.स्थल. सेरुणाग्राम, पठ. मु. मोहन ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०.५, ११४३५). For Private and Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग, आदि तित्यंकरे य तित्थे अंति मणसा मत्थेण वंदामि १०१३९३. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ व बोलविचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्र. वि. हुंड अर्थ., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५X११, ५X३४). १. पे नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टवार्थ, पृ. ९अ-६अ, संपूर्ण वि. १६९५, फाल्गुन. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१जीवा २ पुण्णं३ पावा४; अंति: अस्सय अनंत भागोगओ मुक्खं, गाथा-४३. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि जीवत्तत्त्व अजीवतत्त्व अंति भाग मोक्ष गयउ ए परमार्थ. २. पे नाम. नवतत्त्व प्रकरण बोलसंग्रह, पू. ६अ-६आ, संपूर्ण नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा- बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातिपात वेरमण१; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "ते भणी अणु नान्डो व्रत कहीए" पाठ तक लिखा है.) १०१३९४ चतुर्विंशतिजिन स्तुति, संपूर्ण वि. १९३७ श्रावण कृष्ण, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. ८ ले स्थल. कलकत्तानगर, प्रले. पं. पन्नालाल; पठ. मोहनलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२५X११, ९३७). चतुर्विंशतिका स्तुति, उपा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, वि. १८०९-१८४१, आदि सद्भक्त्या नतमौलि; अंतिः मम चिराय संपाद्यताम्, स्तुति-२४, श्लोक ७७. १०१३९५. (+) अक्षरबत्तीसी, अक्षर बावनी व गीत, संपूर्ण, वि. १८०२, पौष कृष्ण, १३, मंगलवार, मध्यम, पृ. १९, कुल पे. ५, ले. स्थल. सप्तच्छदीनगर, प्रले. पं. मतिविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २४.५X११, ११४३५-४२). १. पे. नाम. अखर बत्तीसी, पृ. १आ- ३अ, संपूर्ण. अक्षरबत्तीसी, मु. रूपविजय, . रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुप्रसन होज्यो सारदा बहुल; अंति: हूवे सुख संपति सुखवास, गाथा ४०. २. पे. नाम. अखरबत्तीसी, पृ. ३अ -८अ, संपूर्ण. अक्षरबत्तीसी, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि सारद मेंहर धरौ मो उपर खिण; अति: गावत मंगल नवनिधी थायें, गाथा - ५०. ३. पे. नाम. अक्षरबावनी, पृ. ८अ -१८अ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदिः ॐ करे उल्लास ॐ घट ज्ञान; अंति: रूप०त्यां लग ए रहज्यो सही, गाथा-८५. ४. पे नाम. शुभपुरुष वर्णन, पू. १८अ १९अ, संपूर्ण. पदेशिक सज्झाय पुरुषशिक्षा, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि संतोगी भमर सुंद धतूर: अति रूप० कांमण यु दाखे धरण, गाथा- ९. ५. पे. नाम. साधारणजिन गीत, पृ. १९अ १९आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि धीर कर ध्यान अरिहंत मन; अंति कर भजन रूप कहीयो, गाथा- ६. १०१३९७. आर्यवसुधारीणी संपूर्ण वि. १८४७ आश्विन शुक्ल, ८, रविवार, मध्यम, पृ. ९, ले. स्थल बसुवा, प्रले. ऋषभदत्त, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५x११, ९४२८-३२) वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिहं; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. १०१३९८. (+) शालिभद्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १८३९, आश्विन शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. २१, ले. स्थल. बांता, प्रले. पं. क्षमासौभाग्य (गुरु ग. रामसौभाग्य); गुपि. ग. रामसौभाग्य (गुरु पं. जयसौभाग्य); पं. जयसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : सालिभद्र चो. पा., संशोधित, जैवे. (२६११, १३३७-४०). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु, मतिसार, मा.गु., पद्म, वि. १६७८ आदि शासननायक समरीई अति मनवंछित फल लहस्येजी, डाल- २९, गाथा-५१०. १०१३९९. (+) गुणावली रास व थूलभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६११, १३४३०). १. पे. नाम. गुणावली रास, पृ. १आ - २५अ, संपूर्ण, वि. १८०२, कार्तिक शुक्ल, ६, शनिवार, ले.स्थल. अहिपुर. For Private and Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जनहर्ष, माग नाम. थूलभदास, ढाल-२६ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ गुणकरंडकगुणावली रास-बुद्धिविषये, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण सेवे; अंति: हो जिनहर्ष सुसीस, ढाल-२६, गाथा-४९३. २. पे. नाम. थूलभद्र सज्झाय, पृ. २५अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतडली न कीजै हे नारि; अंति: सहजसुंदर० पातिक जाय, गाथा-६. १०१४०० (-#) पद्मिनी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ६-१(१)=५, प्र.वि. दुर्वाच्य. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १४४४३). गोराबादल रास, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, वि. १७०७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., खंड-१ ___ ढाल-१ गाथा-१६ अपूर्ण से खंड-२ ढाल-९ गाथा-१३ तक है.) १०१४०१. माधवानल चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५.५४१०.५, १५४४८). माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि: देवि सरसति देवि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५०९ अपूर्ण तक है.) १०१४०२ (+) जीवविचारप्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१५, चैत्र कृष्ण, ५, मध्यम, पृ.८, ले.स्थल. विंझोवा, प्रले. मु. लाला (गुरु ग. चुतरविजय); गुपि. ग. चुतरविजय (गुरु पं. जीवविजय गणि); पं. जीवविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०, ४४३७-४०). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५२. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन क० स्वर्ग मृत्यु; अंति: अगाधश्रुतसमुद्र थकी. १०१४०३. (+#) षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७४५, बाणवेदमुनींद, चैत्र शुक्ल, १५, सोमवार, मध्यम, पृ. १७, ले.स्थल. खीमेल, प्रले. मु. भाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १९४५६-६०). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: णमो अरहताणं० सव्व; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, अध्ययन-६, सूत्र-१०५. आवश्यकसूत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: पहिलउ सकल मंगलकनउ; अंति: चउवीसइ तीर्थंकर वांद छु. १०१४०४. (#) नवकार मंत्र १०८ गुण वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१०, ५४१०). नमस्कार महामंत्र-बालावबोध', मा.गु., गद्य, आदि: बारस गुण अरिहंता; अंति: सोपावइ सासयं ठाणं. १०१४०६ (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८१-१(२६)-८०, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ८४४४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., अध्ययन-१४ गाथा-३० अपूर्ण तक व गाथा-४६ अपूर्ण से अध्ययन-३६ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: संयोग बाह्यनइ; अंति: (-), पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. १०१४०७ (+#) पुंडरीक व पुंडरीकगणधर पूजा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१०.५, १८४५९). १. पे. नाम. पुंडरीकपूजा विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. पुंडरीकगिरिपूजा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अक्षत चंदन करे; अंति: भावस्य० चैत्र पूर्णिमा. २. पे. नाम. पुंडरीकगणधर पूजा विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... पंडरीकगणधरपूजा विधि, प्रा.,सं., प+ग., आदि: उस्सप्पिणीय पढमं; अंति: सर्वविधि कीधी पछइ. १०१४०८.(+) प्रास्ताविक गाथा संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९५६, श्रावण कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ११-९(१ से ९)=२, ले.स्थल. कालावड, प्रले. वंशराम आंबाभाई खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पुछिसुणं. हुंडी में 'पुछिसुणं' लिखा है परंतु कृति भिन्न है., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४१०.५, ४४२९-३२). For Private and Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: पव्वज्जा अत्थ गहणेण, गाथा-२०, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-१० अपूर्ण से है.) प्रास्ताविक गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: चारित्रनो नाश थाय छे, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१६ से टबार्थ लिखा है.) १०१४०९ (+#) पंचाशक प्रकरण की टीका व सम्यक्त्वादि विविध विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, २२-२७४८६). १. पे. नाम, पंचाशक प्रकरण गाथा-३१ की टीका, पृ. १अ, संपूर्ण. पंचाशक प्रकरण-शिष्यहिता वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२४, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २.पे. नाम. सम्यक्त्वादि विविध विचार संग्रह, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. विविधविचार संग्रह, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सत्तलवा जइ आउं पहुप्पमाणं; अंति: (-), (पू.वि. ज्ञानावरणी कर्म क्षयोपशम विवरण अपूर्ण तक है., वि. विविध आगम व आगमेतर संदर्भ समन्वित.) १०१४११. क्षेत्रसमास सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २७, जैदे., (२७४१०.५, ५४३०-३५). बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण; __ अंति: झाएज्जा सम्मदिट्ठीए, गाथा-२३२. जंबूद्वीप प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमीनइ जलसहित मेघ; अंति: ध्यावं सम्यक् दृष्टीइं. १०१४१२ (+) पाक्षिक खामणा, संपूर्ण, वि. १९४९, आषाढ़ अधिकमास, मध्यम, पृ. १६, प्र.वि. हुंडी:पाक्षिक., संशोधित., दे., (२६४११, १०४३२). आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: वंदामि नित्थारगपारगाहोह. १०१४१३. पंचमाससंबंधी चतुर्दशीव्रतोद्यापन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२७.५४१०.५, ११४४३). पंचमासचतुर्दशी व्रतोद्यापन विधि, भट्टा. सुरेंद्रकीर्ति, सं., प+ग., वि. १८४८, आदि: सकलभुवनपूज्यं वर्द्धमानं; अंति: __ सुरेंद्र० भट्टारकेनावनौ. १०१४१४ (+#) अजितशांति स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५३१, वैशाख शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. वटपद्रनगर, प्रले. ग. कनकवीर (गुरु पं. आनंदवीर गणि); गुपि.पं. आनंदवीर गणि (गुरु आ. विशालराजसूरि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६.५४११, ७२३२-३६). अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संतिं च; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. अजितशांति स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अजितशांति जिनाधिपयो स्तवः; अंति: सहपाठः सेषदरांतरेपि. १०१४१५ (+) जीवविचारप्रकरण सह दीपिका, संपूर्ण, वि. १६५६, आश्विन शुक्ल, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. जसवंत (गुरु आ. वरसिंह ऋषि, लोंकागच्छ); गुपि. आ. वरसिंह ऋषि (लोंकागच्छ), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१४) जलाद्रक्षेत् तैलाद्रक्षेत्, जैदे., (२७४११, ५४३४). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-अक्षरार्थदीपिका अवचार, सं., गद्य, आदि: अहं किंचिदपि जीव; अंति: भो निरुद्धतः समतः. १०१४१६. (+) बासठियो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१०.५, ६२४३८). बासठीयो-बहत, मा.गु., गद्य, आदि: जीव १ गइ २ इंदीय ३ क; अंति: मिथ्यातना अनंतगुणा अधिक, (वि. सारिणीयुक्त.) For Private and Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०१४१७. (+#) नलदवदंती चौपाई, संपूर्ण, वि. १७९८, ?, वैशाख कृष्ण, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. २६, प्रले. पं. महिमारत्नमुनि (गुरु पं. सुगुणकीर्ति गणि, खरतरगच्छ); गुपि.पं. सुगुणकीर्ति गणि (खरतरगच्छ); पठ.पं.शांतिहर्ष (गुरु पं. श्रीसोम गणि, खरतरगच्छ); गुपि.पं. श्रीसोम गणि (खरतरगच्छ), प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. हंडी:नलदवदंतकीचोपी. लेखन संवत् मात्र ९८ लिखा है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४४८-५६). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमंधरस्वामी प्रमुख; अंति: समयसुंदर० चित्तवसी, खंड-६, गाथा-९३१, ग्रं. १३५०, (वि. ढाल-३९.) १०१४१८. विक्रमसेनराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३५-२५(१ से २५)=१०, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७४१०.५, १५४४७). विक्रमसेनराजा चौपाई, म. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. ढाल-३६ गाथा-१७ अपूर्ण से ढाल-५१ गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) १०१४१९. नर्मदासंदरी चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२६.५४११, १२४३६-३९). नर्मदासुंदरी रास-शीलव्रतविषये, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५४, आदि: प्रभुचरणांबुजरजतणी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-४ गाथा-९ अपूर्ण तक लिखा है.) १०१४२० (+) वसधारानामधारणी महाविद्या, संपूर्ण, वि. १७३४, कार्तिक कृष्ण, ७, रविवार, मध्यम, पृ.६, ले.स्थल. कोसीथलनगर, प्रले. ग. कपूरविमल (गुरु पं. रूपविमल गणि); गुपि. पं. रूपविमल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४३४). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिह; अंतिः शृणोति च भोगं करोति. १०१४२१ (#) भरटकद्वात्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११, १३४४१-५०). भरटकद्वात्रिंशिका, ग. आनंदरत्न, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: समे कार्ये हि सर्व; अंति: काका मासंखाद्य मुक्तमस्ति. १०१४२२ (+) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:उवासगट०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४१०.५, ७७५१). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१० गाथा-१ अपूर्ण तक है.) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: (-). १०१४२३. (+#) धर्मप्राप्ति व मनुष्यभवदर्लभता के दस दृष्टांत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. ग. गुणरत्न, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १४४५१). १. पे. नाम. १८ दृष्टांत श्लोक-धर्मप्राप्ति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांत श्लोक-कथा, सं., पद्य, आदि: लज्जातो १ भयतो २ वितर्क; अंति: दृष्टांता ज्ञेयाः, कथा-१८. २. पे. नाम. दस दृष्टांत मनुष्यभवदुर्लभता, पृ. १आ, संपूर्ण. १० दृष्टांत-मनुष्यभवदुर्लभता, मा.गु., गद्य, आदि: चुल्लग १ पासग २ धन्न; अंति: सुकृतीभूयस्तमाप्नोतिन्. १०१४२४. (+) पुष्पमाला प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५-४(१,३ से ४,८)=११, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:पुप्फमाला, पुप्फमा०., संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४४७-५२). पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से ४७ अपूर्ण तक, १०७ अपूर्ण से १९९ अपूर्ण तक व २२९ अपूर्ण से ४४२ अपूर्ण तक है.) १०१४२५ (+) युगादिजिन देशना, संपूर्ण, वि. १६३९, वैशाख शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. ३९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१०.५, १७४६०-६५). युगादिदेशना, ग. सोममंडन, सं., पद्य, आदि: श्रीमानादिजिनः श्रेय; अंति: चैषा जयाभ्युदयदायिनी, उल्लास-५, श्लोक-५७५. For Private and Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०१४२६. (+) विवाहपडल सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १४४४५). विवाहपडल, सं., पद्य, आदि: जंभाराति पुरोहिते; अंति: (-), (पू.वि. 'वेद्यां विवाहे नियमं च कालं' पाठांश तक है.) विवाहपडल-बालावबोध, मु. अमरसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य शिरसा; अंति: (-), (पू.वि. चवरीमंडप अपूर्ण तक १०१४२७. उधार पल, संपूर्ण, वि. १९३०, वैशाख शुक्ल, १, गुरुवार, मध्यम, पृ.५, ले.स्थल. मोरबी, प्रले. श्राव. कुशलचंद संघवी; अन्य. सा. जुठिबाईसामी; सा. अमृतबाईसामी; सा. कडवीबाईसामी; गृही. श्राव. हिराचंदस्वामी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी: उधार पल., दे., (२६.५४१०.५, १२४५३). पल्योपम-सागरोपम भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आह च सवणं लघु संघा परम; अंति: सुषम४ व्यवहार५ एव छ थया. १०१४३१ (#) मृगावतीसती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-७(१,३ से ४,७,९,१४,१८)=१२, पृ.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१०.५, १७४४४). मृगावतीसती चौपाई, वा. विनयसमुद्र, मा.गु., पद्य, वि. १६०२, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३५ अपूर्ण से ७१४ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०१४३२. (+) समयसारनाटक, संपूर्ण, वि. १७६५, आश्विन कृष्ण, १२, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ६९, ले.स्थल. बाहडवस, प्रले. पं. प्रतापविजय (गुरु ग. तीर्थविजय); गुपि.ग. तीर्थविजय (गुरु पं. शांतिविजय गणि); पं. शांतिविजय गणि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, ११४४६). समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन; अंति: नाममइ परमारथ विरतंत, अधिकार-१३, गाथा-७२७, ग्रं. १७०७. १०१४३३. (+) श्लोक संग्रह व प्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ९x४६). १. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.ग.,सं., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), श्लोक-६. २. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-११आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: पास पयच्छउ वंछिउ. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.म.पू.-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: समवसरण बइठा अरिहंत; अंति: दिउसानोवांछित ___ अमुहुइंदिउ. १०१४३४. (+#) चित्रसेनपद्मावती चरित्र, संपूर्ण, वि. १६४८, चैत्र शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. १६, ले.स्थल. जालोर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१०.५, १३४४७-५०). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, पा. राजवल्लभ, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंति: श्रीमहिचंद्रसरी, श्लोक-५०१. १०१४३५. (+) पाक्षिकसूत्र, साधु अतिचार व दोहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८४०, फाल्गुन शुक्ल, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. १८-९(३ से ९,११,१४)=९, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४२८-३२). १.पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १अ-१३आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: (-), (पू.वि. अंतिमसूत्र अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) २. पे. नाम. साधु अतिचार, पृ. १५अ-१८अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. साधुपाक्षिकअतिचार-मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडं, (पू.वि. ज्ञानाचार स्थूल-३ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. ठाणे कमणे सूत्र, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधुदेवसिप्रतिक्रमण अतिचार- पू. पू. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि ठाणे कमणे चंक्रमणे, अंतिः री तस्स मिच्छा मि दुक्कडं. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. १८आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में किसी अन्य प्रतिलेखक ने लिखी है. प्रास्ताविक दोहा संग्रह पुहिं, मा.गु. रा., पद्य, आदि कीजे तो कर जाणिजे उत्तम अति: हे सखी चित दे चिंता लेह, गाथा-४. , १०१४३६. (+४) भ्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि, २०वी, मध्यम, पू. ४८-३६ (१ से ३६) = १२, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४.५x१०, ५-८४१३-२२). " अमणसूत्र, प्रा., प+ग, आदि (-); अति (-) (पू.वि. पाठ पडिक्कमामि गोचरिआए" से "अनिआणो दिड्डीसंपन्नो" तक है.) १०१४३७. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७२, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित., जैवे. (२६४११, १३४४८) उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविप्यमुक्कस्स अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- १९ गाथा- ७९ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र- बालावबोध, मा.गु, गद्य, आदि: संजोग कहां पुत्र कलशादिक; अति: (-). १०१४३८. (+) कल्याणमंदिरस्तोत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १८५८, मार्गशीर्ष शुक्ल, १४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले. स्थल. सांडवा, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X११, १३x४२). " ५१ कल्याणमंदिर स्तोत्र- टीका, उपा. सिद्धिचंद्र, सं., गद्य, आदि उज्जयिन्यां विक्रमपुरोधसः अंति: पार्श्वनाथ प्रसादतः १०१४३९ (+#) बारसासूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६९, प्र. वि. हुंडी : कल्पसूत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१०.५, ९X३६-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: भुज्जो उवदंसेइ त्तिबेमि, व्याख्यान-८, ग्रं. १२१६. १०१४४० (+) ज्ञानपंचमीकथा, अपूर्ण, वि. १९३९, वैशाख शुक्ल, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. ८- १ (१) = ७, ले. स्थल. लखनेउ, प्रले. मु. गोकलचंद ऋषि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीऋषभदेवप्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ संशोधित. दे., (२७४१०, ८x४०-४६) ज्ञानपंचमी कथा, ग. विजयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति लिखिता तरेव मेडतानगरे, गाथा ५१ (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-१२ अपूर्ण से है.) " १०१४४१. मनुष्यभव दशदृष्टांत कथा, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २९, प्र. वि. हुंडी : दसदृष्टांत, जैदे. (२७४१०.५, १०x३२-३५). मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत गाथा-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: चत्तारिपरिमंगाणि मुल्लहाण;- अंति: मनुष्यभव दोहिलउ जलहइ. १०९४४२. नवपदजी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, जैये. (२७.५x११, ९३७). ', नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पूजा-७ पाठ "ज्ञानावर्णी जे कर्म छे" तक लिखा है.) १०१४४४. (+) घंटाकर्णमंत्र कल्पादि स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पू. ८. कुल पे. ६. प्र. वि. पंचपाठ-संशोधित, जैदे., (२६X११, १२x१९-२८). १. पे. नाम. घंटाकर्णमहावीरदेव मंत्र सह कल्पमंत्राम्नाय विधि, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ घंटाकर्णो महावीर :; अंति: कायव्वा सव्व कालेसु, श्लोक-४. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र-घंटाकर्णकल्प साधना विधि, संबद्ध, मा.गु. सं., गद्य, आदि त्रिकाल स्मरण करोड़ परिवार; अंतिः शांतिर्भवति निश्चयेन. २. पे. नाम. पंचांगुलीमंत्र सह साधनविधि, पृ. २अ- ३अ, संपूर्ण. पंचांगुलीदेवी मंत्र, मा.गु. सं., गद्य, आदि ॐ पंचांगुली २ परिसर २ अंतिः वज्रनिर्घात पडड़ वार २१. For Private and Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पंचांगुलीदेवी मंत्रसाधन विधि, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदिः ॐ ह्रीं ऐं क्रौँ नमः इति; अंति: जां जीवइ तां सही सत्यमेव. ३. पे. नाम, वर्द्धमानविद्यामंत्र सह विद्याम्नायकल्प, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. वर्द्धमानविद्या मंत्र, प्रा., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं नमो अरिहंता; अंति: ॐ ह्रीँठः ठः ठः स्वाहा. वर्द्धमानविद्या मंत्र-विद्याकल्प विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवओ महइ महावीर; अंतिः पिबेत् अष्टादश व्रणोपशमः. ४. पे. नाम, पद्मावती स्तोत्र सह मंत्राम्नायकल्प, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण, प्रले. पंन्या. धनविमल, प्र.ले.पु. सामान्य. पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: यः पठति श्रीगृहे तस्य, श्लोक-१९. पद्मावतीदेवी स्तव-मंत्राम्नाय कल्प, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ अमृते अमृतोद्भवे अमृत; अंति: जलाभिमंत्रणमंत्रः. ५. पे. नाम. अक्षकपर्दी कल्प, पृ. ५आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: कृष्णरेखा रक्तरेखा पीत; अंति: कर्त्तव्यं शुभकांक्षिणः, श्लोक-७. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र सह स्वोपज्ञ टीका, पृ. ५आ-८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित, ग. पूर्णकलश, प्रा.,सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: जसु सासणदेवि वएसकया; अंति: पार्श्वस्तोत्रमेतत्, गाथा-३७. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित-स्वोपज्ञ वृत्ति, ग. पूर्णकलश, सं., गद्य, आदि: जं संथवणं विहिय तस्स; अंति: तयं होउ जगि सुक्खियं. १०१४४५ (+) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, ११४२०-३४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमक्किट्ठ; अंति: कहणायवि आलणा संघे. अध्ययन-१०, (वि. चूलिका-२.) १०१४४७. (+) गयसकमाल ढाल, संपूर्ण, वि. १६६३, चैत्र कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ६, प्रले. पं. शिवचंद्र मुनि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ११४३३). गजसुकुमालमुनि रास, मु. शुभवर्द्धन शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: देस सोरठ द्वारापुरी नवमउ; अंति: अविचल संपद थाइ, गाथा-९०. १०१४४८. (+) जिनवल्लभी प्रशस्ति, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १७४६४). वीरचैत्य प्रशस्ति-चित्रकूटीय, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, श. १०२८, आदि: (-); अंति: जिनवल्लभ० सूत्र धाराग्रणी, श्लोक-७८, (पू.वि. श्लोक-५९ अपूर्ण से है.) १०१४५० (+#) रामविनोद, संपूर्ण, वि. १७८९, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. २८, ले.स्थल. कालु, प्रले. पंडित. रघुनाथ, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:रामविनोद., रामविनोद पत्र., रामविनोद शास्त्र., रामविनोद श०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १७-३०४५९-७७). रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सिद्धि बुद्धि दायक; अंति: सारीयौ कह्यो जुए अनुमान, समुद्देश-७, गाथा-१६१७, ग्रं. ३३२५. १०१४५२. (+#) माधवानल चौपाई, संपूर्ण, वि. १७०१, आषाढ़ शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. २०, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. ग. राजप्रमोद (गुरु आ. जिनराजसूरि); गुपि. आ. जिनराजसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४४७). माधवानल चौपाई, उपा. कशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि: देव सरसति देव सरसति; अंति: ते नर सुख पामइ संसार, गाथा-५४९. For Private and Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०१४५३. (+#) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८८, श्रावण कृष्ण, १४, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल. नवानगर, प्रले. पं. खुशालचंद (गुरु मु. राजविजय); गुपि. मु. राजविजय (गुरु पंडित. चतुरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : जीवचार०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५५११, ५५४०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुय समुद्दाओ, गाथा-५२. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिण भुवन तेहने विषे; अंति: मांथी उद्धर्यो एहवो ए. १०९४५४. (+) भुवनदीपक, संपूर्ण, वि. १८४२, पौष कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. पं. तेजचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५.५X१०.५, १२४३३). ', भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य वि. १३५, आदि सारस्वतं नमस्कृत्य अंतिः श्रीपद्मप्रभसूरिभिः श्लोक-१७४. १०१४५५ मूलप्रतिक्रमणसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८४५, भाद्रपद शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे. (२५.५११, ५४३६). बंदित्सूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि वदेत्तू सव्वसिद्धे अंति: वंदामि जिणे चउवीस, गाथा ४३, (संपूर्ण, वि. अंत में "जावंती चइआइ० जावति केवी साहु०" प्रतीक रूप में सूत्र दिया है.) वंदित्तुसूत्र -टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि वंदीने तीर्थंकरने सिद्धने अति (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., टबार्थ गाथा-३२ अपूर्ण तक लिखा है.) १०१४५६. (+) उपाशकदसांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७२०, पौष शुक्ल, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३४, प्रले. पं. क्षमावर्द्धन (गुरु ग. हेमनिधान, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि. ग. हेमनिधान (गुरु पं. मुनिमेरु, बृहत्खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: उपासक०.८०., पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. २५००, जैदे., ९४४७-५०% ग्रं. २५००, जैदे., (२५.५४११. 7 उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: दिवसेसु उद्दिसंति, अध्ययन-१०, ग्रं. ८९०. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालनइ विषइ ते समयनइ; अंति: जाणिवा दस दिवसनै विषै कहर, ग्रं. १६१०. יי १०१४५७ (+) सु॒व॒गडांगसूत्र श्रुतस्कंध २ सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६८६ वैशाख कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ६४-८(१ से ८) =५६, प्र. वि. हुंडी: सुगड०. बेजा०, सुगडंसूत्र, त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित, जैदे., (२५.५X११, ६-९x४३-४८). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि (-); अति विहरति ति चेमि (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. अध्ययन-१ अपूर्ण से है.) सूत्रकृतांगसूत्र- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-) अंति प्रति कहउं छउं ग्रं. ५१००, अपूर्ण. १०१४५८. (+) अमरदत्तमित्राणंद रास, संपूर्ण, वि. १७२५, कार्तिक शुक्ल, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १९, ले. स्थल. अंबासणग्राम, पठ. मु. न्यानविजय (गुरु ग. लक्ष्मीविजय, तपागच्छ); गुपि. ग. लक्ष्मीविजय (गुरु उपा. पद्मविजय, तपागच्छ); उपा. पद्मविजय; गुभा. उपा. यशोविजय (गुरु पं. नयविजय गणि, तपागच्छ); गुपि. पं. नयविजय गणि ( अज्ञा. ग. जीतविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी: अमरदत्तमित्रानंदरास. सुमतिनाथ प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५X११, २३X५२-५५). अमरदत्त चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलु प्रणमुं शारदा; अंति: रंगि पुहती मनह ज गीरु जी, खंड-४, गाथा-८७६, (वि. डाल- ३४.) For Private and Personal Use Only १०१४६० (+४) प्रश्नव्याकरण सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १६१-१६० (१ से १६० ) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. हुंडी प्रसणव्याकरणसंवरचोथु, पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६X११, ५X३३). Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-९ संवरद्वार-४ सूत्र-३९ अपूर्ण मात्र है.) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). १०१४६१. औपदेशिक सज्झाय, समकित के ९ भेद व अंगुलमान विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ३, दे., (२५.५४११, १४४१३-२४). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: ऋषभदास० भर्यउ असमान रे, गाथा-२०, (पृ.वि. गाथा-१९ से है., वि. अंत में कामिनी विषयक १ सुभाषित गाथा है.) २. पे. नाम. समकित के ९ भेद, पृ. ३अ, संपूर्ण. सम्यक्त्व के ९ भेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: द्रव्य समकित भाव; अंति: दीपक अभव्यनइं कहीइं. ३. पे. नाम. अंगुलमान विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: एक आंगुल वाल १ तेना ८ खंद; अंति: (-). १०१४६३. (+) भुवनदीपक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, ७४४२). भवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३५, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१८० अपूर्ण तक है.) भवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती संबंद्ध० मया; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१६६ से १७४ व १७६ से आगे का टबार्थ नहीं लिखा है.) १०१४६४. (+) बृहत्संग्रहणी सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ७१, प्र.वि. हंडी:संग्रहि०.वृत्त०., संग्रहि०३०. पत्रांक चिपके हैं., संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४५४). बहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: सिरिचंद० अत्तपढणट्ठा, गाथा-३४९. बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: अत्यद्भूतं योगिभिरप्यगम्य; अंति: वृत्तिः समर्थिता, ग्रं. ३५००. १०१४६७. (+#) सूत्रकृतांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १६५६, जीर्ण, पृ. ७४-५(१ से ५)=६९, प्र.वि. हुंडी:सूग०.सू०., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, प्रतिलेखन पुष्पिका का भाग खंडित है., जैदे., (२६.५४११, ११४४२-४८). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विहरति त्ति बेमि, अध्याय-२३, ग्रं. २१००, (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ उद्देशक-२ गाथा-११ अपूर्ण से है.) १०१४६८. पर्यंताराधना-गाथा ७० सह टबार्थ व आराधन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, ७-१५४४४). १.पे. नाम. पर्यंताराधना-गाथा ७० सह टबार्थ, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण. पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण भणइ एवं भयवं समओ; अंति: सोमसूरि०सासयं सुक्खं, गाथा-७०, ग्रं. २४५. पर्यंताराधना-गाथा ७०-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर नमस्करी; अंति: शास्वतां सुख मुक्ति जावि. २. पे. नाम. आराधन विधि, पृ. ७आ, संपूर्ण. अनशन विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: यदि ग्लानो तदा; अंति: वार ३ बारव्रत आलापक. १०१४६९ (#) भक्तामर स्तोत्र सह कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४२-४६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२९ तक है.) भक्तामर स्तोत्र-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीयुगादीशं; अंति: (-), (पू.वि. कथा-१९ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०१४७० (+#) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-९(१ से ९)=३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४४१). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बृहत्शांति स्तोत्र "विदेहसंभवानां समस्ततीर्थकृतां" पाठांश से कल्याणमंदिर स्तोत्र श्लोक-३२ अपूर्ण तक है.) १०१४७१ (+) कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य, अपूर्ण, वि. १६४८, सिद्धिविधिमुखदर्शनशशि, वैशाख शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ७७-२(१ से २)=७५, ले.स्थल. अहमदावाद, अन्य. ग. कल्याणकमल गणि (गुरु आ. जिनचंद्रसूरि, खरतरगच्छ); गुपि. आ. जिनचंद्रसूरि (गुरु आ. जिनमाणिक्यसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनमाणिक्यसूरि (गुरु गच्छाधिपति जिनहंससूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कल्पांतर्वा०., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४३६-४८). कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, उपा. भक्तिलाभ, सं., गद्य, वि. १६४०, आदि: (-); अंति: श्रीसंघभट्टारकः, (पू.वि. "समये वक्कजडा जंतुणो" पाठ से है.) १०१४७२. (#) दंडक प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ५४३७). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चौवीस जिणे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४१ अपूर्ण तक दंडक प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हो चोवीस तिर्थंकर; अंति: (-). १०१४७३. (#) पद्मावती स्तोत्र व त्रिपुरादेवी लघुस्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. २, ले.स्थल. शुद्धदंतीनगर, प्रले. ग. उदयकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३५-४३). १. पे. नाम. पद्मावती स्तोत्र, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. __ पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: तस्य पद्मावती स्वयं, श्लोक-१८, (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. त्रिपुरादेवी लघुस्तोत्र, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. त्रिपुराभवानी स्तोत्र, आ. लघ्वाचार्य, सं., पद्य, आदि: ऐंद्रस्यैव शरासनस्य; अंति: यस्मान्मयापि ध्रुवम्, श्लोक-२१, (वि. अंत में होमद्रव्य परिमाण दिया है.) १०१४७४. (+#) क्षुल्लकभवावलि प्रकरण सह स्वोपज्ञ अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पत्तन, प्रले. मु. हेमसार, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४१०.५, १०-१४४४१-४५). क्षल्लकभव प्रकरण, ग. धर्मशेखर, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्ता सिरिवीरं; अंति: सोहेयव्वं सुयहरेहिं, गाथा-२५. क्षुल्लकभव प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, ग. धर्मशेखर, सं., गद्य, आदि: वंदित्ता० सुगमा नवरं; अंति: भूतो विपरितः शोध्य. १०१४७५ (+) ऋषभजिनोत्तमपंचाशिका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, प. ११९-११८(१ से ११८)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १७४५२-५९). ऋषभपंचाशिका, क. धनपाल, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: जयजंतुकप्पपायव चंदाय; अंति: बोहित्थ बोहिफलो, गाथा-५०, संपूर्ण. १०१४७६. जीवविचार, नवतत्त्व प्रकरण व १४ नियम नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१०.५, ५४३९-४२). १.पे. नाम, जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-४९. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ४आ-९अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुण्णह पावासव्व; अंतिः अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४४. ३. पे. नाम. १४ श्रावकनियम गाथा, पृ. ९अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रा., पद्य, आदि: सचित्त दव्व विगई वाहण; अंति: बंभ दिस नाण भत्तेस, गाथा-१. १०१४७७. (+#) कल्याणमंदिर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. हुंडी:कल्याण., कल्या., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, ८x२१-२४). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. १०१४७८. (+) नवस्मरण, संपूर्ण, वि. १८३९, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. ९, प्रले. मु. लायक कुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. शांतिनाथजी प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३-१६x४०-४३). नवस्मरण, म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: अचिरान मोक्षं प्रपद्यते, स्मरण-९, (वि. भक्तामर स्तोत्र नहीं लिखा है.) १०१४७९. दृष्टांतकथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४-२९(१ से २९)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११, १५४५६-५९). दृष्टांतकथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कूलबालक कथा अपूर्ण से महाधनश्रेष्ठि कथा अपूर्ण तक है.) १०१४८० पाक्षिकसूत्र व क्षामणक की अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४-९(१ से ९)=५, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १८४६४). १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र की अवचूरि, पृ. १०अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. -अवचार, स., गद्य, आदि: (-); अंति: हेतुत्वेनाभिहितत्वात्, (पू.वि. "वा शब्दो प्राग्वत्" पाठ से है.) २. पे. नाम. क्षामणकसूत्र की अवचूरि, पृ. १४आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: यथा राजानं पुष्पमाण; अंति: युयमित्याशीर्वचनमिति. १०१४८१ (+) सामुद्रिकशास्त्र, संपूर्ण, वि. १९१३, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. वीदासर, प्रले. मेघदत्त ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सामुद्र०., सामु०., संशोधित., दे., (२६४१०.५, १०x४०-४६). सामद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: राचंति कलह राचंति संखनी, अध्याय-३६, श्लोक-२९१. १०१४८२. (#) सिद्धांतोक्तयतिविचारगाथा सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५९३, वैशाख कृष्ण, १, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४११, १३४३०-३३). यतिविचार, प्रा., पद्य, आदि: आलयविहार२भासा८चंकमणट्ठाण; अंति: दुप्पसहंताण साहूणं, गाथा-२३. यतिविचार-स्वोपज्ञ वृत्ति, सं., गद्य, वि. १५२३, आदि: आलयः सुप्रमार्जितादि; अंति: तुलनायाः समानार्थात्वात्. १०१४८३. (+#) क्षामणकानिपक्षिकासक्तानि सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५१५, भाद्रपद शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. धनउरा, प्रले. मु. मेरुसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ६-९४३८). क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामिकारेण संदिसह भगवन; अंति: नित्थार पारगा होउ, आलाप-४. क्षामणकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: इच्छामि अभिलाषामि; अंति: लभ्यते एवेदमित्यदोषः. १०१४८४ (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७८, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ८, प्रले. मु. लक्ष्मीचंद ऋषि (गुरु मु. रत्नचंद्र ऋषि); गुपि. मु. रत्नचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४१०.५, ६४३९). नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं; अंति: बुद्धबोहि कणेकाय, गाथा-८८. नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व १ अजीव; अंति: एकसिद्ध१४ अनेकसिद्ध१५. १०१४८६. (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३२-१(१)=३१, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:नांमाला., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१०.५, १३४४२-४६). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कांड-१ श्लोक-१३ से कांड-३ श्लोक-४५७ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०१४८७. सप्तस्मरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५१, आश्विन शुक्ल, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. २५, ले. स्थल. सुराचंद, प्रले. मु. लालविजयजी (गुरु मु. धीरविजयजी); गुपि. मु. धीरविजयजी (गुरु मु. हर्षविजयजी); मु. हर्षविजयजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४x१०.५, ४x२५-३२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदिः उपसग्गहरं पासं पासं; अंति: जैनं जयति शासनम्, स्मरण- ७. सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि उपसर्गनो हरनार पार्श्व, अंति: सासन जयवंतुवर्ती. १०१४८८ (+) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६७, जीर्ण, पृ. १३, ले. स्थल. वीकानेर, प्रले. पं. ज्ञानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: अणुत्तरोवाई., संशोधित, जैये. (२५x११, ६x४३-४६) " अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: तेण कालेन तेणं समएणं; अति अणुत्तरोववाईदसाणं, अध्याय-३३, प्र. १९२, संपूर्ण. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिणे काले चोथा आराने; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, अंतिम ३ गाधाओं का टबार्थ नहीं लिखा है.) १०१४८९. (#) स्तवन, सज्झाय व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ५, कुल पे. ११, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४.५x११, १४४३६). १. पे. नाम. चाणक्यलघुराजनीति - आद्यश्लोकत्रय, पृ. १अ, संपूर्ण. चाणक्यवृद्धराजनीति-संक्षेप, पंडित, कौटिल्य, सं., पद्य, आदि प्रणम्य शंकरं देवं अंति (-), प्रतिपूर्ण ५७ २. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीमंडन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजीमंडन, मु. भागचंद, पुहिं., पद्य, आदि: चोरासीलख जीवजोनि मे कुटिल; अंति: विहड संपति पाउं, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. भागचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्राचीदिशा पीरी भई विरिया; अंति: कही उठो मेरे लाला, पद-४. ४. पे. नाम. थावचापुत्र सज्झाय, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण, वि. १७६७, आषाढ़ शुक्ल, ९. थावच्चापुत्र सज्झाय, मु. भागचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी परमानंद थावचा; अंति: कुण श्रीथावा गुण तोले, बाल-४, दोहा-६५. मा.गु., पद्य, आदि अति दीण अब कब करो दिलासा रे, गाथा-३. ५. पे. नाम. असत्यवचन त्याग सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय मिथ्यात्याग, मु. भागचंद, मा.गु., पद्य, आदि वर्ष आषाढ सुदि दिने निसन अंतिः पावै दिन दिन बढनै दावइ, गाथा - ११. ६. पे. नाम. त्रिपदी, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, पुर्हि, पद्य, आदि माइ काहु भांति रसीली अंतिः कइ सइ रहुं घरि वसि के माय, पद-३, " .पे. नाम आदिजिन पद, पृ. ४आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only ८. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मु. आनंदवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: अति: के भावे तिम कोई कहुं, गाथा-४. ९. पे नाम राजीमती गीत, पृ. ५अ, संपूर्ण, राजिमतीसती गीत, मा.गु., पद्य, आदि: रसराती राजुल मणे दोहाइ वे; अंति: दुहाइ वे रायल प्राण आधार, गाथा- ६. १०. पे. नाम नेमराजिमती सज्झाय, पू. ५२-५आ, संपूर्ण, . जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: नेम कांइ फिर चाल्या; अंति: आय मिलुं जिनहरष पयंपइ हो, गाथा-९. . ११. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. ५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. मुनिचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि रे मन पंखिया में पंडिस पंजरइ अंति: लाइ सुकृतनाम सभारि रे, गाथा-५. Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०१४९० (+) मार्गणाद्वार विचार, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ९-२(१,६)=७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, १३४३३). ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. द्वार-३ अपूर्ण से द्वार-२५ अपूर्ण तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०१४९१ (#) भाष्यत्रय, अपूर्ण, वि. १७०४, कार्तिक शुक्ल, ८, मध्यम, पृ.७-२(३ से ४)=५, ले.स्थल. मंगलपुर, प्रले. ग. रविचंद्र (गुरु ग. लब्धिचंद्र); गुपि. ग. लब्धिचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४२९). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., प+ग., वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३, (पू.वि. चैत्यवंदन भाष्य गाथा-४९ अपूर्ण से गुरुवंदन भाष्य गाथा-२९ तक है.) १०१४९२. (+) कल्पसूत्र सह कल्पलता टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२७-९१(१ से ९१)=३६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:काव्या., त्रिपाठ-द्विपाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १-९x४८-५३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. व्याख्यान-६ नेमिजिन दीक्षोत्सव वर्णन अपूर्ण से व्याख्यान-९ समाचारी-६ अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: (-); अंति: (-). १०१४९३.(+) अनागत २४ जिन स्तोत्र, २४ जिन प्रथम गणधरनाम व तीर्थंकरनामगोत्रउपार्जकनाम, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, ९x४८). १. पे. नाम. अनागत २४ जिन स्तोत्र सह अवचूरि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अनागत २४ जिन स्तोत्र, आ. श्रीचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वीरवरस्स भगवओ वोलिअ; अंति: सुहयरा हंतु सयकालं, गाथा-१४. अनागत २४ जिन स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वीरवरस्स० अत्र षष्ठी; अंति: न विशेषतो विवृताः. २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिनप्रथमगणधरनामानि सह टीका, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ तीर्थंकर प्रथम गणधरनाम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सिरिउ सहसेण पहसीहसेण; अंति: हाईणं हरंतु पावाइं पणयाणं, गाथा-३. २४ तीर्थंकर प्रथम गणधरनाम गाथा-टीका, सं., गद्य, आदि: ऋषभादिजिनानामाद्य गणहरनाम; अंति: दुरितानि प्रणतानां. ३.पे. नाम. महावीरजिन शासनकाल तीर्थंकरगोत्रउपार्जकनाम गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: सेणिअ सुपास पोट्टिल उदाइ; अंति: रेवई नववीर तित्थंमि, गाथा-१. १०१४९४. (#) स्तवन व स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, २१४६७-७०). १. पे. नाम, पंचपरमेष्ठिरक्षा स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: पंचपरमेष्ठिनमस्कारं सारं; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. २. पे. नाम, चंद्रप्रभ स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ चंद्रप्रभः प्रभा; अंति: दायिनि मे वरप्रदा, श्लोक-५. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन-मंत्राक्षरगर्भित, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-बीजमंत्रयक्त, म. कलप्रभ कवि, सं., पद्य, आदि: नत्वोपासित चरणं कमठे; अंति: कविकुलप्रभुतया घटते, श्लोक-११. ४. पे. नाम. पार्श्व स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: परय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ५. पे. नाम. प्रत्यंगिरा स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: आरूढा सिंहमुद्यद्विम; अंति: सद्गुरूक्तोपदेशात्, श्लोक-१०. For Private and Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ (+#) www.kobatirth.org १०१४९५. । ६. पे. नाम भारती स्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र-मंत्रगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमस्त्रिदशवंदित; अंति: मधुरोज्ज्वलागिरः, श्लोक- ९. ७. पे. नाम गौतमस्वामी स्तोत्र. पू. १ आ. संपूर्ण. आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १४बी, आदि ॐ नमखिजगन्नेतु अंति भव सर्वार्थसिद्धये श्लोक ९. कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २८, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५X४०-४५) कल्पसूत्र - अंतर्वाच्य, मा.गु. सं., गद्य, आदि प्रणम्य प्रणताशेषवीर, अंतिः शैवं मार्गीखिलचिरात् (वि. कल्पकिरणावली टीका का पाठ भी मिलता है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९ १०१४९६ (+) त्रैलोक्यदीपिकानाम संघयणीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८४७, माघ कृष्ण, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. २०-१०(१ से ५,८,१० से ११,१४ से १५) = १०, ले. स्थल. सरीवारी, प्रले. पं. उत्तमविजय गणि पठ, श्राव, धना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जै.. (२५x११, ११४३०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: नंदो जा वीरजिण तित्थं, गाथा - ३१०, (पू.वि. गाथा- ७९ अपूर्ण से है व बीच-बीच के गाथांश नहीं हैं.) १०९४९७. (+) पार्श्वजिन स्तव व साधारणजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद: सूचक लकीरें संशोधित त्रिपाठ, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x१०.५. ५४५९). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तव स्तंभनतीर्थमंडन सह अवचूरि, पृ. १अ संपूर्ण प्रले. ग. शिवनिधान, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थमंडन, मु. जयसागर, सं., पद्य, आदि: योगत्मनां यं मधुरं धुरं; अंति: यद्धानकस्य प्रियम्, श्लोक ५. , पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थमंडन - अवचूरि, मु. जयसागर सं., गद्य, आदि: योगो ज्ञानदर्शनचारित; अंति: तत्प्रियमेव भवतीति, २. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति सह अवचूरि, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराजः पदपद्मसेवा; अंति: प्रभावदाता ददतां शिवं वः, For Private and Personal Use Only श्लोक-१. साधारण जिन स्तुति- अवचूरि, सं., गद्य, आदि देवस्य दर्शनं पापनाशनं के अंतिः पदत्रयस्य कर्मधारयः. १०१४९८. (*) धर्मशिक्षा सह अवचूरि, संपूर्ण वि. १६२८, ज्येष्ठ, ३, मध्यम, पृ. ३ ले स्थल, अहम्मदावाद, प्रले. बा. पद्मराज (गुरु उपा. पुण्यसागर, खरतरगच्छ); गुपि उपा. पुण्यसागर (गुरु गच्छाधिपति जिनहंससूरि, खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-पंचपाठ., जैदे., (२६X११, १३३८-४५). धर्मशिक्षा प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: नत्वा भक्तिनतांगकोऽहमुभयं अतिः रुन्द्रे नरः सादरम् श्लोक-४०. धर्मशिक्षा प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अहं धर्म्यं धर्मसंबंधिपदं; अंति: चक्रवर्त्तिनां नम्यं. १०१४९९. (+) सिंदूर प्रकरण सह टबार्थ व जैनधार्मिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १७, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२०x१०, ७३०-३३). " १. पे. नाम. सिंदूर प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-१७आ, संपूर्ण. सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि. सं., पद्य वि. १३वी आदि सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: निशम्यमानेति शमेति नाशम्, द्वार-२२, श्लोक-९८, संपूर्ण. सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि सिंदूरणुं प्रकर समूह छह अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - ९५ तक बार्थ लिखा है.) २. पे. नाम. जैनधार्मिक श्लोक संग्रह, पृ. १७आ, संपूर्ण. लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा. सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीर्वेश्मणि भारती अंति वः श्रेयसे पार्श्वनाथ, श्लोक-४. Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०१५०० (#) २४ दंडक ३० बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १४४५१). महादंडक ३० द्वार, मा.ग., गद्य, आदि: दंडक १ लेस्या २ ठिती; अंति: (-), (पू.वि. द्वार-२९ अपूर्ण तक है.) १०१५०१. नौमंगल, संपूर्ण, वि. १८६७, आषाढ़ कृष्ण, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. दिल्ही, प्रले. सा. लछमा आर्या (गुरु सा. रतना आर्या); गुपि. सा. रतना आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, २२-२७४११-१७). नेमिजिन तपकल्याणक, मु. सुनंदलाल, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: हाजी गुरगनधर देव मनाउं; अंति: मंगल गाइय नंद मंगल गाइय, ढाल-९, गाथा-३८. १०१५०२. (+#) स्तुति व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८०६-१८२७, मध्यम, पृ. १६०-१४०(१ से १४०)=२०, कुल पे. १०, प्रले. ग. रुघपति; श्राव. दीपा; श्राव. महेश, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १३-१६x४३-४६). १. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. १४१अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, ग. रुघपति गणि, रा., पद्य, आदि: थलवटदेस सुहावै हो गोडेचा; अंति: चौ पांमीहो गावै रुघपतिगणी, गाथा-५. २.पे. नाम. गुणठाणावृद्धि स्तवन, पृ. १४१अ-१४२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-१४ गुणठाणागर्भित, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: नमिय सिरिपासजिणराय: अंति: लछिवल्लभगणि०मति निरमल सदा, ढाल-५, गाथा-४३. ३. पे. नाम. श्रीपालमयणासुंदरी चौपाई, पृ. १४२आ-१५१अ, संपूर्ण, वि. १८०६, भाद्रपद शुक्ल, १५. श्रीपालमयणासुंदरी चौपई, उपा. रुघपति, मा.गु., पद्य, वि. १८०६, आदि: अरिहंति सिद्ध नमी करी; अंति: रुघपति० प्रणमै कवि जनपाय. ४. पे. नाम. ६२ मार्गणारो सवैयो, पृ. १५१आ, संपूर्ण. ६२मार्गणा सवैया, म. रुघपति, मा.गु., पद्य, आदि: च्यारगतांगिण इंद्रीय; अंति: बासठ भेद संभारौ, सवैया-१. ५. पे. नाम. थूलिभद्र सज्झाय, पृ.१५१आ, संपूर्ण.. स्थूलिभद्र सज्झाय, उपा. रुघपति, मा.गु., पद्य, आदि: वरराज तिहै त्रिगटै महावीर; अंति: रुघपति० आवेको व्याख्यान, गाथा-१६. ६. पे. नाम. नंदीषेणमहामुनि चौपाई, पृ. १५२अ-१५९आ, संपूर्ण, वि. १८१२, वैशाख शुक्ल, ९, ले.स्थल. कालु. ____नंदिषेणमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १८०३, आदि: वर्तमान चौवीसने; अंति: नवनिधि मंगलमालो रे, गाथा-२६०, ग्रं. ५००. ७. पे. नाम. सीता गीत, पृ. १५९आ, संपूर्ण, वि. १८२६, वैशाख कृष्ण, ३, ले.स्थल. तोलीयाशर. सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलहलती जलती घणुं रे झालो; अंति: लाल प्रहसम प्रणमुं पाय रे, गाथा-८. ८. पे. नाम. महावीरपारणा गीत, पृ. १६०अ-१६०आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुणा; अंति: तेहने नमे मुनि माल, गाथा-२८. ९.पे. नाम. दस श्रावक नाम सवैयौ, पृ. १६०आ, संपूर्ण. १० श्रावक सवैया, उपा. रुघपति, मा.गु., पद्य, आदि: सुश्रावक आणंदनै कामदेव; अंति: श्रीरुघपति भलै परणामै, सवैया-१. १०.पे. नाम. बारै चक्रवर्तिरा नाम सवैयौ, पृ. १६०आ, संपूर्ण, वि. १८२७, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, ले.स्थल. रिणिनगर. १२ चक्रवर्ती नाम सवैया, उपा. रुघपति, मा.गु., पद्य, आदि: भरत अने सगरादिकसु मघवा; अंति: वदै रुघपति बडै विसतारा, सवैया-१. For Private and Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मटाई हई हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ६१ १०१५०३ (+) जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९०८, कार्तिक शुक्ल, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. वीदासर, पठ. श्राव. केवल; प्रले. मघा ब्राह्मण, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:जीवचार., संशोधित., दे., (२५.५४११, ९४२२-२५). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५८. १०१५०४. (+) देवेंद्रस्तव प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. फलोघी, प्रले. मु. दीपसागर (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१०, ११४४७). देवेंद्रस्तव प्रकीर्णक, मु. ऋषिपालित, प्रा., पद्य, आदि: अमर नरवंदिए वंदिऊण; अंति: थओ सम्मत्तो अपरिसेसो, गाथा-२०७. १०१५०५. (+#) स्तोत्र व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ६, प्रले. मु. जादवजी (गुरु मु. भवानसुंदर); गुपि. मु. भवानसुंदर (गुरु ग. भक्तिलाभ); ग. भक्तिलाभ, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन प है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४२८-३२). १. पे. नाम. वीरजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव, आ. पादलिप्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जयई नवनलिन कुवलय; अंति: दिसउ खयं सव्वद्रिआणं, गाथा-६. २.पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. ३. पे. नाम. नमिऊण स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणय सुरगण; अंति: अनाह थुणामि भत्रीए, गाथा-२४. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला महामंत्रमय, आ. मेरुतंगसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: ॐ नमो देवदेवाय नित्य; अंति: व्वसिद्धिं लभेद्रवं, श्लोक-१४. ५.पे. नाम. अजितशांतिजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. __ अजितशांति स्तवलघु-अंचलगच्छीय, क. वीर गणि, प्रा., पद्य, आदि: गब्भ अवयार सोहम्मसुर; अंति: सुह सयल संपज्जए, गाथा-८. ६. पे. नाम. अजितशांतिजिन स्तव, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण.. अजितशांति स्तव बृहत्-अंचलगच्छीय, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, आदि: सकलसुखनिवहदानाय सुरपादपं; अंति: जयशेखरसूरि० मुदम्, श्लोक-१७. १०१५०६ (+) चतुःशरणप्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.६,प्र.वि. संशोधित-पंचपाठ., जैदे., (२६४१०.५, ६४२७-३४). चतःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ग्रंथनी आदि मांगलिक करी; अंति: तेहनउ छेद कीथउ नहुइ चउरंग. १०१५०७. (+#) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. यशसमुद्र; पठ. सा. हेमविजया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नवतत्त्वसूत्र., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३५). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुण्णं पावा; अंति: बोहि क्कणिक्काय, गाथा-४९. १०१५०८. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, ६४३७-४३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-९ उद्देश-२ गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मु. श्रीपाल, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिण धर्म रुपिउ मागलिक; अंति: (-), पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. १०१५०९. कल्पसूत्र सह व्याख्यान व कथा-पार्श्वनाथ व नेमिनाथ चरित, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी : कल्प टबार्थ., जैदे., (२५.५X१०.५, १८४५६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. नेमिनाथ चरित्र पाठ 'अउणत्तरिं च सहस्सा पंपया हुत्था' तक है.) कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा, सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. १०१५१० (+) उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पू. २४-६ (१०, १२, १४ से १७) = १८, पू.वि. बीच-बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैवे. (२६.५x१०.५, ११४४७). "" उपदेशमाला. ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि नमिकण जिणवरिदे इंद अति (-) (पू.वि. गाथा ५४६ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के गाधांश नहीं हैं.) १०१५१२. (+) योगशास्त्र-१ से २ प्रकाश, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. धर्मसिंह पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X११, १५X३३). " 3 योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि नमो दुर्वाररागादि, अंति: (-), प्रतिपूर्ण, १०१५१३. (+#) अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. उपा. श्रुतसागर (गुरु उपा. धर्मसागर गणि*, तपागच्छ); गुपि. उपा. धर्मसागर गणि* (गुरु पंडित. जीवर्षि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०, १३X३७). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि अजिअं जिअसव्वभयं संति; अंति: जिणक्यणे आयरं कुणह गाथा ४०. १०१५१४. (४) पाक्षिकसूत्र, खामणा व अणसण विधि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ३, प्र. वि. हुंडी पाक्षिकासूत्र, संशोधित-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०.५, १३x४०-४४). " १. पे नाम पाक्षिकसूत्र. पू. १अ ६अ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा. प+ग, आदि तित्यंकरे अतिथे अतिथ; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. " २. पे नाम. खामणासूत्र, पृ. ६ अ ६आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि इच्छामि खमासमणो पिय अति इच्छामोणुस, आलाप ४. ३. पे नाम. अणशणविधि, पृ. ६आ, संपूर्ण अनशन विधि, प्रा. मा. गु, गद्य, आदि गलाणनई देव दरसण अति: उवसंपजित्ता० विहरामि १०१५१५ (+) विचारषट्त्रिंशिका की अवचूर्णि संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ७. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५X१०.५, ११३४-४२). दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., गद्य, वि. १५७९, आदि: श्रीवामेयं महिमामेयं; अंति: मत्वेदं बालचापल्यम्, ग्रं. २१६, (वि. मूल का प्रतीक पाठ दिया गया है.) १०१५१७. (+) आगमिक प्रश्नोत्तर, अपूर्ण, वि. १९११, वैशाख कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. १४-३ (१ से ३) = ११, प्र.वि. हुंडी: प्रश्नोत्र., संशोधित. दे. (२५x११, ११४२७). " आगमिक प्रश्नोत्तरी, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अछै उभो रहे अमूको कांम कर, (पू.वि. प्रश्न- १० से है.) १०१५१८. (४) आठकर्मनी १५८ प्रकृतिनाविचार व जीवविचार, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१०.५, ११३६). १. पे. नाम. आठ कर्मनी १५८ प्रकृतिना विचार, पृ. १अ - ७आ, संपूर्ण. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदिः आठ कर्म केहा ज्ञानावरणीय; अंतिः श्रीभगवंतनो शरणो. २. पे. नाम जीवविचार, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ जीव अजीव भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चेतना लक्षणो जीव दोहा; अंति: (-), (पू.वि. जीव के दो भेद त्रसस्थावर अपूर्ण तक है.) १०१५२३. (+) चौमासीपर्व देववंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४११.५, १०४३७). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकेवलज्ञान कमला; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., शांतिनाथ चैत्यवंदन अपूर्ण तक है.) १०१५२४. (#) जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प.४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४११.५, १२४४०). जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ नमो अर्हद्भ्यः इह; अंति: (-), (पू.वि. चलप्रतिमा न्यासविधि अपूर्ण तक है.) १०१५३४. (+) समवायांगसूत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९२, प्र.वि. हुंडी:साम०वृत्ति, पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (३०४११, १३४३९-४८). समवायांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य समवाय; अंति: वृत्तितः समाप्तम्, ग्रं. ३५७५. १०१५३५. (+) पंचकल्पसूत्र का भाष्य, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६०-१(३)=५९, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:पंचकल्पभाष्य., संशोधित., जैदे., (३०x१०.५, १५४५५). पंचकल्पसूत्र-बृहद्भाष्य, ग. संघदासगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: वंदामि भद्दबाहुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२६४४ तक है व गाथा-६६ अपूर्ण से १११ अपूर्ण तक नहीं है.) १०१५३६. (+) चतुर्विंशतितीर्थंकर पूजा, अपूर्ण, वि. १८६७, कार्तिक शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १९-७(१ से ७)=१२, ले.स्थल. रुपनगर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (३०x११, १५४५४). २४ जिन अष्टप्रकारी पूजा, म. कनककीर्ति, अप.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (१)कणयकि० कुर्वंतवो मंगलं, (२)जिन मातृका स्थापनम्, पूजा-२४, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., चंद्रप्रभजिन पूजा अपूर्ण से है.) १०१५३७. (+#) दृष्टांतकथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २१-१(१)=२०, प्रले. मु. भावधर्म; पठ. मु. क्षेमराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४११, १६-१९४४८). दृष्टांतकथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: आपणायं अत्थ संभारं, (पू.वि. भयोपरि सुवर्णकार दृष्टांतकथा अपूर्ण से है.) १०१५३८. योगशास्त्र-५ से १२ प्रकाश, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदे., (२७.५४११, १५-१८४५७-६०). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः (-); अंति: प्रणयी भव्यो जनो भवतात, प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०१५४० (+#) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ४८, अन्य. मु. लाला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८.५४११, १२-१५४४०). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंब इणमो अण्हयसंवर; अंति: शरीरधरे भविस्सत्तीति, अध्याय-१०, गाथा-१२५०, ग्रं. १३००. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १२वी, आदिः (अपठनीय); अंति: संशोधिता चेयम्, अध्याय-१०, ग्रं. ४६३०. १०१५४१. ऋषिमंडल प्रकरण, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६-१(४)=५, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७७११, १३४४४). ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: भत्तिभर नमिरसुरवर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१९१ अपूर्ण तक है व गाथा-९० अपूर्ण से १२५ अपूर्ण तक नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०१५४२ (+#) उत्तराध्ययन सूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४१-१(१)=४०, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९x११, १२४५२-५५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ गाथा-२४ अपूर्ण से अध्ययन-३ गाथा-१९ अपूर्ण तक है.) १०१५४४. (+) भगवतीसूत्र की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३२५-१६७(१ से ६,२३ से ३०,३४ से ४३,४७ से ५७,६१ से ६५,७७ से ११६,१२०,१२३,१४३ से १४४,१८४ से २२०,२२२ से २२३,२२५ से २२७,२२९ से २३१,२३३ से २३४,२३६ से २५३,२६९ से २७०,२७२ से २७४,२७६,२८१ से २८७,२९१ से २९५)=१५८, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:भगवती०वृ., संशोधित., जैदे., (२७.५४११, १५४५८-६२). भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२८, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. शतक-१ उद्देश-१ की टीका से शतक-२५ उद्देश-६ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०१५४५. (+#) उज्जयंतात्मीय प्रबंध व वस्तुपाल संबंध, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३७-३६(१ से ३६)=१, कुल पे. २, प्रले. मु. सिंहविजय (गुरु मु. गुणविजय, तपागच्छ); गुपि. मु. गुणविजय (गुरु आ. हीरसूरि *, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२९x१०.५, १९४७२). १. पे. नाम. उज्जयंतात्मीय प्रबंध, पृ. ३७अ, संपूर्ण.. उज्जयंततीर्थात्मकरण प्रबंध, सं., प+ग., आदि: सुराष्ट्रायां गोमंडलनगरे; अंति: जातमेतत्तीर्थ. २. पे. नाम. वस्तुपाल संबंध, पृ. ३७अ-३७आ, संपूर्ण. वस्तुपाल मंत्री प्रबंध-गुरुभक्ति गर्भित, सं., पद्य, आदि: वस्तुपाल वरिआजराणि एकदा; अंति: सुस्ठीकृत शांतोजात. १०१५४६. (#) स्थानांगसूत्र का चयनित सूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१०.५, ६४२९). स्थानांगसूत्र-चयनित सूत्र संग्रह, प्रा., गद्य, आदि: लिन्हं दुपडोयारं; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., पाठांश गारेवेण भोगसंगिट्ठो' तक है.) १०१५४७. (+#) कर्पूराभिध सुभाषित कोश, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १७, प्रले. सा. सहिजश्री; अन्य. ग. देवविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४२९). कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि: कर्पूरप्रकरः शमामृत; अंति: नेमिचरित्रका, श्लोक-१७६. १०१५४९ (+) २२ परीसह दृष्टांत, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-१(११)=१२, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:वावीसपरीसह दृष्टांत., संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ९४३४-३८). २२ परिषह दृष्टांत कथा, मा.गु., गद्य, आदि: क्षुधालागइ दीन नधायदं ते; अंति: (-), (पू.वि. कथा-२१ तक है व कथा-१८ अपूर्ण से कथा-२० अपूर्ण तक नहीं है.) १०१५५० (+) सिंदूरप्रकरण, संपूर्ण, वि. १७२४, फाल्गुन शुक्ल, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. १०, अन्य. भट्टा. कल्याणसागरसूरि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४३४-४२). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१०३. १०१५५१. (#) चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तवन व जातकपद्धति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ९४३६). १. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वजिनाधिराज स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८७५, फाल्गुन शुक्ल, ८, गुरुवार. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु, श्लोक-११. २. पे. नाम. जातकपद्धति, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ६५ म. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदि: प्रणम्य पार्श्वदेवेशं; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक लिखा है.)। १०१५५२. (+) अणुत्तरोववाईसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४११, ६४३३-३६). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समय; अंति: तहा णेयव्वं, अध्याय-३३, ग्रं. १९२. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालनै विषै ते काल; अंति: परे ना० तिम जाणवो. १०१५५३. योगोद्धहन विधि, संपूर्ण, वि. १६४१, वैशाख कृष्ण, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र.वि. अंतिमपत्र स्वस्तिक, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७.५४११, १३४३८-५१). योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीआवश्यक सुअक्खंध; अंति: दिन एक पुर्णिमा दिने. १०१५५५ (+#) जीवविचारसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५५, श्रावण अधिकमास शुक्ल, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ४४३१). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपइवं वीरं नमिउण भणामि; अंति: रूद्दाउ सुय समुद्दाउ, गाथा-५१, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ से २० तक व गाथा-४१ से ४३ अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) १०१५५६. (+) क्षेत्रसमास प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०-१(१)=९, प्र.वि. हुंडी;खेत्रसमास., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, ९४३४). बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: समयखेत्तस्स परिरओ, गाथा-१४२, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) १०१५५७. (+) चतुःशरण व संबोधसत्तरी प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. मु. लालसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १३४३९-४३). १.पे. नाम. चतुःशरण प्रकरण, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १८५०, ज्येष्ठ शुक्ल, २, ले.स्थल. प्रांणपुर. चतःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निद्दयसुहाणं, गाथा-६३. २. पे. नाम, संबोधसत्तरी प्रकरण, पृ. ३अ-५आ, संपूर्ण. संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोयगुरुं; अंति: जयसेहर०नत्थि संदेहो, गाथा-७२. १०१५५८. (+#) अजितशांति स्तव सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-१(१)=८, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ५४२९). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसरि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ से ३६ अपूर्ण तक है.) अजितशांति स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). १०१५५९. द्वादशव्रत टीप, अपूर्ण, वि. १९२६, वैशाख अधिकमास कृष्ण, ९, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १४५-१३६(१ से १३६)=९, ले.स्थल. जावदनगर, प्रले. पं. चंद्रभाण (गुरु पं. नगराज, बृहद्भट्टारक खरतरगच्छ); गुपि. पं. नगराज (बृहद्भट्टारक खरतरगच्छ); पठ. श्राव. रीषभदास पोरवाड, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:व्रतटीप., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१३८६) पोथी प्यारी प्रेमकी, दे., (२१.५४११.५,१३४२६). १२ व्रत टीप, म. उद्योतसागर, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: लक्ष्मी निरंतर वरै, (पू.वि. पाठ "वृत्ति संक्षेप सो द्रव्य अधिक होय" से है.) १०१५६०. श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २७, दे., (२२४११, ९४२६). श्रीपाल रास-बृहद्, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: अरिहंत अनंतगुण धरीये; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१५ गाथा-६ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०१५६२. अंजनासुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १९१२, श्रावण शुक्ल, ११, गुरुवार, मध्यम, पृ. २२, प्र.वि. कुल ग्रं. ६००, दे., (२१४११, ११४२९). ___ अंजनासंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: पेहलेने कडवे हो पाय; अंति: भार्या जगतनी माय तो, ढाल-२२, गाथा-१६५. १०१५६३. (#) चौदह नियमादि बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८-३(१ से ३)=५, कुल पे. १०, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१४११.५, १३४३८). १.पे. नाम. चौदह नियम स्वरूप, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. १४ नियम विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तो सामान्य करना है, (पू.वि. नियम-११ अपूर्ण पाठ "किसीकुं दिन की जयणा रात्रिनिषेध" से है.) २. पे. नाम. सूतक विचार, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पुत्र जनम्या दिन १०; अंति: (१)आभडे तो पहर १२ सूतक, (२)परं समुच्चा कुल टलै नही. ३. पे. नाम. जिनभवन १० आशातना गाथा, पृ. ५आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: उदगंमि१ चूलहयाए२ भायण३; अंति: पीसण९ तह चेव चेइहरे१०, गाथा-१. ४. पे. नाम. सिद्धांतोक्त चतुर्दशनियम विचार, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी १४ नियम विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सचित्त छोडे अथवा २४; अंति: सात तरकारी मोकली राखै. ५. पे. नाम. रात्रिभोजन पापाधिकारदोष विचार, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. रात्रिभोजनत्याग विचार, मा.गु., गद्य, आदि: कोईक एक आहेडी आहेडो करतो; अंति: एकवार रात्रिभोजन कीधे होय. ६.पे. नाम. विविध नियम संग्रह, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. चारित्रसागर गहीता नियम, पं. चारित्रसागर, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीजिनेंद्राणां गुर; अंति: तिथे सब नीलवण का त्याग. ७. पे. नाम. बावीस अभक्ष्यना व्यौरा, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. २२ अभक्ष्य नाम, मा.गु., गद्य, आदि: उंबर १ कठ्बर २ पाकर ३ वड; अंति: वेगणा के खेलरा का त्याग. ८. पे. नाम. देवगृह में १० मोटी आसातना, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण, वि. १९०३, फाल्गुन शुक्ल, १२, गुरुवार, प्रले. पं. गंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. जिन भवन १० आशातना नाम, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: भोजन १, पाणी २, तंबोल ३; अंति: भवै ते साधुनै अवश्य टालवी. ९. पे. नाम. विविधजीव आयुमान, पृ. ८अ, संपूर्ण. विविध जीव आयुष्य विचार *, मा.गु., गद्य, आदि: हाथीनो आयु वर्ष१२० मनुष्य; अंति: गिलोइ वर्ष१ कंसारी मास३. १०. पे. नाम. जीवादि आयुष्यमान गाथा, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. जीवादि आयुष्यमान गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: वीसुत्तरसयमाऊ मणुआण हत्थि; अंति: दसवासं मूसगस्साउवास दुगं, गाथा-४. १०१५६५ (+#) अक्षरबावनी व दहादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. १०, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१०.५, १९४४६). १. पे. नाम. दूहा बावनी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. अक्षरबावनी, मा.ग., पद्य, आदि: ॐ अक्षर अलख गति धरूं; अंति: वाचत लिखत नर होवत कविराज, गाथा-५८. २. पे. नाम. जिनरंगसूरिकृत दहा रंगबहुत्तरी, पृ. २अ-४अ, संपूर्ण, वि. १७९६, माघ कृष्ण, ९, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. पं. लाभकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. कृति के अंत में "व्याख्यानावसरे एकस्मिन् दिवसे" ऐसा लिखा है. रंगबहुत्तरी, आ. जिनरंगसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: लोचन प्यारे पलकको करदो ऊव; अंति: वाचे चतुर सुजाण, गाथा-७३. ३. पे. नाम. भ्रमर दुहा, पृ. ४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ६७ आध्यात्मिक भ्रमर दोहा, मा.गु., पद्य, आदि: भमरा पूर्छ वातडी कालो कवण; अंति: पतंग की फेर फेर जीउदेत, गाथा-९. ४. पे. नाम, लोचन दुहा, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा-लोचन, पुहिं., पद्य, आदि: लोचन प्यासे प्रेम के; अंति: एक जन झरि झरि मरजात, गाथा-९. ५. पे. नाम. प्रहेलीका दहा, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रहेलीका दोहा, मा.गु., पद्य, आदि: तनतुरंग असवार मन नयन; अंति: मत मूरति मिट जाइ, गाथा-५. ६. पे. नाम. औपदेशिक दहा संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, म. भिन्न भिन्न कर्तक, पुहिं., पद्य, आदि: करि खंजन अंजन रेख वणी; अंति: आज सखी मोहि नीद न आवत, गाथा-५. ७. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ५अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: रे रे चित्त कुमित्त न कीज; अंति: हुइ भाइ दुहाई राम की, गाथा-४. ८. पे. नाम. सूरीयारा दूहा, पृ. ५अ, संपूर्ण. ___ औपदेशिक दोहा-सूरीयारा, पुहिं., पद्य, आदि: सूरीया सर फूटेह ईटे ऊटा; अंति: मसाण बासो होही वल्लहा, गाथा-१२. ९. पे. नाम. नागडारा दूहा, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा-नागडारा, पुहिं., पद्य, आदि: टीपा टप टपीयां विण वादलै; अंति: गुण तुट्टे सर सांधीयै, गाथा-१७. १०. पे. नाम. औपदेशिक दहा संग्रह-छूटक, पृ. ५आ, संपूर्ण... औपदेशिक दोहा संग्रह-छूटक, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: कुड कुलखण मित्त खय मत्त; अंति: चढि पलास की डार, ग्रं. दहा१३. १०१५६६. पांच सौ तिरेसठ जीव भेद थोकड़ा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-१(४)=५, दे., (२१.५४११.५, १७४३५). ५६३ जीव बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: जीव गइ इंदीये काए; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पाठ ___"भवणपती पंद्ररे परमाधामी पचीसरो" तक है.) १०१५६७. व्याख्यान व विविधबोल आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, कुल पे. ११, जैदे., (२१४११, १६४३२). १. पे. नाम. ६ बोल, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ६ बोल-पुण्योपार्जन, मा.गु., गद्य, आदि: शिष्टसंगः श्रुतौरंगः; अंति: थका श्रेयकल्याण संपजै. २.पे. नाम, श्रावकना बारह व्रतना नाम, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. १२ व्रत नाम, मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातिपात १ मृषावाद २; अंति: पौषधव्रत११ अतिथिसंविभाग१२. ३. पे. नाम, व्याख्यान संग्रह, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. __व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: देवपूजा गुरूपास्ति; अंति: मंगलीकमाला संपजे. ४. पे. नाम. षद्रव्य विचार, पृ. ४अ, संपूर्ण. ६ द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पुदगलनु अनै जीवनु चालण; अंति: चेतना लक्ष्यण ते जीव. ५.पे. नाम. आठ प्रवचनमाता विचार, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण, वि. १८८७, वैशाख शुक्ल, १. ८ प्रवचनमाता विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मन वचन काया स्थिर राखी; अंति: गोपवी राखै ते कायगुप्ति३. ६. पे. नाम, बावीस परीसहनो अर्थ, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. २२ परिषह विचार, मा.ग., गद्य, आदि: आहार मिल्या अणमिल्या समता; अंति: नही ते सम्यक्त्व परीसह२२. ७. पे. नाम. दसविध यतिधर्म, पृ. ६अ, संपूर्ण. १० यतिधर्म भेद, मा.गु., गद्य, आदि: खंती क० मनमै क्रोध उपजावै; अंति: वर्जे ते ब्रह्मचर्य परीसह. ८. पे. नाम. बारह भावना, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण. १२ भावना विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पढमं क. पहिली अणिच्चं क०; अंति: पयत्थेणं क० घणै यत्न करी. ९. पे. नाम. पांच चारित्रनो अर्थ, पृ. ७आ, संपूर्ण. ५ चारित्र विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सामाईय क० सर्वसावद्य; अंति: पाली जीव मोक्ष जायै. १०.पे. नाम. तपरा १२ भेदरो अर्थ, पृ.८अ-८आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२ तपभेद विवरण, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अणसण क० एक दिन बिदिन तीन; अंति: वास्ते अभ्यंतर तप कहीजै. ११. पे. नाम. बंधरा च्यारभेदनौ अर्थ, पृ. ८आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ४ बंध विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दूधने पाणी माटीने धातु; अंति: (-), (पू.वि. कर्मबंध की स्थिति जघन्य१ विचार अपूर्ण तक है.) १०१५६८. मगध्वज चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्रले. दयारयण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४११, ११४२६-३४). मृगध्वजराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: पणवि श्रीगोईम गणहर मुनिवर; अंति: ए हरखें राज हुवो गणगेह, गाथा-८८. १०१५६९ (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-१(१)=२०, प्रले. मु. खंतविजय (गुरु पं. जसविजय); गुपि.पं. जसविजय (गुरु पं. प्रीतविजय); पं. प्रीतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१.५४११, २४३१). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: अणंतभागो य सिद्धि गओ, गाथा-५५, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से जैतार नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सिद्ध रहै छे एहवा सिद्ध. १०१५७० (#) अवंतिसुकुमाल रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. राजनगर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१x११, १०x२१). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनीवर आर्यसुहस्ती; अंति: शांतिहरष सुख पावे रे, ढाल-१३, गाथा-१०७. १०१५७१. (#) अष्टापदतीर्थ स्तवन, हो व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १८६४, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६.५४११.५, १९४१४). १.पे. नाम, अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसरि, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: अष्टापदगिर जात्रा करणकुं; अंति: सुरनाएक गुण गावे, गाथा-९. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहे, पृ. १आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: सुख उपनो दुख गल गयो; अंति: लट्यो प्रगट्यो राग कल्याण, गाथा-१. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. म. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: कल्याण दिनदयाल मोहि केसे; अंति: सागर रूपचंद गुण गाय, गाथा-४. १०१५७२. जैनधर्म का वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्र-१४४., दे., (४४४१६, ५०x२२). जैनधर्म ऐतिहासिक वर्णन, पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजैनधर्म अनादि अनंत; अंति: फेर बहुत काल तक चलावैगा. १०१५७३. (-) चार मंगल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. पत्र-१४३., अशुद्ध पाठ., दे., (१७.५४११, २७४२७). ४ मंगल रास, मु. मुनिराज ऋषि, रा., पद्य, आदि: नमो अनंतचोवीसी जीन नमु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१९ अपूर्ण तक लिखा है.) १०१५७४. (#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन युगल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. सोझत, पठ. मु. उमेद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (१६.५-१७.५४११, २२४२०). १.पे. नाम, शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जात्रा नवाणु करीए वि; अंति: पदम कहे भव तीरियै, गाथा-९. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचल भेटवा; अंति: करी विमलाचल गायो, गाथा-५. १०१५७५. (+) भक्तामर स्तवन, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४७-४०(१ से ४०)=७, ले.स्थल. गंधारबंदिर, पठ. श्रावि. वयजबाई नानी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत "मेघकुमार सज्झाय" की मात्र गाथा-१ अपूर्ण लिखी हुई है., संशोधित., जैदे., (१७.५४११.५, ११x१२-१९). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतंगसरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, संपूर्ण. १०१५८६. (+) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-३(१,३,६)=११, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:भ०., संशोधित., जैदे., (१६.५४१०, ६४१५-२०). For Private and Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि (-) अति (-) (पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण से ४७ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०१५८७ (+) पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित., वे. (१८४११, ६४१४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तवन- अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मवादिनी अंति (-), (पू. वि. गाथा ३ अपूर्ण तक है.) १०१५८८. () ध्यानस्वरूप विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२२.५X१२, १६x२९). יי ध्यानस्वरूप विचार, रा. गद्य, आदि ॐॐ अवराय कित्तिय वंदिय अंति (-) (पू.वि. समवसरण में बिराजित तीर्थंकरस्वरूप चिंतवन अपूर्ण तक है.) १०१५८९ (+४) दस प्रत्याख्यानसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि., संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२१x११, १०x२१). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ. १०१५९० (+) रामविनोद शास्त्र, संपूर्ण, वि. १९०६, माघ शुक्ल, २ गुरुवार, मध्यम, पृ. १६३, ले. स्थल. बीदासर, प्रले. विरधीदास सामि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी, रामविनोद., संशोधित. दे., ( २१.५x१०.५, १०x२५-३२). रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि सिद्धबुद्धिदायक सलहीये, अंति: रामचंद्र० जा लगि धूरविचंद, समुद्देश- ७, गाथा- १६१७, ग्रं. ३३२५. १०१५९१. (f) कल्याणमंदिर स्तोत्र व स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ४, प्र. वि. हुंडी : क०. अक्षरों की 3 स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२x१०, १२x२१-२४). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अति कुमुद० प्रपद्येते श्लोक-४४. २. पे नाम. प्रार्थनासूत्र, पृ. ६आ, संपूर्ण प्रणिधानसूत्र, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि जयविरायजगगुरु होममतहपभावो; अंति जैनं जयति शासनम्, गाथा-५. ३. पे. नाम गौतमस्वामी मांगलिक स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण + मा.गु., पद्य, आदि गीतमस्वामी नाम गाम ती, अंतिः घर कुशल जे जे लछि लहंत, गाथा - १. ४. पे नाम. प्रार्थना स्तुति, पू. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रभु स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि वाडी चंपो मोरीयो सोवन्न, अंति: (-) (पू. वि. गाथा १ अपूर्ण तक है.) १०१५९२. (+) देवागम स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी : देवागम. पत्रांक- १अ पर मंत्र-यंत्र विधि सहित का भी उल्लेख है., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. दे. (२२४१०.५, ७X२५). आप्तमीमांसा, आ. समंतभद्र, सं., पद्य, आदि: मोक्षमार्गस्य नेतारं; अंति: (-), (पू.वि. परिच्छेद- १० श्लोक - १० अपूर्ण तक है.) יי ६९ " For Private and Personal Use Only १०१५९५ (+) प्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १७१३, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल साहाजादपुर, प्रले. मु. लालजी (गुरु ग. हीरसागर पाठक); गुपि. ग. हीरसागर पाठक; पठ. श्रावि . इंद्रा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२२x११, ७X२०-२४). वंदित्तसूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि वंदितु सव्वसिद्धे, अंतिः वंदामि जिणे चडवीसं, गाथा - ५०. १०१६०३ २४ जिन सवैया पच्चीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी: चोवी. दे... (२१X११.५, १५x२६). २४ जिन सवैया पच्चीसी, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: सुरतरु जिन समरुं सदा; अंति: (-). १०१६०४. पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान का बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४६, दे., (२१X११, ९-१२x२५). पर्युषणाष्ठाह्निका व्याख्यान - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१) स्मृत्वा पार्श्वसहस, (२) श्रीपार्श्वनाथ भगवंत, अतिः (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अचकारी भट्टा कथा प्रसंग अपूर्ण तक लिखा है.) " Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०१६०५ (+) नवतत्त्व प्रकरण की भाषा, अपूर्ण, वि. १८२५ फाल्गुन ८, बुधवार, मध्यम, पृ. ७-२ (१, ४) =५, ले. स्थल, बालोतरा, प्र. मु. लब्धिविजय शिष्य (गुरु ग. लब्धिविजय, तपागच्छ): गुपि. ग. लब्धिविजय (गुरु ग. शांतिविजय, तपागच्छ); ग. शांतिविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : नवतत्त्वं., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५X११.५, १७X३२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा भाषा. ग. लक्ष्मीवल्लभ पाठक, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (१) नवतत्त्वभाषा बंद, (२)लखमी० वरणत है कविराज, (पू.वि. गाथा-१ से २४ अपूर्ण तक व गाथा-७४ अपूर्ण से १०३ अपूर्ण तक नहीं है.) १०१६०६. (+) कल्पसूत्र सह व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५१-४३ (१ से ३०, ३२ से ४०, ४३ से ४४,४६ से ४७)=८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२३X११.५, ५X३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि (-); अंति (-) (पू. वि. ध्वजकलशादि स्वप्नवर्णन सूत्र ३९ अपूर्ण से स्वप्नफल वर्णन सूत्र- ८७ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र व्याख्यान, सं., गद्य, आदि (-) अंति: (-). १०१६०७. () गौतमपृच्छा सह टीका व कथा, अपूर्ण, वि. १८२२, कार्तिक कृष्ण, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४९-१९ (१ से ५, ७ से १०,३२ से ३४,३८ से ३९,४४ से ४८) = ३०, ले. स्थल भार्याग्राम, प्रले. मु. अमरविजय (गुरु पं. हस्तिविजय, आणंदसूरिंगच्छ); गुपि. पं. हस्तिविजय (गुरु पं. विनयविजय, आणंदसूरिंगच्छ) पं. विनयविजय (गुरु मु. खुसालविजय, आणंदसूरिंगच्छ); मु. खुसालविजय (गुरु पं. आणंदविजय, आणंदसूरिगच्छ); राज्यकाल रा. जगतसिंह, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (७४) जब लग मेरु अडिग है, जैदे., ( २४x११, १३X३३-३८). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति: गोयमपुच्छा महत्वावि, प्रश्न ४८, गाथा ६४ (पू.वि. गाथा १९ से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) गौतमपृच्छा- टीका, सं., गद्य, आदि (-) अंति कृता श्रीवरिण दत्तं. गौतमपृच्छा-कथा, सं., गद्य, आदि (-); अति रम्यं प्रवर्ण तु इत्वहं कथा ४८. १०१६०८ (+) श्रीपालचौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे. (२२.५४११, १२-१५X३४). श्रीपाल रास वृहद्, मु. जिनहर्ष, मा.गु, पद्य वि. १७४०, आदि अरिहंत अनंतगुण धरीये; अंति: निज पातकवन लुणज्यौ रे, ढाल ४९, गाथा १०००. १०१६०९ (#) तेजसीऋषि सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गय है, दे. (२२x११.५ १२४२९). तेजसीऋषि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि पुरिसादाणी प्रभु पासजी अंति (-) (पू.वि. गाथा- ११ तक है.) १०१६१० (+) प्रत्याख्यानसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैवे. (२२.५४११, ३४२४). " अंति: (-). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि : उग्गए सूरे नमुक्कार; प्रत्याख्यानसूत्र- टवार्थ, मा.गु. गद्य, आदि सूर्य उग्या पछी अति: (-). १०१६१५ (+) उत्तराध्ययनसूत्र - अध्ययन ३६, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी: उत्तरा., संशोधित., दे., (२२.५X११.५, १४X३९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति: (-) (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. गाथा २७१ अपूर्ण तक है.) १०१६१६. (+०) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १४-७(१ से ७)=७, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का " " अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २३x११, ८-११x२०-२५). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., पग, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. अजितशान्ति स्तोत्र गाथा ४० अपूर्ण से बृहत्शांति स्तोत्र "विदेहसंभवानं" पाठांश तक है.) १०१६१८. (१) उपवास पच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १८६० भाद्रपद कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. १. ले. स्थल, धिणलाग्राम, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२२४९.५, ८x२२). For Private and Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ चउविहार उपवास पच्चक्खाण, प्रा., पद्य, आदि: सूरै उगे अभतठं पच्चखामि; अंति: असित्थेणंवा वोसरामि. १०१६१९. उपधानतप विधि, अपूर्ण, वि. १८१४, श्रावण कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ.८-२(१ से २)=६, प्र.वि. हुंडी:उपधानविधी., जैदे., (२३.५४११, १५४३३). उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: पछी माल पेहिरि सूझै, (पू.वि. मुहपत्ति पडिलेहण विधि अपूर्ण से है.) १०१६२० (+#) व्याख्यानश्लोक संग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-१(३)=१४, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, १५४३१). व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जिनेंद्रपूजा गुरू; अंति: (-), (पू.वि. छकाय वर्णन अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) व्याख्यानश्लोक संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत भगवंत असरण सरण; अंति: (-), (पू.वि. २२ परिसह वर्णन अपूर्ण तक है व बीच का पाठ नहीं है.) १०१६२१. पैंतीस बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, दे., (१८x११, ९x१९). ३५ बोल-गत्यादि थोकडो, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलै बोलै गति च्यार; अंति: करै ए गुण श्रावक २१ कह्या. १०१६२२. ३५ बोल-गत्यादि थोकडो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, दे., (२०.५४११, १४४२१-२५). ३५ बोल-गत्यादि थोकडो, मा.ग., गद्य, आदि: पहेले बोले गति चार; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बोल-२७ तक लिखा है.) १०१६२३. (+) उत्तराध्ययसूत्र-अध्ययन ३६, संपूर्ण, वि. १९१४, वैशाख शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. १२, प्रले. शिवलाल केशव ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:छत्ती., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (७९३) तैलाद्रक्षेज्जलाद्रक्षेद, दे., (२२४११, १२४३२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: भवसिद्धय समए तिबेम्मि, प्रतिपूर्ण. १०१६२५ (+) गजसुकुमालमुनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-९(१,८ से १५)=१३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२४११, १५४३५). गजसुकुम लमनि चौपाई, आ. जिनराजसरि, मा.गु., पद्य, वि. १६९९, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ दोहा-६ ___ अपूर्ण से ढाल-१० गाथा-११ अपूर्ण तक व ढाल-२० गाथा-३ अपूर्ण से ढाल-३० गाथा-३ अपूर्ण तक है.) १०१६२६. (#) प्रश्नोत्तर तत्त्वबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-५(११ से १५)=१३, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४११, १०४३२). प्रश्नोत्तर तत्त्वबोध, आ. जयाचार्य, मा.गु., पद्य, वि. १९३३, आदि: नमूं देव अरिहंत नित; अंति: (-), (पू.वि. स्याद्वाद अधिकार गाथा-१८ अपूर्ण से कुशिष्य अधिकार गाथा-७१ अपूर्ण तक व गाथा-१२८ अपूर्ण से नहीं है.) १०१६२७. (#) १२ भावना, अरणिकमुनि रास व बुद्धि रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ३, प्रले. मु. सादुल ऋषि (गुरु मु. वाघा ऋषि); गुपि. मु. वाघा ऋषि (गुरु मु. भोजाजी ऋषि); मु. भोजाजी ऋषि (गुरु मु. जसवंत ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४११, १९४४७). १.पे. नाम. १२ भावना, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. म. जीवराज, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्ध अनंत समरी करी; अंति: जीवराज लहीइ भवनो पार ए, ढाल-१२, गाथा-१२४. २. पे. नाम. अरहनकमुनि रास, पृ. ४अ-६आ, संपूर्ण. अरणिकमुनि रास, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १७०२, आदि: सरसति सामिणि वीनवु; अंति: कहीओ रास विलास कि, ढाल-८. ३. पे. नाम. बुद्धि रास, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमेव देवी अंबाई पंचाणण; अंति: सालभद्र० टलै कलेस तो, गाथा-६४. For Private and Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०१६२८. (#) कल्पसूत्र की पीठिका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०८-१००(१ से १००)=८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. प्रतिलेखकने पत्रांक १०१ से लिखा है वस्तुतः प्रत प्रारंभिक मंगलाचरण से ही है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, १२४३२). कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: (-), (पू.वि. १० अछेरा अंतर्गत पद्मोत्तरराजा __ द्वारा द्रौपदीहरण प्रसंग अपूर्ण तक है.) १०१६२९. (#) हंसराजवत्सराज चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४४-४(३,३६ से ३८)=४०, पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पत्र १अ पर प्रत के लेन-देन संबधी उल्लेख है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११, १४४३१). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदिसर आदे करी चोवीसे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८८७ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०१६३० (#) पर्यषणपर्व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ.१, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४११.५, १४४३१). पर्यषणपर्व सज्झाय, म. मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि: परब पजसण आवियां रे; अंति: मतिहंस कहे करजोडिरे, ____ गाथा-११. १०१६३१. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२४४१०, ७४३०). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, सं., गद्य, आदि: कल्याणानां मंदिरं गृहं; अंति: लभंते प्राप्नुवंतीत्पर्थ. २. पे. नाम. जैनधार्मिक श्लोक संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: धन्यास्तेवीतरागागुरु; अंति: सयनतले सेरतेतिपि धन्या, श्लोक-१. १०१६३४. (+) योगचिंतामणि-अध्याय ३ व ४, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-३(१२ से १४)=१४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४११.५, ८४३१-४१). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, प.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्याय-४ के दशमूल क्वाथ अपूर्ण से अतीसार वत्सकादि क्वाथ अपूर्ण तक नहीं है व सूतिकारोग निदान अपूर्ण तक लिखा है.) १०१६४१. (+) दंडक प्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२१.५४११, १३४२८). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीसजिणे तस्सुत्तव; अंति: गयसारेण अप्पहिया. दंडक प्रकरण-टीका, ग. समयसंदर, सं., गद्य, वि. १६१६, आदि: भो भव्या ययं श्रृण; अंति: तु भो पाठयंत द्राक. १०१६४२. १२ भावना व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण, वि. १९४६, माघ कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ.६, कुल पे. २, प्र.वि. गुरुप्रसाद से. अन्य प्रतिलेखन "वर्ष १९९९ जेठ वद १३ गुरुवार" मिलता है, प्र.ले.श्लो. (१३९०) भणजो गुणजो वाचजो, दे., (२२४१२, १६४३९). १. पे. नाम. १२ भावना, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण.. १२ भावना विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली अनित भावना ते; अंति: धर्मरूचिजी भाई. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. ६आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जैन धरम जतने करी जो सेवै; अंति: तीरथ को नही भटको देशवीस, गाथा-४. १०१६४४. (#) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पत्रांक-१० की जगह १२ लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२.५४११.५, ४४२४). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५१ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन क० स्वर्ग; अंति: (-). १०१६४५ (+#) सभाशृंगार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. मु. शांतिसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. लेखनस्थल अवाच्य है., पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९x१०.५, १८४३२). सभाशृंगार, मा.गु., गद्य, आदि: जीव अजीव पुन्य पाप; अंति: नादें अंबर गाजे सर्व० जइं. १०१६४६. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ.८, कुल पे. ८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ३००, जैदे., (२१.५४११, १५४४२). १. पे. नाम. पत्तनचैत्यपरिपाटी तीरथमाल स्तवन, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. तीर्थमाला स्तवन-पत्तनपुर, ग. शिवदास गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७५, आदि: अणहल वाडं नयर भलु; अंति: जंपइ सुख श्रावय इणि भण्पइ, गाथा-४५. २. पे. नाम. स्तवन पार्श्वजिनदशभवनिबधं, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-१० भव गर्भित, मु. गजसार, मा.गु., पद्य, आदि: पणमिय पास जिणसर पाय रचसिउ; अंति: जंपइ ऋद्धि तसु घरिपरवरी, गाथा-३१. ३. पे. नाम. सीतलजिन स्तवन, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन-२१ स्थान गर्भित, मु. गजसार शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६७५, आदि: पणमिय सह गुरु पाय सरसति; अंति: रचीउं सुख दिउ सेवक भणी, गाथा-३०. ४. पे. नाम. आदिनाथ स्तुति, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. आदिजिन पद, मा.ग., पद्य, आदि: सिरि नाभिनरेसर कुलवयंस; अंति: तिम करि जिम थाइ सह सणाह, गाथा-४. ५. पे. नाम. कुणगिरिचैत्यपरिपाटी स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. कुमारगिरि चैत्यपरिपाटी स्तवन, पं. शुभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, वि. १६७५, आदि: पणमिसु शांति जिणंद देव; अंति: ___ गणिसइ रची वीनति हित भणी, गाथा-१५... ६.पे. नाम. श्रीवाडीमंडणपार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-वाडी मंडन, पं. शुभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: अससेण महीपति अंग जाय तिहु; अंति: भवर्द्धन मागइ भलिय बुद्धि, गाथा-९. ७. पे. नाम. लाडिकापार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन-लाडिक, म. गजसार शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सकल पास जिणसर ध्याई; अंति: करजोडि नमइ गजसार सीस, गाथा-५. ८. पे. नाम. नारिगपुरापार्श्वनाथ लघुस्तवन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. __पार्श्वजिन स्तवन-नारिंगपुर मंडन, पं. शुभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: नमुं पासजिण हरषसिउं नील; अंति: शुभवर्द्धन० थुणी पाय लागइ, गाथा-५. १०१६४८. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२२४११, १४४३७). प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: क्षमाबलमशक्तानां शक्तानां; अंति: (-), (पू.वि. सवैया-३ अपूर्ण तक १०१६४९ (+#) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१०.५, ११४२४). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. तिजयपहुत्त स्तोत्र तक है.) १०१६५१. नंदबत्रीसी चुपई, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८, प्रले. श्रावि. पुहती, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१९.५४११, १२४३०-३५). नंदबत्रीसी चौपाई, मु. सिंहकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १५६०, आदि: आगम वेद पुराण जाणंति; अंति: बुद्धिई नितु नव नव संपदा, गाथा-१५४. For Private and Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ७४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०१६५३. पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैवे. (२४.५x११.५, १३४३४-३९). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवती कूष्मांडिनी; अंति: (-), (पू.वि. शकुन अंक - ४४४ फल अपूर्ण तक है.) १०१६५५. (७) मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १८६१ कार्तिक कृष्ण १४, मध्यम, पू. ३० ४ (१,३, २६ से २७) २६, ले.स्थल. बांता, प्रले. ग. रूपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३११.५, १८X३७). मानतुंगमानवती रास मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: (-); अंति मोहन० घरीघरी मंगलमाला है, ढाल - ४७, गाथा - १०१५, (पू.वि. ढाल - २ गाथा- १ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) विशेष " १०१६५७. (+) श्रीपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित टिप्पण 1 युक्त पाठ., जैदे., (२४x१२, १६४३८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेलि कविय तणी अति: (-), (पू.वि. खंड-४ ढाल १३ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) १०१६५८. (+#) विक्रमसेनराजा चउपई, संपूर्ण, वि. १८१६, आषाढ़ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ४२, ले.स्थल. शांडेरांनगर, प्रले.ग. मनोहरसागर; अन्य. ग. फतेंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीशांतिजिनप्रसादात्., संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५X११.५, १५X४१). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: परमज्योति प्रकाशकर; अंति: चोसमी परमसागर आणंदे रे, ढाल - ६४. १०१६५९ (+०) वच्छराजहंसराज चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ३५-१ (२०) = ३४, ले. स्थल. देवकपत्तन प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२४.५४११.५, १५४३७) " हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि : आदीसर आदिं करी चउवीसे; अंतिः सूरि० हंस अनै वछराज, खंड-४, गाथा- ९०५, (पू.वि. ढाल - २६ गाथा-९ अपूर्ण से ढाल - २८ गाथा- २ अपूर्ण तक नहीं है., वि. ढाल - ४८.) १०१६६० (+) आस्रवत्रिभंगी, बंधत्रिभंगी व उदयउदीरणात्रिभंगी संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८, कुल पे. ४, प्र. वि. हुंडी मार्गणासुत्तिभंगी, पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, जैदे. (२४.५११, १९२९-५२). १. पे नाम. आस्रवत्रिभंगी, पृ. १आ- ९अ संपूर्ण. , - " मु. श्रुतमुनि, प्रा. पद्य वि. १४वी आदि पणमिव सुरिदपूजिय; अति बालिदो चिरं जयक, अध्याय-३, गाथा ६१. २. पे नाम बंधत्रिभंगी, पृ. ९अ १६अ, संपूर्ण, गोम्मटसार-बंधत्रिभंगी, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: णमिऊण णेमिचंदं असहाय; अंतिः भुजणकालेण वुच्चइ उदओ, त्रिभंगी-३, गाथा-५०. ३. पे. नाम. उदयउदीरणा त्रिभंगी, पृ. १६अ २४अ, संपूर्ण गोम्मटसार-उदयत्रिभंगी, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: पंचणवदोणिअट्ठावीसं; अंति: वलमाहवचंदच्चियणेमिचंदेण, त्रिभंगी-३, गाथा- ७३. ४. पे. नाम सत्तात्रिभंगी, पू. २४अ २८अ संपूर्ण. गोम्मटसार-सत्तात्रिभंगी, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: पंचणवदोणि अट्ठावीसं; अंतिः सिद्धिं समाहि च त्रिभंगी-३, गाथा- ३५. १०१६६१ (+) पार्श्वनाथस्तंभन मंत्रगर्भित सह स्वोपज्ञवृत्ति व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल राजनगर, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे. (२४४११.५, १६x४०-४३). पार्श्वजिन स्तव स्तंभन मंत्रगर्भित, ग. पूर्णकलश, प्रा. सं., पद्य, वि. २४वी, आदि जसु सासण देवि वएसकया; अंति "" ह्रीँ नमस्सं कुणंती, गाथा-३६, (वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में "जिनदत्तसूरिकृत" ऐसा उल्लिखित है.) पार्श्वजिन स्तव स्तंभन मंत्रगर्भित स्वोपज्ञ वृत्ति, ग. पूर्णकलश, सं., गद्य, आदि जुमोणेणं ॐ ह्रीं नमोणेणं; अंति: (-). For Private and Personal Use Only " Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जे अभयदेवसूरिनइ सासनदेवता; अंति: गुरुमुखथी सकलाम्नाय जाणवौ. १०१६६२. (+) नवतत्त्व व जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १२४३०). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नवतत्त्व०. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणंतभागो य सिद्धि गओ, गाथा-५०. २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ३आ-६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:जीववि०. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुय समुद्दाओ, गाथा-५१. १०१६६३. (+) श्रीचंद्रकेवली चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७७, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ३५८४, जैदे., (२५४११, १७४३८-४८). श्रीचंद्रकेवलि चरित्र, मु. सिद्धर्षि, सं., पद्य, वि. ५९८, आदि: ॐ ध्यात्वा; अंति: संघश्चिरं नंदतात्, अधिकार-४, श्लोक-९६६. १०१६६४. (+) नवतत्त्व, जीवविचार व दंडक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८९३, कार्तिक शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. ४, पठ. श्राव. विरधिचंद भा.,प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १२४२९). १.पे. नाम, नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: पनरस भेया उदाहरणं, गाथा-५८. २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ४अ-६आ, संपूर्ण. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुय समुद्दाओ, गाथा-५१. ३. पे. नाम, दंडक स्तोत्र, पृ. ७अ-९अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउ चउवीस जिणे; अंति: गयसारेण अप्पहिआ. गाथा-४४. ४. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. ९आ, संपूर्ण. सुभाषित संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सतगुण द्रढमूलः कीर्ति; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३ तक लिखा है.) १०१६६७.(+) पांडव रास, अपूर्ण, वि. १७६७, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. ९३-८(४८ से ५४,७२)-८५, ले.स्थल, मेडता, प्रले. मु. दला ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ६०११, जैदे., (२५.५४११, १५४५३). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: श्रीजिन आदि जिनेसरु आदि; अंति: गुणसूरि० रंग वधामणो, खंड-९ ढाल-१५१, (पू.वि. ढाल-६९ गाथा-१९५७ अपूर्ण से ढाल-७९ गाथा-२२५५ अपूर्ण व ढाल-१०५ गाथा-२९५५ अपूर्ण से ढाल-१०७ गाथा-३०४२ अपूर्ण तक नहीं है.) १०१६६८. (#) कर्मप्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. शिवराज ऋषि (गुरु मु. दासाजी ऋषि); गुपि. मु. दासाजी ऋषि; पठ. सा. कृष्णा आर्या, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, ३०४२२). १४ गुणस्थानके कर्मप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: उधि बंध १२० प्रकृतिनो; अंति: उदीरणा३ सत्ता ए ४. १०१६६९ (+) शालिभद्रमुनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५४१०.५, १२४२८). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम ढाल २९ की गाथा-७ अपूर्ण से नहीं है.) १०१६७०. रोहाधिकरो अष्टढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. हुंडी:रोहानी ढालां., ., (२३.५४१०.५, १०४३९). रोहाकुमार रास, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८८०, आदि: श्रीआदिनाथ प्रणमुं सदा; अंति: उधर्या आत्मदोषण टालियो ए, ढाल-८, गाथा-११६. For Private and Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०१६७१, (+) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे १३, अन्य. श्राव. धनरुप, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : यूइयां, अशुद्ध पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (२३.५x१०.५, १०X२२-२७) १. पे. नाम. पंचमीतिथि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. जीवविजय मु. सौभाग्यविजय, मा.गु, पद्य वि. १७८४-१८०० आदि पंचमी दिन जनम्या नेम; अंति: नविजय सिसु जीववीजय सुखकार, गाथा-४. २. पे. नाम. संसारदावानल स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा. सं., पद्य, आदि संसारदावानलवाहनीरं सम्मोह; अंति देही मे देवी सारे, श्लोक-४ ३. पे. नाम. कल्लाणकंद स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि कल्याणकंद पडमं जीणंद, अंतिः हत्था साअम्म सया पसथा, गाथा ४. ४. पे नाम बीजतिथि स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: बधीवीजय कहे पुर मनोरथ माल, गाथा-४. ५. पे नाम ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. ३अ ४अ, संपूर्ण सं., पद्य, आदि: श्रीनेमी पंचरूपविदश; अति: कुसल धीमतां साविधाना, श्लोक-४. ६. पे नाम. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि मंगल आठ करी जस आगलि; अति तपथी कोडि कल्याण जी, गाथा-४. ७. पे नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि एकादशी अति स्अडी गोविंद अंति: गुणहर्षसीस० निसदीस, गाथा-४. ८. पे नाम पाक्षिक स्तुति, पू. ५अ ६अ, संपूर्ण. संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि सं., पद्य, आदि स्नातस्या प्रतिमस्य अति सदा सर्वकार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ९. पे नाम. पर्युषण पर्व स्तुति, पृ. ६अ ६आ, संपूर्ण. मु. बुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर अतिअलवेसर प्रात; अंति: विबुधविजय जयकारी जी, गाथा-४. १०. पे नाम. पर्युषण पर्व स्तुति, पृ. ६आ-७अ संपूर्ण. मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पर्युषण पुण्ये; अंति: अमरते निसदिन दियो वधाइजी, गाथा-४. ११. पे नाम. पर्युषण पर्व स्तुति, पृ. ७अ ८अ संपूर्ण. मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि परव पजूसण पून्ये पाम; अंति: करजे संतोषी गुण गाई जी, गाथा-४. १२. पे नाम पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-समिनगरमंडण, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जय पासजिनवर सयल सुखकर; अंति: भावस्यू इम सेवी जिनपास, गाथा- ४. १३. पे नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ८आ, संपूर्ण. " पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि श्रीवीरजिनेसर अलवेसर; अति भाखे जिनविजय गुणगाय, गाथा-४. १०१६७२. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १३, प्र. वि. हुंडी: हेमीना० संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२४४१०.५, ९४२१-२६). " , अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. पद्य वि. १३वी आदि प्रणिपत्यार्हतः; अति (-) (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, कांड-२ श्लोक- ५७ तक लिखा है.) १०१६७३. देवकी चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी : देवकीनी चोपी., दे., ( १६४३६). (२३.५X११, गजसुकुमालमुनि चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: भदलपुर नगर मजे जीतसतुः अंति: (-), (पू.वि. ढाल २० के दोहा-४ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only "3 Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०१६७४. (+#) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-११(१ से ११)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १०४३२)... नवस्मरण, म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. भक्तामर स्तोत्र श्लोक-३८ अपूर्ण से बृहत्शांति स्तोत्र २४ जिन नाम अपूर्ण तक है.) १०१६७५. (+) आवश्यकसूत्र, अब्भुट्टिओमिसूत्र सह टबार्थ व नमोत्थुणसूत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-६(१ से ६)-७, कुल पे. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२४.५४११, २-६४३५-४२). १. पे. नाम. आवश्यकसूत्र सह टबार्थ, पृ. ७अ-१२अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:अवसगसूत्र. आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: गारेणं वोसिरामि, अध्ययन-६, सूत्र-१०५, (पू.वि. अध्ययन-४ भाव-१६ अपूर्ण से है.) आवश्यकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिमसूत्र अपूर्ण तक लिखा है., वि. टबार्थ क्रमशः नहीं है.) २. पे. नाम. नमोत्थुणसूत्र, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. शक्रस्तव, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: नमुत्थुणं अरिहंताणं; अंति: संपाविउ कामस, गाथा-१०. ३. पे. नाम. अब्भुट्ठिओमिसूत्र सह टबार्थ, पृ. १२आ, संपूर्ण. गुरुवंदनसूत्र-श्वे.म.पू., संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: इच्छा० संदि० अब्भु; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. गुरुवंदनसूत्र-श्वे.मू.पू.-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इ० तुह्याराइ छाइ सं०; अंति: मि० माहरो दु० माठोक ते. ४. पे. नाम, पच्चक्खाण आगार यंत्र, पृ. १३अ, संपूर्ण. __ आवश्यकसूत्र-पच्चक्खाण आगार यंत्र, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ५. पे. नाम. आवश्यकसूत्र के पदसंपदालघुगुरु अक्षरादि संख्या, पृ. १३अ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-पदसंपदालघुगुरु अक्षरादि संख्या, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नमोकार इरियावही; अंति: आलोयणा खामणा. ६. पे. नाम. ६ ठाण-असंख्यातअनंत विचार यंत्र, पृ. १३अ, संपूर्ण. असंख्यात अनंत विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०१६७७. (#) जंबुगुणरत्नमाला, संपूर्ण, वि. १९५८, कार्तिक कृष्ण, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. ५१, ले.स्थल, भीलाडा, प्रले. श्रावि. सुंदरी; निदातासा. सणगाराजी महाराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:जंबुच०., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११,१२-१५४२६-३७). जंबूस्वामी चरित्र, श्राव. आणंद जेठमल, मा.गु., पद्य, वि. १९२०, आदि: (अपठनीय); अंति: सेवो थायसे कल्यांन ए, ढाल-३५. १०१६७८. आलोयणा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. हुंडी:आ०., दे., (२४४११, १५४४४). आलोयणा विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नमोकार १ गुणनो; अंति: किया ध्यान उपजे आनंद हे. १०१६७९. अष्टफलकथानिक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८४७, वैशाख शुक्ल, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. २८, ले.स्थल. जालोरदुर्ग, प्रले. मु. कुसला (गुरु पं. गयंदसागर); गुपि.पं. गयंदसागर (गुरु पं. आगमसागर गणि); पं. आगमसागर गणि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. श्री पार्श्वनाथजी प्रसादात, श्री माहावीरजी प्रसादात्., जैदे., (२४.५४१०.५, १५४३४-३८). श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: देवपूजादयादानं तीर्थ; अंति: मृत्यु जन्म फलाष्टकं. श्लोक संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत भगवंत वीतराग; अंति: इहलोक सुक्खं परलोक सुखं. १०१६८० (+) ऋषभदेव धवल, संपूर्ण, वि. १६४६, माघ शुक्ल, १, सोमवार, मध्यम, पृ. १२, प्रले. मु. धना (गुरु ग. रत्नमेरु, अंचलगच्छ); गुपि. ग. रत्नमेरु (गुरु पंन्या. विवेकमेरु, अंचलगच्छ); पंन्या. विवेकमेरु (गुरु मु. विद्याशील, अंचलगच्छ); राज्ये आ. धर्ममूर्तिसूरि (अंचलगच्छ); पठ. श्रावि. हठश्री, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२४.५४१०.५,१३४३४-३८). For Private and Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन विवाहलो, म. गणनिधानसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: शासनदेवीय पाय पणमेवीय मझ; अंति: थाइ बोलि सेवक इम मुदा, ढाल-४४, गाथा-२४३. १०१६८१ (+#) पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.७,प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३१-३५). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती कूष्मांडिनी; अंति: संज्ञा पाशकेवली, श्लोक-१९६. १०१६८२. (+) पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.८, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१०.५, ११४३०-३९). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती कूष्मांडिनी; अंति: कुलीनाय हितायते, श्लोक-१८४. १०१६८५ (+#) विक्रमखापरा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही __ फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११, १७४४०). खापराचोर चौपाई, उपा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: सरसति माता समरिए नित; अंति: मतिमंदिर सुख थाइ, ढाल-१७. १०१६८६. (+) श्रीपाल चतुप्पदी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६३, प्र.वि. हुंडी:श्रीपाल., संशोधित., दे., (२३.५४१०.५, १०४२५-३२). श्रीपाल रास-बृहद्, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४०, आदि: अरिहंत अनंतगुण धरीये; अंति: पातकवन लुणिज्ये रे, ढाल-४९, गाथा-८६१. १०१६८७. (#) विक्रमादीत चउपइ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-४(१ से ३,१०)=८, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १५४३१). विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अंति: अभयसोमे० काजे कही, ढाल-१७, ग्रं. ३२५, (पू.वि. ढाल-४ दोहा-२ अपूर्ण तक व ढाल-१२ गाथा-९ अपूर्ण से ढाल-१४ गाथा-२ अपूर्ण तक नहीं है.) १०१६८८ (+#) पंचप्रतिक्रमणसूत्र, १२४ अतिचार विचार व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४, कुल पे. १७, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १६x४३). १. पे. नाम. पंचप्रतिक्रमणसूत्र-राईय, देवसीय व पाक्षिक प्रतिक्रमण संग्रह, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर*, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: इच्छाकारेण संदिसह; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. १२४ अतिचार विचार-श्रावकव्रत, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.. मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानाचारना आठ अतिचार; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ३. पे. नाम. त्रिभंगीसवैयामय-चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, पृ. ४अ-६अ, संपूर्ण. २४ जिन नमस्कार-त्रिभंगीसवैयामय, आ. पार्श्वचंद्रसरि, ब्र., पद्य, आदि: गुनह गंभीर अचल; अंति: नरबंद तासुपयदासै, गाथा-२५. ४. पे. नाम, एकादसी स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बैठा भगवंत; अंति: कहै कह्यो द्याहडी, गाथा-१३. ५. पे. नाम. आदिनाथ स्तवन-चैत्रीपूनम, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: पय पणमी रे जिणवरना; अंति: सुपरइ साधुकीरति इम कहै, ढाल-३, गाथा-१३. ६.पे. नाम. चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, पृ. ७आ, संपूर्ण.. प्रा.,रा.,सं., गद्य, आदि: प्रथम चउखुणी गूंहली आददेई; अंति: एवं दुतीय पूजा एवं ५ पूजा. ७. पे. नाम. चतुर्दशगुणस्थानवृद्धि स्तवन, पृ. ७आ-९अ, संपूर्ण. सुमतिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सुमतिजिणंद सुमति; अंति: कहे इम मुनि धरमसी, ढाल-६, गाथा-३४. For Private and Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org ८. पे. नाम. पचक्खाणविधि स्तवन, पृ. ९अ १० अ. संपूर्ण. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमु; अति: रामचंद्र तपविधि भणें, ढाल -३, गाथा- ३३. ९. पे. नाम. अठावीसलब्धि स्तवन. पू. १०अ ११अ संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- २८ लब्धिविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: प्रणमु प्रथम जिणेसरु; अंतिः प्रगट ग्यान प्रकाश, ढाल -३, गाथा-२६. १०. पे. नाम. २० स्थानकतप स्तवन, पृ. ११ अ- १२अ, संपूर्ण. मु. वखतचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: वीशस्थानक तप सेवीयै; अंतिः भावै० वसतो मुनिवरो, ढाल -३, गाथा-१९. ११. पे नाम, आलोयणा स्तवन, पृ. १२अ १३अ, संपूर्ण तप४. १४. पे नाम, प्रश्नोत्तर संग्रह आगमिक, पृ. १८ आ-२१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि नवकार माहे पहिला पद अंति दश सीझे भगवतीसूत्र माहे, प्रश्न- ५५. १५. पे नाम, प्रतिमासंबंधी बोल विचार, पृ. २१ आ-२३आ, संपूर्ण मा.गु., गद्य, आदि श्रावकनां बारव्रत है, अंति अने श्रीवीतराग अंतरथी. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन स्तवन-अतिचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७५४, आदि: ए धन सासन वीर जिनवर; अंतिः कीधो चउपने फलवधिपुरे, डाल-४, गाथा- ३०. १२. पे. नाम. चोवीसदंडक बृहत्स्तवन, पृ. १३आ-१४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: पूर मनोरथ पासजिणेसर; अंतिः गावै धरमसी सुजगीस ए. डाल-४, गाथा-३४. १३. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण का वालावबोध, पू. १५अ १८आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व १ अजीवतत्त; अंति: ग्यान१ दरसण २ चार३ १६. पे नाम, जिनपंजर स्तोत्र, पृ. २३आ-२४आ, संपूर्ण. आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह, अति श्रीकमलप्रभाख्यः श्लोक-२५. १७. पे. नाम, मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, पृ. २४आ, संपूर्ण. ७९ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदिः ॐ नमो चक्रेश्वरीदेवी चक्र; अंति: गुरु आम्नाय प्रदत्तः. १०१६८९. (+) पद्मिनी चरित्र, संपूर्ण, वि. १७५३, भाद्रपद कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ३९, ले. स्थल. रत्नपुर, प्रले. पं. हेमहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पद्मिनीचोपा. श्री शांतिजिनप्रसादात्., संशोधित., जैदे., ( २४४१०.५, १२X३६). गोराबादल रास, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, वि. १७०७ आदि श्रीआदिसर प्रथम जिन; अंति: अनुमानें लालचंद कहइ, खंड-३ ढाल-३९, गाथा- ८१६, ग्रं. ११५७. १०१६९० (+) थूलभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, प्रले. मु. लब्धिकुशल (गुरु पं. जयप्रमोद); गुपि. पं. जयप्रमोद (गुरु ग. लालकीर्ति गणि) ग. लालकीर्ति गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: थूलभ, पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे., (२४.५x१०.५, १२-१५X३०-३५). स्थूलभद्र सज्झाय, ग. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि सारद सरदचंद्र करि निर्मल; अति: कुशललाभ० परम आनंद पावै, गाथा- ३७. For Private and Personal Use Only १०१६९३. नंदीसूत्र - स्थविरावली, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैदे. (२४४११ १७४४८). नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी विआणओ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३६ अपूर्ण तक है.) १०१६९४ योगचिंतामणि- नाडीपरीक्षा से ज्वरप्रकरण, अपूर्ण, वि. १८९९, श्रावण कृष्ण, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ८-२ (१ से २) = ६, प्र. वि. हुंडी: नाडीपरीक्षा., जैदे., (२४X११.५, १५x२५). יי Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. नाडीपरीक्षा-३६ से __ है., वि. पाठांतर युक्त. पत्रांक-३अ पर मूत्रपरीक्षा का प्रारंभिक श्लोक मूल के मंगलाचरण से मिलता है.) १०१७०४. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२५४११.५, ८४३०). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. १०१७०५. (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१(६)=६, प्र.वि. पत्रांक की किनारी जली हुई होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिए गए हैं., संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२४.५४११, ४४३३). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-२७ अपूर्ण से गाथा-३५ अपूर्ण तक व गाथा-४३ से नहीं है.) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व १ अजीवतत्व २; अंति: (-), पू.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं. १०१७०६ (+#) आत्मप्रबोध व आत्मप्रबोध की अनुक्रमणिका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७४-६(१०७,११९,१३४,१४१,१५५,१७२)=१६८, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:आत्मप्रबोध., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १५४३७-४२). १. पे. नाम. आत्मप्रबोध, पृ. १आ-१७०आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., वि. १८६८, आश्विन शुक्ल, १०, रविवार, ले.स्थल. सुहाई, प्रले. मु. खुस्याला (बृहत्खरतरगच्छ); गुभा. पं. गुणविलास (बृहत्खरतरगच्छ); मु. ऋद्धिविलास (गुरु ग. अमरसिंधुर, बृहत्खरतरगच्छ); पं. विजयाणंद मुनि (बृहत्खरतरगच्छ); पं. सत्यनंदन (बृहत्खरतरगच्छ); पं. दयानंदन; पं. उदयरंग (गुरु वा. सुमतिधीर, खरतरगच्छ); गुपि. ग. सुमतिधीरज (गुरु उपा. ज्ञानविलास, खरतरगच्छ); उपा. ज्ञानविलास (गुरु पंन्या. ज्ञानविजय, खरतरगच्छ); पंन्या. ज्ञानविजय (गुरु मु. ज्ञाननंदन, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. अतिविस्तृत. आ. जिनलाभसूरि, सं., प+ग., वि. १८३३, आदि: अनंतविज्ञानविशुद्ध; अंति: ग्रंथवरात्मबोधः, प्रकाश-४, श्लोक-१८१, (प.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) २. पे. नाम. आत्मप्रबोध की बीजक, पृ. १७१अ-१७४अ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., वि. १८६८, आश्विन शुक्ल, १३, सोमवार, ले.स्थल. सुहाई, प्रले. पं. सत्यनंदन (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा . आत्मप्रबोध-बीजक, सं., गद्य, आदि: तत्राद्य प्रकाशे यथा; अंति: अष्टकर्मोपगमोद्भवा० गणाः, (प.वि. द्वितीय प्रकाश की अनुक्रमणिका नही है. अंतिम ४ विषय दिये हैं.) १०१७०८. (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-५(१ से ५)-५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:नवतत्त्व., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १७४३९). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ से गाथा-२१ अपूर्ण तक हैं.) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. पुण्यतत्त्व अपूर्ण से आश्रवतत्त्व में १६ कषाय विवरण अपूर्ण तक है.) १०१७११, (+) कल्पसूत्र सह टीका व टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०५-५९(१ से ४४,६१,६३ से ६८,७६ से ७७,८०,८५ से ८९)=४६, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्रपत्रम्., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५४११.५, ५-१४४३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सिद्धार्थराजा द्वारा स्वप्नफल कथन प्रसंग अपूर्ण से महावीरजिन संपदा वर्णन अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-टीका *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). कल्पसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०१७१२. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९६०, भाद्रपद कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ४२, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. सीताराम, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५, १३४३७-४३). For Private and Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: भुज्जो उवदंसेइ त्तिबेमि, व्याख्यान-९, ग्रं.१२१६. १०१७१३. (+) महानिशीथ-अध्ययन ५, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१-१(१)=३०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ११४३९). ___ महानिशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., उद्देश-१ अपूर्ण से उद्देश-२४ अपूर्ण तक है.) १०१७१४. (+#) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३-२(११ से १२)=११, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, ११४३७). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३५ अपूर्ण से गाथा-१६६ अपूर्ण तक व गाथा-१८६ से नहीं है.) १०१७१५. शीयलनववाड ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.५, प्र.वि. हुंडी:सीयलवाड., दे., (२४४११.५, ११४३५). शीयलनववाड ढाल, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: (१)परणमु पंचप्रमेसटीनै सीध, (२)प्रणमूं पंच परमेसरू; अंति: अगरचंद० रुडा वोल सोभागी, ढाल-१०. १०१७१६. (#) धर्मबावनी, अपूर्ण, वि. १९०३, मध्यम, पृ.८-१(१)=७, प्रले. श्राव. ओटाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ध्रमसी., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४११, १२४२९-३५). अक्षरबावनी, म. धर्मवर्धन, पुहिं., पद्य, वि. १७२५, आदिः (-); अंति: नाम धर्मबावनी, गाथा-५७, (पृ.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) १०१७१७. बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९४५, आषाढ़ शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १०-९(१ से ९)=१, प्रले. आबामाडण खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:बोलनापाना., दे., (२५४११.५, १५४४०). बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: पाले सदगुरुनो मार्ग, (प.वि. मात्र अंतिम पत्र है., अंतिम पाठांश __"मुक्तिनी वा बाकरे अने तीर्थंकर" पाठ से है.) १०१७१८. (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५६-५०(१ से ११,१५ से ५३)=६, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १०४२८-३२). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-५०, (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., गाथा-१८ से हैं.) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बालावबोध', रा., गद्य, आदि: (-); अंति: माटें बिहं बराबरि पिण छै, (पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., गाथा-२८ से है बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०१७१९ (+) चंद्रकुमार वार्ता, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १०४२३-३०). चंद्रकुमार वार्ता, मा.गु., पद्य, आदि: समरु सरसती मात मनाय; अंति: सोहामणी मुरख मन रीझाअ, गाथा-१२५. १०१७२० (+#) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:क्षे., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १३४२९). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपय पईट्ठि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७१ अपूर्ण तक है.) १०१७२१. (+#) कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४९-१३९(१ से १३९)=१०, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (११.५४१०, ११४२०-२४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. आदिजिन चरित्र सूत्र-२११ से सूत्र-२१२ तक कल्पसूत्र-टीका *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०१७२२. (#) संबोधसत्तरी प्रकरण, गौतम कुलक व ३४ अतिशय गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४११, १४४३८). For Private and Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. संबोधसत्तरी प्रकरण, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोयगुरु लोयालोय; अंति: जयसेहर नत्थि संदेहो, गाथा-७२. २. पे. नाम, गौतम कुलक, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. __प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवंति सुखं लहंति, गाथा-२०. ३. पे. नाम. ३४ अतिशय गाथा, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: रय रोयसोयरहिओ देहो धवला; अंति: सव्वं जिणंदाण होइ इमा, गाथा-१०. १०१७२३. आनंदघन गीतबहोत्तरी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(८)=८, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४११, १०४२६). आनंदघन गीतबहोत्तरी, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: क्या सोवे उठि जाग बाबरे; अंति: (-), (पू.वि. पद-२१ अपूर्ण तक व पद-२२ अपूर्ण से पद-२४ अपूर्ण तक है.) १०१७२५. (+#) २४ जिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४४११, १२४३०-३३). २४ जिन स्तुति, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जिणेसर केसर चरचि; अंति: (-), (पू.वि. "शांतिजिन स्तुति" अपूर्ण तक है.) १०१७२७. (+) सूक्तमाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४११.५, १०४२८). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलकुशलवल्लि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-७१ अपूर्ण तक है.) १०१७३२. शनिश्चरदेव छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, प्र.वि. पत्र १४२, जैदे., (३०.५४१२, २३४२३). शनिश्चरदेव छंद, क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहिनर असुर सुरांपति; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१० तक लिखा है.) १०१७३३. (+) पंचपरमेष्टि आरती व दोहा श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (१८.५४१२, १३४२३). १.पे. नाम. पंचपरमेष्टि आरती, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. राम ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: असी आरती करो मन मेरा; अंति: तो नरमुक्तिना पंय ज पावो, गाथा-१५. २. पे. नाम. दोहा श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तक, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नसा जाइ नसा जोणी; अंति: बापडा मूलम ध्याती०. १०१७३४. औपदेशिक लावणी व आध्यात्मिक पद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (१८.५४१२, १३४२४). १.पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. २अ, अपर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. नदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: जौत सदा सुखदाइ रे, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मु. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: मे नित नमाउं सीस साध; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) १०१७३८ (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७९८, माघ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १६१, ले.स्थल. सादडीनगर, प्रले. ग. विवेकविजय (गुरु पं. श्रीविजय); गुपि.पं. श्रीविजय (गुरु पं. राजविजय); पं. राजविजय (गुरु पं. रूपविजय); पं. रूपविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (६२) मंगलं लेखकानां च, जैदे., (२५.५४११, १०-१४४२९-४०). For Private and Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि नमो अरिहंताणं नमो अंतिः भुज्जो उवदंसेइ तिबेमि, व्याख्यान- ९, ग्रं. १२९६, संपूर्ण कल्पसूत्र-टबार्थ", मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानं जिनं अति: एतलइ गुरुक्त जांणाविउ, (संपूर्ण, वि. १७९८, माघ शुक्ल, १४) कल्पसूत्र त्र - बालावबोध, मु. खीमाविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७०७, आदि: (१) प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२) इहा क्षेत्रे चोमासुं अंति: (-), (पूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, सांवत्सरी क्षमापना तक लिखा है.) १०१७४२. (+) जन्मपत्री पद्धति, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५३ - ३ (४८, ५०, ५२) =५०, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी : जन्मपद्धति., संशोधित, जैदे., ( २६ ११.५, १५X३९-४५). जन्मपत्री पद्धति, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि प्रणम्य सारदां, अंति (-) (पू.वि. शुक्र में शन्यंतर्दशाफल अपूर्ण से द्रेष्काण विचार अपूर्ण, नवांशविचार श्लोक- ९ से षड्वर्ग फल अपूर्ण तक व अहर्गणना विचार से नहीं है.) १०१७४८. (+#) प्रत्याख्यान भाष्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६२८, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, रविवार, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल. विक्रमनगर, प्र. मु. थिरपाल (गुरु ग. पुण्वसार, खरतरगच्छ); गुपि. ग. पुण्यसार (गुरु ग. उदयप्रमोद, खरतरगच्छ); ग. उदयप्रमोद (गुरु ग. गजधर्म, खरतरगच्छ); ग. गजधर्म (गुरु ग. हर्षमंदिर, खरतरगच्छ); ग. हर्षमंदिर (गुरु ग. शुभदत्त, खरतरगच्छ); ग. शुभदत्त (गुरु ग. पचमेरु, खरतरगच्छ); ग. पद्यमेरु (गुरु आ जिनभद्रसूरि, खरतरगच्छ ) आ. जिनभद्रसूरि (खरतरगच्छ ) राज्येगच्छाधिपति कल्याणमल्ल विजय (खरतरगच्छ); पठ. सा. धर्मसिद्धि (गुरु सा. विनयसिद्धि, खरतरगच्छ ); गुपि. सा. विनयसिद्धि (गुरु सा. कल्याणसिद्धि, खरतरगच्छ); सा. कल्याणसिद्धि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ टीकादि का अंश नष्ट है, जै. (२६x१०.५, ६४३५). प्रत्याख्यान भाष्य, प्रा., पद्य, आदि: भावि अईयं कोडि अहियं; अंति: सासय सुक्खं अणाबाहं, गाथा-५६. प्रत्याख्यान भाष्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि भाविपच्चक्खाण अतीत अंतिः मोक्षरड़ विषड़ आबाधारहित. १०१७४९. (+) भावारिवारण स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६x११, १५-१६x४६-५०). महावीरजिन स्तव- समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा. सं., पद्य, आदि भावारिवारणनिवारणदारु; अति , 19 " जिनवल्लभ० दयालो मयि, श्लोक-३०. महावीरजिन स्तव- समसंस्कृतप्राकृत टीका, उपा. जयसागर गणि, सं., गद्य वि. १४६५, आदि भावारयः क्रोधादयः कषाया अंति देयं भवतीति भावार्थः १०१७५० (+#) उपासकदशांगसूत्र, १० श्रावक नाम पत्नी व नगरी विचार व श्रावक ११ प्रतिमा विचार, अपूर्ण, वि. १५वी, मध्यम, पृ. ७७-१(१)=७६, कुल पे. ३, क्रीत. मु. लाधा (गुरु मु. थोभण); गुपि. मु. थोभण (कडुंयामतीगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में "ए प्रत टका १६ वती कडूयमतीगछेश सा. लाधा थोभण सीस सं १७६० लीधी छे ज्ञानने दोकडे पोतानी निश्राप छे" ऐसा उल्लेख है., संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४१०.५, ५X३७-४०). १. पे. नाम. उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, पृ. २अ-७६आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १४९८, माघ शुक्ल, २, शनिवार. ८३ उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन- १०, ग्रं. ८१२, (पू.वि. अध्ययन- १ "गाहावइ कुंडकोलीए" पाठ से है.) उपासक दशांगसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति बइ दिवसे श्रुतांग तिमज. २. पे. नाम. १० श्रावक नाम पत्नी व नगरी विचार, पृ. ७७अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: वाणिजयांम चंपा चंपा; अंति: बिहुनइ उपसर्ग न हुआ, (वि. अंत में उपाध्याय कनकसुंदर द्वारा संवत्-१६६३ में रचित उपासकदशांगसूत्र टीकार्थ का उल्लेख किया है.) ३. पे. नाम. श्रावक ११ प्रतिमा विचार, पृ. ७७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: एक मासनी प्रतिमाइ मास लगि; अंति: (-), (पू.वि. आठ मासी प्रतिमा वर्णन अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०१७५२. (+) भक्तामर स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७०५, वैशाख शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. २०, कुल पे. ४, ले.स्थल. लाभपुर, प्रले. मु. लब्धकीर्ति शिष्य (गुरु मु. लब्धकीर्ति); गुपि. पं. लब्धकीर्ति (गुरु उपा. कमललाभ); उपा. कमललाभ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १९४६७). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह सुखबोधिका टीका, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि: युग्मं किल इति सत्ये किल; अंति: उपैति प्राप्नुवंति. २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, पृ. ४आ-१०अ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, ग. चारित्रवर्द्धन, सं., गद्य, आदि: नत्वा वामेयपादाब्जरो; अंति: (१)निचयः समूहो येषां ते तथा, (२)टीकां चक्रे मनोहरां. ३. पे. नाम. भावारिवारण स्तोत्र सह टीका, पृ. १०अ-१४आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: विशदां दृष्टिं दयालो मयि, श्लोक-३०. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत-टीका, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: प्रत्ययस्ताच्छीलकः. ४. पे. नाम, महावीरदेव चरित्र स्तोत्र सह टीका, पृ. १४आ-२०आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरियरयसमीरं मोहपंकोहनीरं; अंति: सया पायप्पणामो तुह, गाथा-४४. दुरिअरयसमीर स्तोत्र-टीका, ग. साधुसोम, सं., गद्य, वि. १५१९, आदि: वर्द्धयतु वर्द्धमानः; अंति: (१)कवेर्नामेति वृत्तार्थः, (२)प्रवाच्यमाना चिरं जयतु. १०१७५४. (+#) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ८४३४). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२१ अपूर्ण तक है.) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमिनइ अरिहंतसिद्धादिकनइ; अंति: (-). १०१७५५. (#) प्रत्याख्यानसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ३४३१). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: इच्छकारि भगवन पसाउगरि०; अंति: (-), (पू.वि. "सव्वसमाहिवत्तिआगारेणं देशावगा" पाठांश तक है.) प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सूर्य उग्या पछी; अंति: (-). १०१७५६ (+#) कल्पसूत्र सह कल्पकिरणावली टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अन्य. मु. चिमनसागर (गुरु ग. फतेंद्रसागर); गुपि. ग. फतेंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४१०.५, ६-१८४४६-४९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-२३७ अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागर गणि, सं., गद्य, वि. १६२८, आदि: प्रणम्य प्रणताशेष; अंति: (-). १०१७५७. (#) सूत्रकृतांगसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४९-१(२)४८, प्र.वि. हुंडी:सूयगडा०.अंगसूत्र०., पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४१०.५, ७४३२-३८). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बज्झिज्जति तिउट्टिज; अंति: (-), (प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-१७ अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ८५ सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: बुज्झेज्ज कहता जाणइ; अंति: (-), पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०१७५८. गीत व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.७, कुल पे. १४, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्र.वि. हुंडी:सि०., कुल ग्रं. १६६, दे., (२५४११, १०४३७-४०). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-प्रमाद परिहार, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. म. मेघराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: विनय करीजे रे भवियण; अंति: लोके वली पभणे ऋषि मेघराज, गाथा-११. २. पे. नाम, मोहनिवारण गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. म. मेघराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: मोहें वाह्यो प्राणीयो रे; अंति: मेघराज आपणपु इम तारि, गाथा-११. ३. पे. नाम. अवज्ञा परिहार गीत, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: कर्म पोते हुइ जे नरने; अंति: मेघराज० सुख एह उपाय, गाथा-९. ४. पे. नाम. अभिमान परिहार गीत, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: वचन विच्यार खमो रे भाइ मन; अंति: मेघराज० पारि उतारो, गाथा-९. ५. पे. नाम, क्रोध परिहार गीत, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. म. मेघराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध कषाये पूरो प्राणियो; अंति: मेघराज० सुख भरपूर, गाथा-९. ६.पे. नाम. प्रमाद परिहार गीत-आठमद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: आठ मद वाह्यो रे केहनि; अंति: पभणइ ऋषि मेघराजो रे, गाथा-९. ७. पे. नाम. कृपणता परिहार गीत, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: कृपण पणाथी बीहा तो न जाइ; अंति: लहै सुख विस्तारो रे, गाथा-९. ८. पे. नाम. भय परिहार गीत, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. म. मेघराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धांत सुणेवा काजो; अंति: मेघराज इण परि भणीइ, गाथा-७. ९. पे. नाम. शोक परिहार गीत, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: मोहनी कर्म उदय कारणि; अंति: पभइ ऋषि मेघराज रे, गाथा-९. १०. पे. नाम. अज्ञान परिहार गीत, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: मुरख भावइ न हु करइ रे; अंति: समरो श्रीभगवंत रे, गाथा-११. ११. पे. नाम. विक्षेप परिहार भास, पृ. ६अ, संपूर्ण. ___ विक्षेप परिहार गीत, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: घर घरणी चिंतार सिंजी; अंति: छूटसि जिनवर नामि, गाथा-७. १२. पे. नाम, कतहल परिहार गीत, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: हास्य कतुहल वाह्योजी; अंति: ध्यावउ धर्म सदैव, गाथा-९. १३. पे. नाम. १३ काठिया सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: रमणी रामति रमतो; अंति: जिम पामो सुख भरपूर, गाथा-८. १४. पे. नाम. तेरे काठिया भास, पृ. ७आ, संपूर्ण. १३ काठिया भास, म. मेघराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: आलस मोह निवारीयै अवज्ञानइ; अंति: मेघराज०तुम्हे कोडि कल्याण, गाथा-७. १०१७५९ (+#) पंचतीर्थंकर स्तोत्र, चतुर्विंशति तीर्थंकर स्तोत्र व पार्श्वनाथ स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २०, कुल पे. १३, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, ११४३९). १. पे. नाम, पंचतीर्थंकर स्तोत्र, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. पंचतीर्थंकर स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७००, आदि: मात वामा भणइ आवो पूत रे; अंति: सेवक विनय मनि आणंद ए, गाथा-३३, (वि. गाथाक्रम ५+२८ दिया है.) २.पे. नाम, पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपास मूरति मनोहारी; अंति: मेरे मंगल केलि करारी, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 5. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम, चतुर्विंशति तीर्थंकर स्तोत्र, पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण. २४ तीर्थजिन स्तोत्र, उपा. विनयविजय, मा.ग., पद्य, वि. १६८६, आदि: प्रणमि सरसति चरण कमल भगति; अंति: जेह पभणइ तेह पामइ सिवतिती, ढाल-४, गाथा-२८. ४. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन संप्रति साचउ राजा; अंति: देयो तुम्ह पाए सेव रे, गाथा-९. ५. पे. नाम. बंभणवाडिवीर स्तवन, पृ. ५आ-७अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समरवि समरथ सारदा; अंति: श्रीकमलकलससुरीसर सीस, गाथा-२१. ६. पे. नाम, चउवीस तीर्थंकर स्तवन, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमी पाय; अंति: मुणिंद तास सीस पभणइ आणंद, गाथा-२९. ७.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ८अ-९अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ घरि आवइ रे घरि आवो; अंति: रे विनय० भजय भगवंत, गाथा-१८. ८. पे. नाम. सीमंधरस्वामिविनती स्तवन, पृ. ९अ-१०अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार ए हुं; अंति: प्रभु पूरि आस्या मनतणी, गाथा-१८. ९.पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ.१०अ-१२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-सिद्धांतहंडीगर्भित, म. चंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परम कृपाल कलानिलउजी उपशम; अंति: चंद्रविजय शिव सुख करो, गाथा-४४. १०.पे. नाम. नेमिनाथ रास, पृ. १२अ-१५अ, संपूर्ण. नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: शारद पाए प्रणमी करी नेमि; अंति: सुप्रसन्न नेमिजिणंद कि, गाथा-६२. ११. पे. नाम. दानशीलतपभावना रास, पृ. १५अ-२०अ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समृद्धि सुप्रसादो रे, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: वह मुगति कहइ सुणउ सामी; अंति: भविक नइ भगति छइ सारी जी, गाथा-६. १३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २०आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. __ वा. भावविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात पसाउ लइ रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) १०१७६०. (4) पार्श्वचंद्रसूरि गुरुगुण भास व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. १२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, १२४२८-३२). १.पे. नाम. पासचंद्रसूरीश्वरजी री भास, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वचंद्रसूरि भास, आ. पद्मचंदसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७७५, आदि: श्रीसूरीसर सुरतरु श्रीपास; अंति: श्रीपद्मचंदसूरी भासो रे, गाथा-९. २. पे. नाम. पासचंदसूरिजी भास, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वचंद्रसूरि भास, मु. किसन, रा., पद्य, आदि: श्रीपासचंदसूरी राया थारा; अंति: समस्या नव निधि पावै हो, गाथा-६. ३. पे. नाम, पासचंदसूरि भास, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ८७ पार्श्वचंद्रसूरि भास, आ. लब्धिचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपासचंदसूरी सक्यूँ; अंति: इम कहइ सदगुरु समस्या सहाई, गाथा-४. ४. पे. नाम. पार्श्वचंद्रसूरि भास, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. ठाकुर ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह ऊठी प्रणमुं सदा हो; अंति: अहनिसें हो बंछित फलदातार, गाथा-५. ५. पे. नाम. पार्श्वचंद्रसूरि गुरुगुण भास, पृ. २आ, संपूर्ण. गुरुगण भास, मु. कर्मचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७९२, आदि: श्रीसूरीसर पय नमी; अंतिः सद्गुरुना गुण वारंवार, गाथा-९. ६. पे. नाम. पार्श्वचंद्रसूरि गुरुगुण भास, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. लाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरु साहिब वंदियेंजी; अंति: जी कांई लाभनें सुख जयकार, गाथा-८. ७. पे. नाम. पार्श्वचंद्रसूरि गुरुगुण भास, पृ. ३आ, संपूर्ण.. ___ मु. रामदास ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सिवसुखदायक वीनकुं प्रणमी; अंति: रामदास० सिवरमणी मनुहार रे, गाथा-६. ८. पे. नाम. पार्श्वचंद्रसूरि गुरुगुण भास, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मु. प्रेमचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जयकारी मेरे सद्गुरुजी०; अंति: माला श्रीपासचंदसूरीसरजी, गाथा-७. ९. पे. नाम. पार्श्वचंद्रसूरि गुरुगुण भास, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. प्रेमचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरुना गुण गाइ० सायर; अंति: ऋद्धि वृद्धि सुखकारो रे, गाथा-९. १०. पे. नाम. पार्श्वचंद्रसूरि गुरुगुण भास, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण.. ___ पार्श्वचंद्रसूरि छंद, मु. मेघराज, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: शांति जिणंद प्रणाम करी; अंति: मेघराज भणे० सुख लाभ घणि, गाथा-११. ११. पे. नाम. पार्श्वचंद्रसरि गरु आरती, पृ. ५आ, संपूर्ण. म. लाभ, मा.गु., पद्य, आदि: जै जै आरति सद्गुरुजी की; अंति: लाभ सदा सुख संपद पावै, गाथा-७. १२. पे. नाम. पार्श्वचंद्रसूरि गुरुगुण स्तुति, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठी सद्गुरु चरण नमउ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) १०१७६१ (+) इग्यार बोल विचार, जिनप्रतिमा सज्झाय व तीर्थंकर गोत्र उपार्जक नाम, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ.५, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:११ बोल. प्रत के अंत में "श्रीपार्श्वचंद्रसूरि हस्ताक्षराल्लिख्यते" ऐसा लिखा है., संशोधित., जैदे., (२५४११, १७-२०४३९). १. पे. नाम. इग्यार बोल विचार, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण, वि. १७१२, फाल्गुन शुक्ल, १३, प्रले. मु. पूंजा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. ११ बोल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सुत्रमांहि जिहां; अंति: राखिवउ सुद्ध भाषिवउ. २. पे. नाम. जिनप्रतिमा सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण, पठ. मु. परमानंद ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, पे.वि. अंत में धर्मास्तिकाय ५२ स्थान विचार दिया गया है. जिनप्रतिमावंदनफल स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर जिनप्रतिमा; अंति: जंपइ मुगतिरमणि वसि आणउ जी, गाथा-१०. ३. पे. नाम. महावीरजिन तीर्थे तीर्थंकर गोत्र उपार्जक नाम, पृ.५आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रेणिकराजा१ सुपार्श्व२; अंति: सुलशा८ रेवतीश्राविका९. १०१७६२. सामुद्रिकशास्त्र सह बालावबोध व हस्तरेखा लक्षण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, १४४४९). १. पे. नाम. सामुद्रिकशास्त्र सह बालावबोध, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सामद्रकपत्र. सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यं सर्वज्ञं; अंति: चैव संभोगे परिवर्जयेत्, अध्याय-३६, श्लोक-२७१, (वि. श्लोकक्रम में वैविध्य मिलता है.) सामुद्रिकशास्त्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (वि. बालावबोध क्रमशः नहीं मिलता है.) २. पे. नाम. हस्तरेखा लक्षण, पृ. ८अ-९आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: पणमि जिणमसियगुणं गयरागदोस; अंति: नरं परखाऊण वयंदिज्जा, गाथा-५६. For Private and Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०१७६५ (+) औषधवैद्यक संग्रह व योगचिंतामणि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३४, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:योगचिंतामणिः., संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४३५-४२). १. पे. नाम. औषधवैद्यक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. योगचिंतामणि, पृ. १आ-३४आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: यत्र वित्रासमायांति; अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-५ घृताधिकारगत उदररोग निदान अपूर्ण तक है.) १०१७६६. जातकपद्धति सह टबार्थ व उनत विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २, ले.स्थल. पंचपदरा, प्र.वि. हंडी अवाच्य है. श्रीसुमतिनाथजी प्रसादात्., दे., (२५४११, ५-११४३८). १.पे. नाम. जातकपद्धति सह टबार्थ, पृ. १अ-१२अ, संपूर्ण, पे.वि. कृति के अंत में महादशा नक्षत्र विचार संबंधी श्लोकों का उल्लेख है. जातकपद्धति, म. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदि: प्रणम्य पार्श्वदेवेशं; अंति: एषा जातकदीपिका, श्लोक-९३, (वि. १९१३, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, सोमवार, प्रले. मु. राजकीर्ति; पठ. मु. कनककीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य) जातकपद्धति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः प्रणाम करीनइ श्रीपार्श्व; अंति: जातिकदीपका रचिता, (वि. १९१३, ज्येष्ठ शुक्ल, १, रविवार, प्रले. ग. सुखशील; मु. राजकीर्ति; पठ. मु. कनककीर्ति; अन्य. श्राव. छोगमल चुनालाल, प्र.ले.पु. मध्यम) २. पे. नाम. लग्नसाधनफल विधि, पृ. १२आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सूर्य अस्त सूर्य उदय जन्म; अंति: करणीओ चतुर्थ भाव आवै. १०१७६७. (+#) विक्रमादैत्य नवसैकन्या चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, पठ. मु. कुशला ऋषि; अन्य. मु. खुसाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नवसैकन्या.चौ., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १८४४४). विक्रमादित्य चौपाई, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: पुरिसादाणी प्रणमीइं; अंति: तेहनै सदा होवे कल्याण, ढाल-२७, गाथा-५८५. १०१७६८. (+) चतुर्विंशति तीर्थाधीश्वर गीत संग्रह, अपूर्ण, वि. १७३०, कार्तिक कृष्ण, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. ७-१(४)=६, ले.स्थल. बरहानपुर, प्रले. उपा. सुंदरसौभाग्य (गुरु ऋ. रंगसौभाग्यजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १३४३०-३३). २४ जिन गीत, उपा. इंद्रसौभाग्य, मा.ग., पद्य, आदि: जय परमेसर ऋषभजिणेसर अनुपम; अंति: भोगवई पामइं परमानंद रे, (पू.वि. वासुपूज्यजिन गीत से धर्मनाथ गीत गाथा-३ अपूर्ण तक नहीं है.) १०१७६९ (#) सारस्वत धातुपाठ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-२(२,४)=७, पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:धातुपाठः., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १३४३८-४६). सारस्वत व्याकरण-धातपाठ, संबद्ध, आ. हर्षकीर्तिसरि, सं., पद्य, वि. १६६३, आदि: श्रीसर्वज्ञं जिनं नत्वा; अंति: (-). (प.वि. कंडू धातु रूप अपूर्ण तक है, बीच-बीच व अंत के पाठांश नहीं हैं.) १०१७७३. (+) आचारोपदेश व चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:आचारोपदेश., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२४४३). १.पे. नाम. आचारोपदेश, पृ. १अ-९आ, संपूर्ण, वि. १७३७, ले.स्थल. सागवाडानगर, प्रले. ग. हेमहर्ष, प्र.ले.प. सामान्य. उपा. चारित्रसंदर, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: चिदानंदस्वरूपाय; अंति: श्राद्धो निजयोर्धनजन्मनोः, वर्ग-६, श्लोक-२४६. २. पे. नाम. चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, पृ. ९आ, अपर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६५, आदि: प्रणम्य परमानंदं; अंति: (-), (पू.वि. सामायिक स्वरूप अपूर्ण तक १०१७७४ (+) आदिनाथ बोली, नेमिनाथ बोली व उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ४८-२६(१ से २६)=२२, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२१.५४९, ११४४९). For Private and Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १. पे. नाम. आदिनाथ बोली, पृ. २७अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. आदिजिन बोली, अप., पद्य, आदि: (-); अंति: कउडि जक्खय पमुह संघहरक्ख, गाथा-७, (पू.वि. मात्र अंतिमगाथा अपूर्ण है.) २. पे. नाम. नेमिनाथ बोली, पृ. २७अ-२७आ, संपूर्ण. नेमिजिन बोली-गिरनारतीर्थमंडन, अप., पद्य, आदि: ता धन धन सोरठ देस; अंति: परमेसर याम गयणि ससिभाण, गाथा-७. ३. पे. नाम. उपदेशमाला, प. २७आ-४८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५२२ अपूर्ण तक है.) १०१७७५ (+#) वृद्धशांति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १३४३५). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे. १०१७७६. (#) योगोद्वहन विधि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:योगविधि., मूल पाठ का अंश खंडित है, पत्रांक खंडित है., जैदे., (२५.५४११, १६४३८). योगोद्वहन विधि, प्रा.,सं., गद्य, आदि: सुत्ते अत्थे भोयण; अंति: (-), (पू.वि. देवसीप्रतिक्रमण संक्षिप्त विधि अपूर्ण तक है.) १०१७७७. (+#) बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हुंडी:बृहत्कल्पसूत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११, २-७४३७-४२). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पइ निग्गंथाण; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम सूत्र आंशिक अपूर्ण तक है.) बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नो क० न कल्पइ नि०; अंति: (-). १०१७७८. (+) जयतिहुअण स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, ५४४१-४८). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख जय; अंति: अभयदेव विन्नवइ अणिंदिअ, गाथा-३०. जयतिहअण स्तोत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जयतू सर्वोत्कर्ष इव त्ति; अंति: अणिंदितः त्रिण्हिलोकना. १०१७७९ (+#) आराधना प्रकरण व अनशन पच्चक्खाण सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-१(१)=१३, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, ७४२५). १. पे. नाम, आराधना प्रकरण, पृ. २अ-१४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पर्यंताराधना-गाथा ७०-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: नइ नमस्कार करियोह, (पृ.वि. वर्तमानतीर्थंकरनामवर्णन अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. अनशन पच्चक्खाण सूत्र, पृ. १४अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा., गद्य, आदि: भवसचरिमं पच्चक्खामि तिविह; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिदिन अनशन गाथा अपूर्ण तक है.) १०१७८०. (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-८(१ से ८)=६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ६४३३-४३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-३ अपूर्ण से सूत्र-१५ अपूर्ण तक है.) १०१७८१ (+) कर्मविपाक व कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३-१५(१ से १५)८, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ३४२७). १.पे. नाम. कर्मविपाक प्रथम सह टबार्थ, पृ. १६अ-२०अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदिः (-); अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६०, (पू.वि. गाथा-४७ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-टबार्थ, म. समति, मा.गु., गद्य, वि. १७०६, आदिः (-); अंति: अरथ रचित सुमति हित जान. २.पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. २०अ-२३आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक है.) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: बंध ते स्यु कहीयइ; अंति: (-). १०१७८२. गौतमपृच्छा की टीका व ४२ दूषण आहारना प्रश्नव्याकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४५-३९(१ से ३९)=६, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, १७४३२). १.पे. नाम. गौतमपच्छा की टीका, पृ. ४०अ-४५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. गौतमपृच्छा-टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: नगर्यां च शुभे दिने, ग्रं. १६८३, (पू.वि. मृगापुत्र कथा अपूर्ण से है.) । २.पे. नाम. ४२ दूषण आहारना प्रश्नव्याकरण, पृ. ४५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., वि. १८८०, फाल्गुन शुक्ल, ६, शनिवार, ले.स्थल. इगणोद, प्रले. मु. जीवणचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. गोचरी ४२ दोष, मा.गु., गद्य, आदि: आधाकर्म१ साधुने काजि कीधो; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ का पाठ दिया है.) १०१७८३. (#) गौतमपृच्छा सह बालावबोध व कथासंग्रह, अपूर्ण, वि. १६७६, चैत्र शुक्ल, २, शनिवार, जीर्ण, पृ. ४५-२(३,३९)=४३, ले.स्थल. सत्यपुर, प्रले. मु.खेतसी (गुरु मु. राजशेखर, खरतर बेगडगच्छ); गुपि. मु. राजशेखर (गुरु मु. जिनशेखर, खरतर बेगडगच्छ); मु. जिनशेखर (खरतर बेगडगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:गौतमपृछा., कुल ग्रं. १५००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ११-१४४४०-४८). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४, संपूर्ण. गौतमपृच्छा-बालावबोध, आ. मनिसंदरसरि, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थनाथ श्रीमहावीर; अंति: सुधा भूषण सेविता, (अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) गौतमपृच्छा-कथा संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: एकई गांमइ वाणिऊ एक वसइ; अंति: हुओ मोक्ष पामिस्यइ, कथा-३५, (अपूर्ण, पू.वि. सुभौम व मृगापुत्र कथा अपूर्ण है., वि. पत्रांक-२१ पर देसलदेवा कथा प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण है.) १०१७८४. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३, अन्य. मु. हीराचंदस्वामी; श्राव. मुना डाह्याभाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:दशवै०.का. यह प्रत संवत् १९५३ भाद्रपद मास में हीराचंदजीस्वामी के चातुर्मास काल में हरिपुरा-सूरत स्थानकवासी लायब्रेरी में मुनाभाई डाह्याभाई के हस्ते साधु-श्रावकों को पढने हेतु रखी गयी., जैदे., (२५४११, १३४३४-३८). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किटुं; अंति: कहणा पवियालणा संघे, __ अध्ययन-१० चूलिका-२. १०१७८५. (+) बृहत्संग्रहणी सह टीका, संपूर्ण, वि. १५५३, फाल्गुन शुक्ल, १५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ७५, ले.स्थल. सालीवाडा, प्रले. पीतांबर ज्योतिश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:संग्रह ल०टी०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४५-५३). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: दुगइया तिआगइया, गाथा-३४९. बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: अत्यद्भुतं योगिभिरप्यगम्य; अंतिः श्लोकानां सर्वसंख्यया, ग्रं. ३५००. १०१७८६ (+) थेरावली व पच्चक्खाण निज्जुत्ति, संपूर्ण, वि. १५६४, श्रावण कृष्ण, ३, रविवार, मध्यम, पृ. ११८, कुल पे. २, प्रले. आ. भावसागरसूरि (अंचलगच्छ); अन्य श्रावि. आसाबाई घेघु; गुपि. श्राव. रंगाई घेघु; श्रावि. डाहाईबाई रंगाई; श्राव. सीधर रंगाई; श्राव. देधर रंगाई; श्रावि. कुंअरिबाई देधर; श्राव. शंकर देधर; श्रावि. कर्माईबाई शंकर; श्राव. गुराईबाई शंकर, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३५-४०). १. पे. नाम. थेरावली, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी विआणओ; अंति: नाणस्स परूवणा वुच्छं, गाथा-५०. २. पे. नाम. आवश्यकसूत्रनियुक्ति, पृ. ३आ-११८आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: आभिणिबोहियनाणं; अंति: चरणगुणट्ठिओ साहू, गाथा-२५००, ग्रं. ३१००. १०१७८७. कर्मग्रंथ १ से६सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६७, कुल पे. ६, प्र.वि. पंचपाठ. कुल ग्रं.७०००, जैदे., (२६४११,८-११४२४). १.पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ सह अवचूरि, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिउ देविंदसूरीणं, गाथा-६०.। कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: सिरि० कर्मणां विपाको; अंति: कृतो देवेंद्रसूरिभिः. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ सह अवचूरि, पृ. ८आ-१४अ, संपूर्ण.. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंद वंदिअंनमह तं वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: तह० मिथ्यात्वादिभिध; अंति: प्राप्तस्तं वीरं नमतेति. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ सह अवचूरि, पृ. १४अ-१७आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं वंद; अंति: रइअं नेअंकम्मत्थयं सोउं, गाथा-२४. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: बंध० बंधः कर्माणुनां जीवः; अंति: तिदेशद्वारेण भणनात्. ४. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ सह अवचूरि, पृ. १७आ-३०अ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४-अवचरि, सं., गद्य, आदि: नमि० नउ जीवं यथायोग्य; अंति: शास्त्रेभ्य इति शेषः. ५. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ सह अवचूरि, पृ. ३०अ-५२अ, संपूर्ण. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००.. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: निज हेतु सद्भावे; अंति: स्तवे भावितं ज्ञेयं. ६. पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रंथ सह अवचूरि, पृ. ५२अ-६७अ, संपूर्ण. सप्ततिका कर्मग्रंथ-६, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: चंदमहतर होइ नउईउ, गाथा-९३. सप्ततिका कर्मग्रंथ-६-अवचरि, सं., गद्य, आदि: सिद्ध० सिद्धानि चालयितुम; अंति: शिष्यजनेभ्यः परिकथयंतु. १०१७९५ (+#) आचारांगसूत्र-श्रुतस्कंध २ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१३-२(२०२,२०७)=२११, प्र.वि. हुंडी:आचा०.८०. अन्त में अध्ययन, उद्देश व सूत्र का कोष्ठक दिया है., पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ८५००, मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२३.५४११, ५४२९). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (१)णिसिहि अज्झयणं पणवीस इम, (२)विमुच्चति त्ति बेमि, ग्रं. २६४४, (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अध्ययन-१५ के सूत्र-५१, ६० व ६१ अपूर्ण हैं.) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (१)होइ एम हुं कहुं छु, (२)उद्देशानुसूत्र जुद् गणीइं, प्रतिअपूर्ण. १०१७९६ (+) दानाधिकारे प्रियमेलक तीर्थप्रबंधे सिंहलकमर चउपई, संपूर्ण, वि. १७९४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, रविवार, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. झंडूखेल, प्रले. मु. वल्लभ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:प्रियमेलक., संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४५४). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंति: पुण्य अधिक परमोद, ढाल-११, गाथा-२३१. For Private and Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०१७९७. (+) भावारिवारण स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १७५०, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, प. १०,ले.स्थल. पत्तम, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, ३४३६-४०). महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: विशदां दृष्टिं दयालो मयि, श्लोक-३०. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत-टीका, उपा. जयसागर गणि, सं., गद्य, वि. १४६५, आदिः (१)श्रेयोर्थं, (२)भावारयः क्रोधादयः कषाया; अंति: देयं भवतीति भावार्थः. १०१७९८ (+#) अणुत्तरोववयदसाणं नवमांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. हुंडी:अणुत्तरोववा०, अणुत्तरो०सू०., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२५.५४११, १४४३६-३९). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समएणं; अंति: सेसं जहा धम्मकहा नीयव्वा, अध्याय-३३, ग्रं. १९२. १०१७९९ (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह टीका, अपूर्ण, वि. १६०५, कार्तिक कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ७-२(१,४)=५, ले.स्थल. राजपाटिका, प्रले. वा. माणिक्यराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नवतत्त्ववृ०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल ग्रं. ४९५, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १९४५५). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: परियट्टो चेव संसारो, गाथा-२७, (पू.वि. गाथा-४ से है व बीच का पाठ नहीं है.) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: स्यादिति गाथार्थः, ग्रं. ४७७, (पू.वि. प्रारंभ व बीच का पाठांश नहीं है.) १०१८०० (+#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.६, कुल पे.८,प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १८४५०). १. पे. नाम. १२ भावना, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १७१६, आश्विन कृष्ण, १२, प्रले. मु. जीवण, प्र.ले.पु. सामान्य. १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६४६, आदि: आदिसर जिणवर तणा पद; अंति: एह भणतां सुवि सुख थाइ, ढाल-१२, गाथा-७२. २.पे. नाम. ९ वाड सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रमणी पशु पंडग तणी रे; अंति: श्रीअजितदेवसूर कै, गाथा-१५. ३. पे. नाम, सालभद्र सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. शालिभद्रमुनि सज्झाय-दानविषये, ग. हर्षकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रहीपुर राजीयो श्री; अंति: वीनवैइ पदवी मोटी पामी रे, गाथा-१०. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-संवर, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर गोयमने कहे; अंति: जंपइ मुगति जिम लीलां वरा, गाथा-६. ५. पे. नाम. दशार्णभद्रऋषि सज्झाय, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, म. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुद्ध देई सेवक; अंति: इण प्रणमई लालचंद निसदीस, गाथा-९. ६. पे. नाम. १० श्रावकबत्रीसी, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. १० श्रावक सज्झाय, आ. नन्नसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५५३, आदि: जिन चउवीसे करूं प्रणाम दस; अंति: कोरटगछ __ भणइ नंदसूरि, गाथा-३२. ७. पे. नाम. प्रीतछत्रीसी, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. प्रीतिछत्रीशी सज्झाय, वा. सहजकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीति न किणही जीती; अंति: श्री संघनइं जयकारिजी, गाथा-३६. ८. पे. नाम. नक्षत्रविचारनी सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. नक्षत्रतारा विचार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिनेश्वर चरण; अंति: पठनक्रिया आराधउ सही, गाथा-१५. For Private and Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०१८०१ (+) सवैया, बावनी, अष्टकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८, कुल पे ९, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२५x११, 1 , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४X३२-४०). १. पे. नाम. सवैया बावनी, पृ. १अ - ६अ, संपूर्ण. सवैयाबावनी, आव, बनारसीदास, मा.गु., पद्य, वि. १६८६, आदि ॐकार सचद विहदया के अंति: गुणग्रहि लीजीवी, गाथा-५२. २. पे. नाम. समयसारसिद्धांत नाटक के कवित्त, पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण. समयसार सिद्धांतनाटक के कवित, पुहिं., पद्य, आदि प्रथम अम्यानी जीव; अंति रनति अष्टकर्मविनास ए. गाथा- ४. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ६आ, संपूर्ण. क. बनारसीदास, पु.ि, पद्म, आदि कीच सौ कनक जाकै नीच सौ अंति: जाकी रीत ताहि वदत बनारसी, सवैया- १. ४. पे नाम औपदेशिक सवैया सवैया १. पू. ६आ, संपूर्ण ७. पे नाम औपदेशिक सवैया, पृ. ८अ संपूर्ण. , औपदेशिक सवैया, पुर्हि, पद्य, आदि जैसे कोउ कूकर क्षुध अति (-), प्रतिपूर्ण. ५. पे. नाम. चौवीस दंडक गति आगति स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. २४ दंडक गति आगति स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि श्रीमहावीर नमुं करजोडि, अंतिः समयसुंदर ० एह विचार, गाथा- १३. ६. पे नाम. आध्यात्मिक फाग, पृ. ७आ-८अ संपूर्ण अध्यात्म फाग, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: अध्यातम विनु क्यौं; अंति: वनारसीदास० मोहदल फास, गाथा - १८. पुहिं., पद्य, आदि: जगत कै प्रीनी जीति है; अंति: साहता को मेरी तसलीम है, सवैया-१. ८. पे. नाम. चौद गुणस्थानक नाम, पृ. ८अ, संपूर्ण. ९३ १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि मिध्यात्व१ सास्वादन २; अंतिः आजोगी जाकीधिति अधपचहै. ९. पे. नाम. शारदाष्टक, पृ. ८ अ-८आ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: नमो केवल नमो केवल; अंति: वनारसी ० तजि संसार किलेस, गाथा - १०. १०१८०२. (+#) सत्तरभेदी पूजा व सूर्य गायत्री, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५X१०.५, १०X२६-३०). १. पे. नाम. सत्तरभेदी पूजा, पृ. १अ -८आ, संपूर्ण. १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि अरिहंतमुखकजवासिनी अति चिंतविस्यो फल चुंणीयो रे, For Private and Personal Use Only ढाल १७. २. पे. नाम. सूर्य गायत्री, पृ. ८आ, संपूर्ण. सूर्यगायत्री मंत्र, सं., गद्य, आदिः ॐ भूर्भुवः स्वः भाहस्कराय; अंति: दारिद्रं नोपजायते. १०१८०३. वैदर्भी चौपाई, संपूर्ण, वि. १७९८ श्रावण शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ८, ले. स्थल विक्रमपुर, प्रले. मु. पनजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५. ५X१०.५, १३४०). " वैदर्भी चौपाई, मु. प्रेमराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जिण धरम मांहि दीपता; अंति: संपजै पहुचै मोख मझार, गाथा - १९४. १०९८०४. चतुःशरण प्रकीर्णक, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११-१ ( ९ ) = १०, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, जैये., (२६.५x११, ११x४१). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि सावज्जजोग विरई, अंति (-), (पू. वि. गाथा २८ अपूर्ण तक व गाथा-४२ अपूर्ण से ५३ अपूर्ण तक है.) Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०१८०६ (+#) शालिभद्र चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ., (२६४११, ११-१४४४०). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२९ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) १०१८०७ (+) नवतत्त्वप्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित-त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (५६) यादृशं पुस्तकं दष्टं, जैदे., (२६४११, १८४४४-५५). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१जीवार पुण्णं३ पावा४; अंति: परियट्टो चेव संसारो, गाथा-३०. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टीका, सं., गद्य, आदि: जयति श्रीमहावीरः; अंति: शीघ्रं प्राप्नुवंति. १०१८०८. (+) शतक व सप्ततिका कर्मग्रंथ, संपूर्ण, वि. १७९०, कार्तिक कृष्ण, ४, मध्यम, पृ.७, कुल पे. २, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. मु. रुघनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १०-१३४४०-४३). १.पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. ___ आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००. २. पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रंथ-६, पृ. ४आ-७आ, संपूर्ण. आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: चंद्रचंमहत्तर० होइ नउईउं, गाथा-९२. १०१८०९ (#) दृष्टांतकथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८४-६४(१ से ६२,७८ से ७९)=२०, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४३६). दृष्टांतकथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. षष्टव्रते भ्रातृद्वः अपूर्ण से ज्ञानक्रियाभ्यां ___ मोक्षोपरिदृष्टांतकथा अपूर्ण तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०१८१०. (+) अर्हन्नामसहस्त्र समच्चय व जिनपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११,११४३८). १. पे. नाम. अर्हन्नामसहस्त्र समुच्चय, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. अर्हन्नामसहस्र समच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी-१३वी, आदि: अर्हन्नामापि कर्णाभ्यां; अंति: महानंदैधुकारणम्, प्रकाश-१०, श्लोक-११३. २. पे. नाम. जिनपंजर स्तोत्र, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ; अंति: श्रीकमलप्रभाख्यः, श्लोक-२५. १०१८१२. (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-३(१ से ३)=७, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १६x४४-४८). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. कांड-१ श्लोक-८ से ३५ अपूर्ण तक है.) अभिधानचिंतामणि नाममाला-टीका *, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). १०१८१३. (+#) कर्मग्रंथ-१ से ६ व साधुधर्म विचार, संपूर्ण, वि. १५१३, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ७, ले.स्थल. कुमरगिरि, प्र.वि. हुंडी:कर्मग्रंथ., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १८४४६-५०). १. पे. नाम, कर्मविपाकसूत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६१. २. पे. नाम. कर्मस्तवसूत्र, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं: अंति: देविंदवंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२४. ४. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. ५. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, पृ. ५आ-७आ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअ जिणं धुवबंधोदय; अंति: देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००. ६.पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रंथ-६, पृ. ७आ-१० अ, संपूर्ण. आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: चंद० एगूणा होई नउईओ, गाथा-९०. ७. पे. नाम. साधुधर्म विचार, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., गद्य, आदि: अविअह सव्व पलंबा जिण गणहर; अंति: इत्येषोनुधर्मः प्रवचनस्य. १०१८१५. (+) बुढापा रास, संपूर्ण, वि. १९३४, आषाढ़ शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. अहीपुर, प्रले. मु. प्रेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:बूढलो., संशोधित., दे., (२४.५४१०.५, ११४३३). बुढापा रास, मु. चंद, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: दया ज माता वीनवु; अंति: सुणौ कलियुग निसाणी, ढाल-२२. १०१८१६. (+#) विजयसेठविजयासेठानी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४१०.५, १०४२६). विजयसेठविजयासेठाणी रास-शीलविषये, मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, वि. १६८६, आदि: ऋषभादि करे जिन चउवीस; अंति: रच्यो ए कृत धरि मुदा, ढाल-६, गाथा-८९. १०१८१७. ज्योतिष्करंडक सह टीका, संपूर्ण, वि. १६७०, आषाढ़ शुक्ल, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९८, ले.स्थल. अहमदाबाद, लिख. श्राव. वाघजी श्रीपाल; गुपि. श्राव. हंसाई बाई समरसिंघ; प्रे. ग. कल्याणविजय (तपागच्छ); गुपि. आ. विजयदेवसूरि (तपागच्छ); राज्ये आ. विजयसेनसूरि (गुरु गच्छाधिपति हीरविजयसूरीश्वर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:ज्योतिकरंडकटीकाः., जैदे., (२६४११, १५४५१-६०). ज्योतिष्करंडक प्रकीर्णक, आ. पादलिप्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सुण ताव सूरपन्नत्तीव; अंति: तीओ सीसजणविबोहणट्ठाए, प्राभृत-२१, गाथा-४०५. ज्योतिष्करंडक प्रकीर्णक-टीका, आ. मलयगिरिसरि , सं., गद्य, आदि: स्पष्टं चराचरं विश्वं; अंति: सिद्धिस्तेनाश्तां लोकः, ग्रं. ५०००. १०१८१८. (+#) बृहत्संग्रहणी, संपूर्ण, वि. १८३१, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले.स्थल. जावदनगर, प्रले. ग. लायककुशल गणि; पठ. श्राव. फरराम, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १६x४२). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२७८. १०१८१९ (+) कथामहोदधि, संपूर्ण, वि. १५२६, माघ शुक्ल, ९, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५, राज्यकालरा. कुंभकर्ण नृपति; प्रले. मु. देवचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६४१०.५, १८४५०-६३). __कर्पूरप्रकर-कथामहोदधि, संबद्ध, ग. सोमचंद्र पंडित, सं., गद्य, वि. १५०४, आदि: (-); अंति: कज्ज कोडीएविनं नट्ठीयं, कथा-१५७, ग्रं. १८००, (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., नलकुबेरकथा अपूर्ण से लिखा है.) १०१८२०. भक्तामर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६२६, वैशाख शुक्ल, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. चंद्रसेन (गुरु मु. गयसुकमाल, खरतरगच्छ); गुपि. मु. विनयकीर्ति; गुभा. आ. जिनभद्रसूरि (गुरु आ. जिनचंद्रसूरि, खरतरगच्छ); गुपि. आ. जिनचंद्रसूरि (गुरु आ. जिनप्रभसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, ८४४०-४३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., श्लोक-४ अपूर्ण तक लिखा है.) भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदिः किल इति निश्चये अहम; अंति: वर्णविचित्रपुष्पाम्, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०१८२१ (+) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा विणयसुयं प्रथमअध्ययन सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-१(१)=९, प्र.वि. हुंडी:अ०१., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, १३४३०). उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा विणयसुयं प्रथमअध्ययन, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: रए महिड्ढिएत्ति बेमि, गाथा-४८, (पू.वि. गाथा-४ से है.) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा विणयसुयं प्रथमअध्ययन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: स्वामी जंबू प्रति ___ कहिउ, (पू.वि. गाथा-३ का बालावबोध अपूर्ण से है.) १०१८२२. (+) कर्मविपाक, बंधस्वामित्व व कर्मस्तव कर्मग्रंथ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. ३, प्रले. ग. चारुचंद्र; पठ. मु. लाला; अन्य. आ. विमलचंदसूरि; मु. लिखमीचंद; वा. मेघचंद्र; आ. मुनिचंद्रसूरि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११, १०४३१-३९). १.पे. नाम, कर्मविपाकसूत्र, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६२. २. पे. नाम. बंधस्वामित्व, पृ. ५अ-७अ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२२. ३. पे. नाम. कर्मस्तव, पृ. ७अ-९आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंदवंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३५. १०१८२३. गर्भपरावर्तन विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३२-३१(१ से ३१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२५.५४११, १३४३१). गर्भपरावर्तन विचार-अन्यशास्त्रोक्त, सं., गद्य, आदि: अत्राह कोपि शिवशासनी; अंति: (१)बलभद्रं बलाश्रयात्, ___ (२)विधाव्यतिकरा बहूनि संति, (संपूर्ण, वि. दृष्टांत कथा सहित.) १०१८२५ (+#) पार्श्वनाथ व साधारणजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-९(१ से ९)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ९४३६). १.पे. नाम. पार्श्वलघ स्तवन-वरकांणा, पृ. १०अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: जिनभक्ति० मनोरथ माल, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-गोडीजी, म. जिनभक्ति, सं., पद्य, आदि: जय जय गोडीजी महाराज; अंति: त्वं प्रणमामि सदैव, श्लोक-९. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. साधारणजिन पद, मु. मालदास, पुहिं., पद्य, आदि: भलै मुख देख्यौ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) १०१८२६. (+#) सकलार्हत् स्तोत्र, वीसविहरमान नाम व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १९४४७). १. पे. नाम. सकलार्हत् स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलाहत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: श्रीवीरजिननेत्रयोः, श्लोक-२६. २. पे. नाम. वीस विहरमाननाम स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, प्रा., पद्य, आदि: सीमंधरो जुगंधर बाहु; अंति: वीसइहवं तित्थयाणि नामाणि, गाथा-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अति. हसंती काली (२६४११, ण, १०, श्रेष्ठ, हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ श्लोक संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: केसवं पतितं दृष्ट्वा; अंति: हा हा रामो हतो हतः. १०१८२७. (+) अक्षरबावनी, सवैया व गाथासंग्रह, अपूर्ण, वि. १८३९-१९०३, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११, १२-१५४२७-३२). १. पे. नाम. अक्षरबावनी, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८४३, कार्तिक शुक्ल, ७, शुक्रवार, ले.स्थल. जेसलमेर, प्रले. मु. देवचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. वा. किसनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७६७, आदि: (-); अंति: किसन कीनी उपदेशबावनी, गाथा-६१, (पू.वि. गाथा-५७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ७आ, संपूर्ण, वि. १९०३, आषाढ़ शुक्ल, १३, ले.स्थल. नवानगर, प्रले. मु. लालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. क. लाल, मा.गु., पद्य, आदि: सूरजमाणक रंग मनोहरचंद; अंति: लाल कविकुं सदा हीनि वाजे, सवैया-१. ३. पे. नाम, औपदेशिक गाथा, पृ. ७आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. गाथा संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: हसंती पृथ्वी नृपतेनराणां; अंति: हसंती कालो मम वैदराजः, गाथा-१. १०१८२८. (+) व्यवहारसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१४, पौष कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ४३, ले.स्थल, विक्रमपुर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, ६x४४-४८). व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: जे भिक्खू मासियं; अंति: भवंति त्तिबेमि, उद्देशक-१०, ग्रं. ३७३, (वि. यंत्र सहित.) व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे० जे कोइ भि० साधु; अंति: करवारुप फल भ० हुई. १०१८२९ नवतत्त्वप्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२५४११,५४३२). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१जीवा२ पुण्णं३ पावा४; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४२. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: आवतइ कालिवली अनंतागुणानइ. १०१८३० (+#) नवस्मरण व लघशांति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.७, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १२४४०). १. पे. नाम, नवस्मरण-स्मरण १ से ७, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) १०१८३१ (+) दरियसमीर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७०९, मध्यम, पृ. ६, प्रले. पं. लालकीर्ति; पठ. कृष्णदास (गुरु मु. जयप्रमोद पं.), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:दुरिय०., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, ६४३२-३६). दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीरं मोहपंको; अंति: सया पायप्पणामो तुह, संपूर्ण. दुरिअरयसमीर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: दुरिय० दुरित कहता; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४३ तक टबार्थ लिखा है.) १०१८३२. (+) कर्मग्रंथ-१ से ३ सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४-७(१ से ५,७ से ८)-७, कुल पे. ३, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४४३-५०). १.पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ सह बालावबोध, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३९ अपूर्ण से गाथा-४९ तक है.) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-बालावबोध *, मा.ग., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ सह बालावबोध, पृ. ९अ-१२आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदिः (-); अंति: देविंदवंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४, (पू.वि. गाथा-६ से है.) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: आनुपपूर्वि विना जाणवी. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ सह बालावबोध, पृ. १२आ-१४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: जिन नाम कर्म १ सुरदुग ३; अंति: (-). १०१८३३. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४९-१२१(१ से २,५ से ५६,५९ से ६३,६५ से ७२,७४ से ७५,७७ से ७८,८० से ९१,९३ से १०४,१०६ से १११,११४ से ११६,१२८,१३१ से १३९,१४१,१४३ से १४८)=२८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्र., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, ५-१४४२६-४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. महावीर दीक्षा प्रसंग से सामाचारी वस्त्राद्यातापन सूत्र अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). कल्पसूत्र-बालावबोध , मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०१८३४. (#) लघुजातक का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११.५, १५४५०). लघजातक-बालावबोध, उपा. मतिसागर, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य परमानंदः संपदः; अंति: (अपठनीय), (वि. पत्र की किनारी खंडित होने से अंतिमवाक्य अवाच्य है.) १०१८३५. (+) सप्तस्मरण सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १३४५१). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअ सव्वभयं; अंति: (-), (पू.वि. उवसग्गहर स्तोत्र गाथा-४ तक है.) सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा श्रीपार्श्वजिन; अंति: (-), (पू.वि. उवसग्गहर स्तोत्र गाथा-४ तक बालावबोध है.) १०१८३६. (#) सभाषित श्लोकगाथादोहादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ.७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १७-२१४३३-५६). सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अवगुण त्याग दोहा तक है., वि. अनुमानित श्लोक-३५० है.) १०१८३७. शास्वतचैत्य स्तव सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. पं. वीरविमल गणि (गुरु आ. आनंदविमलसूरि); गुपि. आ. आनंदविमलसूरि (गुरु उपा. धीरविमल), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:शाश्वतजिनभवनस्तवन., पंचपाठ., जैदे., (२६४११, १०x४४). शाश्वतचैत्य स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिउसहवद्धमाणं; अंति: तु भवियाण सिद्धिसुहं, गाथा-२४, संपूर्ण. शाश्वतचैत्य स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: ज्योतिष्कव्यंतरेष्वस; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ___पाठ-"दिगाजप्रभृतिषुवृत्तवैताद्योताकषुद" तक लिखा है.) १०१८३८. सूक्ष्मविचार गाथा, सीमंधरस्वामी आहारमान व औपदेशिक गाथासंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५.५४११, ३४५०). १.पे. नाम. सूक्ष्मविचार गाथा सह वत्ति, पृ. १अ, संपूर्ण. सूक्ष्मनिगोद विचार, प्रा., पद्य, आदि: लोए असंखजोयण माणे; अंति: तहत्ति जिणवुत्तं, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ सूक्ष्मनिगोद विचार-वृत्ति, सं., गद्य, आदि: अस्मिन् चतुर्दश; अंति: निर्मलतरमेव भवति. २. पे. नाम. सीमंधरस्वामी मुखवस्त्रिका प्रमाण सह वृत्ति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आहारादिमान गाथा-भरतादिक्षेत्रे, प्रा., पद्य, आदि: बत्तीसं कवलाहारो; अंति: एयं मुहणंतय पमाणं, गाथा-३. आहारादिमान गाथा-भरतादिक्षेत्रे-टीका, सं., गद्य, आदि: इह विदेहेषु च; अंति: साधूनां योग्या भवंति. ३. पे. नाम. औपदेशिक गाथासंग्रह सह वृत्ति, पृ. १आ, संपूर्ण.. औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: संखिज्जा पज्जत्ता मणुआ; अंति: भावसेढीए असंखभागोउ, गाथा-१. औपदेशिक गाथा संग्रह-वृत्ति, सं., गद्य, आदि: मनुष्यास्तावत् द्विधाः; अंति: मनुष्या उत्कृष्टा भवंति. १०१८४० (+#) सिद्धहेमशब्दानुशासन-उणादिगणसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४११, २०४४८). सिद्धहेमशब्दानुशासन-उणादिगणसूत्र, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: कृवापाजिस्वदिसाध्यशौ; अंति: वहेः क्विप् सश्च डः, सूत्र-१००६. सिद्धहेमशब्दानुशासन-उणादिगणसूत्र की अवचूरि, आ. हेमचंद्राचार्य, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: चाहुः अनडवान् वृषभः, (वि. आदिवाक्य वाला भाग खंडित है.) १०१८४१ (+#) पांडवचरित्र रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.८६, प्र.वि. हुंडी:पांचपांडवचो०., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, १५४४४-५४). पांडवचरित्र रास, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति: लाभवर्धन पा० लहै तेह, खंड-६ ढाल-१५०, ग्रं. ३७९७. १०१८४२. भव्यानंदपंचासिका व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३२, पौष कृष्ण, १०, रविवार, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २, ले.स्थल. नंदग्राम, प्रले. मु. गणेश ऋषी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, ९-१२४२८-३२). १. पे. नाम. भव्यानंदपंचासिका, पृ. १अ-११आ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-श्लोक ४८-पद्यानुवाद सवैयाएकतीसा, श्राव. घनराज विजयराज, मा.गु., पद्य, वि. १६७०, आदि: मोयै एक रसनाकै स्वनान कही; अंति: घनुराजकीजौ जानि मम हितकौ, गाथा-५०. २.पे. नाम, जैनधार्मिक श्लोक संग्रह, पृ. ११आ, संपूर्ण.. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: आयु जलबिंदु सम्मं संपत्ति; अंति: देवार्चिनं सद्गुरुसेवनं च, श्लोक-३. १०१८४३. स्थूलिभद्र कोस्या संवाद, संपूर्ण, वि. १८३०, वैशाख शुक्ल, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. धनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १४४४४). स्थूलिभद्रमनि नवरसो, उपा. उदयरत्न; म. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपत दायक सदा; अंति: उदेरतन०भणतां मंगलमाल, ढाल-९, गाथा-७४, (वि. अंत में एक सुभाषित श्लोक दिया गया है.) १०१८४४. (#) विक्रमादित्य चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११, १२४३६). विक्रमादित्य चौपाई, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: पुरिसादाणी प्रणमीइं; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२७ गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) १०१८४५. (+) शालिभद्रमुनि चौपाई व आगमग्रंथमान वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, कुल पे. २, प्र.वि. शांतिजिन प्रसादात्, संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १३४४०). १.पे. नाम. शालिभद्रमुनि चौपाई, पृ. १अ-२०अ, संपूर्ण, वि. १८४३, वैशाख शुक्ल, २, ले.स्थल. सांडेरानगर, प्रले. पं. चतुरसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हंडी:शालिभद्र. श्रीशांतिजिन प्रसादात्. म. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: फल लहिस्यै जी, ढाल-२९, गाथा-५११. २. पे. नाम. आगमग्रंथमान वर्णन, पृ. २०आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है. मा.गु., गद्य, आदि: २५०० श्रीआचारांगसूत्र; अंति: १८८८ अनुयोगद्वार. For Private and Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०१८४७. (+) सज्झाय, दहा, स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-५(१ से ४,१२)=१२, कुल पे. २०, प्र.वि. स्याही फूटने के कारण पत्र-५अ कोरा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४४११, १३४३०). १.पे. नाम. अरणिकमनि सज्झाय, पृ. ५आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: मनवंछित फल लीधो जी, गाथा-८, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. चेलणासती सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वांदी वलतां थकां; अंति: पामशे भवतणो पार, गाथा-७. ३. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासा, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण. म. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सावण मासै सांम मेल्ही; अंति: ता एम नवनिधि पामी रे, गाथा-१३. ४. पे. नाम. सीमंधरजी स्तवन, पृ.७अ-८अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार ए गण; अंति: पुरि आस्या मन तणी, गाथा-१८. ५. पे. नाम. जोगीसर सज्झाय, पृ. ८अ-९अ, संपूर्ण. योगसंग्रह सज्झाय, ग. उदयसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १७७५, आदि: श्रीजिणवर प्रणम; अंति: जिणआज्ञा शिवपुर वास रे, गाथा-१३. ६.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसरि, मा.ग., पद्य, आदिः श्रीशंखेश्वर पासजिन; अंति: सयल रिप जीपतो, गाथा-५. ७. पे. नाम. काया सज्झाय, प. ९आ-१०अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्यप्रद, मु. रत्नतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: काया रे वाडी कारमी; अंति: करिज्यो ढगवाली, गाथा-८. ८. पे. नाम, बुढापा बत्तीसी, पृ. १०अ-११आ, संपूर्ण. सुगुणबत्तीसी, ग. रुघपति, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि: सुगण बूढापो आवियो लख; अंति: रुघपति०सुणज्यो ससनेह, गाथा-३२. ९. पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. ११आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणीक रयिवाडी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ तक है.) १०. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. १३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. खेमकुशल, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: कुशलवांदै चित लाया सोभागी, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) ११. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १३अ, संपूर्ण. __ औपदेशिक सज्झाय-अहंकार परिहार, पंडित. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: जमीं तथा असमांन चिहुंगत; अंति: कुशल. नाम ठाम नहीं कोय, गाथा-७, (वि. गाथांक में व्युत्क्रम है.) १२. पे. नाम. करमरी सीज्झाय, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देवदाणव तीर्थंकर; अंति: नमो कर्म महाराजा रे, गाथा-१८. १३. पे. नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. __ औपदेशिक सवैया-माया परिहार, पंडित. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: अटवी जगत जालकाल गजराज; अंति: कुसल० दीरदी मै वीकाया, सवैया-२. १४. पे. नाम, औपदेशिक सवैया- माया परिहार, पृ. १४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया-माया परिहार, मा.ग., पद्य, आदि: नंदण की नवे निधान वीसल की; अंति: आए हो पसार हाथ जावोगे, सवैया-१. १५. पे. नाम. औपदेशिक दहा, पृ. १४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०१ औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: साधजी हां ही सांच रे जी; अंति: फरसराम हां सन बैठे तीर, दोहा-८. १६. पे. नाम. निंदानी सज्झाय, पृ. १५अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: निंदा म करजो कोईनी; अंति: समयसुंदर सुखकार रे, गाथा-५. १७. पे. नाम. पांच पांडव सज्झाय, पृ. १५आ-१६आ, संपूर्ण. ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तिनागपुर वर भलुं; अंति: कवियण० मरण निवार, गाथा-२०. १८. पे. नाम. धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. मु. कुशलराज, मा.गु., पद्य, आदि: सुण वाणी वैरागीयोजी ए; अंति: कुशल• तुम चेतो चतुर सुजाण, गाथा-१२. १९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- गोडी, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. गंगाराम, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी लागी छै तुम्हसुं; अंति: गंगाराम प्रभुगुण गाइयै. २०. पे. नाम. औपदेशिक दुहा, पृ. १७आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि., पद्य, आदि: बांदो चाहै धन कह धनकर; अंति: हाथ करतरणी राखै गोउनमांन, गाथा-१. १०१८४८. (+#) बलकलचीरी चउपई, संपूर्ण, वि. १८१८, कार्तिक शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. घंटीयाली ग्राम, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ३२१, मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (६९) जब लग मेरु अडग है, जैदे., (२४.५४११, १३४४१). वल्कलचीरी चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: प्रणमुं पारसनाथनइ; अंति: समयसुंदर जै सुणैरे, गाथा-२२९, ग्रं. ३५०. १०१८४९ (+) गौतमपृच्छा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२-१५४३४-३८). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवे; अंति: जाणउ वरख तणउं ते नाम, गाथा-११०. १०१८५०. ब्रह्मचर्यद्विपंचाशिका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६,प्र.वि. हुंडी:ब्रह्मच०., जैदे., (२५.५४११, १२४३४-४३). ब्रह्मचर्यद्विपंचाशिका, मु. समरसिंघ, मा.गु., पद्य, आदि: गोयम गणहर पाय प्रणमी; अंति: वर हेलें शिवरमणी वरे, गाथा-७०. १०१८५१. मुनिपति चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२५.५४११, १२४३४-४३). मुनिपति चरित्र-अनुवाद, मा.गु., गद्य, आदिः (१)नमिऊण महावीरं चउव्विहायसय, (२)एह भरतक्षेत्रमाहि; अंति: ऊपरिकथा श्रेणिरायनी कही. १०१८५२. श्रेणिकमहाराजा रास, संपूर्ण, वि. १६७६, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. १७, प्रले. मु. रूपसुंदर (परंपरा ग. तेजकुअर); गुपि. मु. रंगसुंदर (गुरु मु. विनयसोम, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं.७००, जैदे., (२५.५४११, १८४४८-५७). श्रेणिकराजा रास, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६०३, आदि: सकल ऋद्धि मंगलकरण; अंति: यु ए नितु मंगल जयकार, खंड-४, गाथा-६०६, ग्रं. ६८१. १०१८५३. (#) ढोलामारु चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-४(१ से ४)=१४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १६४५२). ढोलामारु चौपाई, उपा. कशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि: (-); अंति: कुशललाभ० पीउ ढोलो चहु, __ गाथा-८०६, (पू.वि. गाथा-४६ अपूर्ण से है.) १०१८५४. (#) गुणस्थानक सवैया इकतीसा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४३९). १४ गुणस्थानक सवैया, मा.गु., पद्य, आदि: नियत एक विवहारसु जीव चतुर; अंति: (-), (पू.वि. चतुर्दश गुणस्थानक अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०१८५५ (+) कल्पसूत्र की पीठिका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११, १६x४६). कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: अहँत भगवंत उत्पन्न; अंति: (-), (पू.वि. ध्रुवसेन राजा दृष्टांत अपूर्ण तक १०१८५७. (#) जिनार्चनमहिमा साक्षिपाठ संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-३(१ से २,१७)=१५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११, १०४३७). जिनार्चनमहिमा साक्षिपाठ संग्रह, पहिं.,प्रा.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. बीच-बीच के पाठ है., वि. अलग-अलग क्रम के श्लोक, गाथादि हैं.) १०१८५८. (+#) रत्नचूड चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५-३(१ से ३)=१२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४११, १५४४३). रत्नचूड चौपाई, मु. कनकनिधान, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५ गाथा-१९ अपूर्ण से ढाल-२१ के दूहा-२ अपूर्ण तक है.) १०१८६१. व्यवहारनिश्चय स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.८, जैदे., (२६.५४११, ५४३७-४०). व्यवहारनिश्चय स्तवन, आ. पासचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विक्रमनगर पुरवर प्रासादि; अंति: श्रीपासचंदि हरखिइ कहिय, गाथा-५९. व्यवहारनिश्चय स्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: विक्रमनगर वीकानेर रुपपुर; अंति: हरखिइं करी कहइउ प्रकाश्यउ. १०१८६२. रत्नपालरत्नावती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११, १६४३५). रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: श्रीऋषभादिक जिन नमुं; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-८ गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) १०१८६३. (+) ५६३ जीवभेद विचारादि बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. १७, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १७४६०). १.पे. नाम. ५६३ जीवभेद विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: ४८ भेद तिरजचना पृथवी१ अप; अंति: समूर्छिम एवं सर्व३०३. २.पे. नाम. १३ काठिया नाम, पृ.१अ, संपूर्ण. ___मा.गु., गद्य, आदि: आलस १ मोह २ वना ३; अंति: कतूहल१२ स्त्रीविलाश१३. ३. पे. नाम. अढाईद्वीप ५कर्मभूमिनी विगत, पृ. १अ, संपूर्ण. १५ कर्मभूमि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीप १ लाख योजनमे; अंति: सत्तरिसौ १७० तीर्थंकर. ४. पे. नाम. दशविध पच्चक्खाण, पृ. १अ, संपूर्ण. दशविध पच्चक्खाण नाम, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नवकारसी काची बि घडी १; अंति: अभिग्रह विशेष तप. ५.पे. नाम. छ छींडी नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. ६ छींडी नाम, मा.गु., गद्य, आदि: १ गाम धणी राजारै कहो; अंति: निमित्त ६ आजीविका निमित्त. ६.पे. नाम. समकितना ५ भेद, पृ. १अ, संपूर्ण. ५ सम्यक्त्व नाम, मा.गु., गद्य, आदि: १उपशम सास्वादन२; अंति: क्षयोपशम४ क्षायक५. ७. पे. नाम. मिथ्यात ५ नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. ५मिथ्यात्वभेद नाम, सं., गद्य, आदि: अभिग्रह लीधो हठ न मुकै१; अंति: अनाणी काई जाणै नही५. ८. पे. नाम. ४५ आगम नाम, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___मा.गु., गद्य, आदि: आचारांग१ सुयगडांग२; अंति: अनुयोगद्वारसूत्र. ९. पे. नाम. १४ पूर्व नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: उदपादपूर्व१ वीर्य; अंति: लोकसंज्ञा१३ आघ्रायण१४. १०. पे. नाम. नववाडि सीलरी, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ९ वाड-ब्रह्मचर्य, मा.गु., गद्य, आदि पशु पंडक रहित स्थानक१; अंति: आहार८ अंग विभूषा टालै९. ११. पे नाम. आहारमान विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि बीसै असी चावले एककवल पुरुष; अति नपुंशकरा २४ कवल. १२. पे. नाम छूटा बोल, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण आगमगत चर्चा बोल-विविध प्रश्नोत्तर, मा.गु., गद्य, आदि: तथा ठाणांग मांहे सम्यग्द्; अंति: शीत प्र०४उपरांत न कल्पइ. १३. पे नाम. पंचिदिव सूत्र सह बालावबोध, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. गुरुस्थापना सूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि पंचदीई संवरो तह नव विह; अति: गुणो गुरु मज्झ, गाथा-२. गुरुस्थापना सूत्र बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पांच इंद्री ते संवरे बसनी अंति: बीजी गाधानी मात्रा ५७. १४. पे. नाम. पांचसैतेसठ जीवरा भेद, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १४ नारकीरा भेद नारकीरा; अंति: ५६३ जीवरा० सर्व मिली हूआ. १५. पे नाम. अजीवरा ५६० भेद, पृ. ६अ ६आ, संपूर्ण ५६० अजीव भेद विचार, मा.गु. गद्य, आदि: १० धर्मास्तिकाय खंध देस अति माहे अरूपी ३० रूपी५३०. १६. पे. नाम. पचवीस मिथ्यातरा नाम, पृ. ६आ, संपूर्ण. २५ मिध्यात्व नाम, मा. गु, गद्य, आदि: धरमनु अधरम जाणे ते मिथ्या अंतिः छांडे ताहरा समकित कहीजइ. १७. पे नाम. मारगणा द्वार, पृ. ६आ, संपूर्ण. २७ द्वार अल्पबहुत्व विचार-दिशा आदि, मा.गु., गद्य, आदि: दिस१ गई २ इंदी ३ का ४ जोए५; अंति: सयगुणंच पावंतथा मुणेयव्वं. १०९८६४. गोराबादल चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैये. (२६४११, १४४५०). गोराबादल चौपाई, आ. हेमरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६४५, आदि: सुखसंपतिदायक सकल; अंति: (-), (पू.वि. डाल- २२ गाथा- ११ अपूर्ण तक है.) " १०१८६५ (+#) सुभाषित संग्रह व सवैयादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २३ - १ (१५) = २२, कुल पे. १५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, ११४३६). १. पे नाम. सुभाषित संग्रह. पू. १आ- १७आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., पे. वि. हुंडी: सोभाषितपत्र, सुभाषित संग्रह *, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, आदि: वाग्देवी वरदाईका भगवती; अंति: जो छिल भिल मिल० नर करै, श्लोक-२६१ (पू.वि. श्लोक-२२५ अपूर्ण से गाथा २४५ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. नवकारमहिमा सवैया, पृ. १७-१८अ संपूर्ण. औपदेशिक पद - नवकारमहिमा, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि सुख को करणहार दुख को अंति: जिनहरख सुमंत्र नवकारजु, सवैया-२. ३. पे. नाम. कायास्वरूपकथन सवैया, पृ. १८अ १८आ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, पुहिं, पद्य, आदि काहे काया रूप देखि गरब कर अंति: जिनहरख० होती सनतकुमार की, सवैया- १. " ४. पे. नाम. दानस्वरूपकथन सवैया, पृ. १८आ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: देहू दान सीख मान दान तै; अंति: वढै है जिनहरख सनेह रे, सवैया- १. ५. पे. नाम. शीलमाहात्म्यकथन सवैया, पृ. १८ आ. संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, पु,ि पद्य, आदि वैट को करैया महाजन को मेरे अंति: तेरा लाल जिनहरख कहत है, गाथा-१. ६. पे. नाम. तपमहिमाकथन सवैया, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण. १०३ ग. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुदिठपहारी चोर महापातकी; अंतिः तप हु तै चढ्यो नाम चंदजुं, गाथा - १. ७. पे. नाम. रात्रिभोजनकथन सवैया, पृ. १९अ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि रैण चोर वहे वाट सब रोक, अंति: जिनहरख भोजन केसे खाइये, गाथा- १. " ८. पे. नाम भावमहिमाकथन सवैया, पृ. १९अ १९आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १०४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ग. जिनहर्ष, पुहिं, पद्य, आदि प्रशनचंद मुनीश संयम ग्रही अति जिनहरख अचल होत जाय कै, गाथा-१. ९. पे नाम औपदेशिक सवैया प्रीत, पृ. १९आ, संपूर्ण औपदेशिक सवैया-धर्मप्रीति, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: जैसी तेरी मति गति रहत; अंति: जिनहरख० पद मुगति की बेहे. गाथा- १. १०. पे. नाम, वीतरागस्वरूपकथन सवैया, पृ. १९आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-वीतरागस्वरूप, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: जोऊ जोग ध्यान धेरै काहु; अंति: जिनहरख कहावै वीतरागजू गाथा १. ११. पे नाम. सुगुरुकथन सवैया, पृ. १९आ २०अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-सुगुरु, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: गैर उपदेश हरे आगम अरथ धेरै; अंति: जिनहरख० सुगुरु जिहा जहै, गाथा- १. १२. पे. नाम. धर्मपरीक्षाकथन सवैया, पृ. २०अ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि धरम धरम कहै मरम न कोउ लहै; अतिः जिनहरख० कंचन कुं लीजीयै, गाथा- १. १३. पे. नाम औपदेशिक सवैया अल्पायु, पृ. २०अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: तेरी है अल्प आउ तु तो अति जिनहरख० काया कोट लुटैगो, गाथा- १. १४. पे. नाम. एकत्वभावनाकथन सवैया, पृ. २०अ २०आ, संपूर्ण, प्रले. मु. लक्ष्मीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक पद एकत्व भावना, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि काकै कही घोरे हाथी काहु अंतिः जिनहरख० चेत आउ धर्म ओट रे, गाथा- १. १५. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. २०आ-२३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा.,सं., पद्य, आदिः याम्यन्येषा जलधपटलै; अंति: (-), (पू.वि. भाग्यकथन सवैया अपूर्ण तक है.) १०१८६६. (+) अध्यात्मगीता, षट्काय विचार व शांतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५X११.५, १०X३७). १. पे. नाम. अध्यात्मगीता, पृ. १अ ५अ, संपूर्ण. अध्यात्म गीता. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि प्रणमियै विश्वहित अति रंगी मुनि सुप्रतीता, गाथा ४९. २. पे नाम षट्काय विचार, पृ. ५अ, संपूर्ण. ६ काय जीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: बादर पृथ्वीकाय ७ नरक; अंतिः थावर अगलेइ लोक माह लाभे. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पू. ५आ-७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. " शांतिजिन स्तवन- निश्चयव्यवहारगर्भित उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि शांतिजिणेसर अरचित जग; अंति: (-), (पू. वि. ढाल -५ गाथा - १० अपूर्ण तक है.) १०१८६७. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०-३(१,६ से ७)=७, जैदे. (२६४११, १२४३८). " For Private and Personal Use Only , स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: (-); अंति: आनंदघन प्रभु जागे रे, स्तवन-२४, (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. संभवजिन स्तवन गाथा-६ अपूर्ण तक व धर्मजिन स्तवन गाथा-७ अपूर्ण सेमुनिसुव्रतजिन स्तवन गाथा - ३ अपूर्ण तक नहीं हैं.) "" १०१८६८. (+) धरम लावणी, स्तुति व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २४, कुल पे. ४९, पठ. मु. चंदनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६.५X११, ७३५). १. पे. नाम रिषभदेव स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, श्राव. चंपाराम दीवान, मा.गु., पद्य, वि. १९वी आदि नमो श्रीआदि गुरु सकल; अंति: सुभ सब जीवन सुखकार, गाथा-१. २. पे नाम. गुरुगुण स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०५ गुरुगुण लावणी, आव, चंपाराम दीवान, मा.गु., पद्य, बि. १९वी आदि सुमिरि गुर आदि का सरणा; अंति: चंपाराम० भव समुद्र तरणा, गाथा - ३. ३. पे. नाम. महावीरजिन जन्मोत्सव गीत, पृ. १आ - २अ, संपूर्ण. आव. चंपाराम दीवान, पुहिं. पद्य वि. १९वी आदि महावीरजिन जन्मसु दिन सुनि अति: चंपाराम० निते तू उतरे पार, गाथा-७. ४. पे. नाम. धरम चौक, पू. २अ- ३आ, संपूर्ण जयवंत जिनशासन स्तवन, आव, चंपाराम दीवान, पुर्हि, पद्य, वि. १९वी आदि धरम सदा जयवंत जगतमै करता; अंति: चंपाराम अंतिम महावीरं, गाथा १५. ५. पे नाम. जंबूस्वामी गीत, पृ. ४अ ५अ, संपूर्ण. श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १८८३, आदि: श्रीजंबू गुरु चरण पादुका, अंति: चंपाराम० दिरह न गाई, गाथा-१६. ६. पे. नाम, जंबूस्वामी गुरुमंदिर लावणी-मथुरा, पृ. ५अ - ६आ, संपूर्ण. आव. चंपाराम दीवान, पुहिं. पद्य वि. १९वी आदि श्रीजंबूस्वामी को मंदिर अति चंपाराम० करौ सुदिन गानं, " , गाथा - १२. ७. पे नाम औपदेशिक पद सदगुरु, पृ. ६आ. संपूर्ण. श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: भला गुरु सोई है जगमैं; अंति: चंपाराम० सफल जन्म ताका, गाथा-४. ८. पे. नाम चेलासरूप पद, पृ. ६आ-७, संपूर्ण " शिष्यस्वरूप पद, श्राव. चंपाराम दीवान, पुडिं, पद्य, वि. १९वी आदि चतुर जोई सतगुर का चेला अति: चंपाराम० जन्म मरन वीता, गाथा-५. ९. पे. नाम. श्रावकसरूप पद, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. " आवकस्वरूप पद, आव, चंपाराम दीवान, पुडिं, पद्य, वि. १९वी आदि श्रावगी सबही है सच्चा; अंति: चंपाराम० करिनी की चतुराई, गाथा ६. १०. पे. नाम. धरमनाव पद, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय धर्मनाव, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी आदि वेगि नाव चढना रे प्रानी अंति चंपाराम० तजि जंठा सपना, गाधा १२. - ११. पे नाम औपदेशिक लावणी, पृ. ८- ९अ, संपूर्ण. " औपदेशिक लावणीगुरुवाणी, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी आदि अरे तू मानि गुरवानी० खिन; अंति: चंपाराम० सदमति की ठानी, गाथा ३. १२. पे नाम औपदेशिक लावणी, पू. ९अ ९आ, संपूर्ण श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: बुद्धि शुभ आतम रस माती; अंति: चंपाराम० सिद्धि लोक पावै, गाथा - ९. १३. पे नाम औपदेशिक पद-दान, पृ. ९आ-१०अ संपूर्ण. आव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी आदि भला है सदा दान देना देस; अति: चंपाराम० परभव सुधापान पीजै, " गाथा-४. १४. पे. नाम सीलमहिमा लावणी, पृ. १०अ संपूर्ण औपदेशिक लावणी- शीलव्रत, आव, चंपाराम दीवान, पुहिं. पद्य वि. १९वी आदि वडा गुन सीलतना जगमै जैसा अंति: चंपाराम सम वडा नही कोई. गाथा ३. o १५. पे. नाम तप उपदेस लावणी, पृ. १०अ १० आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक लावणी-तप, श्राव. चंपाराम दीवान, पहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: सजन तप नह● करि तपना देह; अंति: चंपाराम० इष्ट नाम जपना, गाथा-४. १६. पे. नाम. भावमहिमा लावणी, पृ. १०आ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी-भावमहिमा, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: सुज्ञानी जब लग मन गंधा तव; अंति: चंपाराम० भवसागर तरना, गाथा-३. १७. पे. नाम. कुमतिसरूप लावणी, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण.. औपदेशिक लावणी-कुमतिस्वरूप, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: सजन तेरी जानी चतुराई कुमत; अंति: चंपाराम०मानै सौ पीछे रोवै, गाथा-५. १८. पे. नाम. सुमतिसरूप लावणी, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी-समतिस्वरूप, श्राव. चंपाराम दीवान, पहि., पद्य, वि. १९वी, आदि: सजन तेरी देखी चतुराई सुमत; अंति: चंपा० अविचल यह नीकै जानी, गाथा-४. १९. पे. नाम. क्रोधफल लावणी, पृ. ११आ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी-क्रोधफल, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: क्रोध नहि करना रे सजन सुन; अंति: चंपाराम०भोगै ना को ज टारे, गाथा-३. २०. पे. नाम. मानफल लावणी, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी-मानपरिहार, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., गद्य, वि. १९वी, आदि: सजन सुनि मान वेगि त्यागौ; अंति: चंपा०आगमसुत्र सबकू समझावै, गाथा-३. २१. पे. नाम. मायाफल लावणी, पृ. १२अ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी-मायापरिहार, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: सजन सुनि माया दुखदाता; अंति: चंपाराम० गति जनम जनम डोलै, गाथा-४. २२. पे. नाम. लोभफल लावणी, पृ. १२आ, संपूर्ण. __ औपदेशिक लावणी-लोभपरिहार, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहि., पद्य, वि. १९वी, आदि: सजन सुनि लोभ दुष्ट भारी; अंति: चंपाराम० जो याकू त्यागे, गाथा-३. २३. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १२आ, संपूर्ण. श्राव. चंपाराम दीवान, पुहि., पद्य, वि. १९वी, आदि: जगतमैं जीवना थोरा रे; अंति: चंपाराम०ममता फंद कटै तोरा, गाथा-३. २४. पे. नाम. ७ व्यसननिवारण लावणी, पृ. १३अ, संपूर्ण. श्राव. चंपाराम दीवान, पुहि., पद्य, वि. १९वी, आदि: तजो ए सातौ दुखदाई कुविसन; अंति: चंपाराम दिवान० सजनू __ मनभाई, गाथा-५. २५. पे. नाम, औपदेशिक पद-फकीरी, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: फकीरी या विधि तै साची; अंति: चंपाराम०पलमै लाभ काज जावै, गाथा-६. २६. पे. नाम. औपदेशिक लावणी-इंद्रिय, पृ. १४अ, संपूर्ण. श्राव. चंपाराम दीवान, पुहि., पद्य, वि. १९वी, आदि: वृंदावन पाप कहा कीनू रे; अंति: चंपाराम सफल भयो जीन, गाथा-३. २७. पे. नाम, औपदेशिक लावणी, पृ. १४अ-१५आ, संपूर्ण. श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: सुरतिनै सुघर पार कीना; अंति: चंपाराम० वाटि सव न दीने, गाथा-१७. २८. पे. नाम. औपदेशिक लावणी-गुरुज्ञान, पृ. १५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०७ श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: गुर ग्यान है वांकां सुमति; अंति: चंपारामदीना द्रोहका साका, गाथा-३. २९. पे. नाम, औपदेशिक लावणी-सुगुरुमत, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण.. श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: सुगुरु मत सांझी दरसावै; अंति: चंपाराम० मन अनित भाव भावै, गाथा-४. ३०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १६अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-दसहरा, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: दसहरा वाद सत्यारी करिकै; अंति: चंपाराम० अरि मानै संका, गाथा-४. ३१. पे. नाम, औपदेशिक लावणी, पृ. १६आ, संपूर्ण. श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: जोई चतुर खिलारी जूवा सत; अंति: चंपाराम तामैं उठि जाना, गाथा-५. ३२. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १६आ-१७आ, संपूर्ण. श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: सजन मोहि सतगुरनै लूट्या; अंति: चंपाराम० चरन पकरि लीनां, गाथा-८. ३३. पे. नाम. औपदेशिक लावणी-ठगचेला, पृ. १७आ, संपूर्ण. श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: सजन मै सतगुरु ठगि लीना; अंति: चंपा० लावनी गाई धरि भाषा, गाथा-४, ३४. पे. नाम. औपदेशिक लावणी-मनमतंग, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण. श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: सजन तेरा मन मतंग मांता; अंति: चंपाराम० मोह जंग जीतै, गाथा-५. ३५. पे. नाम. मनघोडा लावणी, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण.. आध्यात्मिक सज्झाय, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: सजन तेरा मन चंचल घोडा कूद; अंति: चंपा०पहचैगा ना संदे लाना, गाथा-६. ३६. पे. नाम, औपदेशिक पद-मोह, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण. श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: काहेकू भूला रे चेतन; अंति: चंपाराम लामनी० लहै रूपअना, गाथा-५. ३७. पे. नाम. महावीर निर्वाणसमय लावणी, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण. महावीरजिन लावणी-दीपावली, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: धन्य घरि सुदिन सुभ आज वीर; अंति: चंपाराम० प्रात विमलभानं, गाथा-९. ३८. पे. नाम. सम्यक्त्वस्वरूप लावणी, पृ. १९आ, संपूर्ण. श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: लगनि जिह दरसनको लागी; अंति: चंपाराम० सदा सुमन धरता, गाथा-५. ३९. पे. नाम. अन्यत्वभावना लावणी, पृ. २०अ, संपूर्ण. श्राव. चंपाराम दीवान, पुहि., पद्य, वि. १९वी, आदि: सजन तू गाफिल किस वलतै रे; अंति: चंपाराम०सव ज्यौ लहरै जलतै, गाथा-५. ४०. पे. नाम. आदिजिन लावणी, पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण. श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: श्रीरिषभदेव का ध्यान हिये; अंति: चंपाराम दिमान० घन गाया, गाथा-४ ४१. पे. नाम, औपदेशिक लावणी, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: जीव उपदेस घन जग रूठ; अंति: चंपाराम० ग्यानघन गाया, गाथा-६. ४२. पे. नाम. औपदेशिक लावणी-माया, पृ. २१आ, संपूर्ण. श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: चेतन तू दृग मंदि भया; अंति: तजि माया चंपाराम० घन गाया, गाथा-२. ४३. पे. नाम. चेला की लावणी, पृ. २१आ-२२अ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी-विनीतशिष्य, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: गुरुते चेला वडा जगत मैं; अंति: चंपाराम० अपना चित्त गडा, गाथा-४. ४४. पे. नाम. औपदेशिक पद-सुगुरु, पृ. २२अ, संपूर्ण. श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: चेलाकू रंग दिया सुज्ञानी; अंति: चंपाराम० ताका सुफल जिया, गाथा-३. ४५. पे. नाम. साधारणजिन दर्शन स्तवन, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: जिन दरसन करना रे सुज्ञानी; अंति: चंपाराम० सुधापान पीजै, गाथा-५. ४६. पे. नाम, आध्यात्मिक होरी-गरु, पृ. २२आ-२३अ, संपूर्ण. श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: गुरननै अजब रंग कीना० मोह; अंति: चंपाराम० संग गोठि कीनी, गाथा-६. ४७. पे. नाम. औपदेशिक पद-सज्ञानी, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण. श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: मन सांड्याकू सिखा; अंति: चंपाराम० सिद्धि थान जईये, गाथा-४. ४८. पे. नाम. गुरुगुण लावणी, पृ. २३आ-२४अ, संपूर्ण. श्राव. चंपाराम दीवान, पुहि., पद्य, वि. १९वी, आदि: गुरुनै रुति वसंत कीनी जिन; अंति: चंपा० धुनिते घूमैं मडराती, गाथा-५. ४९. पे. नाम, महावीरजिन लावणी, पृ. २४अ, संपूर्ण. श्राव. चंपाराम दीवान, पुहि., पद्य, वि. १९वी, आदि: श्रीमहावीरजिन चरण अरुण; अंति: चंपा० भवि गहिअ तरै भवपारं, गाथा-३. १०१८६९ (+#) मानतुंगमानवती रास, संपूर्ण, वि. १८४१, कार्तिक शुक्ल, ११, रविवार, मध्यम, पृ. ४३, ले.स्थल. नामली, प्रले. मु. मेघराज (गुरु मु. वीरमजी); गुपि. मु. वीरमजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:मानतुंगमानवतीचोपई., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४३३-३६). मानतुंगमानवती रास-मषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: घरिघरि मंगलमाला हे, ढाल-४७, गाथा-१०१७. १०१८७० (+#) आचारांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९९, कार्तिक कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १६१, ले.स्थल. फलोधी, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. १५०००, टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११, ४४४४-४८). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: विमुच्चति त्ति बेमि, अध्ययन-२५, ग्रं. २६४४. आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मइ एहवो सांभल्यो हे; अंति: सांभल्यो तेहवोइज कह्यो छै. १०१८७१ (+) आचारांगसूत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १६५९, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १९२, ले.स्थल. नागपुर, राज्यकाल रा. अकबर; रा. रायसिंघजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:आचा०वृ०., संशोधित. कुल ग्रं. १२३००, जैदे., (२६४११, १७७५५-५९). आचारांगसूत्र-टीका # , आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य, वि. ९१८, आदि: जयति समस्तवस्तु; अंति: मार्गप्रवणोस्तु लोकः, श्रुतस्कंध-२, ग्रं. १२०००, (वि. मूलपाठ प्रतीक रूप में दिया है.) For Private and Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०१८७२ (+) खंडप्रशस्ति सह सुबोधिका टीका, संपूर्ण, वि. १८३९, चैत्र शुक्ल, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ११५, प्रले. रामसनेही; लिख. चिरंजीव सेठू, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : खंडप्र०., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६×११, ५-९४२७-३९). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir खंडप्रशस्ति, क. हनुमान, सं., पद्य, आदि कृत क्रोधे यस्मिन् अंतिः कल्कानि कल्की हरिः, अध्याय १०, श्लोक १५९, ग्रं. ३३६. खंडप्रशस्ति-सुबोधिका टीका, पं. गुणविनय गणि, सं., गद्य वि. १६४१, आदि श्रीपार्थं फलवर्द्धिका; अंति महार्णवस्यैव घटत इति, (वि. अंत में गुणविनय गणि की गुरुपरम्परा दी गई है.) १०१८७३ (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१०, प्र. वि. हुंडी: ज्ञातासूत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद लकीरें संशोधित., जैदे., ( २६.५x११, ११४३८-४२). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि तेणं कालेणं तेणं समए: अंति: नायाधम्मकहाओ सम्मत्ताओ, अध्ययन - १९, ग्रं. ५५००. १०१८७४. (+) शतक नव्य व सप्ततिका प्राचीन कर्मग्रंथ सह टीका, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २९२-१२३ (१ से १२३)=१६९, कुल पे. २, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ- द्विपाठ. कुल ग्रं. १४०००, जैदे., (२४.५x११, १३-१६४५१-५५). १. पे. नाम. शतकसूत्र सह स्वोपज्ञ टीका, पृ. १२४अ -२१३आ, संपूर्ण. , शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी १४वी आदि नमिअ जिणं ध्रुवबंधोदय; अंतिः देविंदसूरि० आवसरणा, गाथा १००. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५ स्वोपज्ञ टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः यो विश्वविश्वभविनां भवबीज; अंतिः समस्तु सर्वोपि तेन जनः ग्रं. ४३००, २. पे. नाम. सप्तति कर्मग्रंथ सह टीका, पृ. २१४अ - २९२अ, संपूर्ण. सप्ततिका कर्मग्रंथ-६, प्रा. पद्य वि. १३वी २४वी आदि सिद्धपएहि महत्व; अति: एगूणा होइ नवईड, गाथा-९३. सप्ततिका कर्मग्रंथ-६ टीका, आ. मलयगिरिसूरि से गद्य, आदि: अशेषकर्माशतमः समूहक्षवाय अति धर्म सं., परममंगलम् ग्रं. ३८८०. १०९ י' १०९८७५. नवतत्त्वप्रकरण सह वालावबोध, अपूर्ण, वि. १८६४, चैत्र कृष्ण, १० सोमवार श्रेष्ठ, पू. १२४-२ (१,५१)=१२२, प्रले. मु. धीरचंद (गुरु मु. वखतराम); गुपि. मु. वखतराम (गुरु आ. महेंद्रसागरसूरि); आ. महेंद्रसागरसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५X११, १३X३७). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति (अपठनीय), गाधा- ६०, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा - बालावबोध, मु. देवचंद, मा.गु., गद्य, वि. १७६६, आदि: (-); अंति: जगत्रनिं शिरोमणी छै, (अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. पाठ- "सांभलिवे करी जीवने शुद्ध रुचि शुद्ध श्रद्धा" से "परिहार विशुद्धि "" संयमी हुवै इति तीजो३ चोथो सूक्ष्म सप" तक व "राय संयमते कही जे घणो मोहकर्म ध्यानाग्नि की चाल्यो" से है.) १०९८७६. (+) सूत्रकृतांगसूत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २९१, प्र. वि. संशोधित कुल ग्रं. १३०००, जैवे. (२४.५४११, १५४४९-५५). सूत्रकृतांगसूत्र- बृहद्वृत्ति, आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य वि. १०वी, आदि स्वपरसमयार्थसूचकमनंत अंतिः चरणगुणट्ठिओ साहुत्ति, ग्रं. १२८५०. , "1 १०१८७७ (+०) अंजनासुंदरी रास, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १६. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी: अंजनानो रास., संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२५.५४११.५ १३-१६४३३). अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि सीयल समोवड को नही; अंति: (-), (पू.वि. गाथा १३१ अपूर्ण तक है.) १०१८७८. धर्मविषये धर्मबुद्धि चौपाई, अपूर्ण, वि. १८१८, वैशाख कृष्ण, २, शनिवार, मध्यम, पृ. २३-२(१ से २)=२१, प्र. मु. हीरा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २५.५X११.५, १५X३७). For Private and Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री रास, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: (-); अंति: गृह शिवसुख सुजस लहै, ढाल-३९, गाथा-५३५, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-८ अपूर्ण से है.) १०१८७९ (+) राजप्रश्नीयसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०९, प्र.वि. हुंडी:राजप्र०वृत्तिः., पंचपाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ५७७७, जैदे., (२६४११.५, १२-१७४३३-३६). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: पस्से पस्सावणीए णमो, सूत्र-१७५, ग्रं. २१२०. राजप्रश्नीयसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणमत वीरजिनेश्वर; अंति: मलयगिरिणा० भवतु कृती, ग्रं. ३६५७. १०१८८० (#) उपदेशमाला सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १५२६, माघ कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ७९+१(६७)=८०, प्र.वि. कुल ग्रं. ५०००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (५८५) यावद् व्योमसरः क्रोडे, जैदे., (२६४११, १७४५३-६०). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४. उपदेशमाला-बालावबोध, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १४८५, आदि: श्रीवर्धमानजिनवर; अंति: सिद्धांतप्राय जाणवी, ग्रं. ५९००. १०१८८१ (+) बृहत्क्षेत्रसमास सह टीका, संपूर्ण, वि. १६२३, आश्विन कृष्ण, ४, मंगलवार, मध्यम, पृ. ९७, प्रले. आ. भावदेवसूरि (गुरु आ. देवसूरि, खंडिलगच्छ); गुपि. आ. देवसूरि (खंडिलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ७७४०, जैदे., (२६४११.५, २०४५२-६०). बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ६वी, आदि: नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण; अंति: वी उत्तमसुयसंपयं देउ, अधिकार-५, गाथा-६५५. बृहत्क्षेत्रसमास-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, वि. १३वी, आदि: जयति जिनवचनमवितथममित; अंति: सिद्धि तेनाश्रुत लोकः, अध्याय-५. १०१८८२. लोकनालिद्वात्रिंसिका सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(६)=७, दे., (२६.५४११.५, ३४३०). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदंसणं विणा जं; अंति: जहा भमह न इह भिसं, गाथा-३२, (पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., गाथा-१७ अपूर्ण से २१ अपूर्ण तक नहीं है.) लोकनालिद्वात्रिंशिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हे वीतराग देव ताहरु; अंति: (-), (पृ.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१७ अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) १०१८८३. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७०३, भाद्रपद शुक्ल, २, जीर्ण, पृ. १२०-२(९६ से ९७)=११८, ले.स्थल. लाहोर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ५४२८-३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: भुज्जो उवदंसेइ त्तिबेमि, व्याख्यान-८, ग्रं. १२१६, (पू.वि. पत्रांक ९५ व ९८ चिपके हुए होने के कारण पाठ अपठनीय है.) कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल अवसर्पिणीनो; अंति: भल्यउ गुरुमुखि तिमज भण्या. १०१८८४ (+) प्रवचनसारोद्धार, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८२-१(१) ८१, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, ११४३३). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से १६३९ अपूर्ण तक है.) १०१८८५ (#) कल्पसूत्र की कल्पलता टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४६-४८(१ से २६,३१,४८ से ५४,५७ से ६६,९९ से १०१,१२६)=९८, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. द्विपाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११,१६x४२-४६). कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. त्रिशलादेवी स्वप्न-१ की टीका अपूर्ण से प्रशस्तिगाथा-१८ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं., वि. मूल का प्रतीक पाठ दिया है.) For Private and Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०१८८६ (+#) वैदर्भी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ९, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२४३३-३८). वैदर्भी चौपाई, मु. प्रेमराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जैन धर्ममांहि जागता; अंति: प्रेमराज० वै अवतार, गाथा-२०९. १०१८८८. (+) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८०, माघ शुक्ल, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३०, ले.स्थल. जालोर, प्रले. ग. श्रीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ५४४३-४६). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३४९. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ अरिहंत; अंति: उत्कृष्टि सिद्धिनी अवगहे. १०१८९०. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३-१३(१ से १३)=१०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:उत्तरा०., जैदे., (२६४११.५, १०-१३४२९-३२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-९ गाथा-६० अपूर्ण से अध्ययन-१५ तक है.) १०१८९१ (+) कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७२-२१(२४ से ४४)=५१, प्र.वि. हुंडी:अंतर्वाच्य., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १३४४७). कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, प्रा.,सं., प+ग., आदि: पुरिमचरिमाणकप्पो; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पाठांश- "विजयधरणेंद्रसूरीश्वराणां आज्ञावर्ती" तक लिखा है., वि. अंत की कुछ पंक्तियाँ बाद में लिखी प्रतीत होती १०१८९२ (+) केवलिसमुद्धातस्वरूपादि आगमिक विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-३(१ से ३)=१३, कुल पे. १०, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १७७५७-६२). १. पे. नाम. केवलिसमुद्धातस्वरूप विचार, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., गद्य, आदि: (१)वेअण१ कसायर मरणे३ वेउव्वि, (२)समेकिभावनोत्प्राबल्येन; अंति: पंचमनुष्याणां तु सप्तापि. २. पे. नाम, पुद्गलपरावर्तस्वरूप विचार, पृ. ५आ-७अ, संपूर्ण. पद्गलपरावर्तद्रव्यस्वरूप विचार, सं., गद्य, आदिः (१)दव्वे खित्ते काले भावे, (२)द्रव्यक्षेत्रकालभावान; अंतिः स्पृष्टानि च नगण्यंत. ३. पे. नाम. चारित्रपंचकस्वरूप विचार, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: सामाइअंच पढमं० समो राग; अंति: केवलिभवमयोगिकेवलि भवं च. ४. पे. नाम, जिनकल्पिक यथालंदिकस्वरूप विचार, पृ. ८आ-९आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: जिनकल्पं प्रतिपित्सुः; अंति: केवलं जघ० गुरुज्ञेयं. ५. पे. नाम. प्रतिमा विचार, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. ११ प्रतिमा विचार-श्रावक, सं., गद्य, आदि: मासाई सत्तं ता० एकमासिकी१; अंति: चतूरात्रिंदिवमाना स्यात्, (वि. प्रवचनसारोद्धारगत.) ६. पे. नाम. चरणकरणसत्तरी विचार, पृ. १०आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., गद्य, आदिः (१)वय५ समणधम्म१० संजम१७, (२)ननु चतुर्थव्रतांतर्गत; अंति: आपन्ने एवानुष्टीयंते. ७. पे. नाम. प्रायश्चित्तादि विचार संग्रह, पृ. १०आ-११आ, संपूर्ण. आगमिक विचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: आलोअण पडिक्कमणे मीस विवेग; अंति: चतुःशतगुणमेव ___ प्रमाणांगुलं, (वि. आलोयणा, आहारक, निहारकादि विचार.) ८. पे. नाम. संज्ञा विचार, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: सन्निस्स० संज्ञिश्रुतं; अंति: स्मरणचिंताद्यतीतत्वादिति. ९. पे. नाम. सप्तस्वर विचार, पृ. १३अ-१४अ, संपूर्ण. प्रा.,सं., गद्य, आदि: सत्त सरा प० तं०सज्जे रिसह; अंति: वक्तुमिष्टत्वाददोष इति. १०.पे. नाम. मतिज्ञानादि भेदप्रभेद विचार, पृ. १४अ-१६आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सं., गद्य, आदि: मतिज्ञानं द्विधा श्रुत; अंति: भेदान्मतिश्रुतयोर्भेदः. १०१८९३. (+) कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५-३(१ से ३)=३२, अन्य. उपा. चारित्रविजय (गुरु उपा. सोमविजय, तपागच्छ); गुपि. उपा. सोमविजय (गुरु आ. हीरविजयसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२६४११, १५-१८४५५-६३). कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: नलिनी पत्रैः उदकं, (पू.वि. पाठ-"प्रणामार्थं बहुगजाश्चादिपरिवार कलित षोडश" से है.) १०१८९५ (#) पुण्यप्रकाश स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १२४३३-३६). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ की गाथा-२ अपूर्ण तक है.) १०१८९६. आदिजिन विवाहलो, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:आद्य., जैदे., (२६४११.५, ११४३७-४३). आदिजिन विवाहलो, मा.गु., पद्य, आदि: शासन देवीअ पाय; अंति: (-), (पू.वि. पाठ-"कृपा करी दिउ मुझ भवि-भवि वली मांगू" तक है., वि. प्रतिलेखक ने गाथाक्रम नहीं दिया है.) १०१८९९ (+) सम्यक्त्व कौमुदी, अपूर्ण, वि. १७८७, पौष कृष्ण, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. ४३-१(१)=४२, ले.स्थल. गोघदानगर, प्रले. पंन्या. दयाकुशल गणि (गुरु पंन्या. विद्याकुशल गणि); गुपि. पंन्या. विद्याकुशल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरे-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १९००, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३४-४८). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., प+ग., वि. १४५७, आदि: (-); अंति: माद्धर्मो विधीयताम्, पद-४३८, ग्रं. १६७५, (पू.वि. पाठ-"वसरणं दृष्टा हृष्टा सन्मनसि विचारयति" से है.) १०१९०० (+) अढीद्वीप विचार व पुद्गलपरावर्त विचार, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-३(१ से ३)-५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, २२४४३-४९). १. पे. नाम. अढीद्वीप विचार, पृ. ४अ-७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ढाईद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: पूर्णिमा० विशेषथी वाधे छे, (पृ.वि. मेरूपर्वत वर्णन अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, पुद्गलपरावर्त विचार, पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम पल्योपमनि विगत; अंति: मेद२ चर्म३ माताना जाणवा१. १०१९०५ (+) जयतिहुअण स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. जीर्णगढ, प्रले. मु. लालकीर्ति (गुरु पं. समयनंदि मुनि); गुपि.पं. समयनंदि मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. कुल ग्रं. ३००, जैदे., (२६४११.५, १४४४८). जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख जय; अंति: अभय० विन्निवइ आणंदिय, गाथा-३०. जयतिहुअण स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: अत्रायं वृद्धसंप्रदायः; अंति: स्त्रिलोकलोकश्लाघितः, ग्रं. २५०. १०१९०६. (+) चित्रसेनपद्मावती चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ४४३२). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, पा. राजवल्लभ, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२७६ अपूर्ण तक है.) चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: आदि जिनपति जे श्रीरी; अंति: (-). १०१९०७. सामायिक प्रतिक्रमणादि विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. ७, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३६). १.पे. नाम. सामायिक प्रतिक्रमणादि विधि संग्रह, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण.. प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही; अंति: आसा० पछै देव वांदवा. २.पे. नाम. ३२ दोष सामायिक, पृ. ६अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org सामायिक ३२ दोष, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि (अपठनीय); अति: मिली बत्रीस दोष जाणवा. ३. पे. नाम. श्रावकना पोसाना १८ दोष, पृ. ६आ, संपूर्ण. १८ पौषध दोष, मा.गु., गद्य, आदि: अणपोसातीनो आण्यो; अंति: संसारनी वात न करवी. ४. पे नाम. १९ दोष कायोत्सर्ग, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण १९ कायोत्सर्ग दोष विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: घोडाननी पेरे एग पगड़ शरीर, अंतिः दोष श्रावकने न लागे. ५. पे नाम. मुहपत्तीना ५० बोल, पृ. ७आ ८अ संपूर्ण. मुखवखिकाप्रतिलेखन ५० बोल, संबद्ध, मा.गु, गद्य, आदि सूत्र अर्थ तदुभव चिंतनुं अति: ५० बोल मुहपत्तिना Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाणवा. ६. पे नाम. भोयण विधि, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण. श्रावकदेवसिक आलोयणासूत्र तपागच्छीय, संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि सातलाख पृथ्वीकाय, अति तस्स मिच्छामिदुक्कड़, ७. पे नाम. तिविहार उपवास विधि, पृ. ८आ९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. "" प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा. गद्य, आदि सूरे उगाए अब्भत्त, अति: (-), (पू.वि. एकल्लठाणा पचक्खाण तक है.) १०१९०८. (५०) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १६६२, माघ कृष्ण, २, बुधवार, मध्यम, पृ. ९४, अन्य. मु. चंदनलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : ज्ञातावृत्ति., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १५x५१). ज्ञाताधर्मकथासूत्र टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य वि. ११२०, आदि नत्वा श्रीमन्महावीर, अंति विशत्यधिकेषु विक्रमसमाना, अध्ययन- १९ . ३८००. , , १०१९१०. (४) प्रियमेलक चउपई, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ९, प्र. वि. हुंडी : प्रियमे०. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे., (२४x११, १५X३२-४०). "" प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंतिः समयसुंदर अधिक प्रमोद, ढाल ११, गाथा २२०. १०९९११. (+०) सुमित्रकुमार चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १६-६ (१ से ५, ९) = १०, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५x११, १५४४२). सुमित्रकुमार चौपाई, ग. धर्मसमुद्र वाचक, मा.गु., पद्य, वि. १५६७, आदि (-); अंति (-) (पू. वि. गाधा- १३२ अपूर्ण से २०७ अपूर्ण तक व गाथा- २३० अपूर्ण से ४२७ अपूर्ण तक है.) १०१९१२. (+) परदेशीप्रबोध, संपूर्ण, वि. १७४७, आश्विन शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले. स्थल. सरा, प्रले. श्रावि. राजलदे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११, १८x४८-५२). केशीगणधर प्रदेशीराजा चौपाई, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमी श्रीअरिहंत, अंति: ज्ञानचंद० सुद्ध आधार, ढाल ४१, गाथा - ६००. १०१९१३. (#) कर्मग्रंथ १ से ४ सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५० - २ (१ से २) =४८, कुल पे. ४, प्र. वि. अक्षरों स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १५X३९-४३). १९३ १. पे. नाम. प्रथम कर्मग्रंथ सह बालावबोध, पृ. ३अ-१८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ १, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी १४वी, आदि (-); अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६०, (पू.वि. गाथा-६ से है.) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१- बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अनंतवीर्य पणु पांमयो.. २. पे. नाम. कर्मग्रंथ द्वितीय सह बालावबोध, पृ. १८अ - २८आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदिय नमहतं महावीरं, गाथा-३४. For Private and Personal Use Only कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२- बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: तह कहतां तेणें प्रकारें; अंति: सूरिइं वांद्या छें. ३. पे. नाम कर्मग्रंथतृतीयबंधस्वामित्व सह वालावबोध, पृ. २८आ-३५अ, संपूर्ण Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: कर्म परमाणुनो जीव प्रदेश; अंति: जाणवो कर्म स्तव सांभलीने. ४. पे. नाम. चतुर्थ कर्मग्रंथ सह बालावबोध, पृ. ३५अ-५०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जीअमग्गण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८३ तक है.) | षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जिन कहिइं श्री तीर्थंकर; अंति: (-). १०१९१५. (#) बंधहेतूदयत्रिभंगी प्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १९, प्र.वि. त्रिपाठ. कुल ग्रं. १२६९, टीकादि का ___ अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११, २४५२). बंधहेतूदयत्रिभंगी प्रकरण, मु. हर्षकुल, प्रा., पद्य, आदि: बंधनहेउविमुक्कं वंदि; अंति: सिरिसायरसूरिसीसेणं, गाथा-६२. बंधहेतूदयत्रिभंगी प्रकरण-टीका, ग. विजयविमल, सं., गद्य, वि. १६०२, आदि: जयति जगत्त्रयनाथः; अंति: स्वपरहितार्थेमिति. १०१९१६. मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२५४११.५, १४४२९-३२). मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ ह्रीं श्रीं छप्पनकोडि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चंद्रसाधन मंत्र अपूर्ण तक लिखा है.) १०१९१७. (+) भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. हुंडी:भक्तामर., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२४४११.५, ५४३२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणित मौलि; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-४१ अपूर्ण तक है.) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्त कहतां भक्तिकारक एहवा; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. भक्तामर स्तोत्र-कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमानतुंग आचार्य; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कथा-१ तक __ लिखा है.) १०१९१८. संबोधसत्तरी, चतुःशरणप्रकीर्णक सह टबार्थ व प्रज्ञापनासूत्र पद-१ श्लोक १२२-१२३, अपूर्ण, वि. १७९६, चैत्र कृष्ण, २, बुधवार, मध्यम, पृ. २०-१७(२ से ७,९ से १९)=३, कुल पे. ३, ले.स्थल. बीदूपुर, प्रले. मु. रामचंद्र (गुरु मु. चतुराजी, विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१३८९) जलाद्रक्षे स्थलारक्षे, जैदे., (२४४११, ४-८४३९). १.पे. नाम. संबोधसत्तरी सह टबार्थ, पृ. १आ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोयगुरु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ से ४ अपूर्ण व ___गाथा-५४ अपूर्ण से गाथा-६२ अपूर्ण तक है.) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनै त्रिलोक; अंति: (-). २.पे. नाम. चतःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, पृ. २०अ-२०आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. चतःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदिः (-); अंति: वंझ कारणं निव्वुई सुहाणं, गाथा-६३, (पू.वि. गाथा-५७ अपूर्ण से है.) । चतःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, म. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (१)मोक्षना सास्वता सुखानउ, (२)विमलकीर्त० हर्ष वर्षणम्. ३. पे. नाम. प्रज्ञापनासूत्र-प्रथम पद गाथा १२२ से १२३, पृ. २०आ, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०१९१९ (+) वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७०, फाल्गुन शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. आहोरनगर, प्रले. पं. वल्लभविजय गणि (गुरु पं. गुणविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ५४३६). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: लहइ जीवो सासयं ठाणं, गाथा-१०४. For Private and Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ११५ वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ए संसार असार छै सुख नही; अंति: लहै जीव सास्वतो ठाम. १०१९२० (+) गीत, स्तवन व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८-२(१ से २)=६, कुल पे. २०, प्र.वि. हुंडी:भासावली., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १५४४५-५०). १. पे. नाम. जंबूस्वामी भास, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. उपा. न्यायसागर वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंतिः प्रणमु जंबूपाय अरविंदो रे, गाथा-२५, (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, शीयल सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. शीयलव्रत सज्झाय, उपा. न्यायसागर वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिजी मुनिजी मझाएपर धरिए; अंति: कहिजी न्यानसागर मनरंगि, गाथा-११. ३. पे. नाम. रुषभदेव गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, सिं., पद्य, आदि: मरूदेवी माता इंवइ आखइ इधर; अंति: मई सोरी समयसुंदर मनरंगि, गाथा-५. ४. पे. नाम. राजीमती गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. राजिमतीसती गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सूहव चांपलु रुपइ रुयडु; अंति: समसुंदर प्रभु सोभाग, गाथा-६. ५. पे. नाम. साधुभावना गीत, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण, ले.स्थल. जमालपुर. उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: उंन साधकइ जाउं बलिहारइ; अंति: समय० आप तरइ अवरां तारइ, गाथा-३. ६. पे. नाम. सालिभद्र सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. शालिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. न्यायसागर वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: सकगुंणहि ओपंतिनयर; अंति: न्यानसागर मुंणमा गाय, गाथा-१३. ७. पे. नाम. अरणक गीत, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. अरणिकमुनि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: विहरण वेला पांगरि उरे हा; अंति: समयसुंदर० शुद्ध परणाम, गाथा-९. ८. पे. नाम, पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिनि पय नमी; अंति: ऋद्धि सिद्धि आनंद ए, गाथा-११. ९.पे. नाम, औपदेशिक गीत, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, म. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: च्यार घटिका जव पाछली हुइ; अंति: रुषभदास गुण निति गावई, गाथा-१२. १०.पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ.५आ-६अ, संपूर्ण. मु. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मन दरजीकुं जीव कहि सुनु; अंति: प्रीतिविजइ कुंभावि, गाथा-५. ११. पे. नाम. नेमिगीत, पृ. ६अ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, मु. माल मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: हुं बलिहारी रे वीलवती; अंति: माल० परणी मुगति कुंयारी, गाथा-१२. १२. पे. नाम. प्रतिबोध गीत, पृ. ६अ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत, मु. माल मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: कहित शिष्या कामिनी भरतार; अंति: कहि सबंही सुरनर मुनिमाल, गाथा-५. १३.पे. नाम. निजमनशिविषये हितशिक्षापना, पृ. ६आ, संपूर्ण, पठ. मु. ज्ञानासागर, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक गीत, म. आभविजय, मा.ग., पद्य, आदि: सरसति मात पसाउलि रे; अंति: आभविजय० स्वर्गनां लील, गाथा-९. १४. पे. नाम, जीव प्रतिबोध गीत, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ११६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय-जीव, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जीवडा रे जिनधर्म कीजीइ; अंति: कहि ि लहि भवनु पारो रे, गाथा- ११. १५. पे. नाम. जीव प्रतिबोध गीत, पृ. ७अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि बुझि रे तुं बुझि प्राणी; अंति: इम पामइ भव पार रे, गाथा- ७. १६. पे. नाम. जीवकाया प्रतिबोध गीत, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. o औपदेशिक गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि मोरा जीवनजी जीव तु चालि; अति समयसुंदर ऊपरि करे आसता, गाथा - ६. १७. पे नाम. अरहन्नकमुनिवर गीत, पृ. ७आ, संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाय, वा. भुवनकिरति, मा.गु., पद्य, आदि अरहन्नकमुनि एक समझ, अंति: नमइ हो भुवनकीरति उमाहिके, गाथा-७. १८. पे. नाम. बलदेवमुनि सज्झाय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. बलभद्रमुनि सज्झाय, उपा. राजरत्न पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: संवेगी बलदेव साधु; अंति: सिउं करी राजरत्न Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उवज्झाय, गाथा ७. १९. पे. नाम. कुरगडूरिषि सज्झाय, पृ. ८अ -८आ, संपूर्ण. कूडगडुमुनि सज्झाय, उपा. राजरत्न पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंदई भाषीउ रे दशविध; अंति: राजरत्न० धिन ए रिषिराय रे, गाथा- १६. (+) २०. पे नाम, जीवदया गीत, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक गीत-जीवदया, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: दुलहु नरभव भवि भवि भमतां; अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) १०१९२१. नवपद गुणवर्णन खामणा, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. ७-२ (१ से २) ५. पू. वि. बीच के पत्र हैं. जैवे. (२५x११.५, १४४४०). नवपद खमाणा विधि, सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. साधुगुण- ११ से सम्यक्त्वदर्शनगुण ३१ अपूर्ण तक है.) | कल्पसूत्र सह कल्पलता टीका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १३३-१९८ (१ से ११२,१२६ से १३१) = १५, १०१९२२. पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैवे. (२५x११.५, ६-१३x४१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अति (-), (पू.वि. व्याख्यान-६ महावीर केवलज्ञानवर्णन अपूर्ण से व्याख्यान- ७ नेमिनाथ दीक्षावर्णन अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: (-); अंति: (-). १०१९२३. कल्पसूत्र-अष्टम अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, जैदे., (२५X११.५, ७X२६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-): अंति: भुज्जो उवदंसेइ तिबेमि, प्रतिपूर्ण १०१९२४. नवपद स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११-१ (१) = १०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५X११.५, ६x२६). नवपद स्तवन, मु. कुशल, पुहिं., पद्य, आदि (-); अंति (-), (पू. वि. अरिहंतपद स्तवन गाथा ३ अपूर्ण से तपपद स्तवन गाथा- २ तक है.) १०१९२५. सकलात् स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैवे. (२४४११.५, १०४२६). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलाहंत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: पार्श्वनाथ श्रियेस्तु व श्लोक-२५. १०१९२०. ८ कर्म ३० बोल विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ८, जैदे. (२५.५४११, १९४३८). " ८ कर्म ३० बोल विवरण, मा.गु., गद्य, आदि ज्ञानावरणी आंखिना पाटा, अंति (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., द्वितीय बोल लेश्याद्वार तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ११७ १०१९२८. (#) नवतत्त्व प्रकरण की अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:नवतत्त्ववृत्ति., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १७७५१). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति श्रीमहावीर; अंति: (-), (पू.वि. अष्टम बंधतत्त्ववर्णन अपूर्ण तक है.) १०१९२९. श्रावककरणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४११, ८४३७). श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है.) १०१९३० चंद्रराजा १० भव वर्णन-पूर्व भव, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४११, ४४४०). चंद्रराजा १० भव वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: कोसीरो जीव भोवी रमती हुई; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०१९३१. (#) रत्नसारकुमार कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-१(१)=१८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ९४२५). रत्नसारकुमार कथा, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-५ से है व २०० तक लिखा है.) १०१९३२ (+#) संबोधसप्ततिका व १४ गुणठाणा-४८ प्रकृति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ३४३४-४५). १. पे. नाम. संबोधसप्तति सह टबार्थ, पृ. १अ-१३आ, संपूर्ण. संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोयगुरुं लोआ; अंति: सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा-८९. संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: एँ नमस्ते जगन्नेत; अंति: गमन योग्य सिद्धपद पामइ. २. पे. नाम. १४ गुणठाणा-४८ प्रकृति, पृ. १३आ, संपूर्ण, पे.वि. "चक्किदुगं हरिपणगं" चक्रवर्तिवासुदेव की १ गाथा अंत में दी १४ गुणठाणा, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: सत्ततुटै सत्ततुटै तुरिय; अंति: अडयालसो थाय सिद्धि तो एवि. १०१९३४.(+) उपदेशमाला सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६४-१५५(१ से १५५)=९, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ४-२०४३८-४४). १. पे. नाम, उपदेशमाला सह टबार्थ, पृ. १५६अ-१५७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जिणवयणविणिग्गया वाणी, गाथा-५४४, (पू.वि. गाथा-५३५ अपूर्ण से है.) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: वाणी श्रुतदेवता ते. २. पे. नाम. उपदेशमाला की कथा, पृ. १५७अ-१६४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: हवे श्रीउपदेशमाला; अंति: (-), (पू.वि. जिनदास गणि देशनावर्णन अपूर्ण तक १०१९३५ (+) विवाहपन्नत्ति सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७२-२६४(१ से २६०,२६२ से २६४,२६६)=८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:विवाहपन्न., संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ७X४१-५०). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शतक-८ उद्देश-४ पाठ "निरवसेसं भाणियव्वं" से उद्देश-७ पाठ "उववायगती४ विहायगती५" तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) भगवतीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. आवश्यकतानुसार टबार्थ लिखा है.) १०१९३६. (+) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १५४३९). For Private and Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाण; अंति: (-), (पू.वि. बृहच्छांति स्तोत्र-"शांति दिशतु मे गुरु" पाठांश तक है., वि. नवकार, उवसग्गहर, तिजयपहुत्त, नमिऊण, अजितशांति व भक्तामर स्तोत्र है.) १०१९३७. (+#) पुण्यपालराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-२(१ से २)=७, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १०x४०). पुण्यपालराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण से ११७ अपूर्ण तक है.) १०१९३८. (#) नवतत्त्व, संपूर्ण, वि. १९१३, वैशाख शुक्ल, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. चंदनलाल (गुरु मु. रुडमल); गुपि. मु. रुडमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १७४५६). नवतत्त्व विचार*, मा.गु., गद्य, आदि: जीव अजीव पुन पापा आसरव; अंति: एक सिद्धा त्रणय सिद्धा. १०१९३९ (+) गौतमस्वामि रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.८,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (१६४११.५, ९४२५). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.ग., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमला; अंति: सयल संघ उद्योत करो, गाथा-४९. १०१९४० (+) अंजनांसतीनो रास, संपूर्ण, वि. १९३७, आश्विन शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. १६, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. छोटु व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अंजनाचोप., संशोधित., दे., (२५४११.५, १७४४५). अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगणधर गौतम प्रमुख; अंति: रामभारिज्या जगततणी मात तो, ढाल-२२, गाथा-१६८. १०१९४१ (+) मनिएकादसि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३६, पौष शुक्ल, श्रेष्ठ, पृ.५, प्रले. करसन; पठ. श्रावि. जडीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११, ११४३०-३४). मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजय, मा.ग., पद्य, वि. १७३२, आदि: धुरि प्रणमं जिन महरिसी; अंति: जसविजय जयसिरि लही, ढाल-१२, गाथा-६२. १०१९४२. (#) शुकनदीपिका चौपाई, अपूर्ण, वि. १७२२, कार्तिक कृष्ण, ११, रविवार, मध्यम, पृ. १०-१(२)=९, ले.स्थल. सिरोही नगर, पठ. ग. हीरजी (गुरु आ. जयकल्याणसूरि); प्रले. आ. जयकल्याणसूरि; राज्ये आ. कमलकलशसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१०१०) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, जैदे., (२५४११.५, १८४४६). शुकनदीपिका चौपाई, म. जयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल बुद्धि आपे सरसती; अंति: भणतां गुणता सदा आणंद, गाथा-३४९, (पू.वि. गाथा-३९ अपूर्ण से गाथा-७३ तक नहीं है.) १०१९४३. गणावली चउपाई, अपूर्ण, वि. १७२५, कार्तिक कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ११-३(१,३ से ४)=८, ले.स्थल. पत्तन्ननगर, प्रले. ऋ. हेमराज (पूर्णिमागच्छ); अन्य. पं. लक्ष्मीचंद जी (गुरु पं. सामंत जी); गुपि.पं. सामंत जी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:गुणावली रास. कसूबीआ पाटक., कुल ग्रं. २६५, जैदे., (२५४११, १२४३१). गुणावलि रास, मु. ज्ञानमेरु, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: (-); अंति: संपद सवे मनवंछित पावति, ढाल-१६, (पू.वि. ढाल-२ गाथा-८ अपूर्ण से ढाल-३ गाथा-१४ अपूर्ण तक व ढाल-६ गाथा-४ अपूर्ण से हैं.) १०१९४४ (+#) संजयाना ३६ द्वार, संपूर्ण, वि. १८५३, फाल्गुन शुक्ल, १०, बुधवार, जीर्ण, पृ. ५, ले.स्थल. मेडता, प्रले. सा. कुसाला (गुरु सा. नेतुजी); गुपि.सा. नेतुजी,प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नियंठा., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, २१४५५). संजया बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पणवण१वेण२ रागे३ कप४; अंति: सामायक ना संखात गुणा, (वि. भगवतीसूत्र शतक-२५ का उद्देशक-६,७ नियंठा-संजया ३६ द्वार पर आधारित है.) १०१९४५. जिनचैत्यवंदना स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४११.५, ६x४३). जिनचैत्यवंदना स्तति, सं., पद्य, आदि: देवोनेकभवार्जितो जित; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०१९४६. (-) नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९१७, आषाढ़ शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ६-२(१ से २)-४, प्रले. मु. सकलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नवतत्त्व., अशुद्ध पाठ., दे., (२२४१२, ९४२१). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: बुधा बुह वोहि कणिक्काय, गाथा-५४, (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण से है.) १०१९४७. अध्यात्म गीता सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. द्विपाठ., जैदे., (२५.५४११, १२४४३). अध्यात्म गीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमीयै विश्वहित; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) अध्यात्मगीता-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणमीयै कहतां भक्ति; अंति: (-). १०१९४८. सूत्रकृतांग सूत्र, उत्तराध्ययन सूत्र व पंचपद स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ४, जैदे., (२४.५४११, १३४३५-४०). १. पे. नाम. सूत्रकृतांगसूत्र-अध्ययन १०, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम, उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ९, पृ. २अ-४अ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. श्री बिरत्थुत्ति, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुछिसुणं समणा माहणा; अंति: ___ आगमीसंत्ति त्तिबेमी, गाथा-२९. ४. पे. नाम. पंचपद स्तुति, पृ. ५आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंच महवय सुहमूलं समण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) १०१९४९. सम्यक्त्व मूलबारव्रत विवरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदे., (२५.५४११.५, १०४३७-४०). सम्यक्त्वमूलबारव्रत-विवरण, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: श्री सीद्धांत मांहइं; अंति: संथारुकरइ अणसण लिइ. १०१९५०. अंतकृद्दशांगसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३८, अन्य. मु. चंदनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अंतगडसूत्रवृत्त., पंचपाठ., जैदे., (२५.५४११, ११-१४४३२-३७). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेण कालेणं तेण समएणं; अंति: सेसं जहा नायाधम्मकहाण, अध्याय-९२, ग्रं. ८९९. अंतकृद्दशांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: अथांतकृतूदशीसुस्तु किमपि; अंति: ननु विधायता सर्वथा, वर्ग-८. १०१९५१. (+) गौतमपृच्छा सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७-८(१ से ६,१२ से १३)=१९, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, २-१३४३७-४०). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२० से ५७ तक है व गाथा-३० से ३३ अपूर्ण तक नहीं है.) गौतमपृच्छा-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). गौतमपृच्छा-कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कथा-३,४ सागरचंद्र-असोकदत्त से असुंदर कथा तक हैं.) १०१९५३. रोग उपाय विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-६(६ से ११)=७, लिख.पं. सुंदरदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में 'पं.श्री नराइणजी दत्ताम्नाय' ऐसा लिखा है., जैदे., (२५४११.५, १४४३४-४०). रोगउपाय विधि संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (१)वज्रस्योटनाय एकाहिकं रक्ष, (२)तंडुल पाव एक चौथा पाणी मे; अंति: बहुत है डील देख कर देणो, (पू.वि. हनुमंत वर्णन अपूर्ण से बंधेज गुटिका वर्णन अपूर्ण तक नहीं है.) १०१९५५. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२२-११७(१ से ११७)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १६x२८-३२). For Private and Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-११९ का मात्र आंशिक पाठ है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम चातुर्मास शूलपाणी यक्षस्थानवर्णन से उपसर्ग निवारण हेतु इंद्र-आगमनप्रसंग अपूर्ण तक है.) १०१९५७. (+) चतःशरण प्रकरण व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-३(१ से ३)=७, कुल पे. १५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५,१५४४९). १. पे. नाम. चतुशरण प्रकरण, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. चतःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदिः (-); अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३, (पू.वि. गाथा-३६ से है.) २. पे. नाम. गौतम कुलक, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्त सुहं लहंति, गाथा-२०. ३. पे. नाम. २० बोल तिर्थंकरनामगोत्रना, पृ. ५अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध पवयण; अंति: तित्थयरत्तं लहइ जीवो, गाथा-३. ४. पे. नाम. ३२ उपमा सीलव्रत की, पृ.५अ-५आ, संपूर्ण. ३२ उपमा शीलव्रत, प्रा., पद्य, आदि: गहआगररयन आभरणाय; अंति: वनरुक्खसणाचइम्हारहं, गाथा-२. ५. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणम; अंति: णिंद प्रणमुंह चोवीसजिणंद, गाथा-२९. ६. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, मु. दयाल, मा.गु., पद्य, आदि: मंगलकर जिणराय मुणो चोवीस; अंति: थुणतां श्रीसंघ आणंद पूर ए, गाथा-६. ७. पे. नाम. रिषभ स्तवन, पृ. ६आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. अमर, पुहि., पद्य, वि. १७३३, आदि: श्रीरिषभदेव मन सुद्ध; अंति: श्रीअमर भणै गुण सुजगीसै, गाथा-९. ८. पे. नाम. शांतिनाथ त्रिभंगी छंद, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. शांतिजिन छंद-त्रिभंगी, जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, आदि: विश्वसेन कुल कमल; अंति: वानारसी० जय जितकरन, गाथा-९. ९. पे. नाम. चिंतामणीपार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ.७अ-७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मा.ग., पद्य, आदि: पास चिंतामणि जेम; अंति: रिद्धि सेवक० परै मनरली, गाथा-८. १०. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वजिन पद, पृ. ७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: चिंतामणिसामी साचा; अंति: करै वनारसि वंदा तेरा, गाथा-४. ११. पे. नाम, चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आणी मनसुध आसता देव; अंति: समयसुंदर० सुख भरपुर, गाथा-७. १२. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. देवचंद, मा.गु., पद्य, आदि: संपति सकल सदा सुखदाई; अंति: सबला मुनिवरजी विनती जोडी, गाथा-११. १३. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ शांतिजिन स्तवन, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: श्रीशांतिजिनेश्वर; अंति: म करे रीधबीरध सहु संघ धरे, गाथा-१३. १४. पे. नाम. चोवीसी स्तवन, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र पद वंदो रे; अंति: संपत महर करी बगसावो रे, गाथा-९. १५. पे. नाम. विषापहारस्तोत्र भाषा, पृ. ९अ-१०अ, संपूर्ण. विषापहार स्तोत्र, आ. अचलकीर्ति, पुहि., पद्य, वि. १७१५, आदि: आत्मलीन अनंतगुण; अंति: अचलकीर्ति० पंडितजन हर कोय, गाथा-४२. १०१९५८. (#) चंद्रकुमररी वार्ता, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४११.५, १७४४८). चंद्रकुमार वार्ता, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: या गुण को गुणसार, गाथा-१२५, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-२७ अपूर्ण से है.) १०१९५९. अक्षयतृतीयापर्व कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:आखात्री०., दे., (२४४११, १३४३२-३६). अक्षयतृतीयापर्व कथा, सं., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीसुखदातार; अंति: (-), (पू.वि. ललितरथ राजा की पुत्री का स्वयंवर प्रसंग अपूर्ण तक है.) १०१९६० (#) नंदीसूत्र-स्थविरावली, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १७X४०-४५). नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी विआणओ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३६ अपूर्ण तक है.) १०१९६२. वसुधारा स्तोत्र विधि सहित, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, दे., (२५४११.५, १४४३४-३९). १. पे. नाम, वसुधारा स्तोत्र, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिह; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. २. पे. नाम. वसुधारा स्तोत्र विधि, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. वसुधारा स्तोत्र-विधि, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: दीपालिकानी रात्रि मध्य; अंति: निर्मल थइ अने वाचवी. १०१९६३. (+) प्रत्याख्यानसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११.५, ३४२८). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: इच्छकारि भगवन पसाउगरि० अंति: (-), तक है.) प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: सूर्य उग्या पछी; अंति: (-). १०१९६४. (+) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४८-२(१३,४७)=४६, प्र.वि. हुंडी:श्रीपालरा०., संशोधित., दे., (२५.५४१२, १२-१८४४०-५०). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., खंड-१ ढाल-१० गाथा-१६ अपूर्ण से ढाल-११ गाथा-५ अपूर्ण तक, खंड-४ ढाल-१० गाथा-८ अपूर्ण से ढाल-११गाथा-१७ अपूर्ण तक व खंड-४ ढाल-१२ की गाथा-८ अपूर्ण से नहीं १०१९६५ (+#) वंकचूल रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. हुंडी:बंकचु०, संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १९४४९). वंकचूल रास, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: जिनवर चरणकमल नम; अंति: लालचंद० रागमंगल माहिजी, ढाल-१३. For Private and Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०१९६६. (+) जंबूद्वीप विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.७, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११.५, १८४४६). जंबूद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जंबुद्वीप लांबो पहुल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पाठ- "उगनासी सहस बाबन जोजण देसउणा" तक लिखा है.) १०१९६८. एकवीस ठाणा प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२४.५४११.५, १४४३०-३५). २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया; अंति: असेस साहारणा भणिया, गाथा-६६. १०१९७२ (#) विक्रमसेनराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:लीलावतीनी चो०., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१२, १७४५३). विक्रमसेनराजा चौपाई, म. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: परम ज्योति प्रकास; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५५ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) १०१९७३. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. हंडी:कल्याण., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१२, ११४२५-३२). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. १०१९७४. (+) बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:बृहदकल्पट., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ४-९x४०-५०). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पइ निग्गंथाण; अंति: (-), (पू.वि. उद्देसक-६ पाठ- "३ णिविठकाइयकप्पठिति ४ जिनकप्पठिति ५ थेरकप्पति" तक है.) बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: न कल्पइं निग्रंथ साधुनइ; अंति: (-). १०१९७५. (+-#) अंजनासुंदरी रास, धन्नाअणगार व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-१(१)=८, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १६x४३). १. पे. नाम. अंजनासती रास, पृ. २अ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., पे.वि. हुंडी खंडित है. अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१० अपूर्ण से है व गाथा-१०९ तक लिखा है.) २. पे. नाम. धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. ९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:धन्नाअणगार सिज्झाय. प्रतिलेखक ने यह कृति पत्रांक-४आ के मध्य में लिखी है. म. ठाकरसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी रे धन्ना; अंति: गाया हे मन में गहगही, गाथा-२२. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-संतोष, पृ. ९आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: सिज्या भलिजी संतोषनि वानी; अंति: कै पोढसी लिखंती नारी जी, गाथा-७. १०१९७७. (#) कल्पसूत्र सह व्याख्यान व कथा, संपूर्ण, वि. १५९०, भाद्रपद, मध्यम, पृ. १३०, प्र.वि. कुल ग्रं. १२१६, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१०.५, १०४३६-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं; अंति: भुज्जो उवदंसेइ त्तिबेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: नैतत् पर्वसमं पर्वं; अंतिः प्रभात समय बोली सिइ. १०१९७८. (#) पाशाकेवली भाषा आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ५,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १६x४३-४६). १.पे. नाम. पाशाकेवली, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:शुकनावली. पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवति; अंति: पूजा करे कल्याण होसी सही. २.पे. नाम. पाशाकेवली भाषा का दोष निवारण विधि, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १२३ पाशाकेवली-भाषा का दोष निवारण विधि, संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: १११ सरीरे वातादि कष्टं; अंति: पुजा कीजै साकनी पुजाजइ. ३. पे. नाम. मुहुर्त प्रकरण, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:मुहुर्त. मा.गु., गद्य, आदि: राजाभिषेक महुर्त १ अनु; अंति: गुर चंद्र श्रु बुध. ४. पे. नाम. अठावीस नक्षत्रावली, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण, प्रले. मु. कान्हा, प्र.ले.पु. सामान्य. २८ नक्षत्र प्रश्नावली, मा.गु., गद्य, आदि: अश्वनी निक्षत्र काणो; अंति: छुटइ रोगी दिन १३ उवइ २८. ५. पे. नाम. २७ नक्षत्र-वार-राशि रोगमुक्ति प्रश्नावली, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:०ष्टावली. ___ मा.गु., गद्य, आदि: अश्वनी नक्षत्रे सोम शुक्र; अंति: (-), (पू.वि. कर्क राशि रोगमुक्ति फल अपूर्ण तक है.) १०१९७९. रघवंश की सगमान्वयाप्रबोधिका टीका, संपूर्ण, वि. १८०३, अग्निष:नागचंद्र, कार्तिक शुक्ल, १३, गुरुवार, जीर्ण, पृ. १७९+२(९९,११२)=१८१, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. हेमराज; पठ. सिचीयादास; अन्य. मु. सुमतिवल्लभ पं. (गुरु ग. सुमतिहिम); मु. कुशलभक्ति, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. कुल ग्रं. १३०००, जैदे., (२६.५४११, १७४५२-६०). रघुवंश-सुगमान्वयाप्रबोधिका टीका, मु. सुमतिविजय पंडित, सं., गद्य, वि. १६३०, आदि: प्रणम्य जगदाधीशं गुरुं; ___ अंति: मंदाक्रांताछंदः. १०१९८३. (+#) चतःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, प. ६, ले.स्थल. सिरोही, पठ. म. सोमा ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१०.५, ७४३३-३६). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, ___गाथा-६३, संपूर्ण. चतःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावध व्यापार-; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ___गाथा-२ अपूर्ण तक व मात्र गाथा-५२ का ही टबार्थ अपूर्ण तक लिखा है.) १०१९८४. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६२, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६.५४११, १३४३३-३६). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: रोषोक्ताव नतौ नमः, कांड-६, ग्रं. १४५२. १०१९८५. (+#) शालिभद्रमनि चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २१-४(१ से ४)=१७, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, १३४३४). शालिभद्रमनि चौपाई, म. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदिः (-); अंति: मनवंछित फल लहिस्यइ जी, ढाल-२९, गाथा-५१०, (पू.वि. ढाल-५ गाथा-८ अपूर्ण से है.) १०१९८६. (+) नंदीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४, प्र.वि. हुंडी:नंदी., संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ६x४८). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: से त्तं परोक्खणाणं, सूत्र-५७, गाथा-७००, संपूर्ण. नंदीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नंदी कहतां आणंदनो; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., परिशिष्ट योगनंदी का पाठ-"उपयुक्त सर्वभाव जाणइ देखइ" तक लिखा है.) १०१९९० (+) रामयसोरसायन चौपाई, संपूर्ण, वि. १८३६, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, मंगलवार, मध्यम, पृ. ८२, प्रले. मु. लिखमीचंद ऋषि (गुरु मु. गुमानचंद); गुपि. मु. गुमानचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, १८४४५-४८). रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: मुनिसुव्रतस्वामीजी; अंति: जंपे सदा हरष बधामणी, अधिकार-४ ढाल-६२, गाथा-३१९१, ग्रं. ४३७५. १०१९९१. नवस्मरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३३-२२(१ से २२)=११, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२५.५४११, ५४३३). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. संतिकर स्तोत्र गाथा-४ अपूर्ण से अजितशांति गाथा-३१ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवस्मरण- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-). *, १०१९९२. (+४) समयसार नाटक, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ३५-१८ (१ से १४,१९ से २०, २४ से २५) १७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे (२५४११, १५४५५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समयसार - आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पुहिं, पद्य, वि. १६९३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. निर्जराद्वार गाथा-३७ अपूर्ण से बंधद्वार गाथा-९७ अपूर्ण, गाथा- ३५ अपूर्ण से सर्वविशुद्धद्वार गाथा ३३ अपूर्ण तक व सर्वविशुद्धद्वार गाथा ५४ अपूर्ण से अठारह दूषण कुंडलिया गाथा ८० अपूर्ण तक है.) १०१९९३. (+४) ९९ प्रकारी पूजा विधि सहित, संपूर्ण, वि. १८८५, माघ कृष्ण, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, ले. स्थल. वांकानेरनगर, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १३X३१-३५). १. पे. नाम. ९९ प्रकारी पूजा, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण. ९९ प्रकारी पूजा-शत्रुंजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी अंति आतम आप ठरायो रे, ढाल - ११. २. पे. नाम. ९९ प्रकारी पूजा विधि, पृ. ६आ, संपूर्ण. ९९ प्रकारी पूजा शत्रुंजयमहिमागर्भित विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि जघन्य ९ कलशवाला अति: साथिया ९९ चोखाना करी. १०१९९४. अंजनासुंदरी रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले. स्थल. धोराजी, प्रले. श्राव. लीलाधर आणंदजी सेठ; अन्य. सा. आमर आर्या (गुरु सा. कुवरबाई); सा. जेतुबाई महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११, १३४३९-४२). अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि पहले कडावै हो पाय नमुं भव, अतिः जगननी मात तो, ढाल २२, गाथा १५९. १०१९९७. (+#) शालिभद्रमुनि चौपाई, संपूर्ण, वि. १७७८, पौष कृष्ण, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. १९, प्रले. पं. वृद्धिविजय (गुरु पं. सुमतिविजय); गुपि पं. सुमतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: शालिभद्र०, शालिभद्रचो०. शांतिनाथ प्रसादात्, संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५x१०.५, १३x४६). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: सालिभद्र धन्नो रिषिराया ढाल २९ गाथा ५१०. १०१९९९. सांबप्रद्युम्न प्रबंध, संपूर्ण, वि. १७८५, मध्यम, पृ. २१, प्रले. मु. रूपचंद (गुरु उपा. विनयविजय, तपागच्छ); पठ. वा. किसनदास (गुरु मु. संघराज, लोकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: संबपूजन चौपई., जैवे., (२७४१०.५, १४४४३). सांप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, बि. १६५९, आदि: श्रीनेमीसर गुणनिलड; अंति समयसुंदर सुजस जगीस ए. खंड-२ ढाल २२, गाथा-५३५ नं. ८००. ग्रं. १०२००० (+) नेमराजिमती रास व ममताधिकार गीत, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. ग. लब्धिविजय, पठ. श्रावि. कंगणा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५X१०, ११४३४). १. पे. नाम. नेमराजिमती रास, पृ. १अ ५अ, संपूर्ण. मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि सारद माय प्रणमी करी; अति प्रसन्न श्रीनेमजिणंद, गाथा-६८. २. पे. नाम. ममताधिकार गीत, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि रंग खेलत ममताराधिका हो; अंतिः लब्धिविजय सुविचार, गाथा ६. १०२००३. रघुवंश सह सुगमान्वया टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६४-४४ (१ से ४२, ४९ से ५० ) = २०, पू. वि. बीच-बीच पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:रघुकाव्यवृ०., जैदे., (२५.५X१०.५, १७५१-५८). रघुवंश क. कालिदास, सं., पद्य, आदि (-); अति (-) (पू.वि. सर्ग-५ श्लोक ९ से ४९ अपूर्ण तक व सर्ग-५ श्लोक ६३ अपूर्ण से सर्ग - ६ श्लोक - ७८ तक है.) रघुवंश - सुगमान्वयाप्रबोधिका टीका, मु. सुमतिविजय पंडित, सं., गद्य वि. १६३०, आदि (-); अति (-). For Private and Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०२००४. पिंडविशुद्धिप्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-९(१ से ९)=१४, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:पिंड वा०, पिंडविं०वा., जैदे., (२६४११.५, १३४४२). पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४१ से गाथा-१०१ तक है.) पिंडविशद्धि प्रकरण-बालावबोध, ग. संवेगदेव, मा.ग., गद्य, वि. १५१३, आदिः (-); अंति: (-). १०२००५. कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३१-२६(१ से ४,७ से २४,२७ से ३०)=५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११.५,१३४३९). कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नागकेतु दृष्टांत अपूर्ण से मल्लिजिन प्रसंग अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०२००६. (+) अंजनासती रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०-३(१,८ से ९)=७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १४४५२). अंजनासती रास, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., गाथा-९ अपूर्ण से ९३ अपूर्ण व गाथा-१३३ अपूर्ण से १४४ अपूर्ण तक है.) १०२००७. लघुसंग्रहणी का बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२-१(१)=११, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२५.५४११.५, १२४४०). लघुसंग्रहणी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अपरमाजित पोल वर्णन अपूर्ण से मेरूपर्वत वर्णन अपूर्ण तक है.) १०२००८. स्तुति, स्तवन व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(१)=६, कुल पे. ६, जैदे., (२६४१२,१५४३९). १.पे. नाम. इग्यारसनी थोयो, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: श्रीसंघ विघन निवारी, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. चौदशनि स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्या प्रतिमस्य; अंति: सदा सर्वकार्येषु सिद्धिम, श्लोक-४. ३. पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. २आ-५आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं संति; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-३९. ४. पे. नाम. वृद्धशांति, पृ. ५आ-७अ, संपूर्ण, वि. १८८३, कार्तिक. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. ५.पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. ___आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शीतल जिन विभु आतम; अंति: देव दुंदभी रव गाजे, गाथा-७. ६.पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, पृ. ७आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणेशर; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) १०२००९ (+) कल्पसूत्र सह कल्पलता टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११५-२(१ से २)=११३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १७X४९-५२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (१)नमो अरिहंताणं नमो, (२)तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-), (प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., व्याख्यान-८ सूत्र-४ तक है.) कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्रारंभिक दृष्टांत-२ अपूर्ण से व्याख्यान-८ सूत्र-४ की टीका अपूर्ण तक है.) १०२०१० (+) कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३२-१७(१,९९ से ११४)=११५, प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्र., पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, ६-१८४३८-५६). For Private and Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे अति: भुज्जो उवदंसेड़ त्तिबेमि, व्याख्यान- ९, ग्रं. १२१६, (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., स्थविरावली आंशिक अपूर्ण से पर्युषणाकरण तक नहीं है.) कल्पसूत्र - कल्पमंजरी टीका, मु. रत्नसार, सं., गद्य, आदि (-); अति तीर्थंकरगणधरोपदेशेन, पू.वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०२०११. (+) दंडक प्रकरण व सीमंत्यादि क्षेत्रमान गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण पाठ-संशोधित, जैदे. (२६११, ४४४०-४४) १. पे. नाम. दंडक प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ ६अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य वि. १५७९, आदि नमिठं चउवीस जिणे, अंति: गजसारेण० अप्पहिया, गाथा- ३८. दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ ऋषभ प्रमुख; अंति: आपणा हितने काजै कही. २. पे. नाम. सीमंत्यादि क्षेत्रमान गाथा सह टबार्थ, पृ. ६अ, संपूर्ण. सीमंत्यादि क्षेत्रमान गाथा, प्रा., गद्य, आदि: पणयालीसं लक्खा सीमंत अंति ३ दीवो अ ४ इगलक्खं. י सीमंत्यादि क्षेत्रमान गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पस्तालीस लाख जोयनना; अंति: लाख लाख योजन प्रमाण. १०२०१२ (+) योगशास्त्र प्रकाश १ से ४ व लघुशांति, अपूर्ण वि. १५६०, मध्यम, पृ. २०-२ (३,१७) -१८, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ- पंचपाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २६११, ११X३६-४०). १. पे. नाम. योगशास्त्र- प्रकाश १ से ४, पृ. १अ - २०अ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं., वि. १५६०, माघ शुक्ल, ५, मंगलवार, ले. स्थल, सेनापुर, प्रले मांडण जोसी राज्येगच्छाधिपति हेमविमलसूरि (तपागच्छ); लिख. ग. आणंद शुभ (गुरु ग. शुभनय); गुपि. ग. शुभनय, पठ. श्राव. आसी, प्र.ले.पु. मध्यम. योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि नमो दुर्वाररागादि, अंति (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रकाश-१ गाथा-४९ अपूर्ण से प्रकाश- २ गाथा १९ अपूर्ण तक व प्रकाश-४ गाथा -५९ से गाथा-८३ तक नहीं हैं.) २. पे नाम, लघुशांति, पृ. २०अ २०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांति नशांतं शांतं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक है.) १०२०१३. बृहत्संग्रहणी सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८५-४० (१ से ४०) = ४५, जैदे., (२६X११, १३x४८-५२). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: सिरिचंद० अत्तपढणट्ठा, गाथा-२७३, (पू.वि. गाथा ११८ अपूर्ण से है.) बृहत्संग्रहणी- टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि (-); अंति ज्ञानदृग्वीर्य सौख्य, ग्रं. ३५०० १०२०१४. (+) प्रवचनसारोद्धार की विषमपदार्थावबोध टिप्पण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५३, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १८४५६). प्रवचनसारोद्धार-विषमपदार्थावबोध टिप्पण, आ. उदयप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रवचन सारोद्धारे; अंतिः तावन्नद्यादसौ भुवि १०२०१५ (+०) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १९१२, प्र. वि. हुंडी प्रश्नव्याकरण, प्रश्न०, पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, ४x२६-३०). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर; अंति: मगस्स फलिह भूओ, अध्याय- १०, गाथा - १२५०. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१) प्रश्नव्याकरण दसमउ, (२) जं० हे जंबू सुसिष्य; अंति: एतला सुधी पाठ जावो. १०२०१६ (+) लघुजातक सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७३६, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, शनिवार, मध्यम, पृ. १५-९ (१ से ९ ) =६, प्रले. मु. विनीतविजय (गुरु मु. प्रीतिविजय, तपागच्छ); अन्य. ग. धीरविजय, ग. सुखविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले. श्लो. (१३९९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, जैदे., (२६X११, ४-७X४५-५५). For Private and Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १२७ लघुजातक, वराहमिहिर, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: वजानीया न्नष्टजातकसिद्धये, अध्याय-१६, (पू.वि. अष्टकवर्गाध्याय-११ से है.) लघुजातक-अवचूरि, उपा. भक्तिलाभ, सं., गद्य, वि. १७१५, आदि: (-); अंति: कृपापरैः शोधनीयेयां. १०२०१७. (+) बोल-थोकडा संग्रह-विविध विषये, अपूर्ण, वि. १९६९, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४७-३(४,१२,२८)=४४, ले.स्थल. पडधरी, प्रले. कालीदास परसोत्तम खत्री; दत्त. श्राव. धनजी रूपचंद; श्राव. डाह्याभाई चतुरभाई; गृही. सा. संतोकबाई, प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:पचीसबोल. अंत में अनुक्रमणिका दी गई है. संवत् १९७१ मागसर सुद ५ को प्रत वहोराने का उल्लेख है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५.५४११, १३-१६४३८-४२). ६७ बोल थोकडा-विविधग्रंथोद्धत, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: गती१ जाती२ काय३ इंद्री४; अंति: अने मस्ती करवी नहीं, (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०२०१८. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११४-२(१ से २)=११२, प्र.वि. हुंडी:प्रश्न०ट०., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं. ३५००, जैदे., (२६४११, ४४३२). प्रश्नव्याकरणसुत्र, आ. सधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: मगस्स फलिह भओ, (पृ.वि. अध्याय-१ आस्रवद्वार से है.) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: एतला सुधी पाठ जाणवो. १०२०१९ (+) शांतिनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७७-५(१ से २,९५ से ९६,१०१)=१७२, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:शांतिनाथ., वत्सराजकथा., सुलभकथा., जिनचंद्रकथा., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४३३-३६). शांतिजिन चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५३५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रस्ताव-३ अमरदत्त मित्रानंद कथानक अपूर्ण से प्रस्ताव-५ शांतिजिन की चंदन-पुष्प-घुपादि पूजन वर्णन अपूर्ण तक है व बीच बीच के पाठांश नहीं १०२०२० (+#) कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४३६-४०). कल्पसूत्र-बालावबोध, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: प्रणम्य प्रणताशेष वीरं; अंति: (-), (पू.वि. आर्यरक्षित कथा अपूर्ण तक १०२०२१ (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४४४-४८). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), (पू.वि. कांड-२ श्लोक-१५९ अपूर्ण तक है.) १०२०२२. (+) स्तुति, सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७, कुल पे. १२, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १३४४७). १. पे. नाम. गच्छाचार बावनी, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण.. आचारबावनी, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गच्छ निवासी मुनि भला; अंति: भवीयण प्रति सहु गुरु कहइ, गाथा-५१. २.पे. नाम. सम्यक्त्व कुलक, पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मस्तकि बिद् सुहामणउ भणउ; अंति: अनुक्रमि सवि सिवसुख लहंति, गाथा-४९. ३. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. ५अ-७अ, संपूर्ण. २४ जिन नमस्कार-वर्तमान, मा.गु., पद्य, आदि: रिसह जिणवर रिसह; अंति: कीरति गति सुख सार, गाथा-२५. ४. पे. नाम. सामायिक दोष ३२ कुलक, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सामायिक दोष परिहार सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलउ प्रणमदिउं जिण चउवीश; अंति: मगमं० मुणि पासचंदो, गाथा-२१. ५. पे. नाम. आदिस्वरवीनती स्तवन, पृ. ८अ-१०अ, संपूर्ण. आदिजिनविनती स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल आदि जिणंद जुहारियइ; अंति: पासचंद० भवि भवि अविहड रंग, गाथा-५५. ६. पे. नाम. पाखी विचार, पृ. १०अ-११आ, संपूर्ण. पाखीछत्रीशी, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीय पहिलं वीर जिणंद; अंति: पासचंद पभणइ सुख लहउ, गाथा-३६. ७. पे. नाम. आदीश्वर लघुस्तवन, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: रिसह जिणेसर वीनवउ देव; अंति: आपथी ट्रॅकडउ सेवक थापिज्यो, गाथा-५. ८. पे. नाम. अजितनाथ स्तवन, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सुर गिरिवर जिम धीरुए; अंति: ए निज नाम सरिस सेवक करउए, गाथा-११. ९. पे. नाम. अभिनंदनजिन स्तवन, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दुल्लह नरभव पामिय; अंति: करिय वरिय थिर थापियइ, गाथा-११. १०. पे. नाम. दंडक २४ गत्यागतिगर्भित श्रीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १३अ-१४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमउ पासनाह प्रह; अंति: प्रसादि परमारथ लहइ, गाथा-२३. ११. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. १४अ-१५आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-३४ अतिशयगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिण नाह बहु भावि; अंति: साधउ पासचंदि हरषिइं भणिय, गाथा-२५. १२. पे. नाम. प्रदेशीराजा सज्झाय, पृ. १५आ-१७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमउं सिरिजिणपास आस; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३५ अपूर्ण तक है.) १०२०२४. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह शिष्यहिता बृहद्वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६०-२(१ से २)=५८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १५४५४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ गाथा-७ से अध्ययन-३ गाथा-१२ तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-शिष्यहिता बृहद्वृत्ति #, आ. शांतिसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०२०२५ (#) १३ काठियादि बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:बोलछुटक., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १७४५४). बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पेलो आलसक्रम काठियो; अंति: (-), (पू.वि. दया उपमा के ८ बोल अपूर्ण तक १०२०२६. (+) गजल संग्रह, अपूर्ण, वि. १७८५, भाद्रपद शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ७-१(२)-६, कुल पे. ४, प्रले. मु. कुसलाजी ऋषि; पठ. मु. अखेराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४४७). १.पे. नाम. चित्तोडगढ गजल, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. क. खेताक यति, पुहिं., पद्य, वि. १७४८, आदि: चरण चतुर्भुज भाइ चित्त; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३४ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. उदैपररी गजल, पृ. ३अ-५अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. उदयपुरनगर गजल, य. खेताक, रा., पद्य, वि. १७५७, आदि: (-); अंति: अमरसिंह जुग जुग अमर, गाथा-८०, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. लाहोररी गजल, पृ. ५अ-७अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १२९ लाहौरनगर की गजल, श्राव. जटमल नाहर, रा., पद्य, वि. १७वी, आदि: देख्या सहर जब लाहोर; अंति: बरनन करी सुनत होत सुखकंद, गाथा-५९. ४. पे. नाम. सुंदरीरी गजल, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. सुंदरी गजल, श्राव. जटमल नाहर, रा., पद्य, आदि: सुंदरि रूपगुण गाढी कि; अंति: कंत सुरसरंग० सहस अलंग, गाथा-१९. १०२०२७. (#) मौनएकादशीपर्व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ५-१(३)=४, प्र.वि. हुंडी अवाच्य है., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४९.५, १३४५१). मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., पद्य, वि. १५७६, आदि: अन्यदा नेमेरीशानो; अंति: (अपठनीय), श्लोक-१६२, (पू.वि. श्लोक-७५ अपूर्ण से श्लोक-१०८ अपूर्ण तक नहीं है.) १०२०२८. (+#) मंगलकलश चउपदिका, संपूर्ण, वि. १७१४, श्रावण अधिकमास शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. वील्हावास, प्रले. मु. जिनहर्ष (गुरु पंन्या. सोम, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री मारुदेव प्रसादात् सौख्यं भवतु सर्वदा., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १६४५४-५८). मंगलकलश चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७१४, आदि: पास जिनेसर पायकमल प्रणमुं; अंति: जिनहरष० गुणवंत, ढाल-२१. १०२०२९ (#) विमलमंत्री सलोको, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-२(१ से २)=५, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२४३०). विमलमंत्री सलोको, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विनीतविमले गुण गाय, गाथा-१११, (पू.वि. गाथा-३६ अपूर्ण से है.) १०२०३०. कायस्थिति २२ द्वार वर्णन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २२-१२(१ से ८,१०,१२ से १३,२१)=१०, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., दे., (२५.५४११, १२-१५४२८). कायस्थिति २२ द्वार वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्थितिद्वार से पांचतत्त्व का वर्णन तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)। १०२०३१. ६२ मार्गणाद्वार विचार, २१ द्वार कोष्टक व ४ गति पर्याप्तापर्याप्त यंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४-६(१ से ६)-८, कुल पे. ३, दे., (२५.५४११, ९x१९-२५). १.पे. नाम. २१ द्वारनो वासठियो, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ६२ मार्गणा बोल २१ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: धरमनो अधरम में, (पू.वि. द्वार-१९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. ६२ मार्गणा २१ द्वार यंत्र, पृ. ७आ-१२आ, संपूर्ण, वि. १९५३, आश्विन कृष्ण, १२. ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. ६२ मार्गणा ४ गति पर्याप्तापर्याप्त यंत्र, पृ. १३अ-१४आ, संपूर्ण. मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). १०२०३२. शालिभद्रमुनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र.वि. हुंडी:साललभद्ररजी., जैदे., (२६४११, १५४३६). शालिभद्रमनि चौपाई, म. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: शासननायक समरीइं; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., ढाल-२४ के दोहा-३ अपूर्ण तक है.) १०२०३३. (+#) हरिवंश प्रबंध, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ७०-४४(१ से ४१,४८,५६,६०)=२६, पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. ३ पत्रों पर पत्रांक नहीं हैं, उन पत्रों पर काल्पनिक नंबर दिया है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२, १५४५०). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अधिकार-३ ढाल-७० गाथा-३१ अपूर्ण से है व बीच-बीच व अंत के पाठ नहीं हैं.) १०२०३४. (#) पांडव रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२०-८६(१ से २०,५३ से ११८)=३४, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११, १५४४६). For Private and Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२५ के दोहा-२१ से ढाल-१३७ अपूर्ण तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०२०३५ (+) स्तुति व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४-८(१ से ८)=६, कुल पे. १५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४४३). १.पे. नाम. पंचतीर्थ स्तवन, पृ. ९अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ५तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भणतां सुख पावे सास्वता, गाथा-१२, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, सुपासजी स्तवन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सहज सलुणो हो मिलियो मेलु; अंति: तुमे सहि पूरो प्रेम विलास, गाथा-७. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण. पं. नित्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकरण मुझ दुख हरण प्रभु; अंति: नित्यविजय० रंगविलास हो, गाथा-६. ४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिणेसर साहिबा निरखो; अंति: मूल दूरय करके रि माय, गाथा-६. ५. पे. नाम. सुविधिनाथ स्तवन, पृ. १०अ, संपूर्ण.. सुविधिजिन स्तवन, मु. लाभकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: होने ह सलुणा सुवधिजिणेसर; अंति: सेवक लाभकुशल सुख थाय, गाथा-५. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १०अ, संपूर्ण. वा. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: तेरे अंखिय नमें सब जुग; अंति: उदयरतन० अवधार प्यारे, गाथा-४. ७. पे. नाम. गोडिपार्श्वजी स्तवन, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. आगम, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: साहिबा तुं थलवटनो रे; अंति: करजोडी आगम नित नमै, गाथा-९. ८. पे. नाम. मुहपत्ति बोल, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन ५० बोल, संबद्ध, मा.ग., गद्य, आदि: सूत्रार्थ दृष्टि पश्यामि; अंति: सवे सरसा मणसा मथेण वंदामी. ९. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. मु. सुधिरकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रहिनगरिमां वीर; अंति: संक्षेप के सुधिरकुशल सहि, गाथा-१३. १०. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. मु. सुधीरकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिणेसर सोलमा भेव्या; अंति: सधिर नमे नित पाय, गाथा-९. ११. पे. नाम. पद्मप्रभु स्तवन, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन-नाडोलमंडन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्री पदमप्रभु जिनराया हो; अंति: गाथा-१५. १२. पे. नाम. ऋषभजिणंद स्तव, पृ. १२आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-जन्मबधाई, मा.गु., पद्य, आदि: आज तो वधाइ राजा नाभि के; अंति: आदिसर दियाल रे, गाथा-६. १३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १२आ, संपूर्ण. __ आ. ज्ञानविमलसरि, पुहिं., पद्य, आदि: तुं मिल जाज्यो रे साहिब; अंति: होवे एह अखय सुख चेन मै, गाथा-६. १४. पे. नाम. राशिमास निर्णय विचार, पृ. १२आ, संपूर्ण. ___ ज्योतिष विचार, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: मन मे रास चितवी जे मांहे; अंति: ते कातीयुं गणीजे मास लाभे. १५. पे. नाम. रोहिण स्तवन, पृ. १३अ-१४अ, संपूर्ण. रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: शासनदेवता स्वामिनी ए मुज; अंति: जिनसार० सकल मन आशा फली, ढाल-४, गाथा-२५. . For Private and Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०२०३६. (+) पंचपरमेष्ठि, चतुर्विंशतिजिन पूर्वभव व २४जिन निर्वाणस्थलादि वर्णन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८-२ (१ से २)=६, कुल पे ३, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ- त्रिपाठ-संधि सूचक चिह्न क्रियापद संकेत, जैवे., (२६.५११, १५४०). १. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पंचपरमेष्ठी स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति मानतुंग० पुत्भारेहिं गाथा- ३५, (पू.वि. गावा- २९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन पूर्वभव स्तवन सह अवचूरि, पृ. ३अ-६आ, संपूर्ण. जिनभवोत्कीर्तन स्तवन, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदिः यः प्राक् सार्थपति; अंति: शर्माण्यहं प्रार्थये, श्लोक-२७. जिनभवोत्कीर्तन स्तवन- अवचूरि, सं., गद्य, आदि आद्ये भवे धनसार्ध वाह; अंतिः ३. पे. नाम. २४जिन निर्वाणस्थलादि वर्णन स्तवन, पृ. ६आ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २४ जिन निर्वाणस्थलादिवर्णन स्तवन, सं., पद्य, आदि श्रीअष्टापदपर्व ते युतयति, अंति (-), (पू. वि. गाथा १९ अपूर्ण तक है.) १०२०३७, (+) जंबु अज्झवणं, सिद्धजीव स्वरूप विचार व व्यवहारसूत्र का चुलिका सोलह स्वप्न विचार, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १९-१ (१) = १८, कुल पे ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४११, १६x४० ). " , १. पे. नाम. जंबु अज्झयणं, पृ. २अ-१८आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १७२०, माघ कृष्ण, १०, गुरुवार, ले. स्थल. धमडकानगर, प्रले उपा. दानविजय गणि पठ. वा. केसरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. जंबू अध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (१) से आराहगा भणिया, (२) से आराहगा भविस्ससि, उद्देशक-२१, (पू.वि. उद्देशक- १ पाठांश 'अपाणं भावेमाणे विहरिया' से है.) २. पे. नाम. सिद्धजीव स्वरूप विचार, पृ. १८आ, संपूर्ण सं., गद्य, आदि: जत्थ एगदो सिद्धो तत्थ; अंतिः रहित सिद्धा बुद्धा.. ३. पे. नाम. व्यवहारसूत्र का चुलिका सोलह स्वप्न विचार, पृ. १८ आ-१९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. व्यवहारसूत्र-चुलिका सोलह स्वप्न विचार, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-), (पू.वि. पंचम स्वप्नफलं वर्णन अपूर्ण तक है.) १०२०३८. (+) गौतमपृच्छा चपड़, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-१ (२) ६, अन्य क. खुसाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X११, ११X३२). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि सकल मनोरथ पूरबड़, अंति: मुनि लावण्यसमय०वंछि तल है, गाथा- ११५, (पू.वि. गाथा - २० अपूर्ण से ३६ अपूर्ण तक नहीं है.) १०२०३९. (+) चैत्रीपूर्णिमा स्तवन, संपूर्ण, वि. १७४३, वैशाख कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ७, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५X११, १३X३५). चैत्री पूर्णिमापर्व देववंदनविधि, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि नाभि नरेश्वर वंश, अंति दान अधिक उछरंग रे, देववंदनजोडा-५. १३१ १०२०४०. श्रीरत्नपाल दानाधिकार चरीत्र, संपूर्ण, वि. १७८७ आश्विन कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. ३६, प्रले. मु. हेतविजय (गुरु मु. हस्तिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२४.५x१०.५, १६४३८-४८). " रत्नपानरत्नावती चौपाई. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: सकल श्रेणि में दुर; अंति: मोहनविजये विलासेजी, खंड-४ दाल ६६, गाथा- १३७२. १०२०४१. (+) उगुणतीस बोलना दंडक, अपूर्ण, वि. १७१२, माघ कृष्ण, ५, रविवार, मध्यम, पृ. ९-१ (३) =८, ले. स्थल. हांसी, प्रले. ऋ. मनोहर ऋषि (गुरु ऋ. सूराजी ऋषि); गुपि ऋ. सूराजी ऋषि पठ नंदी आर्या जसोदा आर्या, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी: डंडक., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., ( २६११.५, १२X३६-४०). For Private and Personal Use Only २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: अनंतगुणा अधिका जाणवा (पू. वि. द्वार ५ अपूर्ण से द्वार- १४ अपूर्ण तक नहीं है., वि. कर्ता के नाम मे ' उत्तम ' लिखा मिलता है.) · Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०२०४२. (2) दीपावलीपर्व कल्प, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.७-१(६)-६, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४४१). दीपावलीपर्व कल्प, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: संतु श्रीवर्द्धमानस्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१४१ अपूर्ण से १७० अपूर्ण तक व श्लोक-१९५ अपूर्ण से नहीं है.) १०२०४३. (+#) योगशास्त्र सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९-३(१ से २,४)=१६, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १०-१३४३८-४२). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रकाश-१ श्लोक-३६ अपूर्ण से ५६ व प्रकाश-२ श्लोक-१९ अपूर्ण से प्रकाश-४ श्लोक-१०९ तक है.) योगशास्त्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). १०२०४४ (+#) पक्खिसूत्र, संपूर्ण, वि. १८३९, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ८, पठ. घासीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, १४४४४). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: जेसिं सुअसायरे भत्ती. १०२०४५ (+) जंबूद्वीप प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ७४३८). बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण; अंति: ताण समत्ताई दुक्खाई, गाथा-१२६, संपूर्ण. जंबूद्वीप प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ से ११ __अपूर्ण तक, गाथा-२६ से ७१ तक व गाथा-७६ से ११९ अपूर्ण तक लिखा है.) १०२०४६ (+#) पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७५४, वैशाख कृष्ण, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. कयलवानगर-मेवाड, प्रले. ग. ऋषभकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्ववरकाणक सत्य छै शांतिनाथ प्रसादात्, संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १४४३९). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अ तित्थे; अंति: मणसा मत्थेण वंदामि. १०२०४७. (+) अजितशांति बृहत् स्तवन व सुभाषित श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०.५, ४४३०-३५). १.पे. नाम. अजितशांति बृहत् स्तवन सह टबार्थ, पृ. १आ-१०आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संतिं च; अंति: दिसेण०० जिणवयणं आयरं कुणह, गाथा-४०. अजितशांति स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अजितनाथ जीता सर्व भयं; अंति: जिनवचन तेहनइ विषइ आदर करइ. २.पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. १०आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: आचार कुलमाख्याति; अंति: बपुराख्याति भोजनं, श्लोक-१. १०२०४८. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६-१२(१ से ११,१५)=४, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:ज्ञातासूत्र, पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १५४५५). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१२ अपूर्ण से अध्ययन-१४ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०२०४९ (+) चउशरणपाठ सह बालाबोध, संपूर्ण, वि. १८८६, आषाढ़ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. भुजनगर, प्रले. ऋ. लाघा; पठ. मु. तेजपाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चउसरण., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ५४३५-३८). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोगविरइ उक्कित्तण; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावध व्यापार त्यागरूप; अंति: ए चउसरण अध्ययन गणीवउ. For Private and Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०२०५०. (+) पंचवर्गपरिहारनाममाला व हैमनाममाला का शिलोंछः, संपूर्ण, वि. १५६४, ज्येष्ठ शुक्ल, ७, मध्यम, प. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. कर्मवाट्या, प्रले. ग. शिवनिधान (गुरु ग. हर्षसार); गुपि. ग. हर्षसार, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १५-१९४४९-६९). १. पे. नाम, पंचवर्गपरिहार नाममाला, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. आ. जिनभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: नत्वा पंचेषु पंचास्य शरभं; अंति: चक्रेभिधानावलीम्, श्लोक-१३३. २. पे. नाम. हैमनाममाला का शिलोंछः, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण. अभिधानचिंतामणि नाममाला-शिलोंछ, संबद्ध, आ. जिनदेवसूरि, सं., पद्य, वि. १४३३, आदि: अहँ बीजं नमस्कृत्य; अंति: जिनदेव मुनीश्वरः, कांड-६, श्लोक-१३९. १०२०५१. कल्पसूत्र का व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२-१(१)=११, जैदे., (२७४११, १५-१८४४०-६१). कल्पसूत्र-व्याख्यान, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पीठिका भाग अपूर्ण से है व आमलकीक्रीडा तक लिखा है. इसके बाद लेखशाला गमन तथा विवाहोत्सव का मात्र शाब्दिक संकेत १०२०५२. (+) कल्पसूत्र का व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११४-१०८(१ से १०८)=६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १४४४७). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., महावीरजिन चातुर्मास प्रसंग से है व चंदनबाला की दीक्षा प्रसंग तक लिखा है.) १०२०५३. (+) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१-१(२०)=२०, ले.स्थल. मेडता, अन्य. मु. रामविजय (गुरु पंडित. श्रीविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. यंत्र सहित., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६.५४१०.५, १०-१४४२७-३७). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२७६, (पू.वि. गाथा-२४५ अपूर्ण से २६५ अपूर्ण तक नहीं है.) १०२०५४. (+) ऋषिमंडल पूजा, संपूर्ण, वि. १५९९, मध्यम, पृ. १९, पठ. मु. ब्रह्मज्ञान (गुरु आ. शुभचंद्र, मूलसंघ); गुपि. आ. शुभचंद्र (गुरु मु. विजयकीर्ति भट्टारक, मूलसंघ); अन्य. आ. कीर्तिरत्नसूरि; मु. महिमारत्न (गुरु मु. कपूररत्न); गुपि.पं. कपूररत्न, प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, १०४२८). ऋषिमंडलमंत्र कल्प, मु. गुणनंदि मुनींद्र, सं., प+ग., आदि: प्रणम्य श्रीजिनाधीशं; अंति: नंदी गुणादिमुनिः, ग्रं. ३८०. १०२०५५ (+) मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. हुंडी:मेरुत्रयोदशी, संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६.५४११, १२४४७-५२). मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, मु. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: मारुदेवं जिनं नत्वा; अंति: शिष्यैरामोदतस्त्वदः, ग्रं. १६५. १०२०५६ (+) वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. अंत में "कृष्णवासुदेव भव संख्या" का उल्लेख है. हुंडी:वसुधारासूत्र, संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १३४४०-४३).. वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिह; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. १०२०५७. (+) उपासकदशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १५६७, श्रावण शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ४४, ले.स्थल. श्रीपत्तन, प्र.वि. हुंडी:उपपासू, उप०सूत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (११४१०, ११४३३-३८). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: अयमढे पण्णत्ते, अध्ययन-१०, ग्रं. ८१२. १०२०५८. उपासकदशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८,प्र.वि. हंडी:उपासगदशांगसूत्रं., जैदे., (२६.५४११,१५४४२-५५). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन-१०, ग्रं. ८१२. For Private and Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०२०५९ (+) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८०७, कार्तिक कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. २१-२(१ से २)=१९, ले.स्थल. आगरा, प्रले. मु. भगवानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५४११, ४४३६-४५). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: बहुत्वतः साध्याः, अध्याय-१०, (पू.वि. अध्याय-१ सूत्र-३२ से है.) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-टबार्थ, पुहि., गद्य, आदि: (-); अंति: सिद्ध जुहे ते साधिवै है. १०२०६० (+#) करप्रकर की कथासंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २५, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११, १८-१९४५४-५७). कर्पूरप्रकर-कथामहोदधि, संबद्ध, ग. सोमचंद्र पंडित, सं., गद्य, वि. १५०४, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: सोमचंद्र० विद्यते ध्रुवं, कथा-१२६. १०२०६१ (+#) धनंजयनाममाला व अनेकार्थनाममाला, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८-१(३)=७, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४४०-४२). १.पे. नाम. धनंजयनाममाला, पृ. १अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., वि. १६४६, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, ले.स्थल. सिकंदराबाद, प्रले. ग. लक्ष्मीशेखर (गुरु उपा. सुमतिशेखर, अंचलगच्छ); गुपि. उपा. सुमतिशेखर (गुरु आ. जिनचंद्रसूरि, अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. धनंजय नाममाला, जै.क. धनंजय, सं., पद्य, आदि: तन्नमामि परं ज्योति; अंति: भिया शब्दाः समुत्पीडिताः, श्लोक-१६८, (पू.वि. श्लोक-५४ अपूर्ण से ८० अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. अनेकार्थनाममाला, पृ. ८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जै.क.धनंजय, सं., पद्य, आदि: गंभीरं रुचिरं चित्रं; अंति: (-), (पृ.वि. श्लोक-१३ तक है.) १०२०६२. (+) वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८८०, शनिवार, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. प्रतिलेखनपुष्पिका अवाच्य है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११,११४३८). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिह; अंति: धारिणीमहाविद्या. १०२०६४. (+) दशवैकालिकसूत्र व दशवैकालिकसूत्रमाहात्म्य गाथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५८-२(३६,४१)=५६, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:दशसूत्रं., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, ५४४५). १.पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-५८आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: मुच्चइ त्ति बेमि, अध्ययन-१०, (पू.वि. अध्ययन-७ गाथा-२८ अपूर्ण से ४० अपूर्ण तक व अध्ययन-८ गाथा-२८ अपूर्ण से ३९ अपूर्ण तक नहीं है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिनधर्म उत्कृष्ट; अंति: सुधर्मास्वामी कहइ छइ. २.पे. नाम. दशवैकालिकसूत्रमाहात्म्य गाथा सह टबार्थ, पृ. ५८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दशवकालिकसूत्रमाहात्म्य गाथा, संबद्ध, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिज्जंभवं गणहरं जिण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्रगत गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिज्जभवनामा गणधर; अंति: (-). १०२०६५ (+#) परमात्मप्रकाश सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४२-१(२)=४१, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:योगींद्रप्र०., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४६२-६५). परमात्म प्रकाश, मु. योगींद्रदेव, अप., पद्य, वि. ६वी, आदि: जे जाया झाणग्गियए; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२११ तक है व बीच की गाथाएँ नहीं हैं.) परमात्मप्रकाश-टीका, आ. ब्रह्मदेवसरि, सं., गद्य, वि. १६वी, आदिः (१)चिदानंदैकरूपाय जिनाय, (२)श्रीयोगींद्रदेवकृत; अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १३५ १०२०६६ (+#) प्रतिक्रमणसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६.५४११, २-१३४४०-४६). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: इच्छामि खमासमणो०; अंति: पासु पयच्छउ वंछिउ. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.म.प.-टीका*, सं., गद्य, आदि: इह चैत्यवंदनादर्शन; अंति: (१)जगप्सितत्वत् सम्यग, (२)बृहद्वतितो वर पूर्णितश्च. १०२०६७. (+#) प्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १३४३३). पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं०१संपदा; अंति: (-), (पू.वि. आयंबिल पच्चक्कखाण अपूर्ण तक है.) १०२०६८. (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१२, ९४२८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., महावीर चरित्र सूत्र-२० अपूर्ण तक है.) १०२०६९ (+) महावीरजिन स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८६, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. आडीसरनगर, प्रले. ग. सुंदरविजय गणि (गुरु ग. जसविजय); गुपि. ग. जसविजय (गुरु ग. हर्षविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४११, ५४३४-३७). महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: विसदां दृष्टि दयालो मयि, श्लोक-३०. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भव संसार संबंधीया क्रोध; अंति: ते प्रति प्रथय विस्तारो ए. १०२०७० (+#) दशाश्रुतस्कंधसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ६२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ., (२५.५४११.५, ५४३२-४१). दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: सुयं मे आउसं तेण भगवया; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, दशा-१०, ग्रं. १३८०. १०२०७१ (+) शतक नव्य कर्मग्रंथ-५ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ४४३९). शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धवबंधोदय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५४ तक है.) शतक नव्य कर्मग्रंथ-५-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिन प्रतई नमीनई छवीस २६; अंति: (-). १०२०७२. (+#) दशवैकालिकसूत्र-अध्ययन १ से ४, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, प.७,प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४११, ११४३९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०२०७३. (+) प्रश्नव्याकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ५४४०-४४). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२ अपूर्ण पाठ-"अविस्सामवेयणं दीहकाल बहुक्खसंक" तक है.) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हे जंबू एह प्रत्यक्ष; अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०२०७४. (+#) चतुःशरण प्रकीर्णक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६८७, वैशाख कृष्ण, १०, शुक्रवार, जीर्ण, पृ. १२, ले.स्थल. लालपुर, पठ. मु. मेघा ऋषि (गुरु मु. वीका ऋषि); प्रले. मु. वीका ऋषि (गुरु मु. कान्हाजी ऋषि); गुपि. मु. कान्हाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चतुशर०बा., त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ३४४५). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सावज्ज जोग विरइ; अंति: सुखनुं हेतु कारण. १०२०७५. (+#) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-१(१)=१६, प्र.वि. हुंडी:दसवैकालि., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १५४४४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: अपणागमं गइ त्तिबेमि, अध्ययन-१०, (पू.वि. अध्ययन-३ गाथा-४ से है.) १०२०७६. (#) गौतमपच्छा सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १६००, श्रावण शुक्ल, १, जीर्ण, पृ. ९-१(१)=८, प्रले. गोरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:गोतमपृच्छा., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १३४३४-३८). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक नहीं गौतमपृच्छा-बालावबोध , मा.गु., गद्य, वि. १५६९, आदि: (-); अंति: महार्थइ श्रीगौतमपृच्छा. १०२०७७. भक्तामर स्तोत्र सह यंत्रमंत्राम्नाय, संपूर्ण, वि. १९६४, आश्विन कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. ४९, ले.स्थल. वसो, प्रले. श्राव. जमनादास सेठ; दत्त. श्राव. उजमशी जुठाभाई शाह, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:भक्तामर. अंत में संवत-१९६५ पोष वद ८ के दिन जैन पुस्तक भंडार को यह ग्रंथ भेंट देने का उल्लेख है., दे., (२५.५४११.५, ९-१४४५०-५३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४८. भक्तामर स्तोत्र यंत्रमंत्राम्नाय-पंचांगपद्धति विवरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., गद्य, आदि: ऋद्धि ॐ ह्रीं अर्ह णमो; अंति: तस्य सिद्धिः कमलावरोति. १०२०७८. (+#) गौतमकुलक सह टीका व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.६२-१६(१ से १४,३९ से ४०)=४६, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५,१३४३४). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०, (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., गाथा-३ से है व बीच के गाथांश नहीं हैं.) गौतम कुलक-टीका+कथा, मु. ज्ञानतिलक, सं., गद्य, वि. १६६०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., गाथा-२ अंतर्गत पांडवकथा अपूर्ण से प्रशस्तिश्लोक-४ तक है व बीच के कथांश नहीं हैं.) १०२०७९ (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह अन्वय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, ६४४५). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३४ अपूर्ण तक है.) कल्याणमंदिर स्तोत्र-अन्वय, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: किलेति सत्ये तस्य; अंति: (-). १०२०८० (+) वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १६९३, आषाढ़ शुक्ल, १५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. सत्यपुर, प्रले. मु. रयणचंद्र गणि (अंचलगच्छ); अन्य. सा. रहीया आर्या; सा. जसा (गुरु सा. रतना); सा. रतना (गुरु ग. लक्ष्मी); ग. लक्ष्मी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:वसुधारा., संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १३४३३-३८). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिह; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. १०२०८१ (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०-१(१५)=१९, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्र., संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४४३-४६). For Private and Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १३७ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. महावीरचरित्र हिरण्यादि त्यागवर्णन पाठ "संतिसार सावइज्जं" से श्रामण्य प्रतिबंधा भाववर्णन पाठ "से अपडिबंधे चउविहे पण्णत्ते" तक व नेमिजिनचरित्र पाठ "चित्ताहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागेणं" से नहीं है.) १०२०८२. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-३(२ से ४)=५, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११.५, ९४२८). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: (-), (पू.वि. पंचिंदियसूत्र गाथा-२ अपूर्ण से पुक्खरवरदीसूत्र गाथा-५ अपूर्ण तक व वंदित्तुसूत्र गाथा-४५ अपूर्ण से नहीं हैं.) १०२०८३. (#) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ५४३९). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमदारमवद्यभेदि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४४ अपूर्ण तक है.) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: कल्याण ते मंगलिक; अंति: (-), (वि. पत्र में आदिवाक्य वाला भाग खंडित है.) १०२०८४. (+) आगम योगोद्वहन विधि व विविधतपविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. २२-४(१,९,१३,२१)=१८, कल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४४८). १. पे. नाम. आगम योगोद्वहन विधि, पृ. २अ-२२अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: विगइ प्रमुख आहार करइ, (पृ.वि. संध्या प्रतिक्रमण विधि से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) २.पे. नाम. विविधतपविधि संग्रह, पृ. २२अ-२२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सौभाग्यकल्पवृक्षतप एकांतर; अंति: (-), (पू.वि. १० पच्चक्खाण अंतर्गत कवलतप विधि अपूर्ण तक है.) १०२०८८.(+) नवतत्त्वप्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ११-१३४३४). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४८ अपूर्ण तक है.) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व दसप्राण धारइ; अंति: (-). १०२०८९ (+) दशवकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४५, .वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ६x४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: मुच्चइ त्ति बेमि, अध्ययन-१० चूलिका २, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: धर्म केवली भगवंतनो; अंति: शिष्य प्रतइ कहइ छइ, संपूर्ण. १०२०९० (#) पाक्षिक प्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७-११(३ से ४,६ से १४)=६, पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १०४३०). पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: (-), (पू.वि. जगचिंतामणि गाथा-१ अपूर्ण तक, इच्छामि ठामिसूत्र अपूर्ण से वैयावच्चसूत्र अपूर्ण तक व वंदित्तुसूत्र गाथा-४३ अपूर्ण से सकलार्हत्स्तोत्र श्लोक-४३ अपूर्ण तक है., वि. सकलार्हत् श्लोक-२९ के बाद प्रक्षिप्त श्लोक दिये १०२०९१. शत्रंजयतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३२-३१(१ से ३१)=१, जैदे., (२५.५४११.५, ९४३२). शत्रंजयतीर्थ स्तवन, म. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: खिमाविजय० धरे ध्यान, गाथा-१६, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-१२ से है.) १०२०९२. सीमंधरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११.५, ११४३१). For Private and Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: पूर्वविदेहे हो प्रभुजी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) १०२०९३. (+#) ज्ञानपच्चीसी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, ११४३१). ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तिर्यग जग जोनि; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१० अपूर्ण तक है.) १०२०९४. (#) वंदित्तुसूत्र, अपूर्ण, वि. १८६३, श्रावण अधिकमास शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, ले.स्थल. आंबोरीनगर दक्षिणदेशे, पठ. श्राव. भारमल्ल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, १०x१२-२७). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-४३, (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण से है.) १०२०९५ (#) बहच्छांति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हंडी:वृद्धशांति., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ८x१०-३५). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: (-), (पू.वि. पाठ-"तित्थयर माया सिवादेवी __ अह्ननयरति") १०२०९७. गौतमस्वामी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९०५, माघ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. अलायग्राम, दे., (२५.५४११, ९x४१). गौतमस्वामी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिं वसुभूति; अंति: लभंते नितरां क्रमेण, श्लोक-९. १०२०९८. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४१२, ६x४३-४८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-५ गाथा-६३ अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं वीरता; अंति: (-). १०२०९९ (+#) औपपातिकसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.७६-२६(१ से २६)=५०, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:उवाइ., संशोधित-त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ५-१०x४४-४७). औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-२० पाठ "विप्पओगसति समण्णागए" से सूत्र-५४ पाठ "सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ" पाठ तक है.) औपपातिकसूत्र-दर्गमपद बालावबोध, म. मोहन ऋषि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०२१०० (+#) ज्योतिषसार-नक्षत्र वाहन विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १३४४२). ज्योतिषसार-लघुनारचंद्र ज्योतिष, संक्षेप, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: श्रीअर्हतंजिनं नत्वा; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०२१०१. (+) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६०४, मध्यम, पृ. २७, लिख. ग. कुशलराज; पठ. श्राव. ठाकर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ४४३५-३९). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.मान्य, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंति: वंदामि जिणे चउव्वीसं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत प्रतइं माहीं; अंति: चउवीस तीर्थंकर प्रतइं. १०२१०२ (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह सुखबोधा टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १६४३७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संयोगा विप्प मुक्कस्; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ सूत्र-२२ तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदि: प्रणम्य विघ्नसंघात; अंति: (-). १०२१०३. (+) षष्ठिशतक प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४२९). षष्ठिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., पद्य, आदि: अरिहं देवो सुगुरू; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५९ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३९ षष्ठिशतक प्रकरण बालावबोध, वा. मेरुसुंदर गणि, मा.गु., गद्य, आदि (१)सयल सुरासुर नमियं पासजिणं, (२) गुरु अनइ सुधर वीतरागनु अति: (-). १०२१०४. (+४) पांडव रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२४ ६४ (१ से ५९ से १२,२१ से ५९,७९,१०७ से १२१)=६०, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, पत्रांक खंडित है, जैदे. (२६५११९, १५४४५). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: (-): अंति: (-), (पू.वि. ढाल ६ दोहा-३ अपूर्ण से ढाल- १६९ गाथा-१० अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं . ) , १०२१०५ दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ३८-१ (३५) ३७, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी: दशवीका., जैदे. (२५.५४११, ६४३६-४०). " दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा. पद्य, वी. रवी आदि धम्मो मंगलमुक्कट्ठे अति (-), (पू.वि. अध्ययन-७ गाथा-५२ अपूर्ण से अध्ययन-८ गाथा-५ अपूर्ण तक व अध्याय-८ गाथा-४२ से नहीं है.) १०२१०६. (+#) गुणस्थानक्रमारोह सह गुणस्थानक प्रकरण टीका, अपूर्ण, वि. १७६७, मार्गशीर्ष, ४, मध्यम, पृ. २१-१ (२०)=२०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ५००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६×११.५, १६×५०). गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं. पद्य वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोह हतमोह; अति " 1 रत्नशेखरसूरिभिः, श्लोक-१३९, (पू.वि. श्लोक-१२६ अपूर्ण से श्लोक-१३६ अपूर्ण तक नहीं है.) गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४४७, आदि: अहं पदं हृदि; अतिः प्रकटित इत्यर्थः. १०२१०७ (+) पिंडविशुद्धि प्रकरण सह वालाववोध, अपूर्ण, वि. १६२० श्रावण शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पू. २४- १४(१० से २३) १०, प्र. वि. हुंडी पिंडवि० वा., संशोधित, जैवे. (२५.५x११, १३४४३-४९). " पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देविंदविंदवंदिय पयार; अंति: बोहिंतु सोहिं तुया, गाथा - १०३, (पू.वि. गाथा ४१ अपूर्ण से गाथा १०१ अपूर्ण तक नहीं है.) पिंडविशुद्धि प्रकरण-बालावबोध, ग. संवेगदेव, मा.गु., गद्य, वि. १५१३, आदि: देविंद देवतानई; अंति: बोलि उठइ इसिउ जाणिवड. १०२१०८ (+४) जयतिहुअण स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण वि. १६८२, माघ शुक्ल, २, मंगलवार, मध्यम, पू. ५. ले. स्थल विक्रमपुरनगर, प्रा. पं. अमृत (गुरुआ जिनसागरसूरि खरतरगच्छ ); गुपि. आ. जिनसागरसूरि (गुरु गच्छाधिपति जिनसिंहसूर, खरतरगच्छ); गच्छाधिपति जिनसिंहसूर (गुरु आ, जिनचंद्रसूरि, खरतरगच्छ); आ, जिनचंद्रसूरि (गुरु आ जिनमाणिक्यसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी : जयतिहुअण वृत्ति., त्रिपाठ - टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१०.५, ५X४८). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि जय तिहुअणवरकप्परुक्ख; अंति: अभयदेव० आनंदिअ गाथा ३०. 3 जयतिहुअण स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: अत्रायं वृद्धसंप्रदायः; अंति: स्त्रिलोकलोकश्लाघितः. १०२१०९. (+) सारस्वत व्याकरण-कृत्प्रक्रिया सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १२-१ ( २ ) =११, प्र. मु. हर्षविमल (गुरु पंन्या. बुद्धि गणि, तपागच्छ - विमलशाखा); गुपि. पंन्या. बुद्धि गणि (गुरु ग. आनंदविजय, तपागच्छ-विमलशाखा); ग. आनंदविजय (गुरु ग. वानर्षि, तपागच्छ-विमलशाखा); ग. वानर्षि (गुरु आ. आनंदविमलसूरि, तपागच्छ-विमलशाखा), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२६४११, २०-२४X६२-७३). सारस्वत व्याकरण- हिस्सा कृत्प्रक्रिया, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: (-); अंति सुरनराकारमधुपापीतपत्कजः, (पू.वि. सूत्र- ७ की प्रक्रिया अपूर्ण से है.) सारस्वत व्याकरण-हिस्सा कृत्प्रक्रिया की अवचूरि, ग. वानर्षि, सं., गद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: वानरेण० अवचूरिरियं कृतेति For Private and Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०२११८. (+#) सारस्वत व्याकरण सह दीपिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४४-२(१,५८)+१(५९)=१४३, प्र.वि. हुंडी:चंद्रकीर्त्तिटी., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १५४५७-६३). सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: सुरनराकारमधुपापीतपत्कजः, (संपूर्ण, वि. कहीं-कहीं मूल का प्रतीक पाठ दिया है.) सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदिः (-); अंति: श्रीप्रभुचंद्रकीर्त्तिः, (अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., टीका का मंगलाचरण भाग नहीं है.) १०२१२२. (+#) धातपारायण सह स्वोपज्ञ वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:धातुपारायण., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १५४४२-४७). सिद्धहेमशब्दानुशासन-धातुपारायण, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: अहँ भू सत्तायां; अंति: बहुलमेतन्निदर्शनम्, संपूर्ण. सिद्धहेमशब्दानुशासन-धातुपारायण की स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: श्रीसिद्धहेमचंद्रव्याकरण; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. अंतिम सूत्र "बहुलमेतन्निदर्शनं" की वृत्ति अपूर्ण तक है.) १०२१२३. (+) जन्मपत्री पद्धति-अधिकार १ से २, अपूर्ण, वि. १७२८, माघ शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ४८-१८(१ से १८)=३०, ले.स्थल. नवहर, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १६४५३-५८). जन्मपत्री पद्धति, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. मासचक्रफल अपूर्ण से है.) १०२१२५. (+) विवेकविलास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३९-१(४)=३८, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४३८-४५). विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, आदि: शाश्वतानंदरूपाय तमस्तौमेक; अंति: (-), (पू.वि. उल्लास-१ श्लोक-८४ अपूर्ण से श्लोक-११८ अपूर्ण तक व उल्लास-१२ से नहीं है.) १०२१२९ (#) ज्योतिषसारोद्धार-जन्मपत्रीका, जातकाभरणे दानविधानाध्याय व स्त्रीजन्मकुंडलि विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४४४). १. पे. नाम. ज्योतिषसारोद्धार-जन्मपत्रीका, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण, ले.स्थल. सादडीनगर, प्रले. मु. मनोहरसागर; पठ. मु. फतेचंद (गुरु मु. मनोहरसागर), प्र.ले.पु. सामान्य. ज्योतिषसारोद्धार, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: तं नमामि जिनाधीशं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २. पे. नाम, जातकाभरणे दानविधानाध्याय, पृ. ५आ, संपूर्ण. जातकाभरण-हिस्सा नवग्रहदानविधान, ढुंढिराज दैवज्ञ, सं., पद्य, आदि: ये खेचरा गोचरतोष्टवगति; अंति: दानमिदं मुनींद्रैः, श्लोक-१०. ३. पे. नाम. स्त्रीजन्मकुंडली विचार, पृ. ५आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सातमे मंगल विधवा हवै; अंति: विभचारणी बारमें वेश्या. १०२१३२ (#) विवाहपटल सह बालावबोध व अष्टदोष पालन दोहा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६-११(१ से ११)=५, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३९). १.पे. नाम, विवाहपटल सह बालावबोध, पृ. १२अ-१६आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८५२, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, सोमवार, ले.स्थल. खीमेलनगर, प्रले. ग. कुशलविजय; पठ. श्राव. देवीचंद दर्शणी, प्र.ले.पु. सामान्य. विवाहपटल, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: विद्यधेनुक्रमं शुभं, श्लोक-२४४, (पू.वि. श्लोक-१६३ अपूर्ण विवाहपटल-बालावबोध, मा.ग., गद्य, आदिः (-); अंति: विषे वृषसंक्रंतथी मांडीजे, (वि. क्वचित संस्कृत का भी उपयोग किया गया है.) २. पे. नाम. अष्टदोष पालन दोहा, पृ. १६आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ अष्टदोषपालन दोहा, मु. हीर, मा.गु., पद्य, आदि लाभ टले रवि रेषदे थावर; अति हीर कहे ग्रह शुद्ध, गाथा-२. १०२१३३. (+#) योगचिंतामणि सह अर्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी : योगचिंतामन ., संशोधित त्रिपाठ - टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे (२५४११, १०x४३). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदिः यत्र वित्रासमायांति, अंति (-), (पू.वि. अध्याय-५ अपूर्ण तक है.) योगचिंतामणि- अर्थ मा.गु., गद्य, आदि: सूरपाली सुंठि सेर ५: अंति: (-). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०२१३४. (+#) योगचिंतामणि व माणिभद्र मंत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-५ (१,५ से ८) = १०, कुल पे. ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५x११.५, ७४२८-४१). १. पे नाम. योगचिंतामणि का संक्षेप सह टवार्थ, पृ. २अ १५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं. " योगचिंतामणि संक्षेप, सं., पद्य, आदि (-) अति भ्रूणं पतति निश्चितम् अधिकार ७ (पृ.वि. अधिकार २ अरिष्टादिचूर्ण अपूर्ण से है व नारायणचूर्ण से हरीतिकाचूर्ण अपूर्ण तक नहीं है.) योगचिंतामणि-संक्षेप का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अथवा ७ तो छोड गर्भ पतंति. २. पे नाम. माणिभद्र मंत्र यंत्रविधि, पू. १५ आ, संपूर्ण माणिभद्रवीर मंत्र विधिसहित, सं., पद्य, आदि: ॐ सिद्धि ॐ ॐ ह्रीं क्रीं अति माणिभद्रक्षेत्रपालाय नमः, श्लोक १. ३. पे. नाम. औषधवैद्यक संग्रह, पृ. १५आ, संपूर्ण. मा.गु. सं., पद्य, आदि: विना वातं कुतो शूलं; अति विना रक्तं ततोत्तमम्, गाथा- १. ४. पे नाम औषध संग्रह, पृ. १५आ, संपूर्ण. औषध संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: काल जाजडी केरजड नीलथी घसी; अंति: (-). १०२१३७ (f) सारस्वत व्याकरण की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. २२-२ (१ से २) २०. प्र. वि. हुंडी : खेना० टीका.. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २६.५X११.५, १३x४२-४८). 3. सारस्वत व्याकरण-क्षेमेंद्रीवृत्ति, आ. क्षेमेंद्रसूरि से, गद्य, आदि (-); अंति य परिस्फुटान, (पू.वि. पाठ "करिष्यमाणमैकारमभित्यैव" से है ) יי " १०२१३८. (4) योगचिंतामणि सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी जो. चि. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैये. (२५.५४१०.५, ७४३५-३८). १४१ योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदिः यत्र वित्रासमायांति, अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-१ अपूर्ण तक है.) योगचिंतामणि- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति: (-). १०२१३९. (*) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२०, प्र. वि. हुंडी: ज्ञाता० सूत्र ० पत्र खंडित होने से प्रतिलेखक पुष्पिका अवाच्य है. कुल ग्रं. ४९५४ मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२६x११, १३३०-५६). " " ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: नायाधम्मकहाओ सम्मत्ताओ. For Private and Personal Use Only १०२१४६. (+) अरदास चौपाई, संपूर्ण वि. १९६४, भाद्रपद कृष्ण, १४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २८, ले. स्थल बीकानेर, प्रले. मु. चुनीलाल, पठ. श्राव. भैरुदान सेठी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: समक्त, संशोधित, दे. (२६४११.५, १६४४५). अरदास चौपाई, मु. कुस्यालचंदजी मु. धन्नो, मा.गु., पद्य, वि. १८७९, आदि अरिगंजण अरिहंतजी वरधमांन; अति कुस्याल० गुरुवारोजी, ढाल-६४. १०२१४७. (+) समयसार नाटक, संपूर्ण, वि. १७५५, चैत्र ७, रविवार, मध्यम, पृ. ५८, ले. स्थल. सांगानेर, प्रले. श्राव. नंदरामजी; पठ. श्राव. बालमुकुंदजी (पिता श्राव. नंदरामजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: समयसारनाटक, संशोधित. प्र.ले. श्लो. (१३९२) एषा हितैषिणां भाति, जैवे. (२५x११, १३४३९-४६). " समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन, अंति: मैं परमारथ विरतंत, गाथा ७२७. " Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०२१४८. कर्मग्रंथ-१ से ४, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-३(१ से २,९)=७, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३७). १.पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: लहिउ देविंदसूरिहिं, गाथा-६०, (पू.वि. गाथा-४४ अपूर्ण से तसह तं वीरं, गाया, पृ. ५अ-६अ, सहाणविमुक्कं वदा नहीं है. २. पे. नाम. कर्मग्रंथ-२, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण.. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंद वंदिअंतसह तं वीरं, गाथा-३४. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं वंद; अंति: नेअंकम्मत्थयं सोउ, गाथा-२४. ४. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ६अ-१०अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. __ षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअ जिणं जिअ१ मग्गण; अंति: विआरो लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-८६, (पू.वि. गाथा-५५ अपूर्ण से गाथा-७७ अपूर्ण तक नहीं है.) १०२१४९ (+) चतुःशरण प्रकीर्णक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ११४२६-३२). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४५ तक चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलउ आवश्यकना नाम; अंति: (-). १०२१५० (+#) कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-४(२ से ५)=६, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ९४२८-३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-३ अपूर्ण तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: नैतत पर्वसमं पर्व; अंति: (-). १०२१५१ (+#) अष्टप्रकारी पूजा-कथासंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४४५). ८ प्रकारीपूजा कथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: पणमह तं नाभिसुयं; अंति: (अपठनीय), कथा-८, ग्रं. १२००, (वि. प्रत खंडित होने से अंतिमवाक्य अवाच्य है.) १०२१५२. (+) शतक कर्मग्रंथ सह स्वोपज्ञ टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६९-३२(१ से ३२)=३७, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १७-२०४५२-५५). शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, ___ गाथा-१००, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-६२ अपूर्ण से है.) शतक नव्य कर्मग्रंथ-५-स्वोपज्ञ टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंतिः (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-६२ की टीका अपूर्ण से प्रशस्ति श्लोक-८ अपूर्ण तक है.) १०२१५३. (#) कल्पसूत्र सह टीका-व्याख्यान ७ से ८, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:क.व्या., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. व्याख्यान-८ के प्रारंभिक सूत्र अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. व्याख्यान-८ प्रारंभिक अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १४३ १०२१५४. (+) जीतकल्पसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १५३१, फाल्गुन कृष्ण, १३, रविवार, मध्यम, पृ. ३९, प्रले. मु. समयमाणिक्य (गुरु मु. सूरसुंदर); गुपि. मु. सूरसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:यतिजीतकल्पवृत्ति. अंत में श्लोकबद्ध प्रतिलेखन पुष्पिका दी गई है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११,१५४५२). जीतकल्पसूत्र, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ६वी, आदि: कयपवयणप्पणामो वोच्छं; अंति: सुपरिच्छिय गुणम्मि, गाथा-१०५. जीतकल्पसूत्र-टीका, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, वि. १२७४, आदि: वंदे वीरं तपोवीरं; अंति: शुध्यतः सिध्यतश्चेति, ग्रं. १७००. १०२१५५ (+) गुणरत्नाकर छंद, औपदेशिक गाथा व सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १६६७, चैत्र कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. २९, कुल पे. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, ११४३५-४४). १. पे. नाम, गुणरत्नाकर छंद, पृ. १आ-२९अ, संपूर्ण. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५७२, आदि: शशिकरनिकर समुज्वल; अंति: करो सहिजसुंदर मया, अध्याय-४, गाथा-४२५. २. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. २९अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: एक रती विन एक रती को; अंति: सवइ एक वरति विन एक रति को, सवैया-१. ३. पे. नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण. म. गोविंद मनि, मा.गु., पद्य, आदि: न डरि पत्तंग निसंग जरि; अंति: गोविंद० मरंत विना प्रभु, सवैया-१. ४. पे. नाम, औपदेशिक सवैया-सच्चरित्र, प. २९आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: परधन रूप देख पर त्रिय को; अंति: पीटति मंडि पटि कि, सवैया-१. ५.पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. २९आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहिं.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मान मती पामइ अपमान मन दुख; अंति: तिम तिम अति रलीयायत थाय, गाथा-१. १०२१५७ (+#) दशाश्रुतस्कंधसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२-८(१ से ३,६ से ९,२०)=१४, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२६४१२,११४३१-३५). दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. दशा-३ पाठ "सिज्झा संथारए चिट्ठित्ता" से दशा-१० पाठ "चिल्लणा देवी महिड्ढिया" तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०२१५८. (+#) अंतरकथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२, प्र.वि. हुंडी:कथा संग्रह., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, पत्रांक खंडित हैं., जैदे., (२७४११.५, १८-२१४७७-८६). अंतर्कथा संग्रह, आ. राजशेखरसूरि, सं., गद्य, आदि: यन्नैकामपि कामिनीं; अंति: कर्णः भोगपुरंदरः, कथा-८१, ग्रं. २४००. १०२१५९. कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:कल्पार्थ, जैदे., (२६४११.५, १३४३८-४५). कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, वि. १६८०, आदि: श्रीहर्षसार सगुरु चरणरजः; अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-२ का बालावबोध अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक सूत्र-२ अपूर्ण तक है.) १०२१६०. महावीरजिन स्तुतिद्वय सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:पुच्छि., जैदे., (२५.५४११.५, ४४२०-२८). १.पे. नाम. वीरस्तति अध्ययन सह टबार्थ, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: देवाहिव आगमिस्संति, गाथा-२९. For Private and Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सूत्रकृतांगसूत्र- हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि नर्कधी वीभक्ति सांभलीने अंति: इंद्र थाई पछे मोक्ष पामई, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति सह टबार्थ, पृ. ८अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तुति, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि पंचमहव्वयसुव्ववमूलं अति (-) (पू.वि. गाथा ३ तक है.) महावीरजिन स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि पांचम० महाव्रत, अंति: (-). १०२१६१. (+) उपदेशरत्नमाला, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८३-५ (१ से ५ ) = ७८, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६x११.५, १२-१५X४२). उपदेशरत्नमाला, आ. सकलभूषण, सं., पद्य, वि. १६२७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., परिच्छेद २ अपूर्ण श्लोक-३६ अपूर्ण से परिच्छेद १८ अपूर्ण श्लोक-६५ अपूर्ण तक है.) १०२१६२. (+) पर्युषणाष्टाहिका व्याख्यान सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १०-१ ( ३ ) =९, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६X११.५, ५X३२). पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि: स्मृत्वा पार्श्व; अंति: (-), (पू.वि. पाठ-"तत्र देवेंद्रा अधिक भावेना" से "जिवित मिछति अपि च" तक "पर्वणि न वक्तव्य " से "गालीप्रदाप्रदानादि कठिन " तक है. "गालीप्रदानादिकठिन" तक है.) पर्युषणाष्ठाह्निका व्याख्यान टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि समरीने श्रीपार्थ; अंति: (-). १०२१६३. (+) दीपावलीकल्प, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६४११.५, ११x४२). יי दीपावलीकल्प, सं., गद्य, आदि: इहैव भरतक्षेत्रे, अंति (-), (पू.वि. पाठ- तदाचक्रवर्त्यादयोजनाः सर्वे नमन्ति" तक है.) १०२१६४. (+) वसुधारा स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-१ (१) = ५, पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित ., वे. (२६.५x११, ११४३४). वसुधारा स्तोत्र, से., गद्य, आदि (-); अति: (-), (पू.वि. पाठ "वज्रवैदुर्वशखशिलप्रवाल" से पाठ धारिणी भाषिता अधिष्ठिता स्वमुद्रया" तक है.) १०२१६५. (+#) पार्श्वजिन स्तोत्र व बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी : संघयणसूत्र, संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११.५, ८x२४-३६). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा पत्रांक- १ पर लिखी गई है. मु. जयसागर, सं., पद्य, आदि: धर्ममहारथसारथिसारं; अंति: विबुद्धि सुधियामुपकारे, श्लोक-४. २. पे. नाम. बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, पृ. १आ-१६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. 3 बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी आदि नमिउं अरिहंताई ठिह, अंति (-) (पू.वि. गाथा २७१ अपूर्ण तक है.) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि नमिउं नमस्कार करीन अरिहंत, अति (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. गाथा १० तक के ही बार्थ है.) १०२१६६. (#) गौतमस्वामी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. उदयचंद, अन्य. उपा. सकलचंद्र (गुरु आ . जिनचंद्रसूरि, खरतरगच्छ ). प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन वर्ष मात्र संवत् १६ लिखा है. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५X११, १३X३६). "" गौतमस्वामी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिं वसुभूति; अंति: लभते नितरां क्रमेण, श्लोक ९. १०२१६७ (+४) चौविसजिन स्तुति सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें टीकादि का अंश नष्ट है, जैवे. (२५.५४११. १३४४०-५०). For Private and Personal Use Only २४ जिन स्तुति-यमकमय, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: तत्त्वानि तत्त्वा; अंति: पद्मास्य तु भारतीवः, श्लोक-२८. २४ जिन स्तुति-यमकमय-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: तत्वानि तत्वा विस्तार्य; अंतिः श्रीकास्य पद्मा.. Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १४५ १०२१६८. भगवतीसूत्र-शतक ११ उद्देशक ११ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र.वि. हुंडी:महा०ट०, सुदर्सट., जैदे., (२६४११, ७X४७-५०). भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक ११ उद्देशक ११ सदर्शनश्रेष्ठी अधिकार, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समयेणं; अंति: चेव सेवं भंते भंतेत्ति. भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक ११ उद्देशक ११ सुदर्शन श्रेष्ठी अधिकार का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेकालने विर्षे; अंति: तुम्हे का ते सत्य छे. १०२१६९ (+#) पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९-५(१ से ५)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १२४३५). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-४ अपूर्ण से सूत्र-६ गाथा-३४ तक है.) १०२१७० (+#) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०१,प्र.वि. हुंडी:राजसूत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. २०७९, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३१-३५). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० आमलकप्प; अंति: सुपस्से पस्सवणा नमो, सूत्र-१७५, ग्रं. २१००, संपूर्ण. राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुवउ० चउथा; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सूत्र-२४ का टबार्थ अपूर्ण तक लिखा है.) १०२१७१. चौविसजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. नटीपद्रनगर, प्रले. ग. दानप्रमोद (गुरु ग. कुलहंस); गुपि. ग. कुलहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १३४४३). चतुर्विंशतिजिन स्तुति, रत्नहंसगणिशिष्य, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: गी देउ सुक्खं सुअंगी, श्लोक-२७, (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण से है.) १०२१७२. (+#) समयक्त्वपच्चीसी सह अवचरि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ४-१(१)=३, प्र.वि. संशोधित-त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, त., (२६४११, ६x४२). सम्यक्त्वपंचविंशतिका, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: हवेउ सम्मत्तसंपत्ति, गाथा-२५, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-४ अपूर्ण से है.) सम्यक्त्वपंचविंशतिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: भवतु अन्यत्सुगम, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. १०२१७३. (+) भगवतीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८-३(१ से ३)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:भग०सू०., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४११.५, ६४३६). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शतक-१ उद्देशो-१ अपूर्ण पाठ-"नेरइयाणं भंते केवलिकालस्स आणमंति वा" से "चाउरंतं संसारकंतारं वितीवति" तक है.) भगवतीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०२१७४. १२ अनुप्रेक्षा, २२ परिषह व ४ ध्यानादि विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५३-४८(१ से ४८)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२६४११.५, १६४३९-४४). १२ अनुप्रेक्षादि विचार संग्रह, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश हैं.) १०२१७५. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १५८७, कार्तिक कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. १६४-२६(१ से २६)=१३८, पठ. ग. रंगसोम (गुरु ग. हर्षसोम पंडित); गुपि. ग. हर्षसोम पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ज्ञातासूत्र, ज्ञाताधर्मकथासू०., संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४४५-४८). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंतिः सुयखंधो समत्तो, अध्ययन-१९,ग्रं. ५५००, (पृ.वि. अध्ययन-१ पाठ "रयणगिरिपब्भारो धरणतलंसि" से है.) १०२१७६ (#) गौतमपृच्छा सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३-१(२)=१२, प्र.वि. हुंडी:गोतिम, गो०पृच्छा., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, १३४४०). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-९ से १७ तक नहीं है व गाथा-३१ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गौतमपृच्छा वालावबोध, मु. वृद्धिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा वीरजिन बालाव; अति (-) (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सुबुद्धि-कुबुद्धि कथा अपूर्ण तक लिखा है.) १०२१७७ (+#) बृहत्संग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८५२, भाद्रपद कृष्ण, ६, जीर्ण, पृ. १३, प्रले. पं. हीरा; पठ. मु. उगरचंद; अन्य. पुरणचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : संघैणसू., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १३X३८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य वि. १२वी आदि नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा- ३१२, (वि. आदि, अंतिम वाक्य व प्र. पुष्पिका अस्पष्ट है.) १०२१७८. (*) पाक्षिक व क्षामणकसूत्रद्वय, अपूर्ण, वि. १६३९, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. ३, ले. स्थल, मालपुर, प्रले. मु. पंचानन ऋषि पठ मु. कृपासागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५.५४११.५, १०x२५). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १अ-११अ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसाय भत्ती... २. पे. नाम. क्षामणकसूत्र, पृ. ११अ - ११आ, अपूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधि बार जुड़ी हुई है. हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: मणसा मत्यरण वंदामि, संपूर्ण. ३. पे. नाम. क्षामणकसूत्र, पृ. ११आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पियं च मे जं भे; अंति: (-), (पू.वि. सूत्र - १ अपूर्ण तक है.) १०२१७९ (+४) श्रेणिकराजा चौपाई खंड २ अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी श्रेणिकखंड २. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२६.५४११, १५४३८) श्रेणिकराजा चौपाई, मु. नारायण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. ढाल-४० क्रमशः गाथा- ७४७ अपूर्ण तक है.) १०२१८०. (+#) विवेकविलास, संपूर्ण, वि. १६५५, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ५५, ले. स्थल. धवलक्कनगर, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित. कुल ग्रं. ५००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १७X५५-७०). विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, आदि: शाश्वतानंदरूपाय तमस्तौमेक; अंति: मोक्ष तेह प्रतिं उपार्जइ, उल्लास- १२. १०२१८१ (+) कर्मग्रंथ १ व २ अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २५-१ (१) २४, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६x११, १६x४५-४८). १. पे. नाम. प्रथमकर्मविपाक सह बालावबोध, पृ. २अ -२४आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है.. , कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ १ आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी १४बी, आदि (-); अति: लिहिओ देविंदसूरिहि, गाथा-६०, (पू.वि. गाथा-२ से है.) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ - १ - बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मतिचंद्र०बालावबोधिनी. २. पे. नाम कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ सह बालावबोध, पृ. २५अ २५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी- १४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- २ तक है.) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ - २ - बालावबोध, मु, मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: वीरं बोधनिधिं धीरं अंति: (-). १०२१८२. तपागच्छीय पट्टावली, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६-१ (५) ५, प्र. वि. हुंडी पट्टावली., द्विपाठ, जैवे. (२६४११.५, १२X४८). तपागच्छीय पट्टावली, ग. शुभविजय, सं., गद्य, आदि श्रीसुधर्मास्वामी स च पं, अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. सोमतिलकसूरि व विजयदानसूरि के बीच की पट्टावली ४९ से ५६ नहीं हैं व विजयजिणंदसूर तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १४७ 1 १०२१८३. (+) परदेसीराजानो रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. १२, प्रले. मु. यादव ऋषि (गुरु मु. गणेशजी ऋषि); गुपि मु. गणेशजी ऋषि (गुरु मु. जसवंतजी ऋषि); मु. जसवंतजी ऋषि; पठ. सा. गंगाबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी : रायपरदेसीरास., संशोधित., जैदे., ( २६x११.५, १२X३६). प्रदेशीराजा रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि त्रिभोवन नयणानंदकर अंतिः तणी सफल फलि संसार, गाथा- २३२, ग्रं. ३००. १०२१८४. (+) लघुक्षेत्रसमास सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३ - १(५) १२, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५x११.५, ६x४३-५४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य वि. १५वी आदि वीरं जयसेहरपयपर्याय अति: (-), " " " (पू.वि. गाधा ५७ अपूर्ण से ७४ अपूर्ण तक व गाथा १८७ अपूर्ण नहीं है., वि. सारिणीयुक्त.) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि श्रीवीर मोक्ष पद अति (-). १०२१८५. (+) षष्ठीशतक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. ग. धनविमल; पठ. सा. कीकाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैदे. (२६४११.५, १०x२६-३२). " षष्ठिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., पद्य, आदि: अरिहं देवो सुगुरू; अंति: नेमिचंद० जंतु सिवं, गाथा-१६२. १०२१८६. (+) सूक्तावली, अपूर्ण, वि. १८४६, फाल्गुन शुक्ल, ४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१) = ८, ले. स्थल. खेद्रपुर, प्रले. मु. गुलाबराज (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : सूक्तावली. शांतिनाथ प्रसादात् संशोधित. जैवे. (२६११, १२४३३). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु. सं., पद्य, वि. १७५४, आदि (-); अंति केसरविमलेन विबुधेन, वर्ग-४, श्लोक-१७६, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. वर्ग-१ श्लोक-६ अपूर्ण से है.) "" १०२१८७. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, जैवे. (२५.५x११, ३x२९). , י जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा- ५१. जीवविचार प्रकरण-वार्थ, मा.गु., गद्य, आदि भुवन क० स्वर्ग; अति: समुद्र तेहथी उद्धयु, १०२९८८. चार मंगल रास- मंगल २ से ४, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ८, प्रले. गंगाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: बीजो मंग०, त्रीजो मंग०, चोथो मंग०. प्रतिलेखन स्थल अवाच्य है., दे., (२५.५X११.५, १२-१६x२८-३२). ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि (-); अंति: आराधीया मुगत सुखां मै जाय, प्रतिपूर्ण १०२१८९. (+) मेतारजमुनि ढाला व नववार सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. ५. कुल पे. २. प्र. वि. कर्ता के हस्ताक्षर से " लिखित प्रत., जैदे., (२६X११.५, १६X५४). १. पे. नाम. मेतारजमुनि ढाला, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण, वि. १८६१ कार्तिक शुक्ल, ११, ले. स्थल. मेडता, प्रले. प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी : मेतारजनी ढाला, मेतार्यरी ढाला. मु. मेतारजमुनि ढाल, मु. चोधमल ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १८६१ आदि समरु सासणरा घणी पो उगतै अति ती मिच्छामि दुक्कडं मोय, ढाल-१६, गाथा-२०४. २. पे. नाम. नववार सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. . चोथमल, नववाड सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सीलव्रत सुध पालजौ रे मानव; अंति: चोथमल०सीखावण रे सगलाने ऐम, गाथा- १५. For Private and Personal Use Only १०२१९० (०) ८ कर्म उपार्जना विचार, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ८-९ (१) =७, पृ. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. दे. (२६४११.५, १९४४२-४६). " ८ कर्म उपार्जना विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वेदनीयकर्म अपूर्ण से अंतरायकर्म अपूर्ण तक है., वि. प्रज्ञापनासूत्र आधारित . ) १०२१९१. (+) सीमंधरजिन विनती स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ६- १(१ ) =५. पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१२, १२३६). Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-१९ अपूर्ण से ढाल-९ गाथा-१११ अपूर्ण तक है., वि. सभी ढालों का गाथाक्रम एक साथ दिया १०२१९२. (+#) कल्पसूत्र का व्याख्यान व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १६x४५). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, सं., गद्य, आदिः पुत्रापंचमतिश्रुतावधिमनः; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., १८ पुराण नाम तक लिखा है.) १०२१९३. (+#) सम्यक्त्वसप्ततिका सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ७४३२). सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सणसुद्धिपयासं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६२ अपूर्ण तक है.) सम्यक्त्वसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सम्यक निर्मलाईनइ; अंति: (-). १०२१९४. (+) षड्शीति नव्य कर्मग्रंथ सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६६९, कार्तिक शुक्ल, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. मेदिनीतट, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ६x६२). षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८६.. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, वि. १४५९, आदि: नमियेत्यादि० जिनं नत्त्वा; अंति: तु केवलिनो विदंति, ग्रं. ३१००. १०२१९९. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, प्र.वि. हुंडी:जंबुचरित्र., जैदे., (२१.५४११.५, १५४३२-३८). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., उद्देशक-१ अपूर्ण पाठ-"भावेण सिद्धीफलं एवं चउधम्मं वित्थारं पणत्ता" तक है.) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदिः (१)प्रथम तिर्थकर, (२)ते कालनइ विषई ते; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: हिवै प्रथम दानना पांच भेद; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., उद्देशक-१ अपूर्ण पाठ-"उपाध्यायनो वेयावच ७ शीष्यनो वेयावच ८" तक है.) १०२२००. २५ बोल थोकड़ा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५, दे., (२१४१२, ११४२४). २५ बोल थोकडा-जीवगती शरीरादि, मा.गु., गद्य, आदि: पहली बोलें गत च्यार; अंति: देवशी संवच्छरी केवो. १०२२०१ (+#) नारचंद्र ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १९३२, आश्विन शुक्ल, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. विदासर, प्रले. श्राव. पन्नालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१.५४११, ११४२८-३२). ज्योतिषसार-लघनारचंद्र ज्योतिष, संक्षेप, मा.ग.,सं., प+ग., आदि: अहँतं जिनं नत्वा; अंति: तेति अस्त्री वांहली कहिजी, (वि. अंत में लग्न प्रमाण दिया गया है.) १०२२०८.(+) प्रतिक्रमणादि विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९-५(२,५ से ८)-४, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२१४१२, १०४२९). १.पे. नाम, उपवास पच्चक्खाणसूत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाणसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सुरे उग्गए अब्भत्त; अंति: असित्थेण वा वोसरइ, (वि. मात्र उपवास का पच्चक्खाण लिखा है.) २. पे. नाम. देववांदवानी संक्षिप्तविधि, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. देववंदन विधि, प्रा.,मा.ग., गद्य, आदि: प्रथम चैत्यवंदन करीइं पछे; अंति: (-), (पू.वि. तीसरे चैत्यवंदन की विधि अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. प्रभातना पडिकमणानी संक्षिप्तविधि, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. For Private and Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org १४९ राईप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि (-); अति सर्व साधु वांदु केहेवो, (पू.वि. रात्री आलोयणा संथारा उटणकी अपूर्ण से है.) ४. पे. नाम. पाखी प्रतिक्रमणनी संक्षिप्तविधि, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा. मा.गु., पग, आदि देवसीयाली पडिकंता इच्छा; अंति पछे च्यार खामणां खामीइ. ५. पे. नाम. उपधान विधि, पृ. ९अ - ९आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. उपधानतप विधि, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि (-); अंति (-), (पू. वि. प्रथम उपधान विधि अपूर्ण से पवेणां मुहपत्ती पडिलेहण विधि अपूर्ण तक है.) १०२२२० प्रतिक्रमणविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १०-३ (१ से ३) =७, पू.वि. बीच के पत्र हैं. वे. (१६.५४११.५, ८x२०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रतिक्रमणविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सामायिक लेने की विधि अपूर्ण से प्रारंभिक काउसग अरिहंत चेइयाणं तक है.) १०२२५६ कर्मविपाक रास, संपूर्ण, वि. १८०४, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, मंगलवार, श्रेष्ठ, पू. १०, जैदे. (२०x११.५, १२-१५X३०). जंबूपृच्छा, मु. वीरजी, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सकल पदारथ सर्वदा पूर; अंति: दृढ विनय पुरूष विलास, " ढाल १३. १०२२५७. (+) वीरजिन आराधन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र. वि. संशोधित., दे., ( २१.५X११.५, ८x२२). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा, अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल -८, गाथा- १००. १०२२६१. नवपद क्षमोश्रमण दान विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल. जावद, प्रले. उत्तमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१X११.५, ११X१७-२८ ) . नवपद खमासणा विधि, सं., गद्य, आदि: स्वण सिहासनसिताय; अंति: भावोत्सर्गतपसे नमः, (वि. प्रतिलेखक ने क्रमशः नहीं लिखा है.) १०२२९५ (+) स्तवन आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०-५ (१ से ३५ से ६) =५, कुल पे. ६, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित., दे., (२१X११, ९X३२). १. पे. नाम. भिखूअध्ययन सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. साधुगुण सज्झाय, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमहाव्रत जे धरे; अंति: ब्रह्म० सुजगीसे रे, गाथा-८. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. वाणारसजी, मा.गु., पद्य, आदि अति प्रणमति मुक्त सदा गहिये, गाथा-४, ३. पे. नाम. अभ्यंतर गाथा, पृ. ४आ, संपूर्ण. १४ अभ्यंतरग्रंथि गाथा, प्रा., पद्य, आदि: मिच्छत्तं वेय तिगं हासाइ; अंति: चउद्दस अभ्यंतरा गंठी, गाथा- १. ४. पे नाम. शरीरविषये आत्म सज्झाय, पृ. ७आ-८अ संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. कर्मसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: वली वली नरभव दोहिलो; अंति आतमा आऊह अलप सुभावै रे, गाथा - १३. ५. पे. नाम. इरियावही मिच्छांमदुक्कड जीवाजीव संख्यावृहत स्तवन, पृ. ८आ- १०आ, संपूर्ण इरियावही मिच्छामि दुक्कडं संख्या स्तवन, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि पद पंकज रे प्रणमी, अंति इम संधुण्यो भावेकरी, डाल-४, गाथा- १५. ६. पे. नाम. जिनपद, पृ. १०आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, पुहिं.रा., पद्य, आदि मन रे तुं छोडि माया अंति: वैभी स्वामि नाम संभालि, गाथा- ३. १०२२९६. (#) मृगापुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१X११, ५X१०). For Private and Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मृगापुत्र सज्झाय, ग. नरेंद्रविजय, मा.गु., पद्य वि. १९२१ आदिः सुग्रीव नवरी सुहामणु रे; अंतिः मुनी नरेंद्रनां रे लो, ढाल - १०, गाथा - १४९. १०२२९७ (+४) चेतनकर्म चरित्र, अपूर्ण, वि. १८७५, आणद्वीपबसुचंद्र, आश्विन ३, रविवार, मध्यम, पृ. १९-४(१ से ४)=१५, ले. स्थल. वासीनगर, प्रले. मु. रतनचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२x११.५, १२X३३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir י चेतन वृतांत, आव भगवतीदास भैया, पुहिं. पद्य वि. १७३६, आदि (-) अति भगौतीदास० रचना कही अनादि, 1 "" गाथा - २९७, (पू.वि. गावा-५९ अपूर्ण से है.) १०२२९८ (4) पुण्यप्रभावे मछयोदर रास, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पू. २४, प्रले. पं. कृष्णविमल (गुरु पं. मोहनविमल गणि); गुपि. पं. मोहनविमल गणि (गुरु ग. केसरविमल); ग. केसरविमल (गुरु मु. कनकविमल), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (१३५) जिहां द्रुसायर चंद रवि जैवे. (२०.५x११, १५-१८४३८). ', " मत्स्योदर रास-पुण्यप्रभावे, मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: शांतिकरण जिनशांतजी सुखदाय; - सांभ तस घर कोडि कल्याण, ढाल - ३३. अंति: १०२२९९. नवकार बालावबोध, साध्याव सज्झाय, प्रथमजिन स्तवन व औपदेशिक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-२(२ से ३ ) =९, कुल पे. ४, जैदे. (२१.५x११.५, १३४३५-३८). "" १. पे. नाम. नवकार बालावबोध, पृ. १अ ११अ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र नहीं हैं., वि. १८२२, आषाढ़ शुक्ल, ९, गुरुवार, ले. स्थल वडनगर, प्र. मु. जससागर (गुरु मु, मतिसागर) गुपि, मु, मतिसागर (गुरु मु. हर्षरत्नसागर): मु. हर्षरत्नसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. ५ परमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, प्रा., मा.गु., प+ग., आदि: बारस गुण अरिहंता; अंति: सुश्रावक सुश्राविका, (पू.वि. अरिहंतगुण वर्णन अपूर्ण से सिद्धगुण वर्णन अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. साध्याय सज्झाय, पृ. ११अ - ११आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि जीवडा दुलह मानव भव लाधो; अंतिः तिहां जड़ चिरकाल निंदो रे, गाथा-८. ३. पे नाम, प्रथमजिन स्तवन, पृ. १९आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि माहरू मन मोह्यं रे; अति घणा रे कहेतो नावि हो पार, गाथा ५. ४. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. ११आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि श्री आयुर्तश्यति पश्यतां अंतिः शरण दत्वरक्षरक्षाधुंना. १०२३१४. (#) बृद्धघंटाकर्ण कल्प, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३ - ८ ( १ से ८) = ५, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१x११.५, १०X२१). घंटाकर्ण कल्प, मा.गु.से., गद्य, आदि (-); अति क्षमस्व परमेश्वर (पू.वि. मृत्वत्सादोषनिवारण विधि अपूर्ण से है.) १०२३३५. जीवविचार प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-८ (१ से ८) = १, जैदे., (२३x११, ६x२२-३०). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि (-); अंति संतिसूरि० सुवसमुद्दाओ, गाधा-५१, "" , , י (पू.वि. गाथा ४७ अपूर्ण से है.) १०२३३६. सारस्वत व्याकरण धातुपाठ, संपूर्ण वि. १६७४ आषाढ कृष्ण, गुरुवार, मध्यम, पृ. १३, प्रले. श्राव. माधव (पिता) श्राव. कुमार): गुपि श्राव, कुमार, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२२.५X११.५ १०३४). सारस्वत व्याकरण-धातुपाठ, संबद्ध, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १६६३, आदि: श्रीसर्वज्ञं जिनं नत्वा, अंति निर्मितो नंदताच्चिरम् १०२३३९. (+) प्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैये. (२२.५x११.५, १४X३४). For Private and Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १५१ प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदिसह; अंति: लोगस० गुने करणी खमावणा. १०२३५३. (+) जिनपूजा स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. हुंडी:पूजाया०., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५४१२, ११४३८-४५). यक्षयक्षिणी स्तोत्र-आयधादियुक्त, सं., पद्य, आदि: श्यामो गजेंद्रवदनोहिफणा; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-१५ तक है.) १०२३५४. (+) गुणत्रीस भावना, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्रले. ग. फतेंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १५४४५). इगुणतीसी भावना, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जह मुच्चह सव्वदुक्खाणं, गाथा-२९, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-२ अपूर्ण से है.) १०२३५५ (+#) स्तुति व स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ.५६-२५(१,८,१५ से १८,२२ से २४,२८ से ३०,३२,३९ से ४९,५१)=३१, कुल पे. २१, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ९४२१). १. पे. नाम. वसुधारा लघु, पृ. २अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. वसधारा-लघ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: आर्या वसुधारा ज्ञेया, (प.वि. पाठ-"प्रभवति अमले विमले निर्मले" से है.) २. पे. नाम, भक्तामर स्तोत्र, पृ. ४आ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण से श्लोक-११ अपूर्ण तक नहीं है.) ३.पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ९आ-१४आ, संपूर्ण, पठ. श्रावि. प्रेमलदे, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. ४. पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. १४आ-१९आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संतिं च; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से गाथा-३४ अपूर्ण तक नहीं है.) ५. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.ग.,सं., पद्य, आदि: मंगलं भगवान वीरो मंगलं; अंति: सर्वत्र सुखी भवतु लोकः, गाथा-५. ६.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव, आ. पादलिप्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जयइ नवनलिन कुवलय; अंति: दिसउ खयं सव्वदुरिआणं, गाथा-६. ७. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र, पृ. २०आ, संपूर्ण. आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे पार्श्व जिणचंद, गाथा-५. ८.पे. नाम. नमिऊण स्तोत्र, पृ. २०आ-२१आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणय सुरगण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ९. पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद्, पृ. २५अ-२७आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं. आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-६ अपूर्ण से श्लोक-७१ तक है.) १०. पे. नाम. पद्मावतीदेवी स्तव, पृ. ३१अ-३१आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-७ अपूर्ण से श्लोक-१३ अपूर्ण तक है.) ११. पे. नाम. चक्रेश्वरी स्तुति, पृ. ३३अ-३३आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: पातु मां देवी चक्रे, श्लोक-९, (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण से है.) १२. पे. नाम. चंद्रप्रभस्वामि स्तोत्र समहिमं मंत्रमय, पृ. ३३आ-३४अ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ चंद्रप्रभः प्रभा; अंति: दायिनि मे वरप्रदा, श्लोक-५. For Private and Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १५२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास 'श्रुतसागर ग्रंथ सूची १३. पे. नाम. शंखेश्वर छंद ज्वर निवारण, पृ. ३४अ - ३८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. शील, मा.गु., पद्य, आदि प्रणव पणव प्रहु पय अंति सील० सकलदेव संखेसरा, गाथा- ६४. १४. पे नाम, लघुशांति, पृ. ३८अ ३८आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांतं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक - ९ अपूर्ण तक है.) १५. पे. नाम, जांगुली महाविद्या, पृ. ५० अ-५०आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. धरणोरगेंद्र महाविद्या स्तोत्र, सं., प+ग, आदि (-); अंति: (-). (पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण से कटि कटि स्फोट स्फोट" पाठ तक है.) १६. पे. नाम. भक्तामरगर्भमंत्र काव्य, पू. ५२अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: परिणतगुणैः प्रयोज्या, श्लोक-४, (पू.वि. अंतिम श्लोक-४ अपूर्ण मात्र से है.) १७. पे नाम अंबिकादेवी स्तोत्र, पृ. ५२अ-५२ आ. संपूर्ण. अंबिकादेवी स्तोत्र - मूलमंत्रगर्भित, सं., पद्य, आदि ॐ महातीर्थ रेवंतगिरिमंडने, अंति देवि कल्याणि अंबालये, श्लोक- ८. १८. पे. नाम. शारदा स्तोत्र, पृ. ५२-५४अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि : करमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, लोक-१३. १९. पे नाम. २४ जिन स्तुति, पू. ५४१-५४आ, संपूर्ण. पं. हर्षरत्न, सं., पद्य, आदि: ऋषभ संभव ते सुमति नमो; अंति: हर्षरत्न० कुर्वंतु चंद्रा, श्लोक ५, (वि. कृति के अंत में "१, २, ४, ८, १६ अंक दिए हैं.) २०. पे नाम. सप्ततिशतजिनयंत्र स्तवन, पृ. ५४आ-५५आ, संपूर्ण. विजयपहुत्त स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि तिजयपहुत्तपयासय अङ अति निव्र्भत निच्चमच्चेह, गाथा- १४. २१. पे. नाम. ६४ योगिनी स्तोत्र, पृ. ५५ आ-५६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. धर्मनंदन, प्रा., पद्य, आदिः ॐ नमो जगमज्झवासिणीणं जग; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. गाथा १४ अपूर्ण तक है.) १०२३६० (क) लघुशांति, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., "" (२३.५X१२, १०X२१). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शांति शांतिनिशांत, अति (-) (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) १०२३६१ (#) स्नात्रपूजा विधि सहित, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-१ (१) = ७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. मूल पाठ का खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१२, १३X३३). स्नात्रपूजा संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि (-); अंति (-) (पू.बि. नेमिजिन कुसुमांजली अपूर्ण से वस्त्रपूजा तक हैं.) १०२३६२. संघपट्टक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५२, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. बीकानेर, प्रले. श्राव. भीखाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी संघपटो, दे. (२४४१२, ७३६-४०). संघपट्टक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, आदि: वह्निज्वालावलीढं कुपथ; अंति: कथयापीत्थं कदर्थ्यामहे, श्लोक-४०. संघपट्टक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वह्निज्वालया अग्नि सिखया; अंति: महे इतीकर्मोक्री. , १०२३६३. (०) चंदराजा रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२३.५x१२, १४X३० ). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु, पद्य, वि. १७८३, आदि प्रथम धराधव तीम अंति: (-), (पू.वि. ढाल ९ अपूर्ण गाथा-१ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only १०२३६७ (+#) जन्मपत्री पद्धति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८२, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही गयी है, जैदे. (२३.५X११. १६४३८). "" Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १५३ जन्मपत्री पद्धति, मु. मानसागर, सं., गद्य, आदि: धन्यधान्य हानी ज्वर; अंति: (-), (पू.वि. अधिकार-४ अपूर्ण तक हैं.) १०२३७१ (+#) आदिजिन, सीमंधरजिन व १५ तिथि स्तुतिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८९८, कार्तिक शुक्ल, ७, शनिवार, मध्यम, पृ.५, कुल पे. ३, ले.स्थल. चाणोद, प्रले. चमनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १३४३२). १. पे. नाम, आदिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-उन्नतपुरमंडन, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: उन्नतपुरमंडण जगतधणी; अंति: नवि पामे तेह नरा, गाथा-४. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर मुजने; अंति: शांतिकुशल सुखदाताजी, गाथा-४. ३. पे. नाम. १५ तिथि स्तुतिसंग्रह, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण. १५तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक मिथ्यात असंयम अविरति; अंति: लील करो नित नित्य, स्तुति-१६, गाथा-६४. १०२३७२. (+) मृगावतीसती चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, ले.स्थल. पत्तन, प्र.वि. वि. सं. १६९२ मे लिखी गई ग्रंथ की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११.५, १९४५२). मृगावतीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: समरु सरसति सामिणी; अंति: वृद्धि सुजगीसा, खंड-३, गाथा-७४५, ग्रं. ११००. १०२३७३. पद व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८४१, आश्विन शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १२-३(१ से ३)=९, कुल पे. ८, ले.स्थल. हरसाला, प्रले. मु. रामविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११.५, ११४२२-२८). १.पे. नाम, परमार्थ अष्टपदी, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: ऐसै ज्यौं प्रभु पाईइ; अंति: साहिब एकहि तब को कहि भेटै, गाथा-८. २.पे. नाम. मूढशिक्षा अष्टपदी, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे क्युं प्रभु पाईइ; अंति: विना तूं समजत नाही, गाथा-८. ३. पे. नाम. साधु आचार सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. पंडित. विनयविमल गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचसुमति जे सुधा पालै; अंति: विनयविमल० तस पद वंदन कीजै, गाथा-८. ४. पे. नाम. संवर स्वाध्याय, पृ. ५-७अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-संवर, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर गौतमने; अंति: शिवरमणी वेगे वरो, गाथा-६. ५. पे. नाम. २७ सती सज्झाय, पृ. ७अ-९अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: ज्यां नमतां दुख जायै दूरा; अंति: भणतां गुणतां उपजै सुमती, गाथा-२७. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ९अ, संपूर्ण. म. विबुद्ध कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: तेवीशमा जिनराज जोमै; अंति: भव भव देज्यो दीदार, गाथा-३. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ९अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: बाबा सच्चा सांई हो डंका; अंति: साहिब मेरे मन तुं भाया, पद-३. ८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ९अ-१२आ, संपूर्ण. मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: रतन चिंतामणि नर भव; अंति: जैमलजी० वरते जै जै रे कार, गाथा-३८. १०२३७४. ज्योतिषचक्र विचार, अपूर्ण, वि. १९३९, ज्येष्ठ शुक्ल, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १८-४(३ से ६)=१४, प्रले. सा. लिछमाजी महासती; अन्य. सा. चनणा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:जोतिकच, दे., (२४.५४१२, १५४४०). ज्योतिषचक्र विचार, श्राव. हजारीमल लुंकड, रा., प+ग., वि. १९३१, आदि: श्रीगुरुदेवोने; अंति: हजारीमल लीजो सिद्धांत जोय, द्वार-७, (पू.वि. ढाई द्वीप बहार के ज्योतिष चक्र अपूर्ण से मांडला विचार अपूर्ण तक नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०२३७५. गुपतिनो रास, संपूर्ण, वि. १८९१, वैशाख कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ४२,प्र.वि. हुंडी:पतिनो रा०., जैदे., (२४.५४११.५, १४४३५). द्रोपदी रास, मा.गु., पद्य, वि. १७५७, आदि: स्वामी शांति जिणेसरु भावे; अंति: स्वामी दर्शन तुमचो होज्यो, ढाल-४७. १०२३७६. ६ आरास्वरूप विवरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-४(१ से ४)=८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२३.५४११.५, १२-१५४२३-२६). ६ आरास्वरूप विवरण*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. तीसरा आरा वर्णन अपूर्ण से पद्मनाभ जन्म प्रसंग तक है.) १०२३७७. (#) रामयशोरसायन चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३-४(१ से २,१२,२२)=१९, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १३४४७). रामयशोरसायन चौपाई, म. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अधिकार-१ ढाल-१ की गाथा-२४ अपूर्ण से अधिकार-२ ढाल-१७ की दूहा-६२७ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०२३८६ (+) नवस्मरण-तिजयपहत्त, नमिऊण व अजितशांति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. ५,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १३४३५-४०). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०२३८७. प्रत्याख्यानसूत्र, पच्चक्खाण आगार विवरण व १८ पापस्थानक नामादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. १३, प्र.वि. हुंडी:पचखा., दे., (२४.५४११.५, १४४३२). १. पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: तिहां प्रथम चउदे; अंति: अन्न सह० बोसिरामि. २. पे. नाम. पच्चक्खाण आगार विवरण, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-पच्चक्खाण आगार विवरण, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: अन्नत्थणा भोगेणं अन्नत्थ; अंति: विगय लेवे तो व्रत भंग नही. ३. पे. नाम.१८ पापस्थानक नाम, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातिपात१ मृषावाद२; अंति: मायामोस १७ मिथ्यातशल्य १८. ४. पे. नाम. ८ कर्म नाम, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ग्यानावरणी १ दर्शनावरणी २; अंति: गोत्रकर्म ७ अंतराय ८. ५. पे. नाम. समकित पांच लक्षण, पृ. ४आ, संपूर्ण. ५ सम्यक्त्व लक्षण, मा.गु., गद्य, आदि: समता परिणाम १; अंति: आस्ता धर्मने विषे ५. ६. पे. नाम. धर्मविमुख जीव ५ भेद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.ग., गद्य, आदि: अहंकारीजीव १ क्रोधीजीव २; अंति: रोगीजीव ४ आलसीजीव ५. ७. पे. नाम. धर्माभिमुख जीव ८ भेद, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: हासो न करे इंद्री १ दमे २; अंति: सत्यवचन बोले ८. ८. पे. नाम. ११ गणधर नाम, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: इंद्रभूती १ अग्नभूती २; अंति: मेतार्य १० प्रभास ११. ९.पे. नाम. देव आयुष्य विवरण, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मा.ग., गद्य, आदि: सौधर्म देवलोक सगार २; अंति: विमान ५ सागर ३३ नो आउषो. १०. पे. नाम. आठकर्म प्रकृति विचार, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ग्यानावरणी प्रकृति ५; अंति: चित्रकार ७ भडारी ८. ११. पे. नाम. १८ पापस्थानक नाम, पृ. ५आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. मा.गु., गद्य, आदि: १ प्राणातिपाति हत्या; अंति: कुदेवादि सेवा. १२. पे. नाम. १४ गुणस्थानक नाम, पृ. ५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व १ सास्वादन २; अंति: अजोगी प्रकृति खपावै. १३. पे. नाम. श्रावक १२ व्रत विचार, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. " मा.गु., गद्य, आदि: थूलप्राणातिपाति वेरमण; अंति: (-), (पू.वि. व्रत- ३ अपूर्ण तक है.) १०२३८८ (+) कल्पाख्याध्ययन, अपूर्ण, वि. १९२४, कार्तिक कृष्ण, ३०, रविवार मध्यम पू. ८१-२७(१ से २७)=५४, पठ. मु. तनसुख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : कल्पसू., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५X११.५, ११x२२-२५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: भुज्जो उवदंसेइ त्तिबेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, (पू.वि. स्वप्नफल वर्णन सूत्र - ७१ अपूर्ण से है . ) १०२३९४ (०) मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ६-१ ( १ ) =५. पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२१x१२, १६x२९). " मानतुंगमानवती रास- मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि (-); अति: (-), (पू.वि. ढाल १ गाथा १६ अपूर्ण से ढाल ५ गाथा- २३ अपूर्ण तक है.) १०२४०४. प्रश्नोत्तर, अपूर्ण, वि. १९३३, पौष कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. १२-७ (१ से २,६ से १०) = ५, ले. स्थल. लाडणु, प्र. बाघ ( लच्छिराम महात्मा); गुपि. लच्छिराम महात्मा; पठ. श्राव. भेरुलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: प्रश्न., दे., (२३x११, १०X३५). हितशिक्षावलि, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: मुझे तास मिथ्या दुक्रतं, गाथा - १५४, (पू. वि. प्रारंभ से गाथा - १९ अपूर्ण तक व गाथा - ६९ अपूर्ण से गाथा १२९ अपूर्ण तक नहीं हैं.) १०२४०५ (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ११, कुल पे. ४. प्र. वि. संशोधित, जैदे (२३.५५११, ९४२९). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन- बृहत् शत्रुंजयतीर्थमंडन, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण. १५५ आदिजिन स्तवन-शत्रुंजयतीर्थमंडन बृहत् मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्म, आदि: प्रणमवि सयल जिणंद पाय; अति प्रेमविजे० भवनो पार ए. गाथा २२. २. पे नाम, पंचतीर्थीजिन स्तवन, पू. ४अ ५आ, संपूर्ण, ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि आदि हे आदिजिणेसरु ए; अंति: मुनि लावण्यसमय भणे ए, गाथा - ११. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- भीनमाल, पृ. ५आ-१० आ, संपूर्ण, वि. १८३८, श्रावण. पार्श्वजिन स्तवन-भीनमाल, मु. पुण्यकमल, मा.गु., पद्य, वि. १६६१, आदि: सरसति भगवति नमीय पाय; अंतिः पुण्यकमल भवभय हरो, गाथा ५९. ४. पे. नाम. २४ जिन स्तवन- मातापितानामादिगर्भित, पृ. ११अ ११आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेसर प्रणमुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा - १२ अपूर्ण तक है.) १०२४०६. मदनकुमार कथा, संपूर्ण, वि. १८८९, कार्तिक कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ९, जैदे., ( २४४११, १०X२५-३०). मदनकुमार कथा, मु. दाम, मा.गु., पद्य, आदि: विश्वानंदी पयनमी; अंति: सब नसुं पुण्यकर हु मन लाइ, गाथा-११९. १०२४०७ (+४) इक्षुकारिसिंध चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ५. प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२१x११. १३-१६४४६). इक्षुकारसिद्ध चौपाई, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४७, आदि परम दयाल दयाकरु आसा अंतिः खेम भणे० कोडि For Private and Personal Use Only कल्याण, ढाल ४. १०२४०८ (+#) अवंतीसुकमाल रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३११, १२x२८). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंतिः शांतिहरख सुख पावे रे, ढाल - १३, गाथा - १०७. Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०२४१४ (+#) पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-१३(१ से ६,१० से १३,१६,१८ से १९)-७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, ९-१२x२२-२६). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "अहावरे दोच्चे भंते" सूत्र अपूर्ण से "संते बले संते वीरिए" पाठ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०२४१५. ब्रह्मव्रत उच्चारण विधि व दीपावलीपर्व दैववंदन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२०.५४११, १२४२५-२८). १.पे. नाम. ब्रह्मव्रत उच्चरावण विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: श्राद्धः पठति इच्छाकारेण०; अंति: नित्थारग पारगा होह. २.पे. नाम. दीपावलीपर्व देववंदन, पृ. २अ-४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीरजिनवर वीरजिनवर; अंति: (-), (पू.वि. गौतमस्वामी चैत्यवंदन अपूर्ण तक है.) १०२४२१ (+) वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९२३, कार्तिक शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. मु. शोभाचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:वसुधारास्तोत्र., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२२.५४११, ९४२९-३३). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिह; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. १०२४३० (+) लघुक्षेत्रसमास सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८२१, पौष शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ११३, ले.स्थल. समद्रडी, प्रले. ग. चारित्रोदय (गुरु ग. जयसोभाग्य, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि. ग. जयसोभाग्य (गुरु ग. नयसागर, बृहत्खरतरगच्छ); ग. नयसागर (गुरु ग. अमृतप्रभ वाचनाचार्य, बृहत्खरतरगच्छ); ग. अमृतप्रभ वाचनाचार्य (गुरु ग. शांतिकुशल वाचनाचार्य, बृहत्खरतरगच्छ); ग. शांतिकुशल वाचनाचार्य (गुरु मु. पुण्यहर्ष, बृहत्खरतरगच्छ); मु. पुण्यहर्ष (बृहत्खरतरगच्छ); आ. कीर्त्तिरत्नसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, जैदे., (२४४१०.५, १६४३८-४२). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपट्ठिय; अंति: कुसलरंगमयं पसिद्धं, अधिकार-६, गाथा-२६५. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध, मु. खेम, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य परमं देवं; अंति: मनुष्येप्रसिद्धपणा प्रतइं. १०२४३३. (+) कयवन्ना चौपाई, संपूर्ण, वि. १८७८, आषाढ़ कृष्ण, ६, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. सवाईजयपुर, प्रले. सा. केसर आर्या (गुरु सा. रंभा); गुपि. सा. रंभा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कैवना., संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १६x४४-४९). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदादायक; अंति: धरम करण मन उलसेजी, ढाल-३१, गाथा-५५५. १०२४३५. दीपावलीपर्वकल्प सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११, ५४२९-३२). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: श्रीवर्धमानमांगल्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४२९ अपूर्ण तक है.) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मु. दीपसागर, मा.गु., गद्य, वि. १७६३, आदि: अष्टमहाप्रतिहार्यनी; अंति: (-). १०२४३६. (+) आचारांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६५-१०४(१,१० से ११,३२ से ३३,४० से ९१,९४ से ९८,१०० से ११६,११८ से १२१,१२६,१२९ से १३४,१३६ से १४६,१४८,१६० से १६१)=६१, पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, ५४२६-३०). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उद्देस-१ अपूर्ण से श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-४ उद्देस-२ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १५७ १०२४३८ (+) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १८२६, १ फाल्गुन कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ७७-२२ (१,१३ से ३३) ५५, ले. स्थल. मुडतरा, प्रले. पं. विनयविजय (गुरु आ. विजयधर्मसूरि) पठ. मु. मोतीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२४४११, ८-१५४२८-३५), " श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८ आदि (-); अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४, गाथा-१८२५, (पू. वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., खंड-१ ढाल १ गाथा-१८ अपूर्ण खंड-१ ढाल-१० गाथा-२४६ तक व खंड-४ ढाल -३ गाथा-८२५ से है.) १०२४३९. (#) लीलावती सुमतिविलास रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५-१८ (१ से ७, १० से १४,१९ से २४)=७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४x११, १०X२५). लीलावतीसुमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ गाथा-२ अपूर्ण से ढाल ७ गाथा ४ अपूर्ण तक, ढाल १२ गाथा-६ अपूर्ण से ढाल १५ गाथा १२ अपूर्ण तक व ढाल १५ गाथा-६ अपूर्ण से ढाल १७ गाथा-९ अपूर्ण तक हैं.) १०२४४०. (#) २४ दंडक २६ द्वार विचारादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८६४, चैत्र शुक्ल, ९, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३०-३ (१ से ३)=२७, कुल पे. १३, ले. स्थल, खरसोद, प्रले. मु. पुरुषोत्तमविजय पठ. श्राव. पुनमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२५x११, १५४३६) १. पे. नाम. २४ दंडक २६ द्वार विचार, पृ. ४अ - १५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: केवली पिण अवेदी होवे, (पू.वि. अवगाहणा द्वार अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पांचबोल सिद्धांत विचार, पृ. १५ अ-२२अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देवनारक के ५ बोल १६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (१) नरकनो द्वार कहीस भवनपतीनो, (२) पहिले नाम कहि बीजे गोत्र, अंति: फरस ४ भोगवता विचरे छे. ३. पे. नाम. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, पृ. २२अ-२६अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि आठ कर्म ते केहा, अंतिः धर्मने विषे उद्यम करवो. ४. पे. नाम. सप्तक्षेत्र विचार, प्र. २६अ, संपूर्ण. भरत क्षेत्रादि परिमाण विचार, मा.गु., गद्य, आदि: भरतखेत्र पांचसे छवीसने छ; अंतिः छसे चौरासी च्यार कलारो छे. ५. पे. नाम. ७ मांडला नाम, पृ. २६अ - २६आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र मांडल १ अर्थ मांडल; अंति एवं सात मांडल जाणिवा. ६. पे. नाम. मेरुकंद विचार, पृ. २६आ, संपूर्ण. मेरुपर्वत मान, मा.गु., गद्य, आदि मेरुपर्वत तेहनो कंद सहस्र; अति: हुवे बीजे मेरु न हुवे. ७. पे. नाम. तीर्थंकरदान महिमा, पृ. २६आ-२७अ, संपूर्ण. वरसीदान मान, मा.गु., गद्य, आदि दिन २ प्रते एक कोडिने आठ अंति दान घे पछे संजम आदरे. ८. पे नाम. तंदुल मत्स्य विचार, पू. २७अ, संपूर्ण मा.गु., गद्य, आदि: तंदुली मछनो आऊखो ७७ सितरी; अंति: मरी सातमी नरके जावे. ९. पे नाम. २८ लब्धि नाम, पू. २७-२८अ संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: आमोसयलबधि हाथ लगाया रोग; अंति: पुलाय लद्धीइ संजुओ. १०. पे. नाम. ४२ गोचरी दोष सह बालावबोध, पृ. २८अ २९अ, संपूर्ण. ४२ गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि: अहाकम्मु १ देसिअ २ अंतिः कारणे चेव० करंति उपजंति, गाथा ६. ४२ गोचरी दोष-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः आधाकर्म ए साधुने काजे जे; अंति: दोष साधुने आहार करता उपजे. ११. पे. नाम. पंचम आरा भविष्यकथन ४३ बोल, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण. ५ आरा भविष्यकथन ४३ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: नगर ते ग्राम सरीखा हुस्ये; अंति: घणा होसी साधु श्रावक ४३. १२. पे नाम, चंद्रगुप्तराजा सोलस्वप्न विचार, पू. २९आ- ३०अ संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न विचार, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: पहिले स्वप्न कल्पवृक्षरी; अंति: वरससी एकंतरो काल पडिसी. १३. पे. नाम. समुर्छिम जीवायुष्य केवलीज्ञान प्रश्न संग्रह, पृ. ३०अ-३०आ, संपूर्ण. जैन प्रश्नोत्तर संग्रह , पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: समूर्छिम मनुष्यरो आऊखो; अंति: देखे तिणरी महिमा करे. १०२४४३. वसधारा स्तोत्र सविधि, संपूर्ण, वि. १८४८, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. मु. दोलतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११, १४४३५-३८). १. पे. नाम. वसुधारा स्तोत्र, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिह; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. २. पे. नाम. वसुधारा स्तोत्र विधि, पृ. ५आ, संपूर्ण. वसुधारा स्तोत्र-विधि, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: दिवाली दिने स्नानकरी; अंति: ऋद्धिवृद्धि भवतु. १०२४५६. (+#) पट्टावली-ऐतिहासिक घटना सहित, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, १३४३१-३७). पट्टावली, सं., गद्य, आदि: अथात्र श्रीपर्युषणा; अंति: बद्धतया विहारं कुर्वंति, (वि. विजयजैनेंद्रसूरि पाट-६७ तक है.) १०२४५७. (+) आदिनाथ देशनोद्धार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२८, मध्यम, पृ. ६, प्रले. पं. चतुरविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२४४११, ७४३६-४०). आदिनाथ देशनोद्धार, प्रा., पद्य, आदि: संसारे नत्थि सुहं; अंति: सिवं जंति, गाथा-८८. आदिनाथ देशनोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसारमांहि सुख नथी; अंति: ग्यान क्रियासौ मोक्ष पामै. १०२४६२. (+#) प्रश्नव्याकरणसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४८-२५(१ से ११,१७,३१ से ४३)+१(४८)=२४, प्र.वि. हुंडी:प्रश्न०सूत्र., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११, ११४३०). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: अंगं जहा आयारस्स, अध्याय-१०, गाथा-१२५०, ग्रं. १३००, (पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ अपूर्ण तक व श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-६ अपूर्ण से अध्ययन-१० के पाठ "गामागरणगर खेड कव्वड" तक नहीं है.) १०२४६३. (+) बृहत्संग्रहणी सह टीका, संपूर्ण, वि. १६६५, भाद्रपद शुक्ल, गुरुवार, मध्यम, प.८३+२(१८ से १९)=८५, ले.स्थल. अर्गलपुर, प्रले. मु. निहालचंद शिष्य (गुरु मु. निहालचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ल०सं०वृ०., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, १५४४९-५३). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३४९. बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: अत्यद्भुतं योगिभिरप्यगम्य; अंति: ज्ञानदृग्वीर्य सौख्य, ग्रं. ३५००. १०२४६४. योगशास्त्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९७-२०(१ से २,५ से ६,१० से १८,२३,२५ से २८,३५,५१)=७७, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७.५४११.५, १३४४४-४८). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रकाश-१ श्लोक-५ से प्रकाश-४ श्लोक-६८ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) योगशास्त्र-बालावबोध, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: (-). १०२४६५ (+) प्रतिक्रमणगर्भहेतु, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १५४४६-५२). प्रतिक्रमणगर्भहेतु, संबद्ध, आ. जयचंद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, वि. १५०६, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम वैद्यक दृष्टांत अपूर्ण तक है.) १०२४६६. (#) नवस्मरण व लघुशांति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४३८-४२). १.पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १अ-९अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. प्रत के अंत में सप्तस्मरण नाम लिखा गया है किन्तु वास्तव में नवस्मरण की कतियाँ है. For Private and Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: (-), (पू.वि. कल्याणमंदिर नहीं है एवं बृहच्छांति गाथा-२ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण, पे.वि. वस्तुतः यह कृति बृहत्शांति से पूर्व लिखी गई है. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांतं; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९. १०२४६७. (+) बृहत्क्षेत्रसमास सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-१(१)=१४, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, ६४३८-४२). बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ६वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से १८९ तक है.) बृहत्क्षेत्रसमास-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). १०२४६८. (#) स्तवन व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. १५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५,१६x४२). १.पे. नाम. रागमाला स्तवन भक्तामर स्तवन, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, वि. १७६७, फाल्गुन कृष्ण, १२, सोमवार, ले.स्थल. घोघाबंदर, प्रले. मु. रंगरत्न ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. भक्तामर स्तोत्र-पद्यानवाद, म. देवविजय, पुहिं., पद्य, वि. १७३०, आदि: भक्त अमरगण प्रणत मुकुटमणि; अंति: रंग बोलि देवविजय जयकार, गाथा-४४, (वि. १७६७, फाल्गुन कृष्ण, १२, सोमवार, ले.स्थल. घोघाबंदर, प्रले. मु. रंगरत्न ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य) २. पे. नाम. शत्रंजयतीर्थ स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. ___ आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शेजयगढनो वासी प्यारो; अंति: बोले आ भव पार उतारो, गाथा-६, (वि. अं. वाक्य अस्पष्ट है.) ३. पे. नाम. अभिनंदन गीत, पृ. ४आ, संपूर्ण. अभिनंदनजिन पद, ग. मेघरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जिन पायु रे जिन पायु आज; अंति: मेघरतन० अधिक अधिक फल पाय, गाथा-३. ४. पे. नाम. शांतिनाथ गीत, पृ. ४आ, संपूर्ण. शांतिजिन पद, ग. मेघरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जब निहारी जिनशांति की; अंति: मेघरतन० अचिरा जानकी, गाथा-३. ५.पे. नाम, पार्श्वनाथ पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, ग. मेघरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अमीहां रे अमीहां रे वामा; अंति: मेघरतन० सेवक तेरो रे, गाथा-४. ६.पे. नाम. रीषभदेव गीत, पृ. ४आ, संपूर्ण. आदिजिन पद, ग. मेघरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: मेरो ही जीवन प्यारु रीसभ; अंति: मेघरतन०करजोडीजंपी० तारुरी, गाथा-३. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, पृ. ४आ, संपूर्ण. ___ उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: आणी मन सूधी आसता देव; अंति: कहे सुख भरपुर, गाथा-५. ८. पे. नाम. पार्श्वनाथ गीत, पृ. ५अ, संपूर्ण... पार्श्वजिन पद, ग. मेघरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनपास तुं मोरे मन; अंति: मेघरतनजे जिन चरणे रमीउ, गाथा-४. ९. पे. नाम. रीषभदेव गीत, पृ. ५अ, संपूर्ण. आदिजिन पद, ग. मेघरत्न, मा.ग., पद्य, आदि: आजमि चितमि आनंद पायो; अंति: मेघरतन मनि० करम लीयो, गाथा-४. १०.पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. ५अ, संपूर्ण. नेमिजिन पद, ग. मेघरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कुं तुंही आयो गरजी हो; अंति: मेघरतन० धमिं साकर मलीयो, गाथा-३. ११. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची करकंडुमुनि सज्झाय, ग. मेघरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: इसौ जन भजन का परिणाम; अंति: मेघरतन० पामी सिद्धि सुठाम, गाथा-८. १२. पे. नाम. पद्मप्रभु गीत, पृ. ५आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन पद, ग. मेघरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: संसारडु भमंतडा रे भई मितु; अंति: मेघरतन० तुं हीज देवा रे, गाथा-३. १३. पे. नाम. औपदेशिक गीत, पृ. ५आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-स्वार्थ, ग. मेघरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुखमि जिनवर कुंन संभारे; अंति: मेघरतन० प्राणआधारे रे, गाथा-३. १४. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. ग. मेघरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: चरीयाचचुया नीच कीयकी सुनी; अंति: मेघमुनि० नहीं कोई तुझ सरखो, गाथा-३. १५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद- गोडीजी, ग. मेघरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: जाग तो जगमि श्रीगुडीपास; अति: मेघरतन० सेवकनि दे सुखवास, गाथा-३. १०२४६९. (#) कर्मग्रंथ की अवचूर्णि, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ३२, कुल पे. ५, प्र. वि. प्रत अतिजीर्ण व पत्रांक भाग खंडित से पत्रांक गिनकर दिया गया है तथा पेटांक पत्र भी काल्पनिक है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६X११.५, २०x६२). १. पे. नाम कर्मविपाक कर्मग्रथ की अवचूर्णि पू. ११.५ आ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१- अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, वि. १४५९, आदि: (-); अंति: विधेयेत्यादि कुदेशनाभिः २. पे. नाम. कर्मस्तव कर्मग्रंथ की अवचूर्णि पृ. ६अ-८आ, संपूर्ण " कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ -२-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, से., गद्य वि. १४५९, आदि: गुणस्थानेषु मिथ्या अति: (-). ३. पे. नाम षडशीति कर्मग्रंथ की अवचूर्णि पृ. ९अ- १२आ, संपूर्ण, षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४- अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, वि. १४५९, आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. शतक कर्मग्रंथ की अवचूर्णि पू. १३अ-२३आ, संपूर्ण " शतक नव्य कर्मग्रंथ ५ अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, वि. १४५९, आदि (-); अंति: (-). ५. पे नाम. सप्ततिका कर्मग्रंथ की अवचूर्णि पृ. २४-३२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. " सप्ततिका कर्मग्रंथ-६- अवचूर्णि आ. गुणरत्नसूरि, सं. गद्य वि. १४५९, आदि: सिद्धान्यविचलानि पदानि अंति: (-), (पू.वि. सत्तास्थान अवचूरि अपूर्ण तक है.) १०२४७० (+) अंतकृद्दशांगसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६X११, १५X४६). 9 अंतकदशांगसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य वि. १२वी आदि अधांतकृतदशासु किमपि अंति: (-), (पू.वि. वर्ग-५ अपूर्ण तक है.) १०२४७१. भक्तामरस्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, जैदे., ( २६.५X११.५, ३-६x२७-३६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति : मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्तिवंत जे देव अति एहवी साहमी आवई संपदा. १०२४७२. (+) उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, प्रले. मु. प्रतापविजय (गुरु मु. माणिक्यविजय, तपागच्छ); ', गुपि. मु. माणिक्यविजय (गुरु पं. मोहनविजय गणि, तपागच्छ); पठ. श्राव. रूडाचंद (गुरु मु. माणिक्यविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पटनायें अस्पष्ट है.. संशोधित, जैवे. (२६४१२, १४४३२-३५). . उपदेशमाला. ग. धर्मदासगणि, प्रा. पद्य, आदि नमिऊण जिणवरिंदे इद अति: तहविहुंजीवोमणेसौक्ख, गाथा - २०१. १०२४७३. (+४) योगशास्त्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ६. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पंचपाठ- संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४१२, ८-१४४२९-४६). " For Private and Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य वि. १३वी आदि नमो दुर्वाररागादि, अति: (-). (पू.वि. प्रकाश-३ श्लोक-१८ अपूर्ण तक है.) योगशास्त्र- स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य सिद्धाद्भुत, अंति: (-). १०२४७४. कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १६०-१४४(१ से १३७, १४६ १५४ से १५९)=१६, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७X११, ६-१५X३६-४१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-). (पू.वि. ऋषभदेव च्यवन कल्याणक प्रसंग से स्थविरावली अंतर्गत संभूतिविजय वर्णन अपूर्ण तक है. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र - टवार्थ ", मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-). कल्पसूत्र - बालावबोध", मा.गु., रा., गद्य, आदि (-); अति: (-). १०२४७५. (#) संस्तारक, आतुरप्रत्याख्यान व महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ९-२ (४ से ५ )=७, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक खंडित हैं, अतः अनुमानित पत्रांक दिये हैं., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २६११, ११x४३). १. पे नाम, संस्तारक प्रकीर्णक, पृ. १आ-३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: काऊण नमुक्कारं जिणवर, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५९ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, पृ. ६अ ६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. १६१ ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., वि. ११वी, आदि: (-); अंति: खयं सव्वदुक्खाणं, गाथा- ८१, (पू.वि. गाथा-५९ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, पू. ६आ ९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा. पद्य, आदि एस करेमि पणामं तित्थयराणं, अंति (-) (पू.वि. गाथा- ७४ अपूर्ण तक है.) १०२४७६. (+) कथासंग्रह-कर्पूरप्रकर, अपूर्ण, वि. १५५५, ?, मध्यम, पृ. २३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ले. स्थल. जेसलमेर, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. जैवे. (२६४११.५, १८-२२४५९-६८). " कर्पूरप्रकर-कथामहोदधि, संबद्ध, ग. सोमचंद्र पंडित, सं., गद्य वि. १५०४ आदि श्रीवर्द्धमानमानम्य, अंति: (-), (पू.वि. कथा १२६ अपूर्ण तक है.) १०२४७७ (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला देवाधिदेवकांड, अपूर्ण, वि. १९१० पौष शुक्ल ७, श्रेष्ठ, पू. ७-१ (१)=६, ले. स्थल, जेसलमेर, प्रले. मु. जगरूपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. दे. (२६.५x११, _९×२७). '" अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि (-); अंति: (-), ग्रं. १४५२, (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. गाथा - ९ अपूर्ण से है.) १०२४७९ (०) सिद्धहेमशब्दानुशासन-१ से ४ अध्याय, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, पठ. परशुराम (ब्राह्मण) (ब्राह्मण), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५x११.५, १९५२-५५) " सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य वि. ११९३, आदि अहं सिद्धिः स्याद्वादात अंति (-), प्रतिपूर्ण. १०२४८०. द्वादशव्रतकथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, जैदे., ( २६.५X११.५, १५X४८-५२). द्वादशव्रतकथा संग्रह, मु. मेरुतुंगसूरि-शिष्य, सं., गद्य, आदि: श्रीमेरुतुंगसूरींद्रगुरू; अंति: अतिथिसंविभागं शुभास्पदं, कथा - १२. १०२४८९. (+०) सामायिक अतिचार की टीका, संपूर्ण, वि. १६५१, कार्तिक कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ८, ले. स्थल विक्रमपुर, प्रले. मु. चूहड (नागपुरीय-तपागच्छ); राज्ये गच्छाधिपति कल्याण (नागपुरीय-तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५४११.५, १६x५२-६२). For Private and Personal Use Only सामायिक अतिचार- टीका, मु. कल्याणशिष्य, सं., गद्य वि. १६४८ आदि श्रीमद्वीरजिनं नत्वा सर्व अति वर्द्धमान० सर्वभावोपदेशकं, (वि. मूल का प्रतीक पाठ दिया है.) Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०२४८२. (+) भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. हुंडी:भाष्य., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, ७४४४). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., प+ग., वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३, (ले.स्थल. सिणवाडा) भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांदिनई वांदवायोग्य; अंति: सास्वता सुख छइ अवाबाधपणाइ, (ले.स्थल. सिरोही) १०२४८३. (+) षड्दर्शन समुच्चय सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७-४(८ से ११)=१३, ले.स्थल. कडी, प्रले. वा. विजयहर्ष, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ४४५२-५५). षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: सद्दर्शनं जिनं नत्वा वीरं; अंति: पर्यालोच्य सुबुद्धिभिः, अधिकार-७, श्लोक-८७, (पू.वि. श्लोक-३६ अपूर्ण से ५१ अपूर्ण तक नहीं है.) षड्दर्शन समुच्चय-टीका, आ. मणिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: सज्ज्ञानदर्पणतले विमलेत्र; अंति: पर्यंतश्लोकार्थः. १०२४८४ (#) योगशास्त्र-प्रकाश ३ से ४ सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१-१०(१ से १०)=११, प्र.वि. पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६.५४११, ८-१५४५१-५४). योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश ३ से ४, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: दशस्वपि कृता दिक्ष ___ यत्र; अंति: ध्याता ध्यानोद्यतो भवेत्, संपूर्ण. योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश ३ से ४ की अवचूरि, सं., गद्य, आदि: दश० ऐंद्री प्रमुखाः ८; अंति: मुख्याधि करणं च, संपूर्ण. १०२४८५. नवतत्त्वना भेद, संपूर्ण, वि. १८७१, भाद्रपद कृष्ण, ६, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मोती, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १६-१९४२६-३०). नवतत्त्व २७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व भेद १४; अंति: भाग भाव अल्पबहुत्व. १०२४८६. २४ जिन के माता, पिता, अतीत, अनागत, गणधरादि विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६४११, ८-१२४६२-६५). २४ जिन नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). १०२४८७. (#) जीवविचार प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, ११४३१-३५). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४६ अपूर्ण तक है.) १०२४८८. श्रावक के बारह व्रत विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.७-२(१ से २)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२६४१२, १२४२९-३५). श्रावक १२ व्रत विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्राणातिपात अपूर्ण पाठ-"संदेह कीधु आकांक्षा ब्रह्मा विष्णु महेश्वर" से अतिथिसंविभाग अपूर्ण पाठ-"१७ संलेखणा तणा पांच अतिचार" तक है.) १०२४८९ (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, फाल्गुन, मध्यम, पृ. ३७, ले.स्थल. रीणी, प्र.वि. हुंडी:दशवीकाली०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६.५४११, ६४५०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि, अध्ययन-१० चूलिका २. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदिः (१)धर्मरूपीओ मंगलिक, (२)प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: तेह गतिनइ विषइ जाय. १०२४९० (+) केवलिस्वरूप स्तवन सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८-१(१)-७, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ५-८४३८-४२). केवलिस्वरूप स्तवन, पं. मुक्तिसागर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५३, आदि: (-); अंति: सीस नामी मुक्तिसागर जयकरा, ढाल-६, गाथा-६८, (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से है.) केवलिस्वरूप स्तवन-टिप्पण, प्रा.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: समणं० भगवतीसूत्रवृत्तौ. For Private and Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १६३ १०२४९१ (#) जातकपद्धति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४५४). जातकपद्धति, म. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदि: प्रणम्य पार्श्वदेवेशं; अंति: (-), (पू.वि. द्रेष्काणविधि श्लोक अपूर्ण तक है.) १०२४९२ (#) सारस्वतव्याकरण की टीका, अपूर्ण, वि. १७१६, कार्तिक शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ६२-१(१)=६१, ले.स्थल. रामचंद्रपुर, प्रले. मु. विजयसौभाग्य; गुपि. मु. दर्शनसौभाग्य; ग. उदयसौभाग्य (गुरु ग. उदयसौभाग्य), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चंद्रकीर्ती., चंद्रकी०., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १७४५३-६०). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: (-); अंति: वभूव सुमनोहरम्, वृत्ति-३, ग्रं. ७५००, (पू.वि. अनुदात्त संज्ञक वर्णन अपूर्ण तक है.) १०२४९३. (+) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७६२, वैशाख कृष्ण, १२, सोमवार, मध्यम, पृ. ५४-१८(१ से १८)=३६, ले.स्थल. पाटलीपुर, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११, ४४२८-३२). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३०८, (पू.वि. गाथा-९६ अपूर्ण से है.) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: खोटो खाइ ते पं० शुद्धकरी. १०२४९४. (+#) विपाकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४०-३०(१ से १९,२३ से ३०,३३ से ३५)=१०, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. हंडी:विपाक०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ११४३२-४४). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३ पाठ "त तेणं से अभग्गसेणाणं" से अध्ययन-९ पाठ "अहं पूसणंदिणा रण्णो सद्धिं" पाठ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०२४९५ (+#) विचार गाथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:विचारगाथा., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२६.५४११, ६४३०-३९). विचारसार प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: अगारिसम्मोइयंगाइं सढीकाएण; अंति: (-), (पू.वि. महावीरजिन मोक्ष गमन प्रसंग अपूर्ण तक है., वि. गाथाओं का क्रम अलग-अलग हैं.) विचारसार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे व्रत जोगथिकी गृहस्थपणि; अंति: (-). १०२४९६. (#) कर्मग्रंथ-१ से ५ सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३-१(१)=२२, कुल पे. ५, प्र.वि. पंचपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ३-९x४६). १.पे. नाम. कर्मविपाक कर्मग्रंथ सह अवचूरि, पृ. २अ-५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६०, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: उन्मार्गदेशनादिपरिग्रहः. २.पे. नाम, कर्मस्तव कर्मग्रंथ सह अवचूर्णि, पृ. ५अ-७आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंद वंदिअंनमह तं वीरं, गाथा-३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: कर्मपुद्गलैरात्मनोवयस्; अंति: व्योपचाराद्देवेंद्रसूरिणां. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व कर्मग्रंथ सह अवचूरि, पृ. ७आ-९अ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं वंद; अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२४. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३-अवचरि, सं., गद्य, आदि: आदिशब्दादिंद्रियादि; अंति: तिन्नियमत्तंते वचनात्. ४. पे. नाम, षडशीति कर्मग्रंथ सह अवचूरि, पृ. ९अ-१५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअजिणं जिअ१ मग्गण; अंति: लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: जीवस्थानादि वक्ष्ये इति; अंति: मुत्कृष्टं स्यादेव नेति. ५. पे. नाम. शतक कर्मग्रंथ सह अवचूरि, पृ. १६अ-२३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९८ अपूर्ण तक है.) शतक नव्य कर्मग्रंथ-५-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: निजे मिथ्यात्वादि हेतौ; अंति: (-). १०२४९७. (+#) कथामहोदधि व औपदेशिक काव्य, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २०-१४(१,७ से १९)=६, कुल पे. २, क्रीत. मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ३०४८४-८८). १. पे. नाम. कथामहोदधि, पृ. २अ-२०आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं., वि. १५२०, मार्गशीर्ष कृष्ण, १२, मंगलवार, ले.स्थल. मंगलपुर, प्रले. पं. विजयसोम गणि (खरतरगच्छ), प्र.ले.प. सामान्य. कर्पूरप्रकर-कथामहोदधि, संबद्ध, ग. सोमचंद्र पंडित, सं., गद्य, वि. १५०४, आदि: (-); अंति: (१)सोमचंद्र० विद्यते ध्रुवं, (२)परम ब्रह्मलक्ष्मी सनाथः, कथा-१५७, ग्रं. १८००, (पू.वि. दर्दरीकदेव कथा अपूर्ण से सुभद्राश्राविका कथा अपूर्ण तक व चतुःकथान्विता आषाढाभूति कथा अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, औपदेशिक काव्य, पृ. २०आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दिनयामिन्यौ सायं प्रातः; अंति: ललाटपट्टे दवयवटंति, गाथा-२१. १०२४९८. (+#) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १७२८, मध्यम, पृ. ८-१(४)=७, प्रले. ग. देवविमल (गुरु ग. सिंहविमलगणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४४२). श्रीपाल रास-लघु, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १५३१, आदि: करकमल जोडि करि सिद्ध; अंति: ज्ञान० भूपति श्रीपाल, गाथा-३२३, (पू.वि. गाथा-१०५ अपूर्ण से १४२ अपूर्ण तक नहीं है.) १०२४९९ (+) अणुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८००, कार्तिक शुक्ल, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. सेरतोरंठ, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ८४४४-४८). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समय; अंति: अयमढे पण्णत्ते, अध्याय-३३, ग्रं. १९२. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिणे कालि चउथइ आरइ तिणइ; अंति: एहवा अर्थ प्ररूप्या. १०२५०० (+) नमस्कारमहामंत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६६७, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. स्तंभतीर्थबंदिर, प्रले. ग. तेजप्रमोद; पठ. श्रावि. सोना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. २००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, ११४२७-३०). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं; अंति: पढम हवई मंगलम्, पद-९. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: माहरो नमस्कार अरिहंत; अंति: सकल वांछित फल पामइ. १०२५०१. प्राकृतव्याकरण सह स्वोपज्ञ टीका, संपूर्ण, वि. १६१९, कार्तिक शुक्ल, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६७, प्रले. ऋ. थाउ (गुरु मु. थावर ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १३४३७). सिद्धहेमशब्दानुशासन-हिस्सा अष्टम अध्याय प्राकृत व्याकरण, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: अथ प्राकृतम् बहुलम्; अंति: शेषं संस्कृतवत्सिद्धम्, पाद-४, सूत्र-१११९. सिद्धहेमशब्दानुशासन-हिस्सा अष्टम अध्याय प्राकृत व्याकरण की स्वोपज्ञ प्राकृतप्रकाश टीका, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: अथ शब्द आनंतर्यार्थो; अंति: मिदं मुनि हेमचंद्रः, ग्रं. २१८५. १०२५०२. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १६४४९-६१). For Private and Personal Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि संजोगाविष्यमुक्कस्स अंतिः सम्मएति बेमि, अध्ययन -३६. ग्रं. २०००, (वि. अंत में कुछ श्लोक दिये हैं.) 3 १०२५०३. (+) आर्यवसुधाराधारिणी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८६२, कार्तिक २, मध्यम, पृ. ८, ले. स्थल कलापुरा, प्रले. पं. प्रेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६५११, १०X३०-३३). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि संसारद्रवदन्यस्य प्रतिहं: अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति, १०२५०४ (+०) प्रश्नव्याकरणसूत्र-संवर अहिंसामाहात्म्यबोधक ६० नाम सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ४, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५X११, १६x२२-२५). प्रश्नव्याकरणसूत्र-हिस्सा षष्ठअध्ययनगत संवरअहिंसामाहात्म्यबोधक ६० नाम, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंबू एतो संवरदाराह अंति विदित्ता पुण्वध प्रश्नव्याकरणसूत्र-- - हिस्सा षष्ठ अध्ययनगत संवरअहिंसामाहात्म्यबोधक ६० नाम का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः एतलइ आश्रव द्वार कह्या; अंति: चीतचउथइ पुतलुज जाणइ. १०२५०५. कान्हडदृष्टांत सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. १, दे. (२५x११.५, १५X३३). "" कान्हडदृष्टांत सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु, पद्य, आदि वीरजिनवर रे गोयम गणधरने; अंति: गुण० जंपइ परम पदवी पामई, गाथा- ७. १६५ १०२५०६. संभवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५. ५X११, ८x२६). संभवजिन स्तवन, आ. उदयसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः संभवजिननी सेवा प्यार, अंति: उदय० रिधकीरति जग मोहो, गाथा-५, (वि. पत्र में दूसरी ओर "पणवीसी" एवं "लाधीयो" यंत्र दिया गया है.) १०२५०७ (+४) भगवतीसूत्र आलापक सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १४९१, इंदुसेवधिमनु, मध्यम, पृ. २२-१ (१) = २१, प्र. ग. सोमधर्म (गुरु ग. चारित्ररत्न, तपागच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पंचपाठ- संशोधित टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२६.५X११, १६४३२-३६). भगवतीसूत्र-आलापक संग्रह *, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: मणंता पन्नत्ता इच्छमंगंमि, (पू.वि. शतक-१ उद्देश- १ अपूर्ण से है.) भगवतीसूत्र-आलापक संग्रह - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: विलोक्यावसे अयमिति. १०२५०८. (+#) रणसिंहराजानी कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १६, प्र. वि. संशोधित. कुल ग्रं. ५४०, मूल पाठ का अंश खंडित है, वे. (२६११.५, १४-१८४३९). उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: हवे श्रीउपदेशमाला; अंति: कीधी पछइ सघले प्रवर्त्तइ, (वि. प्रारंभ में जीव भेद नाम दिये हैं.) १०२५०९ (+#) प्रतिक्रमणसूत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८५३, वैशाख शुक्ल, १५, बुधवार, मध्यम, पृ. ३०-५ ( ८ से १२)=२५, कुल पे. १५. प्र. वि. श्रीगोडीपार्श्वनाथजी., संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२६.५४११, ११X३१). १. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमण सूत्र, पृ. १अ १४अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० इच्छा; अंति: संभरामि मिच्छामि दुक्कडं (पू.वि. सातलाख सूत्र अपूर्ण से नमोस्तु वर्धमानायसूत्र अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. चउद नियम गाथा, पृ. १४- १४आ, संपूर्ण. १४ आवकनियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि सचित्त १ दव्व २ विगइ अति दिसि न्हाण भत्तेसु, गाथा- १. ३. पे. नाम संधारा विधि, प्र. १४आ- १५आ, संपूर्ण. संधारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि निसीही ३ नमो खमासमणाः अतिः इव सम्मतं मए गहियं, गाथा- १४. ४. पे. नाम. प्रत्याख्यान सूत्र, पृ. १५आ- १६आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: गारेणं वोसिरामि. ५. पे. नाम जिनस्तुत्यादि संग्रह, पू. १६-२१अ संपूर्ण, For Private and Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जिनस्तुत्यादि संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि (अपठनीय): अंति (अपठनीय), (वि. पत्रांक चिपके होने के कारण कृति अनुमानित लिंक की गई है.) ६. पे. नाम. शेत्रुंजय स्तुति, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, आव, ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि (अपठनीय); अति पाया ऋषभदास गुण गाया, गाथा-४. ७. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २१ आ-२२आ, संपूर्ण. ग. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसिद्धचक्र सेवो; अंति: वाचक० उत्तम सीस सवाई, गाथा-४. ८. पे. नाम. रोहिणी स्तुति, पृ. २२आ, संपूर्ण. रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., पद्य, आदि जयकारी जिनवर वासपूज, अंति: देवि लब्धीरूचि जयकार, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा-४. ९. पे. नाम. सिद्धाचल स्तुति, पृ. २२आ-२३आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति -शत्रुंजयमंडन, ग. शुभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविमलाचल गिरवर अति शुभजय० मन तणी पूर आस, गाथा-४. 2 १०. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र, पृ. २३आ- २५आ, संपूर्ण. वंदित्तसूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि बंदिनु सव्वसिद्धे, अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५१. ११. पे. नाम. लघुशांति स्तवन, पृ. २६आ-२७अ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शांतिं शांतिनिशांतं; अति जैनं जयति शासनम्, श्लोक १९. १२. पे नाम चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. २७अ - २९अ संपूर्ण त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: वीरस्याक्ष्यात् सुरद्रुमः, श्लोक-४२. १३. पे नाम महावीर स्तुति, पृ. २९-२९आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, मु. दोलतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासननो नायक जिनवर श्रीमहा; अंति: दोलत देजो माई, गाथा ४. १४. पे नाम आदिजिन पुर्णमास्य स्तुति, पृ. २९-३०अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति - पूर्णिमा, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, सं., पद्य, आदि यां चक्री भरत स्वदर्शन, अंतिः सुखकर पुण्याब्धि चंद्रोदय, लोक-४. १५. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ३० अ- ३०आ, संपूर्ण. मा.गु, पद्म, आदि सुर असुर बंदीय पाय: अंति: मंगलकरे अंबिकादेवीई, गाथा-४. १०२५१० (+) द्रौपदीसती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३२-२१ (१ से २१) - ११, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित., , जैदे. (२६४११.५, १५४५२). द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६९३, आदि (-); अंति: (-) (पू.बि. डाल- २७ दोहा-५ से ढाल-३१ दोहा-१३ अपूर्ण तक है.) १०२५११. (+४) पंचवस्तुक, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९-५ (१ से ५) १४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे. (२६.५x११, १८४६०-६५ ). " " पंचवस्तुक, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा-२९२ अपूर्ण से १०५७ अपूर्ण तक है.) १०२५१२ (+) | कल्पसूत्र का व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २६-१४ (१ से १०,१२ से १५) १२, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है जैदे (२५.५x११. ११४३७-४० ). 5 कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मेघकुमार द्रष्टांत से है व १० अच्छेरा वर्णन तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०२५१३. (#) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ८-३(१ से २,४)=५, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १३४३३). स्तवनचौवीसी, मु. लक्ष्मीविमल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पद्मप्रभजिन स्तवन गाथा-४ अपूर्ण से सुविधिजिन स्तवन गाथा-३ अपूर्ण तक व वासुपूज्यजिन स्तवन गाथा-१ अपूर्ण से पार्श्वजिन स्तवन गाथा-३ अपूर्ण तक है.) १०२५१४. शीलरक्षाप्रकाश नेमिनाथ रास, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १५-१(१)=१४, प्र.वि. हुंडी:सीयलरास., जैदे., (२५.५४११, ९४३०). शीयलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदिः (-); अंति: इम श्रीविजयदेवसूरि, गाथा-६९, ___ ग्रं. २५१, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) १०२५१५ (+#) आगमिक प्रश्नोत्तरी व रूपा-लुंका प्रश्नोत्तर बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प.८, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४३६). १. पे. नाम. आगमिक प्रश्नोत्तरी, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण. आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १६वी, आदि: श्रीउत्तराध्ययन २६मइ; अंति: ते जिनआज्ञानु आराधक थाइ, प्रश्न-७४. २. पे. नाम. रूपा-लुंका प्रश्नोत्तर बोल, पृ. ७अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. लंकामतीय प्रश्नबोल, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवाइमांहि अंबड; अंति: (-), (पू.वि. बोल-१०२ तक है.) १०२५१६. कल्पसूत्र का व्याख्यान व कथा-प्रथम व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(६)=६, दे., (२५.५४११, १६x४२). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य तीर्थनेतारं; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. ब्राह्मण-बलद कथा अपूर्ण से नागकेतु कथा अपूर्ण तक नहीं है.) १०२५१७. (+) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २५, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४११,१६x४०). १. पे. नाम. सनत्कुमारसाधु सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलि सनतकुमार हो; अंति: समयसुंदर० नित समरिए, गाथा-७. २. पे. नाम. नंदिखेणसाध सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रहो रहो रहो वालहा; अंति: रुपविजय जयकार, गाथा-५. ३. पे. नाम. अनाथिसाधु स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अनाथीमनि सज्झाय, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रयवाडी चड्यो; अंति: वंदे रे बे कर जोड, गाथा-१०. ४. पे. नाम. हितोपदेश सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: गुण छै पुरा रे; अंति: सहजसुंदर० ओछा रे बोल, गाथा-६. ५. पे. नाम. हितोपदेश सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: एक घर घोडा हाथीयाजी; अंति: लावन्य०पुण्य पसाय रे, गाथा-१२. ६. पे. नाम. पंचिंद्रिनी स्वाध्याय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: काम अंध गजराज अगाज; अंति: प्रबंध लहो सुख सासता, गाथा-६. ७. पे. नाम. हितोपदेस स्वाध्याय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग, मा.गु., पद्य, आदि: म कर हो जीव परताति दिन; अंति: भावसुं एह हित सीख माने, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८.पे. नाम. राजिमति सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, ग. जीतसागर, पहिं., पद्य, आदि: तोरण आया है सखी कहे; अंति: प्रीत करै जी के जी, गाथा-१३. ९.पे. नाम. राजिमति स्वाध्याय, पृ. ३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, म. शिवचंद, रा., पद्य, आदि: ज्यो तुमे चाल्या शिव; अंति: होयो भव पार उतार रे, गाथा-५. १०. पे. नाम. मधुबिंदवानि स्वाध्याय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मधुबिंदु सज्झाय, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मुझने रे मात; अंति: चरणप्रमोद० बहु पामीए, गाथा-१०. ११. पे. नाम. अयवंतासाधु स्वाध्याय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. अवंतिसुकुमाल सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: संयमथी सुख पामीये; अंति: थइ हणज्यो करम कठोर, गाथा-९. १२. पे. नाम. सीतानी स्वाध्याय, पृ. ४आ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय, मु. गुणचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलि राजा लंका हो स्वाम; अंति: चंद बोले ते अनुभव रस चाखे, गाथा-७. १३. पे. नाम. गजसुकमाल स्वाध्याय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पं. जिनहर्ष गणि, मा.गु., पद्य, आदि: गजसुकुमाल वैरागीयो स; अंति: जिनहर्ष कहे चितलाय, गाथा-८. १४. पे. नाम. नववाड मध्ये पंचमीवाड स्वाध्याय, पृ. ५अ, संपूर्ण. पंचमवाड सज्झाय, मु. केशरकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: गोतम पुछे श्रीवीरने; अंति: केसरकुशल जयकार हो, गाथा-७. १५. पे. नाम. हितोपदेश सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, म. राजसमद्र, रा., पद्य, आदि: सुण वहिनि प्रिउडो; अंति: राजसमुद्र० सोभागी रे, गाथा-७. १६. पे. नाम. हितोपदेश सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: धरम म मुकीस विनय; अंति: बोले ते चिरकाले वंदो, गाथा-८. १७. पे. नाम. बाहुबलीसाधु सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण. भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबलि चारित लीयो; अंति: कीरतविमल सुख थाय, गाथा-११. १८. पे. नाम. इलापुत्रसाधु सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नाम इलापुत्र जाणीए; अंति: लबधिविजय मुनि गाय, गाथा-९. १९. पे. नाम. हितोपदेश स्वाध्याय, पृ. ६आ, संपूर्ण. __ औपदेशिक सज्झाय-कर्मोदये सुखदुख विषये, मु. ज्ञान, मा.गु., पद्य, आदि: सुख दुख सरज्या पामीय; अंति: न्यान० सदा सुखकार रे, गाथा-८. २०. पे. नाम. दानाधिकार स्वाध्याय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. दान सज्झाय, म. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रसीया राचै दान तणे; अंति: तिलकविजय जयकार, गाथा-५. २१. पे. नाम, सीता स्वाध्याय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: झल झलति मलति घणु रे; अंति: नीत प्रणमीजे पाय रे, गाथा-९. २२. पे. नाम. अरणकमुनि स्वाध्याय, पृ. ७आ, संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल सिधो जी, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ २३. पे. नाम, मेघकुमारसाधु सज्झाय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. मेघकुमार सज्झाय, म. प्रीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मानावेइ हो मेघ; अंति: छूटइ भव तणा पाश, गाथा-५. २४. पे. नाम. हितोपदेश स्वाध्याय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देवदाणव तीर्थंकर; अंति: कर्मराजा रे प्राणी, गाथा-१६. २५. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: सुखदायक रे शांतिजिणेसर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) १०२५१८. मनुष्यजन्म सफलता-व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२६४११.५, १७X५८). मनुष्यजन्म सफलता-व्याख्यान, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (१)अरिहंदेवु सुगुरु, (२)अर्हत भगवंत गुरु गीतार्थ; अंति: श्रीमंगलीकमाला संपजै. १०२५१९ (#) दंडकप्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.७, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १३४४३). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चौवीस जिणे; अंति: लहिया एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-३८. दंडक प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, वि. १५७९, आदि: चउविश तिर्थंकरने नमस; अंति: प्रकरण लोकप्रसीद्ध दंडक. १०२५२० (#) आवश्यकसूत्र-शिष्यहिता टीका का टिप्पण, संपूर्ण, वि. १५१८, जीर्ण, पृ. ३७, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५, २३-२६४७५-७९). आवश्यकसूत्र-शिष्यहिता टीका का टिप्पणक, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, सं., गद्य, आदि: जगत्त्रयमतिक्रम्य; अंति: व्याख्या टिप्पणकं समाप्तं, ग्रं. ४६००, (वि. अंत में २ श्लोक दिये है.) १०२५२१ (+) जैन धर्मोपदेश श्लोक-गाथा संग्रह व १६ कोष्ठक यंत्र विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १४४३८). १.पे. नाम. जैन धर्मोपदेशश्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोकसंग्रह-जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: इहलोके परलोके जीविते मरणे; अंति: इत्येते भोगोपभोग मानगाः, गाथा-१४, (वि. १५ त्याज्य वस्तु, ८विध चारित्राचार, आभ्यंतर तप, आहारादि विवरण संकलित है. ८१ कोष्ठकमय यंत्र भी आलेखित है.) २. पे. नाम. १६ कोष्ठकयंत्र विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वांछा तदर्धे कृत रूपहीनं; अंति: तथ्यंदहं प्रथमं च तथैव, श्लोक-२, (वि. यंत्र सहित. १ अन्य यंत्र भी आलेखित है.) १०२५२५. (#) कान्हडकठियारा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-१(१)-७, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १३४२८). कान्हडकठियारा रास-शीयलविषये, म. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ के दुहा-१ अपूर्ण से ढाल-८ गाथा-१४ तक है.) १०२५२६. (#) चंद्रराजा रास-उल्लास २, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २४-९(१ से ९)=१५, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११.५, १३४३०). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. ढाल-११ गाथा-४ ___अपूर्ण से ढाल-२१ गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) १०२५२७. (#) भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १८१२, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. कमालपुर, प्रले. पं. वृद्धिविजय (गुरु पं. रंगविजय); गुपि.पं. रंगविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका अंशतः खंडित है. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२, १५४३२). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., प+ग., वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: य सुक्खं लहुं मुक्खं, भाष्य-३. For Private and Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०२५२८. (+) लघुशांति, तिजयपहत्त व पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रह स्तुति गर्भित सह टीका, संपूर्ण, वि. १८३०, ज्येष्ठ कृष्ण, ६, बुधवार, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ३, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. आ. अमृतसुंदर (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १७X४८-६२). १.पे. नाम. लघुशांति सह टीका, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:शांतिवृत्तिपत्र. लघशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. लघुशांति स्तव-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६४४, आदि: सर्वं सर्वसिद्ध्यर्थ; अंति: यायात् प्राप्नुयात्. २. पे. नाम. तिजयपहत्त सह टीका, पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:तिजयपहुवृ०. तिजयपहुत्त स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुतपयासय अठमहा; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. तिजयपहुत्त स्तोत्र-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: कृत्वा चतुर्णां; अंति: नित्यं अर्चयेत्. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ नवग्रहगर्भित स्तवन सह वृत्ति, पृ. ५अ-६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नवग्रहस्तु०.३०. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति: गहा ण पीडंति, गाथा-१०, (वि. गाथा-१ का प्रतीक पाठ मात्र है.) पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्ततिगर्भित-टीका, सं., गद्य, आदि: पार्श्वजिनो जयति किं; अंति: न पीडयति न बाधते. १०२५२९ (+#) समवायांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १६५४, गिरिशांबकरशररसशशि मित वर्षे, ?, मध्यम, पृ. ६२, प्रले. मु. जगमाल (गुरु आ. विजयदानसूरि, तपागच्छ); गुपि. आ. विजयदानसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:समवायांग, संशोधित. कुल ग्रं. १६६७, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४३५-३९). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सुयं मे० इह खलु समणे; अंति: अज्झयणंति त्तिबेमि, अध्ययन-१०३, सूत्र-१५९, ग्रं. १६६७. १०२५३३. (+) दस दृष्टांत कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. हुंडी:दसदृष्टांत., धर्मोप०., धर्मोपदे०., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४११.५, ८x२४-३२). १० दृष्टांत-मनुष्यभवदुर्लभता, मा.गु., गद्य, आदि: चुल्लग १ पासग २ धन्न; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पाठ-"चला चलो हि संसार धर्म एको ही निश्चलः" तक लिखा है.) १०२५३४. (+) आत्मप्रबोध, संपूर्ण, वि. १८६०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १३७, प्रले. उपा. शांतिसमुद्र गणि । (गुरु ग. माणिक्यराज वाचक, खरतरगच्छ); गुपि. ग. माणिक्यराज वाचक (गुरु उपा. विद्यानिधान, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:आत्मप्रबोध., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १५४४६-५१). आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, सं., प+ग., वि. १८३३, आदि: अनंतविज्ञानविशुद्ध; अंति: (१)सद्बोधभक्तिभृता, (२)ग्रंथो विनिर्मितः, प्रकाश-४, श्लोक-१८१. १०२५३५ (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८६६, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २२०, ले.स्थल. नागपुर, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ५-१३४३७-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: भुज्जो उवदंसेइ त्तिबेमि, व्याख्यान-८, ग्रं. १२१६. कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल अवसर्पिणीनो; अंति: उपदिसे देखाडेइउ. कल्पसूत्र-बालावबोध , मा.गु.,रा., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत भगवंत; अंति: तो घणो संसार भमसी. १०२५३७. (+#) ज्योतिषसार सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३६-९(१२ से १३,२०,२५,२८,३२ से ३५)=२७, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ६x२१). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: अर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), (पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-८२ अपूर्ण से १०० अपूर्ण, श्लोक-१६१ अपूर्ण से १७० अपूर्ण, श्लोक-२१३ से २२२ अपूर्ण, श्लोक-२४१ अपूर्ण से २५१ अपूर्ण, श्लोक-२८३ अपूर्ण से ३२० तक व ३३१ अपूर्ण से नहीं है.) ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.ग., गद्य, आदि: श्री अर्हतदेव प्रतै; अंति: (-), प.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १७१ ज्योतिषसार-बालावबोध, मा.ग.,सं., गद्य, आदि: मेषो १ वृष २ मिथुन ३ कर्क; अंति: (-), पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. १०२५३८. ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हंडी:नारचं०., नारचंद्र०., जैदे., (२५४११.५, १०४३२-३९). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसरि, सं., पद्य, आदि: अर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३६८ अपूर्ण तक है.) १०२५४५ (+) भगवतीसूत्र, संपूर्ण, वि. १६५१, आषाढ़ शुक्ल, ११, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४३८+३(८१,९४,१०४)=४४१, ले.स्थल. आगरा, प्रले. श्राव. कपूरचंद; लिख. श्राव. डूगर शाह; प्रे. ग. दयाकुशल (गुरु ग. कल्याणकुशल, तपागच्छ); गुपि.ग. कल्याणकुशल (गुरु मु. मेहमुनि, तपागच्छ); आ. हीरविजयसूरि (गुरु आ. दानसूरि, तपागच्छ); राज्यकालरा. अकबर; प्रसं. म. वृद्धिचंद्र ऋषि, प्र.ले.प. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी:भगवतीसूत्र., भगवतीसू०., भगव०स०.प्रत के प्रारंभ में गाथा सहित भांगा कोष्ठक दिया है., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १३४३८-४२). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहंताणं० सव्व; अंति: संतिकरि तं नमसामि, शतक-४१, सूत्र-८६९, ग्रं. १५७५२. १०२५४६. निरयावलिका सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-१(३)=१८, प्र.वि. हुंडी:निराउलि., जैदे., (२७७११, ६४२९). कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., __ अध्ययन-१ सूत्र-५ अपूर्ण से सूत्र-७ अपूर्ण तक नहीं है व अध्ययन-१ सूत्र-१४ अपूर्ण तक लिखा है.) कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणंइ कालइ चउथइ आइवरतता; अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०२५४७. (+#) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३५-१२८(१ से १२८)=७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:श्राद्धप्र०वृ०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७X४२-४५). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र गाथा-३० है.) । वंदित्तुसूत्र-अर्थदीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४९६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पौषधव्रत अंतर्गत देवकुमारप्रेतकुमार कथा श्लोक-२१ से द्वादशव्रत अंतर्गत गुणाकरगुणधर कथा श्लोक-२४० अपूर्ण तक है.) १०२५४८. (+#) बृहत्संग्रहणी, संपूर्ण, वि. १९०२, चैत्र कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. १७, ले.स्थल. पल्लिका, प्र.वि. हुंडी:संघयण., संघय०सू., संघयणसूत्रं., संग्रणीसूत्र., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ., (२५४११, १७४३१-३४). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२९४. १०२५४९ (+) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८८-४९(१ से ४९)=३९, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिये गये है., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १४४४६). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदिः (-); अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४, गाथा-१८२५, (पू.वि. खंड-३ ढाल-७ के दहा-३ अपूर्ण से है.) १०२५५० (+) श्राद्धविधि प्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १६३५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, बुधवार, मध्यम, पृ. १११+१(४७)=११२, पठ. श्राव. अभयराज; गुभा. श्राव. इंदराज (पिता श्राव. कटारमल्ल); गुपि. श्राव. कटारमल्ल (पिता श्राव. लखमण श्रीमाल); श्राव. लखमण श्रीमाल; राज्ये आ. जिनचंद्रसूरि (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. कुल ग्रं. ४८५, जैदे., (२६.५४११, १७X५३-६०). श्राद्धविधि प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं पणमिय; अंति: सुहं लहं लहंति धुवं, प्रकाश-६. श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञविधिकौमुदीवृत्ति, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५०६, आदि: अर्हत्सिद्धगणींद्रवाचक; अंति: जयदायिनी कृतिनाम्, प्रकाश-६, ग्रं. ६७६१. १०२५५१ (+#) योगशास्त्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १२-३(१ से ३)=९, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४४५). For Private and Personal Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्रकाश-२ श्लोक-११८ अपूर्ण से प्रकाश-४ श्लोक-१०६ अपूर्ण तक है.) १०२५५२. आचारांगसूत्र-प्रथम श्रुतस्कंध सह प्रदीपिका टीका, संपूर्ण, वि. १६७२, आषाढ़ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १६२, ले.स्थल. जेसलमेर, प्र.वि. हुंडी:आ०प्र०दी०. अंत में 'पुस्तक दीना पं.सागरनी के सिष्य पं.माधवचंदने छापणा गुलावचंदजी को' ऐसा लिखा है., जैदे., (२६.५४१०.५, १२-१५४४४-५०). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. आचारांगसूत्र-प्रदीपिका टीका, गच्छा. जिनहंससूरि, सं., गद्य, वि. १५७३, आदि: शासनाधीश्वरं नत्वा; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०२५५३. (+#) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र-पर्व १०, अपूर्ण, वि. १५५२, करबाणतिथि, चैत्र शुक्ल, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. १४६-१(१२०)=१४५, लिख. श्रावि. झांझबाई; गुभा. श्राव. हेमराज लोलसिंह; श्राव. वरजांग लोलसिंह; श्राव. दूदा लोलसिंह (पिता श्राव. लोलसिंह घटसिंह); गुपि. श्राव. लोलसिंह घटसिंह (पिता श्राव. घटसिंह सादाजी); श्राव. घटसिंह सादाजी (पिता श्राव. सादाजी); श्राव. सादाजी (पिता श्राव. आभाजी); श्राव. आभाजी; अन्य. श्रावि. चंद्रावली लोलसिंह; श्रावि. वजाणी लोलसिंह (पति श्राव. लोलसिंह घटसिंह); श्रावि. वाछु घटसिंह (पति श्राव. घटसिंह सादाजी); व्याप. उपा. राजवर्द्धन (गुरु उपा. मतिमेरु, अंचलगच्छ); गुपि. उपा. मतिमेरु (गुरु आ. माणिक्यसुंदरसूरि, अंचलगच्छ); आ. माणिक्यसुंदरसूरि (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ५७००, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११,१३४४३-४९). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि: (-); अंति: स्वान्योपकारेच्छया, (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. सर्ग-११ श्लोक-४०६ से ४४० अपूर्ण तक नहीं है.) १०२५५४. कथा रत्नाकर, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १४७-२(१,१३)=१४५, जैदे., (२६४११, १३४४८). कथारत्नाकर, ग. हेमविजय, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम एक, बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., कथा-१ __अपूर्ण से कथा-११ अपूर्ण तक व कथा-१३ अपूर्ण से कथा-१९२ अपूर्ण तक है.) १०२५५५ (+#) कल्पसूत्र की कल्पलता टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १००-१०(१ से १०)=९०, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. चिपके पत्र होने से अनुमानित पत्रांक दिया गया है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १६x४४-४८). कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पाठ हैं.) १०२५५६. (#) ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-१(१)=८, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३२-३९). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नक्षत्रपाया अक्षर नाममाला अपूर्ण से दोषावली मुष्टिज्ञान अपूर्ण तक है., वि. आंशिक देशीभाषा में भी पाठ मिलते हैं.) १०२५५७. (+) रत्नपालरत्नावती चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४६, ले.स्थल. थावलां, पठ. मु. अजितविजय (गुरु पं. आणंदविजय, आणंदसूरिगच्छ); प्रले. पं. आणंदविजय (गुरु आ. विजयमानसूरि, आणंदसूरिंगच्छ); गुपि. आ. विजयमानसूरि (आणंदसूरिगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४३८). रत्नपालरत्नावती चौपाई, म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: सकल श्रेणिधरतणी दायक; अंति: लच्छी ___ मोहनविजय विलास जी, खंड-४ ढाल-६६, गाथा-१३७२. १०२५५८.(+) अढार पापस्थानक सज्झाय व १० पच्चक्खाण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १७९०, आषाढ़ शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १३-२(१ से २)=११, कुल पे. २, ले.स्थल. मकसुदावाद, प्रले.पं. गुलालविजय; पठ. देवकीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १०४३०). १.पे. नाम. अढार पापस्थानक सज्झाय, पृ. ३अ-१२अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १७३ १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: वाचक जस इम ___ भाखेजी, सज्झाय-१८, ग्रं. २११, (पू.वि. पापस्थानक-४ अपूर्ण गाथा-४ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. १० पच्चक्खाण सज्झाय, पृ. १२अ-१३आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानविचार सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: धुरि समरूं सामिणी; अंति: जिम संघले __ संपति वरो, ढाल-२, गाथा-१७. १०२५५९ (#) इग्यार अंग सज्झाय व उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १२४३४). १.पे. नाम. इग्यार अंग सज्झाय, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. ११ अंग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२२, आदि: आचारांग पहेलं का; अंति: (१)कीजे कोडि जतन रे, (२)रही रे कीधो ए सुपसाय, स्वाध्याय-११. २.पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन, पृ. ५आ-६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयणदेवी चित्त धरी; अंति: (-), (पू.वि. सज्झाय-४ गाथा-१ तक है.) १०२५६०. शत्रुजय मुखमंडन युगादि देव स्तवन सह बालावबोध व राम रावण संग्राम पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १५४३५-६५). १. पे. नाम. शत्रुजय मुखमंडन युगादि देव स्तवन सह बालावबोध, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण, ले.स्थल. नागपुर, प्रले. ग. श्रीवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य. आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, उपा. विजयतिलक, मा.ग., पद्य, आदि: पहिल पणमिअ देव; अंति: विजयतिलक निरंजणो, गाथा-२१. आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हं पहिलौ श्रीशत्रुजय; अंति: छइ निरंजणो पाप रहित. २. पे. नाम. रामरावण संग्राम पद, पृ. ८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पहिलो०. प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: रामचंद्र रावण हसजल; अंति: एह हुं सहीयडै रही, गाथा-४. १०२५६१ (#) चंदराजा रास, संपूर्ण, श. १६४९, वैशाख शुक्ल, ११, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ८०, ले.स्थल. आवरग्राम, प्रले. मु. निर्मल ऋषि (गुरु मु. खेतसिंह); गुपि. मु. खेतसिंह (गुरु मु. हरिचंद ऋषि); मु. हरिचंद ऋषि; राज्यकालरा. राजश्री साहु, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:चंद्रकीचौ०., चोपाइचंद्र०., चंद्र०चौ०.प्रतिलेखन वर्ष-वि. १७१०० लिखा है व शक् संवत् १६४९ है तो विक्रम संवत् १७८४ होना चाहिए. प्रत के अंत में 'परत रिखव श्रीकेसरजी की पतसु लिखि' ऐसा लिखा है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १४-१८४३८-४५). __ चंद्रराजा रास, म. विद्यारुचि, मा.ग., पद्य, वि. १७१७, आदि: श्रीजिननायक समरीइं; अंति: विद्यारुचि०सुप्रसन्न, खंड-६ ढाल-१०३, गाथा-२५०५, ग्रं.३०५५. १०२५६२ (+#) आलोयणा विधि, अपूर्ण, वि. १९०४, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ७-२(१,४)=५, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४११.५, ८x२४). आलोयणा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: कीटीका नगरं भंगे उप १०, (पू.वि. मृषावाद विरमणव्रत से है व बीच का पाठांश नहीं है.) १०२५६३. (#) कर्मग्रंथ १ से ६ सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २९२-१३०(१५ से ३२,१३३ से १३४,१४०,१४३ से १५५,१६६ से १६७,१६९,१७१,१७४,१८२ से २१६,२१८ से २७३)+१(३३)=१६३, कुल पे. ६, प्र.वि. हुंडी:कमीसावृत्ति., कर्म।सूत्र., त्रिपाठ-द्विपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ३४४२). १. पे. नाम. कर्मविपाकसूत्र सह स्वोपज्ञ टीका, पृ. १आ-३७आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६०, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से ५० अपूर्ण तक नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १७४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ १ स्वोपज्ञ सुबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: दिनेशवद्ध्यानवरप्रतापै; अंति: सर्वोपि तेन जनः . १८८२. 1 २. पे. नाम. कर्मस्तवसूत्र सह स्वोपज्ञ टीका, पृ. ३८अ-५६आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी -१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंदवंदियं नमह तं वीरं, गाथा - ३४. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ -२ -स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि बंधोदयोदीरण सत्पदस्थ; अति तु जगतोपि प्र. ८२०. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्वसूत्र सह अवचूर्णि पू. ५७अ ६५आ, संपूर्ण बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२०. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ ३ अवचूर्णि, सं., गद्य, आदि सम्यग्बंधस्वामित्व अंतिः रतोलेख्यवचूर्णिका, ग्रं. ९२०४. पे. नाम. षड्शीतिक सह स्वोपज्ञ टीका, पृ. ६५आ - १२३आ, संपूर्ण. घडशीति नव्य कर्मग्रंथ -४ आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी २४वी, आदि नमिअ जिणं जिअ‍ माण; अति लिहियो देबिंदसूरीहिं, गाथा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ -४-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि सं., गद्य, आदि यद्भाषितार्थलवमाप्य; अति देवेंद्र० चंचरीकेरिति, ग्रं. २८०० पे. नाम. शतकसूत्र सह स्वोपज्ञ टीका, पू. १२४२-१८९आ, त्रुटक, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १३वी १४वी आदि नमिय जिणं धुवबंधोदय अंति (-), (अपूर्ण, " पू.वि. गाथा १६ अपूर्ण से ८१ अपूर्ण तक व बीच-बीच के गाथांश नहीं हैं.) शतक नव्य कर्मग्रंथ ५ स्वोपज्ञ टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः यो विश्वविश्वभविनां भवबीज अंति: (-), अपूर्ण. ६. पे. नाम. सप्ततिका सह टीका, पृ. २१७अ-२९२आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं.. सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य वि. १३वी १४बी, आदि (-); अति एगूणा होइ नउईड, गाथा- ९३, (पू. वि. गाथा ४ से ५ तक व गाथा ६४ अपूर्ण से है.) सप्ततिका कर्मग्रंथ-६-टीका, आ. मलयगिरिसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: धर्मं परममंगलम्, ग्रं. ३८८०. १०२५६५. महावीर जन्म महोत्सव, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १४ वे. (२४४११, १३x२८). 1 , कल्पसूत्र - हिस्सा महावीरजिनजन्माधिकार का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि नमो अरिहंताणं० भगवंत अंति: जय जय करता स्वर्गे पहुंता. १०२५६६. पाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १५८३ वैशाख, १३, मंगलवार, मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२६X११, १३x३१-३६). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि, अंति: चउव्वीससयं अइयारा. १०२५६७. (#) ज्ञान द्विपंचाशिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, अन्य. मु. पनथुजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५x११, १२X४०-४३ ). ज्ञान द्विपंचाशिका, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, आदिः ॐकार रूप ध्येय गेय; अंति: संसार खोलै करम कपाट ज्युं, सवैया-५२. १०२५७०. माधवानल चौपाई, संपूर्ण, वि. १८१८, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २७, ले. स्थल. नांणानगर, प्रले. मु. कपुरविजय (गुरु पं. कस्तुरविजय); गुपि. पं. कस्तुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : माधवनलचोपी पत्र., (२४.५X११, १३X३४-३८). जै.... माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि देवि सरसति देवि, अंति: त्यां लगि चोपई सीद्ध, गाथा - ६२३. For Private and Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १७५ १०२५७२. (+#) २४ द्वारे अल्पबहत्व विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७-१(१)=६, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, २१४३१). २४ द्वारे अल्पबहुत्व विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वनस्पतीकाय दंडक अपूर्ण से नरक-३ वर्णन अपूर्ण तक है.) १०२५७३. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२४.५४११, १६x४३). देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. १०२५७४. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १७४३९). नवतत्त्व प्रकरण, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुण्णं पावास; अंति: परंपरासिद्धणंतगुणा, गाथा-३०, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. मेरुतुंगसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीरं विश्वविभु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. जीवतत्त्व विचार पाठ "अंगुलविचार९० प्रदेशप्रमाण९१" तक है.) १०२५७५ (+) भक्तामर स्तोत्र, जयतिहुअण स्तोत्र व मंत्र-तंत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १३४३५-४०). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह मंत्र व साधना विधि, पृ. २अ-६अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: परिणामगुणैः प्रयोज्यः, श्लोक-४८, (पू.वि. श्लोक-८ से है., वि. श्लोक-४४ तक प्रत्येक श्लोक का मात्र आद्यपाद लिखा है.) । भक्तामर स्तोत्र-मंत्राम्नाय, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: गणधार सहिआणं० जंभै स्वाहा. भक्तामर स्तोत्र-मंत्रफल साधना विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (१)स्त्री के पुत्र होय सत्य, (२)पवित्र जागायै गुणीजै. २.पे. नाम. जयतिहुअण स्तोत्र-भंडार गाथा, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. ___ संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: परमेसर सिरिपासनाह; अंति: सिद्धि मह वंछियपूरण, गाथा-२. ३. पे. नाम. मंत्र-तंत्र संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ ह्रींश्रीं वद वद वाग्व; अंति: (-). १०२५७६. (+) पंद्रह तिथि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४११, १०४३६). १५ तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एक मिथ्यात असंयम अविरति; अंति: (-), (पू.वि. पुर्णिमासीदिन स्तुति गाथा-१ अपूर्ण तक है.) १०२५७७. (+) उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४४०-४३). उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. ब्रह्म, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरु गौतम गुण; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., सज्झाय-३६ गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) १०२५७९. अभिधानचिंतामणिनाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०-२४(१ से २४)=६, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११.५, २४३९). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. देवकांड गाथा-३० अपूर्ण से ५८ अपूर्ण तक है.) १०२५८२. (+) शीलप्रकाश रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. सा. कीकाई, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:शीलरास., संशोधित., दे., (२५४११, १३४३९). शीयलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदि: पहिलं प्रणाम करूं; अंति: सेवक वीनवउ वजइदेवसूरि कि, गाथा-६९. For Private and Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०२५८३. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्नादि सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ८-२ (३,६) =६, कुल पे. १२, दे., (२५४११.५, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६x४६). १. पे. नाम. चंद्रगुप्त का सोले सुपना, पृ. १अ २अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : चंदगुपत. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपुर नामे नगर; अंति: जेमलजी कधी जोड रे, गाथा - ४१. २. पे. नाम. जमाली सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. , चोथमल, , मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: सासणनायक श्रीवीर; अंति: मेडते कीयोजी चोमास, गाथा - ११. ३. पे. नाम. गजसुकमाल सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे. वि. हुंडी : गजसुखमा... गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि वाणी श्रीजिनराज तणी काने अंति (-), (पू. वि. गाथा - १० अपूर्ण तक है.) ४. पे. नाम. श्रेणिकराजा सज्झाय, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. श्रेणिकराजा सज्झाय-समकित परीक्षा, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: वांदी गयो रे नगर मुजार, ढाल - २, गाथा-२२, (पू.वि. डाल. २ गाथा १० अपूर्ण से है.) ५. पे. नाम. कामदेव श्रावक सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी सरावक. मु. खुशालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि एक दिन इंद्रे, अंति खुसालचंद० वासीजी, गाथा १७. ६. पे. नाम. निर्मोहीराजा सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. . चौथमलजी, मा.गु., पद्य, आदि: निर्मोही राजवी जाने इंद्र; अंति: चोथमल० रे पोषत्रसु विचार, गाथा-२०. ७. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५१-५आ, संपूर्ण. मु. आव. मीर, पुहिं, पद्य, आदि का वे खाइ बे खाफ रे ए मन; अंति: कहे मीर० जिन जरा करके मलं, गाथा-४. ८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. रामचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि तुम चलता हे विणजारा तीया अति: रामचंद्र० सुद्ध वेपारा, गाथा ९. ९. पे. नाम ललितांगकुमार सज्झाय, पृ. ७अ, अपूर्ण. पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ललितांगकुमार सज्झाय-शील विषये, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९५९, आदि (-); अति हीरालाल ० हर्ष होल्लास, गाथा-१४, (पूर्ण, पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण से है.) १०. पे. नाम. धन्ना अणगार सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. धन्ना अणगार सज्झाय, मु. रत्न, मा.गु., पद्य, आदि नगर काकडी हो मुनीसर आप अंतिः वस्यो रतन कहे करजोड, गाथा १६. (वि. अन्त में अज्ञात कृति गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ११. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कनककामिनीविषये, मु. राम, रा., पद्य, वि. १९१८, आदि: मुरख लख जाह रे कनक ने काम; अंति: राम० भणी सर बंद वारंवार गाथा १५. १२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ८आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय सुकृत, मु. चोथमल ऋषि, पुहिं, पद्य, आदि सुकरत कर ले रे माया लोभी; अति: चोथमल० भाव करी सगत सीधावे, गाथा - ७. १०२५८४. (+#) नवतत्त्व विचार, संपूर्ण, वि. १९१३, वैशाख शुक्ल, ९, मंगलवार, जीर्ण, पृ. ६, ले. स्थल. मधुमतीबंदिर, प्रले. श्राव. प्रेमराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. महावीरजी पार्श्वनाथजी महुड़ी प्रासादात्, संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२५.५x११.५, १२५३३). जीवविचार स्तवन- पार्श्वजिन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि श्रीसरसती रे बरसती अंति: विजय पणे आनंदकारी, ढाल ९, गाथा-८३. १०२५८५. मेघकुमार चौढालिया, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ५, दे., (२५X१२, ७X२६). For Private and Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org मेघकुमार चौढालिया, क. कनक, मा.गु., पद्य, आदि देस मगधमाहे जाणीयइ अति: कवि कनक भणइ निशदीश, गाथा-४७. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ढाल-४, १०२५८८. (+#) आषाढभूतिमुनि चौपाई-पिंडविशुद्धिविषये, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. संशोधित. कुल ग्रं. १६५१, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४११, १७२५२-६०). आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि सकल ऋद्धि समृद्धिकर; अंति होजो परम कल्याणोरे, ढाल १६ गाथा २१८ . ३५१. १०२५८९ (+) व्यवहार शुद्धिविषये धनदत्त चौपाई, संपूर्ण वि. १७३७ श्रावण कृष्ण, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. जिहांनाबाद, प्रले. मु. सौम्यसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : धनदत्तरास., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें कुल २२५ जै. (२५.५x११.५, ११४४२-४८). व्यवहारशुद्धि चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९६, आदि शांतिनाथ जिन सोलमो; अंति: सीझई छित काज, ढाल १०, गाथा - १६१. १०२५९५ (+४) उपदेशमाला सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. ३५-१९ (१ से ७, १२ से १३,२५ से ३४) = १६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. अनुमानित पत्रांक दिए गए हैं., संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५X११, ७४४२). " उपदेशमाला. ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि (-) अति (-), (पू.वि. गाथा १२२ अपूर्ण से १७८ अपूर्ण तक, २०५ अपूर्ण से ३६८ अपूर्ण तक व ५२१ अपूर्ण से ५३७ अपूर्ण तक है. ) उपदेशमाला - टबार्थ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०२५९६. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६५-६० (१ से ६०) = ५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६४११.५, ५४३३). १७७ दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी आदि (-); अंति (-) (पू.वि. अध्ययन- ९ उद्देश- ४ अपूर्ण से प्रथम चूलिका प्रारंभिक पाठ अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्र - टबार्थ* मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). १०२५९७ (+४) भगवतीसूत्र के चयनित उद्देशसंग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५९-१ (२) =५८, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१०.५, १५X४७-५०). भगवतीसूत्र-उद्देशसंग्रह *, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. वि. अलग-अलग शतकों के उद्देशों का चयन.) . , १०२५९८. (+) ज्योतिषसार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४, प्रले. मु. जयसागर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : नारचंद्रसुत्र ., संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. जैवे. (२५.५४११.५ १२-१५X४०-४५ ). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: अर्हंतजिनं नत्वा; अंति: सा तत्रेव विलीयतां, श्लोक-३५६. १०२६०० (+) शत्रुंजय माहात्म्य सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८४९, वैशाख शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ७१०-३८४ (१ से १४,१७ से ३८६)+१(७१०)=३२७, ले.स्थल. बहियल, प्रले. पंन्या. मोतीचंद (गुरु पंन्या. देवचंद); गुपि. पंन्या. देवचंद (गुरु पंन्या. छाडेजी); पंन्या. छाडेजी अन्य मु. वणारसजी (गुरु मु. ईश्वरजी गणि); गुपि मु. ईश्वरजी गणि; अन्य. मु. रत्नवर्धन, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी:शत्रुं०माहात्म्य. सामला पार्श्वनाथ प्रसादात्, संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११, ६X३६-४०). For Private and Personal Use Only शत्रुंजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सांभोनिधिं ग्रंथ एषः, सर्ग- १४, ग्रं. १००००, (अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., सर्ग-९ श्लोक-३९ से ६० अपूर्ण तक व सर्ग-७ गाथा-३९० से है.) शत्रुंजय माहात्म्य-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-) अंति (-), (पूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम गाथा का टबार्थ नहीं लिखा है.) १०२६०१. (+) शत्रुंजय माहात्म्य सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३८६-३ (१५ से १६,८४) = ३८३, पू.वि. बीच व अंत पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे., (२५.५११, ५X३४-३९). "" " Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो विश्वनाथाय; अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-७ गाथा-३९० अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) शत्रुजय माहात्म्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हो विश्वनो; अंति: (-). १०२६०२. (+) चंद्रप्रभजिन चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७६-३१(१ से १९,२२ से २५,८१,१०८ से १०९,१६५ से १६६,१७१,१७४ से १७५)=१४५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४११, १३४३४-४०). चंद्रप्रभजिन चरित्र, आ. देवेंद्रसरि, सं., पद्य, वि. १२६४, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., परिच्छेद-१ अजापुत्रकथान्तर्गता हरिषेणश्रीषेण कथा अपूर्ण से परिच्छेद-२ स्वामिनिर्वाणम कथा वर्णन अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०२६०३. (+) समाधिशतक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७९०, वैशाख कृष्ण, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. ११९, प्रले. मु. माणिक्यचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:समाधितंत्र., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १५४३७-५५). समाधिशतक, आ. देवनंदी, सं., पद्य, ई. ५वी, आदि: येनात्माबुध्यतात्मैव; अंति: दधिगम्य समाधितंत्रम्, श्लोक-१०५. समाधिशतक-बालावबोध, म. पर्वतधर्मार्थी, मा.ग., गद्य, आदि: (१)जिनान् प्रणम्याखिलकर, (२)जिण अनादि काल की; अंतिः कृतधीः कृतधीः समाधौ. १०२६०४. आदिनाथ रास, संपूर्ण, वि. १८८४, माघ शुक्ल, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २४२, ले.स्थल. नवानगर, प्र.वि. हुंडी:ऋषभरा०., ऋषभ०., अंत में प्रत के लेन-देन के विषय में लिखा है., जैदे., (२६४११, १२४३६-४०). आदिजिन रास, आ. दर्शनसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्तिश्रीशोभासूमति; अंति: लखमी परमानंद सुख पावो रे, खंड-६ ढाल १५९, श्लोक-१०३३७. १०२६०६. (+#) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९००, ?, आश्विन कृष्ण, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. १७-१(१)=१६, प्रले. मु. गिरधारी (गुरु मु. रामकिशन); गुपि. मु. रामकिशन (गुरु मु. खुबचंद); मु. खुबचंद (गुरु मु. संतोकचंद); मु. संतोकचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:दसवि०. प्रतिलेखक ने लेखन संवत् १९० लिखा है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १८४३९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: अपणागमं गइ त्तिबेमि, अध्ययन-१०, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-३ गाथा-२ अपूर्ण से है.) १०२६०७ (+) जंबूअज्झयण व पार्श्वजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५७-१(२५)=५६, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:जबूचरित्र., संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ५४४०-४४). १.पे. नाम. जंबूअज्झयण सह टबार्थ, पृ. १आ-५६आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., वि. १८५०, चैत्र शुक्ल, ९, बुधवार, ले.स्थल. पंथेडीग्राम, प्रले. पं. मानविजयजी (गुरु पं. अजितविजय); गुपि.पं. अजितविजय (परंपरा पं. विनयविजय गणि); गुभा.पं. विनयविजय गणि (गुरु पं. जयविजय गणि); गुपि. ग. जयविजय (गुरु पंन्या. अमृतविजय); पंन्या. अमृतविजय (गुरु पंन्या. सिंहविजय); पंन्या. सिंहविजय (गुरु आ. विजयरत्नसूरि); आ. विजयरत्नसूरि (गुरु । आ. विजयप्रभसूरि); राज्ये आ. विजयजिनेंद्रसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.ले.श्लो. (१३९५) पुस्तक गुण भरपूर है पुस्तक गुण भरपूर है, (१३९६) पुस्तक उत्तम पेखीयै, पे.वि. श्रीपार्श्वपादका प्रसादात्. कुल ग्रं. १५९३ जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० रायगिहे; अंति: से आराहगा भणिया, उद्देशक-२१, (पू.वि. उद्देशक-४ अपूर्ण से उद्देशक-५ अपूर्ण तक नहीं है.) । जंबअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: आराधक जीव कह्या. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति सह टबार्थ, पृ. ५६आ-५७अ, संपूर्ण, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१३९७) जिहां लग मेरु अडग हैं. पार्श्वजिन सवैया, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: जिनके वचन उर धारत जुगल; अंति: साता दृग __ लीला की ललक मैं, गाथा-१. पार्श्वजिन सवैया टबार्थ, पहिं., गद्य, आदि: ऐसे जिनि के वचन हीय मै; अंति: दृगलि मोहि साता दिजइं. For Private and Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १७९ १०२६०९. (4) धर्मरत्न प्रकरण सह सुखवोधा टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पू. ७७-५६ (१ से ५६ ) = २१, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. हुंडी: धर्मरत्नप्रक० टीका. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै.. (२६.५X११, १८४५१-५५). धर्मरत्न प्रकरण, आ. शांतिसूरि प्रा. पद्य वि. १२७१, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा २८ से ४१ तक है.) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्मरत्न प्रकरण-सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. गुण २० भीमकुमार कथा श्लोक-२१८ अपूर्ण से महाशतक गृहपति कथा तक है.) १०२६११. (+) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ६. पू.वि. अंत के पत्र नहीं है., प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६११, १२४३४). " पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि: नमो अरीहतां० ॐ कारविंद; अंति: (-), (पू.वि. पीठिका अन्तर्गत पंच मतिज्ञानादि वर्णन अपूर्ण तक है.) १०२६१२. (+#) शालिभद्रनो रास, संपूर्ण, वि. १६९९, पौष कृष्ण, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. १९, ले. स्थल. बीलखा, प्रले. मु. देवजी ऋषि, पठ. मु. नाकर ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी सालिभद्रनोरास, सालिभद्रनुरास, संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें कुल नं. ५१०. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४११.५, १५४४०). " शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासणनायक समरीई; अंति: मतिसारइ० फल लहस्य जी, डाल- २९, गाथा-५१०. १०२६१३. (+#) सोलसती भास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. कुल ग्रं. ४१४, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, ११x४५). १६ सती सज्झाय, मु. मेघराज, मा.गु., पद्म, आदि जिन गुरु गौतम पाय; अति: जइ सोलसती गुणगाया जी, अध्याय-१७ भास, (वि. अंत में गाथा संख्या- १८५ लिखा है.) १०२६१४. (+) मंगलकलश फाग, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६११.५, ११४३५). " मंगलकलश फाग, वा. कनकसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६४९, आदि सासणदेवीय सामिणी ए; अंतिः कनकसोम० चरित जगीस, गाथा - १४२. १०२६१५. (+) विचार संग्रह का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९, प्र. वि. हुंडी : क्रीयाठाणुं., टिप्पणयुक्त विशे पाठ-संशोधित, जैदे. (२६११. १५४७). विचार संग्रह-विविधविषयक- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१) वीरं गुरु च वंदिया, (२) पृथ्वी अप तेज वाय वनस्पति अति बहत्व विचार कहिउ १०२६१६. (४) ४५ आगम पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७-२ (१,६) =५, पू.वि. प्रथम एक बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५४१२, १२४३१). प्र.वि. ४५ आगम पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८१, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पूजा-१ गाथा-७ अपूर्ण से पूजा-६ गाथा-१ तक व पूजा-७ गाथा-५ अपूर्ण से पूजा-८ गाथा-८ अपूर्ण तक है.) १०२६१७. (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३-१० (१ से १०) = ३, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६x११, १६x४६). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ११अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. सुधिरकुशल, मा.गु., पद्य, आदि (-); अति संक्षेप के सुधिरकुशल सहि गाथा-१३ (पू.वि. गाथा- ९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ११अ - ११आ, संपूर्ण. मु. सुधीरकुशल, मा.गु., पद्य, आदि शांतिजिणेसर सोलमा भेट्या अंतिः सुधिर नमे नित पाय, गाथा- ९. ३. पे नाम. सिद्धचक्र स्तवन. पू. ११आ, संपूर्ण, मु. कांतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि बीर जिणंद बखाण्यी अंतिः कांतिसागर सुख पायो हो, गाथा-८. ४. पे नाम. पद्मप्रभुजिन स्तवन, पू. ११आ-१२अ, संपूर्ण वि. १८४२, मार्गशीर्ष शुक्ल १, प्र. ग. लायककुशल गणि पठ. मु. नंदकुशल (गुरु ग. लायककुशल गणि), प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पद्मप्रभजिन स्तवन- नाडोलमंडन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि श्री पदमप्रभु जिनराया हो; अंति जिनेंद्र० दीये एम आसिस ये, गाथा - १४. ५. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १२आ, संपूर्ण, पार्श्वजिन स्तवन- दक्षण करहेटक, मु. खेमकलश, मा.गु., पद्य, आदि: महिमंडल सुणी श्रवण अति: खेमकुसल० इण परी कहे, गाथा १३. - . पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १२ आ. १३अ संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि श्रीसंखेश्वर पासजिन अंति: जिनचंद करमदल जिपतो, गाथा ५. ७. पे नाम, रोहिणीतप स्तवन, पृ. १३अ १३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि सासणदेवत सामिणी मुझ अंति: (-), (पू.वि. ढाल -२ गाथा- १३ अपूर्ण तक है.) १०२६१८. (+) चउवीसदंडक ओगणत्रीसद्वार, संपूर्ण, वि. १८१८, चैत्र शुक्ल, १५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १९, प्र. वि. संशोधित. कुल ग्रं. ३२५, जैदे., (२५.५X११, १०X२३-३१). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि प्रथम नामद्वार बीजु; अति: जीव अनंत गुणै अधिका १०२६२४. (+) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६-१ (१) ५, कुल पे. १५. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैसे. (२६४११.५, १५X४०). १. पे. नाम ऋषभजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. आदिजिन स्तवन, मु. लायककुशल, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति लायककुशल० भौर के गाथा-७, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे नाम. गोडीपार्श्व स्तवन, पू. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, रा., पद्य, आदि: मुजरो थे मानो हो बंधु जी; अंति : सेवक करी जाणो रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. सीमंधर स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन गीत, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: मुज हीयडो हे जालुओ भाष; अंति: इसु कहे मत मुकोजी विसार, गाथा-७. ४. पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी आदि मुनिसुव्रतजीसु वीनती; अतिः राम कहै सुभ सीस हो, गाथा-६. ५. पे. नाम. समुतशिखर स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: (१) आदेश्वर अष्टापद सिधा, (२) तुंही नमो नमो समेतशि: अंति भावे चैत्यवंदन करी, गाथा ६. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- पुरिसादानी, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि सुखकारि हो साहिब सांवरो; अति वीनती सेवक जांणि कृपा करो, गाथा-४. ७. पे नाम, वासपुज्य स्तवन, पू. ३अ संपूर्ण वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि वासपुज्य जिन बारमो माहरि; अंति: इम जीत नमे नित मेव रे, गाथा ५. ८. पे नाम. मौनइग्यारसि स्तवन, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, वि. १६८९, आदि: समवसरण बैठा भगवंत अति सुंदर कहे यो दाहडी गाथा - १३. ९. पे नाम. पदमप्रभुजीनो स्तवन, पू. ३आ-४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्मप्रभुजिन स्तवन, मु, मतिहंस, मा.गु., पद्य, आदि पद्म प्रभु जिन साहिब मोरा अंति सुख पामुं तिम करज्यो रे, गाथा ५. १०. पे नाम, पदमप्रभु स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन संप्रति साचो; अंति: तुमह पाय सेवरे, गाथा - ९. ११. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पू. ४अ ४आ, संपूर्ण मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन कुल चंदा हो; अंतिः शांतिकुशल०पंकज भमरलो, गाथा-७. १२. पे नाम, गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. , पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. साधुहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि वामानंदन वादतां आपे अविचल अति जीवत जनम प्रमाण, गाथा- ६. १३. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पू. ४आ ५अ, संपूर्ण पार्श्वजिन प्रभाति, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बदन सदन अम्रत; अंति: दिसा हिवे जागि रे, गाथा-६. १४. पे नाम, पंचमीवीर स्तवन, पू. ५अ-६अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि प्रणमि श्रीगुरुपाय: अंति भगति भाव प्रशंसीयो, ढाल -३, गाथा - २५. १५. पे. नाम. अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. . कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे माहरे ठांम; अंति: (-), (पू.वि. ढाल -२ गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) १०२६२६ प्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ११. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैदे. (२५.५x१२, १३४३४). देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., पग, आदि नमो अरिहंताणं नमो अंति: (-), 1 , (पू.वि. सामायिक पारने की विधि अपूर्ण तक है.) १०२६२७ (+) सालिभद्रमहामुनि चउपड़, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २६, प्र. वि. हुंडी सा. भ. पत्र- १अ पर प्रतिलेखक के द्वारा (२७४११, १२४३४). लिखित प्रतों की सूची दी गई है. संशोधित, जैवे. "" शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८ आदि सासणनायक समरिवइ वरधमान, अंति मतिसारइ० फल लहिस्यइ जी, ढाल - २९, गाथा- ५१०. १०२६२८ (#) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १५, प्र. वि. हुंडी : दसविकालक०, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५X११.५, १८x४४). १८१ दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी आदि धम्मो मंगलमुक्किट्ठे अंति: अपुणागमं गइ तिबेमि, अध्ययन-१०, (वि. अंत की चूलिका-२ नहीं है.) १०२६२९ कल्पसूत्र सह व्याख्यान कथा, अपूर्ण, वि. १९बी, जीर्ण, पृ. ८-२ (१,६) =६, पू.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र. वि. हुंडी : कल्पसूत्र., जैदे., (२५. ५X११.५, १२-१५X३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. जिन भव वर्णन से शरीरादिमान वर्णन अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०२६३१. (+) १० ठाणा बोल, चौदनाम नियम गाथा व सती सवैचा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११-१ (१) = १०, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित, जैये. (२६४११.५ १४४५१). १. पे. नाम. १० ठाणा बोल, पृ. २अ ११अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. मा.गु, गद्य, आदि (-) अंति: नंदणीपीया९ सालणीपीया१० (पू.वि. २ ठाणा बोल अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, चौदनाम नियम गाथा, पृ. ११अ, संपूर्ण. १४ आवकनियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि सच्चेत १ दव्व२ वेगइ३; अति दसि१२ न्हाण१३ भत्तिसु१४, गाथा- १. ३. पे. नाम. सती सवैया, पृ. ११अ संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., पद्य, आदि: उदाई के प्रभावती मृगावती; अंति: जावै वदी संघ वांणी है, पद-१. १०२६३२. (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-अध्ययन ५, अपूर्ण, वि. १६५४, वैशाख शुक्ल, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १९-१(१)=१८, प्र.वि. हुंडी:ज्ञातासूत्रं., ज्ञातासू., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ९४२७). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. सूत्र-१ "विज्जा हरमिहुण सवि चिणे" पाठांश से है.) १०२६३३ (+#) प्रास्ताविक गाथा सवैयादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८,प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४२९-३२). प्रास्ताविक सवैया संग्रह, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: मोर कुं चित्र चकोर कुं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सवैया-७५ अपूर्ण तक लिखा है., वि. विविध विद्वत्कृत अलग-अलग क्रम में गाथा परिमाण है.) १०२६३४. (+#) कयवन्ना चउपइ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८, प्रले. मु. दलीचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३६-४०). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदादायक; अंति: धरम करण मन उलसेजी, ढाल-३१, गाथा-५५५. १०२६३६. (+) साधुजीनी वंदना, संपूर्ण, वि. १९२७, आषाढ़ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ.५, प्रले. मु. तेजपाल ऋषि (गुरु मु. नथु ऋषि); गुपि. मु. नथु ऋषि (गुरु मु. जसराज ऋषि); मु. जसराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:साधु वं०., साधुवंद., संशोधित., दे., (२७४११, ११४३१-३४). साधुवंदना बृहद्, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमो अनंत चोवीसी ऋषभादिक; अंति: जेमल० एह कयो अधिकार, गाथा-१०९. १०२६३७. (+#) त्रैलोक्यसंदरी रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.५, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३-१६४३६-४६). त्रैलोक्यसंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुख कारण पासजिण सामलउ; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१०९ अपूर्ण तक लिखा है.) १०२६३८. कर्मप्रकृति बोल विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.७, ले.स्थल. मांडवीबिंदर, दत्त. श्रावि. संतोकबाई (पति श्राव. वालजी रखजी); गुपि. श्राव. वालजी रवजी; गृही. सा. भाणबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कर्मप्रकृति., दे., (२५.५४११.५, १४४४०-४६). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.ग., गद्य, आदि: पनवणां पद २३ में उदेसे; अंति: चउदमे च्यार कर्म वेदे. १०२६३९ (+#) कल्पसूत्र व्याख्यान-पार्श्वजिन चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१(१)=१०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११.५, १२-१५४३५-३८). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कमठ तापस प्रसंग अपूर्ण से है व अहिच्छत्रातीर्थ स्थापना प्रसंग तक लिखा है.) १०२६४० (+) जीवविचार चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:जीवविचार चउपई., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १३४३७-४०). जीवविचार चौपाई, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिनाथ पयकमल धरि हृदय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२० अपूर्ण तक है.) १०२६४१ (+) विजयशेठविजयाशेठाणी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १६४५३). विजयशेठविजयाशेठाणी रास, मु. राजरत्न वाचक, मा.गु., पद्य, वि. १६९६, आदि: श्रीविमलाचल मंडणो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४६२ अपूर्ण तक है.) १०२६४२. (+) नंदबत्रीसी चउपई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प.८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १३४३३). For Private and Personal Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १८३ नंदबत्रीसी चौपाई, मु. सिंहकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १५६०, आदि: आगम वेद पुराणं जाणंतह जे; अंति: चउपई नंदबत्रीसी ए चउपई, गाथा-१४७.. १०२६४३. (+) विक्रमादित्य नवसौ कन्या चौपाई, संपूर्ण, वि. १७८४, फाल्गुन शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १६, ले.स्थल. दशपुरनगर, प्रले. मु. दूदा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:९सैकन्याचौ. जीवणदासजी प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२६४११, १६४४९). विक्रमादित्य चौपाई, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: पुरिसादाणी प्रणमीइं; अंति: तेहने सदा हुइ कल्याण, ढाल-२७. १०२६४४. (+-) लावणी संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४३, वैशाख शुक्ल, १०, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, कुल पे. ३३, ले.स्थल. तणवाणा, प्रले. मु. केशवजी (गुरु मु. हीराचंद); गुपि. मु. हीराचंद; अन्य. सा. मेगीबाईजी (गुरु सा. लाधीबाई); गुपि. सा. लाधीबाई (गुरु सा. जीविबाई); सा. जीविबाई (गुरु सा. मुरइबाई); सा. मुरइबाई; अन्य. मु. मेघराजजी, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी:लावणी., संशोधित-अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४११.५, १३४४०-४५). १.पे. नाम. जंबुस्वामीनी लावनी, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. जंबूस्वामी लावणी, ऋ. नथमल, मा.गु., पद्य, वि. १८६८, आदि: श्रीवीतराग जिनदेव नमु सिर; अंति: कृष्ण पक्षे चितलाई, गाथा-१८. २. पे. नाम. जंबुस्वामीनी लावनी, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण.. जंबूस्वामी लावणी, म. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५८, आदि: सेठ ऋषभदत पित्या जंबरो; अंति: जोडी जुगतमे पाली पीठ माइ, गाथा-२७. ३. पे. नाम. सगपण लावणी, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. सगपण व्यवहारपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: सवारथ सब विलभ लागे विण; अंति: जग सगपण सेंर भणक माइ, गाथा-२५. ४. पे. नाम. गजसुकुमारनी लावणी, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: गजसुकुमार देवकीको नंदन; अंति: गाम जोधरे ऋषी चोथमल गाइ, गाथा-२७. ५. पे. नाम, नेमजिन लावनी, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५७, आदि: समुद्रविजे सिवादेवीको; अंति: कीया गुण उदे भली आइ, गाथा-२२. ६. पे. नाम. उपदेश की लावणी, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी, मु. रामकृष्ण ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: आजकाल का कुच होना वही जग; अंति: रामपुरामा एसी सीख सुनाइ, गाथा-१८. ७. पे. नाम. शांतिजिन लावनी, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. शांतिजिन लावणी, म. कर्मचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सांतिजिनवर सदा सुखकारी अब; अंति: कर्म कहे० सेवा चरणारी, गाथा-१६. ८. पे. नाम. अर्जुनमालीनी लावनी, पृ. ८अ-९आ, संपूर्ण. अर्जुनमाली लावणी, मु. रामकृष्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६८, आदि: मगघी देस माहे राजग्रही; अंति: रामकृष्ण तेरस बुधवारी, गाथा-४१. ९. पे. नाम. उपदेश लावनी, पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी, मु. रामकिसन ऋषि, पुहि., पद्य, वि. १८६८, आदि: चेत चतुर नर कहे तेरे; अंति: सुनावे भव जीवा समझाना है, गाथा-१९. १०.पे. नाम. नेमनाथनी लावनी, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. नेमराजिमती लावणी, म. चतरकशल, पुहिं., पद्य, आदि: नेमनाथ मेरी अरज; अंति: फेर फेरा नही फेरने की, गाथा-११. ११. पे. नाम. विनती लावनी, पृ. ११अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधारणजिन लावणी- चारगतिदुखवर्णन गर्भित, मु. खूबचंद, पुहिं., पद्म, आदि: सरण लीवो जिनराज तुमारो; अंति खूबचंद सरणे तुम आयो, गाथा ९. १२. पे. नाम विनती लावनी, पृ. ११अ ११आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक लावणी, पुहिं., पद्य, आदि: जगत मे खबर नही पलकी; अंति: नही जाके वीनती एहपतकी, गाथा- ९. १३. पे. नाम. जिन लावनी, पृ. ११ आ.१२अ, संपूर्ण औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: सदगुरु की सीख हिए धरनां; अंति: जिनदास० जिन चरणारे, गाथा-४. १४. पे. नाम. राजुल लावनी, पृ. १२-१२आ, संपूर्ण. नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: तुम तज करना राजुल नार; अंति: जिनदास० सुनो जिनवर रे, गाथा-४. १५. पे. नाम कुगुरु लावनी, पृ. १२आ, संपूर्ण कुगुरु लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: तजु तजु में उन कुगुरू कुं; अंति: जिनदास० खुवारी हे, गाथा - ६. १६. पे नाम. मिथ्यात्वी वर्णन लावणी, पृ. १२ आ. संपूर्ण. मु. जिनदास, पु,ि पद्य, आदि कंकर कुं संकर कर माने अति ए मुक्ति की पाता है, गाथा ५. १७. पे. नाम. औपदेशिक लावणी - शिखामण, पृ. १२-१३अ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी- शीखामण, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: एक जिनवरजी का नाम हिया; अंतिः जीनदास सरव रस देना, गाथा ५. 7 १८. पे. नाम. जीवने शिखामणनी लावणी, पृ. १३ - १३आ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास पुहिं, पद्य, वि. १७वी आदि पुगल में मान्यो सुक्रीत, अति जिनदास कहे० जोर नही तेरे, गाथा-५. १९. पे नाम. सुमतीकुमती लावणी, पू. १३आ-१४अ, संपूर्ण मु. जिनदास, रा., पद्य, वि. १७वी, आदि तु कुमती कलेसण नार लगी, अंति: कुमती तु भाज खोटी मट खेडे, गाथा-५. २०. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १४अ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: कब देखु देव जगतगुरु जिनवर; अंति: जिनदास सुनो जिनवर की बानी, गाथा-५. २१. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १४अ - १४आ, संपूर्ण. म. जिनदास, पहि., पद्य, वि. १७वी आदि अब अचल अखंडित जोत सदा अति जिनदास लावणी गाइ, गाथा-६. २२. पे नाम औपदेशिक लावणी, पृ. १४-१५अ. संपूर्ण. क. बनारसीदास, पु.ि, पद्य, आदि: मुखडाइ किउ देखो दरपण मे; अति: बनारसी० सुक्रीत करले धनमे, गाथा-७. २३. पे नाम. पार्श्वजिन लावणी-मगसी, पृ. १५अ संपूर्ण. पार्श्वजिन लावणी-मगसीमंडन, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: मुकसी पार्श्व का वाज; अंति: जिणदास० मन में कोई शंका, गाथा- ६. २४. पे. नाम. क्षुधावेदनी लावनी, पृ. १५-१५आ, संपूर्ण. क्षुधा सज्झाय, मु. शिवलाल, पुहिं., पद्य, आदि: वेदना क्षुधा की भारी अति सहे कोई तपसी ताकी बलिहारी, गाथा - १२. २५. पे नाम. नेमकुमरनी लावनी, पृ. १५ आ-१६आ, संपूर्ण, नेमिजिन लावणी, मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमि निरंजन बालपणे; अंति: मुनि गावे लावणी मनने कोडे, ढाल-४, गाथा - १६. २६. पे. नाम. चंदाप्रभुनी लावणी, पृ. १६ आ-१७अ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १८५ चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५४, आदि: चंदा प्रभु चित मोयाजी; अंति: लालचंदजी० वार सूकरवारो, गाथा-१६. २७. पे. नाम, आउखानी लावणी, पृ. १७अ-१८अ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी-आयुष्य, म. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: इण कालरो भरोसो भाई रे कोइ; अंति: रत्नचंद० धर्म संभालोए, गाथा-१५. २८. पे. नाम. चेतानंदनी लावणी, पृ. १८अ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी, मु. बुधमल, पुहि., पद्य, आदि: हां रे चेतानंद मेरा कह्या; अंति: बुध रखेसर० कीनी उदेपुर रे, गाथा-७. २९. पे. नाम. चेतरी लावनी, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण.. औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: हारे कसकी मुंडिना कहीए रे; अंति: जिनदास०जिनदरसण चहिये, गाथा-९. ३०. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण. म. लालचंद, रा., पद्य, आदि: हां रे भाई नरक निगोद; अंति: ऋषि लाल० मक्ति सही छे रे, गाथा-१२. ३१. पे. नाम. सीमंधरजिन लावणी, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण. नरसिंघदास, पुहिं., पद्य, वि. १८७०, आदि: महावदेह क्षेत्र अती शोभे; अंति: नरसिंघदासजी इस करी गाई, गाथा-१२. ३२. पे. नाम. पार्श्वजिन आरती, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण. म. जिनहर्ष, पुहि., पद्य, आदि: समरण कर श्रीपार्श्व प्रभु; अंति: विस्तार करै प्रभू का, गाथा-७. ३३. पे. नाम, उपदेशी लावणी, पृ. २०अ-२१अ, संपूर्ण. अमराभिघजी, मा.गु., पद्य, वि. १८८२, आदि: सुगुरू बडा हे उपगारी; अंति: अमराभिघजी० पदमेहि धरना, गाथा-१३. १०२६४६. (+) प्रतिक्रमण व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-२(३ से ४)=६, कुल पे. १३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४४३). १. पे. नाम. प्रभातको राईपडिकमणाना आगार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. लघप्रतिक्रमणविधि प्राभातिक, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावहि तसोत्तरी; अंति: साधुने त्रिकाल वंदणा. २. पे. नाम. पाखि पडिकमणा विधि, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: वंदेउ लगे तो देवसि; अंति: आगइ देवसिपडिकमणो तिमिज. ३. पे. नाम. देववांदवा विधि, पृ. २अ, संपूर्ण. देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावहि तसोत्तरी; अंति: जयवियराय थेट सुधी कहणो. ४. पे. नाम. पौषधादि विधि संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.ग., प+ग., आदि: प्रथम इरियावहि तसोत्तरी; अंति: मिच्छामि दक्कडं. ५. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भगति भाव प्रशंसीयो, __(पू.वि. ढाल-२ गाथा-२ अपूर्ण से है.) ६.पे. नाम. अष्टमी स्तवन, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे माहरे ठाम धरम; अंति: कांति सुख पामे घणु, ढाल-२, गाथा-२३. ७. पे. नाम. नेमनाथजिन स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, वा. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जल थल जलधर पूरवै सखी; अंति: मेघ० सुकृत सुगाल रे, गाथा-७. ८. पे. नाम. नेमनाथ स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. पाक्षिक For Private and Personal Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमिजिन स्तवन, मु. हरख, रा., पद्य, आदि: कांइ हठ मांड्यो छे हो राज; अंति: हरखचंद० वसिया मुगत रे वास, गाथा-७. ९.पे. नाम, आदिजिन स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पीउडा जिन चरणांरी सेवा हो; अंति: मोहन अनुभव मांगै, गाथा-४. १०. पे. नाम. धरमनाथजी स्तवन, पृ.७आ, संपूर्ण. धर्मजिन स्तवन, म. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: धरमजिणेसर गाउं रंगस; अंति: सांभलो ए सेवक अरदास, गाथा-८. ११. पे. नाम. ऋषभजी स्तवन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. लायककुशल, मा.गु., पद्य, आदि: अविहड प्रीत ऋषभजिन तुम; अंति: लायककुशल० सुख संपति मांणे, गाथा-५. १२. पे. नाम. पंचतिर्थि स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. ५तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आद हे आद हे आदिजिणेसरु ए; अंति: (१)घरघर नव निधान के, (२)लावण्यसमय० सुख पावै सासता, गाथा-१२. १३. पे. नाम. सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: सहज सलुणो हो मिलियो मेलु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) १०२६५४. (+) लघुशांति स्तव सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४३४). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिशांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. लघुशांति स्तव-वृत्ति, ग. धर्मप्रमोद, सं., गद्य, आदिः श्रीमंतंबोधिदं नत्वा; अंति: (१)पदंयायादित्यर्थः, (२)विजयतां तावन्मतंशासनं, ग्रं. २१७. १०२६५५ (+) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९६६, माघ कृष्ण, १४, मंगलवार, मध्यम, पृ. १५-१(१)=१४, ले.स्थल. जोधपुर, प्र.वि. हुंडी:दशवइका., संशोधित., दे., (२५.५४११, १७X४२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि, अध्ययन-१०, (पू.वि. अध्ययन-३ गाथा-५ अपूर्ण से है.) १०२६५६. (+) चतुर्दशगुणस्थानक विचार-१३ से १४ गुणस्थानक, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. उपा. कमललाभ; अन्य. पं. तेज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ४३२, जैदे., (२६४११.५, १६x४५). १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सिद्धांत हुंती जाणवउ, प्रतिपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०२६५७. (+) कल्पसूत्र-व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, ११४३६). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: नम श्रीवर्धमानाय श्रीमते; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पंच कल्याणक प्रारंभिक अपूर्ण तक लिखा है.) १०२६५८. (+) साधुवंदना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ११४३९). साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहजिण पमुह चउवीस; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७८ तक है.) १०२६५९. शालिभद्रमुनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:सालभद्रच०., जैदे., (२६४११, ११४३४). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: शासननायक समरीइं; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१० गाथा-४ अपूर्ण तक है.) १०२६६०. (+) ५ तीर्थ देववंदन व नवपदतप आराधना विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-२(१ से २)=१३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४३४). १.पे. नाम.५ तीर्थ देववंदन विधिसहित, प. ३अ-८अ, अपूर्ण, प.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १८७ ५ तीर्थ देववंदन विधिसहित-तपागच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: तु भव्या० वीरजिनेश्वर, (पू.वि. सम्मेतशिखरतीर्थ देववंदन अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. नवपदतप आराधना विधि, पृ. ८अ-१५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (१)ॐहीं परम परमात्मने अनंत, (२)उप्पन्न सन्नाण महोमयाणं; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम दिन की आराधना तक है.) १०२६६३. (+) लघदंडकादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४-७(१ से ७)=३७, कुल पे.८, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११, १६x४४). १.पे. नाम, लघुदंडक, पृ. ८अ-८आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हंडी:लघदंडक०. दंडकभेद बोल-लघु, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पावै वाकी मै तीन जोग पावै, (पू.वि. द्वार-२५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. ११ द्वार लेसा, पृ. ८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. लेश्या ११ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: कृष्ण १नील २ कापुत ३; अंति: (-), (पू.वि. द्वार-४ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम, बंधी शतक, पृ. २१अ-२१आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:बंधी०लधी०. १४ गुणस्थानक ४१ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: माह पहिन्नउ तीजउ भांगा, (पू.वि. बोल-३५ अपूर्ण से ४. पे. नाम. २२२ बोल-लब्धि २१ द्वार, पृ. २१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: जीव १ गइ २ इंदिय ३ काय ४; अंति: (-), (पू.वि. मनुष्यगति वर्णन अपूर्ण तक है.) ५. पे. नाम. ९८-बोल-जीवअल्प, पृ. ३२अ-३५आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हंडी:खेताणंवा०. ९८ बोल-जीवअल्पबहत्व विषयक, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: गाढना अलावानी परें जाणवू, (पू.वि. ऊर्ध्वलोकादि समूर्छिम जीव वर्णन अपूर्ण से है.) ६.पे. नाम. संजया विचार, पृ. ३५आ-४०अ, संपूर्ण, वि. १९३५, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, पे.वि. हुंडी:संजयाथोक, संजयाना बो. भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-२५ उद्देश-६गत नियंट्ठा-संजया आलापकगाथा-बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पन्नवणा १ वेइ २ रगे; अंति: बाला संख्यात गुणा अधिका. ७. पे. नाम, कायथीत बोल, पृ. ४०अ-४४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:कायथीत. कायस्थिति बोल, मा.गु., गद्य, आदि: जीव गइ इंद्रिय काय; अंति: नथी आंतरो नथी पडे. ८. पे. नाम, २३ पदवी, पृ. ४४अ-४४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:२३ पदवी. २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सात एकेंद्री रत्ननाम; अंति: (-), (पू.वि. अकर्म भूमी तक है.) १०२६६४. (#) जंबूस्वामी चरित्र, अपूर्ण, वि. १७६१, ज्येष्ठ कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. १६-४(१ से ४)=१२, पठ. ग. वर्द्धमानसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१०.५,११४४३). जंबूस्वामी कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: भवंति भवीनां सदा, (पू.वि. कथा-२ अपूर्ण से है.) १०२६६५ (+) बृहत्संग्रहणी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३६-१२(१ से १२)=२४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १५४४५). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६६ से १८६ तक है.) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध *, मा.ग., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). १०२६६६ (+#) शील रास व प्रास्ताविक श्लोक, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ.६, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४४०). १.पे. नाम. शील रास, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण. शीयलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदि: पहिला प्रणाम करूं; अंति: विनवइ एम श्रीविजयदेवसरि, गाथा-७५, ग्रं. २५१. २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. ६आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मावस मास निहोर कर; अंति: फल यस्य प्रीया ईदृशी, श्लोक-१. For Private and Personal Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०२६६८ (+) रिषभदत्त रूपवती चोपाई, संपूर्ण, वि. १७९८, चैत्र शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. २३, प्रले. मु. जयहेम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १३४३२-३५). ऋषभदत्त चौपाई, मु. अभयकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७३७, आदि: पास जिणेसर प्रणमतां; अंति: अभयकु० वाधइ मंगलमाल, ढाल-२७, गाथा-४८९. १०२६६९ (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. १८०-४२(१ से ४२)=१३८, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रांक खंडित हैं. हुंडी:उत्तराध्य०., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १३४३७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२ सूत्र-१९ से ३८ तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०२६७०. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०६-२५(१ से १७,३१ से ३५,९२ से ९३,१५९)=१८१, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ४४२०-२३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. महावीर चरित्र अपर्ण से वर्षासमये वसति स्थाने साधु प्रसंग अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). १०२६७२. (#) पुष्पमाला प्रकरण सह स्वोपज्ञ वत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ.५३-५१(१ से ४२,४४ से ५२)=२, प.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, २४४५३-७६). पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६६ से ६७ व ४०२ अपूर्ण से ४१६ अपूर्ण तक है.) पुष्पमाला प्रकरण-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-). १०२६७३. असज्झाय विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, १९४४२-४५). असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, आदि: धूअर जांल गई पडई नालगई; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मौनएकादशी असज्झाय विचार अपूर्ण तक लिखा है.) १०२६७४. (+#) नरक क्षेत्रमानादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ३१-४३४२२-२९). १. पे. नाम, नरक क्षेत्रमान विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. नरक विचार, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: रत्नप्रभापृथिव्यां योजनदश; अंति: (-). २. पे. नाम, सप्रदेश अप्रदेश विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-सप्रदेशअप्रदेश विचार, संबद्ध, मा.ग., गद्य, आदि: (-); अंति: गीतार्थ विचारिज्यो, (वि. पत्र का शीर्षभाग खंडित है.) ३.पे. नाम. रूपीअरूपी जीवअजीव भेद गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: कम्मठ पावठाणा मणवयजो; अंति: फासा उवरिल्ला होई नायव्वा, गाथा-१. ४. पे. नाम. समयोगी विषमयोगी विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-शतक २५ प्रथमोद्देशगत समयोगी विषमयोगी विचार, संबद्ध, प्रा.,सं., गद्य, आदि: दो भंते णेरइया० प्रथमसमय; अंति: नाभ्यधिको विषमयोगीति भावः. ५. पे. नाम. सोपक्रम निरुपक्रम जीव विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र-सोपक्रम निरुपक्रम जीव विचार, संबद्ध, प्रा.,सं., गद्य, आदि: आयुर्बंधकसूत्रे जे जीवे; अंति: कालेनायुबंधस्यासंभवात्, (वि. अंत में आहार विषयक प्रक्षिप्त २ गाथाएँ है.) १०२६७५. पर्यषणापर्व निर्णय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६४११.५, १५४२९). पर्युषणपर्वनिर्णय विचार, प्रा.,सं., गद्य, आदि: इदं च पर्वकेचिद्भाद्रपद; अंति: कदापि न करणीयमिति शिवम्. For Private and Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १८९ १०२६७६. (#) द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका, अर्बुदाचलस्यकल्प व अवंति देशस्य अभिनंदन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११, १७४७१). १. पे. नाम. द्वात्रिंशद्वात्रिशिका का हिस्सा श्लोक एक की टीका, पृ. १अ, संपूर्ण. द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका-हिस्सा प्रथम श्लोक की टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि: स्वयंभुवंभुत सहस्र; अंति: श्री जिनप्रभसूरय. २. पे. नाम, अर्बुदाचलस्यकल्प, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अर्बदाद्रिकल्प, आ. जिनप्रभसरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: अहँतौ प्रणिपत्याहं; अंति: चतुरैः परिचीयताम्, श्लोक-५२, ग्रं. ५२. ३. पे. नाम. अवंतिदेशस्थअभिनंदनदेवकल्प, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १४वी, आदि: अवंतिषु प्रसिद्धस्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण तक है.) १०२६७७. (+) त्रिकचतुर्विंशतिजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १५४४८). २४ जिन स्तवन-अतितअनागतवर्तमान, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिणवर केवल वाणी बीजउ नमउ; अंति: पासचंदसूरि इम उच्चरइ ए, गाथा-१५. १०२६७८. (#) भाषालीलावती, अपूर्ण, वि. १८२३, आश्विन शुक्ल, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. ३०-१(१)=२९, ले.स्थल. जावदनगर, प्रले. कन्हीराम; राज्यकालरा. अरीसीघजी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. शांतिनाथ प्रसादात., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १२४२९-४२). लीलावती-भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: (-); अंति: लालचंद० जन सुखकाज, अध्याय-१६, गाथा-७०७, (पू.वि. अध्याय-१ गाथा ९ अपूर्ण से है.) १०२६७९ (+) जीवविचार प्रकरण व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. ३, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १५४४४-४८). १. पे. नाम, जीवविचार प्रकरण सह वृत्ति, पृ. १आ-८आ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-सुबोधिनी टीका, मु. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८५०, आदि: ध्यात्वा जैनं महः; अंति: क्षमाकल्याण० वृत्तिकाम्. २. पे. नाम. पुद्गलपरावर्त स्तवन सह अवचूरि, पृ. ८आ-१०अ, संपूर्ण. पुद्गलपरावर्त स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीवीतराग भगवंस्तव; अंति: श्रेयःश्रियं प्रापय, श्लोक-११. पुद्गलपरावर्त स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: हे श्रीवीतराग हे भगवन् मे; अंति: श्रेयः श्रियं प्रापयः. ३. पे. नाम. मनुष्यसंख्या स्तवन सह अवचूरि, पृ. १०अ-११आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मनुष्यसंख्यास्तव, प्रा., पद्य, आदि: जिणवुत्त चरित्तेणं; अंति: बहुहातो पसिय चरणेण, गाथा-११, संपूर्ण. मनुष्यसंख्यास्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: जिनोक्तचारित्रेण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. अंतिम गाथा की अवचूरि अपूर्ण तक है.) १०२६८०. (#) कल्पसूत्र की पीठिका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्र., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, १०४३५). कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.ग., गद्य, आदि: हिवे पंचपरमेष्टि; अंति: (-), (पू.वि. नागकेतु दृष्टांत अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०२६८१. (४) गुणवर्म चरित्र, अपूर्ण, वि. १८८८, वैशाख कृष्ण, १०, रविवार श्रेष्ठ, पृ. ९२-६७(१ से ६७)= २५, ले. स्थल. सूरत बिंदर, पठ. मु. राजसागर (गुरु मु. वेलसागर); गुपि. मु. वेलसागर (गुरु मु. वीरसागर); मु. वीरसागर (गुरु मु. प्रेमसागर); प्रेमसागर र (गुरु पं. रुपसागरेण); प्रले. पं. रुपसागरेण (गुरु ग. भाग्यचंद); गुपि. ग. भाग्यचंद (गुरु मु. जीत); मु. जीत (गुरु मु. मनजी); मु. मनजी (गुरु ग. हीराचंद ); ग. हीराचंद, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. हुंडी : पूजारास०, स०पू०रा०., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (५५६) भग्नपृष्टि कटी ग्रीवा, (१०७९) तैलाद्रक्षे ज्जलाद्रक्षे (१४०१) यावच्चद्रा धरायां च जैदे. (२६४११.५. १९-२४४४५-४९). भु, ', Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७ भेदी पूजा रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७९७, आदि: (-); अंति: भविजन जिम पउचें मन आस रे, ढाल-९५, ग्रं. ७२२५, (पू.वि. कथा - १३ गाथा- ९३ से है.) १०२६८२. श्रेणिकराजा रास, संपूर्ण, वि. १९४५, पंडववेदको ग्रहएकोएकस्तवार, कार्तिक कृष्ण, १, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५६, ले. स्थल. समूया, प्रले, मु, मीयाचंद ऋषि, अन्य मु. जीवराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी श्रेणिकरास श्रीसतीनाथजी प्रसदत.. वे. (२५x११.५, १२४४३-४७). श्रेणिकराजा चरित्र, मु. वल्लभकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७७४, आदि आदिसर आये नमुं शिवसु; अंति वल्लभ० तास प्रमाण बे, ढाल ५०, गाथा - १२३६. , जै.., १०२६८३. (+) आर्द्रकुमार रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, प्र. वि. हुंडी : आर्द्रकुमार रास., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., (२६×११.५, १५x५२-५७). आर्द्रकुमार रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदि: सकल सुरासुर जेहना भावइ; अंति: दोलति गेहइ रे, ढाल - १९, गाथा - ३०१, ग्रं. ४५१. १०२६८४. (+) सदैववच्छलसावलिंगा वार्ता, अपूर्ण, वि. १८२४, पौष कृष्ण, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १३-१ (१)=१२, प्रले. मु. मोतीचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : सदै ० वात., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११.५, १३४३७). सदैवच्छसावलिंगा वार्ता, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: साभलो रोगसोग हुब नास, गाथा १३६, (पू.वि. गाथा १ अपूर्ण से है.) १०२६८५. (+#) बृहत्संग्रहणी का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १०-५ (१ से ५ ) =५, प्र. वि. हुंडी: संघणबालबो., संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६x११.५, १८-२१x६१-६६ ). ,י बृहत्संग्रहणी- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-) (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. गाथा- २३ से है व गाथा ६९ तक लिखा है. वि. मूल का प्रतीक पाठ लिखा है.) १०२६८६ (+#) आरंभसिद्धि, संपूर्ण, वि. १६५४, कार्तिक शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. २३, प्रले. मु. जयसागर (गुरु उपा. सहजसागर, तपागच्छ); गुपि उपा. सहजसागर (गुरु पा. विद्यासागर, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२६११.५, ११x४०-४४) आरंभसिद्धि, आ. उदयप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः ॐ नमः सकलारंभसिद्धि; अंति: प्रथयंति लक्ष्मीम्, विमर्श-५ श्लोक-४१३. प्र. ४६०. १०२६८८. पंचवर्गपरिहार नाममाला व अपवर्गपरिहार नाममाला, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, प्रले. श्राव. कका, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ५७८, जैदे., ( २६x११, १७x४९-५५). १. पे. नाम. पंचवर्गपरिहार नाममाला, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: पंचवर्ग०. नाम. आ. जिनभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: नत्वा पंचेषु पंचास्य शरभं; अंतिः चक्रेभिधानावलीम्, श्लोक-१३१. २. पे. नाम. अपवर्गपरिहार नाममाला, पू. ३अ ९आ, संपूर्ण. अपवर्ग परिहार नाममाला, आ. जिनभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि अपवर्गपदाध्यासितमपवर्ग अति ज्जिनभद्रसूरिमिमां कांड- ३, श्लोक-३५९. For Private and Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०२६९१ (+) जंबस्वामी चरित्र, संपूर्ण, वि. १९०९, वेदखंडनभनिधि, ?, कार्तिक कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ३३, ले.स्थल. विराटीया, प्रले. मु. ईसरदास ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:जंबुचरित, जंबुचरित्र. वर्ष हेतु दिये गये शब्द में वेद की जगह विधु होना चाहिए., संशोधित., दे., (२५४११.५, १७X४०). जंबुस्वामी चरित्र, मा.गु., पद्य, आदि: शारद पाय प्रणमुं सदा कविज; अंति: कहसो संसय नहीं पामी, ढाल-५०, गाथा-४२१. १०२६९२ (+#) शीयलनववाड ढाल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. हुंडी:नववाड०व्र., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १०४३०). शीयलनववाड ढाल, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रणमूं पंच परमेसरू; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१० गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) १०२६९३. (+#) खंडाजोयण द्वार जंबूद्वीप वर्णन, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ११-५(१ से ५)-६,प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२, १२४४०). खंडाजोयण द्वारविचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: दखण उत्तरकी नदी १४५६०९०, (पू.वि. समेरगिर पर्वत वर्णन अपूर्ण से है.) १०२६९४. चारप्रत्येकबुद्ध रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३-१०(१ से १०)=१३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११.५, १५४५४). ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-२ ढाल-१ से खंड-३ ढाल-१५ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) १०२६९५. अध्यात्म गीता सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११, १२४३०). अध्यात्म गीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमीयै विश्वहित; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४६ तक है.) अध्यात्म गीता-बालावबोध, म. कंअरविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८८२, आदि: एतलै प्रणमीयै कहितां; अंति: (-). १०२६९६.८ कर्म १५८ प्रकति विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११.५, ६४२५). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो ज्ञानावर्णी; अंति: (-), (पू.वि. प्रकृति-३ तिर्यंच आयुष्य बोल अपूर्ण तक है.) १०२६९७ (+) आलोयणा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. हुंडी:आलोयणा., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४४६). आलोयणा गाथा, मा.गु., प+ग., आदि: पंच परमेष्ठिदेवनो; अंति: मिच्छामि दुकडं मोय. १०२६९८. (+) शीलविषये तिलोक सुंदरी वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. हुंडी:तिलोक०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १७४५१). त्रैलोक्यसंदरी रास, म. सबलदास ऋषि, मा.ग., पद्य, वि. १८५२, आदि: विहरमान वीसे नमु; अंति: जिण घर लील विलासोरे, ढाल-१२. १०२६९९ (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४४५-४७). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६. १०२७०० (+) षष्टिशतक प्रकरण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८७१, आश्विन शुक्ल, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२५.५४१२, ९-१०-२४-३७). षष्ठिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., पद्य, आदि: अरहं देवो सुगुरु; अंति: नेमिचंद० जाणंतु जंतु शिवं, गाथा-१६१. षष्ठिशतक प्रकरण-अवचूरि*, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अर्हन्वीतराग शुद्ध; अंति: आराधका भवो जित्पर्थ. १०२७०१. नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदे., (२५४१२, ९४३३-३६). For Private and Personal Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४२. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलुं जीवतत्त्व १ बीजउं; अंति: श्रीजिनवचने हुइ ते प्रमाण. १०२००२ (+) दशवैकालिकसूत्र अध्ययन १ से ४, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ६ प्र. वि. संशोधित, जैदे (२६४१२, १६x३३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी आदि धम्मो मंगलमुक्कि अंति: (-), प्रतिपूर्ण, १०२७०३. (+) सूत्रकृतांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १५९३, कार्तिक शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ३४, पठ. मु. पइगू ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, "" प्र.वि. हुंडी:सूग०.सूत्रं०., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., ( २६११.५, ११-१४x२८-३४). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति: जंमहं भव तारो तिबेमि, अध्याय- २३, ग्रं. २१००. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०२००४. भाष्यत्रय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५. पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैये. (२६४१२, ४X३०-३८) וי भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., प+ग., वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: (-), (पू.वि. गुरुवंदन भाष्य गाथा - १८ अपूर्ण तक है.) " "" १०२००५. कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १७९ (१ से ९) = ८ जैदे. (२६.५४१२, ५३१). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि (-) अंति कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक - ४४, (पू.वि. श्लोक-२ के अंतिम पाठांश अपूर्ण से है.) १०२७०६. (+) नवतत्त्व व जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पणयुक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५X१२, ४- ७३५-४१). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: चउक्कं चउदस अब्भिंतरागंथी, गाथा-५३, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा- टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि जीवत अजीव पुन्यत पाप आश्र; अंति (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४८ तक टबार्थ लिखा है.) २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ६आ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २६ तक है.) जीवविचार प्रकरण-वार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: तीन भुवन रे विषइ पई अति (-). १०२७०७. स्तोत्र व स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५०-२१ (१ से ४, ७, ११ से २६) = २९, कुल पे. ३३, जैदे., (२६X१२, १३x४२). १. पे नाम. पंचप्रतिक्रमणसूत्र खरतरगच्छीय, पृ. ५अ-६अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि (-); अति करेमि काउस, (पू. वि. क्षेत्रदेवता स्तुति अपूर्ण से है.) २. पे नाम. पार्श्वनाथ स्तुति-नवखंडा, पृ. ६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति- विविध तीर्थमंडण, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: श्रीसेढीतटनी तटेपुरवरे; अंति: सदा ध्यायामि मानसेत्, गाथा-३. ३. पे नाम. १४ नियम गाथा श्रावक, पू. ६अ, संपूर्ण १४ आवकनियम गाथा, प्रा., पद्य, आदि सचित्त दव्व विगई वाहण; अंतिः दिसि न्हाण भत्तेसु, गाथा - १. ४. पे नाम. १३ काठिया गाथा, पृ. ६अ, संपूर्ण, प्रा., पद्य, आदि : आलस मोह अवन्ना थंभा; अंति: कतूहला२ रमणा १३, गाथा-१. ५. पे. नाम. जयतिहुअण स्तोत्र, पृ. ६ अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं, पे.वि. हुंडी : जयतिहु. आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख जय; अंति: अभयदेव विन्नवइ अणिंदिअ, गाधा-३०, (पू.वि. गाधा- २ अपूर्ण से गाथा २१ अपूर्ण तक नहीं है.) ६. पे नाम साधुवंदित्तूसूत्र, पृ. ८आ- १०आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: पगामसि For Private and Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि० पगाम सिज्झाए; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. ७. पे. नाम. वंदित्तुसूत्र, पृ. १०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:वंदित्तु. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ प्रारंभिक पाठांश अपूर्ण तक है.) ८. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. २७अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-४० अपूर्ण से है.) ९. पे. नाम. शांति स्तोत्र, पृ. २७अ-२७आ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतनिसंतं शांति; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. १०.पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. २७आ-३०अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:कल्याणमं. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. ११. पे. नाम. महावीर स्तोत्र, पृ. ३०अ-३१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:भावारिवार. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: विशदां दृष्टिं दयालो मयि, श्लोक-३०. १२. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३१आ-३३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:दुरियरय. दरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दरियरयसमीरं मोहपंकोहनीरं; अंति: सया पायप्पणामो तुह, गाथा-४४. १३. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ३३आ-३५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:जीवविचा. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. १४. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. ३५अ-३७अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नवतत्त्वः. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-५१. १५. पे. नाम. दंडक प्रकरण, पृ. ३७अ-३७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:दंडकटः. मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीस जिणे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) १६. पे. नाम. १० पच्चक्खाणसूत्र, पृ. ४६अ-४७अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: आगार४ एहि ज जाणिवा, (पू.वि. पोरसी पचक्खाणसूत्र अपूर्ण से १७. पे. नाम, आदिजिन स्तुति, पृ. ४७अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्री सेजमंडण आदिदेव; अंति: नंद० तुम्ह पाय सेवता, गाथा-४. १८. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. ४७अ-४७आ, संपूर्ण.. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. १९. पे. नाम, ग्यानपंचमी स्तुति, पृ. ४७आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमानंद; अंति: सा सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. २०. पे. नाम. लघ्वीस्त्रीछंदसि स्तुति, पृ. ४७आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: दद्यात्सौख्यम, श्लोक-१. २१. पे. नाम. अणोझा स्तुति, पृ. ४८अ, संपूर्ण.. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: यदंहिनमनादेव देहिन; अंति: नित्यमंगलेभ्यः, श्लोक-४. २२. पे. नाम. अष्टमीतप स्तुति, पृ. ४८अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै; अंति: सह संघवइ संति कल्लाणदाता, गाथा-४. २३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. ४८अ-४८आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोकं; अंति: पमज्जन शस्तनिजाघ, श्लोक-४. २४. पे. नाम. आदिजिन स्तुति-अर्बुदाचल, पृ. ४८आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तियहार सुतारगुणं; अंति: मम वाण सुहाण कुणेसु सया, गाथा-४. २५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ४८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंति: जयतु सा जिनशासनदेवता, श्लोक-४. २६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ४८आ-४९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञं ज्योति; अंति: बुद्धिं वृद्धिं वैदुष्यम्, श्लोक-४. २७. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. ४९अ, संपूर्ण... ___आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: युगादिपुरुषंद्राय युगादि; अंति: कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. २८. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. ४९अ-४९आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: ऋषभनाथभिनाथनिभानन; अंति: तनुभातनुभातनु भारती, श्लोक-४. २९. पे. नाम. मौनएकादशी स्तुति, पृ. ४९आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमिजिन; अंतिः सुखं विस्मितहृदः क्षितौ०, श्लोक-४. ३०. पे. नाम. सर्वजिन स्तुति, पृ. ४९आ-५०अ, संपूर्ण. पंचतीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशजयमुख्यतीर्थ; अंति: सुरास्ते संतु भद्रंकराः, श्लोक-४. ३१. पे. नाम. चौवीसजिन स्तुति, पृ. ५०अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरल कवल मुक्ताफल कुवलय; अंति: श्रुतदेवी श्रुतउच्चयं, श्लोक-४. ३२. पे. नाम. दीपमालिका स्तुति, पृ. ५०अ-५०आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: पापायां पुरि चारु; अंति: जिनचंद्र० क्रीडितं, श्लोक-४. ३३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, पृ. ५०आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: दें दें कि धप मप; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण तक है.) १०२७०८. (+#) योगशास्त्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:योगशास्त्र.बालावबोध., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, १९४५१-५४). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दर्वाररागादि; अंति: (-), (पू.वि. प्रकाश-१ श्लोक-५१ तक है.) योगशास्त्र-बालावबोध, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १५वी, आदि: नमो कहीइ नमस्कारहुउ; अंति: (-). १०२७०९. उपदेशमाला सह कथा व टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२६४१२, ८-१५४३५-४३). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३४ तक लिखा है.) उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: इहां साध्वीआष्टी विनय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., जीवदोष कथा अपूर्ण तक लिखा है.) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०२७१०. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५४१२, ११४२५-२९). त्रिषष्टिशलाकापरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: वीरस्यक्ष्यात्सुरोद्रुम, श्लोक-४२. १०२७११. जीवविचार व दंडक प्रकरण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२, ६४२९). For Private and Personal Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण, वि. १९३८, माघ शुक्ल, १४, प्रले. मु. ऋषभचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य वि. ११वी, आदि भुवणपईवं वीरं नमिऊण, अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. २. पे. नाम, दंडक प्रकरण, पृ. ७अ ७आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि नमिठ चउवीस जिणे अति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) १०२७१२. पाखीसूत्र व पाक्षिकखामणा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २, जैदे., (२५. ५X११.५, १३३४). १. पे नाम. पाखीसूत्र, पृ. १अ १२अ संपूर्ण वि. १८१७ वैशाख शुक्ल, २ ले स्थल सोदीती, प्रले. श्राव. फलराज, पे.वि. हुंडी पाखीसूत्र. 1 प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. आवश्यक सूत्र- साधु प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा पाक्षिकसूत्र व खामणासूत्र, प्रा., पद्य, आदि तित्थांकरिय तित्थे, अंतिः सूयां तेसां सुअसावरे भती २. पे. नाम. पाक्षिकखामणा, पृ. १२आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियां जां; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. १०२७१३. षड्दर्शन समुच्चय की लघुवृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैवे. (२६४१२, . १५X४३-४९). षड्दर्शन समुच्चय- लघुवृत्ति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., गद्य वि. १३९२, आदि सज्ज्ञानदर्पणतले; अंति: (-), (पू.वि. धर्मलक्षण दृष्टांत अपूर्ण तक है.) १०२७१४. (+) १४ गुणस्थनाक १९७ द्वार विचार, संपूर्ण वि. १९५५, आषाढ़ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३४, प्रले. आबामाडण खत्री, दत्त श्राव. शामरतनजी वकील गृही मु नानचंदजी स्वामी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : गुणस्थान, संशोधित. दे., (२५X११.५, १०-१७X२७-३०). " १९५ १४ गुणस्थानक १९७ द्वार विचार, मा.गु., प+ग., आदि: नाम१ लखण गुण२ ठिई३ किरिया; अंति: (-). १०२७१५. (+०) श्रीपालचरित्र चउपई, संपूर्ण, वि. १७३५, जीर्ण, पृ. ३७, ले. स्थल सरसापुर, प्रले. मु. कृपाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२६११, १८५७-६०). श्रीपालचरित्र चौपाई, मु. रामचंद मुनि, पुहिं, पद्य, आदि परम पुरुष सासन घणी महावीर, अंति कहइ ए श्रीसिंघकउ सुखकार. १०२०१६. (+) सामायिकाधिकारे चंद्रलेहा रास, संपूर्ण वि. १७४९, मध्यम, पृ. २६, प्रले. मु. प्रेमकुशल (गुरु ग. वृद्धिकुशल); गुपि. ग. वृद्धिकुशल (गुरु ग. वीरकुशल) ग. वीरकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: चंद्रलेहारास, टिप्पण युक्त विशेष पाठ.. जैदे., (२५X११.५, १६x३९-४२). चंद्रलेखा रास, मु.] मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८ आदि सरसति भगवति नमी करी; अति त्रिभुवनपति हुवे तेह, ढाल - २९, गाथा- ६२४. " १०२०१७. सनत्कुमारचक्रवर्ती रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. २१. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, जैदे. (२५.५X१२, १x२९). सनत्कुमारचक्रवर्ती रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३७, आदि प्रणमउं पारसनाथ वंछित अंति: (-), (पू.वि. ढाल ११ गाथा-८ अपूर्ण तक है.) १०२०१८. (+०) कल्पसूत्र, संपूर्ण वि. १६१९ भाद्रपद शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ६९, व्याप. ग. वीरविमल गणि (परंपरा आ. आनंदविमलसूरि, तपा० विमलशाखा); गुपि. आ. आनंदविमलसूरि (गुरु आ. हेमविमलसूरि, तपा० विमलशाखा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी कल्पसूत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x११, १x२९) " कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि नमो अरिहंताणं नमो अंति: भुज्जो उवदंसेइ तिबेमि, व्याख्यान- ९, ग्रं. १२१६. For Private and Personal Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०२७२५ (+#) नारचंद्र जैन ज्योतिष व यमघंटादि योगविचार श्लोक संग्रह, अपर्ण, वि. १८४४, मार्गशीर्ष शक्ल, ६ अधिकतिथि, जीर्ण, पृ. २५-१(१२)=२४, कुल पे. २, ले.स्थल. अहमदावाद, प्रले. मु. नित्यरंग, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ८x२०-२३). १.पे. नाम. नारचंद्र जैन ज्योतिष, पृ. १आ-२४आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: अर्हतजिनं नत्वा; अंति: षण्मासेमरणं ध्रुवम्, श्लोक-२९४, (पू.वि. वार वर्णन अपूर्ण से नक्षत्रतिथि वर्णन अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. यमघंटादि योग विचार श्लोक संग्रह, पृ. २४आ-२५आ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मघा अर्कवारे शशिनो विशाखा; अंति: (अपठनीय). १०२७२६. पाशाकेवली व आयंबिल पच्चक्खाण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८-१(१)=७, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १२-१५४२८-३२). १. पे. नाम. पाशाकेवली, पृ. २अ-८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. म. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: तया पाशकढालनम, श्लोक-१००, (पू.वि. श्लोक-२८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आयंबिल पच्चक्खाण, पृ. ८आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-हिस्सा आयंबिल पच्चक्खाण, प्रा., गद्य, आदि: उगे सूरे नमुकारसीयं; अंति: सवसमाइ० वोसीरे. १०२७२९. श्रीपतिपद्धति अध्याय १ से ३ की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२६४१२, १७-२४४५४-६१). जातककर्म पद्धति-वृत्ति, ग. सुमतिहर्ष, सं., गद्य, आदि: नोनय मनसा विश्वजननी; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. अंत में वारप्रवृत्ति श्लोक दिया है.) १०२७३१. (+) नंदीसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-१(२)=१२, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:नंदीसूत्र०., संशोधित., दे., (२५४११.५, १६x४६). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: (-), (पू.वि. स्थविरावली गाथा-२० अपूर्ण से सूत्र-३ अपूर्ण व सूत्र-५८ से नहीं है.) १०२७३२. (+#) नंदीसूत्र व लघुनंदीसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १६-१(२)=१५, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:नंदीपाठ., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, १५४४६). १. पे. नाम, नंदीसूत्र, पृ. १आ-१६आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: (अपठनीय); अंति: सेत्तं परोक्खणाणं, सूत्र-५७, गाथा-७००, (पू.वि. स्थविरावली की गाथा-१६ अपूर्ण से गाथा-५० तक नहीं है.) । २. पे. नाम. नंदीसूत्र-लघुनंदीसूत्र का अनुज्ञानंदीसूत्र, पृ. १६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. सूत्र-१ अपूर्ण तक है.) १०२७३३. (+) कल्पसूत्र की पीठिका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १०४४१). कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हत भगवंत उत्पन्न; अंति: सगले लोके सांभलिवउ. १०२७३७. (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४४६). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), (पू.वि. कांड-३ श्लोक-३४७ अपूर्ण तक है.) १०२७३८. (+) दशवैकालिकसूत्र-अध्ययन १ से ४ व उत्तराध्ययन-अध्ययन ३६, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १८-४(१ से ४)=१४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १४४३७). १. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र-अध्ययन १ से ४, पृ. ५अ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. अध्ययन-२ गाथा-१ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ २. पे. नाम. उत्तराध्ययन-अध्ययन ३६, पृ. ९आ-१८आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सम्मए त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण. १०२७३९ (+) वीरथुई अज्झयण, महावीरजिन स्तुति व नमीपवज्जा अज्झयण, संपूर्ण, वि. १९६६, पौष शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्रले. श्राव. गिरधरलाल वोरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, १६x४४). १.पे. नाम. वीरथुई अज्झयण, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:वीरस्तुति. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. २. पे. नाम, महावीरजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमुलं; अंति: श्रीजंबूस्वामी जाणिये, गाथा-८. ३. पे. नाम. नमिपव्वजा अज्झयण, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नमीराय०. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०२७४० (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-३(२ से ३,५)=८, प्र.वि. हुंडी:नवतत्त्व., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १९४५६). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: परियट्टो चेव संसारो, गाथा-२७, (पू.वि. गाथा-४ से ९ नहीं व बीच की कुछ गाथाएँ नहीं हैं.) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: यथा यथास्थित साचउं; अंति: जिमाहि मोक्षइ जाइ. १०२७४३. (#) देवसूरि निर्वाण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७५३, मध्यम, पृ. ५,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ९४३४). देवसूरि निर्वाण सज्झाय, मु. अमरसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१३, आदि: सासन नायक वीरजिणंद पायनमी; अंति: अमरसागर० गुरु गाया रे, ढाल-८, गाथा-६४. १०२७४४. (+) २४ ठाणा विचार, संपूर्ण, वि. १८८८, आश्विन शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ.५, ले.स्थल. जोधपुर, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, २४४६०). २४ ठाणा विचार, मा.गु., प+ग., आदि: गइ इंद्रि काय जोग; अंति: सरीर२ तेज कार्म हेतु. १०२७४५ (-#) अनुयोगद्वार-२१ बोल अधिकार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४११.५, १०४२७). अनुयोगद्वारसूत्र-२१ बोल अधिकार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलै बोलै नय ७ दुजै; अंति: (-), (पू.वि. रूपी-अरूपी भांगा वर्णन तक है.) १०२७४६. स्नात्र पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११.५, ११४२७). स्नात्र पूजा, आ. मंगलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १३वी, आदि: पूर्वे बाजोठ उपरि पूजी; अंति: (-), (पू.वि. लुणपाणी विधि तक है.) १०२७४७. (#) पंचप्रतिक्रमणादि सूत्राचार गच्छाचार भेददर्शक सिद्धांतविचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, २१४५६). आवश्यकसूत्र-पंचप्रतिक्रमणादि सूत्राचार गच्छाचार भेददर्शक सिद्धांतविचार संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: श्रीउत्तराध्ययने २६ साधु; अंति: (-), (पू.वि. सम्यग्दृष्टि विचार अपूर्ण तक है.) १०२७४९ (+#) प्रमेयरत्नकोष, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३७-८(१ से ८)=२९, प्रले. मु. लावण्यसागर (गुरु ग. नेमसागर); गुपि. ग. नेमसागर; पठ. ग. कीर्तिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:प्रमेयरत्नकोश., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १४४३३-४२). प्रमेयरत्नकोष, आ. चंद्रप्रभसूरि, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: षट प्रमाणानि जैमिनेः, अध्याय-२१, (पू.वि. सप्तभंगी वर्णन अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०२७५१ (+#) प्रश्नव्याकरणसूत्र, संपूर्ण, वि. १७८८, वैशाख शुक्ल, ७, रविवार, मध्यम, पृ. ३५, प्रले. मु. नयणसागर (गुरु ग. लालसागर); गुपि. ग. लालसागर (गुरु पं. गंगसागर गणि); पं. गंगसागर गणि (गुरु पं. मतिसागर गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:प्रश्नव्याक०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (५६) यादृशं पुस्तकं दष्टं जैदे. (२६.५x१२, १५४४४). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० अण्हय संवर; अंतिः शरीरधरे भविस्सत्तीति, अध्याय- १०, गाथा - १२५०, ग्रं. १३००. १०२७५३. (+) स्तुति व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८३८, वैशाख शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. १३-५ (१ से ५) = ८, कुल पे. २०, ले.स्थल. जेसलमेर, प्र.वि. हुंडी: स्तुतिपत्र. अबरखयुक्त स्याही से लिखा हुआ., संशोधित., जैदे., (२४.५X१२, १६x४३). १. पे. नाम. रात्रिसंधारक गाथा, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा - १९, (पू. वि. गाथा - १४ अपूर्ण से है.) २. पे नाम बीजतिथि स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रा. पद्य, आदि महीमंडणं पुन्नसोवन्नः अति देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. " ३. पे नाम. पंचमीतिथि स्तुति, पृ. ६अ ६आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: पंचानंतकसुप्रपंचपरमानंद, अंति: सा सिद्धायिका त्रायिका, श्लोक-४. ४. पे नाम अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै; अंति: संति विह संति कल्याणदाता, गाथा-४. ५. पे नाम. एकादशीतिथि स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण, मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि अरस्य प्रव्रज्या नमिजिन; अंति विदधति सुखं विस्मत हृदः श्लोक-४. ६. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पू. ६आ-७अ, संपूर्ण, पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंति: जयतु सा जिनशासनदेवता, श्लोक-४. ७. पे नाम. अर्बुदाचल स्तुति, पृ. ७अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तियहार सुतारगुणं; अंति: सुहाणि कुणेसु सया, गाथा-४. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ७अ संपूर्ण सं., पद्य, आदि हर्षनतासुरनिर्जरलोकं, अति तीर्थपमज्जनशस्तनिजाघः श्लोक-४. ९. पे नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. ७अ, संपूर्ण, 1 आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुंजयमंडण आदिदेव अंति निह० पाय सेवता, गाथा ४. १०. पे. नाम. वर्द्धमानजिन स्तुति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः यदंहिनमनादेव देहिन; अंतिः जनानवतु नित्यममंगलेभ्यः, श्लोक-४. ११. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः युगादिपुरुषेंद्राय युगादि अति कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. १२. पे नाम. पर्जुषणा स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण. पर्युषण पर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि वली वली हुं ध्यावु अंति: कहै जिनलाभसूरिंद, गाथा-४. १३. पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. मु. भीमराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनशासन भविक विभासन; अंति: पांमीजै भवपारो जी, गाथा-४. १४. पे. नाम. बीस विहरमानजिन स्तुति, पृ. ८अ संपूर्ण. " २० विहरमानजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि पंचविदेह विषय विहरंता बीस, अंतिः तिहुअण जण मनबंछित सारे, गाथा-४. १५. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. ८अ संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं अति अंबा देवी दद्यात्सौख्यं, श्लोक १. For Private and Personal Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १९९ १६. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ८अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: बालपणै डाबै पाय; अंति: मेलइ मुगति साथ, गाथा-४. १७. पे. नाम. उपदेशमाला सज्झाय, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:जगचूडामणि. ___पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: उप्पन्नं केवलं नाणं, गाथा-३३. १८. पे. नाम. पवज्जाविहाणं, पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:संसारवि. प्रव्रज्या कलक, प्रा., पद्य, आदि: संसार विसमसायर भवजल; अंति: तरंति ते भवसलिलरासिं, गाथा-३४. १९. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमण सूत्र, पृ. १०आ-१२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पगामसिज्झा. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. २०. पे. नाम, स्थंभणपार्श्वनाथ नमस्कार, पृ. १२अ-१३आ, संपूर्ण. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख जय; अंति: सिरिअभयदेव विनवइ आणंदिय, गाथा-३०. १०२७५४. (+#) पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०-४(१ से ४)=६, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:पाखीसुत्र., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२, १०-१३४२४-२९). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-३ अपूर्ण से ६ अपूर्ण तक है.) १०२७५५. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९७, प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्र., संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, ६-१८४३१-३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० पढमं; अंति: अज्झयणं सम्मत्तं, व्याख्यान-९, (संपूर्ण, ले.स्थल. सीरदार, प्रले. सा. लाकूनणी, प्र.ले.पु. सामान्य) कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतजीने नमस्कार हवओ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम वाचना तक लिखा है.) कल्पसूत्र-बालावबोध , मा.गु.,रा., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानं जिनं नत्वा; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., वाचना-९ के बालावबोध अपूर्ण तक है.) १०२७५६. (+) दशवकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९४०, भाद्रपद कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, १६४३८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपणागमं गइ त्तिबेमि, अध्ययन-१० चूलिका-२. १०२७५७. (+) दंडकप्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. हंडी:दंडकना., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ३४३०). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चौवीस जिणे; अंति: एसा विन्नत्ति अप्पहीआ, गाथा-४४. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करुं छु श्रीऋषभ; अंतिः हितने काजे लिखी छे. १०२७५८. बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-३(१ से ३)=९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४४१२, १४४४०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५६ अपूर्ण से २७० अपूर्ण तक _है.) १०२७५९ (+#) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१२, ८४३१). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से ५२ अपूर्ण तक है.) १०२७६० (4) दशवैकालिकसूत्र-अध्ययन १ से ४ व ५वे अध्ययन का मात्र उद्देशक १ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, ६४२८). For Private and Personal Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: धर्मरूपीओ मंगलिक; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-२ गाथा-३ अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) १०२७६१. प्रज्ञापनासूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४७-२०(१ से १७,२३,२९,३६)=२७, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:पन्नवणा. पत्रांक मात्र-१९ से ४७ तक ही लिखा है, इसके बाद पत्रांक का उल्लेख नहीं है. पत्रानुक्रम अस्तव्यस्त होने से पाठानुसंधान क्रमशः नहीं है. कुल उपलब्ध पत्र-४४., दे., (२५४११.५, १२-१५४४०-४५). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. पद-१ सूत्र-१५० अपूर्ण से पद-२, पद-१७ अपूर्ण से २० अपूर्ण तक है. बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) १०२७६२. (+) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, ६४३०). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ आनंद श्रावक "रस"पच्चक्खाणसूत्र अपूर्ण तक है.) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, म. हर्षवल्लभ, मा.गु., गद्य, वि. १६९३, आदि: तेणे काले चउथा आरा; अंति: (-). १०२७६३. (+) नंदीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-९(१ से ६,८ से १०)=१५, प्र.वि. हुंडी:नंदीसूत्र., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १६४३५). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: से त्तं परोक्खणाणं, सूत्र-५७, गाथा-७००, (पू.वि. सूत्र-८१ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०२७६४. (+#) शीलोपदेशमाला सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२८, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ५००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १४-१८४३९-५१). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबंभयारि नेमि; अंति: धम्ममहाभवणधिरबंभं, कथा-४३, गाथा-११५. शीलोपदेशमाला-बालावबोध+कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५५१, आदि: आबाल ब्रह्मचारी आजन; अंति: ___सकल सुखनइं भाजन हुआ, ग्रं. ६२५०. १०२७६५ (+) समवायांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२०-३१(७८ से १०५,१०७,११७ से ११८)-८९, प्रले. मु. श्रीचंद (गुरु ग. कुशलहेम पंडित); गुपि. ग. कुशलहेम पंडित (गुरु ग. जयलाभ); ग. जयलाभ (गुरु ग. महिमाकुमार); ग. महिमाकुमार (गुरु उपा. कीर्ति गणि); उपा. कीर्ति गणि,प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१२, ३-६४४१-४५). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सुयमे आउसं तेणं भगवय; अंति: अज्झयणं त्तिबेमि, अध्ययन-१०३, सूत्र-१५९, ग्रं. १६६७, (वि. १८१२, कार्तिक कृष्ण, १२, रविवार, प.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं., ले.स्थल. भुज नगर) समवायांगसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., गद्य, वि. १७उ, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंति: अर्थे जंबू प्रतइं कह्यौ, ग्रं. ६०००, (वि. १८१२, फाल्गुन शुक्ल, १४, प्र.ले.श्लो. (१४१३) मंगलं लेखकानांतु, वि. श्रीगौडीरायजी प्रसादात्.) १०२७६६. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ८४-६१(१ से २,५ से १४,१६,१८ से १९,२१ से २५,२७ से ३२,३४ से ३९,४५ से ४९,५१ से ५९,६१,६३ से ६४,६७,७० से ७१,७४ से ८०,८२ से ८३)=२३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५, ६-१३४४३-५४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. महावीरजिन चरित्र अपर्ण से पार्श्वजिन चरित्र अपूर्ण तक है बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०२७६७. (+) जिनप्रतिमापूजासिद्धि विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १६x४४-५१). जिनप्रतिमापूजासिद्धि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसिद्धांतनइ अनुसारि; अंति: तेहनइ अर्थि वेयावच्च करइ. १०२७६८. (+-#) देवसीराइअप्रतिक्रमण, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २३, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:आवसग., अशुद्ध पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ७-१७४३०). देवसीराइअप्रतिक्रमणसूत्र *, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: परथम गुरु साहमा; अंति: (-), (पू.वि. वंदित्तुसूत्र गाथा-४२ ___ अपूर्ण तक है.) १०२७६९ (+) नारचंद्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६-१(१०)=३५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ५४४०). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: अहँतजिनं नत्वा; अंति: भयं विद्यां फाल्गुने च, श्लोक-३२०, (पू.वि. श्लोक-६२ अपूर्ण से ७१ अपूर्ण तक नहीं है.) १०२७७० (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८९-२५(१ से ६,११,५४ से ७१)=६४, प्र.वि. संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११.५, ४-१६x४४-५१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., देवानंदा ब्राह्मणी की कुक्षि में महावीर स्वामी के अवतरित होने का वर्णन अपूर्ण से १४ स्वप्न देखने का वर्णन अपूर्ण तक, महावीर जन्मकल्याणक वर्णन अपूर्ण से जन्मकल्याणक समारोह में देवताओं के आगमन का वर्णन अपूर्ण तक व भगवान की दीक्षा के उपरांत विचरण का वर्णन अपूर्ण से नहीं हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणइ कालि जे अवसर्पि; अंति: (-), प.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. कल्पसूत्र-बालावबोध , मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., नागकेतु कथा अपूर्ण पाठ-"पोषधदेवपूजाधि धर्म० तत्पर सन्" से है.) १०२७७१. भाष्यत्रय, अपूर्ण, वि. १८६३, कार्तिक शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १७-६(१ से ६)=११, ले.स्थल. जगत्वारणी, प्रले. मु. प्रतापविजय (गुरु मु. प्रमोदविजय); गुपि. मु. प्रमोदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, ६४३१-३८). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., प+ग., वि. १४वी, आदिः (-); अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३, (पू.वि. चैत्यवंदन ___भाष्य गाथा-५५ अपूर्ण से है., वि. अंत में कुछ गाथाएँ दी हुई हैं.)। १०२७७२. (+#) नवस्मरण व लघुशांति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१(२)=१०, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १२४३३). १.पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १अ-११आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: (-), (पू.वि. संतिकर स्तोत्र गाथा-१२ अपूर्ण से भयहर स्तोत्र गाथा-४ अपूर्ण तक व बृहच्छांति गाथा-२ अपूर्ण से नहीं है.) २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. ११आ, संपूर्ण, पे.वि. वस्तुतः यह कृति पत्रांक-१० से ११आ तक है. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९. १०२७७३. उत्तराध्ययनसत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. १०३-५५(१ से ५५)-४८, प.वि. बीच के पत्र हैं.. दे.. (२६.५४१२,५-२१४४१-५२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. अध्ययन-११ गाथा-२ अपूर्ण से अध्ययन-१९ गाथा-२ तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०२७७४.(+) कल्पसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८८८, चैत्र शुक्ल, ६, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २०८, ले.स्थल. ठुकरीयासर, पठ. पं. गोधु (गुरु पंन्या. ऋद्धिसागर); प्रले. पंन्या. ऋद्धिसागर; राज्यकाल रा. रतनसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:बालाबोध., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १३४३२-३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: संडिल्ले थेरे अंतेवासी, व्याख्यान-९. For Private and Personal Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, वि. १६८०, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: तापसे सपरिवार दीक्षा लीधी. १०२७७५. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह सुखबोधा टीका, अपूर्ण, वि. १६३४, माघ कृष्ण, ५, रविवार, मध्यम, पृ. २८७-६०(१ से ६०)=२२७, पठ. ग. विनयहर्ष; मु. हेमहंस पं (गुरु उपा. ज्ञानसार, खरतरगच्छ); गुपि. उपा. ज्ञानसार (गुरु उपा. धवलचंद्र, खरतरगच्छ); उपा. धवलचंद्र (गुरु ग. मतिसागर, खरतरगच्छ); ग. मतिसागर (परंपरा आ. सागरचंद्रसूरि, खरतरगच्छ); आ. सागरचंद्रसूरि (गुरु गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि, खरतरगच्छ); राज्ये गच्छाधिपति जिनचंद्रसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १५४५१-५६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: भवसिद्धिय संवुडे, अध्ययन-३६, (पू.वि. अध्ययन-३ अपूर्ण से है.) उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदि: (-); अंति: वृत्तेरस्या विनिश्चितम्, ग्रं. १४०००. १०२७७७. (#) नवपद चैत्यवंदन, स्तुति, स्तवनसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १०४४२). नवपदचैत्यवंदनस्तुतिस्तवन संग्रह, उपा. चारित्रनंदि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंत नाणदंसण; अंति: नचंदसूरिसर खरतरपति सुपसाय, गाथा-९७. १०२७७८.(+) वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११.५, १०४२८). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिह; अंति: (अपठनीय), (वि. चिपके पत्र होने से अंतिम वाक्य नहीं भरा गया है.) १०२७७९. भुवनभानुकेवली चरित्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५४११, १२४४०-५०). भुवनभानुकेवली चरित्र-बालावबोध, मु. हरिकलश, मा.गु., गद्य, आदि: सिरिवीरं नमीअ जिणं; अंति: (-), (पू.वि. समूर्च्छिम मनुष्यजीव अवतार वर्णन अपूर्ण तक है.) १०२७८०. भाष्यत्रय व वीस विहरमान चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-४(१ से ४)=६, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, १६४३६). १. पे. नाम. भाष्यत्रय, पृ. ५अ-१०आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८६७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, शुक्रवार, ले.स्थल. आयुपुरनगर, प्रले. पं. देवेंद्रसागर (गुरु पं. फतेंद्रविजय); गुपि.पं. फतेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., प+ग., वि. १४वी, आदि: (-); अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३, (पू.वि. देववंदन भाष्य गाथा-७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. विहरमान चैत्यवंदन, पृ. १०आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: द्वीपेत्र सीमंधर तं नमामि; अंति: पातु युष्मान् जिनेश्वराः, श्लोक-७. १०२७८१. (+) उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १७१४, कार्तिक शुक्ल, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. ११६-१९(१ से ९,८६ से ९५)=९७, प्रले. ग. तिलकप्रमोद (गुरु ग. विजयतिलक, खरतरगच्छ-क्षेमशाखा); गुपि.ग. विजयतिलक (गुरु उपा. जयसोम, खरतरगच्छ-क्षेमशाखा); उपा. जयसोम (खरतरगच्छ-क्षेमशाखा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उत्तराध्येनटीका., संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४४०-४५). उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह, पंन्या. पद्मसागर, सं., गद्य, वि. १६५७, आदि: (-); अंति: पद्मसागरैः०संत्विमाः, कथा-२४, (पू.वि. परीषह अध्ययन-२ स्थूलभद्र कथा अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं., वि. मूल का प्रतीक पाठ लिखा गया है.) १०२७८२ (+) श्रीपाल रास-खंड १ से ३, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, १७४४४). For Private and Personal Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ २०३ श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०२७८३. (+) प्रबोधचिंतामणि, संपूर्ण, वि. १७६७, चैत्र कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. ३५, ले.स्थल. पाटण, प्रले. म. वेलजी (गुरु मु. उत्तमचंदजी); गुपि. मु. उत्तमचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:प्रबोधचिंतामणि, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७.५४१२, १९४५६). प्रबोधचिंतामणि, आ. जयशेखरसरि, सं., पद्य, वि. १४६२, आदि: चिदानंदमयं वंदे निःसंदेह; अंति: प्रबोधचिंतामणिमकार्षीत्, अधिकार-७, श्लोक-१९८८. १०२७८५ (+#) दशवैकालिकसूत्र की नियुक्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल __ पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११, १५४३६-४०). दशवैकालिकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धिगइमुवगयाणं; अंति: कधणा य वियालणा संघे, गाथा-४४४. १०२७८६. (+) योगचिंतामणि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४९-३९(१ से ३६,४० से ४१,४८)=१०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६४११.५, १७४३६-३९). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., घृताधिकार अपूर्ण से तैलाधिकार तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) १०२७८७. (+) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-पर्व ८ नेमिजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १३६+१(८८)=१३७, प्र.वि. हुंडी:नेमि चरित्र. वि. १४७० में लिखी प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, ११४४५). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र का हिस्सा पर्व-८ नेमिजिन चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: नमो विश्वनाथाय जन्मत; अंति: विस्मयाय त्रिलोक्यम्, सर्ग-१२, ग्रं. ४७८८. १०२७८८. (+#) सुमित्रराजा चौपाई-आहार दान, अपूर्ण, वि. १६३०, फाल्गुन शुक्ल, १, सोमवार, मध्यम, पृ. १६-११(१ से ११)=५, प्रले. वा. देवकीर्ति (मलधारगच्छ), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सुमित्र चउपई., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १२४४३). सुमित्रकुमार चौपाई, ग. धर्मसमुद्र वाचक, मा.गु., पद्य, वि. १५६७, आदि: (-); अंति: तणउं सुणिजो श्रद्धावंत, ___ गाथा-४२९, (पू.वि. गाथा-२८७ अपूर्ण से है.) १०२७८९ (+) त्रैलोक्यदीपिका व स्तति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १६x४७). १.पे. नाम. त्रैलोक्यदीपिका, पृ. १अ-९अ, संपूर्ण, वि. १७०६, प्रले. पं. कृष्णविमल, प्र.ले.पु. सामान्य. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३१९. २. पे. नाम. लघुपंचमी स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: समुद्रभूपालकुलप्रदीपः; अंति: देवी जगतः किलांबा, श्लोक-४. ३. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-पूर्णिमा, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, सं., पद्य, आदि: यां चक्रे भरतः स्वदर्शन; अंति: सुखकर पुण्याब्धि चंद्रोदय, श्लोक-४. ४. पे. नाम. ऋषभनाथ स्तति, पृ. ९आ, संपूर्ण... आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: आनंदानम्रकम्रत्रिदशपति; अंति: भवतां विघ्नमर्दी कपर्दी, श्लोक-४. १०२७९० (+) पच्चक्खाण स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. उमयापुर, अन्य. मु. प्रमोदसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४१२, १३४३२). १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमुं; अंति: रामचंद्र तपविधि भणे, ढाल-३, गाथा-३४. For Private and Personal Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०२७९२. कमरेखाभावनी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४३-९(१ से ९)=३४, जैदे., (२७४११, ११४३७). भाविनीकमरेखा चौपाई, मु. रामदास ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वहु पामै रे ऋषि रामदास, ढाल-३५ खंड ३, गाथा-८६७, (पू.वि. खंड-१ ढाल-६ गाथा-१० अपूर्ण से है.) १०२७९३. (+#) स्तूति, पद व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-७(१ से ७)=६, कुल पे. १८,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, २१४५१). १.पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ.८अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन स्तवन-शामला, मु. ज्ञानविमल, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: प्रभु पद अरबिंदा, गाथा-६, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., पद्य, आदि: अंखीयां हरखण लागी; अंति: भव भय भावठ भांगी, गाथा-४. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ८अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन-अध्यात्मगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मेरा साहिब सुगुण; अंति: ज्ञानविमल. गुण तब आया, गाथा-९. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गोडीचो प्रभु गाजै कलियुगि; अंति: ज्ञानविमल० सुखरि निवाजै, गाथा-४. ५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ८आ, संपूर्ण. साधारणजिन गीत, म. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जिनराज सुणौ मोहि वीन; अंति: इम कहे ज्ञानविमल यती, गाथा-५. ६. पे. नाम. सिद्धचक्र गीत, पृ. ८आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तवन, म. नयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र आराहीइ जिम; अंति: हो कहे नय कविराज के, गाथा-७. ७. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ९अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, आदि: बापडला रे पातिकडा; अंति: बांहि ग्रहिने रे, गाथा-८. ८. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, म. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: बलिजाउं श्रीमहावीर; अंति: भु भवजल तीर सुधीर की, गाथा-५. ९. पे. नाम, अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आवो आवोने राज श्रीअर; अंति: सकल संघ सुख करीइं, गाथा-७. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-नारंगामंडन, म. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: आंगी अजब बनी छे आजे; अंति: मे मंगल कमला वरीए रे, गाथा-९. ११. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ पद, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, गु., पद्य, आदि: सिद्धाचलनो वासी प्या; अंति: बोले आ भव पार उतारो, गाथा-६. १२. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १०अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिणंदा वहे दिन कयु; अंति: ण० अरियण दूर निवारे, गाथा-५. १३. पे. नाम. १४ पूर्व सज्झाय, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, आदि: चौद पूर्वधर भक्ति करीजे; अंति: तो सवी अरियण जीपइ रे, गाथा-१७. १४. पे. नाम. राइ प्रतिक्रमणविधि सज्झाय, पृ. १०आ-११आ, संपूर्ण. संबद्ध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वस्तु प्रथम जागि; अंति: शिष्य लहे नयविमलजगीश, गाथा-२६. १५. पे. नाम. देवसिप्रतिक्रमणविधि सज्झाय, प. ११आ-१२अ, संपूर्ण. . For Private and Personal Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ संबद्ध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरु गणधर पाय प्रण; अंति: धि होय भवि जेह सुणंत, गाथा-२२. १६. पे. नाम, शांतिजिन स्तवन, पृ. १२अ-१३आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: शांतिजिणेसर अरचित जग; अंति: वाचक जसविजय सिरि लही, ढाल-६, गाथा-४८. १७. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १३आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-जिनभक्ति, मा.गु., पद्य, आदि: हुं विरही निज रूप; अंति: आतमराम को आनंदउ भावै, गाथा-३. १८. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १३आ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी धाकी जी मूरति; अंति: राखोनें चरणानी पास, गाथा-६. १०२७९४. (+) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.७४-५५(१,४ से ५०,५३ से ५४,५६,६७,७१ से ७३)=१९, प्र.वि. हुंडी:श्रीपालरास., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४१२, ११४३५). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., खंड-१ ढाल-१ गाथा-८ अपूर्ण से ढाल-२ गाथा-३८ अपूर्ण तक, खंड-३ ढाल-८ गाथा-८७८ अपूर्ण से खंड-४ ढाल-१ गाथा-९ अपूर्ण तक, खंड-४ ढाल-३ गाथा-४८ अपूर्ण से गाथा-६२ अपूर्ण तक, ढाल-४ गाथा-७७ अपूर्ण से ढाल-८ गाथा-२१ अपूर्ण तक व ढाल-१० गाथा-३९ से ढाल-११ गाथा-५८ अपूर्ण तक १०२७९६ (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९६, पौष शुक्ल, १४, मंगलवार, मध्यम, पृ. ७८, ले.स्थल. सथाणानगर, प्रले. पं. उमेदसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ६४३८-४८). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर; अंति: सरीरधरे भविस्सइति, अध्याय-१०, गाथा-१२५०, ग्रं. १३००. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अहो जंबू ए प्रत्यक्ष; अंति: शरीरनो धारणहार हुस्यइ इम. १०२८००. बंधस्वामित्व व षड्शीति कर्मग्रंथ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. ग. सुमतिसार; गुपि. मु. आणंदरंग; मु. नयकलश; मु. हर्षविजय; ग. धनराज (गुरु उपा. कल्याणतिलक); उपा. कल्याणतिलक; पठ. श्रावि. पद्माइ, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. पत्रांक नहीं लिखे होने के कारण गिनकर पत्रांक लिखे गए हैं., जैदे., (२५४११, १२४४०-४४). १. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२४. २. पे. नाम. षड्शीति नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ३अ-५आ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. १०२८०१ (+) भगवतीसत्र-टीका का पंचनिग्रंथी प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६०५, आश्विन, ३, श्रेष्ठ, प. १०, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं. ४६०, जैदे., (२६४११, ९४२०-२५). भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा पंचनिग्रंथी प्रकरण, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. ११२८, आदि: पन्नवण वेय रागे कप्प; अंति: रइया भावत्थसरणत्थं, गाथा-१०९. भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा पंचनिग्रंथी प्रकरण का बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: नमिय सिरवद्वमाणं भवि; अंति: मेरुसुंदरस्तुष्ट्यै. १०२८०२. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११, ९४३७). १. पे. नाम. मुहपतिपडीलेहण सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मुहपत्तिबोल सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर करि जुहार; अंति: मेरुविजय तस नामे सीस, गाथा-११. २. पे. नाम. सामायकदोष बत्रीस सज्झाय, पृ.१आ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २०६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सामायिक ३२ दोष सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि धुरि गौतमनुं लीजें नाम अति मुनि मेरु धरीय जगीस, गाथा-८. ३. पे. नाम. चंदनबाला सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. चंदनबालासती सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., पद्य, आदि चंदनबाला बारणइ रे; अंति भणे रायचंद० लहसे लीलानंद, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - ६. ४. पे. नाम. वैमानिकजिन स्तवन, पृ. २आ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. नेमीविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७७, आदि: सुखदाई रे रिसह जिणंद, अंति: (-), (पू.वि. ढाल - २ गाथा-४ अपूर्ण त है.) १०२८०३. (+) सुरसुंदरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १८३२, फाल्गुन कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १४, ले. स्थल. वाघावास, प्रले. मु. रामचंद ऋषि (गुरु मु. जीवणदास ऋषि); गुपि. मु. जीवणदास ऋषि (गुरु मु. जसराजजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ( २६.५X११.५, १७५७-६०). सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सासण जेहनो सलहीये परतिख; अंति: आणंद लील उमंगे जी, खंड-४ ढाल ४०. १०२८०४. (+) स्नात्रपूजा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. संशोधित, जैवे (२७४११, १०x४०) स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी आदि चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंति: देववचंद० सूत्र मझार, ढाल ८, गाथा - ५६. १०२८०५ (+#) आषाढाभूतिमुनि प्रबंध-मायापिंडग्रहणभावनाविषये, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र. वि. हुंडी : आषाढभूत., आषाढभूतचुपइ., संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५x११, १४४४०-४४) आषाढा भूतिमुनि प्रबंध - मायापिंडग्रहणे, मु. साधुकीर्ति, पुहिं., पद्य, वि. १६२४, आदि सुखनिधानु जिनवरु मनि अंतिः साधुकीरति० सुणता आनंद, गाधा १८३. १०२८०६. खंडाजोयण १० द्वार विचार व जंबूद्वीपक्षेत्रमान विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. सारंगपुर, प्र. वि. हुंडी खंधाजोवन, जैवे. (२७४११.५, १२-१५X३२-४२). १. पे. नाम. खंडाजोयण १० द्वार विचार, पृ. १अ - ५अ, संपूर्ण. लघुसंग्रहणी-१० द्वार विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: खंडा जोयण वासा पव्वय; अंति : ८० हजार ४५० नदी छे. २. पे नाम. जंबूद्वीप क्षेत्रमान विचार, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण मा.गु., गद्य, आदि: चंदरमाना १५ मांडला छे ते अति: अरघ जंबूदीपनतानो छे. १०२८०८. (A) पर्युषणपर्व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४११, १७३९-४२). पर्युषणपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: तथा अस्मिन् प्रस्तावे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मृगावती कथा तक लिखा है.) १०२८०९ (+#) आचारांगसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी : आचा०वृह., आचा०वृत्ति., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. . मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७X१०.५, १५x५१-६०). आचारांगसूत्र- टीका # आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य वि. ९९८ आदि जयति समस्तवस्तु अंति: (-), (पू.वि. श्रुत स्कन्ध-१ अध्ययन-२ उदेशक ४ 'आसं च छन्दं च' सूत्र की टीका अपूर्ण तक है., वि. मूल व नियुक्ति का प्रतीक पाठ दिया है.) " १०२८१० (+) विक्रमसेन चौपाई, अपूर्ण, वि. १८३२ आश्विन शुक्ल, १५, शनिवार, मध्यम, पू. ५५-४० (१ से ३८, ५१ से ५२) = १५, ले. स्थल. टांपीगाम, प्रले. मु. भाणजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात, संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४१२, १४४४० ). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अंति: परमसागर आणंदा रे, ढाल-६४, (पू.वि. ढाल ४२ गाथा- २ अपूर्ण से ढाल ५९ गाथा ३ अपूर्ण तक व ढाल ६० दूहा १ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ २०७ १०२८११ (+) नवपदगुण व आत्मगीता, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ.७, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११,१६४३६). १. पे. नाम. नवपदगुण, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. नवपद खमासणा विधि, सं., गद्य, आदि: स्वर्ण सिंघासन स्थित: अंति: उत्सर्ग तपस्ये नमः. २.पे. नाम. आत्मगीता, पृ. ४आ-७आ, संपूर्ण.. अध्यात्म गीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमीइ विश्वहित जैन; अंति: रंगी मुनि सुप्रतीता, गाथा-४८. १०२८१३. (+) सिंहासनबत्रीसी चौपाई-दानाधिकारे, अपूर्ण, वि. १७८५, वैशाख कृष्ण, १०, रविवार, मध्यम, पृ. ५१-४४(१ से ७,९ से ४५)=७, ले.स्थल. थिराग्राम, प्रले. पं. नायकविजय गणि (गुरु ग. कांतिविजय); गुपि. ग. कांतिविजय (गुरु पं. दर्शनविजय); पं. दर्शनविजय; पठ. मु. प्रमोदविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:सिंहासण., सिंहासणि., सिंहासणिबत्रीसीराशि. श्रीपार्श्वदेव प्रसादेन., संशोधित. कुल ग्रं. २२४६, प्र.ले.श्लो. (९५८) यादृशं पुस्तिकां दृष्ट्वा, (१४०४) भग्न पृष्टि कटि ग्रीवा, जैदे., (२७४११.५, १७४४५). सिंहासनबत्रीसी चौपाई-दानाधिकारे, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: (-); अंति: ऋद्धि पामै बहु परै, कथा-३२, (पू.वि. श्लोक-३१४ अपूर्ण से ब्राह्मण यक्ष प्रसंग अपूर्ण तक व कथा-२८ गाथा-१४ अपूर्ण से है) १०२८१४. गणणुं संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, दे., (२६.५४१२, २९४१७). १. पे. नाम. पार्श्वनाथना दस गणधरनुं गणj, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन १० गणधर आराधनविधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीसुभकरस्वामी गणधराय नम; अंति: श्रीविजयस्वामी गणधरायन्म. २. पे. नाम. महावीरना गणधरनुं गणj, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन ११ गणधर आराधनाविधि, मा.ग.,सं., गद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति गणधराय; अंति: श्रीप्रभास गणधराय नम. ३. पे. नाम, पचंमेरु नामनुं गणj, पृ. १अ, संपूर्ण.. ५ मेरुपर्वत नाम, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीसुदर्शनमेरुजिनाय नमः; अंति: वर्द्धनमानलमेरुजिन नमः. ४. पे. नाम. शेव्रुजयतीर्थं गणj, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थं गणणं, सं., गद्य, आदि: श्रीआदिसर परमेष्टी नमः; अंति: आदिनाथ पुंडरिकायन्मः. ५. पे. नाम. परदेसीराजाना छठ तपनं गणणं, पृ. १आ, संपूर्ण. परदेशीराजा छठ आराधना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीसमकित पारंगतायनमः; अंति: श्रीभावसंजम आराधनायन्मः. ६. पे. नाम. वीस विहरमान नाम, पृ. १आ, अपर्ण, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसीमंघरस्वामी; अंति: (-), (पू.वि. विहरमान नाम-६ तक है.) १०२८१५. शीलवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११.५, १८४५२). शीलवती रास, मु. नेमीविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-१ ढाल-३ गाथा-१ से ढाल-१० गाथा-५ अपूर्ण तक है.) १०२८१६ (+) बृहत्संग्रहणी की टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५, प्र.वि. हुंडी:संघ० वृत्ति, संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, २०४५०). बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: आदौ शास्त्रकाराभीष्टदेवता; अंति: वेदाश्च प्रागुक्ताः, (वि. मूल का प्रतीक पाठ दिया है.) १०२८१८.(+) साधारणजिन स्तव सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७४३, चैत्र शुक्ल, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. सादडीनगर, प्रले. ग. वृद्धिकुशल (गुरु ग. भोजकुशल); गुपि.ग. भोजकुशल; पठ. मु. लाभकुशल (गुरु ग. वृद्धिकुशल), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री पार्श्वदेवप्रसादात्., त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १४४२). साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाः प्रभो यं; अंति: भावं जयानंदमयप्रदेया, श्लोक-९. For Private and Personal Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधारणजिन स्तव-अवचूरि, ग. विजयविमल, सं., गद्य, आदि: देवाः प्रभोयमिति; अंति: इकार: गुणश्च प्रदेया. १०२८१९ (+#) कल्पसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११२-१०६(१ से ६५,६७ से ८९,९२,९४ से ९८,१०० से । १११)=६, पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५, १५४५२). कल्पसूत्र-टीका*, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. महावीरजिन उपसर्ग वर्णन अपूर्ण से आदिजिन चरित्र अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०२८२० (+#) जैनमेघदूत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४११.५, १३४३५-४०). जैनमेघदूत, आ. मेरुतंगसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: कश्चित्कांतामविषयसुखानी; अंति: शाश्वती सौख्यलक्ष्मीम्, सर्ग-४, ग्रं. ४१८. १०२८२१ (+) शतपंचाशिका प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९-४(२ से ५)=५, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:शतपंचासका., शत०., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ६-१२४३३). शतपंचाशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: चउवीसं तित्थयरा बारस; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक व गाथा-७० अपूर्ण से गाथा-१३७ अपूर्ण तक है., वि. सामान्य परिचयादि कोष्ठक दिये गये हैं.) १०२८२२. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७५०, आश्विन कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ५६-६(१ से ६)=५०, ले.स्थल. तालनगर, प्रले. मु. वेणा ऋषि; गुभा. मु. जोगाजी (गुरु मु. जीवराज); गुपि. मु. जीवराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:दशवि०., दशविकालकसुत्र., संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ५४३७-४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: अप्पणागमं गइ त्तिबेमि, अध्ययन-१०, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-४ सूत्र-२ अपूर्ण से है., वि. चूलिका २ नहीं है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-५ गाथा-६४ तक लिखा है.) १०२८२३. (#) विक्रमसेनराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३७-१६(१ से १०,१४,२१ से २२,२५,३०,३२)=२१, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १५४३९). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१४ गाथा-१० ___ अपूर्ण से ढाल-४४ गाथा-७ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०२८२४. (+#) दृष्टांतकथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५३-४२(१ से १३,१८ से १९,२१ से २२,२८ से ५२)=११, ले.स्थल. जयवंतीनगरे, प्रले. मु. चेतनकुशल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अन्त में राज्यकाल हेतु "राजदोराजे" ऐसा अस्पष्ट उल्लेख मिलता है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १३४२८). दृष्टांतकथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: मोसर नहीं मास षट् थया, (पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र ___ नहीं हैं., भरत एवं दंडवीर्य कथा अपूर्ण से है व बीच-बीच के कथांश नहीं है.) १०२८२५ (+#) बृहत्संग्रहणी की अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९-२(१ से २)=७, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. यंत्र सहित., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२७४११.५, १७४५५-६०). बृहत्संग्रहणी-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३८ से १८१तक है.) १०२८२६. (+#) बृहत्संग्रहणी सह अवचूर्णी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८-२(१ से २)=६, पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२७४११, १३४३२-४८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण से १३८ अपूर्ण तक बृहत्संग्रहणी-अवचूर्णी, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. आवश्यकतानुसार अवचूर्णी लिखी है.) १०२८२७. (+) प्राकृत व्याकरण सह स्वोपज्ञ प्राकृतप्रकाश टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०४-९५(१ से ९५)=९, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ३०१६, जैदे., (२७४११.५, १३४३९). For Private and Personal Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ २०९ सिद्धहेमशब्दानुशासन-हिस्सा अष्टम अध्याय प्राकृत व्याकरण, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, _ वि. ११९३, आदि: (-); अंति: शेषं संस्कृतवत्सिद्धम्, (पू.वि. पाद-४ सूत्र-३९५ अपूर्ण से है.) सिद्धहेमशब्दानुशासन-हिस्सा अष्टम अध्याय प्राकृत व्याकरण की स्वोपज्ञ प्राकृतप्रकाश टीका, आ. हेमचंद्रसूरि ___ कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: कर्ताभ्युदयश्चेति. १०२८२९ (#) सिद्धहेमशब्दानुशासन सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-९(१ से ९)=१३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५, १८४६९). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सूत्र-ऋत्विज्दिश० गः से है व पितृ७१ अझै च अर तक लिखा है., वि. अध्याय व पाद का उल्लेख नहीं मिलता है.) सिद्धहेमशब्दानुशासन-टीका *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०२८३० (+#) वाग्भटालंकार की टीका, रीति स्वरूप व साहित्य रस लक्षणादि विवरण श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १७४८, आश्विन शुक्ल, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. २८-२(५,११)=२६, कुल पे. ३, ले.स्थल. विझेवानगर, प्रले. पं. जसवंतसागर (गुरु पं. केसरसागर गणि); गुपि. पं. केसरसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:वाग्भटाटीका., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५,१५४४६-६५). १.पे. नाम. वाग्भटालंकार की टीका, पृ. १अ-२७अ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. वाग्भटालंकार-टीका, ग. सिंहदेव, सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानजिनपति; अंतिः कीदृग विशेषणानि सुगमानि, (पू.वि. परिच्छेद-१ श्लोक-१५ की टीका अपूर्ण से १९ की टीका अपूर्ण तक व परिच्छेद-२ श्लोक-२६ की टीका अपूर्ण से परिच्छेद-३ श्लोक-१५ की टीका अपूर्ण तक नहीं है.) २.पे. नाम. रीति स्वरूप, पृ. २७अ, संपूर्ण.. रीति-रस संबंधसूचक श्लोक, सं., पद्य, आदि: लाटी हास्यरसे प्रयोगनिपुण; अंति: मुहर्मुहुर्भाषणं कुरुते, श्लोक-३. ३. पे. नाम. साहित्य रस लक्षणादि विवरण श्लोक संग्रह, पृ. २७अ-२८अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: संप्रयोगै रथै कांत मुख; अंति: रसेच्छिन्न हुतेबुधा, श्लोक-३०. १०२८३२. मौनएकादशीपर्व गणणं, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२७४११.५, १२४३६). मौनएकादशीपर्व गणणं, सं., को., आदिः (१)जंबद्वीपे भरते अतीते, (२)श्रीमहाजस सर्वज्ञाय नम; अंतिः श्रीआरणनाथाय नमः. १०२८३३. (+#) सुमित्रकुमार चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११-१(६)=१०, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:सुमित्रचउपई., सुमित्रच., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १३४४६). सुमित्रकुमार चौपाई, ग. धर्मसमुद्र वाचक, मा.गु., पद्य, वि. १५६७, आदि: पणमिसु मण वय तणु करी पहिल; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-१४५ अपूर्ण तक व गाथा-१६८ अपूर्ण से २८७ अपूर्ण तक है.) १०२८३४. (+) हेमदंडक सह कोष्टक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.८, प्र.वि. हुंडी:हेमीदंडक०., संशोधित., दे., (२६.५४११.५, १२४३२-५२). हेमदंडक गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवभेया सरीराहार; अंति: लेस्साए अप्पाबहुदंडगंमि, गाथा-५. हेमदंडक गाथा-कोष्टक, संबद्ध, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). १०२८३५ (#) सिंदूरप्रकर सह टीका व कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:सिंदूरप्रकर का टीका प्रबंध., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १६x४४-५५). सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-५५ तक है.) सिंदूरप्रकर-टीका, पंन्या. धर्मचंद्र, सं., गद्य, आदि: स्वर्भूभुवस्त्रईरम्यमगमं; अंति: (-). सिंदूरप्रकर-कथा, पंन्या. धर्मचंद्र, सं., प+ग., आदि: अस्त्यंगदेस शृंगाररूप; अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०२८३६. (+) स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७४१२, ८x२७). १. पे. नाम, भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम. शांति स्तवन, पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण.. लघशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ३. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तवन, पृ. ८आ-१४आ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: ___ कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ४. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र, पृ. १४आ-१७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति: (-), (पू.वि. 'अहं तित्थयरमाया सिवादेवी' गाथा अपूर्ण तक है.) १०२८३७. (+) महावीरजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. १९५६, वैशाख शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. कालावड, प्रले. आबामाडण खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:तिर्थंकरनोजन्ममोछव., संशोधित., दे., (२६.५४११.५, १५४४४). महावीरजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरनो माहाणकुंड; अंति: महावीरस्वामी मोक्षया हतां. १०२८३८. (+#) भगवतीसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९९-१३४(२७ से १६०)=६५, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:भगवतीसूत्र., भगवतीसू., भग०सू., पंचपाठ-संशोधित. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२६४११.५, ११४४३). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहंताणं० सव्व; अंति: (-), (पू.वि. शतक-१ उद्देश-८ सूत्र-९ अपूर्ण तक व शतक-८ उद्देश-१ सूत्र-६ अपूर्ण से शतक-९ उद्देश-३१ सूत्र-१ अपूर्ण तक है.) भगवतीसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: ब्राह्मी लिपिनइ; अंति: (-), (पू.वि. कही-कही बालावबोध नहीं लिखा १०२८३९ (#) चंद्रराजा रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २६-३(१,९ से १०)=२३, पृ.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र.वि. हुंडी:चंद्र., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १६४५१). चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-१ ढाल-१ गाथा-८ अपूर्ण से खंड-४ ढाल-४ गाथा-१६ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०२८४० (+#) सीताराम प्रबंध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४८-१(१)=४७, प्र.वि. हुंडी:रामसीता०., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ४७००, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १९४५८-६२). रामसीता रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: हुयइ आणंद कोडि कल्याणो रे, खंड-९, गाथा-२४१२, (पू.वि. ढाल-३ अपूर्ण से है.) १०२८४१ (+) शालीभद्रधन्ना रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.८-१(३)=७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११.५, १६x४०). शालिभद्र रास, मु. साधुहंस, मा.गु., पद्य, वि. १४५५, आदि: देवि सरसति देवि सरसत; अंति: मुनि इम भणइ० घरि तेह ___ तणइ, (पू.वि. गाथा-४६ अपूर्ण से गाथा-६७ अपूर्ण तक नहीं है.) १०२८४२. (+) विचारषट्त्रिंशिका सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८५४, आषाढ़ कृष्ण, १३, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३५, ले.स्थल. धांणोरानगर, प्रले. मु. लावण्यसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११.५, १०४३०). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउ चउवीस जिणे; अंति: लहिया एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-३९ दंडक प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमिउं क० नमस्कार; अंति: आत्माने हितनी करणहारी छइ. For Private and Personal Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ २११ १०२८४३ (+) अबयदी प्रश्न, उपवास पच्चक्खाण व एकासणा पच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:अबयदी., संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४२-४५). १.पे. नाम. अबयदी प्रश्न, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण, प्रले. मु. शांतिदास (परंपरा मु. हरिचंदजी); गुपि. मु. हरिचंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य. पुहि., गद्य, आदि: चिहुं अक्षरे अवयद ए च्यार; अंति: संतोष उपजइ ए काज करे. २. पे. नाम. उपवास पचक्खाण, पृ. ५आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-हिस्सा तिविहार उपवास पच्चक्खाण, गु.,प्रा., पद्य, आदि: सूरे उग्गे अभत्तिठं; अंति: समाहिवत्तियागारेणंवोसरामि, गाथा-१. ३. पे. नाम. एकासणानुं पच्चक्खाण, पृ. ५आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-हिस्सा एकासणा-बेआसणानुं पच्चक्खाण, प्रा., गद्य, आदि: सूरे उग्गए नम्मोकारसीयं; अंति: वोसरामि देसावगासियंउवभोगं. १०२८४४. (+) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ११४२७). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लहिउ देविंदसूरिहिं, गाथा-६०. १०२८४५ (+) जंबुचरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१४, आश्विन शुक्ल, १५, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४९, ले.स्थल. अरडुई, प्रले. मु. इंद्रजी (गुरु मु. प्रेमजी); गुपि. मु. प्रेमजी (गुरु मु. धर्माजी); मु. धर्माजी (गुरु मु. तेजसिंघजी); मु. तेजसिंघजी; पठ. पं. रतनसी, प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:जंबुचरित्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ.,प्र.ले.श्लो. (७५) यादृशं पुस्तकं दष्टं, (१४०२) ज्यां लग मेरु अचल हे, जैदे., (२७४१२, २२४५६). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: से आराहगा भणिया, उद्देशक-२१. जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: त० तेणकाले चउथो आरो; अंति: जंबूना अध्ययनना विषे. १०२८४६. (+) पंचप्रतिक्रमणादि सूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. १३५२, जैदे., (२६४११, १५-१७४५३-६५). १. पे. नाम. पंचप्रतिक्रमणसूत्र सह बालावबोध, पृ. १अ-१५अ, संपूर्ण. पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (१)नमो अरिहंताणं नमो, (२)इच्छामि खमासमणो वंदिउं; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: नमो नमस्कारु हउ कउणरुहइ; अंति: संस्थान वांदउ नमस्करउं. २. पे. नाम. १५ कर्मभूमिविचार गाथा सह बालावबोध, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. १५ कर्मभूमिविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: कम्मभूमिहिं पढम संघयणि; अंति: दुइ थुणिज्जइनि भुविहाण, गाथा-१. १५ कर्मभूमिविचार गाथा-बालावबोध, मा.गु., पद्य, आदि: कम्मभूमिहिं किसउ अर्थ; अंति: जइ भविकलोकहं वर्णवियई. ३. पे. नाम. अष्टापदजिनचैत्यवर्णन स्तुति-भरतचक्री कारापित सह बालावबोध, पृ. १५आ, संपूर्ण.. अष्टापदजिनचैत्यवर्णन स्तुति-भरतचक्री कारापित, सं., पद्य, आदि: उत्सेधांगुलदीर्घयोजनमितं; अंति: चैत्यं स्तुवे सादरं, श्लोक-१. अष्टापदजिनचैत्यवर्णन स्तुति-भरतचक्री कारापित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: उत्सेधांगुल भणियइ कांबिउ; अंति: जिणदेहरइ चउवीस जिण आपणइ. ४. पे. नाम. मेरुपर्वतादि जिनगृह विचार, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: मेरौ सप्तदशोत्त० ष्वष्ट; अंति: श्रीमुक्ति लक्ष्मी करउ. ५. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १६आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रा., पद्य, आदि: जे संसारसुहं गणित्तु असुह; अंति: सिवगया तेसिं जिणाणं नमो, गाथा-१. ६. पे. नाम. शास्वतजिन स्तुति, पृ. १६आ, संपूर्ण. शाश्वतजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अष्टौकोटिरलंसुलक्षनिवहाः; अंति: गुणान् वंदामहे भक्तितः, श्लोक-१. ७. पे. नाम. २१ पानी प्रकार, पृ. १६आ, संपूर्ण.. प्रा., पद्य, आदि: उस्सेइम १ संसेइम २; अंति: जलाइं पढमंगे भणिया, गाथा-२. १०२८४७. (+) अनुयोगद्वारसूत्र-सप्तनयसूत्र सह विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १४४५३). अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा सप्तनय स्वरूप, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., गद्य, आदि: सत्तमूलनया पणत्ता तं; अंति: तदुभय एवंभूओ विसेसेइ. अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा सप्तनय स्वरूप का विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअनुयोगद्वार मूल; अंति: ने ए एवंभूतनय कहीइं. १०२८४८. (+) भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ,बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १८५२, कार्तिक कृष्ण, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ६३-४२(१ से ३६,५० से ५५)=२१, ले.स्थल. भील्लपुर, प्रले.ग. भाग्यसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (८५५) भग्न प्रष्टी कटी ग्रीवा, (९७४) तैला द्रक्षे जलाद्रक्षे, जैदे., (२६४११.५, ११-१६x२८-३२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-३२ से ३९ तक व श्लोक-४२ से है.) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: नाम पिण मानतुंग छे. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध+कथा, म. अजबसागर, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: अजबसागर हेतवे ज्ञान सेतवे, कथा-२८. १०२८४९ (+) ५ परमेष्ठि १०८ गण वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, प्रले. मु. विनीतविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४११.५,१४४३९). ५ परमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (१)बारस गुण अरिहंता, (२)बारस गुण अरिहंता कहता; अंति: एकसो आठ गुण जाणवा. १०२८५० (+) अतिथिसंविभागवत कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११.५, १३४३७). चंद्रधवल कथा-अतिथिसंविभागव्रते, आ. माणिक्यसंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: इह भरतक्षेत्रे; अंति: (-), (पू.वि. अघट राजा-मुनि संवाद अपूर्ण तक है.) १०२८५१ (#) उववाई सूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ३७, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं.,प्र.वि. हुंडी:उवाईस., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १४४२३-२६). औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-७६ अपूर्ण तक है.) १०२८५२. (+#) विवाहपडल का पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १९३२, पौष कृष्ण, १४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. विदासर, प्रले. गौरीशंकर, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११, ११४२४-२९). विवाहपडल-पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी पद वांदी करी सुगुरु; अंति: अभयकुशल० मंगल प्रदाः, गाथा-६३. १०२८५४. (+) बृहत्क्षेत्रसमास नव्य, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२-६(६ से ११)-६, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, १६x४०). बहत्क्षेत्रसमास नव्य, आ. सोमतिलकसरि, प्रा., पद्य, वि. १३७३, आदि: सिरिनिलयं केवलिणं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८७ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ २१३ १०२८५५ (+) श्रीपालराजा चरित्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०-२(१,३)=८, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:श्रीपालचरित्र., संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १३४३६). श्रीपालराजा चरित्र *, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. नवपद ध्यान वर्णन अपूर्ण से सिद्धचक्र महिमा वर्णन ____ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०२८५७. सिद्धहेमशब्दानुशासन अध्याय-२ पाद-३ से अध्याय-३ पाद-२ की संक्षिप्त वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७४११.५, १८४६०-६७). सिद्धहेमशब्दानुशासन-संक्षिप्त वृत्ति, सं., गद्य, वि. १६वी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अध्याय-३ पाद-२ अपूर्ण तक है., वि. मूलसूत्र का प्रतीक पाठ क्रमशः नहीं है.) १०२८५८. सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति के आख्यातवृत्ति की अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७ ११.५, १८४५०-५५). सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति के आख्यातवृत्ति की अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वृद्धौड् वृद्धौ वृद्ध; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अध्याय-४ पाद-१ सूत्र-४१ अपूर्ण तक है., वि. मूल का संकेत पाठ दिया है.) १०२८६१. विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११.५, १६४३४). विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: बीना पुस्तक धारणी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१२ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) १०२८६२ (#) उत्तराध्ययनसूत्र की अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५२३, फाल्गुन कृष्ण, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. ३९, प्रले. उपा. देवसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५, १९४६५-७०). उत्तराध्ययनसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: संजोगा० संयोगान; अंति: यथा योगं जीवाजीवविभक्ति. १०२८६३. (+) आदिजिन स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, कुल पे. १०, प्रले. मु. कुंयरजी गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १९४५५). १. पे. नाम. रुषभजिन स्तवन-सद्दहणासामाचारीगर्भितं, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १६६९, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, शनिवार, ले.स्थल. राजनगर, पे.वि. हुंडी:सद्दहणा रुषभजिन स्तवन. कुल ग्रं. ११९ आदिजिन स्तवन, मु. पार्श्वचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगलकारण सुकृत निवास; अंति: सूरि श्रीपासचंद वीनवइ, गाथा-४७. २. पे. नाम. व्यवहारनिश्चय स्तवन, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण, वि. १६६९, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, शुक्रवार, पे.वि. हुंडी:निश्चय व्यवहार स्तवन. आ. पासचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: विक्रमनगरि प्रवर प्रासादि; अंति: श्रीपासचंदि हरखिइ कहिय, गाथा-६०. ३. पे. नाम. चतर्थविंशतिजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:चतुर्विंशतिजिन स्तवनं. २४ जिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसरि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचगुण पंचएगणजिण; अंति: पार्श्वचंद० हरषइ भणइ, ढाल-८, गाथा-१९. ४. पे. नाम. आदीश्वरविज्ञप्तिका, पृ. ४आ-६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:ऋषभजिन स्तवन. आदिजिनविनती स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल आदि जिणंद जुहारियइ; अंति: पासचंद० भवि भवि अविहड रंग, गाथा-५५. ५. पे. नाम. चतुर्थविंशतिजिन पंच पंचकल्याण द्विपंचाशिका स्तवन, पृ. ६अ-८आ, संपूर्ण, वि. १६७१, चैत्र शुक्ल, ६, रविवार, ले.स्थल. विरमग्राम, पे.वि. हुंडी:कल्याणिक स्तवन । पंचवीस ढालनउं. २४ जिन पंचकल्याणक बावनी, मु. पार्श्वचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १६०१, आदि: श्रीगुरुपाय प्रणमउं; अंति: पार्श्वचंद्रेण० संखे, ढाल-२४, गाथा-५२. ६.पे. नाम. चतुर्थविंशतिजिन कल्याणिक स्तवन, पृ. ८आ-९आ, संपूर्ण, वि. १६७१, चैत्र शुक्ल, ८, मंगलवार, ले.स्थल. विरमग्राम, पे.वि. हुंडी:कल्याणिक स्तवन. कुल ग्रं. ७४ For Private and Personal Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २४ जिन स्तवन, मु. पार्श्वचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जिणवर चउवीसहतणा पंच पंच; अंति: पासचंद०धन भवमहोदधि तेतरई, गाथा-४२. ७. पे. नाम. शत्रंजयमंडन श्रीआदिनाथ स्तवन, पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण, वि. १६७१, चैत्र शुक्ल, १०, गुरुवार, ले.स्थल, विरमग्राम, पे.वि. हुंडी:शेव्रुजय स्तवन. कुल ग्रं. ८२ शत्रंजयतीर्थ रास, आ. पार्श्वचंद्रसरि, मा.गु., पद्य, आदि: भली भावना विमलगिरि; अंति: पासचंद०लाभ जिन मारगि मागइ, गाथा-४२. ८. पे. नाम. शत्रुजयमंडन श्रीआदिनाथ स्तवन, पृ. १०आ-११आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:शत्रुजय स्तवन.कुल ग्रं. ४१ आदिजिन स्तवन, म. पार्श्वचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: विमलगिरि इंदइंद भवियाणं; अंति: पासचंद०वंछित सविया पावेस, गाथा-१७. ९. पे. नाम. सेव॒जय मंडन श्रीआदिनाथ स्तवन, पृ. ११आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:शत्रुजय स्तवनं. कुल ग्रं. २२ आदिजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सेत्रुजमंडन आदिजिण वीनतडी; अंति: इमवीनवइ वंछित सवियावेसु, गाथा-१७. १०. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ११आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सफल एह अवतार माहरउ इणि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) १०२८६४. (+) २४ ठाणा विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:२४ ठाण., संशोधित., जैदे., (२७४११, १६४५६). २४ ठाणा विचार, मा.गु., प+ग., आदि: गइ इंद्री काय जोग वेय; अंति: (-), (पू.वि. संज्ञी पंचेंद्री विचार अपूर्ण तक है.) १०२८६६. (+) वाग्भटालंकार, संपूर्ण, वि. १६३८, माघ शुक्ल, ४, रविवार, मध्यम, पृ. १४, प्रले. मु. विनयविमल-शिष्य (गुरु मु. विनयविमल); गुपि.म. विनयविमल; पठ. मु. सिद्धिविमल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., प्र.ले.श्लो. (१४००) यादृष्टं पुस्तके दृष्टं यादृष्टं पुस्तके दृष्टं, जैदे., (२६४११, ११४२८-३२). वाग्भट्टालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रियं दिशतु वो देवः; अंति: सारस्वतध्यायिनः, परिच्छेद-५. १०२८६७. (+#) भक्तामर स्तोत्र सह प्राकृतवार्ता वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६९३, वैशाख कृष्ण, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. १६, । लिख. श्रावि. सोनाबाई वछराज उसवाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११, १६४५३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५२७, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: लक्ष्मी स्वयंवर वरइ. १०२८६९. (+) गौतमपच्छा सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १६-१९४३५-४८). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नत्वा वीरजिनं बाला; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४९ तक है.) गौतमपच्छा-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, वि. १५६९, आदि: तीर्थनाथ श्रीमहावीर; अंति: (-). १०२८७२. ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:नारचंद्रछा., जैदे., (२७४११.५, ७४३७-४०). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतं जिनं नत्वा; अंति: (-), (प.वि. श्लोक-१६० तक है.) १०२८७३ (+#) १२ व्रत कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४०, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४११, १३४३९-४५). १२ व्रत कथा, आ. सोमप्रभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अहवागरियं गुरुणा जीवदयं; अंति: डिव्वोहिपत्था०त्तिउत्तरिउ. १०२८७४. रत्नसारकुमार कथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८-१(१)=७, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४११.५, ७४३३). रत्नसारकुमार कथा, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-७ अपूर्ण से १०६ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रत्नसारकुमार कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). " १०२८७५ पुष्पमाला प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पू. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैदे. (२७.५X१२, १५४५८-६२). पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, वि. १२वी आदि सिद्धमकम्मपरिणहमकलंकम, अंतिः (-), (पू.वि. गाथा- ३०८ अपूर्ण तक है.) १०२८७६ (+#) संबोधसप्ततिका सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. २९-२१(१ से २,४ से १६,१८,२२ से २६)=८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, २४३७). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से १२० अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति : (-). " १०२८७७. (+) चंपकमाला कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ३-१ ( २ ) = २, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं है. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित., जैदे., ( २६.५X११, २१X५७). चंपकमाला कथा, प्रा., पद्य, आदि: सम्मत्ते थिरचित्ता; अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ६१ से १२७ अपूर्ण तक व गा. १९५ अपूर्ण से नहीं है.) १०२८७८ (+) सरस्वती स्तोत्र व सम्मेतगिरि स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. ५. प्र. वि. संशोधित, जैदे (२६X१२, १५X४५ - ५०). १. पे. नाम सरस्वती स्तोत्र. पू. १अ १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य वि. ९वी आदि कलमरालविहंगमवाहना; अति रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३. 9 २. पे. नाम. सम्मेतगिरि स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि आदीसर अष्टापद सिद्धा; अंतिः भाव चैत्यवंदन करी, गाथा ७. ३. पे. नाम. मांगलिक लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह-मांगलिक, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदिः ॐकारबिंदु संयुक्तं नित्यं; अंति: तस्मै श्रीगुरुभ्योनम, श्लोक-२. ४. पे नाम. प्रास्ताविक कवित्त संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: श्रवण न नमै वसूहारी; अंति: गमायकै जिकाकिधगोली जरा, गाथा-१. ५. पे. नाम. प्रास्ताविक कवित्त-यौवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि आई जरा अथाह स्वेत सिर; अंतिः जालम जरा जोवन देसवटो दीयो, गाथा- १. १०२८७९ (+४) नयचक्रसार सह स्वोपज्ञ बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १०-५ (१ से ५५ प्र. वि. हुंडी: नयचक्र, וי २१५ त्रिपाठ संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैये. (२६४११.५, २x४४). - नयचक्रसार, ग. देवचंद्र, सं., गद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पुद्रलास्तिकाय वर्णन अपूर्ण तक है.) नयचक्रसार- स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १८वी, आदि (-); अति (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं. १०२८८१. (+) शुकबहोत्तरी कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी सूआ.ब., टिप्पण विशेष पाठ., जैदे., (२६.५X११.५, २४X७०). . शुकबहोत्तरी कथा, मु. रत्नसुंदरसूरि, मा.गु., पद्य वि. १६३८ आदि सयल सुरासुर माया अंति: (-), (पू.वि. कथा-३४ की गाथा ३ अपूर्ण तक है.) १०२८८२. ताजिकसार की टीका का बालाबोध, संपूर्ण, वि. १८२२ चैत्र अधिकमास कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. २४, ले. स्थल. सादडीनगर, प्रले. पं. जीवणविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X१२, १७x४३-४९). For Private and Personal Use Only ताजिकसार-कारिका टीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीरामचंद्र नापद कमलनो; अंति: सुगम प्रकारे क्ह्यु ले. Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०२८८४.(+) भक्तामर स्तोत्र सह गाथार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-१८(१ से १८)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १७X४८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३४ से ४१ तक है.) भक्तामर स्तोत्र-गाथार्थ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). भक्तामर स्तोत्र-कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कथा-२० अपूर्ण से कथा-३७ अपूर्ण तक है.) १०२८८५. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पठ. श्रावि. भोलनबीबी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, ४४३२). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुय समुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: भुवन कहतां लोक नइ विषइ; अंति: सिद्धांत रूप समुद्र थकी. १०२८८६. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, ४४३२). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५२ अपूर्ण तक है.) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवा कहतां जीवतत्त्व अजीव; अंति: (-). १०२८८७. (+) आचारांगसूत्र की प्रदीपिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३९-९८(१ से ९८)=४१, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११, १२४४१). आचारांगसूत्र-प्रदीपिका टीका, गच्छा. जिनहंससूरि, सं., गद्य, वि. १५७३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ उद्देशक-१ अपूर्ण से उद्देशक-६ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०२८८८.(+) शालिभद्रमनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६-१(३)=१५, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:सालभद्रचो., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १५४४६). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४३ ___अपूर्ण से गाथा-६८ अपूर्ण तक व गाथा-४९६ अपूर्ण से नहीं है.) १०२८८९ (+) सप्ततिका कर्मग्रंथ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ९४३२-३६). सप्ततिका कर्मग्रंथ-६, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९९ अपूर्ण तक १०२८९०. (#) उत्तराध्ययनसूत्रगत प्रमादादि विषयक चयनित गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४५५). उत्तराध्ययनसूत्र-चयनितगाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: जहाय अंडप्प भवा बलागा; अंति: सुग्गई उववज्जइ बहुसो, गाथा-३७, (वि. अध्ययन-२५, २६, ३२, ३४ व ३५ की गाथाओं का संकलन है.) १०२८९३. (+#) जंबूद्वीप लघुसंग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. किडिआनगर, प्रले. मु. प्रतापविजय; पठ. मु. सुंदरविजय (गुरु मु. प्रतापविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४१२, ४४३१). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं जिणसव्वन्नू; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०. लघसंग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमीय के० नमस्कार करीने; अंति: एह अर्थ कह्यो जांणवा अर्थ. १०२८९४. () विचारषटत्रिंशिका प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४८, पौष कृष्ण, ९, मध्यम, प. १२, प्रले. पं. प्रताप (गुरु पं. भाग्यविजय गणि); गुपि. पं. भाग्यविजय गणि (गुरु पं. मणिविजयगणि); पं. मणिविजयगणि (गुरु उपा. उदय विजय गणि); उपा. उदय विजय गणि (गुरु उपा. विजय प्रभसूरि गणि); उपा. विजय प्रभसूरि गणि; पठ. मु. सुंदर; गुभा. मु. सुमतिविजय (गुरु पं. प्रतापविजय गणि), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी:चो.दंडक., टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४१२, ३४३४). For Private and Personal Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ २१७ दंडक प्रकरण, म. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिया, गाथा-४७. दंडक प्रकरण-टबार्थ, पं. केशरसागर, मा.ग., गद्य, आदि: नमस्कार करीने कंण प्रते०; अंति: सुखकारी हीत भणी कही, गाथा-४७. १०२८९५ (+) विवेक विलास, संपूर्ण, वि. १४७६, मध्यम, पृ.७०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ९४३८). विवेकविलास, आ. जिनदत्तसरि, सं., पद्य, आदि: शाश्वतानंदरूपाय तमस्तौमेक; अंति: लोकोत्तरं शाश्वतम्, उल्लास-१२. १०२८९६. (#) सूत्रकृतांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १६४४, माघ शुक्ल, ११, मंगलवार, जीर्ण, पृ. ४२-१६(५ से ६,८ से १२,२२,२५ से २६,३३ से ३७,४१)+३(१९ से २०,२९)=२९, ले.स्थल. मेदपाटनगर,योगिनीपुर, राज्यकालरा. प्रतापसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सूगडांगसू., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १४४३७-४४). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति: श्रुसुयस्कंधो, (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०२८९७. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ९८, प्रले. पं. जीवणविजय गणि (गुरु मु. ऋद्धिविजय); अन्य. मु. रत्नवर्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ४४४६). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरहंताणं० जंबू; अंति: अंगं जहा आयारस्स, अध्याय-१०, गाथा-१२५०, ग्रं. १३००, संपूर्ण. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसुधर्मास्वामी जंबु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-५ अपूर्ण तक लिखा है.) १०२८९८. (+) आचारांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८४-७०(१ से ७०)=१४, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., __ प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ५४४४-४८). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-२ पिंडेषणा अध्ययन उद्देश-१ से ५ अर्पण तक है.) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०२८९९ (+) ज्ञानार्णव प्रकरण-आत्मत्रयभेद सह टीका व टीका का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७९४, पौष कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ.५, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. रुघनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५४४८-५२). ज्ञानार्णव-हिस्सा आत्मतत्त्व भेदप्रभेद प्रकरण, आ. शुभचंद्र, सं., पद्य, आदि: अयमात्मास्वयंसाक्षाद्गण; अंति: कंतुरहोमाहात्म्यमात्मनः, श्लोक-१०. ज्ञानार्णव-हिस्सा आत्मतत्त्व भेदप्रभेद प्रकरण की टीका, सं., गद्य, आदि: अमुमेवार्थसंप्रतिगद्यै; अंति: वशीकरण समर्थस्मर तत्व. ज्ञानार्णव-हिस्सा आत्मतत्त्व भेदप्रभेद प्रकरण की टीका का बालावबोध, पुहिं., गद्य, आदि: आत्मस्वरूप वर्णन किया पछै; अंति: जीतवाने वैही समर्थ छइ. १०२९०० (+) जीवविचार प्रकरण सह सुबोधिनी टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१२, १४४३५-४०). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: शांतिसू०सुय समुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-सुबोधिनी टीका, मु. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८५०, आदि: (१)इह हि संसारसागरे, (२)ध्यात्वा जैनं महः; अंति: क्षमाकल्याण० वृत्तिकाम्. १०२९०१. साधुप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदे., (२६४११.५, ५४३७). For Private and Personal Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २१८ www.kobatirth.org कैलास 'श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे. मू. पू., संबद्ध, प्रा., सं., प+ग, आदि: करेमि भंते सामाइयं; अंति: ठाणं सपत्ताणं नमो जिणाणं. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टबार्थ, मा.गु, गद्य, आदि श्रीवीतराग नमस्कार करें: अंतिः मारहु नमस्कार हुआ, (वि. दृष्टांत सहित ) १०२९०२. (+) जीवविचार सह टवार्थ व बालावबोध- गाथा १ से २६ तथा नवतत्त्व सारोद्वार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ५६, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६११.५, २५-३०४८८). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ व बालावबोध- गाथा १ से २६, पृ. १-४, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : जीवतत्त्व १. मोटानवतत्त्व. " जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी आदि भुवणपईवं वीरं नमिऊण अति (-), प्रतिपूर्ण जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, श्राव. दलपतराय, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: स्वर्ग मृत्यु पाताल तेहनु; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. जीवविचार प्रकरण खालावबोध, आव, दलपतराय, मा.गु., गद्य, आदि ते कुण बीर कहेता अति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. साक्षी पाठ सहित ) יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे नाम. नवतत्त्व प्रकरण का बालावबोध, पू. ४अ ५५आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. पे.बि. हुंडी : मोटानवतत्त्व, वस्तुतः यह कृति प्रारंभिक पत्र से ही है. प्र. वि. संशोधित अवाच्य. नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा - बालावबोध, श्राव. दलपतराय, मा.गु., गद्य, आदि: स्वर्ग मृत्यु पाताल तेहनु; अंति: (-), (संपूर्ण, वि. यंत्रादि सहित ) १०२९०३ (+) पार्श्वजिन सिलोको, संपूर्ण, वि. १९३६, मध्यम, पू. ५, अन्य. मु. मूलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, - अवाच्य., दे., (२६X१२.५, १०X२७-३०). पार्श्वजिन सलोको, जोरावरमल पंचोली, रा. पद्य वि. १८५१, आदि प्रणमुं परमातम अविचल, अंतिः चवदे राज रो अंतरजामी, गाथा ५७. " १०२९०४ (४) चुउवीसत्थौ सह बालावबोध-२४ बोल सहित, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ९. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है. जैवे. (२६४१२, १३x४०-४३). लोगस्ससूत्र, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: लोगस्स उज्जोअगरे; अंतिः सिद्धिं मम दिसंतु, गाथा-७. लोगस्ससूत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि लोगस्सउज्जोगरे क० चीवराज अंतिः मुझन दिसंतु क० दिउ १०२९०५. (+) भक्तामर व कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी : भक्तामरटबार्थ., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६X११.५, ७x४०-४३). १. पे. नाम. भक्तामरस्तोत्र सह टवार्थ, पृ. १अ ५अ संपूर्ण भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमौलि अति मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्तिवंत देवता नमता; अंति: मानवंत पुरुषनई वरइ. २. पे नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टवार्थ, पू. ५आ- ९आ, संपूर्ण कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अति कुमुद० प्रपद्यते, लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि मांगलिक्य तेहनो घर प्रधान, अंति: पामस्वइ पाम्या पामिस्वह. १०२९०६. (+) प्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६×१२, ११X३८). साधु प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह घे.मू. पू. संबद्ध, प्रा., सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं० करेमि अंतिः वंदामि जिणे चउवीसं. १०२९०७ (+) हरिबल कथा, संपूर्ण, वि. १८०४, भाद्रपद कृष्ण, ३, सोमवार, जीर्ण, पृ. ३०, प्रले. मु. गोरधन मुनि (गुरु मु. हरजी); गुपि. मु. हरजी (गुरु मु. गोविंदजी ); मु. गोविंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : हरबलचरि., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे. (२७४११.५, १३४४७). " हरिबल चरित्र, सं., गद्य, आदि आरामशोभायाः कथानकं, अंतिः नितरमेव पृथगुरुः For Private and Personal Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ २१९ १०२९०८. बोल विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४०, भाद्रपद शुक्ल, १०, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. श्राव. लीलाधर मावजी; लिख. श्राव. विक्रमचंद सौभागचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:बोल., दे., (२६४१२, १३-१५४१९-४०). १. पे. नाम, अठाविस सिखामण बोल, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. २८ शिखामण बोल, रा., गद्य, आदि: पहिली सिखामण जेहनी; अंति: लोकमां महिमां वधे. २. पे. नाम. बोल विचार संग्रह, पृ. २आ-५आ, संपूर्ण... बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: वज्र कषाय होय; अंति: ज्ञाननी वृद्धि थाय. १०२९०९ (+) समकितपचवीसी सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. ग. विनीतविजय (गुरु ग. नेमविजय, तपागच्छ); गुपि.ग. नेमविजय (गुरु पंन्या. खेमाविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, ४४३७). सम्यक्त्वपंचविंशतिका, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: हवेउ सम्मत्तसंपत्ति, गाथा-२५. सम्यक्त्वपंचविंशतिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जह कहतां जे उपशमादिक; अंति: एटली सम्यक्त्वनी प्राप्ति. सम्यक्त्वपंचविंशतिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तेटली वार उपशमीक समकित; अंति: उपशमीक समकित होई. १०२९१० (#) संबोधसप्ततिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ४४३७-४१). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७४ तक लिखा है.) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ तिन; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०२९११. (+) चैत्यवंदनभाष्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, ४४३९). चैत्यवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: परमपयं पावइ लहुँ सो, गाथा-६३. चैत्यवंदनभाष्य-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: वांदि नमस्कार करीने; अंति: और ग्रंथ से जानना. १०२९१२ (#) पट्टावली तपागच्छीय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, १३४३४). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानस्वामी; अंति: (-), (पू.वि. विजयप्रभसूरि के शिष्य विजयरत्नसूरि द्वारा राणाजी अमरसिंह को प्रतिबोधित करने का प्रसंग अपूर्ण तक है.) १०२९१३. (+) सीमंधरजिन विनती सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, ४४३०-३९). सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामी सीमंधरा वीनती; अंति: जसविजय बुध जयकरो, ढाल-११, गाथा-१२५, ग्रं. १८८. सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा-टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, आदि: हे श्रीसीमंधरस्वामी; अंति: जीति पामीइं छई, (वि. दृष्टांतादि सहित.) १०२९१४ (+) कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७-१(३३)+१(३४)=३७, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, १०४२४). कल्पसूत्र-बालावबोध, उपा. रामविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८१९, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: (-), (पू.वि. जन्मोत्सव में बालक के बत्रीस लक्षण का वर्णन अपूर्ण तक, व महावीर जन्मोत्सव में वेद-वेदांगादि शास्त्रों का पाठ का वर्णन अपूर्ण से कार्तिक सेठ व इंद्र के शरीर बढाने का वर्णन अपूर्ण तक है.) १०२९१५ (+) प्रश्नोत्तरशतक, संपूर्ण, वि. १९६१, आश्विन शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ३२, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. मु. रामचंद्र महात्मा (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:प्रश्नोत्तरश., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (६) कर कूबड मस्तक अधो, दे., (२५४१२, १३-१६४३६-४०). For Private and Personal Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रश्नोत्तरशतक, म. उमेदचंद, सं., गद्य, वि. १८८४, आदि: प्रणम्य तीर्थेशपदं०प्रश्न; अंति: रुमेदाख्य० मया जयपुरे वरे, प्रश्न-११०. १०२९१६ (+) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१-११(१ से ११)=१०, प्र.वि. हुंडी:प्रतिक्रमणसूत्र., संशोधित., जैदे., (२७४१२, १३४३३). साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के ___ पत्र नहीं हैं., पाक्षिकसूत्र अपूर्ण से पक्खिखामणा तक है.) १०२९१७. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७५-५५(१ से २९,४४ से ६९)=२०, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ५४४३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., अध्ययन-१० गाथा-११ अपूर्ण से अध्ययन-१४ गाथा-८ अपूर्ण तक व अध्ययन-२० गाथा-८ अपूर्ण से अध्ययन-२१ गाथा-१६ तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. १०२९१८. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ३६, अपूर्ण, वि. १८३२, आश्विन शुक्ल, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. ८-२(१ से २)=६, ले.स्थल. पाली, प्रले. सा. धनी (गुरु सा. नेतुजी); गुपि. सा. नेतुजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२, १६४३७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सम्मएत्ति बेमि, (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. गाथा-५८ अपूर्ण से १०२९१९ (+-) सूत्रकृतांगसूत्र-अध्ययन ५ से १६, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २२-१६(१ से १२,१५ से १७,२०)+१(१३)=७, प्र.वि. हुंडी:सुगडय., अशुद्ध पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१२, १२-१६४३१). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., नरयविभत्ति अध्ययन-५ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०२९२० (+) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५४-४७(१ से २४,२६ से ४६,४९,५१)-७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४२५, ७४३६). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उद्देस-२ अपूर्ण से उद्देस-१२ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ*, मा.ग., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). १०२९२१ (+) दानकल्पद्रम, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २८-१(१)=२७, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, १५४५५-६०). दानकल्पद्रुम, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., पल्लव-१ ___ श्लोक-१५ अपूर्ण से पल्लव-९ श्लोक-११९ अपूर्ण तक है.) १०२९२४. (+) उपासकदशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १६६०, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३४, प्र.वि. हुंडी:उवा०सू., उपासगदशांगसूत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४३८). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन-१०, ग्रं. ८१२. १०२९२५. कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७५८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १२३, ले.स्थल. षडपगुद्धा, पठ. ग. लालविजय (गुरु ग. हस्तिविजय, तपागच्छ); गुपि. ग. हस्तिविजय (गुरु पं. गजविजय, तपागच्छ); प्रले. पं. गजविजय (गुरु ग. वृद्धिविजय, तपागच्छ); गुपि.ग. वृद्धिविजय (गुरु ग. धर्मविजय, तपागच्छ); ग. धर्मविजय (गुरु उपा. कल्याणविजय गणि*, तपागच्छ); उपा. कल्याणविजय गणि* (गुरु आ. हीरसूरि *, तपागच्छ); आ. हीरसूरि * (गुरु आ. दानसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.ले.श्लो. (४३९) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७X१०.५, ६-१६४३६-४४). For Private and Personal Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ २२१ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि नमो अरिहंताणं नमो अंतिः भुज्जो उवदंसेइ तिबेमि, व्याख्यान- ८, ग्रं. १२१६. १०२९२६. स्नात्रपूजा विधि सहित, संपूर्ण, वि. कल्पसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि अरिहंतने नमस्कार हुआ, अंति: एतले गुरुक्त जणाविड. * , कल्पसूत्र - बालाववोध, मा.गु. रा. गद्य, आदि अरिहंत चउसइिंद्रनी; अति मिच्छामि दुक्कडं देवो. २०वी, मध्यम, पृ. ४, वे. (२६४११, १२४३३). " स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंति: सारखी क सूत्र मझार, ढाल -८, गाथा-४२. www.kobatirth.org १०२९२७. (+) द्रौपदीसती चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २५-२ (१,६) = २३. पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२६.५४११.५, १७४५७). " द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६९३, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. डाल- १ गाथा १२ अपूर्ण से डाल-३४ गाथा-२१ अपूर्ण तक है व ढाल ७ की गाथा १ अपूर्ण से ढाल ८ की गाथा १२ अपूर्ण तक नहीं है.) १०२९२८. कृतकर्म चौपाई, संपूर्ण, वि. १६२८, आश्विन शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १४, प्रले. मु. हरदास, पठ. श्रावि. चंपा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी. कृतकर्म कृतकर्म चउ., कृतकर्मक्षयोनास्ति०, जैवे. (२७४११, १०x४३). " कृतकर्मराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि पदम प्रणमुं पदम प्रण; अति द्धि तेहनइ सवि मिलई, गाथा २४९. १०२९२९. (+) हेमविभ्रमसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७८९, कार्तिक कृष्ण, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. श्राव. उदा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखक- "उदा" को श्रीमन्मंडलाचार्य का शिष्य बताया गया है., पंचपाठ-संशोधित, जैवे. (२७४११, ३x२६). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हैमविभ्रम, सं., पद्य, आदि: कस्य धातोस्ति वादीनाम्; अंतिः चान्यदक्षेवयममीवयम्, श्लोक-२१. , हैमविभ्रम- अवचूरि, ग. चारित्रसिंह, सं., गद्य वि. १६२५, आदि: नत्वा जिनेंद्रं स्वगुरु: अंतिः अत्र न लिखिताः संति. १०२९३० (+) आदिजिन रास, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. १०. पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५X११, १३ - १६३७-५०). आदिजिन रास, आ. गुणरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि आदिक्षर ॐकारसि अरिहंत पय अंति (-), (पू. वि. प्रबंध-२ गाथा - २२६ अपूर्ण तक है.) , १०२९३१.(+) आचारांगसूत्र सह बालावबोध श्रुतस्कंध २, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४०-५ (१० से १२,१४,२०)=३५, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२७११, ९-११x२२-३३). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि (-); अंति: (-), (प्रति अपूर्ण, पू. वि. अध्ययन-२ उद्देस ३ सूत्र- ३० तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) आचारांगसूत्र- बालावबोध, मा.गु. गद्य, आदि (-); अंति (-), प्रतिअपूर्ण. १०२९३२. (+) नेमि चरित्र व गजसुकुमालमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२७.५४११, १५४४५-५०). १. पे. नाम. नेमि चरित्र, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. " नेमिजिन चरित्र, मा.गु., पद्य, आदि: नयर सोरीपुरी राजीयो रे; अंति: सात संघातैं पोहता शिवपुरी, गाथा-३९. २. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. ३अ-५आ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अरिष्टनेमि नामै हुआ; अंति: लेउ जगमैं सोभाग हे मायडी, ढाल - ११. १०२९३३ (+) मौनएकादशीपर्व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१ (१) = ५, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे. (२६.५४११.५, १३४४१). मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर सं., पद्य, वि. १६५७, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. श्लोक-४१ अपूर्ण से १९५ अपूर्ण तक है.) १०२९३४ (+) मदनरेखासती रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. हुंडी : मयण., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे. (२७४१२, १६x४०). For Private and Personal Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मदनरेखासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: जूआ मांस दारु तणी; अंति: परनारी त्यागीज्यो, गाथा-१८८. १०२९३५ (+) सीमंधरजिन विनती सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-१(२)=११, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४११.५, ४४३६). सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामी सीमंधर विनती; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-१ गाथा-३ अपूर्ण से गाथा-७ अपूर्ण तक, व ढाल-११ गाथा-११४ से नहीं है.) सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा-टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसीमंधर विनती सांभलो; अंति: (-), पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १०२९३६. (+) अंजनासती चौपाई, संपूर्ण, वि. १७५९, मध्यम, पृ. २१, ले.स्थल. नवानगर, प्रले. मु. जसराज (गुरु मु. रामजी); गुपि. मु. रामजी (गुरु मु. पताजी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १५४४३-४५). अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: गणधर गौतम प्रमुख; अंति: ऋद्धि वृद्धि मंगलमाल, खंड-३ ढाल २२, गाथा-६३२. १०२९३७. (#) कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६०-३७(१ से ३७)=२३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२, १७४५४). दृष्टांत कथानक संग्रह, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: संयम पाली० मुगति पहुंता, (पू.वि. चतुर्थ निह्नव कथा अपूर्ण पाठ-"ते हवइं राजगृही पहुंता तिहां" से है.) १०२९३८. (+#) कल्पसूत्र-व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं..प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, ११४३२). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: अर्हत भगवंत उत्पन्न; अंति: (-), (पू.वि. साधु धर्म संवत्सरीप्रतिक्रमण-लोच कराना इत्यादि वर्णन अपूर्ण तक है.) । १०२९३९ भावना विलास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.७, दे., (२६४१२, ९x४५). १२ भावना विलास, ग. लक्ष्मीवल्लभ, पुहि., पद्य, वि. १७२७, आदि: प्रणमि चरणयुग पास; अंति: बुद्धि न होइ विरुद्ध, गाथा-५२. १०२९४० (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ६४३६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-५ गाथा-३४ अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: दुर्गति पडतां जीवनइ; अंति: (-). १०२९४१. आठ प्रवचननी ढाल, संपूर्ण, वि. १९५०, आश्विन शुक्ल, १४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ.७, प्रले. गजानंद मंगलराम जोशी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:आठ प्रवचननी ढाल., दे., (२५४११.५, १२४३३-३६). ८ प्रवचनमाता सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुकृत कल्पतरु श्रेणि; अंति: परम मंगल सुख सदा, ढाल-९, गाथा-१३०. १०२९४२. चित्रसेनपद्मावती चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २७-७(२ से ८)=२०, जैदे., (२७७१२, ७४३७). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, पा. राजवल्लभ, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंति: (-), (पू.वि. बीच व ___ अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-७ अपूर्ण तक व श्लोक-१०७ अपूर्ण से ३९७ अपूर्ण तक है.) चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जिनपति श्रीवीतरागदेवने; अंति: (-), पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ २२३ १०२९४३. (+#) निरयावलिका पंचोपांग सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८३०, भाद्रपद कृष्ण, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. ५१-१३(१,९ से २०)=३८, कुल पे. ५, ले.स्थल. पाली, प्रले. मु. अनोपचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:निरयावलि., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ३३२७, मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११.५, ७X५१). १.पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. २अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं. कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक पाठ अपूर्ण से अध्ययन-१ सूत्र-१२ अपूर्ण तक है.) कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. कल्पावसंतिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. २२अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: महाविदेहे सिज्झीहिति, अध्ययन-१०, (पू.वि. अध्ययन-१० अंतिम पाठ अपूर्ण से है.) कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदिः (-); अंति: सर्वदखनउ अंत करस्यइ. ३. पे. नाम. पुप्फियासूत्र सह टबार्थ, पृ. २२अ-४२आ, संपूर्ण. पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संगहणीए, अध्ययन-१०. पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ज०जउ भं०हे पूज्य; अंति: ज०जिम सं०संगहणी गाथा. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ४२आ-४५अ, संपूर्ण. पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: विदेहे वासे सिझंति, अध्ययन-१०. __ पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जदपि हे पूज्य श्रमण; अंति: चोथो वर्ग समाप्त. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टबार्थ, पृ. ४५अ-५१अ, संपूर्ण.. वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते० पंचमस्स; अंति: बारस्स उद्देसगा, अध्ययन-१२. वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जजदपी भं०हे भगवंत; अंति: वर्गना बार उद्देसा. १०२९४४. (#) चित्रसेनपद्मावती चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १६८४, आश्विन शुक्ल, मध्यम, पृ. ३४-२७(१ से २७)=७, प्रले. मु. हीराजी ऋषि (गुरु मु. रतनजी ऋषि); गुपि. मु. रतनजी ऋषि (गुरु मु. खेमजी ऋषि); मु. खेमजी ऋषि (गुरु मु. सांवलजी ऋषि), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, ७४३८). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, पा. राजवल्लभ, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: (-); अंति: पालनीयं निरंतरं, श्लोक-५०४, (पू.वि. श्लोक-३९८ अपूर्ण से है.) । चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: दिणहार निरंतर पालै. १०२९४५. नलदमयंती चरित्र, चौदह गुणठाणा सज्झाय व जयकेसरसूरि भास, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १६-३(१३ से १५)=१३, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४११.५, १३४४६-४८). १. पे. नाम. नलदमयंती चरित्र, पृ. १अ-१६अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. नलदमयंती रास, आ. ऋषिवर्द्धनसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १५१२, आदि: सयल संघ सुहसंतिकर; अंति: ऋद्धिवृद्धि तेहनइ ___घर बारि, गाथा-३७८, ग्रं. ५००, (पू.वि. गाथा-३०७ अपूर्ण से ३७५ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. चौदह गुणस्थानक सज्झाय, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: समरवि जिणवरदेव गणहर मन; अंति: सासय सुख गल गर्ज करे, गाथा-१९. ३. पे. नाम. जयकेसरसूरि भास, पृ. १६आ, संपूर्ण. जयकेसरीसूरि भास- अंचलगच्छीय, मा.गु., पद्य, आदि: आज धरि धरिइं वधामणां; अंति: सूरि प्रसन्न रे, गाथा-४. १०२९४६. (+) बावीस अभक्ष्य नाम व कल्याणंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ५४३४). १.पे. नाम. बावीस अखाण, पृ. १अ, संपूर्ण. २२ अभक्ष्य नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सिंह बीदारत्त मत्तगज; अंति: जिनमत ए बावीस अखांन. For Private and Personal Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. कल्याणमंदिर सह टबार्थ, पृ. १आ-८आ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ताहरा चरणकमल कहवानि; अंति: अंगीकार करइ मोक्षनइ. १०२९४७. (+#) नवतत्त्वप्रकरण सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६९०, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. १५, प्रले. मु. क्षमासागर (गुरु मु. लक्ष्मीविनय); गुपि. मु. लक्ष्मीविनय (गुरु मु. तरणिदेव); मु. तरणिदेव (गुरु मु. तपोरत्न); मु. तपोरत्न (गुरु मु. लक्ष्मीलाभ); मु. लक्ष्मीलाभ, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४३१-३७). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: परियट्टो चेव संसारो, गाथा-२७. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानजिनपति; अंति: स्यादिति गाथार्थः, ग्रं. ४७७. १०२९४८.(#) संबोधसप्ततिका सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८२९, वैशाख शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ६-१(३)=५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५,७४४२-४६). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: जयसेहर नत्थि संदेहो, गाथा-९५, (पू.वि. गाथा-३४ अपूर्ण से ४९ अपूर्ण तक नहीं है.) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमीनइ त्रैलोक्यनु; अंति: पामई नत्थिसंदेह न करवू. १०२९४९ (+) गोम्मटसार सह जीवतत्त्वप्रदीपिका वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६८-२९(१ से २८,१५४)=१३९, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४३४-४०). गोम्मटसार, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५१ से गाथा-४११ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) गोम्मटसार-कर्णाटवृत्ति पर आधारित जीवतत्त्वप्रदीपिका वृत्ति, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०२९५० (+#) सूत्रकृतांगसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५७-१(१)=५६, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ६-९४२७-३२). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: जित्ताणं विहरइ त्ति बेमि, अध्याय-२३, ग्रं. २१००, (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उद्देशो-१ गाथा-५ अपूर्ण से है.) सूत्रकृतांगसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: थकी राखनाहरना२ कह्या. १०२९५१. कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. ४, जैदे., (२७४११, १०४३५). १. पे. नाम. षोडशकारण कथा, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण, वि. १७४७, आश्विन शुक्ल, ८, मंगलवार, पे.वि. हुंडी:षोड.क. १६ कारण व्रतकथा, सं., पद्य, आदि: रत्नत्रयं नमस्कृत्य; अंति: करणीयं समाप्तं, श्लोक-७५. २. पे. नाम. मेघमालाव्रत कथा, पृ. ६अ-९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:मेघमाला. ___ सं., गद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: पूर्वमेव उक्तं भवति. ३. पे. नाम. श्रवणद्वादसी कथा, पृ. ९अ-१३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:श्र.द्वा.क. श्रवणद्वादशी कथा, मु. चंद्रभूषण शिष्य, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य परमब्रह्म केवल; अंति: कृता प्राकृत सूत्रतः, श्लोक-८३. ४. पे. नाम. एकावलीव्रत कथा, पृ. १३आ-१५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:एका.व.क. मु. विशदकीर्ति, सं., पद्य, आदि: श्रीवीरं जिनमानम्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४३ तक है.) १०२९५२ (+#) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सहवंदारू टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, २२४५५). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.म.पू.मान्य, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंति: वंदामि जिणे चउव्वीसं. For Private and Personal Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ २२५ श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वंदारू टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: वृंदारुवृंदारकवृंदवं; अंति: वृत्तितोवरचूर्णितश्च, ग्रं. २८२०. १०२९५३. जयतिहुअण स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२६४१०.५, १५४५४-५६). जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तियणवरकप्परुक्ख जय; अंति: अभयदेव विण्णिवइ आणिंदिय, गाथा-३०. जयतिहअण स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: अत्रायं वृद्धसंप्रदायः; अंति: स्त्रिलोकलोकश्लाघितः, ग्रं. २५०. १०२९५४. सीअलनो रास, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १२-१(१)=११, प्र.वि. हुंडी:सील.रा., जैदे., (२५४११.५, ११४२९-३५). शीयलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदि: (-); अंति: सीअल खंडत सेवज्यो, गाथा-६७, ग्रं. २५१, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) १०२९५५ (+) कल्पसूत्र-पंचकल्याणक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९,प्र.वि. हुंडी:पंचकल्याण., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४११.५, ५४३२-३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., महावीरस्वामी के जन्म प्रसंग वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल ते समयने विषे; अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०२९५६. पुद्गल व निगोद षट्त्रिंशिका सह टीका, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३२-२५(१ से २३,२६,३१)=७, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १५४५०-५५). १.पे. नाम. पुद्गलट्त्रिंशिका प्रकरण सह टीका, पृ. २४अ-२५आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा पद्लषत्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण से गाथा-३५ तक है.) भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा पुद्गलषट्त्रिंशिका प्रकरण की टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: २.पे. नाम. निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण सह टीका, पृ. २७अ-३२अ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: लोगस्सेगपएसे जहंणयपय; अंति: ते अणंता असंखा वा, गाथा-३७, (पू.वि. गाथा-२३ से गाथा-२९ तक नहीं है.) भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा निगोदषत्रिंशिका प्रकरण की टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, आदि: अथ पंचमांग एवैकादशशत; अंति: प्यसंख्येया अवसेयाः. १०२९५७.(#) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०-५(१,५ से ८)-५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ९४२७-३२). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., पंचिंद्रियसूत्र अपूर्ण से पुक्खरवर्द्धिसूत्र गाथा-४ अपूर्ण तक व वंदित्तासूत्र गाथा-४५ अपूर्ण से सामायिक पारने की विधि अपूर्ण तक है.) १०२९५८ (+) चतुःशरण प्रकीर्णक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-३(२ से ४)=६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ४४४५). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोगविरई उक्कित; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से गाथा-२८ तक नहीं है.) चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सावध व्यापार त्याग; अंति: प्रतिइ चतुःशरण करिवओ. १०२९५९ (+) प्रश्नव्याकरण-श्रुतस्कंध २ अध्ययन ४ से ५ की टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६४-६(१९ से २१,२९,३६,३९)+८(१२,१७,२४,३१ से ३३,४७ से ४८)-६६,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११,१२४१५-१९). प्रश्नव्याकरणसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. ५६३०, (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं., वि. टीका संक्षिप्त है.) For Private and Personal Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०२९६० (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ४२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, ६४१०-४६). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किटुं; अंति: कहणा पवियालणा संघे, अध्ययन-१० चूलिका-२. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: श्रीजिनधर्म उत्कृष्ट; अंति: कीर्छ जे ए सत्य वचन. १०२९६१ (+#) भवभावनासूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३०, ले.स्थल, जोधपुर, राज्यकालरा. मालदेव, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, ११४२९-३४). भवभावना, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण नमिरसुरवर मणि; अंति: वलीइ कीरउ अलंकारो, गाथा-५३१. १०२९६२ (+#) पद्मावतीदेवी, पंचांगली मंत्राम्नाय व विविधमंत्राराधना संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २९-२३(१ से ६,९ से १२,१४ से २१,२३ से २६,२८)=६, कुल पे. ३,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १३-१८४७०-८०). १. पे. नाम. पद्मावत्याराधना विधि, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी जापमंत्र संग्रह, सं., गद्य, आदि: (१)ॐकार बिंदुसंयुक्तं नित्यं, (२)ॐ नमो भगवते श्रीपार्श्व; अंति: देवी प्रसीद परमेश्वरी. २. पे. नाम. पंचांगुल्याम्नाय विधि, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. पंचांगलीदेवी मंत्र, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ पंचागुली २ परिसर; अंतिः क्रियते सर्वे रोगा यांति. ३. पे. नाम. मंत्राराधनसाधन संग्रह, पृ. ८आ-२९आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , उ.,पहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. अपूर्ण छूटक मंत्र.) १०२९६५ (#) चंदनबाला चरित्र, आदिजिन धवल व पडिलेहण कुलकादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, जीर्ण, पृ. ७-१(१)=६, कुल पे. ४,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११,१३४४८). १. पे. नाम, चंदनबालाचरित्र रास, पृ. २अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. चंदनबालासती रास, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जगि जयवंत भण कवि देपाल, गाथा-१३६, (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम, आदिजिन धवल, पृ. ४आ-७अ, संपूर्ण. श्राव. वच्छ भंडारी, मा.गु., पद्य, वि. १४७१, आदि: जिण चउवीस आराहिसं ए; अंति: कहितां पुन्य प्रकास. ३. पे. नाम, पडिलेहण कुलक, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: आसाढि पउणपहरो दोपयछत्थं; अंति: मास अंगुल चउक्कं वियाणेह, गाथा-१४. ४. पे. नाम. ज्ञाताधर्मकथांगोपनय गाथा-२९ से ३७, पृ. ७आ, संपूर्ण. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-उपनय गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०२९६६. (+#) पट्टावली तपागच्छीय, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८-१(१)-७, पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १३४३४-५०). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. संभूतिविजय से विजयदानसूरि तक है.) १०२९६७. (+) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ५-८x१९-२६). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: (-), (पू.वि. वंदित्तुसूत्र ___गाथा-८ अपूर्ण तक है.) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्री अरिहंतनइ नमस्कारहु; अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ २२७ १०२९६८. (+) देवपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२९x११, १५४६७). जिनपूजा विधि, ग. उदयसोम, सं., पद्य, आदि: ताणे च कोटि वर्षिण दश; अंति: पूजयामि जिनेश्वरं, श्लोक-२८. १०२९६९ (+#) १२ व्रत टीप, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८-२(९,१५)=१६, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८.५४११, ७४२६-३०). १२ व्रत टीप, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम समकीत शुद्धि; अंति: अतर सरीरनि निमत तोला, (पू.वि. नवमा सामायिक व्रत अपूर्ण से देवगुरु ज्ञानपूजा अपूर्ण व आहार वर्णन अपूर्ण नहीं है.) १०२९७६. (#) संस्तारक प्रकीर्णक की अवचूर्णि, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २७-१(१)=२६, प्र.वि. हुंडी अवाच्य है., मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७४११.५, १४४३८-४५). संस्तारक प्रकीर्णक-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: निसृत्य प्राप्तिं ममदनुः, (पू.वि. प्रारंभिक पाठ नहीं है.) १०२९७७. (+#) नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३३, प्र.वि. हुंडी:नंदीसूत्र., संशोधित. कुल ग्रं. ८००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८.५४१२, १२४३०-३५). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: समणुन्नाइं नामाइं, सूत्र-५७, गाथा-७००. १०२९७८. (#) औपपातिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४६, ज्येष्ठ शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ६२, ले.स्थल. जहानाबाद, प्रले. मु. अणंदराम (गुरु मु. धर्मदास); गुपि. मु. धरमदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उवाइसूत्र., कुल ग्रं. १२२५, टिप्पणक का अंश नष्ट, प्र.ले.श्लो. (७) जलाद्रक्षे तैलाद्रक्षे, जैदे., (२७.५४११, ६x६०). औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र-४३, ग्रं. १६००. औपपातिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणइं कालि चउथा आरानइ; अंति: सुख पाम्या थका. १०२९७९ (+#) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १५६१, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. ६०, ले.स्थल. हरिण्यपुर, प्रले. मु. रूपसमुद्र (गुरु उपा. लाभरत्न, खरतरगच्छ); गुपि. उपा. रत्नलाभ (गुरु आ. विवेकरत्नसूरि, खरतरगच्छ); आ. विवेकरत्नसूरि (गुरु आ. जिनसागरसूरि, खरतरगच्छ); राज्ये आ. जिनहर्षसूरि (गुरु आ. जिनसुंदरसूरि, खरतरगच्छ); गुपि. आ. जिनसुंदरसूरि (गुरु आ. जिनसागरसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनसागरसूरि (खरतरगच्छ); पठ. ग. क्षेमचंद्र गणि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४११.५, ७-९४३६-४१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: कोडालसगोत्तस्स भारियाए, व्याख्यान-९. ग्रं.१२१६. १०२९८० (+) स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८६८, आश्विन शुक्ल, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. २१-७(१ से ७)=१४, कुल पे. ७, ले.स्थल. रोहितासपुर, प्रले. पंन्या. तेजविजय; पठ. आ. सुरेंद्रसूरि; अन्य. मु. कुशलविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री शांतिनाथजी प्रशादात्., संशोधित., जैदे., (२७४११.५, १०४३८). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ८अ-११आ, संपूर्ण. आ. मानतंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र, पृ. ११आ-१३आ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. ३. पे. नाम. लघुशांति स्तोत्र, पृ. १३आ-१४आ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांति निशंतं शांतं; अंति: जयनं जयति शाशनम्, श्लोक-१७. ४. पे. नाम, चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, पृ. १४आ-१६अ, संपूर्ण. त्रिषष्टिशलाकापरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: भावतोहं नमामि, श्लोक-२९. ५. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १६आ-२०अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि अंति कुमुद० प्रपद्यते श्लोक-४४. ६. पे. नाम. पार्श्वपरमेश्वर स्तोत्र, पृ. २०अ २१अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. मानविजय, सं., पद्य, आदि चरण कमलं श्रीवाग्देव्याः; अंति: भक्तिभरतो मधुपूर्णिमायाम्, लोक-१०. ७. पे. नाम. गौतमस्वामी अष्टक, पृ. २१अ २१आ, संपूर्ण. 1 गौतमस्वामी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि श्रीइंद्रभूति वसुभूति अति लभते नितरां क्रमेण श्लोक ९. १०२९८१. (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. १८८-४३(१ से ४३) = १४५, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:ज्ञाता.सू., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७११, ११X३९-४६). , ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि (-); अति (-) (पू.वि. श्रुतस्कंध १ अध्ययन-३ अपूर्ण से श्रुतस्कंध-२ वर्ग-१ अध्ययन- १ अपूर्ण तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०२९८२. () सूत्रकृतांगसूत्र- श्रुतस्कंध २ अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पू. २२-२ (१ से २)=२०, पू.वि. बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. हुंडी : सूग०. सूत्रं., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७.५X११.५, १३३८-४५). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि (-) अति (-) (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. अध्ययन- २ सूत्र ८ अपूर्ण से अध्ययन- ३ सूत्र - १८ तक है.) १०२९८३. (+#) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४ व शतक नव्य कर्मग्रंथ -५ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६३-५८(१ से ५७.६१)=५, कुल पे. २, प्र. बि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे., (२७४११.५, ३x२९-३५). १. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४ सह टबार्थ, पृ. ५८अ-५८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ -४ आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी २४वी, आदि (-); अति लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-८६, (पू.वि. गाथा-८४ अपूर्ण से है.) घडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति (अपठनीय). २. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ ५ सह टवार्थ, पृ. ५८ आ-६३आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - ९४वी, आदि: नमिअ जिणं धुवबंधोदय; अंति: (-), (पू. वि. गाथा २१ अपूर्ण तक है.) शतक नव्य कर्मग्रंथ -५-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि जिन केंता तीर्थंकरने अति: (-). १०२९८४. (+) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४-२ (५ से ६) =१२. पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७X११.५, ७×१९-३९). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिओ अरिहंताई ठिई भवणो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण से गाथा २७ अपूर्ण तक व गाथा-७२ अपूर्ण से नहीं है.) बृहत्संग्रहणी- टवार्थ मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ अरिहंत अति (-). (वि. प्रतिलेखक द्वारा प्रारंभिक पत्रों में ही बार्थ लिखा है.) १०२९८५. कल्याणमंदिर स्तोत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैदे. (२७.५४१२, ११X३५). कल्याणमंदिर स्तोत्र- टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथमानम्य अति (-), (पू.वि. श्लोक-१८ तक टीका है.) १०२९८६ (+) तरंगशत, दिनमान गाथा व दिग्शूलपरिहारवस्तु गाधा, अपूर्ण, वि. १६३८, फाल्गुन शुक्ल, १, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १४-१(१)=१३, कुल पे. ३, ले. स्थल. सिरोहीनगर, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७.५x११.५, ११४३६). १. पे. नाम. तरंगशत, पृ. २अ - १४अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. श्रीचंद्र, सं., पद्य, आदि (-); अंति: श्रीचंद्र०मनघं शतमं तरंगं श्लोक-१२०, (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ २२९ २. पे. नाम. दिनमानगणन गाथा, पृ. १४आ, संपूर्ण. जंबद्वीपे रात्रिदिन मान, प्रा., पद्य, आदि: आइ मज्झंतरासी अंताओ आइ; अंति: बिगणं एगजयं करह दिणमाणं, गाथा-१. ३. पे. नाम. दिशाशूलपरिहारवस्तु गाथा, पृ. १४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: रवि तंबोल महखइ दर्पण भोमे; अंति: परदल जीपि घर आवइ, गाथा-२, (वि. अंत में १ प्रास्ताविक गाथा है.) १०२९८७. दशवैकालिकसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ११, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७.५४१२, १५४३९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-५ उद्देश-४ गाथा-२० तक है.) दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जगमाहि धर्मरूपियउं; अंति: (-). १०२९८९ (+) नवतत्त्व, सम्यक्ज्ञान व साधुआचारादि विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१-१४(१ से ४,१८ से २७)=१७, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १५४४१). १.पे. नाम. नवतत्त्व विचार, पृ. ५अ-११अ, संपूर्ण, ले.स्थल. स्तंभ तीर्थ, प्रले. मु. राजचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. परमसौभाग्य, मा.गु., गद्य, आदि: सम्यग्दृष्टिने जे; अंति: सामग्री पुण दुल्लहा. २.पे. नाम. सम्यक्ज्ञानादि विचार संग्रह, पृ.११आ-१७अ, संपूर्ण. सम्यग्ज्ञानादि विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीउत्तराध्ययने नाणेण; अंति: जिनवचनई मिलइ ते प्रमाण. ३. पे. नाम. साधुआचार विचार संग्रह, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण, वि. १६४४, श्रावण कृष्ण, ५, ले.स्थल. स्तंभ तीर्थ. साध्वाचार विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: तथा आचार्य जे हुइ तेहना; अंति: संग्रह करिवउ बोल्यउ छइ. ४. पे. नाम. सम्यक्त्व विचार संग्रह, पृ. २८अ-३१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पांचे ठांमे वर्त्ततउ जीव; अंति: हुइ ए भाववृत्ति माहि छइ. १०२९९० (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४११.५, ३४४५). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-४० अपूर्ण तक है.) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: जे वस्तुनो स्वरूप; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३० अपूर्ण तक लिखा है.) १०२९९१ (#) सम्यक्त्वपच्चीसी, क्षल्लकभव व कायस्थिति प्रकरण सह अवचूरि आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९x११, १५-१७७५५-५७). १.पे. नाम. सम्यक्त्वपच्चीसी सह अवचूरि, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी खंडित है. सम्यक्त्वपंचविंशतिका, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: हवेउ सम्मत्तसंपत्ति, गाथा-२५. सम्यक्त्वपंचविंशतिका-अवचरि, सं., गद्य, आदि: यथा येनोपशमिकत्वादि; अंति: सेसए भयणे सम्यकत्त्व. २. पे. नाम. क्षुल्लकभव प्रकरण सह स्वोपज्ञ अवचूरि, पृ. ४अ-६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी खंडित है. क्षल्लकभव प्रकरण, ग. धर्मशेखर, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्ता सिरिवीरं; अंति: सोहेयव्वं सुयहरेहिं, गाथा-२५. क्षल्लकभव प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, ग. धर्मशेखर, सं., गद्य, आदि: वंदित्ता० सुगमा नवरं; अंति: स्तोकाद्यवलिका भवंति. ३.पे. नाम. कायस्थिति प्रकरण सह टीका, पृ. ६अ-१०अ, संपूर्ण, ले.स्थल. भीनमाल, पे.वि. हंडी:कायस्थितिवृ. कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुह दंसणरहिओ काय; अंति: अकायपयसंपयं देसु, गाथा-२४. कायस्थिति प्रकरण-टीका, आ. कुलमंडनसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: वर्द्धमानं जिनं; अंति: सहस्राभ्यधिकपूर्वकोटिरिति. For Private and Personal Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. दूसमदंडिका-बृहत्, पृ. १०अ-११आ, संपूर्ण, ले.स्थल. लाटद्रह, पे.वि. हुंडी खंडित है. आ. मतिप्रभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अवस्सप्पिणी उसप्पिणि भेएण; अंति: मइपभसूरीहिं संकलीया, गाथा-५९. ५. पे. नाम. प्रमुख जैन ऐतिहासिक घटनाक्रम संवतवार, पृ. ११आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: श्री महावीर पूठि ८८२ वर्ष; अंति: दसि कीधी उमास्वातिसूरि. ६. पे. नाम. प्रवचनसारोद्धारगत प्रतिलेखनदीक्षाविचारादि गाथा संग्रह, पृ. ११आ, संपूर्ण. प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. गाथा-२५, ५९१ व ७९० से ७९४. साधु उपकरण पडिलेहण काल व दीक्षा योग्य पात्र विचार.) १०२९९२ (+) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११, १७४४५). औपदेशिक सज्झाय, रा., पद्य, वि. १८९३, आदि: बाइ थे तौ साचा सतगुर पाया; अंति: सारो मास असाढ मझारो जी, गाथा-१८. १०२९९३ (+) जीवविचार प्रकरण सह पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. १८७८, ज्येष्ठ शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. २१-१(५)=२०, ले.स्थल. कलकत्ता, प्रले. गंगाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. २००, जैदे., (२८x१०.५, ७४२५-२८). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुय समुद्दाओ, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा-७ से गाथा-१० अपूर्ण तक नहीं है.) जीवविचार प्रकरण-पद्यानुवाद, मु. आलमचंद, पुहिं., पद्य, वि. १८१५, आदि: तीन भुवन मैं दीप समान; अंति: नित नित दीज्यो अधिक आनंद, गाथा-११४. १०२९९४. (#) जंबूद्वीपादिविचार संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५-९(१,३ से १०)=६,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२८x११, १६४५४). जंबूद्वीपादिविचार संग्रह, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., भरतक्षेत्र वैताढ्य पर्वत वर्णन अपूर्ण से गंगादि नदियों के वर्णन अपूर्ण तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०२९९५ (+) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ३६, अपूर्ण, वि. १८२९, आषाढ़ कृष्ण, १२, शनिवार, मध्यम, पृ. १२-७(१ से ४,६ से ८)=५, प्रले. मु. तुलसीराम; पठ. मु. रामूजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उत्तरा., संशोधित., जैदे., (२७.५४११.५, १३४३७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सम्मए त्ति बेमि, (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., गाथा-६१ अपूर्ण से गाथा-८९ अपूर्ण तक व गाथा-१७६ से है.) १०२९९६ (#) तेजसार चउपई, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २०-१(४)=१९, प्र.वि. हंडी:तेजसार., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४११.५, १३४३६). तेजसारकुमार रास, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६२४, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलतिलो; अंति: तेहना सहु मनोरथ फलइ, गाथा-४१४, (पू.वि. गाथा-६१ अपूर्ण से गाथा-८२ अपूर्ण तक नहीं है.) १०२९९७. सिंदूरप्रकर का पद्यानुवाद व अष्टप्रकारीपूजा दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, १५४३८-४५). १. पे. नाम, सिंदूरप्रकर का पद्यानुवाद, पृ. १अ-९आ, संपूर्ण. सिंदूरप्रकर-पद्यानुवाद भाषा, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९१, आदि: सोभित तप गजराज सीस; अंति: करनछत्र सित पाख, अधिकार-२२, गाथा-१०४. २.पे. नाम, अष्टप्रकारीपूजा दोहा, पृ. ९आ, संपूर्ण. ८ प्रकारीपूजा दोहा, पुहिं., पद्य, आदि: जलधारा चंदन पुहुप; अंति: दीजै अर्घ अभंग, दोहा-१०. १०२९९८. पांडव रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.८, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., दे., (२७.५४१२, १७४६०). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: श्रीजिन आदिजिनेश्वरू; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१५ दूहा-३ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०२९९९. २४ दंडक ३० द्वार विचार, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७ जैवे (२६४१२, १३x४२) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक१ लेस्या २ ठिति; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., द्वार-५ अपूर्ण तक लिखा है.) १०३१४०. कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १५१६, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. श्राव. देवदास पठ. आ. देवरत्नसूरि (आगमगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (३०.५X११.५, ९x४१). कालिकाचार्य कथा, प्रा., पद्य, आदि: हयपडिणीयपयावो; अंति: हवंतु भव्वाण भद्दकरा, गाथा-१२३. १०३१४१. (#) मरणसमाधि प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र. वि. हुंडी : मरणविधि प्रकीर्णक., मूल पाठ का अंश खंड है, जैदे. (३०.५x११.५. १५४५८-५९). " 3 मरणसमाधि प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि तिहुअण सुरारविंद, अंतिः संझाणं जे सुझा यव्वं, गाथा- ६५९. १०३१४२. (+) पंचवर्गपरिहारनाममाला व देशीनाममाला, संपूर्ण, वि. १५५०, फाल्गुन कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. २७, कुल पे. २, ले. स्थल, मयणाग्राम, प्रले. मु. गुणनिधान (गुरु आ. शालिभद्रसूरि बृहद्रच्छ); गुपि. आ. शालिभद्रसूरि (बृहद्गच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे. (३१४११. १५५२-६२). " १. पे. नाम. पंचवर्गपरिहारनाममाला, पृ. १आ - ९आ, संपूर्ण. पंचवर्गपरिहार नाममाला, आ. जिनभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि अपवर्गपदाध्यासितमपवर्ग; अंति अकरोज्जिनभद्रसूरिमिमां, श्लोक-१६१. २३१ २. पे. नाम. देशीनाममाला, पृ. ९आ-२७आ, संपूर्ण. " आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, प्रा. पद्य वि. १२वी आदि गमणय पमाण गहिरा सहिय; अति सिरिहेमचंदमुणिवइणा, वर्ग-८, गाथा-६७६. १०३१४९. (+) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका सह स्याद्वादमंजरीटीका व जीवादि भेद षद्रव्य गाथा संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पू. ४०, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (३२.५x१२, १८७१). १. पे. नाम. अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका सह स्याद्वादमंजरीवृत्ति, पृ. १आ- ४०अ, संपूर्ण. " अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी आदि अनंतविज्ञानमतीत; अंतिः कृतसपर्याः कृतधियः, श्लोक-३२. " अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका स्वाद्वादमंजरी वृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं. गद्य श. १२१४, आदि यस्य ज्ञानमनंतवस्तु अंति: सास्त्यत्र सम्यग्यतः, २. पे. नाम जीवादि भेद पद्रव्यस्वरूप गाथा, पृ. ४० अ, संपूर्ण. जीवादि भेद षट्द्रव्य स्वरूप गाथा, सं., पद्य, आदि: जीवो जीवश्चेति समास; अति (-) (वि. पत्रांक चिपके होने से श्लोक परिमाण व अंतिम पाठ अज्ञात है. लगभग श्लोक-२५ हो सकते हैं.) १०३१५१. (+) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, अपूर्ण, वि. १६वी, जीर्ण. पू. २९९-२०० (१ से १९९, २०१२) =९९ पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. हुंडी श्री वीरचरित्रं संशोधित. जैवे. (३१४११.५, १५×५९-६०). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पर्व १० सर्ग-९ श्लोक-६९ से १२४ अपूर्ण तक व सर्ग -१ श्लोक-१८३ से सर्ग १२ श्लोक-२८६ अपूर्ण तक है.) १०३१५२. (+) आचारदिनकर १५ से ३६ व ४०वाँ उदय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १३९- १ (८७) + १ (९१) = १३९, प्र. वि. ग्रंथ के पत्रांक १से१२१+१ से १८ है., संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे. (३१.५X१२.५, १३-१४५१-५८). आचारदिनकर, आ. वर्द्धमानसूरि, सं. प+ग, आदि (-); अति महानंदभूतो जयंति (प्रति अपूर्ण, पू. वि. सर्वदिग्पाल , " " For Private and Personal Use Only निपूजा के बीच का पाठ नहीं है.) १०३१५४. (+) उत्तराध्ययनसूत्र की सुखबोधा टीका, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पू. २६४, प्र. वि. हुंडी उत्तराध्ययनटीका अंतिम पत्र चिपके होने के कारण प्रशस्ति अधूरी है., पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न संशोधित संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ.. जैदे., (३३X१३, १४४४७). Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदि: प्रणम्य विघ्नसंघात; अंति: संमता निअभिप्रेतानि, ग्रं. १२०००. १०३१५५. बृहत्कल्पसूत्र सह सुखावबोधा टीका, नियुक्ति, नियुक्ति की टीका, लघुभाष्य, भाष्य की टीका, नियुक्ति का लघुभाष्य व भाष्य की टीका, पूर्ण, वि. १५३३, श्रेष्ठ, पृ. ७२०-२(२६७ से २६८)=७१८, ले.स्थल. मंडपदुर्ग, प्रले. पं. विजयसोम गणि (खरतरगच्छ); राज्ये आ. जिनचंद्रसूरि (गुरु आ. जिनभद्रसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:क०.वृ०.४०.ख०., जैदे., (३२.५४१२, १५४६०-६४). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पइ निग्गंथाण; अंति: कप्पट्टिई तिबेमि, अध्याय-६. बृहत्कल्पसूत्र-सुखावबोधा टीका, आ. मलयगिरिसरि ; आ. क्षेमकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रकटीकृतनिःश्रेयसपदहेतु; अंति: मिथ्या दुष्कृतं भूयात्. बृहत्कल्पसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पाठांश नहीं है.) बहत्कल्पसूत्र-निर्यक्ति की टीका #, आ. मलयगिरिसरि ; आ. क्षेमकीर्तिसरि, प्रा.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पाठांश नहीं हैं.)। बृहत्कल्पसूत्र-लघुभाष्य #, ग. संघदासगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: काऊण नमोक्कारं तित्थ; अंति: य आराहण छिन्नसंसारी, (पू.वि. बीच के पाठांश नहीं हैं.) बृहत्कल्पसूत्र-लघुभाष्य की टीका, आ. मलयगिरिसूरि ; आ. क्षेमकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पाठांश नहीं हैं.) बृहत्कल्पसूत्र-नियुक्ति का लघुभाष्य #, ग. संघदासगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पाठांश नहीं हैं.) बृहत्कल्पसूत्र-नियुक्ति के लघुभाष्य की टीका #, आ. मलयगिरिसरि ; आ. क्षेमकीर्तिसरि, सं., गद्य, वि. १४वी, ___ आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०३१६४. (+) चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३१-२(११,१४*)=२९, प्र.वि. हुंडी:चंदप०.सू०. पत्रांक-१३ और १४ दोनों एक ही पत्र पर दिया हुआ है., संशोधित., जैदे., (३३४११.५, १५-१७४६४-७९). चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरि० जयति नवणलिण; अंति: अविणीएसु दायव्वं, प्राभृत-२०, ग्रं. १८५४, (पू.वि. प्राभृत-१३ अपूर्ण से प्राभृत-१५ अपूर्ण तक नहीं है.) १०३२२६. बृहत्कल्पसूत्र सह चूर्णि, संपूर्ण, वि. १४९६, माघ शुक्ल, १, मंगलवार, मध्यम, पृ. २४१, ले.स्थल. स्तंभतीर्थ, प्रले. श्राव. सांगा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. नियुक्ति व भाष्य का मात्र प्रतीक पाठ दिया गया है., जैदे., (३५४१२.५, १५४६६). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पइ निग्गंथाण; अंति: कप्पट्टिई त्तिबेमि, उद्देशक-६, ग्रं. ४७३. बृहत्कल्पसूत्र-चूर्णि #, प्रा.,सं., गद्य, आदि: मंगलादीणि सत्थाणि०० कल्प; अंति: छेत्तुं मोखं पाठतीति, ग्रं. १२७००. १०३२२८. चतुर्विंशति प्रबंध, अपूर्ण, वि. १४८८, फाल्गुन कृष्ण, ७, गुरुवार, जीर्ण, पृ. ५३-२(१ से २)=५१, ले.स्थल. तलउली, प्रले. मु. मतिसागर (उपकेशगच्छ); पठ. ग. जयचंद्र (गुरु पं. अमरचंद्र गणि); गुपि.पं. अमरचंद्र गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ४०२५, जैदे., (३५.५४१२.५,१६-२०४५६-७०). प्रबंधकोश, आ. राजशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४०५, आदि: (-); अंति: सुखं तन्यात्, प्रबंध-२४, ग्रं. ३८७८, (पू.वि. प्रबंध-२ अपूर्ण से है.) १०३२३० (+) स्तुति, स्तवन व स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १५वी, मध्यम, पृ. ११-१(१)=१०, कुल पे. ३९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (३५.५४९.५, १७-२१४८५-९४). १.पे. नाम. गौतमस्वामी स्तोत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: भवते गौतमं नमः, श्लोक-२१, (पू.वि. श्लं २. पे. नाम. शत्रुजयमहातीर्थ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ कल्प, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सुय धम्मकित्तियं तं; अंति: सित्तुंज्जए सिद्धं, गाथा-३९. ३. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. मोक.६अपणस पूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं., पद्य, आदि शत्रुंजयाद्रिरयमाद्यः अति कुटुंबाय विभज्यवेन, श्लोक-३. संपूर्ण. ४. पे. नाम. समयप्रमाण गाथा, पृ. २आ, प्रा., पद्य, आदि दुन्निवसयाई नियमा; अंतिः ई पंचाणूबाई अंसाणं, गाथा-३. ५. पे. नाम महावीरजिन स्तव, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: जिनवल्लभ० दयालो मयि लोक-३०. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव, आ. धर्मसूरि, सं., पद्य, आदि: कस्तूरीतिलकं भुवः अति: श्रीधर्म्मसूरि० विभुः श्लोक-१६. ७. पे नाम. साधारणजिन स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति-अष्टप्रातिहार्यगर्भित, सं., पद्य, आदि: प्रातिहार्यकलितासम; अंति: मे निजपदाव्ययभक्तिम्, श्लोक-६. ८. पे. नाम महावीरजिन द्वात्रिंशिका, पृ. ३आ-४अ संपूर्ण. महावीर जिन द्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेन, सं., पद्य, आदि स्तोष्ये जिन महावीर अति वर्द्धमानो जिनेंद्र, गाथा-३३. ९. पे. नाम. रैवताचल चैत्यपरिपाटी, पृ. ४अ संपूर्ण रैवताचल चैत्यपरिपाटी-स्तवन, आ. चंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि राजीमति युवति मानसराजहंसः अति मे दुष्टाष्टकर्मछिदे श्लोक-२१. " १०. पे नाम. वीतराग अष्टक, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. आ. जैत्रसूरि, सं., पद्य, आदि : शीतं शिवं शिवपदस्य; अंति: विलंघितभवांबुधिमध्यभागं, श्लोक ८. ११. पे नाम साधारणजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण, साधारणजिन स्तव, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: व्यधित साधितसाधूतपाः; अंति: भवंतं भविनः स्तुवंतः, श्लोक-१०. १२. पे नाम. शत्रुंजय स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: श्री आदिनाथ जगन्नाथ; अंति: शासनं ते भवे भवे, गाथा-५. १३. पे. नाम. साधारणजिन स्तोत्र, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तव, श्राव. कुमारपाल महाराजा, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: नम्राखिलाखंडलमौलि; अंतिः स्ताद्वर्द्धमानो मम श्लोक-३३. १४. पे. नाम सिद्धांत स्तव, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण. आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नत्वा गुरुभ्यः श्रुतदेवता; अंति: जिनप्रभ० सगमनोत्सवम्, श्लोक-४६. १५. पे नाम. शांतिनाथ स्तव, पृ. ५आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तव, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: देवाधिदेवाय जगत; अंति: संपद्वल्ले: फलदं सदा, श्लोक- ७. १६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: विभुं जीरिकापल्लीवासे; अंति: भयहारी मे च सद्भक्तिभाजः, श्लोक-११. १७. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण. लोक-१. सं., पद्य, आदि मौली फणिफणाः सप्तनयश्री अंतिः यस्य पार्श्व स पातु वः, १८. पे. नाम. नेमिनाथ विनती, पृ. ६अ, संपूर्ण. मिजिन विनती, मा.गु., पद्य, आदि हरिषुमाइ नही हिवड, अंति: देव देजे नियपय वासु, गाथा- ११. १९. पे. नाम. आरासणतीर्थ स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only २३३ आ. जयानंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि रजत कांचन सीसक आगरा, अंतिः स्तु भवेर्लभते शिवं, गाथा-२१. २०. पे. नाम आरासण महातीर्थ स्तवन, पू. ६अ ६आ, संपूर्ण. Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २३४ www.kobatirth.org आरासणतीर्थ स्तव, प्रा., पद्य, आदि: विलसिरकिन्नर महुरगीय; अंति: उ लहंति भवुदहितरिउणं, गाथा-११. २१. पे. नाम जीरापल्लीपार्श्वनाथ स्तव, पू. ६आ-७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव जीरापल्ली, मु. देवसुंदर, प्रा., पद्य, आदि जय सिरिपासजिणंदचंद अति पासअचिरेणुक्कंठिङ, गाथा - २५. २२. पे. नाम. भावनासंधि प्रकरण, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण. आ. जयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: पणमवि गुणसायर भुवण, अंति: गहु अन्नुवि धरहुमणि, गाथा- ६२. २३. पे नाम सर्वजिन साधारण स्तवन, पृ. ८अ संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधारणजिन स्तव, प्रा., पद्य, आदि: नमो ते छिन्नसंसार; अंति: संकुलम्मि भवं नमे, गाथा-५. २४. पे नाम साधारणजिन स्तवन, पृ. ८अ संपूर्ण. साधारणजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सः श्रीयं श्रीमदर्हतः; अंति: सदैवेनं ते भवति जिनप्रभः, श्लोक- ५. २५. पे नाम चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. ८अ संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथमजितं प्रभु; अंति: सर्गहरणानि सुमंगलानि, श्लोक ५. २६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ८ अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथं जगदेकनाथं; अंति: नमाम्यहं निर्मलनीलवर्णं, श्लोक - १. २७. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तव, आ. धर्मघोषसूरि, सं., पद्य, आदि: नम्राखंडलमौलिमंडल, अतिः प्राप्नोत्यनंतं सुखम् श्लोक ८. २८. पे. नाम. अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण. आ. शांतिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि परबत जोवण बार रलीआमण; अति णु एके मनह न वीसरइ ए. गाथा ११. २९. पे. नाम. जयतिहुअण स्तोत्र, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि जय तिहुयणवरकप्परुक्ख जय अंति: सिरिअभयदेव विनवह आनंदिय 3 " प्रा., पद्य, आदि: माधवई एत्तलाओ ईसि; अंति: अनुत्तरायं चउक्कम्मि, गाथा-१५. ३३. पे. नाम आचार्यमंत्र स्तव, पू. १०अ संपूर्ण. गाथा ३०. ३०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि भोगी यदालोकनतोषि; अति दशावतारी वरदसुपार्श्वः, श्लोक १. ३१. पे. नाम उर्ध्वधस्तिर्यग्लोकाची शाश्वततीर्थ स्तोत्र, पृ. ९आ, संपूर्ण. " शाश्वतचैत्य स्तव, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. पद्य, आदि सिरिङसहवद्धमाणं; अति तु भवियाण सिद्धिसुहं, गाथा २४. ३२. पे. नाम लोकनाली गाथा, पृ. ९आ, संपूर्ण. सूरिमंत्र स्तव, प्रा., पद्य, आदि: पढमपय सुपयट्ठा० भत्त; अंति: निदट्ठिय कम्मट्ठयं, गाथा-२०. ३४. पे नाम. चिंतामणि श्रीपार्श्वनाथद्वात्रिंशिका, पृ. १०अ १०आ, संपूर्ण. पार्श्वजिनद्वात्रिंशिका - चिंतामणि, सं., पद्य, आदि जगद्गुरुं जगद्देवं; अंतिः शश्वदन्वेषणीयम्, श्लोक-३२. ३५. पे. नाम, नेमिनाथ स्तोत्र, पृ. १०आ, संपूर्ण. मिजिन स्तोत्र, आ. रत्नप्रभसूरि, प्रा. शौ. सं., पद्य, आदि अमंद भंदोदयकंदसार; अति घटा पटु स्यात् श्लोक-१७. ३६. पे. नाम चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. १० आ-११अ संपूर्ण For Private and Personal Use Only मु. सागरचंद्र, सं., पद्य, आदि: जगति जडिमभाजि; अंति: सागरचंद्र० गुप्तकैः, श्लोक-२५. ३७. पे नाम. पार्श्वजिनत्रोटक स्तव, पृ. १९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिनत्रोटक स्तव-शंखेश्वर, मु. उदयऋद्धि, प्रा., पद्य, आदि: संख उरगामिहिं पाससाम; अंति: भत्तिहं संठि संठिया, गाथा - १०. ३८. पे. नाम रैवताचल स्तवन. पू. ११अ ११आ, संपूर्ण Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३५ गिरनारतीर्थ स्तव, श्राव. वस्तुपाल महामात्य, सं., पद्य, आदि: चौलुक्यमहीमहेंद्रसचिवः; अंति: वस्तपाल० भूषणं चक्रे, लोक-१२. ३९. पे नाम. वीतराग महास्तोत्र, पृ. ११आ, संपूर्ण. श्रियो दुर्लभाः, श्लोक १०. मु. चंद्रकीर्ति, सं., पद्य, आदि: तत्त्वं कल्पद्रुमविभ; अति १०३२७४. प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, संपूर्ण, वि. १९५५, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र. वि. कुल ग्रं. ३५५, दे., (३५X१३, ९४५६-६१). प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, आ. वादिदेवसूरि, सं., प+ग. वि. १९५२-१२२६, आदि रागद्वेषविजेतारं ज्ञातारं अंति यावत्स्फूर्ति च वाच्यम्, परिच्छेद ८. १०३२७५. अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे., ( ३५X१३.५, ९X६० ). अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: अनंतविज्ञानमतीत; अंति: (-), (पू.वि., श्लोक ८ तक है.) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका - स्याद्वादमंजरी वृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं., गद्य, श. १२१४, आदि: यस्य ज्ञानमनंतवस्तु; अंति: (-). १०३२७६. (+) धम्र्मोपदेशामृत, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २५, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें- अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ.. जै.... (३४.५X१३, ८४०-४१). धर्मोपदेशामृत, मु. पद्मनंदी, सं., पद्य, आदि कायोत्सर्गायतांगो जयति, अंतिः पद्म० धर्मोपदेशामृतं श्लोक-१९९. १०३२७९. (+) वृहत्कल्पसूत्र खंड १ व ४ सह सुखावबोधा टीका, निर्युक्ति, निर्युक्ति की टीका, लघुभाष्य, भाष्य की टीका, निर्युक्ति का लघुभाष्य व भाष्य की टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २४५, प्र. वि. खंड १ के कुल पत्र १६६ व खंड ४ के कुल पत्र ७९ हैं हुंडी : कल्पवृत्तिचतुर्थखंड, कल्पवृत्तिप्रथमखंड संभवतः ग्रंथाग्र चारों खंडों का दिया है., संशोधित. कुल ग्रं. ५५५१०, जैदे., (३५X१३, १७X६४-६६ ). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि नो कप्पड़ निगंधाण अंतिः कप्पट्टिई तिमि ग्रं. ४७३, प्रतिपूर्ण. बृहत्कल्पसूत्र - सुखावबोधा टीका, आ. मलयगिरिसूरि आ. क्षेमकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि नतमघवमौलिमंडलमणिमुकुट, अंतिः मिथ्या दुष्कृतं भूयात् ग्रं. ४२६०० प्रतिपूर्ण. बृहत्कल्पसूत्र-निर्युक्ति, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति (-), प्रतिपूर्ण बृहत्कल्पसूत्र- नियुक्ति की टीका #. आ. मलयगिरिसूरि : आ. क्षेमकीर्तिसूरि, प्रा. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), "" प्रतिपूर्ण, बृहत्कल्पसूत्र लघुभाष्य ॥ ग. संघदासगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि काऊण नमोक्कार तित्व; अति: य आराहण छिन्नसंसारी, प्रतिपूर्ण बृहत्कल्पसूत्र -लघुभाष्य की टीका, आ. मलयगिरिसूरि आ. क्षेमकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि (-); अति: (-), प्रतिपूर्ण बृहत्कल्पसूत्र-निर्युक्ति का लघुभाष्य #, ग. संघदासगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. बृहत्कल्पसूत्र-निर्मुक्ति के लघुभाष्य की टीका #. आ. मलयगिरिसूरि : आ. क्षेमकीर्तिसूरि, सं., गद्य वि. १४बी. आदि (-); अति (-), प्रतिपूर्ण " १०३२८०. तंदुलवैचारिकादि प्रकीर्णक संग्रह, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १७, कुल पे. ५, जैदे., (३४.५X१३, १७५४). १. पे. नाम. तंदुलवेवालियं पड़न्न, पृ. १अ ८अ संपूर्ण, वि. १५७४, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, रविवार, ले. स्थल, कृष्णपुर, प्रले. उपा. ज्ञानसुंदर (धर्मघोषगच्छीय), प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. हुंडी : तंदुलवैया., तंदुलवैया०पइन्न., तंदुल. कुल ग्रं. ४४१ तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग, आदि निज्जरिय जरामरणं; अति मुच्चह सव्वदुक्खाणं. २. पे. नाम. चंदाविज्झ पइन्न, पृ. ८अ १२अ संपूर्ण, पे.वि. हुंडी चंदाविज्ञ. चंद्रावेध्यक प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: जगमत्थयत्थयाणं विगसि; अंति: दोग्गइविणिवायगमणाणं, गाथा- १७५. ३. पे. नाम. आतुरपच्चक्खाण, पृ. १२अ १३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: आतुरपच्च. For Private and Personal Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., वि. ११वी, आदि: देसिक्कदेसविरओ; अंति: खयं सव्वदुक्खाणं, गाथा-६०. ४. पे. नाम, चतुःशरण प्रकीर्णक, पृ. १३आ-१५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:चउसरणं ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ५. पे. नाम. संथारग पयन्नं, पृ. १५अ-१७आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:संथारग. संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: काऊण नमुक्कारं जिणवर; अंति: सुहसंकमणं सया दिंतु, गाथा-१२०. १०३२८२. (+#) समवायांगसूत्र की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १५५१, पौष शुक्ल, ४, शुक्रवार, मध्यम, पृ.५५-२(१,५०)=५३, प्र.वि. हंडी:समवाय वृ०., समवा०व०., समवा०वृत्ति. ४९ और ५० ये दोनो नंबर एक ही पेज पर है. अंतिम पत्र जीर्ण व फटा होने के कारण अवाच्य है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ४५७५, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (३४.५४१४, १६-१७४६९-७४). समवायांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदिः (-); अंति: वृत्तितः समाप्तम्, ग्रं. ३५७५, (पू.वि. अध्ययन-१ अपूर्ण से है.) १०३२८३. (+) अंतकृतदशांग, अनुत्तरोपपातिकदशांग व प्रश्नव्याकरणसूत्रादि की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १६वी, जीर्ण, पृ. ७१-१(१)=७०, कुल पे. ४, प्रसं. मु. कमलमंदिर (गुरु आ. जिनगुणप्रभसूरि, बृहत्खरतरवेगडगच); गुपि. आ. जिनगुणप्रभसूरि (गुरु आ. जिनमेरुसूरि, बृहत्खरतरवेगडगच); आ. जिनमेरुसूरि (गुरु आ. जिनधर्मसूरि, बृहत्खरतरवेगडगच); आ. जिनधर्मसूरि (गुरु आ. जिनशेखरसूरि, बृहत्खरतरवेगडगच); आ. जिनशेखरसूरि (गुरु आ. जिनेश्वरसूरि, बृहत्खरतरवेगडगच); आ. जिनेश्वरसूरि (बृहत्खरतरवेगडगच), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. प्रतिसंशोधक ही प्रतिलेखक होने की संभावना है. अन्त में "जिनगुणप्रभसूरीणां विनेय पं. कमलमंदिरादिसेवितचरणानां पुस्तकमिदं" लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (३४४१३, १९४६३-६९). १. पे. नाम. अंतकृद्दशांगसूत्र की टीका, पृ. २अ-६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., पे.वि. हुंडीवाला भाग खंडित है. अंतकृद्दशांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: विवरणादवसेयमेवं च, वर्ग-८, (पू.वि. वर्ग-१ अध्ययन-१ सूत्र-२ अपूर्ण से नहीं है.) २. पे. नाम. अनंतगमसूत्र, पृ. ६आ, संपूर्ण. अनंतगमपर्याय श्लोक-जिनोक्त, सं., पद्य, आदि: अनंत गम पर्याय जिनवर; अंति: न तु विधीयतां सर्वथा, श्लोक-१. ३. पे. नाम. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र की टीका, पृ. ६आ-८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी भाग खंडित है. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टीका , आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: अथानुत्तरौपपातिकदशा; अंति: न क्षायमिति क्षमा, वर्ग-३, (वि. प्रारंभ में भगवान का सुंदर रंगीन चित्र है.) ४. पे. नाम. प्रश्नव्याकरणसूत्र की वृत्ति, पृ. ८आ-७१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:प्रश्नव्या०वृत्ति. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: (१)समाप्तानीति _ब्रवीमीति, (२)संशोधिता चेयम्, अध्याय-१०, ग्रं. ५६३०, (वि. प्रारंभ में भगवान का सुंदर रंगीन चित्र है.) १०३२८४. (+2) प्रश्नव्याकरणसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. १४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. १२५०, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (३४.५४१४, १९४७८-७९). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर; अंति: सरीरधरे भविस्सइति, अध्याय-१०, गाथा-१२५०, ग्रं. १३००. १०३२८५ (+#) कल्पसूत्र की व्याख्या, संपूर्ण, वि. १६वी, आश्विन शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ३४, प्रसं. ग. तेजोराज (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सं०विषोषधि. जिनभद्रसूरि के आदेश से तेजोराज गणि द्वारा वि. सं. १५३७ में संशोधित., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं.३०४१, मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , जैदे., (३४.५४१४, २१४८२). कल्पसूत्र-संदेहविषौषधि टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १३६४, आदि: ध्यात्वा श्रीश्रुतदेवीं; अंति: न के वांछितसिद्धिपारम्, ग्रं. २२६८. For Private and Personal Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ २३७ १०३२८६. (+) विधिप्रपा नाम सुविहित समाचारी, उत्तराध्ययनसूत्र व देवपूजादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १५वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, कुल पे. ८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (३३.५४१३.५, १६-१९४५९-७३). १.पे. नाम. विधिप्रपानाम सुविहित समाचारी-प्रतिष्ठाविधि आदि अपेक्षित विधि संग्रह, पृ. १अ-१०आ, संपूर्ण, पे.वि. संपूर्ण ग्रंथ न होकर के विधिमार्गप्रपा ग्रंथ की प्रतिष्ठाविधि, तीर्थयात्राविधि तिथि आदि कुछेक विधि व अंतिम प्रशस्ति श्लोक दिये हैं. कुल ग्रं. ३५७४ विधिमार्गप्रपा नाम सुविहितसमाचारी, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३६३, आदिः (-); अंति: (-), ग्रं. ३५७४, प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ३, पृ. १०आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. देवपूजा विधि, पृ. १०आ-१४अ, संपूर्ण. आ. जिनप्रभसूरि, प्रा.,सं., गद्य, वि. १४वी, आदि: संपयं जहा संपदायं सावयाणं; अंति: आम्नायतः सुगुरोः, ग्रं. २६९. ४. पे. नाम. गच्छसामाचारी, पृ. १४अ-१५अ, संपूर्ण.. ___प्रा., गद्य, आदि: आयरिय उवज्झाए इच्याइ; अंति: जिणस्सच्छ कल्लाणयाई, ग्रं. ५१. ५. पे. नाम. तपोरत्नमालिका, पृ. १५अ-१६अ, संपूर्ण. आ. सुमतिसिंहसूरि-शिष्य, प्रा., पद्य, आदि: पढमंतिमे जिणिंदे; अंति: यावि सिवलच्छिवच्छयलो, गाथा-७०. ६.पे. नाम. जिनप्रभसूरि व्यवस्थापत्र, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. सामाचारी व्यवस्थापत्र-खरतरगच्छीय, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि: यथा सर्वं वस्त्र; अंति: भंगजो दोषो धर्मः. ७. पे. नाम. लोच विधि, पृ. १६आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: पच्चइएणय लोओ कायव्वो; अंति: सावण पवेयणाइ न करेइ. ८. पे. नाम. उपयोग विधि, पृ. १६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा., गद्य, आदि: पव्वइएणय उभयकालं; अंति: (-), (पू.वि. पाठ-"देवसिय पडिक्कमणमारभंति जहाचेइयवंद" तक है.) १०३२८७. (+) शीलोपदेशमाला सह वृत्ति व कथा, संपूर्ण, वि. १५३०, पौष शुक्ल, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५९, प्रले. मु. हर्षधीर; अन्य. ग. साधुराज (गुरु उपा. तपोरत्न); गुपि. उपा. तपोरत्न; अन्य. मु. देवीचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (३५४१३.५, १९-२४४६४-७३). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबंभयारि नेमि; अंति: आराहिय लहह बोहिसुहं, कथा-४३, गाथा-११५. शीलोपदेशमाला-वृत्ति, आ. विद्यातिलकसरि, सं., गद्य, वि. १३९४, आदि: अबाल ब्रह्म० गत्सारं; अंति: शास्त्रं श्रियो मंदिरं, ग्रं. ६५००. शीलोपदेशमाला-कथा *, मा.ग., गद्य, आदि: अबाल ब्रह्मचारिणं जगत्सार; अंति: सोख्यान्यखिलान्यवाय. १०३२८८. (+) उपदेशमाला सह टीका, संपूर्ण, वि. १५१७, भाद्रपद कृष्ण, ६, सोमवार, मध्यम, पृ. ३५, प्रले. श्राव. खेतसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (३५४१३.५, २३-२५४७१-८६). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: दायव्वा बहुसुयाणं च, गाथा-५४०. उपदेशमाला-हेयोपादेया वृत्ति, ग. सिद्धर्षि गणि, सं., गद्य, वि. १०वी, आदि: हेयोपादेयार्थोपदेश; अंति: साधनपर: खलु जीवलोकः, ग्रं. ९५००. १०३२८९ (+#) पंचकल्पसूत्र का भाष्य व चूर्णि, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ६९, कुल पे. २, ले.स्थल. मंडपदुर्ग, लिख. ग. सोमध्वज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३३४१३, २१४६७-७३). १.पे. नाम. पंचकल्पसूत्र का भाष्य, पृ. १अ-३५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पंचकल्पभाष्य. पंचकल्पसूत्र-बृहद्भाष्य, ग. संघदासगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: वंदामि भद्दबाहुं; अंति: व्वोच्छित्तट्ठया चेव, गाथा-२५७४, ग्रं. ३१००. For Private and Personal Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. पंचकल्पसूत्र की चूर्णि, पृ. ३५अ-६९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पंचकल्पचूर्णी. कुल ग्रं.३०४० पंचकल्पसूत्र-चूर्णि#, प्रा.,सं., गद्य, आदि: मंगलादीणि० अधुनास्मिन्नाम; अंति: करेंति दक्खक्खयं धीर, ग्रं. ३३४५. १०३२९१ (#) व्यवहारसूत्र सह भाष्य व टीका, पूर्ण, वि. १५०६, फाल्गुन शुक्ल, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४१२-१(१)-४११, ले.स्थल. स्तंभतीर्थ, राज्ये आ. जिनभद्रसूरि (गुरु आ. जिनवर्धनसूरि, खरतरगच्छ); लिख. श्राव. धनराज संघवी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:व्यवहा.वृ., कुल ग्रं. ३३६५४, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (३३.५४१३, १९४७०-७२). व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: जे भिख मासियं; अंति: महा पज्जवसाणे भवंति, उद्देशक-१०. ग्रं. ३७३, संपूर्ण. व्यवहारसूत्र-भाष्य #, प्रा., पद्य, आदि: ववहारो ववहारी ववहरिय; अंति: मविग्घेण गच्छंति, गाथा-६४००, संपूर्ण. व्यवहारसूत्र-टीका #, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: (-); अंति: श्रमणगणानाममृतभूतम्, ग्रं. ३४६२५, (पूर्ण, पृ.वि. पीठिका का अंशिक भाग अपूर्ण से है.) १०३२९२ (+) भगवतीसूत्र की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:भग०वृ०वृत्ति., संशोधित-संशोधित., जैदे., (३३४१२.५, १७४५७-६०). भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२८, आदि: सर्वज्ञमीश्वरमनंत; अंति: (-), (पू.वि. शतक-८ उद्देश-२ "समयमिति उक्कोसेणं" अपूर्ण पाठ तक है.) १०३२९५ (#) आवश्यकसूत्र सह चूर्णि, पूर्ण, वि. १५७३, आषाढ़ शुक्ल, ३, रविवार, मध्यम, पृ. २३९-१(७)=२३८, प्र.वि. हुंडी:आव०चूर्णि. पत्र १अ पर चूर्णि का बीजक दिया है., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. कुल ग्रं. १८४७४, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३३४१२.५, १९४६६-७०). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: णमो अरहंताणं० सव्व; अंति: यागारेणं वोसिरिति, अध्ययन-६, सूत्र-१०५, (पू.वि. बीच का पाठांश नहीं है.) आवश्यकसूत्र-चूर्णि #, ग. जिनदास महत्तर, प्रा.,सं., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० कोति ससीस; अंति: णायंमि गिव्हि यव्वे, अध्ययन-६, ग्रं. १८०००. १०३२९६. (+) उपदेशमाला की दोघट्टीवृत्ति, संपूर्ण, वि. १९६६, आश्विन शुक्ल, ६, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १८६, प्रले. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उप०वृ०दो., संशोधित. कुल ग्रं. ११५०, दे., (३२.५४१३.५, १४-१६४५६). उपदेशमाला-दोघट्टीविशेषवृत्ति, आ. रत्नप्रभसूरि, प्रा.,सं., गद्य, वि. १२३८, आदिः यस्यारघट्टस्य घनोपदे; अंति: वर्षे माघे समर्थिता, ग्रं. ११८२९.. १०३२९७. (+) विशेषावश्यकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९६६, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७१, प्र.वि. हुंडी:विशेषा०सूत्रं., संशोधित., दे., (३२.५४१३, १६४६२-६८). विशेषावश्यकभाष्य, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: कयपवयणप्पणामो वोच्छं; अंति: जोग्गो सेसाणुओगस्स, अध्ययन-१, गाथा-३६२२. १०३२९८. उत्तराध्ययनसूत्र सह लघुवृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १९५, प्रले. जगन्नाथ त्रिवाडी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:श्रीउत्तराध्ययनलघुवृ., कुल ग्रं. १४२५०, जैदे., (३३४१३, १७४७३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: अहिजेज्झा, अध्ययन-३६, ग्रं. २२५०. उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदि: प्रणम्य विघ्नसंघात; अंति: वृत्तेरस्या विनिश्चितम्, ग्रं. १२०००. १०३२९९ (+) शास्त्रवार्तासमुच्चय सह टीका, संपूर्ण, वि. १९६६, कार्तिक शुक्ल, १२, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५८, प्र.वि. हुंडी:शास्त्रवार्ता समुच्चयं., शास्त्रवार्ता स०., शास्त्र वा०स०., त्रिपाठ-संशोधित., दे., (३२.५४१३, ४-५४५२). शास्त्रवार्ता समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: भवताधीयतां भक्तिरागः, श्लोक-७०१, ग्रं.७००. शास्त्रवार्ता समुच्चय-दिक्प्रदावृत्ति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: स्वपरोपकाराय शास्त्र; अंति: एवं प्रतिपत्तव्यम्, ग्रं. २२५०. For Private and Personal Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ २३९ १०३३०० (+) सिद्धहेमशब्दानुशासन-तत्त्वप्रकाशिका बृहद्वृत्ति की तत्त्वप्रकाशिकाप्रकाश शब्दमहार्णवन्यास टीका- अध्याय २ का २ पाद, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५०, प्र. वि. हुंडी : न्यासखं०, संशोधित कुल ग्रं. २९७५, दे. (३२.५४१३, " १६X५८-६०). सिद्धहेमशब्दानुशासन स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्वृत्ति का तत्त्वप्रकाशिकाप्रकाश शब्दमहार्णवन्यास, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य वि. १९९३-१२००, आदि (-) अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०३३०२ (५) जैनमेघदूत, संपूर्ण वि. १९६६ आश्विन शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पू. १, प्र. वि. हुंडी जैनमेघद्०, संशोधित. कुल ग्रं. ४१८, दे., (३२.५X१३, १६x५२-५९). जैनमेघदूत, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: कश्चित्कांतामविषयसुखानी; अंति: शाश्वतीं सौख्यलक्ष्मीम्, सर्ग-४ नं. ४१८. 1 १०३३०३. (+) जगद्गुरुकाव्य, संपूर्ण, वि. १९६६, कार्तिक कृष्ण, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र. वि. संशोधित., दे., (३२.५X१३, १६४५०-५७) जगद्गुरुकाव्य, ग. पद्मसागर गणि, सं., पद्म, वि. १६३३, आदि नत्वा श्रीबलिजं जिन अंति: पंडितः पद्मसागरः, श्लोक-२३३. १०३३०९ (+) अंतगडदशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १५८०, श्रेष्ठ, पृ. १७, ले. स्थल. विश्वलनगर, उप. आ. हेमविमलसूरि (तपागच्छ); लिख. श्राव. कवा अन्य. ग. हर्षकुल (तपागच्छ); आ. विजयानंदसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी अंतगडसूत्र, संशोधित, जैवे., (३३.५X१४, १५x५१-५९). अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेण कालेणं तेण समएणं; अंति: अट्ठमस्स अंगस्स, अध्याय-९२, ग्रं. ८९९. १०३३१०. उपासकदशांगसूत्र, अंतकृतदशांगसूत्र व अनुत्तरोपपातिकदशांगसूत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, कुल पे. ३, अन्य. मु. विजयानंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. १३०००, जैदे. (३३.५४१४, १७६४-६५). १. पे. नाम. उपासकदशांगसूत्र की वृत्ति, पृ. १आ-१५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : उपा०.वृत्ति. उपासकदशांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि सं., गद्य वि. १११७, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अतिः कुर्वतां प्रीतये मे, 3 1 अध्ययन - १०. २. पे. नाम. अंतकृद्दशांगसूत्र की टीका, पृ. १५अ-२०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:अंगगड०.वृत्ति. अंतकुद्दशांगसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य वि. १२वी, आदि अधांतकृतदशासु किमपि अंतिः ननु विधीयतां सर्वथा, वर्ग-८. 3 ३. पे. नाम. अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र की टीका, पृ. २०अ २१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी अनु०. वृत्ति. अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि सं., गद्य वि. १२वी आदि अधानुत्तरीपपातिकदशा; अंति यतो न क्षमा, वर्ग-३. १०३३११. (+४) उपाशकदशांगसूत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. १३, प्र. वि. हुंडी: दशाविवरणं, पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (३३.५X१३, १९-२०x६१-६७). उपासकदशांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि सं., गद्य वि. १११७, आदि श्रीवर्द्धमानमानम्य अंतिः कुर्वतां प्रीतये मे, अध्ययन - १०. १०३३१२. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्रटीका की प्रशस्ति व विपाकसूत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (३३X१४, १७६६-६९). १. पे. नाम. प्रश्नव्याकरणसूत्रटीका की प्रशस्ति, पृ. १.अ, संपूर्ण. प्रश्नव्याकरणसूत्र टीका का हिस्सा ग्रंथप्रशस्ति, आ. अभयदेवसूरि, सं., पद्य, आदि नमः श्रीवर्द्धमानाय; अति संशोधिता चेयं, श्लोक ८. २. पे नाम. विपाकसूत्र की टीका, पृ. १अ १४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: विपाक० वृत्ति. For Private and Personal Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विपाकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसरि , सं., गद्य, आदि: सीमंधरं जिनं नत्वा दस्तर; अंति: नवाप्यनगंतव्यानीति, श्रुतस्कंध-२, ग्रं. ९००. १०३३१४. पंचासक प्रकरण संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १९, प्रले. मु. धनसुंदरजी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पंचासक., कुल ग्रं. ११००, जैदे., (३३४१३.५, १४-१७७५४-५५). पंचाशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण वद्धमाणं सावग; अंति: जह विरहो होइ कम्माणं, पंचाशक-१९, गाथा-९४०, ग्रं. ११८७. १०३३१७. (+) बृहत्कल्पसूत्र-तृतीयखंड सह नियुक्ति,भाष्य, विशेषचूर्णि व मूलनियुक्तिभाष्यचूर्णि की सुखावबोधा टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८१, प्रले. गंगा दवे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. १२५४०, जैदे., (३३४१५.५, १५४६७-७०). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. बृहत्कल्पसूत्र-सुखावबोधा टीका, आ. मलयगिरिसूरि ; आ. क्षेमकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. बहत्कल्पसूत्र-निर्यक्ति, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण बृहत्कल्पसूत्र-नियुक्ति की टीका #, आ. मलयगिरिसूरि ; आ. क्षेमकीर्तिसूरि, प्रा.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. बृहत्कल्पसूत्र-लघुभाष्य #, ग. संघदासगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. बृहत्कल्पसूत्र-लघुभाष्य की टीका, आ. मलयगिरिसूरि ; आ. क्षेमकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. बृहत्कल्पसूत्र-नियुक्ति का लघुभाष्य #, ग. संघदासगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. बृहत्कल्पसूत्र-नियुक्ति के लघुभाष्य की टीका #, आ. मलयगिरिसूरि ; आ. क्षेमकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १४वी, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.. बृहत्कल्पसूत्र-विशेषकल्पचूर्णि, प्रा.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०३३२१ (+) भगवतीसूत्र-प्रथमशतक सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६६, प्र.वि. संशोधित-त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (३४४१४.५, ३-९४५३-५४). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहंताणं० सव्व; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२८, आदि: सर्वज्ञमीश्वरमनंत; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०३३२३. (+) कर्मग्रंथ १-२ सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १६, कुल पे. २, प्रसं.ग. तेजोराज (गुरु उपा. गुणरत्न, खरतरगच्छ); गुपि. उपा. गुणरत्न (गुरु उपा. तपोरत्न, खरतरगच्छ); उपा. तपोरत्न (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (३४.५४१३.५, २३४९२-९९). १.पे. नाम, कर्मविपाक प्राचीन सह पारमानंदी टीका, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण. कर्मविपाक प्राचीन कर्मग्रंथ-१, ऋ. गर्ग महर्षि, प्रा., पद्य, आदि: ववगयकम्मकलंक वीरं; अंति: कम्मविवागं च सो अइरा, गाथा-१६८. कर्मविपाक प्राचीन कर्मग्रंथ-पारमानंदी टीका, आ. परमानंदसूरि, सं., गद्य, आदि: निःशेषकर्मोदयमेघजालमुक्तो; अंति: द्वाविंशत्यधिका भवेत्, ग्रं. ९२२. २. पे. नाम. कर्मस्तव प्राचीन कर्मग्रंथ सह टीका, पृ. ८अ-१६अ, संपूर्ण. कर्मस्तव प्राचीन कर्मग्रंथ-२, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे तिह; अंति: दंसणसुद्धिं समाहिं च, गाथा-५५. कर्मस्तव प्राचीन कर्मग्रंथ-टीका, आ. गोविंदाचार्य, सं., गद्य, आदि: कर्मबंधोदयोदीर्या०; अंति: श्लोकानां नवत्युत्तरमेव च, ग्रं. १०९०. १०३३५० (+#) ठाणांगसूत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १६१, प्र.वि. हुंडी:ठाणा०.३०., संशोधित. कुल ग्रं. १८०००, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३६४१५, १९-२१४६७-८१). For Private and Personal Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ स्थानांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: श्रीवीरं जिननाथं नत्वा; अंतिः (१)टीकाल्पधियोपि गम्या, (२)सहस्राणि चतुर्दशः, स्थान-१०, ग्रं. १४२५०, (वि. मूल का मात्र प्रतीक पाठ दिया गया १०३३५४. अष्टसहस्त्री की तात्पर्य टीका, संपूर्ण, वी. २४३४, श्रेष्ठ, पृ. २३२, प्रले. बटुकप्रसाद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अष्ट., दे., (३८x१४.५, १०४५१-५२). आप्तमीमांसा-अष्टशतीभाष्य की अष्टसहस्रीटीका की तात्पर्य टीका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, आदि: ऐंद्रमहः प्रणिधाय; अंति: हेतुश्च निजप्रसादा. १०३३६९ (+) प्रवचनविचारसार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (३३४१५.५, १५-१६५७०-७२). प्रवचनविचारसार, उपा. नयकुंजर, प्रा.,सं., प+ग., आदि: शांतिः शांतये सोस्तु; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अधिकार-७ तक लिखा है.) १०३३८१. (+) श्रावकाचार, संपूर्ण, वि. १९४१, आश्विन कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. जयपत्तन, प्र.वि. हुंडी:श्रावकाचार., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (३३.५४१७, १३४४१-४६). श्रावकाचार, आ. उमास्वामि, सं., पद्य, आदि: अनेकांतमयं यस्य मतं; अंति: द्रष्टव्यमेव च, श्लोक-४७४. १०३३९४. (+) नमस्कार महामंत्र, सम्यक्त्व मूलबारव्रत व २४ जिनसमोवसरण विचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२७, कुल पे. ३२,प्र.वि. संशोधित., दे., (३३४२०,११-१३४१०-१२). १.पे. नाम. नमस्कार महामंत्र सह बालावबोध, पृ. १अ-२४आ, संपूर्ण.. नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढम हवई मंगलम्, पद-९. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमौ अरिहंताणं क०; अंति: क० प्रथम मंगलीक हुवे. २. पे. नाम. सम्यक्त्व मूलबारव्रत-विवरण, पृ. २५अ-५६अ, संपूर्ण. सम्यक्त्वमूलबारव्रत-विवरण, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथमसमयक्त्व पहिले; अंति: व्रत संखेपथी कह्या. ३. पे. नाम. २४ जिनसमोवसरण विचार, पृ. ५६अ-५७अ, संपूर्ण. २४ जिन समवसरण विचार, रा., गद्य, आदि: ऋषभदेवनो समवसरण बार; अंति: समोसरण एक जोजन हुवे. ४. पे. नाम, ३४ अतिशय वर्णन, पृ. ५७अ-५८अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: लोच करां पछी केस नख; अंति: मे एक व्याधि न हुवें. ५. पे. नाम. ३५ वाणीगुण, पृ. ५८अ-५९अ, संपूर्ण. रा., गद्य, आदि: संस्कृत बोलै उंचे; अंति: तरंगनी परे उपदेस कहे. ६. पे. नाम. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, पृ. ५९अ-६३अ, संपूर्ण.. ___मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम पहिलो कर्म; अंति: भंडारी समान हुवे. ७. पे. नाम. मोहनीयकर्मबंध के ३० प्रकार, पृ. ६३अ-६५अ, संपूर्ण. रा., गद्य, आदि: कोइ आदमीने पाणी मांह; अंति: य कर्म प्राणी बांधे. ८. पे. नाम. मुहपत्तिपडिलेहण ५० बोल, पृ. ६५अ-६५आ, संपूर्ण. महपत्ति पडिलेहण ५० बोल, रा., गद्य, आदि: प्रथम दृष्टि पडिलेहन; अंति: त्तिरा पडिलेहणरा जाण. ९. पे. नाम. २० विहरमानजिननाम विचार, पृ. ६५-६६अ, संपूर्ण. रा., गद्य, आदि: सीमंधरस्वामी युगमंधर; अंति: काले एक ओछा न हुवे. १०. पे. नाम. सातअभव्यनाम चोबीसी, पृ. ६६अ-६७अ, संपूर्ण. ७ अभव्य अधिकार, मा.गु., गद्य, आदि: अंगारमर्दकाचार्य जिणे; अंति: मोक्ष जाय नहि सो अभव्य. ११. पे. नाम. त्रिषष्टिशलाकापुरुष वर्णन, पृ. ६७अ-७४आ, संपूर्ण. रा., गद्य, आदि: भरतचक्रवर्ती मोक्षं; अंति: मोक्ष पावानगरी गया. १२. पे. नाम. भगवतीसूत्र-शतक-७ उद्देश-२ पच्चक्खाण गाथा सह टबार्थ, पृ. ७४आ-७६आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-७ उद्देश-२ पच्चक्खाण गाथा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: अणागयमइक्कंते; ___ अंति: संकेवं चेव अद्धाए, गाथा-१. भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-७ उद्देश-२ पच्चक्खाण गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अनागत पचक्खाण ते जे; अंति: आठ करमकी गांठ छोडे. १३. पे. नाम. ४ ध्यानफल गाथा, पृ.७६आ, संपूर्ण. रा., गद्य, आदि: आर्तध्याने करी तिर्यंच; अंति: ध्यानरा जोगसें मुगति जाय. १४. पे. नाम. १३ काठिया गाथा सह विवरण, पृ. ७६आ-७७आ, संपूर्ण. १३ काठिया गाथा, प्रा., पद्य, आदि: आलस मोह अवन्ना थंभा; अंति: पखेव कोहला रमणा, गाथा-१. १३ काठिया गाथा-विवरण, रा., गद्य, आदि: धर्मकरतां आलस होय; अंति: तेरमो काठियो जाणणो. १५. पे. नाम. १० संज्ञा नाम, पृ. ७७आ-७८अ, संपूर्ण.. मा.गु., गद्य, आदि: आहारसंज्ञा भयसंज्ञा; अंति: लोकसंज्ञा ओहसंज्ञा. १६. पे. नाम. चारदिशागत जीवविचार, पृ. ७८अ-७८आ, संपूर्ण. रा., गद्य, आदि: पृथ्वीकायरा जीव पूर; अंति: कायरा जीव बहोत हुवे. १७. पे. नाम, सूक्ष्मनिगोद विचार, पृ. ७८आ-८०आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: चौदराजलोकने विष; अंति: समकित निश्चल जाणणो. १८. पे. नाम. सिद्धसिला विचार, पृ. ८०आ-८२अ, संपूर्ण. सिद्धसिलाविचार, मा.ग., गद्य, आदि: सर्वार्थसिद्ध पंचमो; अंति: णे करी विराजमान हवे. १९. पे. नाम. नरक विचार, पृ. ८२अ-८३आ, संपूर्ण. जिनकल्याणक नरकोद्योत वर्णन, रा., गद्य, आदि: तीर्थंकर भगवानरा; अंति: आउखो उण समय न बांधे. २०. पे. नाम. नवनिधान विचार, पृ. ८३आ-८७अ, संपूर्ण. रा., गद्य, आदि: प्रथम तो निसप्प नामा; अंति: काणे नवनिधान न हुवे. २१. पे. नाम. १२ आरा विचार, पृ. ८७अ-९५आ, संपूर्ण. रा., गद्य, आदि: प्रथम सूसमसूसम नामा; अंति: बारमे जुगलीया हुवे. २२. पे. नाम, ४ आहार विचार, पृ. ९६अ-९९आ, संपूर्ण. रा., गद्य, आदि: चावल ज्वारि बाजरि; अंति: विशेषकाल सूत्रथी जाणणा. २३. पे. नाम, २१ प्रकार मिथ्यात्वभेद विचार, पृ. ९९आ-१०५आ, संपूर्ण. रा., गद्य, आदि: लोकिक देवगति; अंति: ज्ञानसंज्ञा कहीजे. २४. पे. नाम. ५ स्थावर नाम, पृ. १०६अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: इंदी थावरकाए ए पृथवी; अंति: ए ए पांच थावररा नाम. २५. पे. नाम. २४ दंडक संक्षिप्तविचार, पृ. १०६अ-१९०अ, संपूर्ण. रा., गद्य, आदि: साते नरकरो एक दंडक; अंति: बोल संखेपथी जाणणा. २६. पे. नाम. जीवविचार स्तवन, पृ. १९०अ-२०१अ, संपूर्ण. जीवविचार स्तवन-पार्श्वजिन, म. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१२, आदि: सरसतीजी वरसती वचन; अंति: वृद्धी भणे आणंदकारी, ढाल-९, गाथा-८४. २७. पे. नाम. नवतत्त्वविचार संक्षेप, पृ. २०१आ-२२४अ, संपूर्ण. रा., गद्य, आदि: जीव दस प्राण घरें; अंति: नवतत्त्वरा भेद जाणणा. २८. पे. नाम. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, पृ. २२४अ-२४३अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापथानक पहिलूं कह्य; अंति: पयसेवक वाचक जस इम आखै जी, सज्झाय-१८, ग्रं. २११. २९. पे. नाम. १२ व्रत सज्झाय, पृ. २४३अ-२५३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ २४३ मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवाणी धन वुठडो भवि; अंति: सुपसायथी तिलकविजय जयकार, ढाल-१३. ३०.पे. नाम, श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह बालावबोध, पृ. २५३आ-२८८अ, संपूर्ण, वि. १९२४, कार्तिक शुक्ल, ११. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाण; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमः कहतां नमस्कार हुवो; अंति: ए श्रावकरो वंदीतोरी. ३१. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह बालावबोध, पृ. २८८आ-३००आ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भवणपईवं वीरं नमिऊंण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: तीनभुवन स्वर्ग मर्त; अंति: सिद्धांतसमुद्र थकी. ३२. पे. नाम, नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, पृ. ३०१अ-३२७अ, संपूर्ण.. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: दुचक्की केसव चक्कीय, गाथा-२९. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा जिनगिरं कुर्वे; अंति: जघन्यतः अंतरज्ञेयं. १०३३९५ (+) आत्मानुशासन सह टीका, संपूर्ण, वि. १९४१, कार्तिक कृष्ण, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४३, प्र.वि. हुंडी:आत्मानु०.टीका०. फाल्गुन शुक्लपक्ष को सुधारकर कार्तिक कृष्णपक्ष किया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १६२५, दे., (३३४१८.५, १४४४५-४८). आत्मानुशासन, आ. गुणभद्र, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: लक्ष्मीनिवासनिलयं विलीन; अंति: कृतिरात्मानुशासनं, श्लोक-२७१. आत्मानुशासन-टीका, आ. प्रभाचंद्र, सं., गद्य, वि. १३वी, आदि: वीरं प्रणम्य भववारिन; अंति: यस्य दधाति कमलाकृतिं. १०३३९६. (+) धर्मसंग्रहणी सह छाया, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८१, प्र.वि. हुंडी:धर्मसंग्रह., संशोधित., दे., (३४.५४१८, ५४३०). धर्मसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण वीयरागं; अंति: लभंतु जिणधम्मसंबोधिं, गाथा-१३९६, संपूर्ण. धर्मसंग्रहणी-छाया, सं., गद्य, आदि: नत्वा वीतरागं सर्वज्ञं; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ अपूर्ण तक छाया लिखी है.) १०३३९७. (+) विंशतिविंशिका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५२, प्र.वि. हंडी:वीसवीसी., संशोधित., जैदे., (३४.५४१८, ५४२६-३२). विंशतिविंशिका, आ. हरिभद्रसरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण वीरनाहं सव्व; अंति: लहंत जिणसासणे बोहिं, अधिकार-२०, ग्रं. ५००. १०३४०१. विवेकमंजरी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्र.वि. हुंडी:विवेकमंजरी., जैदे., (३५४१९.५, ५४३०). विवेकमंजरी, श्राव. आसड कवि , प्रा., पद्य, वि. १२४८, आदि: सिद्धिपुरसत्थवाह; अंति: जलहिदिणेस वरिसम्मि, ___गाथा-१४४. १०३४०२. सिंदूर प्रकरण की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (३३४१९, १६४३९-४३). सिंदरप्रकर-वल्लभीटीका, आ. गुणकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: गौतमादि गुरुं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३१ तक टीका लिखी है., वि. मूल का प्रतीक पाठ दिया है.) १०३४०५ (+#) योगशास्त्र सह स्वोपज्ञ वृत्ति व मांगलिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १४३३, श्रेष्ठ, पृ. १२०, कुल पे. २, ले.स्थल. प्रह्लादनपुर, प्रले. श्राव. अलि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:योग.व., संशोधित. कुल ग्रं. १३५७४, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (४३.५४११.५, १५-१७४९७-९९). १.पे. नाम. योगशास्त्र सह स्वोपज्ञ वृत्ति, पृ. १आ-१२०आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: गिरां श्रीहेमचंद्रेण सा, प्रकाश-१२, श्लोक-१०००. योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य सिद्धाद्भत; अंति: भव्यो जनो भवतात्. २. पे. नाम, मांगलिक श्लोक संग्रह, पृ. १२०आ, संपूर्ण. ___प्रा.,सं., पद्य, आदि: गुरो श्री वर्धमानस्य वाछ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-४ अपूर्ण तक लिखा है.) १०३४०८. श्रीमहावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. मोरेश्वर लक्ष्मीनारायण शर्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (३१.५४१५.५, ४४२२-२४). महावीरजिन स्तवन, प्रा., पद्य, आदि: पणमित्तु पवित्त जिण; अंति: जसो दिसकू सुभदं, गाथा-२९. १०३४१०. सिद्धहेमशब्दानुशासन-अध्याय ८ की वृत्ति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (३०x१५.५, १२-१३४५६-५९). सिद्धहेमशब्दानुशासन-हिस्सा अष्टम अध्याय प्राकृत व्याकरण की व्युत्पत्तिदीपिका टीका, ग. उदयसौभाग्य, सं., गद्य, आदिः यस्य क्रमनमस्कारः; अंति: (-), (पू.वि. पाद-१ सूत्र-१४२ तक है.) १०३४१४. कविशिक्षा काव्य सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९९+१(२)=१००, प्र.वि. कुल ग्रं. ११२२, जैदे., (३०.५४१४, १४४३८-४२). कविशिक्षा, श्राव. अरिसिंह , सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: वाचं नत्वा महानंदकर; अंति: गुरुतापि रथोपमानैः, प्रतान-४. कविशिक्षा-काव्यकल्पलतावत्ति, य. अमरचंद्र, सं., गद्य, वि. १३वी, आदि: विमृश्य वाङ्मयं; अंति: सरोजांतर्गगनं भ्रमरायते, ग्रं. ३३५७. १०३४१६. दव्याश्रयमहाकाव्य-कमारपालचरित सह टीका, संपूर्ण, वि. १९५६, आश्विन कृष्ण, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ८१+१(५७)=८२, ले.स्थल. वढवाण, प्रले. माधवजी जेष्टाराम उपाध्याय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंड:द्वाश्रय प्राावृत्ति., कुल ग्रं. ४५३०, दे., (३१४१३.५, १६-१७४५२-५६). दव्याश्रयमहाकाव्य-हिस्सा कमारपालचरित, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: अह ___पाइआहिं भासाहि; अंति: गइ अ देवि मंगलु भणिवि, सर्ग-८, गाथा-७४५. व्याश्रयमहाकाव्य-हिस्सा कुमारपालचरित की टीका, ग. पूर्णकलश, सं., गद्य, वि. १३०७, आदि: पुण्यांकुराः शिवसुख; अंति: वृत्तेरनुष्टुभां, सर्ग-८, ग्रं. ४२३०. १०३४१७. व्याश्रयमहाकाव्य सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:द्याश्रयटीका महाकाव्य., द्याश्र.टी., जैदे., (३१४१४, १५४५२-५६). दव्याश्रयमहाकाव्य, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: अर्हमित्यक्षरं ब्रह; अंति: (-), (प.वि. सर्ग-१ श्लोक-१०२ तक है.) दव्याश्रयमहाकाव्य-टीका, ग. अभयतिलक, सं., गद्य, वि. १३१२, आदि: श्रीभूर्भुवः स्वस्त्रितया; अंति: (-). १०३४२० (+) सिद्धहेमशब्दानुशासन सह स्वोपज्ञलघुवृत्ति-१ से ७ अध्याय, संपूर्ण, वि. १९५५, आश्विन शुक्ल, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ११७, ले.स्थल. वर्द्धमाननगर, प्रले. माधवजी जेष्टाराम उपाध्याय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:हेम०ल०वृ., हेम०भ०., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (३०.५४१४, १६x४५). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: प्रणम्य परमात्मानं श्रेयः; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: अर्हमित्येतदक्षरं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०३४२४. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-३(१ से ३)=१५, प्र.वि. हुंडी:राजवार्त्तिक., जैदे., (३०.५४१४, ११४३८-४१). For Private and Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ २४५ तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: सम्यग्दर्शनज्ञान; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., सूत्र-२ तक तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-तत्त्वार्थवार्तिक वृत्ति, आ. अकलंकदेव, सं., गद्य, ई. ७वी, आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. बीच के पत्र हैं., पाठांश-'बंधनबद्धवत' से 'सम्यादर्शनज्ञानलाभ' तक है.) १०३४२५. (+) अध्यात्मकल्पद्रुम सह टीका, संपूर्ण, वि. १९४१, भाद्रपद शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ८५, प्र.वि. हुंडी:अध्यात्मकल्पद्रुम., संशोधित-त्रिपाठ., दे., (३०.५४१५, २-३४५१-५२). अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयश्रीरांतरारीणां; अंति: भववैरिजयश्रिया शिवश्रीः, अधिकार-१६, श्लोक-२७२. अध्यात्मकल्पद्रम-अधिरोहिणी वत्ति, उपा. धनविजय, सं., गद्य, आदि: ॐ नमः परमाप्ताय; अंति: निर्दोषा खलु विधेयेति. १०३४३८. (+#) योगशास्त्र सह स्वोपज्ञ टीका, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १०४-६(१,२७ से २८,१०० से १०२)=९८, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३०.५४१३, १९४५६-५९). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्रकाश-१ श्लोक-३ से प्रकाश-३ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वत्ति, आ. हेमचंद्रसरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प.वि. बीच के पत्र हैं. १०३४४१. सिद्धहेमशब्दानुशासन सह स्वोपज्ञ बृहद्वृत्ति-अध्याय १ से ७, संपूर्ण, वि. १९५५, आषाढ़ कृष्ण, ५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६१०, ले.स्थल. हालार-जामनगर, प्रले. मु. चारित्रविजय; पठ. जटाशंकर मदनजी कंडोलिया; लिख. मु. अमीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सिद्धहेमव्या., दे., (३०x१३.५, १३४३९-४०). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: अर्ह सिद्धिः स्याद्वादात; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्वत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०३४४३ (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २४०, प्र.वि. हुंडी:उत्तराध्ययन वृत्ति., उत्तरा०वृत्ति श्रीपुण्यकीर्ति गणि., उत्तराध्ययन व ग०पुण्यकिर्ति., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३०.५४११.५, १५-१६४५१-६५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पढमं; अंति: अहिजेज्झा, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००. उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदि: प्रणम्य विघ्नसंघात; अंति: तदनतिक्रमेण यथायोगम, ग्रं. १२०००. १०३४५४. द्वादश भवनविचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८-१(७)=७, जैदे., (३०.५४१४.५, १०४४२-४६). जन्मप्रदीप, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: सर्वं जगतितलेतमः; अंति: व्ययाधिनाथे व्ययगेहलीनो, श्लोक-१४८, (पू.वि. भुवन-११ श्लोक-१ अपूर्ण से भुवन-१२ श्लोक-११ अपूर्ण तक नहीं है.) १०३४६९ (+) अमरसेनवयरसेण कथा व औपदेशिक दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (३१x१३.५, १३४६३-६८). १. पे. नाम. अमरसेणवयरसेण कथा, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. अमरसेनवज्रसेन कथा, सं., गद्य, आदि: दानं सुपात्रे विशदं; अंति: भवे सिद्धिं यास्यतः. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण. पुहिं.,प्रा.,मा.ग.,सं., पद्य, आदि: परउपगारीपोह फल देखो इनका; अंति: कुतजिकरि हरे उरका प्राण, गाथा-१. १०३४७४. वंगचूलिका प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, दे., (३०.५४१३, ५४३५-४५). वंगचूलिका प्रकीर्णक, आ. यशोभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भत्तिभर नमिर सुरनर; अंति: दढचित्तो होह पइदियहं. For Private and Personal Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वंगचूलिका प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्तिना समुहे करीने; अंति: विषे दृढचित्त करे.. १०३४७७ (+) आरंभसिद्धि सह वार्तिक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९१ + १ (८६) = ९२, प्र. वि. हुंडी: आरंभ सिद्धि., संशोधित., जैदे., (३०.५X१३, १६५१-६३). आरंभसिद्धि, आ. उदयप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: ॐ नमः सकलारंभसिद्धि; अंति: पदं प्राप्यते, विमर्श-५, श्लोक-४१३ . ४६०. आरंभसिद्धि-सुधीशृंगारवार्तिक, ग. हेमहंस, सं., गद्य, वि. १५१४, आदि: श्रीधर्मन्यायसम्यग्; अंतिः यतनीयं तत्वज्ञैः, विमर्श - ५. १०३४८४. श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १५१५, पीष शुक्ल, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३५ प्र.वि. कुल ग्रं. १६७४, जैवे. (३१४११.५, १५X४६-५४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीपालनरेन्द्र चरित्र, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य वि. १४२८ आदि अरिहाइ नवपयाई झावित अंति: वाइज्जेता कहा एसा गाथा- १३४९ . १६७५, (वि. अंत में पद वर्णन लिखा है.) " १०३४८५. समवायांगसूत्र, पूर्ण, वि. १६०९, चैत्र शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ३९ - १(१ ) = ३८, ले. स्थल. गंधार, प्रे. भट्टा. संयमरत्नसूरि (गुरु भट्टा, विवेकरत्नसूरि, आगमगच्छ); गुपि भट्टा, विवेकरत्नसूरि (आगमगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: समवायसूत्र, जैदे., (३१X११.५, १३X५२-६२). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-) अंति: मक्खायं अज्झयणं त्ति बेमि, अध्ययन- १०३, सूत्र- १५९, ग्रं. १६६७, (पू.वि. अध्ययन १ अपूर्ण से है.) १०३४८७. (+#) योगशास्त्र-प्रकाश २ सह स्वोपज्ञ टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५२ - ६ (१ से ६ ) = ४६, प्र. वि. अन्त में सत्पथरूचि उपनिषद् दशमकांड से उद्धृत एक मंत्र लिखा है, संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (३०.५४११.५, १०-११X५०-६०). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण श्लोक-१२ तक नहीं है.) योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०३४८८. बृहत्स्वयंभू स्तोत्र की क्रियाकलाप टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १३-४ (१ से ४)=९, जैवे. (३१x११.५. १९X७४-८६). 3 बृहत्स्वयंभू स्तोत्र-क्रियाकलाप टीका, आ. प्रभाचंद्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति : (१)नयभक्त्यवतंसकलमिति, (२) बुधप्रह्लादचेतस्यलम्, परिच्छेद २ (पू.वि. सुपार्श्वजिन स्तुति श्लोक-३१ की टीका अपूर्ण से है.) १०३४८९. (+) पंचाशिका प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २६, प्र. वि. हुंडी : पंचासक्तानि., पदच्छेद सूचक लकीरें., जै.., (३०.५X११, १४X५१-५६). पंचाशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण वद्धमाणं सावग; अंति: महह जइ मुक्खसुहमणहं, पंचाशक- २०, ग्रं. १९८७. १०३४९० (+०) भगवतीसूत्र, संपूर्ण, वि. १५२३, मध्यम, पृ. २५६, ले. स्थल, मंडपदुर्ग, गुपि. आ. जिनसुंदरसूरि (गुरु आ. जिनसागरसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनसागरसूरि (गुरु आ . जिनचंद्रसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनचंद्रसूरि (गुरु आ. जिनवर्धनसूरि, खरतरगच्छ ) आ. जिनवर्धनसूरि (खरतरगच्छ ); अन्य. श्राव. देहलापुत्र सोनी, श्राव. धरणाभाव सोनी, श्राव. जिनराज सोनी; श्राव. माणिक्य सोनी; श्राव. गौराइ सोनी; श्राव. बडूया सोनी; श्राव. ईसर सोनी; श्राव. कुंरपास प्रमुख सोनी; श्राव. मंडलिक सोनी, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र. वि. हुंडी : भगवतीसूत्र, प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैये. (३०.५x११.५, १२-१५X५७-७०). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहंताणं० सव्व; अंति: उद्दिसिज्झंति. १०३४९९. आवश्यकसूत्र सह निर्युक्ति व लघुवृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १५५-१ (४०) +२ (४५ से ४६ ) = १५६, जैदे., (३०.५x११, १५x४७-५०% For Private and Personal Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ २४७ आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: करेमि भंते सामाइयं सव्वं; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ, अध्ययन-६, सूत्र-१०५, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: चरणगुणट्ठिओ साहू, ग्रं. ३१००, (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., गाथा-९३५ से लिखा है व बीच के कुछ पाठ नहीं हैं., वि. प्रारंभिक उपोद्धातनियुक्तिपाठ नहीं है.) आवश्यकसूत्र-लघवृत्ति #, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, वि. १२९६, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., बीच के कुछ पाठ नहीं हैं व प्रशस्तिगाथा-९ अपूर्ण तक है.) १०३४९७. (+#) कमारपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९५-२(१ से २)=९३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३१x११.५, १६४५५-५९). कमारपाल चरित्र, आ. जयसिंहसरि, सं., पद्य, वि. १४२२, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-१ श्लोक-९९ अपूर्ण से सर्ग-८ श्लोक-३१४ अपूर्ण तक है.) १०३४९८. (+#) क्षेत्रसमास सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (३१४११, १३४५८-७३). लघक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपय पईट्ठि; अंति: (-), __(पू.वि. गाथा-१९५ तक है.) लघक्षेत्रसमास प्रकरण-अवचरि, सं., गद्य, आदि: आदोमंगलानि धियायों; अंति: (-). १०३५०२ (+#) जिनशतक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५२९, फाल्गुन कृष्ण, ३०, शुक्रवार, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-पंचपाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ८२५, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२९.५४११, १०-१३४४८-५३). जिनशतक, मु. जंबू कवि, सं., पद्य, वि. १००१-१०२५, आदि: श्रीमद्भिः स्वैर्महो; अंति: वागसौ द्राग्विधेयात्, परिच्छेद-४, श्लोक-१००, ग्रं. २६५. जिनशतक-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: एष सूर्यो भुवनं विश; अंति: दैन्यशून्यान् विधियते, परिच्छेद-४, ग्रं. ५६०. १०३५०४. (+#) धातुपारायण सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (३१४११.५, १३४५०-५५). सिद्धहेमशब्दानशासन-धातपारायण, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: अहँ भू सत्तायां; अंति: (-), (पू.वि. परस्मैपद भाषा वर्णन अपूर्ण तक है.) सिद्धहेमशब्दानुशासन-धातुपारायण की अवचूरि, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-), (वि. आदिवाक्य वाला भाग खंडित है.) १०३५०६. पृथ्वीचंद्रराजर्षि चरित्र व पृथ्वीचंद्र चरित्र का बीजक, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५३, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:पृथ्वी०.च०., जैदे., (३१४११.५, १५४५७-६०). १. पे. नाम, पृथ्वीचंद्रराजर्षि चरित्र, पृ. १आ-५३अ, संपूर्ण. पृथ्वीचंद्र चरित्र, उपा. जयसागर, सं., पद्य, वि. १५०३, आदि: वीरचरणांभोजं श्रयामि; अंति: ग्रंथमानमुदाहृतं, प्रस्ताव-११, ग्रं. २६५४. २.पे. नाम. पृथ्वीचंद्र चरित्र का बीजक, पृ. ५३अ-५३आ, संपूर्ण. पृथ्वीचंद्र चरित्र-बीजक, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम भवे शंख जीव साधु; अंति: (-), (वि. पत्र की किनारी खंडित होने से ___ अंतिम वाक्य नहीं भरा है.) १०३५०७. (+) भुवनदीपकढूंढिका, षट्पंचाशिका व द्वादश भाव फलादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (३१४११, १७४५९-६४). १. पे. नाम, भुवनदीपकढूंढिका सह बालवबोध, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण. भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१६०. भुवनदीपक-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वतीतणु तेज नम; अंति: सून्य काई न होस्यइ. For Private and Personal Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. षट्पंचाशिका-अध्याय १ से २, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. षट्पंचाशिका, आ. पृथुयशा, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य रविं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. द्वादश भाव फल संग्रह, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. १२ भवन विचार, सं., पद्य, आदि: सूर्य भोमस्तथा राहू; अंति: विकल्पं विकलमूर्ति, श्लोक-१२. ४. पे. नाम. लग्नजात फल संग्रह, पृ. ९अ, संपूर्ण. १२ लग्नफल, सं., पद्य, आदि: मेष लग्नोदयो जातश्चंडो; अंति: द्रव्याद्यो विनितायतः, श्लोक-१२. १०३५०८. (#) सप्ततिका कर्मग्रंथ सह टीका का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५८-६(१ से २,४,१०,३७,५७)=५२, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (३०.५४११.५, १३४५१-५९). सप्ततिका कर्मग्रंथ-६, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: एगणा होइ नउईउ, गाथा-९३, (पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., प्रारंभ से गाथा-५ नहीं है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) सप्ततिका कर्मग्रंथ-६-टीका का बालावबोध, ग. कुशलभुवन, मा.गु., गद्य, वि. १५९७, आदि: (-); अंति: (१)आघउ पाछउ प्रवत्वज्यो, (२)स्वान्यो प्रकृतये मया, पृ.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. १०३५१० (+) देवनारकादि भेद गाथा व श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४४, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (३०x११.५, १४४४३). १. पे. नाम. देवनारकादि भेद गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. आगमिक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. २. पे. नाम. श्रीपाल चरित्र, पृ. १आ-४४आ, संपूर्ण. सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाइं झायित; अंति: वाइज्जंता कहा एसा, गाथा-१३४०, ग्रं. १६७५. १०३५११ (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १५७१, माघ कृष्ण, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ.७४-२(२,४)=७२, प्रले. वीरमेण जोगी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ज्ञा०सू०, पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ६०००, मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (४६३) पुस्तके यादृशं दृष्ट, (१४९४) हीनाक्षरं पदभ्रष्टं, जैदे., (३०.५४११.५, १७४६४-६९). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: नायाधम्मकहाओ सम्मत्ताओ, अध्ययन-१९, ग्रं. ५५००, (पू.वि. अध्ययन-१ का प्रारंभिक पाठ अपूर्ण है.) १०३५१२. (+) व्याश्रयमहाकाव्य सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.५६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (३१४११.५, १९४६२). व्याश्रयमहाकाव्य, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: अर्हमित्यक्षरं ब्रह; अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-३ श्लोक-१३३ तक है.) व्याश्रयमहाकाव्य-टीका, ग. अभयतिलक, सं., गद्य, वि. १३१२, आदि: श्रीभूर्भुवः स्वस्त्रितया; अंति: (-). १०३५१३. पयन्नादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५७-१(५५)=५६, कुल पे. १५, प्र.वि. वि. १२८४, फाल्गुन, शुक्लपक्ष ११, रविवार को लिखे गए ग्रन्थ की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., जैदे., (३१.५४१२, १३४५२-५८). १.पे. नाम. संस्तारक प्रकीर्णक, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:संस्तारकप, संस्तारक०. संथारग पइण्णय, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: काऊण नमोक्कारं जिणवर; अंति: सुहसंकमणं मम् दिसंतु, गाथा-१२१. २. पे. नाम. भत्तपरिता प्रकरण, पृ. ५अ-११अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:भत्तपरिन्ना, भत्तपरि०. भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महाइसयं महाणुभावं; अंतिः सोक्खं लहइ मोक्खं, गाथा-१७१. ३. पे. नाम. आउरपच्चक्खाण पयन्ना, पृ. ११अ-१३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:आउरप०. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., वि. ११वी, आदि: देसिक्कदेसविरओ; अंति: खयं सव्वदुक्खाणं, गाथा-७१. For Private and Personal Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ४. पे. नाम. कुशलाणुबंधि अज्झयण, पृ. १३आ-१५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:कुसला०. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: झाए सुति संझम वझकारणं, गाथा-६२. ५. पे. नाम. तंदलवेयालियनाम पइन्न, पृ. १५आ-२६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:तंडुलवेया. तंदलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग., आदि: निज्जरिय जरामरणं; अंति: मुच्चह सव्वदुक्खाणं. ६. पे. नाम. चंदाविज्झयण, पृ. २६अ-३१अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:चंदावि०, चंदामि०. चंद्रावेध्यक प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: जगमत्थयत्थयाणं विगसि; अंति: दग्गइविणिवायगमणाणं, गाथा-१७४. ७. पे. नाम. देविंदत्थओ, पृ. ३१अ-४०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पय.देविंद. देवेंद्रस्तव प्रकीर्णक, मु. ऋषिपालित, प्रा., पद्य, आदि: अमर नरवंदिए वंदिऊण; अंति: इह सम्मत्तो अपरिसेसो, गाथा-२९२. ८. पे. नाम, गणविज्जानाम प्रकीर्णक, पृ. ४०अ-४२आ, संपूर्ण.. गणिविद्या प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: वुच्छं बलाबलविहिं; अंति: यव्वो अप्प मत्तेहिं, गाथा-८५. ९. पे. नाम. महापच्चक्खाण, पृ. ४२आ-४६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पयं०.महाप०. __ महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: एस करेमि पणामं तित्थयराणं; अंति: हविज्ज अहवा वि सिज्झेज्जा, गाथा-१४३. १०.पे. नाम. वीरत्थओ, पृ. ४६आ-४८अ, संपूर्ण. वीरस्तव प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: नमिण जिणं जयजीवबंधव; अंति: सिवपयमणहं थिरं वीर, गाथा-४३. ११. पे. नाम. पुद्गलपरावर्त स्वरूप, पृ. ४८अ-४८आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: उरालठिउच्चातेयकभासाणु; अंति: पासानेउसमासेणं, गाथा-१३. १२. पे. नाम. संसत्तयनिज्जत्ती, पृ. ४८आ-४९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पय०.संसत्त. संसक्तनियुक्ति, प्रा., पद्य, आदि: उसभाइवीरचरिमे सुरासुर; अंति: करेइ साहू परिहरंतो, गाथा-५८. १३. पे. नाम. कुसलाणुबंध अज्झयण, पृ. ४९आ-५१आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. १४. पे. नाम. गच्छाचार प्रकीर्णक, पृ.५१आ-५४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:गच्छाय०. प०.गच्छा. प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महावीरं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११० अपूर्ण तक है.) १५. पे. नाम. अजीवकप्पो, पृ. ५६अ-५७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., पे.वि. हुंडी:अजीवकपो. __ अजीवकल्प प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: च्छामि अहाणुपुव्विए, गाथा-४२, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) १०३५१४. (+) विवेकविलास, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-३(१ से ३)=१७, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:विवेकवि., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (३१४११.५, १७-१८४६०-६४). विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उल्लास-२ श्लोक-३४ अपूर्ण से उल्लास-११ ___ श्लोक-२२ अपूर्ण तक है.) १०३५१५ (+) निशीथसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २०, प्र.वि. हुंडी:निशीथसूत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (३१४१२, १३४४५-४९). निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जे भिख हत्थकम्मं; अंति: पसिस्सोवभोज्जं च, उद्देशक-२०, ग्रं. ८१५. १०३५१८ (#) सम्यक्त्वसप्ततिका सह सम्यक्त्वकौमुदी टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १४६, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३१४१२, १५४५८-५९). For Private and Personal Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २५० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि दंसणसुद्धिपयास अति दंसणसुद्धिं धुवं लहइ, गाथा-७०, ग्रं. ७७११, संपूर्ण. , सम्यक्त्वसप्ततिका-सम्यक्त्वकौमुदीटीका, आ. संघतिलकसूरि, सं., प+ग., वि. १४२२, आदि: सच्चामीकरवंधुरोद्धुर, अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रशस्ति भाग श्लोक ५ अपूर्ण तक टीका है.) १०३५२० (+४) नेमिजिन पुराण, संपूर्ण, वि. १६०५, मार्गशीर्ष शुक्ल ४ रविवार, मध्यम, पू. १८५ ले. स्थल. रतिवासा, गृही. सा. ज्ञानीश्री आर्यिका (गुरु आ. धर्मकीर्त्ति); दत्त. आ. उदयकीर्त्ति, गुभा. आ. धर्मकीर्त्ति (गुरु आ. भुवनकीर्त्ति); गुपि. आ. भुवनकीर्त्ति; मु. रत्नकीर्ति (गुरु आ . जिनचंद्रदेव, सरस्वतीगच्छ-मूलसंघ- बलात्कारगण); आ. प्रभाचंद्र; आ. जिनचंद्रदेव (गुरू आ. शुभचंद्रदेव, सरस्वतीगच्छ मूलसंघ बलात्कारगण); भट्टा. शुभचंद्रदेव, आ. पद्मनंदि (सरस्वतीगच्छ); आ. कुंदकुंदाचार्य (मूलसंघ सरस्वतीगच्छ बलात्कारगण), प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष , י Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाठ-संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (३१.५X१३, १०X३७-४०). नेमिजिन पुराण, मु. नेमिदत्त ब्रह्मचारी, सं., पद्य, आदि: श्रीमन्नेमिजिनं नत्त्वा; अंति: वोत्र भव्याः पवित्रं, अधिकार-१६. १०३५२४. आचारांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १६२६, चैत्र शुक्ल, ९, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५०-३ (१ से ३) ४७, प्र. वि. हुंडी: श्रीआचा.सू.. कुल ग्रं. २५५४, जैवे. (३०.५४१२, १५४५७). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि (-); अंतिः विमुच्चति त्ति बेमि, अध्ययन २५ ग्रं. २६४४, (पू.वि. अध्ययन-१ उद्देशक-२ अपूर्ण पाठ -"एवहिंति एवंपित्ताएवसाए पिच्छाए पुच्छा वालाए" से है.) १०३५२८. उत्तमराजा कथा, संपूर्ण, वि. १८४२, ज्येष्ठ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. पं. विनयचंद्र, अन्य. मु. रंग, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (३१.५X१२, १५x५३). उत्तमकुमार चरित्र, ग. चारुचंद्र, सं., पद्य, आदि वंदित्वा स्वगुरुन, अंति य कधेयं नंदितश्चिरम् श्लोक-२७९. १०३५३०. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका, संपूर्ण वि. १९४८ भाद्रपद कृष्ण, ६, मंगलवार, श्रेष्ठ, पू. ३८३+१ (५७) =३८४, ले.स्थल. बीकानेर, अन्य. मु. तिलक गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : उत्तराध्यय. टी. प्रतिलेखन पुष्पिका में "लिपिकृतं प्रोयतप्रभु पुस्तकं पत्रं १५४" वस्तुतः ३८३ पत्र है. अतः १५४ पत्र वाले ग्रंथ की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. दे. (३१x१३, १३४४१-४८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि: संजोगाविष्यमुक्कस्स अंति: सम्मए ति बेमि, अध्ययन- ३६, ग्रं. २०००. उत्तराध्ययन सूत्र - सर्वार्थसिद्धिटीका उपा. कमलसंयम, सं. गद्य वि. १५४४, आदि: श्रीवर्द्धमानजिनराजगुरु; अतिः द्यादयमर्जुनाद्रिवत् " १०३५३४. (+) सामलीया विहार चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११८, ले. स्थल. बीकानेर, प्रले. मु. कृपाचंद महात्मा (खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी सामलीयाविहार चरि०, सामली०च., सामली०, साम०वि०च., पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (३१.५x१३.५, १३४४६). , सुदर्शना चरित्र, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदितु सुव्वयजिणं; अंति: सा नंदउ विबुहस्सिया सुइरं, उद्देशक- १६, गाथा- ४०५२, ग्रं. ४५००. १०३५४१. चंदनबाला व नर्मदासती चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २, दे., (३२x१३.५, १६X३८-४२). १. पे. नाम. चंदनबाला चौपाई, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण, ले. स्थल. जालपालिग्राम, प्रले. रामनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी : चनणा०, चदना०. - चंदनबालासती चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि अरिहंत सिद्धने प्रणमूं; अंतिः सती जासी निरवाणतो, गाथा १५९. २. पे. नाम. नर्मदासुंदरी चौपाई, पृ. ७अ ७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : नरबवा. For Private and Personal Use Only नर्मदासती चौपाई, क्र. रायचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सासण नायक समरीय, अति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल ९ गाथा ११ तक लिखा है.) Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ श्रेष्ठ १०३५४५ (+) कल्पसूत्र सह टवार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९०२, मार्गशीर्ष शुक्ल, १४, शुक्रवार, पृ. २८१+१ (१२८) = २८२, ले. स्थल गोधावी, प्रले. ग. जतनकुशल (गुरु ग. अमृतकुशल); गुपि. ग. अमृतकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : कल्पसूत्रटबा. श्रीवीर वर्धमानस्वामी प्रसादात् संशोधित कुल ग्रं. ८०००, दे. (३१x१४. ५- १३X३३-३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि नमो अरिहंताणं नमोः अति: भुज्जो उवदंसेइ त्तिबेमि, व्याख्यान-८, " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्र. १२१६. कल्पसूत्र -टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुवौ अति भ० बाहुस्वामी आपणा शिष्यनइ. कल्पसूत्र - बालावबोध, मा.गु. रा., गद्य, आदि कल्याणानि समुल्लसंति, अंति: तेहनो मिच्छामि दुक्कडम् १०३५४९. (+) दितवार कथा, संपूर्ण, वि. १७९१, कार्तिक कृष्ण, ११, शुक्रवार, मध्यम, पू. ६. ले. स्थल. जीवनपुर, लिख. आ. अनंतकीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : अदीत. कथा., संशोधित-संशोधित., जैदे., (३१X१४, ११X५०-५५). आदित्यवार कथा, पुहि., पद्य, आदि रिसहणाह प्रणमु जिणंद अंतिः नर सुरंग देवता होय, गाथा-१५७. १०३५५०. (5) लंघन पथ्यापथ्य निर्णय संपूर्ण वि. १९२७ कार्तिक कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पू. १७, ले. स्थल, रामगढ, प्रले. तुलसीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: लं.प., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (३१.५X१४, ११४३८-३९). लंघन निर्णय, मु.दयातिलक शिष्य, सं., पद्य, वि. १७९२, आदि: श्रीसर्वज्ञं नमस्कृत्य; अंति: विधि पूर्वोक्तमाचरेत्, श्लोक-२९४. १०३५५१. पर्युषणाष्टान्हिका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १०. प्र. वि. हुंडी इतिश्रीपर्यूष, दे. (३०.५X१३.५, १४४४३-४९). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीशं शांतिकर्त्ता; अंति: पद्यबंधंध विलोक्य तत् २५१ १०३५५३. (+) वच्छराजकुमर प्रबंध, संपूर्ण, वि. १९०२ श्रावण कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. २७, ले. स्थल. लंभनपुर, प्र. वि. संशोधित., दे., (३०x१३.५, २१x६५). बच्छराज चौपाई, मु. विनयलाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६३०, आदि परम निरंजन परमप्रभुः अति विनवलाभ० मंगलमाल ए, खंड-४ ढाल ६६. " १०३५६४ (+) मोहविवेक चौपाई, अपूर्ण, वि. १७८८, फाल्गुन शुक्ल, १०, गुरुवार, मध्यम, पू. ३०-३(१ से ३)=२७, ले. स्थल. बीकानेर, प्र. वि. हुंडी : मोहविवेकचोपई, टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित, जैदे. (३१.५४१४.५, २१४६०-६६ ). प्रबोधचिंतामणि ढाल, मु. धर्ममंदिर, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: (-); अंति: आपे नवेइ निधानाजी, खंड-६, गाथा- १७१२, (पू.वि. खंड-१ दाल-७ गाथा ११ अपूर्ण से है.) १०३५७४ (+) दानशीलतपभावना चोढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. संशोधित., दे., (३१X१४, ११X३३). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अति समयसुंदर०तस घर जयजयकार रे, ढाल - ४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५. १०३५७७ (+) विचारसार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९०८, ज्येष्ठ कृष्ण, ६, मंगलवार, मध्यम, पृ. २६, ले. स्थल, मुंबबंदिर, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. दे. (३१X१४, ७३५-४०). विचारसार प्रकरण, ग. देवचंद्र, प्रा., पद्य, वि. १७९६, आदि: नमिय जिणं गुणठाणे; अंति: देवचंदेणनाणट्ठम्, अधिकार- २, गाथा - २०७. १०३५७९ (+) जेठजिणवरव्रत कथा व निर्दोषसप्तमी कथा, संपूर्ण, वि. १७९१, कार्तिक कृष्ण, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. जौदनपुर, प्रले. मु. अनंतकीर्ति (गुरु आ. पद्मनंदि, मूलसंघ सरस्वतीगच्छ बलात्कारगण), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (३१X१४, १३x४७-५९). For Private and Personal Use Only १. पे. नाम जेठजिणवरव्रत कथा, पृ. १अ ३आ, संपूर्ण ले. स्थल, संभरिनगर, पे. वि. हुंडी: जिनव. कथा, जिणवर, कथा. जिनवरव्रत कथा, मा.गु., पद्य, बि. १६५०, आदि जिन चउवीस नमो जगदीस, अंति: तुम जयो जिणेसुर देव, गाथा ६१. २. पे. नाम निर्दोषसप्तमी कथा, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी निर्दोषसप्तमी, निर्दो, सप्त. क. - Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २५२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची निर्दोषसप्तमी व्रत कथा, क. ब्रह्मरायमल्ल, मा.गु., पद्म, आदि स्वामी शांतिनाथ जगत्रार अंति: ब्रह्मराय० जाणहु संनिवार, गाथा ६०. १०३६२७. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ व कर्मक्रिया टीका, संपूर्ण, वि. १८८४, वैशाख, ३०, सोमवार, मध्यम, पृ. ५, प्र. मु. अजितविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें टीकादि का अंश नष्ट है, जैये. (३०x१४.५, ६X३९-४४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि, अंतिः कुमुद० प्रपद्यते श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि किं भूतं अंहिपद्यं; अंतिः सिद्धं प्राप्यते. , कल्याणमंदिर स्तोत्र-कर्मक्रिया टीका, सं., गद्य, आदि कल्याणेति युग्म वाख्या; अति: चत्वारिंशत् वृत्तार्थ, १०३६४५. (+) आनंदघन पदबहोत्तरी, संपूर्ण वि. १८९०, माघ, मध्यम, पृ. ८, प्रले. मु. प्रेमचंद (चंद्रगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: गीतावलि., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैये. (३०.५X१४, १८४३९-४५). आनंदघन गीतवहोत्तरी, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: क्या सोवे उठि जाग बाबरे; अंति: चोपायो उत्तर गयो०, पद-७३. " १०३६५०. (*) जनम मरण संबंधी सूतक विचार, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६ प्र. वि. संशोधित. दे. (३०.५४१४.५, ६-९x१५-२२). , י सूतक विचार, पुहिं., मा.गु., गद्य, आदि: जिस स्त्री के पुत्र; अंति: ग्रंथ में कहा गया है. १०३६६३. (+) कर्म्मकांड सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. दे. (३१x१२.५, ११४३१-४०) ', गोम्मटसार-कर्मकांड, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: पणमिय सिरिसा णेमिं; अंति: अंतरायण लहइजं इडियंजेण, गाथा - १६०. गोम्मटसार- कर्मकांड-टीका, सं., गद्य, आदि: महावीरं प्रणम्यादौ; अंति: नयदीसितं तन्नलभते. " १०३६६५. नव्यबृहत्क्षेत्रसमास प्रकरण संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र. वि. कुल ग्रं. ५५५, जैदे. (३१x१२, १७६४-७३). बृहत्क्षेत्रसमास नव्य, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., पद्य वि. १३७३, आदि सिरिनिलयं केवलिणं; अंति: सोहेयच्चो " सुअहरेहिं, गाथा-३९०. १०३६६६. (+) रावलिया व आवश्यकसूत्र की निर्युक्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७४-६ (५ से १० ) = ६८, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (३०.५१२, ११४३९-४२). " १. पे नाम थेरावलिया, पृ. १आ ४अ संपूर्ण. नंदी सूत्र स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि जयड़ जगजीवजोणी विआणओ; अति नाणस्स परूवणं वुच्छं, गाथा-५०. २. पे नाम. आवश्यकसूत्र की नियुक्ति, पृ. ४अ ७४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आवश्यक सूत्र- निर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि आभिणिबोहियनाणं अंति (-), (पू.वि. पीठिका गाथा २० से उपोद्घातनिर्युक्ति गाथा- १३९ तक व वन्दनकनियुक्ति गाथा ११५ अपूर्ण से नहीं है.) १०३६६७. श्रेणिकराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १८-३(१ से ३) १५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैवे. (३०.५x११.५, १३X५७-६४). श्रेणिकराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि (-); अंति: (-). (पू.वि. गाथा ७७ अपूर्ण से ५३१ अपूर्ण तक है.) १०३६६८. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला सह अवचूरि, संपूर्ण वि. १५४९, चैत्र शुक्ल, २, मंगलवार, मध्यम, पू. ३७, ले.स्थल. फकीरनगर, प्रले. मु. सूरचंद्र शिष्य (गुरु वा. सूरचंद्र, नागेंद्रगच्छ); गुपि. वा. सूरचंद्र (परंपरा भट्टा. हेमसिंहसूरि, नागेंद्रगच्छ); राज्ये भट्टा. हेमसिंहसूरि (नागेंद्रगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत में "अश्विनीनक्षत्रे मेषराशिस्थिते विष्कंभनाम्नियोगे" ऐसा लिखा है. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैवे. (३०.५x११, १५४४३-५३) " " For Private and Personal Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ २५३ अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: रोषोक्ताव नतौ नमः, कांड-६, ग्रं. १४५२, संपूर्ण. अभिधानचिंतामणि नाममाला-अवचूरि*, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: सिद्धं प्रतिष्ठा प्राप्त; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंत के कुछ श्लोकों की अवचूरि नहीं लिखी है.) १०३६६९ (#) आचारांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १५५४ शुक्ल, मध्यम, पृ. ४३, ले.स्थल. शेनापुर, उप. आ. माणिक्यसुंदरसूरि (गुरु आ. जयशेखरसूरि, अंचलगच्छ); गुपि. आ. जयशेखरसूरि; लिख. श्राव. थाहरु संघवी (पिता श्राव. मेला संघवी); गुपि. श्राव. मेला संघवी (पिता श्राव. गुणपाल संघवी); श्राव. गुणपाल संघवी, प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. कुल ग्रं. २५२५, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३१x११, १५४५९-६६). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: विमुच्चति त्ति बेमि, अध्ययन-२५, ग्रं. २६४४. १०३६७०. (+) व्यवहारसूत्र, संपूर्ण, वि. १५६६ शुक्ल, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. हुंडी:व्यवहारसूत्र., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित., जैदे., (३०.५४१०.५, १५४४९-५३). व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: जे भिक्खू मासियं; अंति: भवति त्तिबेमि, उद्देशक-१०, ग्रं. ३७३. १०३६७१ (+) संग्रहणीसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६८, प्र.वि. हुंडी:संग्र.सू.व., संशोधित. कुल ग्रं. ३५००, जैदे., (३०.५४११, १५४५३-६१). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२७६. बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: अत्यद्भुतं योगिभिरप्यगम्य; अंतिः श्लोकानां सर्वसंख्यया, ग्रं. ३५००. १०३६७२. अवंतीसुकुमाल रास-ढाल ७, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (३१x१३, १९४२३). अवंतिसकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.. १०३६७३. मूरख सज्झाय, संपूर्ण, वि. २१वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक १४४. पेन्सिल से लिखी हुई प्रत., दे., (३२४१७.५, ३०x१६). औपदेशिक सज्झाय-मूर्ख, मोहनलाल, मा.ग., पद्य, आदि: मुरख तुं भजतो नथी भगवान; अंति: मोनहलाल०पामशो मोक्षनो वास, गाथा-११. १०३६७५ (#) विजयधर्मसूरि आदेशपट्टक, संपूर्ण, वि. १८४१, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित. पत्रांक १४५=१. अंत में "गुर्जरदेशे" ऐसा उल्लिखित है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (४७४१८). विजयधर्मसूरि आदेशपट्टक, आ. विजयधर्मसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १९वी, आदि: श्रीविजयधर्मसूरीभिः; अंति: मर्यादामांहि प्रवर्तवं. १०३६७६. (+) गोशाला संबंधी पत्र, संपूर्ण, वि. २१वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव. जगजीवन उजमशी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. आधुनिक प्रत., कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., गु., (३२४१३.५, १५४२८). गौशाला संबंधी पत्र, श्राव. जगजीवन उजमशी, गु., गद्य, वि. २१वी, आदि: अमारे बा रडुबाना अमदावाद; अंति: आखी पोलमां थइने थया छे. १०३६७७. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पत्र १अ पर उर्दू लिपि में कुछ लिखा है., दे., (३३४१२, ७४४६). देवसियराईय प्रतिक्रमणसूत्र, संबद्ध, गु.,प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. करेमि भंते सूत्र अपूर्ण तक है.) १०३६७८. अनुत्तरोपपातिकदशांगसूत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:अनुत्तरोपपातिकोपांगवृत्तिः., कुल ___ ग्रं. १०३५, जैदे., (३०.५४११.५, १७४६२). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: अथानुत्तरौपपातिकदशा; अंति: न क्षायमिति क्षमा, वर्ग-३. For Private and Personal Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०३६७९ (#) स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पत्रांक १x६=१ गणीने माहिती भरेल छे., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (४०.५४१०, ४६-५३४५-१०). १.पे. नाम. कर्म की गति, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: हो करम गत टारी नांही टरै; अंति: सरुप निरखकै आत्मसरुप धरै, गाथा-९. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-लोभ, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभ परिहार, मा.ग., पद्य, आदि: अब कोई रे जीया मोटी मांनो; अंति: दविधा जीन त्यागी संघसकल०, गाथा-३५, (वि. पत्र की किनारी खंडित होने से अंतिमवाक्य अधूरा भरा गया है.) ३. पे. नाम, ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी आदिजिणंद मल्हार; अंति: दीदार सेवक कारज सारीयै, गाथा-५. ४. पे. नाम, ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. __ आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभजिणंद गरीबनिवाज सेवक; अंति: सरण भव सिंधुसु पार उतार, गाथा-७. १०३६८५. उपदेशछत्तीसी व वैराग्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (३१४१६, २५४५५). १.पे. नाम, उपदेशछत्तीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपदेशछत्रीसी, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६६, आदि: सबद करी सतगुरु समझाव; अंति: रतनचंद० पातक नासे रे, गाथा-३६. २. पे. नाम, वैराग्य सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: जाग रे सुग्यानी जीव; अंति: लहिज्यो सुख खेम, गाथा-१९. १०३६८६. (#) स्तुतिचतुर्विंशतिका सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३१x१५.५, ३३४८४). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-५० से ९४ तक है.) स्ततिचतुर्विंशतिका-अवचरि*, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). १०३६८८. एकादिशतपर्यंतशब्द साधनिका, संपूर्ण, वि. १९६०, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. पाली, प्रले. ग. सागरचंद्र, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१४३२) व्यलिखेयं मनोरम्या, दे., (३१.५४१६.५, १३४४६). एकादिशतांतसंख्याशब्द साधनिका, म. सहजकीर्ति, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य नीलवर्णं; अंति: संख्याशब्द साध्यंते, (वि. अंत में २० प्रत्याहार लिखे हैं.) १०३६९६. (+) बृहत्पौषधविधि प्रकरण व पौषधविधि प्रकरण, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (३४.५४१३.५, २१४८४-८७). १.पे. नाम. बृहत्पौषधविधि प्रकरण, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पौषधविधि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जस्सुद्धट्ठियमुल्लसि; अंति: गुणंतु विहिरया, ग्रं. १५०. २.पे. नाम. पौषधविधि प्रकरण-संक्षिप्त, पृ. २आ, संपूर्ण. उपा. जिनपाल, प्रा., पद्य, आदि: वत्थाहिय पडिलेहिय; अंति: कमेणसिवलच्छिघणवीडो, गाथा-१५. १०३६९७. (+) विचारषट्त्रिंशिका विज्ञप्तिका सह स्वोपज्ञ टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (३४.५४१३.५, २१४६७-८२). दंडक प्रकरण, म. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउ चउवीस जिणे; अंति: लहिया एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-३८. दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., गद्य, वि. १५७९, आदि: श्रीवामेयं महिमामेयं; अंति: भवतु ददतु वितरंतु, ग्रं. २१६. १०३७०२. (4) बृहत्कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हुंडी:बृहत्कल्पसूत्र., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (३३४१३, १८४६८). For Private and Personal Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ २५५ बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-), (पृ.वि. साधु-साध्वी के रहने की विधि अपूर्ण तक है.) १०३७०६. (#) आवश्यकसूत्र की चूर्णि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३९-२३७(२ से २३८)=२, प्र.वि. कुल ग्रं. १८४७४, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (३३४१३, १२-१९४५६). आवश्यकसूत्र-चूर्णि #, ग. जिनदास महत्तर, प्रा.,सं., गद्य, आदि: नमो अरहताणं०० आवस्स; अंति: णायंमि गिण्हि यव्वे, अध्याय-६, (पू.वि. प्रारंभ व अंत का अल्पांश पाठ है.) १०३७१३. पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (३२४१३, १५४४५). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: ए च्यार मंग एह वखत सुखकार, ढाल-३, गाथा-३९. १०३७१४. आध्यात्मिक सज्झाय-जैनधर्मगर्भित, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (३०.५४१७, ६४३४). आध्यात्मिक सज्झाय-जैनधर्मगर्भित, मु. नग, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जय मुनिराज नमो जय; अंति: नग० सकल पाए मेरा जाय सही, गाथा-२३. १०३७२०. विषमजाति प्रश्नोत्तरविवरण गाथा सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३८-३७(१ से ३७)=१, जैदे., (३१४११, १९४८०). विषमजाति प्रश्नोत्तरविवरण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: भणलोहश्मभिप्पायं२ च पावयं३; अंति: पिययम पण्हुत्तरं कहसु, गाथा-६, संपूर्ण. विषमजाति प्रश्नोत्तरविवरण गाथा-टीका, सं., गद्य, आदि: अमरसहागयं भणलोभं१ अमरसहा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., "संबोहहिय तहा घयाइयं"पाठांश की टीका अपूर्ण तक है.) १०३७४१ (+) साधसाध्वीआचार ७ बोल विचार व ज्ञानपट्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (३२४१४.५, ५४१०). १. पे. नाम. साधुसाध्वीआचार ७ बोल विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. हीरविजयसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १६४६, आदि: समस्त साधु साध्वी; अंति: कान्हर्षिगणि मतं. २.पे. नाम. ज्ञानपट्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ आ. हीरविजयसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १६४६, आदि: समस्तसाधुसाध्वीइ लेखक तथा; अंति: भंडारि पुहतुं करवं. १०३७५३. (+) पाक्षिकसूत्र की अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (३१x१२, १७४६०). पाक्षिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: तीर्थकरान् तीर्थ इति गणधर; अंतिः श्रुताधिष्टात्री स्यात्. १०३७५४. आवश्यकसूत्र का प्रत्याख्यान भाष्य, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (३०.५४१२.५, १८४५९). आवश्यकसूत्र-भाष्य, प्रा., पद्य, आदि: जह गणहरेहिं भणियं; अंति: सोक्खं लहुं मोक्खं. १०३७५५ (+#) आचारांगसूत्र की नियुक्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९-१(४)=८, प्र.वि. हुंडी:आचा०.नि०., संशोधित. कुल ग्रं. ४५०, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (३२४१२.५, १५४४७-६१). आचारांगसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: वंदितु सव्वसिद्धे; अंति: सायउवरिंभणीहामो, गाथा-३४६, (प.वि. बीस काय वर्णन की गाथाएं नहीं हैं.) १०३७५६ (+#) आवश्यकसूत्र की नियुक्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ४२, प्र.वि. हुंडी:श्रीआवश्यकसूत्रं., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ३०००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३२.५४११.५, १६४७५). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीव जोणी विआण; अंति: चरणगुणट्ठिओ साहू, गाथा-२५५०. १०३७५७. (+) जीतकल्पसूत्र की टीका, श्राद्धलघुजीतकल्प व श्राद्धलघुजीतकल्प की स्वोपज्ञटीकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १४७६, मध्यम, पृ. ३३, कुल पे. ६, प्र.वि. हुंडी:जीतकल्प०.वृ०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (३३४११, १६४६४-७८). १. पे. नाम, जीतकल्पसूत्र की टीका, पृ. १आ-२९अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जीतकल्पसूत्र-टीका, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, वि. १२७४, आदि: वंदे वीरं तपोवीर; अंति: (१)शुध्यतः सिध्यतश्चेति, (२)तावत् कलहंसी च खेलतु, ग्रं. १७००. २. पे. नाम, श्राद्धलघुजीतकल्प, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण. आ. तिलकाचार्य, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं नमिउं; अंति: रइया सिरितिलयसूरीहिं, गाथा-२०. ३. पे. नाम, श्राद्धलघुजीतकल्प की स्वोपज्ञटीका, पृ. २९आ-३०आ, संपूर्ण. श्राद्धलघजीतकल्प-स्वोपज्ञटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनं वीरं; अंति: सारियव्वोइति वाच्यम्. ४. पे. नाम, पौषधिकप्रायश्चितसामाचारी गाथा, पृ. ३१अ, संपूर्ण. पौषधिकआलोयणा सामाचारी, आ. तिलकाचार्य, प्रा., पद्य, वि. १३वी, आदि: पोसहिओ न करेईति; अंति: ईदसगं सव्वेसु नवपरउ, गाथा-१०. ५. पे. नाम. पौषधिकप्रायश्चित्तसामाचारी की स्वोपज्ञटीका, पृ. ३१अ, संपूर्ण. पौषधिकआलोयणा सामाचारी-स्वोपज्ञटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, वि. १३वी, आदि: आवश्यिकी न करोति; अंति: प्रायश्चित्तसामाचारी. ६. पे. नाम. जीतकल्पसूत्र, पृ. ३१अ-३३अ, संपूर्ण. आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ६वी, आदि: कयपवयणप्पणामो; अंति: सुपरिच्छिय गुणम्मि, गाथा-१०५. १०३७५८. (+) उपदेशमाला की अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १९, प्रले. श्राव. सहदेव परीख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सिद्धसाधु कृता उपदेशमालावचूरि., संशोधित., जैदे., (३०x१२.५, १७४६४). उपदेशमाला-अवचूरि, मु. सिद्धसाधु, सं., गद्य, आदि: ऋषभो जगच्चूडामणिभूतोधुना; अंति: (१)स एवास्माभिः ___ पाठोविवृतः, (२)चरणरेणोः सिद्धसाधोरिति. १०३७५९. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १२२, उप. मु. मोतीचंद; अन्य. श्राव. रतनचंद कोठारी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:बालावबोध. नेमिनाथजिन प्रसादात्. संवत् १९२० फाल्गुन वदि १५ दिने अजीमगंजपुर में रतनचंदजी, मेघराजजी के परिवार ने इस प्रत को ज्ञानभंडार में स्थापित किया., कुल ग्रं. ११०००, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (३१.५४१२, १५४६५). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय का बालावबोध, आ. तरुणप्रभसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)सुरासुराधीशमहीश, (२)पहिलउं ज्ञान तउ पाछइ; अंति: तावदेषा सुवृत्तिः. १०३७६० (+#) कल्पसूत्र का अंतर्वाच्य, अपूर्ण, वि. १५५५, श्रावण शुक्ल, २, मध्यम, पृ. २७-९(१ से ६,१२ से १४)=१८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्रले. आ. देवगुप्तसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३२४१२.५, १४४५२). कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. महावीर आमलक्रीडा प्रसंग से आदिजिन १०२ पुत्र-पुत्री नाम तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०३७६१ (+#) कातंत्रव्याकरण सह स्वोपज्ञ टीका व टीका का दर्गटिप्पण, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १३५-१००(१ से ९०,९३,९६,९८,१००,१०६ से १११)=३५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रांक अस्पष्ट होने से अनुमानित पत्रांक दिये गए हैं., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९.५४१२.५, २१-२४x७५-८०). कातंत्रव्याकरण, आ. शर्ववर्माचार्य, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच का पाठांश है.) कातंत्रव्याकरण-बालावबोधटीका, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., गद्य, वि. १४४४, आदि: (-); अंति: (-). कातंत्रव्याकरण-बालावबोधटीका का स्वोपज्ञ दुर्गपदटिप्पण, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०३७६२. (+) अंगविज्जा, संपूर्ण, वि. १५८२, श्रावण शुक्ल, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. १३१, ले.स्थल. अणहिल्लपुरपत्तन, प्र.वि. हुंडी:अंगविज्जा., संशोधित., जैदे., (३३.५४११, १७४६५). अंगविज्जा, आ. पूर्वाचार्य, प्रा., प+ग., आदि: णमो अरहंताणं० णमो; अंति: वेण तं तथावग्गमादिसे, अध्याय-६०, ग्रं. ९०००. पाह.) For Private and Personal Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०३७६३. (+#) पांडव चरित्र, संपूर्ण, वि. १५०९, भाद्रपद कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. २५०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल ग्रं. ९१९२, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३०.५४१२.५, १३४४८). पांडव चरित्र, आ. देवप्रभसरि मलधारी, सं., पद्य, आदि: श्रियं विश्ववयत्राण; अंति: महिममहाकाव्यमेतद्धिनोत, सर्ग-१८. १०३७६४. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह लेशार्थदीपिका टीका व टीका का बालावबोध, पूर्ण, वि. १५४८, ?, ज्येष्ठ, ३, रविवार, मध्यम, पृ. २३८-१(४२)+१(१२३)=२३८, प्रले. बडारतन; अन्य. ग. श्रीजियप्रभ गणि; ग. सुंदर गणि (गुरु ग. सौभाग्यसुंदर गणि); गुपि.ग. सौभाग्यसुंदर गणि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:उत्तरा०.बा०. प्रतिलेखन पुष्पिका अवाच्य है. प्रतिलेखक का नाम अंकमय है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (३०.५४११, १३४५६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: भवसिद्धिय संवुडे, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००, (पू.वि. बीच का अल्पांश पाठ नहीं है.) उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, आदि: भिक्षो विनयं प्रादष्करि; अंति: समंतान् इष्टान्. उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: भिक्ष महात्मानइ; अंति: देखवाई युक्तउ नही. १०३७६५. (+) पार्श्वनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. कुल ग्रं. ६०७४, जैदे., (३१x१२, १५४५८). पार्श्वजिन चरित्र, आ. भावदेवसूरि, सं., पद्य, वि. १३१२, आदि: नाभेयाय नमस्तस्मै; अंतिः सहस्राण्यनुष्टुभाम्, सर्ग-८, श्लोक-६०९३. १०३७६६. (+) भगवतीसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९६२, भाद्रपद कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ६७६+६(१३१,३२० से ३२४)=६८२, प्रले. श्राव. जीवराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:भगवति.सू. कृति के अंत में शतक व उद्देश संबंधी यंत्र दिया गया है., त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं. १६०००, दे., (३०.५४१४, १६४५४). _भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहंताणं० सव्व; अंति: संतिकरी तं नमसामि, शतक-४१, सूत्र-८६९, ग्रं. १५७५२. भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२८, आदि: सर्वज्ञमीश्वरमनंत; अंति: श्लोकमानेन निश्चितम्, शतक-४१, ग्रं. १८६१६. १०३७६७. (+) निशीथचूर्णि सह विशेषचूर्णि के उद्देशक २० की सबोधा टीका, पूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ७२४-१(४६४)+१०(३६,२५६,३१३ से ३१६,५०५ से ५०८)=७३३, प्र.वि. हुंडी:निशीथचूर्णि., संशोधित. कुल ग्रं. ११००, जैदे., (३१.५४११.५, १०-१३४२१-५३). निशीथसूत्र-विशेषचूर्णि #, ग. जिनदास महत्तर, प्रा.,सं., गद्य, वि. ८वी, आदि: नमिऊण अरहताणं सिद्ध; अंति: णणओ सव्वेसि पि गाहा, ग्रं. २८०००, (पू.वि. बीच का अल्पांश पाठ नहीं है.) निशीथसूत्र-विशेष चूर्णी का हिस्सा विंशोद्देशक की सुबोधा टीका, आ. श्रीचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११७४, आदि: प्रणम्य वीरं सुरवंदि; अंति: समर्थितेयं रवौ वारे. १०३७६८. (+) सूत्रकृतांगसूत्र-श्रुतस्कंध २ की बृहद्वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९०३, पौष शुक्ल, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १२०, ले.स्थल. लक्ष्मणनगर, प्रले. मु. ऋषभजी; पठ. मु. शिवचंद्र; मु. गुणचंद्र (गुरु पं. धर्मचंद्र, विजयगच्छ); गुपि.पं. धर्मचंद्र (गुरु आ. कांतिसागरसूरि, विजयगच्छ); आ. कांतिसागरसूरि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. १२८५५, प्र.ले.श्लो. (१४०३) चंद्राक्कौ गगने यावत्, दे., (३०x१२, १४४४८-५३). सूत्रकृतांगसूत्र-बृहद्वत्ति #, आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य, वि. १०वी, आदिः (-); अंति: चरणगुणट्ठिओ साहुत्ति, प्रतिपूर्ण. १०३७६९ सूत्रकृतांगसूत्र-द्वितीय श्रुतस्कंध सह दीपिका टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९१, जैदे., (३०x१२, १२४५६). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विहरइ त्तिबेमि, प्रतिपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-दीपिका वृत्ति, मु. हर्षकुल, सं., गद्य, वि. १५८३, आदि: (-); अंति: जगति जयतु चिरम्, प्रतिपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पह.) २५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०३७७० (#) सूर्यप्रज्ञप्ति, अपूर्ण, वि. १४७७, चैत्र शुक्ल, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. २३०-११३(१ से ११३)=११७, ले.स्थल. अणहिल्लपत्तन, उप. आ. देवगुप्तसूरि (द्विवंदनीकगच्छ); पठ. आ. सिद्धसूरि (द्विवंदनीकगच्छ); अन्य. वा. कीर्तिविजय (गुरु आ. हीरविजयसरि); गुपि. आ. हीरविजयसरि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (३७.५४९.५, १२४६८). सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: सोक्खुप्पाए सदापाए, प्राभृत-२०, ग्रं. २२००, (पू.वि. प्राभृत-१० अपूर्ण से है.) १०३७७१. (+) आचारांगसूत्र व आचारांगसूत्र की नियुक्ति, संपूर्ण, वि. १५वी, मध्यम, पृ. ४९, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:आचारांगनियुक्ति., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (३७.५४११, १६४६६). १. पे. नाम. आचारांगसूत्र, पृ. १आ-४२अ, संपूर्ण. __आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: विमुच्चति त्ति बेमि, अध्ययन-२५, ग्रं. २५००. २. पे. नाम. आचारांगसूत्र की नियुक्ति, पृ. ४२अ-४९अ, संपूर्ण. आचारांगसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: वंदितु सव्वसिद्ध; अंति: सायउवरिंभणीहामो, गाथा-३६७. १०३७७२. (+#) शांतिनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १४०७, फाल्गुन कृष्ण, १२, बुधवार, मध्यम, पृ. १७६, पठ. आ. हरिप्रभसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३४४१०, ११४४४). शांतिनाथ चरित्र, आ. मुनिदेवसूरि, सं., पद्य, वि. १३२२, आदि: वेश्मरत्न निशारत्न; अंति: रुचि शुचि सर्गो मम सप्तमः, ग्रं. ४८५५, (वि. प्रारंभ में कुछ श्लोक दिये है.) १०३७७३. चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १६२६, फाल्गुन कृष्ण, १, मंगलवार, मध्यम, पृ. १३७, ले.स्थल. अमदावाद राजनगर, प्रले. रामचंद्र रविदास महंत; गुपि. रविदास; लिख. श्राव. अमीपाल; राज्ये आ. जिनचंद्रसूरि (गुरु आ. जिनभद्रसूरि, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि. आ. जिनभद्रसूरि (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:चंद्रप्र०.वृत्ति., कुल ग्रं. ९५००, जैदे., (३२.५४११,१५४७२). चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: जयति नवणलिणकुवलय विय; अंति: अविणीएस दायव्वं, प्राभृत-२०, ग्रं. १८५४. चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: मुक्ताफलमिव करतलकलित; अंति: धुजनस्तेन भवतु कृती, ग्रं. ९४००. १०३७७४. (+) प्रवचनसारोद्धार सह तत्त्वज्ञानविकासिनी टीका, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, प. १६२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:प्रवचन०.वृ०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (३३४११, १८-२२४८६-८९). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊण जुगाइजिणं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५५१ अपूर्ण तक है.) प्रवचनसारोद्धार-तत्त्वज्ञानविकासिनी वृत्ति, आ. सिद्धसेनसूरि, सं., गद्य, वि. १२४२, आदि: सन्नद्धैरपि यत्तमोभिरखिलै; अंति: (-). १०३७७५. भगवतीसूत्र टीप भांगादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४, कुल पे. ८, जैदे., (३३४११.५, ५४१०). १. पे. नाम. भगवतीसूत्र की अनुक्रमणिका, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-टीप, मा.गु., गद्य, आदि: नवकार दस उद्देसाना नाम; अंति: लाख अग्यासीहजार पद प्रमाण. २. पे. नाम. गम्माशतक विचार, पृ. ६अ-१२अ, संपूर्ण, वि. १८२२. भगवतीसूत्र-गम्माशतक विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: उववाय१ परिमाणु२ संघयणु३; अंति: (-). ३. पे. नाम. भगवतीसूत्र-भांगा विचार, पृ. १२आ-२२आ, संपूर्ण. संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. भगवतीसूत्र-पुद्गलभंगनिवृत्ति प्रकरण, पृ. २३अ, संपूर्ण. ग. नयविजय, सं., गद्य, आदि: (१)अथैषां भंगानां नष्टानयन, (२)नष्टांकराशि प्रविभज्य; अंति: इत्युद्दिष्टांकानयनाम्नाय. ५. पे. नाम. भगवतीसूत्र-शतक २५ उद्देशक भांगा विचार, पृ. २३आ-३१अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org भगवती सूत्र शतक २५ उद्देशक ६ भांगा विचार, संबद्ध, मा.गु. सं., गद्य, आदि: हवै तेरमो गतिद्वार कहिय; अति अप्पावयं नियट्ठाणं. ६. पे. नाम. असज्झाय विचार, पृ. ३१आ-३२अ, संपूर्ण. प्रा.मा.गु., सं., गद्य, आदि धूंअरि पडे तां सीम, अंति (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७. पे नाम. आगमग्रंथाग्र परिमाण विवरण, पू. ३३अ-३३आ, संपूर्ण प्रा., मा.गु., प+ग., आदि: इग्यारै११ अंग बारै१२; अंति: १२१ जीभप्रकीर्णक १३. ८. पे. नाम. १२ देवलोक भांगा विचार, पृ. ३४अ - ३४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि एक दोय त्रिक चतु पांच; अति: (-). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०३७७६. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १६२३ आश्विन शुक्ल, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. ८२+१ (१) ८३, प्र. मु. खेता (गुरु वा. पुण्यकीर्ति, मलधारगच्छ); गुपि. वा. पुण्यकीर्ति (मलधारगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : ज्ञाताधर्मक०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित कुल ग्रं. ६००० अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (३३४११, १५४७३). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० लोए: अति धम्मका सुवखंधो सम्मत्तो, अध्ययन - १९, ग्रं. ५५००. " . १०३७७७. उत्तराध्ययन की नियुक्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. ८-१(१) =७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र.वि. हुंडी:उत्तरा.निर्युक्ति. पत्र की किनारी खंडित होने से पत्रांक अनुमानित भरा है., जैदे., (३२x१२.५, १७४३४). उत्तराध्ययनसूत्र-निर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि (-); अति (-), (पू.वि. संस्कृत्याध्ययन-४ की गाथा ४० अपूर्ण से कर्मप्रकृत्यध्ययन ३३ की गाथा ५ अपूर्ण तक है व बीच बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०३७७८. (+) महिपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १५०३ माघ शुक्ल, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. ४४, प्रले. उपा. अमरचंद्र (गुरु आ. कमलप्रभसूरि, रुद्रपल्लीयगच्छ); गुपि. आ. कमलप्रभसूरि (गुरु आ. देवप्रभसूरि, रुद्रपल्लीयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (३२x१२, १३X६४). . महीपालराजा कथा, ग. वीरदेव, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण रिसहनाहं केवल; अंति : वुद्धिं करतेहिं, गाथा - १८११, ग्रं. २५००. २५९ १०३७७९. (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९१, प्र. वि. हुंडी ज्ञातासूत्रवृत्ति, पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (३०x११.५, ९-२०४८). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए अंतिः सुरखंधो समत्तो, अध्ययन - १९, ग्रं. ५५००. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं. गद्य वि. ११२०, आदि नत्त्वा श्रीमन्महावीर, अंति वशम्यां च सिद्धेयम्, अध्ययन - १९, ग्रं. ४२५५. १०३७८०. (+) कुमारपालभूपाल चरित, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १५९, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. २५००, जैदे., (३०.५X११, १४४४८). कुमारपाल चरित्र, आ. जयसिंहसूरि, सं., पद्य वि. १४२२, आदि चिदानंदेककंदाय नमस्तस्मै अंति: (१) चेतांसि पुण्यात्मनाम्, (२) प्रीणातु विद्वज्जनम्, सर्ग १०, श्लोक-६३०७. १०३७८१. (+) भगवतीसूत्र, संपूर्ण, वि. १६५५ आश्विन शुक्ल, ८, बुधवार, मध्यम, पृ. ४५१, प्र. वि. हुंडी : भगवतीसूत्रं०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १५७५०, प्र.ले. श्लो. (१४०७) तैलिरक्षेत् जलरक्षेत्, (१४०८) भग्नपृष्टि ग्रीवाश्च, जैदे., (२९.५X११, १४४४८). For Private and Personal Use Only भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. गद्य, आदि नमो अरहंताणं० सव्व अति: संतिकरि तं नम॑सामि शतक-४१, सूत्र- ८६९, ग्रं. १५७५२. १०३७८२. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पू. ११०- १ ( २ ) +२ (४३ से ४४) =१११, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी : ज्ञाता०. सूत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित, जैदे., (३०X१२, १३X५५). Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ सूत्र-५ अपूर्ण से सूत्र-११अपूर्ण तक नहीं है व श्रुतस्कंध-२ वर्ग-५ अध्ययन-५ अपूर्ण से नहीं है.) १०३७८३. (+#) आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति, नियुक्ति का भाष्य व मू.नि.भा. की दीपिका टीका, संपूर्ण, वि. १५४९, आषाढ़ शुक्ल, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १६०, ले.स्थल. द्वारका, प्रले. मु. गुणनिधान (गुरु आ. शालिभद्रसूरि, बृहद्गच्छ); गुपि. आ. शालिभद्रसूरि (बृहद्गच्छ); आ. देवसूरि (बृहद्गच्छ); आ. माणिक्यसूरि (बृहद्गच्छ); राज्यकाल रा. गयासुद्दीन; पुंजराज, प्र.ले.प. विस्तृत, प्र.वि. हंडी:आवश्यक०.लघु०., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३०.५४११.५, २०४६८). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० करेमि; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ, अध्ययन-६, सूत्र-१०५. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (१)जयइ जगजीव जोणी विआण, (२)आभिणिबोहियनाणं; अंति: चरणगुणट्ठिओ साहू, गाथा-२५५०, ग्रं. ३१००. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य, प्रा., पद्य, आदि: अवरविदेहे गामस्स; अंति: जम्हा विउ पमाणं, गाथा-२५३. आवश्यकसूत्र-दीपिका टीका #, आ. माणिक्यशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४०१, आदि: श्रीआवश्यकसूत्रनिर्य; अंति: ___ यकदीपिकामुदंतनुताम्, ग्रं. ११७१०. १०३७८४. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-दशम पर्व, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १०५-६(१ से ६)=९९, प्र.वि. हुंडी:महावीरच०., जैदे., (२९.५४११.५, १५४५५). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि: (-); अंति: स्वान्योपकारेच्छया, (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. सर्ग-१ श्लोक-४७ अपूर्ण से है.) १०३७८५. (+#) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-अष्टमपर्व नेमिजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. १५२२, कार्तिक कृष्ण, ९, मंगलवार, मध्यम, पृ. ७६, प्र.वि. हुंडी:नेमिचरित्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ४७०४, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३०४११, १७४५७). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०३७८६. (+) सूत्रकृतांगसूत्र-प्रथमश्रुतस्कंध की दीपिका टीका, संपूर्ण, वि. १५८६, माघ शुक्ल, २, सोमवार, मध्यम, पृ. ५९, प्र.वि. हुंडी:सूत्रकृ०.दी०., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२९x१०.५, १५४६०-६५). सूत्रकृतांगसूत्र-दीपिका वृत्ति, मु. हर्षकुल, सं., गद्य, वि. १५८३, आदि: प्रणम्य श्रीजिनं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०३७८७. (+#) भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०३-३८(५,११,३६ से ६०,६७ से ६८,९४ से १०२)+१(६)=६६, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:भग०.सू०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३१४१२, १३४५७). __ भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० णमो; अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच व अंत के पाठ नहीं हैं.) १०३७८८. (+) श्रीपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २८-१(१)=२७, पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:श्रीपालचरित्र., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२९.५४११, १५४६२). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण से गाथा-१३१८ अपूर्ण तक है.) १०३७८९ (+) प्राकृत व्याकरण सह स्वोपज्ञटीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५२+१(४६)=५३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं. २०००, जैदे., (३२४१२.५, १३४३७)... सिद्धहेमशब्दानुशासन-हिस्सा अष्टम अध्याय प्राकृत व्याकरण, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: अथ प्राकृतम् बहुलम्; अंति: (-), (पू.वि. स्वार्थादि प्रत्यय अपूर्ण तक है.) सिद्धहेमशब्दानुशासन-हिस्सा अष्टम अध्याय प्राकृत व्याकरण की स्वोपज्ञ प्राकृतप्रकाश टीका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: अथ शब्द आनंतर्यार्थो; अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०३८४२. (+) योगचिंतामणि सारसंग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८८६, आश्विन शुक्ल, १, बुधवार, मध्यम, पृ. १९५+१९८९)=१९६, प्रले. मु. जीवणदासजी; पठ. मु. रुघनाथदास (गुरु मु. जीवणदासजी),प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ६७३६, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (४५३) प्रित संपूर्ण यह भइ, (१२४२) भग्न पुष्टि कटि ग्रीवा, जैदे., (२९.५४१३.५, १२४३३-३८). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: यत्र वित्रासमायांति; अंति: विजयता योगश्चिसामणिश्वेरं, अध्याय-७. योगचिंतामणि-बालावबोध, मु. मानकीर्ति-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञ प्रणम्यादौ; अंति: ग्रंथ घणै काल लाई. १०३८४४ (+#) नारचंद्र ज्योतिष, शिवचक्र विचार व षट्पंचाशिका, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. १८-१(३)=१७, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३४४१३, ११४३८-४३). १.पे. नाम, नारचंद्र ज्योतिष, पृ. १आ-१६अ, संपूर्ण. ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: अर्हतजिनं नत्वा; अंति: रुचिरावासराः संभवंति. २. पे. नाम. शिवचक्र विचार, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. सं.. पद्य, आदि: वक्ष्ये शिवचक्र महं: अंति: केषामपि नोत्तरं दद्यात, श्लोक-७. ३. पे. नाम. षट्पंचाशिका, पृ. १६आ-१८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. पृथुयशा, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य रविं० वराह; अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-७ श्लोक-४७ अपूर्ण तक है.) १०३८४५. (+#) सारस्वत व्याकरण धातुपाठ सह स्वोपज्ञ टीका, संपूर्ण, वि. १७५७, फाल्गुन शुक्ल, १, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४७, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. मु. गजानंद (गुरु मु. सुखलाभ, खरतगच्छ-कीर्तिरत्नसूरिशाखा); गुपि. मु. सुखलाभ (गुरु मु. सुमतिरंग, खरतगच्छ-कीर्तिरत्नसूरिशाखा); मु. सुमतिरंग (गुरु मु. चंद्रकीर्ति, खरतगच्छ-कीर्तिरत्नसूरिशाखा); मु. चंद्रकीर्ति (गुरु मु. समयकीर्ति, खरतगच्छ-कीर्तिरत्नसूरिशाखा), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (३२४१२.५, १८४५८). सारस्वत व्याकरण-धातुपाठ, संबद्ध, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १६६३, आदि: श्रीसर्वज्ञं जिनं नत्वा; अंति: निर्मितो नंदताच्चिरम्. सारस्वत व्याकरण-धातुपाठ की स्वोपज्ञ धातुतरंगिणी टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: नमस्कृत्य महोतं; ____ अंति: कुर्वतां निर्मलां मतिम्. १०३८४६. (+) दर्शन कथारत्न करंडक, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (३२४१३, १०४३५-३८). दर्शन कथारत्न करंडक, मु. श्रीचंद पंडित, अप., पद्य, आदि: सो जयउ जम्मि जिणे पढमं; अंति: (-), (पू.वि. संधि-२२ तक है.) १०३८५० (#) सारस्वत व्याकरण-कारकप्रक्रिया सह दीपिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. हुंडी:चंद्रकीर्ति टीका., त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३४.५४१४, १४४४-५५). सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., सप्तमी विभक्ति वर्णन अपूर्ण तक है.) सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०३८८० (+#) सिद्धांतचंद्रिका सह सुबोधिनी वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३-२(१,१९)=२१, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:सु०वो०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३२४१२.५, १२४५४). सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सिद्धांतचंद्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मंगलाचरण से विसर्गसन्धि "रि लोपो दीर्घश्च" सूत्र तक है.) सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सिद्धांतचंद्रिका की सुबोधिनी वत्ति, ग. सदानंद, सं., गद्य, वि. १७९९, आदिः (-); अंति: (-). . .. For Private and Personal Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०३८८७ (+) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. २१-५ (१ से २६ से ८) १६. पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (३०x१२.५, ११x४२). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ७ से गाथा-४७ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). " "" १०३८८८. योगोइहनविधि संग्रह, संपूर्ण, बि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, प्र. वि. पत्रांक अनुपलब्ध है. वे. (३३१२, ७-१०X३३-३६). योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: प्रथम योगवहन करावनार सवार; अंति: ईच्छामि० वायणा लेव्युं. १०३८८९ (+) जंबूरास व जीरणसेठी गीत, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित.. जैवे. (३१.५x११.५, २०४६४). १. पे. नाम. जंबुरास, पृ. १अ - ९आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी: जंबुचउपई, जंबुचुपी. जंबूस्वामी रास, मु. मल्लिदास, मा.गु., पद्य, वि. १६४९, आदि: सरसति सरस सुकवि सकति; अंति: पहुंचइ मुक्ति मझारि. २. पे. नाम जीरणसेठी गीत, पृ. ९आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण; अंति: नइजी ति नहि नमइ मुनिमाल, गाथा - ३०. १०३८९० (+) १४ गुणठाणा का वालावबोध, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२. प्र. वि. हुंडी : गुणठाणा बालाबोध, संशोधित, जैदे., (३१X१२, २०x६६ ) . १४ गुणस्थानकस्वरुप विचार - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि हे श्रीगुरो गुण स्थानस्यु अति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गुणस्थानक १४ के बालावबोध अपूर्ण तक लिखा है.) १०३८९८. (+#) स्यादिशब्दसमुच्चय- उल्लास २ से ४ सह स्वोपज्ञ दीपिका अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. हुंडी:व्याकरणप०. पत्रांक भाग खंडित है., पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १२६७, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (३०X११, १७X७५). स्यादिशब्दसमुच्चय, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: ष्णांता संख्या इतिस्तथा, (प्रतिपूर्ण, वि. मूलपाठ कहीं पर संकेत रूप से तो कहीं पर पूर्ण रूप से मिलते हैं.) स्यादिशब्दसमुच्चय- स्वोपज्ञ दीपिका अवचूरि, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि (-); अंति: स्त्री लिंगोपिदर्शितः, प्रतिपूर्ण. १०३९८८ (+) अनेकार्थकोश, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी अने०, संशोधित, जैवे., " (३१.५४१५, ९४२३-२६). अनेकार्थध्वनिमंजरी, सं., पद्य, आदि शुद्धवर्णमनेकार्थ; अंति (-), (पू.वि. अधिकार- १ श्लोक ६१ अपूर्ण तक है.) १०४०३८ (+०) स्थानांगसूत्र की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १५४४, मध्यम, पृ. २४५-२३७ (१ से २३७ ) = ८, प्र. वि. हुंडी स्थानांगवृत्ति, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. कुल ग्रं. १८०००, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३२x११.५, १६X५६). स्थानांगसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि सं., गद्य वि. ११२०, आदि (-) अंति ( १ ) प्रथमाध्ययन वदनुगमनीयानि, ', " (२)टीकाल्पधियोपि गम्या, स्थान- १०, ( पू. वि. अंत के पत्र हैं., स्थान- १० की वृत्ति अपूर्ण से है.) १०४०३९ (+०) मलचासुंदरी चरित्र, संपूर्ण, वि. १४७४, आषाढ कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ४३, प्रले. श्राव. आल्हाक, उप पं. मतिसागर, अन्य. आ. सागरचंद्राचार्य (खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें कुल ग्रं. २४३०, मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र. ले. लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं जैये. (३०.५x११, १६४६१). "T मलयासुंदरी चरित्र, आ. जयतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: चतुरंगो जयत्यर्हन; अति त्रिंशताभ्यधिकानि च प्रस्ताव-४, , ग्रं. २४३०. For Private and Personal Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ २६३ १०४०४० (+#) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित महाकाव्य-पर्व ८, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १८६-१४३(१ से ५१,५३,५५ से ६२,७४ से ७६,८२ से ८६,१०१,११० से ११३,११५ से १८४)+१(७९) ४४, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९.५४११.५, ११४३५-३९). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. सर्ग-३ श्लोक-१५३अपूर्ण से २३१ अपूर्ण, २०६ अपूर्ण से २३१ अपूर्ण, श्लोक-४९५ अपूर्ण से ७७३, ८५० से ९७६, सर्ग-४ श्लोक-२६ से सर्ग-६ श्लोक-१४९ तक, सर्ग-१० श्लोक-२६९ से है व सर्ग-१२ श्लोक-७५ अपूर्ण से १२२ अपूर्ण तक है.) १०४०४१ (+) उपदेशमाला, शीलोपदेशमाला व धम्मोवएसमालादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३६, कुल पे. ९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (३१x११, १६४५९). १. पे. नाम. उपदेशमाला, पृ. १आ-१५अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:उपदेस०. ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंदन; अंति: सामिणि सोहेयव्वं पयत्तेण, गाथा-५४४. २. पे. नाम. शीलोपदेशमाला, पृ. १५अ-१८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:शीलोपदे०. आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबंभयारि नेमि; अंति: आराहिय लहइ बोहिफलं, कथा-४३, गाथा-११६. ३. पे. नाम. धम्मोवएसमाला, पृ. १८अ-२१अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:धम्मोवए०. धर्मोपदेशमाला, आ. जयसिंहसरि, प्रा., पद्य, वि. ९१५, आदि: सिज्झउ मज्झवि सुयदेव; अंति: ला कम्मखय मिच्छमाणेण, गाथा-१०३. ४. पे. नाम. उपदेशरत्नमाला, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:उपदेसरत्न०. आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिय नीसेस; अंति: विउलं उवएसमालमिणं, गाथा-२६. ५. पे. नाम. रत्नमालिका प्रकरण, पृ. २१आ-२२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:प्रश्नोत्तरर०. प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: कंठगता किं न भूषयति, श्लोक-२९. ६. पे. नाम. संवोहसत्तरी, पृ. २२आ-२४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:संवोहस०. संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोयगुरुं; अंति: सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा-७१. ७. पे. नाम, गौतमपृच्छा, पृ. २४अ-२६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गौतमपृ०. प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं जाणं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४. ८. पे. नाम. योगशास्त्र-प्रकाश १-४, पृ. २६अ-३५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:योगशा०. योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९.पे. नाम. इकवीस ठाणा, पृ. ३५आ-३६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:इकवी०. २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी जणया; अंति: असेस साहारणा भणिया, गाथा-६६. १०४०४२. (+) १२ व्रत कथा, धम्मिल कथा व दामनक कथानक, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. ३, पू.वि. वस्तुतः प्रत का प्रारंभिक भाग अपूर्ण है किन्तु पत्रांक १ से दिया गया है.,प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ८००, जैदे., (३१x११, १५४५३). १. पे. नाम. द्वादशव्रत कथा, पृ. १अ, संपूर्ण. १२ व्रत कथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सम्मं ते दुक्करकरेणं वंदे, गाथा-३८, (वि. वस्तुतः प्रारंभिक भाग अपूर्ण है किंतु पत्रांक १ से होने के कारण संपूर्ण लिया गया है. गाथा-२८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. धम्मिल कथा, पृ. १अ-१३अ, संपूर्ण. धम्मिल कथा-प्रत्याख्यानफलगर्भित, सं., पद्य, आदि: प्रत्याख्यानफलं प्राप्तु; अंति: सदा यद्यस्ति वः क्रीडितुं, श्लोक-७२७. ३. पे. नाम, दामनक कथानक, पृ. १३अ-१४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दामन्नक कथानक-प्रत्याख्यानफलगर्भित, सं., पद्य, आदि: कैवर्त्त एक आदाय; अंति: (१) वोभीष्टार्थ सिद्धिः करे, (२)कथे किल० केवलस्तां श्लोक - ९८. १०४०४३. (४) दशवैकालिकसूत्र की अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५वी, मध्यम, पृ. ७, प्र. वि. हुंडी : दसवी अवचूरि, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (३०X१०, २९x१०२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशवैकालिकसूत्र - अवचूरि, सं., गद्य, आदि धम्मो० संयम आश्रव द्वारो अंतिः (१) ब्रविमीति पूर्ववत्, (२) कमतस्तिस्थत्वे तदिति, ग्रं. २२४३. १०४०४४. (+#) नेमराजुल स्नेहवेली, संपूर्ण, वि. १९२४, भाद्रपद शुक्ल, १४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६, प्रले. ऋ. सरूपचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (३२x१३, १५x५३). नेमराजिमती स्नेहवेली, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७६, आदि: श्रीशंखेसर पासजी; अंति: जय उत्तम स्यबास रे, ढाल - १५. १०४१०५ (+) सारस्वत व्याकरण-तद्धित प्रक्रिया प्रथम वृत्ति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०१, पौष कृष्ण, ८, बुधवार, मध्यम, पृ. ११६, प्र.वि. हुंडी:सारस्वत, पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., दे., (३१.५X१४.५, ७२८). सरस्वतीसूत्र प्रक्रिया सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं अंति: (-), प्रतिपूर्ण. "" सारस्वत व्याकरण-टवार्थ, मा.गु. सं. गद्य, आदि परमात्मनि नमस्कृते अति (-) (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, प्रतिलेखक द्वारा यत्र-तत्र रचार्थ लिखा है.) १०४११०. वैद्यवल्लभ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र. वि. हुंडी : वैद्यवल्ल, जैदे., (३२.५४१४.५, १३४३६). " वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: सरस्वतीं हृदि, अंति: (-), (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., विलास ८ तक लिखा है.) १०४१३४. अनेकार्थमंजरी, अपूर्ण, वि. १८९९, आषाढ शुक्ल १२, मध्यम, पृ. १४-५ (१ से ५ ) = ९, ले. स्थल. श्रीकृष्ण दुर्ग, प्रले. व्रजवल्लभ मिश्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी अने० जैदे. (३२४१५, ९४२४-३०). अनेकार्थध्वनिमंजरी, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: समयो शुद्धसंगयोः, अधिकार- ३, श्लोक-२१८, (पू.वि. अधिकार-१ श्लोक-६१ अपूर्ण से है.) १०४१३८. नाममाला अनुक्रमणिका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५- १ ( १ ) = १४, जैदे., (३०X१३.५, ५X१०). अभिधानचिंतामणि नाममाला- बीजक, ग. शुभविजय, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अति नाम नमस्कारार्थं अव्यवनाम, (पू.वि. बीजक -२ दिवसनाम अपूर्ण से है ) १०४१४३. सारस्वत व्याकरण की दीपिका टीका- आख्यात प्रक्रिया, अपूर्ण, वि. १८४७, कार्तिक कृष्ण, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ७०-२(३६,६८)=६८, प्रले. तुलसीराम (गुरु ज्ञानानंद); गुपि ज्ञानानंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी. चं.की.द्वि., जैवे., (२९x१५.५, १७x४८). सारस्वत व्याकरण- दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य वि. १६२३, आदि (-); अंति (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०४१४८ (+) सारस्वत व्याकरण की दीपिका टीका-वृत्ति ३ कृत प्रक्रिया, अपूर्ण, वि. १८४७, आश्विन शुक्ल, ६, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २५-१(२४)=२४, प्रले. तुलसीराम (गुरु ज्ञानानंद); पठ. ज्ञानानंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : चं. की.तृ., टिप्पणयुक्त पाठ-संशोधित, जैदे, (२९x१५.५, ११-१६४४०-४५) सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: (-); अंति: वाच्यमाना बुधैश्चिरम्, (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. भू धातु वर्णन अपूर्ण से कृत्य प्रक्रिया के अंतिम पाठांश अपूर्ण तक नहीं है.) १०४१६३. समकित परिक्षा बालावबोध, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १०. प्र. वि. पत्रांक अनुपलब्ध है. दे. (३४४१४, . " २९x१५). सम्यक्त्वपरीक्षा वचनिका, संबद्ध, मा.गु, गद्य, आदि अभिनिवेसीय क० मिथ्यात्व; अति: (-). For Private and Personal Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०४१६४. (+#) नवतत्त्व सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १५३१, कार्तिक शुक्ल, ५, मध्यम, प. ४८, ले.स्थल. बहादरपुर प्रले. ग. शिवसुंदर (परंपरा उपा. हेमसारशिष्य, तपागच्छ); गुपि. उपा. हेमसारशिष्य (परंपरा उपा. हेमसार, तपागच्छ); आ. हेमरत्नसूरि (परंपरा आ. हेमसमुद्रसूरि, तपागच्छ); आ. हेमसमुद्रसूरि (परंपरा भट्टा. हेमहंससूरि, तपागच्छ); भट्टा. हेमहंससूरि (तपागच्छ), प्र.ले.प. विस्तृत, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं. ३०००, मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (७४०) याद्रिशं पुस्तके दृष्टं, जैदे., (३३४१३.५, १७४६१). नवतत्त्व प्रकरण, आ. जयशेखरसरि, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुण्णं पावास; अंति: परंपरासिद्धणंतगुणा, गाथा-३०. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. मेरुतुंगसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: जीव १ अजीव २ पुण्य प्रकृत; अंति: इम अढार भेद हुइ. १०४१६५. समयसार नाटक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३९-२८(१ से २८)=११, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (३३४१४.५, १६४४४-४९). समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३९६ अपूर्ण से ६२० अपूर्ण तक है.) १०४१६६. समयसार नाटक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदे., (३०.५४१५.५, १२४३७-४०). समयसार नाटक पद्यानुवाद के चयनित पद्य, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०४१६७. (+) रामयशोरसायन, संपूर्ण, वि. १९०९, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ६५, प्र.वि. हुंडी:श्रीरामयश., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (३१४१५.५, १९४४६). रामयशोरसायन चौपाई, म. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: श्रीमुनिसुव्रतस्वामी; अंति: केसराज० हर्षे वधामणी, अधिकार-४ ढाल ६२, गाथा-३१९१, ग्रं. ४३७५. १०४१६९ (+) चौवीसजिन वर्णन द्वार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (३२४१४.५, १३४४२). २४ जिन नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण यंत्र, मा.गु., को., आदि: ऋषभ१ अजितर ___ संभव३; अंति: (-), (पू.वि. महावीरजिन-मोक्ष पथ विवक्षा तक है.) १०४१७०. सीमंधरस्वामी विनती, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.५, जैदे., (३२४१४, ११४३०-३५). सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामी सीमंधर विनती; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-७ गाथा १० तक लिखा है.) १०४१७१ (+) चतुर्विंशतिस्थानक सह टीका, संपूर्ण, वि. १८३२, कार्तिक कृष्ण, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. ८२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (३०x१५, ५४४४-५२). चतुर्विंशतिस्थानक, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धं शुद्धं पणमिय; अंति: कुलकोडि हवदि कम्मेण, गाथा-१७४. चतुर्विंशतिस्थानक-टीका, सं., गद्य, आदि: पुनः कथंभूतं प्ररूपण; अंति: कुलानां युतिहूया. १०४१७२ (+) पार्श्वजिनपंचकल्याणक पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२९४१५, १४४३४-३८). पार्श्वजिनपंचकल्याणक पूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८९, आदि: श्रीशंखेश्वर साहिबो; अंति: (-), (पू.वि. केवलज्ञान कल्याणक दीपक पूजा सप्तमी अपूर्ण तक है.) १०४१९३. (+) ६० बोल जीवछाया परिमाण कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (३६४१३.५, ३२४१२). जैनयंत्र संग्रह, मा.गु., को., आदि: जीवा ६४६३७२६१ छाया ६४६३७२; अंति: १००००००००, (वि. अनुक्रम-८९ पर्यन्त ६० बोल में अंकपरिमाण दिया गया है.) १०४१९८. श्रेणिक पुराण, संपूर्ण, वि. १९३५, चैत्र शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ. ११०, ले.स्थल. वडवत, प्रले. रूपराम मिश्र; लिख. श्राव. लाल मेदसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:श्रेण०, श्रे०च०., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१४०५) मंगलं भगवान वीरो, ., (३२.५४१३.५, ९४३८-५२). For Private and Personal Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रेणिक पुराण, मु. विजयकीर्ति भट्टारक, मा.गु., पद्य, वि. १८२७, आदि: श्रीजिनचंदोभावयुत मनवचतन; अंति: विजयकीर्ति०० सोभालही, अधिकार-३२. १०४२०४. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. हुंडी:सूत्रजी., जैदे., (३२.५४१४, ८४४२). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: सम्यग्दर्शनज्ञान; अंति: बहुतत्त्वतः साध्याः, अध्याय-१०, (वि. प्रशस्तिश्लोक-१ देकर समाप्त किया है.) १०४२०६ (+) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-३६ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, ले.स्थल. विकानेर, प्रले. क. रूपचंद (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उत्तराध्येन., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (३०x१२, २१४४१). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: संबुडे त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जंबू प्रतइं कहई छई, प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०४२१२. पार्श्वनाथपुराण भाषा, संपूर्ण, वि. १७९४, फाल्गुन कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ७५, ले.स्थल. सवाइजैपुर, प्रले. पंडित. प्रयागदासजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (३०x१२.५, ११४४३-४६). पार्श्वपुराण, जै.क. भूधरदास, पुहिं., पद्य, वि. १७८९, आदि: मोह महातम दलन दिन तप लछमी; अंति: ग्रंथ समापित कीय, अध्याय-९. १०४२१४. पांडुपुराण पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १८११, वैशाख कृष्ण, १२, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १९५, ले.स्थल. देवपुर, प्रले. मु. दयाराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पांडवपुराण. "देवपुरी कै चैतालय पुन्यार्थ", जैदे., (२९.५४१३, १६४३५). पांडव पुराण-पद्य, बुलाकीदास, हिं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सेवत सत्तसुरराय स्वयं; अंति: बुलाकीदास० भारत चोज, गाथा-६६५५. १०४२१५. षड्दर्शन समुच्चय सह तर्करहस्यदीपिका टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४१+१(१५)=१४२, प्र.वि. हुंडी:षट्दर्श०., जैदे., (३०.५४१४, १३४३९). षड्दर्शन समच्चय, आ. हरिभद्रसरि, सं., पद्य, आदि: सद्दर्शनं जिनं नत्वा वीरं; अंति: पर्यालोच्य सबद्धिभिः, ___ अधिकार-७, श्लोक-८७. षड्दर्शन समुच्चय-तर्करहस्यदीपिका टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, ई. १५वी, आदि: जयति विजितरागः केवला; अंति: च तत्र कुशलमतिभिः. १०४२१६ (+) प्रतिष्ठाकल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५१, वैशाख शुक्ल, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ९७, प्रले. श्राव. हरगोविंद मोती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:प्रतीष्ठा क०. वि. १९२८ मे वेलचंद द्वारा लिखित प्रत की प्रतिलिपि है., संशोधित., जैदे., (३०x१४, १२४२९). जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, सं., प+ग., आदि: विषमैरंगुलैर्हस्तैः कार्य; अंति: समालोकय समालोकय स्वाहा, संपूर्ण. जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: विषम क० एकी गणतीइं; अंति: (-), (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-४० तक लिखा है.) १०४२१७. (+) बारासासूत्र, संपूर्ण, वि. १६६३, माघ शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ६३, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (३१x१४, ९४३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (१)णमो अरिहंताणं० पढम, (२)तेणं कालेणं० समणे; अंति: भज्जो उवदंसेइ त्तिबेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६. १०४२१९ (+) मुक्तावलीकोश, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (३१४१४,१३४५२). विश्वलोचनकोश, मु. श्रीधरसेन, सं., पद्य, आदि: जयति भगवानास्तां धर्मः; अंति: (-), (पू.वि. लकारान्तवर्ग श्लोक-७३ अपूर्ण तक है.) १०४२२१. (+#) पन्नवणासूत्र की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४९-३४(१ से ३४)=१५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:पन्नव०वृ०., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (३१x१२.५, १५४४९) For Private and Personal Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ २६७ प्रज्ञापनासूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पद-१ चारित्रद्वार अपूर्ण से पद-२ सूत्र-२२५ ज्योतिष्क देवद्वार अपूर्ण तक है.) १०४२२२. (+) श्रावकाचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (३१x१३, १५४४२-४६). श्रावकाचार, आ. वसुनंदि सैद्धांतिक, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: सुरवइतिरीडमणिकिरणवार; अंति: थयरियव्वं वियड्ढेहिं, गाथा-५४६, ग्रं. ६५०. १०४२२३ (+) देवद्रव्याधिकारे नाभाकराज कथा, संपूर्ण, वि. १९६०, चैत्र कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित., दे., (३०x१४, १५४४०-४६). नाभाकराज चरित्र, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., पद्य, वि. १४६४, आदि: सौभाग्यारोग्यभाग्योत; अंति: मेरुतुंग०निर्मिताकथा, श्लोक-२९५. १०४२२४. (+) आवश्यकसूत्र-प्रत्याख्यान अध्ययन सह नियुक्ति की शिष्यहिता टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २८, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (३१४१३, १६४७२). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, प्रतिपूर्ण. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की शिष्यहिता टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: माध्यस्थमवाप्तवंतु, (प्रतिपूर्ण, वि. नियुक्ति का प्रतीक पाठ मात्र दिया गया है.) १०४२२५. गोम्मटसारसूत्र सह कर्णाटवृत्ति की जीवतत्त्वप्रदीपिका वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८७६-८७०(१ से १७,१९ से ४७,४९ से ७४,७६,७९ से ८७५)=६, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., पत्रांक खंडित है., जैदे., (२६४११,१४४३१-३६). गोम्मटसार, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठ हैं.) गोम्मटसार-कर्णाटवृत्ति पर आधारित जीवतत्त्वप्रदीपिका वृत्ति, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०४२२६. (+) हरिविक्रम चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प.६,प्र.वि. हंडी:हरिविक्रमचरित्र., संशोधित., जैदे., (२९.५४१४, ७X४१). हरिविक्रम चरित्र, आ. जयतिलकसरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थाय नमस्तस्मै; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-८२ अपूर्ण तक है.) हरिविक्रम चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)हिवें ग्रंथनो कर्ता, (२)पंच प्रमेष्टि रुप तीर्थ; अंति: (-), (प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१७ अपूर्ण तक लिखा है.) १०४२२७. नेमिनिर्वाण महाकाव्य, संपूर्ण, वि. १९४४, पौष कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ३३, प्र.वि. हुंडी:श्रीनेमिनिर्वाणका०., दे., (३०x१३.५, १४४४६). नेमिनिर्वाण महाकाव्य, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, ई. १२वी, आदि: श्रीनाभिसूनोः पदपद्म; अंति: श्चक्रे प्रबंध वाग्भट कवि, सर्ग-१५. १०४२२८. प्रतिष्ठा विधि, संपूर्ण, वि. १९७३, श्रावण शुक्ल, १२, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३९, ले.स्थल. बालापुर (वैराटद, प्र.वि. हुंडी:प्रतिष्ठाविधि०. गौडिपार्श्वप्रसादात्., दे., (३०x१३.५, १८४६३). जिनबिंब प्रवेशस्थापना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रतिष्टानाम देहिनां; अंति: गृहे वेधइष्पते. १०४२२९ (+) सिंदरप्रकर, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. हुंडी:सिंदूरप्रक०., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (३०x१३.५, १०४२९). प्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: (-), द्वार-२२, श्लोक-६८, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-६८ तक लिखा है.) १०४२३० (+) चतुर्विंशतिस्थानक सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४४, प्र.वि. अबरखयुक्त पाठ., त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (३२.५४१४, ३-७४३७-४७). २४ गुण स्थानक, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धं सुद्धं पणमिय; अंति: चउदस कुलकोडि हवदिकम्मे. चतुर्विंशतिस्थानक-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: समस्त भुवन विख्यातं; अंति: संजाता वंशाकुलानि. For Private and Personal Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०४२३१. (#) विजयपताकायंत्र विधि, संपूर्ण, वि. १९१८, श्रावण शुक्ल, ८, बुधवार, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल. केडा, प्रले. हुकमजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे. (३१.५x१४.५, १३-१७X४०-५२). विजययंत्र कल्प, प्रा.,सं., पद्य, आदि: पुव्वं चिय नेरइए; अंति: लिखवा की विधि जाणिजे, श्लोक-२६. १०४२३२. (+) निरयावलीकासूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७, कुल पे ५, प्रले. मु. धीरमाणेक (गुरु उपा. भक्तिलाभ); गुपि. उपा. भक्तिलाभ (गुरु वा. रत्नचंद्र, खरतरगच्छ); वा. रत्नचंद्र (गुरु उपा. जयसागर, खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित. कुल ग्रं. १२००, जैये., (३३X१२.५, १७६२). १. पे. नाम. निरयावलिया, पृ. १अ ७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : निरयाबलियासूत्र कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समएणं अतिः णवमावातो सरिसणामातो, अध्ययन १०. २. पे. नाम. कप्पवडेसिया, पृ. ७आ-८-अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : कप्पवडिंसयासूत्र. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंति: महाविदेहे सिद्धे, अध्ययन-१०. ३. पे. नाम. ततिउवर्गों, पृ. ८अ - १४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : पुप्फीयासूत्र. पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंति: वेइयाई जहासंगणीए, अध्ययन-१०. ४. पे. नाम. चउत्थोवर्गों, पू. १४आ-१५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: पुण्फचूलिया. पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि जति णं भंते समणेणं भगवता अंति: वासे सिज्झहिति, अध्ययन- १०. ५. पे. नाम. वह्लीदसा, पृ. १५-१७अ, संपूर्ण, पे. वि . हुंडी : वीदसासूत्र. वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि जइ णं भंते० पंचमस्स; अति मइरित एक्कारससु वि. अध्ययन- १२. १०४२३३. (+) उपासकदशांग का विवरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्रले. मु. तेजपाल, अन्य. मु. राजपाल; उपा. हमीरसागर; लिख. ग. वासचंद्र (गुरु उपा. चारित्रसार, खरतरगच्छ); गुपि. उपा. चारित्रसार (गुरु उपा. भक्तिलाभ, खरतरगच्छ); उपा. भक्तिभ (गुरु वा. रत्नचंद्र, खरतरगच्छ); वा. रत्नचंद्र (गुरु उपा. जयसागर, खरतरगच्छ); उपा. जयसागर (गुरु आ जिनराजसूरि, खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. हुंडी. उपासकदसावृत्ति, पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैये. (३४४१३, १७४५८-६६). उपासक दशांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभवदेवसूरि, सं., गद्य वि. १११७, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः शेषमंद कृदशांग वदिति, अध्ययन- १० प्र.ले.पु. अतिविस्तृत. " १०४२३४. (+) संदेहदोलावली सह टीका, संपूर्ण, वि. १५४९, चैत्र कृष्ण, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. ७३, प्र. वि. हुंडी : संदेहदो ०टी०., टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (३४X१३.५, १७X५८). संदेहदोलावली प्रकरण, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि पडिबिंबिय पणय जयं; अंतिः जिणवल्लहसूरिसीसेण, ! गाथा - १५०. संदेहदोलावली प्रकरण-बृहद्वृत्ति, ग. प्रबोधचंद्र, सं., गद्य, वि. १३२१, आदि: श्रीवर्द्धमानप्रभु; अंति: (१) निजनाम्नैव सिद्धेरिति भाव, (२) प्रबोधचंद्र० समर्थिता सोमे, ग्रं. ४७५०. १०४२३५ (+४) विधिमार्गप्रपा नाम सुविहितसमाचारी, चाउरंगिज्ज व पूजाविधि, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ६७-१ (४)=६६, कुल पे. ३, प्र. वि. हुंडी : विधि., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (३५X१३, १६४६३). १. पे. नाम. विधिमार्गप्रपा नाम सुविहितसमाचारी सह टीका, पृ. १आ-६७अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. विधिमार्गप्रपा नाम सुविहितसमाचारी, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा. पद्य वि. १९३६३, आदि (१) नमिय महावीरजिणं सम्म, "" (२) सम्मत्तमूलत्तेण; अंतिः सिद्धिपुरीपंधियजणाणं, ग्रं. ३५७४, (पू.बि. गाथा ११ नहीं है.) विधिमार्गप्रपा नाम सुविहितसमाचारी स्वोपज्ञ टीका, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा. गद्य, वि. १३६३, आदि: सम्मत्तमूलत्तेण गिध; अंति: च आसायणाकवा होइ ति. २. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन ३. पू. ६७अ ६७आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. पे. नाम. पूजाविधि, पृ. ६७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ २६९ देवपूजा विधि, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा.,सं., गद्य, वि. १४वी, आदि: संपयं जहा संपदायं सावयाणं; अंति: (-), (पृ.वि. पाठांश-'चंदणेण सधये नंदावत्तंव'अपूर्ण तक है.) १०४२३७. (+) त्रिलोकसार व श्रावक कर्तव्यविचार गाथासंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प.६, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (३२.५४१५, ९४३७). १. पे. नाम, श्रावक कर्तव्यविचार गाथासंग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: गुणवयतवसम पडिमा दाणं जल; अंति: उस्सग्गो जिणवरिंदाणं, गाथा-३. २.पे. नाम. त्रिलोकसार, पृ. १आ-६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: बलगोविंदसिहामणिकिरण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७८ अपूर्ण तक १०४२३८. आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति, भाष्य व मूलनियुक्तिभाष्य की संयुक्त लघुवृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७१+१(१६)=७२, प्र.वि. हुंडी:आवश्यकवृ. पत्रांक-१६ के २ पत्र हैं. पत्र-१६(१) पत्र-१५ का ही अनुसंधान पत्र है, यहाँ श्लोक-७९ अपूर्ण से ९३ अपूर्ण तक ही लिखा है. पत्र-१६(२) पर संपूर्ण पाठ क्रमशः लिखा है., जैदे., (३४४१४, २१४९०). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदि: णमो अरहंताणं० सव्व; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., करेमि भंते सामाइयं सूत्र तक लिखा है.) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: आभिणिबोहियनाणं; अंति: (-), (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१०१८ तक लिखा है.) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य, प्रा., पद्य, आदि: अवरविदेहे गामस्स; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१७४ तक लिखा है.) आवश्यकसूत्र-लघुवृत्ति #, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, वि. १२९६, आदि: (१)देवः श्रीनाभिसूनुर्जनयतु, (२)सांप्रतं तीर्थकन्नम; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., नियुक्तिगाथा-१०१८ तक वृत्ति लिखी है.) १०४२३९ (+) नंदीसूत्र स्थविरावली व आवश्यकनियुक्तिसूत्र, संपूर्ण, वि. १५२५, अविकलसमितिक्षमामृगक्षिव्रतरजनीपति, फाल्गुन कृष्ण, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. ४०, कुल पे. २, ले.स्थल. जौनापुर, उप. उपा. कमलसंयम (गुरु आ. जिनचंद्रसूरि, खरतरगच्छ); गुपि. आ. जिनचंद्रसूरि (गुरु आ. जिनभद्रसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनभद्रसूरि (गुरु आ. जिनराजसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनराजसूरि (खरतरगच्छ); लिख. श्राव. मल्लराज सहणपाल; गुपि. श्राव. सहणपाल; अन्य. श्रावि. पूरादेवी सहणपाल, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी:आवश्यकनियुक्तिसू, आ.नि.सू. प्रत्याख्याननियुक्ति की गाथा-२१ से गाथांक का उल्लेख नहीं है. ज्ञानपंचमीपर्व के उद्यापन प्रसंग पर यह प्रत लिखवायी गयी. श्लोक-८ में निबद्ध प्रतिलेखन पुष्पिका है., प्रायः शुद्ध पाठ., जैदे., (३५४१३.५, १७X७२). १. पे. नाम. थेरावलिया, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी विआणओ; अंति: नाणस्स परूवणा वुच्छं, गाथा-५०. २. पे. नाम, आवश्यकसूत्रनियुक्ति, पृ. १आ-४०अ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: आभिणिबोहियनाणं; अंति: चरणगुणट्ठिओ साहू, गाथा-२५५०, ग्रं. ३१००, (वि. मूलसूत्रवाचन हेतु स्थल संकेत का उल्लेख किया गया है.) १०४२४०. बृहच्छांति सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८९२, आश्विन कृष्ण, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल, रूपनगर, प्रले. राधाकिसन मथेन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (३३.५४१४.५, ३-१२४३६-४४). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति: पूज्यमानो जिनेश्वरः, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५६, आदि: स्ताच्छांतिः शांति; अंति: विहिता बृहत्छांतिः. TOTT - For Private and Personal Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०४२४१. (+#) महानिशीथसूत्र, अपूर्ण, वि. १५७५, कार्तिक शुक्ल, ५, जीर्ण, पृ. ७४-६(२,६२ से ६३,७१ से ७३)=६८, ले.स्थल. पाणीपत, लिख. श्राव. दरवेस सा; अन्य. श्राव. आसा सा; श्राव. साधा सा; श्राव. देवसी सा; श्राव. दशरथ सा; श्राव. पृथ्वीमल्ल सा; श्राव. देईदास सा; दत्त. वा. समयध्वज गणि (गुरु उपा. सागरतिलक, खरतरगच्छ); गुपि. उपा. सागरतिलक (गुरु आ. जिनतिलकसूरि, खरतरगच्छ); राज्ये आ. जिनचंद्रसूरि (गुरु आ. जिनराजसूरि, खरतरगच्छ); गुपि. आ. जिनराजसूरि (गुरु आ. जिनतिलकसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनप्रभसूरि (परंपरा आ. जिनदत्तसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनदत्तसूरि (खरतरगच्छ); राज्यकालरा. सिकंदर सुलतान, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. हुंडी:महानिसीथसूत्र., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (३३४१३, १७४५८). महानिशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: सुयं मे आउसं तेणं०; अंति: महानिसीहमि पाएण, अध्ययन-६ चूलिका २, ग्रं. ४५४४, (पू.वि. अध्ययन-१ उद्देश-१ सूत्रगाथा-१९ अपूर्ण से ६७ अपूर्ण तक व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०४२४२. (+) दशलक्षण जयमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (३२.५४१४, ४४४२-४८). १० लक्षणपूजा विधि, पंडित. भावशर्म, अप., पद्य, आदि: सिरिसय मंगलयरु दह लक्खणधर; अंति: (१)जो भव्व संथु पालेउ फुटु, (२)महातरु देह फलाइसु मिट्टई, (वि. गाथांक क्रमशः नहीं लिखा है.) १० लक्षणपूजा विधि-टबार्थ, पुहि., गद्य, आदि: श्रीउत्तम क्षमाधाय; अंति: भव्य संघनै पालै प्रकट. १०४२४३. (+) पंचवस्तुक, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१-४(१ से ४)=१७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (३३.५४१४, २५४८०). पंचवस्तुक, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सत्तरस सयाणि माणेण, गाथा-१७१४, ग्रं. २०४०, (पू.वि. गाथा-३७४ अपूर्ण से है.) १०४२४४. (+) गुरुगुणषट्त्रिंशत्षट्त्रिंशिका व प्रत्याख्यानादि ४४ आगार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (३२४१४.५, १२४३९-४४). १. पे. नाम. गुरुगुणषट्त्रिंशत्षट्त्रिंशिका, पृ. १अ-९आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (१)अक्खेवणीय१ विक्खेवणीय२, (२)पणव्रत५ समकित५ संजम५ आचार; अंति: (१)विरियायारे कायविरियायारे, (२)चउविनयमां कीधो आतमसंजोग, षट्त्रिंशिका-३६, (वि. ढाल-३६.) २. पे. नाम. प्रत्याख्यानादि ४४ आगार सह व्याख्या, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-हिस्सा प्रत्याख्यानादि ४४ आगार, प्रा.,सं., गद्य, आदि: १अन्नत्थणाभोगेणं २सहसा; अंति: ४४बोहियक्खोभाइ दीहडक्को. आवश्यकसूत्र-प्रत्याख्यानादि ४४ आगार की व्याख्या, सं., गद्य, आदि: अनाभोत्यंतविस्मृतिः; अंति: ०चत्वारिंशत् समर्थिताः. १०४२४५. वसदेवहिंडी खंड-१, संपूर्ण, वि. १५९७, आषाढ़ शुक्ल, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १७९, उप. आ. सौभाग्यनंदिसूरि; प्रले. सुखा (माता जसमाजिनदास); अन्य. जसमाजिनदास; हरचंद (पिता जसमाजिनदास), प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. हंडी:वसुदेवप्रथम. प्रारंभ में कोई अन्य अपूर्ण कृति अपूर्ण लिखी गई है. १९२० में अजीमगंज के ज्ञानभंडार में श्रीमाल साहा मगनी रामजी परिवार की तरफ से ग्रंथ रखने का उल्लेख है., जैदे., (३३.५४१२, १५४६४). वसुदेवहिंडी, ग. संघदासगणि क्षमाश्रमण; ग. धर्मसेन, प्रा., प+ग., आदि: जयइ नवनलिणिकुवलयवियस; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०४२४६. (+) कल्पसूत्र सह कल्पलता टीका व टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८-१(१)=३७, प्र.वि. हुंडी:कल्पलता., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (३१.५४१४.५, १४४४१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (१)नमो अरिहंताणं नमो, (२)तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., १४ स्वप्न वर्णन अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., दशकल्प वर्णन अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ २७१ कल्पसूत्र-टबार्थ *, सं., गद्य, आदि: तस्मिन काले अवसर्पिण्या; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १०४२४७. (+) प्रायश्चित्तैकसाध्योपनिषद, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११०-६(१ से ६)=१०४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (३१.५४१४, ११४५६). प्रायश्चितसाध्योपनिषद्-निगमशास्त्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: ततश्च्युत्वा श्रीमत्याश्च, अध्याय-१३, (पू.वि. अध्याय-३ "धर्मरस लोलोद्धिभार्यः परप्रतिग्रह" पाठांश से है.) १०४२४८. (+) अन्ययोगव्यवच्छेदकद्वात्रिंशिका सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (३१.५४१५, ५४१०). अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: अनंतविज्ञानमतीत; अंतिः कृतसपर्याः कृतधियः, श्लोक-३३. अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका-स्याद्वादमंजरी वृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं., गद्य, श. १२१४, आदि: यस्य ज्ञानमनंतवस्तु; अंति: मल्लषेमसूरि० मंजरी. १०४२४९ (+) पद्मपुराण, संपूर्ण, वि. १७५०, चैत्र शुक्ल, ३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २८८, ले.स्थल. सांगानेर, प्रले. मु. विद्याविनोद (तपागच्छ); लिख. मु. जगत्कीर्ति (सरस्वतीगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पद्मपुराण., पदच्छेद सूचक । लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ७५००, प्र.ले.श्लो. (५१७) यादृशं पत्रयो दृष्टं, जैदे., (३२४१४, ११४४४). रामपुराण, मु. सोमसेन, सं., पद्य, आदि: वंदेहं सुव्रतं देवं; अंति: ये चिरंजी चिरजीवितं, अध्याय-३३अधिकार. १०४२५०. (+) वाग्भटालंकार व रीति-रस संबंधसूचक श्लोक, संपूर्ण, वि. १५५०, माघ कृष्ण, ८, रविवार, मध्यम, पृ. २१, कुल पे. २, ले.स्थल. पतन(पाटण), प्र.वि. हुंडी:वाग्भट०वृ., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (३३४१३.५, १९४६४). १.पे. नाम. वाग्भटालंकार सह अवचूर्णि, पृ. १अ-२१अ, संपूर्ण. वाग्भट्टालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रियं दिशतु वो देवः; अंति: सारस्वतध्यायिनः, परिच्छेद-५. वाग्भटालंकार-टीका, ग. सिंहदेव, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानजिनपति; अंतिः कीदृग विशेषणानि सुगमानि. २. पे. नाम. रीति-रस संबंधसूचक श्लोक, पृ. २१अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: लाटी हास्यरसे प्रयोगनिपुण; अंति: मुहर्मुहुर्भाषणं कुरुते, श्लोक-३. १०४२५१ (+) भैरवपद्मावतीकल्प सह टीका, संपूर्ण, वि. १८२०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, प्रले. मु. नरिंद्रसौभाग्य; पठ. कुसलसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (३१.५४१५, १५४४२). भैरवपद्मावती कल्प, आ. मल्लिषेण, सं., पद्य, आदि: कमठोपसर्गदलनं; अंति: भैरव पद्मावती कल्पे, परिच्छेद-१०, श्लोक-४००. भैरवपद्मावती कल्प-टीका, मु. बंधुषेण, सं., गद्य, आदिः श्रीमत्थारुनिकायामरव; अंति: नामदेव्या मंत्रकल्पः जयतु. १०४२५२. आत्मावलोकन सह छाया व बालावबोध तथा आत्मावलोकन का पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १७७६, माघ शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ७१, कुल पे. २, प्र.वि. कुल ग्रं. २२५०, जैदे., (३१.५४१३.५, ११४४६). १. पे. नाम, आत्मावलोकन सह छाया व बालावबोध, पृ. १आ-६९अ, संपूर्ण. आत्मावलोकन, श्राव. दीपचंद शाह, अ.भा., गद्य, आदि: दप्पणदंसणेण य ससरुवं; अंति: मिस्सधम्म भणइ जिणो, गाथा-१४. आत्मावलोकन-छाया, सं., पद्य, आदि: दर्पण दर्शनेन च; अंति: मिश्रधर्मं भणति जिनो, श्लोक-१४. आत्मावलोकन-वचनिका, पुहि., गद्य, आदि: आरसी के दृष्टांत करी इहां; अंति: तुम्ह कौ निःसंदेह जानहु, (वि. टिप्पण, अर्थ व भावार्थ भी संलग्न है.) २. पे. नाम, आत्मावलोकन का पद्यानुवाद, पृ. ६९आ-७१अ, संपूर्ण. आत्मावलोकन-पद्यानुवाद, पुहि., पद्य, आदि: गुण गुण की सुभाव विभावता; अंति: पद सोहूं कै परचै हूं पार. १०४२५३. (+) प्राकृतलक्षण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्रले. रामनाथ व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (३०x१५, ११४४२-४८). For Private and Personal Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्राकृतलक्षण, क. चंड कवि, सं., गद्य, आदि प्रणम्य शिरसा वीरं अंतिः षभाषाश्च प्रकीर्तिताः, विधान-४, १०४२५४ (#) दशलक्षण धर्मकथानक, संपूर्ण, वि. १९६०, फाल्गुन शुक्ल, १२, रविवार, मध्यम, पृ. २६, प्र. वि. हुंडी : दसल ०., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (३१.५४१६.५, १०४३९-५०). रत्नकरंडक श्रावकाचार-हिस्सा दशलक्षण परिच्छेद की भाषावचनिका, पुहि., प+ग, आदि ॐ कार कूं नमन करि नमो सारद; अंति: सम्यग्दृष्टीकै ० वांछा है.. १०४२५५. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, भक्तामर स्तोत्र व औपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ३, ले. स्थल. लाडणु, प्र. मु. रूपचंद्र ऋषि लिख श्राव देवकरणजी गंगवाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत में "पुस्तक देवकरणजी गंगवाल की बऊने लिखाई" ऐसा उल्लिखित है., दे., ( ३१.५X१६.५, १२X४८-५२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे नाम तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, पृ. १२-६आ, संपूर्ण, वि. १९६०, चैत्र कृष्ण, ५. ,पे.वि. हुंडी सूत्र. वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: (१) मोक्षमार्गस्य नेतारं, (२) सम्यग्दर्शनज्ञान; अंति: (१) बहुतत्त्वतः साध्याः, (२) मुमास्वामिमुनिस्वरं, अध्याय १०, २. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ६आ- ९अ संपूर्ण, वि. १९६० फाल्गुन शुक्ल, १५, बुधवार, पे. वि. हुंडी : भक्ताम०. भक्तामर स्तोत्र-श्लोक ४८, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: तं मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४८. ३. पे नाम औपदेशिक सवैया, पू. ९४ ९आ, संपूर्ण वि. १९६०, फाल्गुन शुक्ल, १५, पे.वि. हुंडी: परमातम. " पुहिं., पद्य, आदि: कोउ शिक्ष कहै श्वामी अशुभ; अंति: तो कठौती मांहि गंगा है, सवैया-३५. १०४२५६. (+) योगसार सह छाया, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र. वि. हुंडी: योगसार, पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. दे., "" (३०.५X१५.५, ६x२६). योगसार, मु. योगींद्रदेव, अप., पद्य, आदि: णिम्मलझाणपरिट्ठया; अंति: जोगिचंद० इक्कमणेण, गाथा- १०७. योगसार- छाया, सं., पद्य, आदि निर्मलध्याने स्थित्व अंतिः कृता दोहाः एकमनसा, श्लोक १०७. " १०४२५७. (+) शत्रुंजय माहात्म्य, अपूर्ण, वि. १७७९, माघ कृष्ण, ३ रविवार, मध्यम, पृ. ३१३-३ (१,१२८,१८९)+१(१३४)=३११, ले. स्थल, पट्टणा, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित कुल ग्रं. १००२५, जैदे. (२८४१४.५, ११-१७३२-३८). "" शत्रुंजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सांभोनिधिं ग्रंथ एषः, सर्ग- १४, (पू. वि. सर्ग-९ श्लोक-५ अपूर्ण, सर्ग-५ श्लोक-५४ अपूर्ण से श्लोक ७६ अपूर्ण व सर्ग-८ श्लोक-२७६ अपूर्ण से श्लोक-३०२ तक नहीं है.) १०४२५९. वाग्भटालंकार सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं, प्र. वि. त्रिपाठ., जैवे. (३४४१६, २-५X१७-३५). वाग्भट्टालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि श्रियं दिशतु वो देवः अंति (-), (पू. वि. चतुर्थ परिच्छेद तक है.) वाग्भटालंकार-टीका, आ. जिनवर्धनसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीमान् श्रीआदिनाथः; अंति: (-). १०४२७३. पर्युषणाचिंतामणी प्रकरण, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १३. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे. (२९.५४१५.५, १०३९). पर्युषणाचिंतामणि प्रकरण, पं. अमृतकुशल, सं., गद्य वि. १८५६, आदि: चिदानंदस्वरूपाय अंति: (-) (पू.वि. द्वादश द्वार अपूर्ण तक है.) १०४२८६. चरचाशतक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९३४, फाल्गुन शुक्ल, ३, रविवार, मध्यम, पृ. ५७, ले. स्थल. दबलाणा, प्र.वि. हुंडी:चरचा. प्रतिलेखन पुष्पिका के अंत में अलोदका जैनमंदिर वाचनार्थं ऐसा लिखा है., दे., (३३X१६, १२X४६). चर्चाशतक, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: जे सर्वग्य अलोक लोक ईक; अंति: नाम है जीवभाव हम सरदहा, दोहा १०४. For Private and Personal Use Only चर्चाशतक- बालावबोध, आव. हरजीमल, पुहि., गद्य, आदि जे कहिये जैवंते, अंति प्रतीत हुई निचे आया. १०४३०१. (+) अध्यात्ममतपरीक्षा, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (३०X१६, ११X३६). Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ अध्यात्ममतपरीक्षा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., पद्य, आदि: पणमिय पासजिणिंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४० तक है.) १०४३२३. (+) श्रीपाल चरित्र की भाषावचनिका, संपूर्ण, वि. १८८९, भाद्रपद शुक्ल, २, मध्यम, पृ. २६, ले.स्थल. बोली, प्रले. श्राव. सोलाल; लिख. श्राव. जादूराम गोलछा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:श्री०., संशोधित., जैदे., (३३४१५.५, १२४४४). श्रीपाल चरित्र-वचनिका, पुहिं., पद्य, आदि: तीर्थंकर चौवीस जिन धरमराज; अंति: श्रीधर्मबीज परमार्थ धाम. १०४३३०. अष्टाह्निका महोत्सव, पूर्ण, वि. १८५६, भाद्रपद कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. १०-१(२)=९, जैदे., (३२४१६, १४४४४-४७). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम नवकारमंत्र ॐकारबिंद; अंति: मंगलीक० सिद्धांत सुणवौ, (पू.वि. बीच का पाठांश नहीं है.) १०४३३१. भद्रबाहुस्वामी चरित्र का पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०, प्र.वि. हुंडी:भद्रबा., जैदे., (३१४१५.५, ११४४२). भद्रबाह चरित्र-पद्यानवाद, श्राव. किसनसिंघ, पुहिं., पद्य, वि. १७८३, आदि: केवलबोध प्रकासरबि उदै होत; अंति: किसनसिंघ० नो सादर को बाप, गाथा-८७५. १०४३३९ (+) पांडव पुराण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४८, प्र.वि. हुंडी:पां०.पु०., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (३३४१५, १०४३४-३८). पांडव पुराण, आ. शुभचंद्र, सं., पद्य, वि. १६०८, आदि: सिद्धं सिद्धार्थसर्वस्वं; अंति: एतत् शास्त्रस्यमेव च, अध्याय-२५, ग्रं. ६०००, (वि. पर्व-२५) १०४३४२. आत्मानुशासन की भाषाटीका, संपूर्ण, वि. १८९७, श्रेष्ठ, पृ. ११५, ले.स्थल. फागी, प्रले. पौवगस व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (३२४१५, १२४३७). आत्मानुशासन-भाषाटीका, पुहि., गद्य, आदि: श्रीजिनशासन गुरु नमौ; अंति: कमल तुल्य भासे है. १०४३४९. (+) पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १९०३, श्रावण शुक्ल, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६, प्रले. घूघरराम पुरोहित; पठ. जै.क. वृंदावनदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पाशावली., संशोधित., दे., (३०x१५, १३४४०-४३). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती कूष्मांडिनी; अंति: सत्योपासक केवली, श्लोक-१८५. १०४३५०. उत्तरपुराण का पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १८८८, वैशाख शुक्ल, २, बुधवार, मध्यम, पृ. ३२३, ले.स्थल. हुलायनगर, प्र.वि. हुंडी:उत्तपू०., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१४१४) नैन ग्रीव भुज नासिका, जैदे., (३१४१४.५, १२४५०-५३). उत्तरपुराण-पद्यानुवाद, पंडित. चंद्रखुस्याल पंडित, पुहि., पद्य, वि. १७९९, आदि: श्रीमत् अजितजिनंद कौ अजित; अंति: सुर्ग मुकति पद दाय. १०४३७७. (#) चर्चाशतक सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १९४६, पौष शुक्ल, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. ६७-१(४६)-६६, प्रले. कृष्णचंद्र ब्राह्मण गुर्जरगोड; पठ. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चर्चा०., कुल ग्रं. २११०, मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (३५४१५, १२४४०). चर्चाशतक, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: जै सर्वज्ञ अलोक लोक; अंति: है जीवभाव हम सरहदा, दोहा-१०४, संपूर्ण. चर्चाशतक-बालावबोध, श्राव. हरजीमल, पुहि., गद्य, आदि: जै कहिये जैवंते; अंति: प्रतीत हुई निश्चै आया, (पूर्ण, प.वि. जंबुद्वीप पूर्व-पश्चिम विस्तार कथन अपूर्ण है.) १०४३७८. (+) सारस्वत व्याकरण की टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६७, प्र.वि. हुंडी:चंद्रकीर्ति०., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (३२.५४१५.५, ९-१८४४६-५२). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: सरस्वती सदाभक्त; अंति: कीर्ति० लिखिताख्यातदीपिका, वृत्ति-३, ग्रं. ७५००. १०४३८३. यशोधर चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४, प्र.वि. हुंडी:यशो., दे., (३१४१५.५, १४४३७). For Private and Personal Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची यशोधर चरित्र-पद्यानुवाद, श्राव. खुस्याल, पुहिं., पद्य, वि. १७८१, आदि: आदिजिनंद नमू सदा त्रिजगत; अंति: खुस्याल० तोता सम नही कोई, संधि-६, गाथा-९००. १०४३८५. (+) आराधना कथाकोश, संपूर्ण, वि. १८०३, वैशाख कृष्ण, ११, शनिवार, मध्यम, पृ. २१४, ले.स्थल. भटगाम, प्रले. मु. भोपतसागर, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कथाकोश., संशोधित. कुल ग्रं. ५१६८, जैदे., (३१.५४१५, १०४३८-४२). __ आराधना कथाकोश, मु. नेमिदत्त ब्रह्म, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्भव्याब्जसद्भा; अंति: शुभदाः श्रीनेमिदत्तेन वै, कथा-११४, श्लोक-५१६८. १०४३९० (+) विपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७८, चैत्र शुक्ल, ६, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४५+१(१८)=४६, ले.स्थल, जैपुरनगर पठ. मु. जालमचंद ऋषि (गुरु मु. रतनचंद ऋषि); गुपि. मु. रतनचंद ऋषि (गुरु मु. लालचंद ऋषि); मु. लालचंद ऋषि; अन्य. आ. पार्श्वचंद्रसूरि; आ. लब्धिचंद्रसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:विपाकसूत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (३०.५४१५, ९x४६-५०). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: विसेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-२०, ग्रं. १२५०, संपूर्ण. विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिणै कालइ तिण समइ चंपाइसइ; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०४३९३. अनंतव्रतोद्यापन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २९, प्र.वि. हुंडी:अनंतउद्या०., दे., (२८.५४१५, १२-१५४३९). अनंतव्रतोद्यापनपूजा विधि, आ. गुणचंद्रसूरि, सं., प+ग., वि. १६३०, आदि: श्रीसर्वज्ञं नमस्कृत्य; अंति: (१)गुण०सप्तत्पूनांक्षतीश्वरः, (२)गुणच० संघस्य मांगल्यकृत्, श्लोक-६२५. १०४३९५. (+) षड्दर्शनसमुच्चय सह टीका, अपूर्ण, वि. १८१०, वैशाख शुक्ल, १, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४५-१(१)=४४, ले.स्थल. वणहटा, प्रले. श्राव. नेतसी (गुरु श्राव. कर्पूरचंद ब्रह्मचारी); गुपि. श्राव. कर्पूरचंद ब्रह्मचारी; मु. महेंद्रकीर्ति (गुरु मु. रत्नकीर्ति, मूलसंघ सरस्वतीगच्छ बलात्कारगण); आ. देवेंद्रकीर्ति (गुरु आ. पद्मनंदि, मूलसंघ सरस्वतीगच्छ बलात्कारगण); मु. जगत्कीर्ति (सरस्वतीगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. १२५२, जैदे., (३१.५४१४.५, १२४४३). षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: पर्यालोच्य सुबुद्धिभिः, अधिकार-७, श्लोक-८७, (पू.वि. श्लोक-२ से है.) षड्दर्शन समुच्चय-टीका, आ. मणिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (१)पर्यंतश्लोकार्थः, (२)द्वापंचाशनुष्टुभाम्. १०४३९८. (+) षडशीति, शतक नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ व ४२ गोचरी दोषादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६३-४(२७ से ३०)=५९, कुल पे. ५, प्र.वि. प्रतिलेखक द्वारा पत्रांक क्रमशः न लिखते हुए -१ से १६+१ से २०+१ से २३ दिया गया है., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (३१४१४.५, ३-४४३६). १. पे. नाम. षडशीति कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १अ-१६अ, संपूर्ण, ले.स्थल. पालीताणा.. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: विआरो लिहिओ देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: श्रीतपागच्छनायकइ. २. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १७अ-३६अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., वि. १९०६, फाल्गुन शुक्ल, १४. शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअजिणं धुवबंधोदय; अंति: देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००, (पू.वि. गाथा-५१ अपूर्ण से ७१ अपूर्ण तक नहीं है.) शतक नव्य कर्मग्रंथ-५-टबार्थ, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणम्य वीरं सद्वारं; अंति: देव० संदर्शयन् शोभते. ३. पे. नाम. ४२ गोचरी दोष सह टबार्थ, पृ. ३६अ-३६आ, संपूर्ण. ४२ गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि: अहाकम्मु १ देसिअ २; अंति: रसहेउ दव्व संजोगा, गाथा-७, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ २७५ ४२ गोचरी दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आधाकर्मीदोष१ आहारसाधुनी; अंति: (-), अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ४. पे. नाम. गोचरी ४२ दोष, पृ. ३६आ, संपूर्ण. मा.., गद्य, आदि: आधाकर्मी दोष१ उद्देसिक; अंति: ४२ दोषानि नामा निसंति, (वि. गोचरी के ४२ दोषों का संक्षिप्त वर्णन भी संलग्न है.) ५. पे. नाम. भाष्यत्रय सह टबार्थ, पृ. ३७अ-६३आ, संपूर्ण. भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., प+ग., वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३, संपूर्ण. भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वंदि नमस्कार करीने वांदवा; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., द्वितीय भाष्य तक लिखा है.) १०४४०५ (+#) आराधना कथाकोश, पूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २४१, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३३४१५, १०४३७). आराधना कथाकोश, मु. नेमिदत्त ब्रह्म, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्भव्याब्जसद्भा; अंति: (-), (पू.वि. प्रशस्ति भाग का अल्पांश भाग नहीं है.) १०४४१२ (+) सारस्वत व्याकरण की दीपिका टीका-वृत्ति ३, संपूर्ण, वि. १८२३, मार्गशीर्ष कृष्ण, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (३२४१५, १६४५४). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदिः (-); अंति: वाच्यमाना बुधैश्चिरम, प्रतिपूर्ण. १०४४१३. पार्श्वनाथ पुराण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:पार्श्व०., दे., (३३४१५, ११४३५). पार्श्वपुराण, जै.क. भूधरदास, पुहिं., पद्य, वि. १७८९, आदि: मोह महातम दलन दिन तप लछमी; अंति: (-), (पू.वि. कवि लघुताई वर्णन गाथा-२९ अपूर्ण तक है.) १०४४१६. (+) नित्यनियम जिनपूजा विधि सह पद्यानुवाद व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९८५, फाल्गुन कृष्ण, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६८, प्रले. रामकल्याण शर्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नित्य.नि.पू., संशोधित., दे., (३३४१४.५, ९४३२-४१). नित्य पूजा पीठिका, सं., प+ग., आदि: ॐ जय जय जय नमोस्तु; अंति: सर्वेषां तु यथास्थितं. नित्य पूजा पीठिका-पद्यानुवाद, मु. विवेकसागर, पुहि., पद्य, आदि: ज्ञानप्रभा से तमको भगाया; अंति: जानूं नहीं शरण राखि भगवान. नित्य पूजा पीठिका-बालावबोध, पुहिं., गद्य, आदि: हे जिनेंद्र भगवान आप; अंति: अपने स्थान को चले जाय. १०४४१७. (+#) सारस्वत व्याकरण सह टीका, अपूर्ण, वि. १७७७, आश्विन शुक्ल, ७, बुधवार, जीर्ण, पृ. ११३-१९(१ से १९)=९४, ले.स्थल. नागपुर, प्रले. श्राव. दयालुदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सारस्वतटिप., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (३३४१४.५, १९४५५-६०). सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: सिद्धिरिति यथा मातरादेः, (पू.वि. टि-लोपसूत्र से है.) सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: (-); अंति: वभूव सुमनोहरम्, वृत्ति-३, ग्रं. ७५००. १०४४३३. (#) दशवैकालिकसूत्र सह टीका, त्रुटक, वि. १६वी, जीर्ण, पृ. ४५-६(१,३,५,७,९,११)=३९, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रांक खंडित हैं., मूल पाठ का अंश खंडित है, अति जीर्ण., जैदे., (३६४१४, १५४७५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-). दशवैकालिकसूत्र-टीका *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०४४३६. श्रीपाल कथा, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १५, प्रले. ग. नयचंद्र गणि (गुरु आ. हेमसमुद्रसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (३५४१४, २३४७५-८०). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाइं झायित; अंति: वाइज्जंता कहा एसा, गाथा-१३३६, ग्रं. १६७५. १०४४३७. पंचदंड कथा-विक्रमचरित्र, संपूर्ण, वि. १५०८, चैत्र कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. २९, ले.स्थल. भटनगर, प्रले. ग. नयचंद्र गणि (गुरु आ. हेमसमुद्रसूरि, तपागच्छ); गुपि. आ. हेमसमुद्रसूरि (परंपरा भट्टा. हेमहससूरि, तपागच्छ); भट्टा. हेमहंससूरि (तपागच्छ); आ. पूर्णचंद्रसूरि (गुरु आ. हेमचंद्रसूरि, नागपुरीय-तपागच्छ); अन्य. आ. रत्नसागरसूरि, प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. लिखावट के आधार पर प्रत १८वी की प्रतीत होती है, संभव है कि संवत् १५०८ में लिखी प्रत की प्रतिलिपि की गई हो., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२४) भग्न पृष्टिं कटी ग्रीवा, जैदे., (३४.५४१३.५, २०-२२४६५-७०). पंचदंड कथा-विक्रमचरित्रे, आ. रामचंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १४९०, आदि: प्रणम्य जगदानंद दायक; अंति: चित्ते चिरं __ नंदतात्, श्लोक-२५५२. १०४४३८. (+) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, संपूर्ण, वि. १५१२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. ५७, ले.स्थल. अर्कपल्ली, प्रले. ग. नयचंद्र गणि (गुरु आ. हेमसमुद्रसूरि, तपागच्छ); गुपि. आ. हेमसमुद्रसूरि (परंपरा भट्टा. हेमहंससूरि, तपागच्छ); आ. हेमहंससूरि (गुरु आ. पूर्णचंद्रसूरि, नागपुरीय-तपागच्छ); आ. पूर्णचंद्रसूरि (गुरु आ. हेमचंद्रसूरि, नागपुरीय-तपागच्छ); आ. रत्नशेखरसूरि (गुरु आ. हेमतिलकसूरि*, बृहद्गच्छ(वडग.-ना.तपा.)); अन्य. आ. रत्नसागरसूरि; राज्यकालरा. कुंभकर्ण नृपति, प्र.ले.प. विस्तृत, प्र.वि. लिखावट के आधार पर प्रत १८वी की प्रतीत होती है, संभव है कि संवत् १५१२ में लिखी प्रत की प्रतिलिपि की गई हो., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (३४.५४१३.५, २०४६५-७०). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र का हिस्सा पर्व-८ नेमिजिन चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो विश्वनाथाय; अंति: विस्मयाय त्रिलोक्यम्, सर्ग-१२, ग्रं. ४७८८. १०४४४१ (#) पाक्षिकसूत्र सह यशोदेवीय टीका, अपूर्ण, वि. १५वी, मध्यम, पृ. १८-५(१,६,८ से ९,१३)=१३, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. ताडपत्र शैली की भाँति पत्र के दोनों ओर हासिया के मध्य में पत्रांक है. सभी पत्र पर एक व एकाधिक अक्षर को अनुक्रम से पढने पर प्रतिलेखन पुष्पिका श्लोक बनता है किन्तु पत्रांकभाग खंडित है तथा कुछ पत्र अनुपलब्ध होने से अनुसंधान नहीं मिल रहा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३४४१३, ३०४७९-८१). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-२ से क्षामणकसूत्र तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) पाक्षिकसूत्र-टीका, आ. यशोदेवसरि, सं., गद्य, वि. ११८०, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. सूत्र-१ की टीका अपूर्ण से क्षामणकसूत्र की टीका अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०४४४४. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र अध्याय-२ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (३१.५४१४, १७४५५). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०४४४५. सप्तव्यसन कथासमुच्चय, संपूर्ण, वि. १८५६, कार्तिक कृष्ण, १४, रविवार, मध्यम, पृ. ५२+१(४५)=५३, ले.स्थल. पीपलदाग्राम, प्रले. मु. माणिकनंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सप्तव्यसन चरित्रं., जैदे., (३१.५४१४, १४४४५). सप्तव्यसन कथासमुच्चय, मु. सोमकीर्ति, सं., पद्य, वि. १५२६, आदि: प्रणम्य श्रीजिनान्; अंति: ग्रंथो भव्यजनार्चितः, सर्ग-७, श्लोक-६७७, ग्रं. २०६७. १०४४४७. (+#) परीक्षामुखसूत्र सह प्रमेयकमलमार्तंड वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३२४१४, २१४६९). परीक्षामखसूत्र, आ. माणिक्यनंदि, सं., गद्य, वि. ५६९, आदि: प्रमाणादर्थसंसिद्धिस्तदा; अंति: (-), (पू.वि. लिंग भेद वर्णन अपूर्ण तक है.) परीक्षामुखसूत्र-प्रमेयकमलमार्तंड वृत्ति, आ. प्रभाचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १०वी-११वी, आदि: सिद्धेर्धाम महारिमोह; अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ २७७ १०४४५० (+) जीवविचार प्रकरण सह वृत्ति, संपूर्ण वि. १९०३ आषाढ़ शुक्ल, १२, बुधवार, मध्यम, पू. १७. प्र. वि. हुंडी : जिवचार... संशोधित. दे. (३२x१४.५, ११४३०) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुय समुद्दाओ, गाथा ५१. जीवविचार प्रकरण-सुबोधिनी टीका, मु. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८५०, आदि (१) ध्यात्वा जैन मह:, (२) अत्र भणामीति क्रिया, अंति: (१) कल्पित इति सूचितम् (२) क्षमाकल्याण० वृत्तिकाम् १०४४५४. (+) द्रव्यसंग्रह सह बालावबोध व ७ स्वर भेद, संपूर्ण, वि. १७५३, श्रावण शुक्ल, २, सोमवार, मध्यम, पृ. ३५, कुल पे. २, ले.स्थल. संग्रामपुर, प्रले. श्राव. धनराज; पठ. आ. नेमिचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १०००, जैदे., (३०.५X१४, १३X३६). १. पे. नाम. द्रव्यसंग्रह सह बालावबोध, पृ. १अ- ३५आ, संपूर्ण. द्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि जीवमजीवं दव्वं जिणवर अंति: मुणिणा भणिज्जं, अधिकार-३ गाथा-५८. द्रव्य संग्रह-बालावबोध, मु. पर्वतधर्मार्थी, पुहिं., गद्य, आदि: जीवद्रव्य अजीवद्रव्य को; अंति: भाव प्रकास्यो छेइ. २. पे. नाम ७ स्वर भेद, पृ. ३५आ, संपूर्ण. सं. गद्य, आदि मेघ गर्जित शब्दः स्वभाव; अंतिः संख शब्दः सुखिर १०४४५५. अनुष्ठान विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, दे., (३०x१४, १४४४२). आगम योगोद्वहन विधि, प्रा., मा.गु. सं., प+ग., आदि: श्रीआवश्यक सुयखंधोद्देशो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, अंग अनुज्ञानंदि विधान तक लिखा है.) १०४४५८, (००) ८ दृष्टि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. ५, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३२x१४, ११x४५). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि शिवसुख कारण उपदेशी अंतिः वाचक जशने वयणे जी, ढाल -८, गाथा- ७६. १०४४६६. (१) देवागम स्तोत्र की वचनिका, संपूर्ण, वि. १८९७, मध्यम, पृ. ६०, ले. स्थल फागी, प्रले. पीवगस व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी देवागम०, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (३२४१५, १३४४२). "" आप्तमीमांसा-वचनिका, पुहिं., पद्य, वि. १८६६, आदि: वृषभ आदि चउवीस जिन० विघन; अंति: चैत्र कृष्ण चौदसि दिवस, परिच्छेद- १०. १०४४०२. पार्श्वनाथ पुराण, अपूर्ण, वि. १८८५, ज्येष्ठ शुक्ल १, बुधवार, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, प्र. वि. पत्रांक नहीं होने से अनुमानित नंबर दिया है. प्र.ले. नो. (१४१५) कटि ग्रीवा अर नैन भुज, जैदे, (३२x१५, ८४३७). श्लो. , " पार्श्वपुराण, जै.क. भूधरदास, पुहिं., पद्य, वि. १७८९, आदि (-); अंति: ग्रंथ समापित कीय, अध्याय-९, (पू.वि. अध्याय-९ गाथा २९ अपूर्ण से है.) १०४५०१. (+) जीवविचार प्रकरणादि संग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७१ १४(१ से ३,१६ से १९,३२ से ३३,५०,५७,५९,६२,७०)=५७, कुल पे ९, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (३१.५x१४, १५-१७४५८). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह बालावबोध, पृ. ४अ - २३आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि (-); अंतिः शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा १६ अपूर्ण से है व बीच का पाठांश नहीं है.) जीवविचार प्रकरण बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति: (-). *, २. पे नाम. नवतत्व प्रकरण सह बालावबोध, पृ. २४अ ४० आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि जीवा१जीवा२ पुण्ण३ पावा४; अति बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा- ५१, (पू.वि. बीच का पाठांश नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बालावबोध*, रा., गद्य, आदि: श्रीजैनशासन के विषै सम्यक; अंति: जायइ ते पनरै भेद कह्या. ३. पे. नाम. दंडक प्रकरण सह बालावबोध, पृ. ४१अ-४९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउ चउवीस जिणे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३० तक है.) दंडक प्रकरण-बालावबोध', मा.गु., गद्य, वि. १५७९, आदि: चौवीसतीर्थंकरांजीने कह्यो; अंति: (-). ४. पे. नाम. प्रथम कर्मग्रंथ सह बालावबोध, पृ.५१अ-५८आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ से ३० तक है व बीच का पाठांश नहीं है.) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५.पे. नाम, २१ स्थान प्रकरण सह टबार्थ, पृ.६०अ-६१अ, संपूर्ण. २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसरि, प्रा., पद्य, आदि: चवणविमाणा १ नयरी; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१० तक लिखा है.) २१ स्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चवनविमाण द्वार१ नगरीद्वार; अंति: (-), अपर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६. पे. नाम. ६२ मार्गणा द्वार, पृ. ६३अ-६४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. आत्मा के च्यारमूल हेतु पाठ से है.) ७. पे. नाम. अल्पबहुत्व प्रकरण, पृ. ६५अ-६७आ, संपूर्ण.. ___ कर्मप्रकृति-बंधनकरण प्रकरण, हिस्सा, आ. शिवशर्मसूरि, प्रा., पद्य, आदि: ठिइ बंधठाणाइ सुहम अपज्जत; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२८ तक लिखा है.) ८. पे. नाम. श्राद्धलघजीतकल्प सह बालावबोध, प. ६८अ-६९आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्राद्धलघुजीतकल्प , आ. तिलकाचार्य, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं नमिउं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ तक है.) श्राद्धलघुजीतकल्प-बालावबोध, पुहिं., गद्य, आदिः श्रीकहिये लक्ष्मी ज्ञान; अंति: (-). ९. पे. नाम. चौद गुणस्थानक की टीका, पृ. ७१अ-७१आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. १४ गुणस्थानकस्वरुप विचार-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३ की टीका अपूर्ण से श्लोक-१० की टीका तक है.) १०४५०२. नेमराजल बारमासो व नवकारमंत्र चोपाई आदिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, कुल पे. ४, जैदे., (३२४१५.५, १४४४७). १. पे. नाम. एकावनसूत्र चोपई, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. एकावनसूत्र चौपाई, म. प्रतीतरुची, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: आदिजिन आदि नम अंते; अंति: हितकर सदा रची चोपई जगनाथ, गाथा-७०. २. पे. नाम. नवकारमहात्म, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. नवकारमंत्र चौपाई, मु. ब्रह्मचंद्र, माग., पद्य, आदि: सरसति माता करू परिणाम पंच; अंति: ब्रह्मचंद्र० जयजयकार, गाथा-३३. ३.पे. नाम. अक्षर ठावनी, पृ. ४आ-६अ, संपूर्ण. संबोधपंचाशिका-पद्यानुवाद, जै.क. द्यानतराय, मा.ग., पद्य, वि. १७५८, आदि: ॐकार मझारि पंच परमपद; अंति: द्यानत० सुध कर लेहु. ४. पे. नाम. राजुलनेम संवाद बारामासी, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सवैया बारेमासा, विनोद, पहिं., पद्य, आदि: विनवे ऊग्रसेन की; अंति: ल विनोद विनोदसें गाए, गाथा-२६. For Private and Personal Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ २७९ १०४५०३. (4) भक्तामर स्तोत्र सह काव्यऋद्धिमंत्रादि पंचांगपद्धति, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ४७-१४(१,३,८,२६,३० से ३९)=३३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. पत्रांक दोनो ओर लिखे हैं. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (३०x१५, " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०- १३X१६-२० ). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. श्लोक-२ से ४७ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) भक्तामर स्तोत्र ऋद्धिमंत्रादि पंचांगपद्धति, संबद्ध, मा.गु., सं., गद्य, आदि (-); अति: (-). १०४५०४. (4) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पू. १६-१० (१ से ७,१३ से १५) =६, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. ,י प्र. वि. हुंडी : प्र० श्लो०. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (३०४१४.५, ११५३६). प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक - ३ अपूर्ण से श्लोक - १४९ तक है.) १०४५०६. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९०३, फाल्गुन शुक्ल, १५, मंगलवार, मध्यम, पृ. २७, ले. स्थल, कोटानगर, प्रले. मु. गोवर्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : नवतत्त्व ० वृ., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (३२x१४.५, ११x२८-३३). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: निगोअस्स अनंतभागो सिद्धगओ, गाथा ४३. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा- टीका, सं., गद्य, आदि जयति श्रीमहावीर: अंतिः शीघ्रं प्राप्नुवंति १०४५१५. (+) पद्मनंदीपंचविंशतिका सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पू. १९६१ (१) १९५. पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, पत्रांक खंडित होने से अनुमानित दिये हैं., जैवे., (३२.५X१५, १२X५० ). पद्मनंदीपंचविंशतिका, मु. पद्मनंदी, प्रा., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक श्लोक-३ से ब्रह्मचर्याष्टक अपूर्ण तक है.) पद्मनंदी पंचविंशतिका टीका, सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-). १०४५१६. (+) पुरुषार्थसिद्ध्युपाय, संपूर्ण वि. १८७८ आश्विन शुक्ल, सोमवार, मध्यम, पू. ११, प्र. वि. हुंडी पुरुषार्थ, पदच्छेद सूचक लकीर-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (३१.५४१४.५, ९x४६). पुरुषार्थसिद्ध्युपाय, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., पद्य, आदि: तज्ज्यति परं ज्योतिः; अति: अमृतचंद० कोश समाप्तमिति, " श्लोक-२३६. १०४५१९. (+) नारचंद्र ज्योतिष, पूर्ण, वि. १९०३, पौष, मध्यम, पृ. १०० - १ ( १ ) = ९९, ले. स्थल. साचोर, प्रले. भट्ट गोपाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी नारचंद्रिका, टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे. (३०.५x१४.५, १०X३५-३८). , ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि सं., पद्य, आदि (-); अति: सर्व्वसाधारणं फल, श्लोक-४११, (पू.वि. श्लोक ६ अपूर्ण से है., वि. बीच-बीच में यंत्र दिये गए हैं.) १०४५२७ (+) २४जिन पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ६७, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (३२x१४-१५.०, १०x४२). २४ जिन पूजा, श्राव. रामचंद्र चौधरी, पुहिं., पद्य, वि. १८५४, आदि: सिद्धि बुद्धि दायक; अंति: कीर्ति जग विस्तरै, पूजा - २४. १०४५२९. (#) आरंभसिद्धि सह टीका, संपूर्ण, वि. १९६५, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, बुधवार, जीर्ण, पृ. १०२, ले. स्थल. बोरसद खेडाजिल्लो, प्रले. श्राव. जगजीवन फुलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी आरंभसिद्धि०, मूल पाठ का अंश खंडित है, वे. (३१.५x१४, १५x५८). आरंभसिद्धि, आ. उदयप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः ॐ नमः सकलारंभसिद्धि; अंति: परीक्षाविमर्शः पंचमः, विमर्श - ५, श्लोक - ४१३, ग्रं. ४६०. 1 सुधीशृंगारवार्तिक, ग. हेमहंस, सं., गद्य वि. १५१४, आदि: श्रीधर्मन्यायसम्यग्; अंति: यतनीयं तत्वज्ञेः, विमर्श-५. १०४५३४ (+) हरिवंशपुराण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. २६४, प्र. वि. हुंडी हरिवंशपुरा०, पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे., (३१x१४, १२x४६-५१). For Private and Personal Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची हरिवंशपुराण, आ. जिनसेनाचार्य, सं., पद्य, श.७०५, आदि: सिद्धं ध्रौव्यव्ययोत्पाद; अंति: स्थेयात् पृथिव्यां चिरम, सर्ग-६६. १०४५३६. (+) त्रिषष्टिशलाकापरुष चरित्र-अष्टमपर्व नेमिजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. १६९४, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ६६+१(१८)-६७, ले.स्थल. कपिस्थलनगर, प्रले. मु. पेमाऋषि (गुरु मु. जोगीदास); गुपि. मु. जोगीदास (गुरु मु. धर्मदास); मु. धर्मदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:काव्य०., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (३२४१३, १८४७२-८१). त्रिषष्टिशलाकापरुष चरित्र का हिस्सा पर्व-८ नेमिजिन चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: ॐनमो विश्वनाथाय; अंति: विस्मयाय त्रिलोक्यम्, सर्ग-१२, ग्रं. ४७८८. १०४५४९. (4) पुण्यास्रव कथाकोश सह भाषाटीका, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३७२-११७(१ से ११४,११६,११९ से १२०)२५५, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (३२४१४, १०४३७). पुण्यास्रव कथाकोश, रामचंद्र मुमुक्ष, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सुकुमाल चरित्र अपूर्ण से श्रीपाल चरित्र अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) पुण्यास्रव कथाकोश-भाषाटीका, क. दौलतराम पंडित, ब्र., प+ग., वि. १७७०, आदि: (-); अंति: (-). १०४५५० (+) पुण्याश्रव, संपूर्ण, वि. १९०५, फाल्गुन कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ११४, प्रले. श्राव. चिमनलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पुण्यासव., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (३१.५४१३.५, ११-१४४४५). पुण्यास्रव कथाकोश, रामचंद्र मुमुक्षु, सं., गद्य, आदि: पुष्पोपजीवितनुजे वरबोधहीन; अंति: मुक्तिलाभ लभंते, अध्याय-६, ग्रं. ४५००. १०४५५३. सिद्धचक्रपूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:सिद्धपू०, देवपू०., दे., (३२४१३.५, ९x४१). देवसिद्ध पूजा, प्रा.,सं., प+ग., आदि: पणविवि पंच परमगुरु गुरु; अंति: (-), (पू.वि. शांतिपाठ अपूर्ण तक है.) १०४५६३. (+) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र सह संक्षेप, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८१, प्र.वि. हुंडी:सूत्र:टीका., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष __ पाठ., जैदे., (३०.५४१३.५, १२४३३-३७). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: (१)मोक्षमार्गस्य नेतारं, (२)सम्यग्दर्शनज्ञान; अंति: बहुतत्त्वतः साध्याः, अध्याय-१०, संपूर्ण. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-संक्षेप, मु. प्रभाचंद्रदेव, सं., पद्य, आदि: विस्तिष्टइष्टदेवतानमस्कार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्याय-१० के संक्षेप "पंचशतपंचविंशति" अपूर्ण तक लिखा है.) १०४५७८. (+) धर्मपरीक्षा का पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १८८२, भाद्रपद कृष्ण, १, मंगलवार, जीर्ण, पृ. ७३, ले.स्थल. सवाइजपुर, प्रले. श्राव. पन्नालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:धर्म., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (९२५) जादृशं पुस्तिके द्रिष्टं, जैदे., (३०.५४१४, १५४४४-४६). धर्मपरीक्षा-पद्यानुवाद, मनोहरदास सोनी खंडेलवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणम् अरहंत देवगुरु; अंति: मनोहर०सकलसंघ मंगलकरण, दोहा-९२४. १०४५७९ मिथ्यात्वखंडन नाटक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३८, प्र.वि. हुंडी:मिथ्या., जैदे., (३१.५४१४, ११४३८). मिथ्यात्वखंडन नाटक, मु. वखतराम, पुहि., पद्य, वि. १८२१, आदि: प्रथम सुमिरि अरिहंत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६५८ अपूर्ण तक लिखा है.) १०४५९१. (+) वर्द्धमान काव्य, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३१-२(१ से २)=२९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (३०x१३, १२-१३४४७-४९). वर्द्धमान काव्य, जै.क. जयमित्र हल्ल, अप., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. संधि-६ अपूर्ण से १८ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०४५९२ (०) निशीथसूत्र, अपूर्ण, वि. १५७३ वैशाख कृष्ण, ७, बुधवार, जीर्ण, पू. ११- १(१ ) = १०, ले. स्थल, हिसारकोट्ट, प्रले. वा. समयध्वज गणि (गुरु उपा. सागरतिलक, खरतरगच्छ); गुपि उपा. सागरतिलक (गुरु आ जिनतिलकसूरि, खरतरगच्छ ); आ. जिनतिलकसूरि (गुरु आ . जिनप्रभसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनप्रभसूरि (परंपरा आ. जिनदत्तसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनदत्तसूरि (खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी : निशीथसूत्र., कुल ग्रं. ८१५, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैये. (३३१३, १७-१९४६०-६३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि (-) अंति: पसिस्सोवभोज्जं च उद्देशक २० . ८१५ (पू.वि. उद्देश १ सूत्र- ४४ अपूर्ण से है., वि. अंत में धर्मतः सकल मंगलावली. मांगलिक श्लोक-१ है . ) " ,י " १०४५९५. (#) रघुवंश महाकाव्य की अर्थलापनिकाटीका, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४० - १ ( १ ) = १३९, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., प्र. वि. हुंडी रघुवंश की टीका, रघु० टीका, मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (३२.५x१३, ११-१५४३९-४७)रघुवंश-अर्थलापनिका वृत्ति, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-१ श्लोक-६ अपूर्ण सर्ग १९ श्लोक-५४ की टीका अपूर्ण तक है.) २८१ १०४५९८. (+) पांडव पुराण, अपूर्ण, वि. १७९०, फाल्गुन शुक्ल, ९, शनिवार, मध्यम, पृ. २६७-५२ (१०३ से १०४,१०६ से १०७,१११ से ११७,११९ से १५९) = २१५, ले. स्थल. अकबराबाद, पठ. मु. ऐंद्रमन (गुरु आ. मुकुंदकीर्ति, माथुरगच्छ-काष्ठासंघ-पोष्करगण); गुपि. आ. मुकुंदकीर्ति (परंपरा आ. रामकीर्तिदेव, माथुरगच्छ काष्ठासंघ- पोष्करगण); आ. रामकीर्तिदेव (परंपरा आ. दयालकीर्तिदेव, माथुरगच्छ-काष्ठासंघ-पोष्करगण); आ. दयालकीर्तिदेव (परंपरा आ. देवेंद्रकीर्ति, माथुरगच्छ काष्ठासंघ- पोष्करगण) आ. देवेंद्रकीर्ति (परंपरा आ. गुणभद्रदेव, माथुरगच्छ काष्ठासंघ- पोष्करगण) आ. गुणभद्रदेव (परंपरा आ. श्रीकारसेन, माथुरगच्छ काष्ठासंघ- पोष्करगण); आ. श्रीकारसेन (परंपरा आ. लोहाचार्य, माथुरगच्छ-काष्ठासंघ-पोष्करगण); आ. लोहाचार्य (माथुरगच्छ- काष्ठासंघ- पोष्करगण), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. हुंडी: पांडवपुराण., संशोधित., जैदे. (३१.५X१३, ११X३४). पांडव पुराण, आ. श्रीभूषणसूरि, सं., पद्य, वि. १६५७, आदि: प्रणम्य श्रीजिनं देवं; अंति: जीयात्पवित्रं सौख्यकारकम्, पर्व-२५, ग्रं. ६०७७, (पू.वि. पर्व -९ श्लोक-२०२ अपूर्ण से २४७ अपूर्ण तक, पर्व- १० श्लोक-१७ अपूर्ण से ६१ अपूर्ण तक व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) १०४५९९ भुवनदीपक सह टीका, संपूर्ण, वि. १८८४ मध्यम, पृ. ३५ प्र. वि. हुंडी: भु०टि. त्रिपाठ, जैदे. (३३४१२.५, ., ९x४०-४५) " भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य वि. १३, आदि सारस्वतं नमस्कृत्य; अतिः श्रीपद्मप्रभुसूरिभिः, श्लोक १६९. भुवनदीपक- टीका, सं., गद्य, आदि सरस्वत्याः संबंधि; अंतिः शीघ्रगो ग्रहः. १०४६०७ प्रश्नव्याकरणसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३८-८(१ से ३५ से ८, ३५) ०३०. पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:प्रश्न०.सू०., जैदे., (२९x१२.५, १३४३५-४०). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध १ अध्ययन १ सूत्र ८ अपूर्ण से श्रुतस्कंध - २ अध्ययन १० अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०४६१६. दशाश्रुतस्कंध की चूर्णि, पूर्ण, वि. १५६५, भाद्रपद शुक्ल, १२, सोमवार, मध्यम, पृ. ५७-१ (१)=५६, प्र.वि. हुंडी:दशानांचूर्णि., प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. कुल ग्रं. २२२५, जैदे., (३३X१२, १३४५१). दशाश्रुतस्कंधसूत्र- चूर्णि#, प्रा. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: दशानां चूर्णी समाप्ता, ग्रं. २२२५, (पू.वि. सूत्र -२ की चूर्णि अपूर्ण से हैं.) For Private and Personal Use Only १०४६१७ (०) उत्तराध्ययनसूत्र, स्थविरावली व आवश्यकसूत्र की निर्युक्ति, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १०२ -१ (९८)=१०१, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( ३१.५X१२, १५-१६x४८-५५). १. पे. नाम. उत्तराध्ययन सूत्र, पृ. १आ-४३आ, संपूर्ण, वि. १५५७, आषाढ़ शुक्ल, ७, गुरुवार, प्रले. पं. समयध्वजमुनि (गुरु उपा. सागरतिलक, खरतरगच्छ); गुपि. उपा. सागरतिलक (परंपरा आ. जिनराजसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनराजसूरि (गुरु आ. जिनतिलकसूरि, खरतरगच्छ ) आ. जिनतिलकसूरि (गुरु आ जिनप्रभसूरि, खरतरगच्छ ) आ. जिनप्रभसूरि ( परंपरा आ. जिनदत्तसूरि, खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. मध्यम, पे. वि. हुंडी : श्रीउत्तराध्येन कुल ग्रं. २१९५ Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૮૨ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (१)संवुडे त्ति बेमि, (२)अहिजेज्झा, अध्ययन-३६. २.पे. नाम, थेरावलि, पृ. ४३आ-४४आ, संपूर्ण. नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी विआणओ; अंति: नाणस्स परूवणं वुच्छं, गाथा-५०. ३. पे. नाम. आवश्यकसूत्र की नियुक्ति, पृ. ४४आ-१०२आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:श्रीआवस्यकसू०. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: आभिणिबोहियनाणं; अंति: (-), (पू.वि. प्रत्याख्यान नियुक्ति अपूर्ण तक है व बीच का पाठांश नहीं है., वि. कायोत्सर्ग आवश्यक अंतर्गत ध्यानशतक दिया गया है.) १०४६२०. रत्नपरीक्षा, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २९-१(१)=२८, प्र.वि. हुंडी:रत्नपरीक्षा., दे., (३३४१३, ८४३७). रत्नपरीक्षा, मु. रत्नसागर, पुहिं., पद्य, आदिः (-); अंति: ग्रंथमत गुर प्रसाद अवदात, तरंग-१५, (पू.वि. तरंग-१ गाथा-८ अपूर्ण से है.) १०४६२१. (+) षड्दर्शन समुच्चय, षड्दर्शन समुच्चय की टीका व सर्वज्ञसिद्धि प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (३३४१२.५, १८४६६-७६). १. पे. नाम. षड्दर्शन समुच्चय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आ. हरिभद्रसरि, सं., पद्य, आदि: सद्दर्शनं जिनं नत्वा वीरं; अंति: पर्यालोच्य सबद्धिभिः, अधिकार-७, श्लोक-८८. २. पे. नाम. षड्दर्शन समुच्चय की लघुवृत्ति, पृ. २अ-१८आ, संपूर्ण. __षड्दर्शन समुच्चय-लघुवृत्ति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., गद्य, वि. १३९२, आदि: सज्ज्ञानदर्पणतले; अंति: समुच्चयसूत्रटीका, ग्रं. १२५२. ३. पे. नाम, सर्वज्ञसिद्धि प्रकरण, पृ. १८आ-२३अ, संपूर्ण. आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीभृद् वीतरागः; अंति: दुखविरहेण गुणानुरागः, श्लोक-६८. १०४६३८. (+) पांडव पुराण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १००, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (३०.५४१२.५, ७४३९). पांडव पराण, आ. शुभचंद्र, सं., पद्य, वि. १६०८, आदि: सिद्धं सिद्धार्थसर्वस्वं; अंति: (-), (प.वि. पर्व-७ श्लोक-३०० तक है.) १०४६३९ (+#) संवादसुंदर, संपूर्ण, वि. १९६६, कार्तिक कृष्ण, ४, सोमवार, जीर्ण, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (३२४१३, १६४६६). ___ संवादसुंदर, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीसोमसुंदरगुरुं प्रणम्य; अंति: भवति मेदरमंडश्रीः. १०४६४०. (+) चाणक्यमंत्रि, संबुद्धमंत्रि कथानक व जंबूस्वामि चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (३०.५४१३,१७४५३). १. पे. नाम. चाणक्यमंत्रि कथानक, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. चाणक्यमंत्रि कथानक-कषायविषये, सं., पद्य, आदि: (१)जीवाः कषायविवशा न विचार, (२)अत्रैव गोल्लविषये ग्राम; अंति: सौधपदवी न दवीयसी स्यात्, श्लोक-१०२. २. पे. नाम. संबुद्धमंत्रि कथानक, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: पुरेत्र पाटलीपुत्रे चंद्र; अंति: स्थाश्च पद संपदः पदि, श्लोक-२६. ३. पे. नाम, जंबूस्वामि चरित्र, पृ. ३आ-१२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जंबूस्वामि चरित्र-भोगत्याग, प्रा., गद्य, आदि: (१)संतेवि कोइ उब्भइ कोवि, (२)कोसो जंबूपभवो य तस्सुप्पत; अंति: (-), (पू.वि. यक्षाराधना प्रसंग अपूर्ण तक है.) १०४६४३. (+#) विद्याविलास चउपई व जंबूस्वामी गीत, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३१.५४१२.५, १५४४६). पर्ण For Private and Personal Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ २८३ १.पे. नाम. विद्याविलास चउपई, पृ. १अ-१२अ, संपूर्ण, वि. १६५८, माघ शुक्ल, ९, ले.स्थल. लाभपुर, प्रले. मु. खिलू ऋषि; राज्यकालरा. कवर, प्र.ले.पु. सामान्य. विद्याविलास रास, उपा. आज्ञासुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५१६, आदि: गोयम गणहर पय नमी; अंतिः प्रभाव मनोरथ फलइ, गाथा-३५०. २. पे. नाम. जंबूस्वामी गीत, पृ. १२आ, संपूर्ण. मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: मगधदेस भंझारि राजगृही; अंति: मोहन० जंबू जणणी इम भणइ, गाथा-१२. १०४६४४. (+) सर्वतीर्थनिर्वाणक्षेत्र पूजन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१-१(१)=४०, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:पंचप० निर्वाण०., संशोधित., दे., (३१.५४१२, ७४३६-४१). सर्वतीर्थनिर्वाणक्षेत्र पूजन, पुहिं.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कोष्टक-प्रथम अष्टप्रकारीपूजा अपूर्ण से कोष्टक-८ की जयमाला गाथा-२३ अपूर्ण तक है.) १०४६४९ (+) चैत्यवंदन कलक सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३४-१(१)=३३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:चै०वं०वृ०., पदच्छेद सूचक लकीरे-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (३०x११.५, १५-१६x६६-७५). चैत्यवंदन कलक, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ से गाथा-१२ तक चैत्यवंदन कुलक-टीका, आ. जिनकुशलसूरि, सं., गद्य, वि. १३८६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ की वृत्ति अपूर्ण से गाथा-१२ की वृत्ति उत्सुत्रप्ररूपण विषये जमाली द्रष्टांत अपूर्ण तक है., वि. प्रसंगोपात कथा-दृष्टांत दिया गया १०४६५०. (#) पिंडनियुक्ति सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १२७-९८(१ से ९८)=२९, प्रले. मेघ जानी; उप. आ. लक्ष्मीसागरसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ६०००, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३०x१२, १७X४२-६४). पिंडनियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: विसोहिजुत्तस्स, गाथा-६७१, (पू.वि. गाथा-४६२ अपूर्ण से है.) पिंडनियुक्ति-वृत्ति, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: (-); अंति: धर्मः शरणमुत्तमः, ग्रं. ७०००. १०४६५१ (+) २४ जिन चरित्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३६-३(१ से ३)=३३, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., बीच-बीच के कुछ पत्र भी नहीं है किन्तु पत्रक्रम न होने व अपूर्णता के कारण बीच के घटते पत्र का उल्लेख नहीं किया गया है., प्र.वि. हुंडी:महावीर चरित्र. पत्रांक का उल्लेख नहीं है तथा श्लोकानुक्रम क्रमशः नहीं है. २४ जिनों का क्रम व पाठानुसंधान के आधार पर क्रमबद्ध किया गया है. उपलब्ध पत्रों को गिनकर कुल पत्र दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (३१४१२, १३४४४). २४ जिन चरित्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अजितजिन चरित्र श्लोक-१८ अपूर्ण से महावीरजिन चरित्र श्लोक-२२४ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०४६५२. (4) पंचाशक प्रकरण सह शिष्यहिता वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:प्रथमपंचाशकवृत्ति., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३१४११.५, १८-२०४६२-७३). पंचाशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण वद्धमाणं सावग; अंति: (-), (पू.वि. चैत्यवंदन विधि अपूर्ण तक है.) पंचाशक प्रकरण-शिष्यहिता वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२४, आदि: सदृष्टीनां समस्तार्थ; अंति: (-). १०४६५३. (+) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह वंदारु वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:वंदारुवृत्ति., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (३०x१२, १५४५६). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.म.प.मान्य, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहं० सव्वसाहण; अंति: (-), (पू.वि. वंदित्तुसूत्र की गाथा-४३ अपूर्ण तक हैं.) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वंदारू टीका, आ. देवेंद्रसरि, सं., गद्य, आदि: वंदारुवृंदारुकवृंदवंद्यं; अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०४६५८. ओघनिज्झुत्ती, अपूर्ण, वि. १५०८, भाद्रपद कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ५२-३३(१ से ३३)=१९, ले.स्थल. वीलानगर, जैदे., (३०.५४११, १५४६५-७२). ओघनिर्यक्ति, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: अहिएहिं संगहिआ, गाथा-११६६, (पू.वि. गाथा-५६ अपूर्ण से है.) १०४६६०. कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५६, भाद्रपद कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ७३, प्र.वि. कुल ग्रं. ४४, जैदे., (३२४१६.५, ७४३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: भज्जो उवदंसेइ त्तिबेमि, व्याख्यान-९. ग्रं. १२१६, संपूर्ण. कल्पसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: तेही कालो चौथो आरो ते समे; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पार्श्वजिन चरित्र तक लिखा है.) १०४६६२. श्रेणिक चरित्र, पूर्ण, वि. १८९२, कार्तिक शुक्ल, १४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ९९-१(५८)+१(६१)=९९, प्र.वि. हुंडी:श्रे०.च०. प्रतिलेखन पु. के अंत में 'सो पुसतग सिधसेण मून्यकी भेट की सेसिबाढ की पंचमिती चत वुदि ३ संवत् १९१०' ऐसा लिखा है., जैदे., (३२.५४१६.५, १३४३८). श्रेणिक पुराण, मु. विजयकीर्ति भट्टारक, मा.गु., पद्य, वि. १८२७, आदि: श्रीजिनचंदोभावयुत मनवचतन; अंति: विजयकीर्ति०० सोभालही, अधिकार-३२, संपूर्ण. १०४६६३. (+) सिद्धांतसार का पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७७, प्र.वि. हुंडी:सिद्धां०., संशोधित., जैदे., (३२४१६.५, १४४४५). सिद्धांतसार-भाषा पद्यानुवाद, श्राव. नथमल विलाला, पुहि., पद्य, वि. १८२४, आदि: सर्वदर्शी सर्वज्ञ महंत; अंति: नथमल समापत कीनौं सार, अध्याय-१६, गाथा-७४००, ग्रं. ७४००. १०४६६८ (+#) रामपुराण, संपूर्ण, वि. १८५७, कार्तिक शुक्ल, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १९४, प्रले. श्राव. सेवाराम; अन्य. श्राव. गिरिदास; श्राव. साहिबराम; गुपि. म. रिखवदास (परंपरा मु. दयाचंद); मु. दयाचंद (परंपरा मु. सुखेंद्रकीर्ति); मु. सुखेंद्रकीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं. ७०००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३१.५४१५, १५४३८-४१). रामपुराण, मु. सोमसेन, सं., पद्य, आदि: वंदेहं सुव्रतं देवं; अंति: भूद्विदूषां शिरोमणिः, अधिकार-३३. १०४६७५. (#) पद्मपुराण की भाषावचनिका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४६-४५(१ से ४५)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (३३.५४१५.५,१३४४९-५३). पद्मपुराण-भाषावचनिका, क. दौलतराम पंडित, पुहि., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रीकंठ को वानरद्वीप प्रदान प्रसंग से द्वीपवर्णन प्रसंग अपूर्ण तक है.) १०४६८१ (+) पुरुषार्थसिद्ध्युपाय का पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १८९९, श्रेष्ठ, पृ. ९१, प्र.वि. हुंडी:पुरुषार्थ०., संशोधित., जैदे., (३१.५४१५.५, १४४४०-४३). पुरुषार्थसिद्ध्युपाय-अन्वय-पद्यानुवाद, पंडित. टोडरमल ; क. दौलतराम कासलीवाल, हिं., पद्य, वि. १८२७, आदि: परम पुरुष निज अर्थको साधि; अंति: (१)रतिससिर सुदि दोयज रजनीस, (२)कूचका वाजत है दिन रैण. १०४७०२ (+) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९८२, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, १४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४०, प्रले. कृष्णचंद्र ब्राह्मण गुर्जरगोड; लिख. पंडित. वरदीलाल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सून्टी., संशोधित., दे., (३३.५४१३.५, १०४३६-४३). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: त्रैकाल्यं द्रव्य; अंति: बहुतत्त्वतः साध्याः, अध्याय-१०. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-बालावबोध, पुहि., गद्य, आदि: त्रै काल्पकहतां तीन काल; अंति: (१)साध्या कहतां सालेणं, (२)अर दशमां सूत्रमै मोक्ष. १०४७१५. व्रतकथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३१, माघ कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १००, कुल पे. २२, ले.स्थल. चंपावती, प्रले. श्राव. बखतावरलाल; लिख. श्राव. पनालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:व्रतकथा०., दे., (३१x१३.५, ९x४३-४७). For Private and Personal Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १.पे. नाम, जेठजिनव्रत कथा, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण. जेठजिनंदव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहि., पद्य, वि. १७८२, आदि: आदिनाथ वंदूं जिनराय कर्म; अंति: खुसाल० भलो कहा कहुवनवाय, गाथा-८५. २. पे. नाम. सप्तपरमस्थानव्रत कथा, पृ. ६अ-११अ, संपूर्ण. __ सप्तपदम स्थानव्रत कथा, मु. खुस्याल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर प्रणमुं सुधभाय; अंति: सदा विनती कहै खुस्याल, गाथा-९६. ३. पे. नाम. मुकुटसप्तमीव्रत कथा, पृ. ११अ-१३आ, संपूर्ण. मुकुटसप्तमीव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, वि. १७८३, आदि: श्रीअरिहंत नमो चितलाय; अंति: पूरन भई बुधवार पहचानि, गाथा-५२. ४. पे. नाम. अक्षयनिधिव्रत कथा, पृ. १३आ-१८आ, संपूर्ण. अक्षयनिधिव्रत कथानक-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजीनकों परिणाम करि; अंति: खुस्याल भाषा करिधो कहै, गाथा-९१. ५. पे. नाम, षोडषव्रत कथा, पृ. १८आ-२२आ, संपूर्ण. षोडशकारणव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: तीर्थंकरके चरण जुग वंदु; अंति: खुस्याल०करता लछि पावै घणी, गाथा-६९. ६. पे. नाम, मेघमालाव्रत कथा, पृ. २२आ-२५आ, संपूर्ण. मेघमालाव्रतोपाख्यान-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत तणै जुग पाय; अंति: खुस्याल इह भाषा पूरनठानि, गाथा-५९. ७. पे. नाम, चंदनषष्टिव्रत कथा, पृ. २५आ-२९आ, संपूर्ण. चंदनषष्ठिव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहि., पद्य, आदि: जिनपद वंदू दुति ससि जेम; अंति: खुस्याल० वीतराग गुण गाईये, गाथा-७७. ८. पे. नाम. लब्धिविधानव्रत कथा, पृ. २९आ-३२अ, संपूर्ण. लब्धिविधानोपाख्यान-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: त्रिभुवन पूजित पाद जुग; अंति: महागुण समरु सुख दायके, गाथा-५१. ९. पे. नाम, जिनपूजापुरंदरव्रत कथा, पृ. ३२अ-३५आ, संपूर्ण. पुरंदरव्रतविधान कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: किरति के पति सिव सुखधारसो; अंति: खुस्याल० विसारो नाहि सदा, गाथा-६३. १०. पे. नाम. दसलक्षणव्रत कथा, पृ. ३५आ-३९अ, संपूर्ण. दशलाक्षणिक कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहि., पद्य, आदि: श्रीजिन आनंदरूप तास भारती; अंति: खुस्याल० भाषा सुखमै लयो, गाथा-५८. ११. पे. नाम. पुष्पांजलिव्रत कथा, पृ. ३९अ-४३आ, संपूर्ण. पुष्पांजलिव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहि., पद्य, आदि: चरणकमल जिनके नमू; अंति: खुस्याल० स्थानक जायकै, गाथा-९७. १२. पे. नाम. आकाशपंचमीव्रत कथा, पृ. ४३आ-४७आ, संपूर्ण. आकाशपंचमीव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, वि. १७८५, आदि: नाभिराय कौ नंदवर यशस्वती; अंति: खुस्याल० कथा सुखाकर होय, गाथा-७४. १३. पे. नाम, मुक्तावलीव्रत कथा, पृ. ४७आ-५२अ, संपूर्ण. मुक्तावलीविधान कथानक-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत तणौ जुगपाद; अंति: इह बुध्यसलप सीधारि, गाथा-९०. १४. पे. नाम. निदूखसप्तमीव्रत कथा, पृ. ५२अ-५४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची निर्दखसप्तमीव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: चरणजिनेश्वके नमू रहत कलंक; अंति: भाषा कहीय खुस्याल विचारि, गाथा-४२. १५. पे. नाम. सुगंध दशमीव्रत कथा, पृ. ५४आ-६२अ, संपूर्ण. सुगंधदशमीव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: पंच परम गुरु वंदन करूं ता; अंति: सुखित खुस्याल अपार, गाथा-१४३. १६. पे. नाम, पल्यविधान कथानक, पृ. ६२अ-७६आ, संपूर्ण. पल्यविधानव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. धनराज, पुहि., पद्य, वि. १७८४, आदि: प्रथम नमो गणपति नमो सरसति; अंति: विविध जन एम कहै धनराज, गाथा-२६१. १७. पे. नाम. श्रावणद्वादशी व्रतकथा, पृ. ७६आ-७९अ, संपूर्ण. श्रवणद्वादशीमहाव्रत कथा-पद्यानुवाद, म.खस्याल, पुहि., पद्य, आदि: पद अरहंत तणे नम विद्या; अंतिः तिन अनुसार खुस्याल सुजाणि, गाथा-४२. १८. पे. नाम. रतनत्रय कथा, पृ.७९अ-८५आ, संपूर्ण. रत्नत्रयविधान कथानक-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: चरण जिनेसुर के नमुं; अंति: की कथा भाषा करी विचार, गाथा-१०९. १९. पे. नाम. अनंतचतुर्दशीव्रतकथा, पृ. ८५आ-८९आ, संपूर्ण. अनंतव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: परमात्म परमेष्ट वरता हीन; अंति: खुस्याल भाष मानजू, गाथा-५१. २०. पे. नाम. तपलक्षणव्रत कथा, पृ. ८९आ-९२अ, संपूर्ण. तपलक्षणव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहि., पद्य, आदि: सुख अनंत जुत को नमू; अंति: अधिकी को महिमा कहूं, गाथा-३७. २१. पे. नाम. मेरुपंक्तितप कथा, पृ. ९२अ-९४आ, संपूर्ण. मेरुपंक्त्युपाख्यान-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: धीर वीर गंभीर जिनंद सनमति; अंति: भाषा कहत खुस्याल विचारि, गाथा-४३. २२. पे. नाम. विमानपंक्तितप कथा, पृ. ९४आ-१००अ, संपूर्ण. विमानपंक्त्युपाख्यान कथा-पद्यानुवाद, म. खस्याल, पहि., पद्य, आदि: श्रीजिनवरको करि परिणामतप; अंति: भाषा कही खुस्याल विचारि, गाथा-९७. १०४७२६. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हंडी:नवतत्त्व बालाबोध., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२९.५४१२.५, १७-२०४४८-५२). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३७ तक है.) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बालावबोध, मु. देवचंद, मा.गु., गद्य, वि. १७६६, आदि: (१)ज्ञानं पंचविधं, (२)जीव ___ अजीव पुन्य पाप आश्रव; अंति: (-). १०४७४३. (+) चंद चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२०, प्र.वि. हुंडी:चंद्रचरित्र., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (३३४१६.५, १०४३५-३८). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधव तीम; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., उल्लास-४ ढाल-६ गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है.) १०४७४४. चोवीसजिन पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:चौई०पूजा., जैदे., (३२४१६, १३४४३-४७). पंचकल्याणक पूजा-२४ जिन, जै.क. वृंदावन धर्मचंद अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८७५, आदि: बंदौ पांचो परमगुरु; अंति: (-), (पू.वि. वासुदेव पूजा अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ २८७ १०४७४५ (+) श्रेणिक पुराण, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रावण कृष्ण, ४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६१, प्र.वि. हुंडी:श्रेणिक., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (८९६) यादृशं पुस्तकं दृष्टवा, (१०९७) जलं रक्षं थलं रक्षं, जैदे., (३३४१६, १५४५२-५४). श्रेणिक पुराण, मु. विजयकीर्ति भट्टारक, मा.गु., पद्य, वि. १८२७, आदि: श्रीजिनचंदोभावयुत मनवचतन; अंति: विजयकीर्ति०० सोभालही, अधिकार-३२, प्र.ले.प. अतिविस्तृत. १०४७७४. (+) बृहत् गरावली, संपूर्ण, वि. १९५६, आषाढ़ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. २०, प्रले. जोसी वज्ररंगलाल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:बृह०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (३६४१६, १३४५४). बृहत् गरावली, श्राव. सरूपचंद, पुहि.,सं., प+ग., वि. १९१०, आदि: सारासार विचार करि तजि; अंति: एवं सर्व अर्थ पूजाष्टक. १०४७८८. रत्नकरंडकश्रावकाचार सह भाषावचनिका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४०७, प्र.वि. हंडी:रत्न० श्रा०., दे., (३३.५४१८.५, १३४४१). रत्नकरंडकश्रावकाचार, आ. समंतभद्र, सं., पद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: दृष्टिलक्ष्मीः, परिच्छेद-७, श्लोक-१५०. रत्नकरंडकश्रावकाचार-भाषावचनिका, पुहि., प+ग., वि. १९२८, आदि: (१)इहां इस ग्रंथ की आदि, (२)श्रीवर्द्धमानतीर्थंक; अंति: आत्मा स्वरूपकुंउजल करो. १०४७९२. चोवीसव्रतकथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८८, कुल पे. २३, प्र.वि. हुंडी:व्र. अंत में कृतियों की अनुक्रमणीका दि गइ है., कुल ग्रं. २८४१, जैदे., (३२.५४१७, १२४३८). १. पे. नाम, आदितव्रत कथा, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण. __मु. खुस्याल, मा.गु., पद्य, वि. १७८२, आदि: ऋषभजिनादिक वंदूसार प्रणमू; अंति: खुस्याल० वरण कीयो सुखकार, गाथा-१३०. २. पे. नाम. सप्तपदम स्थानव्रत कथा, पृ. ७अ-११अ, संपूर्ण. मु. खुस्याल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर प्रणमुं सुधभाय; अंति: सदा विनती कहै खुस्याल, गाथा-९४. ३. पे. नाम. मुकटसप्तमी कथा, पृ. ११अ-१३अ, संपूर्ण. मुकुटसप्तमीव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहि., पद्य, वि. १७८३, आदि: श्रीअरिहंत नमो चितलाय; अंति: पूरन भई बुधवार पहचानि, गाथा-५१. ४.पे. नाम. अक्षयनिधितप कथा, पृ. १३अ-१७अ, संपूर्ण. अक्षयनिधिव्रत कथानक-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहि., पद्य, आदि: श्रीजिनकू परणाम कीरे; अंति: खुस्याल भाषा करिधो कहै, गाथा-९२. ५. पे. नाम. षोडशकारणव्रत कथा, पृ. १७अ-२०आ, संपूर्ण. षोडशकारणव्रत कथा-पद्यानुवाद, म. खस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: तीर्थंकरके चरण जुग वंदो; अंति: खुस्याल लछि पावै घणी, गाथा-६९. ६. पे. नाम. मेघमालाव्रत कथा, पृ. २०आ-२३अ, संपूर्ण. मेघमालाव्रतोपाख्यान-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत तणै जुग पाय; अंति: खुस्याल इह भाषा पूरनठानि, गाथा-६०. ७. पे. नाम, चंदनषष्टिव्रत कथा, पृ. २३अ-२७अ, संपूर्ण. चंदनषष्ठिव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: जिनपद वंदू दुति ससि जेम; अंति: खुस्याल० वीतराग गुण गाईये, गाथा-७९. ८. पे. नाम. लब्धिविधानव्रत कथा, पृ. २७अ-२९आ, संपूर्ण. लब्धिविधानोपाख्यान-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: त्रिभूवन पूजत पाद पग जाके; अंति: महागुण समरु सुख दायके, गाथा-५२. ९. पे. नाम. जिनपूजापुरंदरव्रत कथा, पृ. २९आ-३२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पुरंदरव्रतविधान कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: कीरती के पति सिव सुख; अंति: खुस्याल० विसरो नाही कदा, गाथा-८३. १०. पे. नाम. दसलक्षणव्रत कथा, पृ. ३२आ-३६अ, संपूर्ण. दशलाक्षणिक कथा-पद्यानुवाद, म.खस्याल, पुहि., पद्य, आदि: श्रीजिन आनंदरूप तास भारती; अंति: खुस्याल० भाषा सुखमै लयो, गाथा-६०. ११. पे. नाम. पुहूपांजलिव्रत कथा, पृ. ३६अ-४०आ, संपूर्ण. पुष्पांजलिव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहि., पद्य, आदि: चरणजिनेसुर के नमौ; अंति: खुस्याल० स्थानक जायकै, गाथा-९९. १२. पे. नाम. आकाशपंचमीव्रत कथा, पृ. ४०आ-४४अ, संपूर्ण. आकाशपंचमीव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहि., पद्य, वि. १७८५, आदि: नाभिराय कौ नंदवर यशस्वती; अंति: खुस्याल० कथा सुखाकर होय, गाथा-७४. १३. पे. नाम. मुक्तावलीव्रत कथा, पृ. ४४अ-४८अ, संपूर्ण. मुक्तावलीविधान कथानक-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत तणौ जुगपाद; अंति: इह बुध्यसलप सीधारि, गाथा-८७. १४. पे. नाम, नंदूसप्तमी कथा, पृ. ४८अ-५०अ, संपूर्ण. निर्दुखसप्तमीव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहि., पद्य, आदि: चर्न जिनेसुर के नमू रहित; अंति: भाषा कहीय खुस्याल विचारि, गाथा-४३. १५. पे. नाम. सुगंध दशमी व्रत कथा, पृ. ५०अ-५६आ, संपूर्ण. सुगंधदशमीव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: पंच परम गुरु वंदन करूं ता; अंति: सुखित खुस्याल अपार, गाथा-४४. १६. पे. नाम. श्रावणद्वादशी व्रतकथा, पृ. ५६आ-५८आ, संपूर्ण. श्रवणद्वादशीमहाव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: पद अरिहंत तणे नमुं विद्या; अंति: अनुसारि खुस्याल सूजानि, गाथा-५८. १७. पे. नाम. रतनत्रयव्रत कथा, पृ. ५८आ-६३आ, संपूर्ण. रत्नत्रयविधान कथानक-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: चरण जिनेसुर के नमुं; अंति: की कथा भाषा करी विचार, गाथा-१०६. १८. पे. नाम. अनंतचतुष्टदसमी व्रतकथा, पृ. ६३आ-६७अ, संपूर्ण. __ अनंतव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: परमात्म परमेष्टवर ताहि; अंति: खुस्याल भाष मानजू, गाथा-५०. १९. पे. नाम. तपलक्षणव्रत कथा, पृ. ६७अ-६९अ, संपूर्ण. तपलक्षणव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: सुख अनंत जुत कौ नमो; अंति: खुस्या०अधीकी को सोभा कहूं, गाथा-३७. २०. पे. नाम. मेरुपंक्तितप कथा, पृ. ६९अ-७१अ, संपूर्ण. मेरुपंक्त्युपाख्यान-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहि., पद्य, आदि: धीरवीर गंभीर जिनंद सनमति; अंति: कहै खुस्याल विचारि, गाथा-४३. २१. पे. नाम. विमानपंक्तितप कथा, पृ. ७१अ-७५आ, संपूर्ण. विमानपंक्त्युपाख्यान कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिनवरको करि प्रणाम तव; अंति: भाषा कही खुस्याल विचारि, गाथा-९४. २२. पे. नाम. पल्यविधान कथा, पृ. ७५आ-८६अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनराज चरण उर ल्याइ; अंति: भवि जीव लहै भवपारजू, गाथा-२१९, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत. For Private and Personal Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३. पे नाम चतुर्विंशतिजिनव्रत कथा, पृ. ८६-८७अ संपूर्ण गाथा-४२. मा.गु., पद्य, आदि: जेठ जिनवर आदि व्रतसप्तम; अंति: मधिसोहि गहऐपणा टोप मनमोहि १०४७९३. पंचमेरुसंबंधी जिनालयपूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, भाद्रपद शुक्ल, १५, सोमवार, मध्यम, पृ. २०, ले. स्थल. इंदौर, प्रले. दुरगाप्रसाद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: पं०पू., जैये. (३१.५१७.५, १९४४२-४६) पंचमेरुसंबंधी जिनालयपूजा, मा.गु., सं., प+ग, आदि: पांचौमेर महान कनकके तिनपै; अंति: सकल श्रीजिनभवना नमः. १०४७९६. (+) भक्तामर चरित्र, संपूर्ण, वि. १९१५, भाद्रपद शुक्ल, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १३७, ले. स्थल साचोर, प्रले. लक्ष्मीलाल (पिता रामगोपाल); अन्य. रामगोपाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : भक्ता० टी., संशोधित., प्र.ले. श्लो. (१०७०) यादृसी पुस्तकं दृष्ट्वा, (१४१७) लिखी प्रोत गोपालनै, (१४१८) खड़ वेग अखड़ कूवरी, दे., (३४४१७, १३x४५-५०). भक्तामर स्तोत्र-टीका व कथा का पद्यानुवाद, श्राव. विनोदीलाल, पुहिं., पद्य, वि. १७४८, आदि: प्रथम पढि अरिहंत के गुण; अंति: विनोदीलाल० नित्य कराय, कथा-३८. १०४८०० शांतिनाथ पुराण भाषा, संपूर्ण वि. १९६४, चैत्र कृष्ण, १४, मंगलवार, मध्यम, पू. २२८ + २ (११६ से ११७) = २३०, प्र. वि. हुंडी : सां०पु०.०, दे. (३३१७.५ ११५५३). शांतिनाथ पुराण, आ. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., पद्य, आदि: नमो शांति जगशांतिकृत; अंति: सदा नाक मोक्षकौ पंथ, अधिकार- १५. १०४८०२. प्रश्नोत्तर आवकाचार संपूर्ण वि. १८८२ माघ कृष्ण, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १०३ ले स्थल, गलता, लिब. श्राव. संपतराम कुशलचंद अग्रवाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी. प्र० श्राव., प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (३२.५x१७, १३४४०-४२). २८९ श्रावकाचार प्रश्नोत्तर, श्राव. बुलाकीदास, पुहि., पद्य, आदि सिद्धं संपूर्ण भव्या अंति जगत मे भव्यन की आधार, अधिकार २४ गाथा-२२५९. १०४८०७, (१) योगरत्नाकर, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२२, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे., (२८.५x१६, १२४३५-४३). योगरत्नाकर, वा. नयनशेखर, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि सरसति सुखदायक सदा, अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अधिकार-८ मेदवार चिकित्सा अपूर्ण तक लिखा है.) १०४८०८. उदयविलास व बीजक, अपूर्ण, वि. १९८१ श्रावण शुक्ल, ५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पू. ४४, कुल पे. २, ले.स्थल. सायलपुरपत्तन, प्रले. मु. सुंदरविजय, पठ. मु. कनकविजय (गुरु मु. सुंदरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: उदेवि श्रीपार्श्वजिन प्रसादेन., प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा (१४२८) पुस्तक प्यारि प्रेमकी, दे., (२९x१५.५. १५X३७-५१). १. पे. नाम. उदयविलास, पृ. १अ - ४४अ, संपूर्ण. आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य वि. १६८०, आदि प्रथम प्रणमि अरिहंत सिद्ध: अंतिः उदेसूरि० ग्रंथ सुविसेस, प्रकाश-१२, गाथा- १५७२ (वि. प्रारंभ में इस कृति का अकडम् चक्र दिया है.) For Private and Personal Use Only २. पे नाम. उदयविलास का बीजक, पृ. ४४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. उदयविलास -बीजक, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि द्वारविचार ग्रंथ तिथि नाम, अंति (-), (पू.वि. प्रकाश ११ की अनुक्रमणिका अपूर्ण तक है.) १०४८१०. श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १९३६, चैत्र कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १०३, प्र. वि. हुंडी श्री० च०. दे. (३३४१८, १३४३६). श्रीपाल चरित्र, जै. क. परिमल्ल रामदास, पुहि, पद्य, आदि प्रथमहि लीजे ॐ कार जो भव, अति जै जै श्रीजिनवर की सरन. १०४८१३. पद्मपुराण का पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. १८८२, कार्तिक कृष्ण, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २४६-४५ (१४५ से १८९) २०१ प्र.वि. हुंडी: पदमपू., जैदे., (३२.५X१७, १३x४२). Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रामपुराण-पद्यानुवाद, श्राव. खुशालचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १७८३, आदि: पंचकल्याण नाईक श्रीमुनि; अंति: प्रांत सुपूरण ठानि, संधि-३३, गाथा-६६१०, (पू.वि. संधि-२० गाथा-३९७० अपूर्ण से संधि-२६ गाथा-५२१३ अपूर्ण तक नहीं है.) १०४८१६. (+) वर्तमान चौबीसजिन पंचकल्याणक पूजा, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४७, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. हुंडी:वर्त०.पाठ., संशोधित., दे., (३५४१७, १२४४२-५०). पंचकल्याणक पूजा-२४ जिन, जै.क. वृंदावन धर्मचंद अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८७५, आदि: बंदौ पांचो परमगुरु; अंति: (-), (पृ.वि. "कविनाम ग्रामादि र.प्रशस्ति अपूर्ण तक हैं.) १०४८१९. हनुमान चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३६, प्र.वि. हुंडी:ह०.च०., जैदे., (३३४१७, १२४४२). हनुमान चरित्र, म. ब्रह्मराय, पुहि., पद्य, वि. १६१६, आदि: स्वामी सव्रतनाथ जिनंद; अंति: नमौं सीस जोरे कर दोई, गाथा-८५४. १०४८२०. चतुर्विंशतितीर्थंकर पूजा, अपूर्ण, वि. १८८७, आश्विन शुक्ल, २, शनिवार, मध्यम, पृ. ४३-३६(१ से ३६)=७, प्र.वि. हुंडी:चो०पू०., जैदे., (३३.५४१६.५, १५४४५). २४ जिन पूजा, श्राव. रामचंद्र चौधरी, पुहिं., पद्य, वि. १८५४, आदि: (-); अंति: सकनांहि कीर्ति जग विस्तर, पूजा-२४, (पू.वि. नमिनाथ पूजा अपूर्ण से है.) १०४८२१. व्रतकथाकोश संग्रह, अपूर्ण, वि. १९११, आश्विन शुक्ल, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ६८-४४(१ से ४४)=२४, कुल पे. ७, ले.स्थल. सवाईमाधोपूर, लिख. श्राव. मांगीलाल कासलीवाल; सम. मु. सिद्धसेन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:व्रतकथाको०., दे., (३३४१७, १५४३९). १. पे. नाम. पल्यविधानव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. ४५अ-५३अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. __पल्यविधानव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. धनराज, पुहिं., पद्य, वि. १७८४, आदि: (-); अंति: विविध जन एम कहै धनराज, गाथा-२६१, (पू.वि. गाथा-३३ से है.) २. पे. नाम. श्रवणद्वादशीव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. ५३अ-५४आ, संपूर्ण. श्रवणद्वादशीमहाव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहि., पद्य, आदि: पद अरहंत तणे नमुं विद्या; अंति: तिन अनुसार खुस्याल सुजाणि, गाथा-४२. ३. पे. नाम, रत्नत्रयव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. ५४आ-५८आ, संपूर्ण. रत्नत्रयविधान कथानक-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: चरण जिनेश्वर के नमू; अंति: की कथा भाषा करी विचार, गाथा-१०९. ४. पे. नाम, अनंतचतुर्दशीव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. ५८आ-६१आ, संपूर्ण. अनंतव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: परमातम परमेष्टिवर ताहि; अंति: खुस्याल भाष मानजू, गाथा-५१. ५. पे. नाम. तपलक्षणव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. ६१आ-६२आ, संपूर्ण. तपलक्षणव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: सुख अनंत जुत को नमू; अंति: अधिकी को महिमा कहूं, गाथा-३७. ६.पे. नाम, मेरुपंक्तितप कथा का पद्यानुवाद, पृ. ६२आ-६४अ, संपूर्ण. मेरुपंक्त्युपाख्यान-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहि., पद्य, आदि: धीर वीर गंभीर जिनंद सनमति; अंति: भाषा कहत खुस्याल विचारि, गाथा-४४. ७. पे. नाम. विमानपंक्तितप कथा का पद्यानुवाद, पृ. ६४आ-६८अ, संपूर्ण. विमानपंक्त्युपाख्यान कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहि., पद्य, आदि: श्रीजिनवर कू करि परिणाम; अंति: भाषा कही खुस्याल विचारि, गाथा-९४. १०४८२३. पार्श्वनाथ पुराण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७५-५६(१ से ५१,५३ से ५७)=१९, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:पार्श्व०., जैदे., (३१४१६, १३-१४४३१-३७). For Private and Personal Use Only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org २९१ पार्श्वपुराण, जै.क. भूधरदास, पुहिं., पद्य, वि. १७८९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अधिकार-८ गाथा-२ अपूर्ण से २० अपूर्ण तक व गाथा-१०६ से अधिकार - ९ गाथा- ३३० अपूर्ण तक है.) १०४८३९. (+#) सूत्रकृतांगसूत्र सह बृहद्वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पत्र अस्त-व्यस्त होने से अनुमानित पत्रांक दिये गए है., पंचपाठ-संशोधित टीकादि का अंश नष्ट है, जैवे. (२९.५४१२, २१-२५४६३-७२). , " सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि बुज्झिज्ज तिउद्वेज्ज; अंति: (-). , सूत्रकृतांगसूत्र- बृहद्वृत्ति, आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य वि. १०वी, आदि संहितादिक्रमेण; अति: (-). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०४८४१. (#) जिनशतक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ९, प्र. वि. हुंडी : जिनशतकावचूरि., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (३१.५x१२, १७६२). जिनशतक, मु. जंबू कवि, सं., पद्य, वि. १००१-१०२५, आदि: श्रीमद्भिः स्वैर्महो; अंति: वागसौ द्राग्विधेयात्, परिच्छेद ४, श्लोक १००. जिनशतक- अवचूरि, सं. गद्य, आदि एष सूर्यो भुवनं विश, अंतिः अक्षेमं भवते न प्राप्नोति, परिच्छेद ४. १०४८४४. चेतन चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १६. पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. प्र. वि. हुंडी. चेतनच०, जैदे., (३३४११.५, , ९५३९). चेतन वृतांत, आव, भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य वि. १७३६, आदि जिनचरन प्रनाम करि भाव; अंति: (-), " (पू.वि. गाथा - २९५ अपूर्ण तक है.) १०४८४०. भक्तामर स्तोत्र की कथा, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, प्रले. पं. धर्मनंदि गणि पठ. ग. सिंहविमल (गुरु ग. शिवविमल गणि); गुपि. ग. शिवविमल गणि; गुभा. ग. कर्ण गणि; पं. धनविमल गणि; ग. विनयभाव गणि (गुरु आ. आणंदविमलसूरि) गुपि आ. आनंदविमलसूरि, प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे. (३०x११.५, १७५८-६२). " भक्तामर स्तोत्र बालावबोध+कथा, मु. आगममाणिक्य, मा.गु., गद्य, आदि (१) श्रीमद्जिनहंसगुरु, (२) ऊजेणीनगरीहं , י राजा भोज; अंति: स्तवन०विषइ आदर सदैव करिवु, कथा - २७, (वि. मूल का संक्षिप्त पाठ दिया है.) १०४८४८. (+) भक्तामर स्तोत्र सह गुणाकरीय टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६-२(१, ३) १४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैदे. (३०.५x११.५, १५४५८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-२ तक व श्लोक ५ से श्लोक-२७ तक है.) भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. १०४८४९. (+) आवश्यकसूत्रनिर्युक्तिभाष्य की अवचूर्णि अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-प्रायः शुद्ध पाठ., जैदे., (३०X११, १६X५७-६३). आवश्यकसूत्र-निर्मुक्ति के भाष्य की अवचूर्णि #. सं., गद्य, आदि (१) इह हि० आवश्यकनिर्युक्ति, (२) यथा गणधरैः सूत्रे आवश्यक अति: (-) (पू.वि. प्रत्याख्याननियुक्तिगाथा- १६०० व भाष्यगाथा २४८ अपूर्ण तक की अवचूरि है.. वि. निर्युक्ति व भाष्य की प्रतिकगाथा मिलती है.) १०४८५० (+) प्रत्याख्यान भाष्य की अवचूर्णि संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित, जैदे., (२९.५x११, २४-२६४८०-८४). प्रत्याख्यान भाष्य-अवचूर्णि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: इह हि पूर्वाचार्यैर्महा अति: धानफलमाह पच्च० सुगमा. १०४८५२. (+) कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १५९६, श्रावण कृष्ण, १२. गुरुवार, मध्यम, पृ. ३६-७(१ से ५,१२,२२) =२९, ले. स्थल स्तंभनतीर्थ, प्र. वि. हुंडी छुटीकथापत्र, पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैये. (३१x१०.५, १९४६८-७२). कथा संग्रह, सं., प्रा., पच आदि (-); अति बुद्ध्या स्वस्थानमावयों (वि. विविध विषयों पर कथाएँ.) " 1 . १०४८५३. (+) ओघनिर्युक्ति सह टीका, संपूर्ण वि. १६वी, मध्यम, पृ. १४०, प्र. वि. संशोधित कुल ग्रं. ८३८५, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (३३X१०, १४X६८). For Private and Personal Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ओघनियुक्ति, आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि नमो अरहंताणं० हवइ अति: गुणवन्नेहिं सम्मत्ता, गाथा- ११६४. ओघनिर्मुक्ति टीका #, आ. द्रोणाचार्य, सं., गद्य, वि. १२वी आदि अर्हद्भ्यस्त्रिभुवनराज, अंति: बडिकासंहननो सिध्यतीति प्र. ६८२५. १०४८५६. व्रतकथाकोश संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०५, कुल पे. २२, प्र. बि. हुंडी : वृ० को ०., जैवे. (३१४१०.५, ११४३४). १. पे. नाम. जेठजिनंदव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. जेठजिनंदव्रत कथा पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, वि. १७८२, आदि आदिनाथ बंद जिनराय कर्म; अंतिः हित है भलो कहा कहूं वनवाय, गाथा-८५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. ७ परमस्थानव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. ६अ -११आ, संपूर्ण. सप्तमपरमस्थानविधान कथानक - पद्यानुवाद, मु. खुस्वाल, पुहिं, पद्य, आदि: श्रीजिनवर प्रणम् सुधभाव अतिः सदा विनती करै खुस्वाल, गाथा- ९४. ३. पे. नाम. मुकुटसप्तमीव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. १९आ- १४आ, संपूर्ण. मुकुटसप्तमीव्रत कथा पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, वि. १७८३, आदि: श्रीअरहंत नमूं चितलाय सरद अंति पूरन भइ बुद्धवार पहचानि, गाथा - ५२. ४. पे. नाम. अक्षयनिधिव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. १४- २०अ, संपूर्ण. अक्षयनिधिव्रत कथानक पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुडिं, पद्य, आदि श्रीजिनकूं परणाम करि; अति करिधो कहै, गाथा - ९२. ५. पे. नाम षोडशकारणव्रत कथा का पद्यानुवाद. पू. २०अ २४अ, संपूर्ण, षोडशकारणव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: तीर्थंकरके चरण जुग वंदो, अंति लछि पावै घणी, गाथा- ६९. ६. पे. नाम. मेघमालाव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. २४अ - २७अ, संपूर्ण. • खुस्याल भाषा 'खुस्याल० करता मेघमालाव्रतोपाख्यान-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीअरहंत तणै जग पाव वंदौ; अंति: खुस्याल इह भाषा पूरनठानि गाथा ५९. ७. पे. नाम. चंदनषष्ठिव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. २७ - ३१आ, संपूर्ण. चंदनषष्ठिव्रत कथा पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुर्हि, पद्य, आदि जिनपद बंदौ दुति ससि जे अति खुस्याल० वीतराग गुण गाये, गाथा-७७. ८. पे. नाम लब्धिविधानव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. ३१आ-३४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only लब्धिविधानोपाख्यान-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: त्रिभवन पूजित पादयुग जाके; अंति: सुखदायके, गाथा - ५१. • महागुण समरु ९. पे नाम. जिनपूजापुरंदरव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. ३४-३८, संपूर्ण पुरंदरव्रतविधान कथा पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्म, आदि कीरती के पति सिव सुख:- अति: नाहि सदा, गाथा- ६३. १०. पे नाम, दशलक्षणव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. ३८अ ४२अ, संपूर्ण, दशलाक्षणिक कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुडिं, पद्य, आदि: श्रीजिन आनंदरूप तास भारती; अंति खुस्वाल० भाषा सुखमै लयो, गाथा- ५८. ११. पे नाम. पुष्पांजलिव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. ४२अ ४७आ, संपूर्ण पुष्पांजलिव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि चरणकमल जिनके नमू तृभवन; अंति: लहे मुक्ति स्थानक जाय कै, गाथा- ९८. १२. पे नाम, आकाशपंचमीव्रत कथा का पद्यानुवाद, पू. ४७१-५१अ संपूर्ण खस्याल० विसारो Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ २९३ आकाशपंचमीव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहि., पद्य, वि. १७८५, आदि: नाभिराय कौ नंदवर यशस्वती; __ अंति: पूरन भइ कथा सुखाकर होय, गाथा-७४. १३. पे. नाम, मुक्तावलीव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. ५१अ-५६अ, संपूर्ण. मुक्तावलीविधान कथानक-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहि., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत तणौ जुगपाद; अंति: इह बुध्यसलप सीधारि, गाथा-९०. १४. पे. नाम, निर्दूषसप्तमीव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. ५६अ-५८आ, संपूर्ण. निर्दखसप्तमीव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहि., पद्य, आदि: चरण जिनेसुर के नमू रहत; अंति: भाषा कहीय खुस्याल विचारि, गाथा-४२. १५. पे. नाम. सुगंधदशमीव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. ५८आ-६६आ, संपूर्ण. सुगंधदशमीव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: पंच परम गुरु वंदन करूं ता; अंति: सुखित खुस्याल अपार, गाथा-१४२. १६. पे. नाम. पल्यविधानव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. ६६आ-८१अ, संपूर्ण. पल्यविधानव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. धनराज, पुहिं., पद्य, वि. १७८४, आदि: प्रथम नमो गणपति नमो सरसति; अंति: विविध जन एम कहै धनराज, गाथा-२६१. १७. पे. नाम, श्रवणद्वादशीमहाव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. ८१अ-८३अ, संपूर्ण. श्रवणद्वादशीमहाव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: पद अरिहंत तणे नमुं विद्या; अंति: अनुसारि खुस्याल सूजानि, गाथा-४२. १८. पे. नाम. रतनत्रयव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. ८३अ-८९आ, संपूर्ण. रत्नत्रयविधान कथानक-पद्यानुवाद, म. खस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: चरण जिनेश्वर के नम; अंति: की कथा भाषा करी विचार, गाथा-१०६. १९. पे. नाम. अनंतचतुर्दशीव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. ८९आ-९४अ, संपूर्ण. ___अनंतव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: परमातम परमेष्टिवर ताहि; अंति: खुस्याल भाष मानजू, गाथा-५१. २०. पे. नाम, तपलक्षणव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. ९४अ-९६अ, संपूर्ण. तपलक्षणव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहि., पद्य, आदि: सुख अनंत जुत को नमू; अंति: अधिकी को महिमा कहूं, गाथा-३७. २१. पे. नाम. मेरुपंक्त्युपाख्यान का पद्यानुवाद, पृ. ९६अ-९८आ, संपूर्ण. मेरुपंक्त्युपाख्यान-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: धीर वीर गंभीर जिनंद सनमति; अंति: कहै खुस्याल विचारि, गाथा-४३. २२. पे. नाम. विमानपंक्त्युपाख्यान कथा का पद्यानुवाद, पृ. ९८आ-१०४आ, संपूर्ण. विमानपंक्त्युपाख्यान कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहि., पद्य, आदि: श्रीजिनवर कू करि परिणाम; अंति: भाषा कही खुस्याल विचारि, गाथा-९२. १०४८५९ (+) सदृष्टि तरंगिणी की भाषाटीका, संपूर्ण, वि. १९३१, भाद्रपद कृष्ण, १३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ३२२+३(१३९,१५९,२४१)=३२५, ले.स्थल. सिवाड, प्रले. मीठालाल जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सुदृ०.त०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (१९.५४१९.५, १५४४८-५०). सदृष्टि तरंगिणी-अर्थ, जै.क. टेकचंद, पुहि., गद्य, वि. १८३८, आदि: मनमांहि भक्ति अनाय नमि हो; अंति: अर्ध निशि पूरण कीन, अध्याय-४२. १०४८६१. त्रैलोकसार का पद्यानुवाद त्रिलोकदर्पण कथा, संपूर्ण, वि. १८६३, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४८, प्रले. श्राव. ग्यानचंद पंडित, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:त्रिलोकदरपण. आदिदेव के मंदिरजी लिख्या., कुल ग्रं. ४४५५, जैदे., (३८.५४१८, १९४६६). For Private and Personal Use Only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २९४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची त्रिलोकसार-पद्यानुवाद, आव, खडगसेन, पुहिं, पद्य, आदिः ॐ नमः सिद्ध नमौ जिनराइ अति रचना रची भविलेहु चितधारि १०४८७० (+) मिध्यात्वखंडन, संपूर्ण वि. १९५५ श्रावण शुक्ल, १, मंगलवार, श्रेष्ठ, पु. १४, ले. स्थल, लक्ष्मणगढ़, प्रले. मोतीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी : मिथ्यात्व ०., संशोधित., दे., (३५X२१, १६x४१). मिथ्यात्वखंडन विवरण, पुहिं., गद्य, आदि: सो हे भव्यजनुं तुम सुनुं; अंति: गुरुधर्म का श्रद्धा न करि १०४८७१. (+) पद्मपुराण की भाषावचनिका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३५, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र. वि. हुंडी : पद्मपुराण ०, पद्मपु०भा०व०., संशोधित., दे., (३९२०, १६x४७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्मपुराण भाषावचनिका, क. दौलतराम पंडित, पुहिं गद्य, आदि: (१) चिदानंद चैतन्य को गुण, (२) सिद्धं कहिए कृत्यकृत्य है; अति: (-), (पूर्ण. पू. वि. प्रशस्तिगाथा-८ अपूर्ण तक है.) १०४८७२. (+) श्रावकाचार प्रश्नोत्तर, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४. पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. प्र. वि. हुंडी श्रा० प्र०., संशोधित. दे., (३४.५x२०, १४X४८). श्रावकाचार प्रश्नोत्तर, श्राव. बुलाकीदास, पुहिं., पद्य, आदि: सेवत जिह सुरराय वृषनायक; अंति: (-), (पू. वि. अध्याय-२ गाथा २१ अपूर्ण तक है.) " १०४८७८. धर्मपरीक्षा की भाषावचनिका, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १६३, प्र. वि. हुंडी धर्मपरी, दे. (३२.५१९, ११३०-३५ ). धर्मपरीक्षा-पद्यानुवाद, आव. पन्नालाल चौधरी पंडित, पुहिं., पद्य, आदि अंतिः विरचि जो कारक दुलीचंदजी. १०४८७९. चतुर्विंशतिजिन पूजा, संपूर्ण, वि. १९३७, भाद्रपद शुक्ल, ९, सोमवार, मध्यम, पृ. ४७, ले. स्थल. टोंक, प्रले. चत्रदास; लिख. श्राव. गौरीलाल वलासपुरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : चौ० पू०., दे., (३२.५X१९, १३४५२). पंचकल्याणक पूजा- २४ जिन, जै.क. वृंदावन धर्मचंद अग्रवाल, पुहिं. पद्य वि. १८७५, आदि: बंदी पांचो परमगुरुः अति भयो सकल जिय आनंदकंद, पूजा-२४. १०४८८२. (+) आत्मानुशासन की भाषावचनिका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३९, ले. स्थल. धर्मपुर, प्रले. लक्ष्मण; लिख. श्राव. धर्ममूर्ति कोठारी; श्राव. दुलीचंद कोठारी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी आ० सा०, संशोधित, जैवे (२८x२०, १४४३२). आत्मानुशासन भाषावचनिका, पंडित, टोडरमल पुहिं, गद्य, आदि श्रीजिनशासन गुरु नमी अंति: सकल जगत कमलतुल्य भासै है. 3 " וי १०४८८३. आदिपुराण की भाषावचनिका, संपूर्ण, वि. १९२२ श्रावण कृष्ण १४ शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५८२, ले. स्थल, लोचनपुर, प्र. वि. हुंडी आ०. पु०, आदि०. दे. (३८x१८, १३x४६). महापुराण - हिस्सा आदिपुराण की भाषावचनिका, क. दौलतराम कासलीवाल, पुहि., गद्य, आदि प्रणमि सकल सिद्धानिकौ; अंति: कूं सांति के अर्थ होहु. १०४८८७ (+) समोसरणपूजाविधि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९३२, फाल्गुन शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ६३-१५ (१५ से २९)=४८, ले. स्थल. ईसरदा प्रले. पंडित रामकरण जोशी लिख कवरीलाल फतेलाल सोनी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : समो०. विस०, संशोधित. दे. (३४.५४१८, १२४३९). समवसरणपूजाविधि चौपाई, क. लालजी, पुहिं पद्य वि. १८३४ आदि पहिलै तौ पंचपरमेष्टि को; अति: अष्टमी ! शुक्रवार प्रमान (पू.वि. इंद्रविभूति वर्णन अपूर्ण से पंचकवन अस्थि जिनपूजा वर्णन अपूर्ण तक नहीं है.) १०४८९७ आदिपुराण की भाषावचनिका, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. हुंडी : आदिपुरा०.. " जैवे. (३६१७, १३४४८). " महापुराण- भाषाटीका, पुहिं, गद्य, आदि: प्रणमि सकल सिद्धानिकी अति (-). (पू.वि. गाथा १७ तक है.) १०४९०१ (+) लघूपसर्ग सह दीपिकाटीका, संपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. हुंडी : उपसर्गादिपि., पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ- त्रिपाठ संशोधित, जैदे. (३३.५४१६, १३१७-४१). " उपसर्गगण, सं., पद्य, आदि: प्रपरापसमन्ववनिर्दुरभिः; अंति: स्थानादिकर्मण्यपि, श्लोक-२१. उपसर्गगण- दीपिका टीका, सं., गद्य, आदि प्र इत्युपसर्ग: पंचदश; अति आविर प्राकट्वे आविः करोति. For Private and Personal Use Only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०४९०९ (+) हरिवंशपुराण की भाषावचनिका, संपूर्ण, वि. १९४१, भाद्रपद शुक्ल, १५, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४०३, ले.स्थल. डडाउग्राम, प्रले. गौरीशंकर ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:हरि०भा०., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१४३३) ज्ञान विज्ञान दानेन, दे., (३४४१७.५, १३४३०-४८). हरिवंशपुराण-भाषावचनिका, क. दौलतराम पंडित, पुहि., गद्य, वि. १८२९, आदि: प्रथमही जैन सासन कहिये; अंति: सहस गुणीस प्रमाण. १०४९११ (+) पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १९५६, ज्येष्ठ शुक्ल, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. ९, प्रले. श्राव. लच्छाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:के०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (३३४१८,११-१४४२७-३५). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवति; अंति: धर्म कि पालो थास्यै, (वि. अंत में पाशाकेवली का अंक क्रम लिखा है.) १०४९१२. (+) त्रैलाक्य जिन पूजन विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प. ३६५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हंडी:तिलोक०वि., तीनलोक., संशोधित., जैदे., (३४४१८, १५४४६-४९). त्रैलाक्य जिन पूजन विधि, पुहिं., प+ग., आदि: लोकाकास प्रदेशमै भवन तीन; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम प्रशस्ति भाग नहीं है.) १०४९१३. प्रद्युम्न चरित्र सह भाषावचनिका, संपूर्ण, वि. १९४०, श्रेष्ठ, पृ. २०९, प्रले. श्राव. लछमीचंद (पिता श्राव. लालजी); गुपि. श्राव. लालजी (पिता श्राव. लखाराम); श्राव. लखाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:प्रद्यु०च०.,प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, दे., (३२.५४१७.५, १६x४८-५२). प्रद्युम्न चरित्र, मु. सोमकीर्ति, सं., पद्य, वि. १५३१, आदि: श्रीमंतं सन्मतिं; अंति: श्रीसर्वज्ञ प्रसादतः, सर्ग-१६, ग्रं. ४८५०. प्रद्युम्न चरित्र-भाषावचनिका, श्राव. ज्वालानाथ खंडेलवाल पंडित; श्राव. वखतावरसिंह पंडित, पुहिं., गद्य, वि. १९१६, आदि: प्रथम श्रीसन्मति जो; अंति: प्रथ्वी पर जयवंत प्रवर्ती. १०४९१८. चोवीसजिन पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५०-२४(१ से २४)=२६, प्र.वि. हुंडी:चौ०पू., दे., (३२.५४१६.५, १४४४३). पंचकल्याणक पूजा-२४ जिन, जै.क. वृंदावन धर्मचंद अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८७५, आदि: (-); अंति: भयो सकल जिय आनंदकंद, पूजा-२४, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वासुपूज्यजिन पूजा गाथा-६ अपूर्ण से है.) १०४९१९. हरिवंशपुराण भाषावचनिका, संपूर्ण, वि. १९३९, आश्विन कृष्ण, ३०, गुरुवार, मध्यम, पृ. १८४, ले.स्थल. वसंतपुर, प्रले. श्राव. मन्नालाल हलवाइ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:हरिवंश., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१४१५) कटि ग्रीवा अर नैंन भुज, (१४२९) जैसी पुस्तक देखीये, दे., (३४.५४१७.५, १५४३९). हरिवंशपुराण-भाषा, श्राव. खुशालचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७८०, आदि: महावीर वंदौ जिनदेव; अंति: भव्यानां सुखशर्मदा. १०४९२० निर्भय निरंजन श्रावकाचार, अपूर्ण, वि. १९५८, श्रेष्ठ, पृ. १२९-४६(२ से ४७)-८३, ले.स्थल, चंद्रापुरी, प्रले. दुर्गाप्रसाद चौबे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नि० श्रा०., प्र.ले.श्लो. (१४९५) जैसी प्रति देखी हती, दे., (३२४१७, १४४४८). ज्ञानानंद श्रावकाचार, श्राव. रायमल्ल, पुहि., प+ग., आदि: राजित केवलज्ञान जुत परमौं; अंति: इष्टमे मंगल दीज्यौ राय, (पू.वि. अधिकार-१ अपूर्ण से अधिकार-२ अपूर्ण तक नहीं है.) १०४९२१. (+) हरिवंशपुराण की भाषावचनिका, संपूर्ण, वि. १९६१, माघ कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ४५४, प्र.वि. हंडी:हरिः भा., संशोधित., दे., (३४४२१, १५४४३). हरिवंशपराण-भाषावचनिका, क. दौलतराम पंडित, पुहि., गद्य, वि. १८२९, आदि: प्रथमही जैन सासन कहिये; अंतिः सहस गुणीस प्रमाण. १०४९२२. (+) ब्रह्मविलास कृति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२४, कुल पे. १०२, प्र.वि. हुंडी:ब्रह्मविलाश., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (५६) यादृशं पुस्तकं दष्टं, दे., (३३.५४२०.५, १४४४०). १. पे. नाम, पुन्यपचीसी, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २९६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची 1 पुण्यपच्चीसी, आव, भगवतीदास भैया, पुहिं. पद्य वि. १७३३, आदि प्रथम० अरिहंत बहुरि अतिः नमि भाव सौं कहे भगवतीदास गाथा - २६. २. पे. नाम. शतअष्टोतरी स्तोत्र, पृ. ४अ - १५अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदिः ॐकार गुण अति अगम; अंति: भगौतीदास० ते पावहि शिवराज, गाथा - १०८. ३. पे. नाम द्रव्य संग्रह सह पद्यानुवाद, पृ. १५अ २४अ, संपूर्ण. द्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि जीवमजीवं दव्वं जिणवर अंति णेमिचंदमुणिणा भणियजं, अधिकार ३. गाथा ६०. द्रव्य संग्रह-पद्यानुवाद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७३१, आदि: तिहि जिन जीव अजीव के लखे; अंतिः भगौतीदास ० गुणिजन लोह, गाथा- ७८. ४. पे. नाम. चेतनकर्म चरित्र, पृ. २४अ - ३५आ, संपूर्ण. चेतन वृतांत, आव, भगवतीदास भैया, पुहिं, पद्य, वि. १७३६, आदि: श्रीजिनचर्ण प्रणाम करि अति सुहावनों रचना कही अनादि, गाथा २९६. ५. पे. नाम अक्षरछत्तीसी, पृ. ३५आ- ३७अ संपूर्ण, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि ॐकार अपारगुण पार न पावै; अंति भगीतीदास० लहि आतम परकास, गाथा - ३६. ६. पे नाम परमशतक दोहा सोरठा बंध, पृ. ३७अ-४० अ, संपूर्ण. श्राव. आव भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७३२, आदि: पंच परमपद प्रणमि अति भगौतीदास० फागुण तीज सुपेद, " कडवक- १००. ७. पे नाम. जिनपूजा अष्टप्रकारी, पू. ४०-४१आ, संपूर्ण ८ प्रकारी जिन पूजा, आव भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि जल चंदन अरु सुमन ले अक्षत; अंतिः भैया० दीजे अर्ध सुधार गाथा १२. ८. पे. नाम. समवशरण अष्टप्रातिहार्य, पृ. ४९आ, संपूर्ण समवसरण अष्टप्रातिहार्या, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम अशोक फूलकी वरषावानी; अंति: निश्चै निरधारि के, गाथा ४. ९. पे नाम प्रश्नोत्तर दोहा, पू. ४९ आ-४६आ, संपूर्ण, प्रले. विद्याविलाश प्र.ले.पु. सामान्य. प्रश्नोत्तर दोहा-विविध चक्र बंध, आव, भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: कौन ज्ञान विनु आवरन अति: सुमरिलै सुभवसागर हितरंत, दोहा-५, (वि. यंत्र व चक्र सहित.) १०. पे. नाम. जिनचौवीसी छप्पेछंद, पृ. ४७अ ४९अ, संपूर्ण. जिनचौवीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ अरिहंत; अंति: ते पावै शिव थांन, गाथा - २५. ११. पे नाम, वर्तमानजिनवीसी प्र. ४९१-५१आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., पद्य, आदि सीमंधर जिनदेव नया; अंति: भैया० त्रिकाल शीस नाइये स्तुति-२२. १२. पे नाम परमात्मकी जैमाल, पृ. ५९आ, संपूर्ण परमात्मा जयमालिका, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदिः परमदेव परणांम करि परम; अंति: परमातमा० भैया ताहि निहारि, गाथा - ७. १३. पे नाम, जिन जैमालिका, पृ. ५१-५२अ, संपूर्ण जिन जयमालिका, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिनदेव प्रणाम करि; अंति: वसै सिंधु सुख के घटमैं, गाथा - ९. १४. पे नाम. मुनिराजकी जैमाल, पृ. ५२-५२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९७ मुनिराज जयमालिका, आव भगवतीदास भैया, पुहिं, पद्य, आदिः परमदेव परणांम करि सतगुरु अंतिः भैया० जनम मरन भै नांहि गाथा - १०. १५. पे. नाम. अहिछता पार्श्वनाथछंद, पृ. ५२आ-५३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-अहिच्छत्रा, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७३१, आदि: अश्वसेन अंगज निलौं वामा; अंति: सुहावनौं पूजै पासकुमार, गाथा-७. १६. पे. नाम. शिष्य छंद, पृ. ५३अ -५३आ, संपूर्ण. " औपदेशिक छंद-मूढशिक्षा, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि देह सनेह कहा करे देह मरण; अंति: भैया० के समविष्टी होइ, दोहा १२. १७. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पू. ५३आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद-शूची, आव भगवतीदास भैया, पुहि., पद्य, आदि या देही की श्रुचि कहा; अंति: गुण त्यागि जल जलि दीजै, गाथा ४. १८. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५३आ, संपूर्ण श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि अब मैं छाड्यौ पर जंजा, अंति: गुण राजत सोमम रूप विशाल, गाथा-२. १९. पे नाम आध्यात्मिक पद, पृ. ५३आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि या घटमैं परमातमा; अंतिः चहे सदा चेतो चित वइया, गाथा-४. २०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५४अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि नर देही बहु पुण्य सौं, अंतिः दुल्लभ महा यह गति ठकुराई, गाथा-२. २१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५४अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: अरे तैं जुयै जनम गमायो रे; अंति: भैया तो कौ कहि समुझायो रे, गाथा-२. २२. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५४अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: जीव कौं मोह महा दुखदाई; अंतिः भइया ज्यौं प्रगटै ठकुराई, गाथा-४. २३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५४अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: जाको मन लागो निज रूप मैं; अंतिः सुखसागर आपु ही आपु लखावै, गाथा-२. २४. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५४ अ-५४आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: नगन दिगंपर मुद्रा धरि कै; अंतिः प्रगटै वहुरिन भौमैं आऊं, गाथा-५. २५. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन- गौडी, पृ. ५४आ, संपूर्ण. " पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, आव, भगवतीदास भैया, पुहि पद्य, आदि गौडी प्रभु पारस पूजिया; अंतिः भाव सौंही पास जगत विख्यात, गाथा-५. २६. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५४आ, संपूर्ण श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि कहा परदेशी की पतियारो मन अंति: भईया आपु हि आपु संभारो, गाथा-५. २७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५४-५५अ, संपूर्ण. आव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: ते गहिले भाई ते गहिले; अंति: नातो नरक निगोदि हले, गाथा-३. " २८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५५अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: छांडि दै अभिमान जीय रे; अंति: इम करम० भैया आपु पिछांन, गाथा-४. २९. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५५अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: एक सुनि जिनशासन कीवतिया; अंति: भैया निज पदगहु निज मतियां, गाथा-४. ३०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५५अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: देखो मिरी सहिए आज चेतन; अंति: अखंडित भैया सवनु मनु भावै, गाथा-४. ३१. पे. नाम. औपदेशिक पद-आत्मा, पृ. ५५अ-५५आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: के दारौ केसैं देंउ कर मन; अंति: पाय नरभो मुकति पंथ सुघोस, गाथा-५. ३२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५५आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पहि., पद्य, आदि: कहौ परसौं प्रीति कीनी; अंति: रूप गहियै इहै वात प्रवान, गाथा-२. ३३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ.५५आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: अडानौ ए मन ऐसौ है जिन; अंति: कौ ज्यौं प्रगटै पद पर्म, गाथा-२. ३४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५५आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिन चरणां वुज प्रते; अंति: भविक नित भाव सहित शिवरूप, गाथा-२. ३५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ.५५-५६अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: भविक तुम वंद हु मन धरिभाव; अंति: भैया जिन प्रतिमां सहिए, गाथा-७. ३६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५६अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: हो चेतन तो मति कौनै हरी; अंति: अपनौं भैया सीख सुधारि खरी, गाथा-४. ३७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५६अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: हे चेतन उवे दख विसरि गए; अंति: परमपद अपनौं नातो आगै अए, गाथा-३. ३८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५६अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: जो जो देख्यौ वीतरागर्ने; अंति: भैया० जोता रै भौ नीरारै, गाथा-४. ३९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ५६अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवानी कै कोन हिता रे; अंति: मुकति पंथ मुनिराज सिधा रे, गाथा-२. ४०. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ५६अ-५६आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवानी सुनि तुरत सभा रे; अंति: जिन वचन सवै उपगारे, गाथा-४. ४१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ.५६आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पहिं., पद्य, आदि: चेतन परे मोह विश आइ मानत; अंति: भैया सो निहचै ठहराय, गाथा-४. ४२. पे. नाम. गुरुशिष्य प्रश्नोत्तर दोहा, पृ. ५६आ-५७अ, संपूर्ण. शिष्यचतुर्दशी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: कहुं दिव्य धुनि शिष्य; अंति: दास भगवंते समता के घरि आइ, गाथा-१४. ४३. पे. नाम. मिथ्यात विध्वंशन चतुर्दशी, पृ. ५७अ-५९अ, संपूर्ण. मिथ्यात्व विध्वंशन चतुर्दशी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: वंदौ रिषभजिनंद अजित संभव; अंति: भैया० पढत वढत आनंद, गाथा-१४. ४४. पे. नाम, जिनगुणमालिका, पृ. ५९अ-५९आ, संपूर्ण. जिनगुणमालिका स्तवन, श्राव. भगवतीदास भैया, मा.गु., पद्य, आदि: तीर्थंकर त्रिभुवन तिलक; अंति: भैया० पढे पर्म सुख होइ, गाथा-२१. ४५. पे. नाम. अतितअनागतवर्तमान-जिनपद, पृ. ५९आ-६०अ, संपूर्ण. अतीतअनागतवर्तमानजिन पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: नमौं सिद्ध सम आतमा; अंति: सिद्ध जिन जानि प्राणी, गाथा-४. ४६. पे. नाम. पंचपरमेष्ठी नमस्कार, पृ. ६०अ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठी नमस्कार स्तवन, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: प्रात समै श्रीपंचपद वंदन; अंति: सास्वते भैया सुगम उपाव, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org ४७. पे नाम. गुणमंजरी चौपाई. पू. ६० अ-६३अ, संपूर्ण. आव भगवतीदास भैया, पुर्हि, पद्य, वि. १७४०, आदि परम पंचपरमेष्ठि कौं बंद अंतिः भैया० मंगल कह्यौ सिद्धंत, " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा - ७४. ४८. पे. नाम. लोकाकाशक्षेत्र की चोपाई, पृ. ६३-६४अ संपूर्ण लोकाकाश ३४३ राज चौपाई, आव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७४०, आदि प्रणमूं परमदेव के पाय मन अंतिः पोष सुदी पून्यौं रवि कही, गाथा-२०. ४९. पे नाम. मधुबिंदु दृष्टांत चौपाई. पू. ६४-६६आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७४०, आदि: वंदौ जिनवर जगत गुरु वंदौं; अंति: जे सर दहै ते पावै भवपार, गाथा - ६१. ५०. पे नाम. सिद्धचतुर्दशी, पू. ६६आ-६८अ संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदिः परमदेव परणाम करि परम; अंति: तैं फेर रंच कहु नांहि, गाथा - १४. ५१. पे. नाम. निर्वाणकांड भाषा, पृ. ६८-६९अ, संपूर्ण. निर्वाणकांड-पद्यानुवाद, आव भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७४१, आदि वीतराग बंदी सदा भाव सहित; अंति: भैया० निर्वाण कांड गुणमाल, गाथा-२२. ५२. पे. नाम. एकादशगुणस्थानक चौपाई, पृ. ६९अ-६९आ, संपूर्ण. २९९ ११ गुणस्थानक क्रमारोह चौपाई १४ गुणस्थानकगत, आव, भगवतीदास भैया, पुहि., पद्य, आदि करम कलंक खपाइ कै भए सिद्ध; अंति: जीव भैया ते सुख लहहि सदीव, 'लहहि सदीव, दोहा २१. ५३. पे. नाम. कालअष्टक दोहा, पृ. ७०अ, संपूर्ण. कालअष्टक, आव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्म, आदि तिहुंपुर के पुरधीत सव; अति भगवतं० ताहि धरि ध्यान, " गाथा-८. ५४. पे नाम, उपदेशपच्चीसी, पृ. ७०-७१अ संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७४१, आदि: वीतराग के चरण जुग वंदौ; अंति: भैया० श्री रविवार प्रतक्ष, समान, गाथा - १५. ५८. पे. नाम. सप्तभंगीवाणी, पृ. ७३अ-७३आ, संपूर्ण. गाथा-२७. ५५. पे नाम, नंदीश्वर जयमाल पृ. ७१अ ७१आ, संपूर्ण. नंदीश्वरद्वीप जिनप्रतिमा स्तुति, आव भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्म, आदि बंदौ श्रीजिनदेव को अरु अति: भैया० जैमाल नंदीश्वर कही, गाथा - १६. ५६. पे. नाम. बारहभावना चौपाई, पृ. ७१आ-७२आ, संपूर्ण. १२ भावना चौपाई, आव, भगवतीदास भैया, पुहिं, पद्य, आदि: पंच परमगुरु वंदना अति इम भाखै स्वामी जगदीश, गाथा - १५. ५७. पे. नाम कर्म के दशभेद ब्योरा, पृ. ७२-७३अ संपूर्ण १० कर्मभेद चौपाई, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिन चर्णांबुज प्रतैं; अंति: भैया० वंदहु सिद्ध , सप्तनयभंगी वाणी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: वंदौ श्रीजिनदेव कौं वंदौ; अंति: भैया० मिटहि सकल भ्रम भेद, गाथा १२. For Private and Personal Use Only ५९. पे. नाम. सुबुद्धिचौवीसी जैमाल, पृ. ७३आ-७६आ, संपूर्ण. सुबुद्धिचौवीसी, आव, भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि चरण कमल जिनदेव के वंदी, अंति: भगौतीदास० ते पावे शिववास, गाथा २४. ६०. पे नाम. अकृतचैत्यालैन की जैमाल, पृ. ७६-७७आ, संपूर्ण. Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चैत्यालय जयमालिका, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., पद्य, वि. १७४५, आदि: प्रणम् परमदेव के पाय मन; अंति: भैया० होत सवन कौं चैन, गाथा-३३. ६१. पे. नाम. चउदगणस्थानजीवनसंख्या, पृ. ७७-७८आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक जीवभेद विचार, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७४६, आदि: वीतराग के चरणयुग वंदौ; अंति: भैया० प्रति कर प्रणांम, गाथा-२३. ६२. पे. नाम. पंद्रहपात्र की चौपई, पृ. ७८आ-७९आ, संपूर्ण. १५ भेद पात्रविचार चौपाई, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: नमौं देव अरिहंत कौं नमौं; अंति: भटकत फिरै विनवैदास किशोर, गाथा-२५. ६३. पे. नाम. ब्रह्माब्रह्मनिरणे, पृ. ७९आ-८०अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-ब्रह्माब्रह्मनिरणै, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: असिआउसा पंचपद वंदौ शीस; अंति: भैया० मैं कही कथा विख्यात, गाथा-१४. ६४. पे. नाम. अनित्यपचीसी सवैया, पृ. ८१अ-८२अ, संपूर्ण. अनित्यपच्चीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., पद्य, आदि: नरलोकनि केईस नागलोकनि; अंति: भैया० कौं जिनवानी उरधारि, गाथा-२७. ६५. पे. नाम. अष्टकर्म की चौपई, पृ. ८२आ-८३अ, संपूर्ण. अष्टकर्म चौपाई, श्राव. भगवतीदास भैया, पहिं., पद्य, आदि: नमो देव सर्वज्ञ को वीतराग; अंति: भैया० वरनई जिन आगम परसादि, गाथा-२७. ६६. पे. नाम, सुपंथ-कुपंथपचीसी, पृ. ८३अ-८६अ, संपूर्ण. सुपंथकुपंथपच्चीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: केवलज्ञान सरुप मैं राजत; अंति: भैया० लहियै आतम रिद्धि, गाथा-२७. ६७. पे. नाम. मोहभ्रमाष्टक, पृ. ८६अ-८७अ, संपूर्ण. मोहभ्रम अष्टक, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: परमपूज्य सर्वज्ञ है तारण; अंति: भैया० कीज्यौ निर्मल चित, गाथा-११. ६८. पे. नाम. आश्चर्यचतुर्दशी, पृ. ८७अ-८८आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: नमौं पदारथ सार कौ निज; अंति: भैया० खुलत लखै सव कोइ, गाथा-१५. ६९. पे. नाम. रागादिनिर्णयाष्टक, पृ. ८८आ-८९अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पहिं., पद्य, आदि: सर्वज्ञेय ज्ञायक परम; अंति: भैया० लीज्यौ सबै लगाय, गाथा-१०. ७०. पे. नाम. पुण्यपापजगमूलपचीसी, पृ. ८९अ-९१अ, संपूर्ण. पुण्यपापजगमूलपच्चीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: परमातम परत० सिद्ध सकल; अंति: भैया० सव सिद्धि प्रवांन, गाथा-२७. ७१. पे. नाम. बाईस परीषह सवैया, पृ. ९१अ-९४आ, संपूर्ण. २२ परिषह सवैया, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७४९, आदि: पंच पर्म पद प्रणमि; अंति: भईया० ते पावै भवपार, गाथा-३०. ७२. पे. नाम. मुनिराज के छियालीस दोष रहित आहार शुद्धि, पृ. ९४आ-९५आ, संपूर्ण. गोचरी ४६ दोष चोपाई, श्राव. भगवतीदास भैया, पहिं., पद्य, वि. १७५०, आदि: अरिहंत सिद्धचिता रिचित; अंति: भैया० मुक्ति पंथ सुखवास, गाथा-२५. ७३. पे. नाम. जिनधर्मपच्चीसी, पृ. ९५आ-९८अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७५०, आदि: प्रगटदेव परमातमा चिदानंद; अंति: भैया० जै जिनधर्मप्रकाश, गाथा-२८. ७४. पे. नाम. अनादिबत्रीसी, पृ. ९८अ-९९अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org ३०१ आव भगवतीदास भैया, पुहिं. पद्य वि. १७५०, आदि अष्टकर्म अरिजीति के भए: अंतिः भैया० कही अनादि प्रतक्ष, गाथा - ३३. ७५. पे नाम. समुद्रघात सात वर्णन, पृ. ९९ अ ९९आ, संपूर्ण. स्वयंभूरमण समुद्र विस्तार गाथा, प्रा., पद्य, आदिः सव्वे वि दीवसमुद्दा; अंतिः तत्तो अहिअं सयंबुदही, गाधा- ११. ७६. पे नाम. मूढशिक्षा अष्टपदी, पू. ९९आ-१००अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: चिनमूरति चिंताहरन पूरन; अंति: राम कौ भैया लखि निजधांम, गाथा-८. ७७. पे नाम, सम्यक्त्वपच्चीसी, पू. १००अ १०१अ. संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७५०, आदि: सम्यक आदि अनंतगुन सहित; अंति: भैया० मृगपतिवार प्रतक्ष, गाथा-२६. ७८. पे. नाम वैराग्य पचीसी, पृ. १०१-१०१आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वैराग्यपचीसी, आव भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७५०, आदि रागादिक दोष नित जे वैरागी अंतिः भैया० जे जे निसपतिवार, गाथा २५. ७९. पे. नाम. परमातमछतीसी, पृ. १०१ आ-१०३अ, संपूर्ण. " परमात्मछत्तीसी, आव, भगवतीदास भैया, पुहिं. पद्य वि. १७५०, आदि पर्मदेव परमातमा अति भैया० प्रथम पखि दुजा, गाथा- ३६. ८०. पे. नाम नाटकपच्चीसी, पृ. १०३२.१०३आ, संपूर्ण. - a. भगवतीदास भैया, पुहिं, पद्य, आदि कर्म नाट निति तोरि कै भए: अंतिः भैया० ते पहुंचे भवपार, दोहा २५. ८१. पे नाम उपादान निमित्त संवाद दोहा, पू. १०३ आ-१०५अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७५०, आदि: पाय प्रणमि जिनदेव के एक; अंति: भैया० दशौं दिशा परकास, दोहा - ४७. ८२. पे नाम. चौवीस तीर्थंकर की जैमाल, पृ. १०५ आ-१०६अ, संपूर्ण. २४ तीर्थकर स्तुति, श्राव. भगवतीदास भैया, मा.गु., पद्य, आदि: वीस च्यार जगदीस की वंदी, अंति भैया० होइ कहां सौ मोष, गाथा- १७. ८३. पे. नाम. पंचेंद्रीय चौपाई, पृ. १०६अ १११आ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय चौपाई, आव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७५१, आदि प्रथम प्रणमि जिनदेव को अति हिरदै वसै सबकी मंगल होय, डाल-६, गाथा-१५४. ८४. पे. नाम. ईश्वरनिर्णयपच्चीसी, पृ. १११आ - ११३अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं, पद्य, आदि परमेश्वर जो परमगुरु, अंतिः भैया० या फेरन कोय, गाथा २७. ८५. पे. नाम. कर्त्ता अकर्त्तापच्चीसी, पृ. ११३अ - ११३आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७५१, आदि: कर्मन को करता नही धर्ता; अंति: भैया० लखै सो पावै भवपार, गाथा - २६. ८६. पे नाम. दृष्टांतपचीसी, पृ. ११३ ११४आ, संपूर्ण. दृष्टांतपच्चीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७५२, आदि केवलज्ञान सरूप में बसै; अंति: पचीशिका कही भगीतीदास गाथा-२६. ८७. पे नाम. मनबत्तीसी, पृ. ११४- ११६अ, संपूर्ण. आव भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि दरशनज्ञान चरित जिहि सुख अति रचना कही भगौतीदास गाथा-३४. ८८. पे. नाम. सुपनबत्तीसी, पृ. ११६अ ११७अ, संपूर्ण. आव भगवतीदास भैया, पुहिं, पद्य, आदिः सुपनैवत संसार में जागे अति भगौतीदास ० लेहु गुनवान, गाथा ३४. ८९. पे नाम. सूवाबतीसी, पृ. ११७अ ११८आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सूआबत्तीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., पद्य, वि. १७५३, आदि: नमसकार जिनदेवकौं करूं; अंति: भैया० तें शिवसुख भास, गाथा-३४. ९०. पे. नाम. ज्योतिष कवित्त, पृ. ११८आ-११९अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., पद्य, आदि: दिनकर के दिन बीस चंद पचास; अंति: मैं इतो रहियै निज सुख वीच, गाथा-५. ९१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ.११९अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पहिं., पद्य, आदि: साहिब जाके अमर है सेवक; अंति: भैया० पर सौ मति मागे, गाथा-२. ९२. पे. नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. ११९अ-१२०अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., पद्य, आदि: तेरोई सुभाव विन मूरति; अंति: जाके भाव रहै हावभाव रै, गाथा-८. ९३. पे. नाम. औपदेशिक पद-चिंता, पृ. १२०अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पहिं., पद्य, आदि: ए मन नीच निपात निरथक काहे; अंति: सझत नांहि किधो भयो सुरो, गाथा-१. ९४. पे. नाम, औपदेशिक पद, प. १२०अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पहिं., पद्य, आदि: शीस गर्भ नहि नमौ कान नहि; अंति: यह निंदनि कष्ट लीजिय, गाथा-१. ९५. पे. नाम, औपदेशिक सवैया-साधु, पृ. १२०अ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया-साघ, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: मन वचन काय योग तीनउ; अंति: चलै साघु है ___ सोय, गाथा-१. ९६. पे. नाम. औपदेशिक पद-पेट, पृ. १२०अ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया-पेट, श्राव. भगवतीदास भैया, पहिं., पद्य, आदि: पेट ही कै काज महाराज; अंति: भरै पंडित कहाय कै, गाथा-१. ९७. पे. नाम. जिनभक्ति सवैया, पृ. १२०अ-१२०आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: वीतराग के विवसेव; अंति: भैया नित जपिवो कर व, गाथा-५. ९८. पे. नाम. औपदेशिक पद दोहा-जिनवाणी, पृ. १२०आ-१२१अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-जिनवाणी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: सीमंधर स्वामी प्रमुख; अंति: ते सव शिवपुर जांहि, गाथा-१५. ९९. पे. नाम. ब्रह्मविलासगत कृतिनाम सवैया, पृ. १२१अ-१२२अ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: पुन्यपचीसी शतअष्टोत्तर; अंति: ब्रह्मविलास मधिसव आय, गाथा-७. १००. पे. नाम. भगवतीदास कवि परिचय सवैया, पृ. १२२अ-१२२आ, संपूर्ण. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, आदि: जंबूदीप मैं दछन भर्त; अंति: भगौतीदास० वहै भगवानं, गाथा-१८. १०१. पे. नाम. ब्रह्मविलास संबंध बीजक, पृ. १२२आ-१२३आ, संपूर्ण. __ब्रह्मविलास-संबंध बीजक, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., को., आदि: (-); अंति: (-). १०२. पे. नाम. ब्रह्मविलास, पृ. १२४अ, संपूर्ण, पे.वि. वस्तुतः कुल १२४ पेज है, अलग-अलग पेटांक भरने के कारण मात्र अंतिम पेज का उल्लेख किया है. श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७५५, आदि: प्रथम प्रणमि अरहंत; अंति: भगौतीदास० वहै भगवानं. १०४९२३. (+) ऋषिमंडलस्तोत्र विधि, संपूर्ण, वि. १९६२, फाल्गुन शुक्ल, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १४+१(३)=१५, अन्य. श्राव. गणेशलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:ऋषिमंडल०., संशोधित., दे., (३१.५४२०.५, १३४३१-३६). ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद्-पूजाविधि, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीजिनाधीशं; अंति: महती नंदीगुणादिर्मुनिः, ग्रं.३८३. १०४९२४. (+) सारसमुच्चय, संपूर्ण, वि. १९६१, माघ शुक्ल, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र.वि. हुंडी:सारसमुच्चय., संशोधित., दे., (३१.५४२०.५, १३४३४-३७). For Private and Personal Use Only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ सारसमुच्चय, मु. कुलभद्रमुनि, सं., पद्य, आदि देवदेवं जिनं नत्वा, अंति: संपत्तिकारिणेरिष्टनेमये, श्लोक-३२९. १०४९२५. (+) जिनसंहिता संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५०-२ (४७ से ४८) = ४८, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी: जिनसंहिता., संशोधित., दे., (३२x२०, १३X३९). जिनसंहिता भट्टा. एकसंधि भट्टारक ऋषि, सं., पद्य, आदि: मंगलं भगवानर्हतमंगल अति: (-). (पू.वि. परिच्छेद- २० अपूर्ण है व परिच्छेद-२२ तक है.) १०४९२६. नियमसार सह तात्पर्य वृत्ति व छाया, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पू. ३२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं है. प्र. वि. हुंडी नियमसार.., वे. (३२x२०.५, १३४४५). नियमसार, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., पद्य, आदि: णमिऊण जिणं वीरं अनंत अति (-) (पू. वि. गाथा ९२ तक है.) नियमसार-तात्पर्यवृत्ति टीका, आ. पद्मप्रभ मलधारिदेव, सं., प+ग., आदि: त्वयि सति परमात्मन्म; अंति: (-). नियमसार - छाया, श्राव. मगनलाल जैन, सं., पद्य, आदि: नत्वा जिनं वीरं अनंत; अंति: (-). १०४९२० (+) गिरनार पूजा विधि, संपूर्ण, वि. १९४९, भाद्रपद कृष्ण, ९, शुक्रवार, मध्यम, पू. ३४, ले. स्थल, वसंतपुर, प्रले. श्राव. मन्नालाल हलवाइ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : गिरनार., संशोधित., प्र.ले. श्लो. (७५) यादृशं पुस्तकं दष्टं, (१९८१) जब लग धरती मेरू गिर, वे. (३१x२१, १९४३०). गिरनार पूजा सविधि, क. दौलतराम पंडित, पुहिं. प+ग, आदिः समवसरण लक्ष्मी सहित अंति दौलतराम० सहस सुख पाता है. " १०४९२८. पंचकल्याणक पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र. वि. हुंडी पंचक०पू०. वे. (३४.५४२२, १३४३२-३९). पंचकल्याणक पूजा, जै.क. टेकचंद, पुहिं प+ग, आदि: पणववि पंच परमगुरु: अंतिः टेकचंद० परभव सिवपुर जाय. १०४९३१ (+) अमितगति श्रावकाचार सह वचनिका, संपूर्ण वि. १९१२ आषाढ़ शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १८५, प्र. वि. हुंडी: अमित० ग्रा०, संशोधित दे. (३४x२०, १४४४२). " " ३०३ अमितगति श्रावकाचार, य. अमितगति, सं., पद्य, आदि: अंति विदुषामभ्यस्यमानं मुदम्, परिच्छेद १५. अमितगति श्रावकाचार-भाषा वचनिका, जै.क. भागचंद्रजी पुहिं. गद्य वि. १९१२, आदि (१) सिद्धारथ प्रियकारणी, (२) ते श्रीसिद्ध भगवान मेरे; अंति: अषाढ की पूर्ण वचन का सार. १०४९३२. सम्मेदशिखर पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, प्र. वि. हुंडी : सम्मेदशिखरपू०., दे., (३२x२०.५, १३x४१). सम्मेतशिखर विधान पूजा, क. जवाहरलाल दास, पुहिं., सं., हिं., पद्य, वि. १९२१, आदि: सिद्धक्षेत्र तीरथ परम है; अतिः कही सो शिवपुर को जाय, पूजा-२०. १०४९३३. सम्मेदशिखर पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र. वि. हुंडी सम्मेदसिखरपू०. दे. (३१.५x१९.५, १३x४१). सम्मेतशिखर विधान पूजा, क. जवाहरलाल दास, पुहिं. सं. हिं. पद्य वि. १९२१ आदि सिद्धक्षेत्र तीरथ परम है, अंति: हाथ जोडि सिरनाम, पूजा-२०. १०४९३४. षोडशकारन पूजाविधान, संपूर्ण, वि. १९७४ पौष शुक्ल १५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४५, ले. स्थल. इंदौर, प्र.वि. हुंडी:सोला०पू०., दे., (३४x२०, १३x४२). १६ कारण भावना पूजा, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., प+ग, आदि: मांनौ आनौ मन यह सोलह कारण; अंति और यथा योग्य जानना, दोहा २१. १०४९३५. (+) पंचपरमेष्ठी पूजाविधान, संपूर्ण, वि. १९०४, पौष कृष्ण, ४, मंगलवार, मध्यम, पृ. २५, प्र. वि. हुंडी : पंचपरमे., संशोधित. दे. (२९.५४१९.५, १६४३७) पंचपरमेष्ठि मंगल पूजा, मा.गु., प+ग., वि. १८६२, आदि: मंगलमय मंगल करन; अंति: सत अष्टदस साठि दोय अधिकाय. १०४९३९. (+) तत्त्वार्थसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३३, प्र. वि. हुंडी: सूत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (३४.५x२६.५, ३X३५). For Private and Personal Use Only तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति सं., गद्य, आदि: त्रैकाल्यं द्रव्य अंति: समाहिमरणं दुःखं णिवारेइणं, अध्याय- १०. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र - टवार्थ, पुहिं, गद्य, आदि: तीन काल भूत १ भव्यष अति सिद्ध टीका की भाषा ते जान Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०४९४०. सुदृष्टितरंगिणी सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १९६१, पौष शुक्ल, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३०२, प्रले. गोपीलाल ब्राह्मण; मोतीलाल वसंतलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सु०त०., दे., (३६.५४२३.५, २०४३६-४०). सदृष्टि तरंगिणी, जै.क. टेकचंद, प्रा., पद्य, वि. १८३८, आदि: अरहं देवं देव गुरु वंदे; अंति: दिण पक्ष मास वस्सादि, अध्याय-४२, गाथा-१५५. सुदृष्टि तरंगिणी-अर्थ, जै.क. टेकचंद, पुहि., गद्य, वि. १८३८, आदि: मनमांहि भक्ति अनाय नमि हौ; अंति: अर्ध निसं पूर्ण कीन, अध्याय-४२. १०४९४२. (+) गोम्मटसार सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १९४९, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १४०, ले.स्थल. प्रतापगढ, प्रले. य. अमीचंद; प्रे. आ. शुभचंद्र (गुरु मु. विजयकीर्ति भट्टारक, मूलसंघ); गुपि. मु. विजयकीर्ति भट्टारक (गुरु आ. ज्ञानभूषण, मूलसंघ); आ. ज्ञानभूषण (गुरु आ. भुवनकीर्ति, मूलसंघ); आ. भुवनकीर्ति (गुरु आ. सकलकीर्ति भट्टारक, मूलसंघ); लिख. हरषा संघवी; जयवंत संघवी; रहीया संघवी; बलराज कोठारी; जेसा कोठारी; अलवा कोठारी; दत्त. हीरा कोठारी; गृही. तेजपाल ब्रह्मचारी; अन्य. देवदास ब्रह्मचारी; दत्त. मु. राजचंद्र; गृही. कामराज ब्रह्मचारी; पठ. जहामोहन; अन्य. मु. धर्मभूषण; लिख. मथुरालाल; अन्य. कालुराम भोजराज साह, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (३५.५४२२, १५४२४-३७). गोम्मटसार, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धं सुद्धं पणमिय; अंति: णामेण य वीरमत्तंडी, कांड-२ अधिकार ३१, गाथा-१७०५. गोम्मटसार-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: ॐ सिद्धं सम्यगुपदेशपूर्वक; अंति: (-). १०४९४३. (+) रत्नकरंडश्रावकाचार सह भाषामय वचनिका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३५९, प्र.वि. हुंडी:रत्नकरंडश्रा., संशोधित., दे., (३३.५४२१.५, १५४४४). रत्नकरंडक श्रावकाचार, आ. समंतभद्र, सं., पद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: दृष्टिलक्ष्मीः, परिच्छेद-७, श्लोक-१५०. रत्नकरंडकश्रावकाचार-भाषावचनिका, श्राव. सदासुखदासजी, पुहि., गद्य, वि. १९२०, आदि: इहां इस ग्रंथ की आदि; अंति: करो शास्त्रजु रत्नकरंड. १०४९४४ (+) सिद्धचक्रपूजा सविधि, संपूर्ण, वि. १९८४, चैत्र कृष्ण, ८, बुधवार, मध्यम, पृ. १०२, ले.स्थल. चोरू, प्रले. श्राव. छोगालाल भौंसा, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सिद्धचक्रपू०., संशोधित., दे., (३४.५४२१.५, १५४४२). सिद्धचक्र विधान, क. संतलालजी कवि, सं.,हिं., पद्य, आदि: जिनाधीश शिवईश नमि; अंति: लक्ष्मी के सुख भोगेंगे, पूजा-८. १०४९४५. बृहत्गुरावली शांतिविधान, संपूर्ण, वि. १९७२, चैत्र शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ३१, ले.स्थल. लावा, प्रले. महेशचंद्र जोशी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पू०चौ०., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१४९६) या न वाच पूजन करावे सो नरे, दे., (३३.५४२१, १३-१५४३२-३५). बहत्गरावली पूजा, श्राव. सरूपचंद, पुहिं.,सं., प+ग., वि. १९१०, आदि: सारासार विचार करी तजि: अंति: सरूपचंद०रची स्वपर हित हैत. १०४९४६. (+#) वर्द्धमानपुराण का भाषावचनिका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १८८, प्र.वि. हुंडी:वर्धमा०वच०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (३१४२०.५, १३४३०-३५). महावीरवर्धमान चरित्र-भाषावचनिका, पुहिं., गद्य, आदिः (१)जिनेशं विश्वनाथाय अनंतगुण, (२)श्रीवर्द्धमान स्वामी कू; अंति: अर्थ मेरै ताई कृपा करो. १०४९४९ (+#) सिद्धांतसारदीपक की भाषावचनिका, अपूर्ण, वि. १८६१, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. २५४-१(६९)=२५३, प्र.वि. हुंडी:सिद्धांतसार०., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (३०.५४१८, १३४३७). सिद्धांतसार-भाषा पद्यानुवाद, श्राव. नथमल विलाला, पुहिं., पद्य, वि. १८२४, आदि: सब दर्शी सर्वज्ञ महं; अंति: नथमल समापत कीनौं सार, अध्याय-१६, (पू.वि. अधिकार-४ "भरतक्षेत्र माहि" पाठ से "छहौं खंड जहि विध भयौं" पाठ तक नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ३०५ १०४९५०. भक्तामर स्तोत्र सह जिनचरित्र भाषावचनिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९३, प्र.वि. हुंडी:भक्ता०च०., जैदे., (३०.५४१७.५, १३४३४-३८). भक्तामर स्तोत्र-टीका व कथा का पद्यानुवाद, श्राव. विनोदीलाल, पुहिं., पद्य, वि. १७४८, आदि: प्रथमपद अरिहंतवरकुं; अंति: विनोदीलाल० कथा सुहावनी, कथा-३८, का.-४८. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी. १०४९७२. (+) ५६३ जीवभेद, संपूर्ण, वि. १९३५, वैशाख शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. मुमाई, प्रले. पं. हीरचंद्र, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (३१४१५, १४४३८). ५६३ जीवभेद विचार, पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: देवतोका १९८ भेद मनुष्य; अंति: भेद हुवै हां गुरुजी हुवै. १०४९७३. तपउच्चारण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (३१४१४, १२४३०). तपउच्चारण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नाहाण मंडाके नहाण; अंति: गुरु मुखसे पच्चखाण करे. १०४९८६ (+) शारदा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९३५, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. अराईनगर, पठ. विहारीलाल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सा०., संशोधित., दे., (३२.५४१४, १०४३९). सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. हेमाचार्य, सं., पद्य, वि. १५२७, आदि: कमलभूतनया मुखपंकजे; अंति: विबुध सुमतिर्हरि, श्लोक-१३. १०४९९० (-#) सेवपचिसी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (३०x१४, १४४३४). शिवपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: ब्रभाविलसा विकासधरि; अंति: वानारसी स्वेमहमा स्वेराती, गाथा-२६, (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण से २१ अपूर्ण तक नहीं है.) १०४९९७. (+) पोरसीमान गाथा व पच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (३०x१४, १७४४३). १. पे. नाम, पोरसीमान गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रतिलेखनादि कालमान गाथा, प्रा., पद्य, आदि: आसाढे मासे दपया पोस; अंति: पएपए पुरिमड्ढो होई, गाथा-६. २.पे. नाम, पच्चक्खाण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति पेटांक-१ के बीच में लिखी गई है. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सूरे उग्गए साढपोरिसियं; अंति: गारेणं वोसिरामि, (वि. अंत में १आ पर पोरिसी कालमान कोष्टक दिया गया है.) १०५००२. (+) ऋषभजिन विनति, अपर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, प. ३-२(१ से २)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, ११४२५). आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदिः (-); अंति: विनय करीने विनवे ए, गाथा-५८, (पू.वि. गाथा-४१ अपूर्ण से है.) १०५००४. (+) आत्मप्रबोध ग्रंथ, अपूर्ण, वि. १८५६, श्रावण शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. १९०-६८(१ से ६८)=१२२, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. पं. शिवचंद्र; पठ. मु. विजयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:आत्म०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १२४४६-५०). आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, सं., प+ग., वि. १८३३, आदि: (-); अंति: सद्बोधभक्तिभृता, प्रकाश-४, (पू.वि. प्रकाश-२ से है.) १०५००८. (+#) विषापहार स्तवन, एकीभाव स्तोत्र व २४ जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. ३, प्रले. मु. मोहन (गुरु मु. जसवंतजी); गुपि. मु. जसवंतजी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १५४४७-५१). १.पे. नाम. विषापहार स्तवन सह अन्वय, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण, वि. १७२५, फाल्गुन शुक्ल, ११, मंगलवार. विषापहार स्तोत्र, जै.क. धनंजय कवि, सं., पद्य, ई. ७वी, आदि: स्वात्मस्थितः सर्वगत; अंति: सुखानि यशोधनंजयं च, __ श्लोक-४०. विषापहार स्तोत्र-अन्वय, सं., गद्य, आदि: पुराण पुरुष युगादिदेव; अंति: एतादृशी भक्तिः ममास्तु. For Private and Personal Use Only Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३०६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे नाम. एकीभाव स्तोत्र सह अन्वय, पृ. ६अ ९आ, संपूर्ण वि. १७२५, चैत्र कृष्ण, ६, शनिवार, ले. स्थल. पिरोजावाद. एकीभाव स्तोत्र, आ. वादिराजसूरि, सं., पद्य, ई. ११वी, आदि: एकीभावं गत इव मया; अंति: वादिराजमनुभव्य सहायः, श्लोक-२६. एकीभाव स्तोत्र - अन्वय, सं. गद्य, आदि भो जिनरवेचेज्जदि त्ववि अंति भव्य सहाय सः वादराजं अनुज, " ३. पे. नाम. २४ जिन स्तवन सह अन्वय, पृ. ९आ - ११अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तव, आव, भूपाल, सं., पद्य, आदि श्रीलीलावतनं महीकुल अति (-) (अपूर्ण. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक १० तक लिखा है.) २४ जिन स्तव अन्वय, सं., गद्य, आदि भो जिनेंद्र यः भव्य अति (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ; पू.वि. १०५०११ (+) पाक्षिकचौमासिक सांवत्सरिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९०७ श्रेष्ठ, पृ. २४-१ (१०) २३, प्र. वि. संशोधित. दे., (२४.५X१२, ६x२३). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमिय चरणंमि; अंति: मिच्छामि दुक्कडम् (पू.वि. प्राणातिपात अतिचार अपूर्ण से मृषावाद अतिचार अपूर्ण तक नहीं है.) १०५०१३. (+) सिद्धचक्रविषये श्रीपाल चौपई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५२ - १ (१) ५१, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२४४११.५, ९X३५). श्रीपाल रास- लघु, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि (-): अंति: सुणयो सहू चित चंगै रे, ढाल ४०, गाथा- ७५९ . ११३९, (पू.वि. डाल- १ गाथा-४ अपूर्ण से है.) १०५०१५ धूर्ताख्यान का वालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १२-२(१ से २) = १०. पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., जै.... (२५X१२, १४४४३). धूर्ताख्यान- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. आख्यान १ अपूर्ण से आख्यान -५ अपूर्ण तक है.) १०५०१६. (+) नंदीसूत्र सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९७-८ (१ से ८) = ८९, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५X११.५, ५-१३X३१-३९). " नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि (-); अंति (-), (पू. वि. गावा- २५ अपूर्ण से अनुज्ञानंदी तक है.) नंदीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). नंदीसूत्र- कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). १०५०१९. (+४) पासाकेबलीसुकन व औपदेशिक सवैया, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १३-५ (१,३ से ४, ६ से ७)=८, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२४.५४१२, १०४२०-२५). १. पे. नाम. पाशाकेवली सुकन, पृ. २अ १३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं. वि. १८४०, ज्येष्ठ शुक्ल, २. पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सत्य कर मानजे श्रेष्ठ छे, (पू.वि. शकुन अंक - ११२ अपूर्ण से है बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) २. पे. नाम औपदेशिक सवैया, पृ. १३अ १३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. क. गुलाल, मा.गु., पद्य, आदि अति (-), (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) १०५०२१ (४) प्रतिक्रमणविधि संग्रह, शांतिकर स्तव व कल्लाणकंद स्तुति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. २१-१५(१ से १३,१७ से १८)=६, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५x१२, ९४२६). १. पे. नाम. प्रतिक्रमणविधि संग्रह, पृ. १४अ - २०आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. प्रतिक्रमणविधि संग्रह -तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति धर्माणं जेनं जयति शासनं, (पू.वि. आयरिय उवज्झाय सूत्र से है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) २. पे. नाम. शांतिकर स्तव, पृ. २० आ-२१आ, संपूर्ण. संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि प्रा. पद्य वि. १५वी आदि शांतिकरं शांतिजिण अति: मुणिसुंदर० पर्यं परमं , " गाथा - १३. ३. पे. नाम. कल्लाणकंद स्तुति, पू. २९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ३०७ संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढमं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) १०५०२३. (+) जंबूद्विप संग्रहणी, संपूर्ण, वि. १८९१, आषाढ़ कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. मु. विवेकसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२, ४४२९). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमियं जिणसव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०. १०५०२४. पात्रविचार गाथादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. १४, प्र.वि. प्रत्येक पत्र के स्वतंत्र पत्रांक हैं, अतः गिनकर पत्रांक दिए गए हैं., दे., (२४४१२, ६-९४३४). १. पे. नाम. पात्रविचार गाथा सह बालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण. पात्रविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: तुंबय दारु मट्टी; अंति: जइणं भणीयं जिणवरेहिं, गाथा-१. पात्रविचार गाथा-बालावबोध, हिं., गद्य, आदि: द्रव्यपात्र भावपात्र; अंतिः सदृश जघन्य पात्र जाणना. २. पे. नाम. स्वयं बुद्ध्यादि वेष विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. स्वयंबद्धादि वेष विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इह भरहे केवी जीवा; अंति: तेहनें देवताज वेष आपै. ३. पे. नाम. कुलकोटि विचार, पृ. ३अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: नारकीनी २५ लाख कुलको; अंति: ४. पे. नाम, नाथशब्द विवरण गाथा, पृ. ४अ, संपूर्ण. नाथ शब्द विवरण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: दाहोव समत ए हाइ छेयणं; अंति: (१)तम्हातं भावओ तित्थं, (२)लब्धस्य परिरक्षणं क्षेम, गाथा-४. ५. पे. नाम. समवसरणविस्तार गाथा सह बालावबोध, पृ. ५अ, संपूर्ण. समवसरणविस्तार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: बारस जोयण उसहो उसरणं; अंति: पासेणं पण कोस चउ वीरे, गाथा-१. समवसरणविस्तार गाथा-बालावबोध, रा., गद्य, आदि: श्रीऋषभदेवजी भगवान का; अंति: कोस प्रमाणे समवसरण हुवे. ६. पे. नाम. मुक्तासन गाथा सह बालावबोध, पृ. ५अ, संपूर्ण. २४ तीर्थंकर सिद्धिगमन आसनवर्णन गाथा, प्रा., पद्य, आदि: उसहो अरिट्ठनेमि वीरो; अंति: वाघारिय पाणिणो सव्वे, गाथा-१. २४ तीर्थंकर सिद्धिगमन आसनवर्णन गाथा-बालावबोध, रा., गद्य, आदि: श्रीऋषभदेवजी श्रीनेमिनाथ; अंति: आसण वैठे मुक्तिगमन किया. ७. पे. नाम. ७ गरणा गाथा सह अर्थ, पृ. ६अ, संपूर्ण. ७ गरणा गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सुद्धो सावय गेह वर; अंति: घी५ तिल्ल६ चुन्नायं७. ७ गरणा गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मीठापाणीनो १ खारापाणीनो २; अंति: आटारो ७ ए सात गलणा. ८. पे. नाम. श्रावक गृहे ९ चंद्रवा विधान, पृ. ६अ, संपूर्ण.. ___ मा.गु., गद्य, आदि: पाणीहारे १ उखल उपर; अंति: ९ एवं चंद्रूआ ९ राखै. ९.पे. नाम. ४ संयम विचार, पृ.७अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: प्राणसंयम षट्कायना; अंति: १०. पे. नाम. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, पृ. ७अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: धम्मो वत्थु सहावो खमादि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ४ धर्म दशलक्षण वर्णन तक लिखा है.) ११. पे. नाम. सिद्ध के ३१ गुण, पृ. ८अ, संपूर्ण. ३१ गुण सिद्ध के, मा.गु., गद्य, आदि: इगतीसं सिद्ध गुणा; अंति: श्रीसिद्धभगवंत थया. १२. पे. नाम. ८ सिद्धगुण गाथा, पृ. ८अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: नाणं च १ दंसणं चेव २; अंति: वीरीयं ८ होइ, गाथा-१. १३. पे. नाम. जीवोत्पत्ति विचार का अर्थ, पृ. ९अ, संपूर्ण. जीवोत्पत्ति विचार गाथा-अर्थ, मा.ग., गद्य, आदि: अंडीया कहता पंखी सर्प; अंति: उवाइया देवता नारकी. For Private and Personal Use Only Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४. पे. नाम. १७ संयमभेद नाम, पृ. १०अ, संपूर्ण. प्रा.,सं., गद्य, आदि: सत्तरसविहे संजमे; अंति: १७ प्रकार असंयम कहीयै. १०५०२५. स्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२३.५४१२, १०४२६-३२). स्नात्र पूजा, मा.गु., प+ग., आदि: पूर्वे बाजोट उपरि; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., 'इंद तत्थह वीस भुवणिंद' पाठ तक लिखा है.) १०५०२६. वसुधारा महामंत्र, संपूर्ण, वि. १८५४, कार्तिक कृष्ण, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. खारचिया, प्रले. मु. उत्तमहंस (गुरु मु. कमलहंस); गुपि. मु. कमलहंस (गुरु मु. अमृतहंस); मु. अमृतहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४१२, १७४२८-४०). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिह; अंति: (१)भाषितमभ्यनंदन्निति, (२)सौभाग्यं लाभश्च शुभ भवतु, (वि. मंत्र सहित.) १०५०२८. (#) मछोदर रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-४(१ से २,४ से ५)=६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२.५, १२४४०-४४). मत्स्योदर रास, मु. जयराज, मा.गु., पद्य, वि. १५५३, आदि: (-); अंति: हीए आणी भविक एकमना सूणो, गाथा-१७६, (पू.वि. गाथा-३१ अपूर्ण तक व गाथा-४८ अपूर्ण से ८४ अपूर्ण तक नहीं हैं.)। १०५०२९ (#) मत्स्योदर रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, २०४४६). मत्स्योदर रास, पंडित. ललितसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन चोवीसमाइ नमी; अंति: (अपठनीय). १०५०३०. (+) समवायांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९०७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १४९-१(१३३*)=१४८, ले.स्थल. कादरावाद, लिख. श्राव. आणंदरूप सेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:समवाय., समवा०., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं.७१३५, दे., (२४४१२, ६४३५-३८). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सुयमे आउसं तेणं भगवय; अंति: अज्झयणाति त्तिबेमि. अध्ययन-१०३, संपूर्ण. समवायांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: पांचमो गणधर सुधर्मास्वामि; अंति: तेवो तुम आगे कहुं छे, ग्रं. ५४५७, संपूर्ण. १०५०३२. २७ बोल, संपूर्ण, वि. १९१३, फाल्गुन कृष्ण, ६, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. पंडित. काशीराम बेचरदास पंड्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:बोल०., दे., (२३.५४११.५, १३४२५-२८). २७ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलै बोले गति चार; अंति: वचनसंजम कायासंजम. १०५०३३. (+) सुलशा चोढालीयो व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१२, २०४४६). १. पे. नाम. सुलशा चोढालीयो, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सूलसारो०. मु. हीराचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९पू, आदि: सासनपति श्रीवीरजिन सकल; अंति: हीराचंद इम भाषीयो, ढाल-४, गाथा-७५. २. पे. नाम. रात्रीभोजन चोढालीयो, पृ. ३अ-६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:रात्रिभोजन०. मु. हीराचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९०७, आदि: चरण कमल पारस प्रभु नीलमणि; अंति: हीराचंद कहे मिली जो सामके, ढाल-५, गाथा-१४७. ३. पे. नाम. पुण्यसेन चोढालीयो, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पुन्नसेणरा०. पुण्यसेन चोढालीयो-परिसह विषये, मु. हीराचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८९८, आदि: चरण कमल पारस प्रभु सुर नर; अंति: हीराचंद० दकड मोयथ, ढाल-४, गाथा-८६. ४. पे. नाम. शारदानंद सज्झाय, पृ. ८अ-९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सारदानंद०. सारदानंद०. सारदानंद०. मु. हीराचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९२३, आदि: सारदीयण मतिसारदा जिन मत; अंति: हीराचंद०दरसण बाहुगुरभूपनो, ढाल-५, गाथा-९६. ५. पे. नाम, नंदवीरोचन व्याख्यान कथा, पृ. ९आ-१४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नंदवीरोच०. नंदवीरोच०. For Private and Personal Use Only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नंदवीरोचन सज्झाय, मु. हीराचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९पू, आदि: वरतमान जिनवर नमु सिद्ध; अंति: ऋषहीरा० मिथ्या दुकृत घाट, ढाल-९, गाथा-१९३. ६. पे. नाम. शीलाधिकारे त्रैलोक्यसुंदरी कथा, पृ. १४अ १७आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : त्रेलोकसु०. त्रैलोक्यसुंदरी सज्झाय-शीलाधिकारे, मु. हीराचंद ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १८९०, आदि सुख संपति दाइक सदा लाइक; अंति: हीराचंदकहे० वीशलपुरशुभशाल, ढाल -५, गाथा-१७५. १०५०३६ (+) आचारांगसूत्र सह टवार्थ प्रथम श्रुतस्कंध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५७. प्र. वि. हुंडी आचारंग०.. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैवे. (२४४११.५, ७X३०-४४). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. आचारांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि सांभल्यु श्रीसुर्धस्वामी; अति: (-), प्रतिपूर्ण १०५०३७. (+) देवदत्ता पंचढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. श्रावि. रायकवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : सामा., संशोधित, जैवे. (२३.५४११, १२x२९-३४). देवदत्ता पंचडालियो, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२५, आदि नमु अरिहंत सिध आचार, अंति रीष जयमलजी कहए, ढाल ५. १०५०३८. (+) पंचमहाव्रतोपरि दृष्टांत, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२३x११.५, १३x४१). पंचमहाव्रत कथा, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीपेमहाविदेहक्षेत्र अति (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मृषावाद विषय धरणकुमार दृष्टांत कथा अपूर्ण तक लिखा है.) " १०५०३९ (+) श्रीपाल चरित्र प्रथम खंड, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २६ प्र. वि. हुंडी : प्रथमखंड, संशोधित, जैदे. (२३४११.५, ९x२६). , ३०९ श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि कल्पवेलि कवियण तणी अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०५०४० (+) सर्वतपपारण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र. वि. संशोधित., दे., (२२.५X११, १०X२४). तपपारणा विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग, आदि: पंचमी तप अष्टमि तप; अंति: करे पीछे याचक को दान देवे.. १०५०४५. (+) संघयणी प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, ले. स्थल. प्रांणपुर नगर, प्रले. मु. नित्यसागर, पठ. श्राव. रामजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: सघेणसूत्र. श्रीआदिनाथ प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२४x१२, १३x३२). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य वि. १२वी आदि नमिठं अरिहंताई ठिह; अति: नंदो जा वीर जिण तित्थ, . गाथा - ३९२. १०५०४६. (+०) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. १०, कुल पे १४, ले. स्थल, पाली, प्रले. मु. जेवंतविजय; पठ. श्रावि. जेठीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४x११.५, ११x२५-२९). १. पे नाम प्रभाति स्तवन, पू. १अ संपूर्ण पार्श्वजिन पद- अवंतीमंडन, पुहिं., पद्य, आदि पंथीडा पंथ चलेगो; अंतिः अब तेरो ही आधार, गाथा- ६. २. पे नाम. शत्रुंजय स्तवन, पू. १अ १आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि जात्रा नवाणुं करी; अंतिः पद्म कहे भव तरी, गाथा-८. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ संपूर्ण. आ. विजयधर्मसूरि, मा.गु., पद्य, आदि प्यारा पासजीनी सेवा क्युं अति विजयधर्मसूरि० सुख रे करे, गाथा ६. ४. पे. नाम. सुधर्मास्वामी गहुंली, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only मु. हर्षकल्लोल, मा.गु, पद्य, आदि वीर पटोधर सोभता सही अति: सुमतिविजय० चढतदि वाजे रे, गाथा-७, ५. पे. नाम. नवलखा पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन-नवलखा, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगनायक जगदीसरू रे जिनजी; अंति: नित रूपविजय चित ध्याय, गाथा-९. ६. पे. नाम. वीसस्थानक स्वाध्याय, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुअदेवी समरी कहं; अंति: जिनपद० वीसथानक आराधिई, गाथा-१४. ७. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तर भेद जिनपूजा; अंति: मानविजयकहे० देव सिद्धाईजी, गाथा-४. ८. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. म. पद्मसागर, मा.ग., पद्य, आदि: नेमिजिणवर बावीसमो; अंति: पद्मसागर० दिन दोलत थाय रे. गाथा-१२. ९. पे. नाम. शांतिजिन थुइ, पृ. ६अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: वगडी माडण सतजीणंद; अंति: अचलानंद वगडी नर हुवा आणंद, गाथा-१. १०. पे. नाम. सिद्धाचलजिन स्तवन, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण. श@जयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कर जोडी कहें कामिनी; अंति: सेवक जीन धरे ध्यान, गाथा-१६. ११. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. ७आ-९अ, संपूर्ण.. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माय नमुं सिरनाम; अंति: गुणसागर० सुख संपत पावे, गाथा-२१. १२. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. म. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी वीरजिणंदने वंदीयो; अंति: रंगविजय० पाय सेव हो, गाथा-५. १३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजी चालो तो तुमनै; अंति: रूपविजय जयकार रे, गाथा-७. १४. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: धरमजिणेसर गाउं रंगस्; अंति: सांभलो ए सेवक अरदास, गाथा-८. १०५०४७. (+) दयाछत्रीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४११.५, १०४२३). दयाछत्रीसी, मु. चिदानंदजी, पुहिं., पद्य, वि. १९०५, आदि: चरणकमल गुरूदेव के; अंति: चिदानंद० फलि मन आश, गाथा-३६. १०५०४९. होलिकापर्व कथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४११.५, ५४३३-३६). होलिकापर्व कथा, सं., पद्य, आदि: श्रीऋषभस्वामिनं मन्ये ऋषि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४५ तक है.) होलिकापर्व कथा-टबार्थ, पुहि., गद्य, आदि: अंति: (-). १०५०५१ (+) विवाहपटल व गोधूलि कालमान श्लोक सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. २, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२३४११.५,११४२७). १.पे. नाम. विवाहपटल, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण. __सं., पद्य, आदि: धनाढ्य माघे सुभगा च; अंति: गुरुर्लग्ने विपोहिती, श्लोक-९७. २.पे. नाम. गोधूलि कालमान श्लोक सह अर्थ, पृ. ८आ, संपूर्ण. गोधूलि कालमान श्लोक, सं., पद्य, आदि: अनागते सूर्यसुते च वारे; अंति: शेषेषु वारे रजनी मुखे च, श्लोक-१. गोधूलि कालमान श्लोक-अर्थ, मा.गु., पद्य, आदि: शनिवारे सूर्य वीण अथम्यै; अंति: मुख कही जै तठे गोधलुक. १०५०५२. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११.५, ९४३०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. For Private and Personal Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ३११ १०५०५३. (+) सिंदूर प्रकरण व मासदशा विचार, संपूर्ण, वि. १८९५, आश्विन शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. २, प्रले. मु. चंद्रभाण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५४११.५, ११४२५). १.पे. नाम, सिंदूर प्रकरण, पृ. १अ-१५आ, संपूर्ण. सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोम० मार्ग समाचरेत्, श्लोक-१०१. २. पे. नाम. मासदशा विचार, पृ. १५आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: रविकां२० शां सुख नही पावै; अंति: शुक्र ७० बहु सुख पावे, (वि. अंत में नाडी विचार संबंधी श्लोक दिया है.) १०५०५५ (+) स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-६(१,३ से ७)=६, कुल पे. १७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५४१२, १६४३५-३८). १. पे. नाम. सोय विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: उपश्रुतीन नमस्कृत्यं; अंति: पछाडी तथा बारणे जाईजे. २. पे. नाम. १८ दोष विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. १८ दोष विचार-गर्भपालन विषे, मा.गु., गद्य, आदि: जे गर्भवंती दिवसे घण; अंति: इसी वीध गर्भरी पालना करी. ३. पे. नाम, दुषमकालरी सज्झाय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. पंचमआरा सज्झाय, म. जिनहंस, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहै गोतम सणौ; अंति: जिनहंस० सिज्झाय रसालो रे. गाथा-२१. ४. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण.. सीमंधरजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: तुम छो परम दयाल रे; अंति: लालचंद कहे० एह अरदास रे, गाथा-७. ५. पे. नाम. शील सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. शीयलव्रत सज्झाय, मु. उत्तमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८४४, आदि: श्रीअरिहंत नित सिमरियै मन; अंति: कथीयो उत्तमचंद रे, गाथा-२०. ६.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १०अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: स्या माटे साहिब साह्यो न; अंति: उदैरत्न कहै० लोभनो लाछो, गाथा-५. ७. पे. नाम. युगमंधरजिन स्तवन, पृ. १०अ, संपूर्ण. मु. जिनसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजुगमंधर भेटवा रे; अंति: जिनसागर अविचल राज, गाथा-६. ८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-कर्म, पृ. १०अ, संपूर्ण.. मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: सुख दुख सिा पामीये; अंति: राम कहे० सदा सुखकार रे, गाथा-८. ९. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १०आ, संपूर्ण. आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: समरू सुखदायक मनसुद्ध; अंति: श्रीजिनचंद्रनी वाणी, गाथा-४. १०.पे. नाम. नवपद तपविधि, पृ. १०आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं नमो अरिहंतस; अंति: प्रदष्यणा ५० लोगस १५. ११. पे. नाम, सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. मु. रिख महंत, मा.गु., पद्य, आदि: हां ऐ अरिहंत पद पहिल; अंति: रिख० जिन तवन कहंत, गाथा-११. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. राजसमुद्र, मा.गु., पद्य, आदि: नीलकमल दल सांवलो रे लाल; अंति: पाम्यो अविचल राज, गाथा-८. १३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३१२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकावंध, आ, जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि ट्रेंद्रे कि धपमप अंति: मनीशं दिशतु शासन देवता, श्लोक-४. १४. पे नाम, विष्णु स्तुति संग्रह, पू. १२अ, संपूर्ण. विष्णु स्तुति संग्रह- गूढार्थ, सं., पद्य, आदि पायाद्धः करणो रिणो रिण अंतिः रमा रम रमा रामा रमा सारमा. १५. पे नाम. १२ व्रत आवक, पू. १२अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२ व्रत नाम, मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातपात् १ मृषावाद २; अंति: पोसह ११ अतित् संविभाग १२. १६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १२अ, संपूर्ण. क. गद, मा.गु., पद्म, आदि नमै तुरी बहु तेज नमै जल; अति (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) १७. पे नाम, रामभक्ति पद-शवरी, पू. १२-१२आ, संपूर्ण. रामभक्ति पद, मीरा, मा.गु., पद्य, आदि कोइ कीण ही बार माणस; अंति: मीरा० गोकल की डहीलणी. १०५०५६. कर्मविपाक कर्मग्रंथ बंधक यंत्रक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र. वि. हुंडी : उदययंत्रम्., उदीरणायंत्र. सत्तायंत्र., दे., (२३.५x११.५, ५x१०). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ १-यंत्र, मा.गु, को, आदि (-); अति: (-). १०५०५७ (+) नवतत्त्वसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ९ प्रले. मु. पेमजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे. (१३.५x१२, ४४२९). " नवतत्त्व प्रकरण, आ. मणिरत्नसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवा२ पुण्णं ३; अंति: लिहिओ मणिरयणसूरिहिं, गाथा-५१, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-वार्थ, मा.गु., गद्य, आदि जीवनुं स्वरूप ते जीव अति (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. गाथा - २६ तक टबार्थ लिखा है.) १०५०६३. सूरिमंत्र स्तोत्रद्वय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३X१२, १४४४१). १. पे. नाम. सूरिमंत्र स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयश्रियं शासनमार्हतं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण तक है.) १०५०६४. (+) गौतम रास व औपदेशिक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९५६, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२३.५४१०.५, ११४२५). ९. पे. नाम गौतम रास, पृ. १अ ६अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि विरजिणेसर चरण कमल; अंति: विनयभद्रसूरी० माला मन सम, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयश्रियं श्रीजिनशासनस्य; अंति: सर्वसुखश्चियः, श्लोक ८. २. पे. नाम. सूरिमंत्र स्तोत्र, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा - ५१. २. पे. नाम औपदेशिक श्लोक, पृ. ६आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि : आयुवी संग्रह छीद्रं मंत्र; अंति: वीद्या पंच लक्ष्यणं, गाथा-२. १०५०६८. (+) देवकी व औपदेशिक सज्झाय व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ३, וי प्र. वि. संशोधित प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. जै. (२२४११.५ १२४२८). " १. पे. नाम. देवकी सज्झाय, पृ. १अ ६अ, संपूर्ण, प्रले. मु. फतेविजय, प्र.ले.पु. सामान्य मु. लावण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: रठ नेमी नाम हुवा लखण सरब; अंति: जनमो तेहवो नाम गजसुखमाल, ढाल-९, गाथा - ९६. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६अ -६आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-स्वार्थ, मु. खेम, पुहिं., पद्य, आदि: स्वारथ का सब को सगा बिना; अंति: खेमसी सांभलो एक धर्म सषाइ, गाथा ६. For Private and Personal Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ३१३ ३.पे. नाम, औपदेशिक पद-दयापालन, पृ. ६आ, संपूर्ण. मु. खेम, पुहिं., पद्य, आदि: गृहबास तजी बनवास वसो; अंति: खेम कहे० बीन अंत दिवालो, पद-१. १०५०६९ (+) पंचसंधि व्याकरण व सवासै सीख, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११.५, १४४३२). १. पे. नाम, पंचसंधि व्याकरण, पृ. १आ-११अ, संपूर्ण. पंचसंधिप्रक्रिया, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: मयूरभ्रमरादिषु. २.पे. नाम. सवासै सीख, पृ. ११अ-१३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सवैया, म. धर्मवर्धन, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदिः श्रीसदगुरु उपदेश; अंति: श्रीधर्मसी उवज्झाय, गाथा-३६. १०५०७० (+) चेलणाराणीरी तेरै ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. हुंडी:चेलणारा., चेलणाढा., चेलणारी०., संशोधित., दे., (२३४१२, ११४२७). चेलणासती चौपाई, म. दयाचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसमा महावीरजी; अंति: जनम मरण मिटासी, ढाल-१३. १०५०७१, ४ मंगल रास-मंगल ३ से ४, संपूर्ण, वि. १८८१, वैशाख शुक्ल, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. बांभणग्राम, प्रले. मु. उमेदचंद ऋषि (लोंकागच्छ); पठ. मु. हर्षचंद ऋषि (लोंकागच्छ); अन्य. सा. पन्नाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में "राजाबाईजीनो मंगल सीरी आरजा पन्नाजी माराज की चेलीने लीखते" ऐसा लिखा है., जैदे., (२४४१२, १४४२८). ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: पांमीये सूकृत श्रीकार के, प्रतिपूर्ण. १०५०७२ (+) दंडक नाम २९ द्वार, संपूर्ण, वि. १८७२, वैशाख कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. २२, ले.स्थल. भावनगर, प्रले. ऋ. जेतसी नानजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:डंडकबोल., संशोधित., जैदे., (२४४१२, ९४२५). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: जीव अनंतगुणाधिका. १०५०७३. (+) भृगपुरोहित चौढालिया, संपूर्ण, वि. १९२३, आषाढ़ शुक्ल, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. खीवसर, प्रले. मु. मूलचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:भगुप्रोहि., भगुपीरो०, भगुपिरोय., संशोधित., दे., (२२.५४११.५, ११४३२). भगपरोहित चौढालिया, ऋ. जेमल, रा., पद्य, आदि: सासण नायक सिमरियै; अंति: जेमल कहे० दक्कडं मझ होय, ढाल-३. १०५०७५ (#) अष्टभय निर्वाण व शेजय स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१२,१०४२४-२८). १.पे. नाम. अष्टभय निर्वाण, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दै सरस्वती; अंति: धर्मसीह ध्यानह धरण, गाथा-२८. २. पे. नाम. शेव्रुजय स्तवन, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. शQजयतीर्थ स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सहियां मोरी चालो; अंति: अरिहंत श्रीआदिनाथ है, गाथा-१३. १०५०७६. (+#) पार्श्वनाथजीरो स्तवन, संपूर्ण, वि. १८२५, चैत्र कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११.५, १४४२२-३६). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: भावधरी भजना करुं आपे; अंति: इम नेमविजय जयकारे, ढाल-१५, गाथा-१२४. १०५०७७. (+) धम्मोमंगल सज्झायादि संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. १०, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२३४१२, ४४२६). १. पे. नाम, धम्मोमंगल सज्झाय सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रमपुष्पिका अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: साहुणो त्तिबेमि, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३१४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दशवेकालिकसूत्र - हिस्सा द्रुमपुष्पिका अध्ययन का टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि धर्म्म केवलीरो भाष्यो; अतिः सहिताइ ति कहु साधु रा गुण. २. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र सह टबार्थ, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि णमो अरिहंताणं णमो अंति पढमं हवई मंगलम्, पद- ९. नमस्कार महामंत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: माहरो नमस्कार होज्यो; अंति: मंगलीक छै संपतनो दातार छै. ३. पे. नाम, उवसग्गहर स्तोत्र सह टवार्थ, पृ. २अ ३अ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि : उवसग्गहरं पासं पासं; अंतिः भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि : उपसर्गनो हरणहार; अंति: सोलैकला निर्मल सौम्य छै. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन सह टवार्थ, पृ. ३-४आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास संखेसरो मन; अंति: उदयरत्न० आप तूठा, गाथा-७. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि मनसुद्ध करके श्रीसंखेश्वर अंतिः तूष्टमान हुवा. ५. पे. नाम. गौतमस्वामी छंद सह टबार्थ, पृ. ४आ-६आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरोसीस; अंति: तूठां संपदांनी कोड, गाथा - ९. गौतमस्वामी छंद-वार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: महावीरजीरा सीस श्रीगोतम; अंति: तूठां कोड संपत दाता छे. ६. पे. नाम गौतमस्वामी स्तुति सह टबार्थ, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तुति, मा.गु. सं., पद्य, आदि अंगुठे ईमृत वसे लबघ तणो अति घर कुसल पग पग लछि लहंत, गाथा-५, गौतमस्वामी स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीगोतमस्वामीजी रे; अंति: लीछमी मिले सदा सुख हुवै. ७. पे. नाम. २४ जिन नाम पू. ७अ-७आ, संपूर्ण, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीरिषभदेवजी श्री अजितनाथ; अंति: त्रिकाल वंनणा नमोस्तु, अंक-२४. ८. पे. नाम. १६ सती स्तुति, पृ. ७आ, संपूर्ण, सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी चंदनबालिका; अंति: कुर्वंतु वो मंगलं, श्लोक - १. ९. पे. नाम. मांगलिक श्लोक सह टबार्थ, पृ. ७आ, संपूर्ण, वि. १९४२, श्रावण कृष्ण, ९, ले. स्थल. खीवसर, प्रले. मु. खीवराज, प्र.ले.पु. सामान्य. मांगलिक श्लोक, सं., पद्य, आदि: सर्वमंगल मांगल्यं; अंति: जैनं जयती साधनं, श्लोक - १. मांगलिक श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सर्व मंगलीका मध्ये पहिलो; अंति: सदैव ज्यैत विजै थाज्यो. १०. पे नाम. चैत्यवंदनसूत्र विधि सह टबार्थ, पृ. ८अ - ९आ, संपूर्ण. चैत्यवंदनसूत्र-विधि, संबद्ध, प्रा. मा. गु. सं. पण, आदि नमोत्थुणं अरिहंताणं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक "" " द्वारा अपूर्ण., नमोत् सूत्र तक लिखा है.) चैत्यवंदनसूत्र विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सोधर्मेंद्र श्रीभगवंतने अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०५०७८ (+) कालिकाचार्य कथा की चयनित गाथा सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १९१५, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, १०, रविवार, मध्यम, पृ. १६, ले. स्थल. खीवसर, प्रले. मु. मूलचंद, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : कालकाचार्य., पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले. लो. (७१०) यासं लिखितं राम, दे. (२३४१२, ११४३२). "" कालिकाचार्य कथा - चयन, आ. भावदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि अत्थित्थ भरहेवासे कमला; अंति: धर्मनिरतः श्रीसंघभट्टारकः. कालिकाचार्य कथा-चयन का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: इणहीज भरतक्षेत्रे साक्षात; अंति: कल्यांण परंपरा विस्तारो १०५०७९. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २१.५X१२, १२x२५). महावीरजिन स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि बंदु वीरजीणेसर राया, अति हरष हरष गुण गाया रे, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०५०८० सिंदूरप्रकर सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-४(१ से ४)=७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:सिंदूरप्रकर., सिंदूरप्र०टी., त्रिपाठ., जैदे., (२२४१२, १५-१८४४२-४८). सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१३ अपूर्ण से ४० तक है.) सिंदरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदिः (-); अंति: (-). १०५०८२ (+) जोतिकसार पंचांग विधि व आगामीवर्ष मासतिथिसक्रांति गणनाविचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र.वि. हंडी: जोत्कसार., जोतिष०., जोतक०., पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२२.५४१२, ११४२८). १. पे. नाम. जोतिकसार पंचांग विधि, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण. पंचांगविधि दोहा, म. मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: गवरीनंद आनंद करे प्रणम्; अंति: मेघराज० सुगम भांति सुखकाज, गाथा-५७. २. पे. नाम. आगामीवर्ष मासतिथिसक्रांति गणनाविचार, पृ. ५अ, संपूर्ण. ज्योतिष*, पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: तिथमे ११ वारमे १ घडीमे १५; अंति: चैत छोड वैशाषथी गिणीजै. १०५०८३. (#) अंजनासुंदरी रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१२, १५४२८-३२). ____ अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्य, आदि: पलीजी केवली पाय नमु भवदुख; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६० अपूर्ण तक है.) १०५०८४. (#) पाक्षिकसूत्र व क्षामणकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५-३(१ से ३)=१२, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९.५४१२, १०-१५४२४-२८). १.पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. ४अ-१५आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: सयं जेसिं सुअसायरे सत्ति, (पू.वि. सूत्र-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. क्षामणकसूत्र, पृ. १५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. __ हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो० पिय; अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-२ अपूर्ण तक है.) १०५०९९. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८३०, श्रावण शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. शिवपुरी, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्., जैदे., (२२४१२.५, १०x१७). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. १०५१००. (#) चतुर्विंशतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८१५, अढारपनरोतरे, कार्तिक शुक्ल, ३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १४-८(१ से ३,५,८ से ९,११ से १२)-६, ले.स्थल. खोडनगर, प्रले. मु. हरिसागर (गुरु मु. आगमसागर); पठ. मु. खेमराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२२.५४१२, १७४२१). स्तवनचौवीसी, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: उत्तम एहवी वाणी रे, स्तवन-२४, (पू.वि. स्तवन-३ गाथा-७ अपूर्ण से स्तवन-६ गाथा-५ तक, स्तवन-११ गाथा-३ अपूर्ण से स्तवन-१६ गाथा-२ तक, स्तवन-१८ गाथा-१ अपूर्ण से स्तवन-२० गाथा-६ तक व स्तवन-२२ गाथा-६ अपूर्ण से है.) १०५१०२ (+) जीवभेद विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२१.५४१२, १२४२७). जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सातलाख पृथ्वीकाय सातलाख; अंति: (-), (पू.वि. पापस्थान वर्णन अपूर्ण तक है.) १०५१०४. (+#) त्रिभुवनशास्वतजिनबिंब चैत्यपरिपाटी, आराधना वार्ता व जीव खामणा कुलक, संपूर्ण, वि. १८४३, माघ कृष्ण, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. ५६, कुल पे. ३, ले.स्थल. सूर्यबिंदर, प्रले. मु. खीमविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर मिट गए हैं, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , जैदे., (२५.५४११.५, ११४३८-४२). १. पे. नाम, त्रिभुवनशास्वतजिनबिंब चैत्यपरिपाटी, पृ. १आ-६अ, संपूर्ण. __ आराधना, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलुं त्रिकाल अतीत; अंति: सासय ठाणं सुह तिहाणं, ग्रं. २२७. २. पे. नाम, आराधना वार्ता, पृ. ६अ-५४आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं जय जय; अंति: लहइ जिउ सासयं ठाणं. For Private and Personal Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. खामणा कुलक, पृ. ५४आ-५६आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जो कोवि मए जीवो चउगइ; अंति: कम्मखयकारणं होउ, गाथा-३८. १०५१०५ (+) श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय व सकलार्हत् स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २, प्रले. संकर भोजक; पठ. श्रावि. कंकुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२, १२४२७). १. पे. नाम. श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, पृ. १अ-१०आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:अतिचार. संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. २.पे. नाम. सकलार्हत् स्तोत्र, पृ. १०आ-१२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सकलार्हत्. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: श्रीवीरभद्रं दिस, श्लोक-३१. १०५१०६. (+#) गौतम विचार, संपूर्ण, वि. १८९३, वैशाख शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. किसनगढ, प्रले. सा. पनाजी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:गोतमवाद., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १९४३४-४०). गणधरवाद, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभगवंत महावीरदेव केवल; अंति: केवली४४ वरस८० सरव आउषो. १०५१०७. (+#) कालिकाचार्य कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २०-२(१ से २)=१८,प्र.वि. हंडी:कालिका०. अति जीर्ण प्रत., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, १३४२८-३०). कालिकाचार्य कथा *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०५१०९ (+#) दीपालिका कल्प सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २९-१(९)=२८, ले.स्थल. वेरावल, प्रले. य. लालचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, ७४३७). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: श्रीवर्द्धमानमांगल्य; अंति: चंद्रार्कजगत्त्रये, श्लोक-४३४, ग्रं. १५००, (वि. १८५१, पौष कृष्ण, १०, रविवार, पू.वि. श्लोक-२१ से श्लोक-३८ अपूर्ण तक नहीं है.) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्वामी; अंति: सूर्य लगे त्रिण जगमांहि, (वि. १८५१, पौष कृष्ण, १, गुरुवार) १०५११२. (+) नवपद लघु पूजा, संपूर्ण, वि. १८५८, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, रविवार, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४१२, १३४३३-३७). नवपद लघु पूजा, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: चतरन्वितेभ्यो नमः, ढाल-९. १०५११३. (+#) निरियावलिकादि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७०, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, मंगलवार, मध्यम, पृ. ८९, कुल पे. ५, ले.स्थल. समुद्रडी, प्रले. मु. मानविजय (गुरु पं. मनोहरविजयजी पंडित); गुपि.पं. मनोहरविजयजी पंडित (गुरु ग. विवेकविजयजी, तपागच्छ); ग. विवेकविजयजी (तपागच्छ); राज्ये गच्छाधिपति जिनेंद्रसूरि (तपागच्छ); राज्यकालरा. इंद्रकरणजी करणोत; अन्य. श्राव. भारमल्ल; श्राव. भीमराज; श्राव. वीरभाण; श्राव. पीरदान; श्राव. त्रिकमचंद, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. २५१०, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२, ६४३०-३४). १. पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-३४आ, संपूर्ण. कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समएणं०; अंति: संपत्तेणं निरियावलियाणं, अध्ययन-१०. कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: कामी तेणे निरयावलिकानौ. २. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ३४आ-३८आ, संपूर्ण. कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंति: माहाविदेहे सिज्झिहितो, अध्ययन-१०. कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जौ हे पूज्य श्रमण मोक्षना; अंति: क्षेत्र माहै सीझस्यै. ३. पे. नाम, पुष्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ३९अ-७५अ, संपूर्ण. पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संगहणीए, अध्ययन-१०. For Private and Personal Use Only Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ३१७ पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जौ हे पूज्य श्रमण भगवंत; अंति: विषै जिमगाथाई कह्या तिम. ४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ७५अ, संपूर्ण. पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं भगवता; अंति: वासे सिज्झिहिंति, अध्ययन-१०. पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जद्यपि जौ हे पूज्य श्रमण; अंति: स्ववीनै महविदेहे सीझस्यै. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टबार्थ, पृ. ८०अ-८९आ, संपूर्ण. वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते० पंचमस्स; अंति: मइरित्त एक्कारससु वि, अध्ययन-१२. वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिवा रे भगवंत निखेवौ; अंति: अधिकौ उछौ इग्यारमौ नही. १०५११४. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८७-१८९७, श्रेष्ठ, पृ. २५, कुल पे. ४०, जैदे., (२४.५४१२, १८४५०-५८). १.पे. नाम. तेवीस पदवीविचार स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २३ पदवी स्तवन, आ. उदयप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर पय प्रणमनै; अंति: उदयपभ०धरमलाभ घणौ थयौ, गाथा-२३. २.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन-अरिहंत बारगण गर्भित, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ___ मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: प्रथम चरण पंच इष्टनै; अंति: हुवै ग्यान प्रकास ए, गाथा-१६. ३. पे. नाम. छिन्नजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, वि. १८८७, आषाढ़ शुक्ल, १०, ले.स्थल. कलकत्ताबिंदर. ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसरि, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: वरतमान चोवीसी वंदं मन; अंतिः सदा जिणचंदसुर ए, ढाल-५, गाथा-२३. ४. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन-दशत्रिकगर्भित, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण, वि. १८८८, माघ कृष्ण, ५, रविवार, ले.स्थल. फरक्काबाद, प्रले. पं. महिमाभक्ति (गुरु मु. गुणानंद, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: सद्गुरु चरण नमी करी; अंति: लाल० तवन कीधो चितधरी, ढाल-४. ५. पे. नाम. वीस स्थानकवृद्धि स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण, वि. १८९०, फाल्गुन कृष्ण, १, ले.स्थल. बीकानेर. २० स्थानकतप स्तवन, मु. वखतचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: वीशस्थानक तप सेवीयै; अंति: भावै० वसतो मुनिवरो, ढाल-३, गाथा-१९. ६. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-आगमनामसंख्यागर्भित, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-४५ आगमनामसंख्यागर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तूं ऊठै परभात एहनी; अंति: कीधौ दुरस पुस्तक देख ए, गाथा-२८. ७. पे. नाम, आलोयणा स्तवन-वृद्ध, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. म. ध्रमसीह, मा.गु., पद्य, वि. १८५४, आदि: एह धन सासन वीर जिनवर; अंति: कीधो चौपने फलवधिपुरै, गाथा-३०. ८. पे. नाम. गुणस्थानक विवरण पार्श्वजिननाम गर्भित स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. पार्श्वजिन स्तव-जेसलमेरमंडन चौदगुणस्थानकविचारगर्भित, मु. राजसमुद्र, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: नमिय सिरपासजिणनाम पडिबोहग; अंति: दिणयर सयलअतिसयसंजुओ, ढाल-३, गाथा-१९. ९.पे. नाम. पोसहविधि स्तवन, पृ.७अ-८अ, संपूर्ण. पौषधविधि स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: जेसलमेर नगर भलो जिहा; अंति: साउ लेहो समयसुंदर भणै सीस, ढाल-५, गाथा-३८. १०. पे. नाम. अठोत्तरसो गुण नवकारवाली स्तवन, पृ. ८अ-९अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र चौढालिया, उपा. राजसोम पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: नवकरवाली मणीयडा अठोत्तरसो; अंति: पाठक राजसोम भणइ ए, ढाल-४. ११. पे. नाम, निगोदविचार सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. पं. रामविजय पाठक, मा.ग., पद्य, आदि: केवलनांण दंसणधर धीर जय जय; अंति: विजैवंत वीरजिण गुण गाव ए, गाथा-२८. For Private and Personal Use Only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२. पे. नाम, आलोयन स्तवन, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-वृद्ध, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: करजोडी इम वीनवं; अंति: राजसुमुद्र० सुभ दिने, गाथा-२७. १३. पे. नाम. शेजय स्तवन, पृ.१०अ-११अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन तसु नरनारि पनोता जे; अंति: विमुक्ति लखमी ते वरै, गाथा-३७. १४. पे. नाम. सेनंजयमंडन आदिजिनवृद्ध स्तवन, पृ. ११अ-१२अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी वीनवू जी सुंण; अंति: वाचक समयसुंदर इम भणे, गाथा-३२. १५. पे. नाम. गौडीपार्श्वनाथवद्ध स्तवन, प. १२अ-१३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिनवृद्ध स्तवन-गौडीजी, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८७३, आदि: श्रीसरसति समरी करी प्रणमी; अंति: लाभसूरिंद० द्यौ सुविजास ए, ढाल-५, गाथा-५८. १६. पे. नाम. थंभण पार्श्वनाथवृद्ध स्तवन, पृ. १३अ-१४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-स्थंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु प्रणमुरे पास; अंति: आणी कुसललाभ पयंपए, ढाल-५, गाथा-१८. १७. पे. नाम. शीतलनाथ स्तवन, पृ. १५अ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन-अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: मोरा साहिब हो श्री शीतल; अंति: समयसुंदर० जनमन मोह ए, गाथा-१५. १८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजीपुरमंडन, मु. नैणसी, मा.गु., पद्य, आदि: गौडीपुरवरमंडण गांऊं पास; अंति: सहाई नैणसीह सुखदाईजी, गाथा-११. १९. पे. नाम. नेमिनाथ स्तवन, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. माणिकसागर, मा.गु., पद्य, आदि: राजुलराणी हो नेमजी सुं; अंति: वरभावसुं वंदे वारोवार, गाथा-११. २०. पे. नाम. आदिजिनविनती स्तवन, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण, ले.स्थल. कलकत्ताबिंदर. आदिजिन स्तवन, उपा. सहजकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: विमलगिरि सिखर सिराज हर; अंति: पाठक सहजकीरति इम कहे, गाथा-१७. २१. पे. नाम. ऋषभदेव प्रथमजिन बृहत् स्तवन, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, म. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवननायक ऋषभजिन; अंति: अरज श्रीध्रमसी तणी, गाथा-१६. २२. पे. नाम. अर्बुदाचलतीर्थ स्तवन, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: आबुगिरंद सुहामणौ; अंति: रूपचंद तीरथना गुण गाव ए, गाथा-२३. २३. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. १८अ, संपूर्ण. मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: श्रीसिद्धाचल भेटीय इण; अंति: अमर प्रभुना गुण भणै, ढाल-५, गाथा-१५. २४. पे. नाम. सिद्धाचलमंडन ऋषभजिनवृद्ध स्तवन, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८७१, आदि: सुगुण सहेजा सांभलो; अंति: जिनभक्तिसुरिंद कि, गाथा-१२. २५. पे. नाम. नवपदवृद्ध स्तवन, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ सिद्धचक्र स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरमणि सम सहु मंत्र; अंतिः सदा अनुपम जस लीजे रे, गाथा-१३. २६. पे. नाम. सिद्धचक्रस्थित नवपदमहिमा स्तवन, पृ. १९अ, संपूर्ण. सिद्धचक्रमहिमा स्तवन, मु. कनककीर्तिशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नवपदनो ध्यान धरीजै सिद्ध; अंति: कोइ न तोले हो, गाथा-१५. २७. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १९अ-२०अ, संपूर्ण. __ शांतिजिन स्तवन, वा. हर्षधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: सूरज ऊगमतै नमु संती; अंति: हर्षधर्म इम वीनवै, गाथा-२३. २८. पे. नाम. चतुर्विंशतिदंडकविचारगर्भित आदिजिनवृद्ध स्तवन, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण.. आदिजिन स्तवन-२४ दंडक गतिआगतिविचारगर्भित, ग. धर्मसंदर, मा.ग., पद्य, आदि: आदीसर हो सोवनकाय तेजइ रवि; अंति: तुम्ह दरसण सुरतरु तोलै, ढाल-२, गाथा-२६. २९. पे. नाम. शत्रुजयवृद्ध स्तवन, पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, म. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: तीरथ सेव॒जैजी रहिवा मन; अंति: जुहास्याजी तिण आतम सार्या, गाथा-१४. ३०. पे. नाम. चैत्यवंदनपरिपाटी स्तवन, पृ. २१अ, संपूर्ण. चैत्यपरिपाटी स्तवन-बीकानेर आठ जिनालय, मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: चैत्यप्रवाडै चौवीसटै; अंति: ध्रमसी कहे सांज सवेर, गाथा-११. ३१. पे. नाम. आबुतीर्थमहिमा स्तवन, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण, वि. १८९१, ज्येष्ठ शुक्ल, ३. अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जात्रीडा भाई आबूडानी; अंति: आवै रूपचंद बोले रे, गाथा-२४. ३२. पे. नाम. सिद्धाचलतीर्थ स्तवन, पृ. २१आ-२२अ, संपूर्ण. शजयतीर्थ स्तवन, मु. विनयचंद कवि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक सहु कोहू आ आगलि; अंति: दिन विनयचंद कवि कीधी रे, गाथा-१२. ३३. पे. नाम. मल्लिनाथ स्तवन, पृ. २२अ-२३अ, संपूर्ण. मल्लिजिन स्तवन, मु. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: नवपद समरी मन शुद्ध; अंति: कुशललाभे धरमराग मनमें धरी, ढाल-५, गाथा-४१. ३४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २३अ, संपूर्ण. म. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सनेही साजन; अंति: जिनचंद० प्रेम अभंग, गाथा-१०. ३५. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, पृ. २३आ, संपूर्ण. जिनबिंबपूजा स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भविका श्रीजिनबिंब; अंतिः श्रीजिनचंद्र सदाई रे, गाथा-११. ३६. पे. नाम, ऋषभजिन स्तवन, पृ. २३आ-२४अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, म. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: ऋषभ जिनेसर त्रिभुवन; अंति: लालचंद० मझारो रे, गाथा-११. ३७. पे. नाम. अंतरीक पार्श्वप्रभु स्तवन, पृ. २४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, ग. रंगकलश वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: अंतरीक प्रभु पासजी; अंति: दुख दर्द हो जिणंद, गाथा-१३. ३८. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण. आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: सासननायक सामी तूं तो साचो; अंति: भले भावै भेट्या सुजगीस रे, गाथा-११. ३९. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. २४आ, संपूर्ण, वि. १८९७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, गुरुवार, ले.स्थल. वीकानेर. शत्रुजयतीर्थ स्तवन-९९ यात्रागर्भित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचलमंडण; अंति: रे इम विमलाचल गुण गाय, गाथा-१५. For Private and Personal Use Only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४०. पे. नाम. गुणस्थान प्रकृतिबंध स्तवन, पृ. २५अ - २५आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. "" पार्श्वजिन स्तव जेसलमेरमंडन चौदगुणस्थानकविचारगर्भित, मु. राजसमुद्र, प्रा. मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: नमिय सिरि पास जिण; अंति: दिणयर सयल अतिसयसंजुओ, ढाल -३, गाथा-१९. १०५११५ (+) नेमनाथ चरित्र, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र. वि. हुंडी नेमचरित्र ० संशोधित. दे. (२५x१२, १६x४०). नेमिजिन चरित्र, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: संखराजाने जसोमती रांणी; अंति: जयमलजी० श्रीम तेतु, दाल- ४५. "" १०५११६. (+) भावनाकुलक का बालावबोध, संपूर्ण वि. १८७० माघ, २, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल, खंभातविंदर, प्रले. पं. रत्नचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे. (२५.५x१२, ११४३९-४२). - १ भावना कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम ए आत्मा, अंतिः घणा जीव निस्तार पार थया. १०५११७. वैदर्भी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ५. ले. स्थल, पाली, प्र. वि. हुंडी : वेदरवीनी, जैदे. (२५.५x१२, २१४३१). वैदर्भी चौपाई, मु. प्रेमराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि जिणधर्मतो वापतो करो धर्म, अंति: सुख संपजे पोहचे मोख मझार, " 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ढाल-७, गाथा-२०९. १०५११८. (+४) देशंतरी छंद, संपूर्ण, वि. १८७४ आश्विन कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ५, प्रले. श्राव. लखमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२४.५४१२, ११४२६). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन संपो सारदा मया; अंति: राज इम तवियो छंद देशांतरी, गाथा-४७. १०५११९ (+) मुनिपति चरित्र, संपूर्ण वि. १९०६ कार्तिक कृष्ण, ३०, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३१, ले. स्थल नागौर, प्र. मु. मूलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: मुनिपतिच०. अंत में "संवत् २०२५ वै.शु. १५ रविवासरे मुनिपति चरित्र छोड्यो श्री दीपकुंवरजी म. सा." ऐसा लिखा है., संशोधित प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है- टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५x११.५, १८४४२-४५) मुनिपति चौपाई, मु. धर्ममंदिर, मा.गु., पद्य वि. १७२५, आदि शंखेसर सुखकरू नमता अति: नवेय निधानो रे, खंड-४ ढाल ६५, गाथा - १०२०. १०५१२० (+) लीलावती चौपाई - शीलविषये, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १६, प्र. वि. हुंडी : लीलावती. श्रीशांतिनाथ प्रशादात्., संशोधित. दे., (२५.५४१२, १८x४६). लीलावती चौपाई-शीलविषये, उपा. कुशलधीर, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: श्रीआदिसर समरने प्रणमी; अंति: ए पांमस्यो परम प्रमोद, ढाल - २५. १०५१२२ (४) शतक नव्य कर्मग्रंथ सह वालाववोध, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पू. १०-४ (२, ४, ७ से ८) = ६ प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१२, १०x३३-३९). शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, गाथा ३२ तक लिखा है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) शतक नव्य कर्मग्रंथ-५-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: वीतराग नमस्करीनइ; अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०५१२३ (+) सज्जनचित्तवल्लभ काव्य सह टवार्थ, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम पू. ६ प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है. वे. (१५x१०, ६४३३-३७). . सज्जनचित्तवल्लभ काव्य, आ. मल्लिषेण, सं., पद्य, आदि: नत्वा वीरजिनं अति: मल्लिषेण० विच्छित्तये, श्लोक-२५, (वि. अंत में औपदेशिक श्लोक दिया है.) सज्जनचित्तवल्लभ काव्य-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने श्रीभगवंत अति जासी भवाकई आंतरई, १०५१२४ (+) चतुर्विंशतिजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ९-३ (१ से ३) = ६ प्रले. ग. जितविजय (गुरु मु. डुंगरविजय): गुपि. मु. डुंगरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैदे. (२६४१२, १४x२८-३९). For Private and Personal Use Only Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ३२१ स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६, (पू.वि. श्रेयांसजिन स्तुति श्लोक-४ अपूर्ण से है.) । १०५१२५ (+#) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १७९३, आश्विन शुक्ल, १०, रविवार, मध्यम, पृ. १७-९(१ से ९)=८, ले.स्थल. मकसूदाबाद, प्र.वि. संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १२४२४-२८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: नंदी जा वीरजिण तित्थं, गाथा-२९२, (पू.वि. गाथा-१७० से है.) १०५१३०. (+#) शीयलप्रकाश रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १६-१(१४)+१(१३)=१६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, ७-१३४२८-३२). शीयलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदि: पहिलुं प्रणाम करूं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७२ अपूर्ण तक है.) १०५१३२. (+) १२ देवलोक विवरण कोष्ठक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१२, २४४३३-५०). १२ देवलोक कोष्ठक, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). १०५१३३. (+#) चंद्रराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हुंडी:चंदराजा०., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, १६४३२-४२). चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: श्रीजिननायक प्रणमीइं; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६६ दहा-१ तक है.) १०५१३४. (+#) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९४८, मध्यम, पृ. २०-६(१ से ६)+१(९)=१५, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्र.वि. हुंडी:दशमीकाल. प्रतिलेखन पुष्पिका अवाच्य है., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४४१२, १४४३८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः (-); अंति: भिक्खू अप्पणा गमं गया, अध्ययन-१०, (पू.वि. अध्ययन-५ उद्देश-१ गाथा-६ अपूर्ण से है.) १०५१३५. (+#) दंडक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, प्रले. सा. केसरश्री (गुरु सा. ऊदाजी, पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ); गुपि.सा. ऊदाजी (पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ); पठ. श्रावि. रिधुबाई (माता श्राव. छोटालाल साह); गुपि. श्राव. छोटालाल साह, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, ५४२१-२९). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीस जिणे तस्; अंति: लिहिआ एसा विन्नती अप्पहिआ, गाथा-४२, (वि. १८७६, आश्विन कृष्ण, १०) दंडक प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी चौवीस; अंति: आतमाने हितकारी सिखावण छै, (वि. १८७६, आश्विन कृष्ण, ९, वि. प्रतिलेखक ने टबार्थ का लेखन संवत १८७५ दिया है, संभवतः १८७६ होना चाहिये.) १०५१३९ (+) महानिशीथसूत्र का भावार्थ, संपूर्ण, वि. १९४४, पौष शुक्ल, ८, गुरुवार, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. अंवालनगर, प्रले. मु. चंदनविजय (गुरु मु. बुद्धविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४४१२.५, १६x४५). महानिशीथसूत्र-भावार्थ, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., गद्य, वि. १८९०, आदि: स्वस्ति श्रीमन्नृपति; अंति: आराधक सिद्धि वरस्यै. १०५१४०. (+) विचारषत्रिंशिका प्रकरण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९०२, चैत्र शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्रले. मु. चिमनसागर (गुरु ग. फतेंद्रसागर); गुपि.ग. फतेंद्रसागर, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२४४१२, ११४४५). दंडक प्रकरण, म. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: गयसारेण० अप्पहिया, गाथा-३८. For Private and Personal Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., गद्य, वि. १५७९, आदि: श्रीवामेयं महिमामेयं; अंति: मत्वेदं बालचापल्यम्, ग्रं. २१६. १०५१४१. (+) दंडक सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२५, चैत्र कृष्ण, १, मध्यम, पृ.८, ले.स्थल. कलकत्ता, प्र.वि. हुंडी:२४ दंडक., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५४१२.५, ६४१६-२०). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउ चउवीस जिणे; अंति: लिहिआ एसा विन्नती अप्पहिआ, गाथा-४१. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चउवीस तीर्थंकरनइ नमस्करी; अंति: हितनइ लिखी अमुनाइयो वीनती. १०५१४२. (+) गजसिंह चरित्र व स्वार्थ निकुंज, संपूर्ण, वि. २१वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (२५४१२.५, २०४७२-८०). १.पे. नाम. गजसिंह चरित्र, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण, वि. २००७, चैत्र कृष्ण, ८, सोमवार, ले.स्थल. रायपुर, पे.वि. हुंडी:गजसिंह चरित्र. गजसिंह रास, मु. समर्थमलजी, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं अरिहंत पद कमल; अंति: का सुनवा के राह चलो, ढाल-२१. २. पे. नाम. स्वार्थ निकुंज, पृ. ७आ-१०आ, संपूर्ण, वि. २००७, वैशाख कृष्ण, १, सोमवार, ले.स्थल. झूटा, पे.वि. हुंडी:मतलब चरित्र. म. मोतीलाल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. २००३, आदि: शांतिनाथ प्रभु सोलवा खट; अंति: मंगलमाला उभयलोक सुधावे रे, ढाल-२१. १०५१४३ (+#) ज्ञानपंचमी देववंदन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २०, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. सुमतिचंद्र (गुरु मु. वीरचंद्र ऋषि, पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ); गुपि.मु. वीरचंद्र ऋषि (पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ); राज्ये आ. हेमचंदसूरि (पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ), प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४१२, ९४२५). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम बाजोठ उपरि तथा; अंति: विजयलक्ष्मि शुभ हेज, देववंदनजोडा-५, गाथा-१५०, (वि. अंत में औपदेशिक श्लोक दिया है.) १०५१४४. (+) चौमासी देववंदन, संपूर्ण, वि. १८७९, चैत्र शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ९, अन्य. पं. फतेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १५४४४). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अलवेसरू विनीत; अंति: पास सामलनु चेई रे. १०५१४५. (+) गजसुकुमाल देवकीनी चउपई, संपूर्ण, वि. १९१४, आश्विन शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. लसकर, प्रले. मु. मालचंद्र (पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ); लिख. सा. सुगनबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२.५, ११४३२). गजसकुमालमुनि चौपाई, म. माधव, मा.गु., पद्य, आदि: रिठनेमि नामे हुआ लखण भला; अंति: माधव० आण रिदय __विवेक, ढाल-१५. १०५१४६. (+) जंबूगुणरत्नमाल, संपूर्ण, वि. १९४०, श्रावण कृष्ण, २, रविवार, मध्यम, पृ. २१, प्रले. मु. देव ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:जंबगुणर., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित., दे., (२५.५४१२, १९४५२-५७). जंबूस्वामी चरित्र, श्राव. आणंद जेठमल, मा.गु., पद्य, वि. १९२०, आदि: सासणपत वृद्धमाननो; अंति: आनंद जेठमल० कल्याण ए, ढाल-३५. १०५१४७. (#) स्थूलिभद्र नवरसो, संपूर्ण, वि. १८३०, वैशाख कृष्ण, ३, शुक्रवार, जीर्ण, पृ. ५, प्रले. पं. रविविजय; अन्य. पं. उत्तमचंद्र (गुरु वा. विवेकसागर गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२, १८४३८). स्थलिभद्रमनि नवरसो, उपा. उदयरत्न म. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपत दायक सदा पायक जास; अंति: कह्या भणतां मंगलमाल, ढाल-९, गाथा-७४. १०५१४९. मौनएकादशी स्तवन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, दे., (२४४१२, ११४३२-३६). १.पे. नाम. मौनएकादशी स्तवन, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: जगपति नायक नेमिजिणंद; अंति: जिनविजय जयसिरी वरी, डाल-४, गाथा ४२. २. पे नाम. मौनएकादशी सज्झाय, पू. ४अ ५अ, संपूर्ण ३२३ एकादशीतिथि सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: गोयम पूछे वीरने सुणो सामी; अंतिः सुव्रतरूपसज्झाय भणे, गाथा - १५. १०५१५१. (+०) कल्पसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. १०५, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है जैदे. (२७५११, ५X३१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेण कालेणं तेणं समएणं; अंति (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., समाचारी सूत्र- २ अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनई नमस्कारहु; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., समाचारी सूत्र- १ तक लिखा है.) १०५१५२. () दशवैकालिकसूत्र अध्ययन १ से ४, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५. प्र. वि. हुंडी: दसवेकालक, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११, १५X४२-४९). ', दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि धम्मो मंगलमुक्किट्ठे अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०५१५३. (+) भक्तामर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९३९, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. ५७, प्रले. श्राव. चंदूलाल; लिख चनसूख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी भक्ता० क०, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा (१४९७) मुक्ति महल के मिलन, दे. (२७११.५, ८४३२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र - टीका, मु. रायमल्ल ब्रह्म, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: श्रीवर्द्धमानं; अंति: रायमल्लेन वर्णिना. १०५१५४ (+) आराधना प्रकरण सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. घांणोरानगर, प्रले. पं. मनोहरसागर गणि (गुरु ग. हेतुसागर); गुपि. ग. हेतुसागर (गुरु उपा. राजसागर गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीमन्नाभिनंदन प्रशादात्., संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५X११.५, ५X३५-४०). पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा- ७०, ग्रं. २४५, (वि. १८४४, फाल्गुन शुक्ल, १३) पर्वताराधना गाथा ७० टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि नमस्करी प्रणमीनें श्री अंति: शाश्वता मुक्ति सुख लहह, (वि. १८४४, चैत्र कृष्ण, ३) " १०५१५५ (+०) उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१-१६ (१ से १६) =५, पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६४११, १०४४०). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३९५ अपूर्ण से ५१९ अपूर्ण तक है.) १०५१५६. (+#) कल्पसूत्र सह व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-९ (१ से ९) = ५, प्र. वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, ५X३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अति (-) (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. देवानंदा माता के १२वें स्वप्नवर्णन से है व इद्रमहाराजा द्वारा उपयोग रखने के प्रसंग तक लिखा है.) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., बीच-बीच में बालावबोध कथा लिखी है.) १०५१५७ (+) रूपसेनकनकावती चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. २७-९(१ से ९) = १८ प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण 7 For Private and Personal Use Only युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., ( २६ ११.५, १५X३५). रूपसेनकनकावती चरित्र - चतुर्थव्रतपालने आ जिनसूरि, सं., पग, आदि (-); अति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., गोरख-रूपसेन संवाद पाठ "अतिहि गहना अछइ अपारा" से मर्कटीजीव निवारण हेतु प्रश्नोत्तर अपूर्ण तक है . ) Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०५१५८. (+) जीवविचार प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९४०, कार्तिक शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ८, प्रले. मु. गोरधन ऋषि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ऋषभदेव प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४११.५, १५४४५). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-बालावबोध *, मा.ग., गद्य, आदि: भुवन० कहतां तीन भुवन; अंति: समुदाय से कहा है. १०५१६० (+) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७ ११.५, १०४३६). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम; अंति: (-), (पू.वि. अजितशांति तक है.) १०५१६२. (+#) प्रद्युम्नलीलाविलास, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २४१-१९०(१० से १९८,२२०)=५१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १२४३५). प्रद्युम्नलीलाविलास, ग. शिवचंद्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्रकाश-१ अपूर्ण से १३ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) १०५१७१ (+) विदग्धमुखमंडन काव्य सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२.५, ११४३५-३८). विदग्धमुखमंडन काव्य, आ. धर्मदाससूरि, अप.,पै.,प्रा.,माग.,सं., पद्य, ई. १२वी, आदि: सिद्धौषधानि भवदुःख; अंति: (-), (पू.वि. परिच्छेद-४ श्लोक-५ अपूर्ण तक है.) विदग्धमुखमंडन काव्य-वृत्ति, सं., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-). १०५१७६ (+#) ९८ बोल का बासठिया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. हुंडी:९८ बोलरो., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२, १०४३९). ९८ बोल का बासठिया, रा., गद्य, आदि: पेले बोले सरवसं; अंति: तेह तहे भगवांन तेहतः. १०५१७७. (+) पंचप्रतिक्रमण विधि संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-१(१)=१७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ५४२६-३२). पंचप्रतिक्रमण विधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तस्स मिच्छामि दुक्कडं, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., प्रारंभिक इरियावही सूत्र अपूर्ण से है.) पंचप्रतिक्रमण विधि संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सातवें स्थूल तक टबार्थ लिखा है.) १०५१७८. (+) सिंदूरप्रकर, वैराग्यवर्धक श्लोकपंचक व सुभाषित श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८१७, माघ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. २३, कुल पे. ३, प्रले. पंन्या. कनकहंस (गुरु पंन्या. सौभाग्यहंस); गुपि. पंन्या. सौभाग्यहंस (गुरु पंन्या. सुजाणहंस); पंन्या. सुजाणहंस (गुरु पंन्या. ललितहंस); पठ. श्राव. जगरूप, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ४४४३). १. पे. नाम. सिंदूरप्रकर सह टबार्थ, पृ. १अ-२२अ, संपूर्ण. सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-९८. सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अंतिः प्रत्युक्त वर्णवी ते. २.पे. नाम, वैराग्यवर्धक श्लोकपंचक सह टबार्थ, पृ. २२अ-२३आ, संपूर्ण. वैराग्यवर्धक श्लोकपंचक, सं., पद्य, आदि: हर्षे शोकभयं जये रिपभयं; अंति: बलिना पत्रेण या निर्भया, श्लोक-५. वैराग्यवर्धक श्लोकपंचक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हर्षने विषे सोकनो भय; अंति: सिंहण निर्भयवंत छइ रहइ छइ. ३. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. २३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ३२५ सुभाषित श्लोक संग्रह *, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: धर्मपर्वगत स्तपकपटत सत्यं; अंति: किम पर वाणिज्य धर्म विना, श्लोक-२. १०५१७९ (+) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३, ले.स्थल. वाल्ही नगर, अन्य. पं. फतेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मनमोहनपार्श्व प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १९४४७). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: अणंतभागो य सिद्धि गओ, गाथा-५१. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जिणमांहि चेतना हुवे सो; अंति: तेहनो वचनोत्तर कहे छे. १०५१८० (#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १०४-१००(१ से १००)=४, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:ज्ञाता०.वृत्ति., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११,१६x४६). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१६ अपूर्ण से १८ अपूर्ण तक है.) १०५१८१ (+) सिंदूरप्रकर व वैराग्यवर्धक श्लोकपंचक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४, कुल पे. २, प्रले. मु. तीर्थसागर (गुरु पं. जसरूपसागर); गुपि. पं. जसरूपसागर (गुरु पं. जीवणसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ४४२८). १.पे. नाम. सिंदूरप्रकर सह टबार्थ, पृ. १अ-२४अ, संपूर्ण, वि. १८९०, फाल्गुन कृष्ण, १, मंगलवार, ले.स्थल. विझोवा. प्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-९९. सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सिंदूरनौ प्रकर कहीयै समूह; अंति: प्रत्युक्त वर्णवी ते. २. पे. नाम. वैराग्यवर्धक श्लोकपंचक सह टबार्थ, पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण, वि. १८९०, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३. वैराग्यवर्धक श्लोकपंचक, सं., पद्य, आदि: हर्षे शोकभयं जये रिपुभयं; अंति: बलिना पुत्रेण या निर्भया, श्लोक-५. वैराग्यवर्धक श्लोकपंचक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हर्षनें विषे सोकनो भय; अंति: सिंहण निर्भयवंत छइ रहइ छइ. १०५१८३. (+#) तिलोकसुंदरी वर्णन, संपूर्ण, वि. १९६६, चैत्र कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले.पं. केसरीचंद (खरतरगच्छ); अन्य. श्राव. अगरचंद भेरोदान सेठिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४११.५, १३४४९-५२). त्रैलोक्यसुंदरी रास, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: विहरमान वीसे नमुं; अंति: जिण घर लील विलासो रे, ढाल-१२. १०५१८६ (+) शीलोपदेशमाला सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८३०, आषाढ़ कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. १८२, ले.स्थल. आहोरनगर, प्रले. ग. चतुरविजय (गुरु ग. ऋद्धिविजय); गुपि.ग. ऋद्धिविजय (गुरु पं. प्रमोदविजय); पं. प्रमोदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:शीलोपदे., संशोधित. कुल ग्रं. ८९५१, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३८-४२). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबंभयारि नेमि; अंति: आराहिय लहइ बोहिफलं, कथा-४३, गाथा-११५. शीलोपदेशमाला-बालावबोध कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५५१, आदिः (१)श्रीवामेयममेय, (२)आबाल ब्रह्मचारी आजन; अंति: परंपराइ मोक्ष फल पणि पामउ. १०५१८९ (#) रत्नपाल रास, संपूर्ण, वि. १९०५, वैशाख कृष्ण, १२, रविवार, मध्यम, पृ.५२, ले.स्थल. जालणाकालसकर, अन्य. श्राव. आनंदरूप सेठजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. सुरजमंडणपार्श्वनाथ प्रसादात्. प्रतिलेखन वर्ष १९५ लिखा है, परन्तु शाक १७७० होने से संवत् १९०५ होना चाहिए. वार हेतु रविवार व मंगलवार दोनों का उल्लेख हैं., कुल ग्रं. २२००, मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२५.५४१२, १५४३८-४२). रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: सकल श्रेणि में दुर; अंति: लच्छी मोहनविजय विलास जी, खंड-४, गाथा-१३७२, (वि. ढाल-६६.) १०५१९० (+) रघुवंश महाकाव्य सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २८, प्र.वि. हुंडी:रघुवंशटी०., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६.५४११.५, १४४५०). For Private and Personal Use Only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३२६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रघुवंश, क. कालिदास, सं., पद्य, आदि: वागर्थाविव संपृक्तौ अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सर्ग-२ श्लोक-३३ अपूर्ण तक लिखा है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रघुवंश-सुबोधिका टीका, ग. श्रीविजय, सं., गद्य, आदि: श्रीशंखेश्वरपार्श्व, अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०५१९२. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला कांड १ से ३. संपूर्ण वि. १८४० आश्विन शुक्ल, १०, रविवार, मध्यम, पृ. २९, ले. स्थल भुज नगर, प्र. वि. हुंडी: नाममाला. चिंतामणिपार्श्वनाथ प्रसादात् संशोधित प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है- टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, टिप्पणक का अंश नष्ट, अक्षर मिट गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १५X३७-४०). ', अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि प्रणिपत्यार्हतः; अंति (-), प्रतिपूर्ण. १०५१९३ (+) महादंडक, संपूर्ण वि. १९२८, भाद्रपद कृष्ण, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. ३१, प्रले. पंडित जसकरण श्रीमाली ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी : महादं०., संशोधित., दे., (२६.५X१२, १३x४५). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: दंडक १ लेस्या २ ठित्ति ३; अंति: मोक्ष जाई १०८ जाई. १०५१९५. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय व अजितशांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १७९२ कार्तिक शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. १४-४(२,८ से १०)=१०, कुल पे. २, ले. स्थल. जालोर, प्रले. मु. प्रेमविजय (गुरु आ. हर्षचंद्रसूरिश्वर, पूर्णिमागच्छ); गुप. आ. हर्षचंद्रसूरिश्वर (पूर्णिमागच्छ) पठ. मु. माना (गुरु मु, गुलालचंद): गुपि. मु. गुलालचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. ले. श्लो. (१४०९ ) भग्नपृष्ट कटिग्रीवा (१४१०) पोथी पानां वांचज्यो, जैदे. (२६४११५, ११४२३-३४). १. पे. नाम. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र -तपागच्छीय, पृ. १आ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. . संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० इच्छा; अंति: (-), (पू.वि. "४ लाख तिर्यंच चउद लाख मनुष्य एवं कारे चोरासी" पाठांश तक है.) २. पे नाम. अजितशांति स्तोत्र. पू. ११अ १४आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तव आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि अजियं जियसव्वभयं संति च अति जिणवयणे आयरं कुणह , गाथा ४०. १०५१९८ (+) वैद्यकसारोद्धार सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९९६, रसेंदुनंदभूवर्षे वैशाख कृष्ण, १, सोमवार, मध्यम, पू. १५०, ले. स्थल, लक्ष्मणगढ, प्रले. य. परमानंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, वे. (२६४११.५, ६४३८-४२). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदिः यत्र वित्रासमायांति अंति: योगचिंतामणिश्चिरम्, अध्याय ७. योगचिंतामणि-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः यत्र कहिये जहां मे०; अंति: ग्रंथ घणो कालइ. १०५१९९ (+) बृहत्संग्रहणी सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ९. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पदच्छेद: सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., ( २४.५X१२, ४X३२). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिउ अरिहंताई ठिइ अति (-) (पू.वि. गाथा ३३ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि अरिहंतर सिद्धर आचार्य३: अंति: (-). १०५२०० (+) श्राद्धगुण विवरण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. हुंडी : गुणविलाशः.. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे. (२५.५४१२, १४४४४०५३). " श्राद्धगुण विवरण, उपा. जिनमंडन, सं., गद्य वि. १४९८ आदि प्रणम्य श्रीमहावीरं केवल अंति (-), (पू.वि. २८वे श्राद्धगुण वर्णन अपूर्ण तक है.) १०५२०२. (*) औपपातिकसूत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४३, प्र. वि. हुंडी उबाईसूत्र, पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४X१२, १२X३७-४०). Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ३२७ औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र-४३, ग्रं. १६००. १०५२०४. (+#) कुमारपाल रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३५-२९(१ से २१,२४,२७ से ३२,३४)=६, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं..प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १५४४६). कुमारपाल रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६७०, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. कुमारपाल द्वारा गुप्तवेश में खंभातनगरप्रवेश प्रसंग चौपाई से पुरुष के बत्रीसलक्षण चौपाई गाथा-३८ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०५२०५. नवतत्त्वनो बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्र.वि. हुंडी:नवत्त्वबोल., दे., (२५४१२, १२४२८). नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलं जीवतत्व बीजु; अंति: अजीव ते मिश्र कहीइ. १०५२०६ (+) नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, प्र.वि. हुंडी:नंदी.पाठ., संशोधित., जैदे., (२५४१२, १५४५०). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: से तं नंदी सम्मत्ता, सूत्र-५७, गाथा-७००. १०५२०७. लघुबंधी बासठीयो यंत्र, अपूर्ण, वि. १९६४, श्रावण शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, प्रले. श्राव. जेठालाल मोनजी मेहता, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:लघुबंधी., दे., (२५४१२, १२४३६). लघबंधी यंत्र, मा.ग., को., आदि: (-); अंति: (-), (प.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., द्वार-९ से है.) १०५२०८. (+) विपाकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४६-७(१ से ७)=३९, प्र.वि. हुंडी:विपाकसू०., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ७४३८). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-१ पाठ "वद्धमाणस्स खेडस्स पंच० हंगामसयाणं" से अध्ययन-६ पाठ "सिहिपुरे णामणगरे होत्था रिद्धतथणं सिहपुरे" तक है.) १०५२०९ (+) तिथिसारणी, संपूर्ण, वि. १९००, पौष कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले.स्थल. वाल्ही, प्रले. मु. तीर्थसागर (गुरु पं. जसरूपसागर); गुपि. पं. जसरूपसागर (गुरु पं. जीवणसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, १३४३५). इष्टतिथ्यादि सारणी, मु. लक्ष्मीचंद्र, सं., पद्य, वि. १७६०, आदि: श्रीवामेयं नमस्कृत्य; अंति: शोधनीयाश्च धीजनै, (वि. सारिणीयुक्त.) १०५२१० (+#) दीवाली कल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०४, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४, गुरुवार, मध्यम, पृ. २९, ले.स्थल. प्रभासपाटण, प्रले.ग. विनीतविजय (गुरु उपा. जीवविजय); गुपि. उपा. जीवविजय (गुरु आ. विजयक्षमासूरि); आ. विजयक्षमासूरि; पठ. श्राव. हीरजी; श्राव. श्यामजी; अन्य. श्राव. मकनजी पटेल, प्र.ले.प. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी:दीपालीक. श्रीदादापार्श्वनाथजी प्रसादेन., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ७४३७-४०). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: श्रीवर्द्धमानमांगल्य; अंति: चंद्रार्कजगत्त्रये, श्लोक-४३८, ग्रं. १५००. दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर देव मंगलन; अंति: त्रमा चंद्र सूर्जताई. १०५२११. (+#) कर्मग्रंथ १ से ३ सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४-१(२०)=३३, कुल पे. ३, प्र.वि. हुंडी:कर्मग्रंथ टबो०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, ३-१०४३४-४७). १.पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१ सह टबार्थ व बालावबोध, पृ. १आ-१९आ, पूर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: (-), (वि. पत्र चिपके होने के कारण अंतिमवाक्य अवाच्य है.) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीते अतिसयप्रातिहार्य; अंति: (-). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-बालावबोध, म. जीवविजय, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनंवीरं; अंति: (-). २.पे. नाम, कर्मस्तवनामा द्वितीय कर्मग्रंथ सह टबार्थ व बालावबोध, पृ. २१अ-३१आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंदवंदियं नमह तं वीरं, गाथा-३४, (संपूर्ण, वि. पत्र चिपके होने के कारण अंतिमवाक्य अवाच्य है.) For Private and Personal Use Only Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३० तक टबार्थ लिखा है.) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारंभिक २ गाथा तक लिखा है., वि. चिपके पत्र.) ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ३१आ-३४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदिः (अपठनीय); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) १०५२१२. (+) चौमासीपर्व देववंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१२, १०४२९). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अलवेसरू विनीत; अंति: (-), (पू.वि. महावीरजिन देववंदन-स्तवन अपूर्ण तक है.) १०५२१३. (#) सिरिसिरिवालकहा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८०-११(१४,२१,५७ से ६०,६५,६९ से ७२)=६९, प.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१२, ७X४०-४६). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाई झायित; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से ३३ अपूर्ण, ३३४ अपूर्ण से ३५१ अपूर्ण, ९४४ अपूर्ण से १०१० अपूर्ण, १०७९ अपूर्ण से १०९८ अपूर्ण, ११४९ अपूर्ण से १२११ अपूर्ण तक व १३३३ अपूर्ण से नहीं है.) सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतादिक नवपद; अंति: (-). १०५२१४. (#) वंदित्तसूत्र व श्रावकपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४.५४११.५, १२४२६). १. पे. नाम, वंदित्तुसूत्र-गाथा १ से ९, पृ. १अ, संपूर्ण. __वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम, श्रावक अतिचार स्थूल-११ से १२, पृ. १आ, संपूर्ण. श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., स्थूल-११ से संलेषणा स्थूल अपूर्ण तक लिखा है.) १०५२१५ (+#) मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १३४३२). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३४ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) १०५२१६ (+) पंचांगगणित विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:तिथिपत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, ११-१४४३३-४०). पंचांगगणित विधि, उपा. महिमोदय, मा.ग., पद्य, वि. १७३३, आदि: परम जोति प्रभकं; अंति: (-), (प.वि. गाथा-१३७ अपूर्ण तक है.) १०५२१८. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४१२, ६x४२). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० चंपाए; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., सूत्र-१२ अपूर्ण तक है.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (१)प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२)तिर्ण कालि ते चउथै आरइ; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सूत्र-५ अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०५२१९ (#) महावीरजिन २७ भव विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी: बीजीवाचना., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फेल गयी है, वे. (२५x१२, १३x२९). महावीरजिन २७ भव विचार, सं., पद्य, आदि: पश्चिमे मावधिदेशे नयरो; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक - ९४ अपूर्ण तक है.) १०५२२० (+४) क्षेत्रसमास सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३८, पौष शुक्ल ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. २१ ले स्थल, गुदवसनगर, 19 प्रले. श्राव. शिवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२५.५X१२, ६X३४). बृहत् क्षेत्रसमास जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण; अंति: झाएज्जा सम्मदिट्ठीए, गाथा- १८८. जंबूद्वीप प्रकरण- टवार्थ मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनई जलसहित अति ध्यान ध्यावो सम्यग्दृष्टा १०५२२४. आदिजिन विनती स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. ७, कुल पे. ४, प्रले. पं. भांणविजय (गुरु पं. जसवंतविजय); पठ. श्रावि. हेमाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X११.५, १३X३१-३६). १. पे. नाम. आदिजिन विनती स्तवन, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: जोग न मांड्यो मै घर; अंति: तुमारी देजो श्री जिनराय, गाथा-२६. २. पे नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पू. २अ- ३अ, संपूर्ण, ले. स्थल. राधनपुर, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि धन ते मुनिवरा रे जे चाले; अंति: जे साहिब सीमंधर तुझ राग, गाथा - २४. ३. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. ३अ-५अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमंडन बृहत्, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदिः प्रणमी सयल जिणंद पाय; अंति प्रेमविजय० ० मुझ देजो सेवो, देजो सेवो, गाथा- २३. ४. पे नाम. आदिजिननी विनती स्तवन, पृ. ५अ-७आ, संपूर्ण. आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि जय पठम जिरार अति अलवेसर, अंति: मुनिलावण्य समय भणइए, गाथा-४७. १०५२२६. (+) श्रावकातीच्यार, अपूर्ण, वि. १८७७, ज्येष्ठ कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. १४-७(१ से ७) =७, प्रले. मु. अनोपरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ.. जैदे. (२७१२, ११४३९). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मि; अंति: मिच्छामि दुक्कडं, संपूर्ण. १०५२२८. (+) नवस्मरण व लघुशांति, अपूर्ण, वि. १७२७, भाद्रपद शुक्ल, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १२- २ (४,१०)=१०, कुल पे. २, प्रले. मु. माणिक्य सोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पठनार्थ अवाच्य है., संशोधित., जैदे., (२५X११.५, ११४३३). १. पे. नाम, नवस्मरण, पृ. १आ-११अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. ३२९ मु. . भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंतिः सूरि श्रीमानदेवस्य ( पू. वि. नमिऊ स्तोत्र गाथा २२ अपूर्ण से अजितशांति गाथा ११ अपूर्ण, भक्तामर श्लोक-२९ अपूर्ण से ४१ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे नाम, लघुशांति पू. ११-१२अ, संपूर्ण. " आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांतं; अंति: यायात् सूरी श्रीमानदेवस्य, श्लोक-१७. १०५२३१. (+) विपाकसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९२१, भूद्गूनंद चंद्र, श्रावण शुक्ल, ८, शनिवार, मध्यम, पृ. ८८, प्रले. मु. पूर्णचंद्र; पठ. मु. बालचंद्र मु. मुक्तिचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी, विपाक., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., प्र. ले. लो. (४३९) यादृशे पुस्तकं दृष्ट्वा, दे. (२५.५x१२, ६x४२). "" विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंतिः सेसं जहा आयारस्स श्रुतस्कंध २, ग्रं. १२५०. विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तस्मिन् काले तस्मिन्; अंति: जिम आचारांगसूत्र मै. . १०५२३२. व्यवहारसूत्र, संपूर्ण, वि. २०बी, मध्यम, पृ. २०, प्र. वि. हुंडी : ववहारसू दे., (२५.५४११.५, १३४४४). For Private and Personal Use Only व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि जे भिक्खू मासियं अंति भवंति तिबेमि, उद्देशक १० नं. ३७३. Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०५२३४. (+१) धन्यचरित्रशालिनी दानकल्पद्रुम सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८५४ श्रावण शुक्ल, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. १०७, ले.स्थल. पंचासर, प्रले. आ. जैनेंद्रविजयसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : धन्नाचरित्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूच लकीरें कुल ग्रं. १२९२, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५X१२, ६३७). दानकल्पद्रुम, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: स श्रेयस्त्रिजगद्; अंतिः श्रीदानकल्पद्रुमः, पल्लव-९. दानकल्पद्रुम-टबार्थ, पंन्या. रामविजय, मा.गु., गद्य, वि. १८३३, आदि: श्रीऋषभदेवस्वामी; अंति: राम० प्रती जियात्. १०५२३६. (+) अष्टापदगिरि ऋषभदेव स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१ (१) =५, पठ. श्रावि. धोलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जै. (२६.५४१२, १२४३२-३८). " अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: प्रणमे जिनवरजय करूं, गाथा- ६६, (पू.वि. गाथा १० अपूर्ण से है.) १०५२३८. (**) समवाया॑गसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ४५-७(१,४ से ५,८ से ९,१६,३६) = ३८, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२५.५४११.५, १५४४३). "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. गद्य, आदि (-); अंति: (-) (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. समवाय १ अपूर्ण से " प्रकीर्णक समवाय सूत्र-२७१ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०५२४० (+) स्तुति, स्तवन व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६, कुल पे १२, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२५x१२, १६४३२-३५). १. पे नाम. चिंतामणि पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन- चिंतामणि, सं., पद्य, आदि: नमद्देवनागेंद्रमंदारमाला, अति चिंतामणि पार्श्वनाथः श्लोक-७२. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीर जिन स्तुति, आ. पार्श्वचंद्रसूरि सं., पद्य, आदि जगत्कल्पना कल्पवृक्ष; अंति: सौख्यभर लभंते, श्लोक ५. ३. पे नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पू. १आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तुति, आ. पार्श्वचंद्रसूरि सं., पद्य, आदि जगन्मंडले मल्यमालाभिधाने अंति: विज्ञप्तिमेतांवितेंद्र, श्लोक ५. ४. पे नाम चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण २४ जिन नमस्कार-वर्तमान, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि : आदिजिणेसरदेव सेव तुम्ह; अंति: इम भाई श्रीविजयदेवसूरि गाथा-७ ५. पे नाम. आगामी चोवीसतिर्थंकर नमस्कार, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. २४ जिन नमस्कार-अनागत, आ. समरचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पद्मनाभ पहिलो जिणंद, अंति: समरचंद्र०जाणे गुणमणि खाण, गाथा- १२. ६. पे. नाम चतुर्विंशत्यतीतजिन नमस्कार, पृ. २आ-३, संपूर्ण. २४ जिन नमस्कार - अतीत, आ. समरचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि उसभ चडवीसी थकी प्रथम जिन अंतिः समरचंद्र० श्रीपूज पासचंद, गाथा ५. ७. पे. नाम. २४ जिन नमस्कार वर्तमान, पृ. ३अ ५अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि रिसह जिणवर रिसह, अंति: कीरति गति सुख सार, गाथा-२५. " ८. पे नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पू. ५अ ५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद, मु. विमलचारित्र, मा.गु., पद्य, आदि दीठा पास जिणेसर आज अति विमलचारित्र ० तुम सांमि, गाथा - ५. ९. पे. नाम. पार्श्वजिनमंत्र सवैया, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. गुणचंद, मा.गु., पद्य, आदि: झरंति जे मद प्रवाह ते; अंति: गुणच० प्रणामनो प्रभाव ए. १०. पे नाम भैरव क्षेत्रपालदेव स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: जिनपति पदपद्म द्वेत पूजा; अंति: क्षेत्रपालं स्तुवेम्यहम्, श्लोक-२. ११. पे. नाम, नवकार महामंत्र सज्झाय, पू. ५आ-६अ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org ३३१ नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अति: प्रभु सुंदर सीस रसाल, गाथा- ७. १२. पे नाम. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, पू. ६अ ६आ, संपूर्ण, पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: क्रिपा करोनि गौडी पासजिने अंति रूपचंद पदवी पाई, गाथा ५. १०५२४९. कर्मग्रंथ १ से ४, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे ४, जैदे., (२५.५x१२, १३४३७) - १. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ - १, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, बि. १३वी १४वी, आदि श्रीवीर जिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं गाधा- ६०. २. पे. नाम कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, पृ. ३-४आ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी - १४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: (अपठनीय), गाथा- ३४ (वि. पत्र चिपके होने से अंतिमवाक्य अपठनीय लिया है.) ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, पृ. ४आ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी १४वी, आदि (अपठनीय) अंति देविंदसूरि० सोउं, गाथा २५. ४. पे. नाम. पडशीति नव्य कर्मग्रंथ ४. पू. ६अ ९अ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य वि. १३वी २४वी आदि नमिव जिणं जियमगण अंति: (-), गाथा ८६, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा- ६४ अपूर्ण तक लिखा है.) १०५२४२ (+) पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९५१ माघ शुक्ल, ३, सोमवार, मध्यम, पृ. ५, ले. स्थल मुर्शिदाबाद, अजीमगंज, प्र. मु. धनसुख ऋषि पठ. मु. हेमचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. वे. (२५.५४१२, ११x२७). " " , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: क्षमस्व परमेश्वरी, श्लोक-३२. १०५२४३. (+) सुखबोधार्थमाला पद्धति, संपूर्ण वि. १९७१ चैत्र शुक्ल, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले. स्थल, जयपुर प्रले. सा. रिद्धि कंवर (लुकागच्छ-नागोरी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. प्र.ले. श्लो. (१९३७) यादृशां पुस्तकं दृष्ट्वा, दे. (२४.५X१२, "" " १२४४७-५०). आलाप पद्धति, आ. देवसेन, सं., पद्य, वि. १०वी आदि गुणानां विस्तरं, अंति यथा जीवस्य शरीरमिति, अधिकार - १९. सूत्र- २२८. , १०५२४४. (+#) कल्पसूत्र का व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८२३, मध्यम, पृ. ९४ प्रले. सा. अनोपश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले. नो. (१९३७) यादृशां पुस्तकं दृष्ट्वा, जैये. (२५४१२, १२४३३-३६). कल्पसूत्र- व्याख्यान+कथा, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: अर्हत भगवंत शासनाधीश्वर अति तेहनो आठमो अध्ययन संपूर्ण. १०५२४५ (+) मोक्षधर्मकल्पद्रुमसूत्र, तंदुलवैचारिक प्रकरण व सर्वरोगशमनी रसविद्या, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३३१-१(२)=३३०, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६X११.५, ५-८X३०-३३). १. पे. नाम, मोक्षधर्मकल्पद्रुमसूत्र, पू. १-३०९अ, पूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., वि. १८८३, ज्येष्ठ कृष्ण, २, प्रले. मु. आसकरण ऋषि (गुरु मु. जसकर्ण); गुपि. मु. जसकर्ण (गुरु मु. फकीरचंद); मु. फकीरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले. नो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, पे.वि. दीवाणजी श्रीचंपारामजी के प्रशादात् प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: जयति जगजीवजोणी वियाणउ जग; अंति: चिट्ठति सुही सुहं पत्ता, अधिकार-८, ( पू.वि. बीच कुछ पाठांश नहीं हैं. के २. पे. नाम. तंद्लवैचारिक प्रकरण, पृ. ३०९आ- ३२४अ संपूर्ण. तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग, आदि निज्जरिय जरामरणं; अंति करो पारते विइन्जओ धम्मो. ३. पे. नाम. सर्वरोगशमनी रसविद्या, पृ. ३२४अ- ३३१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि देहस्य शुद्धिं कुरुते च अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-६५ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०५२४६. (+#) विचारछत्रीसी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-३(१ से २,७)=५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. २६०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२,४४३१). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: (-); अंति: लहिया एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४२, (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., गाथा-९ अपूर्ण से गाथा-३४ अपूर्ण तक व ४० अपूर्ण से है.) दंडक प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: पछइ गाथाबंध कीधी, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. १०५२४७. (+#) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९३७, कार्तिक शुक्ल, १, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १४-४(१ से ४)=१०, प्र.वि. हुंडी:दशमी०. श्रीवासुपूज्यजी प्रसादात्., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरे-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १४-१८४५०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि, ____ अध्ययन-१०चूलिका २, (पू.वि. अध्ययन-५ उद्देसो-१ गाथा-३४ अपूर्ण से है.) १०५२४८.(+) प्रवचनसारोद्धार-व्रतपच्चक्खाण आयुष्यकाम फलमान विचारगाथा सह अर्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., ., (२५.५४१२, १३४३६). प्रवचनसारोद्धार-व्रतपच्चक्खाण आयुष्यकाम फलमान विचारगाथा, प्रा., पद्य, आदि: बत्तिसदिण सहसा वास सए होई; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ तक है.) प्रवचनसारोद्धार-व्रतपच्चक्खाण आयुष्यकाम फलमान विचारगाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: एकसो वरसना बत्रिस हजार; अंति: (-). १०५२५० (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४८, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १५४३८). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: गमनं बहिः, कांड-६, ग्रं. १४५२. १०५२५१ (+) स्तंभनिकपार्श्वनाथ स्तुति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०९, आश्विन कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. अजीमगंज, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, ४४३३). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख जय; अंति: अभयदेव विण्णिवइ आणिंदिय, गाथा-३०. जयतिहअण स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जय कहतां जयवंत थाओ; अंति: लोकमा वखाणवा योग्य. १०५२५२ (+#) श्रीपालनरेंद्र कथा सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९१३, आश्विन शुक्ल, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. १४६, ले.स्थल. नागोर, प्रले. पंडित. रामधन ओझा सारस्वत; पठ. मु. वृद्धिचंद्र ऋषि (गुरु मु. सिरदारमल्ल); गुपि. मु. सिरदारमल्ल; राज्यकाल आ. हर्षचंद्रसूरि (पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:श्रीपालचरित्रवृत्ति., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (३२३) जलात् रक्षे स्थलात् रक्षे, (११३७) यादृशां पुस्तकं दृष्ट्वा, (१३६५) जबलग मेरु अडग है, दे., (२४.५४१२, १३४४५). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाई झायित; अंति: वाइज्जंता कहा एसा, गाथा-१३४१, ग्रं. १५५०. सिरिसिरिवाल कहा-अवचूरि, आ. हेमचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: ध्यात्वा नवपदीं; अंति: नंदतु समृद्धि लभताम्, ग्रं. ३०२२. १०५२५३. (+#) श्राद्धकृत नामग्रंथ सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७९, प्र.वि. त्रिपाठ-द्विपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (५६) यादृशं पुस्तकं दष्टं, जैदे., (२७.५४११.५, ३४३८). श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, आदि: वीरं नमिऊण तिलोयभाणु; अंति: मिच्छामिह दक्कडंति, गाथा-३४१, ग्रं. ३९०. श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरं नत्वा; अंति: जिहीर्षुराह अयाएमाणेण. For Private and Personal Use Only Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ३३३ १०५२५४. (+) नवतत्त्व बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२, १७X४५). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बालावबोध, मा.ग., गद्य, आदि: जीवा जीवाय बंधोय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., भव प्रत्यय, द्रव्य प्रत्यय का वर्णन अपूर्ण तक है.) १०५२५५ (+-) देवकी चौपड़, संपूर्ण, वि. १९०६, कार्तिक कृष्ण, १२, रविवार, मध्यम, पृ. ८, प्रले. सा. चंपाजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:देवकीचोपी., संशोधित-अशुद्ध पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४११.५, १७४३५-३९). देवकी सज्झाय, म. लावण्यकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: रथनेमि नामे हवा; अंति: सुकमाल सो वडो अचंभो जोइ, ___(वि. ढाल संख्या नहीं लिखी है.) १०५२५७. (#) स्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १८८७, माघ शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. विंझपुर, प्रले. मु. नंदसागर; पठ. मु. उमेदसागर (गुरु मु. अजबसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथजी प्रसादात्., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, ११४३१). स्नात्र पूजा, मा.गु., प+ग., आदि: पूर्वे बाजोट उपरि; अंति: उतारी राजा कुमारपाळे. १०५२५९ (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२७४११.५, ११४४२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३६ गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) १०५२६० (+) पंचाख्यान वार्तिक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:पंचाख्यान., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२, १६x४३). पंचाख्यान वार्तिक, सं., पद्य, आदि: कुश्रितं कुप्रनष्टं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४६ अपूर्ण तक है.) पंचाख्यान वार्तिक-बालावबोध, मा.ग., गद्य, आदि: दक्षिणदेश तिहां महिल; अंति: (-). १०५२६२. नवपद चैत्यवंदन विधिसहित, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल, फलवृद्धिका नगर, प्रले. मु. सुभागमल महात्मा, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२७.५४१२, १३४३७-४२). नवपद चैत्यवंदन-विधिसहित, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय श्रीअरिहंतभानु; अंति: ईश्वर में मुख भाखी जी, स्तवन-९. १०५२६३. (+#) दानशीलतपभावना रास व गौतमस्वामी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ.७, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५, १०४२५-२८). १. पे. नाम. दानशीलतपभावना रास, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण, वि. १८३३, चैत्र शुक्ल, १५, प्रले. पं. भक्तिविजय (गुरु पं. राजविजय); पठ. श्राव. धर्मचंद गाँधी, प्र.ले.प. सामान्य. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समयसुंदर०मुझने प्रथम वखाण, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५. २. पे. नाम. गौतमस्वामी सज्झाय, पृ. ७आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहै तुम्हे सांभलो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) १०५२६४. स्तवन चौवीसी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १८-२(१ से २)=१६, दे., (२६.५४१२, १६४१०). स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: (-); अंति: सेवता पूर्णानंद समाजो जी, स्तवन-२४, गाथा-२०५, (पू.वि. मल्लिनाथ स्तवन अपूर्ण से है.) स्तवनचौवीसी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मोक्षनो परम उपाय छे. १०५२६५ (+#) श्रावकपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१(१०)=१०, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ८x२७). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: (-), (पू.वि. अंतिमस्थूल वर्णन अपूर्ण तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) For Private and Personal Use Only Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०५२६७. (+) पंचप्रतिक्रमणसूत्र, अंगउपांग नाम व स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-९(३ से ४,६ से १२)=५, कल पे. ८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४१२, ११४३४). १. पे. नाम. ११ अंग १२ उपांग नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: आचारांग१ सूकडाअंग२; अंति: ११पुप्फचुलिया १२ वह्नीदशा. २. पे. नाम. पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १आ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: (-), (पू.वि. नाणंमि सूत्र गाथा-३ अपूर्ण तक है व जगचिंतामणीसूत्र गाथा-३ अपूर्ण से उवसग्गहर स्तोत्र गाथा-२ अपूर्ण तक नहीं है.) ३. पे. नाम. पंचमीतिथि स्तुति, पृ. १३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: सफल करो अवतार तो, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) ४. पे. नाम, अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल आठ करी जिन आगल; अंति: तपथी कोडि कल्याण जी, गाथा-४. ५. पे. नाम. पंचतीर्थी थोय, पृ. १३आ, संपूर्ण. कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढमं; अंति: सया अम्ह सया पसत्था, गाथा-४. ६. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, म. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: गुणहर्ष० तणा निशदिश, गाथा-४. ७. पे. नाम. स्नातस्याचतुर्दशी स्तुति, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः सदा सर्वकार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ८. पे. नाम. पर्युषण स्तुति, पृ. १४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पर्युषणपर्व स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजूसण पुण्ये पाम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) १०५२६८. (+) सिद्धपंचासिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२, ३४३३). सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धं सिद्धत्थसअं; अंति: लिहियं देविंदसरीहिं, गाथा-५०, प्र.ले.पु. सामान्य. सिद्धपंचाशिका प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सि कहेता शिवसुख; अंति: परोपकारने अर्थे. १०५२६९ (+) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६२, भाद्रपद शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २१, ले.स्थल. द्रांगद्रा, प्रले. पं. उत्तमविजय गणि (गुरु ग. वनीतविजय); पठ. श्राव. अमरसी कानजी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:स्तुतिपत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १६४५०-५३). १.पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसुवन्न; अंति: देहि मे सुद्धनाणं, गाथा-४. २. पे. नाम. पंचकल्याणक स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: नाभेयं संभवं तं अजिय; अंति: सहिया पंचकल्लाण एसिं, गाथा-४. ३. पे. नाम. पंचतीर्थी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... ___ पंचतीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमुख्यतीर्थ; अंति: सुरास्ते संतु भद्रंकराः, श्लोक-४. ४. पे. नाम. सर्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.. २४ जिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: नाभेयाजितवासुपूज्यसुविधि; अंति: नेताः प्रयच्छंतु नः, श्लोक-४. ५. पे. नाम. आदिनाथ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तियहार सुतारगुणं; अंति: सुवाणि कुणे सुसया, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ३३५ ६.पे. नाम. वीर स्तति, प. १आ-२अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: सिद्धार्थपार्थिवकुलांबुज; अंति: जिनवर क्रमसेवनोक्ता, श्लोक-४. ७. पे. नाम. वीर स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: सिद्धार्थसिद्धार्थमह; अंति: मुख्यं प्रहतारिजातं, गाथा-४. ८. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: पढम पय निविट्ठ नाण; अंति: गिरीया देवि चक्केसरीया, गाथा-४. ९. पे. नाम. चंद्रप्रभ स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: वरअष्टमंगल जास आगलि रचय; अंति: तस अष्टमहासिद्धिकार, गाथा-४. १०.पे. नाम. चतुर्दशीतिथि स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. पत्रांक-२ से ४ तक चिपके हुए हैं. आ. ज्ञानविमलसरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (अपठनीय); अंति: सकल संघ दख हरणीजी, गाथा-४, (वि. पत्र चिपके होने से आदिवाक्य अपठनीय दिया गया है.) ११. पे. नाम, सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मंत्राधिप महिमा नवपद; अंति: धनो मोहनविजय इम भाखे, गाथा-४. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति- शामला, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-शामला, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मेरु महीधर सुंदर; अंति: वाधारं मोहन जयजयकारं, गाथा-४. १३. पे. नाम. पंचमीतिथि स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: पंचरूप धरियने त्रिदश; अंति: ज्ञानसुंदर० जगीसजि. १४. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. म. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजुसण पुण्ये; अंति: निसदिन करो वधाइजी, गाथा-४. १५. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रह उठी वंदु ऋषभदेव; अंति: ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. १६. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ.५आ, संपूर्ण. ग. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिनाथ भजो भगवंत; अंति: भणइ देवविजय कवि मुदा, गाथा-४. १७. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशजय तीरथसार; अंति: पाय ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. १८.पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर समरीइं; अंति: सांभलो ऋषभदासनी वाणी, गाथा-४. १९. पे. नाम. नेमजिन स्तुति, पृ. ६अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रावण सुदि दिन; अंति: ए सफल करो अवतार तो, गाथा-४. २०. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर, म. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमो भविका भाव; अंति: करयो नित जय जयकाराजी, गाथा-४. २१. पे. नाम. शत्रुजय गिरनारतीर्थ स्तुति, पृ. ६आ, संपूर्ण. शत्रुजयगिरनारतीर्थ स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवनमांहे तिरथ; अंति: भवशायर ते सहजे तरे, गाथा-४. १०५२७० (+) प्रतिष्ठाकल्प, संपूर्ण, वि. १९४०, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. लखनेउ, प्र.वि. हुंडी:प्रतिष्ठाकल्प. श्रीरषभदेव प्रसादात्., संशोधित., दे., (२६४१२, १५४४२-५०). जिनबिंबप्रतिष्ठा कल्प, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु.,सं., गद्य, आदिः पूर्वं चक्रस्य मृत्तिकाया; अंति: कुल चंद्रस्वात्म पर हेतवे. For Private and Personal Use Only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०५२०१ (+) शोभनचतुर्विंशतिका सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८६७, फाल्गुन कृष्ण, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १९, ले. स्थल. जगत्तारण, प्रले. मु. नवनिधविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्ो. (५६) वादृशं पुस्तकं दष्टं जै. (२६.५४१२, ५४३३-३६). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैकतरण; अंतिः हारताराबलक्षेमदा, स्तुति- २४, श्लोक- ९६. स्तुतिचतुर्विंशतिका-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि भव्य जीवा जीवादि पदार्थ, अति: नहीं छड़ मद जिणमई. १०५२७२ (+०) वैराग्यशतक सह टवार्थ व २१ प्रकार के पानी, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ६, कुल पे. २, ले. स्थल. वांकानेर, प्रले. ग. दयालरुचि (गुरु ग. अमृतरूचि पंडित); गुपि. ग. अमृतरूचि पंडित (गुरु पं. वल्लभरूचि); पं. वल्लभरूचि (गुरु ग. प्रेमरुचि पंडित) ग. प्रेमरुचि पंडित, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२७१२. ८x४१). १. पे. नाम. वैराग्यशतक सह टवार्थ, पू. १अ ६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी वैराग्यसतकसुत्रटबा०. श्रीमहावीरदेवप्रसादात्. वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि सुहं; अंतिः लहड़ जिउ सासवं ठाणं, गाथा- १०४ (वि. १८११, फाल्गुन कृष्ण, १३, वि. कृति के अंत में वीरसेन राजा का संक्षिप्त दृष्टांत दिया गया है.) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंति: लहई जीउ सासयं ठाणं, (वि. १८१२, चैत्र शुक्ल, ४) २. पे. नाम. २१ प्रकार के पानी, पृ. ६आ, संपूर्ण. २१ प्रकार के धोवण, मा.गु., गद्य, आदि: दार्घारानु उष्णजल; अंति: एक एकवीस पाणी साधुने खपे.. १०५२७३. (+०) बीसस्थानक तप विधि, संपूर्ण वि. १९७० वैशाख कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ५०, ले. स्थल. अजीमगंज, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रले. मु. मोतीलाल ऋषि (गुरु मु. विमलचंद्र ऋषि); गुपि. मु. विमलचंद्र ऋषि; पठ. श्रावि. सौभाग्यबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, वे., (२७४११.५, ११४२७). 7 २० स्थानकतप विधि, प्रा., मा.गु. सं., पंग, आदि नमो अरिहंताणं ए पद की २० अति सुख अनंत सुख अनुभवे. १०५२०४ (+) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण वि. १९७१ कार्तिक कृष्ण, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. ७ प्रले. हंसराज मुथा; लिख श्राव. जवाहरमल पुगलिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी दसवैका संशोधित, दे. (२७१२, २३x६९-७३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठे; अंति: अपुणागमं गइत्ति बेमि, "" अध्ययन १०. १०५२७५. गौतमपृच्छा सह बालावबोध व कथा, अपूर्ण, वि. १८९९, पौष शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ४६-१(१) + १ (२)=४६, प्र. वि. हुंडी : गौतमपूछा. वस्तुतः पत्रांक-१ बढ़ते पत्र में है. जैदे., (२७.५x११.५, १३४४२-४५). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न- ४८, गाथा- ६४, (पू.वि. गाथा-४ से है.) गौतमपृच्छा-बालावबोध+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: नै परभवनै विषै सुखी हुवै. १०५२७६ (०) लघुक्षेत्रसमास सह वालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ४९-२२ (१ से १३,३० से ३५,३८ से ४०) =२७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. कोष्ठक सहित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे. (२६.५x१२, ७X३०). ., लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य वि. १५वी, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. गाथा - ७७ अपूर्ण से १७६ अपूर्ण, १७७ से १८९ अपूर्ण तक व १९४ अपूर्ण से २४३ अपूर्ण तक है.) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण बालावबोध, मा.गु. सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-). १०५२७८ (+) साधुसमाचारी का बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र. वि. हुंडी: साधुसमाचारी, संशोधित. दे.. " (२६.५X१२, १५X३३-३६). कल्पसूत्र - हिस्सा साधु समाचारी का बालावबोध, मु. उल्लासचंद्र, मा.गु.. गद्य. वि. १९५०, आदि तिणकाल ते चोथा आरा में अंति: (१) की पर्युषणाकल्पनी, (२) उल्लासचंद० बीदासरसंस्थिते. For Private and Personal Use Only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ३३७ १०५२८० (+) चेतनकर्म विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १६x४५). चेतन वृतांत, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७३६, आदि: श्रीजिनचरण प्रणाम करी भाव; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२८२ अपूर्ण तक है.) १०५२८२ (+) शारदीयाभिधाना लघुनाममाला, संपूर्ण, वि. १९०५, आश्विन शुक्ल, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २७, ले.स्थल. लाठाडा, पठ. मु. चमनसागर (गुरु मु. फतेंद्रसागर, तपागच्छ); प्रले. मु. फतेंद्रसागर (गुरु पं. तेजसागर गणि, तपागच्छ); गुपि. पं. तेजसागर गणि (गुरु पं. दयासागर गणि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ८००, दे., (२७४१२, ११४३५). लघुनाममाला, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: विजयतां बतनाममाला, कांड-३, श्लोक-४६१. १०५२८३. (+) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८९७, फाल्गुन शुक्ल, १४, मध्यम, पृ.५, ले.स्थल. जालणाकालसकर, प्रले. मु. गुलाबचंद्र; पठ. श्राव. आणंदरूप सेठ, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, १०४३३). ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं; अंति: लभते पदमव्ययं, श्लोक-८४. १०५२८४. सूत्रकृतांगसूत्र हिस्सा श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-१ पोंडरीयं सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १६-१०(१ से १०)=६, प्र.वि. हुंडी:पुखरणी., पंचपाठ., जैदे., (२७४१२, ११४२६-३०). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-१ पुंडरीक, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., 'चउत्थे परिसजाते' पाठ अपूर्ण से है व अंतिम कुछ पाठांश नहीं है.) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा श्रुतस्कंध २ अध्ययन १ पुंडरीक का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं. १०५२८६ (+#) पार्श्वनाथ गजल व सरस्वती छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २,प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १०४२९). १.पे. नाम. पार्श्वजिन गजल-वरकाणामंडन, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण, वि. १८५७, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ४, ले.स्थल. बृद्धनगर, प्रले. मु. लावण्यसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. जिनेंद्रविजयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४१, आदि: सारद मात मयाकरी दीजै वचन; अंति: विजयजिनेंद्रसूरि० मिल्यौ, गाथा-६३. २. पे. नाम. सरस्वती छंद, पृ. ६आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है. सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: शशिकर जिनकर समुज्ज्व; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ अपूर्ण तक लिखा है.) १०५२८७. सागरमत बोल छत्रीसी व उपाधिमति गरुलोपी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, जैदे., (२७.५४१२,१०-१३४४०-४३). १.पे. नाम. सागरमत बोल छत्रीसी, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण. ग. जयविजय पंडित, मा.गु., पद्य, वि. १६०४, आदि: विजय चिंतामणि प्रणमी पाय; अंति: जयविजय०सुख अनंता पामइ तेह, गाथा-११६. २.पे. नाम. उपाधिमति गरुलोपी सज्झाय, प. ६आ, अपूर्ण, प.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. कल्याणविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमिय वीर जिणेसर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) १०५२८८. जयानंदकेवली रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हुंडी:ज०के०., दे., (२७४१२, १४४१०). जयानंदकेवली रास, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: प्रथम प्रथम प्रणमुं; अंति: (-), (पू.वि. खंड-१ ढाल-४ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०५२९२ (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४-१(१ से ९)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, ५४३६). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३ से २७ तक है.) १०५२९३. (+) स्तोत्र व मंत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ८, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४१२, १५४३७). १. पे. नाम. पद्मावती स्तोत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: जगत्पदमावतीस्तोत्रम्, श्लोक-२६. २. पे. नाम. सरस्वती बीज मंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी बीजमंत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं; अंति: गुणीयै सरस्वती मंत्रो. ३. पे. नाम. मोहिनीविद्या मंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐनमो कराली महाकराली; अंति: जापे सिद्धिर्भवति. ४. पे. नाम. पार्श्वपद्मावती मंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं; अंति: (१)वृद्धि कुरु कुरु स्वाहा, (२)२१ ताई जपणौ वार २१ नित. ५. पे. नाम. अट्टेमट्टे मंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण.. पार्श्वपद्मावती मंत्र-अट्टेमट्टे, सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते श्रीपार्श्व; अंति: दर्शनचारित्रेभ्यो नमः. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन मंत्र- कलिकुंड, पृ. ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिनमंत्र विधान-कलिकंड, सं., गद्य, आदि: ॐह्रीं श्रीं तं नमहपासना; अंति: (१)कलिकुंड स्वामिने स्वाहा, (२)प्रभुत्वं लभते. ७. पे. नाम, कलिकुंड दंड स्तोत्र, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-कलिकंडमंडन, आ. मनिचंद्रसरि, सं., पद्य, आदि: नमामि श्रीपार्श्व; अंति: शमयत समग्रं भवभयम, श्लोक-८. ८.पे. नाम. मांगलिक श्लोक, पृ. ३आ, संपूर्ण.. महावीरजिन विशेषण-हिस्सा मांगलिक, प्रा., गद्य, आदि: नमिऊण असुर सुर; अंति: एरियं उवजाय सब साहूय, (वि. विधि सहित.) १०५२९४. विचारपंचाशिका सह स्वोपज्ञ अवचूरि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. त्रिपाठ., दे., (२६४१२.५, १३४३७). विचारपंचाशिका, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि: वीरपयकयं नमिउं देवा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ तक है.) विचारपंचाशिका-स्वोपज्ञ अवचूरि, ग. विजयविमल, सं., गद्य, आदि: वीरपदकजं श्रीमहावीर; अंति: (-). १०५२९६ (+) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. १८, प्र.वि. हुंडी:स्तुतिपत्र., संशोधित., दे., (२६४१२, ९४३१-३५). १. पे. नाम. मौन एकादशीपर्व स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नयरी द्वारामती कृष्ण; अंति: जे कवि नय इम पभणीजे, गाथा-४. २. पे. नाम. मौनएकादशी स्तुति, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ संभाली; अंति: श्रीसंघ विघन निवारी, गाथा-४. ३. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तुति, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. म. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सासननायक श्रीमहावीर; अंति: द्यो सरसती वर वाणी, गाथा-४. ४. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ३३९ सं., पद्य, आदि: समुद्रभूपालकुलप्रदीपः; अंति: देवी जगतः किलांबा, श्लोक-४. ५. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. म. संघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगिरनार शिखर; अंति: संघ० दरिसन नित्य दिवाली, गाथा-४. ६. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: श्रावण सुदि दिन; अंति: ए सफल करो अवतार तो, गाथा-४. ७. पे. नाम. पंचमीतिथि स्तुति, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. पंचमीतिथी स्तुति, मु. दयाकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमी गति आपे तप; अंति: कुशल० पूरो आश अमारी, गाथा-४. ८.पे. नाम. पोष दशमीतिथि स्तुति, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. पोषदशमीतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: इहलोक परलोके पूरे; अंति: लब्धि०पार्श्वनाथ मनरंगेजी, गाथा-४. ९. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तुति, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. पं. मतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: निरमल वंदं जिम गोक्षीर; अंति: संभारे कहीइं ए मत विसारे, गाथा-४. १०. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. म. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तर भेदे जिन पूजा; अंति: पुरो देवी सिद्धाइजी, गाथा-४. ११. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण.. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वंदु जिणवीर सुवद्धमाण; अंति: लब्धिविजय० आराहें भाव जेह, गाथा-४. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तति, पृ. ९आ, संपूर्ण. म. लब्धि, मा.गु., पद्य, आदि: शंखेसर पास जिनेसरूं; अंति: लब्धि० तुमे मुज मननी खंत, गाथा-४. १३. पे. नाम. कुंथुजिन स्तुति, पृ. ९आ, संपूर्ण. मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गजपुरनयर मनोहर गाम; अंति: विनय कहें० तेहनो करो पसाय, गाथा-४. १४. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. १०आ-११आ, संपूर्ण. श्राव. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशजय तीरथसार; अंति: पाय ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. १५. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. म. विजयसिंह-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर भाख्यो महि; अंति: ते सुख देज्यो नितमेव, गाथा-४. १६. पे. नाम, अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अभिनंदन जिनवर परमानं; अंति: ज्ञानविमल कहे सीस, गाथा-४. १७. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूपस्त्रिदशप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. १८. पे. नाम, सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत नमो वळी सिद्ध; अंति: नय विमलेसर वर आपो, गाथा-४. १०५२९७. चैत्यवंदन भाष्य सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १९०५, भाद्रपद कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. पल्लिका नगर, प्र.वि. हुंडी:भाष्य. श्रीनवलक्षपार्श्वेश्वरप्रसादतः., त्रिपाठ., दे., (२६४१२, १२४४८). चैत्यवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: परमपयं पावइ लहं सो, गाथा-६३. चैत्यवंदनभाष्य-अवचूर्णि, सं., गद्य, आदि: वंदि० वंदीयान् परमेष्ठिनः; अंति: धर्मचिंतन इति वचनात्. १०५२९८. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०३, प्र.वि. हुंडी:प्रश्नव्या०सू०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ५४४१-४४). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जंबू इणमो अण्हयसंवर; अंति: सरीरधरे भविस्सइति, अध्याय-१०, गाथा-१२५०, ग्रं. १३००. For Private and Personal Use Only Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)जं० हे जंबू सुसिष्य, (२)प्रश्नव्याकरण दसमउ; अंति: शरीरनो धरणहार १०५२९९ (+) त्रैलोक्य प्रकाश, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रावण कृष्ण, ३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३५, ले.स्थल. पटियाला, प्रले. मु. सरदारमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १६४३५). त्रैलोक्यप्रकाश, आ. हेमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्पार्धाभिधं; अंति: दर्शिता स्वयं, श्लोक-१२५०. १०५३०० (+) १२ भावना, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४१२.५, १४४२९-४२). १२ भावना सज्झाय-बृहत्, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-३ ___अपूर्ण से ढाल-११ दोहा-२ अपूर्ण तक है.) १०५३०२. (+) हीरविजयसूरि रास, संपूर्ण, वि. १८२८, फाल्गुन शुक्ल, १५, सोमवार, मध्यम, पृ. ११०, ले.स्थल. अंकलेश्वर, प्रले. मु. गोविंदविजय; अन्य. मु. कृष्ण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:हीरविजयसूरीनो रास., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (९६४) यादृशं पुस्तके दृष्टां, जैदे., (२६४११.५, १५४३५-३९). हीरविजयसूरि रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६८५, आदि: सरसति भाषा भारती; अंति: नाम जपतां जि कोये, गाथा-३११९. १०५३०३. (#) गौतमस्वामि रास, संपूर्ण, वि. १७२५, जीर्ण, पृ. ८, प्रले. सा. प्रेमश्री (गुरु सा. माणिक्यश्री); गुपि. सा. माणिक्यश्री; पठ. श्रावि. रायसिंग भार्या; अन्य. उपा. लावण्यविजय गणि (गुरु गच्छाधिपति विजयदेवसरि); गुपि. गच्छाधिपति विजयदेवसरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, ९४३०). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमला; अंति: विनयप्रभ० भणइ एणी जई, गाथा-७५. १०५३०४. दानसिलतपभावना सतक व शत्रुजा उद्धार, अपूर्ण, वि. १८४६, फाल्गुन, मध्यम, पृ. १०-५(१ से ५)=५, कुल पे. २, ले.स्थल. उजेणीनगर, जैदे., (२६.५४१२, १२४४५). १.पे. नाम. दानसिलतपभावना सतक, पृ. ६अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: समयसुंद०सुप्रसादो रे, ढाल-४, गाथा-१०१, (पू.वि. गाथा-९५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. शेजा उद्धार, पृ. ६आ-१०आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:शेव्रुजाउद्धार. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर मंडन; अंति: नयसुंदर० दर्शन जय करो, ढाल-१२, गाथा-१२०. १०५३१० (+) अष्टप्रकारी पूजा विधि, संपूर्ण, वि. १८९८, चैत्र शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. लास, प्रले. पं. खुशालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पूजाओं के नाम हासिये में लिखें हैं., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४११.५, ११४२८-३२). ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: अजर अमर अकलंक जे; अंति: देवविजय० मोक्षं हि वीराः, ढाल-९, गाथा-७७. १०५३१२. (+) मेणरेहारी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.६, ले.स्थल. सोजत, प्र.वि. हंडी:मेणरेहा., संशोधित., जैदे., (२७४१२, १६४३७-४०). मदनरेखासती रास, मा.गु., पद्य, आदि: जूआ मांस दारु थकी; अंति: परनारी त्यागीज्यो, गाथा-१६४. १०५३१३. (+#) गौतमपृच्छा सह बालावबोध कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०-३(१ से ३)=१७, प्र.वि. पत्रांक खंडित होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२९४१२, १५४४२-४६). गौतमपृच्छा , प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., गाथा-३७ से ४९ तक है.) गौतमपृच्छा-बालावबोध कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ३४१ १०५३१४. (+) षट्पुरुष चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३०, प्र. वि. हुंडी: षटपु०च०. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैटे., (२७.५X११.५, ११X३५). षट्पुरुष चरित्र, ग. क्षेमंकर, सं., गद्य, आदि: श्रीअर्हतञ्चतुः अतिः श्रविणं विचारम्. १०५३१५. (+) सूत्रकृतांगसूत्र का वीरस्तुति अध्ययन, अपूर्ण, वि. १९४०, आश्विन शुक्ल, ३, सोमवार, मध्यम, पृ. ६-१(४)=५, प्र. वि. हुंडी: पुछि०, संशोधित. दे. (२८१२, ५४२७-३०). " सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिस्सुणं समणा; अंति आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा - २९, ( पू. वि. गाथा - १५ अपूर्ण से २२ अपूर्ण तक नहीं है . ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , १०५३१६. (+) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २५-२ (४ से ५ )= २३, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.. प्र. वि. हुंडी: दसविकालक, संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५४१२, १२३७). . दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुक्किङ्कं अंति (-) (पू.वि. अध्ययन- १० तक है व अध्ययन ४ सूत्र- १ अपूर्ण से १२ अपूर्ण तक नहीं है.) जैदे., १०५३१७. (+) आचारांगसूत्र- प्रथम श्रुतस्कंध सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७८, प्रले. महेश्वर पाठक, लिख. श्राव. जेठा दोशी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : आचा०सू०., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., (२६.५X११.५, ५X३३-३८). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, आचारांगसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसुधर्मास्वामी अति (-), प्रतिपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, १०५३१८. (+४) कल्पसूत्र का व्याख्यान- पांचवी वाचना, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. ७-२ (१ से २) =५, प्र. वि. हुंडी: पांचमीवाचना, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जै. (२५४१२, १४४३१). , "" कल्पसूत्र व्याख्यान, सं., पद्य, आदि (-) अंति: (-) (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. श्लोक-४४ अपूर्ण से है.) १०५३१९. च्यारि मंगल, संपूर्ण, वि. १८९६, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ५, ले. स्थल. मेडता, प्रले. श्राव. बुद्धहंस, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X१२, १४x२९-३२). ४ मंगल चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी नित नमुं सकल; अंति: उधरीए गयाज मारो जीतके, ढाल-४, गाथा - ९५. १०५३२० (+) गौतमपृच्छा सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १९१७ आश्विन शुक्ल, १४ शनिवार, मध्यम, पृ. १३, ले. स्थल. पालीपुर, प्रले. पूनमचंद बोडा; पठ सा. सोनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी गौतमपु०, संशोधित. दे., (२५.५X१२, ८x४१). " गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न- ४८, गाथा-६४. गौतमपृच्छा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीन; अंति: ते मोटा अर्थ पिण. गौतमपृच्छा-कथा संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: जिम कोइ एक गाम महाधनाढ्य; अंति: सूर० परे नास्तिकमत छांडीजे. १०५३२२. (४) पूजापंचाशिका सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ६ प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १८x४८-५५). पूजापंचाशिका, सं., पद्य, आदि स्तुतिमानीयमानीय भारती अंतिः प्राप तदच रचयंतु भो, श्लोक-४८. पूजापंचाशिका टीका, सं. गद्य, आदिः स श्रेयः श्री० पूजापंचाशि; अंति: त्रिभुवनोदर विवरोवल्लवः, कथा ४८. " १०५३२३. () बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों " की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X१०, १६x४४). बृहत्संग्रहणी, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ७यू आदि नमिठे अरिहंताई दिइ भवणो; अति: (-), (पू.वि. गाथा - १७७ तक है.) For Private and Personal Use Only १०५३२४. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. ४४-३९ (१ से ३९) = ५ पू.वि. बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. हुंडी : दश०ट०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२५.५१२, ५४३८). Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-७ गाथा-२७ अपूर्ण से अध्ययन-८ गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) । दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०५३२५ (+#) उत्तमकुमार चौपाई, संपूर्ण, वि. १८१२, कार्तिक कृष्ण, ४, शनिवार, जीर्ण, पृ. ४२, ले.स्थल. डाईलाणा, पठ. ग. वीरमविजय (गुरु आ. प्रतापविजय); गुपि. आ. प्रतापविजय (गुरु आ. मेघविजय); आ. मेघविजय (गुरु आ. विजयरत्नसरि भट्टारक); आ. विजयरत्नसूरि भट्टारक, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १५-१८४३६-४६). उत्तमकुमार चौपाई, मु. तत्त्वहंस, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सरसति सामण पय नमी; अंति: सुणीयो सहु मन रंग रे, ढाल-५१, ग्रं.१६३६. १०५३२९ सीमंधरस्वामी विनती पत्र, संपूर्ण, वि. १९२८, आश्विन शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. हाडेजा, प्रले. मु. खेमचंद (गुरु मु. कस्तूरचंद, खरतरगच्छ); गुपि.मु. कस्तूरचंद (गुरु मु. रामचंद, खरतरगच्छ); मु. रामचंद (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, १०४३०). सीमंधरजिन विनती पत्र, क. नर, मा.ग., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीमहाविदेह; अंति: आंण वृतावी, पत्र-२. १०५३३२. (+#) पून्ये प्रभावें मच्छोदर चौपइ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१, ले.स्थल. शांतलपुरनगर, प्र.वि. हुंडी:मच्छोदर रास. शांतिनाथ प्रसादात्., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १९४४७-५०). मत्स्योदर रास-पुण्यप्रभावे, मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: शांतिकरण जिनशांतजी सुखदाय; अंति: चिरविमल० तस घर कोड कल्याण, ढाल-३३. १०५३३३. (+) श्रावक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. मु. विद्याविजय (गुरु ग. भीमविजय, तपागच्छ); गुपि.ग. भीमविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:श्रावक अतिचार., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (६४९) जब लग मेरू थीर रहे, (१४११) एक एक अक्षर भणे, जैदे., (२७.५४१२, १५४२७-३०). श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: विशेषतः श्रावकतणइ; अंति: करीने मिच्छामि दुक्कडं. १०५३३४. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४९-१(३७)=४८, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:उत्तराध्येटबो., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ५४३९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१४ गाथा-३७ __ अपूर्ण तक है व अध्ययन-१२ गाथा-१८ अपूर्ण से २६ अपूर्ण तक नहीं है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, आ. राजचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)वर्द्धमानजिनं नत्वा, (२)पूर्वसंयोग ते मातादि; अंति: (-). १०५३३५ (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९००, आषाढ़ कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ४५, ले.स्थल. लाखरी, प्र.वि. हुंडी:दशमीकाल., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२,७४३५-३८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपणागमं गइ त्तिबेमि, अध्ययन-१०. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ध० धर्म म० मंगलिक उ०; अंति: तीर्थंकरनो प्ररूप्यो. १०५३३८. (#) बारमासा, स्तवन व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, कुल पे. १४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२, १०४३६). १.पे. नाम, विजयघोषजयघोष सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वाणारसी नयरी वसे विज; अंति: उदै कहे० प्रतपो कुलचंद हो, गाथा-९. For Private and Personal Use Only Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ३४३ २. पे. नाम. चित्रसंभूतिमुनि सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. चित्रसंभूति सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चित्र अनइ संभूतए गजपुरमा; अंति: कहे गुण मुनि तणाए, गाथा-११. ३. पे. नाम. नमीराजानी सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: देवतणी ऋधि भोगवी; अंति: उदयविजय० वचने रे, गाथा-९. ४. पे. नाम. इक्षकारी सझाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. भूगपुरोहित सज्झाय-रात्रिभोजन परिहार, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: देव तणी ऋद्ध भोगवि; अंति: उपदीसै उदयविजय उवज्झाय, गाथा-६. ५. पे. नाम. मुनिगुण सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. उपा. उदयविजय, मा.ग., पद्य, आदि: तप करता मुनि राजीया; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ तक लिखा है.) ६. पे. नाम. सांतिजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, म. समतिकशल, मा.गु., पद्य, आदि: सांतीसर जगदीसर साहिब; अंति: सुमति० पूज्यां फल अति घणो, गाथा-७. ७. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. ___मु. अनोपकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सांतिजिणेसर सोलमो जवदपुर; अंति: अनोपकुशल० जिनवर गुण गाय, गाथा-९. ८. पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मु. सिंहकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: थाहरी सूरति अतिहि सुहामण; अंति: सिहकुशल० कमला नितमेव, गाथा-७. ९. पे. नाम, मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मुनिसुव्रत शुं मोहनी; अंति: राम कहै शुभ सीस हो, गाथा-५. १०. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ.५आ, संपूर्ण. मु. गौतमसोम, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत नेम; अंति: गौतमसोम इम बोलै वाणी, गाथा-५. ११. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मु. रुचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: माहरा नेम पियारा लो नेमजी; अंति: रुचीविमल० फली रे लोल, गाथा-११. १२. पे. नाम. नेमि बारहमासी, पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण मासे स्वाम; अंति: कविण० नवनिधि पामी रे, गाथा-१३. १३. पे. नाम. नेमजीनी बारहमासी, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासा, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: वैशाखें वन मोरीया; अंति: जिनहर्ष० पुहता मुगति मझार, गाथा-१३. १४. पे. नाम. नेमजीन स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, पं. मनरूपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सौरीपुर नगर सुहामणो; अंति: मनरूप प्रणमई पाय, गाथा-१५. १०५३३९ (+) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८-३(१ से ३)=५, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १०x२९). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. भयहर स्तोत्र गाथा-१८ अपूर्ण से अजितशांति तक है.) १०५३४० (+#) ६४ प्रकारी पूजाद्वय विधिसहित, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३९, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, ११४३१). १. पे. नाम. ६४ प्रकारी पूजा विधि सहित, पृ. १आ-३९अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३४४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६४ प्रकारी पूजा विधिसहित पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य वि. १८७४, आदि: श्रीशंखेश्वर साहिबो अंति: चंद (१८७४) वर्ष विराजते, पूजा-६४. २. पे. नाम. ६४ प्रकारी पूजा विधि, पृ. ३९अ ३९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ६४ प्रकारीपूजा विधि, मा.गु. गद्य, आदि: विशाल जिनभुवनमं सुमु अति: (-) (पू.वि. पांचवें दिन की विधि अपूर्ण तक है.) " १०५३४१ (+४) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. १४६-१ (१) = १९४५, पू. वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, ५X४८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- १ गाथा-४ अपूर्ण से अध्ययन-३६ गाथा-७१ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). *, " " १०५३४२. (+) बारव्रत विवरण, संपूर्ण, वि. १९०४, वैशाख शुक्ल, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ९९, ले. स्थल. खीवेलनगर, प्रले. मु. फतेंद्रसागर (गुरु पं. तेजसागर गणि, तपागच्छ); गुपि. पं. तेजसागर गणि (गुरु पं. दयासागर गणि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीशांतिनाथजी प्रसादात् संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ दे. (२७१२, १३४४०). १२ व्रत टीप, मु. उद्योतसागर, मा.गु., गद्य, आदि: सदा सिद्ध भगवान के; अंतिः परमकल्याणमा लावै वरै. १०५३४३ (+) रामविनोद, संपूर्ण, वि. १८८३, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ८४, प्र. वि. हुंडी : रामविनो०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ३१०१, प्र.ले. श्लो. (१४१२) जवलग मेरु अडग है, जैये., (२५x१२, १३४३८-४५). रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि (१) सिद्धबुद्धिदायक सलहीये, (२) सुभमति सरस्वती सिमरीये, अति: रामचंद० जालगि मेरुविणंद, समुद्देश- ७, गाधा- १६१७, (वि. अंत में औषध संग्रह दिया है.) १०५३४५ (+४) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १४८-२ (८,९४) = १४६, पू. वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६×१२, ७-१५X३९-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. व्याख्यान - ९ गाथा - ६१ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतने नमस्कार होवो; अंति: (-). कल्पसूत्र - बालावबोध, मा.गु., रा., गद्य, आदि (-): अंति: (-), (पू.वि. पुरुष के बत्रीसलक्षण वर्णन से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०५३४६. (#) ढोलामारु चोपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैवे. (२६.५x१२.५, १९४४०-५५). ढोलामारु चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि सकल सुरासुर सामिणी सुण, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६०० तक है व प्रतिलेखक ने गाथा- २३४ अपूर्ण से २४८ अपूर्ण तक नहीं लिखा है.) १०५३४७. लीलावती भाषा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७X१२.५, १५X३८-४७). लीलावती भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि सोभित सिंदूर पुर अति (-) (पू.वि. अध्याय- ४ त्रैरात्रिकवर्णन अपूर्ण तक है.) १०५३४९ (+) शांतिक विधि, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १९, प्र. वि. संशोधित, जै.. (२६.५X१२, ९४२५-३०). शांतिक विधि, मा.गु.,सं., प+ग, आदि: तिहां प्रथम शुभ दिन; अंति: रोगशोक० दूरतो यांति. १०५३५०. (#) गणेशाष्टक, पद्मावती स्तोत्र व पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५X१२, १३३३-३६). "" १. पे. नाम. गणेशाष्टक, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: 35 35 35 काररूपं त्र्यहमिति अंति: हृदये भक्तिभाजं सुरेद्रः, श्लोक ८. For Private and Personal Use Only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ३४५ २. पे. नाम. पद्मावती स्तोत्र, पृ.१आ-५अ, संपूर्ण. ___ पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: पद्मावती स्तोत्रम्, श्लोक-३३. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. __ आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-९ तक है.) १०५३५२.(+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८३८, आश्विन कृष्ण, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. १६२-७४(१ से ७३,८३)3८८, ले.स्थल. शिवाणादुर्ग, प्रले. पं. हर्षविजय (गुरु पंन्या. वनीतविजय); गुपि. पंन्या. वनीतविजय (गुरु पं. कनकविजय); पं. कनकविजय (गुरु आ. विजयरत्नसूरि); आ. विजयरत्नसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हंडी:कल्पसूत्र. श्रीपार्श्वनाथजी प्रशादात्., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२,५-१४४३४-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: कासवगुत्ते पणिवयामि, व्याख्यान-९, (पू.वि. व्याख्यान-५ महावीरस्वामी पाठशाला गमन से है व बीच का पाठांश नहीं है.) कल्पसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: कास्य गोत्र पतेंवादूं. कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: कही वखाण पूर्ण कीजैइ. १०५३५३. (+) ८ कर्म १५८ प्रकृति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२, १६x४०-४४). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: इहां सुशिष्य पूछै; अंति: मुक्तपदार्थ मिले. १०५३५४. (+) चंद्रार्की व पार्श्वजिन चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-१२(१ से १२)=७, कुल पे. २, ले.स्थल, जीर्णगढ, प्रले. मु. मनसुख ऋषि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, ७१६). १.पे. नाम. चंद्राकी सूत्र, पृ. १३अ-१९अ, संपूर्ण. चंद्रार्कीपद्धति, दिनकर गणक, सं., पद्य, आदि: सूर्यं चंद्रं सद्गर; अंति: द्विमुणं अंसादिस्मय, श्लोक-३६. २. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १९आ, संपूर्ण. सकलकशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकल कुशलवल्ली पुष्करावर्त; अंति: भो श्रेयसे पार्श्वनाथः, श्लोक-१. १०५३५८. प्रद्युम्नशांब प्रबंध, संपूर्ण, वि. १८७३, पौष शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ३७+२(१४,१९)=३९, प्रले. मकनजी डोसा जानी; लिख. श्रावि. भाणबाई; गृही. मु. देवराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ८००, जैदे., (२३.५४११.५, १०४२३-२६). सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: श्रीनेमीसर गुणनिलुं; अंति: एम पभणइ संघनइ सुजगीस ए, खंड-२ ढाल २२, गाथा-५३५, ग्रं. ८००. १०५३६० (+#) पंचांगविधि दोहा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. हंडी अपठनीय है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १४४३३). पंचांगविधि दोहा, म. मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: गवरि नंद आनंदकर प्रणमी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४९ तक है.) १०५३६२. (+) नेमराजिमती बारमासो व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, कुल पे. १२, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (१०४५, ५४१०). १. पे. नाम. रुषभजिन स्तवन, प. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: रिषभ जिनेसर प्रीतम; अंति: अर्पणा आनंदघन पद रेह, गाथा-६. २. पे. नाम. शंखेश्वर पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सारकर सारकर स्वामी; अंति: नेक नयणे निहालो, गाथा-७. ३. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. हिम्मत, मा.गु., पद्य, आदि: दरसण माहरा प्रभुजी; अंति: हीमत रे सुरुतरु सानंद, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा-१२ ३४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम, क्रोधउपरि सिझाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. __ औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध न करीयै भोला; अंति: उपसम आणी पासे रे, गाथा-९. ५. पे. नाम. मानोपरि सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अभिमान म करजो कोई; अंति: भावसागर० रह्या चोमासै हो, गाथा-८. ६. पे. नाम. मायाउपरि स्वाध्याय, पृ. ३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: माया मूल संसारनो; अंति: सुख निरावांणि हो, गाथा-७. ७. पे. नाम, लोभोपरि स्वाध्याय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: लोभ न करीये प्राणीया; अंति: पामे सयल जगीस, गाथा-७. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. गोस्वामी तुलसीदास, पुहि., पद्य, आदि: आनंदवन गीरजापत नगरी; अंति: तुलसी० हर्षत मंगल गावे रे, गाथा-४. ९. पे. नाम. नेमराजेमतीरो बारैमास, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.. नेमराजिमती बारमासा, म. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावणमासै स्वांम मेहली; अंति: कवियण० नवनिध पामी रे, गाथा-१३. १०. पे. नाम. नेमराजमती बारमास, पृ. ५अ-७आ, संपूर्ण. नेमिजिन बारमासा, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रेम बिलूधी पदमणी; अंति: कवियण सिरेसुर नेम, गाथा-४६. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: रहनी रहनी रहनी अलगी रहनी; अंति: मोहन जिन गुण स्तुत लटकाली, गाथा-५. १२. पे. नाम, अजितजिन स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण. आ. जिनराजसरि, मा.ग., पद्य, आदि: तार करतार संसार सागर; अंति: तरे जेह रहै पासै, गाथा-४. १०५३७० (+) नवस्मरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. हुंडी:सात्तेसिम०., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५४११.५, ५४१०). नवस्मरण, म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम; अंति: (-), (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अजितशांति तक लिखा है.) १०५३७१ (+) ४ मंगल, साधुप्रतिक्रमणसूत्र व वंदित्तुसूत्र आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९४, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. १७, कुल पे. ८, प्रले. आ. भावविजय; पठ. मु. चांदमल (गुरु आ. भावविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५४११.५, ११४२८). १. पे. नाम. ४ मंगल, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत; अंति: धम्म सरणं पवज्जामि, गाथा-३. २. पे. नाम. साधुवंदना, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. साधपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.ग., प+ग., आदि: इच्छामी पडिकमिओ पगाम; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. ३. पे. नाम. वंदेतुसूत्र, पृ. ४अ-७अ, संपूर्ण. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ४. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन, पृ. ७अ-९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: पार्श्वनाथ नमस्तुभ्य; अंति: त्रिभुवन चूडामणि भगवान, श्लोक-३४. For Private and Personal Use Only Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५. पे. नाम. जीवविचार, पृ. ९अ - ११आ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः संतिसूरि० सुवसमुद्दाओ, गाथा-५१. ६. पे नाम, नवतत्व, पृ. ११ आ-१४आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: लेसा तिन्नि सेसाणं, गाथा-५५. ७. पे. नाम. दंदक, पृ. १४आ- १७अ संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि नमिठ चोवीसजिणे अंति: गयसारेण० अप्पहिया, गाथा ४०. ८. पे. नाम श्लोक संग्रह, पृ. १७अ १७आ, संपूर्ण. ३४७ सं., पद्य, आदि मिथ्यात्व सास्वादनं अंति: चतुर्मासिक मंडनानि श्लोक ५. १०५३७२. (+) नवस्मरण व संखेश्वरपार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित-अन्वय अंक युक्त पाठ., जैदे., (२३.५X११, १०X२७). १. पे. नाम. नवस्मरण-१ से ५ स्मरण, पृ. १आ-१०अ, संपूर्ण. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्; अंति: (-), प्रतिपूर्ण २. पे. नाम. संखेश्वरा पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १०आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदिः ॐ नमः पार्श्वनाथाय अंतिः पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक ५ १०५३७३ (४) अष्टप्रकारी पूजा रास, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १७, प्र. वि. हुंडी पूजारास अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२३X११, २०x४४). ८ प्रकारी पूजा रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: अजर अमर अकलंक जे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल २१ गाथा ८ अपूर्ण तक लिखा है.) १०५३७४ (+#) आषाढाभूति ढाल व विक्रमचौबोली रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र. वि. हुंडी : अषाडा., संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२२.५x११.५, २१४३४-३९). १. पे नाम. आषाढाभूतिमुनि चोपाई, पृ. १अ ५अ संपूर्ण. आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३७, आदि: सासणनायक सुरवरूं; अंति: मानसागर शुभ वाण रे, ढाल ७. २. पे. नाम. विक्रमचौवोली रास पुण्यफलकथने, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. वा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: वीणा पुस्तक धारणी; अंति: (-), (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल- १ गाथा-४ तक लिखा है.) १०५३७५. (+) भक्तामर स्तोत्र, बृहच्छांति स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ४, प्र. वि. पदच्छेद लकीरें. दे. (२३४११.५, १०X२५-२८). १. पे. नाम, भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ ५आ, संपूर्ण, वि. १९५३ माघ शुक्ल १३, सोमवार, पे.वि. हुंडी भक्ता०. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि भक्तामर प्रणित मीलि अंति मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. For Private and Personal Use Only २. पे. नाम. बृहच्छांति स्तवन, पृ. ६अ-८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : सातेसि ०. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयतु शासनम्. ३. पे. नाम. महावीरजिन २७ व्याख्यान - प्रथम श्लोक, पृ. ८आ, संपूर्ण. महावीरजिन २७ भव व्याख्यान, सं., गद्य, आदि: ग्रामेश१ खिदशोर अंति: (-) प्रतिपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ४. पे. नाम औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. ८आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पुडि., प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: कुग्रामवास कुनरेंद्र, अति नरका भवति श्लोक-१. १०५३७६ (४) चोविसदंडक, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२२x११, ४४१६-२० ). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउ चउवीस जिणे; अंति: गजसारेण० यप्पहिया, गाथा- ४२. Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०५३७७. (+#) दशपच्चक्खाणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१२, १०x१५-१८). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: गारेणं वोसिरामि. १०५३७८. (+) बूढेवररी चौपई, अपूर्ण, वि. १९०३, आषाढ़ शुक्ल, ४, शनिवार, मध्यम, पृ. १३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:बूढरीचौ०., संशोधित., जैदे., (२२.५४११.५, ११४२४). बुढापा रास, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माता वीनवु गणधर; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१५ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) १०५३८० (+) निशीथसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९४, कार्तिक शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १२८, ले.स्थल. विकानेर, प्र.वि. हुंडी:निसीत०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ७५००, जैदे., (२२.५४११.५, ६४३७). निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जे भिखु हत्थकम्म; अंति: पसिस्सोवभोज्जं च, उद्देशक-२०,ग्रं. ८१५. निशीथसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुवो सु०; अंति: लिखी छे सर्व पहिली. १०५३८९. (+) ज्योतिषसार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२४११.५, ८x२५). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतं जिनं नत्वा; अंति: माया राहुभवं निव्यंतर. १०५३९० (+) रोहिणरैवतरौ चौढालियौ व शीलउपर शिक्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प.५, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२२.५४११.५, ११४३२). १.पे. नाम. रोहिणरैवतरौ चौढालियौ, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:रोहिणचौ. रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासनदेवी सांमणी ए; अंति: श्रीसार० सयल मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-२६. २. पे. नाम. शीलउपर शिज्झाय, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:शीलशि०. शीयलव्रत सज्झाय, म. उत्तमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८४४, आदि: श्रीअरिहंत नित सिमरियै मन; अंति: कथियो उत्तमचंद रे, गाथा-२०. १०५३९२ (+) अनुयोगद्वारसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०८,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४११.५, ६४३०-३६). अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प+ग., आदि: नाणं पंचविहं; अंति: जं चरणगुणट्ठिओ साहू, प्रकरण-३८, संपूर्ण. अनुयोगद्वारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करुं वीतराग; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., आवश्यक-अध्ययन अपूर्ण तक लिखा है.) १०५३९५ (+#) समाचारी शतक, अपूर्ण, वि. १८३४, श्रावण कृष्ण, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. २४१-२(१८,१९०)=२३९, प्र.वि. हंडी:समाचारीश०., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७४११.५, १०-१३४३८-४२). सामाचारी शतक, उपा. समयसंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६७२, आदि: श्रीवीरं च गुरुं नत्वा; अंति: चिरमनुपम सर्वकल्याणकारि, प्रकाश-५, (प.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०५३९६. (+) कायस्थिति स्तोत्र सह अवचूरि व पार्श्वनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९-४(१ से ४)=५, कुल पे. २, प्र.वि. हुंडी:कायस्थिति., संशोधित., दे., (२७४१२, १०x४१). १.पे. नाम. कायस्थिति सह अवचूरि, पृ. ५अ-९आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १९०४, एकोनविंशतिशत चतुर्थे, भाद्रपद शुक्ल, १५, ले.स्थल. खीमेल. कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: अकायपयसंपयं देसु, गाथा-२४, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है.) कायस्थिति प्रकरण-टीका, आ. कलमंडनसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: दत्स्व मिति शेषः. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण, वि. १९०४, चैत्र शुक्ल, २, ले.स्थल. लाठाडा, प्रले. सा. चिमना, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ३४९ पार्श्वजिन स्तव, मु. आनंदविजय, सं., पद्य, आदि: सकलमंगलखेलनमंदिरं; अंति: निजचरणांभोजे स्थिति देयात, गाथा-१०. १०५३९७. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, २१४४९-५४). १.पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, पृ. १अ-९आ, संपूर्ण, वि. १८४८, वैशाख कृष्ण, १, रविवार, ले.स्थल. घाणोरानगर, प्रले. ग. तेजसागर, प्र.ले.प. सामान्य. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, पा. हर्षकीर्ति, सं., गद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनं नत्वा; अंति: पार्श्वनाथप्रसादतः. २.पे. नाम. कल्याणमंदिर का बालाबोध, पृ. ९आ-१२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कल्याणमंदिर स्तोत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: एष अहं क० ए हं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३६ के बालावबोध अपूर्ण तक है., वि. मल का प्रतीक पाठ दिया है.) १०५३९९. नवतत्त्व भाषा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, जैदे., (२७.५४१२, १४४३७). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-पद्यानुवाद, मु. भवानीदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रीश्रीजिन वीर के अंति: वरणन करै याको अर्थविचार, गाथा-२११. १०५४००. आध्यात्मिक सज्झाय, सरस्वतीदेवी छंद-अजारीतीर्थ व धन्नाअणगार स्वाध्याय, अपूर्ण, वि. १९३८, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, रविवार, मध्यम, पृ. ७-१(२)=६, कुल पे. ३, ले.स्थल. पाटण, प्रले. जयशंकर मूलजी ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८x१२.५, ११४३४). १.पे. नाम. आध्यात्मिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मन धरीय उमाहो; अंति: कांतिने० दिन दिन रंग रसाल, गाथा-११. २. पे. नाम. सरस्वतीदेवी छंद-अजारीतीर्थ, पृ. १आ-३आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. म. शांतिकशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणी; अंति: शांतिकुश० फलसे ताहरी, गाथा-३५, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से २१ अपूर्ण तक नहीं है.) ३. पे. नाम, धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. ३आ-७अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: कर्मरुप अरि जीतवा; अंति: न्यानसागर गुण गाय जी, ढाल-५, गाथा-६०. १०५४०१ (+) सिद्धाचलादि स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १७६९, चैत्र कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ८-१(७)=७, कुल पे. ३४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १४४४९). १. पे. नाम. सिद्धाचल स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-१. गिरनारशत्रंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारो सोरठ देश देखावन; अंति: ज्ञानविमल सिर धरीया, गाथा-७. २.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-२. महावीरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: में जिनमुख देखण जावू रे; अंति: विमल प्रभु ध्याउरे, गाथा-१०. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-३. आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: अरज सुणो जिनराज मेरे; अंति: धाय मीले गले आय, गाथा-१०. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-४. आ. ज्ञानविमलसूरि, रा., पद्य, आदि: जिनराज जुहारण जास्या; अंति: ज्ञानविमल० सरासुं जी, गाथा-६, (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गिना है.) ५. पे. नाम. साधारणजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-५. आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: एसो सदागम खीर जलधि; अंति: ज्ञान० आतम अंतर को, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-६. आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., पद्य, आदि: एसो अनोपम साहिब मेरो; अंति: ज्ञान नरेसर कोकी को, गाथा-७. ७. पे. नाम. सिद्धाचल स्तव, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-७. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गिरिराज कुं सदा है मेरी; अंति: मेरे ओर न विचारना रे, गाथा-५. ८. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-८. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गाओ गाओ रे जिणंद; अंति: ज्ञानविमल० लहीइं रे, गाथा-६. ९.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-९. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आज माहरा प्रभुजी; अंति: अहनिशि ए दिल आवो, गाथा-५. १०. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-१०. दीपावलीपर्व स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु विण वाणी कोण; अंति: ज्ञानविमल०आवे रे आवे, गाथा-५. ११. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-११. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिनेसर साहिबा; अंति: जाणीइ ज्ञानविमल परखो, गाथा-७. १२. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-१२. साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: अब मेरे नरभव सफल भये; अंति: ज्ञानविमलरस अधिक पए, गाथा-४. १३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-१३. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: समता राणीना वालिम छो; अंति: ज्ञान० दुसमन नसिया, गाथा-९. १४. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तव, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-१४. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: एहीज उत्तम काम बीजं; अंति: ज्ञानविमल० निधि दाम, गाथा-६. १५. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-१५. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नेमिजिणेसर नायक माहर; अंति: धन्य शिवादेवी मल्हार, गाथा-१०. १६. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-१६.. आ. ज्ञानविमलसरि, पुहि., पद्य, आदि: रहो रहो नेमजी दो; अंति: ज्ञानविमल० रह जा, गाथा-११. १७. पे. नाम. सिद्धाचल स्तव, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-१७. शत्रंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चढवू सेत्तुंजे नग्ग; अंति: ज्ञानविमल० झग्गामग्ग, गाथा-९. १८. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-१८. आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., पद्य, आदि: समवशरण सुख देत है; अंति: ज्ञानविमल०बहु हेत है, गाथा-७. १९. पे. नाम. अनंतजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-१९. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत जिनराजना चरणनी; अंति: ज्ञानविमल० दास धारो, गाथा-५. २०. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-२०. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: देव नमो भवि देव नमो; अंति: ज्ञानविमल० नेह नमो, गाथा-५. २१. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-२१. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: लीनो रे मन संभवजिन में; अंति: ज्ञानविमल अधिक करी गणस्ये, गाथा-८. २२. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-२२. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जाण्यो रे मइ मन अपराथी; अंति: ज्ञानविमल० सहज सभाव समाधि, गाथा-१०. For Private and Personal Use Only Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ३५१ २३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-२३. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु के आगे गुमान; अंति: ज्ञानवविमल० पामइ परमाणंद, गाथा-५. २४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-२४. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: शयणां रे श्रीशांति; अंति: ज्ञानविमल हितकारी, गाथा-६. २५. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-२५. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मोह नृपतिने जीतिइं; अंति: ज्ञान० श्रीजिनचंद रे, गाथा-५. २६. पे. नाम. अनुभव स्तव, पृ. ६अ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-२६. साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: मिली जायो रे साहिबा; अंति: ज्ञानविमल०अखयसुख चहिन में, गाथा-६. २७. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ६अ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-२७. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीयादवकुल नभचंदा; अंति: ज्ञान० बलिहारी रे, गाथा-८. २८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-२८. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: हमारुं मन लागुं; अंति: ज्ञान सुखकर सयण सहाय, गाथा-६. २९. पे. नाम, भाभापार्श्वजिन स्तव, पृ. ६आ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-२९. पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भले भावे भाभो भेटीइं; अंति: ज्ञानविमल०परि लूटीइं, गाथा-६. ३०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तव, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. स्तवनक्रम-३०. पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: आज सखी मनमोहनो मोरो; अंति: (-), ___ (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ३१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तव, प. ८अ, अपूर्ण, प.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. स्तवनक्रम-३३. __ पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ज्ञानविमल० सकल साधइ, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) ३२. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-३४. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल कुसल वन सेचन; अंति: ज्ञानविमल०अति घणी रे, गाथा-९. ३३. पे. नाम, अध्यातम स्तव, पृ. ८आ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-३५. आध्यात्मिक स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: परमातम परमानंदरूप; अंति: ञानविमल० शुभ मना, गाथा-६. ३४. पे. नाम, पंचासरपार्श्वजिन स्तव, प. ८आ, संपूर्ण, पे.वि. स्तवनक्रम-३६. पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपंचासर पासजिनेसर; अंति: ज्ञानविममल० गुण सुध सुगाल, गाथा-५. १०५४०३. (+) ज्योतिषसार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६१, आषाढ़ शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ३९, प्रले. पं. केसरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२, ६४२७-३३). ज्योतिषसार, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: लग्नं लग्नपतिर्बलान; अंति: यत्नेन परिवर्जयेत्, श्लोक-३३५, संपूर्ण. ज्योतिषसार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लग्नो को स्वामी लग्न मे; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२५४ अपूर्ण तक टबार्थ लिखा है.) । १०५४०४. (+#) शांतसुधारस, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, प्रले. मु. धनजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२, १७४३६-३९). शांतसुधारस, उपा. विनयविजय, सं., पद्य, वि. १७२३, आदि: नीरंधे भवकानने परिगलत; अंतिः स्फुरद्वांगमयमातनोतु, भावना-१६, श्लोक-२३४. For Private and Personal Use Only Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०५४०५ (#) चतुःशरण प्रकीर्णक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-१(३)=८, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२८x१२.५, १६x४२). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोगविरई उक्कित; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३, (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से २४ अपूर्ण तक नहीं है.) चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलुंछ आवश्यकनां; अंति: मुक्तिइ नुं सुख०, (वि. अंतिम वाक्य खंडित है.) १०५४०६. मौनएकादशीपर्व गणj, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२७.५४१२.५, ११४२०-२३). मौनएकादशीपर्व गणणं, सं., गद्य, आदि: जंबूधीप भरते श्रीमहायश; अंति: अरण्यनाथनाथाय नमः. १०५४०८. (+#) धन्नाशालिभद्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १८७९, आश्विन अधिकमास कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. १५, ले.स्थल. सीतीमहु, प्रले. पं. खूबचंद (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:शालभद्रचउ. "पोरवाडारे उपासरे चतुर्मासी कृतं तुटक परत संपूर्ण कीधी" ऐसा लिखा है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १७४४१-४६). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: शासननायक समरीइं; अंति: फल लहिस्यै जी, ढाल-२९, गाथा-५१०. १०५४११ (+) खंडाजोयण बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, प्रले. श्राव. नथुधारशी दोषी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:खंडाजोय., संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२७४१२, १३४३५-३८). लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीप एक लाख; अंति: मात्र वरणव जाणवो. १०५४१४. (+#) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८९२, माघ शुक्ल, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३१, ले.स्थल. दीग, प्रले. मु. मोती ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:दशमि०., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८x१२,११४३२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अप्पणा गई गइ त्तिबेमि, अध्ययन-१०. १०५४१५ (#) नंदिषेणमुनि रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १२-१५४३१-३६). नंदिषेणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: सूत सिधारथ भूपनो वृद्धमान; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-११ दोहा-४ अपूर्ण तक है.) १०५४१६. (#) श्रावकपडिकमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. श्राव. दीपचंद; पठ. श्राव. लिछमण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १४४३६-३९). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेतु सव्वसिद्ध धम्मा; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. १०५४१८. (+-#) १० द्वार विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६.५४११,१२४२६). १० जीवद्वार विचार, रा., गद्य, आदि: नाम परुपणार यया३ थीत४; अंति: कुंथवा सरी की काया कर. १०५४१९. नेमनाथराजमती बारमासो व संवेगबत्रीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११, १३४४३). १. पे. नाम. नेमनाथजी राजमतीजी बारैमासौ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नेमनाथ०.राजीमती०.बारेमासी. नेमिजिन बारमासा, म. लाभउदय, मा.ग., पद्य, वि. १६८९, आदि: सखी री सांभलि हे तुं; अंति: लाभउदय लील विलासी हो लाल, गाथा-१६. २.पे. नाम. संवेगबत्रीसी, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हंडी:संवेगवतीसी. आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जोइ विमासी जीवडा ए; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ३५३ १०५४२०. (4) रथनेमिराजिमती पंचढालियो, संपूर्ण, वि. १९८१, माघ कृष्ण, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल, फाटावाडा, प्रले. मु. रत्नेदु; पठ. सा. सुंदरी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:रहनेमिराजे०., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४१२, १५४४३). रथनेमिराजिमती पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५४, आदि: अरिहंतसिद्धने उवज्झा; अंति: ऋषि० जस मंगल माला होय, ढाल-५. १०५४२२. विजयरत्नसूरि घघरनिसाणि व प्रास्ताविक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४१२, ३२४२१). १.पे. नाम. गघर निसाणि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. विजयरत्नसूरि घघरनिसाणि, क. जस कवि, पुहि., पद्य, आदि: सारद तूय नामं पूरन; अंति: कवी जस भेट करंदा हे, (वि. गाथांक नहीं है.) २. पे. नाम, औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सुकोमला चंद्रमुखे च बाले; अंति: दीवांण माणस जोइ मांणिइ, श्लोक-४. ३. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. खेम, पुहि., पद्य, आदि: भूख बिना कुन काम को; अंति: खेम० कुन कामनो प्रानी, गाथा-१. १०५४२३. महावीरजिन हालरडु, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४ महावीरजिन हालरडु, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रिशला झलावे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) १०५४२४. अष्टमीतिथि स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४१२, १४४३७). अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मारे ठाम धरमना; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-९ अपूर्ण तक है.) १०५४२५. सीमंधरजिन व ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४१२, ११४३०). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. सुखचंद, मा.गु., पद्य, आदि: पुडरगीरीनयरी जसपुरी री; अंति: कहे सुखचंद विख्याताजी, गाथा-४. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: श्री नेमिपंचरूपात्रिदशा; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण तक है.) १०५४२६. (#) कर्मविपाक, कर्मस्तव व बंधस्वामित्व नव्यकर्मग्रंथ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-६(१ से ३,५ से ७)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२, ११४३१). १. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३५ अपूर्ण से ५० तक है.) २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, पृ. ८अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदिः (-); अंति: वंदीयं नमह तं वीरं, गाथा-३४, (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण मात्र है.) ३.पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, पृ. ८अ-८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं वंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) १०५४३१ (+) पंचम्यादि विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प. ९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२३४११.५, ९४२१). तपपारणा विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: पंचमी तप अष्टमि तप; अंति: प्रतिक्रमण कराय देना. For Private and Personal Use Only Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०५४३५ (+) चमत्कारचिंतामणि व नारचंद्रज्योतिष सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९००-१९०१, मध्यम, पृ. ७०, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२३.५४११.५, ६x२५-२८). १. पे. नाम. चमत्कारचिंतामणि सह टबार्थ, पृ. १अ-१९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:चमत्कार०. चमत्कारचिंतामणि, राजऋषिभट्ट, सं., पद्य, आदि: नचेत् खेचरा स्थापिते किं; अंति: वस्ति गुह्ये सदैव, श्लोक-१११, (वि. १९००, पौष कृष्ण, २, शुक्रवार, ले.स्थल. खीवसर, प्रले. मु. चांदमल, प्र.ले.पु. सामान्य) चमत्कारचिंतामणि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जो खेचर ग्रह चक्र कहता; अंति: पीडा पामै निश्चइ सदैव, (वि. १९०१, __ पौष शुक्ल, २, शुक्रवार, ले.स्थल. अस्तीग्राम, प्रले. मु. चांदमल, प्र.ले.पु. सामान्य) २. पे. नाम. नारचंद्रज्योतिष सह टबार्थ, पृ. १९आ-७०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नारचंद्र०. ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतं जिनं नत्वा; अंति: कुसल चउत्थं ठामि, श्लोक-२९४, (वि. १९०१, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, सोमवार, ले.स्थल. खीवसर, प्रले. पं. चंद्रभाण, प्र.ले.पु. सामान्य) ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअर्हत क० वीतरागदेवनु; अंति: आवै तो कुसल कल्याण होय, (वि. १९०१, आषाढ़ कृष्ण, ११, मंगलवार) १०५४३७. (+#) भगवतीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८९७-५१२(१ से ५१२)=३८५, ले.स्थल. राजनगर, पठ. मु. रत्नसागर (गुरु पं. रंगसागर, वृद्ध तपागच्छ); प्रले. पं. रंगसागर; गुभा. ग. तेजसागर (गुरु आ. लक्ष्मीसागरसूरि, वृद्ध तपागच्छ); गुपि. आ. लक्ष्मीसागरसूरि (वृद्ध तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२५४११.५, ७४३७-४२). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उद्दिसिझंति, शतक-४१, सूत्र-८६९, (वि. १७५८, भाद्रपद कृष्ण, १०, पू.वि. शतक-१४ उद्देश-५ सूत्र-६१३ अपूर्ण से है.) भगवतीसूत्र-टबार्थ, उपा. पद्मसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १८पू, आदि: (-); अंति: रणीय० विणिग्गया वाणी, (वि. १७५९, आश्विन शुक्ल, १५, गुरुवार) १०५४३८. (+#) शांतिनाथ चरित्र, पूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २२९, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १३४३५). शांतिजिन चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५३५, आदि: प्रणिपत्यार्हतः सर्वान्; अंति: (-), (पू.वि. अंत का आंशिक पाठ नहीं है.) १०५४३९ (+#) वसुधारा स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८३१, मध्यम, पृ. ८-१(१)-७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १०४३१). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति, (पू.वि. "धर्मपर्याय दरिद्रादरिद्रा" पाठांश से है.) १०५४४० (+) १४ गुणस्थानक विचार यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ७२४२७). १४ गुणस्थानक विचार-यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). १०५४४१. पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३-१८(१ से १८)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४११.५, ६x२७). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-६ "छट्टे भंते" अपूर्ण से "इच्छामो सुत्त कित्तणं" पाठ तक है.) १०५४४२ (+) स्थूलिभद्रमुनि नवरसो व १३ काठिया सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. पं. खुशालसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १६x४३). १. पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण, वि. १८१२, कार्तिक शुक्ल, ९, बुधवार, पे.वि. हुंडी:थूलभद्रनवरसो. उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: मनोरथ सवि फल्या रे, ढाल-९, गाथा-७४. २. पे. नाम. १३ काठिया सज्झाय, पृ. ५आ, संपूर्ण, वि. १८१२, मार्गशीर्ष शुक्ल, २. आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं गौतम गणधार पहेलो; अंति: हेमविमलसूरि सीसे कही, गाथा-१५. For Private and Personal Use Only Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०५४४३. (+) श्रावक आराधना, ऋषभदेवस्वामी स्तवन व आलोयण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५४११.५, १४४३६). १.पे. नाम. श्रावक आराधना, पृ. १आ-७अ, संपूर्ण, वि. १९४७, आषाढ़ कृष्ण, ५, ले.स्थल. मगसूदावाद अजीमगंज, प्रले. मु. हीरचंद्र ऋषि (बृहत्विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:श्रावकाराधना. उपा. समयसंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: श्रीसर्वशं प्रणम्यं; अंति: मुनिषडरसचंद्रवर्षे, अधिकार-५, ग्रं. १६६. २. पे. नाम. ऋषभदेवस्वामी स्तवन, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:आलोयण स्तवन. शत्रुजयतीर्थ स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बे कर जोडी विनवूजी सुणी; अंति: समयसुंदर गुण भणै, गाथा-३२. ३. पे. नाम. आलोयण सज्झाय, पृ.८अ-९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पद्मावति.आलोयण. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवै राणी पदमावती; अंति: कहै पापथी छुटै ततकाल, ढाल-३, गाथा-३३. १०५४४४. (+) कल्पसूत्र सह टीका व टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३३-२(१०,३१)=३१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ४-११४३१-३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्रारंभिक सूत्र-५ अपूर्ण से त्रिशलामाता के १४ स्वप्न फलादेशवर्णन अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टीका *, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीवर्धमानं; अंति: (-), पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. कल्पसूत्र-टबार्थ *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. १०५४४५. (+) पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९२१, पौष शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. बलुदा, प्रले. सा. लिछमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पटावली., संशोधित., दे., (२४.५४११.५, १९४४०). पट्टावली*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जैसलमेरना भंडारमाहि; अंति: यो हेतवो मिच्छामि दक्कडं. १०५४४६. (+#) आगमोक्त साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९वी, कार्तिक शुक्ल, १४, बुधवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. उदेपुर, प्रले. मु. लीखमीचंद (गुरु मु. भैरुदास); गुपि. मु. भैरुदास; पठ. श्राव. चन्नोजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, २१४४८-५६). साधवंदना तेरहढाला, म. देवमनि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचभर्त्त पंचएरव जाण पंच; अंति: श्रीदेवमुनि ते संथण्या, ढाल-१३, गाथा-१६८. १०५४४७. (+#) पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ६,प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०, १२४३४-४५). पाशाकेवली-भाषा, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवति; अंति: अष्ट छै देवगुरु प्रसादात्. १०५४४९ (+) साधुवंदना, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. हुंडी:साधुवंदना., संशोधित., दे., (२५४११.५, १४४४०-४६). साधुवंदना तेरहढाला, मु. देवमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचभत पंचएरव जाण पंच; अंति: श्रीदेवमुनि ते संथुण्या, ढाल-१३, गाथा-१६७. १०५४५० (+) १२ व्रत टीप, श्रावक धर्मोपदेश विचार व नवग्रहशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८८७, मार्गशीर्ष कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, ले.स्थल. नागौर, प्रले. पं. प्रेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १५४३७). १. पे. नाम. १२ व्रत टीप, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम तिहां देवतो; अंति: फुलादिकनइ द्रव्य खरचवो. २. पे. नाम. श्रावक धर्मोपदेश विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पृथिवी१ अप्पर तेउ३ वाउ४; अंति: अशनादिक वस्त्रादिक देवो. ३. पे. नाम. नवग्रहशांति स्तोत्र, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र-लघु, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधिश्रुतं, श्लोक-११. For Private and Personal Use Only Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०५४५१. पद्मावती कथानक, अपूर्ण, वि. १७९३, चैत्र शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. २०-२(३,१२)=१८, ले.स्थल. सोजत, प्रले. श्राव. जगरुप, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१८) मंगलं लेखकानां च, (५६) यादृशं पुस्तकं दष्टं, (६९) जब लग मेरु अडग है, जैदे., (२४.५४११, १३४३८-४२). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, पा. राजवल्लभ, सं., पद्य, वि. १५२४, आदि: नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंति: कथां पाठकराजवल्लभः, श्लोक-१२३२, (पू.वि. श्लोक-४० अपूर्ण से ६५ अपूर्ण तक व ७६ से ३०२ अपूर्ण तक नहीं हैं.) १०५४५२. (+) गुर्वावली- तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. मु. चमनसागर (गुरु मु. फतेंद्रसागर, तपागच्छ); गुपि. मु. फतेंद्रसागर (गुरु पं. तेजसागर गणि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में प्रतिलेखक ने श्रीलक्ष्मीसागरसूरि से अपनी परंपरा दी है., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४४०-४४). पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानस्वामि; अंति: (१)विजयधरणेंद्रसूरि विजयते, (२)फतेंद्र०आज्ञा प्रवर्त्तते. १०५४५३. (+) आराधना प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ५४२५-२८). पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७४, ग्रं. २४५, संपूर्ण. पर्यंताराधना-गाथा ७०-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: पार्श्वनाथ प्रणम्यादौ; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६८ तक टबार्थ लिखा है.) १०५४५४. (+) नववाड सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. हुंडी:नववाडब्र०., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४११, १०४४१). नववाड- ब्रह्मचर्य ढाल, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७९, आदि: प्रणमुं पंच परमेसरूं; अंति: रे माई धन धन ए व्रत वीर, ढाल-१०, गाथा-१३१. १०५४५८ (+#) भक्तामर स्तोत्र सह अर्थ व स्तोत्रमहिमा कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४५-३९(१ से ३८,४०)=६, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १५४४८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं., श्लोक-४० से है, श्लोक-४१ वाँ नहीं है.) भक्तामर स्तोत्र-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. भक्तामर स्तोत्र-कथा *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., श्लोक-२५ की कथा अपूर्ण से श्लोक-४४ की कथा अपूर्ण तक है.) १०५४५९ (+) वैदर्भी चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प.८-२(१ से २)=६, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. हंडी:वेद्रभी, विद्रभी, वेद्रभीमी०., संशोधित., ., (२५४११.५, १३४३२-३६). वैदर्भी चौपाई, मु. प्रेमराज ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-२ अपूर्ण से ढाल-७ गाथा-१९ अपूर्ण तक है.) १०५४६३. पंचाख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.८, दे., (२४.५४११.५, ११४३२). पंचाख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: इण जंबुद्वीप में भरतखंड; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., फकीरदृष्टांत कथा अपूर्ण तक लिखा है.) १०५४६५ (+) शांतिजिन चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. २३-१५(१ से २,४ से १०,१२ से १६,२२)-८, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., ., (२५४११.५, ११४४०). शांतिजिन चरित्र, आ. भावचंद्रसरि, सं., गद्य, वि. १५३५, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. प्रारंभिक पाठ कपिल का ब्राह्मण कन्या से विवाह प्रसंग अपूर्ण से धनद चरित्र के प्रारंभिक कुछ पाठ तक है.) १०५४६६. (+) अष्टापदतीर्थ सलोको व २४ जिन छंद, संपूर्ण, वि. १८५८, आश्विन कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, अन्य. पं. केसरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १५४३५). १.पे. नाम. अष्टापदजीरो सलोको, पृ.१अ-३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ अष्टापदतीर्थ सलोको, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: अजारी आगल ओलग जाए; अंति: वनीतवीमल० ___ आवै संपत दोडी, गाथा-५५. २. पे. नाम. चतुर्विंशतीजिन छंद, पृ. ३आ-६आ, संपूर्ण... २४ जिन छंद, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरुष नित प्रणमिये; अंतिः सदा समरीयो सुध मन, गाथा-५२. १०५४६७. ज्ञानमाहात्म्य, संपूर्ण, वि. १९१७, आश्विन कृष्ण, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. २६, ले.स्थल. पालनपुर, प्रले. लक्ष्मीचंद तलसी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४११.५, १०४२९-३२). आत्मशिक्षा बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम ए आत्मा; अंति: केवल पामी सिद्धवरै. १०५४६८. (+) नेमिनाथरो सील रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.८, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११.५, १५४३३). शीयलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६३७, आदि: पहिलुं प्रणाम करूं; अंति: एम श्रीविज्योदेवसूरि, गाथा-८०, ग्रं. २५१. १०५४६९ चार सरणा व श्रावक ३ मनोरथ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, दे., (२५४१२, १५४४६-४९). १.पे. नाम. चार सरणा, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:च्यारसरणा. ४ शरणा, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो शरणो अरिहंत; अंति: वारंवार श्रीभगवानजी. २. पे. नाम. तीन मनोरथ श्रावकरा, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:तीनमनोर्थ. श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, आदि: समणोउवासक श्राविक इम; अंति: संसारनो अंत करे. १०५४७० (+) प्रज्ञापनासूत्र-थोकडा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. हुंडी:थोकडा पत्र., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, ४२-४५४६६-६९). प्रज्ञापनासूत्र-थोकडा संग्रह , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पांच सुखम थावर प० अप०; अंति: आसण बेठो प्रश्न पुछे३३. १०५४७१ (+) तपविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९८६, माघ शुक्ल, ८, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. नाडोलनगर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४११.५, १३४४०). तपविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पुरिमड्ढ१ एकासणं२; अंति: चोविहार बीजा त्रिविहार, (वि. ६८ तपविधि सहित.) १०५४७२. (+#) नवस्मरण-१ से ७, संपूर्ण, वि. १८८३, फाल्गुन शुक्ल, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. शमीनगर, प्रले. मु. दानविजय; पठ. श्राव. रतनसी धामी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सप्तस्मरण., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११.५,१२४३४). नवस्मरण, म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम; अंति: जैनं जयति शासनं, (प्रतिपूर्ण, पृ.वि. तिजयपहुत्त व कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं है.) १०५४७३. सिंदर प्रकरण सह टबार्थ, अपर्ण, वि. १८९६, माघ शुक्ल, ८, सोमवार, मध्यम, प. ३०-४(२ से ५)=२६, ले.स्थल. सुवास ग्राम,पीपल्या-मेवाड, प्रले. मु. ऋषभदास (गुरु मु. रामचंदजी); गुपि. मु. रामचंदजी (गुरु मु. सर्वसुखजी); मु. सर्वसुखजी (गुरु मु. परसुखजी); मु. परसुखजी (गुरु मु. देवीदास); मु. देवीदास (गुरु मु. हरेकृष्णजी); मु. हरेकृष्णजी (गुरु आ. विनयसागरसूरि); आ. विनयसागरसूरि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी:सिंदूरप्रक., जैदे., (२५४११.५, ४४२६-३२). सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: निशम्यमानेति शमेति ___नाशम्, द्वार-२२, श्लोक-१००, (अपूर्ण, पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण से १६ अपूर्ण तक नहीं है.) सिंदरप्रकर-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदि: जिनाधीशं नमस्कृत्य; अंति: उपदेश सुणते पाप नासइ, संपूर्ण. १०५४७५ (+#) नवतत्त्व विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १७४३९-४५). नवतत्त्व विचार*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व १ अजीव २; अंति: (-), (पू.वि. पांच स्थावर जीव के आयुवर्णन अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०५४७६ (+#) शत्रुजय उद्धार, संपूर्ण, वि. १८७८, वैशाख कृष्ण, ३, मध्यम, पृ.५, प्रले. मु. लब्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:श्रीसिद्धाचलउद्धार, से–जाउद्धार., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११.५, १५४४६). शQजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: नयसुंदर० दरसण जय करो, ढाल-१२, गाथा-१२०, ग्रं. १७०. १०५४७७. (+#) गौतमपृच्छा सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१(१)=१२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १४४४२-४५). गौतमपृच्छा , प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ से ३३ तक है.) गौतमपृच्छा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). गौतमपृच्छा-कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०५४७८. उपदेशी ढाल, संपूर्ण, वि. १९४२, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ३, मध्यम, पृ.५, ले.स्थल. बिलाडा, प्रले. मु. फूलचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:उपदेशी., दे., (२४.५४११.५, १४४२९). औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०८, आदि: जीणवर दीयो इसो उपदेस; अंति: रायचंद छोड रे संसारनो फंद, गाथा-२४. १०५४८०. नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, दे., (२३.५४१२, ९४२१). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१जीवार पुण्णं३ पावा४; अंति: भेएहिं उदाहरणं, गाथा-६१. १०५४८१ (+-) प्रतिक्रमणविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.७, प्र.वि. हुंडी:पडीकमणो., पडि०., अशुद्ध पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४४१२, ९४२१). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: इच्छामी खमासमणो वंदीयु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारंभिक चैत्यवंदन-नमुत्थुणं सूत्र अपूर्ण तक लिखा है.) १०५४८२ (+-) लक्ष्मीपति सज्झाय व पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-२(२ से ३)=२, कुल पे. ५, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२२४१२.५, १८-२२४३४-३८). १. पे. नाम, लक्ष्मीपति सज्झाय, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. म. अमोलक ऋषि, रा., पद्य, वि. १९५६, आदि: पुन्य चीज है बडी जगत; अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-सुपत्र, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. चौथमल, पुहि., पद्य, आदि: माने मात पिताकी केन पुत्र; अंति: चौथमल० दशरथ सुत समान है, गाथा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. चौथमल, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे भाग्य उदय सुबुधि होय; अंति: चोथमल०इछा रहे निर्वान की, गाथा-५. ४. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. चौथमल, पुहिं., पद्य, आदि: ऐसे विनाशकाल विपरीत बुधि; अंति: गाथा-५.. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ____ मा.गु., पद्य, आदि: समकित रतन चिंतामणी वांछीत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) १०५४८३. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८९, आश्विन कृष्ण, ९, मंगलवार, मध्यम, पृ. १५, पठ. मु. चमना (गुरु पंन्या. फतेंद्रसागर गणि); गुपि. पंन्या. फतेंद्रसागर गणि (परंपरा गच्छाधिपति विजयदेवेंद्रसूरि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११.५, १३४३४). उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयणदेवी चित्त धरी; अंति: रे जे थकी नवनिध थाय, सज्झाय-३६. १०५४८४.(+) चेलणाराणी ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. हंडी:चेलणारी०., संशोधित., दे., (२६४११.५, १६४३७-४२). चेलणासती चौपाई, म. दयाचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसमा महावीरजी; अंति: मेरी जनम मरणरी खामी, ढाल-१३. For Private and Personal Use Only Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ३५९ मु. १०५४८५. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९२९, भाद्रपद अधिकमास शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ५, प्रले. मु. उमेदसागरजी (गुरु . तेजसागरजी); गुपि. मु. तेजसागरजी (गुरु मु. मनोहरसागरजी); मु. मनोहरसागरजी (गुरु मु. हेतुसागरजी); मु. हेतुसागरजी (गुरु मु. लाभसागरजी); मु. लाभसागरजी (गुरु मु. प्रमोदसागरजी); मु. प्रमोदसागरजी (गुरु मु. पुन्यसागरजी); मु. पुन्यसागरजी; गच्छाधिपति लक्ष्मीसागरसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. हुंडी कल्याणमंदर, कल्याणमंदिर, अशुद्ध पाठ संशोधित, दे., (२४x११.५, ११X३०). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंतिः कुमुद० प्रपद्यंते, लोक-४४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०५४८६ (+४) अभिधानचिंतामणि नाममाला कांड १ से २, संपूर्ण वि. १८५२ वैशाख कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १३, ले. स्थल सिरोही नगर, प्रले. ग. ऋद्धिविजय पठ. मु. वस्ता (गुरु मु. जीवनविजय); गुपि मु. जीवनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीजीरावलाजी प्रसादात, संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४.५x११.५, १३४३६). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः (-). ग्रं. १४५२, प्रतिपूर्ण. १०५४८७. सातसमुद्धातरो विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. हुंडी : समुद्धात, समुद्धा., दे., (२४X११.५, १०X३३). ७ समुद्धात विचार-भगवतीसूत्र, मा.गु., गद्य, आदि वेदनी १ कसाय २ मरणां अति तो मोख में जाय. १०५४८८. (#) कान्हड कठियारा चोपी, संपूर्ण, वि. १९२५, फाल्गुन शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. २४, प्रले. श्राव. अंबालाल; पठ. श्राव. हीराचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., ( २१.५X११.५, ७X२२). कान्हडकठियारा रास- शीयलविषये, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमुं सदा अंति मानसागर ० दिन वधते रंग, ढाल - ९. १०५४८९. (#) चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २५, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१.५X१२, ११x२८-३२). १. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. आदिजिन चैत्यवंदन चंद्रकेवलिरासउद्धृत आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. पद्य वि. १८वी आदि अरिहंत नमो भगवंत; अति ज्ञानविमलसूरिस नमो गाथा-८. " २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय नाभिनरिंदनंद; अंति: निसदिन नमत कल्याण, गाथा-३. ३. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ जगन्नाथ; अंति: तानि वंदे निरंतरम्, श्लोक - ६. ४. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, सं., पद्य, आदि: सुवर्णवर्ण गजराज, अंतिः फलं श्रीवितरागो जिन, श्लोक-४. ५. पे. नाम आदिजिन चैत्यवंदन. पू. २आ, संपूर्ण, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि आदिदेव अलवेसरु; अंति: लहिये अविचल ठान, गाथा - ३. ६. पे. नाम. शांतिजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि जय जय शांति जिनंददेव अति मन नमतां बाधे जगीश, गाथा ३. ७. पे नाम, नेमिजिन चैत्यवंदन, पृ. ३अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि ॐ नमो विश्वनाथाय; अति जायते भुवनातिग श्लोक-४. " ८. पे. नाम. नेमिजिन चैत्यवंदन, पृ. ३अ -३आ, संपूर्ण. मु. ज्ञान, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय कुलचंद, अंति: ज्ञान सदा सुखकार, गाथा - ५. ९. पे. नाम नेमिजिन चैत्यवंदन, पू. ३आ, संपूर्ण. मु. धीरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: बावीशमा श्रीनेमिनाथ; अंति: लसता भूप नमे धरी धीर, गाथा-३. १०. पे. नाम महावीरजिन चैत्यवंदन, पू. ३आ-४अ संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३६० www.kobatirth.org मा.गु., पद्य, आदि : वर्द्धमान जिनवर धणी; अंतिः सदा पामे अविचल ठाण, गाथा - १. ११. पे नाम, पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पू. ४अ, संपूर्ण. मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: पुरसादाणी पासनाह नमीयें; अंति: लहीए कोड कल्याण, गाथा-३. १२. पे नाम, पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. ४-४आ, संपूर्ण सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ नमः अंतिः पार्श्वनाथ श्रीयस्तु वः श्लोक-४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३. पे नाम, पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. अमृत, गु., मा.गु, पद्य, आदि जय चिंतामणी पार्श्व; अति परगटे पावे अवचल ठाम, गाथा-३, " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४. पे नाम, शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. ४आ ५अ, संपूर्ण ग. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि विमलकेवल ज्ञानकमला अंतिः पद्मविजय सुहितकरं, गाथा ८. १५. पे. नाम, २४ जिन चैत्यवंदन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन- भवसंख्यागभिंत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि प्रथम तीर्थंकरतणा हुआ, अंति: तणो ज्ञानविमल गुणगेह, गाथा- ३. १६. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन, पृ. ५आ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-तीर्थंकरराशिगर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: शांति नमि मल्लि मेष छे; अंतिः नामधी सुखिया श्रीप्रभुवीर गाथा ३. १७. पे नाम. २४ जिन चैत्यवंदन, पृ. ५आ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-वर्णगभिंत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि पद्मप्रभुने वासपूज्य दोय; अंति ज्ञानविमल कहे शिष्य, गाथा- ३. १८. पे. नाम, नवगुणगर्भित चैत्यवंदन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. साधारणजिन चैत्यवंदन- पंचपरमेष्ठिगुणगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८५, आदि: बार गुणे अरिहंत देव; अंति: नय प्रणमे नित पाय, गाथा - ३. १९. पे नाम, बीज तिथि चैत्यवंदन, पू. ६अ-६आ, संपूर्ण बीजतिथि चैत्यवंदन, पंन्या, पद्मविजय, मा.गु., पद्य वि. १९वी आदि दुविध धर्म जिणे; अंति: पद्मने जपतां होय सुख खाण, गाथा ७. २०. पे नाम ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, पृ. ६ आ-७अ, संपूर्ण. मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिगडे बेठा वीर; अंति: रंगविजय लहे सार, गाथा- ९. २१. पे. नाम. अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी आदि महा सुदी आठमने दिने; अंति: पद पद्मने सेव्याथी सुखवास, गाथा-७. २२. पे नाम. एकादशी चैत्यवंदन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. एकादशीतिथि चैत्यवंदन, मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक वीरजी प्रभु; अंति: खिमा० सफल करो अवतार, गाथा- ९. For Private and Personal Use Only २३. पे नाम, रोहिणीतप चैत्यवंदन, पू. ८अ ८आ, संपूर्ण, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि रोहिणी तप आराधीए; अंति मान कहे० जिम होय भवनो छेद, गाथा- ६. २४. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन, पृ. ८आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि परमेश्वर परमात्मा; अंति: चिदानंद सुख थाय, गाथा-३. २५. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. ८आ- ९आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन- अजाहरा, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि जय जय जिनवर पास आस; अति: महिर करि पास कृपाल, गाथा-५. Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ३६१ १०५४९० (+#) भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध वार्तिक, संपूर्ण, वि. १८४०, फाल्गुन कृष्ण, १०, बुधवार, मध्यम, पृ. २१, ले.स्थल. लूणकर्णसरनगर, प्रले. मु. दौलतराम (गुरु मु. वीरभाणजी); गुपि. मु. वीरभाणजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:भक्ता०बा., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३४१२, १८४४२). भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५२७, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: लक्ष्मी स्वयंवर०वरै. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैवति लक्ष्मीः , श्लोक-४८. १०५४९२ (+#) १३ द्वार, संपूर्ण, वि. १९०५, फाल्गुन कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ३०, ले.स्थल. रढीणी, प्रले. छोटु व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४.५४११.५, १०४३७-४०). नवतत्त्व १३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मुलद्वार१ दृष्टांत२ कुण; अंति: लाभै जोग १ कषाय २ टली. १०५४९३. (+) ५६३ जीवभेद, संपूर्ण, वि. १९२८, चैत्र कृष्ण, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. पाली, प्रले. सा. लिछमा; प्रे. सा. चनणा आर्या (गुरु सा. नंदु आर्या महासती), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:५६३रो बासठियो., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४.५४११.५, २०४१४-४२). ५६३ जीवविचार बोलसंग्रह *, पुहिं.,मा.गु., गद्य, आदि: बे इंद्रीय पर्याप्ता; अंति: असंजति मे जीवरा भेद. १०५४९४. तिलोकसुंदरी चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. हुंडी:तिलोक०., दे., (२५४११.५, १५४४७). त्रैलोक्यसुंदरी रास, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: विहरमान वीसे नमुं; अंति: सबलदास लील विलासो रे, ढाल-१२. १०५४९५ () अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८८७, पौष कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. हुंडी:अष्टपरकारीपु., अष्टप्रकापूजापत्र., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १२४२५-२८). ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: अजर अमर अकलंक जे अगम रूप; अंति: देवविजय० मोक्षं हि वीराः, ढाल-९, गाथा-७७. १०५४९६ (+) वीसविहरमानजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७१, श्रावण कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ११४३०). २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, आदि: पुखलवई विजये जयो रे नयर; अंति: सेवक वाचक जस इम बोलई रे, स्तवन-२०. १०५४९७. (+) कान्हड कठियारारी चौपाई, शनि चोपाई व बारह राशिफल, संपूर्ण, वि. १८०५, वैशाख शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ३, ले.स्थल. नीबेडा, प्रले. मु. खुस्यालसौभाग्य (गुरु ग. जयसौभाग्य, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:कान्हडकठीया., कानडकढी चोपई कानडनी चौपई., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १५४२५-२८). १. पे. नाम. कान्हड् कठियारा चोपाई, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण. कान्हडकठियारा रास-शीयलविषये, म. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमं सदा; अंति: दिन वधते रंग मन भमरा रे, ढाल-९. २. पे. नाम. शनि चोपाई-बारह राशिगोचर प्रदेश फल, पृ. ७अ, संपूर्ण. शनिचौपाई-बारहराशि गोचरफल, मा.गु., पद्य, आदि: मेष राशि भूचे गुजरात एम; अंति: थवी छूटै बांधै क्रोध, गाथा-५. ३. पे. नाम, बारह राशिफल विचार-शनि गोचर दृष्टिफल, पृ. ७आ, संपूर्ण. १२ राशिफल विचार-शनि गोचर दृष्टिफल, मा.गु., गद्य, आदि: मेष वृष मिथुन तीन राशि; अंति: नवो राजा बसै हिंदुस्थानके. १०५४९८. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, संपूर्ण, वि. १८३७, फाल्गुन अधिकमास कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. वेडग्राम, जैदे., (२५४११.५, १६x४२-४५). For Private and Personal Use Only Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: भावधरी भजना करु आपे अविचल; अंति: नेमविजय जयकार, ढाल-१४. १०५५१० (#) रामसीता रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पत्र चिपके हुए हैं., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १-२४६). रामसीता रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति: (-), (पू.वि. खंड-५ तक है.) १०५५१३. (+#) भुवनदीपक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७६३, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४४८). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३५, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभुसूरिभिः, श्लोक-१७६. भवनदीपक-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वतीने नमस्कार करी; अंति: इस नामै आचार्ये कहिउ. १०५५१५ (+) भुवनदीपक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५२, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. सप्तच्छदीनगर, प्रले. मु. लालसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ७४३९). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७५, (वि. अंत में ज्योतिष संबंधी श्लोक गए दिये हैं.) भुवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती संबंधीयो महकता; अंति: पद्मप्रभसूरि नामे आचार्ये. १०५५१८. (+) पद्मावती स्तोत्र, अपराजितादेवी जपानुष्ठान विधि व रक्तचामुंडा स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१(१)-६, कुल पे. ३, ले.स्थल. कोटा, प्रले. लालमन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४३४). १.पे. नाम. पद्मावती स्तोत्र, पृ. २अ-६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पद्मावतीदेवी स्तोत्र-पूजनविधि सहित, आ. पृथ्वीभूषणसरि, मा.ग.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: जानामि खिमस्तु परमेश्वरी, श्लोक-३९, (पू.वि. श्लोक-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अपराजितादेवी जपानुष्ठान विधि, पृ. ६आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते महामाये अजित; अंति: साधनं उपवास क्रियते. ३. पे. नाम, रक्तचामुंडा स्तोत्र, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ अस्य श्रीरक्तचामुंडा; अंति: सर्वे राम्यराज्य मथापिवा, श्लोक-११. १०५५१९ (+) नवतत्त्व चउपई व दृढप्रहारऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४३८). १. पे. नाम. नवतत्त्व चउपई, पृ. १अ-१०अ, संपूर्ण, वि. १७४६, वैशाख शुक्ल, १३, शुक्रवार, ले.स्थल. महिसाणा. नवतत्त्व चौपाई, म. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सयल जिणेसर प्रणमी; अंति: गणतां संपति कोडि, ढाल-९, गाथा-२०४. २.पे. नाम. दृढप्रहारऋषि सज्झाय, पृ. १०अ-११अ, संपूर्ण. दृढप्रहारीमुनि सज्झाय, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: एक धिन धिनजी दृढप्रहारऋषि; अंति: सुणतां संपदा सघला लहइ, गाथा-१२. १०५५२१ (+) जातकपद्धति व अयनांशादि ज्योतिष संग्रह, संपूर्ण, वि. १८४४, वैशाख कृष्ण, ७, रविवार, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. २, प्रले. मु. भानसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जै., (२६४११, १२४३५). १.पे. नाम. जातकदीपिकाभिधान पद्धति, पृ. १अ-१०अ, संपूर्ण. जातकपद्धति, म. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदि: प्रणम्य पार्श्वदेवेशं; अंति: एषा जातकदीपिका, श्लोक-९३. २. पे. नाम. अयनांशादि ज्योतिष संग्रह, पृ. १०अ-१२आ, संपूर्ण. ज्योतिष*, पुहि.,मा.ग.,सं., प+ग., आदि: शकोक्ष वेदवेदोनो; अंति: ग्रहानयनं गदितं मानसाकरे, (वि. तिथिविशेष, रात्रिदिन फलाफल, संक्रांति, दशमभाव इत्यादि दिया गया है.) For Private and Personal Use Only Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०५५२३. चतुर्विंशति जिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १७८३, वैशाख कृष्ण, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. ९-४(४ से ७)=५, प्रले. पं. प्रतापविजय; पठ. श्रावि. मीठीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १२४४१). स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलगडी आदिनाथनी जो कांइ; अंति: रामविजय जयश्री लही, स्तवन-२४, (पू.वि. सुविधिनाथ स्तवन गाथा-१ अपूर्ण से नमिनाथ स्तवन गाथा-१ अपूर्ण तक नहीं है.) १०५५२४. (+#) द्रपदीमहासती चउपई-शीलविषये, संपूर्ण, वि. १७०३, जीर्ण, पृ. ३०, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका अवाच्य है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४३८-४६). द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६९३, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), ढाल-३९, गाथा-१११७, (वि. पत्र चिपके होने के कारण पाठ अवाच्य है.) १०५५२५. सिंहासनबत्रीसी कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११, १२४३३-३८). सिंहासनबत्रीसी कथा, रा., गद्य, आदि: (१)सिंघासणरी पूतली विक्रमनृप, (२)पूर्व संबंध एहवो जु; अंति: (-), (पू.वि. विक्रमराजा-देवीसंवाद प्रसंग अपूर्ण तक है.) १०५५२६. (+) कल्पसूत्र की पीठिका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.७, प्र.वि. हुंडी:कल्पसूत्रपीठ., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४११, १५४४५-५८). कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: सकलार्थ सिद्धिजननी; अंति: हाथी जेतली मिस जोइ जै. १०५५२७. (#) भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८-१(१)-७, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११, १३४३४). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शतक-१ सूत्र-८ अपूर्ण से शतक-१ उद्देश-३ "कडचित उवचित" गाथा अपूर्ण तक है.) १०५५२८. (+) जातककर्म पद्धति सह टीका, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, २०४७३). जातककर्म पद्धति, श्रीपति भट्ट, सं., पद्य, आदि: नत्वा तां श्रुतदेवतां; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., अध्याय-८ श्लोक-१० तक है.) जातककर्म पद्धति-सुबोधिनी वृत्ति, ग. सुमतिहर्ष, सं., गद्य, वि. १६७३, आदि: श्रीअश्वसेनिचलनांबुज; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १०५५३१ (#) गौतमपृच्छा चउपई, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ.५, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १०x१२). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवि चउवीस; अंति: (अपठनीय), गाथा-१२१. १०५५३३. (+) कान्हडकठियारानो रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. हुंडी:कान्हड०., कान्हडक., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४११, १४४४२). कान्हडकठियारा रास-शीयलविषये, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणमु सदा; अंति: मानसागर०दिन वधते रंग, ढाल-९. १०५५३४. (+) स्थूलिभद्रजी नवरासो, संपूर्ण, वि. १९६८, श्रावण कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. मु. कृपाचंद महात्मा (खरतरगच्छ),प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नवरा०., संशोधित., दे., (२५.५४११, १२४४७-५१). स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपत दायक सदा पायक जास; अंति: रे उदयरत्न कहे एम, ढाल-९, गाथा-७४. १०५५३६. (+) भुवनदीपक, संपूर्ण, वि. १८२७, फाल्गुन कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. सांडिल्यपुर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४२७-३६). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: श्रीपद्मप्रभसूरिभिः, श्लोक-१७५. For Private and Personal Use Only Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०५५३८. (+) श्रीपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १२४३८). श्रीपाल चरित्र, पंन्या. सत्यराज, सं., पद्य, वि. १५१४, आदि: श्रिये श्रीमन्महावीर; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४५६ अपूर्ण तक है.) १०५५३९ (+) रत्नपाल चौपइ-दानविषये, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, प्र.वि. हंडी:रत्नपाल०.चौ. प्रत के अन्त में प्रतिलेखन वर्ष हेतु लिखे गए- चंद्राब्धिनगभू(१७७१) कृति की रचनावर्ष से पूर्वका होने के कारण संदिग्ध प्रतीत होता है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२६४११,१६४३५-३८). रत्नपालरत्नावती चौपाई, पं. माणिक्यराज, मा.गु., पद्य, वि. १८१९, आदि: स्वस्ति श्रीप्रभु; अंति: रंगरसा वरतै मंगलमाली, ढाल-३५, गाथा-६६५, ग्रं. ९०५. १०५५४० (#) पुण्यसार चरित्र, संपूर्ण, वि. १७२७, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, सोमवार, जीर्ण, पृ. १२, ले.स्थल. सांगानेर, प्रले. मु. सांवलसहसाजी ऋषि; लिख. श्राव. नाथु चोथाणी साह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ३००, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x११, १३४३५-४०). पुण्यसार चरित्र चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि: (अपठनीय); अंति: समयसुंदर ___ सुखवास, ढाल-१५, (वि. पत्र चिपके होने के कारण आदिवाक्य अपठनीय है.) १०५५४४. (+) पंचाख्य कथानक संग्रह व सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, २०४५७). १. पे. नाम. पंचाख्याने कथा, पृ. १अ, संपूर्ण. ____पंचाख्यान कथानक संग्रह, सं., पद्य, आदि: जंबको हुडजुद्धेन वयं; अंति: गृही दानेन शुध्यते, श्लोक-२६. २. पे. नाम. सवैया संग्रह-जैनधार्मिक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: मिहरवान सब रूइ रोस न; अंति: कियो महिम राज गुरु कौ, सवैया-१३. १०५५४५. (+) पर्यंताराधना सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. पं. फतेंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, ६x४३-४५). पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सोक्खं, गाथा-७०, ग्रं. २४५. पर्यंताराधना-गाथा ७०-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नत्वा तत्त्वार्थवेत्तारं; अंति: गाथाक्षरार्थलेशः, गाथा-७०. १०५५४६. अरजिन स्तुति व नरपतिजयचर्यागत-सूर्यचंद्रस्वर श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, २०४५४). १. पे. नाम, अरजिन स्तुति सह विवरण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अरजिन स्तुति, म. शिवसंदर, सं., पद्य, आदि: सारोसारसरोसरोसरसरो; अंति: दरोदरोदरदरादारादरादादरात्, श्लोक-१. अरजिन स्तुति-विवरण, उपा. श्रीवल्लभ वाचक, सं., गद्य, आदि: अरोरनाथजिनोव्याद्र०; अंति: अरादरात्संसारात्. २. पे. नाम. नरपतिजयचर्यागत-सूर्यचंद्रस्वर श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. स्वरोदय-नरपतिजयचर्या, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. सूर्यचंद्रस्वर वर्णन के ६ श्लोक हैं.) १०५५४७. (+#) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५३-१४(१ से ४,७,३३ से ३९,४८,५२)=३९, पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. 'दाहिणड्ढलोगाहिवई' पाठ से 'खुड्डुया ए वा अंनेसिं वा संलोए' पाठ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०५५४८. (+#) नंदीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७४२, श्रावण शुक्ल, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३९, प्रले. मु. मनोहरदास ऋषि (गुरु मु. दामाजी ऋषि); गुपि.मु. दामाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नंदीसूत्रटबो, नंदीहवो., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.७४११, ७४४८-५२). For Private and Personal Use Only Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ३६५ नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: समणुन्नाइं नामाई, सूत्र-५७, गाथा-७००. नंदीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: विषइ कषायना जीपणहार; अंति: वीस अनुज्ञाना नाम जाणवा. १०५५४९ (+) दशवैकालिकसूत्र, निर्यक्तिगतमाहात्म्य गाथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४७-२(१२,१७)-४५, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ६४३८-४६). १.पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-४७आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: मुच्चइ त्ति बेमि, अध्ययन-१०, (अपूर्ण, पू.वि. अध्ययन-५ गाथा-४ अपूर्ण से १९ अपूर्ण तक व गाथा-७४ अपूर्ण से ८८ अपूर्ण तक नहीं हैं., वि. चूलिका-२.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिनधर्म उत्कृष्ट; अंति: पापकर्म थकी मूंकाइ, संपूर्ण. २. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र-नियुक्तिमाहात्म्य गाथा सह टबार्थ, पृ. ४७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दशवकालिकसूत्र-नियुक्ति की माहात्म्य गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सिज्जंभवं गणहरं जिणपडिमा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्र-नियुक्ति की माहात्म्य गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सीज्जं भवनामा गणधर गच्छ; अंति: १०५५५१ (+) शांतिनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-११(१ से ११)=९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १४४३६-४६). शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३०७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्रस्ताव-२ श्लोक-२० अपूर्ण से ३१० अपूर्ण तक है.) १०५५५२. (+#) भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४१०.५, ४४२७-३९). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्त जे अमर देवता; अंति: करी प्रगटपणइ काउ. १०५५५३. (+) योगशास्त्र-प्रकाश ३ से ४, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १८-१४(१ से १०,१२ से १४,१६)=४, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं..प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११, ५४१०). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. प्रकाश-३ श्लोक-१३६ अपूर्ण तक, प्रकाश-४ श्लोक-९ अपूर्ण से ६४ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०५५५४. (+) जिन चरित्रपंचक, नंदीश्वरद्वीप व चंद्रप्रभजिन चरित्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. २८-३(१,१७,१९)=२५, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक भाग खंडित होने से पत्र संबंधी सूचना अनुमानित दी गयी है. मूल व टीका का क्रमशः पाठ मिलाने पर पत्र टूटने लगता है. घटते पत्र ३ से अधिक भी हो सकते हैं., संशोधित-प्रायः शुद्ध पाठ., जैदे., (२६४११, १५४५४). १.पे. नाम. जिन चरित्रपंचक सह टीका, पृ. २अ-२१आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पंचजिन चरित्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जिणवल्लहो० पायप्पणामो तुह, आख्यान-५, गाथा-१३२, (पू.वि. गाथा-७ से है.) पंचजिन चरित्र-टीका, ग. साधसोम, सं., गद्य, वि. १५९१, आदिः (-); अंति: (१)साधुसोम० माना चिरं जयतु, (२)इति कविनामेति वृत्तार्थः. २.पे. नाम, नंदीश्वरद्वीप स्तवन सह टीका, पृ. २१आ-२७अ, संपूर्ण. नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: वंदिय नंदियलोअं; अंति: बत्तीसं सोलसयं वंदे, गाथा-२५. नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र-टीका, ग. साधसोम, सं., गद्य, वि. १५९१, आदि: नत्वा निजगुरुचरणान; अंति: विहिता नंदिताच्चिरं. ३. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन चरित्र सह टीका, पृ. २७अ-२७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३६६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चंद्रप्रभजिन चरित्र, आ. जिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चरियं भणिमो चंदप्पहस्स, अंति: (-), (पू.वि. गाथा ८ तक है.) चंद्रप्रभजिन चरित्र- टीका, ग. साधुसोम, सं., गद्य, आदि: (१) चंद्रप्रभप्रभुमहं प्रणिपत, (२)भणामः कीर्त्तयामः के; अंति: (-). १०५५५५. (#) भयहर व भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३८-३७ (१ से ३७) = १, कुल पे. २, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, ११३०). १. पे नाम भयहर स्तोत्र, पू. ३८अ - ३८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सउद्याधिभय तसु नासइ दूरेण, गाथा-२४, (पू.वि. गाथा १५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ३८आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण तक है.) १०५५५६. (+) खंडप्रशस्ति सह सुवोधिका टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ११. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४३). " खंडप्रशस्ति, क. हनुमान, सं., पद्य, आदि: कृत क्रोधे यस्मिन्, अंति: (-), (पू.वि. वराहावतार श्लोक-६ तक है.) खंडप्रशस्ति-सुबोधिका टीका, पं. गुणविनय गणि, सं., गद्य, वि. १६४१, आदि: श्रीपार्श्वं फलवर्द्धिका; अंति: (-). १०५५५७. (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. शिवदास पंड्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: नवतत्त्व., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ३००, टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२६x१०.५, ५X३२). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अनंतगुणा, गाथा-४४. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि साची वस्तुन स्वरूप, अंतिः श्रीजिनवचन हुइ ते प्रमाण. १०५५५८. (+) गुणावली चउपई, संपूर्ण वि. १७२८, चैत्र कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ८, ले. स्थल, कूडा, प्रले. पंडित, जगन्नाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १५X३५). गुणावलि रास, मु. ज्ञानमेरु, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: प्रणमुं चउवीसे जिनरा; अंति: सवे मनवंछित पावंति, ढाल- १६. १०५५६१. (+) श्रीपाल रास खंड ३ ढाल ६ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९३, भाद्रपद कृष्ण, २, रविवार, मध्यम, पृ. ७९, ले.स्थल. चांणोदनगर, प्रले. पं. फतेंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्री शांतिनाथजी प्रशादात्, श्री पार्श्वनाथजी प्रशादात्., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X१०.५, ३-६X३५). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि (-); अंति पदवी लहस्यी ज्ञानविशालाजी, प्रतिपूर्ण. श्रीपाल रास-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: ज्ञाननी प्राप्ति होइ, प्रतिपूर्ण. १०५५६२. भोजनछतीसी, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५. दे. (२५.५X११, ७४२६). "" 3 महावीरजिन सुखडी, आ. दयासागरसूरि, मा.गु, पद्य, आदि तिसला राणी मेरे नंदन छगन; अंति दयासागर० भोजन छत्तीस गावा- ३६. १०५५६३. (१) गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. ४. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४१०.५, १५X४६). १. पे नाम. सेतुज भाष, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, उपा. रत्ननिधान, मा.गु., पद्य, वि. १६४४, आदि अभिराम सोरठ भूमि, अंति: भणइ रत्ननिधान वचन्न, गाथा - १२. २. पे. नाम नेमिजिन गीत, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, उपा. रत्ननिधान, मा.गु., पद्य, आदि: तुसां सुं पित्ते बांधी आपुः गाथा - १२. ३. पे. नाम जिनचंदसूरिगुरुगीत, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only अति: रत्ननिधान० सुहाया बे. Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ३६७ उपा. रत्ननिधान, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनचंदसुगुरु चिरजीवउ; अंति: मन बंछित फल पावइ, गाथा-१०. ४. पे. नाम. गुरुगुण गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. रत्ननिधान, मा.गु., पद्य, आदि: हुं गुरुवंदन कुं धाई रहि; अंति: भरि० रत्ननिधान सुहाई, गाथा-३. १०५५६४. (+) सामद्रिकशास्त्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९,प्र.वि. संशोधित., दे., (२३४१०.५, १४४४२-४६). सामद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: नरेण रमयंति चित्रणी, अध्याय-३६, श्लोक-२७१. सामुद्रिकशास्त्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: बाहु १ नेत्रांतर २ जानु ३; अंति: नागरास न चित्रणी नइ वल्लभ. १०५५६५ (+#) १० अछेरा वर्णन, संपूर्ण, वि. १६९७, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थलजाढणिग्राम, प्रले. सा. सनूरा आर्या (गुरु सा. रतनाजी आर्या); गुपि. सा. रतनाजी आर्या (गुरु मु. जसवंत); मु. जसवंत ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:कल्पार्थ., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १५४४२). १० आश्चर्य वर्णन, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: उवसग्ग १ गब्भहरणं २; अंति: क्षेत्रे अनंतइ कालि हुवइ, ग्रं. ११३. १०५५६६. धर्म पुन्यपापना भेद, संपूर्ण, वि. १७७६, चैत्र शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. अमदावाद, पठ. श्रावि. मानकुंवर वीरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११,११४३२). धर्म पुण्यपाप भेद, मा.गु., गद्य, आदि: राग द्वेष मोह रहित; अंति: संखेपे लख्यो छइ. १०५५६७. सम्यक्त्वकौमुदी कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:कौमुदीक., कौमदी., जैदे., (२५.५४११, १४४४३). सम्यक्त्वकौमुदी कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीवर्द्धमान० स्वर्ग उप, (२)गोडदेश पाटलिपुरनगर तिहां; अंति: (-), (पू.वि. वृद्धहंस की हितशिक्षा कथा अपूर्ण तक है.) १०५५६८ (-) चंदकुवररी वात व साधारणजिन पद, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८-३(१ से ३)-५, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६.५४११.५, १०४३३). १. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: नीज महियामे लेहणा अब लगी; अंति: तजु जीम हंस सरस वरसबेना, गाथा-४. २. पे. नाम. चंदकुवररी वात, पृ. ५अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. चंद्रकमार वार्ता, मा.गु., पद्य, आदि: समरं सरसत माय गनपत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५० अपूर्ण तक है.) १०५५६९ (+#) जीवाजीवादि विविध विषयक नाम संग्रह व गुरुशिष्य औपदेशिक संवाद, संपूर्ण, वि. १८७४, माघ कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. राधनपुर, प्रले. ग. शिवचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १४४४०). १.पे. नाम. जीवाजीवादि विविध विषयक नाम संग्रह, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. ____ मा.गु., गद्य, आदि: जीव अजीव पुन्य पाप श्रव; अंति: जांगओडा८३ सीलरा८४. २. पे. नाम. गुरुशिष्य औपदेशिक संवाद, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.. __ मा.गु., पद्य, आदि: पांन सडे घोडो अडे वीद्या; अंति: खेतननी पतो कगु उग्यो नहीं, गाथा-२५. १०५५७० (+) दंडकविचारसत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४०, वैशाख शुक्ल, १२, मंगलवार, मध्यम, पृ. ६, प्रले. पं. आणंदरूप (गुरु मु. वीरभाण, खरतरगच्छ); गुपि. मु. वीरभाण (गुरु वा. उदयभाण, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ४४३८-४२). दंडक प्रकरण, म. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: णमिउं चौवीसजिणे; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया. गाथा-४०. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ ऋषभ; अंति: जम्हांनै सिवपद द्यौ. १०५५७१ (+) संग्रहणीसूत्र सह बालावबोध व १० प्रत्याख्याननाम गाथा, संपूर्ण, वि. १७४५, श्रावण कृष्ण, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. ३८, कुल पे. २, ले.स्थल. सरखेज, प्रले. मु. ताराचंद ऋषि (गुरु मु. राघव ऋषि); गुपि.मु. राघव ऋषि; पठ. मु. चतुरा ऋषि (गुरु मु. पीतांबर ऋषि); गुपि. मु. पीतांबर ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:संघेणीसूत्र., पदच्छेद सूचक लकीरे-त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ३-८४४२-४६). For Private and Personal Use Only Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - ३६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. संग्रहणीसूत्र सह बालावबोध, पृ. १आ-३८अ, संपूर्ण. बहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिई; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३३३. बृहत्संग्रहणी-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: नमिड० अरिहंत कहइ; अंति: कहाइ इत्यादि विचार घणा छइ. २. पे. नाम. १० प्रत्याख्याननाम गाथा, पृ. ३८अ, संपूर्ण. ___प्रा., पद्य, आदि: नवकारसी १ पोरसीए २; अंति: अभिग्गहे९ विगई१०, गाथा-१. १०५५७२. (+) सुखविपाकसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५+१(३)=६, प्र.वि. हुंडी:सुखवीपाक., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., ., (२५४११, १५-२२४४१-४८). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: समत्तं भंते ते भयवं, प्रतिपूर्ण. १०५५७६. (+) भुवनदीपक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ७X४०). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१७१ अपूर्ण तक है., वि. प्रारंभ में सतीशील महिमा के दो पद लिखे है.) भवनदीपक-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: सरस्वती सबंधी यो मह; अंति: (-). १०५५७७. (+) ऋषभनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २३, प्र.वि. हुंडी: ऋषभ चरित्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १६४४१-४४). आदिजिन चरित्र, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९४०, आदि: अरिहंत सिद्धने आरिया; अंति: रिषभचरित्र टंक साल ए, ढाल-४७. १०५५७८. (+) संबोधसत्तरीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, ४४३२-३६). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोयगुरुं; अंति: जयसेहर०नत्थि संदेहो, गाथा-७४. संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनि त्रिणलोकना; अंति: ते पामइं ईहा संदेह नहीं. १०५५७९ (+) वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १०४३२). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिहं; अंति: सोभाग्य प्रताप वृद्धयः. १०५५८०. सांबप्रजूनरास प्रबंध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १८, जैदे., (२६४११, १२४३६-४०). सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: (अपठनीय); अंति: कहइ संबध आठमइ अंगइ कहउ, खंड-२, गाथा-५३५, (वि. ढाल २२. पत्र चिपके होने के कारण आदिवाक्य अपठनीय है.) १०५५८१ (+) कोणिकराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८८९, कार्तिक शुक्ल, १४, बुधवार, मध्यम, पृ. १४, ले.स्थल. किसनगढ, प्र.वि. हुंडी:कुणक., कोणक., कुणकनी., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १६४२६-२९). कोणिकराजा चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: आठ भवा पहलु हुंता केटक; अंति: राय० समगत संठी राखक, ढाल-२७. १०५५८८. (+) शत्रुजयतीर्थ रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५४-१३४(१ से १३२,१४० से १४१)=२०, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १७४३७). शत्रुजयतीर्थ रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-७ ढाल-१ गाथा-३ अपूर्ण से ढाल-२३ गाथा-१० अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०५५९० (+) तिलोकसुंदरी सती वर्णन-शीलविषये, संपूर्ण, वि. १९७१, ज्येष्ठ शुक्ल, १२, शुक्रवार, मध्यम, पृ.७, ले.स्थल. वीकानेर, अन्य. श्राव. अगरचंद भेरोदान सेठिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:तिलोक., संशोधित., दे., (२५.५४१२, १४४४२). त्रैलोक्यसुंदरी रास, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: विहरमान वीसे नमुं; अंति: जिण घर लील विलासोरे, ढाल-१२. For Private and Personal Use Only Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ३६९ १०५५९१ (+) सिंदर प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८६०, माघ शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. कुवर, प्रले. पं. सांतिविजय (गुरु पं. रामविजय); गुपि. पं. रामविजय (गुरु पं. भाग्यविजय); पं. भाग्यविजय (गुरु आ. धर्मसूरि); आ. धर्मसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हंडी:सिंदरप्रकरण. श्री माहावीरसामी प्रसादात, श्री पार्श्वनाथ प्रसादात, श्री गोडीपार्श्व प्रासादात., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३०-३४). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-९९. १०५५९२ (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३५, चैत्र कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ८, प्रले. पं. रूपविजय (गुरु ग. सदाविजय); गुपि. ग. सदाविजय; पठ. मु. पद्मविजय (गुरु पं. रूपविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ४४३३). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन ते त्रण भुवन स्वर्ग; अंति: समुद्र ते माहिथी उद्धरीओ. १०५५९३. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ४४३२). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: निगोअस्स अणंतभागो सिद्धगओ, गाथा-५२. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व बीजो अजीवतत्त्व; अंति: अनंतमो भाग मोक्ष पणे छै. १०५५९४. (+) दशाश्रुतस्कंधसूत्र, संपूर्ण, वि. १९६६, पौष शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १९, ले.स्थल. वीकानेर, निदातासा. मानकंवरजी (गुरु सा. राज कंवरजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:दसाश्रुतखं०., संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., दे., (२५.५४११.५, १३४४७-५३). दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० सुर्य; अंति: भुजो उवदंसति त्ति बेमि, दशा-१०,ग्रं. १३८०. १०५५९५ (+) ४ मंगल रास, संपूर्ण, वि. १९५६, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. हुंडी:च्यारमंगल., संशोधित., दे., (२५.५४१२, १३४३६). ४ मंगल रास, म. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी जिन नमुंसकल; अंति: धर्म आराधीये ए, ढाल-४, गाथा-११०. १०५५९८. (#) प्रास्ताविक दोहादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-९(१ से ९)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५-१८४३२-४८). प्रास्ताविक दोहादि संग्रह, म. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (वि. भिन्न भिन्न क्रम में गाथांक लिखा है.) १०५५९९ (+) कान्हडकठियारा चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प.७, प्र.वि. हंडी:कटी., संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १८४३७). कान्हडकठियारा रास-शीयलविषये, म. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: पारसनाथ प्रणम् सदा; अंति: ___ मानसागर०दिन वधते रंग, ढाल-९. १०५६०२ (#) गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १६४५०). गौतमस्वामी रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२४ अपूर्ण से ४९ अपूर्ण तक है.) १०५६०३. चारित्रमनोरथमाला, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२६.५४१२, ७X२५-२८). चारित्रमनोरथमाला, मु. खेमराज, मा.गु., पद्य, आदि: आदिसर पाय नमी परिमल गुणि; अंति: खेमराज० ते सुख लहि अपार, गाथा-५३. १०५६०५. सारस्वत व्याकरण की दीपिका टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४, प्र.वि. हुंडी:चंद्रकीर्ती सा०दी०., जैदे., (२५४१२,१५४४१-४५). For Private and Personal Use Only Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची " सारस्वत व्याकरण - दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं. गद्य वि. १६२३, आदि: नमोस्तु सर्वकल्याण; अति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., नपुंसकलिंगे अदस् शब्द रूपसिद्धि अपूर्ण तक लिखा है.) १०५६०८. (+) दीपावलीकल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७९, वैशाख शुक्ल, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. ३७, ले. स्थल. नारदपुर, प्र. वि. श्री पद्मप्रभुजी प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैवे. (२६११.५, ६४३६) दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: श्रीवर्द्धमानमांगल्य; अंति: चंद्रार्कजगत्त्रये, श्लोक-४२९. दीपावली पर्व कल्प-वार्थ, मा.गु. गद्य, आदि अहं नत्वाल्पबुद्धिना अंति: (१) विषे उद्योत करे छे, (२) कल्प माहरी पीडा हरो. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०५६०९. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ४३, प्र. वि. हुंडी: नवतत्व, संशोधित, जैदे., (२६११.५, १७४५९). नवतत्त्व प्रकरण, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवापुण्णं पावास अंतिः परियतो भवे सिद्धि, गाथा-३२. नवतत्त्व प्रकरण-वालावबोध, मु. मेरुतुंगसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि श्रीवीरं विश्वविभुं अंति तद्बुधैर्विशदाशयैः. १०५६१० (+) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७३५, पीष कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १०, प्रले. मु. तत्त्वविजय (गुरु ग. देवविजय, तपागच्छ); गुपि. ग. देवविजय (गुरुग, संघविजय, तपागच्छ) ग. संघविजय (गुरु गच्छाधिपति सेनसूरि, तपागच्छ); गच्छाधिपति सेनसूरि (गुरु आ हीरसूरि तपागच्छ) पठ. मु. दयाविजय (गुरु गं. स्थिरविजय); * *, गुपि. ग. स्थिरविजय, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. त्रिपाठ - द्विपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११, ३x४०-४५). 3 नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि जीवार अजीवार पुन्न३: अतिः अणागयद्धा अनंतगुणा, गाथा- ४४. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१) यथास्थित साचु जे, (२) प्रणम्य श्रीमहावीर; अंतिः काया कूरजी मुनि पत्तयो. १०५६११. (+) जैन कथाकोश, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. ७-२ (१, ५) ५ प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५X११, ३९X३२-४१). जैन कथाकोश, सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. कथा-१२ " " अपूर्ण तक, कथा-२९ अपूर्ण से ३७ अपूर्ण तक नहीं है व कथा ५६ अपूर्ण तक लिखा है.) १०५६१२. (+) बृहत्संग्रहणी सह टीका व चतुर्विंशति दंडक गाथा संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ७२, कुल पे. २. प्र. वि. प्रतिलेखन वर्ष में मात्र १५ की संख्या दिखाई देती है, टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२४.५X११, १७X७०). १. पे. नाम. बृहत्संग्रहणी सह टीका, पृ. १आ-७२आ, संपूर्ण, वि. १६वी, फाल्गुन शुक्ल, १३, सोमवार, ले. स्थल. अणहिलपुरपतन, प्रले. देवदत्त राज्ये आ. जिनसागरसूरि (गुरु आ . जिनचंद्रसूरि, खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य. बृहत्संग्रहणी, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ७पू, आदि: निट्ठवियअट्ठकम्मं; अंति: हिं तहेव सुयदेवयाए य. बृहत्संग्रहणी- टीका, आ. मलयगिरिसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति नखरुचिरकांति; अंति: सर्वेऽपि जिनवचनम्, ग्रं. ५०००. २. पे. नाम. चतुर्विंशति दंडक गाथा, पृ. ७२आ, संपूर्ण. २४ दंडक द्वार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नेरइया असुराई पुढवाई; अंति: एग भवि दुन्निवाराउ. १०५६१७. (+१) कल्पसूत्र सह टबार्थ व कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८५२, कार्तिक कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १४०-८(१ से ४,८९,१०६,१०८ से १०९)=१३२ प्रले. मु. मोहनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६X११.५, ५-१७X३५-५३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि नमो अरिहंताणं नमो अति (-) (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.. वज्रस्वामी पालन वर्णन अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) For Private and Personal Use Only Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ३७१ कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुवो अरिहंतनइ; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., व्याख्यान-८ तक टबार्थ लिखा है.) कल्पसूत्र-कथा संग्रह *, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पृथविभूषणपुरनगरनि विषई; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., वि. प्रत्येक कथा के अन्त में भिन्न-भन्न मास व तिथि का उल्लेख मिलता हैं.) १०५६१८. गुणकरंडगुणावली रास, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-१(१)=१७, कुछ पत्र खंडित हैं., जैदे., (२६४११.५, १७-२०४४४-४८). गुणकरंडकगुणावलि रास, मु. गजविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८४, आदि: (-); अंति: गज०सुखसंपति थिर जस थावेजी, खंड-३ ढाल २६, (पू.वि. खंड-१ ढाल-१ गाथा-१२ अपूर्ण से है.) १०५६१९ दानशीलतपभावना संवाद, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७-२(३,५)=५, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११.५, ९४३१). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेसर पय नमी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-४ तक, ढाल-३ गाथा-१ से दोहा-३ अपूर्ण तक व ढाल-४ गाथा-८ से ढाल-५ गाथा-९ अपूर्ण तक है.) १०५६२० (+) पन्नवणासूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५६-२३(१,१२१ से १४२)=१३३, प्र.वि. हुंडी:पन्नवणा., पन्नव०सू०, पन्न०स०., पन्नवणासू, प्रज्ञा० सू०., पन्नव०सू०, पणवणा सूत्रं., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १५४५३-५९). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: सुही सुहं पत्ता, पद-३६, सूत्र-२१७६, ग्रं. ७७८७, (पू.वि. पद-१ सूत्र-४ अपूर्ण से पद-२१ ओगाहणसंठाण वर्णन अपूर्ण तक व पद-२८ आहारवर्णन अपूर्ण से है.) १०५६२२ (+) गौतमपृच्छा सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १६x४६). गौतमपच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४. गौतमपृच्छा-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: नत्वा वीरं जिनं; अंति: मोटो छे अर्थ भाव जेहनो छे. गौतमपृच्छा-बालावबोध, आ. मनिसंदरसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: महावीरजी गोतमपृच्छा; अंति: सुधा भूषण सेविना, (वि. कथा समाविष्ट है.) १०५६२५. (+) विपाकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०-१५(१ से १५)=५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:विपासूत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, ११४२३). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ सूत्र-२ अपूर्ण से सूत्र-५ अपूर्ण तक है.) १०५६२६. (+) २४ जिन नाम राशी विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १२४३०-४०). २४ जिन नाम राशी जन्मनक्षत्र लंछनादि विचार, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). १०५६२७. (+) स्नात्रपंचाशिका सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १७४४६-५०). स्नात्रपंचाशिका, ग. शुभशील, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य श्रीजिनान्; अंति: मुक्ति सुखार्थिना, कथा-५०, श्लोक-५०. स्नात्रपंचाशिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य कहतां प्रणाम; अंति: बांध्यु मुक्तिसुख पामस्ये. १०५६२८. (#) अणुत्तरोववाईदशांणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ६४३४). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समएणं; अंति: पण्णत्ते त्तिबेमि. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तेणइ कालइ तेणें समइनें; अंति: एहवउ अर्थ प्ररूप्पउ कह्यो. १०५६२९ (#) चंद्रराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८५-८०(१ से ८०)-५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३०). For Private and Personal Use Only Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उल्लास-४ ढाल-१० गाथा-१४ __अपूर्ण से ढाल-१४ गाथा-१ तक है.) १०५६३० (+) स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९, कुल पे. १९, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १२४३५-३८). १. पे. नाम. शेQजीरो उद्धार, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: नयसुंदर० दर्शन जय करो, ढाल-१२, गाथा-१२०. २. पे. नाम. बंभणवाडी मंडन श्रीमहावीर स्तवन, पृ. ७आ-९अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समरवी समरथ सारदाय; अंति: कमलकलशसूरीश्वर सीस, गाथा-२१. ३. पे. नाम. ढुंढण पचीसी, पृ. ९अ-१०अ, संपूर्ण. ढुंढकपच्चीसी-स्थानकवासीमत निरसन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रुतदेवी प्रणमी; अंति: पयंपे हितकारी अधिकार, गाथा-२५. ४. पे. नाम. जीवोत्पत्ति स्वाध्याय, पृ.१०आ-१३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, म. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जोज्यो जीवनी मन; अंति: इम कहे श्रीसार ए, गाथा-७२. ५. पे. नाम. सचित्त अचित सज्झाय, पृ. १३अ-१४अ, संपूर्ण. असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, म. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमी श्रीगोयम; अंति: वीरविमल करजोडी कहे, गाथा-१९. ६. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. म. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शीतल जिन सुणौ स्वामी; अंति: मोहन बाह संबाह ज्यो, गाथा-७. ७. पे. नाम, शीतलजिन स्तवन, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण. मु. दिनकरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशीतलजिन सुखकर; अंति: पंकज नमे निसदीस, गाथा-५. ८. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. मु. शांतिविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: रूप अनुप निहाल सुमतिजिन; अंति: थई एक मना हो लाल, गाथा-५. ९.पे. नाम, अनाथीऋषी स्वाध्याय, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण. अनाथीमनि सज्झाय, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रयवाडी चड्यो; अंति: समयसुंदर० बे कर जोडि, गाथा-९. १०. पे. नाम. नंदीषण स्वाध्याय, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रहो रहो रहो रहो वालहा; अंति: रूपविजय जयकार लाल रे, गाथा-५. ११. पे. नाम. रहनेमि सज्झाय, पृ. १६आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: छेडो नांजी० देवरीया; अंति: ज्ञानविमल गुणमाला, गाथा-५. १२. पे. नाम. अईमत्तारिषिनो स्वाध्याय, पृ. १६आ-१७आ, संपूर्ण. अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने; अंति: ते मुनिवरना पाया, गाथा-१६. १३. पे. नाम. राजीमती स्वाध्याय, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, आ. सोमविमलसरि, मा.ग., पद्य, आदि: कपूर हवे अति उजलो रे; अंति: सोमविमल० एहनी जोड रे, गाथा-८. १४. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ३७३ नेमिजिन स्तवन, मु. मोहन, पुहिं., पद्य, आदि: सजेलार जलधार सुखकार; अंति: मोहन० कह्यो उल्लासे, गाथा-७. १५. पे. नाम. विमलजिन स्तवन, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण. पं. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: पूजउ जिनवर प्रेमसुरे; अंति: जिनहरषजी० तेहनी करीइं सेव, गाथा-५. १६. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १९अ, संपूर्ण.. आदिजिन स्तवन-सम्यक्त्वगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समकित द्वार गभारे; अंति: खीमावि० आगम रीतरै, गाथा-६. १७. पे. नाम. साधारणजिन श्लोक, पृ. १९अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: तव पादौ मम हृदये मम हृदय; अंति: या तन्निर्वाण पद लब्धि, श्लोक-१. १८. पे. नाम, अजितजिन स्तवन, पृ. १९आ, संपूर्ण... मा.गु., पद्य, आदि: विजयनंदन जिनजी मुझ; अंति: अधिक महानंद पदवी थाय, गाथा-५. १९. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १९आ, संपूर्ण. गु.,सं.,हिं., पद्य, आदि: अद्याभवत्सफलता नयन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१ तक लिखा १०५६३१ (#) उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन-३४ लेश्याद्वार का बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, अन्य. सा. जीवकोरबाइ (गुरु सा. वीजकोरबाइ महासती); गुपि. सा. वीजकोरबाइ महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:छ लेश्यानो उत्तराध्ययन अध्ययन ३४ मेथी., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४११.५, १४४४८). उत्तराध्ययनसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०५६३४. (+#) मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३८-३३(१ से ३२,३४)=५, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १५४३७-४५). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३२ गाथा-४ अपूर्ण से ढाल-४० दोहा-४ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०५६३८. (+) अनेकार्थ संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४१-९(१ से ५,७ से ८,२२ से २३)=३२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १५४५३). अभिधानचिंतामणि नाममाला-अनेकार्थ संग्रह, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः (-); अंति: खेदामंत्रणयोरपि, कांड-७, श्लोक-१९३१, (पू.वि. श्लोक-१९५ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०५६३९. (+) चार मंगल, संपूर्ण, वि. १९६४, ज्येष्ठ शुक्ल, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. हुंडी:चारमंगल., चारमंग०., संशोधित., दे., (२४.५४११.५, १४४४२). ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी जिन नमुं सकल; अंति: धर्म आराधीये ए, ढाल-४, गाथा-२१०. १०५६४०. (+) साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. हुंडी:साधुवन०., साधुव., संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १३४३९-४२). साधुवंदना तेरहढाला, मु. देवमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: पंचभत पंचएरव जाण पंच; अंति: श्रीदेवमुनि ते सुंथुण्या, ढाल-१३, गाथा-१६७. १०५६४१. रोहिणी रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. हेतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १५४४१). रोहिणीतप रास, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनमुखकजवासिनी; अंति: उदयविजय० तूर वजायाजी, ___ ढाल-८, (वि. अंत में प्रास्ताविक गाथा लिखी है.) १०५६४२. (+) वीसविहरमान स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ११४३०). २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसीमंधर जिनवर; अंति: देव० महोदय वृंदो रे, स्तवन-२०. For Private and Personal Use Only Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०५६४३. (+) रत्नसार रास, संपूर्ण, वि. १८६७, फाल्गुन शुक्ल, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६९, दत्त. पं. हुकमसागर गृही. पं. फतेंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : श्रीरत्नसाररास कर्ता एवं प्रतिलेखक दोनो के समान नाम होने से कर्ता के द्वारा प्रतिलिपि की जाने की संभावना है., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५X११.५, १७X३७-४२). रत्नसार रास-दानधर्म विषये, ग. देवेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८६५, आदि: श्रीजिन अमल कमल धवल; अंति: देवेंद्र० सुंदर जी, ढाल ७१, गाथा- १८६७. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०५६४६. ज्ञाताधर्मकथा बोल व षट्द्रव्य गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२४x११, १५X४३). १. पे. नाम. ज्ञाताधर्मकथा बोल, पृ. १अ ५अ, संपूर्ण. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र- प्रक्षशतक, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीग्यातासूत्र धर्म कथा अति निरजरा किधी ते प्रतायें, प्रश्न- ११३. २. पे. नाम षद्रव्य गाथा, पृ. ५अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा हिस्सा ६ द्रव्यपरिमाणविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि परिणामे जीव मुत्ता; अंतिः सवगई अंतरण्यवेसं, गाथा १. १०५६४७ (+) प्रदेशीराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९१६, भाद्रपद कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. १६, प्र. वि. हुंडी : परदेशी ०., संशोधित., दे., (२४४११, १६x४४). प्रदेशीराजा चौपाई, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: रायप्रसेणी सुत्रमे; अंति: मिच्छामि दुक्कड मोयो रे, ढाल - २०. १०५६४९ (+) नवतत्त्व १३ द्वार, संपूर्ण, वि. १८८३, श्रावण शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल. पालणपुर, प्र. वि. संशोधित टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४X११.५, १७X२६-४३). नवतत्त्व १३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि नामद्वार १ दृष्टतद्वार २ अंति बंध द्वाला तलाव रूप मोक्ष. १०५६५०. चोवीसनी ढाल, संपूर्ण, वि. १९६०, चैत्र कृष्ण, ९, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १४, दे., ( २४४११.५, १०x२५-२८). स्तवनचौवीसी, श्राव. विनयचंद्र गोकलचंद कुमट, मा.गु., पद्य, वि. १९०६, आदि: श्रीआदिसरस्वामी हो; अंति: विनेचंद० पूरण करी, स्तवन- २४. (गुरु १०५६५१. (#) शेत्रुंजय स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९८, माघ शुक्ल, १४, सोमवार, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. कोहीला, प्रले. मु. उमेदसागरजी (गुरु मु. तेजसागरजी); गुपि. मु. तेजसागरजी (गुरु मु. मनोहरसागरजी); पठ. मु. उदेचंद । मु. उमेदसागरजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीऋषभदेवजीप्रसादे., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२४४११, १४X३४). शत्रुंजयतीर्धउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८ आदि विमल गिरिवर विमल अति नवसुंदर जय करें, "" ढाल - १२, गाथा - १२०. १०५६५२. ५ कारण स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २४x११.५, १२X३०). ५ कारण स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिद्धारथ सुत बंदी, अंति: (-). (पू.वि. डाल-३ गाथा-३० तक है.) १०५६५३. (+) चेलणारी चोपी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. हुंडी : चेलणारी ०., संशोधित., दे., ( २४४११, १५X४३). चेलणासती चौपाई, मु. दयाचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि चीवीसमा महावीरजी, अंति दयाचंद० मरण री खामी, , ढाल - १३. १०५६५४. (+#) आलोयणा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, प्र. वि. हुंडी : आलोयणा०., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२३.५x११, ८X३०). आलोयणा गाथा, मा.गु., प+ग, आदि पंच परमेष्ठिदेवनो, अंति: मीच्छामिदुक्कडं. " १०५६५५. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५, कुल पे. १०, जैदे. (२५.५४११, १४४४७). १. पे. नाम. स्यादवाददृढकरण स्वाध्याय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७५ १० बोल स्याद्वाद सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि स्यादवादमत श्रीजिनवरनो, अति श्रीसार रतन बहुमोल, गाथा - २१. २. पे नाम. सर्वार्थसिद्धि स्वाध्याय, पृ. १आ-२अ संपूर्ण सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि जगदानंदन गुणनीलो रे अति पुन्य थकी फले आसोरे, गाथा १६. ३. पे. नाम. प्रसन्नचंद्र स्वाध्याय, पृ. २अ, संपूर्ण. प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं तुमारा पाय; अंति: धन्य ते जिण दीठा ए परतख्य, गाथा-६. ४. पे नाम. पडिलेहण स्वाध्याय, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन सज्झाय, संबद्ध, मु. दयाकुशल, मा.गु., पद्य, आदि श्रीजिन वचन सदा अनुशरी अंति दयाकुशल कहे मन में उल्लास, गाथा-८. ५. पे. नाम. पुद्गलपरावर्त्तनस्वरूप स्वाध्याय, पृ. २आ - ३अ, संपूर्ण. अर्द्धपुद्रलपरावर्त्तनविचार सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन उपदिसें सुललित; अति मोहनविजय० ० उपशम रस पीजे जी, गाथा - १३. ६. पे. नाम. मेघकुमारमुनी स्वाध्याय, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. - मेघकुमार सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: चारित्र लेइने चिंतवे रे; अंतिः त्रिविध शिर नाम रे, गाधा १३. ७. पे. नाम बाहुबलीमुनी स्वाध्याय, पू. ३आ ४अ, संपूर्ण. बाहुबली सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबली सुकल ध्यानें; अंति: मोहन० समकित सिंधुरा, गाथा- ६. ८. पे. नाम. पचक्खाण सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानविचार सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: धुरि समरुं सामिणी; अंति: सयल संघ संपति करो, ढाल २, गाथा-२२. ९. पे. नाम. पोसहसामायकफल सज्झाय, पृ. ४आ - ५अ, संपूर्ण. पौषधसामाइक सज्झाय, पं. सुमतिकमल, मा.गु., पच, आदि वीर जिणवर रे पासे पूछे अतिः सुमतिकमल संपति मंगल लहें, गाथा - १२. १०. पे नाम, तेरकाठिया सज्झाय, पू. ५अ ५आ, संपूर्ण, १३ काठिया सज्झाय, आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगौतम गणधार; अंति: हेमविमलसूरि सीसे कही, गाथा - १५. १०५६५८. (+४) हंसराजवछराज चौपई, संपूर्ण, वि. १८८०, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४४, ले. स्थल, खेसाग्राम, प्रले. मु. लब्धसागर यती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: चोपाई हंसराजबछराज ०., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (८८९) यासं पुस्तकं दृष्टवा (१४१६) कड गुबड गावडी नलि, (१४१९) जब लग मेरु अडग है, जैवे., (२५.५x१०.५, १०-१३X२८-३६). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि आदीसर आये करी चोबीसमो; अंति जिनोदयसूर हंस एन बिछराज, खंड-४ दाल ४८, गाथा ९०५. o १०५६५९. (+) संग्रहणीसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८६२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. ३३-७ (१० से १६) २६, प्र. मु. माणिक्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५x११, १३x४० ). " बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिठं अरिहंताई ठिङ अति जा वीरजिण तिथं, " " (पू.वि. गाथा-५५ तक व गाथा १२६ से है.) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, मा.गु, गद्य, आदि: नत्वा श्रीवीरजिनं; अंति: मतिना धणी विचारा जोज्यो. For Private and Personal Use Only Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०५६६१ (+) २४ दंडक ३० बोल, अपूर्ण, वि. १८४३, आषाढ़ कृष्ण, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३८-३०(१ से २१,२४,२७ से ३०,३३ से ३६)=८, ले.स्थल. लिंबपुर, प्रले. मु. सुगालचंद (गुरु मु. हीराचंद, पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ); गुपि. मु. हीराचंद (गुरु पं. गणेश पंडित, पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ); पं. गणेश पंडित (पार्श्वचंद्रसूरिगच्छ),प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १२४४०). २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: निरंतरदार समत्तं, (पू.वि. सूर्यविमान वर्णन अपूर्ण से है.) १०५६६२. (#) व्याख्यान संग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८३०, कार्तिक कृष्ण, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. भांणपुर, पठ. गुलाबचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ११४३३). व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: देवपूजा दयादानं; अंति: श्रीकल्याणनी कोडि संपजे. व्याख्यान संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अहँत भगवंत गुरु गीतारथ; अंति: (-). १०५६६३. (+#) गौतमस्वामीनो रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११, १२४३८-४२). गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: विजयभद्रगुरु० संघ आणद करो, गाथा-७८. १०५६६५ (+#) वैद्यवल्लभ, औषध वैद्यक संग्रह व केश औषध चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ८४४०-४५). १.पे. नाम, वैद्यवल्लभ सह टबार्थ, पृ. १अ-१३आ, संपूर्ण. वैद्यवल्लभ, म. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: सरस्वतीं हृदि; अंति: सरसोहि विशेष एष, विलास-८, श्लोक-३२६. वैद्यवल्लभ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलु बोध विधि करी रोगना; अंति: रुचि करइ वंगेश्वर नामा रस, (वि. प्रतिलेखक ने मंगलाचरण का टबार्थ नहीं लिखा है.) २. पे. नाम, औषधवैद्यक संग्रह, पृ. १३आ, संपूर्ण.. औषधवैद्यक संग्रह*, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). ३. पे. नाम, केश औषध चौपाई, पृ. १३आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: संख चूर सिरसाई दोइ हरताला; अंति: संगमिति बहुड केश नहु थाय, गाथा-५. १०५६६७. (+#) चंद्रलेहामहासती चौपइ, संपूर्ण, वि. १८३१, आश्विन शुक्ल, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. २५, ले.स्थल. कुडणानगर, प्रले. मु. योग्यसागर (गुरु मु. राजसागर); गुपि. मु. राजसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीआदिनाथजी प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १५४३६). चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसति भगवति नमी करी; अंति: मतिकुशल० हुवें तेह, ढाल-२९, गाथा-६२४... १०५६७० (+) साधवंदना तेरे ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, १५४५५). साधुवंदना तेरहढाला, मु. देवमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: पांच भरत पांच एरवय जांण; अंति: श्रीदेवमुनि थुण्यो, ढाल-१३, गाथा-१६७. १०५६७२. (#) नवकार सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ६, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०.५, ७४२८). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढमं हवइ मंगलं, पद-९. नमस्कार महामंत्र-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनइं माहरु नमस्कार; अंति: भव्य जीवो भवे आणी ध्यावो. १०५६७३ (+) च्यार मंगल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.८, प्र.वि. हुंडी:च्यारमंगल., मंगलच्यार., संशोधित., दे., (२५४११, १३४४०). ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी जिण नमु; अंति: धर्म आराधीये ए, ढाल-४, गाथा-२१३. १०५६७४. अबयदकेवलि शकन व १४ रत्ननाम श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४५०-५५). For Private and Personal Use Only Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ३७७ १. पे. नाम. अबयद केवलि शकुन, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण, वि. १८१२, पौष कृष्ण, ८, शुक्रवार, प्रले. मु. रत्न, प्र.ले.पु. सामान्य. पाशाकेवली-भाषा, पुहि., गद्य, आदि: अवयद ए च्यारि अक्षर पासइ; अंति: उपजइ ए काज करि चउसही, प्रकरण-४. २. पे. नाम. १४ रत्ननाम श्लोक, पृ. ५आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: लिक्ष्मी कौस्तुभ पारजातक; अंति: हरि धनु संखोवि पंचामृतं, श्लोक-१. १०५६७५ (-१) अबयद शुकनावली, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११, १३४२८). अबयद शुकनावली, मु. सुजाणसिंह, पुहि., गद्य, वि. १७९४, आदि: महावीर कु ध्याइयै प्रणमुं; अंति: सुजाणसिंह०फल श्रीकार. १०५६८१ (#) नवपदजीरी पूजा, संपूर्ण, वि. १८६७, वैशाख कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, १२४३२). नवपद पूजा, म. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदिः श्रीगोडीपासजी नित; अंति: उत्तमविजय जगीस रे, ढाल-९. १०५६८२ (+#) चंद्रलेहा चरित्र, संपूर्ण, वि. १८६४, माघ शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. २७, ले.स्थल. जैतारण, प्रले. मु. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १४४३०-३९). चंद्रलेखा रास, म. मतिकशल, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: सरसति भगति नमी करी प्रणम; अंति: मतिकुशल० हुवें तेह, ढाल-२९, गाथा-६२४. १०५६८५. विवाहपडल व अंशक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४११, १०-१५४३१-४२). १. पे. नाम, विवाहपटल सह बालावबोध, पृ. १आ-१४अ, संपूर्ण. विवाहपटल, सं., पद्य, आदि: धनाढ्य माघे सुभगा च; अंति: गुरु लग्ने व्यपोहती, श्लोक-१०१, (वि. प्रतिलेखक ने श्लोकांक-१०० तक दिया है.) विवाहपटल-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: माह रै मही परणावै तो; अंति: होय तो लाख दोष मिटै. २.पे. नाम. ग्रहराश्यांशक विचार सह बालावबोध, पृ. १४अ, संपूर्ण. ग्रहराश्यांशक विचार, सं., गद्य, आदि: अजमकरतुलाकुलिराद्या; अंति: दृष्टो मृत्युकारी च वध्वा. ग्रहराश्यांशक विचार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अंशकपति यामित्रपति पश्यति; अंति: तो दृष्टि तो मृत्यु न होय. १०५६८६. (+) स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४८-३९(१ से ३३,३७ से ४०,४३ से ४४)=९, कुल पे. २८, प्र.वि. संशोधित., दे., (२२४११, १३४२९). १. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. ३४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. शांतिजिन स्तवन, म. केसरीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: निज दासरी अविचल पुरो आस, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३४अ-३४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पदनो पानो०. पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनमहेंद्रसूरि, रा., पद्य, आदि: हो जयकारि रे जिनजी; अंति: चरणांरी चाकरी रे लाल, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ३४आ, संपूर्ण. नेमराजिमति पद, म. केसरीचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मनो रे मनो रे मुझ बालहा; अंति: पीया दोन रे उतर्या पार, गाथा-३. ४. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ३४आ-३५अ, संपूर्ण.. पुहिं., पद्य, आदि: खरी पुकारु नेमा तुही तुही; अंति: सुजाण नेमजी में तो खरी, पद-३. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ३५अ, संपूर्ण. मु. वृद्धिकुशल, रा., पद्य, आदि: तेवीसमा जिनराज जोडै थार; अंति: पयंपे भव भव तुम्है दीदार, गाथा-३. ६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३५अ, संपूर्ण. मु. भूधर, पुहि., पद्य, आदि: चालो री सखी जिनदरसण; अंति: भूधर० बीस भयो सुभ कैरीया, गाथा-३. For Private and Personal Use Only Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७. पे. नाम. औपदेशिक होली पद, पृ. ३५अ-३५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:रागपद०. पुहिं., पद्य, आदि: होरी खेलो रे भविक; अंति: तेरा पाप सबल थिर के, गाथा-४. ८. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ३५आ, संपूर्ण. म. भूषण, रा., पद्य, आदि: नेम निरंजन ध्यावो रे; अंति: भविजनने सोजनो जस लीनो रे, गाथा-४. ९. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पृ. ३५आ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि: मधुबन में जाय मची होली; अंति: सुधक्षमा कहै करजोडी, गाथा-२. १०. पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. ३५आ, संपूर्ण. म. गिरधारी चंद, पुहिं., पद्य, आदि: बिसर मति नाम निरंजन को; अंति: गिरधारीचंद रंग पतंग फीकी, पद-३. ११. पे. नाम. महावीरजिन बधाई, पृ. ३६अ, संपूर्ण. म. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: वाजितरंग वधाई नगर मै; अंति: हर्षचंद० साहिबजो तिसवाई, पद-६. १२. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ३६अ, संपूर्ण. मु. केसरीचंद, पुहिं., पद्य, आदि: लगरयो मनडो आज सहिय मोरी; अंति: केसरीचंदन गुण गात, पद-४. १३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३६अ-३६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:केरवो०. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: लग्या मेरा नेहरा रे; अंति: नाम पायो ग्यान नही गेहरा, गाथा-५. १४. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ३६आ, संपूर्ण. मु. केसरीचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मैला मै उभी नैणा निरखे; अंति: केसरीचद० मुगत संभार की, पद-३. १५. पे. नाम, नेमिजिन पद, पृ. ३६आ, संपूर्ण. मु. केसरीचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जाय कहौनी मुझ बाल; अंति: केसरीचंद० अविचल राखो लाज, गाथा-४. १६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ३६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. केसरीचंद, पुहिं., पद्य, आदि: किनसो जिनजी से निहडा कीया; अंति: (-), (पू.वि. पद-३ अपूर्ण तक है.) १७. पे. नाम. नेमनाथजीरी बारामासी, पृ. ४१अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नेमराजिमती बारमासा, मु. अमरविशाल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: अम्ह भणी बीनव अमर विलास, गाथा-१९, (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण से है.) १८. पे. नाम. वर्द्धमानस्वामी स्तवन, पृ. ४१अ-४२अ, संपूर्ण, माघ कृष्ण, १०. महावीरजिनविनती स्तवन-जेसलमेरमंडन, उपा. समयसंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बीर सुणो मोरी बीनती; अंति: समयसुंदर० तिभवन तिलो, गाथा-१९. १९. पे. नाम. ऋषभदेवजी स्तवन, पृ. ४२अ-४२आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:ऋषबदेवजीरोतवन. आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऋषभ जिनेसर पीत माहरो अवर; अंति: आनंदघन पद रेह, गाथा-६. २०. पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. ४२आ, संपूर्ण. __ आदिजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मन मधुकर मोहि रह्यो; अंति: जिनराज० बे कर जोडिरे, गाथा-५. २१. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. कनकमूर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: एक अरज अवधारीयैरे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) २२. पे. नाम. पार्श्वनाथजीरी धमाल, पृ. ४५अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन पद, आ. जिनभक्तिसूरि, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: भक्ति रमे जिनवर सहाय, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) २३. पे. नाम. चंद्राप्रभु स्तवन, पृ. ४५अ, संपूर्ण. हाह. For Private and Personal Use Only Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. जैत, पुहिं., पद्य, आदि श्रीचंदाप्रभु जिनवर सायब, अंति जैत कहे ० चरणा की बलिहारी, गाथा-३. २४. पे. नाम. संतिनाथ स्तवन, पृ. ४५ ४५आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., पद्य, आदि: अंगन कल्प फल्यो री हमारै; अंति: समयसुंदर० सोहि ल्यो री, गाथा - ३. ३७९ २५. पे. नाम. महावीर पारणाधिकार, पृ. ४५आ-४७अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन- पारणागभिंत, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंतगुणा अंतिः तिन ही नमे मुनि माल, गाथा - ३१. २६. पे. नाम. सीमंधर स्तुति, पृ. ४७अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि महीमंडणं पुन्नसोवन्नदेह; अंति देहि मे सुद्धनाणं, गाथा ४. २७. पे नाम. इग्यारस स्तुति, पृ. ४७अ ४७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी बुइ०, मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. जिनचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अरनाथ जिनेश्वर, अंति: जिनचंद्र० करो कल्याण, गाथा-४. २८. पे नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ४७-४८अ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि निरुपम सुखदायक, अंतिः श्रीजिनलाभसूरिंदा जी गाथा ४. १०५६९९. (+) भाववैराग्य शतक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, प्र. वि. संशोधित प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है., जैदे., (२६x११.५, ६४३४). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि सुहं; अंति: लहइ जिउ सासयं ठाणं, गाथा-१०२. १०५७०० (+) रत्नपालऋषि चरित्र, संपूर्ण वि. १८७५, भाद्रपद कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ४५, ले. स्थल विक्रमपुर, प्र. वि. हुंडी रतनपाल, रत्नपालरा०, रतपालरासो०., संशोधित. कुल ग्रं. १२८, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११.५, १६x४१-४५). रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: सकल श्रेणि में दुर; अंति: मोहनविजये विलासेजी, खंड ४ ढाल ६६, गाथा १३७२. १०५७०१ (+#) शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. पंन्या. उमेदसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १४X३५-३८). शत्रुंजयतीर्धउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरवर विमल गिरवः अति करेवा दयो दरसण जय करूं, ढाल - १२, गाथा - १२०, ग्रं. १७०. १०५७०२. अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २७-२४ (१ से २४)=३, जै, (२५.५४११.५, १५X३३). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२९७ अपूर्ण से है व ३५२ अपूर्ण तक लिखा है., वि. पत्रांक-२७आ पर यंत्रमय मंत्र लिखा है.) १०५७०४. (+#) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-३ (३ से ४,६) =४, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५. ५X११.५, ८x२४). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: इच्छाकारेण संदिसह अंतिः पछ सरव मंगल मांगल्यं कणो (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) For Private and Personal Use Only १०५७०६ (+#) श्रुतबोध सह मनोरमा टीका, संपूर्ण, वि. १८२८, पौष शुक्ल, ७, रविवार, मध्यम, पृ. ५, ले. स्थल. घांणोरानगर, प्रले. पं. मनोहरसागर गणि (गुरु ग. हेतुसागर); गुपि. ग. हेतुसागर (गुरु उपा. राजसागर गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमन्नाभिनंदन प्रसादात्., त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंड है, प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., ( २६.५x१२, २०x४७-७०). श्रुतबोध, क. कालिदास, सं., पद्य, आदि: छंदसां लक्षणं येन; अंतिः स्रग्धरा सा प्रसिद्धा, श्लोक - ४१. श्रुतबोध - मनोरमा टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि श्रीमत्सारस्वतं धाम नत्वा, अंति: मकरोद् बालावबोधाय वै. Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०५७०९ (+) १४ गुणस्थानक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७४, आषाढ़ कृष्ण, २, सोमवार, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. राधनपुर, प्र.वि. श्री शांतिनाथ प्रसादात्., संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १०४३३). १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. मणिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वरपुर धणी; अंति: निजमति ने अनुसार, ढाल-१७. १०५७१० (+#) सिंदूर प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १२४३९-४२). सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-९९. १०५७११ (+) आध्यात्मिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, १, मध्यम, पृ. १, प्रले. सा. रतनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११, ११४४२-४७). आध्यात्मिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वाल्हेसरजी आतमजीव न जोग; अंति: देखा दायक छै सबलो काम रे, गाथा-११, (वि. अंत में २ दोहे लिखे हैं.) १०५७१२. (+) संबोधसत्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३६, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११, २४३०). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोयगुरुं; अंति: जयसेहर०नत्थि संदेहो, गाथा-१२४. संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमस्ते जगतस्यच्चेत; अंति: परिणमे ते मोक्ष सुख पामे. १०५७१३. (+#) ढोलामारु चौपाई, अपूर्ण, वि. १८२८, कार्तिक कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ३५-१(१)=३४, पठ. श्राव. देवरा जी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११-१४४३२-४०). ढोलामारु चौपाई, उपा. कशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि: (-); अंति: कुशललाभ० संपति सदा, गाथा-७००, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) १०५७१४. (+#) व्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.७, प्रले. सा. हसतु (गुरु सा. उमाजी); गुपि. सा. उमाजी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:दानरो., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४११, १३४३०). व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: दानं दरगत नासयं शीलं; अंति: तपस्याइ इंद्रि वसी हवे. १०५७१५. (+) होलिकापर्व प्रबंध सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४४, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, ५४३७). होलिकापर्व प्रबंध, ग. पुण्यराज, सं., पद्य, वि. १४८५, आदि: ज्ञानं विकाशय विधेहि; अंति: पुण्यराज० वाच्यताम्, श्लोक-३५, संपूर्ण. होलिकापर्व प्रबंध-टबार्थ, मु. कांतिविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७९२, आदि: हे भगवान प्राणिने ज्ञान; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०५७२१ (+#) गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, २३४५४). गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: अट्ठमीचउदसीसुं चेईयसव्वाइ; अंति: धिगस्तु निपतं परिहियमानं. १०५७२३. (+) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.७, प्र.वि. हुंडी:भर्तृहरी०.श्लोक., पदच्छेद सूचक लकीरे-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२४.५४११.५, १६४५५). प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: संतप्तायसि संस्थितस्य पयस; अंति: शुचितरं मूढो जनो मन्यते, गाथा-१६०, (वि. औपदेशिक जैनधार्मिक श्लोक गाथाएँ संकलित हैं व विषयानुसार विविध छंदो के श्लोकों का अनुक्रम अलग-अलग दिया गया है.) १०५७२५ (+) अरदास चरित्र, संपूर्ण, वि. १९१५, वैशाख शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. २५, ले.स्थल. भवाल, प्रले. सा. लीछमा (गुरु सा. चंदणा); गुपि. सा. चंदणा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:अरेदासचरित्र., अरीदास चरीत्र., संशोधित., अ., (२४.५४११.५, १९४४२-४४). For Private and Personal Use Only Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org ३८१ अरदास चौपाई, मु. कुस्वालचंदजी मु. धन्नो, मा.गु., पद्य, वि. १८७९, आदि अरीगंजण अरहंतजी: अंति: फलसी मंगलमालो जाडी, ढाल - ६४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०५७२६. (+) साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९६५, वैशाख शुक्ल, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. ७, प्रले. बालाराम ललितराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी : साधुवंदना ०., संशोधित., दे., (२५X११.५, १६x५१). (+) १०५७२७. साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: पंच भरत पंच एरवय; अंति: देवमुनि ते संथुण्या, ढाल १३, गाथा-३७७. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०१ भाद्रपद कृष्ण, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. १८, ले. स्थल. लाठाडा, प्रले. मु. चमनसागर (गुरु मु. फतेंद्रसागर, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीचंद्रप्रभु प्रशादात्., संशोधित., दे., (२४.५X११.५, ११X३०). १. पे नाम. आत्मप्रबोध सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: काया पुर पाटण मोकलु; अंति: मनावजो सहजसुंदर उपदेश रे, गाथा- ६. २. पे नाम. धूलिभद्र सझाय, पू. १अ १आ, संपूर्ण. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि प्रीतडली न कीजे हो नारी अंतिः रे समयसुंदर प्रभु रीत, गाथा ५. ३. पे. नाम. दान सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि रसीया राचो दान तणइ रसइ अति तिलकविजय जयकार, गाथा ५. . ४. पे. नाम. नंदिषेण सज्झाय, पृ. २अ - ३अ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगही नगरीनो वासी; अंति: एहवा साधु नही कोइ तोले हो, ढाल - ३, गाथा-१३. ५. पे नाम शालिभद्रधन्ना सज्झाय, पू. ३अ ३आ, संपूर्ण. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि अजीआ मुनि तो विभार गिर जई अंति: तरी पाम्या भवजल पार रे, गाथा- ७. ६. पे. नाम. रुखमणि सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरंता गामो गांम; अंति: मै जाय राजविजय रंगइ भणे, गाथा - १४. ७. पे. नाम. मौनैकादशी सज्झाय, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: आज एकादशीये नणदल मोनकरी; अंति: उदयरत्न०लीला लहेस्ये, गाथा- ७. ८. पे नाम बीजतिथि सज्झाय, पू. ४आ-५अ, संपूर्ण. उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि बीज तणे दिन दाखवं; अंति रे देवना सरीया काज रे, गाथा-९९. पे. नाम. पंचमीतिथि सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सद्गुरुना हुं प्रणमी पाय; अंति: सीस वाचक देवनी पूरो जगीस, गाथा-५. १०. पे नाम. अष्टमीतिथि सज्झाय, पू. ५आ, संपूर्ण अष्टमीतिथिपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि सरसति चरणे नमी आपो; अंतिः वाचक देव सुसीस, गाथा-७. ११. पे नाम. हरियाली सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण. प्रहेलिका हरियाली, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि एक नारी बहु पुरुष मीलीनइ अति अर्थ कहे ते सजननी बलीहारी, गाथा-६. १२. पे नाम. मेतार्यमुनि सज्झाय, पू. ६अ ७अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मेतारजमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: समदमना गुण आगरुजी; अंति: राजविजय० साधुतणी सज्झाय, गाथा-१३. १३. पे. नाम. सप्तविसन सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. ७ व्यसन निवारण सज्झाय, मु. जयरंग, मा.गु., पद्य, आदि: पर उपगारी साध सुगुरु इम; अंति: गुरु सीस रंगइ जय कहे, गाथा-९. १४. पे. नाम. सामायक सज्झाय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सामायक मन सूधे करौ नंद्या; अंति: सीस सामायक करवो निशदीस, गाथा-५. १५. पे. नाम. क्रोध सज्झाय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: क्रोध न करीइ भोला प्राणी; अंति: उपसम आणी पासे रे, गाथा-९. १६. पे. नाम. मान सज्झाय, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अभिमान न करस्यो कोई; अंति: भावसागर० रह्या चौमासे रे, गाथा-८. १७. पे. नाम. माया सज्झाय, पृ. ९अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: माया मूल संसारनो; अंति: भावसागर० सुख निर्वाण, गाथा-७. १८. पे. नाम. लोभ सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: लोभ न करीइं प्राणीया रे; अंति: भावसागर सयल जगीस, गाथा-८. १०५७२८.(+) १६ भावना विचार, संपूर्ण, वि. १८९८, आषाढ़ कृष्ण, २, मध्यम, पृ.५, ले.स्थल. पालीताणा, अन्य. मु. मनरूपराज (गुरु मु. सरूपराज, अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसिद्धगिरी प्रशादात्., संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १२४३५-३९). १६ भावना विचार, गु., गद्य, आदि: पोताना मन साथे एकंत बेसी; अंति: खरचो ते पोतानो सबल छे. १०५७३१ (+#) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हंडी:अठाहि., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ९४२२). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: शांतीशं शांतिकर्तार; अंति: (-), (पू.वि. मंत्री उपदेश वर्णन अपूर्ण तक १०५७३२ (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला सह सारोद्धार टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:नाम सारोद्धार., त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १४४४८-५२). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), (पू.वि. कर्कशादि स्वरभेद टीका अपूर्ण तक है.) अभिधानचिंतामणि नाममाला-सारोद्धार टीका, उपा. वल्लभ, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: श्रीमदर्हतमानम्य; अंति: (-). १०५७३३. (+) सिंदूरप्रकर सह टीका व देवपालश्रेष्टि कथानक-पूजाविषये, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३२+१(७)=३३, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५-२३४३३-५५). १.पे. नाम. सिंदर प्रकर सह टीका, पृ. १अ-३२अ, संपूर्ण, वि. १७१८, वस्वैकर्षिभ, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२, सोमवार, ले.स्थल. जैसलमेर, प्रले. मु. देवकुशल (परंपरा मु. राजसुंदर); गुपि. मु. राजसुंदर (परंपरा आ. मुनिसुंदरसूरि); आ. मुनिसुंदरसूरि; राज्ये गच्छाधिपति जिनोदयसूरि; गुपि.आ. जिनसुंदरसूरि; आ. जिनेश्वरसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. हुंडी:सिंदूरप्रटी. For Private and Personal Use Only Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ३८३ सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१००. सिंदरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदि: पार्श्वप्रभोः श्रीपार्श्व; अंति: वृत्तिमिमामकार्षीत. २. पे. नाम, देवपालश्रेष्टि कथानक-पूजाविषये, पृ. ३२आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: जिनपूजनं जनानां; अंति: सर्वेदेवपूजा कुर्वति. १०५७३४. (+) संग्रहणी सूत्र, संपूर्ण, वि. १८५४, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. २६, प्रले. श्राव. प्रश्नचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ११४३२). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताइ ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३१४. १०५७३६. (+) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. १६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ९४३२). १. पे. नाम, कुंथूजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कंथजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: रात दिवस नित सांभरे; अंति: पद्मने मंगलमालो लाल, गाथा-६. २. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन प्रभाति, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सारद वचन अमृत धुन वाणी; अंति: भाग्यदिसा अब जागी रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. शत्रंजयतीर्थ स्तवन, म. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाचल वंदो रे नर; अंति: भक्ति करुं साहिब तारी, गाथा-५. ४. पे. नाम. पारसनाथजीरो स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, वा. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी पंचम मंगल वार; अंति: आसके उदयरतन इम भणे रे लोल, गाथा-६. ५. पे. नाम. पार्श्वनाथजीरो स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. प्रधानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: पारसना पसायथी रे; अंति: प्रधानसागर० लील विलास रे, गाथा-७. ६. पे. नाम, पारसनाथजीरो स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. प्रधानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु मारा पारकरदेश; अंति: दिणयर वंछित काज, गाथा-६. ७. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सिद्धारथना रे नंदन; अंति: विनयविजय गुणगाय, गाथा-५. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गौडीजी, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: भावै वंदो रे गोडी; अंति: गुण गावे पदम लहे भवपार, गाथा-९. ९. पे. नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परमातम परमेसरू जगदीश; अंति: अविचल अक्षय राज, गाथा-७. १०. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. म. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: ते दिननो विसवास छे म; अंति: रूपचंद रस माण्या, गाथा-८. ११. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजी ओलंभडे मत; अंति: मोहन० लंछन बलीहारी, गाथा-७. १२. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अंग उमाहो मोने अति; अंति: छै प्रेम घणो जिनचंद रे, गाथा-७. १३. पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हो प्रभु मुज प्यारा; अंति: माया ताहरी रे लो, गाथा-६. १४. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. चंद्रप्रभजिन स्तवन, म. जेत मनि, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीचंदाप्रभु जिनवर साहि; अंति: जेत कहैतुम्ह चरण बलिहारी, गाथा-६. १५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: वंदियै रे वारी वंदीयै करम; अंति: साहिब सिर वंदीयै, गाथा-४. १६. पे. नाम. १३ काठिया सज्झाय, पृ. ८आ-१०अ, संपूर्ण. मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: जी गुणवंता भविका तुम; अंति: सीस उत्तम गुण गेह हो राज, गाथा-१६. १०५७३७. (+#) शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४४८). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरवर विमल गिरव; अंति: करेवा देहि दरिसण जय करो, ढाल-१२, गाथा-१२०, ग्रं. १७०. १०५७३८. सीमंधरजिन विनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.५, जैदे., (२६४११.५, १७४३९-४५). सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.ग., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामी सीमंधर विनती; अंति: जसविजय बुध जयकरो, ढाल-११, गाथा-१२५, ग्रं. १८८. १०५७३९ (+) षटपरवी वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, अन्य. श्रावि. हसतु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, ११४३६). महावीरजिन स्तवन-षटपरवी, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: जगदीपक जिनराज वस्तू तत्व; अंति: सुहाग नाम षटपरवी धर्यो, ढाल-८. १०५७४०.(+) जंबूस्वामी कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १५४४२-४८). जंबूस्वामी कथा, मा.गु., गद्य, आदि: सप्रभावं जिनं; अंति: (-), (पू.वि. जंबूस्वामी कलत्र प्रति पंचम कथा अपूर्ण तक है.) १०५७४१ (+) गजसुकुमाल संधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १४४३२-३९). गजसुकुमाल संधि, उपा. मूला ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १६२४, आदि: पणमीय वीर जिणेसर सामि हुइ; अंति: वृधि तस ___ मंदिरि आवइ, गाथा-१३८. १०५७४३ (+#) आवश्यकनियुक्ति सह टीका, त्रुटक, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ३५०-३४३(१ से ५०,५२ से ९९,१०१ से १४९,१५१ से १७९,१८१ से २४९,२५१ से २९९,३०१ से ३४९)=७, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्र खंडित होने के कारण पत्रांक अनुमानित दिये गये हैं., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १८४६३). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रत अपूर्ण, जीर्ण व खंडित होने के कारण गाथा परिमाण अनुपलब्ध है.) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की लघुटीका #, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, वि. १२९६, आदि: (-); अंति: (-), (त्रुटक, पू.वि. भरतचक्री कथा, महावीर चरित्र, दानविषये शालिभद्र कथा, पारिणामिकबुद्धि दृष्टांत, शिक्षा विषये स्थूलिभद्र कथा, निष्प्रतिक्रमता विषये नागदत्त कथा, इर्यापथिकी, कोणीक कथा आदि के अंशमात्र उपलब्ध है.) १०५७४४. निश्चयव्यवहारविवाद स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२५४११.५, १०x१०). शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: शांतिजिणेसर केसर; अंति: वाचक जसविजय सिरि लही, ढाल-६, गाथा-४८. For Private and Personal Use Only Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०५७४८. (+) समवायांगसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८३६ माघ शुक्ल ११, मध्यम, पू. १२६, ले. स्थल सिरोही, प्रले. पं. चतुरविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, ६x४५-४७). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि सुयं मे आउस तेणं, अति अज्झयणंति तिबेमि, अध्ययन- १०३, सूत्र- १५९ . १६६७. समवायांगसूत्र-टबार्थं, वा. मेघराजजी, मा.गु., गद्य वि. १७३, आदि देवदेवं जिनं नत्वा, अंति: बहूमानपणे देखाड्यो, ग्रं. ७१३५. १०५७४९. पंचतंत्र सह पंचाख्यान पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५६-४६ (१ से ४६) १०, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. जैदे. (२४.५४११. १६४४२). ', ३८५ पंचतंत्र, विष्णु शर्मा, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. तंत्र- ४ अपूर्ण से तंत्र -५ अपूर्ण तक है.) पंचाख्यान भाषा, संबद्ध, मु. गुणमेरुसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १६२६, आदि: (-); अंति: (-). १०५७५१. (०) ८ कर्म १४८ प्रकृति विचार, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ५. प्र. वि. हुंडी बंधप्रकृति, संशोधित, जैदे. (२६४११.५, 7 २१४४९). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ग्यानावरणी १ दर्शनावरणी २ अंति बाध सुख मुक्ति न पामे. १०५७५२. गौतमपृच्छा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., ( २४.५X११, १२X४०-४६). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवइ अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ११६ अपूर्ण तक है. ) १०५७५३. (+) भुवनदीपक, संपूर्ण वि. १८५४ श्रावण शुक्ल, ९, मंगलवार, मध्यम, पू. ११, ले. स्थल. प्राणपुर नगर प्रले. मु. लावण्यसागर (परंपरा पं. मनोहरसागर गणि); गुपि. पं. मनोहरसागर गणि (गुरु ग. हेतुसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११, १०X१२-३२). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य वि. १३५, आदि सारस्वतं नमस्कृत्य अंतिः श्रीपद्मप्रभुसूरिभिः, श्लोक १७४. १०५७५६. (+) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र तपागच्छीय व संथारापोरसी सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८०१ आश्विन कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ६१, कुल पे. २, ले. स्थल सूरतिबंदर, प्रले. मु. शुभविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५X११, १०x३८). १. पे. नाम. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय सह टबार्थ व बालावबोध, पृ. १आ-५८अ संपूर्ण. . देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं, (वि. १० पच्चक्खाण सहित ) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत विहरमानने माहरो; अंति: दुक्कडं कहतां मिथ्या हो. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र -तपागच्छीय- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अति (-), (वि. कहीं-कहीं बालावबोध दिया है.) २. पे. नाम संथारापोरसीसूत्र सह टवार्थ पू. ५८आ-६१अ संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि निसिही निसिही निसीहि अंतिः इअ समतं मए गहिअं, गाथा - १४. संधारापोरसीसूत्र टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार बिना बीजो अंतिः ग्रतुं मन निश्चल करीने, For Private and Personal Use Only १०५७५७. (+) भक्तामर स्तोत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १२, प्रले. मु. इसरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X१०.५, ३x४०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि भक्त जे अमरदेवता; अंति: करी प्रगटपणे को. १०५७५८. (+) विक्रमचौबोली रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १७-३ (१ से ३) = १४, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे., (२५X१०.५, १२x२७-३०). Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-४ अपूर्ण से ढाल-१५ गाथा-१० तक है.) १०५७६१ (+) २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. हुंडी:देवीचंदजी कृत वीशी., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४११, ९४३९). २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसीमंधर जिनवर; अंति: देव० परम महोदयशक्ति रे, स्तवन-२०. १०५७६२. (+#) सांबप्रद्युम्न प्रबंध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २८, प्र.वि. अंतिम पत्र का आधा हिस्सा है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४३२-३६). सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: श्रीनेमीसर गुणनिलउ; अंति: समयसुंदर०सुजस जगीस ए, खंड-२, गाथा-५३५, ग्रं. ८००, (वि. ढाल-२२.) १०५७६३. (+) सुदर्शनसेठ सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७९५, कार्तिक कृष्ण, ३, शनिवार, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १२४३०). सुदर्शनसेठ सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: संयमधीर सुगुरुपय वंदी; अंति: उदय हुइ सुजस सवाय रे, ढाल-६, गाथा-६८. १०५७७० (+#) वर्द्धमानजिन सुरलता, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, ९४३०-३७). महावीरजिन हमचडी-५ कल्याणकवर्णन, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्य, आदि: नंदनकुं तिसला हुलावि; अंति: समरइ वर्द्धमान जिनवीरो, ढाल-३, गाथा-६५. १०५७७१ (+) गुणरत्नाकर छंद, संपूर्ण, वि. १८२०, श्रावण कृष्ण, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. २०, ले.स्थल. रवनगर, प्रले. ग. शुभविजय (गुरु ग. तिलकविजय); गुपि. ग. तिलकविजय; गुभा. ग. सुखविजय (गुरु ग. बुद्धिविजय, तपागच्छ); गुपि. ग. बुद्धिविजय (गुरु पं. तत्वविजय, तपागच्छ); पं. तत्वविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३.५४१०.५, १६४३८-४०). गुणरत्नाकर छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५७२, आदि: ससिकरनिकर समुज्वल; अंति: करो सहिजसुंदर मया, अध्याय-४, गाथा-४२५. १०५७७४. (+) स्तंभनक पार्श्वजिन स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९२, कार्तिक शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ७, प्रले. पं. कृष्णविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१०.५, ५४२८-३०). पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित, ग. पूर्णकलश, प्रा.,सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: जसु सासणदेवि वएसकया; अंति: पार्श्वस्तोत्रमेतत्, गाथा-३७, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जस थवणंविहि अंतसय दीपेमि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ अपूर्ण तक लिखा है.) १०५७७८. (+#) स्थूलिभद्रमुनि शीयलवेलि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-२(१ से २)=५, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका में कृति का नाम वैराग्यदीपक मदनजीपकाद्यनेकगुणजननोद्भवभावजलरेलिरलंकृतकेलि लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १७-१९४३६-४३). स्थूलिभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६२, आदिः (-); अंति: वीर० कमला बरस्यै रे, ढाल-१८, (पू.वि. ढाल-५ गाथा-१ अपूर्ण से है.) १०५७७९ (+#) २४ जिन स्तव सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. हुंडी:भूपालचौ., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, १०४४२). २४ जिन स्तव, श्राव. भूपाल, सं., पद्य, आदि: श्रीलीलायतनं महीकुल; अंति: भूयात् पुनदर्शनम्, श्लोक-२६. For Private and Personal Use Only Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org ३८७ जिनचतुर्विंशतिका टीका, जै.क. आशाधर भट्ट, सं., गद्य, आदि (-); अति: र्यस्य धिन्वंति वाचः, (वि. लेशमात्र टीका है.) " १०५७८० (+) पाक्षिक अतिचार व चित्रसंभूत सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. ६, कुल पे. २, प्रले. पं. हेतसागर गणि पठ. मु. मनोहरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५.५४११, १५४४५) १. पे. नाम. पाक्षिक अतिचार, पृ. १अ- ६अ, संपूर्ण. साधुपाक्षिकअतिचार-मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि चरणं; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २. पे. नाम. चित्रसंभूत सज्झाय, पृ. ६अ -६आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चित्र कहे ब्रह्मराय; अंति: भणै ते सीवपद वरसी हो, गाथा-२०. १०५७८४ (+) गुणकरंडकगुणावली चरित्र, संपूर्ण, वि. १८३८, पौष शुक्ल, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १९, ले. स्थल. खीचंद, प्र. सा. नाथया (गुरु सा. गुमानाजी): गुपि. सा. गुमानाजी (गुरु सा. चनणा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : गुणकरसेठ.. संशोधित., जैदे., (२५X११, १६x४१). गुणकरंडकगुणावलि चौपाई, मु. दीपचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७५७, आदि संपति सुखदायक सरस अंति आवै थिर संपत जस थावै जी, ढाल २८, गाथा- १६०३. १०५७८५. माधवानल चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १७, जैये. (२५x११, १०x२८-३१). माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि देवि सरसति देवि, अंति (अपठनीय), गाथा - ५५२. १०५७८६. (१) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र सह भावार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३०-७ (१ से ५, १८, २९) २३. पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे. (२४.५x१०.५, १३३०-३६). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक "" देववंदन - पुक्खरवरदी सूत्र से देसावगासिक पचक्खाण अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय- भावार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०५७८७ (#) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २८-२४ (१ से २२, २६ से २७) = ४, प्र. वि. हुंडी : उत्तराधिन ०., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६ १०.५, ९४३९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि (-) अति (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. अध्ययन- १४ गाथा-३६ अपूर्ण से अध्ययन १७ गाथा-४ तक व गाथा - ११ अपूर्ण से १३ अपूर्ण तक हैं.) १०५७९३. षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., । (२८x१३, ९४४५). , आवकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाण; अति: (-). (पू.वि. संसारदावानल स्तुति-गाथा- २ तक है.) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय का बालावबोध, पं. हेमहंस गणि, मा.गु., गद्य, वि. १५०१, आदि (१) श्रेयांसि श्रीमहावीर, (२) नमो अर्हद्भ्यः; अंति: (-). , १०५७९४. (+) १२ भावना सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पू. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६.५X१३, ११X३१). १२ भावना सज्झाय-बृहत्, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पासजिणेसर पाय नमी, अंति: (-), (पू.वि. ढाल ७ दोहा १ अपूर्ण तक है.) १०५७९५ (+) श्रीपाल चरित्र, अपूर्ण वि. १९११ माघ कृष्ण ७, श्रेष्ठ, पृ. ८७-३ (२ से ४)=८४, ले.स्थल. भीलैडानगर, प्रले. पंन्या. दोलतसोभाग्य; अन्य. श्राव. चुनीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. वे., (२७४१२.५, ९४३४). For Private and Personal Use Only श्रीपाल चरित्र, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीरप्रभु देव रच्यौ; अंति: सिद्धचक्र को अधिकार जाणवौ, (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. धर्म उपवेश प्रसंग अपूर्ण से मयणासुंदरी विवाह प्रसंग अपूर्ण तक है.) Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०५७९६. (#) मलयसुंदरी चरित्र, अपूर्ण, वि. १८२३, श्रावण शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ८१-६(२२,५२,५५,६४ से ६५,७७)=७५, प्र.वि. श्रीपालविहारपार्श्व प्रसाद., कुल ग्रं. ४०००, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७X१२.५, १४४५१). मलयसुंदरी रास, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७५, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति: कांति० खंडनी ढाल रे, खंड-४, गाथा-१०५२, (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं., वि. ढाल-९१.)। १०५७९७. (+) जंबुगुणरत्नमाला, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, प्र.वि. हुंडी:जंबूगुणमाला., संशोधित., दे., (२५४१२.५, १७७५१). जंबूस्वामी चरित्र, श्राव. आणंद जेठमल, मा.गु., पद्य, वि. १९२०, आदि: सासणपत वृद्धमाननो; अंति: आनंद जेठमल० कल्याण ए, ढाल-३५. १०५७९८. (+) हरचंदराजारी चौपई, संपूर्ण, वि. १९३९, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १९, ले.स्थल. नागौर, प्रले. पं. पुन्यविजय, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:हरचंदचोपई., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४१२.५, १३४३४-३८). हरिश्चंद्रराजा चौपाई, म.प्रेम, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: आदिजिनेसर पाय नमी; अंति: जुग मै नांव तिकारा होय, ढाल-२३. १०५७९९ (+) अष्टक प्रकरण सह वत्ति, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. हंडी:अष्टक०., अष्टकजी., पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४११.५, ८४३१-३३). अष्टक प्रकरण, आ. हरिभद्रसरि, सं., पद्य, आदिः यस्य संक्लेशजननो; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., महादेवाष्टक श्लोक-७ तक लिखा है.) अष्टक प्रकरण-वृत्ति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., गद्य, वि. १०८०, आदि: आविष्कृताशेषपदार्थसार्था; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२ के टीकागत अग्नि दृष्टांत अपूर्ण तक लिखा है.) १०५८०० (-) सिद्धाचल चैत्यवंदनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ८, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५.५४१२.५, १३४२८). १. पे. नाम, सिद्धाचल चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. शत्रंजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ जगन्नाथ; अंति: मेस्तु शासनं तु भवे भेवे, श्लोक-५. २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदो नेमीजिन नेमी संभवं; अंति: मोक्षलक्ष्मिनिवास, श्लोक-८. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु, श्लोक-११. ४. पे. नाम. तीर्थमाला चैत्यवंदन, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण, प्रले. मु. जीतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके रविशशि; अंतिः सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-१०. ५. पे. नाम. साधारण चैत्यवंदन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवा प्रभायं विधि; अंति: भावं जयानंद मया प्रदेया, श्लोक-९. ६. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. ४आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., पद्य, वि. १८वी, आदि: उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: सिद्धचक्कं नमामि, गाथा-६. ७. पे. नाम. पंचतीर्थी स्तव, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. पंचतीर्थजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: प्रणतमानवदानवनायकः; अंति: द्रव्यदाने धनेंद्रा, श्लोक-६. ८. पे. नाम. २० विहरमान स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, सं., पद्य, आदि: त्रैलोक्य पूज्यस्य; अंति: शांतिकारं कृतां मे, श्लोक-८. १०५८०१ (+) प्रतिक्रमण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-३(१ से ३)=१२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १३४३४-३८). For Private and Personal Use Only Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org प्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-), (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण राईवप्रतिक्रमण विधि अपूर्ण से है व पाक्षिक प्रतिक्रमण प्रारंभिक पाठ तक लिखा है. वि. बीच में पोषधादि विधि लिखी गई है.) ', १०५८०२. (+) नलदवदंती चरित्र, संपूर्ण, वि. १८९८, चैत्र शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १५, प्र. वि. हुंडी : नलदवदं., संशोधित., जैदे., (२६.५X१२, १७x४२-४५). नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७३, आदि : आदिनाथजिण आददे चउवीसे; अंति: समयसुंदर० मैं घाली र लो, खंड-६ ढाल ३९, गाथा - ९३१, ग्रं. १३५०. १०५८०३. (+) नवाणु प्रकार पूजा, संपूर्ण, वि. १९०३, आषाढ़ कृष्ण, ७, बुधवार, मध्यम, पृ. ५, ले. स्थल. सूरतबिंदर, प्र. मु. फतेसागर; अन्य. पं. उत्तमविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीसंखेश्वरजी प्रसादात्, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, दे., (२८x१२, १०- १३x४१-४४). ९९ प्रकारी पूजा-शत्रुंजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: आतम आप ठरायो रे, बाल- ११. "" १. पे नाम, २४ जिननाम अतीत, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन नाम- अतीत, मा.गु., गद्य, आदि: केवलज्ञानी निर्वाणी; अंति: सदलनाथ संप्रतिनाथ. २. पे. नाम. २४ जिन नाम-वर्त्तमान, पृ. १अ, संपूर्ण. १०५८०५ (+#) विविध बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २९, कुल पे. ७९, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ क अंश खंडित है, जैवे. (२६४१२, १३-१६४३०-३३). मा.गु., गद्य, आदि: श्री ऋषभदेवजी; अंति: पारसनाथजी महावीरजी. ३. पे. नाम. २० विहरमानजिन नाम पू. १अ १आ. संपूर्ण. 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु. गद्य, आदि: श्रीमंधरस्वामी जुगमंदरजी अति: देवजसजी अजीतवीर्थजी. ४. पे. नाम. ११ गणधर नाम, पृ. १आ, संपूर्ण, मा.गु., गद्य, आदि इंद्रभूति अग्निभूति वायु अति अचलजी मेतार्यजी प्रभासजी. ५. पे. नाम. अनागतगतचोवीसी नाम, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ३८९ २४ जिन नाम-अनागत, मा.गु., गद्य, आदि: पद्मनाभ श्रेणिक राजा; अंति: सांति बुद्धि महादेवनो. ६. पे नाम. २० श्रावक कर्तव्य, पृ. २अ संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि अरिहंतदेवजीना गुण गाण करत अंति: २० जिनमारग दीपावतो ति०. ७. पे. नाम. ३४ अतिशय नाम, पृ. २अ- ३अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: नख केश रोम राय वधे नही; अंति: रोग न उपजे समायसुत्रमे छे, अंक-३४. ८. पे. नाम. शीलव्रत ३२ उपमा बोल, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. शीयलव्रत ३२ उपमा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: संस्कार संयुक्त बोलई उचेई: अंति: उपमा प्रसनव्याकरणमे छे. ९. पे नाम. शीलव्रत ३२ उपमा बोल, पृ. ३-४अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. शीयलव्रत ३२ उपमा बोल, मा.गु., गद्य, आदि ग्रह नक्षत्र तारामाहे चंद, अंतिः मोटो सर्व साधुनी उपमा. १०. पे. नाम. ३२ उपमा-साधु, पृ. ४-५अ, संपूर्ण. ३० उपमा-साधु की, मा.गु., गद्य, आदि: कासाना पात्रनी पाणि भेदाय; अंति: रतनना मणियानी परे नीर, अंक-३२. ११. पे नाम योग संग्रह ३२ बोल, पू. ५२-५आ, संपूर्ण, For Private and Personal Use Only समवायांगसूत्र-हिस्सा समवाय ३० मोहनीयस्थानक की ३२ बोल, संबद्ध, मा.गु. गद्य, आदि: प्रथम बोल थीती तीस मोहती; अति: संग्रह समायंगसूत्रमे छे. १२. पे. नाम. आलोयणा बोल संग्रह, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. ३२ बोल संग्रह-आलोयणा, मा.गु., गद्य, आदि: जे काइ पाप लागो होइ ते; अंति: भणउ नही ठाणांगजी मे छे. १३. पे नाम ३२ असझाय विचार, पृ. ६२.६आ, संपूर्ण, Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.ग., गद्य, आदि: उवावाइ तारो तुटे तेहनी; अंति: आधारीत १४ एव ३२ असज्झाय. १४. पे. नाम. ३३ आशातना विचार-गुरुसंबंधी, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: गुरुने आगले चाले तो असातन; अंति: कहे तो गुरुने आस संघटे. १५. पे. नाम. २० बोल असमाधि, पृ. ७अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: उतावलो चालें तो; अंति: उपोग न राखे तो असमाधि, कडी-२०. १६. पे. नाम. २१ बोल-सबल दोष, पृ. ८अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: इछीकम्म करे तो सबलो दूष; अंति: दसासूत्रमे चाल्या छेई. १७. पे. नाम. ३० बोल-साधु, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. ___मा.गु., गद्य, आदि: बोल छ कायना जीवनी हिस्या; अंति: सूख समाध सातानो कारण छे. १८. पे. नाम. २२ परिषह विचार, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ क्षुधा परीसह भुखनो; अंति: एवं ४ कर्मथी २२ परिसउ. १९. पे. नाम. २५ मिथ्यात्व नाम, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. ___मा.गु., गद्य, आदि: अवग्रीक मीथ्यात अनव; अंति: कर्मथी नथी मूकाणा ते. २०. पे. नाम. ८ बोल-एकलविहारी साधु, पृ. ९आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सरद्धावंत होइ महाबलवंत; अंति: महापराक्रमी होइ. २१. पे. नाम. चरणसित्तरी के ७० व करणसित्तरी के ७०बोल, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: उत्पात पुर्व ११ कोडपद; अंति: कथा नीवारवी एवं चरण. २२. पे. नाम. ३० बोल-दुषमकाल, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: नगर गाम सरीका होसी; अंति: दकाल पडसी दरभक्ष थासी. २३. पे. नाम. श्रावक २१ गुण वर्णन, पृ. १०आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. मा.गु., गद्य, आदि: श्रावकजी केहवा छे जीव; अंति: रायपसेणीमे० गुण चाल्या छे, अंक-२१. २४. पे. नाम. सामायिक ३२ दोष, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: दश दोष मना वेला कुवेला; अंति: कर्म तोडे सूभ कर्म बंधइ. २५. पे. नाम, पोसह १८ दोष, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. पौषध १८ दोष, मा.गु., गद्य, आदि: पोसान मते चापी चापी आहार; अंति: पधारो सूखसाता पूछवी नहि. २६. पे. नाम. ५२ अनाचार वर्णन-साधु जीवन के, पृ. १२अ-१३अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: आधाकरमी आहार उदेसी आहार; अंति: सोभा सिनगार करवो नही. २७. पे. नाम. गोचरी ४७ दोष, पृ. १३अ-१४अ, संपूर्ण. मा.ग.,रा., गद्य, आदि: आधाकरमी आहार साधुन मते; अंतिः अणसण करउ च्यार आहार पचखवा. २८. पे. नाम. १८ पापस्थानक आलोयणा, पृ. १४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातिपात साधु करे नही; अंति: विभूषा करे नही करावे नही. २९. पे. नाम. संयम के १७ भेद, पृ. १४आ, संपूर्ण. संयम के १७ भेद नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सत्तरभेद संजम पाले पृथ्वी; अंति: संजमे १६ कायसंजमे १७. ३०. पे. नाम. १० यतिधर्म भेद, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: दसजती धर्मक्षति १ मूर्ती; अंति: बंभचेरवासे १० एवं दस भेद. ३१. पे. नाम. दीक्षा के १८ दोष, पृ. १५अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: आठ वरसना बालकने न कल्पेई; अंति: न कल्पेई एवं १८ दोष जाणवा. ३२. पे. नाम. १४ गुणठाणा नाम, पृ. १५अ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात गुणठाणा १ सस्वादन; अंति: एवं १४ गुणठाणा जाणवा. ३३. पे. नाम. आचार्य ८ संपदा, पृ. १५अ, संपूर्ण, पे.वि. इस कृति का अंतिम शेष भाग पंत्राक-१६अ पर लिखा है. For Private and Personal Use Only Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ मा.गु., गद्य, आदि: आचारजना संपदा १ रूपसंपदा; अंति: उपेगसंपदा ७ संग्रहसंपदा ८. ३४. पे. नाम. १८ पापस्थानक आलोयणा, पृ. १५आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातिपात साधु करे नही; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., स्थानक-१४ तक लिखा है.) ३५. पे. नाम. १४ बोल-संयत असंयतादि की जघन्योत्कृष्ट देवगति, पृ. १६अ, संपूर्ण. मा.ग., गद्य, आदि: असंजति जघन भवनपतिउ; अंति: उत्कृष्टो नवग्रीवेक उपजे. ३६. पे. नाम. ४५ बोल-विनय, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: आचार्यजीनो विनय १; अंति: मान गुण ग्राम करवा एवं ४५. ३७. पे. नाम. १० वैयावच्च भेद, पृ. १६आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: आचार्यजीनी १ उपध्यायजीनी; अंति: संघ एवं दस प्रकारे जाणवा. ३८. पे. नाम. श्रावक २१ गुण वर्णन, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. मा.गु., गद्य, आदि: श्रावकजी केहवा होय समकीत; अंति: एवं इकवीस गुण कह्या, अंक-२१. ३९. पे. नाम. १० मनुष्यजन्म दुर्लभ बोल, पृ. १७अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: मनुष्य अवतार पामवो दर्भभ; अंति: कष्ट करी धरम करउ दुर्लभ, अंक-१०. ४०. पे. नाम. शीयलव्रत १६ उपमा बोल, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सुद्ध मन सील पाले तो कुल; अंति: नाखे तो टीबा समान जाणे. ४१. पे. नाम. पापनो परिवार, पृ. १७आ, संपूर्ण. ८ बोल-पापपरिवार विषयक, पुहिं.,रा., गद्य, आदि: पापनो बाप क्रोध १ पापनी; अंति: पापनो मूल लोभ. ४२. पे. नाम. धर्मनो परिवार, पृ. १७आ, संपूर्ण. ८ बोल-धर्मपरिवार, रा., गद्य, आदि: १ धरमनो बाप जाण पणो; अंति: धर्मनो मूल क्षमा ८. ४३. पे. नाम. ८ बोल-दर्लभ, पृ. १७आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: कायरने संजम पालवो दुर्लभ; अंति: सील पाल पालवो दुर्लभ. ४४. पे. नाम. दान के १० प्रकार विचार, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अनुकंपादान ते अनाथ दुर्बल; अंति: ते साधुने सूध मान वहेरावे. ४५. पे. नाम. क्रोधमानमायादि वास बोल विचार, पृ. १८अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: क्लेशनो वासो क्यांहा छ; अंति: संतोकनो वासो साधुजीने घरे. ४६. पे. नाम. १० बोल-क्लेशादि, पृ. १८अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. मा.गु., गद्य, आदि: क्लेस १ हासो २ आहार ३; अंति: निद्रा ९ त्रीसना १०. ४७. पे. नाम. लोकालोकसंस्थान विचार, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. ____ मा.गु., गद्य, आदि: अलोकोन संठाण घोघा घोलाने; अंति: विदिसि तुटा हारने आकारे. ४८. पे. नाम. ८ औपदेशिक बोल, पृ. १८आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: भगवंतजीनी वाणी सूनता पाप; अंति: दान दिजे परगुण लिजे. ४९. पे. नाम. ८ औपदेशिक बोल, पृ. १८आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: दया पाले ते दानेसरी धरम; अंति: रक्षा करे ते अक्षी एवं ८. ५०. पे. नाम. ८ बोल आधार, पृ. १८आ, संपूर्ण.. मा.गु., गद्य, आदि: बीहोता जीवने सरणानो आधार; अंति: चोर ने परवतनो आधार. ५१. पे. नाम. ८ अनंताद्रव्य विचार, पृ. १९अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: भव जीव अनंता १; अंति: आकासलोकनी अनंता ८. ५२. पे. नाम. ५ स्थावर नाम, पृ. १९अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ पृथ्वीकायनो नाम इंद्री; अंति: थावरकाय ते वनस्पती नाम. For Private and Personal Use Only Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३९२ www.kobatirth.org ५३. पे. नाम. साधु विहारी आचरण बोल, पृ. १९अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि : आगम विहारी ते जे चउदे; अंति: तपाचारी० विषे उद्यम करे. ५४. पे नाम. ९ वाड-ब्रह्मचर्य, पृ. १९-१९आ, संपूर्ण ५६. पे नाम. धर्मसंबंध बोल, पृ. २०अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि धर्मनो जाणपणो होइ तो दया; अति मार्ग चाले तो सोभाग पामे. ५७. पे नाम औपदेशिक बोल, पृ. २०अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: नववाडी सीलनी पहली वाडी, अंतिः दृष्टांत एवं ९ वाड जाणवा. ५५. पे. नाम. १० बोल-परमकल्याणकारी, पृ. १९आ - २०अ, संपूर्ण. २४ बोल-परमकल्याणकारी, मा.गु., गद्य, आदि: तप करीने नीहाणो न करे तेह; अंति: श्रीकेसी गोतमनी परे, अंक-१०. मा.गु., गद्य, आदि: न्याय मार्ग चाले तो सोभाग; अंति: मोक्षना अनंता सुख पामी जई. ५८. पे नाम. १० बोल- धर्म, पृ. २०अ २०आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि दवा पाले ते मोटो आउखो, अंतिः मुगतीना अनंता सुख पामे, अंक १०. ५९. पे नाम. १० बोल-धर्म उद्यम, पृ. २०आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि सूत्र सिद्धांत नवा नवा अंति होइ तो टालवा उद्यम करवो. ६०. पे. नाम. ८ कर्म नाम, पृ. २०आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणी १ दर्शनावरणी २; अंति: गोत्रकर्म ७ अंतरायकर्म ८. ६१. पे. नाम. ८ आत्मा विचार, पृ. २०आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: द्रव्य आत्मा १ कषाय आत्मा; अंति: आत्मा ७ वीर्य आत्मा ८. ६२. पे. नाम. ८ मद नाम, पृ. २०आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि जातमद १ कुलमंद २ बलमद ३ अति सूत्रमद ७ ठकुराइमद ८. " ६३. पे. नाम. ८ प्रवचनमाता विचार, पृ. २०आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मा.गु., गद्य, आदि: ईर्यासुमति जोइने चालवड १; अंति: वचनगुपती कायागुपती एवं ८. ६४. पे नाम. देवादिगति आयुष्यबंध विचार बोल, पू. २० आ-२१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ महालोभी २ महामछरवंत; अंति: करणहार देवतानो आउखो बांधे. ६५. पे. नाम. ११ बोल- ज्ञान वृद्धि, पृ. २२अ, संपूर्ण. ११ बोल-ज्ञान वृद्धि, मा.गु., गद्य, आदि: अनोदरी तप करे तो ज्ञान; अंति: एवं ११ बोले ज्ञान वधे. ६६. पे नाम. १९ बोल ज्ञान अंतराय पू. २२अ संपूर्ण. " मा.गु., गद्य, आदि : आलस करे तो ज्ञाननी अंतराय; अंति: करे तो ज्ञाननी अंतराय पडे. ६७. पे. नाम. १० बोल -क्लेशादि, पृ. २२अ २२आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. मा.गु., गद्य, आदि: कलेस घटायो घटे वधायो वधे; अंति: वेराग घटाडी घटे वधायो वधे. ६८. पे. नाम. १३ काठिया नाम, पृ. २२आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि १ आलस करे तो धर्मनी अंतरा, अंति: (१) रामत ख्याल मासानो देख, (२) विकहा ११ छोला १२ रमा ७०. पे नाम महावीरजिन १० स्वप्न बोल, पृ. २३अ, संपूर्ण मा.गु., गद्य, आदि: झोटिगजि तो ते सपना मे; अंति: मुगतरूपी सीघासन जाइ बेठा. ७१. पे नाम. १० वाना छद्मस्थ न देखे, पू. २३अ-२३आ, संपूर्ण मा.गु., गद्य, आदि धर्मास्तिकाय १ अधर्मास्ति; अंतिः केवली सर्वथा जाणे देखेई. १३. ६९. पे. नाम. १३ बोल-गुणरूप रूई अवगुणरूप चिनगारी, पृ. २२आ-२३अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (१) जन्म १ संजोग २ संपदा ३, (२) जनमरूपी रूई मरणरूपी याते; अंति: लोभरूपी तनगो लागो छे, बोल- १३. For Private and Personal Use Only Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org ७२. पे नाम. १० असमर्थता बोल, पृ. २३आ, संपूर्ण, मा.गु., गद्य, आदि जीवने अजीव करवा समर्थ नही; अंति: अलोकमे जावा कोइ समर्थ नही. ७३. पे नाम. १० बोल- साधु आचार, पृ. २३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम तो थानक पूजा होई; अंति: बे टंकना पडिकमणा कीजे. ७४. पे नाम. १२ बोल- साधु आचार, पू. २३-२४अ संपूर्ण. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., गद्य, आदि उपराधी वस्त्र पात्र लेड; अंति: मोसरम १० सनिज्याय ११ कहीय. ७५. पे. नाम. साधु की १० समाचारी, पृ. २४अ, संपूर्ण. साधु समाचारी, प्रा., मा.गु., गद्य, आदिः आवसया नाम थानकथी निकलता; अंति: ज्ञानादि वधारे एवं १०. ७६. पे. नाम. ८ बोल-संयम दोष, पृ. २४ अ, संपूर्ण, ८ बोल-संजम दोष, मा.गु., गद्य, आदि: माइ साधु अकार्य करी इम; अंतिः घणो छे तेहनी हाणी थासी.. ७७. पे. नाम. साधु आचार बोल संग्रह, पृ. २४अ - २६अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि संपना १ कुलसंपना २ विनय अंति: वयसा २ कायसा ३ एवं भांगा. ७८. पे. नाम सिद्ध के १५ द्वार बोल, पृ. २६अ, संपूर्ण मा.गु., गद्य, आदि तीर्थ सिद्धा ते तीर्थे; अंति एक समय अनेक सिद्धा ७९. पे. नाम. सिद्धभेद विचार-आगमिक, पृ. २६आ- २९आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अस्त्रीलिंगे एक समे २०; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "एक समे सिद्धा अनंतगुणा" पाठ तक लिखा है.) १०५८०६. (+) जीवविचार, नवतत्त्व प्रकरण व दंडकविचार षट्त्रिंशिका, संपूर्ण वि. १९१२ ज्येष्ठ शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. २४, कुल पे. ३, ले.स्थल. फलोधी, प्रले. मु. गुलाबचंद्र (गुरु मु. रामचंद्रजी); गुपि. मु. रामचंद्रजी (गुरु आ. देवचंद्रजी); आ. देवचंद्रजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., ( २४.५X१२, ५x२७-३३). १. पे. नाम. जीवविचारसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-७आ, संपूर्ण. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि० सुयसमुदाओ, गाथा- ५०. जीवविचार प्रकरण- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि भुवन कहतां तीन भवन; अंति: रूप जे समुद्र ते थकी २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ७आ-१५आ, संपूर्ण. ३९३ नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५३. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि जीवा कहतां जीवतत्त्व अजीव अंति: सिद्ध ऋषभदेव प्रमुख. ३. पे. नाम. दंडकविचारषट्त्रिंशिका सह टबार्थ, पृ. १६अ - २४अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा. पद्य वि. १५७९, आदि नमिठं चौवीस जिणे, अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा- ४०. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मु. यशसोम - शिष्य, मा.गु., गद्य, आदि: ऐंद्रराजं जिनं नत्वा; अंति: हितनी करणहारी. १०५८०७ (+) चौमासीपर्व देववंदन, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २२-१६ (१ से १६) = ६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें, दे., (२५.५X१२, १०x१९). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. महावीरजिन स्तवन गाथा - १ अपूर्ण से अष्टापद स्तवन गाथा-६ अपूर्ण तक है.) १०५८०८ (+) सामुद्रिकशास्त्र चौपई, संपूर्ण " वि. १८९३ १, मार्गशीर्ष शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल कसूरनगर, प्रले. मु. प्रेमसिंह, ?, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२७४१२, १५X४२-५०). ', सामुद्रिकशास्त्र चौपई, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२२, आदि: सरसति सिमर चित्त धरि सरस; अति शिष्य For Private and Personal Use Only रामचंद्र सुरज्ञान, समुद्देश- २. कुल १०५८१०. (+) गुरुतत्त्वव्यवस्थापनवादस्थल व गुरुतत्त्वप्रदीप, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३१, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित.. ग्रं. ६००, जैवे. (२७.५४१२, १०४३३-३८). Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम, गुरुतत्त्वव्यवस्थापनवादस्थल, पृ. १आ-१९आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: इह केचिद्वर्मार्थिनोपि; अंति: चारित्र सभ्यावाद्धंदनीय. २. पे. नाम. गुरुतत्त्वप्रदीप, पृ. १९आ-३१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ नमः श्रीसर्वज्ञाय; अंति: तन्मिथ्यादुःकृतं मम, विश्राम-८, श्लोक-२४१. १०५८१२ (+#) उत्तमकुमर चौपई, पूर्ण, वि. १८९९, आषाढ़ कृष्ण, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. ४७-१(१)-४६, ले.स्थल. नाडोल, प्रले. मु. तीर्थसागर (गुरु पं. जसरूपसागर); गुपि.पं. जसरूपसागर (गुरु पं. जीवणसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पद्मप्रभुजीप्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १७४३८). उत्तमकुमार चौपाई, मु. तत्त्वहंस, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: (-); अंति: सुणीयो सहु मन रंग रे, ढाल-५१, ग्रं. १६३६, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-१४ अपूर्ण से है.) १०५८१३. (+#) श्रीपाल चरित्र-खंड-३ ढाल-६ से खंड-४, संपूर्ण, वि. १८५५, वैशाख शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ५२, ले.स्थल. ध्रांणपुर, प्रले. मु. लावण्यसागर; गुपि. पं. तेजसागर गणि (गुरु पं. मनोहरसागर गणि); पं. मनोहरसागर गणि (गुरु ग. हेतुसागर); ग. हेतुसागर (गुरु उपा. राजसागर गणि), प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, ८x२९). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, प्रतिपूर्ण. १०५८१५. (+) व्याख्यान संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११.५, ५४३९). व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: भवभमण णिवारणं सोलह कारण; अंति: (-), (पू.वि. "जे तव तवंति" पाठांश तक है.) व्याख्यान संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भवभ्रमण निवारण षोडशकारण; अंति: (-). १०५८१६. (#) मनोरथ तृतीय भावना, संपूर्ण, वि. १९४२, आश्विन शुक्ल, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. विजापुर, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२७.५४१२, ११४३०-३३). मनोरथ भावना, मु. हकमचंद, मा.गु., प+ग., वि. १९०५, आदि: (अपठनीय); अंति: हुकमचंद कहे० शिववधु माण. १०५८१७. (-) चार ध्यान विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, प्र.वि. हुंडी:चारध्या., अशुद्ध पाठ., दे., (२५.५४११, ९४३०-३५). ४ ध्यान विचार, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: से किं ते झाणे चउविहे; अंति: चोथी अणुपेहा जाणवी. १०५८१९ (+) शालिभद्रमनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-४(१ से ४)=१५, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८x१२, १३४४८). शालिभद्रमनि चौपाई, म. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ गाथा-३ अपूर्ण से ___ ढाल-२७ गाथा-८ अपूर्ण तक है.) १०५८२०. (+) निशीथसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५-१(१)=१४, प्र.वि. हुंडी:निसीथसूत्र., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११.५, ९-१४४३९-४७). निशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., उद्देशक-१ अपूर्ण से है व उद्देशक-७ के "अंगुलियं वा सलागं वा" पाठांश तक लिखा है.) १०५८२१. (+) सभाषितरत्नावली, अपूर्ण, वि. १८२१, चैत्र शुक्ल, मध्यम, पृ. २२-८(१ से ७,१६)=१४, प्रले. केसरीसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ५००, जैदे., (२७४१२, १२४३५). सद्भाषितावली, आ. सकलकीर्ति, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: ज्ञानतीर्थं हि जीवान्, श्लोक-३९०, (पू.वि. श्लोक-१२१ अपूर्ण से २६४ अपूर्ण व श्लोक-२८३ अपूर्ण से है.) १०५८२२. (+) नवतत्त्व चौपई, संपूर्ण, वि. १९२९, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. जखौ, प्रले. मु. भक्तिसुंदर; पठ. श्रावि. आसबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. २७०, दे., (२८x११.५, १२४३२). For Private and Personal Use Only Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९५ जिला हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ नवतत्त्व चौपाई, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सयल जिणेसर प्रणमी; अंति: गुणतां संपति कोडि, ढाल-९, गाथा-२०५, (वि. अंत में १ सुभाषित श्लोक है.) १०५८२६. (+) देवपूजा विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. हुंडी:पूजा०., संशोधित., जैदे., (२८x११, ९४३९). जिनपूजा विधि, प्रा.,सं., प+ग., आदि: जय जय जय णमोस्तु०; अंति: (-), (पू.वि. अर्घविधि अपूर्ण तक है.)। १०५८२७. (#) सार्द्धशतक सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ.५३-१६(१ से १३,१८ से २०)=३७, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:सार्द्धशतकवृत्तिः., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८.५४१२, १५४५८-६६). सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार, ग. जिनवल्लभ, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२४ से ११० तक है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार-वृत्ति, आ. धनेश्वरसूरि, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२३ की टीका से ११० की टीका तक हैं व बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०५८२९. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११-३(२ से ४)=८, दे., (२९४११.५, ७४३३-३८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., अध्ययन-१ गाथा-८ अपूर्ण से ४८ व अध्ययन-५ गाथा-६ अपूर्ण से नहीं है.) १०५८३०. रत्नाकरपच्चीसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. सुरतबंदर, प्रले. पं. जीवणविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४१२, ४४१०). रत्नाकरपच्चीशी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५. रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: कल्याण लक्ष्मीतणा; अंति: बोधिज रत्न ज मागु छु. १०५८३१. दानशीलतपभावना कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-८(१ से ८)=८, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२९.५४१२, १६x४७-५५). दानशीलतपभावना कथा संग्रह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शीलविषये सुदर्शन कथा श्लोक-२९८ अपूर्ण से रोहिणीतप कथा श्लोक-६३५ तक है.) १०५८३४. एकवीस प्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९०४, पौष कृष्ण, ३०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. हुंडी:ए०पु०., दे., (२८.५४१२, १३४३४-३८). २१ प्रकारी पूजा, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमं प्रथम जिणंदने; अंति: हेम हीरो जेम जडियो रे, ढाल-२१, गाथा-१०५, (वि. १५वीं पूजा का अंतिम पाठ पत्रांक-६आ पर लिखा है.) १०५८३५. कर्पूरप्रकरण, संपूर्ण, वि. १९५५, आषाढ़ शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. फलोधीनगर, प्रले. पंडित. फतेकरण शर्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१२, १२४४५-४८). कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि: कर्पूरप्रकरः शमामृत; अंति: वप्तुरप्यर्ति हेतुः, श्लोक-१७८. १०५८३६. (+) दंडक प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९०९, चैत्र शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले.स्थल. मुंबैबंदर, प्र.वि. हंडी:दंडक०बा०. अनंतनाथ प्रसादात्., संशोधित., दे., (२८.५४१२, ११४३९-४२). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउ चउवीस जिणे; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ, गाथा-४२. दंडक प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: चउवीस जिणे कहेतां चउवीस; अंति: आत्माना हितनें अर्थ कही. १०५८३७. आराधनयुक्त वीरजिन स्तवन व शंखेश्वर पार्श्वजिन छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)=५, कुल पे. २, पठ. श्राव. गोकलजी मेता (पिता श्राव. धनजी भवानजी मेता); गुपि. श्राव. धनजी भवानजी मेता, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पुन्यप्रकास., जैदे., (२८.५४१२, ११४३३). १.पे. नाम. आराधनयुक्त वीरजिन स्तवन, पृ. २अ-६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., प+ग., वि. १७२९, आदि: (-); अंति: नामे पुन्य प्रकाश ए, ढाल-८, गाथा-१०१, (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. शंखेश्वर पार्श्वजिन छंद, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो; अंति: पास संखेसरो आप तूठा, गाथा-७. १०५८३८. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४७-२९(१ से ३,५ से ११,१३ से २५,२७ से २९,४२ से ४३,४५)=१८, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:उत्तरा०बा०., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२९४१२,११४४२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ गाथा-१९ से अध्ययन-११ गाथा-१ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) उत्तराध्ययनसूत्र-बालावबोध *, मा.ग., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०५८३९ (#) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ७-१(१)=६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:अनुत्त०., मूल व टीका का अंश नष्ट है, अतिजीर्ण, पत्रांक खंडित हैं., जैदे., (२६.५४१२, ७४३७-४०). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). १०५८४३ (+) प्रश्नोत्तररत्नमाला सह कल्पलतिका वृत्ति, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ९९-९(१ से ३,१७,३९,४४,६१,६५,७४)=९०,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (३०x१२, १७X४३). प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-३ से श्लोक-२० अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है., वि. मूलपाठ अलग-अलग प्रश्न के रूप में समाहित है.) प्रश्नोत्तररत्नमाला-कल्पलतिका वृत्ति, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १४२९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्रश्न-१ रत्नसार कथा अपूर्ण से प्रश्न-५१ वनप्रियकपिराज कथा अपूर्ण तक है.) १०५८४४. समवायांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८९४, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ९६-१(१)=९५, ले.स्थल, अर्गलपुर, प्रले. हरफुल मिश्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं.१०६४९, प्र.ले.श्लो. (६४५) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, जैदे., (२८.५४१२, ६४५२). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: अज्झयणाति तिबेमि, अध्ययन-१०३, सूत्र-१५९, ग्रं. ४४७४, (पू.वि. समवाय-१ 'विवागसए दिठि' पाठांश से है.) समवायांगसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मा.गु., गद्य, वि. १७उ, आदि: (-); अंति: शब्द समाप्तने अर्थे, ग्रं. ६१७५. १०५८४६. () भगवतीसूत्र-शतक २ उदेश्य १ तामलीतापस अधिकार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४०, भाद्रपद कृष्ण, ११, रविवार, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. हुंडी:तामली तापसनो विवाहप०, मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२८x१२, ८४५१). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. भगवतीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०५८४७. स्नात्र पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५७-४७(१ से ४७)=१०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२८x१२.५, १२४४५-५०). स्नात्र पूजा, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वृत्तपंचक द्वारा कुसुमाञ्जली अधिकार अपूर्ण से कलश स्थापन अधिकार अपूर्ण तक है.) १०५८४८. आनंदघन गीतबहोत्तरी व आध्यात्मिक गीता, संपूर्ण, वि. १९०३, आश्विन कृष्ण, ३, मंगलवार, मध्यम, पृ. १६, कुल पे. २, ले.स्थल. मुंबैइंबिंदर, प्र.वि. गौडिजिनप्रसादात्., दे., (२८.५४१२, १३४३८). १. पे. नाम, आनंदघन गीतबहोत्तरी, पृ. १अ-१६अ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: क्या सोवे उठि जाग बाउरे; अंति: मांनो यह जनरा घरो थको, पद-७४. २. पे. नाम. आध्यात्मिक गीता, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक गीत, म. लब्धिविजय, पुहिं., पद्य, आदि: जब लगे विषय घटा न घट; अंति: लब्धिविजय० वेलि कटि, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०५८५० चैत्यवंदनचतुर्विंशति, संपूर्ण, वि. १९६२, कार्तिक कृष्ण, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. नागोरनगर, प्र.वि. हुंडी:चेत्यवंद., दे., (२७.५४१२.५, १४४४२-५८). चतुर्विंशतिका स्तुति, उपा. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, वि. १८०१-१८४१, आदि: सद्भक्त्या नतमौलि; अंति: मम चिराय संपाद्यताम्, स्तुति-२४, श्लोक-७७. १०५८५१. (+) दशवैकालिकसूत्र सह अवचूरि व टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, प.७६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२८x१२.५, ४४३६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किटुं; अंति: जखणीइ० विबोहणट्ठाए, __ अध्ययन-१० चूलिका २, संपूर्ण. दशवकालिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: धर्म मंगलेषु उतकृष्टं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-८ तक लिखा है., वि. अवचूरि टबार्थ शैली में है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: धर्म जो हे सो सर्वमंगल; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०५८५७. (+) लोकप्रकाश, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६०-१५९(१ से १५९)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. हुंडी:लौकपर०., संशोधित., जैदे., (२९x१२.५, १५४५८). लोकप्रकाश , उपा. विनयविजय, सं., पद्य, वि. १७०८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-३० श्लोक-८७० से ८९९ अपूर्ण तक है.) १०५८५८. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र-श्रुतस्कंध १ अध्ययन ५ अंत गाथा पंचक से श्रुतस्कंध २ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४८, पठ. श्राव. वजेसंग, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:प्रश्नव्याकरण, बीजोद्वार., पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. २०५००, जैदे., (२७.५४१२, ३-६४४१). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: शरीरधरे भविस्सत्तीति, (प्रतिपर्ण, वि. १७६३. ___ श्रावण शुक्ल, १३, शनिवार) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जाइ शाश्वत सुख पामइ, (प्रतिपूर्ण, वि. १७६३, श्रावण कृष्ण, ९, बुधवार) १०५८५९ स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९१५, चैत्र शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ.७, लिख. ग. रंगविजय; प्रले. मु. लालविजय (गुरु पं. मानविजय); गुपि. पं. मानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८.५४१२, १४४३२-३९). स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाल हो माता; अंति: तुं जीवजीवन आधारो रे, स्तवन-२४, गाथा-१२१. १०५८६०. दंडकद्वार बोलसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-१(१)=९, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:दंड०., जैदे., (२८x१३, ११४३६). दंडकद्वार बोलसंग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पृथ्वीकाय वर्णन अपूर्ण से पंचमआरा दुसम १०००वर्ष वर्णन अपूर्ण तक है.) । १०५८६१. सारस्वत व्याकरण सह चंद्रकीर्ति टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. हुंडी:चंद्रकी/सा/टी/प., जैदे., (२८x१२, १५-१९x४०-५३). सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रकरण-२ स्वरसन्धि अपूर्ण तक लिखा है.) सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: नमोस्तु सर्वकल्याण; अंति: (-), __ अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०५८६२. चातुर्मासिक व्याख्यान, अपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ३०, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:चोमासा., दे., (२३.५४१२.५, ५४१०). For Private and Personal Use Only Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३९८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चातुर्मासिक व्याख्यान, रा. गद्य, आदि अष्ट महाप्रातिहार्य अंति: (-) (पू.वि. राजा द्वारा स्वर्णकार को आभूषण बनाने का प्रसंग अपूर्ण तक है.) १०५८६४ (+) सम्यक्त्वकौमुदी, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७८-१० (१ से २९ से १६) = ६८, अन्य. मु. चिमलसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२९.५x१२, १५X४५). , सम्यक्त्वकौमुदी, ग. सोमदेवसूरी, सं., पद्य वि. १५७३, आदि (-); अति: प्रोल्हादयन्वोभुवं सर्ग-७, ग्र. ३७७४, (पू.वि. श्लोक-४६ अपूर्ण तक व श्लोक-२९८ अपूर्ण से ६३६ अपूर्ण तक नहीं है.) १०५८६५. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह अवचूरि व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पू. ११०-४ (३०*,३४०,३८, ४२*) + १ (४७) १०७. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैवे. (३०x११.५. ११४४०-४४), उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि संजोगाविप्यमुक्कस्स, अंति (-), (पू.वि. अध्ययन- १९ गाथा ३२ अपूर्ण तक है.) अति: (-). उत्तराध्ययनसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: भिक्षोः विनय प्राद्रु; उत्तराध्ययनसूत्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: भिक्षु महात्मानइ विनय; अंति: (-). १०५८६७ (+) विशेषणवती, संपूर्ण, वि. १९६३, पौष कृष्ण, ६, शनिवार, मध्यम, पृ. १४, प्रले. नानालाल हरिनंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : विशेषणवृती., संशोधित. दे., (२९.५x१२, ११४४४-५०). विशेषणवती, आ. जिनभन्द्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि उस्सेहंगुलमेगं हवइ, अति: कालेणाइच्च पेडंति, गाथा - ३१७, ग्रं. ३८०. १०५८६९ (+) पार्श्वनाथ चरित्र महाकाव्य, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४१-१३ (१ से ४,१४ से २२ ) +२ (१४० से १४१)=१३०, पू. वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित, जैदे., (२९.५४११.५. १३४३८-४२). पार्श्वजिन चरित्र, आ. भावदेवसूरि, सं., पद्य, वि. १३१२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सर्ग - १ श्लोक - १२६ अपूर्ण से श्लोक-४२९ अपूर्ण तक व सर्ग १ श्लोक ७३१ अपूर्ण से सर्ग ६ श्लोक ११८० अपूर्ण तक है.) १०५८७०. दशवैकालिकसूत्र - अध्ययन १ से ३, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. अंबाराम लाधाराम जोषी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी बसविट., दे., (२८४१२, ४x२५). , दशवैकालिकसूत्र, आ. शव्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुक्किई अति (-), प्रतिपूर्ण. १०५८७९. (४) जातकपद्धति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३५, फाल्गुन शुक्ल, ६, शनिवार, मध्यम, पृ. १२, ले. स्थल, रायपुर, प्रले. श्राव. रामलाल सुराणा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८.५X११, ६X३८-४२). जातकपद्धति, मु. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदि: प्रणम्य पार्श्वदेवेशं; अंति: करस्थ दीपका विना, श्लोक - ९५. जातकपद्धति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणाम करीने; अंति: ए जातिकाभिध दीपका छे. १०५८७२ (+४) भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३०५-३१ (१,७ से १३,८८ से ११,१०७ से १०९, १११, ११६ से १२८,१९१,२९१)=२७४, पू. वि. प्रथम एक, बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी: भगवतीसू., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (३०x११.५, १५४५३). "" भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अति (-) (पू.वि. शतक-१ उद्देश-१ पाठ 'भिज्जमारो भिन्ने से , शतक-४० उद्देश-१ पाठ 'आहारो तहेव जावे नियम छद्दिसि' तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०५८७३ (+४) ऋषिमंडल प्रकरण सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पू. ८, लिख मु. कल्याण (गुरु मु. भरहपाल ऋषि); गुपि. मु. भरहपाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : ऋषिमंडल., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२८x१२, १३x४८). "" ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि प्रा. पद्य वि. ९४वी आदि भत्तिभर नमिरसुरवर अंतिः धम्मघोस० सिद्धिसुहं, गाथा - २१२, ग्रं. २५९. ऋषिमंडल प्रकरण-वार्थ, मा.गु., गद्य, आदि भक्ति समूह नमन० प्रधान; अंतिः लहइ पाम मोक्षसुख. For Private and Personal Use Only Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ३९९ १०५८७४. बृहत्क्षेत्रसमास सह टीका, संपूर्ण, वि. १७६०, मध्यम, पृ. १०४, ले.स्थल. हमीरपुर, प्र.वि. हुंडी:बृहत्क्षेत्रवृ०., कुल ग्रं.८०००, जैदे., (३०x११,१९४५७-६६). बहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ६वी, आदि: नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण; अंति: वी उत्तमसुयसंपयं देउ, अधिकार-५, गाथा-६५५. बृहत्क्षेत्रसमास-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, वि. १३वी, आदि: जयति जिनवचनमवितथममित; अंति: सिद्धि तेनाश्रुत लोकः, अध्याय-५. १०५८७५ (+#) उपाशकदशांग, अंतकृतदशांग एवं अनुत्तरोववाई आदि आगमसूत्रों की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ११५-५(१,३ से ४,५०,७९)=११०, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, प्रारम्भ के कुछ पत्रों के पत्रांक खंडित हैं., जैदे., (३०x११, १५४६०-६५). १. पे. नाम. उपासकदशांग की वृत्ति, पृ. २अ-१६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम एक व बीच के पत्र नहीं हैं. उपासकदशांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १११७, आदि: (-); अंति: कुर्खतां प्रीतयेमे, अध्ययन-१०, (पू.वि. अध्ययन-१ सूत्र-८ आणंद श्रावक के द्वारा स्वीकृत व्रत में मुखवास विधि परिमाण अपूर्ण से है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) २. पे. नाम, अंतकृद्दशांग की वृत्ति, पृ. १६अ-२१आ, संपूर्ण. अंतकृदशांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: अथांतकृतदशासु किमपि; अंतिः विधीयतां सर्वतः, वर्ग-८. ३. पे. नाम. अनुत्तरोपपातिकदशांग की वृत्ति, पृ. २१आ-२३आ, संपूर्ण. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टीका , आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: अथानुत्तरौपपातिकदशा; अंति: (१)शेषमंतकृद्दशांगवदिति, (२)श्लोक सहस्रं त्रिशताधिकं, वर्ग-३. ४. पे. नाम. प्रश्नव्याकरणांग की वृत्ति, पृ. २३आ-४०आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२ सूत्र-११ की टीका अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०५८७९. वंगचूलिका प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र.वि. हुंडी:बंगचूली०, दे., (२७.५४१२, १०४३६). वंगचूलिका प्रकीर्णक, आ. यशोभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भत्तिब्भरनमियसुरनर; अंति: चित्तो होह पइ हियहं. वंगचूलिका प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्तिना भरसमुह तेणे; अंति: चित प्रतितवंत होज्यो. १०५८८२. (#) कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५-३८(१ से २,६ से ३६,४० से ४४)-७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, ९४३२). कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., कथा-१ ब्रह्मा कथा अपूर्ण से कथा-४ महादेव कथा अपूर्ण तक, कथा-२३ नुपुरपंडिता कथा अपूर्ण से कथा-२४ कमला सती कथा अपूर्ण तक व सुभद्रा सती कथा का मध्यभाग मात्र है.) १०५८८५ (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, प्र.वि. हुंडी:नवतत्त्व बा०., त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १८४४७). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-५२. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (१)प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२)यथावस्थित साचं जे; अंति: पहुता ते रुषभ देव प्रमुख. १०५८८६. (+#) शत्रंजयतीर्थउद्धार रास व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३५-३१(१ से ३१)=४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४४३). १.पे. नाम. शत्रंजयतीर्थउद्धार रास, पृ. ३२अ-३५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं., वि. १७७९, प्रले. पं. नायकविजय गणि (गुरु ग. कांतिविजय); गुपि. ग. कांतिविजय (गुरु पं. दर्शनविजय), प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४०० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि (-); अंति नयसुंदर० दर्शन जय करो, डाल- १२, गाथा- १२५, (पू.वि. ढाल ४ गाथा २६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. संखेश्वर पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: लगी लगी आंखीआने रही; अंति: उदयरत्न० पुगी छे आस, गाथा - ११. १०५८८८. शालिभद्रमुनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३३-७ (१,२५ से २७,२९ से ३१) =२६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७X११.५, ११x२८). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल - १ गाथा - १७ अपूर्ण से वैभारगिरि पर अणशण प्रसंग अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं., वि. ढाल संख्या नहीं लिखा है.) १०५८८९. (+#) उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २१-१३ (१ से १३) = ८, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२७४१२, १२४३०-४२) " उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३१५ अपूर्ण से ५२० अपूर्ण तक है.) १०५८९० (+) ध्यानस्वरूपनिरूपण प्रबंध, संपूर्ण, वि. १९४६, आश्विन शुक्ल, ११, शनिवार, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल. मुंबई, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. दे. (२७.५४११.५, १३४५४). " ध्यानस्वरूपनिरूपण प्रबंध, मु. भावविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६९६, आदि: सकल जिणेसर पाय वंदे; अति भावविजय० चित्त रंगे, डाल-९, गाधा- १६३. १०५८९२. सिद्धचक्रपूजन विधि, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६, दे. (२५४११.५, १४४४५). " सिद्धचक्र महापूजन विधि सहित, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदि: ॐणमो अरिहंताणं हाँ, अंति: अम्ह मण वंछिय दियओ. १०५८९३. (+) हीरविजयसूरिनिर्वाण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पू. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५.५४११, १४४५१). हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि सरस वचन दिउ सरसती; अंति: विवेकहर्ष सुहंकरो, ढाल २, गाथा २२. १०५८९४. (+#) योगशास्त्र- प्रकाश १ से ४, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १९-३ (१ से ३) = १६, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४११, ११४३९). , योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी आदि (-); अंति (-) (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., प्रकाश-१ श्लोक-१६ अपूर्ण से है.) , १०५८९५ (+) भक्तामर स्तोत्र सह टवार्थ व कथा, संपूर्ण वि. १८४२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले. स्थल, धोरा, प्रले. ऋ. डोसा (गुरु मु. भीमजी ऋषि); गुपि. मु. भीमजी ऋषि (गुरु मु. डुगसी ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : भक्तामर स्तोत्र टबार्थ., अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., प्र.ले. श्लो. (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, (९६२) जलाद्रक्षे तिलाद्रक्षे, जैदे., (२६X११.५, ३X३६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भक्त जे देवता तेहना; अंति: करी प्रगटपणे कह्यो. भक्तामर स्तोत्र-कथा, वा विनयसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि (१) प्रणम्य श्रीजिनं वीरं (२)हवे भक्तामरनी उत्पति बोलउ; अंति: कीधो राज्य भोगव्यो, कथा-२८. , १०५८९६. (+) यशोधर चरित्र, संपूर्ण, वि. १८२१, चैत्र कृष्ण, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. ८०, प्र. वि. हुंडी : यशोधर०च., पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे. (३०x११.५ ६४३४). " यशोधर चरित्र, आ. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., पद्य, आदि श्रीमंत वृषभं वंदे अति: सर्वग्रंथस्य लेखकैः सर्ग-८, लोक- ९६०. For Private and Personal Use Only १०५८९७. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह लेशार्थदीपिका टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८९ - ३ (२६ से २७, २९)=८६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७X११.५, १२-१५X४७-५०% Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ४०१ उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-२० गाथा-४८ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, आदि: भिक्षो विनयं प्रादृष्करि; अंति: (-), पृ.वि. बीच-बीच के व ___अंतिम पत्र नहीं हैं. १०५८९८. शीलोपदेशमाला सह शीलतरंगिणीवृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ११९-६३(१ से ६३)=५६, प्र.वि. हुंडी:शीलोप०वृत्ति., जैदे., (३०.५४११.५, १७४६०-६६). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: (-); अंति: आराहिय लहइ बोहिफलं, कथा-४३, गाथा-११४, (पू.वि. गाथा-५४ सुंदरी दृष्टांत से है.) शीलोपदेशमाला-वृत्ति, आ. विद्यातिलकसरि, सं., गद्य, वि. १३९४, आदि: (-); अंति: मंलगमूलं चेति चरम गाथार्थ, ग्रं.७५४०. १०५९०० (+) आवश्यकनियुक्ति व ध्यानशतक, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ८६-५१(१ से ५१)=३५, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x११.५, ११४३५-३८). १. पे. नाम. आवश्यकसूत्र की नियुक्ति-उपोद्धात से प्रतिक्रमण तक, पृ. ५२अ-८१आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. सामायिकाध्ययने __उपोद्धातनियुक्ति गाथा-१५९ अपूर्ण से है., वि. गाथा क्रमांक संदिग्ध है.) २. पे. नाम, ध्यानशतक, पृ. ८२अ-८६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: वीरं सुक्कज्झाणग्गिद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९७ अपूर्ण तक है.) १०५९०१ (#) आराधना प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.१,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४११.५, १७४६५). पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०, ग्रं. २४५. १०५९०२ (+#) प्रवचनसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १६वी, जीर्ण, पृ. ३४, प्र.वि. हुंडी:प्रवचनसारो.सू., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं.१५७१, टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (३०.५४१२.५,१७४६५). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊण जुगाइजिणं; अंति: सुया तं विसोहंतु, द्वार-२७६, गाथा-१५९९, ग्रं. २०००. १०५९०४. (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७४८, वैशाख कृष्ण, ८, जीर्ण, पृ.७, प्रले. मु. ठाकुरसी (गुरु मु. कीर्तिविशाल); गुपि.मु. कीर्तिविशाल (गुरु उपा. महिमोदय); उपा. महिमोदय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, प्र.ले.श्लो. (६११) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, जैदे., (२६.५४११, ५४३३). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१जीवार पुण्णं३ पावा४; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४८. नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: यथावस्थित साचं जे; अंति: बोधिव एक सिद्ध अनेक सिद्ध. १०५९०५. विक्रमसेन लीलावती चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३-१८(२ से १९)=५, प्र.वि. हुंडी:लीलावती चौपइ., जैदे., (२५.५४११, १९४५३). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सुखदाता संखेसरो पूरण परम; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१ गाथा-१६ अपूर्ण से ढाल-४१ गाथा-९ अपूर्ण तक व ढाल-५० के अंतिम दोहे ३ अपूर्ण से नहीं है.) १०५९०६. (+) माधवानल चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०-२(१ से २)=१८, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:माधवानल कामकंदला चउपई., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ११-१४४४५). माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४८ से ५३८ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०५९०७. (+) नीतिशतक सह नवीन टीका, संपूर्ण, वि. १८८९, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४०, प्र.वि. हंडी:भ.श.टी०., संशोधित., जैदे., (२९.५४११, ८४३५-४२). नीतिशतक, भर्तहरि, सं., पद्य, आदि: यां चिंतयामि सततं; अंति: किं कृकवाकरिव हंसः, श्लोक-१०२. नीतिशतक-टीका, पा. धनसार उपाध्याय, सं., गद्य, वि. १५३५, आदि: युगादिदेवोप्ययुगादि; अंति: विदधे धनसारनाम्ना. १०५९०९ (+) सिद्धगिरि स्तवन व मुमइबिंदरकोटे भुमिखला स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९८, पौष शुक्ल, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. २, प्रले. मु. लक्ष्मीविजय (गुरु मु. प्रेमविजय); गुपि.मु.प्रेमविजय,प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीगोडीप्रशादात्., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., जैदे., (२६.५४११.५, १०x२८). १. पे. नाम. सिद्धगिरी स्तवन, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण, पे.वि. आदिनाथ प्रसादात्. शत्रुजयतीर्थे मोतीशाट्क स्तवन-अंजनशलाकाइतिहासयुक्त, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: उठी प्रभाते प्रभु; अंति: सुखी कहे वीरविजय महाराज, ढाल-७. २. पे. नाम. मुमइबिंदरबाडकोटे भुमिखलानो स्तवन, पृ. ७आ-१३आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-मंबईबंदरकोटे भायखलामंडन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८८, आदि: सुखकर साहेब रे पामी; अंति: शुभवीर वचनरस गावेंजी, ढाल-७. १०५९१० (+#) सिद्धहेमशब्दानुशासन सह स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्वृत्ति व टिप्पण, अपूर्ण, वि. १६वी, जीर्ण, पृ. २७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५, १५४४०-४३). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि: अर्ह सिद्धिः स्याद्वादात; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्याय-१ पाद-४ तक लिखा है.) सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्वत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, __ आदि: प्रणम्य परमात्मानं; अंति: (-), पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. सिद्धहेमशब्दानुशासन-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: ननु प्रणम्येति प्रयोगे; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १०५९११ (+) भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २०२-१०३(१ से १७,२५ से २६,२८ से ३०,३२ से ३३,३५,३७ से ४२,४४ से ६६,८१ से ९०,९५,१०७,१११,११३,११८ से १२०,१२९ से १३७,१४२ से १४८,१५० से १५२,१५७ से १६०,१६५,१६७ से १६८,१७६,१८५ से १८९)=९९, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १७४५७-६०). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शतक-२ उद्देश-१ सूत्र-११२ अपूर्ण से शतक-२४ उद्देश-१ सूत्र-८४२ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०५९१२. विवाहादि मुहूर्त पद्धति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२६४१०.५, ९४३५). विवाहादि महुर्त पद्धति, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२० अपूर्ण तक है.) १०५९१३. (+) नारचंद्र जैन ज्योतिष सह यंत्रकोद्धार टिप्पण, संपूर्ण, वि. १८५१, श्रावण शुक्ल, १०, रविवार, मध्यम, पृ. २१, ले.स्थल. नारदपुरीनगर, प्रले. पं. मनोहरसागर गणि (गुरु ग. हेतुसागर); गुपि.ग. हेतुसागर (गुरु उपा. राजसागर गणि); पठ. श्राव. लालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीमन्नाभिनंदनजिनः प्रशादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १५४३५-३९). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: अहँतजिनं नत्वा; अंति: द्विजवाक्यं जनार्दनः, श्लोक-५५७, (वि. कृति के अंत में विशोपक व लाभ खर्च विषयक श्लोक दिये हैं.) ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: सरस्वतीं नमस्कृत्य; अंति: (-). १०५९१६. पाक्षिकसूत्र व पाक्षिकखामणा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३६, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१५.५, ८x१९). १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १अ-३४आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा पाक्षिकसूत्र व खामणासूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुअसायरे भत्ति. For Private and Personal Use Only Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ २. पे. नाम. पाक्षिकखामणा, पृ. ३४आ-३६आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमा०; अंति: निथार पारगा होह, आलाप-४. १०५९२० (+) प्रभंजन चरित्र, पूर्ण, वि. १९०६, फाल्गुन कृष्ण, १, सोमवार, मध्यम, पृ. ४२-१(१) ४१, प्रले. मु. चिमनलाल (गुरु मु. सदासुखजी); गुपि. मु. सदासुखजी (गुरु मु. डुंगरसीदास); मु. डुंगरसीदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी: प्रभंजन चरित्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित.,प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (७) जलाद्रक्षे तैलाद्रक्षे, दे., (२४.५४१५.५, ७७२०). प्रभंजन चरित्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: विविधान् सश्वत्सुखादीते, सर्ग-५, श्लोक-३५५, (पू.वि. सर्ग-१ श्लोक-६ अपूर्ण से है.) १०५९२१. (+) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(२)=१०, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२३४१५, १२४२२). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: त्रैकाल्यं द्रव्य; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-८ सूत्र-२ अपूर्ण तक है व बीच का पाठांश नहीं है.) १०५९२९. भक्तामर स्तोत्र, १८ पापस्थानक नाम व ५ इंद्रिय विवरणादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५, प्र.वि. पत्रांक नहीं होने से अनुमानित नंबर दिये हैं., जैदे., (२०.५४१५.५, १५-१८x२८-३४). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम. १८ पापस्थानक नाम, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: प्राणातिपात१ मृषावाद२; अंति: १८ मिथ्यातसल्य. ३. पे. नाम.५ इंद्रिय विवरण, पृ. ३आ, संपूर्ण. पुहिं., गद्य, आदि: १श्रोतेंद्री २चळंद्री; अंति: मनपणविध्यउ एवं प्राण. ४. पे. नाम.६३ शलाकापुरुष नाम, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकर२४ चक्रवर्ति१२; अंति: पिता५१ एवं प्रीबज्यौ सही. ५. पे. नाम.६४ इंद्र नाम, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सुधर्म१ ईशान२ सनत्कुमार३; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सर्वार्थसिद्धिविमान तक लिखा है.) १०५९३५ (+) फुटकर चर्चा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१-४(१ से ४)=२७, प्र.वि. हुंडी:फुटकर., संशोधित., दे., (२४.५४१५.५, ७-१२४१३-२८). फुटकर चर्चा, पुहि.,प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: परवार जंबूद्वीप जानना, (पू.वि. 'निमित्ति खाडाकै उपरि गांठि का विसेष लीऐ' पाठ से है., वि. अंत में कोष्टक दिया है.) १०५९३९. सिरिसिरिवाल कहा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २६-२(२२ से २३)=२४, दे., (२०.५४१५.५, ६४१७-२०). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइं नवपयाइं; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१३२ से १४४ अपूर्ण तक व गाथा-१६२ अपूर्ण से नहीं हैं.) सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-), पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. १०५९४३. (+#) उर्वशी नाममाला, औपदेशिकबावनी व सवैयादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २८-१८(१ से २,५ से १०,१२ से १५,२१ से २४,२६ से २७)=१०, कुल पे. ६, प्र.वि. अंत में सं.१७६२ अंकित किसी की जन्मपत्री है., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१४१५, २३४१९). १.पे. नाम. उर्वशी नाममाला, पृ. ३अ-११अ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. भाषानाममाला, शिरोमणि, पुहि., पद्य, आदि: आदि पुरुष कहिये जगत जा की; अंति: (-), (पू.वि. दोहा-४७ अपूर्ण तक है व गाथा-१५८ अपूर्ण से १७९ अपूर्ण तक हैं.) For Private and Personal Use Only Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम, दूहाबावनी, पृ. १६अ-१७अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. औपदेशिकबावनी, उपा. हेमराज, पुहिं., पद्य, आदिः (-); अंति: राज कवि० नर होवत कविराज, दोहा-५७, (पू.वि. दोहा-१४ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. ब्राह्मण माहात्म्य, पृ. १७अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: पंचतीर्थाणि विप्राणी करे; अंति: नास्त विप्रो दिवाकर, श्लोक-२, (वि. अंत में एक दोहा लिखा है.) ४. पे. नाम. राजिबावनी रा सवैया, पृ. १७आ-२५आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. राजबावनी, क. राज कवि, पुहि., पद्य, आदि: ॐकार अपार अगम अनादि अनंत; अंति: (-), (पू.वि. सवैया-४२ अपूर्ण से १२१ तक व १३५ से नहीं है., वि. सवैया क्रमांक आगे-पीछे है व संख्या परिमाण संशोधनीय है.) ५. पे. नाम. विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, पृ. २८अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सीखीये सो लिखिये कवत गीत; अंति: (-), संपूर्ण. ६. पे. नाम. १८ पुराण नाम, पृ. २८आ, संपूर्ण. ___सं., गद्य, आदि: (-); अंति: स्कंदपुराण१७ गरुडपुराण१८. १०५९४७. दशलक्षण उद्यापन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. हुंडी:दशलक्षण उद्यापन., जैदे., (२४.५४१५, १७४३७-४०). १० लक्षण उद्यापनपूजा विधिसहित, मु. श्रीभूषण, अप.,पुहि.,सं., प+ग., आदि: सकलगुणसमुद्रं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अष्टक पूजा श्लोक-८ अपूर्ण तक लिखा है.) १०५९४८. विविध बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:फुटकर च०., दे., (२४४१५, १२४३९). बोल संग्रह-आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: छोटा दरवाजा रतनमइ किवाड; अंति: (-), (पू.वि. व्यवहार के १६ भेद विवरण अपूर्ण तक है., वि. विहेद मुखनगरी स्वरूप, चक्रवर्ति सैन्यमान व व्यवहारादि विवरण.) १०५९४९. पंचमासचतुर्दशी व्रतोद्यापन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२४४१५, १३४३१). पंचमासचतुर्दशी व्रतोद्यापन विधि, भट्टा. सुरेंद्रकीर्ति, सं., प+ग., वि. १८४८, आदि: सकलभुवनपूज्यं वर्द्धमानं; अंति: (१)सुरेंद्र० भट्टारकेनावनौ, (२)विधि पाठ का अर्घ जाननां. १०५९५२. (+#) राजसिंघ रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६२-१(१)-६१, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१५, १३-२२४२३-३८). राजसिंघ रास, ग. कपूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक दोहा-९ अपूर्ण से __अंतिम प्रशस्तिगाथा-७ अपूर्ण तक है.) १०५९५३. (+#) श्रावककरणी आदि सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२१४१४.५, १७X२९). १. पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं ऊठी परभात; अंति: करणी दखहरणी छे एह, गाथा-२२. २. पे. नाम, स्वार्थबीसी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-स्वार्थ विषये, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: सैं मुख जिनवर उपदिसै; अंति: श्रीसार०करो विचार रे, गाथा-२०. ३. पे. नाम, पंचेंद्री सिज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: काम अंध गजराज अगाज; अंति: सुजाण लहो सुख सासता, गाथा-६. ४. पे. नाम. पंचेंद्री सिज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ४०५ ५ इंद्रिय सज्झाय, उपा. ललितकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: वात कहुं सुण कान चतुर नर; अंति: ललितकीरत० धरम जिनवर तणा, गाथा-६. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. __ मु. पद्मकुमार, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि जीवडा कह्यो; अंति: पद्मकुमार० फल लीजीये, गाथा-४. ६. पे. नाम. सूर्य सलोको, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सांमण करुवोने पसावो; अंति: उठीनै कहजो जी लोकौ, गाथा-१९. ७. पे. नाम, अमरसंघजी सिलोको, पृ. ५अ-७अ, संपूर्ण. अमरसिंघ श्लोको, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामण तुज पायेज; अंति: जुग अविचल राठोडा रो राजो. १०५९५४. नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२३.५४१४, १५-१८x२५-२८). नवपद पूजा, मु. देवचंद्र, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: परम मंत्र प्रणमी; अंति: (-), (पू.वि. पूजा-९ गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) १०५९५७. (#) श्रावक अतिचार व पौषधपारण सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-८(१ से ८)=६, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१४१५.५, १८x२५-३३). १. पे. नाम, श्रावक अतिचार, पृ. ९अ-१४अ, संपूर्ण. श्रावकपाक्षिक अतिचार-पायचंदगच्छीय, संबद्ध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नाणे दंसण चरणे जाण; अंति: लहिजो शिवसुखनी संपदा, गाथा-१५६, (वि. पत्रांक-१४अ के ऊपरी भाग व बीच में औषध संग्रह लिखा है.) २. पे. नाम. पौषध पारिवा गाथा, पृ. १४आ, संपूर्ण. पौषधपारणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: सागरचंदो कामो; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्, गाथा-६. १०५९५९ (+) रघुवंश सह सगमान्वयप्रबोधिका टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६४, प्र.वि. हुंडी:टीका०रघु०., त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२८x१३, ४४४०). रघुवंश, क. कालिदास, सं., पद्य, आदि: वागर्थाविव संपृक्तौ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सर्ग-५ श्लोक-६९ तक लिखा है.) रघुवंश-सुगमान्वयाप्रबोधिका टीका, मु. सुमतिविजय पंडित, सं., गद्य, वि. १६३०, आदि: (१)प्रणम्य जगदाधीशं ___ गुरुं, (२)सुमतिविजया० क्रियते; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०५९६१. प्रश्नोत्तररत्नमालादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८८१ कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ३३-१३(१ से १३)=२०, कुल पे. ५, ले.स्थल. पालिताणानगर, पठ. मु. कल्याणविमल; अन्य. पं. नानवर्द्धन (गुरु पं. हेतवर्द्धन), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसिद्धाचलतिर्थे-श्रीऋषभदेवजी प्रसादात्., जैदे., (२८x१३.५, १२४३४). १. पे. नाम. प्रश्नोत्तररत्नमाला का बालावबोध, पृ. १४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. प्रश्नोत्तररत्नमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: प्राणीने परमसुख होइ, (पू.वि. 'हितकारी वचन सहीत दान देवं ते दुर्लभ' पाठांश से है.) २. पे. नाम. चारित्रमनोरथमाला का बालावबोध, पृ. १४आ-१७आ, संपूर्ण. चारित्रमनोरथमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रावक ग्रहस्थ वासमा; अंति: चारित्रना मनोरथ धरवा. ३.पे. नाम. वैराग्य हितशिक्षा की वचनिका, पृ. १७आ-२१अ, संपूर्ण. वैराग्य हितशिक्षा-भाषाटीका, मा.ग., गद्य, आदि: जिम रत्नागर जे समुद्र ते; अंति: पामी सिद्धि पदने वरे. ४. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन १९ सम्यक्त्वपराक्रम के ७३ बोल, पृ. २१अ-२९अ, संपूर्ण. __उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा २९वाँ अध्ययन का बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: संवेग१ ते मोक्षनो अभिलाष; अंति: समस्तपर्षदामध्ये का, बोल-७३. ५. पे. नाम. आवश्यकसूत्र हारिभद्री टीका-भाषावचनिकालेश, पृ. २९अ-३३आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-शिष्यहिता टीका के टिप्पणक की वचनिका, मा.गु., गद्य, आदि: हवे ४५ आगम प्रभुजीइ; अंति: धर्म आराधी निस्तार पारथाउ. For Private and Personal Use Only Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०५९६४. (+) नेमिजिन पुराण व सुखचंदमुनि पट्टावली, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २११-४१(१ से १४,१७ से १८,२३, २६ से ३६,४१ से ४३,४५ से ४६,४९,६४ से ७०) = १७०, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२८.५४१३, १०x३०-३३). १. पे. नाम नेमिजिन पुराण, पू. १५अ-२११अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं है. वि. १६२३, फाल्गुन कृष्ण, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५, बुधवार. मु. नेमिदत्त ब्रह्मचारी, सं., पद्म, आदि (-); अति वोत्र भव्याः पवित्र, अधिकार- १६, (पू.वि. अधिकार २ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) २. पे नाम. सुखचंद मुनि पट्टावली. पू. २९९अ-२११आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. प्रा., पद्य, आदि परमप्पयजिनु हियवइ धरि अंति (-), (पू. वि. विजयचंद के पाट तक है.) १०५९६९. ज्योतिषसार-प्रकीर्णक १, संपूर्ण, वि. १९२२, वैशाख शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ४२ + १ (३७) = ४३, लिख. पं. मुलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८४१४.५, ९४३०). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि अर्हतजिनं नत्वा, अंति (-), (प्रतिपूर्ण, वि. यंत्र- कोष्ठक सहित ) १०५९७० (+) नंदिश्वरद्वीप पूजा, संपूर्ण, वि. १९३३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, ले. स्थल. मुमोईनगरे, प्रले. श्राव. हरगोवन मोतीराम भोजक, पठ श्रावि पुतलीबाई अमोलख शाह, गुपि श्राव. अमोलख खीमजी शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में पूजन सामग्री दी गई है., संशोधित., दे., (२८x१४, १३X३३). नंदीश्वरद्वीप पूजा, मु. धर्मचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८९६, आदि: प्रणमुं सांति जिणंदने चउद; अंति: धर्मचंद ० नंदिसर तिरथ गायो, ढाल १२. १०५९७१. (+) यशोधरनरेंद्र चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ४५, प्र. वि. हुंडी यशोधर०, संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२९x१४, १५३८-४२). यशोधर चरित्र, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३९, आदि सकलसुरनरेंद्रश्रेणि अंति: सकलोपि तेन जनः . १०५९७२. (+) समयसार नाटक सिद्धांत सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९४३ माघ शुक्ल, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २३७-७(१६४ से १६८,१९८,२०३)+९(१३९ से १४०,१९६, २०४ से २०८, २३३) २३९, ले. स्थल, इंदौर, प्रले. रामचंद्र लक्ष्मणराम व्यास; अन्य. श्राव. मथुरालाल चोधरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: समयसार, समयसा०. पार्श्वनाथसरणं. अंत में "मथुरालाल चौधरी बुंट्टीवाला सरीमाल को यो ग्रंथ छे सोमलाल साहाजी के मंदिर में चढायो " ऐसा लिखा है., संशोधित., प्र.ले. श्लो. (१४२४) यादिकं पुस्तकं दृष्टवा, (१४२५) नाटिक लीख पुरन कीयो, दे., (२८x२१, ४-१६x२८-३२). समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन; अंति: (१) ताकौ मेरी तसलीम है, (२) मैं परमारथ विरतंत, अधिकार-१३, गाथा-७२८, ( पू. वि. द्वार - १० गाथा- ८९ अपूर्ण तक है, द्वार-११ गाथा-३ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) समयसार-टवार्थ, पं. रूपचंद, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथस्वामी कैसे अति पातसाहसों मुजरो कीनो. १०५९७३ (+) सिद्धचक्रपूजा पाठ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३१, प्रले. श्राव. छोगालाल भौंसा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : सिद्धचक्रपू०, संशोधित, जैदे. (२९४२१.५ १५४२८-३२). " सिद्धचक्र विधान, क. संतलालजी कवि, सं. हि., पद्य, आदि जिनाधीश शिवईश नमि अति: (१) भगवंत संत पूरण मही, (२)लक्ष्मी के सुख भोगेंगे, पूजा-८, (वि. अंत में फलश्रुति दी गई है.) १०५९७४. (+) चर्चासागर, संपूर्ण, वि. १९४९, श्रावण कृष्ण, ५, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३५१, प्रले. गौरीशंकर, लिख. श्राव. धर्ममूर्ति नायब; पठ. श्राव. स्योजीलालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: चरचा. चर्चा०. अंत में विषयानुक्रमणिका दी हुई है., संशोधित. दे.. (२९.५x२१, १६X३२). चर्चासागर, पंडित. चंपालाल पांडे, सं., प+ग. वि. १८१०, आदि श्रीजिन वासुपूज्य शिवदाय अंति: ग्रंथको कर्ता नाम स्वरूप, प्रश्न- २५४. For Private and Personal Use Only יי Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ४०७ १०५९७५. षोडशकारण पूजा, १० लक्षण उद्यापनपूजा विधिसहित व रत्नत्रयविधान उद्यापन पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २८१-२४५(१ से २४५)=३६, कुल पे. ३, ., (२७४१९.५, ११४४६). १.पे. नाम. षोडशकारण व्रतउद्यापन पूजन, पृ. २४६अ-२४६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. षोडशकारण पूजा, जै.क. टेकचंद, पहिं.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (१)टेक मोक्ष सिधरूप, (२)भलि हय सोधो भवि मद खोय, (पू.वि. अंतिम पूजा की गाथा-८ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. दसलक्षण उद्यापन पूजन, पृ. २४६आ-२८१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:दसलक्ष. १० लक्षण उद्यापनपूजा विधिसहित, जै.क. टेकचंद, पुहि.,सं., प+ग., आदि: नेमनाथ नमु करजोड भो भो और; अंति: (१)टेक धर्म० विधि करि चितलाय, (२)निर्विपामीते स्वाहा. ३. पे. नाम. रत्नत्रयविधान उद्यापन पूजा, पृ. २८१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:रत्नत्र.पु०. पुहि., पद्य, आदिः साधु सेउ भावां लाई तीनौं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) १०५९७६. (+) अष्टपाहड ग्रंथ सह वचनिका, संपूर्ण, वि. १९वी, वैशाख शुक्ल, ३, रविवार, मध्यम, पृ. १८७, प्र.वि. हुंडी:अष्टपा०व०., संशोधित., जैदे., (२६.५४१९.५, १५४३६-३९). अष्टप्राभृत, आ. कुंदकंदाचार्य, प्रा., पद्य, आदि: काऊण णमुक्कार; अंति: पुण केरिसं भणियं, प्राभृत-८. अष्टप्राभत-वचनिका, पंडित. जयचंद्रजी छाबडा, हिं., गद्य, वि. १८६७, आदि: श्रीमतवीरजिनेश रवि मिथ्या; अंति: तिथि तेरसि पूरन थाय, प्राभृत-८. १०५९७७. (+#) अकीर्तिम जिनमंदिर पूजा पाठ, संपूर्ण, वि. १९५४, पौष शुक्ल, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. १३५, ले.स्थल. टोंक, प्रले. मगनीराम ब्यास (पिता बालकिसन व्यास), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:तेरा०पू०., संशोधित. कुल ग्रं. १९३०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (३०४२०, १७४३४). १३ द्वीप जिनपूजा विधि, क. लालजी, पुहि., पद्य, वि. १८७०, आदि: श्रीअरिहंत प्रणाम करि पंच; अंति: सुपाठ लालजी तयो प्रकास है, पूजा-६२, ग्रं. १९३०. १०५९७८. (+) श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १९१६, भाद्रपद कृष्ण, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ९७+१(६५)=९८, ले.स्थल. निवाई, प्रले. श्राव. हुकमचंद बीलाका, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:श्रीपालच०., संशोधित., दे., (२९४२०,१६x२३). श्रीपाल चरित्र, जै.क. परिमल्ल रामदास, पुहि., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र विधि केवल; अंति: सुरपति हुंथे अथिकम जेज. १०५९७९. (+) पंचपरमेष्ठी पूजा विधान, संपूर्ण, वि. १९३०, अभ्रअग्निनवचंद, आषाढ़ शुक्ल, १०, शनिवार, मध्यम, पृ. २५, ले.स्थल. सावर, प्रले. लक्ष्मीलाल पुरोहित; लिख. श्राव. नेमीचंदजी शाह अजमेरा, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हंडी:पं०प०. ऋषभदेवजी मंदिर प्रतिष्ठा निमित्त पुस्तक लिखी गई है., संशोधित.,प्र.ले.श्लो. (१४२३) कड बेगड कड कुबडी, दे., (२९.५४२०.५, १५४३८-४२). पंचपरमेष्ठि मंगल पूजा, मा.गु., प+ग., वि. १८६२, आदि: मंगलमय मंगल करन; अंति: सत अष्टदस साठि दोय __अधिकाय. १०५९८० (+) सुदिष्टितरंग नाम ग्रंथ सह अर्थ, अपूर्ण, वि. १८९०, अठारासै निवै का, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ५२१-३१८(१ से ३१८)=२०३, प्र.वि. हुंडी:सुदिष्टतरं०, सुदिष्टतरंग०., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८४२०, १५४३२). सुदृष्टि तरंगिणी, जै.क. टेकचंद, प्रा., पद्य, वि. १८३८, आदि: (-); अंति: दिण पक्ष मास वस्सादि, अध्याय-४२, (पू.वि. अध्याय-२७ गाथा-१०५ से है.) सुदृष्टि तरंगिणी-अर्थ, जै.क. टेकचंद, पुहि., गद्य, वि. १८३८, आदि: (-); अंति: अर्ध निसं पूर्ण कीन, अध्याय-४२. १०५९८१. (+) चर्चा प्रश्नोत्तर विचार-जैनधार्मिक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७०-११८(१ से ११८)=५२, पृ.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:चरचा०, संशोधित., जैदे., (३०४२१.५, १५४२८). चर्चा प्रश्नोत्तर विचार-जैनधार्मिक, पुहिं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. चर्चा-१६७ अपूर्ण से १७४ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०५९८२. (+) सम्मेतशिखर माहात्म्य ग्रंथ, संपूर्ण, वि. १९०७, माघ कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ९३, ले.स्थल. सवाई जयपुर,बूंदी, प्रले. जमनालाल ब्राह्मण; पठ. श्राव. ऋषभ गोधा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:शिखर., संशोधित. कुल ग्रं. ३२००, दे., (२७.५४१८.५, १५४३८). सम्मेतशिखर माहात्म्य, मु. मनसुखसागर, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीसंसेवित चरन कमल जुग; अंति: मनसुखसागर यह ___ फल निहचै होय, पर्व-२५. १०५९८५. (+) मूलाचार सह आचारवृत्ति टीका की भाषावचनिका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५०३-२९८(२ से २९७,४६७,४८५)+१(३३७)=२०६, प्र.वि. हुंडी:मूला०भा०., संशोधित., दे., (२६.५४१९.५, १५४२९-३९). मूलाचार, आ. वढेरकाचार्य, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: हिखिवइताणी रओ होइ, अधिकार-१२, गाथा-१२५२, (पृ.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., गाथा-७६७ से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) मूलाचार-आचारवृत्ति टीका की भाषाटीका, श्राव. नंदलाल, पुहिं., प+ग., वि. १८८८, आदि: वंदौ श्रीजिनसिद्धपद; अंति: नंदलाल पूरन करी०निरधार है, (पू.वि. बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., आदिवाक्य खंडित है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) १०५९८६. पंचकल्याण पूजाविधान भाषा, संपूर्ण, वि. १९५८, आषाढ़ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. बंदीनगर, प्रले. कृष्णचंद्र ब्राह्मण गुर्जरगोड; लिख. श्राव. वसनलाल कवरजी; सम. श्राव. मन्नालाल सुरलाया; अन्य. श्राव. नेमिचंदजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीशांतिनाथजी का मंदर वास्ते. अंत में पाठा, हिंगलु एवं प्रत लिखाने का मूल्य उल्लिखित है व अंतिम पत्र पर मंगलविधि का कोष्ठक है., दे., (२८.५४१९, १४४२८-३४). पंचकल्याणक पूजा, जै.क. टेकचंद, पुहिं., प+ग., आदि: पणववि पंच परमगुरु; अंति: मंगल लहै पर भव सिवपुर पाय. १०५९८९ (+-) दिगंबर विविध पूजा विधान संग्रह, अपर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. ३७९-५३(२ से ३,६,८१ से ८४,१२१,१२८ से १३१,१४८ से १५०,१६९ से १७०,२४६ से २८१)+१(१७९)=३२७, कुल पे. ७७, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ., दे., (२६४१९.५, १२४३५-३८). १.पे. नाम. पंचमंगल, पृ. १आ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:पंचमंगल. पंचमंगल गीत प्रबंध, य. रूपचंद कवि, पुहिं., पद्य, आदि: पणमबि पंच परमगुरु गुरु; अंति: जिनपति देव सव संघ हूजिये, गाथा-२५, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से १६ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. दर्शन स्तोत्र, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. दर्शन पाठ, क. बुधजन कवि, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: प्रभु पतित पावन मै अपावन; अंति: बुध० आवागमन निवारिये, गाथा-९, संपूर्ण. ३. पे. नाम. जिनदर्शन पूजा, पृ. ५आ, अपर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. सं., गद्य, आदि: उदकचंदनतंदुलपुष्पकैः; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक पाठ मात्र है.) ४. पे. नाम, नित्यपूजा पीठिका, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.. नित्य पूजा पीठिका, सं., प+ग., आदि: ॐ जय जय जय णमोस्तु; अंति: (१)समग्रमयमेषमनां जहोमि, (२)परि पुष्पांजलिं क्षपेत्. ५. पे. नाम, स्वस्तिमंगल विधान, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. स्वस्ति मंगलपाठ, सं., पद्य, आदि: श्रीरिषभनाथजी स्वस्ति; अंति: क्रियासुः परमर्षयो नः, श्लोक-१०. ६. पे. नाम. देवशास्त्रगुरु पूजा, पृ. ९अ-१४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:देव.शा.गु. म. राजकीर्ति, अप.,पहि.,सं., प+ग., आदि: सार्वः सर्वज्ञनाथः; अंति: (१)गंजिये ते रिसिबर मई झाइया, (२)निर्विपामीते स्वाहा. ७. पे. नाम. वीस तीर्थंकरां की जयमाल, पृ. १४अ-१५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:वीसतीर्थ.पू. २० विहरमानजिन जयमाल, पुहि., पद्य, आदि: सीमंधरजिन वंदस्यां जगसार; अंति: होय मुक्ति स्वयंबरा, गाथा-७. ८. पे. नाम. ३० चौबीशीजिन पूजा, पृ. १५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:तीसचौ.पूजा. ३० चौवीसीजिन पूजा, सं., गद्य, आदि: उदकचंदनतंदुलपुष्पकै चरुसु; अंति: निर्विपामी ते स्वाहा. For Private and Personal Use Only Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ४०९ ९. पे. नाम. कृत्रिमअकृत्रिम चैत्य पूजा, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:देव०सिद्ध०पू०. सं., प+ग., आदि: कृत्याक्रतिमचारुचैत्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम गद्य इच्छामि भंते अंतर्गत 'भवणवासियवाणविंतर जोइसिय' पाठ तक लिखा है.) १०. पे. नाम. अावली, पृ. १६अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. ____सं., गद्य, आदि: (-); अंति: निर्विपामी ते स्वाहा, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रवचन पूजा अपूर्ण से लिखा है.) ११. पे. नाम. शांतिपाठ, पृ. १६अ-१७अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. प्रा.,सं., प+ग., आदि: शांतिजिनं शशिनिर्मलवक्त्र; अंति: जिणगुणसंपत्ति होउ मझं, श्लोक-१४. १२. पे. नाम. विसर्जन पाठ, पृ. १७अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. सं., पद्य, आदि: ज्ञानतोज्ञानतो वापि; अंति: मया देव क्षमश्व परमेश्वर, श्लोक-४. १३. पे. नाम. महाअर्घ स्तुति, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. महाअर्घ्यविधान, अप.,पुहि.,रा., प+ग., वि. १९६३, आदि: प्रभु जी अष्टद्रव्य जी; अंति: (१)अर्घ निर्विपामीते स्वाहा, (२)विसर्जन पडणा अस्तुति पडणी. १४. पे. नाम. स्तुति पाठ, पृ. १७आ-१८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:तुमत.स्तुति. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी २४ जिन स्तुति पाठ, पुहिं., पद्य, आदि: तुम तरण तारण भव निवारण; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२९ तक लिखा है.) १५. पे. नाम. पंचपरमेष्ठी की जयमाल आरती, पृ. १९अ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठि जयमाला, अप., प+ग., आदि: (-); अंति: (१)भवे भवे मम सुहं दिंतु, (२)निर्विपामीति स्वाहा, गाथा-७, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण से लिखा है.) १६. पे. नाम. षोडशकारण पूजा, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: उदकचंदनतंदूल० षोडशकारण; अंति: निर्विपामीते स्वाहा. १७. पे. नाम. अर्ध्यावली, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. सं., गद्य, आदि: उदकचंदन० क्षमामार्दवआर्जव; अंति: निर्विपामी ते स्वाहा. १८. पे. नाम. शांतिपाठ, पृ. २०अ-२१अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. प्रा.,सं., प+ग., आदि: शांतिजिनं शशिनिर्मलवक्त्र; अंति: जिणगुणसंपत्ति होउ मज्झ, श्लोक-१४. १९. पे. नाम. शांतिपाठ विसर्जन, पृ. २१अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. विसर्जन पाठ, सं., पद्य, आदि: ज्ञानतोज्ञानतो वापि; अंति: मया देव क्षमश्व परमेश्वर, श्लोक-४. २०. पे. नाम. महा अर्घ स्तुति, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. महाअय॑विधान, अप.,पुहिं.,रा., प+ग., वि. १९६३, आदि: प्रभु जी अष्टद्रव्य जी; अंति: (१)अर्घ निर्विपामीते स्वाहा, (२)विसर्जन पडणा अस्तुति पडणी. २१. पे. नाम. स्तुति पाठ, पृ. २१आ-२३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. २४ जिन स्तुति पाठ, पुहि., पद्य, आदि: तुम तरण तारण भव निवारण; अंति: सुमरन सर्व पाप बिनाशीये, गाथा-३०. २२. पे. नाम. देवशास्त्रगुरु पूजा भाषा समच्चय, पृ. २३आ-२६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:देव.शा.गु.भा. हुंडी:तुमत.स्तु. हुंडी:देव.शा.गु.पू. देवशास्त्रगुरु पूजा, जै.क. द्यानत, पुहिं., प+ग., आदि: प्रथमदेव अरिहंत श्रुत; अंति: (१)द्यानत० अजरअमरसुख भोगवो, (२)निर्विपामीते स्वाहा. २३. पे. नाम. वीस तीर्थंकरां की पूजा भाषा, पृ. २६अ-२८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:वीसतीर्थ.पू. २० विहरमानजिन पूजा, जै.क. द्यानत, पुहि., प+ग., आदि: दीप अढाई मेरपै अब; अंति: (१)द्यानत०धरै सो भी धरमी होय, (२)ॐ० निर्विपामीते स्वाहा. २४. पे. नाम. तीस चौईसी जी की पूजा भाषा, पृ. २८आ-३६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:तीसचौ.पू. For Private and Personal Use Only Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३० चौवीसी जिन पूजा, क. चुनिलाल, पुहिं., प+ग., आदि: तीर्थंकर सरवग्य जिन यह जग; अंति: (१)चुनिलाल०शिव० कौ राज कराय, (२)तीस० निर्विपामीते स्वाहा. २५. पे. नाम. तीनलोकसंबंधी अक्रतीम चैत्याला की पूजा, पृ. ३६अ-४१अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:तीनलोक. हुंडी:तीनलो.पू. त्रिभुवन अकृतिम जैत्यालय पूजा, पुहिं., प+ग., आदि: (१)ई बिधि ठाडो होय के प्रथम, (२)आठकोडी अरु छप्पनलाख सहस; अंति: कर मनसि सिवपूर सुखदाय. २६. पे. नाम. सिद्धपरमेष्ठी की पूजा, पृ. ४१आ-४३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सिद्धपू.भा. सिद्धपरमेष्ठी पूजा, क. लालचंद, पुहिं., प+ग., आदि: स्वयंसिद्ध जिनभवन रत्नमय; अंति: (१)तुच्छबुद्धि कबि लाल जी, (२)आपडिग यही अरज उर आनि. २७. पे. नाम. पचंमेर पूजा समच्चय, पृ. ४३आ-४५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पंचमेरपूजा. पंचमेरु पूजा, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., प+ग., आदि: तीर्थंकरों के न्हवन जल तै; अंति: (१)द्यानत० तुरति महासुख होय, (२)निर्विपामीते स्वाहा. २८. पे. नाम. अष्टाह्निकाजी की पूजा भासा, पृ. ४५आ-४८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:अष्टाह्नि पूजा. अष्टान्हिका पूजा, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., प+ग., आदि: सर्बपर्व मै बडा अठाईपर्व; अंति: (१)द्यानत० भक्ति सव सुख करौ, (२)अर्घ निर्विपामीते स्वाहा, गाथा-८. २९. पे. नाम. १६ कारण भावना पूजा, पृ. ४८आ-५१अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सौलकारपू. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., प+ग., आदि: सोलह कारण भाय; अंति: (१)पद द्यानत शिव पद होय, (२)ॐ० निर्विपामीते स्वाहा. ३०.पे. नाम. दशलक्षणधर्म की पूजा भाषा, पृ. ५१अ-५५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:दशलक्षपू. दशलक्षणधर्म पूजा, जै.क. द्यानत, पुहिं., प+ग., वि. १८वी, आदि: उतिम छिमा मार्दव आर्जव; अंति: (१)द्यानत सुख की रासि, (२)ॐ० निर्विपामीते स्वाहा. ३१. पे. नाम. रत्नत्रय पूजा भाषा, पृ. ५५आ-६२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:रत्नत्रपू. रत्नत्रय पूजा, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: चहुँगतिविषफलहरन मन; अंति: (१)सब द्यानत को सुखदाय, (२)ॐ० निर्विपामीते स्वाहा. ३२. पे. नाम. निर्वाणक्षेत्रसमच्चै पूजा भासा, पृ. ६२आ-६५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:निर्वाणछो. निर्वाणक्षेत्र पूजा, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परम पूज्य चौवीस जिह थानक; अंति: (१)गण कौ वुद्धि उच्चरै, (२)निर्विपामीते स्वाहा, (वि. पूजामंत्र सहित.) ३३. पे. नाम. सम्मेदसिखरजी की पूजा, पृ. ६५अ-६७आ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ पूजा, पुहिं., प+ग., आदि: मुवर कौडि अनेक परमपद; अंति: (१)भोग्य होय पंचमगती, (२)निर्विपामीते स्वाहा. ३४. पे. नाम. शिखर जी की महिमा, पृ. ६७आ-६८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सिखरपूजा. सम्मेतशिखरतीर्थमहिमा स्तुति, पुहिं., पद्य, आदि: सा देखै है अनेक पहार या; अंति: तिरजंचगति दोउ मिट जातु है, सवैया-२. ३५. पे. नाम. गिरनारतीर्थ पूजा, पृ. ६८अ-६९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गिरनारपू. पुहिं., प+ग., आदि: रत्नजडित भंगारशोभित नीर; अंति: (१)या विनती तुम सै करी, (२)फलं निर्विपामीते स्वाहा, गाथा-९. ३६. पे. नाम. पावापुरजी की पूजा महावीर संबंधी, पृ. ६९आ-७२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पावापूरपू. पावापुरीतीर्थ पूजा, पुहि., प+ग., आदि: महावीरजिनराज महासुखदाय है; अंति: कर्म सवै ही आजि टले, गाथा-१०. ३७. पे. नाम. शास्त्र पूजा, पृ. ७२अ-७४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:शास्त्रपूजा. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., प+ग., आदि: जनमजरामृति छेदि करि हरै; अंति: (१)द्यानत० सदा देत हूं ढौक, (२)निर्विपामीते स्वाहा. ३८. पे. नाम. गुरु पूजा, पृ. ७४आ-७६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गुरूपूजा. For Private and Personal Use Only Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४११ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ गुरु पूजाष्टक, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: चहुंगति दुख सागरविषै; अंति: (१)द्यानत० निति गुन जपत है, (२)प्रीणंतु मासाधवं. ३९. पे. नाम. अणंतवृतजी की पूजा भासा, पृ. ७७आ-७९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:अणतवृ.पू. अनंताजिन पूजा, आ. पद्मनंदि, पहिं., प+ग., आदि: अनंतचतुष्टय आदि दे गण; अंति: (१)पद्मनंदि० अष्टम धरा परं, (२)अनंत० निर्वपामीते स्वाहा. ४०. पे. नाम. चौवीस म्हाराजि की पूजा समच्चैय, पृ. ७९आ-८०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:चौवीस.पू. २४ जिन पूजा-वर्तमान चौवीसी, जै.क. वृंदावनदास, पुहिं., प+ग., वि. २०वी, आदि: रिषभअजितसंभवअभिनंदन सुमति; अंति: (-), (पू.वि. जयमाल गाथा-१ तक है.) ४१. पे. नाम. ३० चौवीसी पूजा, पृ. ८५अ-८९आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:तीसचौइपू. मु. रविमल, पुहिं., प+ग., वि. १९०८, आदि: (-); अंति: रविमल० मन मै धारि उमंग, (पू.वि. प्रारंभिक पाठ सन्निधीकरण अपूर्ण से है.) ४२. पे. नाम. निर्वाणक्षेत्र पूजा-मोटी, पृ. ८९आ-९६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:निर्वाणपू. पुहिं., प+ग., वि. १८७१, आदि: वंदु श्रीभगवान कुं; अंति: जु सप्तमी पूरन भई सुजानि. ४३. पे. नाम. सिद्धचक्रपूजा मोटी नव जयमाल की, पृ. ९६अ-१०१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडीःसिद्धपू.न. हुंडीःसिद्धपू.मो. सिद्धचक्र पूजा, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., प+ग., आदि: परमब्रह्म परमातमा; अंति: द्यानत सेवें ते बडे. ४४. पे. नाम. सुरत की बारखड, पृ. १०१आ-१०७अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडीःश्रुतवारख. श्रुत बाराखडी, म. सुरत, पुहि., पद्य, आदि: प्रथम नमौ अरिहंत को नमौ; अंति: रतन०चालीस है छंद कहे छतीस, गाथा-११३. ४५. पे. नाम. नरकां का दूहा, पृ. १०७अ-१११अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नरकांकाद्. नारकीदःखवर्णन दोहा, पुहिं., पद्य, आदि: कथा तिहां के कष्ट की कौ; अंति: निवास की थिति वरनी जिनराय. दोहा-७९. ४६. पे. नाम, सुगुरुशतक, पृ. १११अ-११५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सुगुरुसत. श्राव. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १८५२, आदि: नमुं साध निरग्रंथ गुरु; अंति: जिनदास० सतक संपूर्ण कीन, दोहा-१००. ४७. पे. नाम. गुरुगुण स्तुति, पृ. ११५अ-११६अ, संपूर्ण.. जै.क. भूधरदास, पुहि., पद्य, आदि: वंदु दिगंबर गुरचरण जगतरण; अंति: भुधर० वह विना कारण वीर, दोहा-८. ४८. पे. नाम. समाधिमरण, पृ. ११६अ-११७अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:मरणसत.गुर. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: गौतमस्वामी वंदू नामी मरण; अंति: द्यानत० जैनधर्म जयवंता, गाथा-११. ४९. पे. नाम. बुधजनक्रत छह ढाल्यौ, पृ. ११७अ-१२०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., पे.वि. हुंडी:छहढाल. औपदेशिक सज्झाय, क. बुधजन कवि, पुहिं., पद्य, वि. १८५०, आदि: सरब द्रव्य मै सार आतम कौ; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-६ गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ५०.पे. नाम. निर्वाणकांड भाषा, पृ. १२२अ-१२२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., पे.वि. हुंडी:निरवाण. निर्वाणकांड-पद्यानुवाद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७४१, आदि: (-); अंति: भया०जौ निर्वाणकांड गुणमाल, गाथा-२२, (पू.वि. गाथा-५ से है.) ५१.पे. नाम. स्वयंभू स्तोत्र की भाषा, पृ. १२२आ-१२४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्वयंभुभासा स्वयंभू स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: राज बी जुगलनि सुख कीये; अंति: द्यानतप्रभू क्यौ न सुहात, गाथा-२५. ५२. पे. नाम. ७ जिनविनती स्तवन, पृ. १२४अ-१२४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:वीनतीक०. ७जिन विनती स्तवन, क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: तुम तरण त्यारण भवनिवारण; अंति: वनारसी अवर कछू नही पेखीऐ, गाथा-११. ५३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १२४आ-१२५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची म. कनककीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: वंद श्रीजिनराय मनवचकाय; अंति: कनककीर्ति०सुरगासुख लहै जी, गाथा-१२. ५४. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १२५आ-१२६अ, संपूर्ण. साधारणजिन विनती स्तवन, जै.क. भूधरदास, पुहि., पद्य, आदि: अहो जगतगुर एह सुणिज्यौ; अंति: भूधरदास ढील न कीजे, गाथा-१२. ५५.पे. नाम. एकीभाव स्तोत्र की भासा, पृ. १२६अ-१२७आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:एकीभाव०. एकीभाव स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. भूधरदास, पुहि., पद्य, आदि: नमो आदि आदेसजिन नमो वीर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२४ अपूर्ण तक है.) ५६. पे. नाम. ज्वालामालिनी-चंद्रप्रभशशांकक्षीरधवलगात्र स्तोत्र, पृ. १३२अ-१३३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ज्वालामालिनीदेवी स्तोत्र-सबीज, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: ज्वालामालिनी० स्वाहा, (पू.वि. 'यक्षराक्षसगरूडगंधर्व' पाठांश से है.) ५७. पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद, पृ. १३३अ-१३६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:ऋषिमंडल०. हुंडी:रिषमंडल. आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं; अंति: सर्वे दोषाद्विमुंचति, श्लोक-८२, ग्रं. १५०. ५८. पे. नाम. जिनसहस्रनाम स्तोत्र, पृ. १३६आ-१४२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सहस्रनाम०. श्राव. आशाधर, सं., पद्य, वि. १२८७, आदि: प्रभो भवांगभोगेषु; अंति: जिनायते, श्लोक-१४१. ५९. पे. नाम. धरणेद्रपद्मावतीसंहितायां श्रीपद्मावती स्तोत्रमंत्र, पृ. १४२आ-१४५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पद्मावतीस्तो. पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: त्रिकालं पठिनार्थदं, श्लोक-३३. ६०. पे. नाम. पद्मावती लघुसहस्रनाम, पृ. १४५आ-१४६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पद्मा.सहश्र. पद्मावतीदेवी स्तोत्र-१०८नामगर्भित, सं., पद्य, आदि: ॐ श्रीमाला श्रीमहारागी; अंति: निरदृग्दास्वरसेनका, श्लोक-२९. ६१. पे. नाम. २४ जिन स्तुति पाठ, पृ. १४६आ-१४७आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडीःचौवीसस्तु. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. पुहि., पद्य, आदि: तुम तरण तारण भव निवारण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण तक है.) ६२. पे. नाम. ढालगण, पृ. १५१अ-१५५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:ढालगण. औपदेशिक सज्झाय, टेकचंद पंडित, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: टेकचंद०करै पावै सुरसिवधाम, गाथा-५७, (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से है.) ६३. पे. नाम. बाईस परिसहजी, पृ. १५६अ-१५८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:वाईसपरि. २२ परिषह सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: क्षुध्यात्रषाहिमउष्णडंस; अंति: जा के दर्शनसुं अघ भागै, गाथा-२२. ६४. पे. नाम. नेमनाथजी का दस भव, पृ. १५८आ-१६१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नेमजी.द.भ. नेमराजिमती सज्झाय-१० भव वर्णन, पुहिं., पद्य, आदि: म्हे ध्यावाला हो प्रभु; अंति: तुमतणी जी आवागमण निवारि, गाथा-१५. ६५. पे. नाम. वादी प्रतिवादी विवाद, पृ. १६१आ-१६४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बादीप्रतिवा. जैनमत स्थापन विचार, पुहि., गद्य, आदि: (१)जो पुरुष पून्यवान ए तीनु, (२)लोक१ देस२ नगर३ राज्य४; अंति: सकल सामग्री रजै है, गाथा-३३. ६६. पे. नाम. रामलक्ष्मण कथा, पृ. १६४आ-१६८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:रामलछम. हुंडी:रामल.दु. हुंडी:रामल.क. हुंडी:चंद्रगु.सु. क. नानूराम, पुहि., पद्य, आदि: वंदु पांचो परमपद नमौ सारद; अंति: नानूराम० न होवै तात की, गाथा-४४. ६७. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १६८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि: दयासिंधु भगवंत शांतिजिन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ तक है.) ६८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १७१अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-कर्म, पुहिं., पद्य, आदिः (-); अंति: कर्मन की या गति वाकडी, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) ६९. पे. नाम, जैनधर्ममहिमा पद, पृ. १७१अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ४१३ क. बुधजन कवि, पुहिं., पद्य, आदि: जैन धर्म पायो दोहेलो; अंति: बुधजन० सुणिज्यो चितलाय, गाथा-४. ७०.पे. नाम. नेमराजिमती संवाद दोहा बारमासी, पृ. १७१अ-१७४अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:नेमरजमत. नेमराजिमती संवाद-बारमासा, पुहि., पद्य, आदि: पंचपरमपद कू नमुं जिनमुख; अंति: प्रभु चितधार ल्यो, गाथा-३५. ७१. पे. नाम. नेमराजीमति पद, पृ. १७४अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नेमजी प्यारे न जोग; अंति: जोग विचार्योरी गुया, गाथा-५. ७२. पे. नाम. सम्मेदसिखरसिद्धक्षेत्र पूजा मोटी बिधान, पृ. १७४आ-१८८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सिखरवि.पू. हुंडी:सिखरविधा. सम्मेतशिखर विधान पूजा, क. जवाहरलाल दास, पुहि.,सं.,हिं., पद्य, वि. १९२१, आदि: सिद्धक्षेत्रतीरथ परम है; अंति: जवाहरदास० चतुर सुधारी. ७३. पे. नाम. सोलहकारणबिधान उद्यापनमंडल पूजा, पृ. १८८अ-२४५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:सोलाका.ऊ. हुंडी:सोलाका. हुंडी:सोडशका. सोलह कारण विधान, जै.क. टेकचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मानो आनो मन यह सोलह कारण; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंतिम समुच्चय जयमाल की गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ७४. पे. नाम. रत्नत्रयविधानउद्यापन पूजा, पृ. २८२अ-३२०अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:रत्नत्र.उ. हुंडीःरत्नत्र.पू. हुंडीःरत्नत्र.वि. रत्नत्रय विधान, जै.क. टेकचंद, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (१)टेक० जथाजोग्या जानना, (२)ते निर्वपामि ते स्वाहा, पूजा-४, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है., वि. अंत में मंडल कोष्टक का विवरण दिया गया है) ७५. पे. नाम. नंदीश्वरद्वीप पूजा विधान, पृ. ३२०अ-३६०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नंदीस्व. हुंडी:नंदीस्वप. हंडी:नंदीसु. क. टेकचंद, पहिं., प+ग., आदि: ठानी पूजौ देवा केरी ता ते; अंति: (१)टेक०संपजौ जै जै जय जिनराज, (२)निर्विपामीते स्वाहा, (वि. अंत में पूजा विधि से संबंधित नेवैद्यादि की सूची दी गयी है.) ७६. पे. नाम. पंचकल्याणक पूजा, पृ. ३६०अ-३७६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पंचक.पू. हुंडी:पंचकल्या. हुंडीःचौ.पंचक. जै.क. टेकचंद, पुहिं., प+ग., आदि: प्रणबिवि पंच परम गुर गुर; अंति: (१)मंगल लहै परभव सिवसुर पाय, (२)निर्विपामीते स्वाहा. ७७. पे. नाम, पार्श्वनाथजी की पूजा, पृ. ३७६आ-३७९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पार्श्वनापू. पार्श्वजिन पूजा, क. रामचंद, पुहिं., प+ग., आदि: पारस मेर समान ध्यान में; अंति: रामचंद फूनि मुक्तिवरं. १०५९९०. महापुराण-आदिपुराण की भाषावचनिका, अपूर्ण, वि. १९५६, फाल्गुन कृष्ण, ३०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ८२९-३(१,८९,७८८)+१(७९९)=८२७, ले.स्थल. नैणापुर, प्रले. पंडित. लक्ष्मीचंद; अन्य. हनुमंत सींग; रघुवीर सींग; राजाराम सींग; मागीलाल वसंतलाल शाह, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:आ०. दो अलग-अलग क्रम में पत्रांक उल्लिखित है., प्र.ले.श्लो. (१२) मंगलं लेखकानां च, दे., (२४४१८.५, १४४२६). महापुराण-हिस्सा आदिपुराण की भाषावचनिका, क. दौलतराम कासलीवाल, पुहि., गद्य, आदि: (-); अंति: कू सांति कै अर्थि होह, (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पर्व-४६ अपूर्ण से है.) १०५९९१ (+) ८ कर्मदहनपूजा विधान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र.वि. प्रत के अंत में प्रत लिखाई सामग्री सहित पारिश्रमिक शुल्क अंके रूपियो १ आनो डोढ़ उल्लिखित है., संशोधित., दे., (२८.५४१८.५, १३४३५). ८ कर्मदहनपूजा विधान, जै.क. टेकचंद, पुहिं., प+ग., आदि: लोक शिखर तन छाडिअ मूर्ति; अंति: सीव पद लहै और कहा अधिकार. १०५९९२ (+) चोइस दंडक, चोवीस ठाणा व अष्ट कर्म १५८ प्रकृति, संपूर्ण, वि. १९२९, पौष कृष्ण, ६, शनिवार, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. ४, ले.स्थल. बुंदी, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१८.५, १४४३४). १.पे. नाम. चौईस डंडक, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. २४ दंडक चौपाई, मु. दोलतराम, पुहि., पद्य, आदि: वंदो वीर सुधीरकुं; अंति: कारण करण कै भाषी दोलतराम, गाथा-५७. For Private and Personal Use Only Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. चोईस दंडक, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. द्यानत, पुहिं., पद्य, आदि: कलमैं ग्रंथ बडे उपगारी; अंति: जगमैं जीवन थोरा, गाथा-१२. ३. पे. नाम. चोवीस ठाणा, पृ. ३आ-६अ, संपूर्ण. २४ ठाणा चौपाई, क. बुधजन कवि, पुहिं., पद्य, वि. १८८१, आदि: गुण छियाल करि सहति देव; अंति: सुतिथि शिव शिखर व मौर, गाथा-५६. ४. पे. नाम, अष्ट कर्म १५८ प्रकृति, पृ. ६आ-११अ, संपूर्ण.. ८ कर्म १५८ प्रकति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आठ कर्म ते किस्या; अंति: सदा धर्म विषे उद्यम करै. १०५९९३. धन्यकुमार चरित्र भाषा, संपूर्ण, वि. १९५५, फाल्गुन कृष्ण, २, श्रेष्ठ, पृ. ९४, ले.स्थल. हथनापुर, प्रले. पं. भगवानदास पंडित; पठ.पं. नेमिचंद पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२४४१९, ११x१७). धन्यकुमार चरित्र-भाषा, मु. महेंद्रकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: (१)श्रीमनंतंजिनंनत्वा केवल, (२)श्रीजिनराज नमो सुखदाइक; अंति: महेंद्र०० वसु समा नही कोय, अध्याय-५, गाथा-९५२. १०५९९४. भद्रबाहुसंहिता- अध्याय-१ से ४, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, दे., (२५.५४१५, ९४३२-३६). भद्रबाहुसंहिता, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: मगधेषु पुरं ख्यातं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०५९९६. (+) मदनपराजय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१५.५, १२४३१). मदनपराजय, क. नागदेव, सं., पद्य, आदि: यदमलपदपद्मं श्रीजिने; अंति: (-), (पृ.वि. परिच्छेद-१ श्लोक-२५ तक है.) १०६००० (+#) उपदेशरत्नमाला, अपूर्ण, वि. १८८५, पौष शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १२४-१२(१ से ४,१९ से २१,२९ से ३२,४२)+१(६२)=११३, ले.स्थल. खंडारि नगर, अन्य. श्राव. डूंगरदासजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१५, ११-१५४३८-४२). उपदेशरत्नमाला, आ. सकलभूषण, सं., पद्य, वि. १६२७, आदि: (-); अंति: प्रमाणं निश्चित वुध, परिच्छेद-१८, ग्रं. ३१००, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., परिच्छेद-१ गाथा-७७ अपूर्ण से है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं., वि. परिच्छेद-१० में श्लोक-१०३ की जगह १०४ लिखा है किन्तु पाठ क्रमशः है. यहाँ पाठ अनुपूरित रूप में है.) १०६००१ (#) श्रेणिक चरित्र, संपूर्ण, वि. १९५१, चैत्र शुक्ल, ९, जीर्ण, पृ. ३०८, ले.स्थल. भेलसा, प्रले. श्राव. कालूराम सिंघवी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:श्रेणक., मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४४१५, ९४२३-२५). श्रेणिक चरित्र, मु. रतनविसाल, पुहिं., पद्य, वि. १८२४, आदि: तीनलोक तिहुकाल मैं पूजनीक; अंति: रतनविसाल० होत भवोदधि पार, गाथा-१२००. १०६००३ (#) नवपदजी स्नात्रविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१५, १४४२९). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: (१)कोई नये न अधूरी रे, (२)शुचि मनस्तपयामि विशुद्धये, पूजा-९. १०६००४. २४ जिन पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.५५-७(१९ से २२,२९ से ३१)=४८, पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:चौई० पूजा., जैदे., (२५.५४१५, १५४३४). २४ जिन पूजा, श्राव. रामचंद्र चौधरी, पुहि., पद्य, वि. १८५४, आदि: सिद्धि बुद्धि दायक; अंति: (-), (पू.वि. पार्श्वजिन पूजा अपूर्ण तक है, सुपार्श्वजिन पूजा अपूर्ण से पुष्पदंतजिन पूजा अपूर्ण तक व वासुपूज्यजिन पूजा अपूर्ण से विमलजिन पूजा अपूर्ण तक नहीं है.) १०६०१० (+) सप्तव्यसन कथासमुच्चय का पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:सप्त.च., संशोधित., दे., (२९.५४१८, १४४३७). सप्तव्यसन कथासमुच्चय-पद्यानुवाद, श्राव. भाणमल्ल सिंघ, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीअरहंत प्रणाम करि गुरु; अंति: (-), (पू.वि. अधिकार-७ गाथा-४९३ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०६०११. (-) ऋषिमंडल पूजा, अपूर्ण, वि. १९२२, भाद्रपद कृष्ण, श्रेष्ठ, पृ. १७-४ (१ से ४) = १३, ले. स्थल. माधोपुर, प्रले. श्राव. वरदीचंद; अन्य. श्राव. देवीलाल पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत में संवत १६२४ लिखा होने से इस वर्ष में लिख प्रत की प्रतिलिपि होगी, अशुद्ध पाठ. दे. (२६४१९, १४४३६). " ऋषिमंडलमंत्र कल्प, मु. गुणनंदि मुनींद्र, सं., पग, आदि (-); अंति: (१) नंदी गुणादिर्मुनिः, (२) ग्रंथी० मंगलप्रदे श्लोक-१३९, (पू.वि. बीजमंत्र - १५ अपूर्ण से है.) १०६०१२. पूजास्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८०-७ (१ से ३, ३३ से ३६) =७३, कुल पे. ३५, वे. (२५.५४१८, ११X३२). १. पे. नाम. पंचकल्याणक अभिषेक स्तवन, पृ. ४अ -५आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी: मंगल. मु. लक्ष्मी, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: व जिनवर जगतमंगल गाईए, ढाल - ५, (पू.वि. गर्भकल्याणक गाथा- २ अपूर्ण से है.) २. पे नाम. सामायिक लघु, पू. ५आ-६आ, संपूर्ण, श्लोक-१२. सं., पद्य, आदि सिद्ध वस्तु वचो भक्त; अंति मानिन्या वशीभूताय ते नमः, ३. पे. नाम. १० दिक्पालस्थापन विधि, पृ. ६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नावण ०. सं., पद्य, आदि: सौगंध संगत मधुव्रत, अति: (१) आगच्छ सोमाय स्वाहा, (२) वंदे दुष्टकर्मविनासनं, श्लोक ९. ४. पे. नाम. देवपूजा विधि, पृ. ८आ- १२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी. देवपू०. २४ जिन पूजा, सं., प+ग, आदि विघ्नौघाः प्रलयं अति निवि अरिहंतावलिह, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५. पे. नाम. अकृत्रिम चैत्यवंदना, पृ. १२ आ-१३आ, संपूर्ण. अकृत्रिमजिनबिंब चैत्यवंदना, सं., पद्य, आदि: वर्षेषु वर्षांतर; अंति: चौवीसा चंद्रोसुरोनरोतरयौ, श्लोक-७. ६. पे नाम. वीसतीर्थकर पूजा, पू. १३आ-१४आ, संपूर्ण पे.वि. हुंडी: बीस० पू०. २० तीर्थकर पूजा, पुहिं, पद्य, आदि पूर्वापर विदेहेसुं अति मन भावै न पावै सिव परमपया, दोहा-८. ७. पे. नाम. गुरु पूजा, पृ. १४आ-१६आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : गुरपू०. मु. ब्रह्मजिनदास, मा.गु. सं., पग, आदि सिद्धांतसूत्र संकिर; अंतिः ब्रह्म जिनवास भी करी. ८. पे. नाम. सरस्वती पूजा, पृ. १६ आ-१८ अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : सरस्व०. सं., पद्य, आदि जनममृत्युजराक्षयकारण; अंति: पावै परमपद तजी संसार कलेस, दोहा-१०. ९. पे. नाम. सिद्ध पूजा, पृ. १८ अ-२०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: सिद्ध०. सिद्ध जयमाला पूजा, आ. पद्मनंदि, सं., पद्य, आदि: ॐ उर्द्धाधोरयुतं; अंति: सौम्येति मुक्त्यं, दोहा-११. १०. पे नाम, सिद्ध स्तुति, पृ. २०अ २०आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : सिद्ध ०. हिं, पद्य, आदि अविनासी अविकार परम रस धाम अति प्रति ढोक त्रिकाल हमारी दोहा-६. ११. पे. नाम. षोडशकारण पूजा, पृ. २०आ-२२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: सोला०. प्रा. सं., प+ग, आदि इंद्रपदं प्राप्य; अंति सिद्धिचिरंगण ईहई हरा. "" ४१५ For Private and Personal Use Only १२. पे नाम. १० लक्षण पूजा, पृ. २२अ-२३आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी दशल०. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. १० लक्षणपूजा विधि, पंडित. भावशर्म, अप., पद्य, आदिः उत्तमादिक्षिमावंत, अंति: महातरु देह फलाइसु मिट्ठई. १३. पे. नाम, अनंतव्रत पूजा, पृ. २३-२४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: अनंत ०. अनंतजिन पूजाष्टक, पुहिं.,सं., प+ग, आदि: स्वामिन्संवौषट् कृता; अंति: श्रीजिनचरण चढाईए. १४. पे नाम, अनंतजिन पूजा, पृ. २४आ२५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: अनंत. अनंतजिन जयमाला, आ. पद्मनंदि, पुहिं. सं., पद्य, आदि भवजलनिधितारण शिवसुख; अंतिः रत्नप्रकिर्ती रीझई, श्लोक- ८. १५. पे. नाम, अनंतव्रत पूजा, पृ. २५अ-२६अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी: अनंत. सं., पद्य, आदि चिद्रूपम्यानगम्यं; अति प्राप्य मोक्ष स गच्छति, Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६. पे. नाम. रत्नत्रय पूजा, पृ. २६अ-३१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:रत्नत्र०. सं., प+ग., आदि: जनवार्ति मृत्यु; अंति: सप्राप्नोत्यचिरान्नरः. १७. पे. नाम. नेमिनाथ पूजा, पृ. ३१आ-३२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पे.वि. हुंडी:नेम०.पू०. नेमिजिन पूजा, सं., पद्य, आदि: यदुवंससमुद्भूतं नेमिनाथ; अंति: (-), (पू.वि. जयमाल श्लोक-६ अपूर्ण तक है.) १८. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ३७अ-४१अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., पे.वि. हुंडी:भक्ता०. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४८, (पू.वि. श्लोक-१ अपूर्ण से है.) १९. पे. नाम. तत्त्वार्थसूत्र, पृ. ४१अ-५१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सूत्र०. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: (१)त्रैकाल्यं द्रव्य, (२)सम्यग्दर्शनज्ञान; अंति: (१)संख्याल्पबहुत्वतः साध्याः, (२)दहश्रूते मुनिवरदिटुं, अध्याय-१०. २०. पे. नाम. निर्वाण पूजा, पृ. ५१आ-५२अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:निर्वाण०. निर्वाण पूजा-पावापुरीतीर्थ, सं., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाण; अंति: चरुदीपधूपसत्फलै पावापुरी. २१. पे. नाम. निर्वाणकांड का पद्यानुवाद, पृ. ५२अ-५३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:निर्वाण निर्वाणकांड-पद्यानुवाद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., पद्य, वि. १७४१, आदि: वीतरागि वंदौ सदा भाव; अंति: जय निरवाण कांड जयमाल, गाथा-२२. २२. पे. नाम. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, पृ. ५३आ-५४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सोलासु०. मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: उजीणीनगरी का वाग मैं भाख; अंति: माफी करी नवल कीनो जोडो जी, गाथा-१९. २३. पे. नाम. १० लक्षण पूजा, पृ. ५४आ-५५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:दश०. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी १० लक्षणपूजा विधि, पंडित. भावशर्म, अप., पद्य, आदि: उत्तमादिक्षिमावंत; अंति: महातरु देह फलाइसु मिट्ठई. २४. पे. नाम. पंचमेरू पूजा, पृ. ५५-६०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पंचमेरु०. जै.क. भूधरदास, पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: संवौषडाहोय निवेसराभ्यां; अंति: पंचमेरू जयमाल भणी. २५. पे. नाम. अष्टान्हिका पूजा, पृ. ६०अ-६१अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:अष्टां०. जै.क. द्यानतराय, पुहि., प+ग., आदि: सरव परव मैं सार अठाई पर्व; अंति: हेत समर्पत है नंदिस्वर, गाथा-९. २६. पे. नाम. अष्टान्हिका पूजा जयमाला, पृ. ६१अ-६२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नंदीसु०. जै.क. भैया, पुहिं., पद्य, आदि: वंदौ अरिहंत देवकौ वंदौ; अंति: सही या जयमाल नंदी सुर कही, गाथा-१४. २७. पे. नाम. शास्त्रभाषा पूजा, पृ. ६२अ-६३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्वरस०. शास्त्र पूजा, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., प+ग., आदि: जनम जरा मति छप करै हरै; अंति: जयवंत कौ सदा दैत है ढोक. गाथा-२०. २८. पे. नाम. क्षेत्रपाल पूजा, पृ. ६४अ-६५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:क्षेत्रपा०. पुहि.,सं., प+ग., आदि: क्षेत्रपालय यग्यस्मिन; अंति: जैनं भैरवं क्षेत्रपालं. २९. पे. नाम. जिनसहस्रनाम स्तोत्र, पृ. ६५आ-७२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सहश्र०. श्राव. आशाधर, सं., पद्य, वि. १२८७, आदि: प्रभो भवांगभोगेषु; अंति: जिनायते, श्लोक-१४३. ३०. पे. नाम. पद्मावतिदेवीपूजा स्तोत्र, पृ. ७३अ-७४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पद्मा०. पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथजिन; अंति: पूजयामीष्टसिद्ध्यै, श्लोक-११. ३१. पे. नाम. पद्मावतीदेवी स्तव, पृ. ७४अ-७७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पद्मा०. सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: क्षमस्व परमेश्वरी, श्लोक-२७. ३२. पे. नाम. लक्ष्मी स्तोत्र, पृ.७७आ-७८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मीनामांकित, मु. पद्मप्रभदेव, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीर्महस्तुल्य; अंति: स्तोत्रं जगन्मंगलम्, श्लोक-९. ३३. पे. नाम. गुरु विनती, पृ. ७८अ-७८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गुरुवी०. For Private and Personal Use Only Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ४१७ गुरुगुण गहुँली, जै.क. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: ते गुरु मेरे उर वसौ; अंति: मस्तग चहै भूधर मांग यह, गाथा-१३. ३४. पे. नाम, गुरुगुण स्तुति, पृ.७८आ-७९आ, संपूर्ण. जै.क. भूधरदास, पुहि., पद्य, आदि: वंदौ दिगंबर गुरु चरण जग; अंति: वीर ते साध मेरे उर वसौ, दोहा-८. ३५. पे. नाम. शांतिनाथ स्तोत्र, पृ. ७९आ-८०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सांति०. शांतिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: सकल गुण निधानं सर्वतत्वे; अंति: काम समवादिहि पातिमानं, श्लोक-९. १०६०१३. (+) पंचाख्यान-आख्यान १ मित्रभेद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६५, प्र.वि. हुंडी:पं०३०. पंचोपाख्यान., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२७४१८, १३४३५-३७). पंचतंत्र-पंचाख्यान जीर्णोद्धार, संबद्ध, मु. पूर्णभद्र, सं., प+ग., आदि: सकलार्थशास्त्रसारं जगति; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. ग्रंथारंभ में मंगलाचरण-सर्वमंगल मांगल्यं० जैनं जयतु शासनम् को श्लोक-१ क्रम में रखा है.) । १०६०१४. (+) अकीर्तिम जिनमंदिर पूजा पाठ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७९-३८(११७ से १३२,१३९ से १६०)=१४१, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:तेरह पू०., संशोधित., दे., (२७.५४१८, १२४३६). १३ द्वीप जिनपूजा विधि, क. लालजी, पुहिं., पद्य, वि. १८७०, आदि: श्रीअरिहंत प्रणाम करि पंच; अंति: (-), (पू.वि. नंदीस्वरद्वीप उत्तरदिशा जिनमंदिर की जयमाला अपूर्ण तक है.) १०६०१७. सिंदूरप्रकर, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१७.५, १०४२५-२८). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदरप्रकरस्तपः करिशिरः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-९५ अपूर्ण तक है.) १०६०१८. भक्तामर स्तोत्र सह मंत्राम्नाय, संपूर्ण, वि. १९५७, चैत्र कृष्ण, ९, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २७, ले.स्थल. चंद्रापुरी, प्रले. जगन्नाथ चौवे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:भक्त.यं., दे., (२७४१८, १२४९-४१). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४८. भक्तामर स्तोत्र-मंत्राम्नाय, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं अर्ह णमो; अंति: ऋद्धि मंत्रेणावेष्टयेत्. १०६०२०. गोराबादल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३७-१२७(१ से १२७)=१०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४१८.५, १७-१८x२३-२६). गोराबादल रास, ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, वि. १७०७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२४ गाथा-७ अपूर्ण से ढाल-३७ गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) १०६०२१. नेमिजिन पुराण, संपूर्ण, वि. १९२४, पौष कृष्ण, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १६४, ले.स्थल. म्हैलखेडा, प्रले. मु. बरदीचंद (गुरु मु. देवालाल); गुपि.मु. देवालाल (गुरु मु. शिवलाल); मु. शिवलाल (गुरु मु. सदासुख); मु. सदासुख (गुरु मु.डूंगरदास); मु. डूंगरदास (गुरु मु. रिषभदास); मु. रिषभदास, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी:ने०पू०., कुल ग्रं. ३९००, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (८९०) ज्ञानवान ज्ञानदानेन, (१४३१) सम्यक्त मूल श्रूतपीठ बंधो, दे., (२६.५४१८, १२४३५). नेमिजिन पुराण, मु. नेमिदत्त ब्रह्मचारी, सं., पद्य, आदि: श्रीमन्नेमिजिनं नत्त्वा; अंति: वोत्र भव्याः पवित्रं, अधिकार-१६. १०६०२२. भद्रबाहु चरित्र का पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १९०२, माघ कृष्ण, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २८, प्रले. श्राव. चंदालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:भद्रबा., दे., (२६४१८, १२४१७-३३). भद्रबाहु चरित्र-पद्यानुवाद, श्राव. किसनसिंघ, पुहिं., पद्य, वि. १७८३, आदि: केवलबोध प्रकासरबि उदै होत; अंति: नमन कुमति निहारे, गाथा-५६१. १०६०२३. व्रतकथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४१, मध्यम, पृ. ४१, कुल पे. ११, दे., (२४.५४१८,१३४३८-४१). १. पे. नाम. १० लक्षणव्रत कथा, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:दश.वृ०. ___ मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमन जिनवरनै; अंति: ब्रह्म ग्यानसागर सुविचार, गाथा-५५. २. पे. नाम. पुष्पांजलिव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. ४अ-८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पुष्पां०.७०. पुष्पांजलिव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहि., पद्य, आदि: चरन जिनेस्वर के नमू; अंति: लहै मुक्ति स्थानक जाय कै, गाथा-९८. ३. पे. नाम. सोलहकारणव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. ८आ-१०आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सोल०.व. For Private and Personal Use Only Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६ कारणव्रत कथा, मु. ज्ञानसागर, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिनवर चौवीसौ नमू; अंति: ब्रह्म ग्यानसागर कहै सार, गाथा-३४. ४. पे. नाम. आकाशपंचमीव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. १०आ-१४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:आका.व्र. आकाशपंचमीव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहि., पद्य, वि. १७८५, आदि: नाभिराय कौ नंदवर यशस्वती; ___अंति: पूरन भइ कथा सुखाकर होय, गाथा-७४. ५. पे. नाम. चंदनषष्ठिव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. १४अ-१५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:चंदन.व. चंदनषष्ठिव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: जिनपद वंदौ दुति ससि जे; अंति: खुस्याल० वीतराग गुण गाईये, गाथा-२६. ६. पे. नाम. अनंतचतुर्दशीव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. १५आ-१९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:अनं०.७०. अनंतव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: परमातम परविष्टवर ताहि नमु; अंति: लै खुस्याल भाखि करि मानजू. ७. पे. नाम. रतनत्रयव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. १९अ-२४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:रत्न०.७०. रत्नत्रयविधान कथानक-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: चरण जिनेश्वर के नमू; अंति: की कथा भाषा करी विचार, गाथा-१०६. ८. पे. नाम. निर्दोषसप्तमीव्रत कथा, पृ. २४आ-२६आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:निर्दो.व्र०. मु. ज्ञानसागर, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिनचरण कमल अनुसार; अंति: ब्रह्म ग्यानसागर इम कहै, गाथा-४१. ९. पे. नाम. सुंगधदशमीव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. २६आ-३३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सुगंध.व. सुगंधदशमीव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: पंच परम गुरु वंदन करूं ता; अंति: सुखित खुस्याल अपार, गाथा-१४२. १०.पे. नाम. सप्तपरमस्थानव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. ३३आ-३७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पर०.७०. सप्तमपरमस्थानविधान कथानक-पद्यानुवाद, म. खस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिनवर प्रणमं सुधभाव; अंति: सदा विनती करै खुस्याल, गाथा-९४. ११. पे. नाम. मुकुटसप्तमीव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. ३८अ-४१अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:७०.क०. मुकुटसप्तमीव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, वि. १७८३, आदि: श्रीअरहंत नमं चितलाय सरद; अंति:: पूरन भई वुद्धवार पहचान, गाथा-५२. १०६०२४. (+#) षट्पंचाशिका सह प्रश्नप्रकासिका भाषाटीका, अपूर्ण, वि. १९२०, वैशाख कृष्ण, १४, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३७-१(९)=३६, ले.स्थल. जोधपुर, प्र.वि. हुंडी:षट्पंचा०., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१८, ११-१४४२३-२८). षट्पंचाशिका, आ. पृथयशा, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य रविं; अंति: जातिश्च लग्नपात्, अध्याय-७, श्लोक-५६, संपूर्ण. षट्पंचाशिका-प्रश्नप्रकासिका भाषाटीका, वा. जीवणदास, मा.गु., गद्य, आदि: गुर गणेश गवरी गिरा वलि; अंति: ___ शनैश्चर संकर भवानां, (अपूर्ण, पू.वि. धातुजीव मूल चिंता विचार अपूर्ण है.) १०६०२९. हनुमान चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, कार्तिक कृष्ण, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५०, ले.स्थल, चंद्रापुरी, प्र.वि. हुंडी:ह०.च०., प्र.ले.श्लो. (१४२१) जैसी प्रति देखी हती, दे., (२७.५४१८, १२४२८-३३). हनुमान चरित्र, मु. ब्रह्मराय, पुहिं., पद्य, वि. १६१६, आदि: स्वामी सुव्रतनाथ जिनंद; अंति: नमौं सीस जोरे कर दोई, गाथा-८५४. १०६०३०. आलाप पद्धति सह भावप्रकासिनी टीका, संपूर्ण, वि. १९६०, कार्तिक कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ५९, प्र.वि. हुंडी:नयचक्र०., दे., (२८x१७.५, ११४४९). आलाप पद्धति, आ. देवसेन, सं., पद्य, वि. १०वी, आदि: गुणानां विस्तरं; अंति: यथा जीवस्य शरीरमिति, अधिकार-१९, सूत्र-२२८. For Private and Personal Use Only Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ४१९ आलाप पद्धति-भावप्रकासिनी भाषाटीका, पुहि., प+ग., वि. २०वी, आदि: चेतन द्रव्य अनंतगुण ज्ञान; अंति: संग ___कवहूं मति विसरौ भया. १०६०३१. (+) जिनसंहिता, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२५४१७, १०४३२). जिनसंहिता, आ. जिनसेन, सं., पद्य, आदि: श्रीमंतं त्रिजगल्लोक; अंति: तेभ्यासमहोजनास्ते, अधिकार-६. १०६०३२. पार्श्वपद्मावती स्तोत्र व लक्ष्मी मंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. पत्र १४२, दे., (२५४१७, ५४१२). १.पे. नाम. पार्श्वपद्मावती स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ अस्य श्रीपद्मावति; अंति: एवं अष्टोत्तरशत जपेत्. २. पे. नाम, लक्ष्मी मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. महालक्ष्मी मंत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं पद्म पद्मावती; अंति: पद्मावती ॐह्रीं श्रीं नमः. १०६०३३. १० लक्षण उद्यापन पूजाविधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, प्रले. रामचंद्र चौवे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:दस०., दे., (२७४१७, १३४३२-३८). १० लक्षण उद्यापन पूजाविधि, मु. सुमतिसागर, पुहि.,सं., पद्य, वि. १९३५, आदि: विमलसुगुन समृद्धि; अंति: उपरि पंचत्रिंशसय भार. १०६०४०. आदर्श जैनजीवन स्वरूप, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, प्र.वि. हुंडी:स्वरू०., दे., (२५४१७.५, १३-१७४३०-३६). आदर्श जैनजीवन स्वरूप, पुहिं.,प्रा.,सं., प+ग., आदि: (१)अथ जिनि का उपदेश सुनिए, (२)जातै विना ठीक कीए इसकौ उन; अंति: वार्त्तिकजीमै कह्या है. १०६०४१. मोक्षमार्ग वचनिका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:सत्ता., दे., (२५४१७.५, १३४२८-३५). मोक्षमार्ग वचनिका, मा.गु., गद्य, आदि: तहां यह जीव अनादि तै; अंति: (-), (पू.वि. कर्मसत्ता का निश्चय प्रसंग अपूर्ण तक है.) १०६०४२ (+) वृत्तरत्नाकर सह सुगमावृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-१(९)=१३, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:वृ०.२०., त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१७, १६-२१४३३-३७). वृत्तरत्नाकर, केदार भट्ट, सं., पद्य, आदि: सुखसंतानसिध्यर्थं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-२ श्लोक-१ से ४० अपूर्ण तक व अध्याय-३ अपूर्ण से नहीं हैं.) वृत्तरत्नाकर-सुगमा वृत्ति, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६९४, आदि: पार्श्वनाथ जिनं नत्वा गणि: अंति: (-). १०६०४८. पंचमंगल पूजा, अपूर्ण, वि. १९०७, आषाढ़ कृष्ण, १०, शनिवार, मध्यम, पृ. १५-६(२ से ६,१२)=९, प्रले. भैरवलाल ब्राह्मण गौडपंडो, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पंचक-वि०., दे., (२६.५४१८, १४४३२). पंचकल्याणक पूजा, जै.क. टेकचंद, पुहि., प+ग., आदि: पणववि पंच परमगुरु; अंति: टेकचंद० परभव शिवसुर पाय, (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०६०४९ (+) व्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२०.५४१८, १४-१८x२३-२७). व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., आदि: (१)सासणनायक वंदिये महावीर, (२)श्रीजिनेश्वरदेव के मार्ग; अंति: एसोबिहो होई अणुयोगो. १०६०५० (+) १४ गुणस्थानक ४१ द्वार विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७९, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२०४१८, १३४२४). १४ गुणस्थानक ४१ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नाम मीथ्यात; अंति: ईकीसवार थकी जाणवा. १०६०५३. पार्श्वपुराण, अपूर्ण, वि. १८९०, कार्तिक कृष्ण, १३, रविवार, मध्यम, पृ. ६०-४(१ से २,२१ से २२)=५६, ले.स्थल. पनवाड, प्रले. मु. रूपचंद्र ऋषि; पठ. श्राव. नंदराम दुगेर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पा.पु.भा., जैदे., (२५४१७.५, २०४३३). For Private and Personal Use Only Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वपुराण, जै.क. भूधरदास, पुहिं., पद्य, वि. १७८९, आदि: (-); अंति: ग्रंथ समापित कीय, अध्याय-९, (पू.वि. अधिकार-१ गाथा-३४ अपूर्ण व अधिकार-४ गाथा-११६ अपूर्ण से अधिकार-५ गाथा-४८ अपूर्ण तक नहीं 9. १०६०५५. धर्मोपदेशपीयषवर्ष श्रावकाचार, संपूर्ण, वि. १८३९, फाल्गन शक्ल, १३, शक्रवार, मध्यम, प. २३, ले.स्थल. अंजनग्राम, प्रले. आ. देवेंद्रकीर्ति (गुरु आ. त्रिलोकेंद्रकीर्ति, सरस्वतीगच्छ-मूलसंघ-बलात्कारगण); गुपि. आ. त्रिलोकेंद्रकीर्ति (गुरु आ. विजयकीर्तिदेव, सरस्वतीगच्छ-मूलसंघ-बलात्कारगण); आ. विजयकीर्तिदेव (गुरु आ. भुवनभूषणदेव, सरस्वतीगच्छ-मूलसंघ-बलात्कारगण), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:श्रावकाचार. श्रीनेमनाथस्वामी चैत्यालये., कुल ग्रं. ४२२, जैदे., (२६४१६.५, १४४२४-२८). धर्मोपदेशपीयूषवर्ष श्रावकाचार, मु. नेमिदत्त ब्रह्मचारी, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञं प्रणम्य; अंति: शास्त्रमिदं शुभं, अधिकार-५, ग्रं. ४६०. १०६०५६ (+) क्रियाकोष, संपूर्ण, वि. १९२६, आषाढ़ शुक्ल, ८, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २९१, प्रले. मीठालाल जोसी; लिख. श्राव. सोचंद गोदा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:क्री०.को०., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१२१२) जादृशं पुस्तके दृष्टा, दे., (२६.५४१७, ९४२७). क्रियाकोष, क. किशनसिंह सुखदेव श्रावक, पुहिं., पद्य, वि. १७८४, आदि: समवसरणलक्ष्मी सहित; अंति: किसन० कर तिनको सदा, गाथा-१८८८. १०६०५७. (+) धर्मविलास कति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२५, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १८३, कुल पे. ४४४, प्रले. पंडित. गौरीलाल ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:धर्म, धर्मविलास. इस प्रत में द्यानतराय रचित कृतियों का संग्रह है व बीच-बीच में अन्य कर्तृक भी कृतियाँ दी हुई हैं., संशोधित., दे., (२६.५४१७, १७४३९). १. पे. नाम. धर्मविलास पीठिका, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पहिं., पद्य, आदि: वंदौ आदिजिनेस पापतम हरन; अंति: कहे भूपरि करौ उद्योत. २. पे. नाम. उपदेशशतक, पृ. २आ-१८आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: गुन अनंत करि सहत रहत दस; अंति: जाल भिन्न आप रूप पायो है, सवैया-१२२. ३. पे. नाम. संबोध अक्षरबावनी, पृ. १८आ-२०आ, संपूर्ण. अक्षरबावनी संबोध, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १७५८, आदि: वो उकार मझारि पंच परम पद; अंति: बुद्धजन शुद्ध करि लेही, गाथा-५२. ४. पे. नाम. धर्मपचीसी, पृ. २०आ-२१आ, संपूर्ण. धर्मपच्चीसी, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: भवि कमल रवि सिद्धिजन धरम; अंति: द्यानत० मनवांछित फल लाहे, गाथा-२७. ५. पे. नाम. तत्त्वसार, पृ. २१आ-२४अ, संपूर्ण. तत्त्वसार-पद्यानुवाद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिसुखी अंतःसुखी; अंति: एह भ्रात देखौ जानौ अनुभवौ, चौपाई-७८. ६. पे. नाम. दरसनदसक, पृ. २४अ-२५अ, संपूर्ण. दर्शनदशक, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: देखे श्रीजिनराज आज सब; अंति: आंखि सौ सरधा त्यारनहार है, सवैया-११. ७. पे. नाम. ज्ञानदशक, पृ. २५अ-२६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: देखे मूरति स्वामी की; अंति: थिर थाप आप मै आपसु द्यानत, गाथा-११. ८. पे. नाम. द्रव्यचौबोल पचीसी, पृ. २६अ-२८आ, संपूर्ण. द्रव्यचौबोल पच्चीसी, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: दरवक्षेत्र अरु काल भावदरव; अंति: द्यानत० शुद्ध छिमाउर आन, सवैया-२५. ९.पे. नाम. विसनत्यागषोरसा, पृ. २९अ-३०अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ४२१ ७ व्यसनत्याग गाथाषोडशी, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: पाप कौ ताप कलेस असेस; अंति: द्यानत० मान हिगे सजन सही, सवैया-१६.. १०. पे. नाम. सरधाचालीसी, पृ. ३०आ-३१आ, संपूर्ण. श्रद्धाचालीसी, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: वंदौ हौं परमातमा जगग्यापक; अंति: नीति कहिये सरधा विसवे बीस, चौपाई-४०. ११. पे. नाम. सुखबत्तीसी, पृ. ३१आ-३३अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: सिध सर्व वंदौ सदा सुख; अंति: द्यानत० ताकौ भौ दुख नाहिं, दोहा-३२. १२. पे. नाम. विवेकबीसी, प. ३३अ-३४आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: जनमजरामृतअरति राग भै दोष; अंति: द्यानत० ग्रंथ निको सार है, सवैया-२०. १३. पे. नाम. भगतिदशक, पृ. ३४आ-३५आ, संपूर्ण. भक्तिदशक, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: रिषभ अजित संभव अभिनंदन; अंति: प्रकासिदास की भवावली, सवैया-११. १४. पे. नाम. धम्मरहसिबावनी, पृ. ३६अ-४०अ, संपूर्ण. धर्मरहस्यबावनी, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: पंचनीमे कहिये परमेश्वर; अंति: यह वारधि शब्द मथा है, सवैया-५२. १५. पे. नाम. दानबावनी, पृ. ४०अ-४३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: वंदौ आदिजिनंद व्रत तीरथ; अंति: बनाई दानबावनी द्यानतराय, सवैया-५३. १६. पे. नाम. दसबोलपचीसी, पृ. ४३आ-४६अ, संपूर्ण. १० बोलपच्चीसी, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: एक सरूप अभेद दोई विधि; अंति: मगन यह पुद्गल परजाय है, सवैया-२५. १७. पे. नाम. जिनगुणमालासप्तमी, पृ. ४६अ-४७अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पहिं., पद्य, आदि: अशोक पहपमंजरी छंद समोसरन: अंति: द्यानत० न्यारे दहे हैं. सवैया-७. १८. पे. नाम, चर्चाशतक, पृ. ४७अ-५८अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: जे सर्वग्य अलोक लोक ईक; अंति: जीवभाव हम सरदहा, दोहा-१०२. १९. पे. नाम, अष्टकीधी पूजा, पृ. ५८अ-५८आ, संपूर्ण. ८ प्रकारीजिन पूजा, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: तार तार श्रीजिनवरौ तुम; अंति: द्यानत० करो हरभांति सहाय, गाथा-१२. २०. पे. नाम. समाधिमरण, पृ. ५८आ-५९अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: गौतमस्वामी वंदौं नामी मरण; अंति: द्यानत० जैनधर्म जयवंता, गाथा-२०, (वि. गाथाक्रम में वैविध्य है.) २१. पे. नाम. आलोचना, पृ.५९आ, संपूर्ण. आलोयणा, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम नमो अरिहंतानं दतीय; अंति: द्यानतराग विरोध हरीजै जी, गाथा-६. २२. पे. नाम, एकीभाव की भाषा, पृ. ५९आ-६०आ, संपूर्ण. एकत्वभाव भाषा, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: वंदौ श्रीजिनराज पद रिद्धि; अंति: कियो द्यानत भगति जिहाज, गाथा-२७. २३. पे. नाम, स्वयंभू भाषा, पृ. ६१अ-६१आ, संपूर्ण. ___ स्वयंभू स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: राजविषै जुगलनि सुख; अंति: सदा सो प्रभु क्यों न सहाय, गाथा-२५. २४. पे. नाम, च्यारसै छह जीव समास, पृ. ६१आ-६२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४२२ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची षड्जीवनिकाय- ४०६ भेद समास, जै.क. द्यानतराब, पुहिं., पद्य, आदि बंदी नेमिजिनंद पद सब जीवन; अंति: सुरदवा करे ते विरले संसार, गाथा - २२. २५. पे. नाम. दसस्थान चौवीसी, पृ. ६२आ-६५आ, संपूर्ण. " १० स्थानचौवीसी, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि रिषभदेव रिषदेव वीर गंभीर अति चानत० भो जिनंद भवताप हर, सवैया- ३०. २६. पे नाम. व्यवहारपचीसी, पू. ६५आ-६८आ, संपूर्ण व्यवहारपच्चीसी, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: धर्मप्रकाशक अरहंत थुत; अंति: थिर होय आन नांहि वह है, सवैया २६. २७. पे. नाम. आरती दशक, पृ. ६८आ, संपूर्ण. ५. परमेष्ठि आरती, जै. क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: इह विधि मंगल आरती कीजै अति सुरंग मुकति सुखद्यानी, गाथा-८. २८. पे नाम साधारणजिन आरती, पृ. ६८आ, संपूर्ण जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि : आरती श्रीजिनराज; अंति: द्यानत सेवक को सुख दीजै, गाथा-८. २९. पे नाम मुनिराज आरती, पू. ६८-६९अ, संपूर्ण , जै.क. धानतराय, पुडिं, पद्य, आदि आरती कीजै श्रीमुनिराज की अंति द्यानत मनवंछित फल पावै, गाथा ८. ३०. पे नाम नेमिजिन आरती, पृ. ६९अ, संपूर्ण. रा. मानसिंघजी, पुहिं, पद्म, आदि किहि विधि आरती करो प्रभुः अति: तुम महिमा तुमहि वनि आवै, गाथा-८. " ३१. पे नाम. निचे आरती, पृ. ६९अ-६९आ, संपूर्ण. साधारणजिन आरती, श्राव. दीपचंदजी, पुहिं., पद्य, आदि: इह विधि आरती करौं प्रभु; अंतिः दीपचंद भवि भाविन भावै, गाथा-८. ३२. पे. नाम. आतमा की आरती, पृ. ६९आ, संपूर्ण. आत्मा आरती, क. बिहारीदास, पुहिं, पद्म, आदि करो आरती आतमदेवा गुन; अति होहि बिहारीदास विख्याता, गाथा-८. ३३. पे नाम. द्वादशांग स्तुति, पृ. ६९आ, संपूर्ण. जै.क. धानतराव, पुहिं., पद्य, आदि कहाले पूजा भगति बढावे, अंति: जनम जनम यह भक्ति कुमावै, गाथा ८. ३४. पे नाम, वर्द्धमान आरती, पू. ६९आ-७०अ, संपूर्ण. महावीरजिन आरती, जै.क. धानतराय, पुहि., पद्य, आदि पावापुर निरवान की राग; अंति द्यानत की अभिलाष प्रमानी, गाथा-८. ३५. पे नाम साधारणजिन आरती, पृ. ७०अ, संपूर्ण जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: कहा लौ आरती भगत करै जी; अंति: क्रिपा तिहारी तै सुख पावै, गाथा-८. ३६. पे. नाम. मंगल आरती, पृ. ७०अ, संपूर्ण. जै.क. धानतराब, पुहिं., पद्य, आदि: तन मंदिर मन उत्तम ठाम अंति मिटाई द्यानत एकमेक हो जाई, गाथा-८. ३७. पे. नाम. पार्श्वनाथजी का स्तवन, पृ. ७० अ-७० आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि नरिंद्र फणिंद्र सुरिंद्र, अति कीजे आप समान, गाथा-१०. ३८. पे नाम. तिथिषोडशी, पू. ७० आ-७१ आ. संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: वाणी एक नमो सदा एक दरव; अंति: जो मन धेरै ऊपजै ग्यान अनूप, गाथा - १८. ३९. पे. नाम. मंगल आरती, पृ. ७१आ, संपूर्ण. नेमिजिन आरती, जैक द्यानतराय, पुठि, पद्य, आदि मंगल आरती कीजे भोर विघन; अति: मंगल महाभक्ति " जिनस्वामी, गाथा- ९. ४०. पे नाम वैराग्यपोरसी पू. ७१आ-७२अ संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ४२३ वैराग्यषोडसी, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: सब मैं हम हम मैं सब ग्यान; अंति: द्यानत ताकौ निशदिन सेव, गाथा-१६. ४१. पे. नाम. ग्रंथमहिमा, पृ. ७२अ-७२आ, संपूर्ण. ग्रंथमहिमा गीत, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: कलि मैं ग्रंथ बडे उपगारी; अंति: द्यानत० जग मैं जीवन थोरा, गाथा-१२. ४२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७२आ-७३अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: वैर मिटावन पद कीजे हो; अंति: द्यानत०धरमीते विरले संसार, गाथा-१०. ४३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: क्रोध कषाय न मै करो इह; अंति: मैं जग सौ रूठ न तूठ हो, गाथा-८. ४४. पे. नाम. २४ जिन गीत, पृ. ७३अ-७३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: वंदौ आदिजिनंद दुहं कर; अंति: द्यानत० विघन विनाश कै, गाथा-८. ४५. पे. नाम, जिनपूजा अष्टक, पृ. ७३आ-७४अ, संपूर्ण. जिनपूजा अष्टप्रकारी, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: सजल चंदन अक्षत पुष्प लै; अंति: जगत पार उतारण कांत री, गाथा-९. ४६. पे. नाम. देवपूजा जयमाल, पृ. ७४अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: वृषभ वीर धर धीर चित्तरी; अंति: संपति पामी शिवगामी, गाथा-९. ४७. पे. नाम. देवपूजा अष्टक, पृ.७४अ-७४आ, संपूर्ण. देवपूजा अष्टप्रकारी, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: जल चंदन अक्षत फूलजु चरु; अंति: जिन पूजा द्यानत धर्म उपाय, गाथा-९. ४८. पे. नाम. २४ तीर्थंकर आरती, पृ. ७४आ-७५अ, संपूर्ण. २४ जिन आरती, श्राव. मोतीराम, पुहिं., पद्य, आदि: चौवीसौं जिन राज पद वंदौ; अंति: सुख लहै मोतीराम सुजान, गाथा-८. ४९. पे. नाम. पूजा अष्टक, पृ. ७५अ-७५आ, संपूर्ण. जिनपूजा अष्टप्रकारी, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: प्रभु तुम राजा जगत के हमे; अंति: न्याव करीजै दया धरो, गाथा-९. ५०.पे. नाम. तीर्थंकर की जयमाल ४६ बोल, पृ.७६अ-७६आ, संपूर्ण. साधारणजिन ४६ बोल आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: गुन अनंत कह कोस है; अंति: सम्यक रतनत्रै गुन ईस हो, गाथा-१५. ५१. पे. नाम. वर्तमानवीसी की पूजा आरती, पृ. ७६आ-७७आ, संपूर्ण. २०विहरमानजिन पूजा, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., प+ग., वि. १८वी, आदि: दीप अढाई मेरुपन अब; अंति: धरै सो भी धरमी होय, दोहा-१९. ५२. पे. नाम. सिद्धांके अष्टक, पृ. ७७आ-७८अ, संपूर्ण. सिद्ध अष्टक, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: ऊरध अधारे कार जुत विंदी; अंति: अनुभवै तुम राखौ पास महंत, गाथा-१२. ५३. पे. नाम. सिद्ध आरती, पृ. ७८अ-७८आ, संपूर्ण. श्राव. खस्यालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: आठ करम दिढ बंध सौं नख सिख; अंति: भगति कौ निस्तार है, गाथा-१६. ५४. पे. नाम. गुरु अष्टक, पृ. ७८आ-७९अ, संपूर्ण.. गुरु पूजाष्टक, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: चहुंगति दुख सागरविषै; अंति: द्यानत० हम ह. भव आचली, गाथा-१०. For Private and Personal Use Only Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५५. पे. नाम, मुनिराज आरती, पृ. ७९अ-७९आ, संपूर्ण. पंडित. हेमराज पंडित, पुहि., पद्य, आदि: कनक कामनी विषै वस दीस सब; अंति: सेवक हियै भगति भरौ भरपूर, गाथा-११. ५६. पे. नाम. वाणी अष्टक, पृ. ७९आ-८०अ, संपूर्ण. वाण्याष्टक, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: जनम जरा मृत छै करे हरै; अंति: सो नर द्यानत सुख पावै, गाथा-११. ५७. पे. नाम. शास्त्रजी की आरती, पृ. ८०आ-८१अ, संपूर्ण. शास्त्र आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: ॐकार धुन सार द्वादशांग; अंति: जैवंत को सदा हेत है धोक, गाथा-११. ५८. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि पूजा, पृ. ८१अ-८१आ, संपूर्ण. __ पंचपरमेष्ठी पूजा, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: तीर्थंकरौ के हौं न जलध ते; अंति: द्यानत० तुरत महासुख होये, गाथा-२१, (वि. आरती सहित.) ५९. पे. नाम. अठाई की पूजा, पृ. ८१आ-८२आ, संपूर्ण.. अट्ठाईपर्व पूजा-नंदीश्वरद्वीप, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., प+ग., वि. १८वी, आदि: सरब परव में बडो अठाई परव; अंति: यही भगति शिव सुख करै, दोहा-२२, (वि. आरती सहित.) ६०. पे. नाम, १६ कारण के अष्टक, पृ. ८२आ-८३अ, संपूर्ण. १६ कारण भावना पूजा, जै.क. द्यानतराय, पुहि., प+ग., आदि: सोलै कारण भाय तीर्थंकर भए; अंति: पद द्यानत शिव पद होय, गाथा-२०. ६१. पे. नाम. १० लक्षण पूजा, पृ. ८३आ-८५आ, संपूर्ण. १० लक्षण पूजा अष्टप्रकारी, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: उत्तम क्षमा मारदव आरज भाव; अंति: कौं लहै द्यानत सुख की रास, गाथा-२२. ६२. पे. नाम. रतनत्रयपूजा आरती, पृ. ८५आ-८८अ, संपूर्ण. रत्नत्रय पूजा, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: चहुगति फल विष हरन मन दुःख; अंति: सब द्यानत को सुखदाय, गाथा-५२. ६३. पे. नाम. सिद्धक्षेत्र के अष्टक, पृ. ८८अ-८८आ, संपूर्ण. निर्वाणक्षेत्र पूजा, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परम पूज्य चौवीस जिह जिह; अंति: गिरि के गुण को बुधचारै, गाथा-२०. ६४. पे. नाम. द्रव्यसंग्रह-पद्यानुवाद, पृ. ८८आ-९४आ, संपूर्ण. द्रव्य संग्रह-पद्यानुवाद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: रिषभनाथ जगनाथ सुगुन मन; अंति: ग्रंथ भयौ सम्यक समाजजी, सवैया-६४. ६५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ९४आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: प्राणी आतम रूप अनूप है; अंति: द्यानत० याकौ यह सिद्धांत, गाथा-१६. ६६. पे. नाम. औपदेशिक भावना, पृ. ९४आ-९५आ, संपूर्ण. श्राव. हेमराज, पुहि., पद्य, आदि: भावन पावन भाईयै हौ अहो; अंति: कहै हौं भावौ भविक जिनकाज, गाथा-९. ६७. पे. नाम, औपदेशिक भावना, पृ. ९५आ-९६अ, संपूर्ण. औपदेशिक भावना जकडी, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: वंधौ साध वचन मन काया जगत; अंति: द्यानत० वृथा या जग लाग कै, सवैया-५. ६८. पे. नाम, वैराग्य जखडी, पृ. ९६अ-९६आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: प्रथमदेव अरिहंत मनाउं; अंति: चढो अव दिष्ट सनमुख पार है, चौपाई-५. ६९. पे. नाम, ग्यान जखडी, पृ. ९६आ-९७आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ४२५ औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: ग्यायक एक सरूप है; अंति: द्यानत परम अनुभौ रस चाखा, चौपाई-५. ७०. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ९७आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: करि करि आतमहित रे प्राणी; अंति: द्यानत० भाखै केवलग्यानी, गाथा-४. ७१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ९७आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: जान कौं नही रे नर आतम जान; अंति: द्यानत० जै शिवथानी रे, गाथा-४. ७२. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ९७आ-९८अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: आप प्रभुजी नामे जाना यह; अंति: द्यानत निह जानै समवाना, गाथा-४. ७३. पे. नाम, नेमिजिन पद, पृ. ९८अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: अब हम नेमजी की शरण; अंति: प्रभु क्यौं तजेंगे परन, गाथा-४. ७४. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ९८अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: गलता नमताव आवेगा राग दोष; अंति: त्यौं का त्यौं ठहरावेगा, गाथा-४. ७५. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ९८अ-९८आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: मोहे कब ऐसो दिन आय है सकल; अंति: पुद्गल पुद्गल थाय है, गाथा-४. ७६. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ९८आ, संपूर्ण... जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: जिन नाम सुमर मन वारे कहा; अंति: द्यानत जे हैते रे कटिकै, गाथा-४. ७७. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ९८आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: तू जिनवर स्वामी मेरा मै; अंति: फेर नही भव कै फेरा, गाथा-४. ७८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ९८आ-९९अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदिः सो ज्ञाता मेरे मन माना; अंति: द्यानत० जीवन मुकती भना, गाथा-४. ७९. पे. नाम, नेमिजिन पद, पृ. ९९अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: सुनि मन नेमजी कै वैनसु; अंति: द्यानत ज्यौ लहौ पद चैन, गाथा-४. ८०. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ९९अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पहिं., पद्य, आदि: काहे कं सोचत अतिभारी रे; अंति: द्यानत० जिन चिंता सब जारी, गाथा-४. ८१. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ९९अ-९९आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: हम तो कबहू न निज घर आए; अंति: सद्गुरु वैन सुनाये, गाथा-४. ८२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ९९आ, संपूर्ण.. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: रे जिय जनम लाहा लेह चरण; अंति: ध्यावो कहै सद्गुरु ए ह, गाथा-४. ८३. पे. नाम, नेमिजिन पद, प. ९९आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पहिं., पद्य, आदि: चल देखे प्यारी नेम नवल; अंति: द्यानत० कहि मोकौं को तारी, गाथा-४. ८४. पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. ९९आ-१००अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: मै तौ रुल्यो चिरकाल जग; अंति: द्यानत० नाथ तेरो कहायौ, गाथा-४. ८५. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १००अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: सम्यकति उत्तम भाइ जगत मैं; अंति: द्यानत० सद्गुरु सीख बताई, गाथा-४. ८६. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १००अ-१००आ, संपूर्ण.. जै.क. द्यानतराय, पहिं., पद्य, आदि: भाई अब हम असामै जाना; अंति: द्यानत० मैंडक हंस ऊपखाना, गाथा-४. ८७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १००आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: आतम जान रे जान० जीवन की; अंति: द्यानत० तिनको शिव सुख होई, गाथा-४. ८८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ.१००आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: मन मेरो राग भावसि राग; अंति: द्यानत शुद्ध अनुभौ सार, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८९. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १००आ-१०१अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: हम नि किसी के कोई न हमारा; अंति: द्यानत मै चेतन पदमांही, गाथा-४. ९०. पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. १०१अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: भम्यौ जीवम्यौं संसार; अंति: चरण कमल चितलायौ जी, गाथा-४. ९१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १०१अ-१०१आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: जिय को लोभ महादुख दाई; अंति: द्यानत जिन कै लोभ विशेषा, गाथा-४. ९२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १०१आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पहिं., पद्य, आदि: रे मन भजि दीनदयाल जाकै; अंति: द्यानत छांडि विषै विकराल, गाथा-४. ९३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १०१आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: तुम प्रभु कहत दीनदयाल आप; अंति: द्यानत० हमकौं लेहु निकाल, गाथा-४. ९४. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १०१आ-१०२अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: मै नेमजी का वंदा साहिबजी; अंति: द्यानत और बात सधंदा धंदा, गाथा-४. ९५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १०२अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: मैं निज आतम कब ध्याउंगा; अंति: द्यानत० बहूर जग मैं आउंगा, गाथा-४. ९६. पे. नाम, नेमराजिमती पद, पृ. १०२अ, संपूर्ण. नेमराजिमति पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: वंदौ नेम उदासी मद मारिवे; अंति: पंकज रमत रमत अघनासी, गाथा-४. ९७. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १०२अ-१०२आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: आतम अनुभौ कीजे हो भाई; अंति: द्यानत० दक्ष कहीजै हो भाई, गाथा-४. ९८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १०२आ, संपूर्ण. __ औपदेशिक पद-जीव, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: अरहंत सुमरि मन वावरे; अंति: द्यानत० फेर न कछु उपाव रे, गाथा-४. ९९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ.१०२आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-रागदोष, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: कर रे कर रे कर रे आतम; अंति: यही है द्यानत लख भवतर रे, गाथा-४. १००.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १०२आ-१०३अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: आतम अनुभौ करना रे भाई; अंति: द्यानत० पार उतारना रे भाई, गाथा-४. १०१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १०३अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: धन ते साध रहे वनमांही; अंति: पावै शिव सुख न सांही, गाथा-४. १०२. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १०३अ-१०३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: अब हम आतम कौं पहचान्यौ; अंति: द्यानत० जनम सफल करमान्यौ, गाथा-४. १०३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ.१०३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: हमको प्रभु श्रीपास सहाय; अंति: द्यानत० फेर न कछु उपाय, गाथा-४. १०४. पे. नाम. नेमराजिमति पद, पृ. १०३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: ज्ञानी ज्ञानी नेमजी तुमहौ; अंति: जगत मैं हम गरीब प्राणी, गाथा-४. १०५. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १०३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: देख्या मैंने नेमजी प्यारा; अंति: द्यानत भगति तुमारा, गाथा-४. १०६. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १०३आ-१०४अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: आतम रूप अनूप है घटमांहि; अंति: निज स्वारथ काजै हो, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ४२७ १०७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १०४अ, संपूर्ण.. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: नही एसो जनम वार वार; अंति: ज्यौ लहै भव पाव पार, गाथा-४. १०८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १०४अ, संपूर्ण. ___ जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: तुमतो समझ समझ रे भाई; अंति: सुखदायक सद्गुरु सीखताई, गाथा-४. १०९. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १०४अ-१०४आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: घट मैं परमातम ध्याइयै हो; अंति: महिमा द्यानत लहिसे भौ अंत, गाथा-४. ११०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १०४आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-देवगुरुधर्म, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: समझत क्यों नही वानी रे; अंति: हजै ज्यौं शिवथानी रे, गाथा-४. १११. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १०४आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-सम्यक्त्व, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदिः धृग धृग जीवन समकत विना; अंति: आतम द्यानत गहन वचन तणा, गाथा-४. ११२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ.१०४आ-१०५अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, मा.गु., पद्य, आदि: जीवासुं कहिये तनै भाईया; अंति: सुख लाधो एम सुगुरु समझईया, गाथा-४. ११३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १०५अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-ज्ञान, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: ज्ञान सरोवर सोई हो भव भव; अंति: जानै जानै विरला ज्ञाता, गाथा-४. ११४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १०५अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-मूढ, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: मूढपना कित पयो रे जिय ते; अंति: द्यानत यौं सद्गुरु बतलायो, गाथा-४. ११५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १०५अ-१०५आ, संपूर्ण. ___ जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: हम लागे आतम एसु विनासीक; अंति: द्यानत० छूटै भवदुख दामसौ, गाथा-४. ११६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १०५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: प्रभु अब हमको होय सहाय; अंति: द्यानत० जमतै लेहू वचाय, गाथा-४. ११७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १०५आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-चित्त, क. बिहारीदास, पहिं., पद्य, आदि: जीवन सहल है तुम चेतो चेतन; अंति: बिहारदास और न कछू न पाय, गाथा-४. ११८. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १०५आ-१०६अ, संपूर्ण. ___ जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: वसि संसार में पायो दुख; अंति: दुख मेटि लह्यौ सुखसार, गाथा-४. ११९. पे. नाम. मुनिगुण स्तुति, पृ. १०६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: धनि धनि ते मुनि गिरवन; अंति: द्यानत० पाय परत पातग जासी, गाथा-४. १२०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १०६अ-१०६आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: कहित सुगुरु करिसु हित भवक; अंति: करि करम सघन डहन दहनकन, गाथा-४. १२१. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १०६आ, संपूर्ण. क. बिहारीदास, पहिं., पद्य, आदि: हो भविजन आतम सौं लौ लाया; अंति: बिहारीदास०परमातम व्है जाय, गाथा-४. १२२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १०६आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: भैया ए पाप उदोल खरोवत; अंति: ज्यौं द्यानत तर जग तोय, गाथा-४. १२३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १०६आ, संपूर्ण.. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु मैं किहि विध थुति; अंति: जगतमै द्यानतदास पिछान्यौ, गाथा-४. १२४. पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. १०६आ-१०७अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४२८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि भज श्रीआदि चरण नमे रे, अंतिः निरभै होय तिहू जगमांही, गाथा-४. १२५. पे नाम आध्यात्मिक पद, पृ. १०७अ संपूर्ण, गाथा -४. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: प्राणी लाल धरम अगाउ धारौ; अंति: चढ अपनौ द्यानत आतम तारौ, १२६. पे नाम, नेमिजिन पद, पृ. १०७अ, संपूर्ण जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि नेम नवल देखे चल री लहै; अंतिः जे हैं भवबंधन गलरी, गाथा-४. १२७. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १०७अ १०७आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं, पद्य, आदि भव पूजो श्रीजिनंद चित; अंति द्यानत प्रभु दे परम चैन, गाथा-४. " १२८. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १०७आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: आतम जान रे भाई जैसी; अंति: द्यानत० ते पाव शिवधाम, गाथा-४. १२९. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १०७आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-भव आलोचना, जै.क. मानसिंह, पुहिं., पद्य, आदि : अब क्यौं भूलै है यह औसर; अंति: भोग तजि जै शिव सुख ललचाया, गाथा-४. १३०. पे नाम औपदेशिक पद, पू. १०७आ-१०८अ, संपूर्ण जै.क. मानसिंह, पुहिं., पद्य, आदि: संसार अथिर भाई कछु करिजु; अंति: जाना कहै मानसिंघ दाना, गाथा-३. १३१. पे नाम. साधारणजिन पद, पृ. १०८अ संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: मोहे तारौ हो देवाधिदेव; अंति: द्यानत अजरामर भव तृतीय, गाथा-४. १३२. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १०८अ संपूर्ण. औपदेशिक पद-क्रोध, जै. क. द्यानतराय, पुहिं, पद्य, आदि रे जिय क्रोध कहां करै अति वासा छिमा द्यानतर रे, " गाथा-४. १३३. पे नाम औपदेशिक पद, पू. १०८अ संपूर्ण औपदेशिक पद-संगत, आव, हेमराज, पुडिं, पद्य, आदि ऐसे मित्र सौं करियारी; अति हेमराज वसुधा तीरथधारी, " गाथा-४. १३४. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १०८अ १०८आ, संपूर्ण. श्राव. हेमराज, पुहिं., पद्य, आदि: और कौं विसार यार नेम पेम; अंति: हेमराजजी संभार धूमधाम डार, गाथा-४. १३५. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १०८आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-निंदापरिहार, श्राव. हेमराज, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन सबही मै घाट वाढ नही; अंति: हेमराज० अनुभ अमृत कोर, गाथा-४. १३६. पे नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १०८आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: फूली वसंत फूली वसंत जह; अंति: द्यानत० गुन कापें जांवरनए, गाथा-४. १३७. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १०८ १०९अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: वतस तुम ग्यान विभौ फूली; अंति: द्यानत० आनंदघन सूरुप, गाथा-४. १३८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १०९अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद- जीवदया, जै.क. धानतराय, पुहिं., पद्य, आदि म्यान जीवदया निति पालै; अंति: करौ जतन सौं ग्याता, For Private and Personal Use Only गाथा-४. १३९. पे नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १०९अ. संपूर्ण. " जै.. द्यानतराय, पुहिं, पद्य, आदि कारज एक ब्रह्मा सेती अंग अति चानत० अनुभौ सगुनता एती, गाथा ४. १४०. पे नाम, आध्यात्मिक होरी पद, पृ. १०९-१०९आ, संपूर्ण. " जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि होरी चेतन खेले होरी सत्ता अंतिः धानतः यह जुग जुग जोरी, गाथा-४. १४१. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वजिन पद, पृ. १०९आ, संपूर्ण. Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ४२९ पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: भोर भयो भजि श्रीजिनराज; अंति: द्यानत सुरग मुकति पदवास, गाथा-४. १४२. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १०९आ-११०अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: जिनकै हिरदै भगवान वसै तिन; अंति: अमृत और पिया न पिया, गाथा-४. १४३. पे. नाम, आध्यात्मिक होरी पद, पृ. ११०अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: आयो सहज वसंत खेले सब होरी; अंति: देखें सझ नैनैं चकोरा, गाथा-४. १४४. पे. नाम. अजितजिन पद, पृ. ११०अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: अजितनाथसं मलावो रे करसौं; अंति: द्यानत० तैसी पदवी पावो रे, गाथा-४. १४५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ११०अ-११०आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: अब हम अमर भए न मरेंगे; अंति: विनु समरै समुरेंगे, गाथा-४. १४६. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ११०आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: भाई ग्यानी सोई कहियै करम; अंति: द्यानत० दौनों वस्ते तौले, गाथा-४. १४७. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ११०आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: भाई कौन धर्म हम चालै एक; अंति: द्यानत ० भाग हमारा आया, गाथा-४. १४८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ११०आ-१११अ, संपूर्ण.. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: हमारो कारज कैसे होई कारण; अंति: द्यानत० आप मैं आप समोई, गाथा-४. १४९. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १११अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: देखो भाई श्रीजिनराज; अंति: द्यानत० नर पशु निज काजै, गाथा-४. १५०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १११अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: देखो भाई आत्मराम विराजै; अंति: द्यानत० जानपनौं सुखदाता, गाथा-४. १५१. पे. नाम, महावीरजिन पद, पृ. १११अ-१११आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: अब मोहे तार ले महावीर; अंति: द्यानत० दूर करै भवपीर, गाथा-४. १५२. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १११आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: जै जै नेमनाथ परमेसर उत्तम; अंति: द्यानत० कहन सकत सरवेश्वर, गाथा-४. १५३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १११आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: आदनाथ तारन तरन नाभिराय; अंति: द्यानत भवितुम पद सरन, गाथा-४. १५४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १११आ-११२अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: सैली जयवंती यह होजो शिव; अंति: द्यानत० शिव सुख पायौ, गाथा-४. १५५. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ११२अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: देख्यो भेख फूल ले निकस्यौ; अंति: द्यानत० सरधा सौं सिरनायौ, गाथा-४. १५६. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ११२अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: भाई आपन पाप कुमाए आए; अंति: द्यानत० ए परनाम न वहीये, गाथा-४. १५७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ११२अ-११२आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: भाई काया तेरी दुख की ढेरी; अंति: द्यानत० सुमरन धार वहा है, गाथा-४. १५८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ११२आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: वंदे तु वंदगी करियादि जिन; अंति: द्यानत० न करिये वकवादि, गाथा-४. १५९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ११२आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-शिक्षा, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: वंदे तु वंदगी न भूल चाहता; अंति: द्यानत० नाम कौं कर कबूल, गाथा-४. १६०. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ११२आ-११३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक पद-चित्त, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: आतम रूप सुहावना कोई जानो; अंति: मौनी के रहे पाई सुखरेखा, गाथा-४. १६१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ११३अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-दुर्लभज्ञान, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: ग्यान का राह दुहेला रे; अंति: गुरु के चेला रे भाई, गाथा-४. १६२. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ११३अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-सुलभज्ञान, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: ग्यान का राह सुहेला रे; अंति: द्यानत० वे परवाह ईकेला रे, गाथा-४. १६३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ११३अ-११३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु तेरी महिमा किहि मुख; अंति: द्यानत० हम देखे सुख पावै, गाथा-४. १६४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ११३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु तेरी महिमा कहिय न; अंति: द्यानत० दोष सबै छिटकाय, गाथा-४. १६५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ११३आ-११४अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: प्रभु तुम समरन ही; अंति: द्यानत० पाप भाग हमारे, गाथा-४. १६६.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ११४अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: असा सुमरण कर रे भाई; अंति: पंच परम गुरु सरन गहीजै, गाथा-४. १६७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ११४अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-कथनीकरनी, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: कहवे कौं मन सूरमां करि; अंति: करनी करै द्यानत सो सुखिया, गाथा-४. १६८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ११४अ-११४आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: श्रीजिन नाम आधार सार भजि; अंति: द्यानत० सुरग मुकति दातार, गाथा-४. १६९. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ११४आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: देख्यौ सखी सम्यकवान सुख; अंति: द्यानत० नाही खेद न जाने, गाथा-४. १७०. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ११४आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: सब जग कु प्यारा चेतन रूप; अंति: और द्यानत निहचै धारा, गाथा-४. १७१. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ११५अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पहिं., पद्य, आदि: ज्यौ ते आत्म हित नही कीना; अंति: द्यानत० मंदर कलस नवीना, गाथा-४. १७२. पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. ११५अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: रिषभदेव जनम्यौ धन घरी; अंति: द्यानत० नाभिरायजी हो लहरी, गाथा-४. १७३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ११५अ-११५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: मनुष जनम सफल भयौ आजि; अंति: द्यानत भक्त गरीब नवाज, गाथा-४. १७४. पे. नाम, महावीरजिन पद, पृ. ११५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: नी चलि वंदिये चलि वंदिये; अंति: द्यानत० सुरग मुकति सुखदाई, गाथा-४. १७५. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ११५आ, संपूर्ण.. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: मेरा मन कहै वैराग राज; अंति: द्यानत० सोई घडी वड भाग, गाथा-४. १७६. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ११५आ-११६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: लागा आतम राम सौं नेहरा; अंति: द्यानत० चाह रहै कछु नाही, गाथा-४. १७७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ११६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: सब कौं एक ही धरम सहाई; अंति: द्यानतदेव० परख गहौ मन लाई, गाथा-४. १७८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ११६अ-११६आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ४३१ जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: तुम कू कैसै सुख द्वै मीत; अंति: द्यानत० पद सुख तन चित, गाथा-४. १७९. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. ११६आ, संपूर्ण. महावीरजिन पद-आध्यात्मिक, जै.क. द्यानतराय, पहिं., पद्य, आदि: वीररी पीर कासौ कहियै; अंति: द्यानत आनंद तव लहियै, गाथा-३. १८०. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ११६आ, संपूर्ण. आदिजिन विवाह पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: आज आनंद कछु कहन बनै; अंति: जाकौं आदीश्वर परनै, गाथा-३. १८१. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ११६आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: माई आज आणंद है या नगरी; अंति: द्यानत० सेवत जाके पगरी, गाथा-२. १८२. पे. नाम. रामसीता पद, पृ. ११६आ-११७अ, संपूर्ण. सीताराम पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: कहै राघो सीता चलहू गेह; अंति: द्यानत० तप लीज्यौ मोह नास, गाथा-३. १८३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ११७अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: कीजै हौ आतम सभार भवकी; अंति: ग्यान पवन मन एक होई, गाथा-४. १८४. पे. नाम. रामसीता पद, पृ. ११७अ, संपूर्ण. सीताराम पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: कहै सीताजी सुन रामचंद्र; अंति: भयौ इंद्र सौ लइ सुरग वास, गाथा-४. १८५. पे. नाम. चक्रवर्तिजिनत्रय पद, पृ. ११७अ, संपूर्ण. चक्रवर्तीजिनत्रय पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: अपनौ जानकै मोह तारलौ; अंति: द्यानत० नाश जनम मृत टेब, गाथा-४. १८६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ११७अ-११७आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: जिन कै भजन मैं मगन रहो; अंति: द्यानत जपै बडे धनवान, गाथा-४. १८७. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ.११७आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: भैया सौ आतम जानौ रे; अंति: रे द्यानत सो चिद्रप, गाथा-४. १८८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. ११७आ, संपूर्ण.. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: सुण सुण चेतन लाडले यह; अंति: अरु भूखे कौं देह हो, गाथा-४. १८९. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ११७आ-११८अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: ए जिनराजजी मोह दुख ते ले; अंति: द्यानत० भव भव दरस दिखाई, गाथा-४. १९०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ११८अ, संपूर्ण.. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: आत्मज्ञान लखै सुख होई; अंति: द्यानत० सहै परीसह जोई, गाथा-४. १९१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ११८अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: मै एक सुगंध ग्याता निरमल; अंति: चिदानंद द्यानत जग तस वंदा, गाथा-४. १९२. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. ११८अ-११८आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-दर्लभज्ञान, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: ग्यान कौ पंथ कठन है सुन; अंति: द्यानत० त्रिभवन मैं धन है, गाथा-४. १९३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ११८आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-सुलभज्ञान, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: सुनी जैनी लोगो ग्यान को; अंति: द्यानत० पास न __ आवै जम है, गाथा-२. १९४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ११८आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: कर कर सतसंग तेरे भाई; अंति: द्यानत० सतसंगत सरधा आई, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १९५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ११८आ-११९अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-भक्ति, जै.क. द्यानतराय, पहिं., पद्य, आदि: जिन नाम भजि भाई रे जा दिन; अंति: द्यानत तज विकथा दुखदाई रे, गाथा-४. १९६. पे. नाम, औपदेशिक पद-गाथा १ से ३, पृ. ११९अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: चेत रे प्राणी तु चेत रे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १९७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, प. ११९अ, संपूर्ण.. श्राव. दीपचंदजी, पुहिं., पद्य, आदि: जिय तोको मुनि मुद्रा हित; अंति: दीपचंद० ये पद अविकारी, गाथा-४. १९८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ११९अ-११९आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: रे भाई संभाल जग जाल मैं; अंति: शिवमोतको कर कै फोत रे, गाथा-४. १९९. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ११९आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: सब सौं छिमा छिमा कर जीव; अंति: द्यानत० ग्यान सरोवर तीर, गाथा-४. २००. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ११९आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: गहू संतोष सदा मन रे; अंति: जागै त्यागै ते धन रे, गाथा-४. २०१. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ११९आ-१२०अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: रे भाई मोह महादुख दीना; अंति: द्यानत० करै सो ग्याता रे, गाथा-४. २०२. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १२०अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पहिं., पद्य, आदि: सोग न कीजे वावरे मरै पीतम: अंति: द्यानत जो विनसैं यह रोग. गाथा-४. २०३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १२०अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-शील, जै.क. द्यानतराय, पहिं., पद्य, आदिः रे वावा सील सदा दिढ राख; अंति: द्यानत० दार दग न दहिये, गाथा-४. २०४. पे. नाम, आध्यात्मिक पद-गाथा १ से ३, पृ. १२०अ-१२०आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीजिनधरम सदा जैवंत तीन; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २०५. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १२०आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: जब वाणी खरी महावीर की; अंति: द्यानत० जैवंती जग होय, गाथा-४. २०६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १२०आ-१२१अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: वे कोई निपट नारी देख्या; अंति: क्यों हो रह्या भिख्यारी, गाथा-४. २०७. पे. नाम, औपदेशिक पद-गाथा १ से ३, पृ. १२१अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: आतम काज समारियै तजि; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २०८. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १२१अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-गुरुज्ञान, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: हो परम गुरु वरसत ज्ञान; अंति: द्यानत० थिरतासु घर करी, गाथा-४. २०९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १२१अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: वीतराग नाम सुमर वीतराग; अंति: द्यानत० भूलै साहिब अभिराम, गाथा-४. २१०. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १२१आ, संपूर्ण. __ आदिजिन पद-जन्मबधाई, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: आज आनंद वधावा जनम्यौं; अंति: जग माता हमैं सुखदाय, गाथा-४. २११. पे. नाम. प्रास्ताविक पद, पृ. १२१आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: जिन कै हिरदै प्रभु नाम; अंति: दान अनेक दिया न दिया, गाथा-४. २१२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १२१आ-१२२अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: मिथ्या ईह संसार है रे; अंति: द्यानत० ध्यान धरै रे भाई, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१३. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. १२२अ संपूर्ण. औपदेशिक पद-पुण्यपाप, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: करुणा जान रे जान रे जान; अंति: द्यानत वहू सुख होहि, गाथा-४. २१४. पे नाम, नेमिजिन पद, पृ. १२२अ संपूर्ण. नेमराजिमती विवाह पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: कहूं दीठा नेमकुमारनी; अंति: द्यानत० देख्यौ नैंन निहार, गाथा-४. २१५. पे नाम, गुरुगुण पद, पू. १२२अ संपूर्ण जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: गुरु समान दाता नही कोई; अंति: राखो गुरु पद पंकज दोई, गाथा-४. २१६. पे. नाम. रामभरत पद, पृ. १२२आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: राम भरतसुं कहे राज भोगवो; अंति: तात वचन पालौ नरनाथ, गाथा-४. २१७. पे नाम, रामभरत पद, प्र. १२२आ, संपूर्ण. जै.क. धानतराय, पु.ि, पद्य, आदि कहै भरतजी सुन हौ राम: अति द्यानत सेवक सुख कर धीर, गाथा- ७. २१८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १२२आ- १२३अ, संपूर्ण. 9 " जै.क. धानतराय, पुहि., पद्म, आदि मेरी वार क्युं ढील करी जी अति चानत० वैराग दशा हमरी जी गाथा ४. २१९. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १२३अ- १२३आ, संपूर्ण. जै.क. धानतराय, पुहिं., पद्य, आदि श्रीजिनदेव न छांड ही सेवो; अंतिः मैं द्यानत भक्त उपाय ही, गाथा-८. २२०. पे नाम, आध्यात्मिक पद, पू. १२३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: मानुष भव पानी दियो जिन; अंति: निपटन जी कहै लख चेतन वाना, गाथा-८. २२१. पे नाम, आध्यात्मिक पद, पू. १२३आ-१२४अ संपूर्ण " जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि अब मैं जान्यी आतमराम सी अंतिः सो कर लिया द्यानतनि दियो, गाधा-८. २२२. पे नाम उपदेश धमाल, पू. १२४अ संपूर्ण. औपदेशिक पद, जै. क. धानतराय, पुहिं, पद्य, आदि: चेतन प्राणी चेतिये हौ अहो; अति आपकों हो चानत कहत पुकार, गाधा-८. २२३. पे नाम, नेमराजिमति पद पू. १२४-१२४आ, संपूर्ण. 9 जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: भज मन प्रभु श्रीनेम कौं; अंति: स्वामी की कीजिये बलिहारी, गाथा-८. २२४. पे नाम, औपदेशिक पद, पू. १२४आ, संपूर्ण, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि प्राणी लाल छांडी मन चपलाई अंतिः धानत० फिर पाछे पिछाइ, गाथा ८. २२५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १२५अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं, पद्य, आदि रे भाई ग्यान विना दुख; अंति: अमर होय तजि काया रे, गाथा ८. २२६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १२५अ - १२५आ, संपूर्ण. जै.क. धानतराय, पुहिं., पद्म, आदि काहे देखी गरवाना रे महि; अति जो चाहे कल्याणा रे, गाथा-८. २२७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १२५आ, संपूर्ण. ४३३ जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: कर मन निज आज आतम चितौन; अंति: द्यानत सौ गहि मनवचकाय, गाथा- ८. २२८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १२५आ-१२६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि जानी पुगल न्यारा रे भाई, अंति द्यानत लहे भव पारा रे भाई, गाथा-४. " २२९. पे नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १२६अ, संपूर्ण जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: रे जिय भजौ आतमदेव जातै; अंतिः समै द्यानत करौ अमृत पान, गाथा-७. २३०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १२६अ - १२६आ, संपूर्ण. जै.क. धानतराय, पुहिं., पद्य, आदि ब्रह्मज्ञान नहीं जाना रे; अंति: धानत अजर अमर पद थाना रे, गाथा-८. २३१. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १२६ आ-१२७अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: साधौ छांडौ विषय विकारी; अंति: द्यानत० विरल इकै जिय आइ, गाथा-८. २३२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १२७अ-१२७आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: कैसै शिव पद सुख होई हम कौ; अंति: द्यानत० काल अनंत गुमायौ, गाथा-८. २३३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १२७आ, संपूर्ण.. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: भजि भजि रे मन आदिजिनंद; अंति: द्यानत लहिये परमानंद, गाथा-४. २३४. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १२७आ, संपूर्ण. __जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: सुणि चेतन इक बात हमारी; अंति: द्यानत० भो दधि पार उरकै, गाथा-८. २३५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १२७आ-१२८अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: जैनराय मोह भरोसो भारी सुर; अंति: द्यानत० वनीसु बात हमारी, गाथा-६. २३६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १२८अ-१२८आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-अभिमान, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: प्रानीय संसार असार है गरव; अंति: जियै द्यानत शिवपुर राव, गाथा-८. २३७. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. १२८आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दानशीलतपभावना, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: जैनधरम धर जीयरा सो च्यार; अंति: लोक मैं यह सरन निहार, गाथा-८. २३८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १२८आ-१२९अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-ज्ञानीलक्षण, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: ग्यानी ऐसो ज्ञान विचारै; अंति: द्यानत० आप तरै पर त्यारै, गाथा-८. २३९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १२९अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद-अलिप्तभावना, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: ग्यानी ऐसो ग्यान विचारै; अंति: द्यानत० करम उपाधि विडारे, गाथा-८. २४०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, प. १२९अ-१२९आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद-ब्रह्म, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: भाई ब्रह्म विराजै कैसा; अंति: चेतन गुरु कृपा तै प्रगटै, गाथा-८. २४१. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १२९आ-१३०अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: कौन कहै घर मेरा भाई जे जे; अंति: द्यानत० आवै सोई तेरे मीते, गाथा-८. २४२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १३०अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-काया, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: काया तुं चले संग हमारे; अंति: द्यानत० भव वन डोलन हारा, गाथा-६. २४३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १३०अ-१३०आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी औपदेशिक सज्झाय-शिक्षा, जै.क. द्यानतराय, पहिं., पद्य, आदि: जीवा ते मेरी सार न जानी; अंति: करियौ द्यानत शिक्षा, गाथा-६. २४४. पे. नाम. २४ जिन पद, पृ. १३०आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: रिषभदेव रिषभदेव सहाई अजित; अंति: चोवीस नाम मनोरथ गाई, गाथा-६. २४५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३०आ-१३१अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: झूठा सुपना इह संसार दीसत; अंति: द्यानत० लगै कछु लेह निकार, गाथा-८. २४६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३१अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: किसही की भगति कियै हित; अंति: द्यानत० कहा कीधो नभ शूल, गाथा-११. २४७. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३१अ-१३१आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: परमेसर की कैसी रीति मोहि; अंति: दर पर न ज्यौ चिद्रूप, गाथा-६. २४८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३१आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: एक ब्रह्म तिहूं लोक मझार; अंति: द्यानत करम कट शिव जाहि, गाथा-६. २४९. पे. नाम. दोष कौतुक पद, पृ. १३१आ, संपूर्ण.. साधारणजिन पद-दोषकौतुक, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: त्रिभवन मैं नामिकर करुना; अंति: द्यानत० सरन तिहारी पामी, गाथा-३. २५०. पे. नाम. नेमराजिमति पद, पृ. १३१आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: सुन री सखी जहाँ नेम गए; अंति: द्यानत० आताप वुझावो री, गाथा-३. २५१. पे. नाम. नेमराजिमति पद, पृ. १३१आ-१३२अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: तजि जुग ए पिय मोहि अनाहक; अंति: द्यानत० चलाय करो रे री, गाथा-५. २५२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद-गाथा १ से २, पृ. १३२अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: हमारे इह दिन यौँ ही गए; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २५३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३२अ, संपूर्ण.. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: द्यानत जे करिहैं करुना; अंति: द्यानत० भवन डोलन हारा, गाथा-४. २५४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १३२अ-१३२आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी औपदेशिक सज्झाय-शिक्षा, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: जीवा ते मेरी सार न जानी; अंति: करियौ द्यानत शिक्षा, गाथा-६. २५५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३२आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: मैंनू भावे जी प्रभु चेतन; अंति: द्यानत० पुद्गलसौं कछु हेत, गाथा-२. २५६. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १३२आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: मैं वंदा स्वामी तेरा भव; अंति: द्यानत० दीजै शिवपुर डेरा, गाथा-३. २५७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३२आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: त्यागी त्यागो चेत जी; अंति: तातै भाजै जेहै हाल, गाथा-३. २५८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३२आ-१३३अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: मानौ मानौ जी चेतन एह विषै; अंति: ज्ञानदिष्ट धर देख चंतिय, गाथा-४. २५९. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३३अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: दुरगति गमन निवारियौ घरि; अंति: द्यानत० जिह मग चलत है सार, गाथा-३. २६०. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १३३अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: स्वामी नाभिकुमार हम क्यौ; अंति: द्यानत० अब सरन हमार, गाथा-३. २६१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३३अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन मान असाडी वतिया यह; अंति: द्यानत० करुणा आनो छतिया, गाथा-२. २६२. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३३अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: कब हो मुनवर को व्रतधर हो; अंति: द्यानत० दधि पार उतार हो, गाथा-२. २६३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३३अ-१३३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आतम अनुभव सार हौ अब जीय; अंति: द्यानत अमर होहि भव पार हौ, गाथा-२. २६४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: सोहं सोहं ध्याय हो प्राणी; अंति: द्यानत० त्रिभुवन राय हौ, गाथा-२. २६५. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: चेतन तुम चेतौ भाई ऐसो नर; अंति: द्यानत तीन्यौ जग के नायकै, गाथा-२. २६६. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १३३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: नेमजी तुम केवलज्ञानी ताही; अंति: द्यानत० वरन जग मैं आउं, गाथा-२. २६७. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: चेतन जी तुम जोरत हो धन; अंति: द्यानत कह्यौ कहत पुकार, गाथा-३. २६८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्राणी तुम तो आप सुजाण हौ; अंति: द्यानत० लहौ शिवथान हौ, गाथा-३. २६९. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३३आ-१३४अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आप मै आप लगा जीसु होतो; अंति: द्यानत० जड सेति पगा जीस, गाथा-३. २७०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३४अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीतराग ए दिन नीकै हमकौं; अंति: द्यानत० रस लागत फीकै, गाथा-३. २७१. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३४अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: कौन काम मैंने कीने अब; अंति: द्यानत० मुकति पद सार हौ, गाथा-२. २७२. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३४अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: एरे मन गाय लै श्रीजिनराय; अंति: और न दूजा द्यानत मन वचकाय, गाथा-२. २७३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३४आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: देखो जिनराज आज राज रिद्धि; अंति: द्यानत० सुर शिव सुखदाई, गाथा-३. २७४. पे. नाम, आध्यात्मिक पद-गाथा १, पृ. १३४आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आतम को पहचाना है हम आतम; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २७५. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३४आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: साधजीने वानी तनक सुहाई; अंति: द्यानत० श्रावग पदवी पाई, गाथा-३. २७६. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३४आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: वै प्राणी संज्ञा निज न; अंति: द्यानत० दीवट एक वखाणी, गाथा-३. २७७. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३४आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: लाग रह्यौ मन चेतनसं जी; अंति: द्यानत० कवन भवनसौं जी, गाथा-३. २७८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३४आ, संपूर्ण. श्राव. हेमराज, पुहिं., पद्य, आदि: ए री मेरो मरम न जान्यौं; अंति: हेमराज० पद ज्यौं स्यानौ, गाथा-३. २७९. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १३४आ-१३५अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: हम आए हौ जिनभूप तेरे दरसन; अंति: द्यानत० रूप आनंद वरसन को, गाथा-३. २८०. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३५अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ४३७ श्राव. हेमराज, पुहिं., पद्य, आदि: अरे भईया पिछानौ दीठ समकत; अंति: हेमराज० जब अनुभव रस सानौ, गाथा-५. २८१. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १३५अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: तुम तार करुणा धरु स्वामी; अंति: द्यानत० सकल भव भय भंजनौ, गाथा-४. २८२. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३५अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जिनवाणी जान ले रे छह दरव; अंति: द्यानत० अक्षर मान ले रे, गाथा-३. २८३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३५अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ए दिन आछै लहै जी लहै जी; अंति: द्यानत० भाव गहै जी गहै जी, गाथा-२. २८४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १३५अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: इक अरज सुणौ साहिब मेरी; अंति: द्यानत० कछु खातर तेरी, गाथा-३. २८५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १३५अ-१३५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जिन साहिब मेरे हो निवाजि; अंति: द्यानत० छिमा जल रास कौ, गाथा-३. २८६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: चेतन मानले बात हमारी; अंति: द्यानत० सोहं जपि सुखकारी, गाथा-२. २८७. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: निज तस करौ गुन रतन न कौ; अंति: द्यानत० सुख पावै साह अमर, गाथा-४. २८८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आतम जान मैं जाना ग्यान; अंति: द्यानत० सब सुख विलसै भूप, गाथा-४. २८९. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन पद, पृ. १३५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: सांचे चंद प्रभु सुखदाया; अंति: द्यानत० नाम जपो मन लाया, गाथा-२. २९०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३५आ-१३६अ, संपूर्ण. __ औपदेशिक पद-दान, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: दीयै दान महासुख होवै धरम; अंति: तिन को दान सरब दुख खोवै, गाथा-२. २९१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ए मन ए मन कीजियै भज प्रभु; अंति: द्यानत० गावै उठि प्रात हौ, गाथा-२. २९२. पे. नाम. देवसाधु भक्ति पद, पृ. १३६अ, संपूर्ण. जै.क.द्यानतराय, पहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: सोहा देवे साधु धुतैडी; अंति: द्यानत० सुख दिनरातडिया, गाथा-३. २९३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ते चेतन करुणा न करी रे; अंति: द्यानत० आदि अंत करी रे, गाथा-३. २९४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३६अ, संपूर्ण. __श्राव. खुस्यालचंद, पुहि., पद्य, आदि: चिन मूरत चेतन प्यारा मैं; अंति: खुस्याल० सरधा नैन उजार है, गाथा-३. २९५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३६अ-१३६आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: तेरो संजम विन रे नरभव; अंति: द्यानत० राजविषै जिनराय, गाथा-३. २९६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १३६आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: जिनराय कौ पाय सदा सरन; अंति: द्यानत० लागत भागत मरन, गाथा-२. २९७. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १३६आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परमारथ पंथ सदा पकरो रे; अंति: द्यानत सुधा रस पान करो रे, गाथा-२. २९८. पे. नाम. हस्तिनापुरतीर्थ पद, पृ. १३६आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: हथनापुर वंदन जाइ पई; अंति: द्यानत० गुनलौ लहियै हौ, गाथा-२. २९९. पे. नाम. नेमिजिन पद, प. १३६आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुरनर सुखदाई गिरनारि चलौ; अंति: फलदाता द्यानत सीख बताई, गाथा-२. ३००.पे. नाम. मुनिध्यान पद, पृ. १३६आ, संपूर्ण.. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: भाई धनि मुनि ध्यान लगाय; अंति: द्यानत रहै है निज काजै, गाथा-२. ३०१. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३६आ-१३७अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: निरविकलप जोति प्रकाश रही; अंति: द्यानत० जोरे साधु लही, गाथा-२. ३०२. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३७अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: अनहद शबद सदा सुन रे; अंति: द्यानत० नांहि करम धुनि रे, गाथा-२. ३०३. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १३७अ, संपूर्ण. ___ जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरिनारि पै नेम विराजत है; अंति: द्यानत० बहुत उपराजत है, गाथा-२. ३०४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३७अ, संपूर्ण, जै.क. मानसिंह, पुहिं., पद्य, आदि: मैं तो आपको आप जाना त्याग; अंति: जपत सेवक सेवदह एकमना, गाथा-२. ३०५. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३७अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जानौ धनसौ धनसौ धीर वीर; अंति: द्यानत० संत भव उदिधि तीर, गाथा-३. ३०६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३७अ-१३७आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जिन जपि जिन जप जीवरा; अंति: द्यानत० भक्ति नीर सीयरा, गाथा-३. ३०७. पे. नाम. महावीरजिन पद, प. १३७आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: महावीर महावीर जीवा जीव; अंति: द्यानत भजन० दोष न रहै, गाथा-४. ३०८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३७आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ग्यान गेय मांहि नांहि गेय; अंति: द्यानत जब आप अप रट है, गाथा-४. ३०९. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३७आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: चाहत है सुखपै न गाहत है; अंति: द्यानत० की चतुराई वतिया, गाथा-४. ३१०. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १३७आ-१३८अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: देख्यौ नाभिनंदन जगत वंदन; अंति: द्यानत० आन पायन परत, गाथा-४. ३११. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३८अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-मोह, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: पिया वैराग लेत है किसमिस; अंति: द्यानत० सो विधि मोहि बताय, गाथा-२. ३१२. पे. नाम. नेमराजिमति पद, पृ. १३८अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: पिया वैराग लेत है किसमिस; अंति: द्यानत० कृपा करे निज ठाउ, गाथा-३. ३१३. पे. नाम, नेमराजिमति पद, पृ. १३८अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: नेम गए किह ठाउं दिल मैं; अंति: द्यानत रहौ प्रभु पाउनिमां, गाथा-३. ३१४. पे. नाम. नेमराजिमति पद, पृ. १३८अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेमराजमति विवाह पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्म, वि. १८वी, आदि ए री सखी नेमजी की मोह, अंति द्यानत० प्रानही साथ दिखावी, गाथा- ३. ३१५. पे. नाम नेमराजिमति पद पू. १३८अ १३८आ, संपूर्ण जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मूरत पर वारी रै नेमजिनंद, अंति: द्यानत० ग्यानसुधारस इंद्र, गाथा- ३. ३१६. पे नाम नेमराजिमति पद, पृ. १३८आ, संपूर्ण. जै.क., द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि अब मोहि तार ले तरि लै नेम; अति द्यानत करी जग तेहू निकार, गाथा - ३. ३१७. पे नाम, नेमिजिन पद, पू. १३८आ, संपूर्ण. जै.. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: अब मोहि तार० चहू गति; अंति: द्यानत० भव ग्रीषम तप हार, गाथा-२. ३१८. पे. नाम. नेमिजिन आरती, पृ. १३८आ, संपूर्ण. जै.क., धानतराय, पुर्हि, पद्य, वि. १८वी, आदि नेम मोह आरती तेरी हो; अंति द्यानत० विनती मेरी हौ, गाथा-२. ३१९. पे नाम पार्श्वजिन पद, पृ. १३८आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: मोह तार लै पारसस्वामी; अति कर द्यानत शिवगामी, गाथा-२. ३२०. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १३८आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-दान, जै.क. धानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि दीये दान महासुख पावे, अंति द्यानत० विधि कबहू न आवै, गाथा २. ४३९ ३२१. पे नाम औपदेशिक पद, पू. १३८आ-१३९अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: एरे मेरे मीत चित कहा अब; अंति: खवरदार किन होवै रे, गाथा- ३. ३२२. पे. नाम. नेमराजिमति पद, पृ. १३९अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: पिया रे नेमसुं प्रेम किया; अंति: द्यानत० कोटिक दान दिया रे, गाथा-३. ३२३. पे नाम. साधारणजिन पद, पृ. १३९अ, संपूर्ण जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: मोहि तारौ जिनसाहिब जी अति चानत० तुम और न तारणहारी, गाथा - ३. ३२४. पे नाम. साधारणजिन पद, पू. १३९अ, संपूर्ण. जै.. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८बी, आदि दास तिहारी हूं मोहि तारी; अंति: धानत ० तुम विन कौन उपाय, गाथा-३३२५. पे. नाम गौतमस्वामी पद, पृ. १३९अ संपूर्ण जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि गौतमस्वामीजी मोह वाणी तनक; अति द्यानत० वाणी सफल सुहाई, गाथा - ३. ३२६. पे. नाम महावीरजिन पद, पू. १३९अ, संपूर्ण. महावीरजिन पद-पावापुरी, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: देखे धन धन आज पावापुर; अंति: ध्यावै मिट जावै भव भीर, गाथा - २. ३२७. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १३९अ १३९आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-काशीमंडन, श्राव. मोतीराम, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: धन धन काशी थानक पारसनाथ; अंतिः मोतीराम ० को दरसन हो है, गाथा- ३. ३२८. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १३९आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-वाराणसी, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: चल पूजा कीजै बनारस मैं; अंति: द्यान वंदे प्रभु के पाई, गाथा ३. ३२९. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पृ. १३९आ, संपूर्ण. जै.. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि समेदशिखर चल रे जियरा बीस अंति सो पावै सुख अति सियरा गाथा ४. ३३०. पे नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पू. १३९आ, संपूर्ण, For Private and Personal Use Only Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्राव. सुखानंद साह, पुहिं., पद्य, आदि: समेदशिखर मोह भावै है देव; अंति: साह सुखानंद गावै है, गाथा-३. ३३१. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, प. १३९आ-१४०अ, संपूर्ण. श्राव. मोतीराम, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: शिखरसमेद निहारा धन भाग; अंति: मोतीराम० अपना जनम सुधारा, गाथा-४. ३३२. पे. नाम. सुदर्शनश्रेष्ठी पद-गाथा १, पृ. १४०अ, संपूर्ण. सुदर्शनश्रेष्ठी पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: सेठ सुदरसण तारनहारा तीन; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३३३. पे. नाम. दीपावली पद, पृ. १४०अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: पावापुर प्रभु वंदौ जाय; अंति: द्यानत अद्भुत पुन्य उपाइ, गाथा-३. ३३४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १४०अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जिनवर मूरति तेरी सोभा कही; अंति: द्यानत० मन वचकाई लगाई, गाथा-३. ३३५. पे. नाम. मल्लिजिन पद, पृ. १४०अ, संपूर्ण. श्राव. सुखानंद साह, पुहिं., पद्य, आदि: तार ले मल्यमुनीस अब मोहि; अंति: पायौ ग्यान सुखानंद ईस, गाथा-३. ३३६. पे. नाम, आदिजिन पद, पृ. १४०अ, संपूर्ण. श्राव. गोकलचंद, पुहिं., पद्य, आदि: अब मोहि तारि ले आदिजिनेस; अंति: प्रगट कर गोकलचंद दिनेश, गाथा-३. ३३७. पे. नाम. शीतलजिन पद, पृ. १४०अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: तार ले मोहि शीतलस्वामी; अंति: वंदत पाय भए शिवगामी, गाथा-३. ३३८. पे. नाम. कलियुग पद-जिनचैत्य, पृ. १४०अ-१४०आ, संपूर्ण. श्राव. चूहडमल, पुहिं., पद्य, आदि: पंचकाल विषै ए श्रावकधर्म; अंति: चूहडमल० इविध काल गमावै, गाथा-३. ३३९. पे. नाम, जिनवाणी पद, पृ. १४०आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: तारन को जिनवाणी मिथ्या; अंति: द्यानत परम साधन मानी, गाथा-३. ३४०. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १४०आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: करुणा करनदेवा एक जनम दख; अंति: द्यानत० भूलोंगा नही सेवा, गाथा-२. ३४१. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १४०आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रभु मैं तुम चरण सरन; अंति: द्यानत० जनम मरन निवार, गाथा-३. ३४२. पे. नाम, सीताराम पद, पृ. १४०आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ए रे वैरागी रामजी सुं; अंति: द्यानत० मंत्र जपौ अवदात, गाथा-२. ३४३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १४०आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: तुम अधम उधारनहार हो; अंति: द्यानत० चरण सरन आधार हौ, गाथा-२. ३४४. पे. नाम. साधारणजिन पद-गाथा १ से २, पृ. १४०आ-१४१अ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: कोडि पुरुष कनक तन कीने; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३४५. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. १४१अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अब मोहि तारि ले शांति; अंति: द्यानत० जाको नाम मकरिंद, गाथा-२. ३४६. पे. नाम, वासुपूज्यजिन पद, पृ. १४१अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: सरन मोह वासपूज्य जिनवर की; अंति: द्यानत० बंधहरन शिवकर की, गाथा-२. ३४७. पे. नाम. साधारणजिन पद-गाथा १, पृ. १४१अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं. पद्य वि. १८वी, आदि: प्रभु तुम नैन निगोचर अंति: (-), प्रतिपूर्ण ३४८. पे. नाम. कुंथुजिन पद, पृ. १४१अ, संपूर्ण. जै.. धानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अब मोहि तारि ले कुंधजिनेस, अंतिः द्यानत० मुकतिवधु परमेस, " गाथा - ३. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४९. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १४१अ, संपूर्ण. जै.क. धानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि जाकौ इंद्र अहमिंद भजत चंद, अति आदिनाथ देव द्यानत रखवाल, गाथा-४. ३५०. पे नाम आध्यात्मिक पद, पू. १४९अ संपूर्ण. जै.. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, बि. १८वी, आदि ग्याता सोई सचा वै जिन आतम; अंतिः द्यानत० कहे सदवचाजी, गाथा - ३. ३५९. पे नाम औपदेशिक पद पृ. १४१-१४१ आ. संपूर्ण. जै.. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, बि. १८वी, आदि जग छग मित्र न कोई वैज, अंति द्यानत० साधरमी लोवचो जग, " गाथा-४. ४४१ ३५२. पे नाम औपदेशिक पद, पू. १४१आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-वैराग्य, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: संसार मैं साता नांही वै; अंति: द्यनत० ते सुखदाई वे, गाथा-२. ३५३. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १४१आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरी मेरी करता जनम सब; अंति: विषत्यागी कै जग जीता, गाथा-३. ३५४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १४१आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-साधुसंगत, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: यारी कीयै साधो नाल पारी; अंति: जगावै द्यानत दीनदयाल, गाथा- ३. ३५५. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १४९आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: वै परमादी तै आतम राम न; अंति: द्यानत० पावै समता स्वादी, गाथा - ३. ३५६. पे. नाम साधारणजिन पद, पृ. १४९आ, संपूर्ण. जै.. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, बि. १८वी, आदि भोर उठि तेरो मुख देखो जिन अंति द्यानत० एक हमारी सहेवा, " गाथा-३. י ३५७. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १४१-१४२अ, संपूर्ण. जै. क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: रे नर बिपत्ति मैं धर धीर; अंति: द्यानत० तोर करम जंजीर, गाथा - ३. ३५८. पे. नाम आध्यात्मिक पद, पृ. १४२अ संपूर्ण जै.क. धानतराय, पुहि पद्य वि. १८वी, आदि जिनपद चाहै नांहि कोय; अति द्यानत आप आप समोय, गाथा- ३. " ३५९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १४२अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि लागा आतम रामसी नेला, अंति: धानतः वरसे अनंद मेहरा, गाथा-३. ३६०. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १४२अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अब मोहि तार ले अरु भगवान; अंति: हित कारण द्यानत मेघ समान, गाथा-३. For Private and Personal Use Only ३६१. पे. नाम. जंबुस्वामी पद, पृ. १४२अ, संपूर्ण. जै.क. धानतराय, पुडि., पद्य, वि. १८वी, आदि अरि अरि भज जंबुस्वामी; अति द्यानत० पाकहर पानी रे गाथा-२. ३६२. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १४२अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: भज रे मनवा प्रभु पारस कौं; अंति: चाहै पावै ता रसकौं, गाथा-३. ३६३. पे नाम साधारणजिन पद-गाथा १ से २. पू. १४२-१४२आ, संपूर्ण. Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: भजौ जी भजौ जिन चरण; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३६४. पे. नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. १४२आ, संपूर्ण.. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: लगन मोरी पारसनाथ सौं लागी; अंति: द्यानत० प्रेम भगत मतियागी, गाथा-३. ३६५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १४२आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: कहियै जौ कहिवे की होय; अंति: पुद्गल रूप नही पद सोय, गाथा-२. ३६६. पे. नाम, मुनिगुण पद, पृ. १४२आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: वे साधो गुन गाइ कर करुणा; अंति: द्यानत० मेघ झरी बतलाइ, गाथा-३. ३६७. पे. नाम. भरतचक्रवर्ति पद, पृ. १४२आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आरसी देखत मन आरसी लागी; अंति: द्यानत केवलग्यान० घट जागी, गाथा-३. ३६८. पे. नाम. भरतचक्रवर्ति पद, पृ. १४२आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: कहा री कहूं कछु कहत न आवै; अंति: पैहो चरण की रजरी, गाथा-३. ३६९. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १४२आ-१४३अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: हो श्रीजिनराय नीति राजा; अंति: देश निकारौ हौ जिनराय, गाथा-३. ३७०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १४३अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अब समझ कही अब कौन कौन; अंति: द्यानत० धरौ तरौ सबही, गाथा-३. ३७१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १४३अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: करम रेखा पै मेख मारौ; अंति: बंधन द्यानत निहारै, गाथा-४. ३७२. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १४३अ-१४३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: तुम देवनिके देव हो; अंति: करुणा भावसौं कीजै आप समान, गाथा-१२. ३७३. पे. नाम. जिनभावनाष्टक, पृ. १४३आ-१४४आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगत उदास आपको प्रकाश संग; अंति: क्यौं न लहै सुखभूर, सवैया-८. ३७४. पे. नाम. चैत्यालय जयमाल, पृ. १४४आ-१४५अ, संपूर्ण. शाश्वताशाश्वतजिनचैत्य जयमाल, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: चैत्यालय प्रतिमा सवै वंदे; अंति: द्यानत० वंदौ होय अचरज कहा, चौपाई-१५. ३७५. पे. नाम, सजनगुन दशक, पृ. १४५आ-१४६अ, संपूर्ण. नदर्जनगण दशक सवैया, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: तरु की कलम सिद्ध स्याही; अंति: द्यानत० लखै होत पार है, गाथा-११, (वि. प्रतिलेखक द्वारा भूल से २० विहरमानजिन का पाठ कृति के आठवी गाथा के मध्य में लिखा गया है.) ३७६. पे. नाम, वर्तमानबीसी दशक कवित्त छंद, पृ. १४७आ, संपूर्ण. २०विहरमान दशक कवित्त, जै.क. द्यानतराय, पहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: सीमंधर प्रथम जिनसाहब अंत; अंति: द्यानत० सम्यक निरमल सोय, सवैया-१०, (वि. पेटांक नं. ३७३ में स्थित कृति की गाथा-८ के मध्य भाग में प्रस्तुत कृति का अंतिम अंश लिखा गया है.) ३७७. पे. नाम. ज्ञानवर्णनसिद्ध आरती, पृ. १४७आ-१४८अ, संपूर्ण. ज्ञानावरणीय सिद्ध आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: मूरत ऊपर पट पर्यो रूप; अंति: द्यानत० नमौ सिद्ध गुनखान, चौपाई-६. ३७८. पे. नाम. दरसनावरनीनामसिद्ध आरती, पृ. १४८अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ४४३ दर्शनावरणीय सिद्ध आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: जैसै भूपत दरस को होन न; अंति: मन धरै सम्यक् निरमल होई, गाथा-४. ३७९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १४८आ-१४९अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: चेतन नागर हौ अहो तुम चेतन; अंति: द्यानत बहुरि न जग मैं ऐहै, चौपाई-६. ३८०. पे. नाम. सिद्धचक्र पूजा, पृ. १४९अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परमब्रह्म परमातमा परमजोति; अंति: द्यानत० अमल अचल चिद्रूप, गाथा-३. ३८१. पे. नाम. वेदनीयकर्मनाश सिद्ध आरती, पृ. १४९अ-१४९आ, संपूर्ण. वेदनीयकर्मनिवारण सिद्ध आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: सहत मली असि धार सुख दुख; अंति: द्यानत निरवाधा करौ, गाथा-८. ३८२. पे. नाम. मोहकरमनाश सिद्ध आरती, पृ. १४९आ, संपूर्ण. मोहकर्मनिवारण सिद्ध आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जैसे मदरापन ते सुध बुध; अंति: सदा द्यानत नमो प्रधान, गाथा-८. ३८३. पे. नाम, आठकर्मनासिसिद्ध आरती, पृ. १४९आ-१५०अ, संपूर्ण. ८ कर्मनिवारण सिद्ध आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जैसै नर को पाव दियौ काठ; अंति: अवगाहना नमो सिद्ध सुखदान, चौपाई-८. ३८४. पे. नाम. नामकर्मनाशसिद्ध आरती, पृ. १५०अ-१५०आ, संपूर्ण. नामकर्मनिवारण सिद्ध आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: चित्रकार जैसै लिखै नाना; अंति: प्रकृति हरी सिध अमरतलीन, चौपाई-१३. ३८५. पे. नाम. गोतकर्मनाशसिद्ध आरती, पृ. १५०आ-१५१अ, संपूर्ण. गोत्रकर्मनिवारण सिद्ध आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ज्यु कुभार छोटे बड़े; अंति: सिद्ध शुद्ध वंदौ सदा, चौपाई-५. ३८६. पे. नाम. अंतरायकर्मनाशसिद्ध आरती, पृ. १५१अ, संपूर्ण. अंतरायकर्मनिवारण सिद्ध आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: भूपद लावै दरव को भंडी न; अंति: द्यानत ज्यौं पावउ बहु अंत, चौपाई-७. ३८७. पे. नाम, सिद्धआठगुण आरती, पृ. १५१अ-१५१आ, संपूर्ण. ८ सिद्धगुण आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आठ को नाश आठौं गुण परगट; अंति: सरधान द्यानत सेवै ते बडे, चौपाई-९. ३८८. पे. नाम. अध्यात्मपंचाशिका, पृ. १५१आ-१५३अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आठ करम के बंध मैं बंधे; अंति: द्यानत० सब संसार असार, गाथा-५०. ३८९. पे. नाम. अक्षरबावनी, पृ. १५३आ-१५४आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: ॐकार सब अछर कौ सब मंत्र; अंति: द्यानत० जगतै आप निकारौ जी, गाथा-३०, (वि. गाथाक्रम में वैविध्य है.) ३९०. पे. नाम. नेमनाथस्वामी बहत्तरी, पृ. १५४आ-१५७आ, संपूर्ण. नेमिजिन बहोत्तरी, जै.क.द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: वंदो नेमजिणंदचंद; अंति: चिंता व्यापे नाहि हौ, गाथा-६९. ३९१. पे. नाम. वज्रदंत चौपाई, पृ. १५७आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: वठौ वज्रदंत भूपाल माली; अंति: साठ सहस रानी संग धार, गाथा-८. ३९२. पे. नाम, आतम गीता, पृ. १५७आ-१५८अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आत्मगीता, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: आतम महि बूब पार देख्या; अंति: विकार टार आप देख, गाथा-७. ३९३. पे. नाम. देवगुरुशास्त्र की आरती, पृ. १५८अ, संपूर्ण. देवगुरुशास्त्र आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: देव शास्त्र गुर रतन सुभ; अंति: सरधावान अजर अमर सूख भोगवै, गाथा-८. ३९४. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति-८ छंदगणगर्भित, पृ. १५८अ-१५८आ, संपूर्ण.. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: वरधमान सन्मति महावीर आतम; अंति: भेद कहांलौ कहि सकै, गाथा-११. ३९५. पे. नाम. धर्मचाह गीत, पृ. १५८आ-१५९आ, संपूर्ण. आराधना पाठ, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: मैं देव निति अरहंत चाहौं; अंति: द्यानत० चरण की दीजिये, गाथा-८, (वि. गाथाक्रम भिन्न है.) ३९६. पे. नाम, पल्लपचीसी, पृ. १५९आ-१६१अ, संपूर्ण. पल्लपच्चीसी, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: कलप अनंतानंतलौ रूल्यौ जीव; अंति: द्यानत० लीज्यौ संत सुधार, गाथा-२५. ३९७. पे. नाम. षटगुणीहानिवृद्धि दोहा, पृ. १६१अ-१६३अ, संपूर्ण. ६गुण वृद्धिहानि दोहे, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: संख असंख अनंतगुण भाग; अंति: कथन सब कथन निमै सिरदार, गाथा-२०. ३९८. पे. नाम. आदिनाथजी की स्तुति, पृ. १६३अ-१६४अ, संपूर्ण. आदिजिन रेखता, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: तुम आदिनाथ स्वामी; अंति: द्यानत को याद कीजै, गाथा-३६. ३९९. पे. नाम. शिक्षापंचाशिका, पृ. १६४अ-१६५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: राग विरोध विमोह सब भमै; अंति: द्यानत० सब जन कौं सुखदाय, गाथा-५०. ४००. पे. नाम. सुपार्श्वजिन पद, पृ. १६५आ, संपूर्ण. मु. द्यानत, पुहि., पद्य, आदि: प्रभुजी प्रभु सुपास; अंति: देव हो द्यानत को सुखकार, गाथा-४. ४०१. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी पद, पृ. १६५आ-१६६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: नगर मे होरी हो रही; अंति: जिनस्वामी तुम० सिक्षा दौ, गाथा-३. ४०२. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी पद, पृ. १६६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पहिं., पद्य, आदि: खेलौ गावोरी आए चेतनराय; अंति: द्यानत० सखी भई बहु भाई, गाथा-४. ४०३. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी पद, पृ. १६६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: पिय विन कैसे खेलो होरी; अंति: द्यानत० सुमति कहै कर जोडी, गाथा-३. ४०४. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी पद, पृ. १६६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: भली भइ यह होरी आइ आए; अंति: पायौ सो वरन्यो नहि जाई, गाथा-४. ४०५. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी पद, पृ. १६६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: होरी आई आजि रंग भरी; अंति: द्यानत० प्रभु दया करी हैं, गाथा-४. ४०६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १६६अ, संपूर्ण.. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: दरसन तेरा मैन भावै तुम; अंति: देखै ही वनि आवै, गाथा-४. ४०७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १६६अ-१६६आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: री मेरे घट ग्यान घना; अंति: द्यानत० पावस मोहि भयो री, गाथा-४. ४०८. पे. नाम. साधारणजिन पद, प. १६६आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पहिं., पद्य, आदि: हो स्वामी जगति जलधि; अंति: भाखै त ही तारन हारौ, गाथा-४. ४०९. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १६६आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: पायो जी सुख आतम लखि कै; अंति: द्यानत० सुधारस चख के, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ४४५ ४१०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १६६आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पहिं., पद्य, आदि: तेरी भगति विना धग; अंति: द्यानत० मंदर की नीव वना, गाथा-३. ४११. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १६६आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: कर्म निकौ पेले ग्यान दशा; अंति: साहिब द्यानत अंतर झेलै, गाथा-२. ४१२. पे. नाम, जिनपूजागुण गीत, पृ. १६६आ, संपूर्ण. मु. इंद्रजीत, पुहिं., पद्य, आदि: जिनवर पूजी लो मेरे मीतजि; अंति: इंद्रजीत० पावै दिढ परतीति, गाथा-२. ४१३. पे. नाम. शीतलजिन पद, पृ. १६६आ-१६७अ, संपूर्ण. म.शीतल, पहिं., पद्य, आदि: मन मेरे दोष भाव; अंति: सीतल भाव सीतलधार, गाथा-४. ४१४. पे. नाम, पार्श्वजिन पद, पृ. १६७अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: कामसर सव मेरे देखे; अंति: स्वामी द्यानत मंगल ठाम, गाथा-२. ४१५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १६७अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: अब मै जाना मैं जाना; अंति: नाख्यौ विष दुख ठांम, गाथा-४. ४१६. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १६७अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: तेरे मोह नही तेरे; अंति: करत है हम हू सेवक ही, गाथा-४. ४१७. पे. नाम. औपदेशिक पद-जिनभक्ति, पृ. १६७अ-१६७आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: कर मन वीतरागको ध्यान कर; अंति: पह रहियै सुखदान, गाथा-५. ४१८. पे. नाम. २४ जिनभक्ति पद, पृ. १६७आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: चौवीसौं कौं वंदना हमारी; अंति: द्यानत० देखि भए सम्यकधारी, चौपाई-२. ४१९. पे. नाम. अभिनंदनजिन पद, पृ. १६७आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: सेउं स्वामी अभिनंदन को ले; अंति: द्यानत जीते भौफंदनिकौ, गाथा-३. ४२०. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १६७आ, संपूर्ण. श्राव. हेमराज, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऐसे प्रभु ध्याउं दुरगति; अंति: हेमराज० मांगे शिव पाऊं, गाथा-५. ४२१. पे. नाम. भरतचक्रवर्ति पद, पृ. १६७आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: एक समै भरतेश्वर स्वामी; अंति: द्यानत पायौ ग्यान तुरत, गाथा-३. ४२२. पे. नाम. कसमीरी भाषा पद, पृ. १६७आ, संपूर्ण. ___औपदेशिक पद, अ.भा., पद्य, आदि: बूंद पैंच वुझ बाबु दपै; अंति: पानी वथ सुझ वन, गाथा-१. ४२३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १६७आ, संपूर्ण.. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: तू ही मेरा साहिब सच्चा; अंति: द्यानत० लेह छुडाय गुसांई, गाथा-२. ४२४. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १६७आ-१६८अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: सच्चा सांई तु ही मेरा; अंति: द्यानत० को लेहं निकाल, गाथा-३. ४२५. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १६८अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पहिं., पद्य, आदि: इस जीव को इस जीव को; अंति: द्यानत० सोह सिख सिखाउरी, गाथा-३. ४२६. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १६८अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-प्रमाद, श्राव. गोकलचंद, पुहि., पद्य, आदि: क्यौं रहिये परमाद दशा मैं; अंति: गोकलचंद सुशांत रसा मैं, गाथा-४. ४२७. पे. नाम, औपदेशिक पद-गाथा १ से ३, पृ. १६८अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मैं न जान्यौ री जीव ऐसी; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ४२८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १६८अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: तुम चेतन हो जिन विषयन संग; अंति: द्यानत० परसौ हेत न हो, गाथा-४. ४२९. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १६८अ, संपूर्ण. नेमराजिमति पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: ते कहूं देखे देखे नेम; अंति: द्यानत० धन्नि दिवस धनिवार, गाथा-४. ४३०. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १६८अ-१६८आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद-आत्मनिंदा, जै.क. द्यानतराय, पहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: कौन काम मैने कीनो अब लीनो; अंति: द्यानत० जोति प्रकाश हौ, गाथा-४. ४३१. पे. नाम. नेमराजिमति होरी पद, पृ. १६८आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पहिं., पद्य, आदि: नेमीश्वर खेलन चले रंग हो; अंति: बनाय रंग हो हो होरी, गाथा-४. ४३२. पे. नाम. नेमराजिमति होरी पद, पृ. १६८आ, संपूर्ण.. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ग्यान गुलाल सुहावना रंग; अंति: द्यानत० रंग हो हो होरी, गाथा-६. ४३३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १६८आ, संपूर्ण.. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: सोई ग्यान सुधारस पीवै; अंति: द्यानत० चेतन जोति निहारी, गाथा-६. ४३४. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १६८आ-१६९अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: हो आतम अनुभौ कीजिये यह; अंति: द्यानत० मुकति मझार हौ, गाथा-८. ४३५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १६९अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जानौ पूरा ग्याता सौई रागी; अंति: द्यानत० ताही सौं लौ लाई, गाथा-४. ४३६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १६९अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रभु जी का मोह फिकर अपार; अंति: है ज्यौं बने त्यौं त्यार, गाथा-४. ४३७. पे. नाम, बाणी संख्या दोहा, पृ. १६९अ-१७३अ, संपूर्ण. जिनवाणीसंख्या दोहा, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: वंदौ वाणी बरन युग बरग; अंति: द्यानत० घट पट धोखा नाहि, दोहा-११२. ४३८. पे. नाम. आचार्य आरती-३६ गणगर्भित, पृ. १७३अ-१७३आ, संपूर्ण. आचार्यपद आरती-३६ गुणगर्भित, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: पंचाचार छत्तीस गुन सात; अंति: द्यानत० मोह धूर जर जाय, गाथा-११. ४३९. पे. नाम. उपाध्याय आरती-२५ गुणगर्भित, पृ. १७३आ-१७४अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: ग्यारै अंग वखान चौदे पूरव; अंति: द्यानत० ग्यान भ्रम नाही, गाथा-२०. ४४०. पे. नाम. विरागछत्तीसी, पृ. १७४अ-१७५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अजितनाथ पद वंदि कै कहुं; अंति: द्यानतराय पढो सबनि सुखरास, गाथा-३६. ४४१. पे. नाम. सहजसिद्ध अष्टक, पृ. १७५आ, संपूर्ण. ___ सहजसिद्धाष्टक, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: परम पूज परमातमा पूजक चेतन; अंति: सेव सब द्यानत एक समाध, गाथा-११. ४४२. पे. नाम. सिद्धपद आरती, पृ. १७५आ-१७६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आठ करम विन सिद्ध है आठौं; अंति: द्यानत० एकमेक सेहो रहे, गाथा-९. ४४३. पे. नाम. पूर्णपंचाशिका, पृ. १७६आ-१८१अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org जै. क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: नाथ निके नाथ ओ अनाथ निके; अंति: द्यानत० प्रसाद सब नर तरौ, सवैया-५५. आ. पद्मनंदि, सं., पद्य, आदि ॐ उर्द्धाधोरयुतं अंति: सौम्येति मुक्त्यं. ३. पे. नाम षोडशकारण जयमाला पूजा, पृ. ५अ ६अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४४. पे. नाम. द्यानतविलास, पृ. १८१अ - १८३आ, संपूर्ण. " जै.क. द्यानतराय, पुर्हि, पद्य, वि. १७८१, आदि: दुखहरन सब सुखकरन श्रीजिन; अंतिः प्रगट्यो प्रतिमाजोग, गाथा- ७२. १०६०५८. २४ जिनादि पूजा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४४, कुल पे. १६, दे., (२७.५X१६.५, १३X३५). १. पे. नाम. २४ जिन पूजा, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण. सं., प+ग, आदि: विघ्नौघाः प्रलयं; अंति: पणविवि अरहंतावलिहिं. २. पे. नाम सिद्ध जयमाला पूजा, पू. ३आ-५अ, संपूर्ण १६ कारण पूजा, अप., पद्य, आदि ऐद्र पदं प्राप्य पर अति मुत्तिवरं गणहिय हरा ४. पे. नाम. दशलक्षण पूजा, पृ. ६ अ-७आ, संपूर्ण. ४४७ १० लक्षणपूजा विधि, मु. ब्रह्मजिनदास, अप, पद्य, आदि उत्तमादिक्षमाद्यंत अति प्रकासे मनवांछित फलसि घणि ५. पे. नाम. कलिकुंड पूजा, पृ. ७आ-९आ, संपूर्ण. सं., पग, आदि ॐ हुंकारं ब्रह्मरूद्धं अंतिः रोगाल्यमृत्यु विनाशनाय.. ६. पे. नाम. सरस्वती पूजा, पू. ९आ-१०आ, संपूर्ण, सरस्वतीदेवी जयमाला पूजा, मु. ब्रह्मजिनदास, मा.गु., सं., पद्य, आदि: सति श्रुतस्कंधवने; अंति: मनवांछित फल बुधि घणि ७. पे. नाम. गुरु पूजा, पृ. १०-१२, संपूर्ण. गुरु जयमाला पूजा, मु. ब्रह्मजिनदास, मा.गु., सं., पद्य, आदि: वृषभं वृष सेनाद्या सिंह, अंति: जिनदास० भणे कृपा करी. ८. पे. नाम. जिनसहस्त्र नाम, पृ. १२आ-१७आ, संपूर्ण. जिनसहस्रनाम स्तोत्र, आ. जिनसेन, सं., पद्य, आदि: प्रसिद्धाष्टसहस्रेद; अंति: भक्त्या प्रवंदामहे, श्लोक-१६६. ९. पे नाम. नंदीश्वर पूजा, पू. १७आ २०अ, संपूर्ण नंदीश्वरद्वीप जयमाला पूजा, अप., प+ग., आदि आदी सुदर्शनमेरुविजयो अचल; अंति: चरणेसु सिद्धि सुख सो पावए. १०. पे नाम, पंचमंगल पूजा, पू. २०अ २४अ, संपूर्ण. ५ कल्याणक मंगल स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि पणविवि पंच परम गुरु: अंति: जिनदेव चौसंघह जयी, गाथा - २५. ११. पे. नाम नहीण विधि, पृ. २४-२४आ, संपूर्ण. अभिषेक विधि, श्राव. आशाधर, सं., प+ग., आदि: श्रीमन्मंदिरमस्तके; अंति: प्रतिगृह्यतामिति स्वाहा. १२. पे नाम, दशदिक्पाल विधि, पृ. २४आ-२६अ, संपूर्ण १० दिक्पालस्थापन विधि, सं., पद्य, आदि: सौगंध संगत मधुव्रत; अंति: वंदे अष्टकर्मविनासनम्, श्लोक-१०. १३. पे नाम, रत्नत्रय पूजा, पू. २६अ ३०अ, संपूर्ण. रत्नत्रय जयमाला पूजा, सं., पग, आदि श्रीवर्द्धमानमानम्य गीतम, अंतिः संप्राप्नोत्य चिरान्नरः. १४. पे. नाम. पंचमेरु पूजा, पृ. ३०-३४आ, संपूर्ण. जै.क. रत्नचंद्र भट्टारक, सं., प+ग, आदि येन संस्थाप्याम्यत्राह्वा अति: (१) श्रावकादेशच्यात्, (२) लोक इह्या करै सो उहा पावै. . १५. पे नाम तत्त्वार्थसूत्र, पृ. ३४आ-४२अ, संपूर्ण, तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि मोक्षमार्गस्य नेतारं अंति: चउगइदुक्खं णिवारे, अध्याय- १०. १६. पे नाम, कल्याणमंदिर स्तोत्र का पद्यानुवाद, पू. ४२आ-४४आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहि., पद्य, वि. १७वी, आदि: परम ज्योति परमातमा; अंति:: कारन समकित शुद्धि, गाथा-४४. १०६०६२. जिनप्रतिमा हुंडी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्रले. गोरधन, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१६.५, १४४४४). जिनप्रतिमाहंडी रास, म. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: (-); अंति: पसावै जिनहरष कहंत कि, गाथा-६७, (पू.वि. गाथा-५५ अपूर्ण से है.) १०६०६७. २४ दंडक ५६३ भेद विवरण-गतागति व सम्मेतशिखर तीर्थयात्रा ऐतिहासिक वर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प. ४९, कुल पे. २, दे., (२०.५४१७.५, १४४२८-३२). १. पे. नाम. २४ दंडक ५६३ भेद विवरण-गतागति, पृ. १अ-४९अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: दंडक लेश्या ठिती अवगाहना; अंति: छै तिमही ज इहां जाणवी. २.पे. नाम. सम्मेतशिखर यात्रा ऐतिहासिक वर्णन, पृ. ४९आ, संपूर्ण. सम्मेतशिखर तीर्थयात्रा ऐतिहासिक वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: समेतशिखरजी सं १९८८ मि. फा; अंति: अजितनाथजी पारसनाथजी. १०६०६८. सुकुमाल चरित्र का पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १९४३, आषाढ़ शुक्ल, ९, शनिवार, मध्यम, पृ. ७९, प्र.वि. हुंडी:सु.च., दे., (२५.५४१६.५, १३४३०). सुकुमाल चरित्र-पद्यानुवाद भाषाटीका, श्राव. गोकुल गोला, पुहिं., पद्य, वि. १८७१, आदि: नमः श्रीविश्वनाथइ पंच; अंति: गोकुल० टीका संपूर्ण करो, सर्ग-९. १०६०६९. चतुर्विंशतिजिन पूजा, अपूर्ण, वि. १९००, ?, मध्यम, पृ. ६६-१(१०)=६५, प्र.वि. हुंडी;चौवीसीकोपा., जैदे., (२६४१६, १३४३०-३४). पंचकल्याणक पूजा-२४ जिन, जै.क. वृंदावन धर्मचंद अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८७५, आदि: वंदौ पांचौ परमगुरू; अंति: भयो सकल जिय आनंदकंद, पूजा-२४, (पू.वि. संभवनाथ पूजा अपूर्ण है.) १०६०७०. अष्टप्राभृत-षट्प्राभृत सह भाषाटीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७३-१०(१ से २,९ से १६)=६३, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:षटपा०., जैदे., (२६.५४१६.५, १४४३३-३७). अष्टप्राभृत-हिस्सा षट्प्राभृत, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्राभृत-१ गाथा-५ अपूर्ण से प्राभृत-५ गाथा-१९ अपूर्ण तक है व बीच के पाठ नहीं हैं.) अष्टप्राभृत-हिस्सा षट्प्राभूत की भाषाटीका, पुहि., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०६०७६. रात्रिभोजनत्याग कथा, संपूर्ण, वि. १९३८, आश्विन कृष्ण, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १५, प्रले. श्राव. गुमना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:नीसकी., दे., (२६४१६.५, १२४२९). रात्रिभोजनत्याग कथा, मु. भारामल्ल, पुहि., पद्य, आदि: प्रथम नमो जिनदेव दूजैगुर; अंति: त्रीया पापनास तिनि होई, गाथा-२२२. १०६०८१. पंचपरमेष्ठि मंगल पूजा, संपूर्ण, वि. १९१२, श्रावण शुक्ल, ७, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३७, ले.स्थल. ईसरदा, प्रले. शिवनारायण जोशी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पंच०., दे., (२४.५४१७, १२४३०). पंचपरमेष्ठि मंगल पूजा, मा.गु., प+ग., वि. १८६२, आदि: मंगलमय मंगल करन; अंति: सत अष्टदस साठि दोय अधिकाय. १०६०८२. बृहत् सामायिक, संपूर्ण, वि. १८१९, कार्तिक कृष्ण, ५, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २६, ले.स्थल. क्रिष्णकोट, प्रले. पं. रायचंद पंडित; पठ. मु. मोतीराम (गुरु मु. कासीराम पांडे); गुपि. मु. कासीराम पांडे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वनाथ चैत्यालये., जैदे. (२४४१६.५, ८x१८). सामायिकसूत्र-दिगंबर, सं.,प्रा., पद्य, आदि: (१)चिदानंदैक रूपाय जिनाय परम, (२)पडिक्कमामि भंते इरियावहि; अंति: गंभीरा मोक्षमार्गोपदेशकाः. For Private and Personal Use Only Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०६०८४. चतुर्विंशतितीर्थंकर पूजा, संपूर्ण, वि. १८६५, पौष शुक्ल ८, सोमवार, मध्यम, पृ. ७७, ले. स्थल. उणीयारा, प्रले. पंडित. शंभुराम ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: चौ०., जैदे., (२४X१६, १३x३९). २४ जिन पूजा, श्राव. रामचंद्र चौधरी, पुहिं., पद्य, वि. १८५४, आदि: सिद्धि बुद्धि दायक; अंति: सकनांहि कीर्ति जग विस्तरै पूजा-२४. १०६०८५. धर्मपरीक्षा का पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १८८९, आषाढ़ कृष्ण, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १२६, प्र. वि. कुल ग्रं. ३०००, प्र.ले. श्लो. (१३६) मंगलं लेखकानां च (१४१५) कटि ग्रीवा अर नैंन भुज, जैदे., (२३X१६.५, १३X२७-३०). धर्मपरीक्षा-पद्यानुवाद, मनोहरदास सोनी खंडेलवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमौं अरिहंत; अंति: हरो च्यारसंघ कै मंगल करो, दोहा - ९२४. १०६०८६. सुरसुंदरी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १८-८ (१ से ८) = १०, पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. हुंडी: अ०. सुर०, जैदे., (२५.५X१३, १३X३४). सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-२ ढाल -१ गाथा- २ अपूर्ण से खंड -३ ढाल -२ गाथा - ११ तक है. ) ४४९ १०६०८७. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पत्र चिपके हुए हैं., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X१३, ८-१४X२६-४०). उत्तराध्ययन सूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि संजोगा विप्यमुक्कस्स अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- १८ गाथा ४५ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र- कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि श्रीमहावीरने वारे आचारंग; अंति: (-). उत्तराध्ययनसूत्र टवार्थ मा.गु., गद्य, आदि संजोगा बाह्य मातापिता; अंति: (-). १०६०९४ (#) योगचिंतामणि सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ९६-६३ (१ से ६०, ७३ से ७४,८६)-३३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., । (२७.५X१३.५, १४४४३-४६). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. पारद प्रकरण की काटकरण विधि से है, बीच-बीच व अंत के पाठ नहीं हैं.) योगचिंतामणि बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). १०६०९६ (०) दशवैकालिकसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पू. ३७. प्र. वि. हुंडी : दसमीकालक० सुत्र.. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२७X१३, ८X२८-३७). दशवेकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी आदि धम्मो मंगलमुक्किट्ठे अति अपुणागमं गइ त्तिचेमि, अध्ययन- १०, (वि. चूलिका-२.) दशवेकालिकसूत्र -टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि जिणे करी हित० मांगलिक कही; अति: तुज प्रति कहु छु. १०६०९७. श्रावक षडावश्यकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३२, जैदे., (२६X१३, ४x२२-३२). आवश्यक सूत्र- षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमोः अति: निच्च सुगुरुवएसेणं. १०६०९८ (+०) श्रीपाल रास खंड ४ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. ९२, प्र. वि. हुंडी श्रीपाल, टिप्पण पाठ-संशोधित मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैवे (२६४१२.५, ४x२६). " युक्त विशेष "" श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी प्रतिपूर्ण, , For Private and Personal Use Only श्रीपाल रास- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति विसाल विस्तीर्ण पामै प्रतिपूर्ण. १०६१०६. (+) दीवाली व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९४६ फाल्गुन शुक्ल, १४, बुधवार, मध्यम, पृ. २१, ले. स्थल मुर्शिदाबाद, प्रले. मु. धनसुख ऋषि; पठ. श्राव. वेजुलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : दीवाली कल्पः. श्रीमद्भागीरथीस्तटे., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ६११, प्र.ले. श्लो. (४५०) जल की शोभा कमल है, दे., (२७X१३, १४X३०). दीपावलीपर्व व्याख्यान, पा. उमेदचंद्र, सं., गद्य वि. १८९६, आदि श्रीनेमीशं जिनं; अंति रम्यं कृतं शुभतराशया. Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४५० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०६१०७. भक्तामर स्तोत्र - रागमाला, संपूर्ण वि. १९३० आषाढ़ अधिकमास कृष्ण, ६, सोमवार, मध्यम, पू. ७, ले. स्थल. मंमोईनगर, प्रले. पं. हमीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीगोडीपार्श्वनाथ प्रशादात्., दे., ( २६१३, १२X३५). भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, मु. देवविजय, पुहिं., पद्य, वि. १७३०, आदि: भगत अमरगण प्रणत मुगटमणि; अंति: ते नर लछि के भरतार, गाथा-४४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " १०६१०८. नमस्कार महामंत्र सह बालावबोध व नवकार रास, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ६, कुल पे २ प्रले. पं. मेघविजय गणि पठ. मु. वीरभाण; अन्य. पं. नानवर्द्धन (गुरु पं. हेतवर्द्धन); गुपि. पं. हेतवर्द्धन, प्र.ले.पु. मध्यम, जैवे. (२६४१२.५, ११४३४)१. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र सह बालावबोध, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. " नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढमं हवई मंगलम्, पद-९. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत प्रति माहरो; अंति: उत्कृष्टं मंगलीक होइ. २. पे. नाम. नवकार रास, पृ. ६अ -६आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि- शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि सुखकारण भवियण समरो अंति: प्रभु सुंदर सीस रसाल, गाथा - १४ (वि. प्रतिलेखक ने एक गाथा को दो गिना है.) " १०६१०९ मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान का बालावबोध, संपूर्ण वि. १९४३ आश्विन शुक्ल, १ श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल, लक्ष्मणपुर, प्रले. मु. तिलोकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: मेरुत्र. द.व्या. दे., (२५.५४१३.५, १३३६). मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)मारुदेवं जिनं नत्वा, (२) श्रीऋषभदेवस्वामीनै; अंतिः सुख संपत्ति प्रगट हुवौ. १०६११० (+) जीवविचार प्रकरण सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. २०बी, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल. अलायनगर, प्रले. मु. पुण्यविजय (गुरु मु. उत्तमविजय); गुपि. मु. उत्तमविजय (गुरु मु. नेमिविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : जिवचार., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५X१३, ६x२९-३२). " जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण भणामि; अंति: उद्धओ रुदाउ सुअ समुद्धाओ, गाथा ५१ (वि. १९०६, आषाढ़ कृष्ण, १, बुधवार) जीवविचार प्रकरण-वार्थ* मा.गु., गद्य, आदि: भु० क० त्रिभुवन मांहे अतिः समुद्र ते मांहिथी कर्यो, (वि. १९०६, आषाढ़ कृष्ण, २. शुक्रवार) १०६१११ (+४) सुभाषित संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. २९-१०(१ से ६, ८, १४ से १५, १९) = १९, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२७.५x१३, १०x२२-२८) " सुभाषित संग्रह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ५० अपूर्ण से २८४ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०६११२. बृहत्शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्र. वि. हुंडी : बृद्धिशां., जैदे., (२५.५X१२, ८x२१-२४). बृहत्शांति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत वचनं; अंति: सर्वत्र सुखी भवतु लोकः, (वि. कृति के अंत में मूल पाठ के अलावा मांगलिक गाथाएँ भी मिलती हैं.) १०६११३. दंडक प्रकरण सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५-१ (३) + १ (२) = ५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी: दंडकवृत्ति मूल०., त्रिपाठ., जैदे., (२५X१३.५, १४-१८X४४-४९). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि नमिठं चौवीस जिणे, अंति (-), (पू. वि. गाथा १७ तक है.) दंडक प्रकरण- टीका, ग. समयसुंदर, सं., गद्य, वि. १६१६, आदि: शांतिं शांतिकरं नत्व; अंति: (-). १०६११४ (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. दे., (२६X१३, ५x२७-३०). नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवापुन्नं पावा अंति (-) (पू.वि. गाथा ६९ अपूर्ण तक है.) नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि प्रथम जीवतत्त्व द्वितीय, अंति: (-). १०६११५. (+) कल्पसूत्र की कल्पद्रुमकलिका टीका-व्याख्यान ३ से ६, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रले. मु. जसविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२५.५४१२.५, १२-१५४४६-५०). For Private and Personal Use Only Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ४५१ कल्पसूत्र-कल्पद्रमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. व्याख्यान-६ नेमिनाथ-शिवादेवीमाता संवाद अपूर्ण तक है.) १०६११६. (+#) कयवन्ना चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-१(१०)=१३, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:कयव०., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१३.५, १४४५१). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१५ ____ गाथा-२ अपूर्ण से ढाल-१६ गाथा-१७ अपूर्ण तक व ढाल-२४ से नहीं हैं.) १०६११७. (+) सकलकशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र सह टीका व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. शिरपुर, प्रले. श्राव. दिलरंजन, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. श्रीपद्मप्रभुजी प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४१३, १२४५१). सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकल कुशलवल्ली पुष्करावर्त; अंति: सततं वः श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-१. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-टीका, सं., पद्य, आदि: सकलकुसलवल्लि पुष्करा; अंति: पुष्करावर्त्तमेघ. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: सकल केता समग्र जे एवा जे; अंति: अर्थे भवतु नाम होइ. १०६११८. (#) अजितशांति व बृहत्शांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.७, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१३, ११४२९). १. पे. नाम, अजितशांति स्तवन, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण. अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संतिं च; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. २. पे. नाम. बृहत्शांति स्तवन, पृ. ५अ-७आ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयतु शासनम्. १०६११९ दशलक्षणधर्म पूजा, संपूर्ण, वि. १८९१, श्रावण कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदे., (२६४१३, ५४३०-३३). दशलक्षणधर्म पूजा, क. रइधू महाकवि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: उत्तम क्षांतिकाद्यंत; अंति: मण इह करहु थिरु, गाथा-८३. १०६१२३. (+) फुटकर पत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:फुटकरच०, संशोधित., अ., (२४४१५.५, १२४२६). जीवोत्पत्तिविचार संग्रह, रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अयन का एक मास वर्णन अपूर्ण से जीवों को पकड़ने की जाली बनाने का विचार अपूर्ण तक है.) १०६१२७. चंदनाषष्ठिव्रत पूजा, संपूर्ण, वि. १९९०, कार्तिक शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्रले. श्राव. ईसरलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हंडी:चंदनष०., दे., (३०x१६, १०४४२). चंदनाषष्ठिव्रत पूजा, मु. विजयकीर्ति भट्टारक, सं., गद्य, आदि: सुखदमिष्ट मनोरथ सिद्धिदं; अंति: (१)देयाच्चंद्रप्रभौजिनः, (२)योही पूजन प्रांत पढिहेणाः. १०६१३० (+) दिगंबर विविध शास्त्रपाठ संग्रह-द्वारिका दाह, नारदमुक्त्यादि विषये, संपूर्ण, वि. १८९१, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. मथुरा, प्रले. पं. सदासुख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीजंबुस्वामी चैत्यालये लिपिकृता., संशोधित., जैदे., (२७४१६.५, १०४३४). दिगंबर विविध शास्त्रपाठ संग्रह-द्वारिका दाह, नारदमुक्त्यादि विषये, पुहि.,प्रा.,सं., प+ग., आदि: (१)सुयंभूस्वामीकृत ___ अष्टादस, (२)जं जिणणेमि कहिउ सह अंतरि; अंति: हिवइ मई णेज्जसु पंचमगइहे. १०६१३२. २४ जिनपरिवार स्तवन व शंखेश्वरतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.१, कुल पे. २, जैदे., (२६४१६, १७४३९). १. पे. नाम. २४ जिनपरिवार स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: भवियण भावे वंदीइ रे लाल; अंति: लाल वाधे धर्म सनेह रे, गाथा-१३. २. पे. नाम, संखेश्वरतीर्थ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शंखेश्वरतीर्थ स्तवन-चिंतामणि, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगपति अविनासी कासी धणि रे; अंति: रूपवि० जिनपति चिंतामणि रे, गाथा-६. १०६१३३. (#) अंबादेवी स्तुति व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६-७(११ से १७)=१९, कुल पे. ७, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८x१६.५, १३४२७). १.पे. नाम, अंबादेवी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. अंबिकादेवी स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: मात अंबाय भजो उठ प्रात सब; अंति: नर विनती या चितमें अवधारी, गाथा-१. २. पे. नाम. शंखेश्वर पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी सुणो मुझ विनती; अंति: ऋधिहरख० मे किवी तोरि आस, गाथा-१५. ३. पे. नाम, ऋषभ स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आदिजिन पद-जन्मबधाई, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: आज तो वधाई राजा नाभि; अंति: रूपनिरंजन आदेसर दीयाल रे, गाथा-६. ४. पे. नाम. प्रभाति स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मे परदेसी दूर का; अंति: रूपचंद० निरंजन गुण गाया, गाथा-४. ५. पे. नाम. नवकार छंद, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पूरे विविध परे; अंति: ऋद्धि वृद्धि संपत लहै, गाथा-१७. ६. पे. नाम. जीवदया स्वाध्याय, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: जिनहर्ष० हरणी छे एह, गाथा-२२. ७. पे. नाम. हंसराजवत्सराज चौपाई, पृ. ४आ-२६आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदीसर आदे करी चोवीसे; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., खंड-१ ढाल-९ दोहा-२ अपूर्ण से खंड-२ ढाल-१६ गाथा-७ अपूर्ण तक नहीं है व खंड-३ ढाल-२५ तक लिखा है.) १०६१३८. (+) प्रज्ञापनासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३१, मध्यम, पृ. ४२६, प्र.वि. हुंडी:प्रज्ञापनासूत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७.५४१५.५,७४३८). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० ववगय; अंति: सुही सुहं पत्ता, पद-३६, सूत्र-२१७६, ग्रं. ७७८७. प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७८४, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: (१)परंपरायै ते सिद्ध, (२)ध्वांतः सदा जियात्, ग्रं. २८०००. १०६१४१. भद्रबाहु चरित्र का पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १९३९, आश्विन शुक्ल, १५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३५, ले.स्थल. गोठडासर, प्र.वि. हुंडी:भद्रबाहु०., दे., (२६४१६, १२४३२). भद्रबाहु चरित्र-पद्यानुवाद, श्राव. किसनसिंघ, पुहि., पद्य, वि. १७८३, आदि: केवलबोध प्रकासरबि उदै होत; अंति: ___ नमन कुमति निहारे, गाथा-८७५. १०६१५०. पंचमेरुसमुच्च्य व पंचमेरु पूजा, संपूर्ण, वि. १८९८, आश्विन शुक्ल, ११, रविवार, मध्यम, पृ. १९, कुल पे. २, लिख. श्राव. विरदीचंद सोनी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:पंचमेरपू., जैदे., (२८.५४१६, १३४३५-३८). १. पे. नाम, पंचमेरुसमुच्च्य पूजा, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पुहिं., प+ग., आदि: मेरुसुदर्शनसार विजयअचल; अंति: संबंधी जिनालय जिनेभ्यो. २. पे. नाम. पंचमेरु पूजा, पृ. २अ-१९आ, संपूर्ण. पुहिं., प+ग., आदि: मेरुसुदर्शन प्रथम महागिरए; अंति: (१)कछु इक जिनश्रुत के अनुसार, (२)अस्सी जिनालै जिनेभ्यो. For Private and Personal Use Only Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०६१६२. गणेशाष्टक स्तोत्रादि व छंद संग्रह, संपूर्ण, वि. २०बी, श्रेष्ठ, पृ. २१, कुल पे ३०, ले. स्थल, सायला, वे., (२९.५४१५.५, १४४४०). १. पे नाम, गणेश अष्टक - १. पू. १अ संपूर्ण. " गणेशाष्टक, सं., पद्य, आदि हिमजासुतं भुजं गनेश; अंति हव्य कव्य दानवादुरंतरम्, श्लोक ५. २. पे. नाम. गणेश अष्टक - २, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. गणेशाष्टक छंद, मा.गु., पद्य, आदि: समर प्रथम गुणपत शुडालं; अंति: फजर गुणिजे नाम गुणेशरा, गाथा-५. ३. पे. नाम. गणेश अष्टक - ३. पू. १आ-२अ, संपूर्ण. गणेशाष्टक छंद, मा.गु., पद्य, आदि: मुक्ताफल गलमाल उधर अनप; अति कठ शंकरसुत मंगल कर्ण, गाथा- ७. ४. पे. नाम. महालक्ष्मी स्तोत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. ६. ये नाम सरस्वती स्तोत्र, पू. ३अ, संपूर्ण सं., पद्य, आदिः ॐ नमस्तेस्तु महामाए; अंति: प्रसन्नात्मा सरस्वति, श्लोक ११. ५. पे नाम. अन्नपूर्णा स्तोत्र, पू. २आ-३अ, संपूर्ण, शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: नित्यानंदकरी पराभयकरी; अंति: नमो नमो जय जय करणी, श्लोक-१३. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं., पद्य, आदि ॐ नमस्ते सारदा देवी वीणा, अंतिः लभते निर्मलबूधि मंदिरे, श्लोक ७. ७. पे. नाम. जिनदत्तजिनचंदजिनकुशलसूरि छंद, पृ. ३आ, संपूर्ण. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: खरतरगच्छ जाणै खलक; अंति: संघनुं सांनिध करै, गाथा- ८. मु. ८. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिनमातृपितालंछननयरी नाम, पृ. ३-५ अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयल जिणेशर प्रणमुपाय; अंति: तास सीस प्रणमु आणंद, गाथा-३०. ९. पे. नाम. नमस्कार छंद, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, क. लाधो, मा.गु., पद्य, आदि भोर भयो ऊठो भवि; अंतिः करि वरदायक लाधो वदे, गाथा १८. १०. पे. नाम. नमस्कार छंद, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: तिमिर भयहरणं पणव; अंति: कवि ध्रमसी उवज्झाय कहे, गाथा - १०. ११. पे. नाम. नवकारगणणाष्टक छंद-नवकारमहिमागर्भितफल, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र पच्चीसी, पं. आनंदनिधान, मा.गु., पद्य, वि. १७३०, आदि: श्रीजिनवर ईम द्ये उपदेश; अंति: आनंद० शतरतीशे अधिकार, गाथा २५. १२. पे नाम. चैत्यवंदन विचार छंद, पृ. ७आ-८अ संपूर्ण. चैत्यवंदन छंद, मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि सरस्वति देवी नमु मनरंग अति इम कवि मान कहे करजोड, गाथा १२. १३. पे. नाम. दयामूल छंद, पृ. ८अ ९अ, संपूर्ण. दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सयल तीर्थंकर करुं; अंति: कह्यो एह विचार, गाथा - २५. १४. पे नाम, पार्श्वजिन छंद-गवडिपुर. पू. ९अ ९आ, संपूर्ण पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: धवल धिंग गोडी धणी; अंति: नाखे नाथजी दुखनी जाल तोडी, गाथा-८. ४५३ १५. पे. नाम. केशरियानाथजिन स्तुति, पृ. ९आ-१०अ संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-केशरियाजी, मा.गु., पद्य, आदि: तुहि अरिहंत तुहि भगवंत; अंति: हुई केशरानाथरी भिडभागी, For Private and Personal Use Only गाथा-८. १६. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद - अंतरीक्ष, पृ. १० अ- १२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद - अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वचन द्यो सरस्वति माता; अंति लावन्यस० दरिशन पामे संपदा, गाथा - ५०. Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७. पे. नाम, नमस्कार छंद, पृ. १२अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: प्रभु सरवर शीश रसाल, गाथा-७. १८. पे. नाम, संखेश्वर पार्श्वजिन छंद, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, म. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो; अंति: पास संखेसरो आप तूठा, गाथा-७. १९. पे. नाम. किलोलसार बोल चउपाई, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामिणी पाय प्रणमेवि; अंतिः कीलोल धर्मरंग मन धरजो चोल, गाथा-१६. २०. पे. नाम. महावीरजिन छंद, पृ. १३अ-१४अ, संपूर्ण.. महावीरजिन स्तोत्र-प्रभाती, म. विवेक, मा.ग., पद्य, आदि: सेवो वीरने चित्तमा; अंति: विवेके० दर्श तेरो, गाथा-१५. २१. पे. नाम, पार्श्वजिन छंद, पृ. १४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: क्षितिमंडल मुकुटं धरमक; अंति: रम्यारम्यं सह रम्यम्, श्लोक-४. २२. पे. नाम. ऋषभनाथजिन छंद, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. आदिजिन छंद, पुहिं.,सं., पद्य, आदि: परम अलक्षहि त्रिजग चक्षहि; अंति: अधिनयह मत कीन अधिनस्तुते, गाथा-७. २३. पे. नाम. नमस्कार छंद, पृ. १४आ-१६अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछित पूरे विविध परे; अंति: ऋद्धि वांछित लहे, गाथा-१८. २४. पे. नाम. गौतमस्वामी अष्टक छंद, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मात पृथ्वी सुत प्रात; अंति: जस सौभाग्य दोलत सवाई, गाथा-९. २५. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पोशीना, म. कल्याणविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वती समरी कविजन गुरणी; अंति: सेवे ते नवनिधि लहे, गाथा-१४. २६. पे. नाम. पार्श्वजिन गीत, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, फा., पद्य, आदि: गोरि पास गरिब नवाज जुगदा; अंति: दो जगही अर्जे याही बे, गाथा-५. २७. पे. नाम, शांतिनाथजिन छंद, पृ. १७आ-१८आ, संपूर्ण. शांतिजिन छंद-हस्तिनापरमंडन, आ. गणसागरसूरि, मा.ग., पद्य, आदि: सारद माय नम सिरनामी हं; अंति: मनवंछित शिवसुख पावे, गाथा-२१. २८. पे. नाम. शनिश्चर छंद, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: छायानंदन जग जयो; अंति: सदा वलि वलि इम वखाणीए, गाथा-१६. २९. पे. नाम. मणिभद्रयक्ष छंद-१, पृ. १९अ-२०आ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर छंद, आ. शांतिसूरि, मा.ग., पद्य, आदि: सरस्वति सामिनी पाए; अंति: सुणी आपो सुख संपदा, गाथा-४१. ३०. पे. नाम, मणिभद्रयक्ष छंद-२, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: समरू देवी सरस्वति पूज; अंति: गावतां लाख लाख रिजा लहे, गाथा-२२. १०६१६३. चमत्कारचिंतामणि सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९८०, पौष कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १३, ले.स्थल. सायला, प्रले. पं. सुंदरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीपार्श्वजिन प्रशादात्., प्र.ले.श्लो. (६४५) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, (१४२२) कर गाबड उमण दुमणी, दे., (२९x१५.५, १५४३२-४३). चमत्कारचिंतामणि, राजऋषिभट्ट, सं., पद्य, आदि: नचेत् खेचरा स्थापिते किं; अंति: वस्तु गृह्ये सदैव, श्लोक-१११. For Private and Personal Use Only Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ४५५ चमत्कारचिंतामणि-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जन्मपत्रीने विषे जो ग्रह; अंति: गुह्य स्थानक पीडा सदा करइ. १०६१६४. विवाहपडल का पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., अ., (२९.५४१५.५, १५४३९-४५). विवाहपडल-पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी पद वंदी करी; अंति: (-), (पू.वि. वरवधु गुण मेलापक विचार अपूर्ण तक है.) १०६१७०. भक्तामर स्तोत्र सह यंत्र व मंत्राम्नाय विधि, संपूर्ण, वि. २०वी कृष्ण, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. ४८, ले.स्थल. गढडा, प्रले. श्राव. पोपट खीमचंद शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:भक्ताम., अ., (२७.५४१५, १२-१५४२२-५०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४८. भक्तामर स्तोत्र-यंत्र, अज्ञा., यं., आदिः (-); अंति: (-), अज्ञात-४८. भक्तामर स्तोत्र-मंत्राम्नाय, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं अहणमो; अंति: उपरि ऋद्धि मंत्रवेष्टतो. १०६१७१. () हरिवंशपराण की भाषाटीका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४९-३४(१ से २४,२६,४० से ४८)=१५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:ह.भा., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१६.५, १०x२६-३०). हरिवंशपुराण-भाषा, श्राव. खुशालचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७८०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. संधि-६ गाथा-२२ अपूर्ण से संधि-९ गाथा-७९ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०६१७२. पंचकल्याणक पूजा-२४ जिन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२०.५४१६.५, १०x१६-१९). पंचकल्याणक पूजा-२४ जिन, जै.क. वृंदावन धर्मचंद अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८७५, आदि: बंदौ पांचो परमगुरु; अंति: (-), (पू.वि. पार्श्वनाथ सप्तमोक्षकल्याणक की जयमाला छंद का दोहा-९ अपूर्ण तक है.) १०६१७८. (#) श्रीपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. १८२५, श्रावण कृष्ण, १२ अधिकतिथि, सोमवार, मध्यम, पृ. ६७-३६(१ से ३६)=३१, ले.स्थल. मोरा, प्रले. मु. रामचंद ऋषि (गुरु मु. रत्नसिंहजी ऋषि, विजयगच्छ); पठ. मु. हरचंद (गुरु मु. रामचंद ऋषि, विजयगच्छ); गुपि. मु. रत्नसिंहजी ऋषि (गुरु मु. लीलापति ऋषि, विजयगच्छ); मु. लीलापति ऋषि (गुरु मु. जसराज ऋषि, विजयगच्छ); मु. जसराज ऋषि (गुरु भट्टा. कल्याणसागरसूरि, विजयगच्छ); भट्टा. कल्याणसागरसूरि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी:श्रीपाल च०. श्रीमगरधूजजी विराजयेत्., मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (४२६) यादृशं पुस्तकं दष्टं, (६१८) जलाद रक्षेत् स्थलाद रक्षेत्, जैदे., (३१x१४.५, १८४३९). श्रीपाल चरित्र, जै.क. परिमल्ल रामदास, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२०५ अपूर्ण से है.) १०६१८३. (+) नपपद पूजा, अपूर्ण, वि. १९३१, माघ शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, ले.स्थल. उजमणा, प्रले. वसंतराम माणकचंद भोजक; लिख. श्राव. गोकलभाई मूलचंद पारेख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीकल्याणपार्श्व प्रसादे. श्रीशांतिनाथ प्रसादे., संशोधित., दे., (२८x१५, १३४३७-४०). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: कोई नये न अधूरी रे, पूजा-९, (पू.वि. प्रथम अरिहंत पूजा ढाल-गाथा २ अपूर्ण से हैं.) १०६१८५ (+) चौइसतिर्थंकर पूजन विधान, संपूर्ण, वि. १९०८, भाद्रपद शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. १२२, ले.स्थल. बुंदी, प्रले. जमनालाल ब्राह्मण, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चौ०. श्रीसांतनाथ०., संशोधित., दे., (२७X१५, ७X३१). २४ जिन पूजा, श्राव. रामचंद्र चौधरी, पुहिं., पद्य, वि. १८५४, आदि: सिद्धि बुद्धि दायक; अंति: उनमानसुं येकसैं सषष्ट जान, पूजा-२४, ग्रं. १६००. १०६१८७. (+#) हरिवंशपुराण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३३८-३२३(१ से ३०८,३१० से ३२१,३२८ से ३२९,३३३)=१५, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८x१४.५, ९४२०-२५). हरिवंशपुराण, मु. जिनदास ब्रह्मचारी, सं., पद्य, वि. १६वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-२५ व २६ अपूर्ण हैं.) १०६१९०. प्रश्नोत्तर माला, संपूर्ण, वि. १९५७, पौष कृष्ण, ३, रविवार, मध्यम, पृ. ३४, अन्य. श्राव. नीहालचंद नेमिचंद (पिता श्राव. जडावबाई नेमिचंद); श्राव. जडावबाई नेमिचंद; श्राव. हीरालाल चौहौडी साहा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८x१४.५, १२४४२). For Private and Personal Use Only Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२५ प्रश्नोत्तर माला, पुहि., गद्य, आदिः (१)णमो अरिहंताणं णमोसिद्धाणं, (२)आदि अंत चौवीस लौं वंदौ मन; अंति: प्रश्नमाला० धारण करु हुँ, प्रश्न-१२५. १०६२०३. (#) त्रिलोकसार का पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६०, प्र.वि. हुंडी:त्रैलो०.भा०., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१६, १२४३५). त्रिलोकसार-पद्यानुवाद, श्राव. खडगसेन, पुहिं., पद्य, आदि: ॐ नमः सिद्ध नमौ जिनराइ; अंति: (-), (प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., साधुविहार वर्णन गाथा-५७ अपूर्ण तक लिखा है.) १०६२०५. (#) चंद कुवरनी वारता, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १२, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१६.५, १०४२२). चंद्रकमार वार्ता, मा.ग., पद्य, आदि: समरु सरसती मात मनाय; अंति: कुंअर वात कही कविराय, गाथा-८९. १०६२०६ (+) योगचिंतामणि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६५+१(५७)=६६, प्र.वि. हुंडी:योग०., पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२३४१६, १०-१७४२४-३३). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: तत्र प्रथमं सर्वोन्मादे; अंति: तद्रहस्यं वैद्य कार्णवात्, अध्याय-७, संपूर्ण. योगचिंतामणि-टबार्थ *, मा.ग., गद्य, आदि: ० कालेणा चोभाग रहैति वारे; अंति: (-), (अपूर्ण, प.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गर्भपात प्रयोग तक लिखा है.) १०६२१२. ज्योतिषसार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ११-२(१ से २)=९, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२१.५४१६, ८-१२४२४-२९). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१४ अपूर्ण से ४५ अपूर्ण तक है.) ज्योतिषसार-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). १०६२१६. (+) भाव संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०३, पौष शुक्ल, १२, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४९, प्रले. सोमेश्वर वैद; लिख. श्राव. सदासुखजी; पठ. श्रावि. चिमना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१६,११४२६-३०). भाव संग्रह, आ. वामदेव पंडित, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: श्रीमद्वीरं जिनाधीशं; अंति: चैर्विशदं जैनशासनम्, श्लोक-७८३. १०६२१७. (#) मदनरेखासती चौपई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६-२(१ से २)=४, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४१४.५, १४-१६४२२-२६). मदनरेखासती चौपई, मु. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-९ अपूर्ण से ढाल-११ गाथा-६ अपूर्ण तक है.) १०६२१८. (+) समयसार नाटक, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ८४-२४(१ से २०,६६ से ६९) ६०, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२.५४१६, २१-२२४१५-१६). समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शुद्धनय स्वरूप वर्णन से ज्ञानक्रिया अध्ययन अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०६२२३. (+#) सामायिकसूत्र सह भावार्थ, संपूर्ण, वि. १९५४, पौष शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ४१, प्रले. रुषबदास सोगाणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संवत १७४९ में लिखी प्रत की प्रतिलिपि है., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२९.५४१४, १४४४३). सामायिकसूत्र-दिगंबर, सं.,प्रा., पद्य, आदि: पडिक्कमामि भंते इरियावहि; अंति: (-), (वि. अंत में मूल का मात्र प्रतीक पाठ लिखा है.) सामायिकसूत्र-दिगंबर-भावार्थ, पुहि., गद्य, आदि: हे भगवान हे परमेश्वर; अंति: आगै असी भावना भावै छै. १०६२२४. (+) नित्यनेमपूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२,प्र.वि. हुंडी:नित्यनेमपू०., संशोधित., दे., (२८.५४१४, ९४३५). For Private and Personal Use Only Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ नित्य पूजा पीठिका, सं., प+ग., आदि: (१)प्रथम तो घरसूं उज्जल, (२)ॐ जय जय जय नमोस्तु; अंति: सर्वेयांतु यथास्थितिं. १०६२२९ (+) पंचसंग्रह-द्वार १ सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. दे., (२७४१४, ३-५४२७-३५). पंचसंग्रह, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण जिणं वीरं सम्म; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., योगमार्गणाभिधान तक लिखा है.) । पंचसंग्रह-टीका, सं., गद्य, आदि: शूरवीर विक्रांतौ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०६२३३. (+#) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, ले.स्थल, रतलाम, प्रले. श्राव. गुमानचंद; पठ. मु. चतरु (गुरु मु. रामविजय गणि); गुपि. मु. रामविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७.५४१३.५, १३४२५-२९). लघक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; अंति: कुसलरंगमई पसिद्धिं, अधिकार-६, गाथा-२६३. १०६२३४. देवसिद्ध पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्र.वि. हुंडी:देवपूजा०., सिद्धपू., शास्त्रज०गुरु०मा०., दे., (२८.५४१४, ९४२५-२९). देवसिद्ध पूजा, प्रा.,सं., प+ग., आदि: पणविवि पंच परमगुरु गुरु; अंति: सर्वे यांतु यथास्थितम्. १०६२३५. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:उतरार्ध., जैदे., (२९x१३.५, १९४३६-४०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३५ गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) १०६२४० (+#) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. २०-३(१,१६,१८)=१७, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, टीकादि का अंश नष्ट है, दे., (२८x१४, ६४२३-२६). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक नंदीश्वरवर्णन अपूर्ण से देवार्चनविषये आर्द्रकुमार दीक्षा प्रसंग तक है व बीच का कुछेक अंश नहीं हैं., वि. बीच-बीच में लघु संग्रहणी व अहिंसाविषये महाभारत व पुराणादि के संदर्भ पाठ दिये गये हैं.) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). १०६२४६. धर्मपरीक्षा का पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-२(१,५)=११, पृ.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:धर्म०.भा., जैदे., (२७.५४१४.५, ९४३४). धर्मपरीक्षा-पद्यानुवाद, मनोहरदास सोनी खंडेलवाल, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अधिकार-१ दोहा-९ अपूर्ण से दोहा-२० अपूर्ण व दोहा-३६ से अधिकार-२ दोहा-७४ तक है.) १०६२४८.(#) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिये हैं., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (३०x१५.५, ११४३६-३९). प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सद्यः प्रीतिकरं दानं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-८४ अपूर्ण तक है.) १०६२५३. (+) मरणसमाधि प्रकीर्णक सह छाया, संपूर्ण, वि. २०२८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. २८, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. बालाराम; प्रे.ग. सूर्योदयसागर (गुरु ग. लब्धिसागर, तपागच्छ); गुपि.ग. लब्धिसागर (गुरु पंन्या. विजयसागर, तपागच्छ); पंन्या. विजयसागर (गुरु आ. आनंदसागरसूरि, तपागच्छ); आ. आनंदसागरसूरि (गुरु मु. झवेरसागर, तपागच्छ); लिख. श्राव. धनवंतलाल प्राणलाल; अन्य. वा. धर्मसागर (गुरु ग. अभयसागर); ग. अभयसागर, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी:मरणसमाधि. विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका है., त्रिपाठ-संशोधित., ., (२९x१५, १७४६१-७०). मरणसमाधि प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: तिहुयणसरीरिवंदं सप्प; अंति: बिय नाम मरणसमाहिं च, गाथा-६६३. मरणसमाधि प्रकीर्णक-छायानुवाद, सं., गद्य, वि. २०वी, आदि: त्रिभुवनशरीरिवंद्यं; अंति: द्वितीयं नाम मरणसमाधिः, श्लोक-६६३. For Private and Personal Use Only Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०६२५४ (+) गच्छाचार प्रकीर्णक सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६४, प्र.वि. हुंडी:गच्छाचारवृत्ति०., संशोधित., दे., (२९४१५, १६x६४-६८). गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-९२ तक लिखा है., वि. गाथा-१ नहीं लिखी है.) गच्छाचार प्रकीर्णक-बृहट्टीका, ग. विजयविमल, सं., गद्य, वि. १६३४, आदि: उद्बोधं विदधेब्जानामिव; अंति: (-), पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०६२५५. (+) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की शिष्यहिता टीका, अपूर्ण, वि. २०३८, माघ शुक्ल, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २८१-२८०(१ से २८०)=१, ले.स्थल. कपडवंज, प्रले. बालाराम; प्रे. ग. सूर्योदयसागर (गुरु ग. लब्धिसागर, तपागच्छ); गुपि.ग. लब्धिसागर (गुरु पंन्या. विजयसागर, तपागच्छ); पंन्या. विजयसागर (गुरु आ. आनंदसागरसूरि, तपागच्छ); आ. आनंदसागरसूरि (गुरु मु. झवेरसागर, तपागच्छ); लिख. श्राव. नरेशचंद्र कांतिलाल; श्राव. रमेशचंद्र कांतिलाल; श्राव. जयंतकुमार कांतिलाल; श्राव. अशोककुमार कांतिलाल, प्र.ले.पु. अतिविस्तृत, प्र.वि. हुंडी:आवश्यकवृत्ति०. विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका है., संशोधित-संशोधित., दे., (२९x१५, १७७१). आवश्यकसूत्र-निर्यक्ति की शिष्यहिता टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: मिच्छंतीति गाथार्थः, (पू.वि. नियुक्ति गाथा-१०५५ की टीका का अंतिम पाठांश है.) १०६२६० (+#) धर्मोपदेश कवित्तसवैयादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१४.५, १२४४३). धर्मोपदेश कवित्तसवैयादि संग्रह, श्राव. त्रिलोकचंद, पुहिं., पद्य, आदि: सम्यक दरसन लहिय अलपभवथिति; अंति: समसकल संग तजि भए उदास, गाथा-२७. १०६२६४. चतुर्विंशतितीर्थंकर लंछन चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. १८४२, कार्तिक शुक्ल, १४, मंगलवार, मध्यम, पृ. १००-९९(१ से ९९)=१, ले.स्थल. बुंदीनगर, पठ. मु. नंदलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सम्यक्तकौ०., जैदे., (२८.५४१४.५, ९४३०). २४ जिन लंछनवर्णन चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजिनेश्वर वृषभ अजित कै; अंति: वीरनाथनै हरी लह्यौ, ___गाथा-२, संपूर्ण. १०६२६५. (+) सुगंधदशमी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२८x१४.५, ५४३३). सुगंधदशमीव्रत कथा, मु. राजचंद्र, सं., पद्य, आदि: पार्श्व प्रणम्य पापघ्नं; अंतिः प्रोक्तं राजचंद्र पुरोधतः, श्लोक-५०. सुगंधदशमीव्रत कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सुगंध दसम्यां कथा वक्षे; अंति: पाछै हराइचंदनाम छै जी. १०६२६८.(+#) शीलसंदरी रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२९.५४१४, १२४३४). शीलसुंदरी रास, मु. धनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९२२, आदि: सकल सिद्धि समृद्धि पंचपदे; अंति: वसीये भवि गुणशालाजी, उल्लास-४, (वि. ढाल-१७.) १०६२६९ (+) सारस्वत व्याकरण की दीपिका टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३१-३(४८,६३ से ६४)+२(७,४१)=१३०, प्र.वि. हुंडी:च.की.टी. पत्रांक नं. ७९+५२=१३१ हैं., संशोधित., जैदे., (३०x१४.५, १८४४२-५०). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: नमोस्तु सर्वकल्याण; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वृत्ति-३ "गुङ गतौ" सूत्र की वृत्ति अपूर्ण तक लिखा है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०६२७५. (#) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८१४, फाल्गुन शुक्ल, ५, बुधवार, मध्यम, पृ. १४, प्रले. मु. हमीरसागर (गुरु पं. उमेदसागर); गुपि.पं. उमेदसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चोमासी व्याखान., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१५, १४४३०). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं स्फुरज्ज्ञा; अंति: व्याख्यानमाख्यानभूत्, ग्रं.४०१. For Private and Personal Use Only Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०६२७९ (+) विपाकसूत्र-श्रुतस्कंध २, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१४.५, १६x४४). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अध्ययन-१ अपूर्ण तक है.) १०६२८५ (+) रघुवंश सह सुगमार्थप्रबोधिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५१-४(१,१५ से १७)=४७, पृ.वि. प्रथम एक, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, प्र.वि. हुंडी:र०का०टी०., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (३०x१४.५, १८४४६-५२). रघुवंश, क. कालिदास, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-१ श्लोक-३ से सर्ग-२ श्लोक-१७ अपूर्ण तक व सर्ग-२ श्लोक-३९ अपूर्ण से सर्ग-५ श्लोक-६२ तक है.) रघवंश-सगमान्वयाप्रबोधिका टीका, म. समतिविजय पंडित, सं., गद्य, वि. १६३०, आदि: (-); अंति: (-). १०६२९० (+#) स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८-६(१ से ६)=१२, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (३०.५४१४, १०४३१-४०). १.पे. नाम. एकीभाव स्तोत्र, पृ. ७अ-७आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. वादिराजसूरि, सं., पद्य, ई. ११वी, आदि: (-); अंति: वादिराजमनुभव्य सहायः, श्लोक-२६, (पू.वि. श्लोक-१८ अपूर्ण २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ७आ-११आ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि; अंति: कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. ३. पे. नाम. भूपालचतुर्विंशतिका, पृ. ११आ-१३आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तव, श्राव. भूपाल, सं., पद्य, आदि: श्रीलीलायतनं महीकुल; अंति: भूयात् पुनदर्शनम्, श्लोक-२५. ४. पे. नाम. विषापहार स्तोत्र, पृ. १३आ-१६अ, संपूर्ण. जै.क. धनंजय कवि, सं., पद्य, ई. ७वी, आदि: स्वात्मस्थितः सर्वगत; अंतिः सुखानि यशोधनंजयं च, श्लोक-४०. ५. पे. नाम. सिद्धिप्रिय स्तोत्र, पृ. १६आ-१८अ, संपूर्ण. आ. देवनंदी, सं., पद्य, ई. ६वी, आदि: सिद्धिप्रियैः प्रतिदिनं; अंति: तातः सतामीशिताः, श्लोक-२६. १०६३०४. (+#) सप्तव्यसन कथा, संपूर्ण, वि. १८२८, श्रावण कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ९८+१(७३)=९९, ले.स्थल. नग्रकोटा, लिख. मु. गुलाबचंद, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९.५४१४, ११४३२). सप्तव्यसन कथासमुच्चय, म. सोमकीर्ति, सं., पद्य, वि. १५२६, आदि: प्रणम्य श्रीजिनान्; अंति: ग्रंथो भव्यजनार्चितः, सर्ग-७, श्लोक-६७३, ग्रं. २०६७. १०६३१२. कथा संग्रह-८ प्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२-३४(१ से १८,२२ से २८,३३ से ४१)=८, जैदे., (२५.५४१५, १२४३५). कथा संग्रह-अष्टप्रकारी पूजा, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., गंधपूजाविषये मदनावली कथा श्लोक-८ से ७० अपूर्ण तक, मृगांक कथा श्लोक-१०३ अपूर्ण से १९३ अपूर्ण तक व अक्षतपूजा कथा श्लोक-४६ अपूर्ण से १५६ अपूर्ण तक है.) १०६३१३. (+) श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १९०२, वैशाख शुक्ल, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १८७, प्रले. पंडित. परमसुख जोषी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:श्रीपा०., संशोधित., दे., (२६४१४.५, ९४२७). श्रीपाल चरित्र, जै.क. परिमल्ल रामदास, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र विधि केवल; अंति: सुरपति हुंथे अथिकम जेज, (वि. गाथा-२२४२.) १०६३१५. चतुर्विंशति तीर्थंकर पूजा, संपूर्ण, वि. १९५७, फाल्गुन शुक्ल, ९, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ७७, ले.स्थल. बुंदी, प्रले. कृष्णचंद्र ब्राह्मण गुर्जरगोड; लिख. श्राव. छोटूलाल सामर्या; पठ. श्राव. नाथूलाल (पिता श्राव. छोटूलाल सामर्या); अन्य. पंडित. नेमिलालजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हुंडी:चौं.पू., दे., (२७४१७.५, १०४२९). २४ जिन पूजा, श्राव. रामचंद्र चौधरी, पुहि., पद्य, वि. १८५४, आदि: सकल सिद्धिदायक जगत मंगल; अंति: ग्रंथ रच्यौ सुभजांनि, पूजा-२४. For Private and Personal Use Only Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०६३१६. अनुभूतिसिद्धसारस्वत स्तोत्र, भैरव स्तुति व रामाष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२७.५४१४, १८४३९). १. पे. नाम. अनुभूतिसिद्धसारस्वत स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: करमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३. २. पे. नाम. भैरव स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: करकलतिकपाल कुंडलि मंडपाणि; अंति: श्रीभैरवायं नमोस्तुते, श्लोक-३. ३. पे. नाम. रामाष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: सुग्रीव मित्रं परमं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१ अपूर्ण तक लिखा है.) १०६३१९ (+) पार्श्वजिन चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३७-२१(१ से २१)=१६, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:पार्श्वचरीत्र., संशोधित., दे., (२६४१५, १७४२९). पार्श्वजिन चरित्र, ग. उदयवीर, सं., प+ग., वि. १६५४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-१ पाठ "वंदनात् दर्गतिद्वयं न भवति" से सर्ग-२ पाठ "पुनः नारदोपि जगाद" तक है.) १०६३२० (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:कल्याणमंदिरटी, संशोधित-त्रिपाठ., जैदे., (२८x१५, २१४५६-५९). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमदारमवद्यभेदि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२२ तक है.) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टीका, पा. हर्षकीर्ति, सं., गद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिनं नत्वा; अंति: (-). १०६३२१. प्रतिक्रमणसूत्र, १० प्रत्याख्यान व स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६-४(७ से १०)=२२, कुल पे. १७, जैदे., (२७.५४१४.५, १२४२४-२८). १.पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृति नाम 'सीमंधरचैत्यवंदन स्तुति' ऐसा लिखा है. सं., पद्य, आदि: द्विपितृसीमंधर तं नमामि; अंति: गतिचतुष्कं कर्मणामष्टकं च, श्लोक-४. २.पे. नाम. देवसिराई प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ-१६अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. देवसियराईय प्रतिक्रमणसूत्र, संबद्ध, गु.,प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: वचन तस्स मिच्छामि दुक्कडं, (पू.वि. आयरिय उवज्झाए गाथा-१ अपूर्ण से सामायिक विधि अपूर्ण तक नहीं है.) ३. पे. नाम. १० पच्चक्खाण, पृ. १६अ-१८अ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सरे नमुक्कार; अंति: महत्तरागारेणं वोसिरे. ४. पे. नाम, पच्चक्खाण पारणक गाथा, पृ. १८अ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-हिस्सा पच्चक्खाण पारणक गाथा, प्रा., पद्य, आदि: फासियं १ पालियं २ सोहिय; अंति: तस्स मिच्छामि दुक्कडं. ५. पे. नाम. विजयदिन थुई, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: लबधि० पूरि मनोरथ माय, गाथा-४. ६. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण. पंचमीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुविधिनाथजिण जनम पंचमि; अंति: जेह तेहनैं सुख करनी, गाथा-४. ७. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण. ___ अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी अष्ट परमाद; अंति: तस विघन दरे हरे, गाथा-४. ८. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. १९आ, संपूर्ण. एकादशीतिथि स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रेआंसजिन ग्यारमो; अंति: चौविहसंघ नित तेह मंगल करु, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ९. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-दशपुरमंडण, मु. उदयसागर, मा.गु., पद्य, आदि: दसपुरमंडण सोहें नोफण जग; अंति: गुणसागर०तास उदो करये माया, गाथा-४. १०. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: सदा सर्वकार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ११. पे. नाम. सेनुंजय स्तुति, पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पुहि., पद्य, आदि: आगे पूरव वार निनाj; अंति: देवा कारिज सिद्ध हमारी जी, गाथा-४. १२. पे. नाम. नवपदसिद्धचक्र आंबिलतप विचार, पृ. २१अ-२२अ, संपूर्ण. नवपद तपविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं नमो अरिहंताणं; अंति: पूजा करें सक्तिसारू कीजै. १३. पे. नाम. पंचमीतप विधि, पृ. २२अ, संपूर्ण. पंचमीतप पारने की विधि, मा.ग., गद्य, आदि: पंचमी पांचवरस उपवास करे; अंति: चतुर्विधसंघनी भक्ति करें. १४. पे. नाम, अतीतअनागतवर्तमान २४ जिन नाम, पृ. २२आ-२३आ, संपूर्ण. ___मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अतीत चौईसी १केवलज्ञानी०; अंति: २४ श्रीप्रभाकरजी. १५. पे. नाम. २० विहरमानजिन नाम, पृ. २३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ श्रीसीमंधरजी; अंति: २० श्रीअजितवीर्यजी. १६. पे. नाम. ११ गणधर नाम, पृ. २४अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ इंद्रभूति गणधर; अंति: ११ प्रभात गणधर. १७. पे. नाम. २४ जिन १२० कल्याणक कोष्ठक, पृ. २४अ-२६आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: कार्तिकवदि १ नाणं; अंति: आसो सुदि चवण नेमिस्सउ १, (वि. अंत में दीपावली का गुणणा दिया है.) १०६३२३. (+) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७४१४.५, ७४३५). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं __ हैं., अध्ययन-३ अपूर्ण पाठ "अणोगखंभसयसंन्निविट्ठा पासादीया" तक है.) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिणकालने वि तिणसमएने; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ___ अध्ययन-१ अपूर्ण तक लिखा है.) १०६३२४. (+2) प्रवचनसारोद्धार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३८-१(१)=३७, पृ.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१५, ४४३५). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से २७४ अपूर्ण तक है.) प्रवचनसारोद्धार-टबार्थ, मा.ग., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). १०६३२७. २४ जिन अष्टप्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-१८(१ से १८)-४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:चोवि.पू., चो.पू., दे., (२५.५४१५, ९-१८x१८-३९). २४ जिन अष्टप्रकारी पूजा-प्रत्येकजिनभिन्नभिन्न, मु. रामचंद्र, पुहिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सुपार्श्वनाथ पूजा अपूर्ण से पुष्पदंत पूजा अपूर्ण तक है.) । १०६३२८. गौतमपृच्छा बोल, संपूर्ण, वि. १९१२, श्रावण कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. देपर, प्रले. मु. केसरीचंद; पठ. सा. चांदकुँवरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१४.५, १३४२२-२५). गौतमपृच्छा ९७ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: कहो स्वामि कणां होय; अंति: पडाव्या तेहना प्रताप. For Private and Personal Use Only Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मू ४६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०६३२९. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२४.५४१४.५, ४४३६). नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जीवा१ जीवार पुन्नं३; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६८ अपूर्ण तक है.) नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तत्त्वना नाम कहीयै छै; अंति: (-), (वि. आदिवाक्य अपूर्ण व अस्पष्ट है.) १०६३३० (+) मूर्तिपूजामतपुष्टि, अस्वाध्याय विचार व विविध प्रश्नोत्तरादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. ९, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४.५४१४.५, १३४३०). १. पे. नाम. ग्रहण प्रश्न, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.. असज्झाय विचार-चंद्रसूर्यग्रहण, पुहिं.,मा.गु., गद्य, आदि: सूर्यचंद्रग्रहण का १ इहा; अंति: तप होय तो विषेष अछा हे. २. पे. नाम. प्रश्न संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. बोल संग्रह-आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: केवलज्ञान केवलदर्शन एक; अंति: स्थानक छै ते माटे कह्यो. ३. पे. नाम. द्रौपदी प्रश्न, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-अध्ययन १६ मूर्तिपूजामतस्थापन विचार द्रौपदी प्रसंग आधारित, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीज्ञातासूत्र का सोलमा; अंति: जाणीने नमस्कार न कयौं. ४. पे. नाम. पूजापाठ सह टबार्थ, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. पूजामतपष्टि शास्त्रपाठ संग्रह, प्रा., गद्य, आदि: से भयवंतहारूवं समणं वा; अंति: पुप्फ व छाईए पुआ कायव्वा. __ मूर्तिपूजामतपुष्टि शास्त्रपाठ संग्रह-टबार्थ, पुहिं., गद्य, आदि: सो भगवान गुणे करी; अंति: वस्त्रादि करी पूजा करणी. ५. पे. नाम.५ सम्यक्त्व नाम, पृ. ६आ, संपूर्ण.. मा.गु., गद्य, आदि: उपसमसमकीत१ सास्वादन; अंति: सम्यक्त्व४ खयोपसम्यक्त्व५. ६.पे. नाम.५ आश्रव नाम, पृ. ६आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व५ अविरति १२; अंतिः कषाय४ जोग५. ७. पे. नाम. ४ सामायिक नाम, पृ. ६आ, संपूर्ण. मा.ग., गद्य, आदिः श्रुतसामाईक१ समकितसामाइक२; अंति: सामाईक३ सर्वविरतसामाईक४. ८. पे. नाम. सामान्य बोल संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण. बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: माहाविदेहनी बीजइ माहि एक; अंति: वज्रसंठाणसंठिया भासा छे. ९.पे. नाम. नाडी फल श्लोक संग्रह सह बालावबोध, पृ. ६आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नाडी फल श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: सबोछवंजगण विवाहे काले; अंति: (-). नाडी फल श्लोक संग्रह-बालावबोध, मा.ग., गद्य, आदि: शुभ कार्य करतां अलंकार; अंति: (-). १०६३३१. शीलकुलक सह व्याख्या व कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८-२८(१ से १६,१९ से ३०)=१०, दे., (२३४१४.५, २३४४०). शील कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ से १० तक लिखा है.) शील कुलक-व्याख्या कथा, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा __ अपूर्ण., सुभद्रासती कथा अपूर्ण से है, अरिमर्दनराजा कथा अपूर्ण तक लिखा है व बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०६३३९ (+) राजुल पच्चीसी व मेघकुमार चौढालिया, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१५४१४, १३४१३-१६). १. पे. नाम. राजुल पच्चीसी, पृ. १अ-८आ, संपूर्ण, वि. १८४५, ले.स्थल. नवलगढ, पठ. श्राव. सावत; राज्यकाल नरसिंह दास, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ राजिमतीपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम ही समरौं; अंति: सिद्ध सब मंगल धरे, गाथा-२६. २. पे. नाम. मेघकुमार चौढालिया, पृ. ९अ- १२आ, संपूर्ण, वि. १८०६, ?, आश्विन शुक्ल, बुधवार. क. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: देस मगधमाहे जाणीयइ; अंति: कवि कनक भणइ निशदीश, ढाल - ४, गाथा-४७. १०६३४२. (+) यशोधर रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३९, ले. स्थल अंजनग्राम, अन्य श्राव. नेमासा खेडकर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५X१४, ११x२२-२५). यशोधर रास, मु. जिनदास ब्रह्मचारी, मा.गु., पद्य, वि. १६वी आदि मुनिसुव्रत जिन जिन अंति: तेहनि शिवपुरी ठाम, गाथा-४६. १०६३४३. सुगंधदशमी कथा संपूर्ण वि. १९७४ भाद्रपद शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. अलवर, प्रले भागचंद छावड़ा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३४१४, ८X३२). सुगंधदशमी व्रत कथा, क. महाचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १४१९, आदि वर्द्धमान जिन चरण नित नमि; अति जिनवर देव चरण सिर लवै, गाथा- ४५. १०६३४४. (*) प्रतिक्रमणविधि, आणंदश्रावक संधि, पंचआरा सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पू. ४६, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २२x१४, १०X३०-३५ ). १. पे नाम प्रतिक्रमण विधि, पृ. १अ २१आ, संपूर्ण. देवसिप्रतिक्रमण विधि- खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि इच्छामि खमासमणो बंदि अंति: करी मिच्छामि दुक्क. २. पे. नाम. आणंदश्रावक संधि, पृ. २१-४२अ, संपूर्ण, वि. १८८८, आश्विन शुक्ल, १३, प्रले. मु. मेरुविलास (गुरु मु. मानसिंधु); गुपि. मु. मानसिंधु (गुरु ग. सुगणहेमजी); ग. सुगणहेमजी आ. कीर्तिरत्नसूरि (बृहत्खरतरगच्छ प्र.ले.पु. मध्यम. ४६३ ', आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि : वर्द्धमानजिनवर चरण; अंति: पभणइ मुनि श्रीसार, ढाल - १५, गाथा - २५१. ३. पे. नाम कलंकीराजा जन्मपत्रिका, पृ. ४२आ-४४आ, संपूर्ण. कलंकी जन्मपत्री फलकथन, प्रा. मा. गु. रा. गद्य, आदि: मम निव्वाणं गोवमा अति शास्त्रमांहि कह्यौ छे. " ४. पे. नाम. पांचमाआरानी सिज्झाय, पू. ४४आ- ४६अ, संपूर्ण, पंचम आरा सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कठै गोयम सूनो अति समयसुंदर० रसालो रे, गाथा - २१. १०६३४५. (+) समयसार की टीका, संपूर्ण वि. १९०९, मार्गशीर्ष शुक्ल १४ शनिवार, मध्यम, पू. २०६, प्र. वि. संशोधित. दे., "" (२३.५x१४, १४-१७४३० ). समयसार - आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि : करम भरम जग तिमिर हरन; अंति नाममइ परमारथ विरतंत, अधिकार- १३, गाथा-७२७, ग्रं. १७०७. १०६३४९. पट्टावली, अपूर्ण, बि. २०वी मध्यम, पृ. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. वे. (२७.५x१५, १३४३०). For Private and Personal Use Only पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानस्वामी चोथा अंति: (-), (पू. वि. श्रीविजयमुनिचंद्रसूरि पट्टावली अपूर्ण तक है.) १०६३५६. आर्द्रकुमार कथा, रोहिणेयचोर कथा व भरतचक्रवर्ती कथा सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४०-३३ (१ से २२,२४ से ३४)=७, कुल पे. ३, जैदे., (२८x१४, ६x२२-२५). १. पे. नाम. आर्द्रकुमार कथा सह टबार्थ, पृ. २३-२३आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. आर्द्रकुमार कथा, सं., पद्य, आदि (-); अंति (-), (पू.वि. श्लोक ६४ अपूर्ण से ७४ अपूर्ण तक है.) Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आर्द्रकुमार कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. रोहिणेयचोर कथा सह टबार्थ, पृ. ३५अ-३७आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. कर्पूरप्रकर-रोहिणेयचोर कथा, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: निवहा अजरामरा स्युः, श्लोक-७६, (पू.वि. श्लोक-५१ __ अपूर्ण से है.) कर्पूरप्रकर-रोहिणेयचोर कथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अजर अमर इतरै सिइ होस्यौ. ३. पे. नाम, भरतचक्रवर्ती कथा सह टबार्थ, पृ. ३७आ-४०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. भरतचक्रवर्ती कथा, सं., पद्य, आदि: सुख सोहित्य भृत वात; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३१ अपूर्ण तक है.) भरतचक्रवर्ती कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभरतचक्री कथानक सुखना; अंति: (-). १०६३५७. (-#) नेमराजिमती चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २२, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१४.५, १०४२५). नेमराजिमती चौपाई, पुहिं., पद्य, आदि: पेली वाड० जीन सोवन वरण; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२८ गाथा-१ अपूर्ण तक १०६३५८.(+) स्तुति, स्तोत्र व चैत्यवंदनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २३-१४(१ से १४)=९, कुल पे. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४१४, १४४२८). १. पे. नाम, संतिकर स्तोत्र, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. संतिकरं स्तोत्र, आ. मनिसंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं; अंति: स लहइ सुह संपयं परमं, गाथा-१४. २. पे. नाम, अजितशांति, पृ. १५आ-१८आ, संपूर्ण. अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संतिं च; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. ३. पे. नाम. मोटी शांति, पृ. १८आ-२०आ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयतु शासनम्. ४. पे. नाम, दस पच्चक्खाण, पृ. २०आ-२१आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सुरे उग्गए अब्भत्त; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ. ५. पे. नाम. पाक्षिक चैत्यवंदन, पृ. २१आ-२३आ, संपूर्ण. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: जिनसाक्षात्सुरद्रुमः, श्लोक-३८. ६. पे. नाम. पाक्षिक स्तुति, पृ. २३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्याप्रतिमस्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण तक है.) १०६३५९ (+) जिनबिंब प्रतिष्ठा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., दे., (२६४१४.५, १८४३१-३६). जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: उदर ऊपर अधवासत करै सही. १०६३६० (+) पुन्यप्रकाश, संपूर्ण, वि. १९०२, वैशाख कृष्ण, ४, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. येवला, प्रले. मु. धनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:आलोयणाछे., संशोधित., दे., (२५.५४१४, ११४३४). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए, ढाल-८, गाथा-१११. । १०६३६४. (+) वीस स्थानक पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१४.५, ११४२९). For Private and Personal Use Only Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org १. पे. नाम. नवस्मरण-स्मरण ४ से ९, पृ. १अ - २०आ, संपूर्ण. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा. सं., प+ग, आदि (-); अति (-), प्रतिपूर्ण, २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी, अंति: लक्ष्मी० सयलसंघ जयकरू, डाल-२० (वि. अंत में पूजा विधि लिखी है.) " १०६३६६. नवस्मरण व सकलार्हत् स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९२० वैशाख शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. २०, कुल पे. २, दत्त श्राव. वीरचंद शाह (पिता श्राव. दीपाजी शाह); गुपि श्राव. दीपाजी शाह, गृही. मु. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: अजिश, शांतिव सकलाई, तिजयपो व नमिऊण, दे. (२६१४, ८x२० ). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे नाम. सकलात् स्तोत्र, पृ. २०आ, संपूर्ण, पे.वि. वास्तव में यह कृति पत्रांक १२ब से १५ब पर है. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलाईत्प्रतिष्ठानम; अंति: मरालायर्यते नमः, लोक-२६. १०६३७०. शांतिकर्म पूजा विधि, संपूर्ण, वि. १८८०, ज्येष्ठ शुक्ल, २, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ३+३ (१ से ३) = ६, ले.स्थल. कास्मीरपुरनगर, प्रले. उपा. सुमतिसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी: शांतीनाथजीना स्नात्रकलश, जैवे. (२६४१३.५, १४४३५-३८) शांतिस्नात्र विधि, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु. सं., पद्य, आदि अध प्रतिष्ठायां वा; अंतिः खेत्रदेवता पुजी नमी . १०६३७२. ऋषभदेवजी स्तवन, वीर थुई व पंचमी बृहत्स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९६, आश्विन कृष्ण, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३. जैवे. (२७४१७, १३४२८). १. पे. नाम ऋषभदेवजी स्तवन, पृ. १अ २अ संपूर्ण वि. १८९६, भाद्रपद शुक्ल, १४. आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदि जिणेसर तू परमेसर; अंति: भंजण मुक्तिवरंगण सोवरही, गाथा-२१. २. पे. नाम वीर थुई. पू. २अ- ३आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव बृहत् आ. अभवदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि जब जा समणे भयवं महावीर, अंति पढी कही अभवदेवसूरीणं, गाथा २२. ४६५ י 1 ३. पे. नाम. पंचमी बृहत्स्तवन, पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, आदि प्रणमुं श्रीगुरु पाय; अंति: भगति भावप्रशंसयो, ढाल -३, गाथा - २४. १०६३७३. (१) विजयसेठविजयासेठाणी चौपड़-शीलप्रबंध, संपूर्ण वि. १८२१ आश्विन शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ५, प्रले. गंगाराम पंडित पठ. श्राव, मथुरादास ओसवाल (पिता श्राव, शुभकरणदास ओसवाल); गुपि श्राव. शुभकरणदास ओसवाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. २००, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७.५X१७, १७x४१). विजयसेठविजयासेठाणी चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १६८९, आदि: प्रणमी पास जिणंद पद, अंति: सवि उपसमइ निरमल हुवइ गात, ढाल ११. गाथा- १४१. १०६३७४ (+) भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १९३६, ज्येष्ठ कृष्ण, १३ अधिकतिथि, मध्यम, पृ. ११, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. दे., , (२६×१३.५, ५-१७४३२-३८). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., प+ग., वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं, भाष्य-३. १०६३७५. गोम्मटसार, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १७, वे. (२६४१४, ७४३३) 1 गोम्मटसार, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सुद्धं पणमिय, अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. अधिकार- १ गाथा १११ तक लिखा है.) १०६३९४. (+#) द्रव्यसंग्रह सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११२, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (३०.५X१४, ११×३१-३४). द्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि जीवमजीवं दव्वं जिणवर; अंति: मुणिणा भणियं जं, अधिकार-३, गाथा ५८. For Private and Personal Use Only Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची द्रव्य संग्रह-वृत्ति, आ. ब्रह्मदेव, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं सिद्धं अंतिः प्रतिपाकनामा तृतीयोधिकार. १०६३९५. (+) मूलाचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१ + १ (४१) = ४२, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. हुंडी : मूलाचा०, संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (२९x१४ ५४१६). " मूलाचार, आ. वट्टेरकाचार्य, प्रा., पद्य, आदि मूलगुणेसु विसुद्धे अति (-) (पू.वि. अधिकार-४ गाथा ५७ अपूर्ण तक है.) १०६३९७ (+) आत्मप्रबोध सह स्वोपज़ टीका व वीजक, अपूर्ण, वि. १९४७ ऋषिवेदांकभूवर्षे, मार्गशीर्ष कृष्ण, ५, सोमवार, मध्यम, पू. २१३-१ (१)=२१२, कुल पे. २, ले. स्थल मकसूदाबाद, प्रले, मु. कृष्णलाल (लोकागच्छ बृहन्नागपुरीय): सा. रिद्धकुमरी (लॉकागच्छ-बृहन्नागपुरीय) अन्य. मु. चंदनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी आ०प्र०ध०, आत्मप्रबोध.. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ६५००, जैदे., (२९x१३, १३×३६-३९). १. पे. नाम, आत्मप्रबोध सह स्वोपज्ञ टीका, पृ. २अ २०९आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, सं., प+ग., वि. १८३३, आदि: (-); अंति: भवंति ते स्वल्प संसाराः, प्रकाश-४, श्लोक-१८१, (पूर्ण, पू.वि. लोक-४ से है.) आत्मप्रबोध- स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. जिनलाभसूरि, सं., गद्य वि. १८३३, आदि (-); अंति: ग्रंथः सद्बोधभक्तिभृता, (पूर्ण, पू.वि. श्लोक-३ की टीका अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आत्मप्रबोध का बीजक, पृ. २०९ आ-२१३आ, संपूर्ण. आत्मप्रबोध-बीजक, सं., गद्य, आदि अथाद्यप्रकाशे यथा भव्या अंति विद्याचारण गतिविशयविचारः. १०६३९८. (+) नंदीश्वरपूजा विधान, संपूर्ण, वि. १९४१, पौष शुक्ल, ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३४, ले. स्थल. पराणा, प्रले. पंडित, भरुवगस पंचोली ब्राह्मण; अन्य श्राव. मीठालाल (पिता श्राव. गणेशजी); गुपि श्राव. गणेशजी (पिता श्राव. सुखलालजी सर्राफ); श्राव. सुखलालजी सर्राफ, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. हुंडी. पं. मे. पू. संशोधित., दे., (२९.५X१४, १३४४०). नंदीश्वरदीप पूजा, पुहिं.,सं., प+ग, आदि: वानी पूजौ देवाकेरी तातै; अंति: (१) संपजौ जै जै जै जिनराय, (२)शास्त्रन समझ लेना. १०६४०० (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९२६, भाद्रपद कृष्ण, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. ६९-६ (३ से ६, ९, ११)=६३, ले. स्थल, अजीमगंज, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. वे. (३०x१३.५, १०x२९-३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे, अंतिः भुज्जो उबदंसेइ तिबेमि, व्याख्यान- ८, ग्रं. १२१६ (पू.वि. महावीर चरित्र अपूर्ण है.) १०६४०२. जीवविचारादि विविध बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १२२-१५ (१ से ६,१११ से १९१९) १०७ पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. दे. (२८.५X१४, ७-८७-११). वोल संग्रह - जीवादि भेद", मा.गु., गद्य, आदि (-); अति (-) (पू. वि. प्रमानंद स्तोत्र से जोग वर्णन अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०६४०७ (०) जिनसहस्रनाम स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५. पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२७.५४१४, १४४२९). जिनसहस्रनाम स्तोत्र, आव, आशाधर, सं., पद्य वि. १२८७, आदि: प्रभो भवांगभोगेषु अति: (-) (पू.वि. श्लोक-१२५ " For Private and Personal Use Only अपूर्ण तक है.) १०६४०८ (+४) १४ गुणस्थानक मार्गणा प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २५-२ (१ से २ ) = २३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२७.५४१४, ८-१३४३४-३८) १४ गुणस्थानक मार्गणा प्रकरण, प्रा., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१८ अपूर्ण से है व १९३ अपूर्ण तक लिखा है.) Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ १०६४१०. उपदेशमाला सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १९०८, फाल्गुन कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १६८, प्रले. हणुतरामजी; दत्त. श्राव. सुमेरदत्त; गृही. मु. रतनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में 'संवत् १९१० मती कार्तिक वदी १० के दन साधुजी श्रीखरतरगच्छ सुमेरदत्तजी ने परत रतनवीजेजी दीधी छै.' ऐसा लिखा है., कुल ग्रं. १२०००, ., (२७.५४१३.५, ५-१५४३४-३८). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: वयण विणिग्गया वाणी, गाथा-५४४. उपदेशमाला-बालावबोध, म. वद्धिविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७१३, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: वाणी श्रुतदेवता ते, (वि. बालावबोध टबार्थ की शैली में लिखा गया है.) उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्वा वीरजिनं; अंति: शोधनीयैव सुधीधनैश्च. १०६४११. (+#) भगवतीसूत्र सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १३५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:भगवतीसूत्र., पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८.५४१४, १७७३४-४०). भगवतीसूत्र, आ. सधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरहंताणं० सव्व; अंति: (-), (पृ.वि. शतक-८ उद्देश-९ अपूर्ण तक है.) भगवतीसूत्र-टिप्पणक *, सं., गद्य, आदि: कः शव्दार्थ उच्यते विविधा; अंति: (-). १०६४१३. (#) कल्पसूत्र सह व्याख्यान+कथा-१ से ४ व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६८, प्र.वि. द्विपाठ-त्रिपाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८.५४१३.५, ३-८४३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-), प्रतिपर्ण. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०६४१४. (+) चतुर्विंशतिजिन नाम, २४ जिन नाम व दर्शन स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-२(१ से २)+१(६)=८, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८.५४१४, ९४३५). १. पे. नाम. वर्तमान चतुर्विंशतिजिन नाम, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. २४ जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: महावीरजी २४, अंक-२४, (पू.वि. तीर्थंकर-७ से है.) २.पे. नाम. २४ जिन नाम-अनागत, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. कृति के अंत में तीन चोवीसीजिन नाम दिया है. ____ मा.गु., गद्य, आदि: महापद्मजी सुरदेवजी; अंति: दिव्यवादजी अनंतवीर्यजी. ३. पे. नाम. दर्शन स्तोत्र, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:दर्शनस्तोत्र०. ___ सं., पद्य, आदि: दर्शनं देव देवस्य दर्शनं; अंति: अनंतफल तव जिनवर दिठेह, श्लोक-१३. ४. पे. नाम. पंचमंगल स्तवन, पृ. ४अ-९अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:पंचमंगल०. पंचकल्याणक मंगल, मु. रूपचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि पंच परम गुरु; अंति: मनुदेव चउसंघहि जये, ढाल-५, गाथा-२५. १०६४१५. आगमसारोद्धार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७.५४१४.५, १३४३५). आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: हिवै भव्यजीवने; अंति: (-), (पू.वि. उत्तराध्ययनसूत्रगत मोक्ष के चार कारण अपूर्ण तक है.) १०६४१७. (#) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-४(१ से ४)=५, प्र.वि. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., (२८x१३.५, ४-५४२८). नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४७, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., गाथा-२१ अपूर्ण से है.) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: कालि वली अनंतगुणा हुस्यइ, पू.वि. अंत के पत्र हैं. १०६४१८. (#) प्रतिक्रमणसूत्र, स्तुति व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, कुल पे. ५७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१३.५, १२४३३). For Private and Personal Use Only Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे नाम, प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ- ६आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी प्रतिक्रमणसू. साधु श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह- खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, आदि णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाण; अंति संघस्स समुन्नइ निमित्तं. २. पे. नाम, प्रव्रज्या प्रकरण, पृ. ६आ-८अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी प्रवृज्याप्रकर. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संसार विसमसायर भवजल; अंति: तरंति ते भवसलिलरासिं, ३. पे. नाम, साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ८अ ११अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: साधुप्रतिक्रम. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि चत्तारि मंगलं अरिहंत, अंतिः वंदामि जिणे चडवीसं सूत्र- २१. ४. पे नाम, पार्श्वनाथजिन स्तवन- स्थंभनकतीर्थराज, पू. ११अ १३आ, संपूर्ण, पे. वि. हंडी नमस्कार०. नमस्कार. प्रक. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख जय; अंति: अभय ० विन्नवह अणिदिव गाथा - ३०. ५. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १३-१५आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी: श्रार्द्धप्रति. वंदितुसूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि बंदिनु सव्वसिद्धेः अंतिः वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. गाथा - ३४. ६. पे. नाम. राईसंथारा गाथा, पृ. १५आ- १६आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : संथारा. गा. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि निस्सिही निस्सिही; अंतिः वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा- १४. ७. पे. नाम. सीमंधरस्वामिद्वितीया स्तुति, पृ. १६-१७अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी: थूहीपत्र. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि महीमंडणं पुन्नसोवन्न, अंति देहि मे सुद्धनाणं, गाथा ४. ८. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १७अ १७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : थूहीपत्र. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि पंचानंतकसुप्रपंच परमानंद अंतिः सा सिद्धायिका नायिका श्लोक-४. ९. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : थूहीपत्र. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमुं; अंति: जीवित जनम प्रमाण, गाथा-४. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति १, पृ. १८अ संपूर्ण, पे. वि. हुंडी धूहीपत्र. पार्श्वजिन स्तुति पनांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि शमदमोत्तमवस्तुमहापणं अंति: जयतु सा जिनशासनदेवता, श्लोक-४. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति - २, पृ. १८अ - १८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : थूहीपत्र. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञं ज्योतिरूपं; अंतिः बुद्धिं वृद्धिं वैदुष्यम्, श्लोक-४. १२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति - ३, पृ. १८-१९अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : थूहीपत्र. पार्श्वजिन स्तुति समवसरणभावगभिंत, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि हर्षनतासुरनिर्जरलोकं अंतिः पमज्जन शस्तनिजाय, लोक-४. १३. पे नाम आदिजिन स्तुति, पृ. १९अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी बूहीपत्र. सं., पद्य, आदिः युगादि पुरुषेंद्राय अति कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. " १४. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. १९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी थूहीपत्र, " सं., पद्य, आदि: वर्दहिनमनादेव देहिन; अति जनानवतु नित्यममंगलेभ्यः श्लोक-४. १५. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १९अ - १९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : थूहीपत्र. मा.गु., पद्य, आदि: बालपणे डाबो पाय; अंति: मल काम चदै प्रमाणो, गाथा ४. १६. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: थूहीपत्र. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरल कुवल गवल अति देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. १७. पे नाम आदिजिन स्तुति, पृ. २०अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी बूहीपत्र. For Private and Personal Use Only Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुत्तियहार सुतारगुणं; अंति: सुहाणि कुणेसु सया, गाथा-४. १८. पे. नाम. २४ जिन स्तुति, पृ. २०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:थूहीपत्र. प्रतिलेखक ने कृतिनाम आदिजिन स्तुति लिखा है. अप., पद्य, आदि: भरहेसरकारि अदेव हरे; अंति: विगणंतु अणंतदहंसगुणा, गाथा-२. १९. पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. २०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:थूहीपत्र. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: दद्यात्सौख्यम्, श्लोक-१. २०. पे. नाम. पार्श्व स्तुति, पृ. २०आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:थूहीपत्र. पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन नरेसर वामा; अंति: जिनभक्ति० बहु वित्त, गाथा-४. २१. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:थूहीपत्र. ___मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमिजिन; अंतिः सुखं विस्मितहृदः क्षितौ०, श्लोक-४. २२. पे. नाम. चतुर्दशी स्तुति, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:थूहीपत्र. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: देंद्रे कि धप मप धूमि; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. २३. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. २१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:थूहीपत्र. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: ऋषभनाथभिनाथनिभानन; अंति: तनुभातनुभातनु भारती, श्लोक-४. २४. पे. नाम. दीपालिका स्तुति, पृ. २१आ-२२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:थूहीपत्र. दीपावलीपर्व स्तुति, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: पापायां पुरि चारु; अंति: जिनचंद्र० क्रीडितं, श्लोक-४. २५. पे. नाम. जिन स्तुति, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:थूहीपत्र. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: शत्रुजयमुख्यतीर्थतिलकं; अंति: सुरास्ते संतु भद्रंकरा, गाथा-८. २६. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. २२आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:थूहीपत्र. ___ सं., पद्य, आदि: देवदेवाधिपैः सर्वतो; अंति: भारती भावरीयच्छताद्वस्सदा, श्लोक-४. २७. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २२आ-२३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:थूहीपत्र. आ. जिनलाभसरि, मा.ग., पद्य, आदि: मुरति मनमोहन कंचन; अंति: इम श्रीजिनलाभसूरिंद, गाथा-४. २८. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:थूहीपत्र. नेमिजिन स्तुति-गिरनारमंडन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गिरनारि सिहर परि नेमिनाथ; अंति: ___जिनलाभसूर०फले सुजगीस, गाथा-४. २९. पे. नाम, दंडक स्तुति, पृ. २३आ-२४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:थूहीपत्र. सं., पद्य, आदि: सचित्त रुचि महामणि स्वर्ण; अंति: प्रसद्यादलं भारती भारती, श्लोक-२२. ३०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:थूहीपत्र. आ. जिनभक्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: कौमारे कमठस्य दुर्मतिमदं; अंति: भूमिस्पृशां श्रेयसे, श्लोक-४. ३१. पे. नाम. शत्रुजय स्तुति, पृ. २४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:थूहीपत्र. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशāजयमंडण; अंति: नंदसूरि तुम पाय सेविता, गाथा-४. ३२. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. २४आ-२५अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:थूहीपत्र. अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहै विसालं; अंति: विहसंति कल्याणदाता, गाथा-४. ३३. पे. नाम. नेमिनाथजी स्तुति, पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:थूहीपत्र. नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदु पाय पंकै; अंति: जिनवर मंगला कर देवीयै, गाथा-४. ३४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:थूहीपत्र. For Private and Personal Use Only Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदा जी, गाथा-४. ३५. पे. नाम, पर्युषणापर्व स्तुति, पृ. २६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:थूहीपत्र. पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वली वली हुं ध्यावू; अंति: सानिधि कहै जिनलाभमुणिंद, गाथा-४. ३६. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २६अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:थहीपत्र. सं., पद्य, आदि: लोकाधारं शांताकारं; अंति: धर्मे शिक्षा, श्लोक-४. ३७. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. २६अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:थूहीपत्र. आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराजः पदपद्मसेवा; अंति: प्रभावदाता ददतां सुखं वः, श्लोक-१. ३८. पे. नाम, महावीरजिन स्तुति, पृ. २६अ-२७अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:थहीपत्र.. महावीरजिन स्तव-बहत्, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदि: जयज्जा समणे भयवं; अंति: थुयमेयं पढओ कय अभयसूरिहिं, गाथा-२२. ३९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २७अ-२७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:थूहीपत्र. पार्श्वजिन स्तोत्र, म. जयसागर, सं., पद्य, आदि: धर्ममहारथसारथिसारं; अंति: नंदन यूयमखंडं, श्लोक-५. ४०. पे. नाम. पार्श्वजिन लघुस्तवन, पृ. २७आ-२८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तवनपत्र. पार्श्वजिन स्तव-करहेटक, सं., पद्य, आदि: आनंदभंदकमदाकरपूर्ण; अंति: मे हृदि मेरुधीरम्, श्लोक-५. ४१. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २८अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तवनपत्र. पार्श्वजिन स्तव, मु. लक्ष्मीवल्लभ, सं., पद्य, आदि: सदानीलगात्रं सद्ज्ञा; अंति: वल्लभः सर्वदा स्यात्, श्लोक-७. ४२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तवनपत्र. पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: त्रिभुवनजनतारणगुण; 3 दि: त्रिभुवनजनतारणगुण; अंति: कुशलांबुजबोधनं वासरेश, श्लोक-७. ४३. पे. नाम. पार्श्वनाथजी लघुस्तवन, पृ. २८आ-२९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तवनपत्र. पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं धरणो; अंति: नुवामः कुशलं लभामः, श्लोक-५. ४४. पे. नाम. आदिनाथजी स्तवन, पृ. २९अ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:स्तवनपत्र. आदिजिन नमस्कार, सं., पद्य, आदि: वंदे देवाधिदेवं तं; अंति: मम भूयात् भवे भवे, श्लोक-३. ४५. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तवनपत्र. शांतिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: शांतये शांतिकामाय; अंति: तस्य पापशांतिर्भवेदपि, श्लोक-३. ४६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तवनपत्र. पार्श्वजिन स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: अमरतरु कामधेनु चिंता; अंति: सिद्धिं मम कुणसु पहु पास, गाथा-३. ४७. पे. नाम. आदिनाथ स्तोत्र, पृ. २९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तवनपत्र. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: जय जय जगदानंदन जय; अंति: भगवते ऋषभाय नमो नमः, श्लोक-५. ४८. पे. नाम, शांतिनाथजिन स्तोत्र, पृ. २९आ-३०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तवनपत्र. शांतिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: किं कल्पद्रुमसेवया; अंति: देवः सेव्यतां शांतिरेष सः, श्लोक-५. ४९. पे. नाम. नेमिनाथजी स्तुति, पृ. ३०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:स्तवनपत्र. नेमिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमान्नं क्षुधात; अंति: कथं धन्यतमो न गण्यः, श्लोक-५. ५०. पे. नाम, पार्श्वनाथजी स्तोत्र, पृ. ३०अ-३०आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:अष्टक. पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: अभिनवमंगलमालाकरणं; अंति: वासरा पुण्यभासरा, श्लोक-५. ५१. पे. नाम, महावीरजिन स्तव, पृ. ३०आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:अष्टक. सं., पद्य, आदि: कनकाचलमिव धीरं; अंति: बोधाः बोधिलाभाय संतु, श्लोक-६. ५२. पे. नाम, विद्या मंत्र, पृ. ३०आ-३१अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:अष्टक. For Private and Personal Use Only Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: सर्वारिष्टप्रणाशाय; अंति: विद्यादानं प्रयच्छेति श्लोक-१०. ५३. पे नाम. १६ सती स्तुति, पृ. ३१अ ३१ आ. संपूर्ण, पे. वि. हुंडी अष्टक. सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी चंदनबालिका; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. ५४. पे नाम. पंचपरमेष्ठि स्तुति, पृ. ३१आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी अष्टक, , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सं., पद्य, आदि: अर्हतो भगवंत इंद्र; अंति: पापं छिद्रहस्ते यथोदकम्, श्लोक-४. ५५. पे नाम ज्ञानपहिरावणी गाथा, पृ. ३१आ-३२अ संपूर्ण, पे.बि. हुंडी: अष्टक. प्रा., पद्य, आदि: नमंत सामंतमही विनाहं; अंति: लाभाय भवक्खयाय, गाथा - २. ५६. पे. नाम. मांगलिक स्तुति, पृ. ३२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : अष्टक.. मांगलिक श्लोक, सं., पद्य, आदिः उपसर्गाः क्षयं यांति, अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे, श्लोक-१. ५७. पे नाम जैन पारिभाषिक संख्यावाचकशब्द, पृ. ३२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: अष्टक, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तत्व ९ व्रत ५ धर्म १०; अंति: ज्ञेयाः सुधीभिस्सदा. १०६४१९. (#) तिविहार उपवास पच्चख्खाण, संपूर्ण, वि. १९०३ मध्यम, पृ. १, पठ. श्राव ओटाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२८४१४, १०x२८). आवश्यक सूत्र - हिस्सा तिविहार उपवास पच्चक्खाण, गु., प्रा., पद्य, आदि सूरे उष्णए अब्भत्तङ्कं अंति: सिज्झेणवा वोसिरामि गाथा २. १०६४२०. शांतसुधारस, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, वे. (२७.५X१४, ५४४०-४३) " शांतसुधारस, उपा. विनयविजय, सं., पद्य वि. १७२३, आदि नीरंध्रे भवकानने परिगलत, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. भावना-३ श्लोक-२ अपूर्ण तक लिखा है.) १०६४२१. औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७.५X१४, १३X२७). औपदेशिक पद, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि तुम तजी जगत का ख्याल, अंतिः खुट जाय नरग उठ " जाना, गाथा-४ (वि. अंत में १ श्लोक दिया है.) " १०६४२२. (+) सामायिक लेने व पारने की विधि व गौतमस्वामीजी रो रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९-४ (१ से ४) = ५, कुल पठ. श्रावि रूखमाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. हुंडी सामायक लेवापारकी विधि. 1 ४७१ पे. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे. (२८४१४, १४४७). " १. पे. नाम. सामायिक लेने व पारने की विधि, पृ. ५अ-६आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं., वि. १९२२, प्रले. पं. कालुहंस; आवश्यकसूत्र-सामायिक लेने व पारने की विधि, संबद्ध, गु., प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: कही उठणो पाछा कपडा पेहरणा, (पू.वि. सामायिक लेने की मुहपत्ति पडिलेहण विधि अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. गौतमस्वामीजीरो रास, पृ. ६आ-९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:गोतमरासो०. गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल, अंतिः धर्माणां जैनं जयति शासनं, ढाल - ६, गाथा-६६. १०६४२४. कल्पसूत्र सह व्याख्यान व टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैवे., (२८.५x१३.५, १४४३५-४४) कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि नमो अरिहंताणं नमो अंति (-), (पू.वि. व्याख्यान ५ तक है.) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य तीर्थनातारं; अंति: (-). कल्पसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि अरिहंतन माहरो अंति: (-). For Private and Personal Use Only १०६४२५. (+) वर्द्धमानदेशना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५२ - २ (१०,५१) = ५०, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२८x१३.५, १४४३६). " Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४७२ कैलास 'श्रुतसागर ग्रंथ सूची वर्द्धमानदेशना ग. राजकीर्ति, सं., गद्य, आदि नमः श्रीपार्श्वनाथाय अंति (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., आरामशोभा दृष्टांतकथा अपूर्ण है व चारुदत्त-रुद्रदत्त दृष्टांतकथा अपूर्ण तक लिखा है.) १०६४२७. (+#) पिंडनिर्युक्ति सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९६३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, रविवार, मध्यम, पृ. १५९ + २ (१५, ४५)=१६१, ले. स्थल. पाटणनगर, प्रले. मु. चंदनविजय (गुरु मु. बुद्धविजय, तपागच्छ); गुपि, मु, बुद्धविजय (गुरु मु, मणिविजय, तपागच्छ); भु, . मणिविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : पिंडनि०. वृ०., संशोधित. कुल ग्रं. ७०००, मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२९.५४१३.५, १५४४४-५१). पिंsनिर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि पिंडे उग्गम उप्पायणे; अंतिः विसोहिजुत्तस्स, गाथा ६७१. पिंsनियुक्ति-वृत्ति, आ. मलयगिरिसूरि सं., गद्य, आदि जयति जिनवर्द्धमानः अति धर्मः शरणमुत्तमः, ग्रं. ७०००. १०६४२८. द्वादश अनुप्रेक्षा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२९.५X१४, ७X३८). 7 " १२ अनुप्रेक्षा, सं., पद्य, आदि सदृग्बोधचरित्र रत्न निचयं अति (-) (पू.वि. श्लोक-१२ तक है.) १०६४३०. कर्मछत्रीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२९x१३.५, १४४४५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: कर्म थकी छूटे नही; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - ३० तक लिखा है.) १०६४३४. (+) जिनसहस्रनाम स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र. वि. हुंडी : जिनसहश्र०., संशोधित., दे., (२८.५X१४, ९×३७). जिनसहस्रनाम स्तोत्र, आ. जिनसेन, सं., पद्य, आदि: स्वयंभुवे नमस्तुभ्यः अंति: प्रस्तावनामिमाम्, श्लोक १६६. १०६४३५ (+) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका सह वृत्ति, संपूर्ण वि. १९४८ कार्तिक शुक्ल, १५, रविवार, मध्यम, पृ. ५९, ले. स्थल. दिल्ली, प्रले. मु. चंदनविजय (गुरु मु. बुद्धविजय, तपागच्छ); गुपि. मु. बुद्धविजय (गुरु मु. मणिविजय, तपागच्छ); . मणिविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. प्र.ले. श्रो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१०६३) कड कुबडी कड बेगडी (१११२) कर दुख अंगुलि नेन दुख, दे., (२९.५x१३.५, १६x४४). मु. , , अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: अनंतविज्ञानमतीत; अतिः कृतसपर्याः कृतधियः श्लोक-३२. अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका स्याद्वादमंजरी वृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं., गद्य, श. १२१४, आदिः यस्य ज्ञानमनंतवस्तु अति मल्लषेमसूरि० मंजरी, १०६४३६. सप्ततिशतस्थान प्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १९८१, भाद्रपद शुक्ल, १, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८५, ले. स्थल. जोधपुर, प्र. वि. हुंडी: सित्तर०. वा.वृ. अंत में कर्ता के द्वारा लिखित प्रत की प्रतिलिपि का उल्लेख मिलता है. त्रिपाठ, प्र.ले. श्लो. (१) वादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२८.५४१३ १३४३६). " सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा. पद्य वि. १३८७, आदि सिरिरिसहाइ जिनिंदे, अंतिः जोइ सो सिद्धिठाणे, गाथा- ३५९ सप्ततिशतस्थान प्रकरण- टीका, पंन्या. देवविजय, सं., गद्य वि. १६७०, आदि स्वरूपान्नमस्कृत्य पंच अंति तदा मालिनीनामाच्छंदो भवति. १०६४३७ (+४) अनंतव्रत कथादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १५-४ (१ से ४) = ११, कुल पे ४, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (३०X१३.५, ९X३६). १. पे. नाम. अनंतव्रत कथा, पृ. ५अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only मु. ललितकीर्त्ति, सं., पद्य, आदि: (-); अंतिः प्राप्यते विश्वमंगलं, श्लोक - ४३, (पू.वि. श्लोक - १० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सुगंधदशमीव्रत कथा, पृ. ६आ-१०अ संपूर्ण. मु. ललितकीर्त्ति, सं., पद्य, आदि अद्य नाभ्यां जिनं नत्वा, अंति: ललितकीर्ति सुगंधव्रतं भजः, श्लोक ६९. ३. पे. नाम षोडशकारणव्रत कथा, पृ. १० आ-१३आ, संपूर्ण. मु. ललितकीर्त्ति, सं., पद्य, आदि: परमेष्ठि नमस्यामि; अंति: उदारभावः सद्भावना षोडश०, श्लोक-६५. Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ४७३ ४. पे. नाम. जिनरात्रिव्रत कथा, पृ. १३आ-१५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. म. ललितकीर्ति, सं., पद्य, आदि: ०वंधुरं पंचकल्यानसिध्यर्थ; अंति: (-), (पृ.वि. श्लोक-४३ अपूर्ण तक है.) १०६४४० (+#) रघुवंश की विशेषार्थबोधिका वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४६-२५(१ से १३,१६ से २२,२९,३४ से ३६,४३)=२१, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. हंडी:राघवीवृत्तिपत्रं., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८.५४१३, २१४४१-४८). रघुवंश-विशेषार्थबोधिका वृत्ति, पं. गुणविनय गणि, सं., गद्य, वि. १६४६, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-१ श्लोक-९७ की टीका अपूर्ण से सर्ग-६ श्लोक-४३ की टीका अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०६४४१ (+) हंसराज वच्छराज चरित्र, संपूर्ण, वि. १९४८, आश्विन शुक्ल, १२, बुधवार, मध्यम, पृ. ३१, ले.स्थल. दिल्ली, प्रले. मु. चंदनविजय (गुरु मु. बुद्धविजय, तपागच्छ); गुपि. मु. बुद्धविजय (गुरु मु. मणिविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:हंसराजवच्छ., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२९.५४१३, १५४४०-४५). हंसराज वत्सराज चरित्र, आ. सर्वसुंदरसूरि, सं., पद्य, ई. १५१०, आदि: स्मृत्वा श्रीभारती देवीं; अंति: नित्यमत्यांतानंदपूरिता, सर्ग-५, श्लोक-८८४.. १०६४४७. (+) बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २९-१(२५)+१(१६)=२९, प्र.वि. हुंडी:वृहत्कल्प०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२९x१३, ५४४०). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पइ निग्गंथाण; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सूत्र-१० अपूर्ण से १६ अपूर्ण तक नहीं है व उद्देशक-६ अपूर्ण तक लिखा है.) बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नो क० न कल्पै नि०; अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०६४४९ (+) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र सह सर्वार्थसिद्धिवृत्ति की भाषाटीका, अपूर्ण, वि. १८४६, माघ शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १८३-२(११३*,१३२*)+५(१,११०,११२,१३१,१७८)=१८६, प्रले. श्राव. माणिकचंद मालु; अन्य. श्राव. मोतिलाल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. यह प्रत १८४२ आषाढ़ सुद-७ मंगलवार मोतिलालजी के द्वारा लिखित प्रत की प्रतिलिपि है., संशोधित., जैदे., (२७.५४१४, १२-१६५३०-३५). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: मोक्षमार्गस्य नेतारं; अंति: बहुतत्त्वतः साध्याः, अध्याय-१०, संपूर्ण. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-सर्वार्थसिद्धिवृत्ति की भाषाटीका, श्राव. देवीदास खंडेलवाल, पुहि., गद्य, आदि: अहं उमास्वाति मुनिश्वर; अंति: सरधान अंगीकार किया, संपूर्ण. १०६४५० (+) योगचिंतामणि सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९५५, वैशाख शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १६९-७(१५३ से १५९)=१६२, ले.स्थल. सुजानगढ, प्रले. मु. चुन्नीलाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४१३.५, ७४२९-३३). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: यत्र वित्रासमायांति; अंति: योगचिंतामणिश्चिरम, __ अध्याय-८, (पू.वि. कर्मविपाक प्रकरण के प्रारंभ का पाठ अपूर्ण लिखकर छोड दिया है.) योगचिंतामणि-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम ग्रंथकर्ता ईश्वर को; अंति: प्रकर्ण नाम अष्टमोध्याय. १०६४५१ (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२०+१(१०६)=१२१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:ज्ञा०.८०., संशोधित., जैदे., (२६४१४, ७-८४३६). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ ___ अध्याय-८ सूत्र-८२ अपूर्ण तक है.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०६४५३. (+) वीरवर्द्धमान चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९८, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्रले. मु. सदासुख (गुरु मु. डूंगरदास) गुपि. मु. डूंगरदास (गुरु मु. रिषभदास): मु. रिषभदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : वर्द्ध०, पुरा०, प्रतिलेखन पुष्पिका का अधूरा भाग उपलब्ध है परंतु पत्रांक नहीं है, पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. दे. (२६४१३.५, १०X३२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वीरवर्धमान चरित्र, आ. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि जिनेशे विश्वनाथाय अंति: (-). (पू.वि. अधिकार-१४ श्लोक-१ अपूर्ण तक है.) १०६४५४ (+) जंबूचरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४७, फाल्गुन शुक्ल, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४६, ले. स्थल, चांदुर, प्रले. मु. विवेकवर्द्धन (गुरु पं. हंसवर्द्धन गणि); गुपि. पं. हंसवर्द्धन गणि (गुरु पं. नित्यवर्द्धन); पं. नित्यवर्द्धन (गुरु पं. क्षेमवर्द्धन); पं. क्षेमवर्द्धन (गुरु पं. हीरवर्द्धन ); पं. हीरवर्द्धन (गुरु मु. विद्यावर्द्धन); मु. विद्यावर्द्धन (गुरु मु. प्रीतिवर्द्धन); मु. प्रीतिवर्द्धन (गुरु ग. कीर्तिवर्द्धन), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. हुंडी : जंबुचरीत्रपत्र. श्रीनेमीनाथ प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६X१३.५, ७X३६-४०). जंबू अध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: तेण कालेणं तेणं; अति से आराहगा भणिवा, उद्देशक- २१. जंबू अध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते ही ज कालने विषे ते ही; अंति: इति जंबू अज्झयणने विषे. १०६४५५ (+४) नैमित्तसार सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८३० फाल्गुन शुक्ल, १ बुधवार, मध्यम, पू. ११ ले स्थल, भरथपुर, " प्रले. पं. चंद्रभाण; अन्य. श्राव. जैनी चेतराम वैद्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी नैमित्तसार, संशोधित- पंचपाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१३.५, ६-९x४३). ऋषिपुत्रिकाध्ययन, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि सो जब जए उसहो अणंत; अंतिः शवक्खियं अप्पगंधेण, गाथा - १८८. ऋषिपुत्रिकाध्ययन-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि सो जयवंत होउ वृषभनाथ कैसे अंति सव कला अपग्रंथ करि के. For Private and Personal Use Only Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४ मंगल, प्रा.,मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (चत्तारि मंगलं अरिहंत), १०५३७१-१(+) ५ तीर्थ देववंदन विधिसहित-तपागच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (--), १०२६६०-१(+$) ५ परमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (बारस गुण अरिहंता), १०२८४९(+), १०२२९९-१(६) ५ मिथ्यात्वभेद नाम, सं., गद्य, श्वे., (मिथ्यात्वं पंचधा आभि), १०१८६३-७(+) ७ गरणा गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सुद्धो सावय गेह वर), १०५०२४-७ (२) ७ गरणा गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (मीठापाणीनो १ खारापाणीनो २),१०५०२४-७ ७ स्वर भेद, सं., गद्य, दि., (मेघ गर्जित शब्दः स्वभाव), १०४४५४-२(+) ८ प्रकारीपूजा कथा संग्रह, प्रा., कथा. ८, ग्रं. १२००, पद्य, मप., (पणमह तं नाभिसुयं), १०२१५१(+#) ८ सिद्धगुण गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मप., (नाणं च १ दंसणं चेव २), १०५०२४-१२ १० आश्चर्य वर्णन, प्रा.,मा.गु.,सं., ग्रं. ११३, प+ग., मूपू., (उवसग्ग १ गब्भहरणं २), १०५५६५(+#) १० दिक्पालस्थापन विधि, सं., श्लो. ९, पद्य, दि., (सौगंध संगत मधुव्रत), १०६०१२-३, १०६०५८-१२ १० प्रत्याख्याननाम गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (नवकार पोरसीए पुरमड्ढ), १०५५७१-२(+) १० लक्षण उद्यापन पूजाविधि, मु. सुमतिसागर, पुहि.,सं., वि. १९३५, पद्य, दि., (विमलगुणसमृद्धं ज्ञान), १०६०३३ १० लक्षण उद्यापनपूजा विधिसहित, जै.क. टेकचंद, पुहि.,सं., प+ग., दि., (नेमनाथ नमु करजोड भो भो और), १०५९७५-२ १० लक्षण उद्यापनपूजा विधिसहित, मु. श्रीभूषण, अप.,पुहि.,सं., प+ग., दि., (सकलगुणसमुद्र), १०५९४७($) १० लक्षणपूजा विधि, मु. ब्रह्मजिनदास, अप., पद्य, दि., (उत्तमादिक्षमाद्यंत), १०६०५८-४ १० लक्षणपूजा विधि, पंडित. भावशर्म, अप., पद्य, दि., (वार्भिरितसंतापै), १०४२४२(+), १०६०१२-१२, १०६०१२-२३ (२) १० लक्षणपूजा विधि-टबार्थ, पुहिं., गद्य, दि., (श्रीउत्तम क्षमाधाय), १०४२४२(+) १० वैयावच्च भेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, मप., (१ आचार्य २ उपाध्याय), १०५८०५-३७(+#) १० श्रावक नाम पत्नी व नगरी विचार, सं., गद्य, मप., (आणंदस्य सिवनंदा), १०१७५०-२(+#) ११ अंग १२ उपांग नाम, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (अथ११ अंगनामानी १आचार), १०५२६७-१(+) ११ प्रतिमा विचार-श्रावक, सं., गद्य, मूपू., (अथ पुनः काः प्रतिमा), १०१८९२-५(+) १२ अनुप्रेक्षा, सं., पद्य, दि., (सदृग्बोधचरित्र रत्न निचयं), १०६४२८(5) १२ अनुप्रेक्षादि विचार संग्रह, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (--), १०२१७४(६) १२ तपभेद विवरण, प्रा.,मा.गु., गद्य, मप., (अणसण उमोयरिया), १०१५६७-१० १२ भवन विचार, सं., श्लो. १२, पद्य, वै., इतर, (लग्नस्थितो दिनकरः), १०३५०७-३(+) १२ भाव विचार, सं., गद्य, मूपू., इतर, (प्रथम रवि दिशा प्रवेश), १०१३४१(+$) १२ लग्नफल, सं., श्लो. १२, पद्य, इतर, (मेष लग्नोदयो जातश्चंडो), १०३५०७-४(+) १२ व्रत कथा, आ. सोमप्रभसूरि, प्रा., ग्रं. १४३८, पद्य, मपू., (अहवागरियं गुरुणा जीवदयं), १०२८७३(+#) १२ व्रत कथा, प्रा., गा. ३८, पद्य, मपू., (--), १०४०४२-१(+) १३ काठिया गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मप., (आलस मोह अवन्ना थंभा), १०३३९४-१४(+), १०२७०७-४ (२) १३ काठिया गाथा-विवरण, रा., गद्य, मप., (धर्मकरतां आलस होय), १०३३९४-१४(+) १४ अभ्यंतरग्रंथि गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मपू., (मिच्छत्तं वीय तिगं), १०२२९५-३(+) १४ गुणठाणा, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (सत्त तुटइहि तुरिय), १०१९३२-२(+#) १४ गुणस्थानक मार्गणा प्रकरण, प्रा.,सं., पद्य, मूपू., (--), १०६४०८(+#$) परिशिष्ट परिचय हेतु देखें खंड ७, पृष्ठ ४५४ For Private and Personal Use Only Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ १४ गुणस्थानकस्वरुप विचार, सं., पद्य, मूपू., (--), प्रतहीन. (२) १४ गुणस्थानकस्वरुप विचार-टीका, सं., गद्य, मूपू., (--), १०४५०१-९(+#$) (२) १४ गुणस्थानकस्वरुप विचार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (हे श्रीगुरो गुण स्थानस्यु), १०३८९०(+$) १४ रत्ननाम श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (लक्ष्मी कौस्तुभ), १०५६७४-२ १४ श्रावकनियम गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मपू., (सचित्त दव्व विगई वाहण), १०२५०९-२(+#), १०२६३१-२(+), १०१४७६-३, १०२७०७-३ १५ कर्मभूमिविचार गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मपू., (कम्मभूमिहिं पढम संघयणि), १०२८४६-२(+) (२) १५ कर्मभूमिविचार गाथा-बालावबोध, मा.गु., पद्य, मप., (कम्मभूमिहिं किसउ अर्थ), १०२८४६-२(+) १६ कारण पूजा, अप., पद्य, दि., (ऐंद्र पदं प्राप्य परं), १०६०५८-३ १६ कारण व्रतकथा, सं., श्लो. १२८, पद्य, दि., (प्रणम्य श्रीजिनाधीशा), १०२९५१-१ १६ कोष्ठकयंत्र विधि, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (वांछा कृतार्द्धं कृतरूप), १०२५२१-२(+) १६ सती स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (ब्राह्मी चंदनबालिका), १०५०७७-८(+), १०६४१८-५३(#) १७ संयमभेद नाम, प्रा.,सं., गद्य, पू., (सत्तरसविहे संजमे), १०५०२४-१४ १८ पुराण नाम, सं., गद्य, वै., (ब्राह्मं पद्म वैष्णव), १०५९४३-६(+#) २० विहरमानजिन स्तव, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (द्वीपेत्र सीमंधर), १०२७८०-२,१०६३२१-१ २० विहरमानजिन स्तवन, सं., श्लो. ८, पद्य, पू., (त्रैलोक्यपूज्यस्य), १०५८००-८(८) २० विहरमानजिन स्तवन, प्रा., गा. ४, पद्य, मूप., (सीमंधरो जुगंधर बाहु), १०१८२६-२(+#) २० स्थानकतप गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मप., (अरिहंत सिद्ध पवयण), १०१९५७-३(+) २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (१ नमो अरिहंताणं २०००), १०५२७३(+#) २१ पानी प्रकार, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (उस्सेयम संसेयम उदल), १०२८४६-७(+) २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., गा. ६६, पद्य, पू., (चवण विमाणा नयरी जणया), १०४०४१-९(+), १०४५०१-५(+#$), १०१९६८ (२) २१ स्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चोवीस तीर्थंकरना २१), १०४५०१-५(+#$) २४ गण स्थानक, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., गा. ३७७, पद्य, दि., (सिद्धं सुद्धं पणमिय), १०४२३०(+) (२) चतुर्विंशतिस्थानक-अवचूरि, सं., गद्य, दि., (असेथीति सिद्धस्तं), १०४२३०(+) २४ जिन १२० कल्याणक कोष्ठक, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीऋषभदेव आषाढ वदि४), १०६३२१-१७ २४ जिन अष्टप्रकारी पूजा, मु. कनककीर्ति, अप.,सं., पूजा. २४, प+ग., दि., (-), १०१५३६(+$) २४ जिन चरित्र, सं., पद्य, मपू., (--), १०४६५१(+$) । २४ जिन निर्वाणस्थलादिवर्णन स्तवन, सं., पद्य, स्पू., (श्रीअष्टापदपर्व ते युतयति), १०२०३६-३(+$) २४ जिन पूजा, सं., प+ग., दि., (विघ्नौघाः प्रलयं),१०६०१२-४, १०६०५८-१ २४ जिन स्तव, श्राव. भूपाल, सं., श्लो. २६, पद्य, मूपू., दि., (श्रीलीलायतनं महीकुल), १०५००८-३(+#$), १०५७७९(+#), १०६२९०-३(+#) (२) जिनचतुर्विंशतिका-टीका, जै.क. आशाधर भट्ट, सं., गद्य, मप., दि., (प्रणम्य जिनमज्ञानां), १०५७७९(+#) (२) २४ जिन स्तव-अन्वय, सं., गद्य, मूपू., दि., (भो जिनेंद्र यः भव्यः), १०५००८-३(+#$) २४ जिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नाभेयाजितवासुपूज्यसुविधि), १०५२६९-४(+) २४ जिन स्तुति, पं. हर्षरत्न, सं., श्लो. ५, पद्य, मपू., (ऋषभ संभव ते सुमति नमो), १०२३५५-१९(+#) २४ जिन स्तुति, अप., गा. २, पद्य, मूपू., (भरहेसरकारिय देव हरे), १०६४१८-१८(#) २४ जिन स्तुति-यमकमय, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. २८, पद्य, मूपू., (तत्त्वानि तत्त्वा), १०२१६७(+#) (२) २४ जिन स्तुति-यमकमय-अवचूरि, सं., गद्य, पू., (विस्तार्य विनीतेषु), १०२१६७(+#) २४ जिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथाजितसंभवेश),१०३२३०-२५(+) For Private and Personal Use Only Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ ४७७ २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., श्लो. ८, पद्य, मप., (आदौ नेमिजिनं नौमि), १०५८००-२(-) २४ तीर्थंकर प्रथम गणधरनाम गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मप., (सिरिउ सहसेण पहसीहसेण), १०१४९३-२(+) (२) २४ तीर्थंकर प्रथम गणधरनाम गाथा-टीका, सं., गद्य, मूपू., (ऋषभादिजिनानामाद्य गणहरनाम), १०१४९३-२(+) २४ तीर्थंकर सिद्धिगमन आसनवर्णन गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (उसभे नेमी विरोः तिनी), १०५०२४-६ (२) २४ तीर्थंकर सिद्धिगमन आसनवर्णन गाथा-बालावबोध, रा., गद्य, मूपू., (श्रीऋषभदेवजी श्रीनेमिनाथ), १०५०२४-६ २४ दंडक द्वार गाथा, प्रा., पद्य, मप., (नेरइया असुराई पढवाई), १०५६१२-२(+#) २४ दंडक स्तुति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (रुचितरुचि महामणि स्वर्ण), १०१३५४(+) (२) २४ दंडक स्तुति-वृत्ति, मु. अमरकीर्तिसूरि शिष्य, सं., गद्य, मूपू., (अहं तीर्थेश्वरं जिन), १०१३५४(+) २५ साधुक्रिया बोल, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (काइय अहिगरणीया), १०१११६-३(+) ३० चौवीसीजिन पूजा, सं., गद्य, दि., (उदकचंदनतंदुलपुष्पकै चरुसु), १०५९८९-८(+-) ३२ उपमा शीलव्रत, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (गहआगररयन आभरणाय), १०१९५७-४(+) ३४ अतिशय गाथा, प्रा., गा. १०, पद्य, मप., (स्य रोयसोयरहिओ हेहो), १०१७२२-३(#) ४२ गोचरी दोष, प्रा., गा. ५, पद्य, मपू., (अहाकम्मु १ देसिअ २), १०४३९८-३(+), १०२४४०-१०(#) (२) ४२ गोचरी दोष-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (आधाकर्मी ते कहीई), १०२४४०-१०(#) (२) ४२ गोचरी दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (आ० आधाकरमी ते कहीइ), १०४३९८-३(+$) ५६ दिक्कुमारीकृत जिनजन्ममहोत्सव विचार, सं., गद्य, मूपू., (भगवतो जन्मोत्सवं० अष्टौ), १०१२६०-२(+#) ६४ योगिनी स्तोत्र, मु. धर्मनंदन, प्रा., गा. १५, पद्य, मप., (जगमज्झिवासिणीणं), १०२३५५-२१(+#) ६७ बोल थोकडा-विविधग्रंथोद्धत, प्रा.,मा.गु., प+ग., मप., (गती१ जाती२ काय३ इंद्री४), १०२०१७(+$) ३६३ पाखंडीभेद विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मप., (एकसौ असी क्रियावादीन), १०१२६७-१(+) (२) ३६३ पाखंडीभेद-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (च० च्यार वा० वादी), १०१२६७-१(+) अंगविज्जा , आ. पूर्वाचार्य, प्रा., अ. ६०, ग्रं. ९०००, प+ग., मूपू., (णमो अरहताणं० णमो), १०३७६२(+) अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. ९२, ग्रं. ८९९, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० चंपा०), १०३३०९(+), १०१९५० (२) अंतकृद्दशांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., वर्ग. ८, वि. १२वी, गद्य, मप., (अथांतकृतदशासु किमपि), १०२४७०(+$), १०३२८३-१(+$), १०५८७५-२(+#), १०१९५०, १०३३१०-२ अंतर्कथा संग्रह, आ. राजशेखरसूरि, सं., कथा. ८१, ग्रं. २४००, गद्य, मपू., (यन्नैकामपि कामिनी), १०२१५८(+#) अंबिकादेवी स्तोत्र-मूलमंत्रगर्भित, सं., श्लो. ८, पद्य, मप., (ॐ महातीर्थ रेवंतगिरिमंडने), १०२३५५-१७(+#) अकृत्रिमजिनबिंब चैत्यवंदना, सं., श्लो. ६, पद्य, दि., (वर्षेषु वर्षाप्रवतेष), १०६०१२-५ अक्षकपर्दी कल्प, सं., श्लो. ७, पद्य, मपू., (कृष्णरेखा रक्तरेखा पीत), १०१४४४-५(+) अक्षयतृतीयापर्व कथा, सं., गद्य, म्पू., (स्वस्ति श्रीसुखदातार), १०१९५९(5) अक्षयनिधिव्रत कथानक, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., श्लो.८८, पद्य, दि., (पूज्यपादाकलंकार्य), प्रतहीन. (२) अक्षयनिधिव्रत कथानक-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., गा. ९२, पद्य, मूप., दि., (श्रीजिनकू परणाम कीरे), १०४७१५-४, १०४७९२-४, १०४८५६-४ अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., गा. ४०, पद्य, मप., (अजियं जियसव्वभयं संतिं च), १००९९९(+), १०१४१४(+#), १०१५१३(+#), १०१५५८(+#$), १०२०४७-१(+), १०२३५५-४(+#S), १०६३५८-२(+), १०२००८-३, १०५१९५-२, १०६११८-१(#) (२) अजितशांति स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मप., (भगवति गर्भस्थे), १०१४१४(+#) (२) अजितशांति स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (अजितनाथ जीता छइ सर्व), १०१५५८(+#$), १०२०४७-१(+) अजितशांति स्तव बृहत्-अंचलगच्छीय, आ. जयशेखरसूरि, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (सकलसुखनिवहदानाय सुरपादप), १०१५०५-६(+#) अजितशांति स्तवलघु-अंचलगच्छीय, क. वीर गणि, प्रा., गा. ८, पद्य, मूपू., (गब्भ अवयार सोहम्मसुर), १०१५०५-५(+#) For Private and Personal Use Only Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ अजितशांति स्तव लघु-खरतरगच्छीय, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १७, पद्य, मूपू., (उल्लासिक्कमनक्ख), १०१३१५ अजीवकल्प प्रकीर्णक, प्रा., गा. २९, पद्य, मप., (आहारे उवहिं सिय उवस), १०३५१३-१५($) अतीतअनागतवर्तमान २४ जिन नाम, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (अथ जंबूद्वीपे दक्षिण), १०६३२१-१४ अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., अधि. १६, श्लो. २७२, पद्य, मूपू., (जयश्रीरांतरारीणां), १०३४२५(+) (२) अध्यात्मकल्पद्रम-अधिरोहिणी वृत्ति, उपा. धनविजय, सं., गद्य, मूप., (ॐ नमः परमाप्ताय), १०३४२५(+) अध्यात्ममतपरीक्षा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., गा. १८४, पद्य, मप., (पणमिय पासजिणिंद), १०४३०१(+$) अनंतगमपर्याय श्लोक-जिनोक्त, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (अनंत गम पर्याय जिनवर), १०३२८३-२(+) अनंतजिन जयमाला, आ. पद्मनंदि, पुहि.,सं., श्लो. ८, पद्य, दि., (भवजलनिधितारण शिवसुख), १०६०१२-१४ अनंतजिन पूजाष्टक, पुहिं.,सं., प+ग., दि., (स्वामिन्संवौषट् कृता), १०६०१२-१३ अनंतव्रत कथा, मु. ललितकीर्ति, सं., श्लो. ४५, पद्य, दि., (वंदे देवमनंताख्यं), १०६४३७-१(+#$) अनंतव्रत कथा, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., श्लो. ४८, पद्य, दि., (प्रणम्य परमात्मा), प्रतहीन. (२) अनंतव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहि., गा. ५०, पद्य, मूप., दि., (परमात्म परमेष्टवर ताहि), १०४७१५-१९, १०४७९२-१८, १०४८२१-४, १०४८५६-१९, १०६०२३-६ अनंतव्रत पूजा, सं., पद्य, दि., (चिद्र्पग्यानगम्यं), १०६०१२-१५ अनंतव्रतोद्यापनपूजा विधि, आ. गुणचंद्रसूरि, सं., श्लो. ६२५, वि. १६३०, प+ग., दि., (श्रीसर्वज्ञं नमस्कृत्य), १०४३९३ अनंतव्रतोद्यापनपूजा विधि, सं., प+ग., दि., (वृषभाद्यनंतपर्यंतान), १०१२४७ अनशन पच्चक्खाण सूत्र, प्रा., गद्य, मूपू., (भव सचरिमं पच्चक्खाइ), १०१७७९-२(+#$) अनशन विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मप., (आराधनापताकापइन्ना), १०१४६८-२ अनशन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (गलाणनइं देव दरसण), १०१५१४-३(+#) अनागत २४ जिन स्तोत्र, आ. श्रीचंद्रसूरि, प्रा., गा. १४, पद्य, मप., (वीरवरस्स भगवउ वोलिय), १०१४९३-१(+) (२) अनागत २४ जिन स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मपू., (वीरवरस्स० अत्र षष्ठी), १०१४९३-१(+) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. ३३, ग्रं. १९२, प+ग., मूपू., (तेणं कालेणं० नवमस्स), १०११२५(+#), १०११४९(+#$), १०१४८८(+), १०१५५२(+), १०१७९८(+#), १०२४९९(+), १०५६२८(#), १०५८३९(#$) (२) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., वर्ग. ३, वि. १२वी, गद्य, मप., (अथानुत्तरौपपातिकदशा), १०३२८३-३(+), १०५८७५-३(+#), १०३३१०-३, १०३६७८ (२) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (ते काल चउथा आराने), १०११४९(+#$), १०१४८८(+$),१०१५५२(+). १०२४९९(+), १०५६२८(#), १०५८३९(#$) अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प्रक. ३८, ग्रं. २०८५, प+ग., मूपू., (नाणं पंचविह), १०१२९१(+#s), १०५३९२(+) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-अवचूरि*, सं., गद्य, मूपू., (जिनवचनेहिं आचारांग), १०१२९१(+#$) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ना० ज्ञान पंच प्रकार), १०५३९२(+$) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा सप्तनय स्वरूप, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., गद्य, मूपू., (सत्तमूलनया पणत्ता तं), १०२८४७(+) (३) अनयोगद्वारसत्र-हिस्सा सप्तनय स्वरूप का विवरण, मा.ग., गद्य, मप., (श्रीअनुयोगद्वार मल), १०२८४७(+) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-२१ बोल अधिकार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, पू., (पहिलै बोलै नय ७ दुजै), १०२७४५(-#$) अनेकार्थध्वनिमंजरी, सं., अधि. ३, श्लो. २१९, पद्य, भूपू., इतर, (शुद्धवर्णमनेकार्थं), १०३९८८(+$), १०४१३४($) अनेकार्थनाममाला, जै.क. धनंजय, सं., श्लो. ४६, पद्य, दि., इतर, (गंभीरं रुचिरं चित्र), १०२०६१-२(+#$) अन्नपूर्णा स्तोत्र, शंकराचार्य, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (नित्यानंदकरी पराभयकर), १०६१६२-५ अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ३२, वि. १२वी, पद्य, मपू., (अनंतविज्ञानमतीत), १०३१४९-१(+#), १०४२४८(+), १०६४३५(+), १०३२७५(६) (२) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका-स्याद्वादमंजरी वृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं., श. १२१४, गद्य, मूपू., (यस्य ज्ञानमनंतवस्तु), १०३१४९-१(+#), १०४२४८(+), १०६४३५(+), १०३२७५(६) For Private and Personal Use Only Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ अपराजितादेवी जपानुष्ठान विधि, सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवते महामाये अजित), १०५५१८-२ (+) "" अपवर्ग परिहार नाममाला, आ. जिनभद्रसूरि, सं. कां. ३, श्लो. ३५९, पद्य, मूपू., इतर (अपवर्गपदाध्यासितमपवर्ग), १०२६८८-२ अपापावृहत्कल्प, आ. जिनप्रभसूरि प्रा. प्र. ४१६, वि. १३२७, गद्य, म्पू. (पणमिअ वीरं वुच्छं). १०११७५ () अभक्ष्यानंतकाय गाथा, प्रा., गा. ७, पद्य, म्पू, (सव्वावि कंदजाई सूरण), १०९३५७(१०) (२) अभक्ष्यानंतकाय गाथा- अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (सर्वापि कंदजातिरनंत), १०१३५७(+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., कां. ६, ग्रं. १४५२, वि. १३वी, पद्य, मूपू., इतर, (प्रणिपत्यार्हतः), १०१२२६(४) १०९४८६ (+), १०१६७२ (+), १०१८९२ (+), १०१९८४(+), १०२०२१ (+४७), १०२४७७/*६), १०२६९९ (+४), १०२७३७(+०३), १०३६६८(०), १०५१९२०) १०५२५०१), १०५४८६ (+), १०५७३२ (०६), १०१३२८(#$), १०२५७९ ($), १०५७०२ ($) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला टीका, सं., गद्य म्पू. इतर (--), १०९८१२ (+०६) 1 (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-सारोद्धार टीका, उपा. वल्लभ, सं., ग्रं. ८०००, वि. १६६७, गद्य, मूपू., इतर, (श्रीमदर्हतमानम्य), १०५७३३ (+४), १०१३२८(४६) अमरसेनवज्रसेन कथा, सं., गद्य, मूपू., (दानं सुपात्रे विशदं), १०१२५९-२ (+#$), १०३४६९-१(+) अमितगति श्रावकाचार, य. अमितगति, सं., परि. १५, पद्य, दि., ( नायाकृतानि प्रभवंति), १०४९३१(+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि. सं., गद्य, म्पू, इतर (सिद्धं प्रतिष्ठां प्राप्त), १०३६६८ (+) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला अनेकार्थ संग्रह, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., कां. ७, श्लो. १९३१, वि. १२वी, पद्य, म्पू, इतर ( ध्यात्वार्हतः कृतै, १०५६३८ (+) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला - शिलोंछ, संबद्ध, आ. जिनदेवसूरि, सं., कां. ६, श्लो. १३९, वि. १४३३, पद्य, मूपू., इतर, (अ बीजं नमस्कृत्य), १०२०५०-२(०) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला- बीजक, ग. शुभविजय, मा.गु. ग्रं. १०५०, गद्य, मूपु इतर (प्रणम्य श्रीगुरू भक्त्या), १०४१३८(३) , अभिषेक विधि, श्राव. आशाधर, सं., प+ग. दि., ( श्रीमन्मंदिरमस्तके), १०६०५८-११ " अर्ध्यावली, सं., गद्य, दि. (उदकचंदन० क्षमामार्दवआर्जव), १०५९८९-१० (+३), १०५९८९-१७(+) " (२) अमितगति श्रावकाचार भाषा वचनिका, जे.क. भागचंद्रजी पुहिं. वि. १९१२ गद्य वि. (सिद्धारथ प्रियकारणी), १०४९३१(+) अरजिन स्तुति, मु. शिवसुंदर, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (अरजिन तेरर्थ: सारो), १०५५४६-१ (२) अरजिन स्तुति-विवरण, उपा. श्रीवल्लभ वाचक, सं., गद्य, म्पू, (अस्य व्याख्या अरो), १०५५४६- १ ४७९ अर्बुदाद्रिकल्प, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ५२, ग्रं. ५२, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (अर्हंतौ प्रणिपत्याहं), १०२६७६-२(#) अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १०, श्लो. ११७, वि. १२वी १३वी, पद्य, मूपू., (अर्हन्नामापि कर्णाभ्यां), १०१८१०-१(+) अवंतिदेशस्थअभिनंदनदेवकल्प, आ. जिनप्रभसूरि, सं., ग्रं. ५३, वि. १४वी, गद्य, मूपू., (अवंतिषु प्रसिद्धस्य), १०२६७६-३(#$) अष्टक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अष्ट. ३२, पद्य, मूपू., (यस्य संक्लेशजननो), १०५७९९(+$) (२) अष्टक प्रकरण-वृत्ति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., ग्रं. ३३७०, वि. १०८०, गद्य, मूपू., (इह हि सुगृहितनामधेयो), १०५७९९(+$) अष्टप्राभृत, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा. प्राभृ. ८, गा. ५०३, पद्य, दि., (काऊण नमुस्कार जिणवर), १०११४३(३) १०५९७६(+) (२) अष्टप्राभूत-वचनिका, पंडित जयचंद्रजी छाबडा, हिं. प्राभृ. ८. वि. १८६७, गद्य, दि., ( श्रीमतवीरजिनेश रवि मिथ्या), " १०५९७६(१) (२) अष्टप्राभूत-छाया से प्राभृ. ८, श्लो. ५०३, पद्य, दि.. (कृत्वा नमस्कार जिन), २०११४३(+०६) " For Private and Personal Use Only (२) अष्टप्राभृत-हिस्सा षट्प्राभृत, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., प्राभृ. ६, गा. ४४१, पद्य, दि., (काऊण णमुक्कारं जिणवर), १०६०७० ($) (३) अष्टप्राभूत- हिस्सा षट्प्राभूत की भाषाटीका, पुहिं. गद्य, दि. (--), १०६०७० (5) " अष्टापदजिनचैत्यवर्णन स्तुति-भरतचक्री कारापित, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (उत्सेधांगुलदीर्घयोजनमितं), १०२८४६-३(+) Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) अष्टापदजिनचैत्यवर्णन स्तुति-भरतचक्री कारापित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (उत्सेधांगुल भणियइ कांबिउ), १०२८४६-३(+) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८६०, गद्य, मूपू., (शांतीशं शांतिकर्ता), १०६२४०(+#s), १०३५५१ (२) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १०६२४०(+#$) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (शांतीशं शांतिकर्तारं), १०५७३१(+#$), १०४३३० अष्टोत्तरी शांतिस्नात्र विधि, मा.गु.,सं., प+ग., मप., (ते माहिली शांतिकविधि), १०११३४-३(+) असज्झाय विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (महिया जाव पडंति), १०३७७५-६($) आकाशपंचमीव्रत कथा, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., श्लो. १०५, पद्य, दि., (सुतं नाभेर्यशस्वत्या), प्रतहीन. (२) आकाशपंचमीव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहि., गा. ७४, वि. १७८५, पद्य, मूपू., दि., (नाभिराय कौ नंदवर यशस्वती), १०४७१५-१२, १०४७९२-१२,१०४८५६-१२, १०६०२३-४ आगमग्रंथाग्र परिमाण विवरण, प्रा.,मा.ग., प+ग., मप., (पणयालीसं आगमं सव्वगंथाण),१०३७७५-७ आगम योगोद्वहन विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (आवश्यक श्रुतस्कंधे), १०२०८४-१(+S), १०४४५५(5) आगमिक गाथा संग्रह, प्रा., गा. २४, पद्य, स्था., (चइत्ता भारहं वासं), १०३५१०-१(+) आगमिकपाठ संग्रह, प्रा.,सं., प+ग., म्पू., (कप्पइ निग्गंथाण वा), १०१२६७-२(+) (२) आगमिकपाठ संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहाँ खलु निश्चइ भगवंतइ), १०१२६७-२(+) आगमिक विचार संग्रह, प्रा.,मा.ग.,सं., प+ग., श्वे., (नमो अरिहंताणं नमो),१०१८९२-७(+) आचारदिनकर , आ. वर्द्धमानसूरि, सं., उद. ४०, प+ग., मप., (तत्त्वज्ञानमयो लोके), १०३१५२(+$) (२) आचारदिनकर-नक्षत्रग्रहशांतिक विधि, हिस्सा, आ. वर्धमानसूरि, सं., प+ग., मूप., (कुग्रहैः क्रूरवेधे), १०११३४-४(+) आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. २५, ग्रं. २६४४, प+ग., मूपू., (सुयं मे आउसं० इहमेगे), १०११२८(+#$), १०१२४२(+s), १०१२७२(+s), १०१७९५(+#s), १०१८७०(+#), १०२४३६(+६), १०२८९८(+$), १०२९३१(+s), १०३७७१-१(+), १०५०३६(+), १०५३१७(+), १०२५५२, १०३६६९(2), १०३५२४(६) (२) आचारांगसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ३४६, पद्य, मूपू., (वंदितु सव्वसिद्धे), १०३७५५(+#$), १०३७७१-२(+) (२) आचारांगसूत्र-टीका# , आ. शीलांकाचार्य, सं., श्रु. २, ग्रं. १२०००, वि. ९१८, गद्य, मूपू., (जयति समस्तवस्तु), १०१८७१(+), १०२८०९(+#$) (२) आचारांगसूत्र-प्रदीपिका टीका, गच्छा. जिनहंससूरि, सं., ग्रं. ९५००, वि. १५७३, गद्य, मूपू., (शासनाधीश्वरं नत्वा), १०२८८७(+$), १०२५५२ (२) आचारांगसूत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (भगवंत श्रीसुधर्मस्वामि), १०१२४२(+$), १०२९३१(+9) (२) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (श्रीवीतरागने नमस्कार), १०११२८(+#$), १०१७९५(+#$), १०१८७०(+#), १०२४३६(+$), १०२८९८(+$), १०५०३६(+), १०५३१७(+) आचारोपदेश, उपा. चारित्रसुंदर, सं., वर्ग. ६, श्लो. २४६, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (चिदानंदस्वरूपाय), १०१७७३-१(+) आतरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ७१, वि. ११वी, प+ग., मप., (देसिक्कदेसविरओ), १०३२८०-३, १०३५१३-३, १०२४७५-२(#$) आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, सं., प्रका. ४, श्लो. १८१, वि. १८३३, प+ग., मूपू., (अनंतविज्ञानविशुद्ध), १०१७०६-१(+#S), १०२५३४(+), १०५००४(+$), १०६३९७-१(+) । (२) आत्मप्रबोध-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. जिनलाभसूरि, सं., वि. १८३३, गद्य, मप., (अनंतविज्ञानविशुद्धरूपं), १०६३९७-१(+) (२) आत्मप्रबोध-बीजक, सं., गद्य, मूप., (तत्राद्य प्रकाशे यथा), १०१७०६-२(+#$), १०६३९७-२(+) आत्मानुशासन, आ. गुणभद्र, सं., श्लो. २७१, वि. ९वी, पद्य, दि., (लक्ष्मीनिवासनिलयं विलीन), १०३३९५(+) (२) आत्मानुशासन-टीका, आ. प्रभाचंद्र, सं., वि. १३वी, गद्य, दि., (वीरं प्रणम्य भववारिन), १०३३९५(+) (२) आत्मानुशासन-भाषावचनिका, पंडित. टोडरमल , पुहिं., गद्य, दि., (श्रीजिनशासन गुरु नमौ), १०४८८२(+) (२) आत्मानुशासन-भाषाटीका, पुहि., गद्य, दि., (श्रीजिनशासन गुरु नमौ), १०४३४२ For Private and Personal Use Only Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ ४८१ आदर्श जैनजीवन स्वरूप, पुहि.,प्रा.,सं., प+ग., जै.?, (अथ जिनि का उपदेश सुनिए), १०६०४० आदिजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (सुवर्णवर्ण गजराज), १०५४८९-४(-१) आदिजिन छंद, पुहि.,सं., गा. ७, पद्य, मपू., (परम अलक्षहि त्रिजग चक्षहि), १०६१६२-२२ आदिजिन नमस्कार, सं., श्लो. ३, पद्य, मप., (वंदे देवाधिदेवं तं), १०६४१८-४४(#) आदिजिन बोली, अप., गा. ७, पद्य, म्पू., (--), १०१७७४-१(+$) । आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (आनंदानम्रकम्रत्रिदशपति), १०२७८९-४(+) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ऋषभनाथ भुनाथनिभानने), १०२७०७-२८, १०६४१८-२३(#) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (जय जय जगदानंदन जय), १०६४१८-४७(#) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (युगादिपुरुषंद्राय युगादि), १०२७५३-११(+), १०२७०७-२७, १०६४१८-१३(#) आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., गा. ४, पद्य, मप., (वरमुत्तियहार सुतारगुणं), १०२७५३-७(+), १०५२६९-५(+), १०२७०७-२४, १०६४१८-१७(#) आदिजिन स्तुति-पूर्णिमा, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (यां चक्रे भरतः स्वदर्शन), १०२५०९-१४(+#), १०२७८९-३(+) आदिनाथ देशनोद्धार, प्रा., गा. ८८, पद्य, मूप., (संसारे नत्थि सुह), १०२४५७(+), १०१०९७-३ (२) आदिनाथ देशनोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसारमांहि नथी सुख), १०२४५७(+), १०१०९७-३ आप्तमीमांसा, आ. समंतभद्र, सं., परि. १०, श्लो. ११५, पद्य, दि., (देवागमनभोयानचामरादि), १०१५९२(+$) (२) आप्तमीमांसा-अष्टशतीभाष्य, आ. अकलंकदेव, सं., ग्रं. ८००, गद्य, दि., (उद्दीपीकृतधर्मतीर्थम), प्रतहीन. (३) आप्तमीमांसा-अष्टशतीभाष्य की अष्टसहस्रीटीका, आ. विद्यानंदस्वामी, सं., ग्रं.८०००, गद्य, दि., (श्रीवर्द्धमानमभि), प्रतहीन. (४) आप्तमीमांसा-अष्टशतीभाष्य की अष्टसहस्रीटीका की तात्पर्य टीका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, मपू., दि., (ऐंद्रमहः प्रणिधाय), १०३३५४ (२) आप्तमीमांसा-वचनिका, पुहिं., परि. १०, वि. १८६६, पद्य, दि., (वृषभ आदि चउवीस जिन० विघन), १०४४६६(#) आरंभसिद्धि, आ. उदयप्रभसूरि, सं., विम. ५, श्लो. ४१३, ग्रं. ४६०, वि. १३वी, पद्य, मपू., इतर, (ॐ नमः सकलारंभसिद्धि), १०२६८६(+#), १०३४७७(+), १०४५२९(#) (२) आरंभसिद्धि-सुधीशंगारवार्तिक, ग. हेमहंस, सं., विम. ५, वि. १५१४, गद्य, म्पू., इतर, (शं सुखाय भवतीत्येवं), १०३४७७(+), १०४५२९(#) आराधना कथाकोश, मु. नेमिदत्त ब्रह्म, सं., कथा. ११४, श्लो. ५१६८, पद्य, दि., (श्रीमद्भव्याब्जसद्भा), १०४३८५(+), १०४४०५(+#) आराधना वार्ता, प्रा.,मा.गु., पद्य, श्वे., (नमो अरिहंताणं जय जय), १०५१०४-२(+#) आरासणतीर्थ स्तव, प्रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (विलसिरकिन्नर महुरगीय), १०३२३०-२०(+) आर्द्रकुमार कथा, सं., पद्य, मूपू., (--), १०६३५६-१(६) (२) आर्द्रकुमार कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (--), १०६३५६-१(६) आलाप पद्धति, आ. देवसेन, सं., अधि. १९, सू. २२८, वि. १०वी, पद्य, दि., (गुणानां विस्तरं), १०५२४३(+), १०६०३० (२) आलाप पद्धति-भावप्रकासिनी भाषाटीका, पुहिं., वि. २०वी, प+ग., दि., (चेतन द्रव्य अनंतगुण ज्ञान), १०६०३० आलोयणा विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथमं ईर्यापथिकी), १०१६७८ आलोयणा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रथम गृहसथी अविरत), १०२५६२(+#$) आवश्यकसूत्र, प्रा., अध्य. ६, सू. १०५, प+ग., मपू., (णमो अरहंताणं० सव्व), १०१०२५(+#), १०१४०३(+#), १०१६७५-१(+s), १०३७८३(+#), १०४२२४+), १०३४९१, १०३२९५(#), १०४२३८($) (२) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. २५५०, ग्रं. ३१००, पद्य, मूपू., (आभिणिबोहियनाणं), १०१७८६-२(+), १०३६६६-२(+#s), १०३७५६(+#), १०३७८३(+#), १०४२३९-२(+), १०५७४३(+#$), १०५९००-१(+$), १०१२७५(१), १०४६१७-३(#s), १०३४९१(६), १०४२३८($) (३) आवश्यकसूत्र- का भाष्य, प्रा., गा. २५३, पद्य, मपू., (अवरविदेहे गामस्स),१०३७८३(+#), १०४२३८($) For Private and Personal Use Only Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (४) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की अवचूर्णि#, सं., गद्य, मूपू., (इह हि० आवश्यकनियुक्ति), १०४८४९(+$) (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की लघुटीका#, आ. तिलकाचार्य, सं., वि. १२९६, गद्य, मूपू., (--), १०५७४३(+#$) (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की शिष्यहिता टीका#, आ. हरिभद्रसूरि, सं., ग्रं. २२०००, गद्य, मपू., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), १०४२२४(+), १०६२५५(+$) (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का हिस्सा सामायिकअध्ययन नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, मूपू., (आभिणिबोहियनाणं सुयना), प्रतहीन. (४) विशेषावश्यकभाष्य, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अध्य. प्रथम, गा. ३६०३, पद्य, मूपू., (कयपवयणप्पणामो वोच्छं), १०३२९७(+) (२) आवश्यकसूत्र-भाष्य, प्रा., पद्य, मपू., (जह गणहरेहिं भणियं), १०३७५४ (२) आवश्यकसूत्र-चूर्णि#, ग. जिनदास महत्तर, प्रा.,सं., अध्य. ६, ग्रं. १८०००, गद्य, मूपू., (नमो अरहंताणं०० आवस्स), १०३२९५(#), १०३७०६(#s) (२) आवश्यकसूत्र-दीपिका टीका#, आ. माणिक्यशेखरसूरि, सं., ग्रं. ११७१०, वि. १४०१, गद्य, मूप., (नत्वा श्रीवीरजिनं०), १०३७८३(+#) (२) आवश्यकसूत्र-लघुवृत्ति#, आ. तिलकाचार्य, सं., ग्रं. १२३२५, वि. १२९६, गद्य, मूपू., (देवः श्रीनाभिसूनुर्जनयतु), १०३४९१(६), १०४२३८(६) (२) आवश्यकसूत्र-शिष्यहिता टीका#, आ. हरिभद्रसूरि, सं., ग्रं. २२०००, गद्य, मप., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), प्रतहीन. (३) आवश्यकसूत्र-शिष्यहिता टीका का टिप्पणक, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, सं., ग्रं. ४६००, गद्य, म्पू., (जगत्त्रयमतिक्रम्य), १०२५२०(#) (४) आवश्यकसूत्र-शिष्यहिता टीका के टिप्पणक की वचनिका, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे ४५ आगम प्रभुजीइ), १०५९६१-५ (२) आवश्यकसूत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो अ० इत्यादि एहनो), १०१४०३(+#) (२) आवश्यकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो० नमस्कार होवउ), १०१०२५(+#$), १०१६७५-१(+$) (२) आवश्यकसूत्र-हिस्सा आयंबिल पच्चक्खाण, प्रा., गद्य, मपू., (उग्गए सूरे नमुकारसी), १०२७२६-२ (२) आवश्यकसूत्र-हिस्सा एकासणा-बेआसणानुं पच्चक्खाण, प्रा., गद्य, मूपू., (उग्गए सूरे नमुक्कार), १०२८४३-३(+) (२) आवश्यकसूत्र-हिस्सा तिविहार उपवास पच्चक्खाण, गु.,प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (सूरे उग्गए उपवास कर्यो), १०२८४३-२(+), १०६४१९(#) (२) आवश्यकसूत्र-हिस्सा पच्चक्खाण पारणक गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (फासियं पालियं चेव), १०६३२१-४ (२) आवश्यकसूत्र-हिस्सा प्रत्याख्यानादि ४४ आगार, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (१अन्नत्थणाभोगेणं २सहसा), १०४२४४-२(+) (३) आवश्यकसूत्र-प्रत्याख्यानादि ४४ आगार की व्याख्या, सं., गद्य, भूपू., (अनाभोत्यंतविस्मृतिः), १०४२४४-२(+) (२) चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, प्रा.,सं., प+ग., मपू., (नमो अरिहंताणं नमो), प्रतहीन. (३) चैत्यवंदनसूत्र-विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (इछामि खमासमणो कही), १०५०७७-१०(+$) (४) चैत्यवंदनसूत्र विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सोधर्मेद्र श्रीभगवंतने), १०५०७७-१०(+$) (२) जयवीयरायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (जय वीयराय जगगुरु होउ), १०१५९१-२(2) (२) लोगस्ससूत्र, हिस्सा, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (लोगस्स उज्जोअगरे), १०२९०४(#) (३) लोगस्ससूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, स्पू., (चउद राजलोकमांहि), १०२९०४(#) (२) शक्रस्तव, हिस्सा, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (नमुत्थुणं अरिहंताणं), १०१६७५-२(+) (२) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सकल कुशलवल्ली पुष्करावर्त), १०५३५४-२(+), १०६११७(+) (३) सकलकशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-टीका, सं., पद्य, मप., (यस्माकं क० तुमारे), १०६११७(+) (३) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकल कहेता समक्ष कुसल), १०६११७(+) (२) १९ कायोत्सर्ग दोष विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (घोडानी परि एकई पगि), १०१९०७-४ For Private and Personal Use Only Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ ४८३ (२) आवश्यकसूत्र-पंचप्रतिक्रमणादि सूत्राचार गच्छाचार भेददर्शक सिद्धांतविचार संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (श्रीउत्तराध्ययने २६ साधु), १०२७४७(#$) । (२) आवश्यकसूत्र-पच्चक्खाण आगार यंत्र, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., को., मूपू., (--), १०१६७५-४(+) (२) आवश्यकसूत्र-पच्चक्खाण आगार विवरण, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (उग्गए सूरे नमुक्कार), १०२३८७-२ (२) आवश्यकसूत्र-पदसंपदालघगुरु अक्षरादि संख्या, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (सूत्र सूत्रनाम पद संख्या), १०१६७५-५(+) (२) आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), १०६०९७ (२) आवश्यकसूत्र-सामायिक के ३२ दोष, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मप., (प्रथम १० मन संबंधी), १०५८०५-२४(+#), १०१९०७-२ (२) आवश्यकसूत्र-सामायिक लेने व पारने की विधि, संबद्ध, गु.,प्रा.,मा.गु., गद्य, मप., (अथ सामायक लेवानी), १०६४२२-१(+$) (२) कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (कल्लाणकंदं पढम), १०१६७१-३(+-), १०५२६७-५(+), १०५०२१-३(#$) (२) गुरुवंदनसूत्र-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (इच्छा० संदि० अब्भु), १०१६७५-३(+) । (३) गुरुवंदनसूत्र-श्वे.मू.पू.-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (इ० तुह्याराइ छाइ सं०), १०१६७५-३(+) (२) गुरुस्थापना सूत्र, संबद्ध, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (पंचिंदिय संवरणो तह), १०१८६३-१३(+) (३) गुरुस्थापना सूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूप., (पद ८ गुरु १० लघु ७०), १०१८६३-१३(+) (२) देवसिप्रतिक्रमण विधि-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (इच्छामि खमासमणो वंदि), १०६३४४-१(+), १०१०२८-१(#) (२) देवसिप्रतिक्रमणविधि सज्झाय, संबद्ध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (सुगुरु गणधर पाय प्रण), १०२७९३-१५(+#) (२) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., भूपू., (नमो अरिहंताणं), १०११२९(+#$), १०११५८(+$), १०२५०९-१(+#$), १०२९६७(+5), १०५७०४(+#$), १०५७५६-१(+#), १०२९५७(#S), १०५७८६(#$), १०२०८२(६), १०५१९५-१() (३) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंत प्रति माहरु नम), १०२९६७(+$), १०५७५६-१(+#) (३) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (नमस्कार हवओ रागद्वेष), १०११२९(+#$), १०११५८(+$), १०५७५६-१(+#) (३) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-भावार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे त्रिभुवननी पूजानइ), १०५७८६(#S) (२) देवसियराईय प्रतिक्रमणसूत्र, संबद्ध, गु.,प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), १०३६७७(६), १०६३२१-२(5) (२) देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मप., (नमो अरिहंताणं नमो), १०२५७३, १०२६२६($) (२) देवसीराइअप्रतिक्रमणसूत्र , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मप., (पहिलै पडिकमणो करती), १०२७६८(+-#$) (२) पंचप्रतिक्रमण विधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मप., (इच्छामि० इरियावहि०), १०५१७७(+$) (३) पंचप्रतिक्रमण विधि संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १०५१७७(+$) (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं० जयउ), १०२७०७-१(६) (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं), १०२०६७(+#s), १०२८४६-१(+), १०५२६७-२(+$), १०२०९० (#$) (३) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मपू., (हवे पंचपरमेष्टी महामंत्र), १०२८४६-१(+) (३) पौषधपारणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गा. ३, प+ग., मप., (सागरचंदो कामो), १०५९५७-२(2) (२) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मप., (मुहपत्तिवंदणयं), १०२२०८-४(+), १०२६४६-२(+) (२) पाक्षिक स्तुति, संबद्ध, आ. बालचंद्रसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (स्नातस्याप्रतिमस्य), १०१६७१-८(+-), १०५२६७-७(+), १०६३५८-६(+$), १०२००८-२,१०६३२१-१० (२) पौषध विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही पडिक), १०१२६४-२ (२) पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (खमासमण देइने इरिया), १०२६४६-४(+) (२) प्रतिक्रमणगर्भहेतु, संबद्ध, आ. जयचंद्रसूरि, प्रा.,सं., वि. १५०६, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), १०२४६५(+$) For Private and Personal Use Only Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) प्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूप., (श्रीप्रवचनसारोद्धार), १०५८०१(+$) (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (पाछिली रात्रइ शय्याथी ऊठी), १०१२४५(s), १०२२२०(5) (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (देवसिय आलोइय पडिक्क), १०२३३९(+), १०५४८१(+-६), १०१९०७-१, १०५०२१-१(#$) (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), १०१४३३-२(+), १०२०६६(+#) (३) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.-टीका*, सं., गद्य, मूपू., (इह चैत्यवंदनादर्शन), १०२०६६(+#) (३) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हे वीतरागदेव तुमे), १०१४३३-२(+) (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर*, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं० करेमि), १०१६८८-१(+#) (२) प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (उग्गए सूरे नमुक्कार), १०१५८९(+#), १०१६१०(+s), १०१९६३(+६), १०२२०८-१(+), १०२५०९-४(+#), १०४९९७-२(+), १०५३७७(+#), १०६३५८-४(+), १०१२७०, १०२३८७-१, १०६३२१-३, १०१७५५(#$), १०१९०७-७($), १०२७०७-१६(5) (३) प्रत्याख्यानसूत्र-बालावबोध , पुहिं.,मा.गु., गद्य, मप., (अन्नत्थणाभोगेणं अन्न),१०१२७० । (३) प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूर्यनइ उदये बै घटिक), १०१६१०(+$), १०१९६३(+$), १०१७५५ (#$) (२) मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तत्त्वदृष्टि सम्यक्त्वमोह), १०२०३५-८(+), १०१९०७-५ (२) मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन सज्झाय, संबद्ध, मु. दयाकुशल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूप., (जिन वचन सदा अणुसरी), १०५६५५-४ (२) राइ प्रतिक्रमणविधि सज्झाय, संबद्ध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (वस्तु प्रथम जागि), १०२७९३-१४(+#) (२) राईप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावहिया० कु), १०२२०८-३(+$) (२) लघुप्रतिक्रमणविधि प्राभातिक, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मपू., (पहिली इरियावही पडीक), १०२६४६-१(+) (२) वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (वंदित्तु सव्वसिद्धे), १०१०३८(+), १०११२४-३(+$), १०११३३-१(+$), १०१२१२(+$), १०१२८७-१(+$), १०१५९५(+), १०२५०९-१०(+#), १०२५४७(+#S), १०५३७१-३(+), १०१४५५, १०२०९४(#S), १०५२१४-१(#), १०५४१६(#), १०६४१८-५(#), १०११९१(६), १०२७०७-७(5) (३) वंदित्तुसूत्र-अर्थदीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., अधि. ५, ग्रं. ६६४४, वि. १४९६, गद्य, मपू., (जयति सततोदयश्रीः), १०२५४७(+#S), १०११९१() (३) वंदित्तुसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदितु क० वांदीने), १०१०३८(+), १०१२१२(+६), १०१४५५(६) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं णमो), प्रतहीन. (३) पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., गा. ३३, पद्य, मूपू., (जगचूडामणिभूओ उसभो), १०२७५३-१७(+) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं० पंचिंदिय), १०३३९४-३०(+), १०५७९३(5) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का बालावबोध, पं. हेमहंस गणि, मा.गु., वि. १५०१, गद्य, मप., (श्रेयांसि श्रीमहावीर), १०५७९३(६) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू, (अरिहंतनई नमस्कार), १०३३९४-३०(+) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-पायचंदगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं.,मा.गु., प+ग., मप., (णमो अरिहंताणं णमो), प्रतहीन. (३) श्रावकपाक्षिक अतिचार-पायचंदगच्छीय, संबद्ध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १५५, पद्य, मूपू, (नाणे दंसण चरणे जाण), १०५९५७-१(#) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.मान्य, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., भूपू., (नमो अरिहं० सव्वसाहूण), १०२१०१(+), १०२९५२(+#), १०४६५३(+$) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वंदारू टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. २७२०, गद्य, मूप., (वृंदारुवृंदारकवृंदवं), १०२९५२(+#), १०४६५३(+$) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनइ नमस्कार हुओ), १०२१०१(+) (३) श्रावकदेवसिकआलोयणासूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, मा.गु., पद्य, मूपू., (सातलाख पृथ्वीकाय), १०१९०७-६ For Private and Personal Use Only Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ (३) श्रावकपाक्षिक अतिचार तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, म्पू, (नाणंमि दंसणंमि०), १०१११० (+४) १०५०११(०६), १०५१०५-१(०), १०५२२६(+), १०५२६५ (+), १०५३३३(+), १०२५६६, १०५२१४-२ (०३) (२) संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू, (संसारदावानलदाहनीरं सम्मोह), १०१६७१-२ (+), १०१२८१ (३) संसारदावानल स्तुति- अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., गद्य, मूपू., (अहं वीरं नमामीति), १०१२८१ " (२) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा. गु., प+ग, मृपू, नमो अरिहंताणं). १०२९१६(७), १०५३७१-२(+) (२) साधु प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा. प+ग, मूपू. (णमो अरिहंताणं० आवस्स), १००९९० (०३) (२) साधु प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे. मू. पू. संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, मूपू., ( नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाण), १०२९०६ (+), १०२९०१ "" (३) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आवसही कहेतउ सावधान), १०२९०१ (३) आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, मूपू., (तित्थंकरे य तित्थे), १०१०२०(#), १०१०२४(३) १०१४१२ (०) २०१४३५-१(+), २०१५१४- १(०) १०२०४४ (०) १०२०४६ (१०) १०२१६९ (+०३), १०२१७८-१(+), १०२४१४(+), १०२७५४(+०६), १०१०७८-१, १०१३९२, १०११५५ (०३) १०४४४१ (०६), १०५०८४ - १ (#S), १०५४४१ ($) (४) पाक्षिकसूत्र - टीका, आ. यशोदेवसूरि, सं. ग्रं. २७०० वि. १९८०, गद्य म्पू. (इहार्हत्प्रवचनानुसार) १०४४४१ (४४) " (४) पाक्षिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (तीर्थकरान् तीर्थ इति गणधर), १०३७५३(+) (४) पाक्षिक सूत्र- अवचूरि, सं., गद्य, मूपु. ( श्रीवीरजिनं नत्वा), १०१४८०-१ (३) (३) आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा पाक्षिकसूत्र व खामणासूत्र, प्रा., पद्य, मूपू., (तित्थंकरे य तित्थे), १०१३०३ (+#$), १०२७१२-१, १०५९१६-१ (३) क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., आला. ४, गद्य, मूपू. (इच्छामि खमासमणो पियं) १०१४८३(+४), १०१५१४-२०० १०२१७८-२(+), १०२१७८-३(+४), १०१०७८-२, १०२७१२-२, १०५९१६-२, १०५०८४-२ (०६) (४) क्षामणकसूत्र अवचूरि, सं., गद्य, म्पू. (यथा राजानं मंगलपाठका), १०९४८३(०) २०१४८०-२ (३) पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा. सू. २१, गद्य, मूपू., (करेमि भंते० चत्तारि०), १०११२४- २ ( +$), १०११३३-२ (+), १०२७५३-१९(+), १०१७०४, १०२७०७-६, १०१०८५ (# ), १०६४१८-३(#) (४) पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु, गद्य, म्पू, (चार बोल तेम मंगलिक), १०१०८५१०१ (३) साधुदेवसिप्रतिक्रमण अतिचार - मू. पू., संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ठाणे कमणे चंकमणे), १०१४३५-३(+) (३) साधुपाक्षिक अतिचार-मू. पू. संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, मूपू. (नाणम्मि दंसणम्मि० ), २०१२८७-२(५), १०१४३५-२(५७), १०५७८०-१(+) १०३७५९ (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह- खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., सं., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाण), १०१२८८-२(१६), १०६४१८-१(०) (३) साधुभावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय का बालावबोध, आ. तरुणप्रभसूरि, मा.गु.. गद्य, मूपू (सुरासुराधीशमहीश). आषाढकार्तिकफाल्गुनचातुर्मासिक व्याख्यान, सं., गद्य मूपू (श्रीपार्श्वसुखमागार), १०९३८९(+) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आस्रवत्रिभंगी, मु. श्रुतमुनि, प्रा., अ. ३, गा. ६२, वि. १४वी, पद्य, दि., (पणमिय सुरिंदपूजिय), १०१६६०-१(+) आहारादिमान गाथा भरतादिक्षेत्रे, प्रा., गा. ३, पद्य, मूप, (बत्तीसं कवलाहारो), १०१८३८-२ (२) आहारादिमान गाथा भरतादिक्षेत्रे टीका, सं., गद्य, मूपु. ( इह विदेहेषु च), १०१८३८-२ ', , इंद्रकृत जिनजन्ममहोत्सव विचार, सं., गद्य, मूपू., ( तस्मिन् समये शक्रस्य आसनं), १०१२६०-३(+#) इंद्रियपराजयशतक, प्रा. गा. १००, पद्य, मूपू (सुच्चिअ सूरो सो), १०१०९७-१ (२) इंद्रियपराजयशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (तेहिज सूर तेहिज), १०१०१७-१ (संसारम्मि असारे) १०२३५४(8) इगुणतीसी भावना, प्रा. गा. ३०, पद्य, श्वे. " इष्टतिथ्यादि सारणी, मु. लक्ष्मीचंद्र, सं., वि. १७६०, पद्य, मूपू., (श्रीवामेयं नमस्कृत्य), १०५२०९(+) יי For Private and Personal Use Only ४८५ Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ उच्चनीचग्रह विचार गाथा, सं., गा. २, पद्य, वै., इतर, (उच्चलः सूर्य उच्चैन), १०१२२८-२(+) उज्जयंततीर्थात्मकरण प्रबंध, सं., प+ग., मूपू., (सुराष्ट्रायां गोमंडलनगरे), १०१५४५-१(+#) उत्तमकुमार चरित्र, ग. चारुचंद्र, सं., श्लो. ५७२, पद्य, मूपू., (वंदित्वा स्वगुरुन), १०३५२८ उत्तरपुराण, आ. गुणभद्र, सं., पर्व. ७६, श्लो. ७७७८, ग्रं. २४८४४, वि. ९वी, पद्य, दि., (श्रीमान् जिनो जितो), प्रतहीन. (२) उत्तरपुराण-पद्यानुवाद, पंडित. चंद्रखुस्याल पंडित, पुहि., वि. १७९९, पद्य, दि., (श्रीमत् अजितजिनंद कौ अजित), १०४३५० उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., अध्य. ३६, ग्रं. २०००, प+ग., भूपू., (संजोगाविप्पमुक्कस्स), १००९७२(+$), १०१००३(+s), १०१०८०-३(+), १०११६९(+#$), १०११७०(+$), १०१४०६(+#$), १०१४३७(+$), १०१५४२(+#$), १०१६१५(+$), १०१६२३(+), १०२०२४(+$), १०२१०२(+$), १०२५०२(+#), १०२६६९(+#s), १०२७३८-३(+), १०२७३९-३(+), १०२७७५(+$), १०२९१७(+#$), १०२९१८(+#$), १०२९९५ (+$), १०३२८६-३(+), १०३४४३(+#), १०३५३०(+), १०३७६४(+#), १०४२०६(+), १०४२३५-३(+#), १०५२५९(+$), १०५३३४(+#$), १०५३४१(+#$), १०५८३८(+#s), १०५८६५(+$), १०५८९७(+#$), १०६०८७(+$), १०३२९८, १०१९४८-२, १०४६१७-१(#), १०५७८७(#S), १०१०१३(६), १०१३१८(६), १०१८९०), १०२७७३(६), १०५८२९(5), १०६२३५(६) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., अध्य. ३६, गा. ६०७, पद्य, मप., (नामं ठवणादविए), १०३७७७($) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, मूपू., (भिक्षो विनयं प्रादुष्करि), १०३७६४(+#), १०५८९७(+#$) (३) उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (भिक्षु महात्मानइ), १०३७६४(+#) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-शिष्यहिता बृहद्वृत्ति#, आ. शांतिसूरि, सं., ग्रं. १६०००, गद्य, मूपू., (शिवदाः संतु तीर्थेशा), १०२०२४(+$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सर्वार्थसिद्धिटीका, उपा. कमलसंयम, सं., वि. १५४४, गद्य, मपू., (श्रीवर्द्धमानजिनराजगुरु), १०३५३०(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं., ग्रं. १२०००, वि. ११२९, गद्य, मपू., (प्रणम्य विघ्नसंघात), १०२१०२(+$), १०२७७५(+$), १०३१५४(+), १०३४४३(+#), १०३२९८ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-अवचरि, सं., गद्य, मपू., (संजोगा० संयोगान्), १०५८६५(+$), १०२८६२(#) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, मूपू., (संसारतणा संबंधथी), १०१४३७(+$), १०२६६९(+#$), १०५८३८(+#$), १०५८६५(+s), १०५६३१(#), १०२७७३($) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, आ. राजचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मप., (वर्द्धमानजिनं नत्वा), १०५३३४(+#$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (संयोग बे प्रकारे), १०११७०(+$), १०१४०६(+#s), १०२९१७(+#$), १०४२०६(+), १०५३४१(+#$), १०६०८७(+$), १०१३१८($) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा संग्रह, मु. पार्श्वचंद्रसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (पूर्वसंजोग मातापिता), १००९७२(+$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह, पंन्या. पद्मसागर, सं., कथा. २४, ग्रं. ४५००, वि. १६५७, गद्य, मपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), १०२७८१(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह*, मा.गु., कथा. ४, गद्य, म्पू., (एक आचार्यनई एक चेलो), १०६०८७(+$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा २९वाँ अध्ययन, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., गा. ७४, पद्य, मूप., (सुअं मे आउसं तेणं), प्रतहीन. (३) उत्तराध्ययनसत्र-हिस्सा २९वाँ अध्ययन का बोल संग्रह, संबद्ध, मा.ग., बो. ७३, गद्य, मप., (संवेग१ ते मोक्षनो अभिलाष), १०५९६१-४ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन २८ मोक्षमार्गगति, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., गा. ३६, पद्य, मप., (मोक्खमग्गइ तं च सुणे), प्रतहीन. (३) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन २८ मोक्षमार्गगति के २५ बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सोहोइ निच्चयनउ जोझिंतउ), १०१०८१ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा विणयसुयं प्रथमअध्ययन, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., गा. ४८, पद्य, मूपू., (संजोगा विप्पमुक्कस्स), १०१८२१(+$) (३) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा विणयसुयं प्रथमअध्ययन-बालावबोध, मा.गु., गद्य, भूपू., (उत्तर प्रधान जे), १०१८२१(+$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-चयनितगाथा संग्रह, प्रा., गा. ३८, पद्य, मपू., (संजोगाविप्पमुक्कस्स), १०२८९०(#) ७२ For Private and Personal Use Only Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ ४८७ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., सज्झा. ३६, पद्य, मूपू., (पवयणदेवी चित्त धरी), १०५४८३(+), १०२५५९-२(#$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. ब्रह्म, मा.गु., सज्झा. ३६, पद्य, मूपू., (अमीय समाणी वाणी वरस), १०२५७७(+$) उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., गा. ५४४, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणवरिंदे इंद), १०१०१८(+), १०१२१७(+#), १०१२४३(+#$), १०१२७१(+$), १०१३०४(+$), १०१५१०(+$), १०१७७४-३(+$), १०१९३४-१(+$), १०२४७२(+), १०२५९५(+#$), १०३२८८(+), १०४०४१-१(+), १०५१५५(+#s), १०५८८९(+#$), १०६४१०,१०१८८०(#), १०२७०९(5) (२) उपदेशमाला-दोघट्टीविशेषवृत्ति, आ. रत्नप्रभसूरि, प्रा.,सं., ग्रं. ११८२९, वि. १२३८, गद्य, मूपू., (यस्यारघट्टस्य घनोपदे), १०३२९६(+) (२) उपदेशमाला-हेयोपादेया वृत्ति, ग. सिद्धर्षि गणि, सं., ग्रं. ९५००, वि. १०वी, गद्य, मूपू., (हेयोपादेयार्थोपदेश), १०३२८८(+) (२) उपदेशमाला-अवचूरि, मु. सिद्धसाधु, सं., गद्य, मूपू., (ऋषभो जगच्चूडामणिभूतोधुना), १०३७५८(+) (२) उपदेशमाला-अवचूरि, सं., गद्य, मपू., (नत्वा जिनवरेंद्रान), १०१२१७(+#) (२) उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मा.ग., वि. १७१३, गद्य, मप., (नमस्कार करीनइ जिण), १०६४१० (२) उपदेशमाला-बालावबोध, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., ग्रं. ५९००, वि. १४८५, गद्य, मप., (श्रीवर्द्धमानजिनवर), १०१८८०(#) (२) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिण कहीइ नमीनइ), १०१२१७(+#), १०१३०४(+$), १०१९३४-१(+$), १०२७०९(६) (२) उपदेशमाला-टबार्थ, सं., गद्य, मूपू., (--), १०२५९५(+#$) (२) उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, मूप., (वंदित्वा वीरजिन), १०६४१० (२) उपदेशमाला-कथा, मा.गु., गद्य, मपू., (हवे श्रीउपदेशमाला), १०१९३४-२(+$), १०२५०८(+#), १०२७०९($) (२) उपदेशमाला-कथा संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य गुरुपादाब्ज), १०१३०४(+$) उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., गा. २६, पद्य, मूपू., (उवएसरयणकोसं नासिय नीसेस), १०४०४१-४(+) उपदेशरत्नमाला, आ. सकलभूषण, सं., परि. १८, ग्रं. ३१००, वि. १६२७, पद्य, दि., (--), १०२१६१(+$), १०६०००(+#$) उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पहिलुं नवकार उपधान), १०२२०८-५(+$), १०१६१९($) उपयोग विधि, प्रा., गद्य, मूप., (पव्वइएणय उभयकालं), १०३२८६-८(+$) उपसर्गगण, सं., श्लो. २१, पद्य, मप., इतर, (प्रपरापसमन्ववनिर्दरभिः), १०४९०१(+) (२) उपसर्गगण-दीपिका टीका, सं., गद्य, मप., इतर, (अयं उपसर्ग गणः प्राक्तनैः), १०४९०१(+) उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १०, ग्रं. ८१२, प+ग., मूपू., (तेणं० चंपा नामं नयरी), १०१०३४(+#), १०१११७(+#$), १०१२१५(+$), १०१२४८(+#), १०१३३९(+$), १०१४२२(+#s), १०१४५६(+), १०१७५०-१(+#$), १०२०५७(+), १०२७६२(+$), १०२९२४(+), १०६३२३(+$), १०२०५८ (२) उपासकदशांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., अध्य. १०, वि. १११७, गद्य, पू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), १०३३११(+#), १०४२३३(+), १०५८७५-१(+#s), १०३३१०-१ (२) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मा.गु., वि. १६९३, गद्य, म्पू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), १०२७६२(+$) (२) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), १०१०३४(+#$), १०१११७(+#$), १०१२१५(+$), १०१४२२(+#$), १०१४५६(+), १०१७५०-१(+#$), १०६३२३(+$) उवसग्गहर स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (उवसग्गहरं पासं पास), १०१५०५-२(+#), १०२३५५-७(+#), १०५०७७-३(+) (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (उपसर्ग जे विघ्न तेहन), १०५०७७-३(+) ऋषभपंचाशिका, क. धनपाल, प्रा., गा. ५०, वि. ११वी, पद्य, मूपू., (जयजंतुकप्पपायव चंदाय), १०१४७५(+) ऋषिपुत्रिकाध्ययन, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. २०१, पद्य, मपू., (सो जयउ जएउ समो अणंत), १०६४५५(+#) (२) ऋषिपत्रिकाध्ययन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (सो जयवंत होउ वृषभनाथ कैसे), १०६४५५(+#) For Private and Personal Use Only Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४८८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि प्रा. गा. २०९, प्र. २५९, वि. १४बी, पद्य, मूपु., (भत्तिब्भरनमिरसुरवर) १०५८७३(००), 7 १०१५४१(३) (२) ऋषिमंडल प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भक्ति घणी करी नम्या), १०५८७३(+#) " ऋषिमंडलमंत्र कल्प, मु, गुणनंदि मुनींद्र, सं., श्लो. १८३, प्र. ३८०, प+ग. दि., (प्रणम्य श्रीजिनाधीश), १०२०५४(१), १०६०११(७) ऋषिमंडल स्तोत्र-बृहद्, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., श्लो. ६२, ग्रं. १५०, पद्य, मूपू., (आद्यंताक्षरसंलक्ष्यमक्षरं), १०२३५५-९ (+#$), १०५२८३(०), १०५९८९-५७/+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " (२) ऋषिमंडल स्तोत्र- बृहद् पूजाविधि, संबद्ध, सं. ग्रं. ३८३, गद्य, म्पू, (प्रणम्य श्रीजिनाधीश), १०४९२३ (*) एकादिशतांतसंख्याशब्द साधनिका, मु. सहजकीर्ति, सं., गद्य, मूपू., इतर, (प्रणिपत्य नीलवर्णं), १०३६८८ एकावलीव्रत कथा, मु. विशदकीर्ति, सं., श्लो. ५८, पद्य, दि., (श्रीवीरं जिनमानम्य), १०२९५१-४ ($) एकीभाव स्तोत्र, आ. वादिराजसूरि, सं., श्लो. २६, ई. ११वी, पद्य, दि., ( एकीभावं गत इव मया), १०५००८-२ (+#), १०६२९०-१(+#$) (+$) (२) एकीभाव स्तोत्र पद्यानुवाद, जे.क. भूधरदास, पुहिं. गा. २७, पद्य, दि., (नमो आदि आदीश जिन नमो). १०५९८९-५५ (०३) (२) एकीभाव स्तोत्र - अन्वय, सं., गद्य, दि., (भो जिनरवेचेज्जदि त्वयि ), १०५००८-२ (+#) ओघनिर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. १९६४, पद्य, भूपू (अरहंते वंदित्ता चउदस), १०४८५३(+), २०४६५८(३) (२) ओघनियुक्ति टीका#, आ. द्रोणाचार्य, सं. ग्रं. ६८२५, वि. १२वी, गद्य, मूपू., (अर्हद्भ्यस्त्रिभुवनराज), १०४८५३ औपदेशिक काव्य, मा.गु. सं., गा. २१, पद्य, मूपू., (दिनयामिन्यौ सायं प्रातः), १०२४९७-२(+#) "" औपदेशिक गाथा संग्रह, पुहिं. मा.गु., सं., पद्य, खे, (अजो कृष्ण अवतार कंस), १०२१५५-५ (+), १०१०९४-२(३) औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (जं जं समयं जीवो), १०१८३८-३ (२) औपदेशिक गाथा संग्रह-वृत्ति, सं., गद्य, मुपू., (मनुष्यास्तावत् द्विधाः), १०१८३८-३ औपदेशिक गाथा संग्रह - विविध विषयक विविध ग्रंथोद्धत, प्रा.सं., पद्य, मूपू.. (पूआ जिणंदेसु रई वएस) १०१३६९(+), " १०१२८६ औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., गा. ९, पद्य, वे. ( काम वली सवही पुरहे), १०११०८-२ (+), १०३४६९-२(+) औपदेशिक श्लोक संग्रह *, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., श्लो. ६१, पद्य, श्वे., (धर्मे रागः श्रुतौ), १०५३७५-४ (+), १०२२९९-४, १०५४२२-२ औपपातिकसूत्र, प्रा. सू. ४३, ग्रं. १६००, पद्य, म्पू., (तेणं कालेनं० चंपा०), १०२०९९(+४३), १०५२०२ (०), १०२८५१(१६), १०२९७८(4) (२) औपपातिकसूत्र-दुर्गमपद बालावबोध, मु. मोहन ऋषि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), १०२०९९(+#$) (२) औपपातिकसूत्र - टवार्थ* मा.गु., गद्य, मूपू., (चउथा आरानइ विषइ वरस) १०२९७८) औषधवैद्यक संग्रह, मा.गु. सं., गा. ६, पद्य, इतर, (अथ नाडीपरीक्षा करस्यां), १०१७६५-१(+), १०२१३४-३(+#) औषधवैद्यक संग्रह, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., गद्य, इतर, (अनार दाणा टां. ८०), १०१०७१-४ (+), १०५६६५-२ (+#) कथारत्नाकर, ग. हेमविजय, सं. ग्रं. ७४००, गद्य, भूपू (जयति रजनिरत्न स्थानरत्न), १०२५५४(३) 3 १ कथा संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (पश्चिम विदेहे गंधिला ), १०५८८२(#$) कथा संग्रह, सं., प्रा., पद्य, श्वे. (येनादौ नयसंपदः प्रकट), १०४८५२ (६) कथा संग्रह- अष्टप्रकारी पूजा, सं., पद्य, मृपू., (--), १०६३१२(३) कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., श्लो. १७९, पद्य, मूपू, (कर्पूरप्रकरः शमामृत), १०१५४७(१०) १०५८३५ (२) कर्पूरप्रकर-कथामहोदधि, संबद्ध, ग. सोमचंद्र पंडित, सं., कथा. १५७, ग्रं. १८००, वि. १५०४, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), १०१८९९(+$), १०२०६० (+#), १०२४७६ (+), १०२४९७-१(+#$) (२) कर्पूरप्रकर-रोहिणेयचोर कथा, संबद्ध, सं., श्लो. ७६, पद्य, मूपू (द्वेषेपि बोधकवच), १०६३५६-२(5) (३) कर्पूरप्रकर-रोहिणेयचोर कथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवई पजूसणपर्व आया), १०६३५६-२(४) कर्मप्रकृति, आ. शिवशर्मसूरि, प्रा., अधि. ७, गा. ४७५, पद्य, मूपू., (सिद्धं सिद्धत्थसुयं), प्रतहीन. (२) कर्मप्रकृति- बंधनकरण प्रकरण, हिस्सा, आ. शिवशर्मसूरि, प्रा., पद्य, मूपू., (ठिइ बंधठाणाइ सुहुम अपज्जत), १०४५०१-७(००३) For Private and Personal Use Only Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसरि, प्रा., गा.६१, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मप., (सिरिवीरजिणं वंदिय), १०१११८-१(+$), १०१३५२-१(+), १०१३५६(+#$), १०१७८१-१(+s), १०१८१३-१(+#), १०१८२२-१(+), १०१८३२-१(+६), १०२१८१-१(+$), १०२८४४(+), १०४५०१-४(+#$), १०५२११-१(+#), १०१७८७-१, १०५२४१-१,१०१९१३-१(#$), १०२४९६-१(#$), १०२५६३-१(#S), १०५४२६-१(#$), १०११४५-१(६), १०२१४८-१(६) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-स्वोपज्ञ सुबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. १८८२, गद्य, मूपू., (दिनेशवद्ध्यानवरप्रतापै), १०२५६३-१(#) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-अवचूर्णि, आ. गणरत्नसरि, सं.,ग्रं. ३१००, वि. १४५९, गद्य, मप., (श्रियाष्टप्रातिहार्यरूपया), १०२४६९-१(#) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-अवचूरि, सं., गद्य, मप., (श्रियाष्टप्रतिहार्य), १०१७८७-१, १०२४९६-१(#$) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-बालावबोध, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, मप., (प्रणिपत्य जिनंवीरं), १०५२११-१(+#) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रेयोमार्गस्य वक्ता), १०२१८१-१(+$) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञान अतिसय प्रातिहा), १०१८३२-१(+$), १०१९१३-१(#$) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू., (श्रीवर्द्धमान प्रति), १०४५०१-४(+#$), १०११४५-१(६) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-टबार्थ, मु. सुमति, मा.गु., वि. १७०६, गद्य, मपू., (--), १०१७८१-१(+$) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूप., (आचिरेयं नमस्कृत्य), १०५२११-१(+#) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीवीरजिन वांदी), १०१३५२-१(+), १०१३५६(+#$) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१-यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), १०५०५६ कर्मविपाक प्राचीन कर्मग्रंथ-१, ऋ. गर्ग महर्षि, प्रा., गा. १६८, पद्य, मूपू., (ववगयकम्मकलंकं वीरं), १०३३२३-१(+) (२) कर्मविपाक प्राचीन कर्मग्रंथ-पारमानंदी टीका, आ. परमानंदसूरि, सं., ग्रं. ९२२, गद्य, ., (निःशेषकर्मोदयमेघजालमुक्तो), १०३३२३-१(+) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मपू., (तह थुणिमो वीरजिणं), १०१११८-२(+), १०१३५२-२(+$), १०१७८१-२(+$), १०१८१३-२(+#), १०१८२२-३(+), १०१८३२-२(+$), १०२१८१-२(+$), १०५२११-२(+#), १०११४५-२, १०१७८७-२, १०२१४८-२, १०५२४१-२,१०१९१३-२(#), १०२४९६-२(#), १०२५६३-२(#), १०५४२६-२(#$) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (बंधोदयोदीरण सत्पदस्थ), १०२५६३-२(#) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., वि. १४५९, गद्य, मूपू., (गुणस्थानेषु मिथ्या), १०२४६९-२(#) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२-अवचूरि, सं., गद्य, मपू., (तथा वीरजिनं स्तुम), १०१७८७-२, १०२४९६-२(#) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, मप., (वीरं बोधनिधिं धीरं), १०२१८१-२(+$) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२-बालावबोध, मा.गु., गद्य, स्पू., (तिम श्रीमहावीर प्रति), १०१८३२-२(+$), १०५२११-२(+#S), १०११४५-२, १०१९१३-२(2) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (बंध ते स्यु कहीयइ), १०१३५२-२(+$), १०१७८१-२(+$), १०५२११-२(+#$) कर्मस्तव प्राचीन कर्मग्रंथ-२, प्रा., गा. ५५, पद्य, मप., (नमिऊण जिणवरिंदे तिहु), १०३३२३-२(+) (२) कर्मस्तव प्राचीन कर्मग्रंथ-टीका, आ. गोविंदाचार्य, सं., ग्रं. १०९०, गद्य, मूपू., (कर्मबंधोदयोदीर्या०), १०३३२३-२(+) कलंकी जन्मपत्री फलकथन, प्रा.,मा.गु.,रा., गद्य, मूपू., (मम निव्वाणं गोयमा), १०६३४४-३(+) कलिकुंड पूजा, सं., प+ग., दि., (ॐ हुँकारं ब्रह्मरूद्धं), १०६०५८-५ For Private and Personal Use Only Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., व्याख. ९, ग्रं. १२१६, गद्य, मप्., (तेणं कालेणं० समणे), १००९७७(+#$), १०१००२(+#$). १०१०१५(+$), १०११३९(+), १०११४४(+$), १०१२५७(+$), १०१२७७(+$), १०१२८२(+६), १०१३४४(+#$), १०१४३९(+#), १०१४९२(+६), १०१६०६(+$), १०१७११(+$), १०१७२१(+#$), १०१७३८(+#), १०१७५६(+#$), १०१७८०(+s), १०१८३३(+#$), १०१८८३(+$), १०१९२२(+$), १०१९५५(+$), १०२००९(+$), १०२०१०(+$), १०२०६८(+$), १०२०८१(+S), १०२१५०(+#$), १०२३८८(+$), १०२५३५(+#), १०२६७०(+$), १०२७१८(+#), १०२७५५(+), १०२७६६(+#$), १०२७७०(+#$), १०२७७४(+), १०२९५५(+s), १०२९७९(+#), १०३५४५(+), १०४२१७(+), १०४२४६(+s), १०५१५१(+#$), १०५१५६(+#$), १०५३४५(+#$), १०५३५२(+$), १०५४४४(+$), १०५५४७(+#$), १०५६१७(+#$), १०६४००(+$), १०१७१२, १०२९२५, १०४६६०,१०१९२३,१०१२०७(#$), १०१९७७(#), १०२१५३(#$), १०६४१३(#), १०१०२१(६), १०११७८(६), १०१५०९(s), १०२१५९(s), १०२४७४(६), १०२६२९($), १०६४२४($) (२) कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागर गणि, सं., ग्रं. ५२१६, वि. १६२८, गद्य, मूपू., (प्रणम्य प्रणताशेष), १०१७५६(+#s) (२) कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., ग्रं. ४१०९, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानस्य), १०६११५(+$) (२) कल्पसूत्र-कल्पमंजरी टीका, मु. रत्नसार, सं., गद्य, मपू., (श्रीनाभेयजिनेश्वरोत), १०२०१०(+$) (२) कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., ग्रं. ७७००, वि. १६८५, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमं ज्योतिः), १०१४९२(+$), १०१९२२(+$), १०२००९(+$), १०२५५५(+#$), १०४२४६(+$), १०१८८५(#$), १०२१५३(#$) (२) कल्पसूत्र-टीका*, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य प्रणताशेषखंडलं),१०१७११(+$), १०१७२१(+#$), १०२८१९(+#$), १०५४४४(+$) (२) कल्पसूत्र-संदेहविषौषधि टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., ग्रं. २२६८, वि. १३६४, गद्य, मूपू., (ते इति प्राकृतशैलीवशात्), १०३२८५(+#) (२) कल्पसूत्र-कल्पबोधिनी वृत्ति, मु. न्यायसागर, सं., वि. १७७८, गद्य, मूपू., (--), १०१०१५(+$) (२) कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. खीमाविजय, मा.गु., वि. १७०७, गद्य, मपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), १०१७३८(+#) (२) कल्पसूत्र-बालावबोध, उपा. रामविजय, मा.गु., वि. १८१९, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), १०२९१४(+$) (२) कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., वि. १६८०, गद्य, भूपू., (नमः श्रीवर्द्धमानाय), १०२७७४(+), १०२१५९($) (२) कल्पसूत्र-बालावबोध , मा.गु.,रा., गद्य, मप., (नमो अरिहंताणं), १०१८३३(+#s), १०१९५५(+$), १०२०२०(+#s), १०२१५०(+#$), १०२५३५ (+#), १०२७५५(+$), १०२७७०(+#S), १०३५४५(+), १०५३४५(+#$), १०५३५२(+$), १०२९२५, १०२००५(६), १०२४७४(६) (२) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनइ माहरो), १०११४४(+$), १०१२७७(+$), १०१३४४(+#$), १०१७११(+$), १०१७३८(+#), १०१८३३(+#$), १०१८८३(+$), १०१९५५(+$), १०२५३५(+#), १०२७५५(+$), १०२७६६(+#$), १०२७७०(+#$), १०२९५५(+$), १०३५४५(+), १०५१५१(+#s), १०५३४५(+#$), १०५३५२(+$), १०५६१७(+#S), १०२९२५, १०१२०७(#$), १०१०२१(६), १०११७८(६), १०२४७४($), १०४६६०(६), १०६४२४($) (२) कल्पसूत्र-टबार्थ*, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमद्वीरचरित्रबीज), १०२६७०(+$), १०४२४६(+$), १०५४४४(+$) (२) कल्पसूत्र-टबार्थ+कथा, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानं जिन), १०१२५७(+$) (२) कल्पसूत्र-व्याख्यान, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य प्रणताशेषाखंडल), १०१६०६(+$), १०२०५१(६) (२) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, सं., गद्य, मूपू., (तत्रादौ श्रीऋषभदेवस्य), १०२०५२(+$), १०२१९२(+#$), १०२५१२(+#$), १०६४१३(#), १०१५०९(६) (२) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, मपू., (नमः श्रीवर्द्धमानाय), १०२६३९(+#$), १०२६५७(+$), १०२९३८(+#s), १०५१५६(+#$), १०१९७७(#), १०२५१६(६), १०६४२४(६) (२) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य प्रणताशेष), १०२७६६(+#$), १०५२४४(+#), १०२६२९($) (२) कल्पसूत्र-व्याख्यान, सं., पद्य, मूपू., (--), १०५३१८(+#$) (२) कल्पसूत्र-कथा संग्रह*, मा.गु.,सं., गद्य, मूप., (बलदेव बलिदेव वासुदेव), १०५६१७(+#$), १०१२०७(#$) (२) कल्पसूत्र-हिस्सा महावीरजिनजन्माधिकार, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, मूप., (सुमिणा दीट्ठा जाव), प्रतहीन. For Private and Personal Use Only Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ (३) कल्पसूत्र - हिस्सा महावीरजिनजन्माधिकार का खालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू. ( नमो अरिहंताणं० भगवंत), १०२५६५ (२) कल्पसूत्र - हिस्सा साधु समाचारी, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं समएणं), प्रतहीन. (३) कल्पसूत्र-हिस्सा साधु समाचारी का बालावबोध, मु. उल्लासचंद्र, मा.गु., वि. १९५०, गद्य, मूपू., (तिणकाल ते चोथा आरा में). १०५२७८(*) (२) कल्पसूत्र - हिस्सा सामाचारी अध्ययन, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., प+ग, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं समय), १०११३२-१ (+), १०१३३८(+) (३) कल्पसूत्र - हिस्सा सामाचारी अध्ययन का वालाववोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवे वर्षाकाल आव्वे). १०१३३८(+) (३) कल्पसूत्र - हिस्सा सामाचारी अध्ययन का टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (तेणे कालनै विषइ तेणे), १०११३२-१(+) (२) कल्पसूत्र- कालिकाचार्य कथा, संबद्ध, प्रा.सं., गद्य, म्पू., ( नमः श्रीवर्धमानाय), १०१२६२(+४४) (२) कल्पसूत्र - पीठिका, संबद्ध, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मा.गु.. गद्य, मूपू., (सकलार्थ सिद्धिजननी), १०५५२६ (+) (२) कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अर्हंत भगवंत उत्पन्न), १०१८५५ (+5), १०२७३३(+), १०१६२८(#$), १०२६८० (५६) (२) कल्पसूत्र - अंतर्वाच्य, उपा. भक्तिलाभ, सं., वि. १६४०, गद्य, मृपू., (पुत्राः पंचमतिश्रुता), १०१४७१(+5) (२) कल्पसूत्र- अंतर्वाच्य, सं. गद्य, मूपू. (कल्याणांपुरिम इह), १०३७६० (+) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 2 (२) कल्पसूत्र- अंतर्वाच्य, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (जयति जगदेकचक्षुः), १०९४९५(+#) , (२) कल्पसूत्र- अंतर्वाच्य, प्रा. सं., प+ग, मूपू (पुरिमचरिमाणकप्पो), १०१८९१ (+३) १०१८९३ (०४) कल्पावर्तसिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, भूपू (जति णं भंते समणेणं०) १०२९४३-२ (+३) १०४२३२-२(+), १०५११३-२(+) (२) कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जौ हे भगवंत समण०), १०२९४३-२(+#$), १०५११३-२(+#) कल्पिकासूत्र, प्रा. अध्य. १०, गद्य, म्पू, (तेणं कालेणं तेणं०) १०२९४३-१(७) १०४२३२-१(+), १०५११३-१(०१), १०२५४६(७) " " (२) कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतरागदेवने नमस्कार), १०२९४३ - १ (+#$), १०५११३-१ (+#), १०२५४६($) कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि सं., श्लो. ४४, वि. १वी, पद्य, मूपू (कल्याणमंदिरमुदारमवद्यभेदि), १००९९५-१(+), १०१००७(०३), १०१०३० (+४) १०११२४-८(+), १०१४७७(+) १०१६३१-१(+०) १०१७५२-२(+), १०११७३(+), १०२०७९(+$), १०२३५५-३(+#), १०२८३६-३ (+), १०२९०५-२(+), १०२९४६-२ (+), १०२९८०-५ (+), १०३६२७(+#), १०५२९२(+*६), १०५३९७-१(+), १०५४८५ (+), १०६२९०-२(४०), १०६३२० (०३), १०१०५४-२, १०२७०७-१०, १०१०२६(#), १०१५९१-१(#), १०२०८३ (#$), १०२७०५ ($) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र- टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, मूपू., (सर्वज्ञं जिनमानम्य), १०२९८५ ($) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र- टीका, ग. चारित्रवर्द्धन, सं., गद्य, मूपू.. (नत्वा वामेयपादाब्जरो), १०१७५२-२(+) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र- टीका, उपा. सिद्धिचंद्र, सं., गद्य, मूपू (उज्जयिन्यां विक्रमपुरोधसः), १०१४३८ (+) "" (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र टीका, पा. हर्षकीर्ति, सं., गद्य, मूपू. ( श्रीमत्पार्श्वजिनं नत्वा), १०५३९७ - १(+), १०६३२० (+) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र - बालावबोध", मा.गु. गद्य, म्पू, (किल इति संभावनायां), १०५३९७-२ (+३) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, सं., गद्य, मूपू., (कल्याणानां मंदिरं गृहं), १०१६३१-१(+#) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (केहवु छे कमल ते), १०१०३० (+) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पार्श्वनाथजीरा चरण), १०२९०५-२ (+), १०२९४६-२ (+), १०३६२७(+#), १०१०२६ (#), १०२०८३(#$) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जे. क. बनारसीदास, पुहिं. गा. ४४, वि. १७वी, पद्य, म्पू, दि., (परम ज्योति परमातमा), " १०६०५८-१६ ४९१ (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र - अन्वय, मा.गु. सं., श्लो. ४४, पद्य, म्पू, (किलेति सत्ये तस्य), १०२०७९ (५७) " " (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-कर्मक्रिया टीका, सं., गद्य, मूपू., (कल्याणेति युग्म वाख्या), १०३६२७(+०) कविशिक्षा, श्राव. अरिसिंह, सं., प्रता. ४, वि. १३वी, पद्य, मूपू., इतर, (वाचं नत्वा महानंदकर), १०३४१४ (२) कविशिक्षा-काव्यकल्पलतावृत्ति, य. अमरचंद्र, सं. ग्रं. ३३५७, वि. १३वी, गद्य, म्पू, इतर ( विमृश्य वाक्यं) १०३४१४ For Private and Personal Use Only Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ कातंत्रव्याकरण, आ. शर्ववर्माचार्य, सं., अ. ४ पाद २५, सू. १४०१, प+ग., वै., इतर, (सिद्धो वर्णसमाम्नायः), १०३७६१(+#$) (२) कातंत्रव्याकरण-बालावबोधटीका, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., ग्रं. ४८०, वि. १४४४, गद्य, मूपू., वै., इतर, (ॐकार बिंदु संयुक्तं), १०३७६१(+#$) (३) कातंत्रव्याकरण-बालावबोधटीका का स्वोपज्ञ दर्गपदटिप्पण, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., गद्य, मप., वै., इतर, (स्वलिखिताया ___बालावबोध), १०३७६१(+#$) कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मपू., (जह तुह दंसणरहिओ काय), १०५३९६-१(+$), १०२९९१-३(#) (२) कायस्थिति प्रकरण-टीका, आ. कुलमंडनसूरि, सं., वि. १५वी, गद्य, मूपू., (वर्द्धमानं जिन), १०५३९६-१(+$), १०२९९१-३(#) कालिकाचार्य कथा, आ. भावदेवसूरि, प्रा., गा. १००, वि. १३१२, पद्य, मूपू., (अत्थित्थ भारहे वासे), प्रतहीन. (२) कालिकाचार्य कथा-चयन, आ. भावदेवसूरि, प्रा., पद्य, मपू., (अत्थित्थ भरहेवासे कमला), १०५०७८(+) (३) कालिकाचार्य कथा-चयन का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (इणहीज भरतक्षेत्रे साक्षात), १०५०७८(+) कालिकाचार्य कथा, सं., गद्य, मपू., (जंबूद्वीपे भरत), १०५१०७(+#$) कालिकाचार्य कथा, प्रा., गा. १२०, पद्य, मूपू., (हयपडिणीयपयावो), १०३१४० कुमारपाल चरित्र, आ. जयसिंहसरि, सं., स. १०, श्लो. ६३०७, वि. १४२२, पद्य, मप., (चिदानंदैककंदाय नमस्तस्मै), १०३४९७(+#$), १०३७८०(+) कृत्रिमअकृत्रिम चैत्य पूजा, सं., प+ग., दि., (कृत्याक्रतिमचारुचैत्य), १०५९८९-९(+-$) केवलिसमुद्घातस्वरूप विचार, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (वेअण१ कसाय२ मरणे३ वेउव्वि), १०१८९२-१(+) क्षुल्लकभव प्रकरण, ग. धर्मशेखर, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (वंदित्ता सिरिवीर), १०१४७४(+#), १०२९९१-२(#) (२) क्षल्लकभव प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, ग. धर्मशेखर, सं., गद्य, मपू., (वंदित्ता० सुगमा नवरं), १०१४७४(+#), १०२९९१-२(2) क्षेत्रपाल पूजा, पुहिं.,सं., प+ग., दि., (क्षेत्रपालय यग्यस्मिन), १०६०१२-२८ खंडप्रशस्ति, क. हनुमान, सं., अ. १० अवतार, श्लो. १५९, ग्रं. ३३६, पद्य, वै., (कृत क्रोधे यस्मिन्), १०१८७२(+), १०५५५६(+$) (२) खंडप्रशस्ति-सुबोधिका टीका, पं. गुणविनय गणि, सं., वि. १६४१, गद्य, मूपू., वै., (श्रीपार्श्व फलवर्द्धिका), १०१८७२(+), १०५५५६(+$) खामणा कुलक, प्रा., गा. ३८, पद्य, मूपू., (जो कोवि मए जीवो चउगइ), १०५१०४-३(+#) गच्छसामाचारी, प्रा., ग्रं. ५१, गद्य, मूपू., (आयरिय उवज्झाए इच्याइ), १०३२८६-४(+) गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., गा. १३७, पद्य, मप., (नमिऊण महावीरं), १०६२५४(+$), १०३५१३-१४(६) (२) गच्छाचार प्रकीर्णक-बहट्टीका, ग. विजयविमल, सं., ग्रं.५८५०, वि. १६३४, गद्य, मप., (उद्बोधं विदधेब्जानामिव), १०६२५४(+$) गणिविद्या प्रकीर्णक, प्रा., गा. ८६, पद्य, पू., (वुच्छं बलाबलविहिं), १०३५१३-८ गणेशाष्टक, शंकराचार्य, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (ॐ ॐ ॐकाररूपं अहमिति), १०५३५०-१(#) गणेशाष्टक, सं., श्लो. ५, पद्य, वै., (हिमजासुतं भुजं गनेश), १०६१६२-१ गर्भपरावर्तन विचार-अन्यशास्त्रोक्त, सं., गद्य, मपू., (अत्राह कोपि शिवशासनी), १०१२६०-१(+#), १०१८२३ गाथा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, वै., इतर, (कज्जल विज्जल गुंद), १०१८२७-३(+) गाथा संग्रह , प्रा., पद्य, श्वे., (सत्तइ रत्ता मत्तइ), १०५७२१(+#) गाथा संग्रह जैन*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मपू., (सललमथघ्रतकाज निक्खु), १०१०५५-१(+#) गिरनारतीर्थ स्तव, श्राव. वस्तुपाल महामात्य, सं., श्लो. १२, पद्य, मपू., (चौलुक्यमहीमहेंद्रसचिवः), १०३२३०-३८(+) गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., श्लो. १३५, वि. १४४७, पद्य, मूपू., (गुणस्थानक्रमारोहहतमोह), १०२१०६(+#$) (२) गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., वि. १४४७, गद्य, मूपू., (अहँ पदं हृदि), १०२१०६(+#$) गुरुगुणषट्त्रिंशत्षट्त्रिंशिका, प्रा.,मा.गु.,सं., षट. ३६, पद्य, पू., (अक्खेवणीय१ विक्खेवणीय२), १०४२४४-१(+) गुरु जयमाला पूजा, मु. ब्रह्मजिनदास, मा.गु.,सं., पद्य, दि., (वृषभं वृष सेनाद्या सिंह), १०६०५८-७ गुरुतत्त्वप्रदीप, सं., विश्रा.८, श्लो. २४१, पद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), १०५८१०-२(+) For Private and Personal Use Only Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ गुरुतत्त्वव्यवस्थापनवादस्थल, सं., गद्य, मूपू.. (इह केचिद्वर्मार्थिनोपि), २०५८१०-१(१) गुरु पूजा, मु. ब्रह्मजिनदास, मा.गु., सं., गा. २५, प+ग., दि., (सिद्धांतसूत्र संकिर), १०६०१२-७ गृहविस्थापना विधि, मा.गु. सं., गद्य, मूपू., (पूर्वं भव्यमुहूर्त), १०११३४-२(+) गोधूलि कालमान श्लोक सं., श्लो. १, पद्य, इतर (अनागते सूर्यसुते च वारे) १०५०५१-२ (०) 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) गोधूलि कालमान श्लोक- अर्थ, मा.गु., पद्य, इतर, (शनिवारे सूर्य वीण अथम्यै ), १०५०५१-२ (+) गोम्मटसार, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा. का. २ अधिकार ३१ गा. १७०५, पद्य, दि., (सिद्धं सुद्धं पणमिय), १०२९४९ (७), १०४९४२(+) १०४२२५(३) १०६३७५ () (२) गोम्मटसार-कर्णाटवृत्ति, केशववर्णी, क.,ता.सं., कां. २, गद्य, दि., (यः सर्वकालविषयार्थ), प्रतहीन. (३) गोम्मटसार कर्णाटवृत्ति पर आधारित जीवतत्त्वत्प्रदीपिका वृत्ति, सं. कां. २, गद्य, दि., ( नेमिचंद्रं जिन), २०२९४९ (३), १०४२२५ ($) , (२) गोम्मटसार- टिप्पण, सं., गद्य, दि., (ॐ सिद्धं सम्यगुपदेशपूर्वक) १०४९४२ (०) (२) गोम्मटसार-उदयत्रिभंगी, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., त्रिभं. ३, गा. ७३, पद्य, दि., (पंचणवदोणिअट्ठावीसं), १०१६६०-३ (+) (२) गोम्मटसार-कर्मकांड, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा. गा. १६०, पद्य, दि. (पणमिव सिरिसा णेमि ), १०३६६३ (+) (३) गोम्मटसार-कर्मकांड-टीका, सं., गद्य, दि., (महावीरं प्रणम्यादौ), १०३६६३ (+) (२) गोम्मटसार-बंधत्रिभंगी, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., त्रिभं. ३, गा. ४१, पद्य, दि., ( णमिऊण णेमिचंदं असहाय), १०१६६०.२(५) ४९३ (२) गोम्मटसार-सत्तात्रिभंगी, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., त्रिभं. ३, गा. ३५, पद्य, दि., (पंचणवदोणिअट्ठावीसं०), १०१६६०.४(+) गौतम कुलक, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (लुद्धा नरा अत्थपरा), १०१०८६-२ (०) १०१९५७-२२०), १०२०७८(०३), १०१३१२-१, १०१७२२-२(#) (२) गौतम कुलक- टीका+कथा, मु. ज्ञानतिलक, सं., कथा. ६९, वि. १६६०, गद्य, मूपु. ( नत्वा श्रीदेवगुरुन), १०२०७८(+$) (२) गौतम कुलक-टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू. (लोभीया मनुष्य अर्थनइ), १०१०८६-२(क) गौतमगणधर स्तुति, आ. विजयराजसूरि, सं. नो. १, पद्य, मृपू., (सार्व्वस्तुत श्रीवसुभूति), १०९३१४(*) . (२) गौतमपृच्छा - टीका, सं., गद्य, मूपू., (--), १०१६०७(#$) (२) गौतमपृच्छा वालावबोध, आ. जिनसूरि, मा.गु., गद्य, मृपू., (नत्वा कहता नमीने), १०१०३९(+०३) " (२) गौतमगणधर स्तुति व्याख्या, आ. विजयानंदसूरि, सं., गद्य, मूपू., (हे वसुभूतिपुत्र), १०१३१४(+) गौतमपृच्छा, प्रा., प्रश्न. ४८, गा. ६४, पद्य, मूपू., (नमिऊण तित्थनाहं), १०१०३९ (+#$), १०१२५८ (+#$), १०१९५१ (+$), १०२८६९(+६), १०४०४१-७(+), १०५३१३(००४), १०५३२० (+), १०५४७७(+), १०५६२२(+), १०१६०७ (०३), १०१७८३(०), १०२०७६ (०३), १०२१७६ (०३), १०५२७५(४) , (२) गौतमपृच्छा टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं. ग्रं. १६८२, वि. १७३८, गद्य, मूपू., (वीर जिनं प्रणम्यादी), १०१२५८(+#$), १०९७८२.१(३) For Private and Personal Use Only (२) गौतमपृच्छा-बालावबोध, आ. मुनिसुंदरसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (महावीरजी गोतमपृच्छा), १०५६२२ (+), १०१७८३(#$) (२) गौतमपृच्छा-बालावबोध, मु. वृद्धिचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वा वीरजिनं बालाव), १०२१७६(#$) (२) गौतमपृच्छा-बालावबोध*, मा.गु., वि. १५६९, गद्य, मूपू., (तीर्थनाथ श्रीमहावीर), १०२८६९ ( +$), १०२०७६(#$) (२) गौतमपृच्छा-बालावबोध + कथा*, मा.गु., गद्य, मूपू., ( एक गामि धनसार इसिइ), १०५३१३ (+#$), १०५२७५ ($) (२) गौतमपृच्छा-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थनाथ श्रीमहावीर), १०१०३९(+#$), १०१९५१ (+), १०५३२० (+), १०५४७७(+#$), १०५६२३(+) (२) गौतमपृच्छा-कथा, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, मूपू., (एकस्मिन् ग्रामे एको), १०१२५८(+#$) (२) गौतमपृच्छा-कथा, सं., कथा. ४८, गद्य, मूपु., (--), १०१६०७/१६) Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) गौतमपृच्छा -कथा संग्रह , मा.गु., कथा. ३५, गद्य, मूपू., (वसंतपुर नगरने विषे), १०१०३९(+#$), १०१९५१(+$), १०५३२०(+), १०५४७७(+#$), १०१७८३(#$) गौतमस्वामी स्तुति, मा.गु.,सं., गा. ५, पद्य, मप., (अंगठे अमृत वसे), १०५०७७-६(+) (२) गौतमस्वामी स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीगोतमस्वामीजी रे), १०५०७७-६(+) गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, वि. १४वी, पद्य, मपू., (ॐ नमस्त्रिजगन्नेतु), १०१४९४-७(#) गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. २१, पद्य, म्पू., (श्रीमंतं मगधेषु), १०३२३०-१(+$) गौतमस्वामी स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, पू., (श्रीइंद्रभूतिं वसुभूति), १०२९८०-७(+), १०२०९७, १०२१६६(#) ग्रहराश्यांशक विचार, सं., गद्य, मूप., इतर, (अजमकरतुलाकुलिराद्या), १०५६८५-२ (२) ग्रहराश्यांशक विचार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., इतर, (अंशकपति यामित्रपति पश्यति), १०५६८५-२ ग्रहशांति स्तोत्र-लघु, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (जगद्गुरुं नमस्कृत्य), १०५४५०-३(+) घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (ॐ घंटाकर्णो महावीरः), १०१४४४-१(+) (२) घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र-घंटाकर्णकल्प साधना विधि, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मप., (त्रिकाल स्मरण करीइ परिवार), १०१४४४-१(+) चंदनषष्ठिव्रत कथा, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., श्लो. ९७, पद्य, दि., (प्रभाचंद्र पूज्यपाद), प्रतहीन. (२) चंदनषष्ठिव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहि., गा. ७७, पद्य, मूपू., दि., (जिनपद वंदू दुति ससि जेम), १०४७१५-७, १०४७९२-७, १०४८५६-७, १०६०२३-५ चंदनाषष्ठिव्रत पूजा, मु. विजयकीर्ति भट्टारक, सं., गद्य, दि., (सुखदमिष्ट मनोरथ सिद्धिदं), १०६१२७ चंद्रधवल कथा-अतिथिसंविभागव्रते, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., ग्रं. ४००, गद्य, मप., (इह भरतक्षेत्रे), १०२८५०(+$) चंद्रधवलभूपधर्मदत्तश्रेष्ठि कथा, आ. माणिक्यसुंदरसूरि, सं., श्लो. ९८, पद्य, मूपू., (चतुर्थी कथा प्रोक्ता), १०१२७९(+$) (२) चंद्रधवलभूपधर्मदत्तश्रेष्ठि कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउथी कथा कही पोसह), १०१२७९(+$) चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र, प्रा., प्राभृ. २०, ग्रं. १८५४, पद्य, मूप., (नमो अरि० जयति नवणलिण), १०३१६४(+$), १०३७७३ (२) चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं. ९४००, गद्य, मूपू., (मुक्ताफलमिव करतलकलित), १०३७७३ चंद्रप्रभजिन चरित्र, आ. जिनेश्वरसूरि, प्रा., गा. ४०, पद्य, मपू., (चरियं भणिमो चंदप्पहस्स), १०५५५४-३(+$) (२) चंद्रप्रभजिन चरित्र-टीका, ग. साधुसोम, सं., गद्य, मूपू., (चंद्रप्रभप्रभुमहं प्रणिपत), १०५५५४-३(+$) चंद्रप्रभजिन चरित्र, आ. देवेंद्रसूरि, सं., परि. २, श्लो. ५१०३, वि. १२६४, पद्य, मपू., (दृष्टोपि हृष्टजन), १०२६०२(+$) चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (ॐ चंद्रप्रभः प्रभा), १०२३५५-१२(+#), १०१४९४-२(2) चंद्रार्कीपद्धति, दिनकर गणक, सं., श्लो. ३७, पद्य, वै., इतर, (सूर्यं चंद्रं सद्गुर), १०५३५४-१(+) चंद्रावेध्यक प्रकीर्णक, प्रा., गा. १७५, पद्य, मप., (जगमत्थयत्थयाणं विगसि), १०३२८०-२,१०३५१३-६ चंपकमाला कथा, प्रा., गा. ३४४, पद्य, श्वे., (सम्मत्ते थिरचित्ता), १०२८७७(+$) चउविहार उपवास पच्चक्खाण, प्रा., पद्य, म्पू., (सूरे उग्गए अभत्तठु), १०१६१८(2) चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (श्रीचक्रे चक्रभीमे), १०२३५५-११(+#$) चतःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ६३, वि. ११वी, पद्य, मप., (सावज्जजोग विरई), १०१५०६(+),१०१५५७-१(+), १०१९५७-१(+$), १०१९८३(+#), १०२०४९(+), १०२०७४(+#), १०२१४९(+$), १०२९५८(+$), १०१०७३, १०३२८०-४, १०३५१३-४, १०३५१३-१३, १०१३०६(#$), १०५४०५ (#$), १०१८०४(६), १०१९१८-२(5) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., ग्रं. ३४७, गद्य, मपू., (पहिलु छ आवश्यकना), १०५४०५(#$) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (सावद्य योग विरति ते), १०१५०६(+), १०२०७४(+#), १०२१४९(+$), १०२९५८(+$) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, मूप., (--), १०१९१८-२($) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (चउसरणपइनाना अर्थ०), १०१९८३(+#$), १०२०४९(+), १०१०७३ (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., ग्रं. ३४१, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य महावीरं), १०१३०६(#$) For Private and Personal Use Only Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ चतुर्विंशतिका स्तुति, उपा. क्षमाकल्याण, सं., स्तु. २४, श्लो. ७७, वि. १८०१-१८४१, पद्य, मूपू., (सद्भक्त्या नतमौलि), १०१३९४, १०५८५० चतुर्विंशतिजिन स्तुति, रत्नहंसगणिशिष्य, प्रा., श्लो. २७, पद्य, मप., (जयपयउपयावं मेहगंभीर), १०२१७१(६) चतुर्विंशतिजिन स्तुति, मु. सागरचंद्र, सं., श्लो. २५, पद्य, मप., (जगति जडिमभाजि), १०३२३०-३६(+) चतुर्विंशतिस्थानक, प्रा., गा. १९९, पद्य, मूपू., (सिद्धं शुद्धं पणमिय), १०४१७१(+) । (२) चतुर्विंशतिस्थानक-टीका, सं., गद्य, मूपू., (पुनः कथंभूतं प्ररूपण), १०४१७१(+) चमत्कारचिंतामणि, राजऋषिभट्ट, सं., श्लो. १११, पद्य, वै., इतर, (क्वणत्किंकिणी जालकोल), १०५४३५-१(+), १०६१६३ (२) चमत्कारचिंतामणि-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., वै., इतर, (श्रीवामेय जिनं नत्वा), १०६१६३ (२) चमत्कारचिंतामणि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., वै., इतर, (श्रीवामेय जिनं नत्वा), १०५४३५-१(+) चरणकरणसत्तरी विचार, प्रा.,सं., गद्य, मूपू, (वय५ समणधम्म१० संजम१७), १०१८९२-६(+) चर्चासागर, पंडित. चंपालाल पांडे, सं., प्रश्न. २५४, वि. १८१०, प+ग., दि., (जिन वासुपूज्य शिवदाय), १०५९७४(+) चाणक्यमंत्रि कथानक-कषायविषये, सं., श्लो. १०२, पद्य, मूपू., (जीवाः कषायविवशा न विचार), १०४६४०-१(+) चाणक्यवृद्धराजनीति, पंडित. कौटिल्य, सं., अ.१७, पद्य, वै., इतर, (प्रणम्य शिरसा विष्णु), प्रतहीन. (२) चाणक्यवृद्धराजनीति-संक्षेप, पंडित. कौटिल्य, सं., अ.८, पद्य, वै., इतर, (प्रणम्य शंकरं देवं), १०१४८९-१(2) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., ग्रं. ४०१, गद्य, मपू., (स्मारं स्मारं स्फुरज्ज्ञा), १०६२७५(#) चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, उपा. समयसुंदर गणि, सं., वि. १६६५, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमानंद), १०१७७३-२(+$) चारित्रपंचकस्वरूप विचार, सं., गद्य, मूपू., (सामाइअंच पढमं० समो राग), १०१८९२-३(+) चारित्रसागर गृहीता नियम, पं. चारित्रसागर, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीजिनेंद्राणां गुर), १०१५६३-६(#) चित्रसेनपद्मावती चरित्र, पा. राजवल्लभ, सं., श्लो. १२३२, वि. १५२४, पद्य, मपू., (नत्वा जिनपतिमाद्यं), १०१४३४(+#), १०१९०६(+$), १०२९४४(#$), १०२९४२(s), १०५४५१(६) (२) चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, स्पू., (अशरण शरण भव भय हरण), १०१९०६(+$), १०२९४४(#$), १०२९४२(६) चैत्यवंदन कुलक, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. २७, वि. १२वी, पद्य, मपू., (नमिऊणमणंतगुणं चउवयणं), १०४६४९(+$) (२) चैत्यवंदन कुलक-टीका, आ. जिनकुशलसूरि, सं., ग्रं. ४४००, वि. १३८६, गद्य, मूपू., (संस्तौमि श्रीमहावीरं), १०४६४९(+$) चैत्यवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ६३, पद्य, मूपू., (वंदित्तु वंदणिज्जे), १०२९११(+), १०५२९७ (२) चैत्यवंदनभाष्य-अवचूर्णि, सं., गद्य, मूपू., (वंदि० वंदीयान् परमेष्ठिनः), १०५२९७ (२) चैत्यवंदनभाष्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (वंदित्तं कहितां), १०२९११(+) (२) चैत्यवंदनभाष्य-हिस्सा १९ कायोत्सर्गदोष गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मप., (घोडग१ लयर खंभाइ३ माल), प्रतहीन. (३) चैत्यवंदनभाष्य-हिस्सा १९ कायोत्सर्गदोष गाथा का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (घोडो जिम चरण वांको), १०१११६-२(+) चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा.,रा.,सं., गद्य, मप., (प्रथम गोबररी गुंहली), १०१६८८-६(+#) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., उ. २१, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० रायगिहे), १०११३१(+#$), १०२०३७-१(+#$), १०२६०७-१(+5), १०२८४५(+), १०२९२०(+5), १०६४५४(+), १०२१९९(5) (२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे चोथा आराने विषे), १०२१९९($) (२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तणइं कालने विषे), १०२९२०(+$) (२) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मपू., (ते काल चउथो आरो तेवाइ समइ), १०२६०७-१(+$), १०२८४५(+), १०६४५४(+), १०२१९९(६) जंबूद्वीपादिविचार संग्रह, प्रा.,मा.गु., प+ग., मप., (पांच सै छबीस जोयण), १०२९९४(#$) जंबूद्वीपे रात्रिदिन मान, प्रा., गा. १, पद्य, मपू., (पुव्वविदेहसेसे मुहूत), १०२९८६-२(+) जंबूस्वामि चरित्र-भोगत्याग, प्रा., गद्य, मप., (संतेवि कोइ उब्भइ कोवि), १०४६४०-३(+$) For Private and Personal Use Only Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ जंबूस्वामी चरित्र, प्रा., प+ग., मपू., (नमिऊण वद्धमाणं जस्स), १०११४०(#$) (२) जंबूस्वामी चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करी श्रीवर्द), १०११४०(#$) जगद्गरुकाव्य, ग. पद्मसागर गणि, सं., श्लो. २३३, वि. १६३३, पद्य, मूप., (नत्वा श्रीबलिजं जिन), १०३३०३(+) जन्मपत्री पद्धति, मु. मानसागर, सं., गद्य, मूपू., इतर, (नीचोनितास्पष्टतरा), १०२३६७(+#$) जन्मपत्री पद्धति, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अधि. ३३, पद्य, मूपू., इतर, (प्रणम्य सारदां), १०१७४२(+$), १०२१२३(+$) जन्मप्रदीप, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. १४८, पद्य, मूपू., इतर, (सर्वं जगतितलेतमः), १०३४५४($) जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि ,प्रा., गा. ३०, वि. १२वी, पद्य, मप., (जय तियणवरकप्परुक्ख जय),१०११२४-१(+$), १०११९०-१(+), १०१७७८(+), १०१९०५(+), १०२१०८(+#), १०२७५३-२०(+), १०३२३०-२९(+), १०५२५१(+), १०२९५३, १०६४१८-४(#), १०२७०७-५(६) (२) जयतिहअण स्तोत्र-टीका, सं., ग्रं. २५०, गद्य, मप., (अत्रायं वृद्धसंप्रदायः), १०११९०-१(+), १०१९०५(+), १०२१०८(+#), १०२९५३ (२) जयतिहुअण स्तोत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मपू., (जयवंतो वर्ति), १०१७७८(+), १०५२५१(+) (२) जयतिहअण स्तोत्र-भंडार गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. २, पद्य, स्पू., (परमेसर सिरिपासनाह), १०२५७५-२(+) जातककर्म पद्धति, श्रीपति भट्ट, सं., अ.८, पद्य, वै., इतर, (नत्वा तां श्रुतदेवतां), १०५५२८(+) (२) जातककर्म पद्धति-सुबोधिनी वृत्ति, ग. सुमतिहर्ष, सं., वि. १६७३, गद्य, मपू., वै., इतर, (श्रीअश्वसेनिचलनांबुज), १०५५२८(+) (२) जातककर्म पद्धति-वृत्ति, ग. सुमतिहर्ष, सं., गद्य, मूपू., वै., इतर, (नोनूय मनसा विश्वजननी), १०२७२९ जातकपद्धति, मु. हर्षविजय, सं., श्लो. ९३, वि. १७६५, पद्य, मप., इतर, (प्रणम्य पार्श्वदेवेशं), १०५५२१-१(+), १०१७६६-१, १०१५५१-२(#S), १०२४९१(#$), १०५८७१(#) (२) जातकपद्धति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (प्रणाम करीने), १०१७६६-१, १०५८७१(#) जातकाभरण, ढुंढिराज दैवज्ञ, सं., अ.११, श्लो. १७०५, पद्य, वै., इतर, (श्रीदं सदाहं हृदयारव), प्रतहीन. (२) जातकाभरण-हिस्सा नवग्रहदानविधान, ढुंढिराज दैवज्ञ, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., इतर, (ये खेचरा गोचरतोष्टवगति), १०२१२९-२(4) जिनकल्पिक यथालंदिकस्वरूप विचार, सं., गद्य, मप., (जिनकल्पं प्रतिपित्सुः), १०१८९२-४(+) जिनचैत्यवंदना स्तुति, सं., श्लो. २८, पद्य, मप., (देवोनेकभवार्जितो जित), १०१९४५($) जिनदर्शन पूजा, सं., गद्य, दि., (उदकचंदनतंदलपुष्पकैः), १०५९८९-३(+-६) जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह), १०१६८८-१६(+#), १०१८१०-२(+) जिनपूजा विधि, ग. उदयसोम, सं., श्लो. २८, पद्य, मप., (ताणेच कोटि वर्षिण दश),१०२९६८(+) जिनपूजा विधि, प्रा.,सं., प+ग., दि., (जय जय जय णमोस्तु०), १०५८२६(+$) जिनबिंबप्रतिष्ठा कल्प, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु.,सं., गद्य, मप., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), १०५२७०(+) जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), १०६३५९(+) जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, सं., प+ग., मपू., (विषमैरंगुलैर्हस्तैः कार्य), १०४२१६(+) (२) जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (विषम क० एकी गणतीइं), १०४२१६(+$) जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह, मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (प्रणम्य स्वस्तिऋद्धिश्री), १०१५२४(#$) जिनबिंब प्रवेशस्थापना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (पहिलु मुहर्त भलु), १०११३४-१(+), १०४२२८ जिनभवन १० आशातना गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (तंबोल पाण भोयण वाहण), १०१५६३-३(2) जिन भवन १० आशातना नाम, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (तंबोल१ पाण२ भोयण३), १०१५६३-८(#) जिनभवोत्कीर्तन स्तवन, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., श्लो. २६, पद्य, मूपू., (यः प्राक् सार्थपति), १०२०३६-२(+) (२) जिनभवोत्कीर्तन स्तवन-अवचूरि, सं., गद्य, मपू., (आद्ये भवे धनसार्ध वाह), १०२०३६-२(+) जिनरक्षा स्तोत्र, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (सर्वातिशयसंपूर्णान्), १०११७४-२(#$) जिनरात्रिव्रत कथा, म. ललितकीर्ति, सं., पद्य, दि., (०वंधुरं पंचकल्यानसिध्यर्थ),१०६४३७-४(+#$) For Private and Personal Use Only Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ जिनशतक, मु. जंबू कवि, सं., परि. ४, श्लो. १००, वि. १००१-१०२५, पद्य, मूपू., (श्रीमद्भिः स्वैर्महो), १०३५०२(+#), १०४८४१(#) (२) जिनशतक अवचूरि, सं., परि. ४, गद्य, मूपू., (एष सूर्यो भुवनं विश), १०३५०२ (+), १०४८४१(१) जिनसंहिता, भट्टा. एकसंधि भट्टारक ऋषि, सं., पद्य, दि., (मंगलं भगवानर्हत्मंगल), १०४९२५ (+$) जिनसंहिता, आ. जिनसेन, सं., अधि. ६, पद्य, दि. (श्रीमंतं त्रिजगल्लोक), १०६०३१(०) "" जिनसहस्रनाम स्तोत्र, श्राव. आशाधर, सं., श्लो. १४३, वि. १२८७, पद्य वि. (प्रभो भवांगभोगेषु), १०५९८९-५८(क), " " १०६०१२ २९, १०६४०७ (#$) जिनसहस्रनाम स्तोत्र, आ. जिनसेन, सं., श्लो. १६६, पद्य, वि., ( प्रसिद्धाष्टसहखेद), १०६४३४(+), १०६०५८-८ जिनस्तुत्यादि संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., श्लो. १, पद्य, मूपू (श्रीअर्हतो भगवंत), १०२५०९.५(०) जिनार्चनमहिमा साक्षिपाठ संग्रह, पुहिं., प्रा., सं., पद्य, दि., (--), १०९८५७०३) " जीतकल्पसूत्र, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. १०५, वि. ६वी, पद्य, मूपू., ( कयपवयणप्पणामो), १०२१५४ (+), १०३७५७-६(+) (२) जीतकल्पसूत्र- टीका, आ. तिलकाचार्य, सं. ग्रं. १७०० वि. १२७४, गद्य, मूपू (वंदे वीरं तपोवीर), १०२१५४/९ १०३७५७-१(+) जीव अल्पबहुत्व ९८ पदविचार, सं., गद्य, श्वे., (सर्वस्तोका गर्भज), १०१२७८-२ (+) जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. गा. ५१, वि. ११वी, पद्य, मूपू (भुवणपईवं वीरं नमिऊण), २००९७४-१(+), , " १०१०५५-२(+#), १०१०६० २ (+), १०१०६७-२ (+#), १०१३०५ (+), १०१३१० (+), १०१३१३(+#), १०१३६७-१(+#), १०१४०२(०), १०१४१५ (०) १०१४५३(+०१, १०१५०३(०), १०१५५५/०) १०१६६२-२(+), १०१६६४-२ (+), १०२६७९-१(+), १०२७०६-२(+६), १०२८८५ (+), १०२९००(०), १०२९०२-१(०), १०२९९३(३) १०३३९४-३१(+), १०४४५०(०), १०४५०१-१(+#$), १०५१५८ (+), १०५३७१-५ (+), १०५५९२ (+), १०५८०६-१ (+), १०६११० (+), १०१०३५, १०१२२१, १०१४७६-१, १०२१८७, १०२७०७-१३, १०२७११-१, १०१६४४(३) १०२४८७६) १०२३३५) (२) जीवविचार प्रकरण - अक्षरार्थदीपिका अवचूरि, सं., गद्य, मूपू (अहं किंचिदपि जीव), १०१४१५ (+) (२) जीवविचार प्रकरण-टीका, पा. रत्नाकर, सं., वि. १६१०, गद्य, मूपू., (सज्ञानभास्करं वीरं), १०१३०५(+) (२) जीवविचार प्रकरण-सुबोधिनी टीका, मु. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८५०, गद्य म्पू, (इह हि संसारसागरे), १०२६७९-१(+), १०२९०० (+), १०४४५० (+) (२) जीवविचार प्रकरण- बालावबोध, श्राव. दलपतराव, मा.गु., गद्य, म्पू., वि. (ते कुण वीर कहेतां), १०२९०२-१ (२) ) जीवविचार प्रकरण- खालावबोध, मा.गु. गद्य, मूपू., (भुवनमाहि मिथ्यात्व), १०४५०१-१ (१०६), १०५१५८(१) " ४९७ (२) जीवविचार प्रकरण- बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्वर्ग मृत्यु पाताल), १०३३९४-३१(+) (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, श्राव. दलपतराय, प्रा. मा.गु., गद्य, मूपू., वि. (स्वर्ग मृत्यु पाताल तेहनु), १०२९०२-१) ', (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मु. सुमति, मा.गु., गद्य, मूपु (भुवन कहितां त्रणि), १०१२२१ (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपु., (तीन भुवन रे विषे), १००९७४- १(०), १०१०५५-२ (००) १०१०६०-२ (०६), १०१०६७-२ (००), १०१३१३ (+), २०१४०२(+), १०१४५३(०४), २०१५५५ (+), १०२७०६-२ (०६), १०२८८५ (०), १०५५९२(+), १०५८०६-१ (+), १०६११० (+), १०२१८७, १०१६४४(#$) (२) जीवविचार प्रकरण-पद्यानुवाद, मु. आलमचंद, पुहिं., गा. ११४, वि. १८१५, पद्य, मूपू., (तीन भुवन मैं दीप समान), १०२९९३(+) जीवादि आयुष्यमान गाथा संग्रह, प्रा., गा. ४, पद्य, भूपू (वीसुत्तरसवमाऊ मणुआण हल्थि), २०१५६३-१०(क) जीवादि भेद षट्व्य स्वरूप गाथा, सं., पद्य, मूपू., (जीवो जीवश्चेति समास) १०३१४९-२(+०) जीवोत्पत्ति विचार गाथा, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू (अंडजाः पक्षिसर्पाद्य), प्रतहीन. (२) जीवोत्पत्ति विचार गाथा-अर्थ, मा. गु, गद्य, भूपू (पंखीजात सर्पजाति ए) १०५०२४-१३ जेठजिनंदव्रत कथा, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., पद्य, दि., (--), प्रतहीन. For Private and Personal Use Only Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९८ ___ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) जेठजिनंदव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहि., गा. ८५, वि. १७८२, पद्य, मूपू., दि., (आदिनाथ वंदूं जिनराय कर्म), १०४७१५-१, १०४८५६-१ जैन कथाकोश, सं., गद्य, मूपू., (यांति दृष्टं दुरितान), १०५६११(+#$) जैन पारिभाषिक संख्यावाचकशब्द, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (तत्वानि ९ व्रत ५/१२), १०६४१८-५७६#) जैन प्रश्नोत्तर संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (श्रीनवकार मंत्र में), १०२४४०-१३(#) जैनमेघदूत, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., स. ४, ग्रं. ४१८, वि. १५वी, पद्य, मूपू., इतर, (कश्चित्कांतामविषयसुखानी), १०२८२०(+#), १०३३०२(+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. २२५, ग्रं. ५५००, प+ग., पू., (तेणं कालेणं० चंपाए), १०१८७३(+), १०२०४८(+$), १०२१७५(+$), १०२६३२(+#$), १०२९८१(+#$), १०३५११(+#$), १०३७७६(+#), १०३७७९(+#), १०३७८२(+६), १०५२१८(+६), १०६४५१(+६), १०२१३९(#) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., अध्य. १९, ग्रं. ३८००, वि. ११२०, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीमन्महावीरं), १०१९०८(+#), १०३७७९(+#), १०५१८०(#$) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार श्रीमहावीरने), १०५२१८(+$), १०६४५१(+$) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-उपनय गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ७३, पद्य, मूपू., (महुरेहिं निउणेहिं वय), १०२९६५-४#) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-प्रश्नशतक, संबद्ध, मा.गु., प्रश्न. १००, गद्य, मपू., (ज्ञाताधर्मकथा साढि), १०५६४६-१ (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-अध्ययन १६ मूर्तिपूजामतस्थापन विचार द्रौपदी प्रसंग आधारित, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीज्ञातासूत्र का सोलमा), १०६३३०-३(+) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (पंचानंतकसुप्रपंचपरमानंद), १०२७५३-३(+), १०२७०७-१९, १०१०२८-३(#), १०६४१८-८(#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (श्रीनेमिः पंचरूपत्रिदशपति), १०१६७१-५(+-), १०५२९६-१७(+), १०५४२५-२(5) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूप., (समुद्रभूपालकुलप्रदीपः), १०२७८९-२(+), १०५२९६-४(+) ज्ञानपहिरावणी गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मप., (नमंत सामंतमही विनाह), १०६४१८-५५(#) ज्ञानार्णव, आ. शुभचंद्र, सं., स. ४२, श्लो. २०७७, पद्य, दि., (ज्ञानलक्ष्मीघनाश्लेषप्रभव), प्रतहीन. (२) ज्ञानार्णव-हिस्सा आत्मतत्त्व भेदप्रभेद प्रकरण, आ. शुभचंद्र, सं., श्लो. १०, पद्य, दि., (अयमात्मास्वयंसाक्षाद्गुण), १०२८९९(+) (३) ज्ञानार्णव-हिस्सा आत्मतत्त्व भेदप्रभेद प्रकरण की टीका, सं., गद्य, दि., (अमुमेवार्थसंप्रतिगद्यै), १०२८९९(+) (४) ज्ञानार्णव-हिस्सा आत्मतत्त्व भेदप्रभेद प्रकरण की टीका का बालावबोध, पुहिं., गद्य, दि., (आत्मस्वरूप वर्णन किया पछै), १०२८९९(+) ज्योतिष, पुहिं.,मा.गु.,सं., प+ग., जै., वै., इतर, (आदित्यं १सोम मंगल), १०५०८२-२(+), १०५५२१-२(+) ज्योतिष विचार, मा.गु.,सं., प+ग., मपू., इतर, (बुधचंद्रोत्तरे मार्ग), १०२०३५-१४(+) ज्योतिष श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ११, पद्य, मूपू., इतर, (अच्चिबुहविहप्पिसणिवारा), १०२७२५-२(+#) ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., श्लो. २९४, पद्य, मपू., इतर, (श्रीसर्वज्ञजिनं नत्वा नार), १०१०७५(+$), १०१२५६(+), १०२५३७(+#$), १०२५९८(+), १०२७२५-१(+#$), १०२७६९(+$), १०३८४४-१(+#), १०४५१९(+), १०५३८९(+), १०५४३५-२(+), १०५९१३(+), १०५९६९, १०२५५६(#s), १०१०६९(s), १०२५३८($), १०२८७२(७), १०६२१२(5) (२) ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., इतर, (सरस्वतीं नमस्कृत्य), १०५९१३(+) (२) ज्योतिषसार-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., इतर, (प्रणम्य परमानंददायकं), १०२५३७(+#$) (२) ज्योतिषसार-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मप., इतर, (श्रीअरिहंतभगवानने), १०१०७५(+$), १०१२५६(+), १०२५३७(+#$), १०५४३५-२(+), १०१०६९(६), १०६२१२(६) (२) ज्योतिषसार-लघुनारचंद्र ज्योतिष, संक्षेप, मा.गु.,सं., प+ग., मूप., इतर, (अर्हतं जिनं नत्वा), १०२१००(+#), १०२२०१(+#) ज्योतिषसार, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. ३३४, पद्य, मूपू., इतर, (लग्नं लग्नपतिर्बलान), १०५४०३(+) (२) ज्योतिषसार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., इतर, (लग्नरौ स्वामी लग्न), १०५४०३(+$) For Private and Personal Use Only Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ ।। ज्योतिषसारोद्धार, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अ. ३, श्लो. ३३७, ग्रं. ५००, पद्य, मूपू., इतर, (तं नमामि जिनाधीशं), १०२१२९-१(#) ज्योतिष्करंडक प्रकीर्णक, आ. पादलिप्तसूरि, प्रा., प्राभृ. २१, गा. ४०५, पद्य, मूपू., (कातूण नमोक्कारं जिणव), १०१८१७ (२) ज्योतिष्करंडक प्रकीर्णक-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं. ५०००, गद्य, मूपू., (स्पष्टं चराचरं विश्वं), १०१८१७ ज्वालामालिनीदेवी स्तोत्र-सबीज, सं., गद्य, मप., (ॐ नमो भगवते श्रीचंद), १०५९८९-५६(+-$) तंदुलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग., मूपू., (निज्जरिय जरामरणं), १०५२४५-२(+), १०३२८०-१, १०३५१३-५ तत्त्वसार, आ. देवसेन, प्रा., पर्व. ६, गा. ७४, पद्य, दि., (झाणग्गिदड्ढकम्मे), प्रतहीन. (२) तत्त्वसार-पद्यानुवाद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., चौपा. ७४, वि. १८वी, पद्य, दि., (आदिसुखी अंतःसुखी), १०६०५७-५(+) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., अ. १०, गद्य, मप., दि., (सम्यग्दर्शनशुद्धं), १०२०५९(+$), १०४५६३(+), १०४७०२(+), १०४९३९(+), १०५९२१(+६), १०६४४९(+), १०४२०४, १०४२५५-१, १०६०१२-१९, १०६०५८-१५, १०४४४४, १०३४२४() (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-तत्त्वार्थवार्तिक वृत्ति, आ. अकलंकदेव, सं., अ. १०, ई.७वी, गद्य, मप., दि., (प्रणम्य सर्वविज्ञानम), १०३४२४(६) (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-सर्वार्थसिद्धिवृत्ति (दि.), आ. देवनंदी, सं., अ.१०, वि. ५वी, गद्य, मूपू., दि., (मोक्षमार्गस्य नेतारं), प्रतहीन. वार्थाधिगमसत्र-सर्वार्थसिद्धिवत्ति (दि.) की भाषाटीका, श्राव. देवीदास खंडेलवाल, पहि., गद्य, मप., दि., (मोक्षमार्गस्य नेतारं), १०६४४९(+) (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-बालावबोध, पुहिं., गद्य, मूपू., (मोक्ष मार्ग के प्राप), १०४७०२(+) (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-बालावबोध, मा.ग., गद्य, मप., दि., (--), १०४४४४ (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-टबार्थ, पुहि., गद्य, मूपू., दि., (तीन काल भूत १ भव्यष), १०२०५९(+$), १०४९३९(+) (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-संक्षेप, मु. प्रभाचंद्रदेव, सं., अ. १०, सू. १०७, पद्य, मपू., दि., (सम्यग्दर्शनावगमवृत्त), १०४५६३(+$) तपउच्चारण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मप., (प्रथम ठवणीमांडि ईरीय), १०४९७३ तपपारणा विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (प्रथम इरीयावहि), १०५०४०(+), १०५४३१(+) तपलक्षणव्रत कथा, मु. खुस्याल, सं., पद्य, दि., (--), प्रतहीन. (२) तपलक्षणव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., गा. ३७, पद्य, मूपू., दि., (सुख अनंत जुत कौ नमो), १०४७१५-२०, १०४७९२-१९, १०४८२१-५, १०४८५६-२० तपविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (नांदल मांडीजे), १०५४७१(+) तपागच्छीय पट्टावली, ग. शुभविजय, सं., गद्य, मप., (श्रीवर्द्धमानजिनशासन), १०२१८२($) तपोरत्नमालिका, आ. सुमतिसिंहसूरि-शिष्य, प्रा., गा. ७०, पद्य, मूपू., (पढमंतिमे जिणिंदे), १०३२८६-५(+) तरंगशत, मु. श्रीचंद्र, सं., श्लो. १२०, पद्य, मूपू., (--), १०२९८६-१(+$) ताजिकसार, हरिभट्ट, सं., द्वा. ४४, श्लो. ४००, श. ११०५, पद्य, वै., इतर, (श्रीरामस्य पदारविंद), १०११५९(+$) (२) ताजिकसार-कारिका टीका, ग. सुमतिहर्ष, सं., वि. १६७७, गद्य, मपू., वै., इतर, (श्रीसूर्यचंद्रारबुधे), १०११५९(+$) (३) ताजिकसार-कारिका टीका का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., वै., इतर, (श्रीरामचंद्र नापद कमलनो), १०२८८२ तिजयपहुत्त स्तोत्र, आ. मानदेवसूरि, प्रा., गा. १४, पद्य, भूपू., (तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ), १०११२४-५(+$), १०२३५५-२०(+#), १०२५२८-२(+) (२) तिजयपहुत्त स्तोत्र-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., (कृत्वा चतुर्णा), १०२५२८-२(+) तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (सद्भक्त्या देवलोके रविशशि), १०५८००-४(-) त्रिपुराभवानी स्तोत्र, आ. लघ्वाचार्य, सं., श्लो. २४, पद्य, वै., (ऐंद्रस्यैव शरासनस्य), १०१४७३-२(#) त्रिलोकसार, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., अधि. ६, गा. १०१८, पद्य, दि., (बलगोविंदसिहामणिकिरण), १०४२३७-२(+$) (२) त्रिलोकसार-पद्यानुवाद, श्राव. खडगसेन, पुहि., पद्य, दि., (ॐ नमः सिद्ध नमौ जिनराइ), १०४८६१, १०६२०३(#S) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पर्व. १०, ग्रं. ३५०००, वि. १२२०, पद्य, मूप., (सकलार्हत्प्रतिष्ठानम), १०२५५३(+#$), १०३१५१(+$), १०३७८५(+#), १०४०४०(+#$), १०३७८४($) For Private and Personal Use Only Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र का हिस्सा पर्व-८ नेमिजिन चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., स. १२, ग्रं. ४७८८, पद्य, मूपू., (नमो विश्वनाथाय जन्मत), १०२७८७(+), १०४४३८(+), १०४५३६(+) । (२) त्रिषष्टिशलाकापरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २६, वि. १२वी, पद्य, मप., (सकलार्हत्प्रतिष्ठानम), १०१८२६-१(+#), १०२५०९-१२(+#), १०२९८०-४(+), १०५१०५-२(+), १०६३५८-५(+), १०१०५४-३,१०१९२५, १०२७१०, १०६३६६-२ त्रैलोक्यप्रकाश, आ. हेमप्रभसूरि, सं., श्लो. १२५०, पद्य, मपू., इतर, (श्रीमत्पार्धाभिध), १०५२९९(+) दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., गा. ४४, वि. १५७९, पद्य, मूपू., (नमिउं चौवीस जिणे), १०१०५६(+), १०१०६०-३(+), १०१३५३(+#$), १०१६४१(+), १०१६६४-३(+), १०२०११-१(+), १०२७५७(+), १०२८४२(+), १०३६९७(+), १०४५०१-३(+#s), १०५१३५(+#), १०५१४०(+), १०५१४१(+), १०५२४६(+#$), १०५३७१-७(+), १०५५७०(+), १०५८०६-३(+), १०५८३६(+), १०१०५८-१(#S), १०१२०६ (#), १०१४७२(#S), १०२५१९(१), १०२८९४(१), १०५३७६(#), १०२७०७-१५(७), १०२७११-२(६), १०६११३($) (२) दंडक प्रकरण-टीका, ग. समयसुंदर, सं., वि. १६१६, गद्य, म्पू., (भो भव्या यूयं श्रृणु), १०१६४१(+), १०६११३($) (२) दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., ग्रं. २१६, वि. १५७९, गद्य, मूप., (श्रीवामेयं महिमामेयं), १०१५१५(+), १०३६९७(+), १०५१४०(+) (२) दंडक प्रकरण-बालावबोध , मा.गु., वि. १५७९, गद्य, मूपू., (चउविश तिर्थंकरने नमस), १०४५०१-३(+#$), १०१२०६(#), १०२५१९(2) (२) दंडक प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्करी चउवीस तीर्थं), १०२८४२(+), १०५८३६(+) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, पं. केशरसागर, मा.गु., गद्य, मपू., (नमस्कार करीने कुंण प्रते०), १०२८९४(#) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मु. यशसोम-शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऐंद्रराजं जिनं नत्वा), १०५८०६-३(+) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभादिक २४ जिननै), १०१०५६(+), १०१०६०-३(+$), १०२०११-१(+), १०२७५७(+), १०५१३५(+#), १०५१४१(+), १०५२४६(+#$), १०५५७०(+), १०१४७२(#$) दंडक स्तुति, सं., श्लो. २२, पद्य, मूप., (सचित्त रुचि महामणि स्वर्ण), १०६४१८-२९(#) दर्शन कथारत्न करंडक, मु. श्रीचंद पंडित, अप., पद्य, दि., (सो जयउ जम्मि जिणे पढम), १०३८४६(+$) दर्शन स्तोत्र, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (दर्शनं देव देवस्य दर्शन), १०६४१४-३(+) दशलक्षणधर्म पूजा, क. रइधू महाकवि, प्रा.,सं., गा. ८३, पद्य, दि., (उत्तम क्षांतिकाद्यंत), १०६११९ दशलाक्षणिक कथा, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., श्लो. ६७, पद्य, दि., (अहँतं भारती विद्य), प्रतहीन. (२) दशलाक्षणिक कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., गा. ५८, पद्य, पू., दि., (श्रीजिन आनंदरूप तास भारती), १०४७१५-१०, १०४७९२-१०, १०४८५६-१० दशविध पच्चक्खाण नाम, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (नवकारसी काची बि घडी १), १०१८६३-४(+) दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., अध्य. १० चूलिका २, वी. २वी, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुक्किट्ठ), १०१०५९(+#$), १०१०६१(+), १०१३८८(+), १०१४४५(+), १०१५०८(+5), १०२०६४-१(+६), १०२०७३+#), १०२०७५(+#s), १०२०८९(+), १०२०९८(+#S), १०२४८९(+), १०२५९६(+$), १०२६०६(+#S), १०२६५५(+5), १०२७०३(+), १०२७३८-१(+$), १०२७५६(+), १०२८२२(+5), १०२९४०(+#$), १०२९६०(+), १०५१३४(+#$), १०५२४७(+#$), १०५२७४(+), १०५३१६(+#S), १०५३२४(+$), १०५३३५(+#), १०५४१४(+#), १०५५४९-१(+$), १०५८५१(+), १०१७८४, १०५८७०, १०२६२८(२), १०२७६०(#), १०४४३३(#$), १०५१५३(#), १०६०९६(#), १०२१०५(६), १०२९८७(६) (२) दशवैकालिकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ४४५, पद्य, मपू., (सिद्धिगइमुवगयाणं), १०२७८५(+#) (३) दशवैकालिकसूत्र-नियुक्ति की माहात्म्य गाथा, प्रा., गा. १५, पद्य, मूप., (सिज्जंभवं गणहरं जिणपडिमा), १०५५४९-२(+$) (४) दशवैकालिकसूत्र-नियुक्ति की माहात्म्य गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सीज्जं भवनामा गणधर गच्छ), १०५५४९-२(+$) (२) दशवैकालिकसूत्र-टीका, सं., गद्य, मूपू., (--), १०४४३३(#$) (२) दशवैकालिकसूत्र-अवचूरि, सं., ग्रं. २२४३, गद्य, मूपू., (इहार्थतः श्रीमहावीरप्रणीत), १०४०४३(#) For Private and Personal Use Only Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ (२) दशवेकालिकसूत्र - अवचूरि, सं., गद्य, म्पू, (धम्मो मंगलमुत्कृष्ट), १०५८५१०३) (२) दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्म सर्वोत्तम मांगल), १०२९८७($) (२) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मु. श्रीपाल, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीजिनधर्म उत्कृष्ट), १०१५०८(+$) (२) दशवैकालिकसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, म्पू., (घ० जीवन दुर्गति), १०१०५९/०३), १०१३८८(+), १०२०६४-१(+३), १०२०८९(+), १०२०९८ (+#$), १०२४८९ (+), १०२५९६ (+$), १०२८२२ (+), १०२९४० (+#$), १०२९६० (+), १०५३२४(+$), १०५३३५(५०), १०५५४९-१(+), १०५८५१(+), १०२७६० (०३), १०६०९६(४) ', (२) दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा. गा. ५, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुक्कि ). १००९९५-२ (+), १०५०७७-१(+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३) दशवेकालिकसूत्र-हिस्सा द्रुमपुष्पिका अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू (धर्म मंगलीक उत्कृष्ट), १०५०७७-१(+) (२) दशवैकालिकसूत्रमाहात्म्य गाथा, संबद्ध, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू (सिज्जंभवं गणहरं जिण), १०२०६४-२ (०६) (३) दशवैकालिकसूत्रगत गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिज्जभवनामा गणधर ), १०२०६४-२(+) (२) दशवेकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, वा. कमलहर्ष, मा.गु. अ. १०. वि. १७२३, पद्य, मूपू (मंगलिक महिमा निलो रे), · १०१३८०-१ दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. दशा १० ग्रं. १३८०, पद्य, भूपू (नमो अरिहंताणं हवइ) १०२०७० (+), "" १०२१५७/*०३), १०५५९४(१) (२) दशाश्रुतस्कंधसूत्र-चूर्णि#, प्रा.सं., ग्रं. २२२५, गद्य, मूपू., (मंगलादीणि सत्थाणि०), १०४६१६ दानकल्पद्रुम, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं. पल्ल. ९, पद्य, मूपु. ( स श्रेयस्त्रिजगद्) १०२९२१ (+), १०५२३४(+) " (२) दानकल्पद्रुम-टवार्थ, पन्या. रामविजय, मा.गु., वि. १८३३, गद्य, मूपू.. (श्रीऋषभस्वामी केहवा), १०५२३४(+४) दानशीलतपभावना कथा संग्रह, सं., पद्य, म्पू. (--), १०५८३१३) दामन्नक कथानक-प्रत्याख्यानफलगर्भित, सं., श्लो. ९८, पद्य, मूपू., (कैवर्त्त एक आदाय), १०४०४२-३(+) दिगंबर विविध शास्त्रपाठ संग्रह-द्वारिका दाह, नारदमुक्त्यादि विषये, पुहि. प्रा. सं., प+ग. दि., (सुर्यभूस्वामीकृत अष्टादस). " १०६१३०(+) दीपावलीकल्प, सं., गद्य, म्पू., (इहैव भरतक्षेत्रे), २०२१६३ (६) दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., श्लो. ४३७, ग्रं. १५००, वि. १४८३, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमांगल्य), १०५१०९(+#$), १०५२१०.० १०५६०८(०) १०२४३५ (5) (२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मु. दीपसागर, मा.गु., वि. १७६३, गद्य, मूपू., (अष्टमहाप्रतिहार्यनी), १०२४३५ ($) (२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू. (अर्हते बालबोधीनां), २०५६०८(+) (२) दीपावली पर्व कल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., ( श्रीमहावीर देव मंगलन), १०५२१० (+) , (२) दीपावलीपर्व कल्प-टवार्थ, मा.गु, गद्य, भूपू (श्रीवर्द्धमानस्वामी), १०५१०९ (+०६) י ५०१ दीपावलीपर्व कल्प, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २७८, पद्य, मूपू., (संतु श्रीवर्द्धमानस्य), १०२०४२ (#$) दीपावलीपर्व व्याख्यान, पा. उमेदचंद्र, सं., वि. १८९६, गद्य, मूपू., (श्रीनेमीशं जिनं), १०६१०६ (+) दीपावली पर्व स्तुति, गच्छा. जिनचंद्रसूरि सं., श्लो. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू (पापायां पुरि चारु), १०२७०७-३२. १०६४१८-२४०) दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ४४, पद्य, मूपू., (दुरिअरयसमीरं मोहपंको), १०११२४-१० (+), १०१२६३(+), १०१७५२-४ (+), १०१८३१(+), १०२७०७-१२ (२) दुरिअरबसमीर स्तोत्र- टीका, ग. साधुसोम, सं., वि. १५१९, गद्य, मूपू., (वर्द्धयतु वर्द्धमानः), १०१७५२-४(+) " (२) दुरिअरयसमीर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (दुरिय० दुरित कहा). १०१२६३(+), १०१८३१(+) दूसमदंडिका- बृहत् आ. मतिप्रभसूरि, प्रा. गा. ६१, पद्य, मूपू (अवसर्पिणि उत्सपिणि), १०२९९१-४(क) दृष्टांतकथा संग्रह, प्रा.,मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (रे दालिद्दवियक्खणवत्), १०१५३७(+#$), १०२८२४ (+#$), १०१८०९(#$), १०१४७९ ($) दृष्टांतशतक, सं., श्लो. १०२, पद्य, ., (नत्वा श्रीवृषभं सदावृषधर), १०१२६८ For Private and Personal Use Only Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ देवपालश्रेष्टि कथानक-पूजाविषये, सं., गद्य, मूपू., (जिनपूजनं जनानां), १०५७३३-२(+) देवपूजा विधि, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा.,सं., ग्रं. २६९, वि. १४वी, गद्य, मूप., (संपयं जहा संपदायं देवपूया), १०३२८६-३(+), १०४२३५-३(+#$) देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नमोत्थुणं कहीने भगवन), १०२२०८-२(+$), १०२६४६-३(+) देवशास्त्रगुरु पूजा, मु. राजकीर्ति, अप.,पुहि.,सं., प+ग., दि., (सार्वः सर्वज्ञनाथः), १०५९८९-६(+-) देवसिद्ध पूजा, प्रा.,सं., प+ग., दि., (पणविवि पंच परमगुरु गुरु), १०६२३४, १०४५५३($) देवसिराई प्रतिक्रमणसूत्र, प्रा., प+ग., म्पू., (नमो अरिहंताणं नमो सि), १०१३१९(+#$) देवांगनासंख्या गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (दोकोडाकोडिओ हवंति),१०१०१४-२(+#) देवेंद्रस्तव प्रकीर्णक, मु. ऋषिपालित, प्रा., गा. ३११, पद्य, मूपू., (अमर नरवदिए वंदिऊण), १०१५०४(+), १०३५१३-७ देशीनाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, प्रा., वर्ग.८, गा. ६७७, वि. १२वी, पद्य, मप., इतर, (गमणय पमाण गहिरा सहिय), १०३१४२-२(+) द्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., अधि. ३, गा. ५८, पद्य, दि., (जीवमजीवं दव्वं जिणवर), १०४४५४-१(+), १०४९२२-३(+), १०६३९४(+#) (२) द्रव्य संग्रह-वृत्ति, आ. ब्रह्मदेव, सं., गद्य, दि., (प्रणम्य परमात्मानं सिद्ध), १०६३९४(+#) (२) द्रव्य संग्रह-बालावबोध, मु. पर्वतधर्मार्थी, पुहि., गद्य, दि., (एकजीव द्रव्य अनर्हवी), १०४४५४-१(+) (२) द्रव्य संग्रह-पद्यानुवाद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ७०, वि. १७३१, पद्य, दि., (तिहि जिन जीव अजीव के लखे), १०४९२२-३(+) (२) द्रव्य संग्रह-पद्यानुवाद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., सवै. ६४, पद्य, दि., (रिषभनाथ जगनाथ सुगुन मन), १०६०५७-६४(+) द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., द्वात. २१, श्लो. ६६३, पद्य, मूपू., (स्वयंभुवं भूतसहस्रने), प्रतहीन. (२) द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका-हिस्सा प्रथम श्लोक की टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, मूपू., (स्वयंभुवंभुत सहस्र), १०२६७६-१(#) द्वादशव्रतकथा संग्रह, मु. मेरुतुंगसूरि-शिष्य, सं., कथा. १२, गद्य, मपू., (श्रीमेरुतुंगसूरींद्रगुरू), १०२४८० दव्याश्रयमहाकाव्य, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., स. २०, पद्य, मप., (अहमित्यक्षरं ब्रह), १०१२५१(+#$), १०३५१२(+$), १०३४१७($) (२) व्याश्रयमहाकाव्य-टीका, ग. अभयतिलक, सं., स. २०, ग्रं. १७५४७, वि. १३१२, गद्य, मूपू., (श्रीभूर्भुवः स्वस्त्रितया), १०१२५१(+#$), १०३५१२(+$), १०३४१७(5) (२) दव्याश्रयमहाकाव्य-हिस्सा कुमारपालचरित, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, प्रा., स. ८, गा. ७४५, वि. १२वी, पद्य, मप., (अह पाइआहिं भासाहिं), १०३४१६ (३) व्याश्रयमहाकाव्य-हिस्सा कुमारपालचरित की टीका, ग. पूर्णकलश, सं., स. ८, ग्रं. ४२३०, वि. १३०७, गद्य, मूप., (अत्र च साधुसमाचार), १०३४१६ धनंजय नाममाला, जै.क. धनंजय, सं., पद्य, दि., इतर, (तन्नमामि परं ज्योति), १०२०६१-१(+#$) धन्यकुमार चरित्र, मु. नेमिदत्त ब्रह्म, सं., अधि. ४, श्लो. ३८४, पद्य, दि., (श्रीमंतं जिनं नत्वा), प्रतहीन. (२) धन्यकुमार चरित्र-भाषा, मु. महेंद्रकीर्ति, पुहिं., अ. ५, गा. ९५२, पद्य, दि., (श्रीमनंतंजिनंनत्वा केवल), १०५९९३ धम्मिल कथा-प्रत्याख्यानफलगर्भित, सं., श्लो.७२७, पद्य, मप., (प्रत्याख्यानफलं प्राप्त), १०४०४२-२(+) धरणोरगेंद्र महाविद्या स्तोत्र, सं., श्लो. ३९, प+ग., जै., बौ., (अथातो जांगुलीनाम), १०२३५५-१५(+#$) धर्मपरीक्षा, य. अमितगति, सं., परि. २०, पद्य, दि., (श्रीमान्नभस्वत्त्रय), प्रतहीन. (२) धर्मपरीक्षा-पद्यानुवाद, मनोहरदास सोनी खंडेलवाल, पुहिं., दोहा. ९२४, वि. १८वी, पद्य, दि., वै., (प्रणमौं अरिहंत), १०४५७८(+), १०६०८५, १०६२४६(s) (२) धर्मपरीक्षा-पद्यानुवाद, श्राव. पन्नालाल चौधरी पंडित, पुहिं., पद्य, दि., (पंच परम पद वंदि कै चतु), १०४८७८ धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांत श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (लज्जातो भयतो वितर्क), १०१३१२-२ (२) धर्मप्राप्ति १८ दृष्टांत श्लोक-कथा, सं., कथा. १९, पद्य, मूपू., (पितुर्मातुस्तथा), १०१४२३-१(+#) For Private and Personal Use Only Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ ५०३ धर्मरत्न प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., गा. १४५, वि. १२७१, पद्य, पू., (नमिऊण सयलगुणरयणकुलहर), १०१२९०(+s), १०२६०९(#$) (२) धर्मरत्न प्रकरण-सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. ९७००, गद्य, मूपू., (सज्ज्ञानलोचनविलोकित), १०२६०९(#$) (२) धर्मरत्न प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, आ. शांतिसूरि, सं., वि. १२७१, गद्य, मपू., (सिद्धं सर्वज्ञमानम्य), १०१२९०(+$) धर्मशिक्षा प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., श्लो. ४०, वि. १२वी, पद्य, मपू., (नत्वा भक्तिनतांगकोऽहमुभयं), १०१४९८(+) (२) धर्मशिक्षा प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, मप., (अहं धर्म्यं धर्मसंबंधिपदं), १०१४९८(+) धर्मसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. १३९६, पद्य, मप., (नमिऊण वीयराग), १०३३९६(+) (२) धर्मसंग्रहणी-छाया, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा वीतरागं सर्वज्ञ), १०३३९६(+$) धर्मोपदेशपीयूषवर्ष श्रावकाचार, मु. नेमिदत्त ब्रह्मचारी, सं., अधि.५, पद्य, दि., (श्रीसर्वज्ञं प्रणम्य), १०६०५५ धर्मोपदेशमाला, आ. जयसिंहसूरि, प्रा., गा. ९८, वि. ९१५, पद्य, मूपू., (सिज्झउ मज्झवि सुयदेव), १०४०४१-३(+) धर्मोपदेशामृत, मु. पद्मनंदी, सं., श्लो. १९९, पद्य, दि., (कायोत्सर्गायतांगो जयति), १०३२७६(+) धूर्ताख्यान, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., आख्या. ५, पद्य, मपू., (नमिऊण जिणवरिंदे तिअ), प्रतहीन. (२) धूर्ताख्यान-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सदुपनिषदनेकग्रंथसंदर), १०५०१५(६) ध्यानशतक, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., श्लो. १०६, पद्य, मूपू., (वीरं सुक्कज्झाणग्गिद), १०५९००-२(+$) नंदीश्वरदीप पूजा, पुहि.,सं., प+ग., मूपू., (यहूकर दीपसु मध्य भाग), १०६३९८(+) नंदीश्वरद्वीप जयमाला पूजा, अप., प+ग., दि., (आदी सुदर्शनमेरुविजयो अचल), १०६०५८-९ नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र, प्रा., गा. २५, पद्य, मपू., (वंदिय नंदियलोअं), १०५५५४-२(+) (२) नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र-टीका, ग. साधुसोम, सं., वि. १५९१, गद्य, मप., (वंदित्वा प्रणम्य), १०५५५४-२(+) नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., सूत्र. ५७, गा. ७००, प+ग., मूपू., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), १०१९८६(+), १०२७३१(+$), १०२७३२-१(+#$), १०२७३२-२(+#$), १०२७६३(+$), १०२९७७(+#), १०५०१६(+$), १०५२०६(+), १०५५४८(+#) (२) नंदीसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (नंदी ते आनंदनी देणहारी ते), १०१९८६(+), १०५०१६(+$), १०५५४८(+#) (२) नंदीसूत्र-कथा संग्रह*, मा.गु., कथा. ८९, गद्य, मूप., (नंदनं नंदि प्रमोदोहर्ष), १०५०१६(+$) (२) नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (जयइ जगजीवजोणी विआणओ), १०१७८६-१(+), १०३६६६-१(+#), १०४२३९-१(+), १०१९६०(#5), १०४६१७-२(#), १०१६९३($) नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद. ९, पद्य, मूपू., (णमो अरिहंताणं), १०११९०-२(+), १०२५००(+#), १०३३९४-१(+), १०५०७७-२(+), १०११२०-१, १०६१०८-१, १०५६७२(#) (२) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (नमौ अरिहंताणं क०), १०३३९४-१(+) (२) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, मपू., (बारसगुण अरिहंता), १०२५००(+#), १०११२०-१, १०६१०८-१, १०१४०४(#) (२) नमस्कार महामंत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (नमस्कार अरिहंतनइ काज), १०५०७७-२(+) (२) नमस्कार महामंत्र-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो क० नमस्कार हूवो), १०११९०-२(+), १०५६७२(#) (२) नमस्कार महामंत्र-कथा संग्रह, मा.गु., कथा. ६, गद्य, मूपू., (एह श्रीनउकार भावसहित), १०११२०-१ नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मपू., (नमिऊण पणय सुरगण), १०१५०५-३(+#), १०२३५५-८(+#$), १०५५५५-१(#$) नयचक्रसार, ग. देवचंद्र, सं., वि. १८वी, गद्य, स्पू., (प्रणम्य परमब्रह्म), १०२८७९(+#$) (२) नयचक्रसार-स्वोपज्ञ बालावबोध, ग. देवचंद्र, मा.ग., वि. १८वी, गद्य, मप., (प्रणम्य परमब्रह्म), १०२८७९(+#$) नरक विचार, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (पहिली नरग एक लाख), १०२६७४-१(+#) नवकारमंत्र चौपाई, मु. ब्रह्मचंद्र, माग., गा. ३३, पद्य, दि., (सरसति माता करू परिणाम पंच),१०४५०२-२ नवतत्त्व प्रकरण, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मपू., (जीवाजीवापुण्णं पावास), १०२५७४(+), १०४१६४(+#), १०५६०९(+) For Private and Personal Use Only Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. मेरुतुंगसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीरं विभु), १०२५७४(+$), १०४१६४(+#), १०५६०९(+) नवतत्त्व प्रकरण, आ. मणिरत्नसूरि, प्रा., गा.५५, पद्य, मूपू., (जीवाजीवापुन्नं पावा), १०५०५७(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नत्वा देवार्यदेवेश), १०५०५७(+$) नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा, प्रा., गा. १०७, पद्य, मूपू., (जीवाजीवापुन्नं पावा), १०१२८३-१(+), १०१३६७-२(+#), १०१४८४(+), १०६११४(+$), १०१४७६-२,१०६३२९() (२) नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा-बालावबोध, श्राव. दलपतराय, मा.गु., गद्य, मपू., दि., (स्वर्ग मृत्यु पाताल तेहनु), १०२९०२-२(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे नवतत्त्वना नाम), १०५२०५ (२) नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व जे प्राणनइ), १०१४८४(+), १०६११४(+$) (२) नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिनं नत्वा), १०१२८३-१(+$), १०६३२९($) (२) नवतत्त्व प्रकरण १०७ गाथा-हिस्सा ६ द्रव्यपरिमाणविचार गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, पू., (परिणामि जीव मुत्ता), १०५६४६-२ नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा, प्रा., गा. ६०, पद्य, मपू., (जीवाजीवा पुण्णं पावा), १००९७४-२(+S), १०१०००(+#$), १०१०५७-१(+#), १०१०६७-१(+#), १०१०७१-२(+), १०११२४-११(+$), १०११६८(+#$), १०१२२०(+), १०१२६९(+#), १०१३०७(+#), १०१३६०(+$), १०१३९३-१(+), १०१५०७(+#), १०१५६९(+$), १०१६६२-१(+), १०१६६४-१(+), १०१७०५(+#$), १०१७०८(+#$), १०१७१८(+#S), १०१७९९(+#$), १०१८०७(+), १०२०८८(+$), १०२७०६-१(+), १०२७४०(+#$), १०२८८६(+$), १०२९४७(+#), १०२९९०(+$), १०३३९४-३२(+), १०३८८७(+$), १०४५०१-२(+#$), १०४५०६(+#), १०४७२६(+$), १०५१७९(+), १०५३७१-६(+), १०५५५७(+#), १०५५९३(+), १०५६१०(+), १०५८०६-२(+), १०५८८५(+#), १०५९०४(+#), १०१०७७, १०१८२९, १०१८७५, १०२७०१, १०२७०७-१४, १०५४८०, १०१०५८-२(#), १०६४१७(#$), १०१३७१(६), १०१९४६(-5) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. ४७७, गद्य, मप., (श्रीवर्द्धमानजिनपति), १०१७९९(+#$), १०२९४७(+#) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टीका, सं., गद्य, मप., (जयति श्रीमहावीरः), १०१८०७(+). १०४५०६(+#) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, मप., (जयति श्रीमहावीर), १०१९२८(#$) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बालावबोध, मु. देवचंद, मा.गु., वि. १७६६, गद्य, मूपू., (ज्ञानं पंचविध), १०४७२६(+$), १०१८७५(६) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (उत्तराध्ययन सूत्र), १०५२५४(+$) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूप., (जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), १०१३६०(+5), १०१६८८-१३(+#), १०१७०८(+#$), १०२७४०(+#$), १०३८८७(+$), १०५१७९(+), १०५८८५(+#) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बालावबोध*, रा., गद्य, मूपू., (जीवाजीवा० जीवतत्त्व), १०१७१८(+#$), १०४५०१-२(+#$) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (नत्वा जिनगिरं कुर्वे), १०३३९४-३२(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., (साची वस्तूनुं जाणिव), १०५६१०(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ, आ. राजचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मपू., (साचउ वस्तुनउ स्वरुप ते), १०१०६७-१(+#) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव कहतां च्यार), १००९७४-२(+$), १०१०७१-२(+), १०११६८(+#$), १०१२२०(+), १०१२६९(+#), १०१३९३-१(+), १०१५६९(+$), १०१७०५(+#$), १०२०८८(+$), १०२७०६-१(+$), १०२८८६(+$), १०२९९०(+$), १०५५५७(+#), १०५५९३(+), १०५८०६-२(+),१०५९०४(+#), १०१८२९, १०२७०१, १०६४१७(#$) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ, रा., गद्य, स्पू., (जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), १०१०००(+#$) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (दश प्राण धारई ते), १०१०५७-१(+#) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-पद्यानुवाद, मु. भवानीदास, मा.गु., गा. २११, पद्य, मूपू., (श्रीश्रीश्रीजिन वीर के), १०५३९९ (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-भाषा, ग. लक्ष्मीवल्लभ पाठक, मा.गु., गा. १७९, पद्य, मपू., (श्रीश्रुतदेवी मनमैं), १०१६०५(+#$) For Private and Personal Use Only Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १०१३७१(क) (२) नवतत्त्व प्रकरण ६० गाथा-बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), १०१३९३-२(+$) नवपद खमासणा विधि, सं., गद्य, मपू., (स्वर्ण सिंघासन स्थित), १०२८११-१(+), १०२२६१, १०१९२१(६) नवपदतप आराधना विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., तप. ९, प+ग., मपू., (आसौ अजूयाली आठमि थकउ), १०२६६०-२(+$) नवपद तपविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मपू., (ॐ ह्रीं नमो अरिहंत), १०५०५५-१०(+), १०६३२१-१२ नवपद पूजा, मु. देवचंद्र, प्रा.,मा.गु., ढा. ९, गा. ९५, पद्य, मूपू., (परम मंत्र प्रणमी), १०५९५४(६) नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पूजा. ९, पद्य, मूपू., (उपन्नसन्नाणमहोमयाणं), १०६१८३(+5), १०६००३(#), १०१४४२() नवपद लघु पूजा, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु.,सं., ढा. ९, पद्य, मूपू., (उपन्नसन्नाणमहोमयाणं), १०५११२(+) नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., स्मर. ९, प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम्), १००९५३(+#), १०११४१(+६), १०११४२(+#$), १०१३००-१(+), १०१३०२-१(+#), १०१३६८-१(+#), १०१४७०(+#$), १०१४७८(+), १०१६१६(+#$), १०१६४९(+#$), १०१६७४(+#$), १०१८३०-१(+#), १०१९३६(+$), १०२३८६(+), १०२७७२-१(+#$), १०५१६०(+$), १०५२२८-१(+$), १०५३३९(+६), १०५३७०(+$), १०५३७२-१(+), १०५४७२(+#), १०६३६६-१,१०१३८५(#$), १०२४६६-१(#$), १०१९९१(६) (२) नवस्मरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनई माहरो नमस्कार), १०१९९१(६) नाडी फल श्लोक संग्रह, सं., पद्य, इतर?, (सबोछवंजगण विवाहे काले), १०६३३०-९(+$) (२) नाडी फल श्लोक संग्रह-बालावबोध, मा.ग., गद्य, इतर?, (शुभ कार्य करतां अलंकार), १०६३३०-९(+$) नाथ शब्द विवरण गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, मपू., (दाहोव समत ए हाइ छेयणं), १०५०२४-४ नाभाकराज चरित्र, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., श्लो. २९५, वि. १४६४, पद्य, मप., (सौभाग्यारोग्यभाग्योत), १०४२२३(+) नित्य पूजा पीठिका, सं., श्लो. ११, प+ग., दि., (ॐ जय जय जय नमोस्तु), १०४४१६(+), १०५९८९-४(+-), १०६२२४(+) (२) नित्य पूजा पीठिका-बालावबोध, पुहिं., गद्य, दि., (हे जिनेंद्र भगवान आप), १०४४१६(+) (२) नित्य पूजा पीठिका-पद्यानुवाद, मु. विवेकसागर, पुहिं., पद्य, दि., (ज्ञानप्रभा से तमको भगाया), १०४४१६(+) नियमसार, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., अधि. १२, गा. १८७, पद्य, दि., (णमिऊण जिणं वीरं अणंत), १०४९२६($) (२) नियमसार-तात्पर्यवृत्ति टीका, आ. पद्मप्रभ मलधारिदेव, सं., अधि. १२, श्लो. ३११, प+ग., दि., (त्वयि सति परमात्मन्म), १०४९२६(s) (२) नियमसार-छाया, श्राव. मगनलाल जैन, सं., श्लो. १८७, पद्य, दि., (नत्वा जिनं वीरं अनंत), १०४९२६(5) निर्दखसप्तमीव्रत कथा, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., श्लो. ४४, पद्य, दि., (विद्यानंदं प्रभाचंद), प्रतहीन. (२) निर्दखसप्तमीव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., गा. ४२, पद्य, मूपू., दि., (चर्न जिनेसुर के नमू रहित), १०४७१५-१४, १०४७९२-१४, १०४८५६-१४ निर्वाणकांड, प्रा., गा. ४७, पद्य, दि., (अट्ठावयंमि उसहो चंपा), प्रतहीन. (२) निर्वाणकांड-पद्यानुवाद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. २२, वि. १७४१, पद्य, दि., (वीतराग वंदों सदा भाव), १०४९२२-५१(+), १०५९८९-५०-६), १०६०१२-२१ निर्वाण पूजा-पावापुरीतीर्थ, सं., गद्य, दि., (णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाण), १०६०१२-२० निशीथसूत्र, प्रा., उ. २०, ग्रं. ८१५, गद्य, मूपू., (जे भिखु हत्थकम्म), १०१०९८-१(+$), १०१२४९(+), १०३५१५(+), १०५३८०(+), १०५८२०(+$), १०४५९२(#$) (२) निशीथसूत्र-विशेषचूर्णि#, ग. जिनदास महत्तर, प्रा.,सं., ग्रं. २८०००, वि. ८वी, गद्य, मूपू., (नमिऊण अरहंताणं सिद्ध), १०३७६७(+) (३) निशीथसूत्र-विशेष चूर्णी का हिस्सा विंशोद्देशक, ग. जिनदास महत्तर, प्रा.,सं., अ. २० वां उद्देशक, वि. ८वी, प+ग., मप., (--), प्रतहीन. For Private and Personal Use Only Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५०६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (४) निशीथसूत्र- विशेष चूर्णी का हिस्सा विंशोदेशक की सुबोधा टीका, आ. श्रीचंद्रसूरि, सं., वि. ११७४, गद्य, म्पू, (प्रणम्य वीरं सुरबंदि), १०३७६७/*) (२) निशीथसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (नमस्कार हुवो सु०), १०१०९८-१(०४), १०५३८०+) (२) निशीथसूत्र- प्रायश्चित्तादि यंत्र, मा.गु., गद्य, मूपू ( भिन्नमास कहता लघुल मास), १०१०९८-२ (+) नीतिशतक, भर्तृहरि, सं., श्लो. १०९, पद्य, वै., इतर, (दिक्कालाद्यनवच्छिन्न), १०५९०७(+) (२) नीतिशतक टीका, पा. धनसार उपाध्याय, सं. वि. १५३५, गद्य, मूपू. वै., इतर ( युगादिदेवोप्ययुगादि), १०५९०७) ', नेमिजिन चरित्र *, सं., गद्य, मूपू., (मथुरायां हरिवंशे बहु), १०१२६०-४ (+#) नेमिजिन चरित्र, सं., गद्य म्पू. (--). १०११४६ (०४) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) नेमिजिन चरित्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (-), १०११४६(+$) नेमिजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ॐ नमो विश्वनाथाय), १०५४८९-७ (#) नेमिजिन पुराण, मु. नेमिदत्त ब्रह्मचारी, सं., अधि. १६, पद्य, दि., (श्रीमन्नेमिजिनं नत्त्वा), १०३५२० (+#), १०५९६४-१ (+$), १०६०२१ नेमिजिन पूजा, सं., पद्य, दि. (यदुवंससमुद्भूतं नेमिनाथ) १०६०१२-१७(३) " " नेमिजिन बोली-गिरनारतीर्थमंडन, अप., गा. ७, पद्य, मूपू., (ता धन धन सोरठ देस), १०१७७४-२(+) नेमिजिन स्तोत्र, आ. रत्नप्रभसूरि प्रा. शौ. सं., श्लो १७, पद्य, मूपू. (अमंद भंदोदयकंदसार), १०३२३०-३५ (+) " नेमिजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू (परमान्नं क्षुधा, १०६४१८-४९(१) नेमिनिर्वाण महाकाव्य, जै.क. वाग्भट्ट, सं., स. १५, ई. १२वी, पद्य, मूपू (श्रीनाभिसूनोः पदपद्म) १०४२२७ पंचकल्पसूत्र, प्रा., गद्य, मूपू., (--), प्रतहीन. (२) पंचकल्पसूत्र- बृहद्भाग्य, ग. संघदासगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. २५७४, ग्रं. ३१००, पद्य, मूपू., (वंदामि भद्दबाहु), १०१५३५ (+), १०३२८९-१(०२) (२) पंचकल्पसूत्र-चूर्णि#, प्रा., सं., ग्रं. ३३४५, गद्य, मूपू., (मंगलादीणि० अधुनास्मिन्नाम), १०३२८९-२(+#) पंचकल्याणक स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (नाभेयं संभवं तं अजिय), १०५२६९-२ (+) पंचजिन चरित्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., आख्या ५, गा. १३२, पद्य, मूपु. ( नमियजिणमुसभमभयंसदेसविलसंत), १०५५५४-१ (०३) (२) पंचजिन चरित्र-टीका, ग. साधुसोम, सं., वि. १५९१, गद्य, मूपू., (वर्धयतु वर्धमानः ० सिद्धांत), १०५५५४ - १(+$) पंचतंत्र, विष्णु शर्मा, सं., गद्य, वै., इतर (ब्रह्मा रुद्रः कुमार), १०५७४९(३) (२) पंचतंत्र-पंचाख्यान पद्यानुवाद, संबद्ध, मु. गुणमेरुसूरि - शिष्य, मा.गु., अधि. ५, चौपा. २०१५, ग्रं. २७००, वि. १६२६, पद्य, मूपू., वै., इतर, (श्रीअंबा श्रीसारदा), १०५७४९($) पंचतीर्थजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू (श्रीशत्रुंजयमुख्यतीर्थ), १०५२६९-३ (+), १०२७०७-३० पंचतीर्थजिन स्तोत्र से श्लो. ६, पद्य, भूपू (प्रणतमानवदानवनायकः), १०५८००-७१) पंचदंड कथा- विक्रमचरित्रे, आ. रामचंद्रसूरि सं., श्लो. २५५०, वि. १४९०, पद्य, म्पू, (प्रणम्य जगदानंद दायक), १०४४३७ पंचपरमेष्ठि जयमाला, अप., गा. ८, प+ग. दि., (-), १०५९८९-१५ (+) पंचपरमेष्ठि स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अर्हतो भगवंत इंद्र), १०६४१८-५४(#) पंचपरमेष्ठी स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., गा. ३५, पद्य, मूपू. (भत्तिभर अमरपणयं पणमिय), १०२०३६-१ (+) पंचमासचतुर्दशी व्रतोद्यापन विधि, भट्टा. सुरेंद्रकीर्त्ति, सं., वि. १८४८, प+ग., दि., (सकलभुवनपूज्यं वर्द्धमानं), १०१४१३, १०५९४९ पंचमेरु पूजा, जै. क. रत्नचंद्र भट्टारक, सं., प+ग. दि., (येन संस्थाप्याम्यत्राडा), १०६०५८-१४ " पंचमेरूसंबंधी जिनालयपूजा, मा.गु., सं., प+ग. दि., (पांचीमेर महान कनकके तिनपै), १०४७९३ , जै.क. भूधरदास, पु.ि मा. गु. सं., प+ग. दि. (संवौषडाय निवेश्य), १०६०१२-२४ " पंचमेरू पूजा, पंचवर्गपरिहार नाममाला, आ. जिनभद्रसूरि, सं., श्लो. १३४, पद्य, मूपू., इतर, (नत्वा पंचेषु पंचास्य शरभं), १०२०५०-१(+), १०३१४२-१(+), १०२६८८-१ पंचवस्तुक, आ. हरिभद्रसूरि प्रा. गा. १७१४, पद्य, भूपू (णमिऊण वद्धमाणं सम्म), १०२५११+०३), १०४२४३ (३) For Private and Personal Use Only Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ पंचसंग्रह, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., गा. ९९१, पद्य, मूपू., (नमिउण जिणं वीरं सम्म), १०६२२९(+), १०१३४३(#$) (२) पंचसंग्रह-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं. १८८५०, गद्य, मपू., (अशेषकर्मद्रुमदाहदावं), १०१३४३(#S) (२) पंचसंग्रह-टीका, सं., गद्य, पू., (शूरवीर विक्रांतौ), १०६२२९(+) पंचसंधिप्रक्रिया, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, वै., इतर, (प्रणम्य परमात्मानं),१०५०६९-१(+) (२) पंचाख्यान कथानक संग्रह, सं., श्लो. २६, पद्य, मूपू., वै., इतर, (यस्यबुद्धिर्बलं तस्य), १०५५४४-१(+) (२) पंचतंत्र-पंचाख्यान जीर्णोद्धार, संबद्ध, मु. पूर्णभद्र, सं., आख्या. ५, प+ग., मूपू., वै., इतर, (सकलार्थशास्त्रसारं जगति), पंचाख्यान वार्तिक, सं., श्लो. ४८, पद्य, श्वे., इतर?, (कुश्रितं कुप्रनष्टं), १०५२६०(+६) (२) पंचाख्यान वार्तिक-बालावबोध, मा.गु., ग्रं. १५००, गद्य, श्वे., इतर?, (दक्षिणदेश तिहां महिल), १०५२६०(+$) पंचाशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पंचा. १९, गा. ९४०, ग्रं. ११८७, पद्य, मपू., (नमिऊण वद्धमाणं सावग), १०३४८९(+), १०३३१४, १०४६५२(#$) (२) पंचाशक प्रकरण-शिष्यहिता वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., ग्रं. ७४८०, वि. ११२४, गद्य, मप., (सदृष्टीनां समस्तार्थ), १०१४०९-१+#), १०४६५२(25) पट्टावली, सं., गद्य, मूपू., (अथात्र श्रीपर्युषणा), १०२४५६(+#) पट्टावली*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (श्रीमहावीर), १०५४४५(+) पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु.,सं., गद्य, मप., (प्रणम्य त्रिविधं), १०११३२-२(+#$), १०२९६६(+#) पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, पू., (श्रीवर्द्धमानस्वामी), १०५४५२(+), १०६३४९(5) पडिलेहण कुलक, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (आसाढि पउणपहरो दोपयछत्थं), १०२९६५-३(#) पद्मनंदीपंचविंशतिका, मु. पद्मनंदी, प्रा.,सं., अ. २६, श्लो. ९३९, पद्य, दि., (कायोत्सर्गायतांगो जयति), १०१२७६(+$), १०४५१५(+#$) (२) पद्मनंदीपंचविंशतिका-टीका, सं., गद्य, दि., (स जिनपतिः जयति कथंभूतो), १०१२७६(+s), १०४५१५(+#S) पद्मपुराण, आ. रविषेणाचार्य, सं., पर्व. १२३, वि. ८४०, पद्य, दि., (सिद्धं संपूर्णभव्यार), प्रतहीन. (२) पद्मपुराण-भाषावचनिका, क. दौलतराम पंडित, पुहि., गद्य, दि., (महावीर वंदौ सुबुद्धि), १०४८७१(+), १०४६७५(#5) पद्मावतीदेवी जापमंत्र संग्रह, सं., गद्य, मूप., (ॐ ह्रीं क्लीं ब्लौं), १०२९६२-१(+#) पद्मावतीदेवी स्तव, सं., श्लो. २७, पद्य, मूपू., (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), १०१४४४-४(+), १०२३५५-१०(+#$), १०५२४२(+), १०५२९३-१(+), १०५९८९-५९(+-), १०६०१२-३१, १०५३५०-२(#) । (२) पद्मावतीदेवी स्तव-मंत्राम्नाय कल्प, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ॐ अमृते अमृतोद्भवे अमृत), १०१४४४-४(+) पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ११, पद्य, मपू., (श्रीपार्श्वनाथजिन), १०६०१२-३० । पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. १८, पद्य, मप., (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), १०१४७३-१(#$) पद्मावतीदेवी स्तोत्र-१०८नामगर्भित, सं., श्लो. २९, पद्य, जै.?, (ॐ श्रीमाला श्रीमहारागी), १०५९८९-६०(+-) पद्मावतीदेवी स्तोत्र-पूजनविधि सहित, आ. पृथ्वीभूषणसूरि, मा.गु.,सं., श्लो. ३९, पद्य, श्वे., (अस्य श्रीमंत्रराजस्य), १०५५१८-१(+$) परदेशीराजा छठ आराधना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीसमकित पारगतायनमः), १०२८१४-५ परमात्म प्रकाश, मु. योगींद्रदेव, अप., अधि. २, गा. ३४५, वि. ६वी, पद्य, दि., (जे जाया झाणग्गियए), १०२०६५(+#$) (२) परमात्मप्रकाश-टीका, आ. ब्रह्मदेवसूरि, सं., अ. २, ग्रं. ४०००, वि. १६वी, गद्य, दि., (चिदानंदैकरूपाय जिनाय), १०२०६५(+#$) परीक्षामुखसूत्र, आ. माणिक्यनंदि, सं., समु. ६, वि. ५६९, गद्य, दि., (प्रमाणादर्थसंसिद्धिस्तदा), १०४४४७(+#$) (२) परीक्षामुखसूत्र-प्रमेयकमलमार्तंड वृत्ति, आ. प्रभाचंद्रसूरि, सं., परि. ६, वि. १०वी-११वी, गद्य, दि., (सिद्धेर्धाम महारिमोह), १०४४४७(+#$) पर्यंताराधना-गाथा ७०, आ. सोमसूरि, प्रा., गा. ७०, ग्रं. २४५, पद्य, मपू., (नमिउण भणइ एवं भयवं), १०१०२७(+#), १०५१५४(+), १०५४५३(+), १०५५४५(+),१०१४६८-१,१०५९०१(#) For Private and Personal Use Only Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५०८ (२) पर्यंताराधना-गाथा ७० अवचूरि, सं., श्लो. ७०, गद्य म्पू, नत्त्वा तत्त्वार्थवेत्तारं), २०५५४५ () " (२) पर्वताराधना-गाथा ७० बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू., ( नमीनइ नमस्करीनई), १०१७७९-१(+) (२) पर्यंताराधना-गाथा ७०-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करिने), १०१०२७ (+#), १०५१५४ (+), १०५४५३(+$), १०१४६८-१ पर्युषणपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (तथा अस्मिन् प्रस्तावे ), १०२८०८(#$) पर्युषण पर्वनिर्णय विचार, प्रा. सं., गद्य, म्पू., ( ननु सवीसईराएमासेवह), १०२६७५ "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पर्युषणाचिंतामणि प्रकरण, पं. अमृतकुशल, सं., वि. १८५६, गद्य, मूपू., ( चिदानंदस्वरूपाय), १०४२७३ (S) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., श्लो. ६२४, वि. १७८९, पद्य, मूपू (स्मृत्वा पार्श्व), १०११९४०), १०२१६२(+३), १०२६११(+#$) (२) पर्युषणाष्ठाह्निका व्याख्यान- बालावबोध, मा.गु. गद्य, मूपू. (श्रीपार्श्वनाथ भगवंत), २०१६०४ (३) " " (२) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्मृ० श्रीपार्श्वनाथ), १०११९४(+), १०२१६२(+$) पल्यविधानव्रत कथा, आ. श्रुतसागरसूरि सं., पंच, दि. (-), प्रतहीन. " (२) पल्यविधानव्रत कथा पद्यानुवाद, मु. धनराज, पुहिं. गा. २६१, वि. १७८४, पद्य, म्पू, दि. (प्रथम नमो गणपति नमो सरसति), "" १०४७१५-१६ १०४८५६-१६, १०४८२१-१(३) पांडव चरित्र, आ. देवप्रभसूरि मलधारी, सं., स. १८, ग्रं. ८०००, पद्य, मूपू., ( श्रियं विश्वत्रयत्राण), १०३७६३(+#) पांडव पुराण, आ. शुभचंद्र, सं., अ. २५ पर्व, प्रं. ६०००, वि. १६०८, पद्य, दि., (सिद्धं सिद्धार्थसर्वस्व), १०४३३९(+), १०४६३८(+३) (२) पांडव पुराण-पद्य, बुलाकीदास, हिं., गा. ६६५५, वि. १७५४, पद्य, दि., (सेवत सत्तसुरराय स्वयं), १०४२१४ पांडव पुराण, आ. श्रीभूषणसूरि, सं., पर्व. २५, ग्रं. ६०७७, वि. १६५७, पद्य, दि., (प्रणम्य श्रीजिनं देवं), १०४५९८ (+$) ! पात्रविचार गाथा, प्रा. गा. १, पद्य, मूपू., (तुविवर दासय२ महीव३) १०५०२४-१ (२) पात्रविचार गाथा - बालावबोध, हिं., गद्य, म्पू. (द्रव्यपात्र भावपात्र), १०५०२४-१ पार्श्वचंद्रसूरि छंद, मु. मेघराज, मा.गु., सं., गा. १३, पद्य, मूपू., (शांति जिणंद प्रणाम करी), १०१७६०-१०(+) पार्श्वजिन १० गणधर आराधनविधि, मा.गु. सं., गद्य, भूपू.. (श्रीसुभग गणधराय नमः), १०२८१४-१ पार्श्वजिन चरित्र, ग. उदयवीर, सं., स. ८, ग्रं. ५५००, वि. १६५४, प+ग., मूपू., (प्रोद्यत्सूर्यसमं), १०६३१९(+$) पार्श्वजिन चरित्र, आ. भावदेवसूरि, सं. स.८, श्लो. ६०९३. वि. १३१२, पद्य, मूपू (नाभेयाय नमस्तस्मै), १०३७६५ (+), " १०५८६९०६) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथ नमः ), १०५४८९-१२(-#) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-चिंतामणि, सं., श्लो. ७ पद्य, मूपु. ( नमो देवनागेंद्रमंदार), १०५२४०-१(०) पार्श्वजिनत्रोटक स्तव-शंखेश्वर, मु. उदयऋद्धि, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (संख उरगामिहिं पाससाम), १०३२३०-३७(+) पार्श्वजिनद्वात्रिंशिका चिंतामणि, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू (जगद्गुरुं जगदेवं), १०३२३०-३४(०) पार्श्वजिनमंत्र विधान-कलिकुंड, सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं तं नमहपासना), १०५२९३-६(+) पार्श्वजिन षट्पदी-गूढार्थगर्भित, मु. सूरचंद्र कवि, सं., का. २, पद्य, मूपू., (राजा लाघव संयमोच्छबलभो), १०१३०९(#) (२) पार्श्वजिन षट्पदी- गूढार्थगर्भित स्वोपज्ञ टीका, मु. सूरचंद्र कवि, सं., गद्य, मूपू., (हे अर्हन् जिन नः अस्मान् ), १०१३०९(m) पार्श्वजिन स्तव, मु. आनंदविजय, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (सकलमंगलखेलनमंदिरं), १०५३९६-२(+) पार्श्वजिन स्तव, आ. धर्मघोषसूरि, सं., श्लो. ८, पद्य, म्पू., (नम्राखंडल मोलिमंडल), १०३२३०-२७(+) 2 पार्श्वजिन स्तव, आ. धर्मसूरि, सं., श्लो. १६, पद्य, मूपू. (कस्तूरीतिलकं भुवः), १०३२३०-६(+) पार्श्वजिन स्तव, मु. लक्ष्मीवल्लभ, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (सदानीलगात्रं सद्ज्ञा), १०६४१८-४१(#) पार्श्वजिन स्तव, सं., श्लो. ११, पद्य, मृपू., (विभुं जीरिकापल्लीवासे), १०३२३०-१६ (+) पार्श्वजिन स्तव-करहेटक, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (आनंदभंदकुमुदाकरपूर्ण), १०६४१८-४०(#) पार्श्वजिन स्तव कलिकुंडमंडन, आ. मुनिचंद्रसूरि, सं., श्लो. १०, पद्य, म्पू. ( नमामि श्रीपा), १०५२९३-७(+) पार्श्वजिन स्तव गोडीजी, मु. जिनभक्ति, सं., लो. ९, पद्य, भूपू (जय जय गोडीजी महाराज), १०१८२५-२ (००) " For Private and Personal Use Only Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ ५०९ पार्श्वजिन स्तव-जीरापल्ली , मु. देवसुंदर, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (जय सिरिपासजिणंदचंद), १०३२३०-२१(+) पार्श्वजिन स्तव-जेसलमेरमंडन चौदगुणस्थानकविचारगर्भित, मु. राजसमुद्र, प्रा.,मा.गु., ढा. ३, गा. १९, वि. १६६५, पद्य, मूपू., (नमिअ सिरिपासजिण सुजण), १०५११४-८, १०५११४-४० पार्श्वजिन स्तव-बीजमंत्रयुक्त, मु. कुलप्रभ कवि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूप., (नत्वोपासित चरणं कमठे), १०११७४-१(#), १०१४९४-३(#) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थमंडन, मु. जयसागर, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (योगात्मनां यं मधुरं), १०१४९७-१(+#) (२) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थमंडन-अवचूरि, मु. जयसागर, सं., गद्य, मूपू., (योगो ज्ञानदर्शनचारित), १०१४९७-१(+#) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित, ग. पूर्णकलश, प्रा.,सं., गा. ३७, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (जसु सासणदेवि वएसकया), १०१४४४-६(+), १०१६६१(+), १०५७७४(+) (२) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित-स्वोपज्ञ वृत्ति, ग. पूर्णकलश, सं., गद्य, मपू., (जं संथवणं विहिय तस्स), १०१४४४-६(+), १०१६६१(+) (२) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (जे अभयदेवसूरिनइ सासनदेवता), १०१६६१(+) (२) पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जस थवणंविहि अंतसय दीपेमि), १०५७७४(+$) पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनजनतारणगुण), १०६४१८-४२(#) पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (कौमारे कमठस्य दर्मतिमदं), १०६४१८-३०(#) पार्श्वजिन स्तुति, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, सं., श्लो. ५, पद्य, मपू., (जगन्मंडले मल्यमालाभिधाने), १०५२४०-३(+) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मप., (भोगी यदालोकनतोपि), १०३२३०-३०(+) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (मौलौ फणिफणाः सप्तनयश्री), १०३२३०-१७(+) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथं जगदेकनाथं), १०३२३०-२६(+) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (हर्षनतासुरनिर्जरलोकं), १०२७५३-८(+) पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (नै दें कि धप), १०५०५५-१३(+), १०६४१८-२२(#) पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (श्रीसर्वज्ञं ज्योतिरूपं), १०२७०७-२६, १०६४१८-११(#) पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (शमदमोत्तमवस्तुमहापणं), १०२७५३-६(+), १०२७०७-२५, १०६४१८-१०(#) पार्श्वजिन स्तुति-विविध तीर्थमंडण, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसेढीतटिनी तटेपुर), १०२७०७-२ पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (हर्षनतासुरनिर्जरलोकं), १०२७०७-२३, १०६४१८-१२(#), १०२७०७-३३($) पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. जयसागर, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (धर्ममहारथसारथिसारं), १०२१६५-१(+#), १०६४१८-३९(2) पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं धरणो), १०६४१८-४३(#) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मपू., (अभिनवमंगलमालाकरणं), १०६४१८-५०(#) पार्श्वजिन स्तोत्र, प्रा., गा. ३, पद्य, मपू., (अमरतरु कामधेनु चिंता), १०६४१८-४६(#) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (क्षितिमंडल मुकुटं धार्मिक), १०६१६२-२१ पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ४९, पद्य, मूपू., (पार्श्वनाथ नमस्तुभ्य), १०५३७१-४(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (किं कर्पूरमयं सुधारस), १०१२९५(+#), १०१५५१-१(), १०५३५०-३(#s), १०५८००-३(-) पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला महामंत्रमय, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., श्लो. १४, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (ॐ नमो देवदेवाय नित्य), १०१५०५-४(+#) पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्ततिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., गा. १०, वि. १४वी, पद्य, मप., (दोसावहारदक्खो नालिया), १०११२४-६(+), १०२५२८-३(+) (२) पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित-टीका, सं., गद्य, मपू., (पार्श्वजिनो जयति किं), १०२५२८-३(+) For Private and Personal Use Only Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मीनामांकित, मु. पद्मप्रभदेव, सं., श्लो. ९, पद्य, दि., (लक्ष्मीर्महस्तुल्य), १०६०१२-३२ पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरमंडन, सं., श्लो. ५, पद्य, मप., (ॐ नमः पार्श्वनाथाय), १०५३७२-२(+), १०१४९४-४(#) पार्श्वपद्मावती मंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं), १०५२९३-४(+) पार्श्वपद्मावती मंत्र-अट्टेमट्टे, सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवते श्रीपार्श्व), १०५२९३-५(+) पार्श्वपद्मावती स्तोत्र, सं., पद्य, मपू., (ॐ अस्य श्रीपद्मावति), १०६०३२-१ पार्श्वपरमेश्वर स्तोत्र, मु. मानविजय, सं., श्लो. १०, पद्य, पू., (चरण कमलं श्रीवाग्देव्याः ), १०२९८०-६(+) पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., श्लो. १९६, पद्य, मूपू., वै., इतर, (महादेवं नमस्कृत्य), १०१०७०(+#), १०१६८१(+#), १०१६८२(+), १०४३४९(+), १०५०१९-१(+#$), १०१६५३(६), १०२७२६-१($) (२) पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., इतर, (१११ उत्तम थानक लाभ), १०४९११(+), १०५४४७(+#), १०१२३१(#),१०१९७८-१(#) (३) पाशाकेवली-भाषा का दोष निवारण विधि, संबद्ध, मा.गु., पद्य, मपू., वै., इतर, (१११ सरीरे वातादि कष्टं), १०१९७८-२(#) (२) पाशाकेवली-भाषा, पुहिं., प्रक. ४, गद्य, श्वे., इतर, (अवजद ए च्यार अक्षर), १०५६७४-१ पिंडनियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ६७१, पद्य, मूपू., (पिंडे उग्गम उप्पाय), १०६४२७(+#), १०४६५०(#$) (२) पिंडनियुक्ति-वृत्ति, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं. ७०००, गद्य, मपू., (जयति जिनवर्द्धमानः), १०६४२७(+#), १०४६५०(#$) पिंडविशद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १०३, पद्य, मप., (देविंदविंदवंदिय पयार), १०२१०७(+$), १०१२५५(६), १०२००४($) (२) पिंडविशद्धि प्रकरण-बालावबोध, ग. संवेगदेव, मा.गु., वि. १५१३, गद्य, मप., (श्रीमद्वीरजिनेशं), १०२१०७(+$), १०२००४(६) (२) पिंडविशुद्धि प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (देव भुवनपति इंद्र), १०१२५५(5) पुंडरीकगणधरपूजा विधि, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (उस्सप्पिणीय पढम), १०१४०७-२(+#) पुंडरीकगिरिपूजा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पूर्वं सकल श्रीसंघ), १०१४०७-१(+#) पुण्य कुलक, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (संपुन्न इंदिअत्तं), १०१०८६-१(+) (२) पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पांच इंद्री पडवडां), १०१०८६-१(+) पुण्यास्रव कथाकोश, रामचंद्र मुमुक्ष, सं., अ. ६, ग्रं. ४५००, गद्य, दि., (पुष्पोपजीवितनुजे वरबोधहीन), १०४५५०(+), १०४५४९(#$) (२) पुण्यास्रव कथाकोश-भाषाटीका, क. दौलतराम पंडित, ब्र., वि. १७७०, प+ग., दि., (श्रीवीरजिनमानम्य), १०४५४९(#$) पुद्गलपरावर्तद्रव्यस्वरूप विचार, सं., गद्य, मूपू., (जीवोनंतकालमेकेंद्रिये), १०१८९२-२(+) पुद्गलपरावर्त स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (श्रीवीतराग भगवंस्तव), १०२६७९-२(+) (२) पुद्गलपरावर्त स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (हे श्रीवीतराग हे भगवन् मे), १०२६७९-२(+) पुद्गलपरावर्त स्वरूप, प्रा., गा. १३, पद्य, मपू., (उरालठिउच्चातेयकभासाणु), १०३५१३-११ परंदरव्रतविधान कथा, आ. श्रुतसागरसरि, सं., श्लो. ६३, पद्य, दि., (उमास्वामिनमहँत), प्रतहीन. (२) पुरंदरव्रतविधान कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहि., गा. ६३, पद्य, मूपू., दि., (कीरती के पति सिव सुख), १०४७१५-९, १०४७९२-९, १०४८५६-९ पुराणहुंडी, मा.गु.,सं., श्लो. २७८, पद्य, श्वे., वै., (श्रूयतां धर्मः), १०१०२९ पुरुषार्थसिद्ध्युपाय, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., श्लो. २२६, पद्य, दि., (तज्ज्यति परं ज्योतिः), १०४५१६(+#) (२) पुरुषार्थसिद्ध्युपाय-अन्वय, सं., गद्य, जै., (--), प्रतहीन. (३) पुरुषार्थसिद्ध्युपाय-अन्वय-पद्यानुवाद, पंडित. टोडरमल ; क. दौलतराम कासलीवाल, हिं., वि. १८२७, पद्य, दि., (परम पुरुष निज अर्थको साधि), १०४६८१(+) पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मप., (जइ णं भंते समणेणं०), १०२९४३-४(+#), १०४२३२-४(+), १०५११३-४(+#) (२) पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीवीतरागदेवने नमस), १०२९४३-४(+#), १०५११३-४(+#) पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., द्वा. २०, गा. ५०५, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (सिद्धं कम्ममविग्गह), १०१४२४(+$), १०२६७२(#$), १०२८७५(६) For Private and Personal Use Only Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ (२) पुष्पमाला प्रकरण-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, सं., ग्रं. १३८६८, वि. १२वी, गद्य, मूपू., (येन प्रबोधपरिनिर्मित), १०२६७२(१६) पुष्पांजलिव्रत कथा, आ. श्रुतसागरसूरि सं. लो. ७१, पद्य, दि., (कवींद्रमकलंक० विद्या), प्रतहीन. " (२) पुष्पांजलिव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., गा. ९८, पद्य, मूपू., दि., (चरणजिनेसुर के नमौ), १०४७१५-११, १०४७९२-११, १०४८५६-११, १०६०२३-२ पुष्पिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, म्पू., (जति णं भंते समणेणं०) १०२९४३-३(+४) १०४२३२-३०), १०५११३-३०) " (२) पुष्पिकासूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू. (जी हे पूज्य०), १०२९४३-३(+०), १०५११३-३(५०) ;, पूजापंचाशिका, सं., श्लो. ४८, पद्य, मूपू., (स्तुतिमानीयमानीय भारती), १०५३२२ (#) (२) पूजापंचाशिका टीका, सं., कथा. ४८, गद्य, मूपू., (स श्रेयः श्री० पूजापंचाशि), १०५३२२() ܕ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 पृथ्वीचंद्र चरित्र, उपा. जयसागर सं., प्र. ११, ग्रं. २६५४, वि. १५०३, पद्य, मूपू., (वीरचरणांभोजं श्रयामि), १०३५०६-१ (२) पृथ्वीचंद्र चरित्र - बीजक, मा.गु., गद्य, मूपू., ( प्रथम भवे शंख जीव साधु), १०३५०६-२ " पौषधविधि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा. ग्रं. १५०, पद्य, मूपू (जस्सुद्धडियमुल्लसि) १०३६९६-१ (+), १०१२६४-१ पौषधविधि प्रकरण- संक्षिप्त, उपा. जिनपाल, प्रा., गा. १५, पद्य, मूपू., (वत्थाहिय पडिलेहिय), १०३६९६-२(+) पौषधिक आलोयणा सामाचारी, आ. तिलकाचार्य, प्रा., गा. १०, वि. १३वी, पद्य, मूपू., ( पोसहिओ न कोईति), १०३७५७-४(+) (२) पौषधिक आलोयणा सामाचारी स्वोपज्ञटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., वि. १३वी, गद्य, मूपू. (आवश्यकी न करोति), १०३७५७-६९ प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्वामाचार्य, प्रा. पद. ३६, सू. २१७६ ग्रं. ७७८७, गद्य, म्पू, नमो अरिहंताणं० ववगय) १०५६२० (+३), १०६१३८ (+), १०१९१८-३, १०२७६१($) (२) प्रज्ञापनासूत्र टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं. पद ३६, ग्रं. १६०००, गद्य, म्पू, (जयति नमदमरमुकुटप्रति) १०४२२१(७) 1 "" זי (२) प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., ग्रं. २८०००, वि. १७८४, गद्य, मूपू., ( प्रणम्य पुण्यपदपद्म), १०६१३८(+) (२) प्रज्ञापनासूत्र- थोकडा संग्रह", संबद्ध, प्रा. मा. गु., प्रश्न. ८, गद्य, मूपू., (इदा अगीए जमी नीरती), १०५४७० (+) (२) प्रज्ञापनासूत्र-संबद्ध ३३ बोल सिद्ध अल्पबहुत्व, मा.गु., गद्य, मूपू., (सर्वथी थोडा चोथी नार), १०१०८२-२(+) (२) प्रज्ञापनासूत्र - सोपक्रम निरुपक्रम जीव विचार, संबद्ध, प्रा. सं., गद्य, मूपू., (आयुर्बधकसूत्रे जे जीवे), १०२६७४-५ (+) प्रतिलेखनादि कालमान गाथा, प्रा., गा. ६, पद्य, म्पू, (आसाढे मासे दुपया पोस) १०४९९७-१(+) प्रत्यंगिरा स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, जे. 2, (आरूढा सिंहमुद्यद्विम) १०१४९४-५ (क) प्रत्याख्यान भाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा. गा. ४८, पद्य, मूपू. (दस पच्चक्खाण चढविधि), प्रतहीन, (२) प्रत्याख्यान भाष्य- अवचूर्णि, आ. सोमसुंदरसूरि सं., गद्य, म्पू, (दस दश प्रत्याख्याना), १०४८५० (+) प्रत्याख्यान भाष्य, प्रा., गा. ६०, पद्य, मूपू., (भावि अईयं कोडि अहियं), १०१७४८(+#) (२) प्रत्याख्यान भाष्य-टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (पहिलउ अनागत पच्चक्खा), १०१७४८(+) प्रद्युम्न चरित्र, मु. सोमकीर्ति, सं., स. १६, ग्रं. ४८५०, वि. १५३१, पद्य, दि., (श्रीमंतं सन्मतिं), १०४९१३ ५११ (२) प्रद्युम्न चरित्र-भाषावचनिका, श्राव, ज्वालानाथ खंडेलवाल पंडित; श्राव. वखतावरसिंह पंडित, पुडिं. वि. १९१६, गद्य, दि.. (प्रणम्य भारती देवीं). १०४९१३ For Private and Personal Use Only प्रद्युम्नलीलाविलास, ग. शिवचंद्र, सं., गद्य, मूपू., (--), १०५१६२ (+#$) प्रबंधकोश, आ. राजशेखरसूरि सं. प्रबं. २४ ग्रं. ३८७८, वि. १४०५, गद्य, मूपू., (राज्याभिषेककनकासनस्थ), १०३२२८(३) प्रबोधचिंतामणि, आ. जयशेखरसूरि, सं., अधि. ७, श्लो. १९९१, वि. १९४६२, पद्य, मूपू., ( चिदानंदमयं वंदे निःसंदेह), १०२७८३ (+) प्रभंजन चरित्र, सं., स. ५, श्लो. ३५५, पद्य, जै. ?, (--), १०५९२० (+) प्रभातिमंगल स्तुति, प्रा. गा. १८, पद्य, मूपू., (गोयम सोहम जंबू पभवो), १०१३४२-३ प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, आ. वादिदेवसूरि, सं., परि. ८, वि. ११५२-१२२६, प+ग., मूपू., (रागद्वेषविजेतारं ज्ञातारं), १०३२७४ प्रमुख जैन ऐतिहासिक घटनाक्रम संवतवार, प्रा., मा.गु. सं., प+ग. म्पू., (श्रीमहावीरदेव थकी तीनसे) १०२९९१-५क प्रमेयरत्नकोष, आ. चंद्रप्रभसूरि. सं., अ. २१, गद्य, मूपू (नत्वा ज्ञानतमिस्रसंत), १०२७४९(भाई) " Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ प्रवचनविचारसार, उपा. नयकुंजर, प्रा.,सं., अधि.८, प+ग., मप., (शांतिः शांतये सोस्तु), १०३३६९(+$) प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., द्वा. २७६, गा. १५९९, ग्रं. २०००, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नमिऊण जुगाइजिणं), १०१८८४(+#s), १०३७७४(+$), १०५९०२(+#), १०६३२४(+#), १०२९९१-६(#) (२) प्रवचनसारोद्धार-तत्त्वज्ञानविकासिनी वत्ति, आ. सिद्धसेनसूरि, सं., ग्रं. १८०००, वि. १२४२, गद्य, मप., (सन्नद्धैरपि यत्तमोभिरखिलै), १०३७७४(+$) (२) प्रवचनसारोद्धार-विषमपदार्थावबोध टिप्पण, आ. उदयप्रभसूरि, सं., गद्य, मूपू., (प्रवचन सारोद्धारे), १०२०१४(+) (२) प्रवचनसारोद्धार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीनई ऋषभ), १०६३२४(+#$) प्रवचनसारोद्धार-व्रतपच्चक्खाण आयुष्यकाम फलमान विचारगाथा, प्रा., पद्य, मपू., (बत्तिसदिण सहसा वास सए होई), १०५२४८(+$) (२) प्रवचनसारोद्धार-व्रतपच्चक्खाण आयुष्यकाम फलमान विचारगाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (एकसो वरसना बत्रिस हजार), १०५२४८(+$) प्रव्रज्या कुलक, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (संसार विसमसायर भवजल), १०२७५३-१८(+), १०६४१८-२(2) प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. १०, गा. १२५०, ग्रं. १३००, प+ग., मूपू., (जंबू अपरिग्गहो संवुड), १००९६८(+#$), १०१४६०(+#$), १०१५४०(+#), १०२०१५(+#), १०२०१८(+$), १०२०७३(+$), १०२४६२(+#$), १०२७५१(+#), १०२७९६(+), १०२८९७(+), १०३२८४(+#), १०५२९८(+), १०५८५८(+), १०४६०७() (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., अ. १०, ग्रं. ५६३०, वि. १२वी, गद्य, पू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), १००९६८(+#s), १०१५४०(+#), १०२९५९(+$), १०३२८३-४(+), १०५८७५-४(+#$) (३) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टीका का हिस्सा ग्रंथप्रशस्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., श्लो. ८, पद्य, मपू., (नमः श्रीवर्द्धमानाय), १०३३१२-१(+) (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसुधर्मास्वामी), १०५८५८(+) (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (हे जंबू एह प्रत्यक्ष), १०१४६०(+#$), १०२०१५(+#), १०२०१८(+$), १०२०७३(+5), १०२७९६(+), १०२८९७(+$), १०५२९८(+) । (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-हिस्सा षष्ठअध्ययनगत संवरअहिंसामाहात्म्यबोधक ६० नाम, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., मपू., (निव्वाणं१ निव्वुई२), १०२५०४(+#) (३) प्रश्नव्याकरणसूत्र-हिस्सा षष्ठअध्ययनगत संवरअहिंसामाहात्म्यबोधक ६० नाम का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (एतलइ आश्रव द्वार कह्या), १०२५०४(+#) प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., श्लो. २९, पद्य, मप., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), १०४०४१-५(+), १०५८४३(+$) (२) प्रश्नोत्तररत्नमाला-कल्पलतिका वृत्ति, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. ७३२६, वि. १४२९, गद्य, मपू., (श्रीनाभिभूर्जिनवरः), १०५८४३(+) (२) प्रश्नोत्तररत्नमाला-बालावबोध, मा.गु., ग्रं. ४०१, गद्य, मूप., (--), १०५९६१-१($) प्रश्नोत्तरशतक, मु. उमेदचंद, सं., प्रश्न. ११०, वि. १८८४, गद्य, मूपू., (प्रणम्य तीर्थेशपदं०प्रश्न), १०२९१५(+) प्राकृतलक्षण, क.चंड कवि, सं., विधा. ४, गद्य, जै., इतर, (प्रणम्य शिरसा वीरं), १०४२५३(+) प्रायश्चितसाध्योपनिषद्-निगमशास्त्र, सं., अ. १३, गद्य, मूप., (एवं भगवदभिनंदन देवाधिदेव), १०४२४७(+$) प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., गा. २८, पद्य, मपू., (पंचमहव्वयसुव्वयमूलं), १०१०७१-१(+), १०१२१०(+#$), १०१४०८(+s) (२) प्रास्ताविक गाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पांच महाव्रत अने), १०१४०८(+$) प्रास्ताविक दोहादि संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ३७३, पद्य, श्वे., वै., (भमरा भमत नभ जिइ निगुणन), १०५५९८(#$) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. ५७, पद्य, जै., इतर?, (दाता दरीद्री कृपणो), १०१८६५-१५(+#$) For Private and Personal Use Only Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ६१, पद्य, मप., (धर्माज्जन्मकुले शरीर), १०५७२३(+), १०४५०४(#$), १०६२४८(#$), १०१६४८() फुटकर चर्चा, पुहि.,प्रा.,सं., प+ग., श्वे., वै., (--), १०५९३५(+$) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २५, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मपू., (बंधविहाणविमुक्कं), १०१११८-३(+), १०१३५२-३(+), १०१८१३-३(+#), १०१८२२-२(+), १०१८३२-३(+$), १०५२११-३(+#$), १०११४५-३, १०१७८७-३, १०२१४८-३, १०२८००-१, १०५२४१-३, १०१९१३-३(#), १०२४९६-३(१), १०२५६३-३(#), १०५४२६-३(#$) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३-अवचूर्णि, सं., गद्य, म्पू., (सम्यग्बंधस्वामित्व),१०२५६३-३(#) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३-अवचूरि, सं., गद्य, मपू., (बंध० बंधः कर्माणुनां जीवः), १०१७८७-३, १०२४९६-३(#) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३-बालावबोध , मा.गु., गद्य, मूपू., (बंध सामित्त विचार), १०१८३२-३(+$), १०११४५-३, १०१९१३-३(#) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (कर्म बंधना प्रकारथी), १०१३५२-३(+) बंधहेतूदयत्रिभंगी प्रकरण, मु. हर्षकुल, प्रा., गा. ६५, पद्य, मूप., (बंधण हेउ विमुक्कं), १०१९१५(2) (२) बंधहेतूदयत्रिभंगी प्रकरण-टीका, ग. विजयविमल, सं., वि. १६०२, गद्य, मूपू., (जयति जगत्त्रयनाथः), १०१९१५(4) बीजतिथि स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मप., (महीमंडणं पुन्नसोवन्न), १०२७५३-२(+), १०५२६९-१(+), १०५६८६-२६(+), १०२७०७-१८,१०१०२८-२(#), १०६४१८-७#) बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., उ. ६, ग्रं. ४७३, गद्य, स्पू., (नो कप्पइ निग्गंथाण), १०१७७७(+#$), १०१९७४(+$), १०३२७९(+), १०३३१७(+), १०६४४७(+s), १०३१५५, १०३२२६, १०३७०२(#$) (२) बृहत्कल्पसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, मूपू., (--), १०३२७९(+), १०३३१७(+), १०३१५५ (३) बृहत्कल्पसूत्र-नियुक्ति का लघुभाष्य#, ग. संघदासगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. ६४९०, पद्य, मूपू., (--), १०३२७९(+), १०३३१७(+), १०३१५५ (४) बृहत्कल्पसूत्र-निर्युक्ति के लघुभाष्य की टीका#, आ. मलयगिरिसूरि ; आ. क्षेमकीर्तिसूरि, सं., ग्रं. ४२६००, वि. १४वी, गद्य, मूपू., (--), १०३२७९(+), १०३३१७(+), १०३१५५ (३) बृहत्कल्पसूत्र-नियुक्ति की टीका#, आ. मलयगिरिसूरि ; आ. क्षेमकीर्तिसूरि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (--), १०३२७९(+), १०३३१७(+, १०३१५५ (२) बृहत्कल्पसूत्र-लघुभाष्य#, ग. संघदासगणि क्षमाश्रमण, प्रा., उ. ६, गा. ६४९०, पद्य, मप., (काऊण नमोक्कारं तित्थ), १०३२७९(+), १०३३१७(+), १०३१५५ (३) बृहत्कल्पसूत्र-लघुभाष्य की टीका, आ. मलयगिरिसूरि ; आ. क्षेमकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., (--), १०३२७९(+), १०३३१७(+), १०३१५५ (२) बृहत्कल्पसूत्र-चूर्णि#, प्रा.,सं., ग्रं. १२७००, गद्य, मूपू., (मंगलादीणि सत्थाणि०० कल्प), १०३२२६ (२) बृहत्कल्पसूत्र-विशेषकल्पचूर्णि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० से गामंसि), १०३३१७(+) (२) बृहत्कल्पसूत्र-सुखावबोधा टीका, आ. मलयगिरिसूरि ; आ. क्षेमकीर्तिसूरि, सं., ग्रं. ४२६००, गद्य, भूपू., (प्रकटीकृतनिःश्रेयसपदहेतु), १०३२७९(+), १०३३१७(+), १०३१५५ (२) बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (कव० कश्चित नगर), १०१७७७(+#$), १०१९७४(+$), १०६४४७(+$) बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अधि. ५, गा. ६५५, वि. ६वी, पद्य, मपू., (नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण), १०१८८१(+), १०२४६७(+$), १०५८७४ (२) बृहत्क्षेत्रसमास-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., अ.५, वि. १३वी, गद्य, मूपू., (जयति जिनवचनमवितथममित), १०१८८१(+), १०५८७४ (२) बृहत्क्षेत्रसमास-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १०२४६७(+$) (२) बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. १४२, पद्य, मप., (नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण), १०१३९१(+#), १०१५५६(+s), १०२०४५(+), १०५२२०(+#), १०१४११ For Private and Personal Use Only Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (३) बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण का टबार्थ , मा.गु., गद्य, मपू., (नमीनइ जलसहित मेघ), १०२०४५(+$), १०५२२०(+#), १०१४११ बृहत्क्षेत्रसमास नव्य, आ. सोमतिलकसरि, प्रा., गा. ३८७, वि. १३७३, पद्य, मपू., (सिरिनिलयं केवलिणं), १०२८५४(+s), १०३६६५ (२) बृहत्क्षेत्रसमास नव्य-अवचूरि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, मूपू., (वीरजिनवरेंद्रं सर्वे), १०१२४६(+#) बृहत्गुरावली पूजा, श्राव. सरूपचंद, पुहिं.,सं., वि. १९१०, प+ग., दि., (सारासार विचार करी तजि), १०४७७४(+), १०४९४५ बृहत्शांति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., प+ग., मूपू., (भो भो भव्याः शृणुत वचन), १०६११२ बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., मपू., (भो भो भव्याः शृणुत), १०१२६६-२(+), १०१७७५(+#), १०२८३६-४(+S), १०२९८०-२(+), १०५३७५-२(+), १०६३५८-३(+), १०२००८-४, १०४२४०,१०२०९५(#$), १०६११८-२(#) (२) बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६५६, गद्य, मूपू., (स्ताच्छांतिः शांति), १०४२४० बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४९, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नमिउं अरिहंताई ठिइ), १००९८१(+$), १००९८२-१(+), १०१०१४-१(+#$), १०१०६८(+#), १०११८०(+), १०१२७८-१(+$), १०१४६४(+), १०१४९६(+#$), १०१७५४(+#S), १०१७८५(+), १०१८१८(+#), १०१८८८(+), १०२०५३(+$), १०२१६५-२(+#s), १०२१७७(+#), १०२४६३(+), १०२४९३(+$), १०२५४८(+#), १०२६६५(+$), १०२७५९(+#$), १०२७८९-१(+), १०२८२६(+#$), १०२९८४(+$),१०३६७१(+), १०५०४५(+), १०५१२५(+#$), १०५१९९(+६), १०५५७१-१(+), १०५६५९(+#S), १०५७३४(+), १०२०१३(६), १०२७५८(5) (२) बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., ग्रं. ३५००, गद्य, मपू., (अत्यद्भुतं योगिभिरप्यगम्य), १०१४६४(+), १०१७८५(+), १०२४६३(+), १०२८१६(+), १०३६७१(+), १०२०१३(६) (२) बृहत्संग्रहणी-अवचूर्णी, सं., गद्य, मूपू., (नमिऊ. आदौ शास्त्रकार), १०२८२६(+#$) (२) बृहत्संग्रहणी-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (तिष्ठंति नारकादिभवे), १०२८२५(+#$) (२) बृहत्संग्रहणी-अवचूरि , सं., गद्य, मपू., (नत्वा प्रणम्य), १०१०१४-१(+#$) (२) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, ग. दयासिंह, मा.गु., ग्रं. १७५७, वि. १४९७, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीवीरजिन), १००९८१(+$), १०१०१६(+#$) (२) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (ॐ नत्वा अरिहंतादी), १०२६६५(+$), १०२६८५(+#$), १०५५७१-१(+), १०५६५९(+#$) (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (नमस्कार अरिहंता), १०१०६८(+#s), १०१२७८-१(+), १०१७५४(+#s), १०१८८८(+), १०२१६५-२(+#$), १०२४९३(+$), १०२९८४(+$), १०५१९९(+$) बृहत्संग्रहणी, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. ३५३, वि. ७पू, पद्य, मूपू., (निट्ठवियअट्ठकम्म), १००९७६(+#$), १०५६१२-१(+#), १०५३२३(#$) (२) बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं. ५०००, गद्य, मूपू., (जयति नखरुचिरकांति), १०५६१२-१(+#) बृहत्स्वयंभू स्तोत्र, आ. समंतभद्राचार्य, सं., स्त. २४, श्लो. १४३, पद्य, दि., (स्वयंभुवा० समंजस), प्रतहीन. (२) बृहत्स्वयंभू स्तोत्र-क्रियाकलाप टीका, आ. प्रभाचंद्र, सं., परि. २, गद्य, दि., (स्वयं परोपदेशमंतरेण), १०३४८८() बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (जीवाय १ लेसा ८ पखीय २), १०१७१७(६) बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (हिवै शिष्य पूछ हे भगवन्), १०६३३०-८(+), १०२९०८-२, १०२०२५(#$) बोल संग्रह-आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (सर्वथी थोडा चरित), १०६३३०-२(+), १०५९४८(5) ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही), १०२४१५-१ ब्राह्मण माहात्म्य, सं., श्लो. २, पद्य, वै., (पंचतीर्थाणि विप्राणी करे), १०५९४३-३(+#) भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. १७२, पद्य, मूपू., (नमिऊण महाइसयं महाणुभाव), १०३५१३-२ For Private and Personal Use Only Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४४, पद्य, मूपू., (भक्तामरप्रणतमौलि), १०१०६६ (+), १०११२४-७(+), १०१२६६-१(+), १०१२७३ (+), १०१३०१-१(+#), १०१५७५ (+), १०१५८६ (+$), १०१७५२-१ (+), १०१९१७ (+$), १०२३५५-२ (+#$), १०२५७५-१(+४), १०२८३६-१ (+), १०२८४८(+), १०२८६७(+०) १०२८८४ (९), १०२९०५-१(+), १०२९८०-१(+), १०४८४८(+३), १०५०५२(०), १०५१५३(+), १०५३७५-१(०), १०५४५८(45), १०५४९० (+), १०५५५२(००१, १०५७५७/०), १०५८९५(+), १०१०५४-१, १०२०७७, १०२४७१, १०४९५०, १०५०९९, १०५९२९-१, १०६०१८, १०६१७०, १०१२२२१०१, १०१४६९ (१६), १०४५०३(५६), १०५५५५-२ (०६), १०१३२४(३) १०१८२० (३), १०२७०७-८(5), १०६०१२-१८($) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) भक्तामर स्तोत्र- गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं. ग्रं. १५७२, वि. १४२६, गद्य, मूपू.. (पूजाज्ञानवचोपावापगमा), " १०४८४८(०३) (२) भक्तामर स्तोत्र - बालावबोध, मा.गु., सं., गद्य, म्पू. (किल इति सत्ये ), १०१२२२( . (२) भक्तामर स्तोत्र- टीका, मु. रायमल्ल ब्रह्म, सं., वि. १६६७, गद्य, मूपू., दि., (श्रीवर्द्धमानं), १०५१५३(+) (२) भक्तामर स्तोत्र- टीका, सं., गद्य, मूपू (व्याख्या किल इति), १०९३२४(5) (२) भक्तामर स्तोत्र- टीका व कथा, मु. विश्वभूषण, सं., गद्य, म्पू., दि., (--), प्रतहीन. दि.. (३) भक्तामर स्तोत्र- टीका व कथा का पद्यानुवाद, श्राव, विनोदीलाल, पुहिं. कथा. ३८, का ४८, वि. १७४८, पद्य, मूपू.. (प्रथमपद अरिहंतवरकुं), १०४७९६०), १०४९५० (२) भक्तामर स्तोत्र-बालहितैषिणी टीका, मु. कनककुशल, सं., ग्रं. ६९३, वि. १६५२, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमानंददायकं), १०१०६६+६) "" (२) भक्तामर स्तोत्र - सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं. गद्य, मृपू., (किल इति निक्षवे अहम) १०१७५२-१(+), १०१८२० (२) भक्तामर स्तोत्र वालावबोध, ग. मेस्सुंदर, मा.गु., वि. १५२७, गद्य, मूपू (प्रणम्य श्रीमहावीर), १०१२७३(+), १०२८६७(+), १०५४९० +०) ५१५ (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध+कथा, मु. अजबसागर, मा.गु., कथा. २८, गद्य, मूपू., (--), १०२८४८ (+) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध + कथा, मु. आगममाणिक्य, मा.गु., कथा. २७, गद्य, मूपू., (श्रीमद्जिनहंसगुरु), १०४८४७ (२) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भक्तिवंत जे देवता), १०१९१७ (+s), १०२८४८(+), १०२९०५-१(+), १०५५५२(+#), १०५७५७१), १०५८९५१), १०२४७१ (२) भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, मु. देवविजय, पुहिं. गा. ४४, वि. १७३०, पद्य, म्पू., (भक्त अमरगण प्रणत मुकुटमणि), १०६१०७, १०२४६८-१(#) (२) भक्तामर स्तोत्र गाथार्थ, मा.गु., पद्य, मूपू. (-), १०२८८४(+5) " " (२) भक्तामर स्तोत्र यंत्रमंत्राम्नाय पंचांगपद्धति विवरण आ. हरिभद्रसूरि, प्रा. सं., गद्य, मूपू (द्वितीय अंग ऋद्धि), १०२०७७ (२) भक्तामर स्तोत्र - अर्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (-), १०५४५८(ब) " (२) भक्तामर स्तोत्र-कथा, वा विनयसुंदर, मा.गु., कथा. २८, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीजिनं वीरं), १०५८९५ (+ (२) भक्तामर स्तोत्र-कथा, मा.गु. कथा. २८, गद्य, मूपु (वर्द्धमानजिनं नत्वा), १०१४६९ (७) (२) भक्तामर स्तोत्र-कथा, मा.गु., गद्य, मृपू. (श्रीमालवदेशमाहिं), १०१११७(+), १०२८८४(+६) १०५४५८ (+8) (२) भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., दि., (गंभीरताररविपुरि), १०२३५५-१६(+#$) (२) भक्तामर स्तोत्र-ऋद्धिमंत्रादि पंचांगपद्धति, संबद्ध, मा.गु., सं., मंत्र. ४८, गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीँ अर्हं णमो अरिहंता), १०४५०३ (#$) (२) भक्तामर स्तोत्र-मंत्रफल साधना विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १०२५७५-१(+$) (२) भक्तामर स्तोत्र-मंत्राम्नाय, संबद्ध, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो वृषभनाथाय), १०२५७५-१(+), १०६०१८, १०६१७० (२) भक्तामर स्तोत्र-यंत्र, अज्ञा., अज्ञ. ४४, यं., मूपू., (--), १०६१७० भक्तामर स्तोत्र-श्लोक ४८, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४८, पद्य, दि., (भक्तामरप्रणतमौलिमणि), १०४२५५-२ For Private and Personal Use Only (२) भक्तामर स्तोत्र-श्लोक ४८-पद्यानुवाद सवैयाएकतीसा, श्राव. घनुराज विजयराज, मा.गु., गा. ५०, वि. १६७०, पद्य, दि., ( एक रसनाकै स्वनान कही), १०९८४२-१ Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ भक्ष्याभक्ष्य विचारगाथा संग्रह, प्रा., गा. १६, पद्य, मूपू., (डगराय बार पुहरा वीसंपिसि), १०१२५९-१(+#) भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., शत. ४१, सू. ८६९, ग्रं. १५७५२, गद्य, मपू., (नमो अरहंताणं० सव्व), १००९८७(+$), १०१११३(+), १०१९३५(+$), १०२१७३(+$), १०२५४५(+), १०२८३८(+#$), १०३३२१(+), १०३४९०(+#), १०३७६६(+), १०३७८१(+), १०३७८७(+#$), १०५४३७(+#$), १०५८७२(+#$), १०५९११(+$), १०६४११(+#5), १०५५२७(#5), १०५८४६(#) (२) भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., शत. ४१, ग्रं. १८६१६, वि. ११२८, गद्य, मपू., (सर्वज्ञमीश्वरमनंत), १०१५४४(+$), १०३२९२(+$), १०३३२१(+), १०३७६६(+) (३) भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., गा. ३६, पद्य, मप., (लोगस्सेगपएसे जहणयपय), १०२९५६-२($) (४) भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण की टीका, आ. रत्नसिंहसरि, सं., गद्य, मप., (अथ पंचमांग ___ एवैकादशशत), १०२९५६-२(१) (३) भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा पंचनिपॅथी प्रकरण, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. १०६, वि. ११२८, पद्य, मप., (पन्नवण वेय रागे कप्प), १०२८०१(+) (४) भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा पंचनिपॅथी प्रकरण का बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीरदेव नमीनइ), १०२८०१(+) (३) भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा पुद्गलषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., गा. ३६, पद्य, मपू., (वुच्छं अप्पाबहुअं), १०२९५६-१(६) (४) भगवतीसूत्र-टीका का हिस्सा पुद्गलषट्त्रिंशिका प्रकरण की टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, मूपू., (अथ पंचम एव शतकेष्टमोद्देश), १०२९५६-१($) (२) भगवतीसूत्र-टिप्पणक*, सं., गद्य, मप., (कः शव्दार्थ उच्यते विविधा), १०६४११(+#$) (२) भगवतीसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (ब्राह्मी लिपिनइ), १०२८३८(+#$) (२) भगवतीसूत्र-टबार्थ, उपा. पद्मसुंदर, मा.गु., ग्रं. ५२०००, वि. १८पू, गद्य, मूपू., (श्रेयः श्रीसेवितांह), १०५४३७(+#$) (२) भगवतीसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मप., (ते कालनइ विषइ ते), १००९८७(+$), १०१११३(+), १०१९३५(+$), १०२१७३(+$). १०५८४६(#) (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक ११ उद्देशक ११ सुदर्शनश्रेष्ठी अधिकार, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं समयेणं), १०२१६८ (३) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक ११ उद्देशक ११ सुदर्शनश्रेष्ठी अधिकार का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते० तेकालने विर्षे), १०२१६८ (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-२५ उद्देश-६गत नियंट्ठा-संजया आलापकगाथा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. ३, पद्य, पू., (पनवणा १ वेय २ रागे ३), प्रतहीन. (३) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-२५ उद्देश-६गत नियंट्ठा-संजया आलापकगाथा-बोल, मा.गु., गद्य, मप., (हिवै पनवणा द्वार), १०२६६३-६(+) (२) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-७ उद्देश-२ पच्चक्खाण गाथा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. १, पद्य, मपू., (अणागयमइक्कंते), १०३३९४-१२(+) (३) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-७ उद्देश-२ पच्चक्खाण गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (अनागत पचक्खाण ते जे), १०३३९४-१२(+) (२) भगवतीसूत्र-उद्देशसंग्रह*, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (--), १०२५९७(+#$) (२) भगवतीसूत्र-आलापक संग्रह , संबद्ध, प्रा., गद्य, पू., (कहण्णं भंते जीवा गुर), १०२५०७(+#$) (३) भगवतीसूत्र-आलापक संग्रह-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (सदा सर्वदा समियंति), १०२५०७(+#$) (२) भगवतीसूत्र-गम्माशतक विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (उववाय१ परिमाणु२ संघयणु३), १०३७७५-२ (२) भगवतीसूत्र-भांगा विचार, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, म्पू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य),१०३७७५-३ For Private and Personal Use Only Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ ५१७ (२) भगवतीसूत्र-शतक २५ उद्देशक ६ भांगा विचार, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (हवै तेरमो गतिद्वार कहिय), १०३७७५-५ (२) भगवतीसत्र-शतक २५ प्रथमोद्देशगत समयोगी विषमयोगी विचार, संबद्ध, प्रा.,सं., गद्य, मप., (दो भंते णेरइया० प्रथमसमय), १०२६७४-४(+#) (२) भगवतीसूत्र-सप्रदेशअप्रदेश विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (सवएसी आहारगभवाए संनी), १०२६७४-२(+#) (२) भगवतीसूत्र-टीप, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम वेनइ अध्यन तेह भणी), १०३७७५-१ भगवतीसूत्र-पुद्गलभंगनिवृत्ति प्रकरण, ग. नयविजय, सं., गद्य, मूपू., (अथैषां भंगानां नष्टानयन), १०३७७५-४ भद्रबाहु चरित्र, क. रत्नकीर्ति, सं., परि. ४, श्लो. ५९९, पद्य, दि., (सद्बोधभानुना भित्वा), प्रतहीन. (२) भद्रबाहु चरित्र-पद्यानुवाद, श्राव. किसनसिंघ, पुहि., गा. ८७५, वि. १७८३, पद्य, दि., (केवलबोध प्रकासरबि उदै होत), १०४३३१, १०६०२२, १०६१४१ ।। भद्रबाहुसंहिता, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., अ. २८, पद्य, मूपू., (मगधेषु पुरं ख्यातं), १०५९९४ भरटकद्वात्रिंशिका, ग. आनंदरत्न, सं., वि. १५वी, गद्य, मप., (देवदेवं नमस्कृत्य), १०१४२१(#) भरतचक्रवर्ती कथा, सं., पद्य, मप., (सुख सोहित्य भृत वात),१०६३५६-३(६) (२) भरतचक्रवर्ती कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीभरतचक्री कथानक सुखना), १०६३५६-३($) भवभावना, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., गा. ५३१, पद्य, मूपू., (नमिऊण नमिरसुरवर मणि), १०२९६१(+#) भावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (कमठासुरेण रईअम्मि), प्रतहीन. (२) भावना कुलक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहां प्रथम ए आत्मा), १०५११६(+) भावनासंधि प्रकरण, आ. जयदेवसूरि, प्रा., गा. ६२, पद्य, मूप., (पणमवि गुणसायर भुवण), १०३२३०-२२(+) भाव संग्रह, आ. वामदेव पंडित, सं., श्लो. ७८२, वि. १५वी, पद्य, दि., (श्रीमद्वीरं जिनाधीशं), १०६२१६(+) भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., भाष्य. ३, वि. १४वी, प+ग., मप., (वंदित्तु वंदणिज्जे), १०२४८२(+), १०४३९८-५(+), १०६३७४(+), १०१४९१(#$), १०२५२७(4), १०२७०४(६), १०२७७१(६), १०२७८०-१(६) (२) भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदित्तु क० वांदीने), १०२४८२(+), १०४३९८-५(+$) भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., श्लो. १७०, वि. १३पू, पद्य, मूपू., इतर, (सारस्वतं नमस्कृत्य), १००९९६-२(+), १०१२२८-१(+), १०१४५४(+), १०१४६३(+$), १०३५०७-१(+), १०५५१३(+#), १०५५१५(+), १०५५३६(+), १०५५७६(+$), १०५७५३(+#) १०१११४, १०४५९९ (२) भुवनदीपक-टीका, आ. सिंहतिलकसूरि, सं., वि. १३२६, गद्य, मूपू., इतर, (अर्हदादीन् प्रणम्याथ), १०१११४ (२) भुवनदीपक-टीका, सं., गद्य, म्पू., इतर, (सरस्वत्याः संबंधि), १०४५९९ (२) भुवनदीपक-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, स्पू., इतर, (सरस्वती नाम जो देवी), १०१२२८-१(+$), १०३५०७-१(+), १०५५१३(+#) (२) भुवनदीपक-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (सरस्वती संबंधीओ मह), १०१४६३(+$), १०५५१५(+), १०५५७६(+$) भुवनभानुकेवली चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा., गद्य, मपू., (सिरिरिसहपहु पणमिय), प्रतहीन. (२) भुवनभानुकेवली चरित्र-बालावबोध, मु. हरिकलश, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिरिवीरं नमीअ जिणं), १०२७७९(5) भैरव क्षेत्रपालदेव स्तुति, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (जिनपति पदपद्म द्वेत पूजा), १०५२४०-१०(+) भैरव स्तुति, सं., श्लो. ३, पद्य, वै., (करकलतिकपाल कुंडलि मंडपाणि), १०६३१६-२ मतिज्ञानादि भेदप्रभेद विचार, सं., गद्य, मप., (मतिज्ञानं द्विधा श्रुत), १०१८९२-१०(+) मदनपराजय, क. नागदेव, सं., परि. ५, पद्य, दि., (यदमलपदपद्मं श्रीजिने), १०५९९६(+$) मनुष्यजन्म सफलता-व्याख्यान, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (अरिहंदेवु सुगुरु), १०२५१८ मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत, सं., गद्य, श्वे., (संसारे चतसृषु गतिषु), १०१३७३(+#) मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (चूलग पासग धन्ने जूए), प्रतहीन. (२) मनुष्यभव दुर्लभता १० दृष्टांत गाथा-कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम चूलक भोजन खीर), १०१४४१ मनुष्यसंख्यास्तव, प्रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (जिणवुत्त चरित्तेणं), १०२६७९-३(+) (२) मनुष्यसंख्यास्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (जिनोक्तचारित्रेण), १०२६७९-३(+$) For Private and Personal Use Only Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ मरणसमाधि प्रकीर्णक, प्रा., गा. ६६३, पद्य, मप., (तिहअणसरीरिवंदं सप्प), १०६२५३(+), १०३१४१(#) (२) मरणसमाधि प्रकीर्णक-छायानुवाद, सं., श्लो. ६६३, वि. २०वी, गद्य, मप., (त्रिभुवनशरीरिवंद्यं), १०६२५३(+) मलयासंदरी चरित्र, आ. जयतिलकसरि, सं., प्र. ४, ग्रं. २४३०, पद्य, मप., (चतुरंगो जयत्यर्हन), १०४०३९(+#) महाअर्घ्यविधान, अप.,पुहि.,रा., वि. १९६३, प+ग., दि., (प्रभु जी अष्टद्रव्य जी), १०५९८९-१३(+-), १०५९८९-२०(+-) महानिशीथसूत्र, प्रा., अध्य. ६ चूलिका २, ग्रं. ४५४४, गद्य, मूपू., (ॐ नमो तित्थस्स ॐ), १०१७१३(+$), १०४२४१(+#$) (२) महानिशीथसूत्र-भावार्थ, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., वि. १८९०, गद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीमन्नृपति), १०५१३९(+) महापुराण, आ. जिनसेनाचार्य; आ. गुणभद्र, सं., पर्व. ७६, वि. ९वी, पद्य, दि., (श्रीमते सकलज्ञानसाम्), प्रतहीन. (२) महापुराण-भाषाटीका, पुहिं., गद्य, दि., (--), १०४८९७($) । (२) महापुराण-हिस्सा आदिपुराण, आ. जिनसेनाचार्य; आ. गुणभद्र, सं., वि. ९वी, पद्य, दि., (श्रीमते सकलज्ञान), प्रतहीन. (३) महापुराण-हिस्सा आदिपराण की भाषावचनिका, क. दौलतराम कासलीवाल, पुहि., गद्य, दि., (प्रणमि सकल सिद्धानिकौ), १०४८८३, १०५९९०(5) महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्रा., गा. १४२, पद्य, मूपू., (एस करेमि पणामं तित्थयराणं), १०३५१३-९, १०२४७५-३(#$) महालक्ष्मी मंत्र, सं., गद्य, मप., इतर, (ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं), १०६०३२-२ महालक्ष्मी स्तोत्र, सं., श्लो. ११, पद्य, वै., (ॐ नमस्तेस्तु महामाए), १०६१६२-४ महावीरजिन ११ गणधर आराधनाविधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीइंद्रभूति गणधराय), १०२८१४-२ महावीरजिन २७ भव वर्णन, सं., गद्य, श्वे., (जंबूद्वीपापरविदेहे), १०१२८४ । महावीरजिन २७ भव विचार, सं., पद्य, म्पू., (पश्चिमे मावधिदेशे नयरो), १०५२१९(#$) महावीरजिन २७ भव व्याख्यान, सं., ग्रं. १००, गद्य, मपू., (ग्रामेशस्त्रिदशो), १०५३७५-३(+) महावीरजिन-द्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेन, सं., श्लो. ३२, पद्य, मप., (स्तोष्ये जिनं महावीरं), १०३२३०-८(+) महावीरजिन विशेषण, प्रा., गा. ८, गद्य, श्वे., (नमिऊण असुरसुरगुरल), प्रतहीन. (२) महावीरजिन विशेषण-हिस्सा मांगलिक, प्रा., गद्य, श्वे., (नमिऊण असुर सुर), १०५२९३-८(+) महावीरजिन शासनकाल तीर्थंकरगोत्रउपार्जकनाम गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सेणिअसुपास पोट्टिल उदाइ), १०१४९३-३(+) महावीरजिन स्तव, आ. पादलिप्तसूरि, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (जयइ नवनलिन कुवलय), १०१५०५-१(+#), १०२३५५-६(+#) महावीरजिन स्तव, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (कनकाचलमिव धीरं), १०६४१८-५१(१) महावीरजिन स्तवन, प्रा., गा. २९, पद्य, मप., (पणमित्त पवित्त जिण), १०३४०८ महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (जइज्जा समणे भगवं), १०६३७२-२, १०६४१८-३८(#) महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., श्लो. ३०, पद्य, मूपू., (भावारिवारणनिवारणदारु), १०११२४-९(+), १०१३५९(+#), १०१७४९(+), १०१७५२-३(+), १०१७९७(+), १०२०६९(+), १०३२३०-५(+), १०२७०७-११ (२) महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत-टीका, उपा. जयसागर गणि, सं., वि. १४६५, गद्य, मूपू., (श्रेयोथ), १०१७४९(+), १०१७९७(+) (२) महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत-टीका, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), १०१७५२-३(+) (२) महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत-बालावबोध, वा. महिमासिंह, मा.गु., वि. १६८१, गद्य, मप., (श्रीपार्श्वजिनं नत्वा), १०१३५९(+#) (२) महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भाव अंतरंग वयरी), १०२०६९(+) महावीरजिन स्तुति, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (जगत्कल्पना कल्पवृक्ष), १०५२४०-२(+) महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ११, पद्य, मपू., (पंचमहव्वयसुव्वयमूलं), १०१०८०-२(+), १०२७३९-२(+), १०१९४८-४(६), १०२१६०-२($) (२) महावीरजिन स्तुति-टबार्थ, मा.ग., गद्य, मप., (पं० पंच महाव्रत अने), १०२१६०-२($) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (यदंहिनमनादेव देहिन), १०२७५३-१०(+), १०२७०७-२१, १०६४१८-१४(#) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (लोकाधारं शांताकारं), १०६४१८-३६(2) For Private and Personal Use Only Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (वीरं देवं नित्यं), १०२७५३-१५(+), १०२७०७-२०, १०१०२८-४(#), १०६४१८-१९(#) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूप., (सिद्धार्थपार्थिवकुलांबुज), १०५२६९-६(+) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (सिद्धार्थसिद्धार्थमह), १०५२६९-७(+) महीपालराजा कथा, ग. वीरदेव, प्रा., गा. १८०९, ग्रं. २५००, पद्य, मूपू., (नमिऊण रिसहनाहं केवल), १०३७७८(+) मांगलिक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सर्वमंगल मांगल्यं), १०५०७७-९(+), १०६४१८-५६(#) (२) मांगलिक श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मप., (सर्व मंगलीका मध्ये पहिलो), १०५०७७-९(+) मांगलिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. ६, पद्य, मपू., (कृतापराधेपिजने कृपा), १०३४०५-२(+#$) माणिभद्रवीर मंत्र विधिसहित, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (नमो माणिभद्राय कृष्ण), १०२१३४-२(+#) मुकुटसप्तमीव्रत कथा, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., श्लो. ६९, पद्य, दि., (श्रीसारदास्पदीभूत), प्रतहीन. (२) मुकुटसप्तमीव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., गा. ५२, वि. १७८३, पद्य, मूपू., दि., (श्रीअरिहंत नमो चितलाय), १०४७१५-३, १०४७९२-३, १०४८५६-३, १०६०२३-११ मुक्तावलीविधान कथानक, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., श्लो. ८१, पद्य, दि., (प्रभाचंद्राकलंकेष्टा), प्रतहीन. (२) मुक्तावलीविधान कथानक-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., गा. ९०, पद्य, मूपू., दि., (श्रीअरिहंत तणौ जुगपाद), १०४७१५-१३, १०४७९२-१३, १०४८५६-१३ मुनिपति चरित्र, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ६४६, ग्रं. ६४४, वि. ११७२, पद्य, मपू., (नमिऊण महावीरं चउ), प्रतहीन. (२) मुनिपति चरित्र-अनुवाद, मा.गु., गद्य, मपू., (एह भरतक्षेत्रमाहि), १०१८५१ मूर्तिपूजामतपुष्टि शास्त्रपाठ संग्रह, प्रा., गद्य, मूपू., (से भयवं तहारूवं समणं वा), १०६३३०-४(+) पूजामतपुष्टि शास्त्रपाठ संग्रह-टबार्थ, पुहिं., गद्य, मूपू., (सो भगवान गुणे करी), १०६३३०-४(+) मूलाचार, आ. वट्टेरकाचार्य, प्रा., अधि. १२, गा. १२५२, पद्य, दि., (मूलगुणेसु विसुद्धे), १०५९८५(+$), १०६३९५(+$) (२) मूलाचार-आचारवृत्ति टीका, आ. वसुनंदि सैद्धांतिक, सं., अधि. १२, ई. १२वी, गद्य, दि., (मंगलनिमित्त हेतु), प्रतहीन. (३) मूलाचार-आचारवृत्ति टीका की भाषाटीका, श्राव. नंदलाल, पुहि., वि. १८८८, प+ग., दि., (वंदौ श्रीजिनसिद्धपद), १०५९८५(+$) मेघमाला, मु. केवलिकीर्ति, प्रा.,सं.,मा.गु., अ. १२, पद्य, दि., इतर, (तियसिंदनरिंदनयं पणमि), १०१०६३(#S) मेघमालाव्रत कथा, सं., गद्य, दि., (नमः श्रीवर्धमानाय), १०२९५१-२ मेघमालाव्रतोपाख्यान, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., श्लो. ५०, पद्य, दि., (समंताद्भद्रमहँत), प्रतहीन. (२) मेघमालाव्रतोपाख्यान-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहि., गा. ५९, पद्य, मूपू., दि., (श्रीअरिहंत तणै जुग पाय), १०४७१५-६, १०४७९२-६, १०४८५६-६ मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, मु. क्षमाकल्याण, सं., ग्रं. १६५, वि. १८६०, गद्य, मूपू., (मारुदेवं जिनं नत्वा), १०२०५५(+) (२) मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (मारुदेवं जिनं नत्वा), १०६१०९ मेरुपंक्त्युपाख्यान, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., श्लो. ४८, पद्य, दि., (चिंतयित्वा चिरं वीरं), प्रतहीन. (२) मेरुपंक्त्यु पाख्यान-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहि., गा. ४३, पद्य, मूपू., दि., (धीरवीर गंभीर जिनंद सनमति), १०४७१५-२१, १०४७९२-२०, १०४८२१-६, १०४८५६-२१ मेरुपर्वतादि जिनगृह विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (मेरौ सप्तदशोत्त० ष्वष्ट), १०२८४६-४(+) मोक्षधर्मकल्पद्रुमसूत्र, प्रा.,मा.गु.,सं., अधि. ८, प+ग., श्वे., (जयति जगजीवजोणी वियाणउ जग), १०५२४५-१(+) मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., श्लो. २०१, वि. १६५७, पद्य, मूपू., (प्रणम्य ऋषभदेवं), १०२९३३(+$) मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., श्लो. ११६, वि. १५७६, पद्य, मपू., (अन्यदा नेमिरीशाने), १०२०२७(#$) मौनएकादशीपर्व गणणं, सं., को., मप., (जंबुद्वीपे भरते क्षेत्रे), १०२८३२ मौनएकादशीपर्व गणj, सं., गद्य, मपू., (श्रीमहाजस सर्वज्ञाय), १०५४०६ मौनएकादशीपर्व व्याख्यान-सुव्रतश्रेष्ठिकथा, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (सिरिवीरं नमिऊण), १०१२१८-२ मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अरस्य प्रव्रज्या नमिजिन), १०२७५३-५(+), १०२७०७-२९, १०६४१८-२१(#) For Private and Personal Use Only Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५२० www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ यक्षयक्षिणी स्तोत्र-आयुधादियुक्त, सं., पद्य, मूपू., (श्यामो गजेंद्रवदनोहिफणा), १०२३५३(+$) यतिविचार, प्रा., गा. २३, पद्य, म्पू. (आलय विहार भासा चंक्रमण), १०१४८२ (४) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) यतिविचार-स्वोपज्ञ वृत्ति, सं., वि. १५२३, गद्य, मूपू., (आलय: सुप्रमार्जितादि), १०१४८२ (#) यशोधर चरित्र, उपा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८३९, गद्य, मूपू., (सकलसुरनरेंद्रश्रेणि), १०५९७१(+४) यशोधर चरित्र, आ. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., स. ८, श्लो. ९६०, पद्य, दि., (श्रीमंतं वृषभं वंदे), १०५८९६ (+) (२) यशोधर चरित्र-पद्यानुवाद, श्राव. खुस्याल, पुहिं., संधि. ६, गा. ९००, वि. १७८१, पद्य, दि., (आदिजिनंद नमू सदा त्रिजगत), १०४३८३ यशोधरमहाराज चरित्र, मु. श्रुतसागरशिष्य, सं., पद्य, दि., ( विद्यानंदीश्वरं देवं नाभि), १००९८८ ($) युगादिदेशना ग. सोममंडन, सं., उल्ला. ५, श्लो. ५७७, पद्य, मूपू., (श्रीमानादिजिनः श्रेय), १०१४२५ (+) " योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं. अ. ७. वि. १७वी, पद्य, मूपू. इतर (यत्र वित्रासमायांति), १००९६६ (+), १०१६३४(७), १०१७६५-२(+$), १०२१३३ (+#$), १०२७८६ (+$), १०३८४२ (+), १०५१९८ (+), १०६२०६ (+), १०६४५० (+$), १०२१३८(#$), १०६०९४०६, १०९६९४ (६) (२) योगचिंतामणि बालावबोध, मु. मानकीर्ति- शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर (श्रीसर्वज्ञ प्रणम्यादी), १०३८४२ (+) (२) योगचिंतामणि- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (प्रस्थतीन सताव सुठ), १०६०९४ (#S) (२) योगचिंतामणि-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (जब वित्रासनइ), १०५१९८ (+), १०६२०६ (+), १०६४५० (+$), १०२१३८(४७) (२) योगचिंतामणि - अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू. इतर (सूरपाली सुंठि सेर ५) १०२१३३ (+४४) (२) योगचिंतामणि- संक्षेप, सं., पद्य, मूपू., इतर, (--), १०२१३४-१(+#$) (३) योगचिंतामणि- संक्षेप का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (--), १०२१३४-१(+#$) (२) योगचिंतामणि- चूर्णादि निर्माण विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (उदरैरी मीगणी टां १ नानी), १०१०१२($) योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १२, श्लो. १०००, वि. १३वी, पद्य, मूपू., ( नमो दुर्वाररागादि), १०१५१२(+), १०२०१२-१(+०३), १०२०४३(+०६) १०२४७३(+०६), १०२५५१ (०४), १०२७०८(+), १०३४०५-१(००) १०३४३८(+४), १०३४८७(+#$), १०४०४१-८ (+), १०५५५३ (+$), १०५८९४ (+#$), १०१५३८, १०२४६४($) (२) योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, मूपू., (अत्र महावीरायेति), १०२४७३(+#$), १०३४०५ - १(+#), १०३४३८ (+#$), १०३४८७ (+#$) יי (२) योगशास्त्रअवचूरि, सं., गद्य, मूपू. (दुवरिण अत्र महावीराय), १०२०४३ (+) (२) योगशास्त्र- बालावबोध, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., वि. १५वी, गद्य, मूपू., (नमो कहीइ नमस्कारहुङ), १०२७०८ (००६), १०२४६४(३) (२) योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, मूपू., ( नमो दुर्वाररागादि), १०१०४६(+) (३) योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४ का बालावबोध, आ. सोमसुंदरसूरि, मा.गु., प्रका. ४, गद्य, मूपू., (प्रणम्य जिनसिद्धादीन्), १०१०४६(+) (२) योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश ३ से ४, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., वि. १३वी, पद्य, मूपु. ( दशस्वपि कृता दिक्षु यत्र), १०२४८४२१ (३) योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश ३ से ४ की अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (दश० ऐंद्री प्रमुखाः ८), १०२४८४ (#) योगसार, मु. योगींद्रदेव, अप., गा. १०८, पद्य, दि., (णिम्मलझाणपरिट्ठया), १०४२५६ (+) (२) योगसार- छाया, सं., श्लो. ११०, पद्य वि., (निर्मलध्याने परिस्था), १०४२५६) योगोद्वहन विधि, प्रा., सं., गद्य, मूपू., (पसत्थे खित्ते जिणभवण), १०१७७६ (#$) योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, मूपु रक्तचामुंडा स्तोत्र, सं., श्लो. ११, पद्य, वै., (ॐ (श्री आवश्यक सुअक्खधो), २०१५५३, १०३८८८ अस्य श्रीरक्तचामुंडा), १०५५१८-३०) For Private and Personal Use Only Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ ५२१ रघवंश, क. कालिदास, सं., स. १९, पद्य, वै., इतर, (वागर्थाविव संपृक्तौ), १०५१९०(+$), १०५९५९(+$), १०६२८५(+$), १०२००३(६) (२) रघवंश-विशेषार्थबोधिका वृत्ति, पं. गुणविनय गणि, सं., स. १९, वि. १६४६, गद्य, मप., वै., इतर, (ध्यात्वा तां ब्रह्म), १०६४४०(+#$) (२) रघवंश-सगमान्वयाप्रबोधिका टीका, मु. सुमतिविजय पंडित, सं., वि. १६३०, गद्य, मप., वै., इतर, (प्रणम्य जगदाधीशं गुरुं), १०५९५९(+६), १०६२८५(+$), १०१९७९, १०२००३($) (२) रघुवंश-सुबोधिका टीका, ग. श्रीविजय, सं., ग्रं. ८०००, गद्य, मूपू., वै., इतर, (अहं कालिदासनामाकविता), १०५१९०(+$) (२) रघुवंश-अर्थलापनिका वृत्ति, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, स्पू., वै., इतर, (सर्वज्ञं जिनं नत्वा), १०४५९५(#) रत्नकरंडकश्रावकाचार, आ. समंतभद्र, सं., परि. ७, श्लो. १५०, पद्य, दि., (नमः श्रीवर्द्धमानाय), १०४९४३(+), १०४७८८ (२) रत्नकरंडकश्रावकाचार-भाषावचनिका, पुहिं., वि. १९२८, प+ग., दि., (इहां इस ग्रंथ की आदि),१०४७८८ (२) रत्नकरंडकश्रावकाचार-भाषावचनिका, श्राव. सदासुखदासजी, पुहिं., वि. १९२०, गद्य, दि., (इहां इस ग्रंथ की आदि), १०४९४३(+) (२) रत्नकरंडकश्रावकाचार-हिस्सा दशलक्षण परिच्छेद, आ. समंतभद्र, सं., पद्य, दि., (--), प्रतहीन. (३) रत्नकरंडकश्रावकाचार-हिस्सा दशलक्षण परिच्छेद की भाषावचनिका, पुहिं., प+ग., दि., (ॐकार कू नमन करि नमो सारद), १०४२५४(#) रत्नत्रय जयमाला पूजा, सं., प+ग., दि., (श्रीवर्द्धमानमानम्य गौतम), १०६०५८-१३ रत्नत्रय पूजा, सं., प+ग., दि., (जनवार्ति मृत्य),१०६०१२-१६ रत्नत्रयविधान कथानक, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., पद्य, दि., (--), प्रतहीन. (२) रत्नत्रयविधान कथानक-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., गा. १०५, पद्य, मूपू., दि., (चरण जिनेसुर के नमुं), १०४७१५-१८, १०४७९२-१७, १०४८२१-३,१०४८५६-१८, १०६०२३-७।। रत्नसारकुमार कथा, सं., पद्य, मपू., (--), १०१९३१(#$), १०२८७४($) (२) रत्नसारकुमार कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १०२८७४($) रत्नाकरपच्चीशी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., श्लो. २५, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (श्रेयः श्रियां मंगल), १०५८३० (२) रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (अहो कल्याणक लक्ष्मी), १०५८३० राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., सू. १७५, ग्रं. २१००, गद्य, मूप., (नमो अरिहंताणं० तेणं), १००९७०(+#$), १०११३५(+#), १०१८७९(+), १०२१७०(+#) (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं. ३७००, गद्य, मूपू., (प्रणमत वीरजिनेश्वर), १०१८७९(+) (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मु. मेघराज, मा.गु., ग्रं. ५५००, गद्य, मूपू., (देवदेवं जिनं नत्वा), १००९७०(+#$) (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (नमस्कार हुवउ० चउथा), १०२१७०(+#$) रामपुराण, मु. सोमसेन, सं., अधि. ३३, पद्य, दि., (वंदेहं सुव्रतं देवं), १०४२४९(+), १०४६६८(+#) (२) रामपुराण-पद्यानुवाद, श्राव. खुशालचंद्र, पुहिं., संधि. ३३, गा. ६६१०, वि. १७८३, पद्य, दि., (पंचकल्याण नायक श्रीमुनि), १०४८१३() रामरावण संग्राम पद, प्रा.,मा.गु., गा. ४, पद्य, वै., (रामचंद्र रावण हसजल), १०२५६०-२ रामाष्टक, शंकराचार्य, सं., श्लो. ८, पद्य, वै., (सुग्रीव मित्रं परमं), १०६३१६-३(६) रीति-रस संबंधसूचक श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, इतर, (लाटी हास्यरसे प्रयोगनिपुण), १०२८३०-२(+#), १०४२५०-२(+#) रूपसेनकनकावती चरित्र-चतुर्थव्रतपालने, आ. जिनसूरि, सं., ग्रं. १५३०, प+ग., मूप., (श्रीमंतं विदुरं शांतं), १०५१५७(+$) रूपीअरूपी जीवअजीव भेद गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (धम्माधम्मागासा तिय), १०२६७४-३(+#) रैवताचल चैत्यपरिपाटी-स्तवन, आ. चंद्रसूरि, सं., श्लो. २१, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (राजीमति युवति मानसराजहंसः), १०३२३०-९(+) लंघनपथ्य निर्णय, मु. दयातिलक शिष्य, सं., श्लो. ३०४, वि. १७९२, पद्य, मूपू., इतर, (श्रीसर्वशं नमस्कृत्य), १०३५५०(#) For Private and Personal Use Only Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., अधि. ६, गा. २६३, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय), १०१७१४(+#$), १०१७२०(+#S), १०२१८४(+$), १०२४३०(+), १०३४९८(+#$), १०६२३३(+#), १०५२७६(#s), १०१२७४($) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (आदोमंगलानि धियायों), १०३४९८(+#$) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध, मु. खेम, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमं देवं), १०२४३०(+) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध', मा.गु., गद्य, मूपू., (वीरं० ग्रंथनोकरणहार), १०१२७४(६) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (वीरं० श्रीवीर वर्द्धमान), १०५२७६(#$) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (वीर श्रीमहावीर केहवा), १०२१८४(+$) लघजातक, वराहमिहिर, सं., अ. १६, पद्य, वै., इतर, (यस्योदयास्तसमये), १०२०१६(+$) । (२) लघुजातक-अवचूरि, उपा. भक्तिलाभ, सं., वि. १७१५, गद्य, मपू., वै., इतर, (यस्येति यस्य सूर्य), १०२०१६(+$) (२) लघुजातक-बालावबोध, उपा. मतिसागर, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., इतर, (प्रणम्य परमानंदः संपदः), १०१८३४(#) लघुनाममाला, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., कां. ३, श्लो. ४६१, ग्रं. ५५०, पद्य, मूपू., इतर, (प्रणम्य परमात्मानं), १०५२८२(+) लघशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., श्लो. १७, पद्य, स्पू., (शांति शांतिनिशांतं), १००९७३(+#), १०१११९(+), १०१३००-२(+$), १०१३०२-२(+#$), १०१३६८-२(+#), १०१८३०-२(+#$), १०२०१२-२(+#s), १०२३५५-१४(+#s), १०२५०९-११(+#), १०२५२८-१(+), १०२६५४(+), १०२७७२-२(+#), १०२८३६-२(+), १०२९८०-३(+), १०५२२८-२(+), १०२७०७-९, १०२३६०(#$), १०२४६६-२(#) (२) लघुशांति स्तव-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६४४, गद्य, मूपू., (सर्वं सर्वसिद्ध्यर्थ), १०१११९(+), १०२५२८-१(+) (२) लघुशांति स्तव-वृत्ति, ग. धर्मप्रमोद, सं., ग्रं. २१७, गद्य, मूपू., (श्रीशांतये श्रीमंतं), १०२६५४(+) (२) लघुशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीशांतिनाथ शांति), १००९७३(+#) लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं सव्वन्नु), १००९८२-२(+$), १०२८९३(+#), १०५०२३(+) (२) लघुसंग्रहणी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (जंबूद्वीप एक लाख), १०२००७(६) (२) लघसंग्रहणी-टबार्थ , मा.ग., गद्य, मप., (नमिय क० नमस्कार करी), १०२८९३(+#) (२) लघुसंग्रहणी-१० द्वार विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (खंडा जोयण वासा पव्वय), १०२८०६-१ (२) लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (लाख जोयणनो जंबूद्वीप), १०५४११(+) लब्धिविधानोपाख्यान, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., श्लो. ५५, पद्य, दि., (श्रीविद्यानंदिनं पूज), प्रतहीन. (२) लब्धिविधानोपाख्यान-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., गा. ५१, पद्य, मूपू., दि., (त्रिभूवन पूजत पाद पग जाके), १०४७१५-८, १०४७९२-८, १०४८५६-८ लीलावती, पंडित. भास्कराचार्य, सं., श्लो. २७९, प+ग., वै., इतर, (प्रीतिं भक्तजनस्य), प्रतहीन. (२) लीलावती-भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., अ. १६, गा. ७०७, वि. १७३६, पद्य, मूपू., वै., इतर, (सोभित सिंदूर पुर), १०१२२९(+), १०२६७८(#$), १०५३४७($) लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. ३२, वि. १४वी, पद्य, मप., (जिणदंसणं विणा जं), १०१८८२($) (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (हे वीतराग देव ताहरु), १०१८८२($) लोकनाली गाथा, प्रा., गा. १५, पद्य, मूपू., (माधवई एत्तलाओ ईसि), १०३२३०-३२(+) लोकप्रकाश , उपा. विनयविजय, सं., स. ३७, ग्रं. २०६२१, वि. १७०८, पद्य, मप., (ॐ नमः परमानंदनिधानाय), १०५८५७(+$) लोच विधि, प्रा., गद्य, मप., (पच्चइएणय लोओ कायव्वो), १०३२८६-७(+) वंगचूलिका प्रकीर्णक, आ. यशोभद्रसूरि, प्रा., पद्य, मूपू., (भत्तिब्भरनमियसुरवर), १०३४७४, १०५८७९ (२) वंगचूलिका प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भक्तिना समुहे करीने), १०३४७४, १०५८७९ वज्जालग्ग, क. जयवल्लभ, प्रा., गा. ७९५, ग्रं. १२३०, पद्य, मूपू., (सव्वन्नुवयणं पंकयनिव), १०१२६५(+#), १०१३१६(+) (२) वज्जालग्ग-वृत्ति, ग. रत्नदेव, सं., वि. १३९३, गद्य, मूपू., (तत्र शास्त्रस्यादौ), १०१२६५(+#), १०१३१६(+) (२) वज्जालग्ग-छाया, सं., गद्य, मपू., (प्राकृतसुभाषितवल्या), १०१३१६(+) वज्रपंजर स्तोत्र, सं., श्लो. ८, पद्य, मप., (ॐ परमेष्ठिनमस्कारं सारं),१०१४९४-१(#) For Private and Personal Use Only Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ ५२३ वर्द्धमान काव्य, जै.क. जयमित्र हल्ल, अप., पद्य, दि.?, (--), १०४५९१(+$) वर्द्धमानदेशना, ग. राजकीर्ति, सं., उल्ला. १०, ग्रं. ४३००, गद्य, मूपू., (नमः श्रीपार्श्वनाथाय), १०६४२५(+$) वसुदेवहिडी, ग. संघदासगणि क्षमाश्रमण; ग. धर्मसेन, प्रा., उपा. २८, ग्रं. १०४८०, प+ग., मूप., (जयइ नवनलिणिकुवलयवियस), १०४२४५ वसुधारा-लघु, सं., गद्य, श्वे., (ॐ नमो रत्नत्रयाय ॐ), १०२३५५-१(+#$) वसधारा स्तोत्र, सं., गद्य, मूप., बौ., (संसारद्वयदैन्यस्य प्रतिह), १०१०२२(+), १०१०३७(+), १०१४२०(+), १०२०५६(+), १०२०६२(+), १०२०८०(+), १०२१६४(+$), १०२४२१(+), १०२५०३(+), १०२७७८(+), १०५४३९(+#$), १०५५७९(+), १०१३९७, १०१९६२-१, १०२४४३-१, १०५०२६, १०११३८(#) (२) वसुधारा स्तोत्र-विधि, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मप., बी., (पुत्रवती स्त्री पासे), १०१९६२-२, १०२४४३-२ वस्तुपाल मंत्री प्रबंध-गुरुभक्ति गर्भित, सं., पद्य, मूपू., (वस्तुपाल वरिआजराणि एकदा), १०१५४५-२(+#) वाग्भट्टालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., परि. ५, वि. १२वी, पद्य, मूपु., इतर, (श्रियं दिशतु वो देवः), १०२८६६(+), १०४२५०-१(+#), १०४२५९(5) (२) वाग्भटालंकार-टीका, आ. जिनवर्धनसूरि, सं., परि. ४, गद्य, मपू., इतर, (श्रीमान् श्रीआदिनाथः), १०४२५९($) (२) वाग्भटालंकार-टीका, ग. सिंहदेव, सं., गद्य, मपू., इतर, (श्रीवर्द्धमानसंतति), १०२८३०-१(+#$), १०४२५०-१(+#) विंशतिविंशिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., अधि. २०, ग्रं. ५००, पद्य, मूपू., (नमिऊण वीयरायं सव्व), १०३३९७(+) विचारगाथा संग्रह, प्रा.,सं., गा. ३, प+ग., मप., (बत्तीसं कवलाहारो), १०११७६(#$) विचारपंचाशिका, ग. विजयविमल, प्रा., गा. ५१, पद्य, मपू., (वीरपयकयं नमिउं देवा), १०१०७६(+#), १०५२९४($) (२) विचारपंचाशिका-स्वोपज्ञ अवचूरि, ग. विजयविमल, सं., गद्य, मप., (वीरपदकजं श्रीमहावीर), १०१०७६(+#), १०५२९४() विचारसार प्रकरण, ग. देवचंद्र, प्रा., अधि. २, गा. ३२०, वि. १७९६, पद्य, मूप., (नमिय जिणं गुणठाणे), १०३५७७(+) विचारसार प्रकरण, प्रा., गा. ५७६, पद्य, म्पू., (बारस गुण अरिहंत सिद), १०२४९५(+#$) (२) विचारसार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, स्पू., (वामेयं सुखदं नत्वा), १०२४९५(+#$) विदग्धमुखमंडन काव्य, आ. धर्मदाससूरि, अप.,पै.,प्रा.,माग.,सं., परि. ४, श्लो. २७६, ई. १२वी, पद्य, बौ., इतर, (सिद्धौषधानि भवदुःख), १०५१७१(+$) (२) विदग्धमुखमंडन काव्य-वृत्ति, सं., गद्य, मपू., बौ., इतर, (स्मृत्वा जिनेंद्रमपि), १०५१७१(+$) विधिमार्गप्रपा नाम सुविहितसमाचारी, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., ग्रं. ३५७४, वि. १३६३, पद्य, मूपू., (नमिय महावीरजिणं सम्म), १०३२८६-१(+), १०४२३५-१(+#$) (२) विधिमार्गप्रपा नाम सुविहितसमाचारी-स्वोपज्ञ टीका, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., वि. १३६३, गद्य, मूपू., (सम्मत्तमूलत्तेण गिहध), १०४२३५-१(+#$) विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., श्रु. २ अध्ययन २०, ग्रं. १२५०, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं), १०११२७(+#$), १०२४९४(+#$), १०४३९०(+), १०५२०८(+$), १०५२३१(+), १०५५७२(+), १०५६२५(+$), १०६२७९(+$) (२) विपाकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., श्रु. २, ग्रं. ९००, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीवर्द्धमान), १०३३१२-२(+) (२) विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ विपाकश्रुत किसउ), १०११२७(+#$), १०४३९०(+$), १०५२३१(+) विमानपंक्त्युपाख्यान कथा, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., श्लो. १७९, पद्य, दि., (पूज्यपादाकलंकार्य), प्रतहीन. (२) विमानपंक्त्युपाख्यान कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., गा. ९४, पद्य, मूप., दि., (श्रीजिनवरको करि प्रणाम तव), १०४७१५-२२, १०४७९२-२१, १०४८२१-७, १०४८५६-२२ विवाहपटल, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., श्लो. २४८, पद्य, मूप., इतर, (प्रणम्य परमानंद), १०२१३२-१(#$) (२) विवाहपटल-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (--), १०२१३२-१(#$) विवाहपटल, सं., श्लो. ९७, पद्य, मूपू., इतर, (धनाढ्य माघे सुभगा च), १०५०५१-१(+), १०५६८५-१ (२) विवाहपटल-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (माह रै मही परणावै तो), १०५६८५-१ विवाहपडल, सं., श्लो. १६०, पद्य, वै., इतर, (जंभाराति पुरोहिते), १०१४२६(+$) For Private and Personal Use Only Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) विवाहपडल-बालावबोध, मु. अमरसुंदर, मा.गु., गद्य, मपू., वै., इतर, (प्रणम्य शिरसा), १०१४२६(+$) (२) विवाहपडल-पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., गा. ६३, पद्य, मूपू., वै., इतर, (वाणी पद वांदी करी), १०२८५२(+#), १०६१६४(६) विवाहादि महर्त पद्धति, सं., पद्य, मपू., इतर, (श्रीमत्पार्श्वजिनं नत्वा), १०५९१२($) विविधतपविधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (अथ पिस्तालिस आगमनो), १०२०८४-२(+$) । विविध दोहा, गाथा, श्लोक, सवैया, कवित्त, हरियाली, गूढा आदि पद्य संग्रह, भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, श्वे., (गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवंति), १०१७३३-२(+), १०५९४३-५(+#) विविधविचार संग्रह, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मपू., (जईया होही पुच्छा), १०१४०९-२(+#$) विवेकमंजरी, श्राव. आसड कवि , प्रा., गा. १४४, वि. १२४८, पद्य, मूपू., (सिद्धिपुरसत्थवाह), १०३४०१ विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., उल्ला. १२, पद्य, मूपू., (शाश्वतानंदरूपाय तमस्तौमेक), १०२१२५ (+$), १०२१८०(+#), १०२८९५(+), १०३५१४(+$) विशेषणवती, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. ३१७, ग्रं. ३८०, पद्य, मपू., (उस्सेहंगुलमेगं हवइ), १०५८६७(+) विश्वलोचनकोश, मु. श्रीधरसेन, सं., वर्ग. ३४, श्लो. २३२५, पद्य, दि., इतर, (जयति भगवानास्तां धर्मः), १०४२१९(+$) विषमजाति प्रश्नोत्तरविवरण गाथा, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (भणलोहश्मभिप्पायं२ च पावयं३), १०३७२० (२) विषमजाति प्रश्नोत्तरविवरण गाथा-टीका, सं., गद्य, मप., (अमरसहागयं भणलोभं१ अमरसहा), १०३७२०(5) विषापहार स्तोत्र, जै.क. धनंजय कवि, सं., श्लो. ४०, ई. ७वी, पद्य, दि., (स्वात्मस्थितः सर्वगत), १०५००८-१(+#), १०६२९०-४(+#) (२) विषापहार स्तोत्र-अन्वय, सं., गद्य, दि., (पुराण पुरुष युगादिदेव), १०५००८-१(+#) विष्णु स्तुति संग्रह-गूढार्थ, सं., पद्य, वै., (पायाद्वः करुणा रणा), १०५०५५-१४(+) विसर्जन पाठ, सं., श्लो. ४, पद्य, दि., (ज्ञानतोज्ञानतो चापि), १०५९८९-१२(+-), १०५९८९-१९(+-) वीतराग अष्टक, आ. जैत्रसूरि, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (शीतं शिवं शिवपदस्य), १०३२३०-१०(+) वीतराग महास्तोत्र, मु. चंद्रकीर्ति, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (तत्त्वं कल्पद्रुमविभ), १०३२३०-३९(+) वीरचैत्य प्रशस्ति-चित्रकूटीय, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., श्लो. ७८, श. १०२८, पद्य, मूपू., (स्वयंभुवोक्षावलियाम आदृता), १०१४४८(+$) वीरवर्धमान चरित्र, आ. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., अधि. १९, श्लो. ३०३५, ग्रं. ३०३५, वि. १५वी, पद्य, दि., (जिनेशे विश्वनाथाय), १०६४५३(+$) (२) महावीरवर्धमान चरित्र-भाषावचनिका, पुहि., गद्य, दि., (जिनेशं विश्वनाथाय अनंतगुण), १०४९४६(+#) वीरस्तव प्रकीर्णक, प्रा., गा. ४३, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणं जयजीवबंधव), १०३५१३-१० वृत्तरत्नाकर, केदार भट्ट, सं., अ. ६, ग्रं. १८९, पद्य, वै., इतर, (सुखसंतानसिध्यर्थं नत्वा), १०६०४२(+$) (२) वृत्तरत्नाकर-सुगमा वृत्ति, उपा. समयसुंदर गणि, सं., वि. १६९४, गद्य, मूपू., वै., इतर, (पव्वेको द्विजोत्तमः अभूत), १०६०४२(+$) वृष्णिदशासूत्र, प्रा., अध्य. १२, गद्य, मूपू., (जइ णं भंते० पंचमस्स), १०२९४३-५(+#), १०४२३२-५(+), १०५११३-५(+#) (२) वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जौ हे पूज्य० पांचमान), १०२९४३-५(+#), १०५११३-५(+#) वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., विला. ९, श्लो. ३२६, वि. १७२६, पद्य, मूपू., इतर, (सरस्वतीं हृदि), १०५६६५-१(+#), १०१२८०६), १०४११०(६) (२) वैद्यवल्लभ-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (श्रीसरस्वती देवता), १०५६६५-१(+#), १०१२८०($) वैराग्यवर्धक श्लोकपंचक, सं., श्लो. ५, पद्य, मपू., (हर्षे शोकभयं जये रिपुभयं), १०५१७८-२(+), १०५१८१-२(+) (२) वैराग्यवर्धक श्लोकपंचक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (हर्षने विषे सोकनो भय), १०५१७८-२(+), १०५१८१-२(+) वैराग्यशतक, प्रा., गा. १०४, पद्य, मूपू., (संसारंमि असारे नत्थि सुह), १०११३६(+$), १०१९१९(+), १०५२७२-१(+#), १०५६९९(+), १०१०९७-२ (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसार असारमाहि नथी), १०११३६(+$),१०१९१९(+), १०५२७२-१(+#), १०१०९७-२ वैराग्य हितशिक्षा, पुहिं.,प्रा.,सं., गद्य, मप., (--), प्रतहीन. For Private and Personal Use Only Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ (२) वैराग्य हितशिक्षा-भाषाटीका, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिम रत्नागर जे समुद्र ते), १०५९६१-३ व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., उ. १०, ग्रं. ३७३, गद्य, मूपू., (जे भिक्खू मासिय), १०१३७०(+), १०१८२८(+), १०३६७०(+), १०५२३२,१०३२९१(#) (२) व्यवहारसूत्र-भाष्य#, प्रा., गा. ६४००, पद्य, मप्., (ववहारो ववहारी ववहरिय), १०३२९१(#) (२) व्यवहारसूत्र-टीका#, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं. ३४६२५, गद्य, मप., (प्रणमतनेमिजिनेश्वरमखिल), १०३२९१(#) (२) व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे जे कोइ भि० साधु), १०१३७०(+) (२) व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), १०१८२८(+) (२) व्यवहारसूत्र-चुलिका सोलह स्वप्न विचार, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० पाडलीपु), १०२०३७-३(+#$) व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. १००, पद्य, मूपू., (जिनेंद्रपूजा गुरू), १०१११२(+), १०१६२०(+#$) (२) व्याख्यानश्लोक संग्रह-बालावबोध, मा.ग., गद्य, मप., (श्रीअरिहंत भगवंत असरण सरण), १०१११२(+), १०१६२०(+#$) व्याख्यान संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., प+ग., मूपू., (देवपूजा दया दान), १०५७१४(+#), १०५८१५(+$), १०६०४९(+), १०१५६७-३, १०५६६२(2) (२) व्याख्यान संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मप., (अरिहंत भगवंत गुरु), १०५६६२(#) (२) व्याख्यान संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीअरिहंतनी पूजा), १०५८१५(+$) शतक नव्य कर्मग्रंथ-५, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १००, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं धुवबंधोदय), १०१११८-५(+$), १०१३५२-५(+), १०१८०८-१(+), १०१८१३-५(+#), १०१८७४-१(+), १०२०७१(+$), १०२१५२(+$), १०२९८३-२(+#s), १०४३९८-२(+$), १०११४५-५, १०१७८७-५, १०२४९६-५(#$), १०२५६३-५(#$), १०५१२२(#$) । (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-५-स्वोपज्ञ टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. ४३४०, गद्य, म्पू., (यो विश्वविश्वभविनां भवबीज), १०१८७४-१(+), १०२१५२(+$), १०२५६३-५(#S) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-५-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., ग्रं. ३१००, वि. १४५९, गद्य, मूपू., (घातिन्यस्त्रिधा सर्व), १०२४६९-४(#) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-५-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू, (नत्वा जिनं ध्रुवबंधस), १०१७८७-५, १०२४९६-५(#$) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-५-बालावबोध, मा.गु., गद्य, पू., (वीतराग नमस्करीनइ), १०११४५-५, १०५१२२(#$) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-५-टबार्थ, ग. देवचंद्र, मा.गु., वि. १८वी, गद्य, म्पू., (प्रणम्य वीरं सद्वारं), १०४३९८-२(+$) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-५-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (परमात्मानइं भव्य), १०१३५२-५(+), १०२०७१(+$), १०२९८३-२(+#$) शतपंचाशिका प्रकरण, प्रा., गा. १५९, पद्य, मप., (चउवीसं तित्थयरा बारस), १०२८२१(+$) शत्रुजयतीर्थं गणणं, सं., गद्य, मपू., (श्रीआदिसर परमेष्टी नमः), १०२८१४-४ शत्रुजयतीर्थ कल्प, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., गा. ३९, पद्य, मूपू., (सुअधम्मकित्तिअंतं), १०१०१७(+$), १०३२३०-२(+) (२) शत्रुजयतीर्थ कल्प-अर्थ, मा.ग., गद्य, म्पू., (--),१०१०१७(+$) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, मपू., (श्रीआदिनाथ जगन्नाथ), १०३२३०-१२(+), १०५४८९-३(-2), १०५८००-१०) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, सं., श्लो. ३, पद्य, मपू., (शत्रुजयाद्रिरयमाद्य), १०३२३०-३(+) शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., स. १४, ग्रं. १००००, पद्य, मूपू., (ॐ नमो विश्वनाथाय), १०१३५५(+), १०२६००(+$), १०२६०१(+5), १०४२५७(+$) (२) शत्रुजय माहात्म्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (प्रणम्य श्रीयुगादीशं), १०२६००(+), १०२६०१(+$) शांतसुधारस, उपा. विनयविजय, सं., भा. १६, श्लो. २३४, वि. १७२३, पद्य, मपू., (नीरंध्रे भवकानने परिगलत), १०५४०४(+#), १०६४२०() शांतिक विधि, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम विशाल जिनभुवन), १०५३४९(+) शांतिजिन चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि, सं., प्र.६, वि. १५३५, गद्य, मप., (प्रणिपत्यार्हतः सर्वान्), १०२०१९(+$), १०५४३८(+#), १०५४६५(+$) शांतिजिन स्तव, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ८, पद्य, मपू., (देवाधिदेवाय जगत), १०३२३०-१५(+) For Private and Personal Use Only Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ शांतिजिन स्तवन, ग. सूरचंद्र, सं., श्लो. ४१, पद्य, मप., (यद्वक्त्राभ्रमविभ्रमेण), १०१२६१(+) शांतिजिन स्तति, सं., श्लो. ५, पद्य, मप., (किं कल्पद्रमसेवया), १०६४१८-४८(#) शांतिजिन स्तति, सं., श्लो. ४, पद्य, मप., (देवदेवाधिपैः सर्वतो). १०६४१८-२६(#) शांतिजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (शांतये शांतिकामाय), १०६४१८-४५(१) शांतिजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, दि., (सकल गुण निधानं सर्वतत्वे), १०६०१२-३५ शांतिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., प्र. ६, श्लो. ४८९०, ग्रं. ५०००, वि. १३०७, पद्य, मूपू., (श्रेयोरत्नकरोद्भूतामह), १०५५५१(+) शांतिनाथ चरित्र, आ. मुनिदेवसूरि, सं., ग्रं. ४८५५, वि. १३२२, पद्य, मपू., (वेश्मरत्न निशारत्न), १०३७७२(+#) शांतिनाथ पुराण, आ. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., अधि. १५, पद्य, दि., (नमो शांति जगशांतिकृत),१०४८०० शांतिपाठ, प्रा.,सं., श्लो. २०, प+ग., दि., (शांतिजिनं शशि निर्मल), १०५९८९-११(+-), १०५९८९-१८(+-) शांतिस्नात्र विधि, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (अथ प्रतिष्ठायां वा), १०६३७० शाश्वतचैत्य स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (सिरिउसहवद्धमाणं), १०३२३०-३१(+), १०१८३७ (२) शाश्वतचैत्य स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मप., (ज्योतिष्कव्यंतरेष्वस), १०१८३७($) शाश्वतजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (अष्टौकोटिरलंसुलक्षनिवहाः), १०२८४६-६(+) शास्त्रवार्ता समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., श्लो. ७०१, ग्रं. ७००, पद्य, मूपू., (प्रणम्य परमात्मानं), १०३२९९(+) (२) शास्त्रवार्ता समुच्चय-दिक्प्रदावृत्ति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., ग्रं. २२५०, गद्य, मूप., (स्वपरोपकाराय शास्त्र), १०३२९९(+) शिवचक्र विचार, सं., श्लो. ७, पद्य, वै., इतर, (वक्ष्ये शिवचक्र मह), १०३८४४-२(+#) शील कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (सोहग्ग महानिहिणो), १०६३३१(६) (२) शील कुलक-व्याख्या+कथा, सं., गद्य, मूपू., (धर्मस्य द्वितीयभेदं), १०६३३१(६) शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसरि, प्रा., कथा. ४३, गा. ११५, वि. १०वी, पद्य, मूप., (आबालबंभयारिं नेमि), १०२७६४(+#), १०३२८७(+), १०४०४१-२(+), १०५१८६(+), १०५८९८(६) (२) शीलोपदेशमाला-वृत्ति, आ. विद्यातिलकसरि, सं., ग्रं. ६५००, वि. १३९४, गद्य, मप., (यस्योपदेशमाय दशनां), १०३२८७(+), १०५८९८(६) (२) शीलोपदेशमाला-बालावबोध कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., ग्रं. ६२५०, वि. १५५१, गद्य, मूपू., (श्रीवामेयममेय), १०२७६४(+#), १०५१८६(+) (२) शीलोपदेशमाला-कथा*, मा.गु., गद्य, मपू., (लाख जोअण प्रमाण जंब), १०३२८७(+) श्रमणसूत्र, प्रा., प+ग., म्पू., (करेमि भंते सामाइअं), १०१४३६(+#$) श्रवणद्वादशी कथा, मु. चंद्रभूषण शिष्य, सं., श्लो. ८३, पद्य, दि., (प्रणम्य परमब्रह्म केवल), १०२९५१-३ श्रवणद्वादशीमहाव्रत कथा, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., श्लो. ४१, पद्य, दि., (पूज्यपादप्रभाचंद्रा कलंक), प्रतहीन. (२) श्रवणद्वादशीमहाव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहि., गा. ५८, पद्य, मप., दि., (पद अरिहंत तणे नमुं विद्या), १०४७१५-१७, १०४७९२-१६, १०४८२१-२,१०४८५६-१७ श्राद्धगुण विवरण, उपा. जिनमंडन, सं., अ. ३५, वि. १४९८, गद्य, मपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं केवल), १०५२००(+$) श्राद्धजीतकल्प, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. १४२, वि. १४वी, पद्य, मपू., (कयपवयणप्पणामो जीयगयं), १०१२५०(+) (२) श्राद्धजीतकल्प-अवचूरि, सं., गद्य, मपू., (कृतः प्रकर्षेण परसमय), १०१२५०(+) श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४१, ग्रं. ३९०, पद्य, मपू., (वीरं नमिऊण तिलोयभाणु), १०५२५३(+#) (२) श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, मूप., (श्रीवीरं नत्वा), १०५२५३(+#) श्राद्धलघुजीतकल्प , आ. तिलकाचार्य, प्रा., गा. २०, पद्य, मप., (सिरिवीरजिणं नमिउं), १०३७५७-२(+), १०४५०१-८(+#$) (२) श्राद्धलघुजीतकल्प-स्वोपज्ञटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, मूप., (प्रणिपत्य जिनं वीरं), १०३७५७-३(+) For Private and Personal Use Only Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ (२) श्राद्धलघुजीतकल्प-बालावबोध, पुहिं., गद्य, मूपू., (श्रीकहिये लक्ष्मी ज्ञान), १०४५०१-८(+#$) श्राद्धविधि प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., प्रका. ६, पद्य, मूपू., (सिरिवीरजिणं पणमिय), १०२५५०(+) (२) श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञविधिकौमुदीवृत्ति, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., प्रका. ६, ग्रं. ६७६१, वि. १५०६, गद्य, मूपू., (अर्हत्सिद्धगणींद्रवाचक), १०२५५०(+) श्रावक ११ प्रतिमा गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मप., (दंसण वय सामाई पोसह), १०१३४२-१ श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., अधि. ५, ग्रं. १६६, वि. १६६७, गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञं प्रणिपत), १०५४४३-१(+) श्रावक कर्तव्यविचार गाथासंग्रह, प्रा., गा. ३, पद्य, दि., (गुणवयतवसम पडिमा दाणं जल), १०४२३७-१(+) श्रावकाचार, आ. उमास्वामि, सं., श्लो. ४७३, पद्य, दि., (अनेकांतमयं यस्य मतं), १०३३८१(+) श्रावकाचार, आ. वसुनंदि सैद्धांतिक, प्रा., गा. ५४६, ग्रं. ६५०, वि. १२वी, पद्य, दि., (सुरवइ किरीड मणि किरण), १०४२२२(+) श्रीचंद्रकेवलि चरित्र, मु. सिद्धर्षि, सं., अधि. ४, श्लो. ९६६, वि. ५९८, पद्य, मपू., (ॐ ध्यात्वा श्रीजिन), १०१६६३(+) श्रीचंद्र चरित्र, ग. शीलसिंह गणि, सं., अ. ४, वि. १४९४, पद्य, मूपू., (--), १०११४७(+$) श्रीपाल चरित्र, आ. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., श्लो. १४७, पद्य, दि., (नत्वा श्रीमज्जिनाधीश), प्रतहीन. (२) श्रीपाल चरित्र-वचनिका, पुहिं., पद्य, दि., (तीर्थंकर चौवीस जिन धरमराज), १०४३२३(+) श्रृतबोध, क. कालिदास, सं., श्लो. ४१, पद्य, वै., इतर, (छंदसां लक्षणं येन), १०५७०६(+#) (२) श्रुतबोध-मनोरमा टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., वै., इतर, (श्रीमत्सारस्वतं धाम नत्वा), १०५७०६(+#) श्लोक संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, वै., (अज्ञानतिमिरांधानां), १०१८२६-३(+#) श्लोक संग्रह, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (कलकोमलपत्रयुता श्यामलवर्ण), १०१४३३-१(+), १०२६६६-२(+#) श्लोक संग्रह, सं., श्लो. १००, पद्य, जै., वै., (जिनेंद्र पूजा गुरु), १०५३७१-८(+), १०१६७९ (२) श्लोक संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, जै., वै., (अल्त भगवंत असरण), १०१६७९ श्लोकसंग्रह-जैनधार्मिक, प्रा.,सं., गा. २०, पद्य, श्वे., (एगग्गचित्ता जिणसासणं), १०२५२१-१(+) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., श्लो. ५०, पद्य, श्वे., (देहे निर्ममता गुरौ), १०१०८६-३(+), १०१४९९-२(+#), १०१६३१-२(+#), १०१८४२-२, १०११२६(s), १०५०२४-१०($) (२) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (एकाग्रचित्ते जिन), १०११२६($) (२) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (सकल कहतां समस्त कुशल),१०१०८६-३(+) श्लोक संग्रह-मांगलिक, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (ॐकार बिंदु संयुक्तं), १०२८७८-३(+) षट्पंचाशिका, आ. पृथुयशा, सं., अ.७, श्लो. ५६, पद्य, वै., इतर, (प्रणिपत्य रविं), १००९९६-१(+), १०३५०७-३(+), १०३८४४-३(+#$), १०६०२४(+#) (२) षट्पंचाशिका-प्रश्नप्रकासिका भाषाटीका, वा. जीवणदास, मा.गु., गद्य, मूपू., वै., इतर, (गुर गणेश गवरी गिरा वलि), १०६०२४(+#$) षट्पुरुष चरित्र, ग. क्षेमंकर, सं., गद्य, मूपू., (श्रीअर्हतश्चतु), १०५३१४(+) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ८६, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं जियमग्गण), १०१११८-४(+), १०१३५२-४(+), १०१८१३-४(+#), १०२१९४(+), १०२९८३-१(+#$), १०४३९८-१(+), १०११४५-४, १०१७८७-४, १०२८००-२, १०१९१३-४(#$), १०२४९६-४(#), १०२५६३-४(#), १०२१४८-४(६), १०५२४१-४(६) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. २८००, गद्य, मप., (यद्भाषितार्थलवमाप्य), १०२५६३-४(#) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसरि, सं., ग्रं. ३१००, वि. १४५९, गद्य, मप., (नव्यषडशीतिकस्य किंचि), १०२१९४(+), १०२४६९-३(#) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४-अवचूरि, सं., गद्य, मपू., (नमनि० तत्र जीवंति), १०१७८७-४ For Private and Personal Use Only Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५२८ (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ - ४- अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रीजिनं नत्वा जीवस), १०२४९६-४(#) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-४- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीतरागदेव नमस्कार), १०११४५-४, १०१९१३ - ४(#$) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ -४-टबार्थ, मा.गु, गद्य, मूपू (हवई चथा कर्मग्रंथ), १०२३५२-४(+), १०२९८३-१ (+४७), १०४३९८-१(+) षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अधि. ६, श्लो. ८७, पद्य, मूपू., वै., बौ., अन्य, (सद्दर्शनं जिनं नत्वा वीरं), १०२४८३(+$), १०४३९५ (+$), १०४६२१-१ (+), १०४२१५ (२) षड्दर्शन समुच्चय-टीका, आ. मणिभद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., वै., बौ., अन्य, (सज्ज्ञानदर्पणतले विमलेत्र), १०२४८३(+$), १०४३९५ (+$) (२) षड्दर्शन समुच्चय-तर्करहस्यदीपिका टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., ग्रं. ५७७३, ई. १५वी, गद्य, मूपू., वै., बी., अन्य, (जयति विजितरागः केवला), १०४२१५ (२) षड्दर्शन समुच्चय-लघुवृत्ति, आ. सोमतिलकसूरि, सं. ग्रं. १२५२, वि. १३९२, गद्य, मूपू... षोडशकारण पूजा, प्रा., सं., प+ग., दि., (इंद्रपदं प्राप्य), १०६०१२-११ षोडशकारण पूजा, सं., गद्य, दि., (उदकचंदनतंदूल० षोडशकारण). १०५९८९ १६(+) १०४६२१-२ (+), १०२७१३($) षष्ठिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., गा. १६१, पद्य, मूपू., (अरिहं देवो सुगुरू), १०२१०३(+$), १०२१८५ (+), १०२७००(+) (२) षष्टिशतक प्रकरण-अवचूरि, मा.गु.से., गद्य, मूपू (धन्यानां कृतार्थानां १०२७००(+) , (२) षष्टिशतक प्रकरण-वालाववोध वा मेस्सुंदर गणि, मा.गु., गद्य, मूपू., (गुरु अनइ सुधउ वीतरागनु), १०२१०३ (+) " षोडशकारण पूजा, जै.क. टेकचंद, पुहिं., सं., प+ग., दि., (--), १०५९७५-१($) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .वै., बी., अन्य (सज्ज्ञानदर्पणतले), षोडशकारणव्रत कथा, मु. ललितकीर्त्ति, सं., श्लो. ६५, पद्य, दि., (परमेष्ठि नमस्यामि), १०६४३७-३(+#) षोडशकारणव्रत कथा, आ. श्रुतसागरसूरि सं . ६८, पद्य, दि., (अथ प्रणम्य तीर्थेश) प्रतहीन. ', (२) षोडशकारणव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., गा. ६९, पद्य, मूपू., दि., (तीर्थंकरके चरण जुग वंदो), १०४७१५-५, १०४७९२-५, १०४८५६-५ संघपट्टक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., श्लो. ४०, पद्य, मूपू., (वह्निज्वालावलीढं कुपथ), १०२३६२ (२) संघपट्टक-टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (अग्नि तेहनी ज्वालाई), १०२३६२ " १०४५०२-३ יי संज्ञा विचार, सं., गद्य, मूपू (संज्ञास्यास्तीति), १०१८९२-८(*) " "" संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि प्रा. गा. १४. वि. १५वी, पद्य, मूपू (संतिकरं संतिजिण), १०६३५८-१(+), १०५०२१-२(१) संथारापोरसीसूत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., ( निसीहि निसीहि निसीहि), १०२५०९-३ (+#), १०२७५३-१ (+$), १०५७५६-२(+#), १०६४१८-६(४) (२) संथारापोरसीसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार विना बीजो), १०५७५६ - २(+#) संदेहदोलावली प्रकरण, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा. गा. १५०, पद्य, मूपु. ( पडिबिंचिय पणय जयं), १०४२३४(+) " (२) संदेहदोलावली प्रकरण- बृहद्वृत्ति, ग. प्रबोधचंद्र, सं. ग्रं. ४७५०, वि. १३२१, गद्य म्पू (श्रीवर्द्धमानप्रभु), १०४२३४(*) संबुद्धमंत्रि कथानक, से, श्लो. २६, पद्य, मूपू (पुरेत्र पाटलीपुत्रे चंद्र), १०४६४०-२ (+) "" संबोधपंचाशिका, आ. गौतमाचार्य, अप., गा. ५०, पद्य, दि., (णमिऊण अरहचरणं), प्रतहीन.. (२) संबोधपंचाशिका-पद्यानुवाद, जैक द्यानतराय, मा.गु., गा. ५२, वि. १७५८, पद्य, दि., (ॐकार मझारि पंच परमपद), For Private and Personal Use Only Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ ५२९ संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १२५, पद्य, मूपू., (नमिऊण तिलोअगुरु), १०१०८४(+), १०१५५७-२(+), १०१९३२-१(+#), १०२८७६(+#$), १०४०४१-६(+), १०५५७८(+), १०५७१२(+), १०१३८७, १०१०१९(#s), १०१७२२-१(#), १०२९१०(#s), १०२९४८(#$), १०१९१८-१(६) (२) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूप., (नमस्कार करीनइ तिन), १०१०८४(+), १०१९३२-१(+#), १०२८७६(+#$), १०५५७८(+), १०५७१२(+), १०१३८७, १०२९१०(#$), १०२९४८(#$), १०१९१८-१(६) संवादसुंदर, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रीसोमसुंदरगुरुं प्रणम्य), १०४६३९(+#) संसक्तनियुक्ति, प्रा., गा. ६३, पद्य, मूपू., (उसभाइवीरचरिमे सुरासुर), १०३५१३-१२ संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. १२२, पद्य, मूपू., (काऊण नमुक्कारं जिणवर), १०३२८०-५, १०३५१३-१, १०२४७५-१(#$) (२) संस्तारक प्रकीर्णक-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, मूपू., (वसंतपुरे गायन पुष्पश), १०२९७६(#$) सज्जनचित्तवल्लभ काव्य, आ. मल्लिषेण, सं., श्लो. २५, पद्य, दि., (नत्वा वीरजिन), १०११७९(+), १०५१२३(+#) (२) सज्जनचित्तवल्लभ काव्य-टबार्थ, मा.गु., गद्य, दि., (त्रण जगतना गुरु एहवा), १०११७९(+), १०५१२३(+#) सद्भाषितावली, आ. सकलकीर्ति, सं., पद्य, दि., (जिनाधीशं नमस्कृत्य), १०५८२१(+$) सप्ततिका कर्मग्रंथ-६, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., गा. ९१, पद्य, मूपू., (सिद्धपएहिं महत्थं), १०१८०८-२(+), १०१८१३-६(+#), १०११४५-६($) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-६-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), १०११४५-६($) सप्ततिका कर्मग्रंथ-६, प्रा., गा. ९१, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (सिद्धपएहिं महत्थं), १०१३५२-६(+), १०१८७४-२(+), १०२८८९(+$),१०१७८७-६, १०२५६३-६(#$), १०३५०८(#$) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-६-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं. ३८८०, गद्य, मूप., (अशेषकर्मांशतमःसमूहक्षयाय), १०१८७४-२(+), १०२५६३-६(#s) (३) सप्ततिका कर्मग्रंथ-६-टीका का बालावबोध, ग. कुशलभुवन, मा.गु., वि. १५९७, गद्य, मूपू., (--), १०३५०८(#S) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-६-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., वि. १४५९, गद्य, मपू., (सिद्धान्यविचलानि पदानि), १०२४६९-५(#$) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-६-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (सिद्ध० सिद्धानि चालयितुम), १०१७८७-६ (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-६-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिद्ध निश्चल पद छइ), १०१३५२-६(+) सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., गा. ३६०, वि. १३८७, पद्य, मूप., (सिरिरिसहाइ जिणिंदे), १०६४३६ (२) सप्ततिशतस्थान प्रकरण-टीका, पंन्या. देवविजय, सं., वि. १६७०, गद्य, पू., (स्वरूपान्नमस्कृत्य पंच), १०६४३६ सप्तमपरमस्थानविधान कथानक, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., श्लो. १६३, पद्य, दि., (विद्यानंद्यकलंकार्यं), प्रतहीन. (२) सप्तमपरमस्थानविधान कथानक-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., गा. ९४, पद्य, मूपू., दि., (श्रीजिनवर प्रणमुं सुधभाव), १०४८५६-२,१०६०२३-१० सप्तव्यसन कथासमुच्चय, मु. सोमकीर्ति, सं., स. ७, श्लो. ६७७, ग्रं. २०६७, वि. १५२६, पद्य, दि., (प्रणम्य श्रीजिनान्), १०६३०४(+#), १०४४४५ (२) सप्तव्यसन कथासमुच्चय-पद्यानुवाद, श्राव. भाणमल्ल सिंघ, पुहि., पद्य, दि., (श्रीअरहंत प्रणाम करि गुरु), १०६०१०(+$) सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., स्मर. ७, पद्य, मप., (णमो अरिहंताणं० हवइ), १०११२४-४(+s), १०१८३५(+), १०१४८७ (२) सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (नत्वा श्रीपार्श्वजिन), १०१८३५(+) (२) सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.ग., गद्य, मप., (अजितनाथ जीता छइ सर्व),१०१४८७ सप्तस्वर विचार, प्रा.,सं., गद्य, मपू., (सत्त सरा प० तं०सज्जे रिसह), १०१८९२-९(+) समयप्रमाण गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मपू., (दन्नियसयाई नियमा), १०३२३०-४(+) For Private and Personal Use Only Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५३० www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ समयसार, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा. अधि. ९, पद्य, दि. (वंदितु सव्वसिद्धे), प्रतहीन. " (२) समयसार आत्मख्याति टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं. अधि. ९, श्लो. २७८, प+ग. दि., ( नमः समयसाराय स्वानुभूत्या), " प्रतहीन. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " (३) समयसार आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं. अधि. १२, श्लो. २७८, पच, दि., (नमः समयसाराय), प्रतहीन. (४) समयसार आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका का विवरण, जै.क. बनारसीदास, पु,ि अधि. १३, गा. ७२७, ग्रं. १७०७, वि. १६९३, पद्य, दि., (करम भरम जग तिमिर हरन), १०१४३२ (+), १०१९९२ (+#$), १०२१४७(+), १०५९७२(+६), १०६२१८(+३), १०६३४५ (+), १०४१६५(३) (५) समयसार-टबार्थ, पं. रूपचंद, मा.गु., गद्य, मूपू., दि., (जगमां जे आठ कर्मरूप), १०५९७२(+$) (५) समयसार नाटक पद्यानुवाद के चयनित पद्य, पुहिं., पद्य, दि., (शोभित निज अनुभूति), १०४१६६ समवसरणविस्तार गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (रिसहो बारस जोयण), १०५०२४-५ (२) समवसरणविस्तार गाथा - बालावबोध, रा., गद्य, म्पू.. (ऋषभदेव भगवानरो बारे), १०५०२४-५ समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. अध्य. १०३. सू. १५९, ग्रं. १६६७, गद्य, मूपू., (सुयं मे० इह खलु समणे), १०२५२९(+४), १०२७६५ (+४), १०५०३०(+), १०५२३८(+०३) १०५७४८(०) १०३४८५ १०५८४४१६) (२) समवायांगसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि, सं., ग्रं. ३५७५, वि. ११२०, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य समवाय), १०१५३४(+), 7 १०३२८२ (००६) (२) समवायांगसूत्र- टवार्थ वा मेघराजजी मा.गु. ग्रं. ४४७४, वि. १७३ गद्य, भूपू (देवदेवं जिनं नत्वा), १०२७६५ (+४), " १०५७४८(००) १०५८४४) יי " (२) समवायांगसूत्र-टबार्ध, मा.गु., गद्य, मूपू. (पांचमो गणधर सुधर्मास्वामि), १०५०३०(५) (२) समवायांगसूत्र-हिस्सा समवाय ३० मोहनीयस्थानक, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. ३४, पद्य, मूपू., (तीसं मोहणीयठाणा प०), प्रतहीन. (३) समवायांगसूत्र-हिस्सा समवाय ३० मोहनीयस्थानक की ३२ बोल, संबद्ध, मा.गु. गद्य, म्पू, (प्रथम बोल थीती तीस मोहती), १०५८०५-११००१ समाधिशतक, आ. देवनंदी, सं., श्लो. १०६ ई. ५वी, पद्य, दि. (येनात्माचुध्यतात्मैव), १०२६०३ (५) (२) समाधिशतक-बालावबोध, मु. पर्वतधर्मार्थी, मा.गु., गद्य, दि., (जिनान् प्रणम्याखिलकर), १०२६०३ (+) सम्मेतशिखर विधान पूजा, क. जवाहरलाल दास, पुहिं. सं., हिं. पूजा २०, वि. १९२१, पद्य, दि. (सिद्धक्षेत्र तीरथ परम है), ', , १०५९८९-७२(+), १०४९३२, १०४९३३ सम्यक्त्व के ९ भेद, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू. (द्रव्य समकित भाव), १०१४६१-२ " " सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि सं. ग्रं. १६७५ वि. १४५७, प+ग. मूपू. (श्रीवर्द्धमानमानम्य), १०१८९९(+३) सम्यक्त्वकौमुदी, ग. सोमदेवसूरी, सं., स. ७. ग्रं. ३४०८, वि. १५७३, पद्य, म्पू, (--), १०५८६४(०३) सम्यक्त्वपंचविंशतिका, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (जह सम्मत्तसरूवं), १०२१७२ (+४७), १०२९०९(+), १०२९९१-१(०) (२) सम्यक्त्वपंचविंशतिका अवचूरि, सं., गद्य, मूपु. ( यथा येन औपशमिकत्वादि), १०२१७२ + ३) १०२९९१-१(a) (२) सम्यक्त्वपंचविंशतिका - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., ( मनोवांछितदातारं), १०२९०९(+) (२) सम्यक्त्वपंचविंशतिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जह कहतां जे उपशमादिक), १०२९०९(+) सम्यक्त्वपरीक्षा, सं., पद्य, वे (-), प्रतहीन. "" For Private and Personal Use Only (२) सम्यक्त्वपरीक्षा-वचनिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रीजीणराज वीतरागदेव), १०४१६३ सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि प्रा. गा. ७०, ग्रं. ७७११, पद्य, मूपू. (दंसणसुद्धिपवासं), १०१०६५ (+), १०२१९३(+०३), , १०३५१८(१) Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ ५३१ (२) सम्यक्त्वसप्ततिका-सम्यक्त्वकौमुदीटीका, आ. संघतिलकसरि, सं., अधि. १२, ग्रं. ७७११, वि. १४२२, प+ग., मप., (सच्चामीकरबंधुरोद्धर), १०३५१८(#$) (२) सम्यक्त्वसप्ततिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सम्यक निर्मलाईनइ), १०१०६५(+), १०२१९३(+#$) सरस्वतीदेवी जयमाला पूजा, मु. ब्रह्मजिनदास, मा.गु.,सं., गा. २५, पद्य, दि., (सति श्रुतस्कंधवने), १०६०५८-६ सरस्वतीदेवी बीजमंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ऐं क्लीं ह्रौं वद वद), १०५२९३-२(+) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., श्लो. १३, वि. ९वी, पद्य, मूपू., (करमरालविहंगमवाहना), १०१०३६(+#), १०२३५५-१८(+#), १०२८७८-१(+), १०६३१६-१ सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. हेमाचार्य, सं., श्लो. ११, वि. १५२७, पद्य, मूपू., (कमलभूतनया मुखपंकजे), १०४९८६(+) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, म्पू., (सर्वारिष्टप्रणाशाय), १०६४१८-५२(#) सरस्वतीदेवी स्तोत्र-मंत्रगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (ॐ नमस्त्रिदशवंदित), १०१४९४-६(#) सरस्वती पूजा, सं., श्लो. १०, पद्य, दि., (जनममृत्युजराक्षयकारण), १०६०१२-८ सरस्वतीसूत्र, सं., पद्य, वै., इतर, (--), प्रतहीन. (२) सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, वै., इतर, (प्रणम्य परमात्मान), १०२११८(+#), १०४१०५(+), १०४४१७(+#s), १०३८५०(#S), १०५८६१(६) (३) सारस्वत व्याकरण-क्षेमेंद्रीवृत्ति, आ. क्षेमेंद्रसूरि, सं., गद्य, मपू., वै., इतर, (तदर्थतत्त्वाभिनिविष), १०२१३७(#$) (३) सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चंद्रकीर्तिसूरि, सं., वृ. ३, ग्रं. ७५००, वि. १६२३, गद्य, मूपू., वै., इतर, (नमोस्तु सर्वकल्याण), १०२११८(+#$), १०४१४८(+$), १०४३७८(+), १०४४१२(+), १०४४१७(+#$), १०६२६९(+$), १०२४९२(#$), १०३८५०(#$), १०४१४३(६), १०५६०५(६), १०५८६१(६) (३) सारस्वत व्याकरण-टबार्थ, मा.गु.,सं., गद्य, पू., वै., इतर, (परमात्मनि नमस्कृते), १०४१०५(+$) (३) सारस्वत व्याकरण-हिस्सा कृत्प्रक्रिया, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, वै., इतर, (निजजनैर्विधिना निखिलापदो), १०२१०९(+#$) (४) सारस्वत व्याकरण-हिस्सा कृत्प्रक्रिया की अवचूरि, ग. वानर्षि, सं., वि. १७वी, गद्य, मूपू., वै., इतर, (--), १०२१०९(+#$) (३) सारस्वत व्याकरण-धातुपाठ, संबद्ध, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६६३, पद्य, मूपू., इतर, (श्रीसर्वज्ञं जिनं नत्वा), १०३८४५(+#), १०२३३६, १०१७६९(#$) (४) सारस्वत व्याकरण-धातुपाठ की स्वोपज्ञ धातुतरंगिणी टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., इतर, (नमस्कृत्य महोनंत), १०३८४५(+#) (२) सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सिद्धांतचंद्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, वै., इतर, (नमस्कृत्य महेशानं मतं), १०११८६(+#$), १०३८८०(+#$) (३) सरस्वतीसूत्र-प्रक्रिया सिद्धांतचंद्रिका की सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., प्रक. १९, वि. १७९९, गद्य, मूपू., वै., इतर, (पुराणपुरुषं ध्यात्वा), १०११८६(+#$), १०३८८०(+#$) सरस्वती स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, वै., (ॐ नमस्ते सारदा देवी वीणा), १०६१६२-६ सर्वज्ञसिद्धि प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, सं., श्लो. ६८, पद्य, मूपू., (लक्ष्मीभृद् वीतरागः), १०४६२१-३(+) सर्वतीर्थनिर्वाणक्षेत्र पूजन, पुहिं.,सं., अध्य.८, प+ग., दि., (--), १०४६४४(+$) सर्वरोगशमनी रसविद्या, सं., पद्य, मप., इतर, (देहस्य शुद्धिं कुरुते च), १०५२४५-३(+$) साधारणजिन श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मप., (तव पादौ मम हृदये मम हृदय), १०५६३०-१७(+) साधारणजिन स्तव, श्राव. कुमारपाल महाराजा, सं., श्लो. ३३, वि. १२वी, पद्य, मपू., (नम्राखिलाखंडलमौलि), १०३२३०-१३(+) साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मप., (देवाः प्रभो यं),१०२८१८(+), १०५८००-५(-) (२) साधारणजिन स्तव-अवचूरि, ग. विजयविमल, सं., गद्य, मपू., (देवाः प्रभोयमित्यादि), १०२८१८(+) For Private and Personal Use Only Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५३२ www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ יי साधारणजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (सः श्रीयं श्रीमदर्हतः), १०३२३०-२४(+) साधारणजिन स्तव, आ. सोमप्रभसूरि, सं. लो. १०, पद्य, मृपू. (व्यधित साधितसाधूतपाः), १०३२३०-११(+) साधारणजिन स्तव, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू. ( नमो ते छिन्नसंसार), १०३२३०-२३(+) " साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू. (श्रीतीर्थराज पदपद्यसेवा), १०१४९७-२(+०) १०६४१८-३७(१) (२) साधारणजिन स्तुति- अवचूरि, सं. गद्य, मूपू., (श्रीतीर्थाधिपतिर्वी), १०१४९७-२ (40) साधारणजिन स्तुति, गु., सं., हिं., श्लो. १५, पद्य, मूपु. ( अद्याभवत्सफलता नवन), १०५६३०-१९०७) " साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (अर्हतो भगवंत इंद्रमहिताः), १०११२०-२ ($) " साधारणजिन स्तुति, सं., श्रो. ४, पद्य, भूपू (अविरल कमल गवल मुक्ता), १०२७०७-३१, १०६४१८-१६ साधारणजिन स्तुति, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (जे संसारसुहं गणित्तु असुह), १०२८४६-५ (+) साधारणजिन स्तुति-अष्टप्रातिहार्यगर्भित, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (प्रातिहार्यकलितासम), १०३२३०-७(+) साधारण जिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा. मा.गु. सं., गा. ८, पद्य, म्पू., (मंगलं भगवान वीरो मंगल), १०२३५५-५ (+), १०६४१८-२५०१ साधुधर्म विचार, प्रा. सं., गद्य, मूपू., (अविअह सव्व पलंबा जिण गणहर), १०९८१३-७(+) साधु समाचारी, प्रा., मा.गु., गद्य, भूपू (आवसही नसही २ आपुछणा३) १०५८०५-७५(98) सामाचारी व्यवस्थापत्र- खरतरगच्छीय, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, मूपू., (यथा सर्व वस्त्र), १०३२८६-६(+) सामाचारी शतक, उपा. समयसुंदर गणि, सं., प्रका. ५. वि. १६७२, गद्य, मूपू. (श्रीवीरं च गुरुं नत्वा), १०५३९५ (+) सामायिक अतिचार, प्रा., गद्य, मूपू., ( नमो चउवीसाए), १००९७१ (+) (२) सामायिक अतिचार टीका, मु. कल्याणशिष्य, सं., वि. १६४८, गद्य, मृपू., ( श्रीमद्वीरजिनं नत्वा सर्व), १००९७१(+), १०२४८१(००) सामायिक लघु, सं., श्लो. १२, पद्य, दि. (सिद्ध वस्तु वचो भक्त), १०६०१२-२ ', " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सामायिक सूत्र - दिगंबर सं., प्रा., पद्य, दि., (पडिक्कमामि भंते इरियावहि ) १०६२२३ (+), १०६०८२ " (२) सामायिकसूत्र-दिगंबर- भावार्थ, पुहिं., गद्य, दि., (हे भगवान हे परमेश्वर), १०६२२३(+#) सामुद्रिकशास्त्र, सं., अ. ३६, श्लो. २७१, पद्य, मूपू., इतर, (आदिदेवं प्रणम्यादौ), १०१४८१ (+), १०५५६४ (+), १०१७६२-१ (२) सामुद्रिकशास्त्र - बालावबोध", मा.गु., गद्य, मूपू., इतर ( आदिदेव प्रते प्रथम), १०५५६४१ , (२) सामुद्रिकशास्त्र-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (पहिला आउखु जौइजै), १०१७६२-१ सारसमुच्चय, मु. कुलभद्रमुनि, सं., पद्य, दि. (देवदेवं जिनं नत्वा), १०४९२४(०) "" साहित्य रस लक्षणादि विवरण श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ३०, पद्य, वै., इतर, (संप्रयोगे रथै कांत मुख), १०२८३०-३(+#) सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं. द्वा. २२, श्लो. १००, वि. १३वी, पद्य, मूपू (सिंदूरप्रकरस्तपः करिशिरः), १०१०७९(+), १०१२११ (+$), १०१३१७ (+#$), १०१३३७ (+), १०१४९९-१ (+#), १०१५५० (+), १०४२२९(+$), १०५०५३-१(+), १०५१७८-१(+), १०५१८१-१ (+), १०५५९१ (+), १०५७१० (+#), १०५७३३ -१(+), १०१०७४, १०११००(#), १०२८३५(#$), १०५०८०(३) १०५४७३(३) १०६०१७) (२) सिंदूरप्रकर- टीका, पन्या. धर्मचंद्र, सं., गद्य, मूपू (स्वर्भूर्भुवखईरम्यमगमं), १०२८३५ (०३) (२) सिंदूरप्रकर- टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि सं. वि. १६५५ गद्य म्पू ( श्रीमत्पार्श्वजिनं नत्वा), १०१२११ (+३), १०५७३३-१(+), "" 1 १०५०८० ($) (३) सिंदूरप्रकर- टीका की कथा, सं., गद्य, म्पू, (विप्र प्रार्थितवान), १०१२११(+5) (२) सिंदूरप्रकर-वल्लभीटीका, आ. गुणकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., (पार्श्वप्रभोः क्रमयो), १०३४०२($) (२) सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिंदूरनउ समूह तापरूप), १०५१७८-१(+), १०५१८१-१(+), १०१०७४, १०५४७३ (२) सिंदूरप्रकर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिंदूरनो प्रकर कहीइ), १०१४९९-१ (+#$) For Private and Personal Use Only Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ ५३३ (२) सिंदूरप्रकर-पद्यानुवाद भाषा, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., अधि. २२, गा. १०१, वि. १६९१, पद्य, मूपू., दि., (सोभित तप गजराज सीस),१०१३१७(+#$), १०२९९७-१ (२) सिंदूरप्रकर-बालावबोध+कथा, पा. राजशील, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (शारदाचरणयुग्ममतीतपापं), १०११००(#) (२) सिंदूरप्रकर-कथा, पंन्या. धर्मचंद्र, सं., प+ग., मूपू., (अस्त्यंगदेस शृंगाररूप), १०२८३५(#$) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण), १०५८००-६(-) सिद्धचक्र महापूजन विधि सहित, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (अथाष्टदलमध्याब्जकर्ण), १०५८९२ सिद्धचक्र विधान, क. संतलालजी कवि, सं.,हिं., पूजा. ८, पद्य, दि., (जिनाधीश शिवईश नमि), १०४९४४(+), १०५९७३(+) सिद्धचक्र स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूप., (पढम पय निविट्ठ नाण), १०५२६९-८(+) सिद्ध जयमाला पूजा, आ. पद्मनंदि, सं., पद्य, दि., (ॐ उ धोरयुत), १०६०१२-९, १०६०५८-२ सिद्धजीव स्वरूप विचार, सं., गद्य, मूपू., (जत्थ एगदो सिद्धो तत्थ), १०२०३७-२(+#) सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ५०, पद्य, प., (सिद्ध सिद्धत्थसुअं), १०५२६८(+) (२) सिद्धपंचाशिका प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सिद्ध क० मोक्ष पुहतो), १०५२६८(+) सिद्धहेमशब्दानशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ.८, सू. ४६८५, ग्रं. २१८५, वि. ११९३, गद्य, मप., इतर, (अहँ सिद्धिः स्याद्वादात), १०३४२०(+), १०५९१०(+#$), १०३४४१, १०२४७९(#), १०२८२९(#$) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-टीका, सं., गद्य, मूपू., इतर, (--), १०२८२९(#$) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्वत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. १८०००, वि. ११९३, गद्य, मपू., इतर, (प्रणम्य परमात्मान), १०५९१०(+#$), १०३४४१ (३) सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्वत्ति का तत्त्वप्रकाशिकाप्रकाश शब्दमहार्णवन्यास, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., वि. ११९३-१२००, गद्य, मप., इतर, (श्रीमंतमजितं देवं), १०३३००(+) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. ६०००, गद्य, मूपू., इतर, (अर्हमित्येतदक्षरं), १०३४२०(+) (३) सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति के आख्यातवृत्ति की अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., इतर, (वृधूड वृद्धौ वृध), १०२८५८($) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-संक्षिप्त वृत्ति, सं., वि. १६वी, गद्य, मूपू., इतर, (नमः स्यु० नमः कृत्वा), १०२८५७(5) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., इतर, (ननु प्रणम्येति प्रयोगे), १०५९१०(+#$) (२) सिद्धहेमशब्दानशासन-हिस्सा अष्टम अध्याय प्राकृत व्याकरण, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पाद. ४, सू.१११९, वि. ११९३, गद्य, मूपू., इतर, (अथ प्राकृतम् बहुलम्), १०२८२७(+$), १०३७८९(+$), १०२५०१ (३) सिद्धहेमशब्दानुशासन-हिस्सा अष्टम अध्याय प्राकृत व्याकरण की व्युत्पत्तिदीपिका टीका, ग. उदयसौभाग्य, सं., गद्य, मूपू., इतर, (यस्य क्रमनमस्कारः), १०३४१०($) (३) सिद्धहेमशब्दानुशासन-हिस्सा अष्टम अध्याय प्राकृत व्याकरण की स्वोपज्ञ प्राकृतप्रकाश टीका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. २१८५, गद्य, मप., इतर, (अथ शब्द आनंतर्यार्थो), १०२८२७(+$), १०३७८९(+$), १०२५०१ (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-उणादिगणसूत्र, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., सू. १००६, वि. १२वी, गद्य, मूपू., इतर, (कृवापाजिस्वदिसाध्यशौ), १०१२५४(+#$), १०१८४०(+#) । (३) सिद्धहेमशब्दानुशासन-उणादिगणसूत्र की (स.)अवचूरि, आ. हेमचंद्राचार्य, सं., गद्य, मूपू., इतर, (--), १०१८४०(+#) (३) सिद्धहेमशब्दानुशासन-उणादिगणसूत्र का स्वोपज्ञ विवरण, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. ३२५०, वि. १२वी, गद्य, मपू., (करोतीत्यादिभ्यो धातु), १०१२५४(+#$) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-धातुपारायण, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. ६०३, गद्य, पू., इतर, (अहँ भू सत्तायां), १०२१२२(+#), १०३५०४(+#$) For Private and Personal Use Only Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५३४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (३) सिद्धहेमशब्दानुशासन- धातुपारायण की स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., वि. १२वी, गद्य, मूपू., इतर, (भू इत्यविभक्तिको), १०२१२२ (०४) (३) सिद्धहेमशब्दानुशासन- धातुपारायण की अवचूरि, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, मूपू., इतर (इह पूर्वाचार्य प्रसिद्धा), १०३५०४(+) सिद्धांतसार, आ. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., अधि. १६, श्लो. ४५१६, पद्य, दि., ( श्रीमंतं त्रिजगन्नाथ), प्रतहीन. (२) सिद्धांतसार-भाषा पद्यानुवाद, श्राव. नथमल विलाला, पुहिं., अ. १६, गा. ७४००, ग्रं. ७४००, वि. १८२४, पद्य, दि., (सब दर्शी सर्वज्ञ महं), १०४६६३(+), १०४९४९(+#$) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिद्धांत स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ४६, पद्य, मूपू., (नत्वा गुरुभ्यः श्रुतदेवता), १०३२३०-१४(+) सिद्धिप्रिय स्तोत्र, आ. देवनंदी, सं., श्लो. २६, ई. ६वी, पद्य, दि., (सिद्धिप्रियैः प्रतिदिनं ), १०६२९० -५ (+#) सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. गा. १३४१ ग्रं. १६७५ वि. १४२८, पद्य, मूपु., (अरिहाइ नवपयाई झायित), १०३५१०-२ (+), १०५२५२(#), १०३४८४, १०४४३६, १०५२१३ (#$), १०५९३९($) ', (२) सिरिसिरिवाल कहा- अवचूरि, आ. हेमचंद्रसूरि, सं. ग्रं. ४०२२, गद्य, मूपू. ध्यात्वा नवपद), १०५२५२(+) (२) सिरिसिरिवाल कहा- टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू (अरिहंतादिक नवपद), १०५२१३(०६), १०५९३९(६) " (२) श्रीपाल चरित्र, पंन्या. सत्यराज, सं., श्लो. ४९८, वि. १५१४, पद्य, मूपू., (श्रिये श्रीमन्महावीर), १०५५३८ (६) सीमंत्यादि क्षेत्रमान गाथा, प्रा., गद्य, मूपू., (पणयालीसं लक्खा सीमंत), १०२०११-२ (+) (२) सीमंत्यादि क्षेत्रमान गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पस्तालीस लाख जोयनना), १०२०११-२(+) सुकुमाल चरित्र, आ. सकलकीर्ति भट्टारक, सं., स. ९, वि. १५वी, पद्य, दि., (--), प्रतहीन (२) सुकुमाल चरित्र-पद्यानुवाद भाषाटीका, श्राव. गोकुल गोला, पुहिं., स. ९, वि. १८७१, पद्य, दि., ( नमः श्रीविश्वनाथ पंच), १०६०६८ सुखचंद मुनि पट्टावली, प्रा., पद्य, दि., (परमप्पयजिनु हियवइ धरि) १०५९६४-२ (०४) सुगंधदशमीव्रत कथा, मु. राजचंद्र, सं., श्लो. ५०, पद्य, भूपू (पार्श्व प्रणम्य पापघ्न), १०६२६५ (+) (२) सुगंधदशमीव्रत कथा-टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू (सुगंध दसम्यां कथा वक्षे), २०६२६५ (+) सुगंधदशमीव्रत कथा, मु. ललितकीर्त्ति, सं., श्लो. ६९, पद्य, दि. (अद्य नाभ्यां जिनं नत्वा), १०६४३७-२ (+) " सुगंधदशमीव्रत कथा, आ. श्रुतसागरसूरि, सं., श्लो. १६१, पद्य, दि., (पादांभोजान्यहं नत्वा), प्रतहीन. (२) सुगंधदशमीव्रत कथा पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहि गा. १४२, पद्य, म्पू, दि.. (पंच परम गुरु वंदन करूं ता), १०४७१५-१५, १०४७९२-१५, १०४८५६-१५, १०६०२३-९ सुदर्शना चरित्र, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., उ. १६, गा. ४०५३, ग्रं. ४५००, पद्य, मूपू., ( वंदितु सुव्वयजिणं), १०३५३४(+) सुदृष्टि तरंगिणी, जै. क. टेकचंद, प्रा. संधि ४२ गा. १५५, वि. १८३८, पद्य, दि. (अरिहंत देव वंदे गुरु), १०५९८० (+), १०४९४० " (२) सुदृष्टि तरंगिणी-अर्थ, जै. क. टेकचंद, पुहिं., अ. ४२, वि. १८३८, गद्य, दि., (मनमांहि भक्ति अनाय नमि हौ), १०४८५९(+), १०५९८० (०६), १०४९४० सुभाषित श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, श्वे., (दुरितवनघनालीशोककासार), १०२०४७-२(+) सुभाषित श्लोक संग्रह, मा.गु. सं., श्लो. ५, पद्य, थे. (अपुत्रस्य गृहं सुनं), १०१०७१-३(+) " " सुभाषित श्लोक संग्रह*, पुहिं., प्रा.,मा.गु., सं., गा. ४०, पद्य, श्वे., (दानं सुपात्रे विशुद्धं च), १०५०६४-२(+), १०१८३६(#$) सुभाषित लोक संग्रह, मा.गु. सं., श्लो. ४५, पद्य, मूपू इतर (विद्यालक्ष्मीसंपन्नाद्) १०५१७८-३(+) सुभाषित संग्रह *, प्रा., मा.गु. सं., श्लो. २००, प+ग, श्वे., ( ॐकारबिंदु संयुक्तं ), १०१६६४-४(+$), १०१८६५-१(+#$ सुभाषित संग्रह, सं., श्लो. ४०६, पद्य, चे, इतर (सामायिक स्तवः), १०६१११(+) " सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु. सं., वर्ग, ४, श्लो. १७६, वि. १७५४, पद्य, मूपू. (सकलसुकृत्यवल्लीवृंद), १०१७२७(+5), १०२१८६ (०३) For Private and Personal Use Only Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ सूक्ष्मनिगोद विचार, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (लोए असंखजोयण माणे), १०१८३८-१ (२) सूक्ष्मनिगोद विचार-वृत्ति, सं., गद्य, मूपू., ( अस्मिन् चतुर्दश), १०१८३८-१९ सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार, ग. जिनवल्लभ, प्रा. गा. १५०, पद्य, म्पू., (सयलंतरारि वीरं वंदिय), १०५८२७/०३) (२) सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार-वृत्ति, आ. धनेश्वरसूरि सं., गद्य, भूपू (यज्ज्ञानदर्पणतलप्रतिभात), १०५८२७(48) सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. अ. २३, नं. २१०० प+ग, मूपु. ( बुज्झिज्ज तिउद्देज्ज), १०१४५७(+३), १०९४६७(+#5), "" १०२७०३ (+), १०२९१९ ( + $), १०२९५० (+#$), १०४८३९ (+#S), १०१९४८-१, १०३७६९, १०१७५७(#$), १०२८९६ (#$), १०२९८२ (०३) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-दीपिका वृत्ति, मु. हर्षकुल, सं., ग्रं. ७०००, वि. १५८३, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीजिनं), १०३७८६(+), १०३७६९ (२) सूत्रकृता॑गसूत्र-बृहद्वृत्ति, आ. शीलांकाचार्य, सं. ग्रं. १२८५०, वि. १०वी, गद्य, म्पू., (स्वपरसमयार्थसूचकमनंत), १०१८७६(+), १०३७६८(+), १०४८३९(+#$) "" (२) सूत्रकृतांगसूत्र- बालावबोध", मा.गु., गद्य, भूपू (बुज्झेज्ज कहता जाणड़), १०१४५७(+३), १०२९५० (+०६), १०१७५७/१६) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. २९, पद्य, मूपू., (पुच्छिसुणं समणा माहण), १०१०८०-१(+), १०२७३९-१(+), १०५३१५ (+४), १०१९४८-३, १०२१६०-१ (३) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू (पु० पुछता हवा कोण), १०२१६० १ (२) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा श्रुतस्कंध २ अध्ययन-१ पुंडरीक, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग. मूपू. (--) १०५२८४९) (३) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा श्रुतस्कंध २ अध्ययन १ पुंडरीक का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १०५२८४($) सूरिमंत्र स्तव, प्रा. गा. २०, पद्य, मूपू (पदमपय सुपयड्डा० भत्त), १०३२३०-३३(+) सूरिमंत्र स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., ( जयश्रियं शासनमार्हतं), १०५०६३-२(S) सूरिमंत्र स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू (जयश्रियं श्रीजिशासनस) १०५०६३-१ . सूर्यगायत्री मंत्र, सं., गद्य, वै., (ॐ भुर्भुवः स्वः भाहस्कराय), १०१८०२-२(+#) सूर्यप्रज्ञप्ति प्रा. प्राभृ. २०, प्र. २२०० गद्य म्पू. ( नमो अरि० तेणं० मिथिल), १०३७७० (५४) सौभाग्यपंचमी कथा, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वनाथ), प्रतही. (२) सौभाग्यपंचमी कथा - व्याख्यान, मा.गु, गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वनाथां), १०१२१८-१ (४) स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., स्तु. २४, श्लो. ९६, पद्य, मूपू., (भव्यांभोजविबोधनैकतरण), १०११५६ (+#$), १०५१२४(+), १०५२७१(+०१, १०३६८६ (४३) (२) स्तुतिचतुर्विंशतिका- अवचूरि*, सं., गद्य, मूपू., (भव्यांभोज० भव्या), १०३६८६ (#$) (२) स्तुतिचतुर्विंशतिका-टवार्थ, मा.गु, गद्य, भूपू (श्रीमत्नार्थ नत्वा), १०५२७१(क) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., स्था. १०. सू. ७८३, ग्रं. ३७०० प+ग, मूषू (सुर्य मे आउस तेणे), १०११३०(+) (२) स्थानांगसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं. स्था. १० नं. १४२५०, वि. ११२०, गद्य, मूपू. (श्रीवीर जिननाथं नत्वा), ', 3 १०३३५०००), १०४०३८ (+०६) (२) स्थानांगसूत्र- चयनित सूत्र संग्रह, प्रा., गद्य, मूपू (सत्तहिं ठाणेहिं. १०१५४६ (६) स्थूलभद्रमुनि कथा, सं., गद्य, मूपू., (श्रीसंभूतिविजयस्य), १०११२२(+$) स्नात्रपंचाशिका. ग. शुभशील, सं., कथा. ५०, श्लो. ५०, पद्य, म्पू (प्रणम्य श्रीजिनान्), १०५६२७(+) " (२) स्नात्रपंचाशिका बालावबोध, मा. गु, गद्य, भूपू (प्रणम्य क० प्रणाम), १०५६२७) स्नात्र पूजा, सं., प+ग, मृपू., (--), १०५८४७ (३) स्नात्रपूजा संग्रह", मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., मा.गु. सं., प+ग. म्पू, नमो अरिहंताणं नमोर्हत्) १०२३६१ (०४) स्यादिशब्दसमुच्चय, आ. अमरचंद्रसूरि से उल्ला. ४, पद्य, मूपू. इतर (श्रीशारदां हृदि ध्यात्वा), १०३८९८(+) " For Private and Personal Use Only ५३५ Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) स्यादिशब्दसमुच्चय-स्वोपज्ञ दीपिका अवचूरि, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., इतर, (श्रीशारदामित्यादि इत्यादी), १०३८९८+#) स्वयंबुद्धादि वेष विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (इह भरहे केवी जीवा), १०५०२४-२ स्वयंभूरमण समुद्र विस्तार गाथा, प्रा., गा. ११, पद्य, पू., (सव्वे वि दीवसमुद्दा), १०४९२२-७५(+) स्वरोदय-नरपतिजयचर्या, सं., श्लो. ४४, पद्य, जै., इतर, (अथात् संप्रवक्ष्यामि), १०५५४६-२ स्वस्ति मंगलपाठ, सं., श्लो. १०, पद्य, दि., (श्रीवृषभो नः स्वस्ति), १०५९८९-५(+-) हंसराज वत्सराज चरित्र, आ. सर्वसुंदरसूरि, सं., स. ५, श्लो. ८८४, ई. १५१०, पद्य, मूपू., (स्मृत्वा श्रीभारती देवीं), १०६४४१(+) हरिबल चरित्र, सं., गद्य, मूपू., (जिनमुखातारामशोभायाः), १०२९०७(+) हरिवंशपुराण, मु. जिनदास ब्रह्मचारी, सं., स. ३९, ग्रं. ६९६५, वि. १६वी, पद्य, दि., (सिद्धं संपूर्णभव्यार्थ), १०६१८७(+#$) (२) हरिवंशपुराण-भाषा, श्राव. खुशालचंद्र, मा.गु., वि. १७८०, पद्य, दि., (महावीर वंदौ जिनदेव), १०४९१९, १०६१७१ (#$) हरिवंशपुराण, आ. जिनसेनाचार्य, सं., स. ६६, श. ७०५, पद्य, दि., (सिद्धं ध्रौव्यव्ययोत्पाद), १०४५३४(+) (२) हरिवंशपुराण-भाषावचनिका, क. दौलतराम पंडित, पुहिं., वि. १८२९, गद्य, दि., (प्रवाहरूप अनादि काल तै), १०४९०९(+), १०४९२१(+) हरिविक्रम चरित्र, आ. जयतिलकसूरि, सं., स. १२, श्लो. ४७५०, पद्य, मपू., (श्रीतीर्थाय नमस्तस्मै), १०४२२६(+$) (२) हरिविक्रम चरित्र-टबार्थ, मा.ग., गद्य, मप., (हिवें ग्रंथनो कर्ता), १०४२२६(+$) हस्तरेखा लक्षण, प्रा., गा. ६४, पद्य, मपू., इतर, (पणमिय जिणममियगणं), १०१७६२-२ हेमदंडक गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (जीवभेया सरीराहार), १०२८३४(+) (२) हेमदंडक गाथा-कोष्टक, संबद्ध, मा.गु., को., म्पू., (--), १०२८३४(+) हैमलिंगानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रक.८, श्लो. १३८, वि. १२वी, पद्य, मूपु., इतर, (पुल्लिंगं कटणथपभमयर), १०११३७(+#) हैमविभ्रम, सं., श्लो. २१, पद्य, मपू., इतर, (कस्य धातोस्ति वादीनाम्), १०२९२९(+) (२) हैमविभ्रम-अवचूरि, ग. चारित्रसिंह, सं., वि. १६२५, गद्य, मूप., इतर, (नत्वा जिनेंद्र स्वगुरुं), १०२९२९(+) होलिकापर्व कथा, सं., श्लो. ६५, पद्य, मूप., (ऋषभस्वामिनं वंदे ऋषभैक), १०५०४९($) (२) होलिकापर्व कथा-टबार्थ, पुहिं., गद्य, म्पू., (ऋषभस्वामी तिनकु वंद), १०५०४९($) होलिकापर्व प्रबंध, ग. पुण्यराज, सं., श्लो. ३४, वि. १४८५, पद्य, मूपू., (प्रणम्य सम्यक्), १०५७१५(+) (२) होलिकापर्व प्रबंध-टबार्थ, मु. कांतिविजय, मा.गु., वि. १७९२, गद्य, मप., (हे भविन हे प्राणिन), १०५७१५(+$) For Private and Personal Use Only Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ४ आहार विचार, रा., गद्य, मूपू., (चावल ज्वारि बाजरि), १०३३९४-२२(+) ४ ध्यानफल गाधा, रा. गद्य, मूप, (आर्तध्याने करी तिर्यंच), १०३३९४-१३(०) ', יי ४ ध्यान विचार, मा.गु., रा. गद्य, मृपू. (प्रथम आरितध्यान जीका), १०५८१७१ ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४५, गा. ८६२, ग्रं. ११२०, वि. १६६५, पद्य, भूपू., (सिद्धारथ शशिकुलतिलो), १०२६९४($) ४ बंध विचार, मा.गु., गद्य, मृपू., (दूधने पाणी माटीने धातु), १०१५६७-११(३) " ४ मंगल चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, गा. ९५, पद्य, मूपू., (अनंत चोवीसी नित नमुं सकल), १०५३१९ ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ११०, पद्य, स्था., (अनंत चोवीसी जे नमु), १०५५९५ (+), १०५६३९(+), १०५६७३(+), १०२१८८, १०५०७१ ४ मंगल रास, मु. मुनिराज ऋषि, रा., ढा. ५, गा. ३७, पद्य, श्वे., (अनंत चोवीसी जिन नमुं), १०१५७३(-$) ४ शरणा, मा.गु., गद्य, वे (पहिलो शरणो अरिहंत ). १०५४६९-१ ४ संयम विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्राणसंयम षट्कायना), १०५०२४-९ ४ सामायिक नाम, मा.गु., गद्य, मूपू. ( श्रुतसामाईक १ समकितसामाइक २) १०६३३०-७(+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५ आरा भविष्यकथन ४३ बोल, मा.गु.. गद्य, म्पू, (नगर ते ग्राम सरीखा हुस्ये), १०२४४०-११(७) ५ आश्रव नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मिथ्यात्व १ अविरति २), १०६३३०-६ (+) ५ इंद्रिय चौपाई, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं. डा. ६, गा. १५४, वि. १७५१, पद्य, दि., (प्रथम प्रणमी जिनदेव), १०४९२२-८३(+) ५ इंद्रिय विवरण, पुहिं., गद्य, म्पू. ( स्पर्शनेंद्रिय १ रस), १०५९२९-३ ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू, (काम अंध गजराज अगाज), १०२५१७-६(+), १०५९५३-३(+४) ५ इंद्रिय सज्झाय, उपा. ललितकीर्ति, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू. (वात कहुं सुण कान चतुर नर), १०५९५३ मक्का , ५ कल्याणक मंगल स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू. (पणविवि पंच परम गुरु), १०६०५८-१० ५ कारण स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, गा. ५८, वि. १७३२, पद्य, मूपू (सिद्धारथसुत वंदिये), १०१२९६-२(६), १०५६५२(३) ५ चारित्र विचार, मा.गु., गद्य, मूपू. (सामाइक विशेष विना), १०१५६७-९ ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आदि हे आदिजिणेसरु ए), १०२०३५ -१ ( +$), १०२४०५-२(+), १०२६४६.१२(०) ५ परमेष्ठि आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, दि., (इहविधि मंगल आरती), १०६०५७-२७(+) ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (हस्तिनापुर नगर भलो), १०१८४७-१७(+) ५ मेरुपर्वत नाम, मा.गु.. गद्य, म्पू., (सुदर्शनमेरु विजयमेरु), १०२८१४-३ ५ सम्यक्त्व नाम, मा.गु, गद्य, भूपू (औपशम समकित १) १०१८६३-६(+), १०६३३०-५ (+) ५ सम्यक्त्व लक्षण, मा.गु., गद्य, मूपू., (समता परिणाम १), १०२३८७-५ ५ स्थावर नाम, मा. गु, गद्य, म्पू. (हंदी धावरकाए ए पृथ्वी), १०३३९४-२४(१), १०५८०५-५३(००१ ६ आरास्वरूप विवरण, मा.गु., गद्य, म्पू. ( प्रथम भरतादि दर्शाक्षेत्रना) १०२३७६ (४) ६ काय जीव उत्पत्ति आयुष्यादि विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., ( पृथ्वीकाय अपकाय), १०१८६६-२(+) ६ गुण वृद्धिहानि दोहे, जै.क. द्यानतराय, पुहिं. गा. २०, पद्य, दि., (संख असंख अनंत गुन), १०६०५७-३९७(+) ६ छींडी नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ गाम धणी राजारै कहो ), १०१८६३-५ (+) ६ द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, मूपू. (धर्मद्रव्य शुद्ध लोक), १०१५६७-४ ६ बोल- पुण्योपार्जन, मा.गु., गद्य, मूपू., ( शिष्टसंग श्रुतौरंगः ), २०१५६७-१ ७ अभव्य अधिकार, मा.गु., गद्य, मूपू., (अंगारमर्दकाचार्य जिणे), १०३३९४-१०(+) For Private and Personal Use Only Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ७ जिन विनती स्तवन, क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ११, पद्य, दि., (तुम तरण त्यारण भवनिवारण), १०५९८९-५२(+-) ७ मांडला नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (सूत्र मांडल १ अर्थ मांडल), १०२४४०-५(#) ७ व्यसनत्याग गाथाषोडशी, जै.क. द्यानतराय, पुहि., सवै. १६, पद्य, दि., (पाप कौ ताप कलेस असेस), १०६०५७-९(+) ७ व्यसननिवारण लावणी, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., गा. ५, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (तजो ए सातौ दुखदाई कुविसन), १०१८६८-२४(+) ७ व्यसन निवारण सज्झाय, मु. जयरंग, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (पर उपगारी साध सुगुरु), १०५७२७-१३(+) ७ समुद्धात विचार-भगवतीसूत्र, मा.गु., गद्य, मपू., (वेदनी १ कसाय २ मरणां), १०५४८७ ८ अनंताद्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (साधना जीव अनंता १), १०५८०५-५१(+#) ८ आत्मा विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (दिव्य आत्मा१ कषाये आत्मा२), १०५८०५-६१(+#) ८ औपदेशिक बोल, मा.गु., गद्य, मपू., (दया पाले ते दानेसरी धरम), १०५८०५-४९(+#) ८ औपदेशिक बोल, मा.गु., गद्य, मपू., (भगवंतजीनी वाणी सूनता पाप), १०५८०५-४८(+#) ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मूल कर्म आठ तेहनी), १०३३९४-६(+), १०५३५३(+), १०५७५१(+), १०५९९२-४(+), १०२३८७-१०, १०२६३८, १०१५१८-१(१), १०२४४०-३(#), १०२६९६() ८ कर्म ३० बोल विवरण, मा.गु., गद्य, मप., (ज्ञानावरणी पोलिआ), १०१९२७($) ८ कर्म उपार्जना विचार, मा.गु., गद्य, मूप., (प्रथम ज्ञानावरणीकर्म), १०२१९०(+$) ८ कर्मदहनपूजा विधान, जै.क. टेकचंद, पुहिं., प+ग., दि., (लोक शिखर तन छाडिअ मूर्ति), १०५९९१(+) ८ कर्म नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (ज्ञानावर्णनी १ दर्शनावर्ण), १०५८०५-६०(+#), १०२३८७-४ ८ कर्मनिवारण सिद्ध आरती, जै.क. द्यानतराय, पहिं., चौपा.८, वि. १८वी, पद्य, दि., (जैसै नर को पाव दियौ काठ), १०६०५७-३८३(+) ८ प्रकारीजिन पूजा, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. १२, पद्य, दि., (तार तार श्रीजिनवरौ तुम), १०६०५७-१९(+) ८ प्रकारी जिन पूजा, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. १२, पद्य, दि., (जल चंदन अरु सुमन लै अक्षत), १०४९२२-७(+) ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७७, वि. १८२१, पद्य, मूपू., (अजर अमर अकलंक जे अगम रूप), १०५३१०(+), १०५४९५(#) ८ प्रकारीपूजा दोहा, पुहिं., दोहा. १०, पद्य, मूपू., (जलधारा चंदन पुहुप), १०२९९७-२ ८ प्रकारी पूजा रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. ७८, गा. २०९४, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (अजर अमर अविनाश जे), १०५३७३(#$) ८ प्रवचनमाता विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (इर्यासमितिना ४ भेद), १०५८०५-६३(+#), १०१५६७-५ ८ प्रवचनमाता सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ९, गा. १३०, वि. १८वी, पद्य, मूप., (सुकृत कल्पतरु श्रेणि), १०२९४१ ८ बोल आधार, मा.गु., गद्य, श्वे., (बीहोता जीवने सरणानो आधार), १०५८०५-५०(+#) ८ बोल-एकलविहारी साधु, मा.गु., गद्य, मूपू., (सरद्धावंत होइ महाबलवंत), १०५८०५-२०(+#) ८ बोल-दुर्लभ, मा.गु., गद्य, मूपू., (कायरने संजम पालवो दुर्लभ), १०५८०५-४३(+#) ८ बोल-धर्मपरिवार, रा., गद्य, श्वे., (धरम को पिता श्रीवितराग), १०५८०५-४२(+#) ८ बोल-पापपरिवार विषयक, पुहि.,रा., गद्य, श्वे., (पाप को बाप लोभ छे), १०५८०५-४१(+#) ८ बोल-संजम दोष, मा.गु., गद्य, मपू., (माइ साधु अकार्य करी इम), १०५८०५-७६(+#) ८ मद नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (जातिमद), १०५८०५-६२(+#) ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ८, गा. ७६, पद्य, मूपू., (शिवसुख कारण उपदेशी), १०४४५८(+#) ८ सिद्धगुण आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., चौपा. ९, वि. १८वी, पद्य, दि., (आठ कौ नाश आठौं गुण परगट), १०६०५७-३८७(+) ९ प्रतिवासुदेव नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (अश्वग्रीव१ तारकर मेरुक३), १०१२८३-४(+) ९ बलदेव नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (अचल१ विजय२ भद्र३), १०१२८३-३(+) ९ वाड-ब्रह्मचर्य, मा.गु., गद्य, श्वे., (वसति निरदूषण १ स्त्रीनी), १०१८६३-१०(+), १०५८०५-५४(+#) ९वाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ११, गा. ९७, वि. १७२९, पद्य, पू., (श्रीनेमीश्वर चरणयुग),१०१३८०-३ For Private and Personal Use Only Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ ९ वाड सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु ९ वासुदेव नाम, मा.गु., गद्य, श्वे. (त्रिपृष्ठि १ द्विपृ०), १०१२८३-२ (+) "" गा. १५, पद्य, म्पू (रमणी पशु पंडग तणी रे) १०१८००-२(+) १० असमर्थता बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवने अजीव करवा समर्थ नही), १०५८०५-७२(+#) १० कर्मभेद चौपाई, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं, गा. १५, पद्य, वि. (श्रीजिन चर्णांबुज प्रत), १०४९२२-५७(+) १० जीवद्वार विचार, रा., गद्य, श्वे., (नाम१ परुपणा२ यया३ थीत ४), १०५४१८(+#) १० ठाणा बोल, मा.गु., गद्य, वे (एगे आया १ एगे अणाया२), १०२६३१-१(+६) " १० दृष्टांत-मनुष्यभवदुर्लभता, मा.गु., गद्य, मूपू., (चुल्लग १ पासग २ धन्न), १०१४२३-२(+#), १०२५३३(+$) १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., ढा. ३. गा. ३३, वि. १७३१, पद्य, मूपू (सिद्धारथनंदन नमुं), १०१६८८-८+ १०२७९०(०) १० बोल-क्लेशादि, मा.गु., गद्य, म्पू, (क्लेस १ हासो २ आहार ३) १०५८०५-४६ (०१), १०५८०५-६७(+ १० बोल-धर्म, मा.गु., अंक. १०, गद्य, श्वे., (दया पाले सो दानेसरी), १०५८०५-५८(+#) १० बोल-धर्म उद्यम, मा.गु., गद्य, श्वे. (सूत्र सिद्धांत नवा नवा), १०५८०५-५९००) " १० बोलपच्चीसी, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., सवै. २५, पद्य, दि., (एक सरूप अभेद दोई विधि), १०६०५७-१६ (+) १० बोल- साधु आचार, मा.गु., गद्य, म्पू, (प्रथम तो थानक पूजा होई), १०५८०५-७३(+) १० बोल स्याद्वाद सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (स्याद्वादमत श्रीजिनवरनो), १०५६५५-१ १० मनुष्यजन्म दुर्लभ बोल, मा.गु., अंक. १०, गद्य, मूपू., (पहिलै बोलै मनुष्यभव), १०५८०५-३९(+#) (खंती क० साधु क्षमा), २०५८०५-३० (+), १०१५६७-७ १० यतिधर्म भेद, मा.गु. गद्य, मूपू १० लक्षण पूजा अष्टप्रकारी, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., गा. २२, पद्य, दि., (उत्तम क्षमा मारदव आरज भाव), १०६०५७-६१ (+) १० लक्षणव्रत कथा, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ५५, पद्य, दि. (प्रथम नमन जिनवरने) १०६०२३-१ "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १० वाना छद्मस्थ न देखे, मा.गु., गद्य, श्वे., (धर्मास्तीकायने न देख ), १०५८०५-७१(+#) १० श्रावक उपसर्ग विचार, मा.गु., गद्य, मृपू., ( अवधिनुं उपसर्गापि शावनओ), १०१३४२-२ १० श्रावक सज्झाय, आ. नन्नसूरि, मा.गु., गा. ३२, वि. १५५३, पद्य, मूपू., ( जिण चुवीसी करुं), १०१८००-६ (+#) १० श्रावक सवैया, उपा. रुघपति, मा.गु., सवै. १, पद्य, मूपू., (सुश्रावक आणंदनै कामदेव), १०१५०२-९(+#) १० संज्ञा नाम, मा.गु., गद्य, भूपू (आहारसंज्ञा भवसंज्ञा), १०३३९४-१५ (+) १० स्थानचौवीसी, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३०, पद्य, दि., ( रिषभदेव रिषदेव वीर गंभीर), १०६०५७-२५(+) भए), १०४९२२-५२(+) ११ बोल ज्ञान अंतराय, मा.गु., गद्य, मूपु., (आलस करे तो ज्ञाननी अंतराय), १०५८०५-६६(१०) " ११ अंग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्वा. ११, वि. १७२२, पद्य, मूपू., (आचारांग पहेलुं कह्यु), १०२५५९-१(#) ११ गणधर नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (इंद्रभूति अग्निभूति वायु), १०५८०५-४ (+#), १०२३८७-८, १०६३२१-१६ ११ गुणस्थानक क्रमारोह चौपाई १४ गुणस्थानकगत, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं. दोहा. २१, पद्य, दि., (करम कलंक खपाई के " ११ बोल-ज्ञान वृद्धि, मा.गु., गद्य, मूपू., (अनोदरी तप करे तो ज्ञान), १०५८०५-६५ (+#) ११ बोल विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (सुत्रमांहि जिहां), १०१७६१-१(+) १२ आरा विचार, रा. गद्य भूपू (प्रथम सूसमसूसम नामा), १०३३९४-२१(+) १२ चक्रवर्ती नाम, मा.गु.. गद्य, मूपु. ( प्रथम भर्थजी१ सगर२), १०१२८३-५ (+) " १२ चक्रवर्ती नाम सवैया, उपा. रुघपति, मा.गु., सवै १, पद्य, म्पू., (भरत अने सगरादिकसु मघवा), १०१५०२-१०+) १२ देवलोक कोष्ठक, मा.गु., को. वे., (--), १०५१३२(+$) १२ देवलोक भांगा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक दोय त्रिक चतु पांच), १०३७७५-८ १२ बोल-साधु आचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (उपराधी वस्त्र पात्र लेउ), १०५८०५-७४(+#) १२ भावना, मु. जीवराज, मा.गु., डा. १२, गा. १२४, पद्य, भूपू (सिद्ध अनंत समरी करी). १०१६२७-१(4) १२ भावना चौपाई, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. १६, पद्य, दि. (पंच परमगुरु वंदना, १०४९२२-५६(+) For Private and Personal Use Only ५३९ Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ १२ भावना विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (पहिली अनित भावना ते), १०१५६७-८, १०१६४२-१ १२ भावना विलास, ग. लक्ष्मीवल्लभ, पुहि., गा. ५२, वि. १७२७, पद्य, मूपू., (प्रणमि चरणयुग पास), १०२९३९ १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., ढा. १२, गा. ७२, वि. १६४६, पद्य, मूपू., (आदिसर जिणवर तणा पद), १०१८००-१(+#) १२ भावना सज्झाय-बृहत्, उपा. जयसोम, मा.गु., ढा. १३, गा. १२८, ग्रं. २००, वि. १७०३, पद्य, मपू., (पास जिणेसर पाय नमी), १०५३००(+$), १०५७९४(+$) १२ राशिफल विचार-शनि गोचर दृष्टिफल, मा.गु., गद्य, इतर, (मेष वृष मिथुन तीन राशि), १०५४९७-३(+) १२ व्रत टीप, मु. उद्योतसागर, मा.गु., गद्य, मूपू., (सदा सिद्ध भगवंतने), १०५३४२(+), १०१५५९(5) १२ व्रत टीप, मा.गु., गद्य, मपू., (प्रथम सम्यक्त्व देव), १०२९६९(+#$), १०५४५०-१(+) १२ व्रत नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (पेहेले प्राणातिपात), १०५०५५-१५(+) १२ व्रत नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्राणातिपातव्रत मृषावाद), १०१५६७-२ १२ व्रत सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., ढा. १३, पद्य, मूपू., (जिनवाणी धन वुठडो भवि), १०३३९४-२९(+) १३ काठिया नाम, मा.गु., गद्य, मपू., (आलस सो धरम उद्यम रहित १), १०१८६३-२(+), १०५८०५-६८(+#) १३ काठिया भास, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (आलस मोह निवारीयै अवज्ञानइ), १०१७५८-१४ १३ काठिया सज्झाय, आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (पहिला प्रणमुं गौतम), १०५४४२-२(+), १०५६५५-१० १३ काठिया सज्झाय, मु. उत्तम, मा.गु., गा. १६, पद्य, म्पू., (सोभागी भाई काठीया), १०५७३६-१६(+) १३ काठिया सज्झाय, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (रमणी रामति रमतो), १०१७५८-१३ १३ द्वीप जिनपूजा विधि, क. लालजी, पुहि., पूजा. ६२, ग्रं. १९३०, वि. १८७०, पद्य, दि., (श्रीअरहंत प्रणाम कर पंच), १०५९७७(+#), १०६०१४(+$) १३ बोल-गणरूप रूई अवगणरूप चिनगारी, मा.गु., बो. १३, गद्य, मप., (जनमरूप रुइ मरणरूप), १०५८०५-६९(+#) १४ गुणस्थानक १९७ द्वार विचार, मा.गु., प+ग., मूपू., (नाम१ लखण गुण२ ठिई३ किरिया), १०२७१४(+) १४ गुणस्थानक ४१ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (नामद्वार लक्षणद्वार), १०२६६३-३(+$), १०६०५०(+) १४ गुणस्थानक ५३ भाव यंत्र, मा.गु., को., म्पू., (--),१०१०८२-१(+) १४ गुणस्थानक जीवभेद विचार, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. २३, वि. १७४६, पद्य, दि., (वीतराग के चरणयुग वंदौ), १०४९२२-६१(+) १४ गुणस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मिथ्यात्व गुणठाणो १), १०१८०१-८(+), १०५८०५-३२(+#), १०२३८७-१२ १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (बंधप्रकृतयस्तासां), प्रतहीन. (२)१४ गुणस्थानक विचार-यंत्र, मा.गु., को., म्पू., (मिथ्यात्व सास्वादन), १०५४४०(+) १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञं जिनं नत्वा), १०२६५६(+) १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. कर्मसागरशिष्य, मा.गु., गा. १७, पद्य, मप., (पासजिनेसर पय नमी रे), १०१३८०-४ १४ गुणस्थानक सज्झाय, मु. मणिविजय, मा.गु., ढा. १७, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वरपुर धणी), १०५७०९(+) १४ गुणस्थानक सज्झाय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (समरवि जिणवरदेव गणहर मन), १०२९४५-२ १४ गुणस्थानक सवैया, मा.गु., पद्य, मपू., (नियत एक विवहारसु जीव चतुर), १०१८५४(#$) १४ गुणस्थानके कर्मप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, भूपू., (उधि बंध १२० प्रकृति), १०१६६८(#) १४ गुणस्थानके कर्मबंधउदयसत्ता व उदीरणा विचार, मा.गु., गद्य, मप., (ज्ञानावरणी ५ दर्शना), १०११०९(+$) १४ नियम विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सचित ते कोने कहीइं), १०१५६३-१(#$), १०१५६३-४(#) १४ पूर्व नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (उत्पाद पूर्व १ अग्र), १०१८६३-९(+) १४ पूर्व सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १७, पद्य, मपू., (चौद पूर्वधर भक्ति करीजे), १०२७९३-१३(+#) १४ बोल-संयत असंयतादि की जघन्योत्कृष्ट देवगति, मा.गु., गद्य, श्वे., (असंजमी मिथ्यात्वी), १०५८०५-३५(+#) १५ कर्मभूमि विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पनर कर्मभूमि कहीइ), १०१८६३-३(+) For Private and Personal Use Only Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ १५ तिथि स्तुति संग्रह, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. स्तु. १६ गा. ६४, पद्य, मूपू. (एक मिथ्यात असंयम अविरति) १०२३७१-३(+०), १०२५७६(+) www.kobatirth.org १५ भेद पात्रविचार चौपाई, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं, गा. २४, पद्य, दि., ( नमु देव अरिहंत को नम ), १०४९२२-६२(*) १६ कारण भावना पूजा, जै.क. द्यानतराय, पुहिं. गा. २१, प+ग. दि., (सोलह कारण भाय), १०५९८९-२९(+), १०६०५७-६०(०), १०४९३४ १६ कारणव्रत कथा, मु. ज्ञानसागर, पुहिं. गा. ३४, पद्य, दि. (श्रीजिनवर चीवीसी नम्), १०६०२३-३ ', १६ भावना विचार, गु, गद्य, मूपू. (पोताना मन साधे एकंत बेसी), १०५७२८(+) १६ सती सज्झाय, मु. मेघराज, मा.गु., अ. १६ भास, पद्य, मूपू., (जिन गुरु गौतम पाय), १०२६१३(+#) ,י १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., डा. १७, पद्य, मूपू., (अरिहंत मुखपंकजवासिनी), १०१८०२-१(०१) १७ भेदी पूजा रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु. दा. ९५ नं. ७२२५, वि. १७९७, पद्य, मूपू (सुख संपति दायक सदा). १०२६८१(३) " १८ पौषध दोष, मा.गु., गद्य, मूपू.. (१ बोले पोसानी रातने) १०१९०७-३ २० तीर्थंकर पूजा, पुहिं., दोहा. ८, पद्य, दि., (पूर्वापर विदेहेसुं), १०६०१२-६ २० बोल असमाधि, मा.गु. कडी. २०, गद्य, मूपू (उतावलो चालें तो), १०५८०५-१५(४०) "" १७ भेदी पूजा सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सत्तरभेद पूजा फल), १०१२१९-४(+#) १८ दोष विचार-गर्भपालन विषे, मा.गु., गद्य, वे (जे गर्भवती दिवसे घण), १०५०५५-२ (०) "" १८ पापस्थानक आलोयणा, मा.गु., गद्य, मूपू., (कोई भव्यजीव कोई), १०५८०५-२८(+#), १०५८०५-३४(+#$) १८ पापस्थानक नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहली प्राणातिपात १), १०२३८७-३, १०२३८७-११, १०५९२९-२ १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., सज्झा. १८, ग्रं. २११, पद्य, मूपू., (पापस्थानक पहिलुं कहि), १०२५५८-१(०३), १०३३९४-२८(+) २० विहरमानजिन जयमाल, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (सीमंधरजिन सेइस्या जग), १०५९८९-७(+) २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सीमंधर १ युगमंधर), १०२८१४-६ (३) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . २० विहरमानजिन नाम, मा.गु., गद्य, मृपू., (सीमंधरस्वामी श्रीजुगमंदर), १०५८०५-३(४०), १०६३२१-१५ २० विहरमानजिननाम विचार, रा., गद्य, श्वे. (सीमंधरस्वामी युगमंधर), १०३३९४-९(+) २० विहरमानजिन पूजा, जै. क. द्यानत, पुहिं., प+ग., दि., (दीप अढाई मेरपै अब), १०५९८९-२३(+) २० विहरमानजिन पूजा, जे.क. द्यानतराय, पुहिं., दोहा. १८, वि. १८वी, प+ग. दि., (दीप अडाई मेस्पून अब), १०६०५७-५११०) २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., स्त. २०, वि. १८वी, पद्य, दि., (श्रीसीमंधर जिनवर), १०५६४२(+), १०५७६१(+) २० विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, म्पू, (पुखलवई विजये जयो रे नयर), १०५४९६ (+) २० विहरमानजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू (पंचविदेह विषय विहरता वीस), १०२७५३-१४(+) २० विहरमान दशक कवित्त, जैक द्यानतराय, पुहिं सबै १०, वि. १८वी, पद्य, दि.. (सीमंधर प्रथम जिनसाहब अंत), १०६०५७-३७६ (+) २० आवक कर्तव्य, मा.गु., गद्य, श्वे. (सरावगजी समकतधारी होइ), १०५८०५-६क्क २० स्थानकतप स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, म्पू., (सुअदेवी समरी कहूं), १०५०४६-६ (+) २० स्थानकतप स्तवन, मु. वखतचंद्र, मा.गु., ढा. ३, गा. १९, पद्य, मूपू., (वीशस्थानक तप सेवी), १०१६८८-१० (+#), १०५११४-५ " २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., डा. २० वि. १८४५, पद्य, म्पू.. ( श्रीशंखेश्वर पासजी), १०६३६४(१) 3 , ५४१ २१ प्रकार के धोषण, मा.गु., गद्य, थे. (उस्सेइमं तेदाधरानु), १०५२७२-२ (०४) "" २१ प्रकार मिथ्यात्वभेद विचार, रा., गद्य, म्पू, (लोकिक देवगति), १०३३९४-२३(+) २१ प्रकारी पूजा, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु., डा. २१, गा. १०५, पद्य, म्पू (प्रणमं प्रथम जिणंदने) १०५८३४ २१ बोल-सबल दोष, मा.गु., गद्य, मूपू., (हस्तकर्म करे तो सबल दोष), १०५८०५-१६(+#) २२ अभक्ष्य नाम, मा.गु, गद्य, भूपू., (वडोलीया पीप पीपर), १०२९४६-१(+), १०९५६३-७(१) For Private and Personal Use Only Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५४२ २२ परिषह दृष्टांत कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., ( उजेणी नगरीयइ हस्तमित), १०१५४९ (+$) २२ परिषह विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., ( आहार मिल्या अणमिल्या समता), १०५८०५-१८(००), १०१५६७-६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ २२ परिषह सज्झाय, पुहिं., गा. २४, पद्य, श्वे. (क्षुधा त्रिषा हेम), १०५९८९-६३(+) " "" २२ परिषह सवैया, श्राव, भगवतीदास भैया, पुहिं, गा. ३०. वि. १७४९, पद्य, दि. (पंच पर्म पद प्रणमि), २०४९२२-७१(+) २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (सात एकेंद्री रत्ननी), १०२६६३-८(+) २३ पदवी स्तवन, आ. उदयप्रभसूरि, मा.गु. गा. २३, पद्य, मूपू. (श्रीजिनवर पाय), १०५११४-१ १०५४८९-१६(#) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , २४ जिन अष्टप्रकारी पूजा - प्रत्येकजिनभिन्नभिन्न, मु. रामचंद्र, पुहि., प+ग. म्पू., (सुषमदखम थिति मेटी) १०६३२७/(३) २४ जिन आरती, श्राव. मोतीराम, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (चौवीसौं जिन राज पद वंदौ), १०६०५७-४८(+) २४ जिन गीत, मु. आनंद, मा.गु., स्त. २४, वि. १५८१, पद्य, मूपू., ( आदि जिणंद मया करो), १०११६४-२(#) २४ जिन गीत, उपा. इंद्रसौभाग्य, मा.गु., पद्य, मूपू., (जय परमेसर ऋषभजिणेसर अनुपम), १०१७६८(+$) २४ जिन गीत, जै. क. द्यानतराय, पुहिं. गा. ८, पद्य, दि. (वंदी आदिजिनंद दुहूं कर), १०६०५७-४४/१ " २४ जिन चैत्यवंदन-तीर्थंकरराशिगर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ३, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (शांति नमि मल्लि मेष छे), २४ जिन चैत्यवंदन-भवसंख्यागर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रथम तीर्थंकरतणा), १०५४८९-१५(क २४ जिन चैत्यवंदन-वर्णगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू. (पद्मप्रभुने वासपूज्य दोय), १०५४८९-१७(१) २४ जिन छंद, मा.गु., गा. ५२, पद्य, मूपू., (परम पुरुष नित प्रणमिये), १०५४६६-२ (+) २४ जिन नमस्कार -अतीत, आ. समरचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (उसभ चडवीसी थकी प्रथम जिन) १०५२४०-६(+) २४ जिन नमस्कार-अनागत, आ. समरचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (पद्मनाभ पहिलो जिणंद), १०५२४०-५ (+) २४ जिन नमस्कार- त्रिभंगीसवैयामय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि ब्र., गा. २५, पद्य, भूपू.. (गुहन गंभीर अचल जिम), १०१६८८-३(+४) २४ जिन नमस्कार - वर्तमान, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु. गा. ७, पद्य, मूपू., (आदिजिणेसरदेव सेव तुम्ह) १०५२४०-४) " २४ जिन नमस्कार-वर्तमान, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (रिसह जिणवर रिसह), १०२०२२-३ (+), १०५२४०-७(+) २४ जिन नाम, मा.गु., अंक, २४, गद्य, म्पू. (श्रीरिषभनाथजी), १०५०७७-७(+), १०६४१४-१(+) २४ जिन नाम, माता, पिता, नक्षत्र, यक्ष, यक्षणी, पूर्वभव आदि विवरण यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (ऋषभ १ अजित २ संभव ३), १०४१६९ (+$), १०२४८६ २४ जिन नाम अतीत, मा.गु., गद्य, म्पू. (श्रीकेवलज्ञानी निर्वाणी), १०५८०५-१००) २४ जिन नाम-अनागत, मा.गु., गद्य, मूपू., (पद्मनाभ श्रेणिकनो), १०५८०५-५ (+#), १०६४१४-२(+) २४ जिन नाम राशी जन्मनक्षत्र लंछनादि विचार, मा.गु., को.. म्पू.. (-), १०५६२६ (*) २४ जिन नाम वर्त्तमान, मा.गु., गद्य, म्पू. (श्रीऋषभदेवजी अजित), १०५८०५-२(0) २४ जिन पंचकल्याणक बावनी, मु. पार्श्वचंद्र, मा.गु., ढा. २४, गा. ५२, वि. १६०१, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुपाय प्रणमउं), १०२८६३-५(+) २४ जिनपरिवार स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, म्पू., (भवियण भावे बंदीइ रे लाल), १०६१३२-१ २४ जिन पूजा, श्राव. रामचंद्र चौधरी, पुहिं., पूजा. २४, वि. १८५४, पद्य, दि., (सिद्धि बुद्धि दायक), १०४५२७ (+), १०६१८५(+), १०६०८४, १०६३१५, १०४८२० ३) १०६००४(४) . २४ जिन पूजा - वर्तमान चौवीसी, जै.क. वृंदावनदास, पुहिं., दोहा. २२, वि. २०वी, प+ग. दि., (ऋषभ अजित संभव), १०५९८९-४००-६) २४ जिनभक्ति पद, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., चौपा. २, पद्य, दि., (चीवीसी की वंदना हमारी), १०६०५७-४१८) २४ जिन लंछनवर्णन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू. (आदिजिनेश्वर वृषभ अजित कै), १०६२६४ " २४ जिन समवसरण विचार, रा. गद्य, म्पू. (ऋषभदेवनो समवसरण बार), १०३३९४-३(+) २४ जिन सवैया पच्चीसी, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., सवै २५. वि. १८५५, पद्य, श्वे. (सुरतरु जिन समर्थ सदा). १०१६०३ (६) . For Private and Personal Use Only Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ २४ जिन स्तवन, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ६, पद्य, दि., (रिषभदेव रिषभदेव सहाई अजित), १०६०५७-२४४(+) २४ जिन स्तवन, मु. पार्श्वचंद्र, मा.गु., गा. २५, पद्य, मपू., (जिणवर चउवीसहतणा पंच पंच), १०२८६३-६(+) २४ जिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., ढा. ८, गा. १९, पद्य, मूपू., (पंचगुण पंचएगूणजिण), १०२८६३-३(+) २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र पद वंदो रे), १०१९५७-१४(+) २४ जिन स्तवन-अतितअनागतवर्तमान, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूप., (जिणवर केवल वाणी बीजउ नमउ), १०२६७७(+) २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., गा. २९, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (सयल जिणेसर प्रणमुं), १०१७५९-६(+#), १०१९५७-५(+), १०२४०५-४(+$), १०६१६२-८ २४ जिन स्तुति, मु. दयाल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (मंगल कर जिणराय मणै), १०१९५७-६(+) २४ जिन स्तुति, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणेसर केसर चरचि), १०१७२५(+#$) २४ जिन स्तुति पाठ, पुहिं., गा. ३०, पद्य, दि., (तुम तरण तारण भव निवारण), १०५९८९-१४(+-), १०५९८९-२१(+-), १०५९८९-६१(+-) २४ ठाणा चौपाई, क. बुधजन कवि, पुहिं., गा. ५६, वि. १८८१, पद्य, दि., (गुण छियाल करि सहति देव), १०५९९२-३(+) २४ ठाणा विचार, मा.गु., प+ग., मूपू., (गइ इंद्रि काय जोग), १०२७४४(+), १०२८६४(+$) २४ तीर्थंकर स्तुति, श्राव. भगवतीदास भैया, मा.गु., गा. १६, पद्य, दि., (वीस चार जगदीशको बंदो), १०४९२२-८२(+) २४ तीर्थजिन स्तोत्र, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. २८, वि. १६८६, पद्य, मूपू., (प्रणमि सरसति चरण कमल भगति), १०१७५९-३(+) २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (शरीर अवगाहणा संघयण), १०२४४०-१(#S) २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम नामद्वार बीजु), १०११११(+), १०२०४१(+s), १०२६१८(+), १०५०७२(+), १०५१९३(+) २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (दंडक लेश्या ठित्ति), १०५६६१(+$), १०२९९९($) २४ दंडक ५६३ भेद विवरण-गतागति, मा.गु., गद्य, पू., (सप्त नरके समुचे गति), १०६०६७-१ २४ दंडक गतिआगति स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीमहावीर नमुं करजोडि), १०१८०१-५(+) २४ दंडक चौपाई, मु. दोलतराम, पुहि., गा. ५७, पद्य, श्वे., (वंदो धीरसु पीर हर), १०५९९२-१(+) २४ दंडक संक्षिप्तविचार, रा., गद्य, मपू., (साते नरकरो एक दंडक), १०३३९४-२५(+) २४ द्वारे अल्पबहुत्व विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (जीव गइ इंदिय काए जोग), १०२५७२(+#$). २४ नाम, जिन राशि, नक्षत्र, योनि, गण, वर्ग, हंसक विवरण कोष्टक, मा.गु., को., मपू., (--), १०११३४-५(+) २४ बोल-परमकल्याणकारी, मा.गु., अंक. ३०, गद्य, मूपू., (तप करी नीयाणु न करवु), १०५८०५-५५(+#) २५ बोल थोकडा-जीवगती शरीरादि, मा.गु., गद्य, श्वे., (नरकगति १ तिर्यंचगति २), १०२२०० । २५ मिथ्यात्व नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (जीवे अजीव संज्ञा १), १०१८६३-१६(+), १०५८०५-१९(+#) २७ द्वार अल्पबहुत्व विचार-दिशा आदि, मा.गु., गद्य, मप., (दिसि गति इंदिय काए), १०१८६३-१७(+) २७ नक्षत्र-वार-राशि रोगमुक्ति प्रश्नावली, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (अश्वनी नक्षत्रे सोम शुक्र), १०१९७८-५(#$) २७ बोल, मा.गु., गद्य, मपू., (पहिले बोले गति च्यार), १०५०३२ २७ सती सज्झाय, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (ज्यां नमतां दुख जायै दूरा), १०२३७३-५ २८ नक्षत्र प्रश्नावली, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (अश्वनी निक्षत्र काणो), १०१९७८-४(१) २८ लब्धि नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आमोसही विप्पोसही), १०२४४०-९(#) २८ शिखामण बोल, रा., गद्य, मूपू., (जीणरी सरदणा परुपणा), १०२९०८-१ ३० उपमा-साधु की, मा.गु., अंक. ३०, गद्य, श्वे., (कांसी के भाजनकी १), १०५८०५-१०(+#) ३० चौवीसी जिन पूजा, क. चुनिलाल, पुहिं., प+ग., दि., (तीर्थंकर सरवग्य जिन यह जग), १०५९८९-२४(+-) ३० चौवीसी पूजा, मु. रविमल, पुहिं., वि. १९०८, प+ग., दि., (--), १०५९८९-४१(+-$) For Private and Personal Use Only Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५४४ " ३० बोल- दुषमकाल, मा.गु., गद्य, श्वे. नगर ते गामसरखा थशे), १०५८०५-२२(क) ३० बोल- साधु, मा.गु., गद्य, म्पू, (बोल छ कायना जीवनी हिस्या), १०५८०५- १७००) ३१ गुण सिद्ध के, मा.गु., गद्य, श्वे., (लांबउ १ बादलउ २), १०५०२४-११ ३२ असज्झाय विचार, मा.गु. गद्य, मूपू (उकाबाड़ कहता तारो तूट), २०५८०५-१३(०४) "" ३२ बोल संग्रह-आलोयणा, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहले बोल अलोवनी सल), १०५८०५-१२(+#) देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ३३ आशातना विचार-गुरुसंबंधी, मा.गु., गद्य, मूपू. (पहलो बोल गुरु आगल), १०१११६-१(+), १०५८०५-१४२+मण ३४ अतिशय नाम, मा.गु., अंक ३४, गद्य, म्पू, (अद्भूतरूप अद्भूत अंग), १०५८०५-७) ३४ अतिशय वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., ( नमो अरिहंताणं अरिहंत), १०३३९४-४ (+) ३५ बोल-गत्यादि थोकडो, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहेले बोले गति चार), १०१६२१, १०१६२२ ($) ३५ वाणीगुण, रा., गद्य, मूपू., (संस्कृत बोलै उंचे), १०३३९४-५ (+) ४५ आगम नाम, मा.गु, गद्य, भूपू., (आचारांग‍ सुयगडांग२) १०९८६३-८(+) ४५ आगम पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., डा. १७, वि. १८८१, पद्य, म्पू, (श्रीशंखेश्वर पासजी), १०२६१६ (०३) ४५ बोल- विनय, मा.गु., गद्य, मूपू., (आचार्यजीनो विनय १), १०५८०५-३६ (+०) ५२ अनाचार वर्णन साधु जीवन के, मा.गु., गद्य, मूपू ६२ मार्गणा ४ गति पर्याप्तापर्याप्त यंत्र, मा.गु. यं., म्पू. ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिउं अरिहंताई बोले), १०१४९०(+$) " (उद्देशिक आहार लेवें), १०५८०५-२६(+) (-), १०२०३१-३ ६२ मार्गणा बोल २१ द्वार, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), १०२०३१-१ (S) ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु.. ,., को., मूपू., (देवगति मनुष्यगति), १०४५०१-६ (+#$), १०२०३१-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६२ मार्गणा सवैया, मु. रुपपति, मा.गु., सबै १, पद्य, मूपू (देवगति मनुष्यगति), १०१५०२-४(+) " ६३ शलाकापुरुष नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१२ चक्री १ दिर्घदंत), १०५९२९-४ ६४ इंद्र नाम, मा.गु., गद्य, वे., (चमरेंद्र धरणेंद्र), १०५९२९-५($) ६४ प्रकारीपूजा विधि, मा.गु., गद्य, मृपू., (विशाल जिनभुवनमं सुम), १०५३४०-२(+०६) ६४ प्रकारी पूजा विधिसहित पं. वीरविजय, मा.गु., पूजा. ६४, वि. १८७४, पद्य, मूपू. (श्रीशंखेश्वर साहिबो १०५३४०-१(१) ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु. दा. ५. गा. २३, वि. १७४३, पद्य, म्पू (वरतमान चोवीस बंदु), १०५११४-३ ९८ बोल का बासठिया, रा., गद्य, श्वे., (पेले बोले सरवसुं), १०५१७६(+#) ९८ बोल-जीवअल्पबहुत्व विषयक, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहमंते सव्व जीवा), १०२६६३-५(+$) ९९ प्रकारी पूजा-शत्रुंजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ११, वि. १८८४, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), १०१९९३-१+०), १०५८०३(*), १०९३६५(३) (२) ९९ प्रकारी पूजा शत्रुंजयमहिमागर्भित विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मृपू., (जघन्य ९ कलशवाला) १०१९९३-२(+) १२४ अतिचार विचार श्रावकव्रत, मा.गु., गद्य, मृपू., (ज्ञानना ८ दर्शनना ८) १०१६८८-२(४) १२५ प्रश्नोत्तर माला, पुहिं., प्रश्न. १२५, गद्य, दि., (णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं), १०६१९० २२२ बोल-लब्धि २१ द्वार, मा.गु., गद्य, वे., (पांच ज्ञानना भेद), १०२६६३-४(+) ५६० अजीव भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्मास्तिकाय खंध देस), १०१८६३-१५(+) ५६३ जीव बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, स्था., (जीव गइ इंदीये काए), १०१५६६($) ५६३ जीवभेद ५६० अजीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू (जीवना भेद पाचसे त्रेसठ), १०१२८५ ५६३ जीवभेद विचार, पुहिं., मा.गु., गद्य, म्पू., (उंचा लोक में ५६३ भेद), १०१८६३-१(०), १०४९७२(+) ५६३ जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नारकी सात नरकना पर्याप्त), १०१०५७- २(+४), १०९८६३-१४+१ ५६३ जीवविचार बोलसंग्रह *, पुहिं., मा.गु., गद्य, मूपू., ( जीव का भेद बेइंद्री का), १०५४९३(+) अंगुलमान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (अनुयोगद्वारमध्ये), १०१४६१-३ अंजनासती रास, मा.गु., गा. १५९, पद्य, म्पू. (--) १०२००६ (+) For Private and Personal Use Only Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ ५४५ अंजनासुंदरी रास, मु. पुण्यसागर, मा.गु. खं. ३ ढाल २२, गा. ६३२, वि. १६८९, पद्य, मूपू. ( गणधर गौतम प्रमुख), १०२९३६ (+) अंजनासुंदरी रास, मा.गु., गा. १५६, पद्य, श्वे. (अरिहंत सिद्ध समरु), १०१९७५-१(+-#$) " अंजनासुंदरी रास, मा.गु., ढा. २२, गा. १६५, पद्य, मूपू. (शील समो वड को नही). १०११६१+०३), १०१८७७(+३) १०१९४०(०), १०१५६२, १०१९९४, १०५०८३(५६) अंतरायकर्मनिवारण सिद्ध आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., चौपा. ७, वि. १८वी, पद्य, दि., (भूपद लावै दरव को भंडी न), १०६०५७-३८६(+) " अंबिकादेवी स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू (मात अंबाय भजो उठ प्रात सब) १०६१३३-१(०) अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (वीरजिणंद वांदीने), १०५६३०-१२(+) अक्षरछत्तीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुडिं, गा. ३६, पद्य, दि., (ॐकार अपारगुण पार न पावे), २०४९२२-५ (+) अक्षरबत्तीसी, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ५०, पद्य, मूपू., (सारद में हर घरी मो उपर खिण), १०१३९५-२ (+) अक्षरबत्तीसी, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ४०, पद्य, मूपू., (सुप्रसन होज्यो सारदा बहुल), १०१३९५-१(+) अक्षरबावनी, वा. किसनदास, पुहिं., गा. ६१, वि. १७६७, पद्य, श्वे. (ॐकार अमर अमार अज), १०१८२७-१(+$) अक्षरबावनी, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. १४, पद्य, दि., (ॐकार सब अछर कौ सब मंत्र), १०६०५७-३८९(+) अक्षरवावनी, मु. धर्मवर्धन, पुहि गा. ५७, वि. १७२५ पच, मूपू., (ॐकार उदार अगम अपार), १०१७१६ (5) अक्षरबावनी, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ८५, पद्य, मृपू., (ॐ करे उल्लास ॐ घट ज्ञान), १०१३९५-३(+) अक्षरबावनी, मा.गु. गा. ५८, पद्य, म्पू. (ॐ अक्षर अलख गति धर्म) १०९५६५-१(+४) अक्षरवावनी संबोध, जै.क. द्यानतराय, पुहिं, गा. ५२, वि. १७५८, पद्य, दि., वो उकार मझारि पंच परम पद), १०६०५७-३(+) " अजितजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (अजितनाथसुं मलावो रे करसौं), १०६०५७-१४४(+) अजितजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (तार किरतार संसार), १०५३६२-१२(*) अजितजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (विजयनंदन जिनजी मुझ), १०५६३०-१८(+) अजितजिन स्तवन, मा.गु., गा. ११, पद्य, भूपू (सुर गिरिवर जिम धीरुए) १०२०२२-८(+) अज्ञान परिहार गीत, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे. (मूर्ख भावि न हु करि), १०१७५८-१० " अट्ठाईपर्व पूजा-नंदीश्वरद्वीप, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., गा. २२, वि. १८वी, प+ग. दि., (सरब परब में बड़ अठाई), १०६०५७-५९(+) अतीत अनागतवर्तमानजिन पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि. (नम सिद्ध सम आतमा) १०४९२२-४५ (+) अध्यात्म गीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रणमियै विश्वहित), १०९८६६-१ (+), १०२८११-२(+), १०१९४७ ($), १०२६९५ ($) (२) अध्यात्म गीता-बालावबोध, मु. कुंअरविजय, मा.गु. ग्रं. १२५०, वि. १८८२, गद्य, मूपु., (संवेगी सिरदार सिरोमणि जिन), १०२६९५ (5) (२) अध्यात्मगीता-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणमीये क० भक्ति), १०१९४७($) " अध्यात्मपंचाशिका, जै. क. द्यानतराय, पुहिं. गा. ५०, वि. १८वी, पद्य, दि., (आठ करम के बंध में बंधे) १०६०५७-३८८(+) अध्यात्म फाग, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, दि., (अध्यातम बिनु क्यों), १०१८०१-६(+) अनंतजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अनंत जिनराजना चरणनी), १०५४०१-१९(१) अनंताजिन पूजा, आ. पद्मनंदि, पुहिं., गा. १०, प+ग. दि., (अनंतचतुष्टय आदि दे गुण), १०५९८९-३९(+) अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रेणिक रयवाडी चड्यो, १०१८४७-९(+$), १०२५१७-३(+), १०५६३०.९(०) अनादिवत्रीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं. गा. ३३, वि. १७५०, पद्य वि., (अष्टकर्म अरिजीतकै भए), १०४९२२-७४(+) अनित्यपच्चीसी, श्राव. भगवतीदास भैवा, पुहिं. गा. २७, पद्य, दि. (नरलोकनि केईस नागलोकनि), २०४९२२-६४(क) अन्यत्वभावना लावणी, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., गा. ५, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (सजन तू गाफिल किस वलतै रे), १०१८६८-३९(+) अबबद शुकनावली. मु. सुजाणसिंह, पुहिं. वि. १७९४, गद्य थे., इतर (महावीर की ध्याइके), १०५६७५ (चा For Private and Personal Use Only Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ अबयदी प्रश्न, पुहि., गद्य, जै.?, (ए च्यारि अक्षर पाशे), १०२८४३-१(+) अभिनंदनजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (सेउं स्वामी अभिनंदन को ले), १०६०५७-४१९(+) अभिनंदनजिन पद, ग. मेघरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूप., (जिन पायु रे जिन पायु आज), १०२४६८-३(#) अभिनंदनजिन स्तवन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूप., (दुल्लह नरभव पामिय), १०२०२२-९(+) अभिमान परिहार गीत, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (भाई ए वचन विचार खमो), १०१७५८-४ अमरदत्त चौपाई, मा.गु., खं. ४ ढाल ३४, गा. ७९३, पद्य, श्वे., (पहिलु प्रणमुंशारदा), १०१४५८(+) अमरसिंघ श्लोको, मा.गु., गा. ३५, पद्य, वै., इतर, (सरसति सामण तुज पायेज),१०५९५३-७(+#) अरणिकमुनि गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (विहरण वेला पांगुर्यउ), १०१९२०-७(+) अरणिकमुनि रास, मु. आणंद, मा.गु., ढा. ८, वि. १७०२, पद्य, मपू., (सरसति सामिणि वीन), १०१६२७-२(#) अरणिकमुनि सज्झाय, वा. भुवनकिरति, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अरहन्नकमुनि एक समइ), १०१९२०-१७(+) अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), १०२५१७-२२(+) अरणिकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), १०१८४७-१(+$) अरदास चौपाई, मु. कुस्यालचंदजी; मु. धन्नो, मा.गु., ढा. ६४, वि. १८७९, पद्य, श्वे., (अरीगंजण अरीहंतजी), १०२१४६(+), १०५७२५(+) अर्जुनमाली लावणी, मु. रामकृष्ण ऋषि, मा.गु., गा. ४१, वि. १८६८, पद्य, श्वे., (मगघी देस माहे राजग्रही), १०२६४४-८(+-) अर्द्धपुद्गलपरावर्त्तनविचार सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीजिन उपदेशें सुलल), १०५६५५-५ अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (आवो आवोने राज श्रीअर), १०२७९३-९(+#) अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. २२, वि. १८२१, पद्य, मूपू., (आबुगिरंद सुहामणौ), १०५११४-२२ अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. २२, पद्य, पू., (जात्रीडा भाई आबूजीनी), १०५११४-३१ अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, आ. शांतिसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (परबत जोयण बार रलीआमण), १०३२३०-२८(+) अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १३, गा. १०७, वि. १७४१, पद्य, मूपू., (मुनिवर आर्य सुहस्ति), १०११०८-१(+s), १०१३८४(+), १०२४०८(+#), १०३६७२,१०१५७०() अवंतिसकमाल सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ११, पद्य, मप., (ए संसार असार छ साचो), १०२५१७-११(+) अवज्ञा परिहार गीत, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (पोति होइ जे नर पाप), १०१७५८-३ अष्टकर्म चौपाई, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. २७, पद्य, दि., (नमौं देवसर वज्ञ कौं), १०४९२२-६५(+) अष्टदोषपालन दोहा, मु. हीर, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., इतर, (लाभ टले रवि रेषदे थावर), १०२१३२-२(#) अष्टमीतिथिपर्व चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १९वी, पद्य, मपू., (महा सुदी आठमने दिने), १०५४८९-२१(-2) अष्टमीतिथिपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (श्रीसरसतिने चरणे), १०५७२७-१०(+) अष्टमीतिथिपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २४, वि. १८वी, पद्य, मपू., (हां रे मारे ठाम धर्मना), १०२६२४-१५(+#$), १०२६४६-६(+), १०५४२४(६) अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (चोवीसे जिनवर प्रणमु), १०६४१८-९(#) अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अभिनंदन जिनवर परमानं), १०५२९६-१६(+) अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूप., (मंगल आठ करी जिन आगल), १०१६७१-६(+-), १०५२६७-४(+) अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., गा.४, पद्य, म्पू., (अष्टमी अष्ट परमाद), १०६३२१-७ अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (महामंगलं अष्ट सोहै), १०२७५३-४(+), १०२७०७-२२,१०६४१८-३२(2) अष्टान्हिका पूजा, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ९, प+ग., दि., (सरव परव मैं सार अठाई पर्व),१०५९८९-२८(+-), १०६०१२-२५ अष्टान्हिका पूजा जयमाला, जै.क. भैया, पुहि., गा. १४, पद्य, दि., (वंदौ अरिहंत देवकौ वंदौ), १०६०१२-२६ अष्टापदतीर्थ सलोको, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., गा. ५५, पद्य, पू., (अजारी आगल ओलग जाए), १०५४६६-१(+) अष्टापदतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मपू., (अष्टापदगिरि जात्रा करणकुं), १०१५७१-१(#) For Private and Personal Use Only Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ ५४७ अष्टापदतीर्थ स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६६, पद्य, स्पू., (वागवादिनी वागेसरी), १०५२३६(+$) असंख्यात अनंत विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (यथोक्त भेद स्पष्ट), १०१६७५-६(+) असज्झाय विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूक्ष्म रज आकाश थकी), १०२६७३($) असज्झाय विचार-चंद्रसूर्यग्रहण, पुहि.,मा.गु., गद्य, मूपू., (असज्झाइ ते किम किणहि), १०६३३०-१(+) असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, मप., (प्रणमुं श्रीगौतम), १०५६३०-५(+) अस्वाध्यायसित्तरी, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ७२, पद्य, मूपू., (श्रीगुरु पय नमि नामी शीश), १०११०५ आगमगत चर्चा बोल-विविध प्रश्नोत्तर, मा.गु., प्रश्न. ४९, गद्य, श्वे., (श्रीउत्ताधेन सुत्त मधे २८), १०१८६३-१२(+) आगमग्रंथमान वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (२५०० श्रीआचारांगसूत्र), १०१८४५-२(+) आगमवचन चौपाई, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., गा. २१२, वि. १६१७, पद्य, मूपू., (वंदु चउवीसे जिणराय), १०१३७७(-2) आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., वि. १७७६, गद्य, मूपू., (हिवै भव्यजीवने), १०६४१५(६) आगमिक प्रश्नोत्तरी, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., प्रश्न. ७४, वि. १६वी, गद्य, मूपू., (श्रीउत्तराध्ययन २६मइ), १०२५१५-१(+#) आगमिक प्रश्नोत्तरी, मा.गु., गद्य, मपू., (लोक आश्री प्रस्तते), १०१५१७(+$) आचारबावनी, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ५१, पद्य, मूपू., (गच्छ निवासी मुनि भला), १०२०२२-१(+) आचार्य ८ संपदा, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ आचार संपदा २ रूपसं), १०५८०५-३३(+#) आचार्यपद आरती-३६ गुणगर्भित, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ११, वि. १८वी, पद्य, दि., (पंचाचार छत्तीस गुन सात), १०६०५७-४३८(+) आत्मगीता, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ८, पद्य, दि., (आतम महि बूब पार आतम), १०६०५७-३९२(+) आत्मशिक्षा बालावबोध, मा.गु., गद्य, मपू., (तिहां प्रथम ए आत्मा), १०५४६७ आत्मा आरती, क. बिहारीदास, पुहि., गा. ८, पद्य, दि., (करो आरती आतमदेवा गुन), १०६०५७-३२(+) आत्मावलोकन, श्राव. दीपचंद शाह, अ.भा., गा. १४, गद्य, दि., (दप्पणदसणेण य ससरुवं), १०४२५२-१ (२) आत्मावलोकन-वचनिका, पुहिं., गद्य, दि., (आरसी के दृष्टांत करी इहां), १०४२५२-१ (२) आत्मावलोकन-पद्यानुवाद, पुहि., पद्य, दि., (गुण गुण की सुभाव विभावता),१०४२५२-२ (२) आत्मावलोकन-छाया, सं., श्लो. १४, पद्य, दि., (दर्पण दर्शनेन च),१०४२५२-१ आदिजिन चरित्र, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४७, वि. १९४०, पद्य, स्था., (अरिहंत सिद्धने आरिया),१०५५७७(+) आदिजिन चैत्यवंदन, मु. कीर्तिविजय, मा.ग., गा. ३, पद्य, मप., (आदिजिनेसरने नमो भावें भवि), १०१२१९-९(+#) आदिजिन चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (आदिदेव अलवेसरु), १०५४८९-५(-2) आदिजिन चैत्यवंदन-चंद्रकेवलिरासउद्धत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, मपू., (अरिहंत नमो भगवंत), १०५४८९-१(-2) आदिजिन धवल, श्राव. वच्छ भंडारी, मा.ग., वि. १४७१, पद्य, मप., (जिण चउवीस आराहिसं ए), १०२९६५-२(#) आदिजिन पद, मु. गिरधारी चंद, पुहिं., पद. ३, पद्य, श्वे., (बिसर मति नाम निरंजन को), १०५६८६-१०(+) आदिजिन पद, श्राव. गोकलचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (अब मोहि तारि ले आदिजिनेस), १०६०५७-३३६(+) आदिजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (आदनाथ तारन तरन नाभिराय), १०६०५७-१५३(+) आदिजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., (जाकौ इंद्र अहमिंद भजत चंद), १०६०५७-३४९(+) आदिजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., (तुम तार करुणा धरुं स्वामी), १०६०५७-२८१(+) आदिजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., (देख्यौ नाभिनंदन जगत वंदन), १०६०५७-३१०(+) आदिजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (भज श्रीआदि चरण नमे रे), १०६०५७-१२४(+) आदिजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (भजि भजि रे मन आदिजिनंद),१०६०५७-२३३(+) आदिजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (भम्यौ जीवम्यौं संसार), १०६०५७-९०(+) आदिजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. २, पद्य, दि., (माई आज आणंद है या नगरी), १०६०५७-१८१(+) आदिजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. २, पद्य, दि., (मैं वंदा स्वामी तेरा भव), १०६०५७-२५६(+) For Private and Personal Use Only Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५४८ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आदिजिन पद, जे. क. द्यानतराय, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., (मै ती रुल्यो चिरकाल जग), १०६०५७-८४(+) आदिजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., ( रिषभदेव जनम्यौ धन घरी), १०६०५७-१७२(+) आदिजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (स्वामी नाभिकुमार हम क्यौ), १०६०५७-२६०(+) आदिजिन पद, ग. मेघरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मृपू., ( आजमिं चितमिं आनंद पायो), १०२४६८- ९(१) आदिजिन पद, ग. मेघरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, म्पू, (चरीयाचचुया नीच कीवकी सुनी), १०२४६८-१४(४) आदिजिन पद, ग. मेघरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., ( मेरो ही जीवन प्यारु रीसभ), १०२४६८-६ (#) आदिजिन पद, मा.गु गा. ३, पद्य, श्वे. (आदिजिण मयाकरा लागी तुमसे), २०१४८९-७/(m) आदिजिन पद, मा.गु गा. ४, पद्य, मूपू (सिरि नाभिनरेसर कुलवयंस), १०९६४६-४(*) " आदिजिन पद- जन्मबधाई, जे.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, वि., (आज आनंद वधावा जनम्य), १०६०५७-२१०+) आदिजिन पद-जन्मबधाई, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (आज तो बधाई राजा नाभ), १०६१३३-३(#) आदिजिन रास, आ. गुणरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, मूपू., (आदिक्षर ॐकारसिउ अरिहंत पय), १०२९३० (+#$) आदिजिन रास, आ. दर्शनसागरसूरि, मा.गु. ख. ६, श्लो. १०३३७, ग्रं. ८१३७, पद्य, मूपू (स्वस्तिश्रीशोभासूमति), १०२६०४ ', आदिजिन रेखता, जै. क. चानतराय, पुहिं, गा. ३६, पद्य, दि. (तुम आदिनाथ स्वामी), १०६०५७-३९८ (+) आदिजिन लावणी, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., गा. ४, वि. १९वी पद्य, खे, (श्रीरिषभदेव का ध्यान हिये), १०१८६८-४० (+) आदिजिनविनती स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ५५, पद्य, मूपू., (सकल आदि जिणंद जुहारि), १०२०२२-५(+), १०२८६३-४(१) आदिजिनविनती स्तवन शत्रुंजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ४५, वि. १५६२, पद्य, मूपू. (जय पढम जिणेसर), १०५२२४-४ आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुंजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ५७, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (आदिश्वरप्रभुने विनंत), १०५००२ (०३) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir י: י: आदिजिन विवाह पद, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (आज आनंद कछु कहन बनै), १०६०५७-१८० (+) आदिजिन विवाहलो, मु. गुणनिधानसूरि शिष्य, मा.गु., ढा. ४४, गा. २४३, पद्य, मूपू., (सासनदेवीय पाय प्रणमेवीय), १०१६८० (+) आदिजिन विवाहलो, मा.गु., ढा. ५, गा. २७, पद्य, मूपू., (शासन देवीअ पाय), १०१८९६ ($) आदिजिन स्तवन, मु. अमर, पुहि., गा. ९, वि. १७३३, पद्य, मूपू. (श्रीरिषभदेव मन सुद्ध), १०१९५७-७(+) आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, म्पू, (ऋषभ जिणेसर प्रीतम ) १०५३६२-१), १०५६८६-१९(०) आदिजिन स्तवन, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., गा. १२, वि. १८७१, पद्य, मूपू., (सुगुण सहेजा सांभलो), १०५११४-२४ आदिजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मन मधुकर मोही रह्याउ), १०५६८६-२० (+) आदिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि पुहिं. गा. ७, पद्य, मूपू (एसो अनोपम साहिब मेरो) १०५४०१-६ (*) " आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (लग्या मेरा नेहरा), १०५६८६-१३(+) आदिजिन स्तवन, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू. (त्रिभुवननायक ऋषभजिन), १०५११४-२१ आदिजिन स्तवन, मु. पार्श्वचंद्र, मा.गु., गा. ४७, पद्य, मूपू., (मंगलकारण सुकृत निवास), १०२८६३-१(+) आदिजिन स्तवन, मु. पार्श्वचंद्र, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (विमलगिरि इंदइंद भवियाणं), १०२८६३-८(+) आदिजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (शत्रुंजय मंडण आदिजिन), १०२८६३-९(+) आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू. (पीउडा जिनचरणानी सेवा), १०२६४६-९ (+) आदिजिन स्तवन, मु, मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू.. (बालपणे आपण ससनेहि), १०५७३६-११(+) आदिजिन स्तवन, उपा. रत्ननिधान, मा.गु., गा. १२, वि. १६४४, पद्य, म्पू, (अभिराम सोरठ भूमि), १०५५६३-१० आदिजिन स्तवन, मु, लायककुशल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अविहड प्रीत ऋषभजिन तुम), १०२६४६-११(+) आदिजिन स्तवन, मु. लायककुशल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नाभिनंदन गुण गावता), १०२६२४-१(+#$) आदिजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ११, वि. १८३९, पद्य, ., (ऋषभ जिणेसर त्रिभुवन), १०५११४-३६ आदिजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. १८, पद्य, म्पू (ऋषभ घरि आवइ रे घर आवो) १०९७५९-७(+) आदिजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, सिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (मरूदेवी माता इवैं आख), १०१९२० - ३ (+) " For Private and Personal Use Only Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ ५४९ आदिजिन स्तवन, उपा. सहजकीर्ति, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूप., (विमलगिरि सिखर गजराज), १०५११४-२० आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (ऋषभजिणंद गरीबनिवाज सेवक), १०३६७९-४(#) आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. २६, पद्य, मपू., (जोग न मांड्यो मै घर), १०५२२४-१ आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभुजी आदिजिणंद मल्हार), १०३६७९-३(#) आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (रिसह जिणेसर वीनवउ देव), १०२०२२-७(+) आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (श्रीआदि जिणेसर तू परमेसर), १०६३७२-१ आदिजिन स्तवन-२४ दंडक गतिआगतिविचारगर्भित, ग. धर्मसुंदर, मा.गु., ढा. २, गा. २६, पद्य, मूपू., (आदीसर हो सोवनकाय), १०५११४-२८ आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ३, गा. २६, वि. १७२६, पद्य, मूप., (प्रणमुं प्रथम जिनेसर), १०१६८८-९(+#) आदिजिन स्तवन-आनंदपरमंडन, मा.गु., पद्य, मप., (आनंदपुरमंडन आदिजिणेसर), १०१२१९-१५(+#$) आदिजिन स्तवन-आबुतीर्थमंडन, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (आबुगढ रलीयामणो जिनराजै छे), १०१२१९-१(+#$) आदिजिन स्तवन-जन्मबधाई, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आज तो बधाइ राजा नाभि), १०२०३५-१२(+) आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, उपा. विजयतिलक, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (पहिलु पणमिअ देव), १०२५६०-१ (२) आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (हं पहिलु धुरि), १०२५६०-१ आदिजिन स्तवन-मुंबईबंदरकोटे भायखलामंडन, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ७, वि. १८८८, पद्य, मूप., (सुखकर साहेब रे पामी), १०५९०९-२(+) आदिजिन स्तवन-वृद्ध, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (करजोडी इम वीन), १०५११४-१२ आदिजिन स्तवन-शजयतीर्थमंडन बृहत्, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (प्रणमवि सयल जिणंद), १०२४०५-१(+), १०५२२४-३ आदिजिन स्तवन-सम्यक्त्व गर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (समकित द्वार गभारे), १०५६३०-१६(+) आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मपू., (प्रह उठी वंदु ऋषभदेव), १०५२६९-१५(+) आदिजिन स्तुति, श्राव. चंपाराम दीवान, मा.गु., गा. १, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (ॐनमो श्रीआदि गुरु सकल),१०१८६८-१(+) आदिजिन स्तुति-उन्नतपुरमंडन, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (उन्नतपुरमंडण जगतधणी), १०२३७१-१(+#) आदिजिन स्तुति-केशरियाजी, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (तुहि अरिहंत तुहि भगवंत), १०६१६२-१५ आदिजिन स्तुति-शत्रुजयमंडन, ग. शुभविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (श्रीविमलाचल गिरवर), १०२५०९-९(+#) आदितव्रत कथा, मु. खुस्याल, मा.गु., गा. १३०, वि. १७८२, पद्य, श्वे., (ऋषभजिनादिक वंदूसार प्रणम्), १०४७९२-१ आदित्यवार कथा, पुहि., गा. १५७, पद्य, दि., (रिसहणाह प्रणम् जिणंद), १०३५४९(+) आध्यात्मिक गीत, मु. लब्धिविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (जब लगे विषय घटा न घट), १०५८४८-२ आध्यात्मिक पद, श्राव. खुस्यालचंद, पुहि., गा. ३, पद्य, दि., (चिन मूरत चेतन प्यारा मैं), १०६०५७-२९४(+) आध्यात्मिक पद, मु. जिनदास, पुहिं., पद. ४, पद्य, मप., (मे नित नमाउं सीस साध),१०१७३४-२($) आध्यात्मिक पद, श्राव. दीपचंदजी, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (जिय तोको मुनि मुद्रा हित), १०६०५७-१९७(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (अनहद शबद सदा सुन रे), १०६०५७-३०२(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (अब समझ कही अब कौन कौन), १०६०५७-३७०(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा.४, पद्य, दि., (अब हम अमर भए न मरेंगे), १०६०५७-१४५(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा.४, पद्य, दि., (अब हम आतम कौं पहचान्यौ), १०६०५७-१०२(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (आतम अनुभव सार हौ अब जीय), १०६०५७-२६३(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (आतम अनुभौ करना रे भाई),१०६०५७-१००(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (आतम को पहचाना है हम आतम), १०६०५७-२७४+) For Private and Personal Use Only Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५५० www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं. गा. ४, वि. १८वी, पद्य, वि. (आतम जान में जाना म्यान), १०६०५७-२८८(क) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं, गा. ४, पद्य, दि., (आतम जान रे जान० जीवन की), १०६०५७-८७) आध्यात्मिक पद, जै. क. द्यानतराय, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि. (आतम रूप अनूप है घटमांहि), १०६०५७-१०६ (*) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं. गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि. (आप मै आप लगा जीसु होतो), १०६०५७-२६९(१) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ६, पद्य, दि., (एक ब्रह्म तिहूं लोक मझार), १०६०५७-२४८ (+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं. गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (ए मन ए मन कीजिये भज प्रभु), १०६०५७-२९१(१) आध्यात्मिक पद, जै. क. द्यानतराय, पुहिं. गा. ३. वि. १८वी, पद्य, दि., (एरे मन गाय लै श्रीजिनराय), १०६०५७-२७२(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. २, पद्य, दि., ( कब हो मुनवर को व्रतधर हो), १०६०५७-२६२(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि. (कर कर सतसंग तेरे भाई), १०६०५७-१९४(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (कर मन निज आज आतम चितौन), १०६०५७-२२७(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., (करम रेखा पै मेख मारौ), १०६०५७-३७१(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं, गा. ४, पद्य, दि., (करि करि आतमहित रे प्राणी), १०६०५७-७० (+) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. २, पद्य, दि., (कर्मनि कौपे ले), १०६०५७-४११(+) आध्यात्मिक पद, जै. क. द्यानतराय, पुहिं. गा. २, पद्य, दि., (कहिये जो कहिवे की होय), १०६०५७-३६५ (क) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (कारज एक ब्रह्मा सेती अंग), १०६०५७-१३९ (+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., ( काहे कूं सोचत अतिभारी रे), १०६०५७-८० (+) आध्यात्मिक पद, जै. क. द्यानतराय, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., (कीजै हौ आतम सभार भक्की), १०६०५७-१८३(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (कौन काम मैंने कीने अब), १०६०५७-२७१(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., (गलता नमताव आवेगा राग दोष), १०६०५७-७४(7) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (ग्याता सोई सचा वै जिन आतम), १०६०५७-३५० (+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., (ग्यान गेय मांहि नांहि गेय), १०६०५७-३०८(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं, गा. ४, पद्य, दि., (घट में परमातम ध्याइयै हो), १०६०५७-१०९(4) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., (चाहत है सुखपै न गाहत है), १०६०५७-३०९(+) आध्यात्मिक पद, जै. क. द्यानतराय, पुहिं. गा. ३. वि. १८वी, पद्य, दि., (चेतन जी तुम जोरत हो धन), २०६०५७-२६७(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (चेतन तुम चेतौ भाई ऐसो नर), १०६०५७-२६५ (+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., चौपा. ६, वि. १८वी, पद्य, दि., (चेतन नागर हौ अहो तुम चेतन), १०६०५७-३७९(+) आध्यात्मिक पद, जै. क. द्यानतराय, पुहिं. गा. २, पद्य, दि. (चेतन मान असाडी बतिया यह) १०६०५७-२६१(*) आध्यात्मिक पद, जे. क. द्यानतराय, पुहिं. गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (चेतन मानले बात हमारी) १०६०५७-२८६(१) आध्यात्मिक पद, जै. क. द्यानतराय, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., (जान कीं नहीं रे नर आतम जान), १०६०५७-७१(+) "" , पद्य, दि., ( जानी धनसी धनसी धीर वीर), १०६०५७-३०५०) (जानी पुगल न्यारा रे भाई), १०६०५७-२२८(+) आध्यात्मिक पद, जे.क. द्यानतराय पुहिं. गा. ३, वि. १८वी, आध्यात्मिक पद, जे. क. द्यानतराय, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि. आध्यात्मिक पद, जै. क. द्यानतराय, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., (जिनके हिरदै भगवान वसै तिन) १०६०५७-१४२(१) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (जिन नाम सुमर मन वारे कहा), १०६०५७-७६(+) आध्यात्मिक पद, जै. क. द्यानतराय, पुहि गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (जिनपद चाहै नांहि कोय), १०६०५७-३५८(*) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (ज्यौ ते आत्म हित नही कीना), १०६०५७- १७१(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (तुम कू कैसै सुख है मीत), १०६०५७-१७८(+) आध्यात्मिक पद, जै. क. द्यानतराय, पुहिं. गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., (तुम चेतन हो जिन विषयन संग), १०६०५७-४२८ (०) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (तुम प्रभु कहत दीनदयाल आप ), १०६०५७-९३(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं. गा. ३. वि. १८वी, पद्य, दि., (ते चेतन करुणा न करी रे) १०६०५७-२९३(५) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (तेरी भगति विना धृग), १०६०५७-४१० (+) For Private and Personal Use Only Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (तेरे मोह नही तेरे), १०६०५७-४१६(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (दरसन तेरा मैन भावै), १०६०५७-४०६(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ३, पद्य, दि., (दूरगति गमन निवारियौ घरि), १०६०५७-२५९(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (देखो जिनराज आज राज रिद्धि), १०६०५७-२७३(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (देखो भाई आत्मराम विराजै), १०६०५७-१५०(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (देख्यो भेख फूल ले निकस्यौ), १०६०५७-१५५(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पहिं., गा. ४, पद्य, दि., (देख्यौ सखी सम्यकवान सख), १०६०५७-१६९(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (द्यानत जे करिहैं करुना), १०६०५७-२५३(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (धन ते साध रहे वनमांही), १०६०५७-१०१(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., (निज तस करौ गुन रतन न कौ), १०६०५७-२८७(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (निरविकलप जोति प्रकाश रही), १०६०५७-३०१(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ६, पद्य, दि., (परमेसर की कैसी रीति मोहि), १०६०५७-२४७(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., (पायो जी सुख आतम लखि कै), १०६०५७-४०९(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (प्रभु अब हमको होय सहाय),१०६०५७-११६(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (प्राणी तुम तो आप सुजाण हौ), १०६०५७-२६८(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (प्राणी लाल धरम अगाउ धारौ), १०६०५७-१२५(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (फूली वसंत फूली वसंत जह), १०६०५७-१३६(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा.८, पद्य, दि., (ब्रह्मज्ञान नही जाना रे), १०६०५७-२३०(+) । आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (भव पूजो श्रीजिनंद चित), १०६०५७-१२७(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (भाई अब हम असामै जाना), १०६०५७-८६(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (भैया ए पाप उदोल खरोवत), १०६०५७-१२२(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (भैया सौ आतम जानौ रे), १०६०५७-१८७(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (मन मेरो राग भावसि राग),१०६०५७-८८(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (मनुष जनम सफल भयौ आजि), १०६०५७-१७३(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा.८, पद्य, दि., (मानुष भव पानी दियो जिन),१०६०५७-२२०(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (मानौ मानौ जी चेतन एह विषै), १०६०५७-२५८(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (मेरा मन कहै वैराग राज), १०६०५७-१७५(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (मैं निज आतम कब ध्याउंगा), १०६०५७-९५(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. २, पद्य, दि., (मैंनू भावे जी प्रभु चेतन), १०६०५७-२५५(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (मै एक सुगंध ग्याता निरमल), १०६०५७-१९१(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (मोहे कब ऐसो दिन आय है सकल), १०६०५७-७५(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (री मेरे घट ग्यान घना), १०६०५७-४०७(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (रे जिय जनम लाहा लेह चरण),१०६०५७-८२(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पहिं., गा. ७, पद्य, दि., (रे जिय भजौ आतमदेव जाते), १०६०५७-२२९(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (रे मन भजि दीनदयाल जाकै), १०६०५७-९२(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (लाग रह्यौ मन चेतनसुं जी), १०६०५७-२७७(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (लागा आतम राम सौं नेहरा), १०६०५७-१७६(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (लागा आतम रामसौं नेहरा), १०६०५७-३५९(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (वतस तुम ग्यान विभौ फूली), १०६०५७-१३७(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (वीतराग ए दिन नीकै हमकौं),१०६०५७-२७०(+) For Private and Personal Use Only Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५२ देशी भाषाओं की मूल कति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (वीतराग नाम सुमर वीतराग), १०६०५७-२०९(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (वै परमादी ते आतम राम न), १०६०५७-३५५(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (वै प्राणी संज्ञा निज न), १०६०५७-२७६(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., (श्रीजिनधरम सदा जैवंत तीन), १०६०५७-२०४+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (सब कौं एक ही धरम सहाई), १०६०५७-१७७(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (सब जग कु प्यारा चेतन रूप), १०६०५७-१७०(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (सम्यकति उत्तम भाइ जगत मैं), १०६०५७-८५(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (साधजीने वानी तनक सुहाई), १०६०५७-२७५(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (सुण सुण चेतन लाडले यह), १०६०५७-१८८(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा.८, पद्य, दि., (सुणि चेतन इक बात हमारी), १०६०५७-२३४(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (सैली जयवंती यह होजो शिव), १०६०५७-१५४(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, दि., (सोई ग्यान सुधारस पीवै), १०६०५७-४३३(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (सो ज्ञाता मेरे मन माना), १०६०५७-७८(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (सोहं सोहं ध्याय हो प्राणी), १०६०५७-२६४(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (हम तो कबहू न निज घर आए), १०६०५७-८१(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (हम नि किसी के कोई न हमारा), १०६०५७-८९(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (हम लागे आतम एसु विनासीक), १०६०५७-११५(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ३, पद्य, दि., (हमारे इह दिन यों ही गए), १०६०५७-२५२+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (हमारो कारज कैसे होई कारण), १०६०५७-१४८(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, दि., (हो आतम अनुभौ कीजिये यह), १०६०५७-४३४(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. २, पद्य, दि., (अडानौ ए मन ऐसौ है जिन), १०४९२२-३३(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. २, पद्य, दि., (अरे तैं जुयै जनम गमायो रे), १०४९२२-२१(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. २, पद्य, दि., (अव मैं छाड्यौ पर जंजा), १०४९२२-१८(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (एक सुनि जिनशासन कीवतिया), १०४९२२-२९(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ५, पद्य, दि., (कहा परदेशी को पतियारो मन), १०४९२२-२६(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. २, पद्य, दि., (कहौ परसौं प्रीति कीनी), १०४९२२-३२(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (चेतन परे मोह विश आइ मानत), १०४९२२-४१(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (छांडि दै अभिमान जीय रे), १०४९२२-२८(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पहिं., गा. २, पद्य, दि., (जाको मन लागो निज रूप मैं), १०४९२२-२३(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. २, पद्य, दि., (जिनवानी कै कोन हिता रे), १०४९२२-३९(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (जिनवानी सुनि तुरत सभा रे), १०४९२२-४०(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (जीव कौं मोह महा दुखदाई), १०४९२२-२२(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पहि., गा. ४, पद्य, दि., (जो जो देख्यौ वीतरागर्ने), १०४९२२-३८(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (ते गहिले भाई ते गहिले), १०४९२२-२७(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (देखो मिरी सहिए आज चेतन), १०४९२२-३०(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. ५, पद्य, दि., (नगन दिगंपर मुद्रा धरि कै), १०४९२२-२४(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. २, पद्य, दि., (नर देही वहु पुण्य सौं), १०४९२२-२०(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ७, पद्य, दि., (भविक तुम वंद हु मन धरिभाव), १०४९२२-३५(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (या घटमैं परमातमा), १०४९२२-१९(+) आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. २, पद्य, दि., (श्रीजिन चरणां वुज प्रते), १०४९२२-३४(+) For Private and Personal Use Only Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ आध्यात्मिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (हे चेतन उवे दुख विसरि गए), १०४९२२ -३७(+) आध्यात्मिक पद, जै.क. मानसिंह, पुहिं. गा. २, पद्य, दि., (मैं तो आपको आप जाना त्याग), १०६०५७-३०४(१) आध्यात्मिक पद, मु. हुकम, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (चेतनरूप अनूप सोभागी जास), १०१२०९-१०(#) आध्यात्मिक पद, मु. हुकम, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (ध्यान में ध्यान में हुं), १०१२०९-१(#) आध्यात्मिक पद, मु. हुकम, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (--), १०१२०९-८(#) . आध्यात्मिक पद, श्राव. हेमराज, पुहिं., गा. ५, पद्य, दि., (अरे भईया पिछानौ दीठ समकत), १०६०५७-२८० (+) आध्यात्मिक पद, श्राव. हेमराज, पुहिं. गा. ३, पद्य, दि., (ए री मेरो मरम न जान्यौं), १०६०५७-२७८(०) आध्यात्मिक पद-अलिप्तभावना, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (ग्यानी ऐसो ग्यान विचार), १०६०५७-२३९(+) आध्यात्मिक पद-आत्मनिंदा, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., ( कौन काम मैने कीनो अब लीनो), Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०६०५७-४३०+) आध्यात्मिक पद-ब्रह्म, जै.क. द्यानतराय, पुहिं. गा. ८, पद्य, दि., (भाई ब्रह्म विराजे कैसा), १०६०५७-२४० (+) " आध्यात्मिक पद-शूची, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (या देही की श्रुचि कहा), १०४९२२-१७(१) आध्यात्मिक भ्रमर दोहा, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (भमरा पूछूं वातडी कालो कवण), १०१५६५-३(+#) आध्यात्मिक सज्झाय, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू (धरिव उमाहो रस भरी), १०५४००-१ "" आध्यात्मिक सज्झाय, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं. गा. ६, वि. १९वी, पद्य, खे, (अरे सजन तेरा मन चंचल), १०१८६८-३५ (+) आध्यात्मिक सज्झाय, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मन दरजीकुं जीव कहि), १०१९२०-१०(+) आध्यात्मिक सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, म्पू. (वाल्हेसरजी आतमजीव न जोग), १०५७११(+) आध्यात्मिक सज्झाय-जैनधर्मगर्भित, मु. नग, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (जय जय जय मुनिराज नमो जय), १०३७१४ आध्यात्मिक स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं. गा. ६, पद्य, मृपू., (परमातम परमानंदरूप), १०५४०१-३३(+) आध्यात्मिक होरी-गुरु, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., गा. ६, वि. १९वी पद्य, श्वे. (गुरनने अजब रंग कीना० मोह), १०९८६८-४६(+) " " आध्यात्मिक होरी पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., ( आयो सहज वसंत खेले सब होरी). १०६०५७-१४३(१) आध्यात्मिक होरी पद, जे.क. द्यानतराय, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., (खेलीगी चेतन होरी आए), १०६०५७-४०२ (+) आध्यात्मिक होरी पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., ( नगर मे होरी हो रही), १०६०५७-४०१(+) आध्यात्मिक होरी पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (पीया विन केसे खेलुं होरी), १०६०५७-४०३ (+) आध्यात्मिक होरी पद, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (भली भइ यह होरी आइ आए), १०६०५७-४०४(+) आध्यात्मिक होरी पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., (होरी आई आजि रंग भरी) १०६०५७-४०५१) आध्यात्मिक होरी पद, जे.क. द्यानतराय, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., (होरी चेतन खेले होरी सत्ता), १०६०५७-१४०(क) आनंदघन गीतबहोत्तरी, मु. आनंदघन, पुहिं., पद. ७८, पद्य, मूपू., (क्या सोवे उठि जाग बाबरे), १०३६४५ (+#), १०५८४८-१, १०१७२३ (६) " आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., डा. १५, गा. २५२, वि. १६८४, पद्य, मूपू (वर्द्धमानजिनवर चरण), १०६३४४-२ (+) आराधना, मा.गु., प्र. २२७, गद्य, भूपू ( नमो अरिहंताणं० पहिलउ), १०५१०४-१(००) आराधना पाठ, जै.क. द्यानतराय पुहिं. गा. १६, पद्य, दि., (मैं देव नित अरहंत), १०६०५७-३९५(१) , י आरासणतीर्थ स्तवन, आ. जयानंदसूरि, मा.गु. गा. २१, पद्य, मूपू (रजत कांचन सीसक आगरा), १०३२३०-१९(+) " आर्द्रकुमार रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., डा. १९ गा. ३०१, ग्रं. ४५१, वि. १७२७, पद्य, म्पू., (सकल सुरासुर जेहना ), १०२६८३ (+) आलोयणा, मु. तिलोक, मा.गु., गद्य, श्वे., (ए हे आत्माने एणे भव), १०११०७ आलोयणा, जै. क. द्यानतराय, पुहिं. गा. ६, पद्य, दि. (प्रथम नमो अरिहंतानं दूतीय), १०६०५७-२१(+) ५५३ आलोयणा गाथा, मा.गु., प+ग, मूपू., (पंच परमेष्ठिदेवनो), १०२६९७ (+), १०५६५४(+#) आलोयणा स्तवन-वृद्ध, मु. ध्रमसीह, मा.गु., गा. ३०, वि. १८५४, पद्य, मूपू., (एह धन सासन वीर जिनवर), १०५११४-७ आश्चर्यचतुर्दशी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं. गा. १५, पद्य, दि., (नम पवारथ सार की), १०४९२२-६८(का आषाढाभूतिमुनि चौढालियो, मु. माल, मा.गु., ढा. ४, वि. १८३०, पद्य, स्था., (वाणी अमृत सारसी आपो), १००९८९) For Private and Personal Use Only Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५५४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु.. ढा. १६, गा. २१८, ग्रं. ३५१, वि. १७२४, पद्य, म्पू, (सकल ऋद्धि समृद्धिकर), १०२५८८(०) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आषाढाभूतिमुनि चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., डा. ७, वि. १७३७, पद्य, मूपू., ( सासणनायक सुरवरूं), १०५३७४- १(+०) आषाढाभूतिमुनि प्रबंध- मायापिङग्रहणे, मु. साधुकीर्ति, पुहिं. गा. १९० वि. १६२४, पद्य, मूपू. (सुखनिधान जिनवर मनि), १०२८०५ (००) आहारमान विचार, मा.गु., गद्य म्पू., (बीसेअसी चावले एककवल पुरुष), १०१८६३-११(+) इक्षुकारसिद्ध चौपाई, मु. खेम, मा.गु., डा. ४, वि. १७४७, पद्य, मूपू., (परम दयाल दयाकरु आसा), १०२४०७ (+) इरियावही मिच्छामि दुक्कडं संख्या स्तवन, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., ढा. ४, गा. १५, पद्य, मूपू., (पद पंकज रे प्रणमी), १०२२९५.५(+) इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपु. ( नाम इलापुत्र जाणीए), १०२५१७-१८ क ईश्वरनिर्णयपच्चीसी, श्राव, भगवतीदास भैया, पुहि गा. २५, पद्य, दि., (परमेश्वर जो परम गुरु परम) १०४९२२-८४(+) उत्तमकुमार चौपाई, मु. तत्त्वहंस, मा.गु., ढा. ५१, गा. १२४५, ग्रं. १६३६, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (सरसति सामण पय नमी), " १०५३२५ (+१), १०५८१२(+) " उदयपुरनगर गजल, य. खेताक, रा., गा. ७९, वि. १७५७, पद्य, म्पू, इतर (जपूं आदि इकलिंगजी), १०२०२६-२ (०३) उदयविलास, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., प्रका. १२ गा. १५७२, वि. १६८०, पद्य, मूपू., इतर (प्रथम प्रणमि अरिहंत सिद्ध), " १०४८०८-१ (२) उदयविलास -बीजक, संबद्ध, मा.गु., गद्य, म्पू, इतर ( द्वारविचार ग्रंथ तिथि नाम), १०४८०८-२(३) उपदेशछत्रीसी, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., गा. ३६, वि. १८६६, पद्य, स्था., (सबद करी सतगुरु समझाव), १०३६८५-१ उपदेशपच्चीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. २६, वि. १७४१, पद्य, दि., ( वीतराग के चरण जुग), १०४९२२-५४(+) उपदेशशतक, जै.क. द्यानतराय, पुहिं. सबै १२०, पद्य, दि., (गुन अनंत करि सहत रहत दस), १०६०५७-२(+) उपदेशी लावणी, अमराभिघजी, मा.गु., गा. १३, वि. १८८२, पद्य, स्था., (सुगुरू बडा हे उपगारी), १०२६४४-३३ (+) उपादान निमित्त संवाद दोहा, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं, दोहा. ४७, वि. १७५० पद्य वि. (पाद प्रणमि जिनदेव के), " १०४९२२-८१(०) उपाधिमति गुरुलोपी सज्झाय, मु. कल्याणविजय- शिष्य, मा.गु. गा. १५, पद्य, मूपू., (प्रणमिय वीर जिणेसर), १०५२८७-२(६) उपाध्याय आरती -२५ गुणगर्भित, जै.क. द्यानतराय, पुहिं. गा. २०, वि. १८वी, पद्य, दि. (ग्यारै अंग वखान चौदे पूरव). " १०६०५७-४३९(+) ऋषभदत्त चौपाई, मु. अभवकुशल, मा.गु., ढा. २७ गा. ४८९, वि. १७३७, पद्य, मूपू. ( पास जिणेसर प्रणमतां), १०२६६८ (+) एकत्वभाव भाषा, जै.क. द्यानतराय, पुहिं. गा. २७, पद्य, दि., (बंदी श्रीजिनराज पद रिद्धि), १०६०५७-२२(५) एकादशीतिथि चैत्यवंदन, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (शासननायक वीरजी प्रभु), १०५४८९-२२(#) एकादशीतिथि सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपु. ( आज एकादसी रे नणदल), १०५७२७-७(१) एकादशीतिथि सज्झाय, मु. विशालसोमसूरि शिष्य, मा.गु., गा. १५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (गोयम पूछे वीरने सुणो), १०५१४९-२ एकादशीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीश्रेयांसजिन ग्यारमो ), १०६३२१-८ " " एकावनसूत्र चौपाई, मु. प्रतीतरुची, मा.गु., गा. ७०, वि. १७५१, पद्य, दि., (आदिजिन आदि नमुं अंते), १०४५०२-१ औपदेशिक कवित्त, मु, खेम, पुहिं. गा. १, पद्य, मूपू (भूख बिना कुन काम को), १०५४२२-३ औपदेशिक गीत, मु. आभविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( सरसति मात पसाउलि रे), १०१९२०-१३(+) औपदेशिक गीत, मु. माल मुनि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कहित शिष्या कामिनी भरतार), १०१९२०-१२(+) औपदेशिक गीत, उपा. समवसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू (मोरा जीवनजी जीव तुं चालि), १०१९२०-१६(+) औपदेशिक गीत-जीवदबा, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू.. (दुलहे नरभव भमता दुलभ), १०१९२०-२० (+) औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (भगवति भारति चरण), १०६१६२-१९ औपदेशिक छंद-मूढशिक्षा, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं. दोहा १२, पद्य, दि., ( देह सनेह कहा करे), १०४९२२-१६(+) " For Private and Personal Use Only Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ ५५५ औपदेशिक दोहा, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (जैन धरम जतने करी जो सेवै), १०१६४२-२ औपदेशिक दोहा-नागडारा, पुहि., गा. १७, पद्य, श्वे., (टीपा टप टपीयां विण वादलै), १०१५६५-९(+#) औपदेशिक दोहा-लोचन, पुहि., गा. ९, पद्य, मूपू., (लोचन प्यासे प्रेम के), १०१५६५-४(+#) औपदेशिक दोहा संग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि., दोहा. ५, पद्य, मपू., (करि खंजन अंजन रेख वणी), १०१५६५-६(+#) औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं., गा. १३, पद्य, इतर?, (एक समे जब सींह कू), १०१८४७-२०(+) औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहि., दोहा. ८, पद्य, श्वे., (प्यावै था जब पीया), १०१८४७-१५(+) औपदेशिक दोहा संग्रह-छुटक, पुहिं.,मा.गु., पद्य, श्वे., (कुड कुलखण मित्त खय मत्त), १०१५६५-१०+#) औपदेशिक दोहा-सूरीयारा, पुहि., गा. १२, पद्य, श्वे., (सूरीया सर फूटेह ईटे ऊटा), १०१५६५-८(+#) औपदेशिक पद, क. गद, मा.गु., गा. २, पद्य, श्वे., (नमै तुरी बहु तेज नमै जल), १०५०५५-१६(+$) औपदेशिक पद, गोस्वामी तुलसीदास, पुहि., गा. ४, पद्य, वै., (आनंदवन गीरजापत नगरी), १०५३६२-८(+) औपदेशिक पद, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., गा. ३, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (जगतमैं जीवना थोरा रे), १०१८६८-२३(+) औपदेशिक पद, मु. चौथमल, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (ऐसे भाग्य उदय सुबुधि होय), १०५४८२-३(+-) औपदेशिक पद, मु. चौथमल, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (ऐसे विनाशकाल विपरीत बुधि), १०५४८२-४(+-) औपदेशिक पद, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मपू., (तुम तजौ जगत का ख्याल), १०६४२१ औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (अब मै जान्यो मै आतम), १०६०५७-२२१(+), १०६०५७-४१५(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (असा सुमरण कर रे भाई), १०६०५७-१६६(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (आतम अनुभौ कीजे हो भाई), १०६०५७-९७(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (आतम काज समारियै तजि), १०६०५७-२०७(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (आतम जान रे भाई जैसी), १०६०५७-१२८(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (आत्मज्ञान लखै सुख होई), १०६०५७-१९०(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ३, पद्य, दि., (इस जीव को इस जीव को), १०६०५७-४२५(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (ए दिन आछै लहै जी लहै जी), १०६०५७-२८३(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (ए रे मेरे मीत चित कहा अब), १०६०५७-३२१(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (कहित सुगुरु करिसु हित भवक), १०६०५७-१२०(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा.८, पद्य, दि., (काहे देखी गरवाना रे महि), १०६०५७-२२६(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा.११, पद्य, दि., (किसही की भगति कियै हित), १०६०५७-२४६(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ८, पद्य, दि., (कैसै शिव पद सुख होई हम कौ), १०६०५७-२३२(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (गह संतोष सदा मन रे), १०६०५७-२००(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., चौपा. ५, पद्य, दि., (ग्यायक एक सरूप है), १०६०५७-६९(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ८, पद्य, दि., (चेतन प्राणी चेतिये हौ अहो), १०६०५७-२२२(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (चेत रे प्राणी तु चेत रे), १०६०५७-१९६(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., (जग छग मित्र न कोइ ज), १०६०५७-३५१(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (जिन जपि जिन जप जीवरा), १०६०५७-३०६(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (जिनवाणी जान ले रे छह दरव), १०६०५७-२८२(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (जिय को लोभ महादख दाई), १०६०५७-९१(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, मा.गु., गा. ४, पद्य, दि., (जीवासुं कहिये तनै भाईया), १०६०५७-११२(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ८, पद्य, दि., (झूठा सुपना इह संसार दीसत), १०६०५७-२४५(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (तुमतो समझ समझ रे भाई), १०६०५७-१०८(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (तेरो संजम विन रे नरभव), १०६०५७-२९५(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ३, पद्य, दि., (त्यागी त्यागो चेत जी), १०६०५७-२५७(+) For Private and Personal Use Only Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५६ देशी भाषाओं की मूल कति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (नही एसो जनम वार वार), १०६०५७-१०७(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (परमारथ पंथ सदा पकरो रे), १०६०५७-२९७(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., चौपा. ५, पद्य, दि., (प्रथमदेव अरिहंत मनाउ), १०६०५७-६८(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (प्राणी लाल छांडौ मन चपलाई), १०६०५७-२२४(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (भाई आपन पाप कुमाए आए), १०६०५७-१५६(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (भाई काया तेरी दुख की ढेरी), १०६०५७-१५७(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (भाई कौन धर्म हम चालै एक), १०६०५७-१४७(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (भाई ग्यानी सोई कहियै करम), १०६०५७-१४६(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (मिथ्या ईह संसार है रे), १०६०५७-२१२(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (मेरी मेरी करता जनम सब), १०६०५७-३५३(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (मैं न जान्यौ री जीव ऐसी), १०६०५७-४२७+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (रे नर बिपत्ति मैं धर धीर), १०६०५७-३५७(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ८, पद्य, दि., (रे भाई ग्यान विना दुख), १०६०५७-२२५(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (रे भाई मोह महादुख दीना), १०६०५७-२०१(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (रे भाई संभाल जग जाल मैं), १०६०५७-१९८(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (वंदे तु वंदगी करियादि जिन), १०६०५७-१५८(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (वसि संसार मैं पायो दुख), १०६०५७-११८(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (वे कोई निपट नारी देख्या), १०६०५७-२०६(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (सब सौं छिमा छिमा कर जीव), १०६०५७-१९९(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा.८, पद्य, दि., (साधौ छांडौ विषय विकारी), १०६०५७-२३१(+) औपदेशिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (सोग न कीजे वावरे मरै पीतम), १०६०५७-२०२(+) औपदेशिक पद, मु. धरमविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (--), १०१२०९-६(#) औपदेशिक पद, मु. पद्मकुमार, मा.ग., गा. ४, पद्य, श्वे., (सुणि सुणि जीवडा रे), १०५९५३-५ (+#) औपदेशिक पद, क. बिहारीदास, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (हो भविजन आतम सौं लौ लाया), १०६०५७-१२१(+) औपदेशिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. १, पद्य, दि., (शीस गर्भ नहि नमौ कान नहि), १०४९२२-९४(+) औपदेशिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. २, पद्य, दि., (साहिब जाके अमर है सेवक), १०४९२२-९१(+) औपदेशिक पद, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (हो चेतन तो मति कौनै हरी), १०४९२२-३६(+) औपदेशिक पद, जै.क. मानसिंह, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (संसार अथिर भाई कछु करिजु), १०६०५७-१३०(+) औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (मोय कैसे तारोगै दीन), १०१५७१-३(#) औपदेशिक पद, मु. वाणारसजी, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मरियादा भंगी नाच लीय), १०२२९५-२(+) औपदेशिक पद, मु. हुकम, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (चेतन तु अभीमाने भरीयौ), १०१२०९-४(#) औपदेशिक पद, मु. हुकम, पुहिं., गा. ३, पद्य, पू., (समज साधु जीनसेना), १०१२०९-११(#) औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, पू., (अबधु क्या वीभाव में सुता), १०१२०९-५(#) औपदेशिक पद, अ.भा., गा. १, पद्य, जै.?, (बूंद पैंच वुझ बाबु दपै), १०६०५७-४२२(+) औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (माइ काहु भांति रसीली), १०१४८९-६(#) औपदेशिक पद, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (रे रे चित्त कुमित्त न कीज), १०१५६५-७(+#) औपदेशिक पद-अभिमान, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (प्रानीय संसार असार है गरव), १०६०५७-२३६(+) औपदेशिक पद-आत्मा, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ५, पद्य, दि., (के दारौ केसैं देंउ कर मन), १०४९२२-३१(+) औपदेशिक पद-एकत्वभावना, मु. जिनहर्ष, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (काकै कहौ घोरे हाथी काहु), १०१८६५-१४(+#) औपदेशिक पद-कथनीकरनी, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (कहवे कौं मन सूरमां करि), १०६०५७-१६७(+) For Private and Personal Use Only Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ " , औपदेशिक पद-क्रोध, जै. क. द्यानतराय, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., (रे जिय क्रोध कहां करे), १०६०५७-१३२(+) औपदेशिक पद-गुरुगुण, मु. हुकम, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (भवी सेवौ शदगुरु तमे), १०१२०९-२(#) औपदेशिक पद-गुरुज्ञान, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., ( हो परम गुरु वरसत ज्ञान), १०६०५७-२०८(+) औपदेशिक पद- चिंता, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं. गा. १, पद्य, दि., (ए मन नीच निपात निरक्षक काहे), १०४९२२-९३ (+) औपदेशिक पद- चित्त, जै. क. धानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., ( आतम रूप सुहावना कोई जानो), १०६०५७-१६०+) औपदेशिक पद-चित्त, क. बिहारीदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (जीवन सहल है तुम चेतो चेतन), १०६०५७-११७(+) औपदेशिक पद-जिनभक्ति, जै. क. द्यानतराय, पुहिं, गा. ५, पद्य, दि., (कर मन वीतरागकी ध्यान कर), १०६०५७-४१७(+) औपदेशिक पद-जिनभक्ति, मा.गु, गा. ३, पद्य, म्पू. (हं विरही निज रूप), १०२७९३-१७(+०) " For Private and Personal Use Only ५५७ औपदेशिक पद - जिनवाणी, श्राव, भगवतीदास भैया, पुहिं. गा. १५, पद्य, दि. (सीमंधर स्वामी प्रमुख) १०४९२२-९८१) " " " औपदेशिक पद-जीव, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (अरहंत सुमरि मन वावरे), १०६०५७-९८(+) औपदेशिक पद- जीवदया, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (ग्वान जीवदया निति पालै), १०६०५७-१३८(०) औपदेशिक पद- ज्ञान, जै. क. द्यानतराय, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., (ज्ञान सरोवर सोई हो भव भव), १०६०५७-११३(+) औपदेशिक पद-ज्ञानीलक्षण, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (ग्यानी ऐसो ज्ञान विचारै), १०६०५७-२३८(+) औपदेशिक पद- दयापालन, मु. खेम, पुहिं. पद. १, पद्य, मूपू (गृहबास तजी बनवास वसो) १०५०६८-३(५) औपदेशिक पद-दसहरा, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (दसहरा वाद सत्यारी करिकै), १०१८६८-३०(+) औपदेशिक पद-दान, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (भला है सदा दान दैना देस), १०१८६८-१३(+) औपदेशिक पद-दान, जै. क. द्यानतराय, पुहिं. गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (दीये दान महासुख पावे), १०६०५७-३२०(+) औपदेशिक पद-दान, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. २, पद्य, दि., (दीयै दान महासुख होवै धरम), १०६०५७-२९० (+) औपदेशिक पद- दुर्लभज्ञान, जै.क. द्यानतराय, पुडिं, गा. ४, पद्य, दि., (स्थान का राह दुहेला रे). १०६०५७-१६१(०) औपदेशिक पद-दुर्लभज्ञान, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (ग्यान कौ पंथ कठन है सुन), १०६०५७-१९२(+) औपदेशिक पद- देवगुरुधर्म, जैक द्यानतराव, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., (समझत क्यों नही वानी रे) १०६०५७-११०१*) औपदेशिक पद- नवकारमहिमा, मु. जिनहर्ष, पुहिं. गा. ४, पद्य, मृपू., (सुख को करणहार दुख को), १०९८६५-२(००) औपदेशिक पद- निंदापरिहार, श्राव. हेमराज, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., (चेतन सबही मै घाट वाढ नही). १०६०५७-१३५ (०) औपदेशिक पद-पुण्यपाप, जे.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (करुणा जान रे जान रे जान), १०६०५७-२१३(+) औपदेशिक पद-प्रमाद, श्राव. गोकुलचंद, पुहिं, गा. ४, पद्य वि., ( क्यों रहिये परमाद दशा में), १०६०५७-४२६(+) " " औपदेशिक पद-फकीरी, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं. गा. ६, वि. १९वी, पद्य, वे. (फकीरी या विधि ते साची), १०९१८६८-२५(५) 1 "" औपदेशिक पद-भक्ति, जे. क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (जिन नाम भजि भाई रे जा दिन), १०६०५७-१९५(१) औपदेशिक पद-भव आलोचना, जै. क. मानसिंह, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (अब क्यूं भूल्यो ), १०६०५७-१२९(+) औपदेशिक पद-मूढ, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (मूढपना कित पयो रे जिय ते), १०६०५७-११४(+) औपदेशिक पद-मोह, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., गा. ५, वि. १९वी, पद्य, श्वे. (काहेकूं भूला रे चेतन), १०९८६८-३६(+) औपदेशिक पद-मोह, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (पिया वैराग लेत है किसमिस), १०६०५७-३११(+) औपदेशिक पद- रागदोष, जे. क. धानतराय, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., (कर रे कर रे कर रे आतम), १०६०५७-९९(+) " " औपदेशिक पदवीतरागस्वरूप, मु. जिनहर्ष, पुहिं, गा. ४, पद्य, मूपू (जोऊ जोग ध्यान धेरै कान्हु), १०९८६५-१०(क्य औपदेशिक पद-वैराग्य, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (संसार मैं साता नांही वै), १०६०५७-३५२(+) औपदेशिक पद - शिक्षा, जै. क. द्यानतराय, पुर्हि, गा. ४, पद्य, दि., (वंदे तु बंदगी न भूल चाहता). १०६०५७-१५९(१) औपदेशिक पद-शील, जै. क. द्यानतराय, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., (रे बावा सील सदा दिढ राख), १०६०५७-२०३०) औपदेशिक पद-संगत, श्राव. हेमराज, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि. (ऐसे मित्र सौ करियारी), १०६०५७-१३३(+) " औपदेशिक पद-सदगुरु श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं. गा. ४. वि. १९वी, पद्य, वे (भला गुरु सोई है जगमें), २०१८६८-७(०) " औपदेशिक पद- सम्यक्त्व, जे.क. द्यानतराय, पुहिं, गा. ४, पद्य, दि., (धृग घृग जीवन समकत बिना), १०६०५७- १११(१) औपदेशिक पद-साधुसंगत, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (यारी कीयै साधो नाल पारी), १०६०५७-३५४(+) Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५५८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक पद-सुगुरु, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., गा. ३, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (चेलाकूं रंग दिया सुज्ञानी), १०९८६८-४४(+) औपदेशिक पद-सुगुरु, मु. जिनहर्ष, पुहिं, गा. ४, पद्य, भूपू (गैर उपदेश हरे आगम अरथ धेरै). १०१८६५-११+०) औपदेशिक पद-सुज्ञानी, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, श्वे. (मन सांड्याकूं सिखा), १०१८६८-४७(+) औपदेशिक पद-सुलभज्ञान, जे. क. द्यानतराय, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि. (ग्वान का राह सुहेला रे), १०६०५७-१६२(+) औपदेशिक पद-सुलभज्ञान, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., गा. २, पद्य, दि., (सुनी जैनी लोगो ग्यान को), १०६०५७-१९३(+) औपदेशिक पद-स्वार्थ, ग. मेघरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुखमि जिनवर कुंन संभारे), १०२४६८-१३(#) औपदेशिकवावनी, उपा. हेमराज, पुहि., दोहा ५७, पद्य, म्पू. (--), १०५९४३-२+४) www.kobatirth.org " יי औपदेशिक बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (न्याय मार्ग चाले तो सोभाग), १०५८०५-५७(+#) औपदेशिक भावना, श्राव. हेमराज, पुहिं. गा. ९, पद्य, दि., (भावन पावन भाईये ही अहो, १०६०५७-६६ (+) " औपदेशिक भावना जकड़ी, जै.क. द्यानतराय, पुहि., सवै ५, पद्य, दि., (वंधौ साथ वचन मन काया जगत), १०६०५७-६७ (*) औपदेशिक लावणी, पुहिं. गा. १९१, पद्य, वे. (खबर नही आ जगमे पल), १०२६४४-१२(+) "" औपदेशिक लावणी, श्राव, चंपाराम दीवान, पुहिं. गा. ६, वि. १९वी, पद्य, वे., (जीव उपदेस घन जग रूठ), १०९८६८-४१(०) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०९८६८-११(०) "" औपदेशिक लावणी, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., गा. ५, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (जोई चतुर खिलारी जूवा सत), १०९८६८-३१(+) औपदेशिक लावणी, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं, गा. ९. वि. १९वी, पद्य, वे (बुद्धि शुभ आतम रस माती), १०९८६८-१२ (+) औपदेशिक लावणी, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., गा. ८, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (सजन मोहि सतगुरनै लूट्या), १०१८६८-३२(+) औपदेशिक लावणी, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं. गा. १७, वि. १९बी, पद्य, श्वे. (सुरतिने सुघर पार कीना), १०१८६८-२७(१) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं, गा. ४, पद्य, मूपू (कब देखुं जिनवर देव), १०२६४४-२० (+) " औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (चल चेतन अब उठकर अपने ), १०२६४४-२९(+) " औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं. गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (तुम भजो निरंजन नाम), १०२६४४-२१(+), १०१७३४-१(३) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं. गा. ५, वि. १७वी, पद्य, मूपू.. (पुद्गल में मान्यो, १०२६४४-१८(+) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुगुरु की सिख हइये), १०२६४४-१३(+) औपदेशिक लावणी, क. बनारसीदास, पुहिं, गा. ७, पद्य, दि., (मुखडाइ किउ देखो दरपण मे), १०२६४४-२२(+) औपदेशिक लावणी, मु. बुधमल, पुहिं., गा. ७, पद्य, स्था. (हां रे चेतानंद मेरा का), १०२६४४-२८(+) औपदेशिक लावणी, मु. रामकिसन ऋषि, पुहिं. गा. १९, वि. १८६८, पद्य, श्वे. (चेत चतुर नर कहे तेरे), १०२६४४-९(+), १०१००५-२००६) औपदेशिक लावणी, मु. रामकृष्ण ऋषि, पुहिं., गा. १८, पद्य, श्वे., (आजकाल का कुच होना वही जग ), १०२६४४-६ (+) औपदेशिक लावणी- इंद्रिय, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहि., गा. ३, वि. ११वी, पद्य, श्वे. वृंदावन पाप कहा कीनू रे), १०१८६८-२६(०) औपदेशिक लावणी-कुमतिस्वरूप, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहि., गा. ५. वि. १९वी पद्य, वे., (सजन तेरी जानी चतुराई कुमत), १०१८६८-१७) औपदेशिक लावणी- क्रोधफल, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं. गा. ३, वि. १९वी, पद्य, . ( क्रोध नहि करना रे सजन सुन), " " १०१८६८-१९(+) औपदेशिक लावणी-गुरुज्ञान, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं. गा. ३, वि. १९वी पद्य, वे., (गुर ग्यान है वांकां सुमति), १०१८६८-२८) औपदेशिक लावणी-गुरुवाणी, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., गा. ३, वि. १९वी, पद्य, श्वे. (अरे तू मानि गुरवानी० खिन), " औपदेशिक लावणी-ठगचेला, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं. गा. ४, वि. १९वी पद्य, थे. (सजन मै सतगुरु उगि लीना), " १०९८६८-३३(५) औपदेशिक लावणी-तप, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (सजन तप नहचैं करि तपना देह), १०१८६८-१५ (+) For Private and Personal Use Only Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ औपदेशिक लावणी-भावमहिमा, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहि., गा. ३, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (सुज्ञानी जब लग मन गंधा तव), १०१८६८-१६(+) औपदेशिक लावणी-मनमतंग, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., गा. ५, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (सजन तेरा मन मतंग मांता), १०१८६८-३४(+) औपदेशिक लावणी-मानपरिहार, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., गा. ३, वि. १९वी, गद्य, श्वे., (सजन सुनि मान वेगि त्यागौ), १०१८६८-२०(+) औपदेशिक लावणी-माया, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहि., गा. २, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (चेतन तू दृग मंदि भया), १०१८६८-४२(+) औपदेशिक लावणी-मायापरिहार, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहि., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (सजन सुनि माया दुखदाता), १०१८६८-२१(+) औपदेशिक लावणी-लोभपरिहार, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहि., गा. ३, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (सजन सुनि लोभ दष्ट भारी), __१०१८६८-२२(+) औपदेशिक लावणी-विनीतशिष्य, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहि., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (गुरुतै चेला वडा जगत मैं), १०१८६८-४३(+) औपदेशिक लावणी-शीखामण, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मपू., (एक जिनवरका निज नाम), १०२६४४-१७(+-) औपदेशिक लावणी-शीलव्रत, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहि., गा. ३, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (वडा गुन सीलतना जगमै जैसा), १०१८६८-१४(+) औपदेशिक लावणी-सुगुरुमत, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहि., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (सुगुरु मत सांझी दरसावै), १०१८६८-२९(+) औपदेशिक लावणी-सुमतिस्वरूप, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (सजन तेरी देखी चतुराई सुमत), १०१८६८-१८(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. ऋषभदास, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (च्यार घटिका जव पाछली हुइ), १०१९२०-९(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. कर्मसिंह, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (वली वली नरभव दोहिलो), १०२२९५-४(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (जाग रे सुग्यानी जीव), १०३६८५-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.ग., गा. ३७, पद्य, स्था., (रतन चिंतामणि नर भव), १०२३७३-८ औपदेशिक सज्झाय, टेकचंद पंडित, पुहिं., गा. ५७, पद्य, जै.?, (--), १०५९८९-६२(+-5) औपदेशिक सज्झाय, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. १६, पद्य, दि., (प्राणी आतम रूप अनूप है), १०६०५७-६५(+) औपदेशिक सज्झाय, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. १०, पद्य, दि., (वैर मिटावन पद कीजे हो), १०६०५७-४२(+) औपदेशिक सज्झाय, क. बुधजन कवि, पुहि., ढा. ६, गा. ७२, वि. १८५०, पद्य, दि., (सर्व द्रव्य में सार), १०५९८९-४९(+$) औपदेशिक सज्झाय, श्राव. मीर, पुहि., गा. ४, पद्य, श्वे., (का बे खाइ बे खाफ रे ए मन), १०२५८३-७ औपदेशिक सज्झाय, मु. मुनिचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (रे मन पंखिया म पडिस पंजरइ), १०१४८९-११(#) औपदेशिक सज्झाय, मु. रतनचंद, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (इण कालरो भरोसो भाई), १०२६४४-२७(+-) औपदेशिक सज्झाय, मु. रामचंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (तुम चलता हे विणजारा तीया), १०२५८३-८ औपदेशिक सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. २४, वि. १८०८, पद्य, स्था., (श्रीजिण दे इसडो), १०५४७८ औपदेशिक सज्झाय, मु. लालचंद, रा., गा. १२, पद्य, स्था., (हां रे भाई नरक निगोद), १०२६४४-३०(+-) औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मपू., (सुधो धर्म मकिस विनय), १०२५१७-१६(+), १०२२९९-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., गा. २५, पद्य, मप., (मंगल करण नमीजे चरण), १०१३८०-२ औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. १८, वि. १८९३, पद्य, मप., (बाइ थे तौ साचा सतगुर पाया), १०२९९२(+) औपदेशिक सज्झाय, पुहि.,रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (मन रे तुं छाडि माया), १०२२९५-६(+) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (समकित रतन चिंतामणी वांछीत), १०५४८२-५(+-$) For Private and Personal Use Only Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, मपू., (--),१०१००५-१(#$) औपदेशिक सज्झाय-अहंकार परिहार, पंडित. कुशल, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (जमीं तथा असमांन चिहुंगत), १०१८४७-११(+) औपदेशिक सज्झाय-कनककामिनीविषये, मु. राम, रा., गा. १५, वि. १९१८, पद्य, श्वे., (मूरख लखज रे कनकने), १०२५८३-११ औपदेशिक सज्झाय-कर्म, मु. राम, मा.गु., गा. ८, पद्य, मप., (सुख दुख सिा पामीये), १०५०५५-८(+) औपदेशिक सज्झाय-कर्म, पुहि., गा. ६, पद्य, जै.?, (--), १०५९८९-६८(+-$) औपदेशिक सज्झाय-कर्मोदये सुखदख विषये, मु. ज्ञान, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (सुख दुख सरज्या पामीय), १०२५१७-१९(+) औपदेशिक सज्झाय-काया, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ६, पद्य, दि., (काया तुं चले संग हमारे), १०६०५७-२४२(+) औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (काया पुर पाटण मोकलौ), १०५७२७-१(+) औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ८, पद्य, दि., (क्रोध कषाय न मै करो इह), १०६०५७-४३(+) औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (क्रोध न करिये भोला), १०५३६२-४(+), १०५७२७-१५(+) औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. ७२, पद्य, मप., (उत्पति जोज्यो आपणी), १०५६३०-४(+) औपदेशिक सज्झाय-जीव, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (जीवडा रे जिन ध्रम की), १०१९२०-१४(+) औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १४, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (एक घर घोडा हाथीया जी), १०२५१७-५(+) औपदेशिक सज्झाय-दानशीलतपभावना, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (जैनधरम धर जीयरा सो च्यार), १०६०५७-२३७(+) औपदेशिक सज्झाय-धर्मनाव, श्राव. चंपाराम दीवान, पहिं., गा. १२, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (वेगि नाव चढना रे प्रानी), १०१८६८-१०(+) औपदेशिक सज्झाय-निदात्याग, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (निंदा म करजो कोईनी), १०१८४७-१६(+) औपदेशिक सज्झाय-निदात्याग, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (गुण छे पुरा रे), १०२५१७-४(+) औपदेशिक सज्झाय-निदात्याग, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूप., (म कर हो जीव परतांत), १०२५१७-७(+) औपदेशिक सज्झाय-पुरुषशिक्षा, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (संतोगी भमर सुंद धतूर), १०१३९५-४(+) औपदेशिक सज्झाय-प्रमाद परिहार, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (विनय करीजे रे भवियण), १०१७५८-१ औपदेशिक सज्झाय-ब्रह्माब्रह्मनिरणे, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. १४, पद्य, दि., (असिआउसा पंचपद वंदौ शीस), १०४९२२-६३(+) औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, पंडित. भावसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (अभिमान न करस्यो कोई), १०५३६२-५(+), १०५७२७-१६(+) औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, मु. भावसागर, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (माया मूल संसारनो), १०५३६२-६(+), १०५७२७-१७(+) औपदेशिक सज्झाय-मिथ्यात्याग, मु. भागचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (वर्ष आषाढ सुदि दिने निसन), १०१४८९-५ (#) औपदेशिक सज्झाय-मूर्ख, मोहनलाल, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (मुरख तुं भजतो नथी भगवान), १०३६७३ औपदेशिक सज्झाय-लोभ परिहार, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मप., (अब कोई रे जीया मोटी मांनो), १०३६७९-२(#) औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (लोभ न करीये प्राणीया), १०५३६२-७(+), १०५७२७-१८(+) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, श्राव. ऋषभदास, मा.ग., गा. २०, पद्य, मपू., (--), १०१४६१-१(क) । औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा.८, पद्य, दि., (कौन कहै घर मेरा भाई जे जे), १०६०५७-२४१(+) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. राजसमुद्र, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (आज की काल चलेसी रे), १०२५१७-१५(+) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (बुझ रे तुं बुझ प्राण), १०१९२०-१५(+) For Private and Personal Use Only Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्यप्रद, मु. रत्नतिलक, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (काया रे वाडी कारमी), १०१८४७-७(+) औपदेशिक सज्झाय-शिक्षा, जै.क. द्यानतराय, पहिं., गा.६, पद्य, दि., (जीवा ते मेरी सार न जानी), १०६०५७-२४३(+), १०६०५७-२५४(+) औपदेशिक सज्झाय-संतोष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सज्झाय भली संतोषनी), १०१९७५-३(+-#) औपदेशिक सज्झाय-संवर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (वीर जिणेसर गौतमने), १०१८००-४(+#), १०२३७३-४ औपदेशिक सज्झाय-सुकृत, मु. चोथमल ऋषि, पुहिं., गा. ७, पद्य, श्वे., (सुकरत कर ले रे माया लोभी), १०२५८३-१२ औपदेशिक सज्झाय-सपत्र, मु. चौथमल, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (माने मात पिताकी केन पुत्र), १०५४८२-२(+-) औपदेशिक सज्झाय-स्वार्थ, मु. खेम, पुहि., गा. ६, पद्य, म्पू., (स्वारथ का सब को सगा बिना), १०५०६८-२(+) औपदेशिक सज्झाय-स्वार्थ विषये, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (सैं मुख जिनवर उपदिसै), १०५९५३-२(+#) औपदेशिक सवैया, क. गुलाल, मा.गु., पद्य, जै.?, (मेह कहा जानै खेतीय सुकत), १०५०१९-२(+#$) औपदेशिक सवैया, मु. गोविंद मुनि, मा.गु., सवै. १, पद्य, श्वे., (न डरि पत्तंग निसंग जरि), १०२१५५-३(+) औपदेशिक सवैया, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., गा. ३६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसद्गुरु उपदेश), १०५०६९-२(+) औपदेशिक सवैया, क. बनारसीदास, पुहिं., सवै. १, पद्य, दि., (कीच सौ कनक जाकै नीच सौ), १०१८०१-३(+) औपदेशिक सवैया, मु. बालचंद, पुहि., गा. १, पद्य, श्वे., (तु तो मत बोल भाइ झुट नीरा), १०१००४-२ औपदेशिक सवैया, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा.८, पद्य, दि., (तेरोई सुभाव विन मूरति), १०४९२२-९२(+) औपदेशिक सवैया, क. लाल, मा.गु., सवै. १, पद्य, वै., इतर, (सूरजमाणक रंग मनोहरचंद), १०१८२७-२(+) औपदेशिक सवैया, पुहिं., सवै. १, पद्य, श्वे., (एक रती विन एक रती को), १०२१५५-२(+) औपदेशिक सवैया, पुहि., सवै. ३५, पद्य, दि., (कोउ शिक्ष कहै श्वामी अशुभ), १०४२५५-३ औपदेशिक सवैया, पुहिं., सवै. १, पद्य, दि., (जगत के प्रीनी जीति है), १०१८०१-७(+) औपदेशिक सवैया, पुहिं., गा. २, पद्य, श्वे., (जैसे कोउ कूकर क्षध), १०१८०१-४+) औपदेशिक सवैया-अल्पायु, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. १, पद्य, मपू., (तेरी है अल्प आउ तुं तो), १०१८६५-१३(+#) औपदेशिक सवैया-धर्मप्रीति, मु. जिनहर्ष, पुहि., गा. ४, पद्य, मप., (जैसी तेरी मति गति रहत), १०१८६५-९(+#) औपदेशिक सवैया-पेट, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. १, पद्य, दि., (पेट ही कै काज महाराज), १०४९२२-९६(+) औपदेशिक सवैया-माया परिहार, पंडित. कुशल, मा.गु., सवै. २, पद्य, श्वे., (अटवी जगत जालकाल गजराज), १०१८४७-१३(+) औपदेशिक सवैया-माया परिहार, मा.गु., सवै. १, पद्य, श्वे., (नंदण की नवे निधान वीसल की), १०१८४७-१४(+) औपदेशिक सवैया-सच्चरित्र, मा.गु., सवै. १, पद्य, श्वे., (परधन रूप देख पर त्रिय को), १०२१५५-४(+) औपदेशिक सवैया-साघ, श्राव. भगवतीदास भैया, पहिं., गा. १, पद्य, दि., (मन वचन काय योग तीनउ), १०४९२२-९५(+) औपदेशिक होली पद, पुहि., गा. ५, पद्य, मप., (होरी खेलो रे भविक),१०५६८६-७(+) औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (लंग टा१ जाईफल टा२), १०२१३४-४(+#) कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मा.गु., ढा. ३१, गा. ५५५, वि. १७२१, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखसंपदादायक), १०२४३३(+), १०२६३४(+#), १०६११६(+#s) करकंडुमुनि सज्झाय, ग. मेघरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (इसौ जन भजन का परिणाम), १०२४६८-११(#) कर्ताअकर्तापच्चीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. २५, वि. १७५१, पद्य, दि., (कर्मन को कर्ता नहीं), १०४९२२-८५(+) कर्म की गति, मा.ग., गा. ९, पद्य, श्वे., (हो करम गत टारी नांही टरै), १०३६७९-१(२) कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६६८, पद्य, मपू., (कर्म थकी छूटे नही), १०६४३०(5) कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १८, पद्य, मपू., (देवदाणव तीर्थंकर), १०१८४७-१२(+), १०२५१७-२४(+) कलियुग पद-जिनचैत्य, श्राव. चूहडमल, पुहि., गा. ३, पद्य, दि., (पंचकाल विषै ए श्रावकधर्म), १०६०५७-३३८(+) कान्हडकठियारा रास-शीयलविषये, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ९, वि. १७४६, पद्य, पू., (पारसनाथ प्रणमुं सदा), १०५४९७-१(+), १०५५३३(+), १०५५९९(+), १०२५२५(#S), १०५४८८(#) कान्हडदृष्टांत सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीरजिनवर रे गोयम गणधरने), १०२५०५ For Private and Personal Use Only Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ कामदेव श्रावक सज्झाय, मु. खुशालचंद, मा.गु., गा. १६, वि. १८८६, पद्य, मप., (एक दिन इंद्रे), १०२५८३-५ कायस्थिति २२ द्वार वर्णन, मा.गु., गद्य, मपू., (जीव १ गई २ इंदिय ३), १०२०३०(६) कायस्थिति बोल, मा.गु., गद्य, मप., (जीव गइ इंद्रिय काय), १०२६६३-७(+) कायास्वरूपकथन सवैया, ग. जिनहर्ष, पुहि., गा. १, पद्य, मूपू., (काहे काया रूप देखि गरब कर), १०१८६५-३(+#) कालअष्टक, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा.८, पद्य, दि., (तिहुपुर के पुरधीत सव), १०४९२२-५३(+) कंथजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (अब मोहि तारि ले कुंथजिनेस), १०६०५७-३४८(+) कंथजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १९वी, पद्य, मप., (रात दिवस नित सांभरो रे), १०५७३६-१(+) कुंथुजिन स्तुति, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (गजपुरनयर मनोहर गाम), १०५२९६-१३(+) कुगुरु लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (तनुं तनुं में उन), १०२६४४-१५(+-) कुतुहल परिहार गीत, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (हास्य कतुहल वाह्योजी), १०१७५८-१२ कुमारगिरि चैत्यपरिपाटी स्तवन, पं. शुभवर्द्धन, मा.गु., गा. १५, वि. १६७५, पद्य, मूपू., (पणमिसु शांति जिणंद देव), १०१६४६-५(+) कुमारपाल रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४९४९, ग्रं. ५८००, वि. १६७०, पद्य, मूप., (सकल सिद्ध सुपरि नमु), १०५२०४(+#$) कुलकोटि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नारकीनी २५ लाख कुलको), १०५०२४-३ कुरगडुमुनि सज्झाय, उपा. राजरत्न पाठक, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (वीरजिणंदई भाषीउ रे दशविध), १०१९२०-१९(+) कृतकर्मराजा चौपाई, मा.गु., गा. २५०, पद्य, मपू., (पढम प्रणमुं पढम प्रण), १०२९२८ कृपणता परिहार गीत, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (कृपण पणाथी बीहा तो न जाइ), १०१७५८-७ केवलिस्वरूप स्तवन, पं. मुक्तिसागर गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ६८, वि. १६५३, पद्य, मप., (सरस वचन दिउ सरसती वरसती), १०२४९०(+$) (२) केवलिस्वरूप स्तवन-टिप्पण, प्रा.,सं., गद्य, मप., (अण्णाण१ कोह२ मय३ माण४ लोह), १०२४९०(+$) केश औषध चौपाई, पुहि., गा. ५, पद्य, मप., (संख चूर सिरसाई दोइ हरताली), १०५६६५-३(+#) केशीगणधर प्रदेशीराजा चौपाई, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., ढा. ४१, गा. ५९४, वि. १७वी, पद्य, मपू., (प्रणमी श्रीअरिहंत), १०१०९६(+), १०१९१२(+) कोणिकराजा चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. २७, पद्य, श्वे., (आठ भवा पहलु हंता केटक), १०५५८१(+) क्रियाकोष, क. किशनसिंह सुखदेव श्रावक, पुहिं., गा. १८८८, वि. १७८४, पद्य, दि., (समवसरणलक्ष्मी सहित), १०६०५६(+) क्रोध परिहार गीत, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (क्रोध कषायइ बंध्यो), १०१७५८-५ क्रोधमानमायादि वास बोल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (क्लेशनो वासो क्यांहा छे), १०५८०५-४५(+#) क्षुधा सज्झाय, मु. शिवलाल, पुहिं., गा. १२, पद्य, श्वे., (वेदना क्षुधा की भारी), १०२६४४-२४(+-) खंडाजोयण द्वारविचार, मा.गु., गद्य, भूपू., (खंडा १ जोयण २ वासा), १०२६९३(+#$) खापराचोर चौपाई, उपा. अभयसोम, मा.गु., ढा. १७, वि. १७२३, पद्य, मप., (सरसति माता समरिए नित), १०१६८५(+#) गजसिंह रास, मु. समर्थमलजी, मा.गु., ढा. २१, पद्य, स्था., (प्रणमुं अरिहंत पद कमल), १०५१४२-१(+) । गजसुकुमालमुनि चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., ढा. ३०, गा. ५००, वि. १६९९, पद्य, मूपू., (नेमीसर जिनवरतणा चरण), १०१६२५(+) गजसुकुमालमुनि चौपाई, मु. माधव, मा.गु., ढा. १५, पद्य, मूपू., (रिठनेमि नामे हुवा), १०५१४५(+) गजसुकुमालमुनि चौपाई, मा.गु., ढा. १८, पद्य, मूपू., (भदलपुर नामे नगर तिहा), १०१६७३(१) गजसुकुमालमुनि रास, मु. शुभवर्द्धन शिष्य, मा.गु., गा. ९१, पद्य, मूप., (देस सोरठ द्वारापुरी), १०१४४७(+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. खेमकुशल, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (द्वारापुरी नगरी के), १०१८४७-१०(+$) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २३, वि. १८५८, पद्य, श्वे., (गजसुखमाल देवकीनंदन), १०२६४४-४(+-) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पं. जिनहर्ष गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (गजसुकुमाल वैरागीयो स), १०२५१७-१३(+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., ढा. १०, गा. ७५, पद्य, श्वे., (अरिष्टनेमि नामै हुआ), १०२९३२-२(+) For Private and Personal Use Only Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ४१, पद्य, मूपू., (वाणी श्रीजिनराज तणी काने), १०२५८३-३($) गजसुकुमाल संधि, उपा. मूला ऋषि, मा.गु., गा. १३८, वि. १६२४, पद्य, मपू., (प्रणमीय वीर जिणेसर स), १०५७४१(+) गणधरवाद, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीरदेव केवल), १०५१०६(+#) गणेशाष्टक छंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, वै., (मुक्ताफल गलमालं उधर अनप), १०६१६२-३ गणेशाष्टक छंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, वै., (समर प्रथम गुणपत शुडालं), १०६१६२-२ गिरनारतीर्थ पूजा, पुहि., गा. ९, प+ग., दि., (रत्नजडित भंगारशोभित नीर), १०५९८९-३५(+-) गिरनार पूजा सविधि, क. दौलतराम पंडित, पुहि., प+ग., दि., (समवसरण लक्ष्मी सहित), १०४९२७(+) गिरनारशत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.७, पद्य, म्पू., (सारो सोरठ देश देखाओ), १०५४०१-१(+) गणकरंडकगणावलि चौपाई, मु. दीपचंद ऋषि, मा.ग., ढा. २८, गा. १६०३, वि. १७५७, पद्य, श्वे., (संपति सुखदायक सरस), १०५७८४(+) गुणकरंडकगुणावलि रास, मु. गजविजय, मा.गु., खं. ३ ढाल २६, वि. १७८४, पद्य, मूपू., (--), १०५६१८ गुणकरंडकगुणावली रास-बुद्धिविषये, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. २६, गा. ४९३, वि. १७५१, पद्य, पू., (श्रीअरिहंत अनंत गुण सेवे), १०१३९९-१(+) गुणमंजरी चौपाई, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ७४, वि. १७४०, पद्य, दि., (परम पंच परमेष्ठिको), १०४९२२-४७(+) गुणरत्नाकर छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., अ. ४, गा. ४२५, वि. १५७२, पद्य, मपू., (शशिकरनिकर समुज्वल), १०२१५५-१(+), १०५७७१(+), १०११७७(5) गुणावलि चौपाई, ग. गजकुशल, मा.गु., ढा. २९, गा. ५१९, वि. १७१४, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवे), १०१३८३(#) गुणावलि रास, मु. ज्ञानमेरु, मा.गु., ढा. १६, वि. १६७६, पद्य, मूपू., (प्रणमुं चउवीसे जिनरा), १०५५५८(+#), १०१९४३($) गुरुगुण गहुंली, जै.क. भूधर, पुहिं., गा. १३, पद्य, दि.?, (ते गुरु मेरे उर वसे), १०६०१२-३३ गुरुगुण गीत, उपा. रत्ननिधान, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (हुं गुरुवंदन कुं धाई रहि), १०५५६३-४(#) गुरुगुण पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (गुरु समान दाता नही कोई), १०६०५७-२१५(+) गुरुगुण भास, मु. कर्मचंद्र, मा.गु., गा. ९, वि. १७९२, पद्य, पू., (श्रीसूरीसर पय नमी), १०१७६०-५(+) गुरुगुण लावणी, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., गा. ५, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (गुरुनै रुति वसंत कीनी जिन), १०१८६८-४८(+) गुरुगण लावणी, श्राव. चंपाराम दीवान, मा.गु., गा. ३, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (सुमिरि गुर आदि का सरणा), १०१८६८-२(+) गुरुगुण स्तुति, जै.क. भूधरदास, पुहि., दोहा. ८, पद्य, दि., (वंदौ दिगंबर गुरु चरण जग), १०५९८९-४७(+-), १०६०१२-३४ गुरु पूजाष्टक, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. १०, पद्य, दि., (चहुंगति दुख सागरविषै), १०५९८९-३८(+-), १०६०५७-५४(+) गुरुशिष्य औपदेशिक संवाद, मा.गु., गा. २५, पद्य, मप., (पांन सडे घोडो अडे वीद्या), १०५५६९-२(+#) गोचरी ४२ दोष, मा.गु., गद्य, मपू., (उद्गम दोष श्रावकथी), १०४३९८-४(+), १०१७८२-२(६) गोचरी ४६ दोष चोपाई, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. २५, वि. १७५०, पद्य, दि., (अरिहंत सिद्धचिता रिचित), १०४९२२-७२(+) गोचरी ४७ दोष, मा.गु.,रा., गद्य, मूपू., (१ अहाकमे १ उपवा० वरा), १०५८०५-२७(+#) गोराबादल चौपाई, आ. हेमरत्नसूरि, मा.गु., गा. ६१७, वि. १६४५, पद्य, मूपू., इतर, (सुखसंपतिदायक सकल), १०१८६४($) गोराबादल रास, ग. लब्धिउदय, मा.गु., खं. ३ ढाल ३९, गा. ८१६, ग्रं. ११५७, वि. १७०७, पद्य, मूपू., (श्रीआदिसर प्रथम जिण), __१०१६८९(+), १०६०२०($), १०१४००(-#$) गौतमपृच्छा ९७ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (कहो स्वामि कणां होय), १०६३२८ गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १२९, वि. १५४५, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवे), १०१००६(+#S), १०११६६-२(+$), १०१३२२(+), १०१८४९(+), १०२०३८(+$), १०५५३१(#), १०५७५२(६) । गौतमस्वामी छंद, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मपू., (मात पृथ्वी सुत प्रात), १०६१६२-२४ गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मपू., (वीरजिनेश्वर केरो शिष्य), १०५०७७-५(+) (२) गौतमस्वामी छंद-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (महावीरजीरा सीस श्रीगोतम), १०५०७७-५(+) For Private and Personal Use Only Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ गौतमस्वामी पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (गौतमस्वामीजी मोह वाणी तनक), १०६०५७-३२५(+) गौतमस्वामी मांगलिक स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (गौतमस्वामी नाम गाम तणै), १०१५९१-३(#) गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., ढा. ६, गा. ६६, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), १०५०६४-१(+), १०५६६३(+#), १०६४२२-२(+) । गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., गा. ६३, वि. १४१२, पद्य, मपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमला), १०१९३९(+), १०५३०३(#) गौतमस्वामी रास, मा.गु., ढा. ६, गा. ४६, पद्य, म्पू., (वीर जिनेसर चरण कमल), १०५६०२(#$) गौतमस्वामी सज्झाय, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (वीर कहै तुमे गोतम), १०५२६३-२(+#$) गौशाला संबंधी पत्र, श्राव. जगजीवन उजमशी, गु., वि. २१वी, गद्य, मपू., (अमारे बा रडुबाना अमदावाद), १०३६७६(+) ग्रंथमहिमा गीत, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. १२, पद्य, दि., (कलि मैं ग्रंथ बडे उपगारी), १०६०५७-४१(+) चंदनबालासती चौपाई, मा.गु., गा. १५९, पद्य, मपू., (अरिहंत सिद्धने प्रणम), १०३५४१-१ चंदनबालासती रास, श्राव. देपाल भोजक, मा.गु., गा. १३६, पद्य, मूपू, (--), १०२९६५-१(#$) चंदनबालासती सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. ४२, पद्य, मूपु., (कोसंबीनगरी पधारिया), १०१२०८-१(+) चंदनबालासती सज्झाय, मु. रायचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (चंदनबाला वारणै रे), १०२८०२-३ चंद्रकुमार वार्ता, मा.गु., गा. १२५, पद्य, मप., (समरु सरसती मात मनाय), १०१७१९(+), १०१९५८(#S), १०६२०५(#), १०५५६८-२(-१) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न विचार, मा.गु.,रा., गद्य, मपू., (श्रीचंद्रगुप्तेन), १०२४४०-१२(#) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जेमल ऋषि, रा., गा. १९, पद्य, स्था., (उजीणीनगरी कै वागमैं), १०६०१२-२२ चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., गा. ४०, पद्य, स्था., (पाडलीपुर नामे नगर), १०२५८३-१ चंद्रप्रभजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (सांचे चंद प्रभु सुखदाया), १०६०५७-२८९(+) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. जेत मुनि, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू., (श्रीचंदाप्रभु जिनवर साहि),१०५७३६-१४(+) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. जैत, पुहिं., गा. ६, पद्य, मपू., (श्रीचंदाप्रभु जिनवर), १०५६८६-२३(+) चंद्रप्रभजिन स्तवन, मु. लालचंद ऋषि, मा.गु., गा.१२, वि. १८५४, पद्य, स्था., (चंद्रप्रभु चितमोह), १०२६४४-२६(+-) चंद्रप्रभजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (वरअष्टमंगल जास आगलि रचय), १०५२६९-९(+) चंद्रराजा १० भव वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (चंदराजा ते १रूपमतिन), १०१९३० चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल १०८, गा. २६७९, वि. १७८३, पद्य, मूपू., (प्रथम धराधव तीम), १०२३६३(+#$), १०४७४३(+$), १०२५२६(#$), १०५६२९(#$) चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., खं. ६ ढाल १०३, गा. २५०५, ग्रं. ३०५५, वि. १७१७, पद्य, मूपू., (श्रीजिननायक समरीइं), १०५१३३(+#s), १०२५६१(#), १०२८३९(#$) चंद्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मा.गु., ढा. २९, गा. ६२४, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति नमी करी), १०२७१६(+), १०५६६७(+#), १०५६८२(+#) चक्रवर्तीजिनत्रय पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (अपनौ जानकै मोह तारलौ), १०६०५७-१८५(+) चतुर्दशीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चौद सुपन सुचित हरि), १०५२६९-१०(+) चतुर्विंशतिजिनव्रत कथा, मा.गु., गा. ४२, पद्य, श्वे., (जेठ जिनवर आदि व्रतसप्तम), १०४७९२-२३ चरणसित्तरी के ७० व करणसित्तरी के ७०बोल, मा.गु., गद्य, मप., (५ महाव्रत १० जतिधर्म), १०५८०५-२१(+#) चर्चा प्रश्नोत्तर विचार-जैनधार्मिक, पुहिं., गद्य, मप., (--), १०५९८१(+$) चर्चाशतक, जै.क. द्यानतराय, पुहि., दोहा. १०३, पद्य, दि., (परमेष्ठी पांचौ विघनहर), १०६०५७-१८(+), १०४२८६, १०४३७७(#) (२) चर्चाशतक-बालावबोध, श्राव. हरजीमल, पुहिं., गद्य, दि., (जै कहिये जैवंते), १०४२८६, १०४३७७(#) चातुर्मासिक व्याख्यान, रा., गद्य, मप., (अष्ट महाप्रातिहार्य), १०५८६२($) चारदिशागत जीवविचार, रा., गद्य, मपू., (पृथ्वीकायरा जीव पूर), १०३३९४-१६(+) For Private and Personal Use Only Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ चारित्रमनोरथमाला, मु. खेमराज, मा.गु., गा. ५३, पद्य, मूपू., (श्रीआदिसर पाय नमी), १०५६०३ चारित्रमनोरथमाला, मा.ग., गद्य, जै., (--), प्रतहीन. (२) चारित्रमनोरथमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रावक ग्रहस्थ वासमा), १०५९६१-२ चित्तोडगढ गजल, क. खेताक यति, पुहिं., गा. ५७, वि. १७४८, पद्य, मपू., इतर, (चरण चतुरभुज घाईऐ चित), १०२०२६-१(+$) चित्रसंभुति चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, गा. ४८, वि. १७४२, पद्य, मूपू., (प्रणमुं सरसति सामुणी), १०१२०८-३(+$) चित्रसंभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ३९, गा. ७४५, ग्रं. ११००, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (प्रथम नमुं परमेसरु), १००९९८(+#$) चित्रसंभूति सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (चित्र अनि संभूतए), १०५३३८-२(#) चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १९, पद्य, मपू., (चित्त कहे ब्रह्मराय), १०५७८०-२(+) चेतन वृतांत, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. २९८, वि. १७३६, पद्य, दि., (जिनचरण प्रणाम करि), १०१३८२-१(+), १०२२९७(+#$), १०४९२२-४(+), १०५२८०(+$), १०४८४४($) चेलणासती चौपाई, मु. दयाचंद ऋषि, मा.गु., ढा. १३, पद्य, श्वे., (चोवीसमा महावीरजी), १०५०७०(+), १०५४८४(+), १०५६५३(+) चेलणासती सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.ग., गा. ७, पद्य, मप., (वीरे वखाणी राणी), १०१८४७-२(+) चैत्यपरिपाटी स्तवन-बीकानेर आठ जिनालय, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (चैत्यप्रवाडै चौवीसटै), १०५११४-३० चैत्यवंदन छंद, मु. मान, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सरस्वति देवी नमु मनरंग), १०६१६२-१२ चैत्यालय जयमालिका, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. ३३, वि. १७४५, पद्य, दि., (प्रणमहुं परम देवके), १०४९२२-६०(+) चैत्रीपूर्णिमापर्व देववंदनविधि, मु. दानविजय, मा.गु., देवजो. ५, पद्य, मूपू., (प्रथम चौमुख प्रतिमा), १०२०३९(+) चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, मपू., (विमलकेवलज्ञान कमला), १०१५२३(+$), १०५१४४(+), १०५२१२(+$), १०५८०७(+$) जंबुस्वामी चरित्र, मा.गु., ढा. ५०, गा. ४२१, पद्य, मपू., (शारद पाय प्रणमुं सदा कविज), १०२६९१(+) जंबुस्वामी पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (अरि अरि भज जंबुस्वामी), १०६०५७-३६१(+) जंबूद्वीपक्षेत्रमान विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (जंबूदीपमइ १८४ माडला), १०२८०६-२ जंबूद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबुद्वीप लांबो पहुल), १०१९६६(+$) जंबूपृच्छा , मु. वीरजी, मा.गु., ढा. १३, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (सकल पदारथ सर्वदा), १०२२५६ जंबूस्वामी कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., (सप्रभावं जिन), १०५७४०(+$), १०२६६४(#$) जंबूस्वामी गीत, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहि., गा. १६, वि. १८८३, पद्य, श्वे., (श्रीजंबू गुरु चरण पादुका), १०१८६८-५(+) जंबूस्वामी गीत, मु. मोहन, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (मगधदेस भंझारि राजगृही), १०४६४३-२(+#) जंबूस्वामी गुरुमंदिर लावणी-मथुरा, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहि., गा. १२, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (श्रीजंबूस्वामी को मंदिर), १०१८६८-६(+) जंबूस्वामी चरित्र, श्राव. आणंद जेठमल, मा.गु., ढा. ३५, वि. १९२०, पद्य, मप., (शासनपति वर्धमाननो), १०५१४६(+), १०५७९७(+), १०१६७७(#) जंबूस्वामी भास, उपा. न्यायसागर वाचक, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (--), १०१९२०-१(+$) । जंबूस्वामी रास, मु. मल्लिदास, मा.गु., ढा. ३५, गा. ४८८, वि. १६४९, पद्य, मूपू., (सरसति सरस सुकवि सकति), १०३८८९-१(+) जंबूस्वामी लावणी, मु. चोथमल ऋषि, रा., गा. ३१, वि. १८५८, पद्य, श्वे., (सेठ रिषभदत पिता जंबु), १०२६४४-२(+-) जंबूस्वामी लावणी, ऋ. नथमल, मा.गु., गा. १८, वि. १८६८, पद्य, श्वे., (श्रीवीतराग जिनदेव नमु सिर), १०२६४४-१(+-) जमाली सज्झाय, मु. चोथमल, मा.गु., गा.११, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (सासणनायक श्रीवीर), १०२५८३-२ जयकेसरीसूरि भास- अंचलगच्छीय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आज धरि धरिइं वधामणां), १०२९४५-३ जयवंत जिनशासन स्तवन, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहि., गा. १५, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (धरम सदा जयवंत जगतमै करता), १०१८६८-४(+) For Private and Personal Use Only Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५६६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ जयानंदकेवली रास, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., खं. ९ ढाल २०२, गा. ५८९७, ग्रं. ८५११, वि. १८५८, पद्य, मूपू., (प्रथम प्रथम प्रणमुं), १०५२८८($) जिनकल्याणक नरकोद्योत वर्णन, रा., गद्य, मूपू., (तीर्थंकर भगवानरा), १०३३९४-१९(+) 3 "" जिनगुणमालासप्तमी, जै. क. द्यानतराय, पुर्हि सवै ७, पद्य, दि., (अशोक पुहपमंजरी छंद समोसरन), २०६०५७-१७) जिनगुणमालिका स्तवन श्राव. भगवतीदास भैया, मा.गु., गा. २१, पद्य, दि., (तीर्थंकर त्रिभुवन), १०४९२२-४४(+) जिनचंदसूरिगुरुगीत, उपा. रत्ननिधान, मा.गु., गा. १०, पद्य, भूपू (श्रीजिनचंदगुरु चिरजीवड), १०५५६३-३(०) जिनचौवीसी, श्राव. भगवतीदास भैवा, पुहिं. गा. २५, पद्य, दि. (श्री आदिनाथ अरिहंत), १०४९२२-१० (+) जिन जयमालिका, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं. गा. ९, पद्य, दि. (श्रीजिनदेव प्रणाम करि), १०४९२२-१३(+) जिनदत्तजिनचंदजिनकुशलसूरि छंद, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू. (खरतरगच्छ जाणै खलक), १०६१६२-७ जिनधर्मपच्चीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. २८, वि. १७५०, पद्य, दि., ( प्रगटदेव परमातमा चिदानंद), १०४९२२-७३(+) जिनपूजा अष्टप्रकारी, जै.क. द्यानतराय, पुहि गा. ९, पद्य, दि. (प्रभु तुम राजा जगत के हमे). १०६०५७-४९(+) "" " जिनपूजा अष्टप्रकारी, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ९, पद्य, दि., (सजल चंदन अक्षत पुष्प लै), १०६०५७-४५ (+) जिनपूजागुण गीत, मु. इंद्रजीत, पुहिं., गा. २, पद्य, दि. 2, (जिनवर पूजी लो मेरे मीतजि), १०६०५७-४१२(+) जिनप्रतिमापूजासिद्धि विचार, मा.गु., गद्य, भूपू (पुष्पादि किसी रीतिइ) १०२७६७(*) जिनप्रतिमावंदनफल स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (जिनवर जिनप्रतिमा), १०१७६१-२(+) जिनप्रतिमाहुंडी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६७, वि. १७२५, पद्य, मूपू. (सुवदेवी हीवडे धरी), १०६०६२ (३) जिनबिंबपूजा स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मृपू., (भविका श्रीजिनबिंब), १०५११४-३५ जिनभक्ति सवैया, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ५, पद्य, दि., (वीतराग के विंवसेव), १०४९२२-९७(+) जिनभावनाष्टक, जै.क. द्यानतराय, पुर्हि सवै ८ वि. १८वी, पद्य, दि., (जगत उदास आपको प्रकाश संग), १०६०५७-३७३ (+) जिनवरव्रत कथा, मा.गु., गा. ६१, वि. १६५०, पद्य, मूपू., (जिन चउवीस नमो जगदीस), १०३५७९-१(+) जिनवाणी पद, जै.क. द्यानतराव, पुहिं. गा. ३. वि. १८वी, पद्य, दि., (तारन कौ जिनवाणी मिथ्या), १०६०५७-३३९(१) " י' www.kobatirth.org " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनवाणीसंख्या दोहा, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., दोहा. ११२, वि. १८वी, पद्य, दि., (वंदौ वाणी बरन युग बरग), १०६०५७-४३७(+) जीव अजीव भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवना दोय भेद २ एक) १०१५१८-२ (०६) जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपु. ( पृथिवीकाय लक्ष अप्का), १०५१०२(+) १ जीवविचार चौपाई, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, मूपू., (शांतिनाथ पयकमल धरि हृदय), १०२६४० (+$) जीवविचार स्तवन- पार्श्वजिन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ८३, वि. १७१२, पद्य, मूपू (श्रीसरसती रे वरसती), १०२५८४(+), १०३३९४-२६(+) जीवाजीवादि विविध विषयक नाम संग्रह, मा.गु., गद्य, म्पू. वै. इतर ( जीव अजीव पुन्य पाप श्रव), १०५५६९-१(००) " , जीवोत्पत्तिविचार संग्रह, रा., गद्य, वे. (स्त्री तणी नाभि हेठि). १०६१२३(७) जैनधर्म ऐतिहासिक वर्णन, पुहिं., मा.गु., गद्य, श्वे., (आ जंबूद्वीप तेहनी), १०१५७२ जैनधर्ममहिमा पद, क. बुधजन कवि, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (जैन धर्म पायो दोहेलो), १०५९८९-६९(+) जैनमत स्थापन विचार, पुहिं., गा. ३३, गद्य, दि., (जो पुरुष पून्यवान ए तीनु), १०५९८९-६५ (+) जैनयंत्र संग्रह, मा.गु., को. मूपू. (१ जीव समुचइ ५ नियमा), १०४१९३ (+) " ज्ञानदशक, जे. क. द्यानतराय, पुहिं. गा. ११, पद्य, दि., (देखे मूरति स्वामी की), १०६०५७-७(१) (ॐकार रूप ध्येय गेव), १०२५६७(१) ज्ञान द्विपंचाशिका, मु. हंसराज, मा.गु., सबै ५२, पद्य, मूपू. ज्ञानपंचमी कथा. ग. विजयसुंदर, मा.गु., गा. ५१, पद्य, मूपू. ज्ञानपंचमीपर्व चैत्यवंदन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (त्रिगडे बेठा वीर), १०५४८९-२० (-#) (-), १०१४४० (+) ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., देवजो. ५, गा. १५०, पद्य, मूपू., (श्रीसौभाग्यपंचमी), १०५१४३(+#) ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., डा. ३, गा. २५, पद्य, मूपु, (प्रणमुं श्रीगुरु पाय), १०२६२४- १४(+), १०२६४६.५ (०६), १०६३७२-३ For Private and Personal Use Only Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ ५६७ ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सद्गुरुना प्रणमु), १०५७२७-९(+) ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ५, गा. १६, पद्य, मपू., (श्रीवासुपूज्य जिणेसर वयण), १०२००८-६(5) ज्ञानपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. २५, वि. १७वी, पद्य, दि., (सुरनर तिर्यग जग जोनि), १०२०९३(+#$) ज्ञानपट्टक, आ. हीरविजयसूरि, मा.गु., वि. १६४६, गद्य, मूपू., (समस्तसाधुसाध्वीइ लेखक तथा),१०३७४१-२(+) ज्ञानानंद श्रावकाचार, श्राव. रायमल्ल, पुहिं., प+ग., दि., (राजत केवलज्ञान जुत परम), १०४९२०(६) ज्ञानावरणीय सिद्ध आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहि., चौपा.६, वि. १८वी, पद्य, दि., (मूरत ऊपर पट पर्यो रूप), १०६०५७-३७७(+) ज्योतिष कवित्त, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. ५, पद्य, दि., इतर, (दिनकर के दिन बीस चंद पचास), १०४९२२-९०(+) ज्योतिषचक्र विचार, श्राव. हजारीमल लुंकड, रा., द्वा.७, वि. १९३१, प+ग., श्वे., इतर, (श्रीगुरुदेवोने), १०२३७४($) ढाईद्वीप विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (खंडा ८ हजार ५५०), १०१९००-१(+$) ढुंढकपच्चीसी-स्थानकवासीमत निरसन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. २५, पद्य, मपू., (श्रीश्रुतदेवी प्रणमी), १०५६३०-३(+) ढोलामारु चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. ७००, वि. १६७७, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर सामिनी), १०५७१३(+#s), १०१८५३(#$), १०५३४६(#S) तंदल मत्स्य विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (तुंदली मछ सातमी नरग), १०२४४०-८(#) तपमहिमाकथन सवैया, ग. जिनहर्ष, पुहिं., गा. १, पद्य, मूपू., (सुदिठपहारी चोर महापातकी), १०१८६५-६(+#) तिथिषोडशी, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. १८, पद्य, दि., (वाणी एक नमो सदा एक दरव), १०६०५७-३८(+) तीर्थमाला स्तवन-पत्तनपुर, ग. शिवदास गणि, मा.गु., गा. ४५, वि. १६७५, पद्य, मूपू., (अणहल वाईं नयर भलु), १०१६४६-१(+) तेजसारकुमार रास, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. ४०६, वि. १६२४, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धारथ कुलतिलो), १०२९९६(#$) तेजसीऋषि सज्झाय, मा.गु., पद्य, स्था., (पुरिसादाणी प्रभु पासजी), १०१६०९(#$) त्रिभुवन अकृत्रिम चैत्यालय पूजा, पुहिं., प+ग., दि., (ई बिधि ठाडो होय के प्रथम), १०५९८९-२५(+-) त्रिषष्टिशलाकापुरुष वर्णन, रा., गद्य, मूपू., (भरतचक्रवर्ती मोक्षं), १०३३९४-११(+) त्रिषष्टिशलाकापुरुष सज्झाय, मु. हर्ष, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूप., (श्रीआदिजिन वार इहूं), १०१३८०-५(5) त्रैलाक्य जिन पूजन विधि, पुहिं., प+ग., दि., (लोकाकास प्रदेशमै भवन तीन), १०४९१२(+$) त्रैलोक्यसुंदरी रास, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., ढा. १२, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (विहरमान वीसे नमु), १०२६९८(+), १०५१८३(+#), १०५५९०(+), १०५४९४ त्रैलोक्यसंदरी रास, मा.गु., पद्य, मप., (सकल सुख कारण पासजिण सामलउ), १०२६३७(+#$) त्रैलोक्यसुंदरी सज्झाय-शीलाधिकारे, मु. हीराचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ५, गा. १७५, वि. १८९०, पद्य, श्वे., (सुख संपति दाइक सदा लाइक), १०५०३३-६(+) थावच्चापुत्र सज्झाय, मु. भागचंद, मा.गु., ढा. ४, दोहा. ६५, पद्य, श्वे., (प्रणमी परमानंद थावचा), १०१४८९-४(#) दंडकद्वार बोलसंग्रह, मा.गु., गद्य, मप., (सरीर३ वैक्रीय१ तेजस२),१०५८६०(5) दंडकभेद बोल-लघु, मा.गु., गद्य, मूपू., (शरीर ओगाहणा संघयण), १०२६६३-१(+$) दयाछत्रीसी, मु. चिदानंदजी, पुहि., गा. ३६, वि. १९०५, पद्य, मूपू., (चरणकमल गुरूदेव के), १०५०४७(+) दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सयल तीर्थंकर करु प्रणाम), १०६१६२-१३ दर्शनदशक, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., सवै. ११, पद्य, दि., (देखे श्रीजिनराज आज सब), १०६०५७-६(+) दर्शन पाठ, क. बुधजन कवि, पुहि., गा. ८, वि. १९वी, पद्य, दि., (प्रभु पतित पावन मै अपावन), १०५९८९-२(+-) दर्शनावरणीय सिद्ध आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (जैसै भूपत दरस को होन न), १०६०५७-३७८(+) दशलक्षणधर्म पूजा, जै.क. द्यानत, पुहिं., वि. १८वी, प+ग., दि., (उत्तम छिमा मारदव), १०५९८९-३०(+-) दशार्णभद्रराजर्षि सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सारद बुधदाईक सेवक नयणानंद), १०१८००-५(+#) दान के १० प्रकार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (अणुकंपा दाणे कृपण), १०५८०५-४४(+#) दानबावनी, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., सवै.५३, पद्य, दि., (वंदौ आदिजिनंद व्रत तीरथ), १०६०५७-१५(+) For Private and Personal Use Only Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ४, गा. १०१, ग्रं. १३५, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेसर पाय), १०११९५(+), १०१७५९-११(+#), १०३५७४(+), १०५२६३-१(+#), १०५३०४-१(६), १०५६१९(१) दान सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (रसीया राचै दान तणे), १०२५१७-२०(+), १०५७२७-३(+) दानस्वरूपकथन सवैया, ग. जिनहर्ष, पुहि., गा. १, पद्य, मूपू., (देहू दान सीख मान दान तै), १०१८६५-४(+#) दिशाशूलपरिहारवस्तु गाथा, मा.गु., गा. २, पद्य, वै., इतर, (रवि तंबोल महखइ दर्पण भोमे), १०२९८६-३(+) दीक्षा के १८ दोष, मा.गु., गद्य, मपू., (आठ वरसना बालक उपरांत), १०५८०५-३१(+#) दीपावलीपर्व कल्प-लघ, मा.गु., गद्य, मूप., (स्वस्ति श्रीसुदातारं), १०१३६१(+) दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वीरजिनवर वीरजिनवर), १०२४१५-२(5) दीपावलीपर्व पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (पावापुर प्रभु वंदौ जाय), १०६०५७-३३३(+) दीपावलीपर्व स्तवन, आ. ज्ञानविमलसरि, पुहि., गा. ५, पद्य, मप., (प्रभु विण वाणी कोण), १०५४०१-१०(+) दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सासननायक श्रीमहावीर), १०५२९६-३(+) दृढप्रहारीमुनि सज्झाय, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. १२, पद्य, मप., (एक धिन धिनजी दृढप्रहारऋषि), १०५५१९-२(+) दृष्टांत कथानक संग्रह, मा.गु., गद्य, पू., (राजगृही नगरी प्रसेणी), १०२९३७(#$) दृष्टांतपच्चीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. २६, वि. १७५२, पद्य, दि., (केवलज्ञान सरूप मैं बसै), १०४९२२-८६(+) देव आयुष्य विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे., (१ उडूनामा पटल ६४५१६१२९०३२), १०२३८७-९ देवकी सज्झाय, मु. लावण्यकीर्ति, मा.गु., ढा. १०, गा. १०१, पद्य, मप., (रथनेमि नामे हवा), १०५०६८-१(+), १०५२५५(+-) देवगुरुशास्त्र आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ९, पद्य, दि., (देव शास्त्र गुर रतन सुभ), १०६०५७-३९३(+) देवदत्ता पंचढालियो, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., ढा. ५, वि. १८२५, पद्य, श्वे., (नमु अरिहंत सिध आचार), १०५०३७(+) देवनारक के ५ बोल १६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलो नारकीनो द्वार), १०२४४०-२(#) देवपूजा अष्टप्रकारी, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ९, पद्य, दि., (जल चंदन अक्षत फूलजु चरु), १०६०५७-४७(+) देवपूजा जयमाल, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ९, पद्य, दि., (वृषभ वीर धर धीर चित्त री), १०६०५७-४६(+) देवशास्त्रगुरु पूजा, जै.क. द्यानत, पुहि., प+ग., दि., (प्रथम देव अरिहंत सो), १०५९८९-२२(+-) देवसाध भक्ति पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (सोहा देवे साधु धुतैडी), १०६०५७-२९२(+) देवसूरि निर्वाण सज्झाय, मु. अमरसागर, मा.गु., ढा.८, गा. ६४, वि. १७१३, पद्य, मूपू., (सासन नायक वीरजिणंद पायनमी), १०२७४३(#) देवादिगति आयुष्यबंध विचार बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (अल्प कषाइ १ विणवेग), १०५८०५-६४(+#) दोहा संग्रह, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (दसे बालो वीसे भोलो), १०१२०२-२(+) दोहा संग्रह, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे.?, (सुख उपनै दख गल गए), १०१५७१-२(#) द्यानतविलास, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ७२, वि. १७८१, पद्य, दि., (दुखहरन सब सुखकरन श्रीजिन), १०६०५७-४४४(+) द्रव्यचौबोल पच्चीसी, जै.क. द्यानतराय, पुहि., सवै. २५, पद्य, दि., (दरवक्षेत्र अरु काल भावदरव),१०६०५७-८(+) द्रोपदी रास, मा.गु., ढा. ४७, वि. १७५७, पद्य, म्पू., (स्वामी शांति जिणेसरु भावे), १०२३७५ द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., ढा. ३९, गा. १११७, वि. १६९३, पद्य, मपू., (पुरिसादाणी पासजिण), १०२५१०(+$), १०२९२७(+#$), १०५५२४(+#) द्रौपदीसती रास, मु. चोथमल ऋषि, रा., वि. १८५४, पद्य, श्वे., (सकल जिनेसर नित नमु), १०११६३(+#) द्वादशांग स्तुति, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ८, पद्य, दि., (कहालै पूजा भगति बढावै), १०६०५७-३३(+) धन्नाअणगार रास, वा. मतिशेखर, मा.गु., गा. ३३०, वि. १५१४, पद्य, पू., (पहिलउं पणमी पयकमल), १०१३६३(+#) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. कुशलराज, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूप., (सुण वाणी वैरागीयोजी ए), १०१८४७-१८(+) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ५, गा. ५९, वि. १७२१, पद्य, मूप., (कर्मरुप अरि जीतवा), १०५४००-३ धन्नाअणगार सज्झाय, मु. ठाकुरसी, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (जिनवाणी रे धना अमीय), १०१९७५-२(+-#) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. रत्न, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (नगर काकंदी हो मुनीसर), १०२५८३-१० For Private and Personal Use Only Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org , कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ धन्ना अणगार सज्झाव, मु. श्रीदेव, मा.गु गा. १२, पद्य, भूपू (जिनवचने वयरागी हो), १०११६४-३(५) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अजीया जोरावर कारमी), १०५७२७-५(+) धर्म अधर्म विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (गुरुमुखी संभलि आगमवाणी), १०११०१ धर्मजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ८, पद्य, म्पू. ( धरमजिनेश्वर गाउं रंग), १०२६४६-१० (+), १०५०४६-१४/१ धर्मपच्चीसी, जै.क. द्यानतराय, पुहि गा. २७, पद्य, दि. (भवि कमल रवि सिद्धिजन धरम), १०६०५७-४(+) धर्मपरीक्षाकथन सवैया, ग. जिनहर्ष, पुहिं, गा. १, पद्य, म्पू., ( धरम धरम कहै मरम न कोउ ली), १०१८६५ १२(४०) " धर्म पुण्यपाप भेद, मा.गु., गद्य, म्पू., (राग द्वेष मोह रहित), १०५५६६ धर्मरहस्यबावनी, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., सवै. ५२, पद्य, दि., (पंचनीमे कहिये परमेश्वर), १०६०५७ - १४(+) धर्मविमुख जीव ५ भेद, मा.गु. गद्य, मूपू., (अहंकारीजीव १ अपणपो), १०२३८७-६ धर्मविलास पीठिका, जै.क. द्यानतराय, पुहि गा. ६, पद्य, दि., (बंदी आदिजिनेस पापतम हरन), १०६०५७-१(+) " . " धर्मसंबंध बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्मनो बाप जाणपणो), १०५८०५-५६(+#) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्माभिमुख जीव ८ भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (हासो न करे १), १०२३८७-७ धर्मोपदेश कवित्तसवैयादि संग्रह, श्राव. त्रिलोकचंद, पुहिं., गा. २७, पद्य, मूपू., (सम्यक दरसन लहिय अलपभवथिति), १०६२६०(+) ध्यानस्वरूपनिरूपण प्रबंध, मु. भावविजय, मा.गु. दा. ९, गा. १६३, वि. १६९६, पद्य, म्पू, (सकल जिणेसर पाव वंदे), १०५८९०) , ध्यानस्वरूप विचार, रा. गद्य, भूपू (ॐॐ अवराय कित्तिय वंदिय), १०९५८८/-) " नंदबत्रीसी चौपाई, मु. सिंहकुशल, मा.गु., गा. १५४, वि. १५६०, पद्य, मूपू., ( आगम वेद पुराण जाणता), १०२६४२(+), १०१६५१ नंदवीरोचन सज्झाय, मु, हीराचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ८, गा. १९३, वि. १९पू, पद्य, श्वे. (वरतमान जिनवर नमु सिद्ध), १०५०३३-५ (+) नंदिषेणमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., गा. २६० नं. ५००, वि. १८०३, पद्य, मूपु. ( वर्द्धमान चीक्सिमो), १०१५०२-६(२०) नंदिषेणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., डा. १६ गा. २८४ ग्रं. ४२१, वि. १७२५, पद्य, मूपू. (सुत सिद्धारथ भूपनो), १०१२९३(००३), १०५४१५ (०३) (+#$), (#$) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., डा. ३, गा. १६, पद्य, म्पू., (राजगृही नयरीनो वासी), १०५७२७-४(+) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मुपू. (रहो रहो रहो वालहा), १०२५१७-२ (+), १०५६३०-१००) नंदीश्वरद्वीप जिनप्रतिमा स्तुति, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं. गा. १५, पद्य, दि., (बंदो श्री जिनदेवको), १०४९२२-५५) नंदीश्वरद्वीप पूजा, मु. धर्मचंद्र, मा.गु., ढा. १२, वि. १८९६, पद्य, मूपू., (प्रणमुं शांति जिणंद), १०५९७० (+) नंदीश्वरद्वीप पूजा विधान, क. टेकचंद, पुहिं, प+ग, वि. (ठानी पूजी देवा केरी ता ते), १०५९८९-७५(+) "" नक्षत्रतारा विचार सज्झाय, मा.गु. गा. १५, पद्य, मूपू, इतर (वीरजिनेश्वर चरण), १०१८००-८(१) " नक्षत्रराशिफल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (अश्विनी मांहि चालेनु), १०१३४२-४($) नमस्कार महामंत्र चौडालिया, उपा. राजसोम पाठक, मा.गु., डा. ४, पद्य, मूपू., (नवकारवाली मणिवडा), १०५११४-१० नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. १८. वि. १७वी, पद्य, म्पू. (वंछित श्रीजिनशासन), १०६१६२-२३, १०६१३३-५(४) नमस्कार महामंत्र छंद, मु. जिनप्रभसूरि-शिष्य, मा.गु. गा. ७, पद्य, भूपू (सुखकारण भवियण समरो) १०५२४०-११(+), १०६१०८-२, १०६१६२-१७ नमस्कार महामंत्र छंद, मु, धर्मवर्धन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (तिमिर भयहरणं पणव), १०६१६२-१० नमस्कार महामंत्र छंद, क. लाधो, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे. (भोर भयो ऊठो भवि), १०६१६२-९ " नमस्कार महामंत्र पच्चीसी, पं. आनंदनिधान, मा.गु., गा. २५, वि. १७३०, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर ईम द्ये उपदेश), १०६१६२-११ नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (देवतणी ऋधि भोगवी), १०५३३८-३(#) नर्मदासती चौपाई, क्र. रायचंद, मा.गु., डा. १५, पद्य, खे, (सासणनायक समरीये), १०३५४१-२ (६) For Private and Personal Use Only ५६९ Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५७० www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नर्मदासुंदरी रास-शीलव्रतविषये, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. ६३, गा. १४५४, ग्रं. १४६६, वि. १७५४, पद्य, मूपू., ( प्रभुचरणांबुजरजतणी), १०१४१९ (६) नलदमयंती रास, आ. ऋषिवर्द्धनसूरि, मा.गु. गा. ३३१ . ५००, वि. १५१२, पद्य, मूपु (सवल संघ सुहसंतिकर), १०२९४५-१(5) नलदमयंती रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ६ ढाल ३९ गा. ९३१, ग्रं. १३५०, वि. १६७३, पद्य, मूपु., सीमंधरस्वामी प्रमुख), १०१४१७(+), १०५८०२०) नवकार प्रभाव कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (नउकारन प्रभावि), १०१३०८(४) नवतत्त्व १३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, थे., (जीव चेतन १ अजीव अचेतन २) १०५४९२(१), १०५६४९(+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नवतत्त्व २७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व १४ भेद), १०२४८५ नवतत्त्व चौपाई, मु. देवचंद्र, मा.गु., डा. ९, गा. २०४, पद्य, मूपू. (सकल जिनेसर प्रणमी), १०५५१९-१(+), १०५८२२) नवतत्त्व बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (१. जीव तत्वप्राण), १०१०६०-१ (+) नवतत्त्व विचार, मु. परमसौभाग्य, मा.गु., गद्य, खे, (सम्यग्दृष्टिने जे), १०२९८९ - १(क) नवतत्त्व विचार, मा.गु. गद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुन्नं पावा), १०५४७५ (+), १०१९३८(०) नवतत्त्वविचार संक्षेप, रा., गद्य, मूपू., (जीव दस प्राण घरें), १०३३९४-२७(+) नवनिधान विचार, रा., गद्य, मूपू., (प्रथम तो निसप्प नामा), १०३३९४-२० (+) नवपद चैत्यवंदन-विधिसहित, मु. कुशल, मा.गु., स्त. ९, पद्य, मूपू., (जय जय श्रीअरिहंतभानु), १०५२६२ नवपदचैत्यवंदनस्तुतिस्तवन संग्रह, उपा. चारित्रनंदि, मा.गु. गा. ९७, पद्य, म्पू. (श्रीअरिहंत अनंत नाणदंसण), १०२७७७(१) नवपद पूजा, मु. उत्तमविजय, मा.गु., ढा. ९, वि. १८३०, पद्य, मूपू., (श्रीगोडी पासजी नीति), १०५६८१(#) नवपद विधि, रा., गद्य, मूपू., (प्रभातरो संझारो पडिक), १०१०१० (#$) יי नवपद स्तवन, मु. कुशल, पुहिं., स्त. ९, गा. ४५, पद्य, मूपू., (तेरम गुण वसकै कंत), १०१९२४($) नवपद स्तुति, मु. भीमराज, मा.गु. गा. ४, पद्य, म्पू, (श्रीजिनशासन भविक विभासन) १०२७५३-१३(५) नववाड- ब्रह्मचर्य ढाल, मु. अगरचंद, मा.गु., डा. १०, गा. १३१, वि. १८७९, पद्य, मूपू (प्रणमुं पंच परमेस), १०५४५४(क) नववाड सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु गा. १५, पद्य, स्था. (सीलव्रत सुध पालजी रे मानव), १०२१८९-२(+) " नाटकपच्चीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., दोहा. २४, पद्य, दि., (कर्म नाट नृत्य तोड क), १०४९२२-८०(+) नामकर्मनिवारण सिद्ध आरती, जे.क. द्यानतराय, पुहिं., चौपा. १३, वि. १८वी, पद्य, दि., (चित्रकार जैसे लिखे नाना), १०६०५७-३८४ (+) नारकीदुः खवर्णन दोहा, पुहिं., दोहा ७९, पद्य, दि., (कथा तिहां के कष्ट की कौ), १०५९८९-४५(१) " , निगोदविचार सज्झाय, पं. रामविजय पाठक, मा.गु. गा. २८, पद्य, मूपू (केवलनांण दंसणधर धीर जय जय), १०५११४-११ निर्दोषसप्तमीव्रत कथा, मु. ज्ञानसागर, पुहिं, गा. ४१, पद्य, दि., (श्रीजिनचरण कमल अनुसार), १०६०२३-८ निर्दोषसप्तमी व्रत कथा, क. ब्रह्मरायमल्ल, मा.गु., गा. ६०, पद्य, दि., (स्वामी शांतिनाथ जगत्रार), १०३५७९-२(*) निर्मोहीराजा सज्झाय, मु. चौथमलजी, मा.गु., गा. २०, पद्य, स्था., (निर्मोही राजवी जाने इंद्र), १०२५८३-६ , निर्वाणक्षेत्र पूजा, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., गा. २०, वि. १८वी, पद्य, दि., (परम पूज्य चौबीस जिह), १०५९८९-३२(+), १०६०५७-६३+) निर्वाणक्षेत्र पूजा-मोटी, पुहिं., वि. १८७१, प+ग. दि., (वंदु श्रीभगवान कुं), १०५९८९-४२(+) नेमराजमति पद, मु. केसरीचंद, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपु. ( मनो रे मनो रे मुझ बालहा). १०५६८६-३(०) " नेमराजिमति पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (अब मोहि तार ले तरि लै नेम), १०६०५७-३१६(+) नेमराजमति पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., (ज्ञानी ज्ञानी नेमजी तुमही, २०६०५७-१०४(+) नेमराजमति पद, जे.क. द्यानतराय, पुहिं. गा. ५, पद्य, दि., ( तजि जुग ए पिय मोहि अनाहक), १०६०५७-२५१(+) नेमराजिमति पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., (ते कहूं देखे देखे नेम), १०६०५७-४२९ (+) नेमराजिमति पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (नेम गए किह ठाउं दिल मैं), १०६०५७-३१३(+) नेमराजमति पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं गा २, पद्य, दि.. (पिव वैराग लियो है किसमिस) १०६०५७-३१२(+) "" For Private and Personal Use Only Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ ५७१ नेमराजिमति पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (पिया रे नेमसं प्रेम किया), १०६०५७-३२२(+) नेमराजिमति पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ८, पद्य, दि., (भज मन प्रभु श्रीनेम कौं), १०६०५७-२२३(+) नेमराजिमति पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (मूरत पर वारी रै नेमजिनंद), १०६०५७-३१५(+) नेमराजिमति पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (वंदौ नेम उदासी मद मारिवे), १०६०५७-९६(+) नेमराजिमति पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (सुन री सखी री जहां), १०६०५७-२५०(+) नेमराजिमति विवाह पद, जै.क. द्यानतराय, पहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (ए री सखी नेमजी को मोह),१०६०५७-३१४(+) नेमराजिमति होरी पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, दि., (ग्यान गुलाल सुहावना रंग), १०६०५७-४३२(+) नेमराजिमति होरी पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (नेमीश्वर खेलन चले रंग हो), १०६०५७-४३१(+) नेमराजिमती गीत, ग. जीतसागर, पुहि., गा. १५, पद्य, मूपू., (तोरण आया हे सखी कहे), १०२५१७-८(+) नेमराजिमती गीत, मु. माल मुनि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (हुं बलिहारी रे वीलवती), १०१९२०-११(+) नेमराजिमती चौपाई, पुहिं., पद्य, श्वे., (पेली वाड० जीन सोवन वरण), १०६३५७(-#$) । नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु., ढा. ९, गा. ४०, पद्य, मप., (समुद्रविजय सुत चंदलो), १०१००५-३(#$) नेमराजिमती पद, मु. केसरीचंद, पुहिं., पद. ३, पद्य, मपू., (मैला मै उभी नैणा निरखे), १०५६८६-१४(+) नेमराजिमती पद, मु. केसरीचंद, पुहिं., पद. ४, पद्य, मूपू., (लगरयो मनडो आज सहिय मोरी), १०५६८६-१२(+) नेमराजिमती पद, मु. हुकम, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (गीरीनारी सोरठ कोइ समजावौ), १०१२०९-९(#) नेमराजिमती पद, पुहिं., पद. ३, पद्य, मपू., (खरी पुकारु नेमा तुही तुही), १०५६८६-४(+) नेमराजिमती बारमासा, मु. अमरविशाल, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूप., (यादव मुझनै सांभरै), १०५६८६-१७(+$) नेमराजिमती बारमासा, मु. कवियण, मा.गु., गा. १३, पद्य, मप., (सांवण मासे स्वाम), १०१८४७-३(+), १०५३६२-९(+) नेमराजिमती बारमासा, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (वेसाखे वन मोरिया), १०५३३८-१३(#) नेमराजिमती बारमासो, आ. दयासूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रावण मासे स्वाम), १०५३३८-१२(2) नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., गा.७०, पद्य, मूपू., (सारद पय पणमी करी), १०१७५९-१०+#), १०२०००-१(+) नेमराजिमती लावणी, मु. चतुरकुशल, पुहि., गा. १०, पद्य, मूपू., (नेमनाथ मेरी अर्ज), १०२६४४-१०(+-) नेमराजिमती विवाह पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (कहं दीठा नेमकुमारनी), १०६०५७-२१४(+) नेमराजिमती संवाद-बारमासा, पुहि., ढा. ४, गा. ४२, पद्य, दि., (पंचपरमपद कू नमुं जिनमुख), १०५९८९-७०(+-) नेमराजिमती सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २३, वि. १८५७, पद्य, श्वे., (समुद्रविजे सिवादेवी), १०२६४४-५(+-) नेमराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (नेम कांइ फिर चाल्या), १०१४८९-१०(#) नेमराजिमती सज्झाय, वा. मेघविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जल थल जलधर पूरवै सखी), १०२६४६-७(+) नेमराजिमती सज्झाय, आ. सोमविमलसरि, मा.ग., गा. ९, पद्य, मप., (कपूर होवे अति उजलो), १०५६३०-१३(+) नेमराजिमती सज्झाय-१० भव वर्णन, पुहि., गा. १५, पद्य, दि., (म्हे ध्यावाला हो प्रभु), १०५९८९-६४(+-) नेमराजिमती सवैया बारेमासा, विनोद, पुहिं., गा. २६, पद्य, मपू., (विनवे ऊग्रसेन की), १०४५०२-४ नेमराजिमती स्तवन, मु. शिवचंद, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (जउ थे चाले शिवपुरी), १०२५१७-९(+) नेमराजिमती स्नेहवेली, मु. उत्तमविजय, मा.गु., ढा. १५, वि. १८७६, पद्य, मूपू., (शंखेश्वर पासजी हरी), १०४०४४(+#) नेमराजीमति पद, मा.गु., गा. ५, पद्य, दि., (नेमजी प्यारे न जोग), १०५९८९-७१(+-) नेमिजिन आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (नेम मोह आरती तेरी हौ), १०६०५७-३१८(+) नेमिजिन आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ९, पद्य, दि., (मंगल आरती कीजे भोर विघन), १०६०५७-३९(+) नेमिजिन आरती, रा. मानसिंघजी, पुहि., गा.८, पद्य, दि., (किहि विधि आरती करो प्रभु), १०६०५७-३०(+) नेमिजिन चरित्र, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., ढा. ४५, वि. १८७४, पद्य, स्था., (नगरा सुरीपुर राजीयो), १०५११५(+) नेमिजिन चरित्र, मा.गु., गा. ३९, पद्य, मूपू., (नयर सोरीपुरी राजीयो रे), १०२९३२-१(+) नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (नेमजिन बावीसमों), १०१२१९-११(+#) नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. ज्ञान, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (समुद्रविजय कुलचंद), १०५४८९-८(-2) For Private and Personal Use Only Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नेमिजिन चैत्यवंदन, मु. धीरविमल, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (बावीशमा श्रीनेमिनाथ), १०५४८९-९(-2) नेमिजिन तपकल्याणक, मु. सुनंदलाल, मा.गु., ढा. ९, गा. ४२, वि. १७४४, पद्य, श्वे., (अरि गुरु गणधर देव), १०१५०१ नेमिजिन पद, मु. केसरीचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जाय कहौनी मुझ बाल), १०५६८६-१५(+) नेमिजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. २, पद्य, दि., (अब मोहि तार० चह गति), १०६०५७-३१७(+) नेमिजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (अब हम नेमजी की शरण), १०६०५७-७३(+) नेमिजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (गिरिनारि पै नेम विराजत है), १०६०५७-३०३(+) नेमिजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (चल देखे प्यारी नेम नवल), १०६०५७-८३(+) नेमिजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (जै जै नेमनाथ परमेसर उत्तम), १०६०५७-१५२(+) नेमिजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (देख्या मैंने नेमजी प्यारा), १०६०५७-१०५(+) नेमिजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (नेमजी तुम केवलज्ञानी ताही), १०६०५७-२६६(+) नेमिजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (नेम नवल देखे चल री लहै), १०६०५७-१२६(+) नेमिजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (मै नेमजी का वंदा साहिबजी), १०६०५७-९४(+) नेमिजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (सुनि मन नेमजी के वैनसु), १०६०५७-७९(+) नेमिजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (सुरनर सुखदाई गिरनारि चलौ), १०६०५७-२९९(+) नेमिजिन पद, मु. भूषण, रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (नेम निरंजन ध्यावो रे), १०५६८६-८(+) नेमिजिन पद, ग. मेघरत्न, मा.ग., गा. ३, पद्य, मप., (कं तुं ही आयो गरजी हो), १०२४६८-१०(#) नेमिजिन पद, श्राव. हेमराज, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (और कौं विसार यार नेम पेम), १०६०५७-१३४(+) नेमिजिन बहोत्तरी, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ७२, पद्य, दि., (वंदो नेमजिणंदचंद), १०६०५७-३९०(+) नेमिजिन बारमासा, मु. कवियण, मा.गु., गा. ४५, पद्य, मूपू., (प्रेम बिलूधी पदमणी), १०५३६२-१०(+) नेमिजिन बारमासा, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. १६, वि. १६८९, पद्य, मूपू., (सखी री सांभलि हे तूं), १०५४१९-१ नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मपू., (तुम तजीय कर राजुल), १०२६४४-१४(+-) नेमिजिन लावणी, मु. माणेक, मा.गु., ढा. ४, गा. १६, पद्य, मप., (श्रीनेमि निरंजन बाल), १०२६४४-२५(+-) नेमिजिन विनती, मा.गु., गा. ११, पद्य, मप., (हरिषमाइ नही हियडइ), १०३२३०-१८(+) नेमिजिन स्तवन, मु. गौतमसोम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय सुत नेम), १०५३३८-१०(#) नेमिजिन स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (तोरण आवी कंत पाछा), १०१२१९-६(+#) नेमिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ७, पद्य, मपू., (दोय घडीया बे वारी), १०५४०१-१६(+) नेमिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मप., (नेमिजिणेसर नायक माहर), १०५४०१-१५(+) नेमिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (श्रीयादवकुल नभचंदा), १०५४०१-२७(+) नेमिजिन स्तवन, मु. पद्मसागर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मप., (नेमिजिणवर बावीसमो), १०५०४६-८(+#) नेमिजिन स्तवन, वा. भावविजय, मा.गु., गा.१२, पद्य, मपू., (सरसति मात पसाउ लइ रे), १०१७५९-१३(+#$) नेमिजिन स्तवन, पं. मनरूपसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सौरीपुर नगर सुहामणो), १०५३३८-१४(#) नेमिजिन स्तवन, मु. माणिकसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (राजुलराणी हो नेमजी सुं), १०५११४-१९ नेमिजिन स्तवन, मु. मोहन, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (सजेलार जलधार सुखकार), १०५६३०-१४(+) नेमिजिन स्तवन, उपा. रत्ननिधान, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूप., (तुसां सुं पिरते बांधी आपु), १०५५६३-२(#) नेमिजिन स्तवन, मु. रुचिरविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मारा नेम पीयारा), १०५३३८-११(#) नेमिजिन स्तवन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नेमजी चालो तो तुमनै), १०५०४६-१३(+#) नेमिजिन स्तवन, मु. हरख, रा., गा.५, पद्य, मप., (काई हठ मांड्यौ), १०२६४६-८(+) नेमिजिन स्तवन-दशत्रिकगर्भित, मु. लालचंद, मा.गु., ढा. ४, वि. १८३३, पद्य, मूपू., (सद्गुरु चरण नमी करी), १०५११४-४ नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मपू., (श्रावण सुदि दिन), १०५२६७-३(+$), १०५२६९-१९(+), १०५२९६-६(+) For Private and Personal Use Only Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ नेमिजिन स्तुति, मु. संघविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीगिरनार शिखर), १०५२९६-५(+) नेमिजिन स्तुति, मा.गु. गा. ४, पद्य, मूपू. (सुर असुर वंदित पाव पंकज), १०२५०९-१५ (+०), १०६४९१८-३३(०) नेमिजिन स्तुति-गिरनारमंडन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( गिरनारसिहरि पर नेमि ), १०६४१८-२८(#) पंचकल्याणकअभिषेक स्तवन, मु. लक्ष्मी, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (जय केवल कमला केलि), १०६०१२-१($) पंचकल्याणक पूजा, जै.क. टेकचंद, पुहिं., प+ग., दि., (पणववि पंच परमगुरु), १०५९८९-७६ (+), १०४९२८, १०५९८६, १०६०४८(४) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंचकल्याणक पूजा- २४ जिन, जै. क. वृंदावन धर्मचंद अग्रवाल, पुहिं. पूजा. २४ वि. १८७५, पद्य, दि., (बंदी पांचौ परमगुरू), १०४८१६(+), १०४८७९, १०४७४४ (६), १०४९१८(३) १०६०६९/६), १०६१७२(३) " " पंचकल्याणक मंगल, मु. रूपचंद्र, मा.गु., ढा. ५, गा. २५, पद्य, श्वे. (पणमवि पंच परम गुरु), १०६४१४-४(+) पंचतीर्थंकर स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ३३, वि. १७००, पद्य, मूपू. (मात वामा भणइ आवो पूत रे), १०१७५९-१(+) पंचपरमेष्टि आरती, मु. राम ऋषि, पुहिं., गा. १५, पद्य, स्था., (असी आरती करो मन मेरा), १०१७३३-१(+) पंचपरमेष्ठि मंगल पूजा, मा.गु., वि. १८६२, प+ग. दि., (मंगलमय मंगल करन), १०४९३५ (+), १०५९७९(+), १०६०८१ पंचपरमेष्ठी नमस्कार स्तवन, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ६, पद्य, दि., (प्रात: समय श्री), १०४९२२-४६(+) पंचपरमेष्ठी पूजा, जैक द्यानतराय, पुहिं गा २१, पद्य, दि., (तीर्थंकरों के हौं न जलध ते), १०६०५७-५८(का पंचमंगल गीत प्रबंध, य. रूपचंद कवि, पुहिं., गा. २५, पद्य, दि. (पणमिवि पंच परमगुरु), १०५९८९-१(+३) पंचम आरा सज्झाय, मु. जिनहंस, मा.गु., गा. २१, पद्य, म्पू, (वीर कहै गौतम सुणो), १०५०५५-३(*) पंचमआरा सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वीर कहै गोयम सूणो), १०६३४४-४(+) पंचमवाड सज्झाय, मु. केशरकुशल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू. (गोतम पुछे श्रीवीरने) १०२५१७-१४(+) पंचमहाव्रत कथा, मा.गु., स. ५, गद्य, म्पू, (जंबुद्वीपे महाविदेह), १०५०३८ (+३) पंचमीतप पारने की विधि, मा.गु., गद्य, मूपु. ( तपकरी उजमणो कीजे), १०६३२१-१३ पंचमीतिथि स्तुति, मु. जीवविजय; मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १७८४ -१८००, पद्य, मूपू., (पंचमी दिन जनम्या नेम), १०१६७१-१(+) पंचमीतिथि स्तुति, मु. ज्ञानसुंदर, मा.गु. गा. ४, पद्य, मूपू. (पंचरूप धरियने त्रिदश), १०५२६९-१३ (+) ! पंचमीतिथि स्तुति, मा.गु गा. ४, पद्य, मूपु (सुविधिनाथ जिन जनम), १०६३२१-६ पंचमीतिथी स्तुति, मु, दयाकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंचमी गति आपे तप), १०५२९६-७(+) पंचमेरु पूजा, जे. क. द्यानतराय, पुहिं., दोहा. २३, प+ग. दि., (तीर्थंकरों के न्हवान), १०५९८९-२७(+) " पंचमेरु पूजा, पुर्हि, प+ग. दि. मेस्सुदर्शन प्रथम महागिरए), १०६१५०-२ " पंचमेरुसमुच्च्य पूजा, पुहिं., प+ग., दि., (मेरुसुदर्शनसार विजयअचल), १०६१५०-१ पंचांगगणित विधि, उपा. महिमोदय, मा.गु., गा. १६४, वि. १७३३, पद्य, मूपू., इतर, (परम जोति प्रभुकुं), १०५२१६ (+$) पंचांगविधि दोहा, मु. मेघराज, मा.गु., गा. ५८, वि. १७२३, पद्य, मूपू., इतर, (गवरीनंद आनंद करि), १०५०८२-१ (+), १०५३६०(+) पंचाख्यान, मा.गु., गद्य, श्वे., (इण जंबुद्वीप में भरतखंड), १०५४६३($) पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, म्पू., (श्रीवर्द्धमान), १०९११५४(०), १०२९१२(०३) पद्मप्रभजिन पद, ग. मेघरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (संसारडु भमंतडा रे भई मितु), १०२४६८-१२(#) पद्मप्रभजिन स्तवन- नाडोलमंडन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू (श्रीपद्मप्रभु जिनराय), १०२०३५-११(०), १०२६१७-४(+) पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे. (धन धन संप्रति साचो), १०१७५९-४(+#), १०२६२४-१०+१) पद्मप्रभुजिन स्तवन, मु. मतिहंस, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पद्म प्रभु जिन साहिब मोरा), १०२६२४-९(+#) For Private and Personal Use Only ५७३ Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५७४ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पद्मावती आराधना उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., डा. ३, गा. ३६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (हवे राणी पद्मावती), १०५४४३-३(०), 3 १०३७१३ परमशतक दोहा सोरठा बंध, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., क. ड. १००, वि. १७३२, पद्य, दि., (पंच परमपद प्रणमि), १०४९२२-६(+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमात्मछत्तीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ३६, वि. १७५०, पद्य, दि., (परमदेव परमातमा परम ज्योति), १०४९२२-७९(+) परमात्मा जयमालिका, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं. गा. ७, पद्य वि., (परमदेव परणांम करि परम), १०४९२२-१२(+) " , ज्यौं प्रभु पाईइ), १०२३७३-१ परमार्थ अष्टपदी, पुहिं, गा. ८, पद्य, दि., (ऐसे पर्युषणपर्व सज्झाय, मु. मतिहंस, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (पर्व पजुषण आबीया रे ), १०१६३०(१) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू. (परव पजुसण पुण्ये), १०१६७१-१०+), १०५२६९-१४(०) पर्युषण पर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वली वली हुं ध्यावु), १०२७५३-१२०१, १०६४१८-३५(१) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर अतिअलवेसर प्रात), १०१६७१-९(+) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सत्तर भेदे जिन पूजा), १०५०४६-७ (+#), १०५२९६-१० (+) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., ( पर्व पजुसण पुण्यें), १०१६७१-११(+) पर्युषण पर्व स्तुति, मा.गु, गा. ४, पद्य, भूपू (परव पजूसण पुण्ये पाम), १०५२६७-८ (+३) יי पयविधान कथा, मा.गु., गा. २१९, पद्य, दि., (श्रीजिनराज चरण उर ल्याइ ), १०४७९२-२२ पल्योपम-सागरोपम भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पल्योपमना त्रण भेद), १०१४२७ " पल्लपच्चीसी, जै.क. द्यानतराव, पुहिं. गा. २५, पद्य, दि. (कलप अनंतानंतलौ रूलै जीव), १०६०५७-३९६ (*) पांडवचरित्र रास, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु खं. ६ डाल१५० ग्रं. ३७९७, वि. १७६७, पद्य, म्पू. (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), १०१८४१ (+४) पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., खं. ९ ढाल १५१, ग्रं. ५७५०, वि. १६७६, पद्य, मूपू., (श्रीजिन आदिजिनेश्वरू), १०१६६७(+$), १०२०३३(+#$), १०२१०४(+#S), १०२०३४(#S), १०२९९८($) पाखीछत्रीशी आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु. गा. ३६, पद्य, मूपू (प्रणमीय पहिलुं वीर जिणंद), १०२०२२-६(+) पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री रास, मु. लालचंद, मा.गु., ढा. ३९, गा. ५३५, वि. १७४२, पद्य, मूपू., (प्रथम जिणेसर परगडो), १०१८७८ (5) पापबुद्धिराजाधर्मबुद्धिमंत्री रास, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), १०१२१३(+$) पार्श्वचंद्रसूरि गुरु आरती, मु. लाभ, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जै जै आरति सद्गुरुजी की), १०१७६०-११(+) (जयकारी मेरे सद्गुरुजी०), २०१७६०-८(+) सद्गुरुना गुण गाइ० सावर), १०१७६०-९(+) " पार्धचंद्रसूरि गुरुगुण भास, मु. प्रेमचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू पार्श्व चंद्रसूरि गुरुगुण भास, मु. प्रेमचंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू. पार्धचंद्रसूरि गुरुगुण भास, मु. रामदास ऋषि, मा.गु., गा. ६, पद्य, खे, (सिवसुखदायक बीनवुं प्रणमी), १०१७६०-७(१) पार्श्वचंद्रसूरि गुरुगुण भास, मु. लाभ, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सद्गुरु साहिब वंदियेंजी), १०१७६०-६(+) पार्धचंद्रसूरि गुरुगुण स्तुति, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रह उठी सद्गुरु चरण नमड), १०१७६०-१२+७) पार्धचंद्रसूरि भास, मु. किसन, रा., गा. ६, पद्य, श्वे. (श्रीपासचंदसूरी राया धारा), २०१७६०-२(+) , "" पार्श्व चंद्रसूरि भास, मु. ठाकुर ऋषि, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू, (प्रह ऊठी प्रणमुं सदा हो), १०१७६०-४०) पार्धचंद्रसूरि भास, आ. पद्मचंदसूरि, मा.गु. गा. ९. वि. १७७५, पद्य, मूपू. श्रीसूरीसर सुरतरु श्रीपास), १०१७६० १) ', पार्श्वचंद्रसूरि भास, आ. लब्धिचंदसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीपासचंदसूरी सकुं), १०१७६०-३(+) पार्श्वजिन आरती, मु. जिनहर्ष, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., ( आरती करुं श्रीपार्श्वनाथ), १०२६४४-३२(+) पार्श्वजिन गजल-वरकाणामंडन, आ. जिनेंद्रविजयसूरि, मा.गु. गा. ६३, वि. १८४९, पद्य, मूपू.. सारद मात मयाकरी दीजै वचन), १०५२८६-१(२०) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, मु. अमृत, गु., मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जय चिंतामणी पार्श्व), १०५४८९-१३(#) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, मु. कल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू. (पुरसादाणी पासनाह नमीयें), १०५४८९-९११(क For Private and Personal Use Only Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ पार्श्वजिन चैत्यवंदन, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पुरिसादाणी पासजिण तेवीसमो), १०१२१९-१२(+#) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-अजाहरा, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (जय जय जिनवर पास आस), १०५४८९-२५(-2) पार्श्वजिन छंद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. १०, पद्य, म्पू., (नरेंद्रं फणींद्र), १०६०५७-३७(+) पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ५५, वि. १५८५, पद्य, मप., (सरस वचन दियो सरसति), १०६१६२-१६ पार्श्वजिन छंद-अहिच्छत्रा, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. ७, वि. १७३१, पद्य, दि., (अश्वसेन अंगज निलौं वामा), १०४९२२-१५(+) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (धवल धींग गोडी धणी सेवक जन), १०६१६२-१४ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. धरमसी, मा.गु., गा. २९, पद्य, मपू., (सरस वचन दे सरसती एह), १०५०७५-१(#) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (सुवचन आपो शारदा मया), १०५११८(+#) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (सेवो पास शंखेश्वरो), १०५०७७-४(+), १०५८३७-२, १०६१६२-१८ (२) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनसुद्ध करकै श्रीसंखेश्वर), १०५०७७-४(+) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, मु. शील, मा.गु., गा. ६४, पद्य, मपू., (प्रणव पणव प्रहु पय), १०२३५५-१३(+#) पार्श्वजिनपंचकल्याणक पूजा विधिसहित, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ८, वि. १८८९, पद्य, मूपू., (संखेश्वर साहेब सुर), १०४१७२(+$) पार्श्वजिन पद, आ. जिनभक्तिसूरि, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (माई रंगभर खेलेगे), १०५६८६-२२(+$) पार्श्वजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. २, पद्य, दि., (कामसर सव मेरे देखे), १०६०५७-४१४(+) पार्श्वजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (भज रे मनवा प्रभु पारस कौं), १०६०५७-३६२(+) पार्श्वजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (मोह तार लै पारसस्वामी), १०६०५७-३१९(+) पार्श्वजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (लगन मोरी पारसनाथ सौं लागी), १०६०५७-३६४(+) पार्श्वजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (हमको प्रभु श्रीपास सहाय), १०६०५७-१०३(+) पार्श्वजिन पद, मु. भागचंद, मा.गु., पद्य, श्वे., (प्राचीदिशा पीरी भई विरिया), १०१४८९-३(#) पार्श्वजिन पद, ग. मेघरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अमीहां रे अमीहां रे वामा), १०२४६८-५(2) पार्श्वजिन पद, ग. मेघरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (श्रीजिनपास तुं मोरे मन), १०२४६८-८(#) पार्श्वजिन पद, मु. विबुद्ध कुशल, मा.गु., गा. ३, पद्य, मपू., (तेवीशमा जिनराज जोमै), १०२३७३-६ पार्श्वजिन पद, मु. विमलचारित्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दीठा पास जिणेसर आज), १०५२४०-८(+) पार्श्वजिन पद, मु. वृद्धिकुशल, रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (तेवीसमा जिनराज जोडी), १०५६८६-५(+) पार्श्वजिन पद, पुहिं., पद. २, पद्य, मूपू., (बबा सचा सांई हो डंका), १०२३७३-७ पार्श्वजिन पद-अवंतीमंडन, पुहिं., गा. ५, पद्य, मप., (पंथीडा पंथ चलेगो), १०५०४६-१(+#) पार्श्वजिन पद-काशीमंडन, श्राव. मोतीराम, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (धन धन काशी थानक पारसनाथ), १०६०५७-३२७(+) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गोडीचो प्रभु गाजै कलियुगि), १०२७९३-४(+#) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, ग. मेघरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूप., (जाग तो जगमि श्रीगुडीपास), १०२४६८-१५(#) पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, वा. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (श्रीचिंतामणि पासजी), १०१२८८-१(#) पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (भोर भयो भजि श्रीजिनराज), १०६०५७-१४१(+) पार्श्वजिन पद-चिंतामणि, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (चिंतामणिसामी साचा),१०१९५७-१०(+) पार्श्वजिन पद-वाराणसी, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (चल पूजा कीजै बनारस मैं), १०६०५७-३२८(+) पार्श्वजिन पद-समिनगरमंडण, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (जय पासजिनवर सयल सुखकर), १०१६७१-१२(+-) पार्श्वजिन पूजा, क. रामचंद, पुहिं., प+ग., दि., (पारस मेर समान ध्यान में), १०५९८९-७७(+-) । पार्श्वजिन प्रभाति, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा.७, पद्य, मपू., (सारद वदन अमृतनी वाणी), १०२६२४-१३(+#), १०५७३६-२(+) पार्श्वजिन प्रभाति, मा.गु., पद्य, मूपू., (चालो ने चेतन० जिनमंदीर), १०१२०९-७(#) For Private and Personal Use Only Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५७६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिनमंत्र सवैया, मु गुणचंद, मा.गु., पद. १, पच, मूपू (श्रीपार्श्वजिननो), १०५२४०-९(+) पार्श्वजिन लावणी-मगसीमंडन, मु. जिनदास, पुहिं, गा. ४, पद्य, म्पू., (मुगतगड जीत लिया वंका), १०२६४४-२३(+) पार्श्वजिनवृद्ध स्तवनगौडीजी, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु. डा. ५, गा. ५८. वि. १८७३, पद्य, मूपू. (श्रीसरसति समरी करी प्रणमी). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०५११४-१५ " पार्श्वजिन सलोको, जोरावरमल पंचोली, रा. गा. ५६, वि. १८५१, पद्य, थे. वै. (प्रणमं परमातम अविचल ), १०२९०३(+) पार्श्वजिन सवैया, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. १, वि. १७वी, पद्य, दि., (जिनके वचन उर धारत जुगल), १०२६०७-२(+) (२) पार्श्वजिन सवैया टबार्थ, पुहिं., गद्य, दि., (ऐसे जिनि के वचन हीय मै), १०२६०७-२(+) पार्श्वजिन स्तवन, वा. उदवस्तन, मा.गु गा. ६, पद्य, मूपु (प्रभुजी पंचम मंगल बार), १०५७३६-४(+) " " ', (पारसना पसायची रे) १०५७३६-५(१) पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनमहेंद्रसूरि रा. गा. ५, पद्य, म्पू., (हो जयकारि रे जिनजी), १०५६८६-२(+) पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (अंखीयां हरखण लागी), १०२७९३-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू. (अमारुं मन लाग्धुं प) १०५४०१-२८(०) पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु गा. ५, पद्य, मूपू (प्रभु के आगे गुमान), १०५४०१-२३(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, म्पू, (सरसति सामिनि पय नमी), १०१९२०-८(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. प्रधानसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू. पार्श्वजिन स्तवन, मु, प्रधानसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू. (प्रभु मारा पारकरदेश), १०५७३६-६ (+) पार्श्वजिन स्तवन, आ. विजयधर्मसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (क्युं न करे रे), १०५०४६-३(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीपास मूरति मनोहारी), १०१७५९-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (अश्वसेन कुल चंद्रमा), १०२६२४-११ (+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. हिम्मत, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (दरसण मांहरा जिनजी को), १०५३६२-३(+) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (बहु मुगति कहे सुणो), १०१७५९-१२(+#) पार्श्वजिन स्तवन- १० भव गर्भित, मु. गजसार, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मपू. (पणमिय पास जिणसर पाय रचसिउ), १०१६४६-२(+) . पार्श्वजिन स्तवन- १४ गुणठाणागर्भित, ग. लक्ष्मीवल्लभ, मा.गु., ढा. ५, गा. ४३, पद्य, मूपू (नमिय सिरिपासजिणराय), १०१५०२-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन- २४ दंडकविचारगर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., डा. ४, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, मृपू. (पूर मनोरथ पासजिणेसर), १०१६८८-१२२००१ पार्श्वजिन स्तवन- २४ दंडकविचारगर्भित, आ. पार्थचंद्रसूरि, मा.गु गा. २४, पद्य, मूपू (प्रणमं पारसनाथ प्रह), १०२०२२-१०+) पार्श्वजिन स्तवन-अंतरीक्षजी, ग. रंगकलश वाचक, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (अंतरीक पासजी महिर), १०५११४-३७ पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., ढा. ५, गा. ५५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (वाणी ब्रह्मवादिनी), १०९२०८-२(१), १०१५८७ (+5) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. आगम, मा.गु., गा. ९, वि. १८६३, पद्य, मूपू., (साहिबा तुं थलवटनो रे), १०२०३५-७(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वंदिये रे वारि वंदिय), १०५७३६-१५(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. गंगाराम, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रभुजी लागी छै तुम्हसुं), १०१८४७-१९(+) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. देवचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (संपति सकल सदा सुखदाई), १०१९५७-१२(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., ढा. १५, गा. १३७, वि. १८१७, पद्य, मूपू., (प्रणमुं नित परमेश्वर), १०५०७६(+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., ढा. १४, वि. १८१७, पद्य, मूपू., (भावधरी भजना करु आपे अविचल), १०५४९८ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १०, वि. १८५२, पद्य, मूपू., (भावे वंदो रे श्रीगोड), १०५७३६-८ (+) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ५, पद्य, वि., (गीडी प्रभु पारस पूजियी), १०४९२२-२५) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (मुजरो थें मानो हो), १०२६२४-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी म. मोहनविजय, फा., गा. ५, पद्य, म्पू., (श्रीगोरी पास गरिब) १०६१६२-२६ " पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, ग. स्वपति गणि, रा. गा. ५, पद्य, मूपू. (थारो थलवरदेस सुहावे), २०१५०२-१(+) "" For Private and Personal Use Only Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ ५७७ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (कृपा करो गोडी पास), १०५२४०-१२(+) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. साधुहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू., (वामानंदन वांदता आपो), १०२६२४-१२(+#) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजीपुरमंडन, मु. नैणसी, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (गौडीपुरवरमंडण गांऊं पास), १०५११४-१८ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजीमंडन, मु. भागचंद, पुहिं., पद्य, मूप., (चोरासीलख जीवजोनि मे कुटिल), १०१४८९-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. कनकमूर्ति, मा.गु., गा. ७, पद्य, पू., (एक अरज अवधारीयै रे), १०५६८६-२१(+$) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. राजसमुद्र, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (नीलकमल दल सामली रे), १०५०५५-१२(+) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (आणी मनसुध आसता देव), १०१९५७-११(+), १०२४६८-७(#) पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीपास चिंतामणि जेम), १०१९५७-९(+) पार्श्वजिन स्तवन-दक्षण करहेटक, मु.खेमकलश, मा.गु., गा. १३, पद्य, म्पू., (महिमंडल श्रुणि श्रवण), १०२६१७-५(+) पार्श्वजिन स्तवन-दशपुरमंडण, मु. उदयसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (दशपुरमंडण सोहै नवफण), १०६३२१-९ पार्श्वजिन स्तवन-नवलखा, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जगनायक जगदीसरू रे जिनजी), १०५०४६-५(+#) पार्श्वजिन स्तवन-नारंगामंडन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मप., (आंगी अजब बनी छे आजे), १०२७९३-१०(+#) पार्श्वजिन स्तवन-नारिंगपुर मंडन, पं. शुभवर्द्धन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नमुं पासजिण हरषसिउं नील), १०१६४६-८(+) पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पास पंचासरा प्रगट), १०५४०१-३१(+$) पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (श्रीपंचासर पासजिनेसर), १०५४०१-३४(+) पार्श्वजिन स्तवन-पंचासरा, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (परमातम परमेश्वरु), १०५७३६-९(+) पार्श्वजिन स्तवन-पल्लविया, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूप., (परम पुरुष परमेसरु), १०१२१९-२(+#$) पार्श्वजिन स्तवन-पुरिसादानी, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुखकारी हो साहिब), १०२६२४-६(+#) पार्श्वजिन स्तवन-पुरूषादानीय, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (परम पुरुष परमातमा), १०१२१९-७(+#) पार्श्वजिन स्तवन-पोशीना, मु. कल्याणविजय शिष्य, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सरसति समरी कविजन),१०६१६२-२५ पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, आ. ज्ञानविमलसरि, मा.ग., गा. ७, पद्य, मपू., (आज सखी मनमोहनो मोरो), १०५४०१-३०(+$) पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (भले भावे भाभो भेटीइं), १०५४०१-२९(+) पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (स्या माटे साहिब सामु), १०५०५५-६(+) पार्श्वजिन स्तवन-भीनमाल, मु. पुण्यकमल, मा.गु., गा. ५३, वि. १६६१, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति नमीय पाय), १०२४०५-३(+), १०१०११(#$) पार्श्वजिन स्तवन-लाडिक, मु. गजसार शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (सकल पास जिणसर ध्याई), १०१६४६-७(+) पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वरकाणापुर राजीया), १०१८२५-१(+#$) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, वा. उदयरतन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (आप अरुपी होय नय प्रभ),१०११६४-१(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ११, पद्य, मप., (लगी लगी आंखीआने रही), १०५८८६-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (श्रीशंखेश्वर पासजिन), १०१८४७-६(+), १०२६१७-६(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (एहीज उत्तम काम बीजु), १०५४०१-१४(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (रहिने रहिने रहिने), १०५३६२-११(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूप., (सामी सुणो मुज वीनती), १०६१३३-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-शामला, मु. ज्ञानविमल, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूप., (मेरे साहिब पासजी), १०२७९३-१(+#$) पार्श्वजिन स्तवन-सिद्धांतहंडीगर्भित, मु. चंद्रविजय, मा.गु., गा. ४४, पद्य, मपू., (परम कृपालु कृपानीलो), १०१७५९-९(+#) पार्श्वजिन स्तवन-स्थंभनतीर्थ, उपा. कुशललाभ, मा.गु., ढा. ५, गा. १८, पद्य, मूपू., (प्रभु प्रणमुरे पास), १०५११४-१६ पार्श्वजिन स्तुति, वा. उदयरतन, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (तेरे अंखिय नमें सब जुग), १०२०३५-६(+) पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अश्वसेन नरेसर वामा), १०६४१८-२०(#) पार्श्वजिन स्तुति, मु. लब्धि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (शंखेसर पास जिनेसरं), १०५२९६-१२(+) For Private and Personal Use Only Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वर, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (प्रणमो भविका भाव), १०५२६९-२०(+) पार्श्वजिन स्तुति-शामला, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मेरु महीधर सुंदर), १०५२६९-१२(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-वाडी मंडन, पं. शुभवर्द्धन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (अससेण महीपति अंग जाय तिहु), १०१६४६-६(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (सारकर सारकर स्वामी), १०५३६२-२(+) पार्श्वपराण, जै.क. भूधरदास, पुहिं., अ. ९, वि. १७८९, पद्य, दि., (मोह महातम दलन दिन तप लछमी), १०४२१२, १०४४१३(६), १०४४७२(७), १०४८२३(s), १०६०५३() पावापुरीतीर्थ पूजा, पुहिं., गा. १०, प+ग., दि., (महावीरजिनराज महासुखदाय है), १०५९८९-३६(+-) पुण्यपच्चीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. २६, वि. १७३३, पद्य, दि., (प्रथम० अरिहंत बहुरि), १०४९२२-१(+) पुण्यपापजगमलपच्चीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. २७, पद्य, दि., (परमातम परत० सिद्ध सकल), १०४९२२-७०(+) पुण्यपालराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, पू., (--), १०१९३७(+#$) । पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ८, गा. १०२, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धिदायक सदा), १०२२५७(+), १०६३६०(+), १०१८९५(#$) पुण्यसार चरित्र चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. १५, वि. १६७३, पद्य, मूपू., (समरूं श्रीसरसत्ति), १०५५४०(#) पुण्यसेन चोढालीयो-परिसह विषये, मु. हीराचंद ऋषि, मा.ग., ढा. ४, गा.८६, वि. १८९८, पद्य, श्वे., (चरण कमल पारस प्रभु सुर नर), १०५०३३-३(+) पुद्गलपरावर्त विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (द्रव्य क्षेत्र काल), १०१९००-२(+) पूर्णपंचाशिका, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., सवै.५५, वि. १८वी, पद्य, दि., (नाथ निके नाथ ओ अनाथ निके), १०६०५७-४४३(+) पोषदशमीतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (इहलोक परलोके पूरे), १०५२९६-८(+) पौषध १८ दोष, मा.गु., गद्य, म्पू., (पोसहमां व्रत विनाना), १०५८०५-२५(+#) पौषधविधि स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ५, गा. ३८, वि. १६६७, पद्य, मूपू., (जेसलमेर नगर भलो जिहा), १०५११४-९ पौषधसामाइक सज्झाय, पं. सुमतिकमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (वीर जिणवर रे पासे पूछे), १०५६५५-९ प्रतिमासंबंधी बोल विचार, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रावकनां बारव्रत छै), १०१६८८-१५(+#) प्रत्याख्यानविचार सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. २, गा. १७, वि. १७उ, पद्य, मप., (धुरि समरु सामिणी), १०२५५८-२(+), १०५६५५-८ प्रत्येकबध चतुष्पदी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ९, पद्य, मप., (--), १०१२९२(६) प्रदेशीराजा चौपाई, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., ढा. १७, वि. १८७७, पद्य, श्वे., (रायप्रसेणी सुत्रमे), १०५६४७(+) प्रदेशीराजा रास, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. २६१, ग्रं. ३००, पद्य, मूपू., (त्रिभोवन नयणानंदकर), १०२१८३(+) प्रदेशीराजा सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ५२, पद्य, मपू., (प्रणमुं श्रीजिणपास), १०२०२२-१२(+$) प्रबोधचिंतामणि ढाल, मु. धर्ममंदिर, मा.गु., खं. ६ ढाल ७६, गा. १७१२, वि. १७४१, पद्य, मूप., (चिदानंद चित चाहतूं), १०३५६४(+S) प्रभु स्तुति, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (प्रभु दर्शन सुख संपद), १०१५९१-४(#$) प्रमाद परिहार गीत-आठमद, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (आठ मद वाह्यो रे केहनि), १०१७५८-६ प्रश्न पत्रिका, य. गोपीचंदजी, मा.गु., गा. ५३, वि. १९३३, पद्य, मप., ते., (चरण कमल जिनराज का जामे), प्रतहीन. (२) प्रश्न पत्रिका-आधारित प्रश्नोत्तर तत्त्वबोध, आ. जयाचार्य, मा.गु., अधि. २७, गा. १७०२, वि. १९३३, पद्य, मूपू., ते., (नमूं देव अरिहंत नित), १०१६२६(#S) प्रश्नोत्तर दोहा-विविध चक्र बंध, श्राव. भगवतीदास भैया, पहि., दोहा. ५, पद्य, दि., (कौन ज्ञान विन आवरन), १०४९२२-९(+) प्रश्नोत्तर संग्रह-आगमिक, मा.गु., प्रश्न. ३२, गद्य, मूपू., (नवकार मांहि पहिला पद),१०१६८८-१४(+#) प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रणमुं तुमारा पाय), १०५६५५-३ प्रहेलिका हरियाली, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूप., (एक नारी बहुं पुरुष), १०५७२७-११(+) प्रहेलीका दोहा, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (तनतुरंग असवार मन नयन), १०१५६५-५(+#) For Private and Personal Use Only Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ प्रास्ताविक कवित्त-यौवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (आई जरा अथ्याह सेठ), १०२८७८-५(+) प्रास्ताविक कवित्त संग्रह, पुहिं., गा. २५, पद्य, इतर (प्रीतिकाज छंडिजै), १०२८७८-४(+) प्रास्ताविक दोहा संग्रह*, पुहिं., मा.गु., रा., गा. २५, पद्य, वै., इतर, (बुरी प्रीत भमर की कली कली), १०१४३५-४(+) प्रास्ताविक पद, जै.क. द्यानतराव, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (जिन के हिरवे प्रभु नाम), १०६०५७-२११(+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रास्ताविक सवैया संग्रह, पुहिं., मा.गु., गा. ३, पद्य, जै.? (एक ही मातपिता तसु), १०२६३३(+#5) 1 प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ११, गा. २२०, वि. १६७२, पद्य, मूपू., (प्रणमुं सद्गुरु पाय), भय परिहार गीत, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे. (सिद्धांत सुणेवा काजो), १०१७५८-८ " १०१७९६ (+), १०१९१०) प्रीतिछत्रीशी सज्झाय, वा. सहजकीर्ति, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मृपू., (प्रीति न किणही जीती), १०१८००-७(+) बलभद्रमुनि सज्झाय, उपा. राजरत्न पाठक, मा.गु.. गा. ७, पद्य, मूपू., (संवेगी बलदेव साधु), १०१९२०-१८(+) वासठीयो बृहत् मा.गु, गद्य, भूपू (जीव १ गइ २ इंदीय ३ क) १०१४१६ (*) , बाहुबली सज्झाच, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू. (बाहूबली वन काउसा), १०५६५५-७ '" वीजतिथि चैत्यवंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७. वि. १९वी पद्य, मूपू. (दुविध धर्म जिणे), १०५४८९-१९(-) बीजतिथि सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (बीज तणे दिन दाखवुं), १०५७२७-८(+) बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दिन सकल मनोहर बीज), १०१६७१-४ (+), १०६३२१-५ बुढापा रास, मु. चंद, रा. डा. २२, वि. १८३६, पद्य, म्पू., (दया ज माता वीनवु), १०१२०२-१(+), १०१८९५०) बुढापा रास, मा.गु., पद्य, श्वे. (सारद माता वीन गणधर ), १०५३७८+६) बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., गा. ६२, पद्य, मूपू., (प्रणमुं देवी अंबाई), १०१६२७-३(#) बोल संग्रह - जीवादि भेद, मा.गु., गद्य, स्था., (एगेंदीएस पंचसु बार), १०६४०२ (४) " ब्रह्मचर्यद्विपंचाशिका, मु. समरसिंघ, मा.गु., गा. ५३, पद्य, म्पू., (गोयम गणहर पाय प्रणमी), १०९८५० ब्रह्मविलास, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., वि. १७५५, पद्य, दि. (प्रथम प्रणमि अरहंत), १०४९२२-१०२(५) (२) ब्रह्मविलास-संबंध बीजक, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., को., दि., (--), १०४९२२-१०१(+) ब्रह्मविलासगत कृतिनाम सवैया, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ७, पद्य, दि., (पुन्यपचीसी शतअष्टोत्तर) १०४९२२-९९(*) भक्तिदशक, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., सवै ११, पद्य, दि., ( रिषभ अजित संभव अभिनंदन), १०६०५७-१३(+) . भगवतीदास कवि परिचय सवैया, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं. गा. १८, पद्य, दि., (जंबूदीप में दछन भ), १०४९२२-१००(+) " ५७९ For Private and Personal Use Only १०२४४० - ४(#) " " (आरसी देखत मन आरसी लागी), १०६०५७-३६७(+) (एक समै भरतेश्वर स्वामी), १०६०५७-४२१(+) (कहारी कहूं कछु कहत न आवै, १०६०५७-३६८(*) भरतक्षेत्रादि परिमाण विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (भरतक्षेत्र ५२६ योजन), भरतचक्रवर्ति पद, जै.क. चानतराय, पुर्हि, गा. ३. वि. १८वी, पद्य, दि. भरतचक्रवर्ति पद, जै. क. द्यानतराय, पुहि., गा. ३. वि. १८वी, पद्य, दि. भरतचक्रवर्ति पद, जै.क. चानतराय, पुहि. गा. ३. वि. १८वी, पद्य, दि.. भरतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपु., ( बाहुबल चारित लीयो), १०२५१७-१७(+) भावमहिमाकथन सवैया, ग. जिनहर्ष, पुहिं., गा. १, पद्य, मूपू., (प्रशनचंद मुनीश संयम ग्रही), १०१८६५-८(+#) भाविनीकर्मरेखा चौपाई, मु. रामदास ऋषि, मा.गु., ढा. ३५, गा. ८६७, पद्य, श्वे. (श्रीश्रेयांस इग्यारम), १०२७९२ (६) भाषानाममाला, शिरोमणि, पुहिं., गा. २६२, ग्रं. ३६५, पद्य, वै., इतर, (आदिपुरुष कहियै जगत), १०५९४३-१(+#$) भृगुपुरोहित चौढालिया, ऋ. जेमल, रा. डा. ४, पद्य, श्वे. (तीण अवसर मुनीराव), १०५०७३(+) भृगुपुरोहित सज्झाय-रात्रिभोजन परिहार, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (देव तणी ऋद्ध भोगवि), १०५३३८-४(#) भोजनछत्रीसी-महावीरजिनस्तुतिगर्भित, आ. दयासागरसूरि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (त्रिशला राणी कहै), १०५५६२ मंगल आरती, जे. क. द्यानतराय, पुहिं. गा. ८, पद्य, दि., (तन मंदिर मन उत्तम ठाम), १०६०५७-३६ (+) मंगलकलश चौपाई, मु. जिनहर्ष, मा.गु., डा. २१, वि. १७१४, पद्य, म्पू, ( पास जिनेसर पर कमल), १०२०२८(+) मंगलकलश फाग, वा. कनकसोम, मा.गु. गा. १४२, वि. १६४९, पद्य, भूपू (सासणदेवीय सामिणी ए) १०२६१४(+) " " मत्स्योदर रास, मु. जयराज, मा.गु., गा. १६१, वि. १५५३, पद्य, मूपू., (देव अरिहंत देव), १०५०२८ (#$) Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५८० www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मत्स्योदर रास, पंडित. ललितसागर, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीजिन चोवीसमाइ नमी), १०५०२९(#) मत्स्योदर रास-पुण्यप्रभावे, मु. रूचिरविमल, मा.गु, डा. ३३, वि. १७३६, पद्य, म्पू, (शांतिकरण जिनशांतजी सुखदाय), १०५३३२ (+#), १०२२९८(#) मदनकुमार कथा, मु. दाम, मा.गु., गा. ८९, पद्य, मूपू. ?, (विश्वानंदी पयनमी), १०२४०६ मदनरेखासती चौपई, मु, समयसुंदर, मा.गु., पद्य, मूषू., (--), १०६२१७(५३) मदनरेखासती रास, मु. हीर ऋषि, मा.गु., गा. १५७, वि. १८१४, पद्य, मूपू., (जोवो मांस दारु थकी), १०११०६ (+) मदनरेखासती रास, मा.गु., गा. १८८, पद्य, मूपू., (जूआ मांस दारु तणी), १०२९३४(+), १०५३१२(+) मधुबिंदु दृष्टांत चौपाई, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं, गा. ६१. वि. १७४०, पद्य, दि., (बंदी जिनवर जगत गुरु वंदी), " १०४९२२-४९(+) मधुबिंदु सज्झाय, मु. चरणप्रमोद - शिष्य, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सरसति मुझने रे मात), १०२५१७-१० (+) मनबत्तीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. २७, पद्य, दि., (दर्शन ज्ञान चारित्र), १०४९२२-८७(+) मनोरथ भावना, मु. हुकमचंद, मा.गु., वि. १९०५, प+ग, श्वे. (समरी सरसति भगवति), १०५८१६ (#) ममताधिकार गीत, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (रंग खेलत ममताराधिका हो), १०२०००- २ (+) मलयसुंदरी रास, मु. कांतिविजय, मा.गु., खं. ४ डाल ९१, गा. १०५२, वि. १७७५, पद्य, मूपू. (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), १०५७९६ (१) मल्लिजिन पद, श्राव. सुखानंद साह, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (तार ले मल्यमुनीस अब मोहि), १०६०५७-३३५ (+) मल्लिजिन स्तवन, मु. कुशललाभ, मा.गु., ढा. ५, गा. ४१, वि. १७५६, पद्य, मूपू., (नवपद समरी मन शुद्धे), १०५११४-३३ महादंडक ३० द्वार, मा.गु., गद्य, मूपू., (दंडक १ लेस्या २ ठिती), १०१५०० (#$) महावीरजिन १० स्वप्न बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (झोटिगजि तो ते सपना मे), १०५८०५-७० (+#) महावीरजिन आरती, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (पावापुर निरवान की राग), १०६०५७-३४ (+) महावीरजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, मूपू (श्रीमहावीरनो माहाणकुंड), १०२८३७ (+) महावीरजिन चैत्यवंदन, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वीरजिणंद चोविसमो भविजन भा), १०१२१९-१३(+#) महावीर जिन चैत्यवंदन, मा.गु., गा. ३, पद्य, भूपू (वर्द्धमान जिनवर धणी), १०५४८९-१०(४) महावीरजिन जन्मोत्सव गीत, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., गा. ७, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (महावीरजिन जन्मसु दिन सुनि), १०१८६८.३(०) " , ', महावीरजिन तीर्थे तीर्थकर गोत्र उपार्जक नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रेणिकराजा पद्मनाभ१), १०१७६१-३(०) महावीरजिन पद, जै. क. द्यानतराय, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि., (अब मोहे तार ले महावीर), १०६०५७-१५१(+) महावीरजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं. गा. ४, पद्य, दि. (जब वाणी खरी महावीर की), १०६०५७ २०५१ महावीरजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (नी चलि वंदिये चलि वंदिये), १०६०५७-१७४ (+) महावीरजिन पद, जैक द्यानतराय, पुहिं. गा. ४. वि. १८वी, पद्य, दि., (महावीर महावीर जीवा जीव), १०६०५७-३०७(१) महावीरजिन पद- आध्यात्मिक, जै.क. द्यानतराय, पुहिं. गा. ३, पद्य, दि., (वीररा पीर कासौं कहिये), १०६०५७-१७९(*) " " " महावीरजिन पद पावापुरी, जैक द्यानतराय, पुहिं, गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (देखे धन धन आज पावापुर), १०६०५७-३२६(+) महावीरजिन बधाई, मु. हर्षचंद, पुहिं., पद. ५, पद्य, मूपू., ( वाजितरंग वधाई नगर मै), १०५६८६-११ (+) महावीरजिन लावणी, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., गा. ३, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (श्रीमहावीरजिन चरण अरुण), १०१८६८-४९(+) महावीरजिन लावणी- दीपावली, श्राव, चंपाराम दीवान, पुहिं. गा. ९. वि. १९वी पद्य, वे (धन्य परि सुदिन सुभ आज वीर), " " १०१८६८-३७+) महावीरजिनविनती स्तवन- जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (वीर सुणो मुज विनती), १०५६८६-१८+१ महावीरजिन स्तवन, पंन्या. खिमाविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीर जिणंद जगत उपकारी), १०१२१९-८ (+#) महावीरजिन स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वंदो वीर जिनेश्वर), १०५०७९ महावीरजिन स्तवन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., गा. ११, वि. १८६१, पद्य, मूपू., (सासननायक सामी तूं तो साचो), १०५११४-३८ For Private and Personal Use Only Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (बलिजाउं श्रीमहावीर), १०२७९३-८(+#) महावीरजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, म्पू., (जिनमुख देखण जावू), १०५४०१-२(+) महावीरजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (प्रभुजी वीरजिणंदने), १०५०४६-१२(+#) महावीरजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ८, पद्य, मपू., (ते दिननो विसवास छे), १०५७३६-१०(+) महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ८, गा.७९, वि. १७२९, प+ग., मपू., (सकलसिधदायक सदा चोवीस), १०५८३७-१(६) महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, मप., (सिद्धारथना रे नंदन), १०५७३६-७(+) महावीरजिन स्तवन-३४ अतिशयगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २५, पद्य, म्पू., (वीरजिण नाह बहु भावि), १०२०२२-११(+) महावीरजिन स्तवन-४५ आगमनामसंख्यागर्भित, मु. धरमसी, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (श्रावक तूं ऊठै परभात एहनी), १०५११४-६ महावीरजिन स्तवन-अतिचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ४, गा. ३०, वि. १७५४, पद्य, मूपू., (ए धन सासन वीर जिनवर), १०१६८८-११(+#) महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत अनंत गुण), १०१५०२-८(+#), १०३८८९-२(+), १०५६८६-२५(+) महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (समरवि समरथ सारदा), १०१७५९-५(+#), १०५६३०-२(+) महावीरजिन स्तवन-षटपरवी, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., ढा. ८, वि. १८३०, पद्य, मूपू., (जगदीपक जिनराज वस्तू तत्व), १०५७३९(+) महावीरजिन स्तुति, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (वंछित पूरण कल्पतरु), १०१२१९-१४(+#) महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (मुरति मनमोहन कंचन), १०६४१८-२७(2) महावीरजिन स्तुति, मु. दोलतविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (शासननो नायक जीनवर), १०२५०९-१३(+#) महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (बालपणे डाबो पाय), १०२७५३-१६(+), १०६४१८-१५(#) महावीरजिन स्तुति-८ छंदगणगर्भित, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ११, पद्य, दि., (वरधमान सनमन महावीर), १०६०५७-३९४(+) महावीरजिन स्तोत्र-प्रभाती, मु. विवेक, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सेवो वीरने चित्तमां), १०६१६२-२० महावीरजिन हमचडी-५ कल्याणकवर्णन, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., ढा. ३, गा. ६८, पद्य, मप., (नंदनकुं त्रिशला), १०५७७०(+#) महावीरजिन हालरडु, पं. दीपविजय कवि, मा.गु., गा. १७, पद्य, मपू., (माता त्रिशला झुलावे), १०५४२३(६) माणिभद्रवीर छंद, मु. उदयकुशल, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूप., (सरस वचन द्यो सरसती), १०६१६२-३० माणिभद्रवीर छंद, आ. शांतिसूरि, मा.गु., गा. ४३, पद्य, मूपू., (सरसति सामनि पाय), १०६१६२-२९ माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. ५५२, वि. १६१६, पद्य, पू., (देवि सरसति देवि), १०१४५२(+#), १०५९०६(+8), १०२५७०, १०५७८५, १०१४०१(६) मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., ढा. ४७, गा. १०१५, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (ऋषभजिणंद पदांबुजे), १०१८६९(+#), १०५२१५(+#s), १०५६३४(+#$), १०१६५५(#5), १०२३९४(#S) मासदशा विचार, मा.गु., गद्य, इतर, (रविकां२० शां सुख नही पावै), १०५०५३-२(+) मिथ्यात्वखंडन नाटक, मु. वखतराम, पुहिं., गा. १४२१, वि. १८२१, पद्य, श्वे., (प्रथम सुमिरि अरिहंत), १०४५७९($) मिथ्यात्वखंडन विवरण, पुहि., गद्य, दि., (सो हे भव्यजनुं तुम सुन), १०४८७०(+) मिथ्यात्व विध्वंशन चतुर्दशी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. १४, पद्य, दि., (वंदौ रिषभजिनंद अजित संभव), १०४९२२-४३(+) मिथ्यात्वी वर्णन लावणी, मु. जिनदास, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (कंकर कुं शंकर करी), १०२६४४-१६(+-) मुनिगुण पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (वे साधो गुन गाइ कर करुणा), १०६०५७-३६६(+) मुनिगुण सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (तप करता मुनि राजीया), १०५३३८-५(#$) मुनिगुण स्तुति, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (धनि धनि ते मुनि गिरवन), १०६०५७-११९(+) For Private and Personal Use Only Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ मुनिध्यान पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (भाई धनि मुनि ध्यान लगाय), १०६०५७-३००(+) मनिपति चौपाई, मु. धर्ममंदिर, मा.गु., खं. ४ ढाल ६५, गा. १०२०, वि. १७२५, पद्य, मप., (शंखेसर सुखकरू नमतां), १०५११९(+#) मुनिराज आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (आरती कीजै श्रीमुनिराज की), १०६०५७-२९(+) मुनिराज आरती, पंडित. हेमराज पंडित, पुहि., गा. ११, पद्य, दि., (कनक कामिनी विषयसुख), १०६०५७-५५(+) मुनिराज जयमालिका, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. १०, पद्य, दि., (परमदेव परणांम करि सतगुरु), १०४९२२-१४(+) मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (हो प्रभु मुज प्यारा), १०५७३६-१३(+) मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मुनिसुव्रतशुं मोहनी), १०२६२४-४(+#), १०५३३८-९(#) मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. सिंहकुशल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (थाहरी सूरति अतिहि सुहामण), १०५३३८-८(#) मुहपत्ति पडिलेहण ५० बोल, रा., गद्य, मूपू., (प्रथमदृष्टि पडिलेहण जे), १०३३९४-८(+) मुहपत्तिबोल सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर करि जुहार), १०२८०२-१ मुहुर्त प्रकरण, मा.गु., गद्य, वै., इतर, (राजाभिषेक महुर्त १ अनु), १०१९७८-३(#) मूढशिक्षा अष्टपदी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (चिनमूरति चिंताहरन पूरन), १०४९२२-७६(+) मूढशिक्षा अष्टपदी, पुहिं., गा.८, पद्य, दि., (ऐसे क्युं प्रभु पाईइ), १०२३७३-२ मृगध्वजराजा चौपाई, मा.गु., गा. ८८, पद्य, मूपू., (पणवि श्रीगोईम गणहर मुनिवर), १०१५६८ मृगापुत्र सज्झाय, ग. नरेंद्रविजय, मा.गु., ढा. १०, गा. १४२, वि. १९२१, पद्य, मूपू., (सुग्रीवनगर सोहामणु), १०२२९६(#) मृगावतीसती चौपाई, वा. विनयसमुद्र, मा.गु., वि. १६०२, पद्य, मूपू., (--), १०१४३१(#$) मृगावतीसती चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ३ ढाल ३७, गा. ७४५, ग्रं. ११००, वि. १६६८, पद्य, मपू., (समरु सरसति सामिणी), १०१३८१(+#), १०२३७२(+) मेघकुमार चौढालिया, क. कनक, मा.गु., ढा. ४, गा. ४७, पद्य, स्पू., (देस मगधमाहे जाणीयइ), १०६३३९-२(+), १०२५८५ मेघकमार सज्झाय, मु. प्रीतिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (धारणी मनावे रे मेघ), १०२५१७-२३(+) मेघकुमार सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. १४, पद्य, मप., (चारित्र लइ चित्त), १०५६५५-६ मेतारजमुनि ढाल, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., ढा. १५, गा. १८९, वि. १८६१, पद्य, स्था., (समरु सासणरा घणी पो उगते), १०२१८९-१(+) मेतारजमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, पुहिं.,मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (समदम गुणना आगरु जी), १०५७२७-१२(+) मेरुपर्वत मान, मा.गु., गद्य, मूपू., (धरतीनइ तलइ पहोलो), १०२४४०-६(#) मोक्षमार्ग वचनिका, मा.गु., गद्य, दि., (तिहा प्रथम जीव अनादि), १०६०४१(६) मोहकर्मनिवारण सिद्ध आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा.८, वि. १८वी, पद्य, दि., (जैसे मदरापन ते सुध बुध),१०६०५७-३८२(+) मोहनिवारण गीत, मु. मेघराज ऋषि, मा.ग., गा. ११, पद्य, श्वे., (बहिनी जेहनि मोहि वाह), १०१७५८-२ मोहनीयकर्मबंध के ३० प्रकार, रा., गद्य, मूपू., (कोइ आदमीने पाणी मांह), १०३३९४-७(+) मोहभ्रम अष्टक, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. ११, पद्य, दि., (परम पूज्य सरवग्य है), १०४९२२-६७(+) मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ४२, वि. १७९५, पद्य, मपू., (जगपति नायक नेमिजिणंद), १०५१४९-१ मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १३, वि. १६८१, पद्य, मपू., (समवसरण बेठा भगवंत), १०१६८८-४(+#), १०२६२४-८(+#) मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजय, मा.गु., ढा. १२, गा. ६२, वि. १७३२, पद्य, मूप., ( १०१९४१(+) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूप., (एकादशी अति रुअडी), १०१६७१-७(+-), १०५२६७-६(+) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. जिनचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (अरनाथ जिनेश्वर), १०५६८६-२७(+) मौनएकादशीपर्व स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (नयरी द्वारामती कृष्ण), १०५२९६-१(+) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गौतम बोले ग्रंथ संभाली), १०५२९६-२(+), १०२००८-१($) For Private and Personal Use Only Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ ५८३ यशोधर रास, मु. जिनदास ब्रह्मचारी, मा.गु., गा. ४६, वि. १६वी, पद्य, दि., (मुनिसुव्रत जिन जिन), १०६३४२(+) यशोधर रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., अ. १४, ग्रं. ७५०, वि. १६७१, पद्य, भूपू., (सुविशदमनो यस्य व्याप), १००९८०(+$) युगमंधरजिन स्तवन, मु. जिनसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीयंगमिंधर भेटवा), १०५०५५-७(+) योगरत्नाकर, वा. नयनशेखर, मा.गु., ग्रं. ९०००, वि. १७३६, पद्य, मूपू., इतर, (सरसति सुखदायक सदा), १०४८०७(#$) योगसंग्रह सज्झाय, ग. उदयसिंह, मा.गु., गा. १४, वि. १७७५, पद्य, मूपू., (श्रीजिणवर प्रणमु), १०१८४७-५(+) रंगबहुत्तरी, आ. जिनरंगसूरि, पुहिं., गा. ७३, पद्य, मूपू., (लोचन प्यारे पलक को), १०१५६५-२(+#) रणसिंह चौपाई, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ३५, पद्य, मूपू., (सकल समिहित), १०१०९५ रत्नचूड चौपाई, मु. कनकनिधान, मा.गु., ढा. २४, वि. १७२८, पद्य, मपू., (स्वस्ति श्रीसोभा), १०१८५८(+#$) रत्नत्रय पूजा, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ५१, वि. १८वी, पद्य, दि., (चहुँगति फणि विषय हरन मणि), १०५९८९-३१(+-), १०६०५७-६२(+) रत्नत्रय विधान, जै.क. टेकचंद, पुहिं., पूजा. ४, पद्य, दि., (सरधो जानो पालो भाई), १०५९८९-७४(+-$) रत्नत्रयविधान उद्यापन पूजा, पुहिं., पद्य, दि., (साधु सेउ भावां लाई तीनौं), १०५९७५-३($) रत्नपरीक्षा, मु. रत्नसागर, पुहिं., त. १५, पद्य, मूपू., इतर, (--), १०४६२० रत्नपालरत्नावती चौपाई, पं. माणिक्यराज, मा.गु., ढा. ३५, गा. ६६५, ग्रं. ९०५, वि. १८१९, पद्य, मूप., (स्वस्ति श्रीप्रभु), १०५५३९(+) रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., खं. ४ ढाल ६६, गा. १३७२, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (सकल श्रेणि में दुर), १०२५५७(+), १०५७००(+#), १०२०४०, १०५१८९(2) रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., खं. ३ ढाल ३२, गा. ७७४, वि. १७३२, पद्य, मप., (रीषभादिक जिनवर नमु), १०१८६२(६) रत्नसार रास-दानधर्म विषये, ग. देवेंद्रसागर, मा.गु., ढा. ७१, गा. १८६७, वि. १८६५, पद्य, मप., (श्रीजिन अमल कमल धवल), १०५६४३(+) रथनेमिराजिमती पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ५, वि. १८५४, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्धनें आयरी), १०५४२०(#) रथनेमिराजिमती सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (छेडो नाजी नाजी छेडो), १०५६३०-११(+) रागादिनिर्णयाष्टक, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. १०, पद्य, दि., (सर्वज्ञेय ज्ञायक परम), १०४९२२-६९(+) राजबावनी, क. राज कवि, पुहिं., सवै. ५८, पद्य, वै.?, (ॐकार अपार अगम्म), १०५९४३-४(+#$) राजसिंघ रास, ग. कपूरविजय, मा.गु., ढा. ५३, गा. १३८५, वि. १८२०, पद्य, मूपू., (ऋषी पडिलाभे भावथी), १०५९५२(+#$) राजसिंहरत्नवती कथा नवकारप्रभावे, मु. गौडीदास, मा.गु., ढा. २४, गा. ६०५, ग्रं.८८५, वि. १७५५, पद्य, मपू., (सारद शुभमतिदायिनी), १०११५७(#$) राजिमतीपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (प्रथम हि समरु), १०६३३९-१(+) राजिमतीसती गीत, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूप., (सूहव चांपलु रुपइ रुयडु), १०१९२०-४(+) राजिमतीसती गीत, मा.गु., गा. ६, पद्य, श्वे., (रसराती राजुल मणे दोहाइ वे), १०१४८९-९(१) रात्रिभोजनकथन सवैया, ग. जिनहर्ष, पुहिं., गा. १, पद्य, मूपू., (रैण चोर वहै वाट सब रोक), १०१८६५-७(+#) रात्रिभोजनत्याग कथा, मु. भारामल्ल, पुहिं., गा. २२२, पद्य, श्वे., (प्रथम नमो जिनदेव दूजैगुर), १०६०७६ रात्रिभोजनत्याग विचार, मा.ग., गद्य, मप., (९६ भवतांई जीवहत्या), १०१५६३-५(#) रात्रीभोजन चोढालीयो, मु. हीराचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ५, गा. १४७, वि. १९०७, पद्य, श्वे., (चरण कमल पारस प्रभु नीलमणि), १०५०३३-२(+) रामभक्ति पद, मीरा, मा.गु., पद. ४, पद्य, वै., (कोइ कीण ही वार माणस), १०५०५५-१७(+) रामभरत पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ७, पद्य, दि., (कहै भरतजी सुन हौ राम), १०६०५७-२१७(+) रामभरत पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (राम भरतसुं कहे राज भोगवो), १०६०५७-२१६(+) For Private and Personal Use Only Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८४ देशी भाषाओं की मूल कति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., अधि. ४ ढाल ६२, गा. ३१९१, ग्रं. ४३७५, वि. १६८३, पद्य, मूपू., (मुनिसुव्रतस्वामीजी), १०१९९०(+), १०४१६७(+), १०२३७७(#$) रामलक्ष्मण कथा, क. नानराम, पहिं., गा. ४४, पद्य, दि., (वंद पांचो परमपद नमौ सारद), १०५९८९-६६(+-) रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., समु. ७, गा. १६१७, ग्रं. ३३२५, वि. १७२०, पद्य, मपू., इतर, (सिद्धबुद्धिदायक सलहीये), १०१२१४(+#$), १०१४५०(+#),१०१५९०(+),१०५३४३(+) रामसीता रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. ९, गा. २४१२, ग्रं. ३७०४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखसंपदा), १०२८४०(+#$), १०५५१०(#$) रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मपू., (विचरता गामोगाम नेमि), १०५७२७-६(+) रोगउपाय विधि संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., इतर, (वज्रस्योटनाय एकाहिकं रक्ष), १०१९५३($) रोहाकुमार रास, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., ढा. ८, गा. ११६, वि. १८८०, पद्य, श्वे., (श्रीआदिनाथ प्रणमुं सदा), १०१६७० रोहिणीतप चैत्यवंदन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (रोहिणी तप आराधीए), १०५४८९-२३(-2) रोहिणीतप रास, उपा. उदयविजय, मा.गु., ढा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीजिनमुखकजवासिनी), १०५६४१ रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. ४, गा. ३२, वि. १७२०, पद्य, मपू., (सासणदेवता सामणीए मुझ), १०२०३५-१५(+), १०२६१७-७(+$), १०५३९०-१(+) रोहिणीतप स्तति, मु. लब्धिरूचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (जयकारी जिनवर वासपूज), १०२५०९-८(+#) लक्ष्मीपति सज्झाय, मु. अमोलक ऋषि, रा., गा. ३०, वि. १९५६, पद्य, श्वे., (पुन्य चीज है बडी जगत), १०५४८२-१(+$) लग्नसाधनफल विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., इतर, (सूर्य अस्त सूर्य उदय जन्म), १०१७६६-२ लघुबंधी यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), १०५२०७(5) ललितांगकुमार सज्झाय-शील विषये, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. १३, वि. १९५९, पद्य, स्था., (सुंदर सहर मनोहरो कवर), १०२५८३-९ लाहौरनगर की गजल, श्राव. जटमल नाहर, रा., गा. ५५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., इतर, (देख्या सहिर जब लाहोर), १०२०२६-३(+) लीलावती चौपाई-शीलविषये, उपा. कुशलधीर, मा.गु., ढा. २५, वि. १७२८, पद्य, मप., (श्रीआदिसर समरने प्रणमी), १०५१२०(+) लीलावतीसुमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. २१, गा. ३४८, वि. १७६७, पद्य, मूपू., (परम पुरुष प्रभु पास), १०२४३९(#s) लुंकामतीय प्रश्नबोल, मा.गु., गद्य, पू., (श्रीउवाईमांहि अंबडनी), १०२५१५-२(+#$) लेश्या ११ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (नामाइं पण रस गंध फरस), १०२६६३-२(+$) लोकाकाश ३४३ राज चौपाई, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. २०, वि. १७४०, पद्य, दि., (प्रणमं परमदेव के पाय मन), १०४९२२-४८(+) लोकालोकसंस्थान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (अलोकोन संठाण घोघा घोलाने), १०५८०५-४७(+#) वंकचूल रास, मु. लालचंद, मा.गु., ढा. १३, वि. १८५९, पद्य, स्था., (जिनवर चरणकमल नमु), १०१९६५(+#) वच्छराज चौपाई, मु. विनयलाभ, मा.गु., खं. ४ ढाल ६६, वि. १६३०, पद्य, मपू., (परम निरंजन परमप्रभु।), १०३५५३(+) वज्रदंतराजा चौपई, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ८, पद्य, दि., (वएठे वजरदंत वपाल), १०६०५७-३९१(+) वरसीदान मान, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक कोडिने आठ लाख दिन), १०२४४०-७(#) वर्तमानजिनवीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., स्तु. २२, पद्य, दि., (सीमंधर जिनदेव नगर), १०४९२२-११(+) वल्कलचीरी चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २२९, ग्रं. ३५०, वि. १६८१, पद्य, मूपू., (प्रणमुं पारसनाथनइ), १०१८४८(+#) वाण्याष्टक, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ११, पद्य, दि., (जनम जरा मृत छै करे हरै), १०६०५७-५६(+) वासपूज्यजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (सरन मोह वासपूज्य जिनवर की), १०६०५७-३४६(+) वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (वासुपूज्य जिन बारमा), १०२६२४-७(+#) वासुपूज्यजिन स्तुति, पं. मतिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (निरमल जाणुं जिम गोक), १०५२९६-९(+) For Private and Personal Use Only Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ विक्रमचौबोली रास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., ढा. १७, ग्रं. ३२५, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (वीणा पुस्तक धारणी), १०५३७४-२(+), १०५७५८+६), १०१६८७/१६), १०२८६१२३) विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., ढा. ६४, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (परम ज्योति प्रकास), १०१६५८ (+#), १०२८१० (+३) १०१९७२ (०६) विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ५२, गा. ११६२, ग्रं. १६२४, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (सुखदाता संखेश्वरो), १०२८२३(#$), १०१४१८($), १०५९०५ ($) विक्रमादित्य चौपाई, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु. डा. २७, गा. ५८५, वि. १७२३, पद्य, मूपू. (पुरिसावाणी प्रणमीई), १०१७६७(+१), १०२६४३ (+), १०९८४४(१) विक्रमादित्य पंचदंड प्रबंध, मु. नरपति, मा.गु., आदेश ५, गा. ८५०, पद्य, मूपू., (श्रीब्रह्माणि विनवौ मागु), १०१०९४-१ विक्षेप परिहार गीत, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे. (घर घरणी चिंतार सिंजी), १०९७५८-११ विचार संग्रह-विविधविषयक, मा.गु., गद्य, श्वे., (ठाणांगमाहिं त्रीजे), प्रतहीन. " " (२) विचार संग्रह - विविधविषयक- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मृपू., (वीरं गुरुश्च वंदित्व), १०२६१५(०) विजयघोषजयघोष सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू, (वाणारसी नयरी वसे विज), १०५३३८-१ विजयधर्मसूरि आदेशपट्टक, आ. विजयधर्मसूरि, मा.गु., वि. १९वी, गद्य, मूपू., (श्रीहितविजयगणी), १०३६७५ (#) विजयरत्नसूरि घघरनिसाणि, क. जस कवि, पुहिं., पद्य, मूपू., (सारद तूय नामं पूरन ), १०५४२२-१ विजयशेठविजयाशेठाणी रास, मु. राजरत्न वाचक, मा.गु., ढा. ३१, कडी. ४६०, वि. १६९६, पद्य, मूपू., (श्रीविमलाचल मंडणो), १०२६४१ (०३) विजयसेठविजयासेठाणी चौपाई, मा.गु., ढा. ११, गा. १४१, वि. १६८९, पद्य, मूपू., (प्रणमी पास जिणंद पद), १०६३७३ (#) विजयसेठविजयासेठाणी रास- शीलविषये, मु, रायचंद, मा.गु., ढा. ६, गा. ८९, वि. १६८६, पद्य, मूपू., (ऋषभादिक जिन चउवीसे), १०१८१६ (०) विद्याविलास रास, उपा. आज्ञासुंदर, मा.गु., गा. ३६३, वि. १५१६, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर पय नमी), १०४६४३-१(+#) विमलजिन स्तवन, पं. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पूजो जिनवर प्रेमस्यु रे), १०५६३०-१५ (+) विमलमंत्री प्रबंध, मु. लावण्यसमय, मा.गु., खं. ९, गा. ३८७, ग्रं. १७००, वि. १५६८, पद्य, मूपू., (आदिजिनवर आदिजिनवर), १०११०४(+$) विमलमंत्री सलोको, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु. गा. १०९, पद्य, मूपू (सरसति समरू वे करजोड), १०२०२९(१६) विरागछत्तीसी, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३६, वि. १८वी, पद्य, दि., (अजितनाथ पद वंदि कै कहुं), १०६०५७-४४० (+) विविध जीव आयुष्य विचार, मा.गु., गद्य, भूपू (१२० हाथीनो आयु १२०) १०१५६३-९(०) विवेकबीसी, जै.क. द्यानतराय, पुहिं. सवै २०, पद्य, दि., (जनमजरामृतअरति राग भै दोष), १०६०५७-१२(*) विषापहार स्तोत्र, आ. अचलकीर्ति, पुहिं. गा. ४२, वि. १७१५, पद्य, दि., (आत्मलीन अनंतगुण), १०१९५७-१५(१) वेदनीयकर्मनिवारण सिद्ध आरती, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ८, वि. १८वी, पद्य, दि., (सहत मली असि धार सुख दुख ), "" १०६०५७-३८१(+) वैदर्भी चौपाई, मु. प्रेमराज ऋषि, मा.गु., ढा. ७, गा. २०९, पद्य, श्वे., (जिणधरमसुं जागता हुवो), १०१८८६ (+#), १०५४५९(+$), १०१८०३, १०५११७ वैमानिकजिन स्तवन, मु. नेमीविजय, मा.गु. डा. ३, वि. १७७७, पद्य, मूपू (सुखदावीर सरसह जिणंद), १०२८०२-४ (६) वैराग्यपचीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं. गा. २५, वि. १७५०, पद्य, दि., (रागादिक दोष नित जे वैरागी), १०४९२२-७८ (+) वैराग्यषोडसी, जे. क. द्यानतराय, पुहिं. गा. १६, पद्म, वि., (सब में हम हम मैं सब ग्यान), १०६०५७-४० (+) व्यवहारनिश्चय स्तवन, आ. पासचंदसूरि, मा.गु., गा. ५९, पद्य, मूपू., (विक्रमनगर पुरवर प्रासादि), १०२८६३ -२ (+), १०१८६१ (२) व्यवहारनिश्चय स्तवन-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (विक्रमनगर बीकानेर रूपपुर), १०९८६१ व्यवहारपच्चीसी, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., सवै. २६, पद्य, दि., (धर्मप्रकाशक अरहंत थुत), १०६०५७-२६(+) For Private and Personal Use Only ५८५ Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ व्यवहारशुद्धि चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ९, गा. १६१, वि. १६९६, पद्य, मूपू., (शांतिनाथ जिन सोलमो), १०११९६(+), १०२५८९(+) शंखेश्वरतीर्थ स्तवन-चिंतामणि, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूप., (जगपति अविनासी कासी धणि रे), १०६१३२-२ शतअष्टोतरी स्तोत्र, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. १०८, पद्य, दि., (ॐकार गुण अति अगम), १०४९२२-२(+) शत्रुजयगिरनारतीर्थ स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (त्रिभुवनमाहे तिरथ), १०५२६९-२१(+) शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., ढा. १२, गा. १२०, ग्रं. १७०, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (विमल गिरिवर विमल), १०१२०४(+), १०५४७६(+#), १०५६३०-१(+), १०५७०१(+#), १०५७३७(+#), १०५८८६-१(+#s), १०५३०४-२, १०५६५१(#) शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जय जय नाभिनरिंदनंद), १०५४८९-२(-2) शत्रंजयतीर्थ चैत्यवंदन, ग. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मप., (विमलकेवल ज्ञानकमला), १०५४८९-१४(-2) शत्रुजयतीर्थ पद, आ. ज्ञानविमलसरि, गु., गा. ६, पद्य, जै., (सिद्धाचलनो वासी प्या), १०२७९३-११(+#) शत्रुजयतीर्थ रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., खं. ९, गा. ६४५२, ग्रं. ८९९४, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (विश्वनाथ चरणे नमु), १०५५८८(+$) शत्रुजयतीर्थ रास, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४२, पद्य, मूपू., (भली भावना विमलगिरि भटवानी), १०२८६३-७(+) शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ११२, वि. १६८२, पद्य, मूपू., (श्रीरिसहेसर पाय नमी आणी), १०१३७४(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सहीयां मोरी चालो), १०५०७५-२(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (श्री रे सिद्धाचल), १०१५७४-२(#) शत्रंजयतीर्थ स्तवन, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मप., (करजोडी कहे कामिनी), १०२०९१(६) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मपू., (अंग उमाहो अति घणो), १०५७३६-१२(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (करजोडी कहे कामनी), १०५०४६-१०(2) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल वंदो रे नर), १०५७३६-३(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (चढवू सेत्तुंजे नग्ग), १०५४०१-१७(+) शत्रंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मप., (बापडला रे पातिकडा), १०२७९३-७(+#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूप., (माहरुं मन मोडं रे), १०२२९९-३ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वंदना वंदना वंदनारे), १०५४०१-७(+) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (शेजानो वासी), १०२४६८-२(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (तीरथ सेव॒जेजी रहि), १०५११४-२९ शत्रंजयतीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा.१०, पद्य, मप., (जात्रा नवाणु करीए वि), १०५०४६-२(+#), १०१५७४-१(#) शवजयतीर्थ स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १२, पद्य, मपू., (सफल संसार अवतार माह), १०२८६३-१०(+$) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. विनयचंद कवि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रावक सहु कोइ आगल), १०५११४-३२ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (धन धन तसु नरनारि पनोता जे), १०५११४-१३ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., ढा. ३, गा. १३, पद्य, मूपू., (पय पणमी रे जिणवरना), १०१६८८-५(+#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन-९९ यात्रागर्भित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धाचलमंडण), १०५११४-३९ शत्रुजयतीर्थ स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (बे करजोडी विनवू जी), १०५४४३-२(+), १०५११४-१४ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्राव. ऋषभदास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (श्रीशत्रुजय तीरथसार), १०२५०९-६(+#), १०५२६९-१७(+), १०५२९६-१४(+) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजयमंडण), १०२७५३-९(+), १०२७०७-१७, १०६४१८-३१(#) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (आगे पूरव वार नीवाणु), १०६३२१-११ शत्रुजयतीर्थे मोतीशाट्रॅक स्तवन-अंजनशलाकाइतिहासयुक्त, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ७, पद्य, पू., (उठी प्रभाते प्रभु), १०५९०९-१(+) For Private and Personal Use Only Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ ५८७ शनिचौपाई- बारहराशि गोचरफल, मा.गु., गा. ५, पद्य, इतर, (मेष राशि भूचे गुजरात एम), १०५४९७-२(+) शनिश्चर छंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, वै., (छायानंदन जग जयो रवि), १०६१६२-२८ शनिश्चरदेव छंद, क. हेम, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (अहि नर असुर सुरपति), १०१७३२($) शांतिजिन चैत्यवंदन, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (जय जय शांति जिणंददेव), १०५४८९-६(-#) शांतिजिन छंद-त्रिभंगी, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ५, पद्य, दि., (विश्वसेन कुल कमल), १०१९५७-८(+) शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सारद माय नमुं सिरनाम), १०५०४६-११(+#), १०६१६२-२७ शांतिजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (अब मोहि तारि ले शांति), १०६०५७-३४५(+) शांतिजिन पद, ग. मेघरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (जब निहारी जिनशांति की), १०२४६८-४(#) शांतिजिन प्रथम चैत्यवंदन, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मप., (सांतिकरण जिन सांतिनाथ अचि), १०१२१९-१०(+#) शांतिजिन लावणी, मु. कर्मचंद, मा.गु., गा. १६, पद्य, श्वे., (सांतिजिनवर सदा सुखकारी अब), १०२६४४-७(+-) शांतिजिन स्तवन, मु. अनोपकुशल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सांतिजिणेसर सोलमो जवदपुर), १०५३३८-७(#) शांतिजिन स्तवन, मु. केसरीचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (शांति जिणेसर वंदियै), १०५६८६-१(+$) शांतिजिन स्तवन, मु. खेम, मा.गु., गा. १३, वि. १७४२, पद्य, मपू., (श्रीशांतिजिणेसर शांत), १०१९५७-१३(+) शांतिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (शयणां रे श्रीशांति), १०५४०१-२४(+) शांतिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (शांति जिनेसर साहिबा), १०५४०१-११(+) शांतिजिन स्तवन, पं. नित्यविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सुखकरण मुझ दुख हरण प्रभु), १०२०३५-३(+) शांतिजिन स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, पुहि., गा. ५, पद्य, मपू., (मेरइ आंगन कल्प फल्यो), १०५६८६-२४(+) शांतिजिन स्तवन, मु. सुधीरकुशल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (शांतिजिणेसर सोलमा भेव्या), १०२०३५-१०(+), १०२६१७-२(+) शांतिजिन स्तवन, मु. सुमतिकुशल, मा.गु., गा.७, पद्य, मप., (सांतीसर जगदीसर साहिब), १०५३३८-६(#) शांतिजिन स्तवन, वा. हर्षधर्म, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (सूरज ऊगमतइ नमुं संती), १०५११४-२७ शांतिजिन स्तवन, मु. हुकम, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (संतीजीनेसर साहीब साचौ), १०१२०९-३(#) शांतिजिन स्तवन, पुहिं., पद्य, दि., (दयासिंधु भगवंत शांतिजिन), १०५९८९-६७(+-$) शांतिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मप., (शांतिजिणेसर साहिबा निरखो), १०२०३५-४(+) शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ४८, वि. १७३४, पद्य, मप., (शांतिजिणेसर __ अरचित जग), १०१८६६-३(+$), १०२७९३-१६(+#), १०५७४४ शांतिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, पद्य, मप., (शांति जिणेसर समरीइं), १०५२६९-१८(+) शांतिजिन स्तुति, ग. देवविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (शांतिनाथ भजो भगवंत), १०५२६९-१६(+) शांतिजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (वगडी माडण सतजीणंद), १०५०४६-९(+#) शारदानंद सज्झाय, मु. हीराचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ५, गा. ९६, वि. १९२३, पद्य, श्वे., (सारदीयण मतिसारदा जिन मत), १०५०३३-४(+) शारदाष्टक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. १०, वि. १७वी, पद्य, दि., (नमो केवल रुप भगवान), १०१८०१-९(+) शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., ढा. २९, गा. ५१०, वि. १६७८, पद्य, मपू., (सासननायक समरियै), १०१३७२(+#$), १०१३९८(+), १०१६६९(+६), १०१८०६(+#$), १०१८४५-१(+), १०१९८५(+#$), १०१९९७(+#), १०२६१२(+#), १०२६२७(+), १०२८८८(+5), १०५४०८(+#), १०५८१९(+5), १०२०३२(६), १०२६५९(), १०५८८८(१) शालिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. न्यायसागर वाचक, मा.गु., गा. १३, पद्य, मपू., (सकगुंणहि ओपंतिनयर), १०१९२०-६(+) शालिभद्रमुनि सज्झाय-दानविषये, ग. हर्षकुशल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मपू., (दान सुपात्रं हो दीज), १०१८००-३(+#) शालिभद्र रास, मु. साधुहंस, मा.गु., गा. २१९, वि. १४५५, पद्य, मूपू., (देवि सरसति २ सकल), १०११६६-१(+), १०२८४१(+$) शाश्वताशाश्वतजिनचैत्य जयमाल, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., चौपा. १५, वि. १८वी, पद्य, दि., (चैत्यालय प्रतिमा सवै वंदे), १०६०५७-३७४(+) For Private and Personal Use Only Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ शास्त्र आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ११, पद्य, दि., (ॐकार धुन सार द्वादशांग), १०६०५७-५७(+) शास्त्र पूजा, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., प+ग., दि., (जनम जरा मृति छप करै हरै), १०५९८९-३७(+-), १०६०१२-२७ शिक्षापंचाशिका, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ५०, पद्य, दि., (राग विरोध विमोह सब भमै), १०६०५७-३९९(+) शिवपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. २६, वि. १७वी, पद्य, दि., (ब्रह्मविलास विकासधर), १०४९९०(#$) शिष्यचतुर्दशी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. १४, पद्य, दि., (कहुं दिव्य धुनि शिष्य), १०४९२२-४२(+) शिष्यस्वरूप पद, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., गा. ५, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (चतुर जोई सतगुर का चेला), १०१८६८-८(+) शीतलजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (तार ले मोहि शीतलस्वामी), १०६०५७-३३७(+) शीतलजिन पद, मु. शीतल, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (मन मेरे दोष भाव),१०६०५७-४१३(+) शीतलजिन स्तवन, मु. दिनकरसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (श्रीशीतलजिन सुखकर), १०५६३०-७(+) शीतलजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (शीतल जिन सुणौ स्वामी), १०५६३०-६(+) शीतलजिन स्तवन, आ. विजयलक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (शीतल जिन विभु आतम), १०२००८-५ शीतलजिन स्तवन-२१ स्थान गर्भित, मु. गजसार शिष्य, मा.गु., गा. ३०, वि. १६७५, पद्य, मपू., (पणमिय सह गुरु पाय सरसति), १०१६४६-३(+) शीतलजिन स्तवन-अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., गा. १५, पद्य, मपू., (मोरा साहेब हो), १०५११४-१७ शीयलनववाड ढाल, मु. अगरचंद, मा.गु., ढा. १०, वि. १८३६, पद्य, मप., (प्रणम पंचपरमेष्ठि),१०२६९२(+#$), १०१७१५ शीयलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. ६८, ग्रं. २५१, वि. १६३७, पद्य, मपू., (पहिलुं प्रणाम करूं), १०२५८२(+), १०२६६६-१(+#), १०५१३०(+#$), १०५४६८(+), १०११६७(#), १०२५१४(६), १०२९५४(5) शीयलव्रत १६ उपमा बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहली सुद्धमन सील), १०५८०५-४०(+#) शीयलव्रत ३२ उपमा बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिली उपमा ग्रह), १०५८०५-८(+#), १०५८०५-९(+#) शीयलव्रत सज्झाय, मु. उत्तमचंद, मा.गु., गा. २३, वि. १८४४, पद्य, मूपू., (श्रीअहँत नीत नमु), १०५०५५-५(+), १०५३९०-२(+) शीयलव्रत सज्झाय, उपा. न्यायसागर वाचक, मा.गु., गा. ११, पद्य, मपू., (मुनिजी मुनिजी मझाएपर धरिए), १०१९२०-२(+) शीलमाहात्म्यकथन सवैया, ग. जिनहर्ष, पुहिं., गा. १, पद्य, मप., (वैढ को करैया महाजन को मरै), १०१८६५-५(+#) शीलवती रास, मु. नेमीविजय, मा.गु., खं. ६ ढाल ८४, गा. २०६१, वि. १७५०, पद्य, मपू., (ॐकार अक्षर अधिक), १०२८१५($) शीलसुंदरी रास, मु. धनविजय, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल १७, वि. १९२२, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धि समृद्धि पंचपदे), १०६२६८(+#) शुकनदीपिका चौपाई, मु. जयविजय, मा.गु., गा. ३४९, पद्य, मूपू., (शुकन शास्त्रनी चोपाई),१०१९४२(#$) शुकबहोत्तरी कथा, मु. रत्नसुंदरसूरि, मा.गु., कथा. ७२, गा. २४०१, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (सयल सुरासुर माया), १०२८८१(+$) शोक परिहार गीत, मु. मेघराज ऋषि, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (मोहनी कर्म उदय कारणि), १०१७५८-९ श्रद्धाचालीसी, जै.क. द्यानतराय, पुहि., चौपा. ४०, पद्य, दि., (वंदौ हौं परमातमा जगग्यापक), १०६०५७-१०(+) श्रावक ११ प्रतिमा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (दरसन प्रतिमा१ ज्ञान), १०१७५०-३(+#$) श्रावक १२ व्रत विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्राणातिपात अतिचार), १०१३६४(#$), १०२३८७-१३(६), १०२४८८($) श्रावक २१ गुण वर्णन, मा.गु., अंक. २१, गद्य, मूपू., (धर्मनई विषइ १ मन वचन), १०५८०५-२३(+#), १०५८०५-३८(+#) श्रावक ३ मनोरथ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलो मनोरथ समणोपासण), १०५४६९-२ श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २३, पद्य, मपू., (श्रावक तुं उठे परभात), १०५९५३-१(+#), १०६१३३-६(#), १०१९२९(5) श्रावक गृहे ९ चंद्रवा विधान, मा.गु., गद्य, म्पू., (पाणीहारे १ उखले २), १०५०२४-८ श्रावक धर्मोपदेश विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पृथिवी१ अप्प२ तेउ३ वाउ४), १०५४५०-२(+) श्रावकस्वरूप पद, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहि., गा. ६, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (श्रावगी सबही है सच्चा), १०१८६८-९(+) श्रावकाचार प्रश्नोत्तर, श्राव. बुलाकीदास, पुहिं., अधि. २४, गा. २२५९, पद्य, दि., (सिद्धं संपूर्ण भव्या), १०४८७२(+$), १०४८०२ श्रीपाल चरित्र, जै.क. परिमल्ल रामदास, पहिं., पद्य, दि., (श्रीसिद्धचक्र विधि केवल), १०५९७८(+), १०६३१३(+), १०४८१०, १०६१७८(#$) For Private and Personal Use Only Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८९ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ श्रीपाल चरित्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीरप्रभु देव रच्यौ), १०५७९५(+$) श्रीपालचरित्र चौपाई, मु. रामचंद मुनि, पुहिं., पद्य, मूपू., (परम पुरुष सासन घणी महावीर), १०२७१५(+#) श्रीपालमयणासुंदरी चौपई, उपा. रुघपति, मा.गु., वि. १८०६, पद्य, मूपू., (अरिहंति सिद्ध नमी करी), १०१५०२-३(+#) श्रीपालराजा चरित्र*, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), १०२८५५(+$) श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४१, गा. १८२५, वि. १७३८, पद्य, मप., (कल्पवेल कवियण तणी), १०१६५७(+$), १०१९६४(+$), १०२४३८(+$), १०२५४९(+s), १०२७८३(+),१०२७९४(+$), १०३७८८(+5), १०५०३९(+), १०५५६१(+), १०५८१३(+#), १०६०९८+#) (२) श्रीपाल रास-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मपू., (त्रीजो खंड पूरो थयो), १०५५६१(+), १०६०९८(+#) श्रीपाल रास-बृहद्, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ४९, गा. ८६१, वि. १७४०, पद्य, मूपू., (अरिहंत अनंतगुण धरीये), १०१६०८(+), १०१६८६(+), १०१५६०($) श्रीपाल रास-लघु, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ३२३, वि. १५३१, पद्य, मप., (करकमल जोडि करि सिद्ध), १०२४९८(+#$) श्रीपाल रास-लघु, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ४०, गा. ७५६, ग्रं. ११३१, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर जेहना), १०५०१३(+$) श्रुत बाराखडी, मु. सुरत, पुहि., गा. ७७, पद्य, दि., (प्रथम जपो अरहंत कौ), १०५९८९-४४(+-) श्रेणिक चरित्र, मु. रतनविसाल, पुहिं., गा. १२००, वि. १८२४, पद्य, दि., (तीनलोक तिहुकाल मैं पूजनीक), १०६००१(#) श्रेणिक पुराण, मु. विजयकीर्ति भट्टारक, मा.गु., अधि. ३२, वि. १८२७, पद्य, दि., (श्रीजिनचंदोभावयुत मनवचतन), १०४७४५(+), १०४१९८, १०४६६२ श्रेणिकराजा चरित्र, मु. वल्लभकुशल, मा.गु., ढा. ५०, गा. १२३६, वि. १७७४, पद्य, मूप., (आदिसर आदे नमुं शिवसु), १०२६८२ श्रेणिकराजा चौपाई, मु. नारायण ऋषि, मा.गु., खं. ४, वि. १६८४, पद्य, स्था., (श्रीजिननायक भावशुं वंदु), १०२१७९(+#$) श्रेणिकराजा चौपाई, मा.गु., पद्य, म्पू., (--), १०३६६७($) श्रेणिकराजा रास, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु., खं. ४, गा. ६०६, ग्रं. ६८१, वि. १६०३, पद्य, मूपू., (सकल ऋद्धि मंगलकरण), १०१८५२ श्रेणिकराजा सज्झाय-समकित परीक्षा, रा., ढा. २, गा. २२, पद्य, श्वे., (राय श्रेणक तणी पारख), १०२५८३-४($) षड्जीवनिकाय-४०६ भेद समास, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. २२, पद्य, दि., (वंदौ नेमिजिनंद पद सब जीवन), १०६०५७-२४(+) संजया बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (पन्नवणा वेय रागे), १०१९४४(+#) संभवजिन स्तवन, आ. उदयसागरसरि, मा.गु., गा.५, पद्य, मप., (संभवजिननी सेवा प्यार), १०२५०६ संभवजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूप., (लीनो रे मन संभवजिन में), १०५४०१-२१(+) संयम के १७ भेद नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (पृथिवीकाय संजमे १), १०५८०५-२९(+#) संवेगबत्रीसी, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूप., (जोइ विमासी जीवडा ए), १०५४१९-२($) सगपण व्यवहारपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., गा. २९, वि. १८६३, पद्य, श्वे., (श्रीअरिहंत सिद्ध), १०२६४४-३(+-) सज्जनदर्जनगुण दशक सवैया, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ११, पद्य, दि., (तरु की कलम सिद्ध स्याही), १०६०५७-३७५(+) सती सवैया, मा.गु., पद. १, पद्य, मपू., (उदाई के प्रभावती मृगावती), १०२६३१-३(+) सदैवच्छसावलिंगा वार्ता, मा.गु., गा. १३६, पद्य, श्वे., (--), १०२६८४(+$) सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सांभलि सनतकुमार हो), १०२५१७-१(+) सनत्कुमारचक्रवर्ती रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. ३१, गा.५१५, ग्रं. ७५१, वि. १७३७, पद्य, मूपू., (प्रणमूं पारसनाथ), १०२७१७) सप्तनयभंगी वाणी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. १२, पद्य, दि., (वंदौ श्रीजिनदेव कौं वंदौ), १०४९२२-५८(+) सप्तपदम स्थानव्रत कथा, मु. खुस्याल, मा.गु., गा. ९४, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवर प्रणमुं सुधभाय), १०४७१५-२, १०४७९२-२ सप्तभंगी पंचविंशतिका, मु. भीमराज, मा.गु., गा. २६, वि. १८२९, पद्य, मप., (श्रीजिनआगम प्रणमि), १०१३८२-२(+$) सभाशृंगार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव अजीव पुन्य पाप), १०१६४५(+#) For Private and Personal Use Only Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ समयसारसिद्धांतनाटक के कवित, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (प्रथम अग्यानी जीव), १०१८०१-२(+) समवसरण अष्टप्रातिहार्या, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (प्रथम अशोक फूलकी वरषावानी), १०४९२२-८(+) समवसरणपूजाविधि चौपाई, क. लालजी, पुहिं., वि. १८३४, पद्य, दि., (पहिलै तौ पंचपरमेष्टि को), १०४८८७(+$) समवसरण बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (जीवाए लेसपखाए दिट्ठी), १०११२१(+) समाधिमरण, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. १०, पद्य, दि., (गौतमस्वामी वंदौं नामी मरण), १०५९८९-४८(+-), १०६०५७-२०(+) सम्मेतशिखरतीर्थ पद, मु. क्षमाकल्याण, पुहिं., गा. ३, पद्य, मप., (मधुवन में जाय मची रे), १०५६८६-९(+) सम्मेतशिखरतीर्थ पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (समेदशिखर चल रे जियरा बीस), १०६०५७-३२९(+) सम्मेतशिखरतीर्थ पद, श्राव. मोतीराम, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., (शिखरसमेद निहारा धन भाग), १०६०५७-३३१(+) सम्मेतशिखरतीर्थ पद, श्राव. सुखानंद साह, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (समेदशिखर मोह भावै है देव), १०६०५७-३३०(+) सम्मेतशिखरतीर्थ पूजा, पुहि., प+ग., दि., (मुवर कौडि अनेक परमपद), १०५९८९-३३(+-) सम्मेतशिखरतीर्थमहिमा स्तुति, पुहिं., सवै. २, पद्य, दि., (सा देखै है अनेक पहार या), १०५९८९-३४(+-) सम्मेतशिखर तीर्थयात्रा ऐतिहासिक वर्णन, मा.गु., गद्य, मूप., (समेतशिखरजी सं १९८८ मि. फा), १०६०६७-२ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा.६, वि. १७४४, पद्य, म्पू., (अष्टापद आदिसर सीद्धा), १०२८७८-२(+) सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६, वि. १७४४, पद्य, मूपू., (तुंही नमो नमो समेतशि), १०२६२४-५(+#) सम्मेतशिखर माहात्म्य, मु. मनसुखसागर, पुहिं., पर्व. २५, पद्य, दि., (श्रीसंसेवित चरन कमल जुग), १०५९८२(+) सम्यक्त्व कुलक, मा.गु., गा. ४९, पद्य, मूपू., (मस्तकि बिदु सुहामणउ भणउ), १०२०२२-२(+) सम्यक्त्व कौमुदी कथा, मा.गु., गद्य, मप., (श्रीवर्द्धमा० महावीर), १०५५६७($) सम्यक्त्वपच्चीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. २६, वि. १७५०, पद्य, दि., (सम्यक आदि अनंतगुन सहित), १०४९२२-७७(+) सम्यक्त्व मूलबारव्रत, अज्ञा., गद्य, मूपू., (--), प्रतहीन. (२) सम्यक्त्व मूलबारव्रत-विवरण, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथमसमयक्त्व पहिले), १०३३९४-२(+), १०१९४९ सम्यक्त्व विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, मपू., (पांचे ठांमे वर्त्ततउ जीव), १०२९८९-४(+) सम्यक्त्वस्वरूप लावणी, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., गा. ५, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (लगनि जिह दरसनको लागी), १०१८६८-३८(+) सम्यग्ज्ञानादि विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीउत्तराध्ययने नाणेण), १०२९८९-२(+) सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., ढा. ३, गा. १४, पद्य, मूप., (शशिकर जिनकर समुज्ज्व), १०५२८६-२(+#$) सरस्वतीदेवी छंद-अजारीतीर्थ, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (सरसति सरस वचन समता), १०५४००-२(5) सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (जगदानंदन गुणनीलो रे), १०५६५५-२ सवैयाबावनी, श्राव. बनारसीदास, मा.गु., गा. ५२, वि. १६८६, पद्य, दि., (ॐकार सबद विहदया के), १०१८०१-१(+) सवैया संग्रह-जैनधार्मिक, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहि.,मा.गु., सवै. १३, पद्य, जै., (पूरव तयासीलाख सुख), १०५५४४-२(+) सहजसिद्धाष्टक, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ११, वि. १८वी, पद्य, दि., (परम पूज परमातमा पूजक चेतन), १०६०५७-४४१(+) सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. २ ढाल २२, गा. ५३५, ग्रं. ८००, वि. १६५९, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीसर गुणनिलउ), १०५७६२(+#), १०१९९९, १०५३५८, १०५५८० सागरमत बोल छत्रीसी, ग. जयविजय पंडित, मा.गु., गा. ११६, वि. १६०४, पद्य, मपू., (विजय चिंतामणि प्रणमी पाय), १०५२८७-१ साधारणजिन ४६ बोल आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. १५, पद्य, दि., (गुन अनंत कह कोस है),१०६०५७-५०(+) साधारणजिन आरती, श्राव. दीपचंदजी, पुहि., गा. ८, पद्य, दि., (इह विधि आरती करौं प्रभु), १०६०५७-३१(+) साधारणजिन आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा.८, पद्य, दि., (आरती श्रीजिनराज), १०६०५७-२८(+) साधारणजिन आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ८, पद्य, दि., (कहा लौ आरती भगत करै जी), १०६०५७-३५(+) साधारणजिन गीत, मु. ज्ञानविमल, मा.ग., गा. ५, पद्य, मप., (जिनराज सुणौ मोहि वीन), १०२७९३-५(+#) साधारणजिन गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (एसो सदागम खीर जलधि), १०५४०१-५(+) साधारणजिन गीत, मु. मान, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सरसति देवी मन रंग), १०१३०१-२(+#$) साधारणजिन गीत, मु. रूपविजय, मा.ग., गा. ६, पद्य, मप., (धीर कर ध्यान अरिहंत मन), १०१३९५-५(+) For Private and Personal Use Only Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ साधारणजिन चैत्यवंदन, मु. चिदानंद, मा.ग., गा. ३, पद्य, मप., (परमेश्वर परमात्मा), १०५४८९-२४(-#) साधारणजिन चैत्यवंदन-पंचपरमेष्ठिगुणगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८पू, पद्य, पू., (बार गुण अरिहंत देव), १०५४८९-१८(-#) साधारणजिन पद, मु. केसरीचंद, पुहिं., पद्य, मप., (किनसो जिनजी से निहडा कीया), १०५६८६-१६(+$) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (अब मोहि तार ले अरु भगवान), १०६०५७-३६०(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (आप प्रभुजी नामे जाना यह), १०६०५७-७२(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (इक अरज सणौ साहिब मेरी), १०६०५७-२८४(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (ए जिनराजजी मोह दख ते ले), १०६०५७-१८९(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (करुणा करनदेवा एक जनम दुख), १०६०५७-३४०(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (कोडि पुरुष कनक तन कीने), १०६०५७-३४४+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., (जानौ पूरा ग्याता सौई रागी), १०६०५७-४३५(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (जिन कै भजन मैं मगन रहो), १०६०५७-१८६(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा.२, वि. १८वी, पद्य, दि., (जिनराय कौ पाय सदा सरन), १०६०५७-२९६(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (जिनवर मूरति तेरी सोभा कही), १०६०५७-३३४(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (जिन साहिब मेरे हो निवाजि), १०६०५७-२८५(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ६, पद्य, दि., (जैनराय मोह भरोसो भारी सुर), १०६०५७-२३५(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (तुम अधम उधारनहार हौ), १०६०५७-३४३(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. १२, वि. १८वी, पद्य, दि., (तुम देवनिके देव हौ), १०६०५७-३७२(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (तू जिनवर स्वामी मेरा मै), १०६०५७-७७(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (तू ही मेरा साहिब सच्चा),१०६०५७-४२३(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (दास तिहारौ हूं मोहि तारौ), १०६०५७-३२४(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (देखो भाई श्रीजिनराज), १०६०५७-१४९(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, दि., (प्रभु जी का मोह फिकर अपार), १०६०५७-४३६(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (प्रभु तुम नैन निगोचर), १०६०५७-३४७(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (प्रभु तुम समरन ही), १०६०५७-१६५(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (प्रभु तेरी महिमा कहिय न), १०६०५७-१६४(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (प्रभु तेरी महिमा किहि मुख), १०६०५७-१६३(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (प्रभु मैं किहि विध थुति), १०६०५७-१२३(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (प्रभु मैं तुम चरण सरन), १०६०५७-३४१(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (भजौ जी भजौ जिन चरण), १०६०५७-३६३(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (भोर उठि तेरो मुख देखो जिन), १०६०५७-३५६(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (मेरी वार क्युं ढील करी जी), १०६०५७-२१८(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (मोहि तारौ जिनसाहिब जी), १०६०५७-३२३(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (मोहे तारौ हो देवाधिदेव), १०६०५७-१३१(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा.८, पद्य, दि., (श्रीजिनदेव न छांड हौ सेवो),१०६०५७-२१९(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ४, पद्य, दि., (श्रीजिन नाम आधार सार भजि), १०६०५७-१६८(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (सच्चा सांई तू ही मेरा), १०६०५७-४२४(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (हम आए हौ जिनभूप तेरे दरसन), १०६०५७-२७९(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (हो श्रीजिनराय नीति राजा), १०६०५७-३६९(+) साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (हो स्वामी जगति जलधि), १०६०५७-४०८(+) For Private and Personal Use Only Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५९२ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ יי "" साधारणजिन पद, मु. भूधर, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपू (चालो री सखी प्रभु), १०५६८६-६(१) साधारणजिन पद, मु. मालदास, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (भलै मुख देख्यौ, १०१८२५-३(+#$) साधारणजिन पद, श्राव. हेमराज, पुहिं. गा. ५, वि. १८वी, पद्य, दि., (ऐसे प्रभु ध्याउं दुरगति), १०६०५७-४२०(१) साधारणजिन पद, पुहिं. गा. ४, पद्य, वे नीज महियामे लेहणा अब लगी), १०५५६८-१ " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधारणजिन पद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रभुजी धाकी जी मूरति ), १०२७९३-१८(+#) साधारणजिन पद-दोषकौतुक, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., (त्रिभवन मैं नामिकर करुना ), १०६०५७-२४९(+) साधारणजिन लावणी-चारगतिदुखवर्णन गर्भित, मु. खूबचंद, पुहिं. गा. ९, पद्य, वे (सरण लीयो जिनराज तुमारो), " १०२६४४-११(+) साधारणजिन विनती स्तवन, जै. क. भूधरदास, पुहिं., गा. १२, पद्य, दि., (अहो जगत गुर एक सुणिय), १०५९८९-५४(+) साधारणजिन स्तवन, मु. कनककीर्ति, पुहिं, गा. १२, पद्य, मूपू. (वंदु श्रीजिनराय मन), १०५९८९-५३(+) साधारणजिन स्तवन, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहि., गा. ५. वि. १९वी, पद्य, श्वे. (जिन दरसन करना रे सुज्ञानी), १०९८६८-४५ (+) " "" , साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि पुहिं गा ४, पद्य, म्पू, (अब मेरे नरभव सफल भये), १०५४०१-१२(१) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि पुहिं, गा. ९, पद्य, मूपू. (अरज सुणो जिनराज मेरे) १०५४०१-३(+) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज माहरा प्रभुजी), १०५४०१ ९(+) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, म्पू., (गाओ गाओ रे जिणंद), १०५४०१-८(+) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु.. गा. १०, पद्य, मूपू (जाण्यो रे मै मन), १०५४०१-२२ (+) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मृपू., (जिणंदा बहे दिन कयूं), १०२७९३-१२(०) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (जिनराज जुहारण जास्या), १०५४०१-४ (+) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मृपू., (देव नमो भवि देव नमो), २०५४०१-२० (+) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (मिली जायो रे साहिबा ), १०२०३५-१३ (+), १०५४०१-२६(+) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मोह नृपतिने जीतिइं), १०५४०१-२५(+) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सकल कुसल वन सेचन), १०५४०१-३२(+) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (समता राणीना वालिम छो), १०५४०१-१३ (+) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि पुहिं. गा. ७, पद्य, मूपू (समवशरण सुख देत है), १०५४०१-१८*) साधारणजिन स्तवन, मु. द्यानत, पुहिं., गा. १२, पद्य, मूपू., (कलिमैं ग्रंथ बडे), १०५९९२-२(+) साधारणजिन स्तवन, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (मे परदेसी दूर का), १०६१३३-४(#) साधारणजिन स्तवन-अध्यात्मगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू (मेरा साहिब सुगुण), १०२७९३-३(००) साधारणजिन स्तवन- अरिहंत बारगुण गर्भित, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. १६. वि. १७९५, पद्य, म्पू. (प्रथम चरण पंच इट), १०५११४-२ साधु आचार बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., ( संपना १ कुलसंपना २ विनय), १०५८०५-७७(+#) साधु आचार सज्झाय, पंडित. विनयविमल गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पंचमहाव्रत शुधा पालै), १०२३७३-३ साधुगुण सज्झाय, मु. ब्रह्म, मा.गु., गा. ८, पद्य, म्पू., (पंच महाव्रत जे धरह), १०२२९५-१(+) साधुभावना गीत, उपा. समयसुंदर गणि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (उंन साधकइ जाउं बलिहारइ), १०१९२०-५ (+) साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., डा. ७ गा. ८८, पद्य, म्पू, (रिसहजिण पमुह चडवीस), १०२६५८+६) 2 साधुवंदना, मु. श्रीदेव, मा.गु., ढा. १३, गा. ३७७, पद्य, मूपू., (पंच भरत पंच एरवय), १०५७२६(+) साधुवंदना तेरहढाला, मु. देवमुनि, मा.गु., ढा. १३, गा. १६७, पद्य, मूपू. (पंचभरत पंचएरव जाण), १०५४४६ (४०), १०५४४९(०), १०५६४०(+), १०५६७०(+) साधुवंदना बृहद्, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. १११, वि. १८०७, पद्य, स्था., ( नमुं अनंत चोवीसी ऋषभादिक), १०११०२(+), १०२६३६(+) साधुवंदना सवैया, पुहिं. गा. ७, पद्य, मूपू (अखंड आचार पाले दोष सब दुर), १०१००४-१ " For Private and Personal Use Only Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ साधु विहारी आचरण बोल, मा.गु., गद्य, वे. (आगम विहारी ते जे चउदे), १०५८०५-५३शक्क " साधुसाध्वी आचार ७ बोल विचार, आ. हीरविजयसूरि, मा.गु., वि. १६४६, गद्य, मूपू., (सं. १६४६ वर्षे पोषासि), १०३७४१-१(+) साध्वाचार विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (तथा आचार्य जे हुइ तेहना), १०२९८९-३(+) सामायिक ३२ दोष सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (धुरि गीतमनुं लीजें), १०२८०२-२ सामायिक दोष परिहार सज्झाय, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (पहिला प्रणमुं जिण), १०२०२२-४(+) सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सामायिक मन सुधे करो), १०५७२७-१४(+) सामुद्रिकशास्त्र चौपई, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., समु. २, वि. १७२२, पद्य, म्पू, इतर (सरसति सिमरउ चित्त धरि सरस), १०५८०८ (+) सिंहासनबत्रीसी कथा, रा., गद्य, मूपू., (सिंघासणरी पूतली विक्रमनृप), १०५५२५ ($) सिंहासनबत्रीसी चौपाई दानाधिकारे, पंन्या. हीरकलश, मा.गु., कथा. ३२, गा. २४३०, ग्रं. ३५००, वि. १६३६, पद्य, भूपू., (आराहि श्रीरिषभप्रभु १०२८१३ (०४) सिद्ध अष्टक, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. १२, पद्य, दि., (ऊरध अधारे कार जुत विंदी), १०६०५७-५२ (+) सिद्ध आरती, श्राव. खुस्यालचंद, पुहिं., गा. १६, पद्य, दि., (आठ करम दिढ बंध सौं नख सिख), १०६०५७-५३(+) सिद्ध आरती-गोत्रकर्मनिवारण, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, दि., ( ज्यौ कुम्हार छोटे बड), १०६०५७-३८५ (+) सिद्ध के १५ द्वार बोल, मा.गु., गद्य, मूषू, (अनंतर सीझणा द्वार), १०५८०५-७८(+) " सिद्धचक्र पूजा, जै.. द्यानतराय, पुहिं., प+ग., दि., (परमब्रह्म परमातमा), १०५९८९-४३(+) सिद्धचक्र पूजा, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, दि., (परमब्रह्म परमातमा परमजोति), १०६०५७-३८०(+) सिद्धचक्रमहिमा स्तवन, मु. कनककीर्तिशिष्य, मा.गु.. गा. १५, पद्य, मूपु (नवपदनो ध्यान धरीजे), १०५११४-२६ सिद्धचक्र स्तवन, मु. कांतिसागर, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (वीर जिणंद वखाण्यौ), १०१२१९-३ (+#), १०२६१७-३(+) सिद्धचक्र स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू (सुरमणि सम सहू मंत्रम), १०५११४-२५ सिद्धचक्र स्तवन, मु. नयविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र आराधिये), १०२७९३-६(+#) सिद्धचक्र स्तवन, मु. रिख महंत, मा.गु., गा. ११, पद्य, वे (हां ऐ अरिहंत पद पहिल). १०५०५५-११(+) सिद्धचक्र स्तवन, मु. विजयहर्ष, मा.गु., गा. १३. वि. १७४७, पद्य, मूपू (सकल सुरासुर सेवित) १०१२१९-५ (+३) सिद्धचक्र स्तवन, मु. सुधिरकुशल, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (राजग्रहिनगरिमां वीर), १०२०३५-९(+), १०२६१७-१(+$) सिद्धचक्र स्तवन, मा.गु, पद्य, मूपू (सुखदायक रे शांतिजिणेसर), १०२५१७-२५ (+३) " सिद्धचक्र स्तुति, ग. उत्तमसागर, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपु. ( श्रीसिद्धचक्र सेवो), १०२५०९-७/+#) (समरु सुखदायक मन), १०५०५५ ९(+) . सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु गा. ४, पद्य, भूपू सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु. गा. ४, पद्य, भूपू (निरुपम सुखदायक), १०५६८६-२८(०) २०६४१८-३४(क) सिद्धचक्र स्तुति, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीवीरजिनेसर अलवेसर), १०१६७१-१३(+) सिद्धचक्र स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू (अरिहंत नमो वळी सिद्ध), १०५२९६-१८(+) सिद्धचक्र स्तुति, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मंत्राधिप महिमा नवपद), १०५२६९-११(+) सिद्धचक्र स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू, (बंदु जिणवीर सुवद्धमाण), १०५२९६-११ (+) सिद्धचक्र स्तुति, मु. विजयसिंह- शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू (श्रीजिनवर भाख्यो महि), १०५२९६-१५ (क सिद्धचतुर्दशी श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं. गा. १४, पद्य, दि., (परमदेव परणाम करि परम), १०४९२२-५/का सिद्धपद आरती, जै.क. द्यानतराय पुहि गा. ९. वि. १८वी, पद्य, दि., (आठ करम विन सिद्ध है आठौं), १०६०५७-४४२(१) 19 " सिद्धपरमेष्ठी पूजा, क. लालचंद, पुहिं., प+ग., दि., (स्वयंसिद्ध जिनभवन रत्नमय), १०५९८९-२६(+) सिद्धभेद विचार-आगमिक, मा.गु., गद्य, मूपू., (अस्त्रीलिंगे एक समे २०), १०५८०५-७९(+#$) सिद्धसिलाविचार, मा.गु., गद्य, भूपू., (सर्वार्थसिद्ध पंचमो), १०३३९४-१८ (+) ५९३ सिद्ध स्तुति, पुहिं., दोहा. ६, पद्य, दि., (अविनासी अविकार परम रस धाम), १०६०१२-१० सिद्धाचल स्तवन, मु. अमरविजय, मा.गु., डा. ५, गा. १५. वि. १७६९, पद्य, म्पू, (श्रीसिद्धाचल भेटीये इण), १०५११४-२३ सीताराम पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (ए रे वैरागी रामजी सुं), १०६०५७-३४२(+) For Private and Personal Use Only Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५९४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ सीताराम पद, जे.क.द्यानतराय, पुहिं., गा. ३, पद्य, दि., ( कहे राघो सीता चलहू गेह), १०६०५७-१८२ (०) सीताराम पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. ८, पद्य, दि., (कहै सीताजी सुन रामचंद्र), १०६०५७-१८४(+) सीतासती सज्झाय, मु. गुणचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सांभलि राजा लंका हो स्वाम), १०२५१७-१२(+) , सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जलजलती मिलती घणी रे ), १०१५०२-७(+#), १०२५१७-२१ (+) सीमंधरजिन गीत, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मुज हीयडो हे जालुओ भाष), १०२६२४-३(+) सीमंधरजिन लावणी, नरसिंघदास पुहिं गा १२, वि. १८७०, पद्य, स्था. (महावदेह क्षेत्र अती शोभे ) १०२६४४-३१(+) , " " सीमंधरजिन विनती पत्र, क. नर, मा.गु., पत्र. २, गद्य, खे, (स्वस्ति श्रीमहाविदेह), १०५३२९ , सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., ( सफल संसार अवतार हुं), १०१७५९-८(mm), १०१८४७-४(*) सीमंधरजिन विनती स्तवन- १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., डा. ११, गा. १२५ ग्रं. १८८, वि. १८वी, पद्य, म्पू, (स्वामी सीमंधर विनती), १०२१९१ (+#$), १०२९१३(+), १०२९३५ (+$), १०५७३८, १०४१७०($) (२) सीमंधरजिन विनती स्तवन- १२५ गाथा-टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वदेव), १०२९१३(+), १०२९३५ (+३) सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुगुण सनेही साजन), १०५११४-३४ सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू (धन्य ते मुनिवरा रे) १०५२२४-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधरजी सुणजो), १०५०५५-४(+) सीमंधरजिन स्तवन, मा.गु, पद्य, मूपू.. (पूर्वविदेहे हो प्रभुजी), १०२०९२(६) "" " सीमंधरजिन स्तुति, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मृपू (श्रीसीमंधर मुजनेवाला ), १०२३७१९-२(+४) सीमंधरजिन स्तुति, मु. सुखचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पुंडरीगिणीनयरी जस), १०५४२५-१ सुंदरी गजल, श्राव. जटमल नाहर, रा. गा. १९, पद्य, म्पू., इतर (सुंदरि रूपगुण गाढी कि) १०२०२६-४(+) सुखबत्तीसी, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., दोहा. ३२, पद्य, दि., (सिध सर्व वंदौ सदा सुख), १०६०५७-११(+) सुगंधदशमी व्रत कथा, क. महाचंद्र, पुहिं., गा. ४५, वि. १४१९, पद्य, दि., (वर्द्धमान जिन चरण नित नमि), १०६३४३ सुगुणबत्तीसी, ग. रुपपति, मा.गु., गा. ३२, वि. १८८६, पद्य, मूपु., (सुगण बूडापो आवियो लख), १०१८४७-८(+) सुगुरुशतक, श्राव. जिनदास, पुहिं., दोहा. १००, वि. १८५२, पद्य, दि., ( नमुं साध निरग्रंथ गुरु), १०५९८९-४६ (+) सुदर्शन श्रेष्ठी पद, जै. क. द्यानतराय, पुहिं. गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (सेठ सुदरसण तारनहारा तीन) १०६०५७-३३२०) सुदर्शनसेठ सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., ढा. ६, गा. ६८, पद्य, मूपू., (संयमीधीर सुगुरुपय), १०५७६३(+) सुधर्मास्वामी गहुंली, मु. हर्षकल्लोल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीर पटोधर सोभता सही), १०५०४६-४(+#) सुपंथकुपंथपच्चीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं. गा. २७, पद्य, दि., (केवलम्यान सरूप में), १०४९२२-६६ (+) सुपनबत्तीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं., गा. ३४, पद्य, दि., (सुपनैवत संसार मैं जागे), १०४९२२-८८(+) सुपार्श्वजिन पद, मु. द्यानत, पुर्हि गा. ४, पद्य, मूपू (प्रभुजी प्रभु सुपास), १०६०५७-४००१) " सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (सहज सलुणो हो मिलियो), १०२०३५-२(+), १०२६४६-१३ (०३) सुबाहुकुमार संधि, उपा. पुण्यसागर, मा.गु.. गा. ८९. ग्रं. १४०, वि. १६०४, पद्य, भूपू. (पणमि पास जिणेसर केरा), २०१३५१(+5) सुबुद्धिचौवीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहिं. गा. २४, पद्य, दि., (चरण कमल जिनदेव के वंदी), १०४९२२-५९(+) सुमतिकुमति लावणी, मु. जिनदास, रा., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (हां रे तुं कुमति), १०२६४४-१९(+) सुमतिजिन स्तवन, मु. शांतिविजय शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (रूप अनुप निहाळी), १०५६३०-८(+) सुमतिजिन स्तवन १४ गुणस्थानविचारगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., डा. ६, गा. ३४, वि. १७२९, पद्य, मूपू (सुमतिजिणंद सुमति), १०१६८८-७(+#) सुमित्रकुमार चौपाई, ग. धर्मसमुद्र वाचक, मा.गु., गा. ४३१, वि. १५६७, पद्य, मूपू., (पस्ममि सुमण वयण तण ), १०१९११(+), १०२७८८+६) १०२८३३ (+४७) For Private and Personal Use Only Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.२४ सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., खं. ४ ढाल ४०, गा. ६१३, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (सासण जेहनउ सलहियइ), १०२८०३(+), १०६०८६(६) सुलशा चोढालीयो, मु. हीराचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. ७५, वि. १९पू, पद्य, श्वे., (सासनपति श्रीवीरजिन सकल), १०५०३३-१(+) सुविधिजिन स्तवन, मु. आनंदवर्धन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मन मान्यो हे सखी), १०१४८९-८(#) सुविधिजिन स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. २, गा. २९, वि. १७६९, पद्य, मूपू., (श्रीसुविधि जिणंद), १०१२०३(+) सुविधिजिन स्तवन, मु. लाभकुशल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मप., (सनेही प्यारा छो जी), १०२०३५-५(+) सूआबत्तीसी, श्राव. भगवतीदास भैया, पुहि., गा. ३४, वि. १७५३, पद्य, दि., (नमसकार जिनदेवको करौं दुहु), १०४९२२-८९(+) सूक्ष्मनिगोद विचार, मा.गु., गद्य, मप., (चौदराजलोकने विष), १०३३९४-१७(+) सूतक विचार, पुहिं.,मा.गु., गद्य, मूपू., (पुत्र जन्म होणेंसे), १०३६५०(+) सूतक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुत्र जन्म्यां १०), १०१५६३-२(१) सूर्यदेवाष्टक, कानडदास, मा.गु., गा. ७, पद्य, वै., इतर, (--), १०१२९६-१(६) सूर्य सलोको, मा.ग., गा. १७, पद्य, मप., (सरसति सामणि करोने), १०५९५३-६(+#) सोलह कारण विधान, जै.क. टेकचंद, पुहि., पूजा. १६, पद्य, दि., (मानो आनो मन गहो सोलह), १०५९८९-७३(+-) स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., स्त. २४, वि. १८पू, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम), १०१८६७(5) स्तवनचौवीसी, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (आदीसर सुखकारी हो), १०५१००(#$) स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.ग., स्त. २४, गा. २०५, वि. १७७६, पद्य, मप., (ऋषभ जिणिंदसु प्रीतडी), १०५२६४($) (२) स्तवनचौवीसी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, स्पू., (श्रीआदिनाथ प्रमुख), १०५२६४($) स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २४, गा. १२१, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जगजीवन जगवाल हो माता), १०५८५९ स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मपू., (ओलगडी आदिनाथनी जो), १०५५२३() स्तवनचौवीसी, मु. लक्ष्मीविमल, मा.गु., पद्य, म्पू., (--), १०२५१३(#$) स्तवनचौवीसी, मु. ललितविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मपू., (ऋषभ जिणंदा साहिब ऋषभ), १०११९२(+) स्तवनचौवीसी, श्राव. विनयचंद्र गोकलचंद कुमट, मा.गु., स्त. २४, वि. १९०६, पद्य, श्वे., (श्रीआदिश्वर सामी हो), १०५६५० स्तवनचौवीसी, ग. विनीतविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मप., (आदीसर अरज अमांरीजी), १०१२०५(+#) स्त्रीजन्मकुंडली विचार, मा.गु., गद्य, इतर, (सातमे मंगल विधवा हुवै), १०२१२९-३(#) स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. ७४, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (सुखसंपत दायक सदा पायक जास), १०५४४२-१(+), १०५५३४(+), १०१८४३, १०५१४७(#) स्थूलिभद्रमुनि शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. १८, वि. १८६२, पद्य, मपू., (सयल सुहंकर पासजिन), १०५७७८(+#$) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रीतडली न किजीये), १०५७२७-२(+) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (प्रीतडली न कीजै हे नारि), १०१३९९-२(+) स्थूलिभद्र सज्झाय, ग. कुशललाभ, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मूपू., (सारद सरदचंद्र करि निर्मल), १०१६९०(+) स्थूलिभद्र सज्झाय, उपा. रुघपति, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (वरराज तिहै त्रिगटै महावीर), १०१५०२-५(+#) स्नात्र पूजा, आ. मंगलसूरि, मा.गु., गा. २१, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (मुक्तालंकारविकारसारस), १०२७४६(६) स्नात्र पूजा, मा.गु., प+ग., मूपू., (पूर्वे बाजोट उपरि), १०५२५७(१), १०५०२५(६) स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.ग., ढा. ८, गा. ६०, वि. १८वी, पद्य, मप., (चोतिसे अतिसय जुओ वचन), १०२८०४(+), १०२९२६ स्वयंभू स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., गा. २४, वि. १८वी, पद्य, दि., (राजविषै जुगलनि सुख), १०५९८९-५१(+-), १०६०५७-२३(+) स्वार्थ निकुंज, मु. मोतीलाल ऋषि, मा.गु., ढा. २१, वि. २००३, पद्य, स्था., (शांतिनाथ प्रभु सोलवा खट्), १०५१४२-२(+) For Private and Personal Use Only Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५९६ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४८, गा. ९०५, वि. १६८०, पद्य, मूपू., (आदिसर आदे करी चोवीसे), १०१३६६ (+), १०१६५९ (४) १०५६५८(०) १००९६७ (४४) १०१६२९०७), १०६१३३-७४) 2 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हनुमान चरित्र, मु. ब्रह्मराय, पुहिं., गा. ८५४, वि. १६१६, पद्य, दि., (स्वामी सुव्रतनाथ जिनंद), १०४८१९, १०६०२९ हरिदत्तराजा चौपाई, ग. महिमासागर, मा.गु., ढा. ६८, गा. १९११५, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (श्रीआदिसर आदि अधिक), १०१३५८($) हरिश्चंद्रराजा चौपाई, मु. प्रेम, रा., ढा. २३, वि. १८३४, पद्य, श्वे., (आदेसर आदी करी वीतराग), १०५७९८(+) हस्तिनापुरतीर्थ पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., गा. २, वि. १८वी, पद्य, दि., (हथनापुर वंदन जाइ पई), १०६०५७-२९८(+) हितशिक्षावलि, पुहिं. गा. १५४, पद्य, . (), १०२४०४ (६) श्वे., " हीरविजयसूरि रास क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ३११९, वि. १६८५, पद्य, मूपू (सरसति भाषा भारती), १०५३०२ (+) हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मा.गु., ढा. २, गा. २२, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सरस वचन दिउ सरसती), १०५८९३(+) For Private and Personal Use Only Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir JelmOH RERANJeanshariAACTREAL amartngad Monsomniamuan SORaut तेन आराधन महावीर कोबा. अमृतं तु विद्या Acharya Sri Kailasasagarsuri Gyanmandir Sri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar E-mail: gyanmandir@kobatirth.org Website : www.kobatirth.org ISBN: mutanas Setnam-001 For Private and Personal Use Only