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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०४४३६. श्रीपाल कथा, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १५, प्रले. ग. नयचंद्र गणि (गुरु आ. हेमसमुद्रसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (३५४१४, २३४७५-८०). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाइं झायित; अंति: वाइज्जंता
कहा एसा, गाथा-१३३६, ग्रं. १६७५. १०४४३७. पंचदंड कथा-विक्रमचरित्र, संपूर्ण, वि. १५०८, चैत्र कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. २९, ले.स्थल. भटनगर, प्रले. ग. नयचंद्र गणि
(गुरु आ. हेमसमुद्रसूरि, तपागच्छ); गुपि. आ. हेमसमुद्रसूरि (परंपरा भट्टा. हेमहससूरि, तपागच्छ); भट्टा. हेमहंससूरि (तपागच्छ);
आ. पूर्णचंद्रसूरि (गुरु आ. हेमचंद्रसूरि, नागपुरीय-तपागच्छ); अन्य. आ. रत्नसागरसूरि, प्र.ले.प. मध्यम, प्र.वि. लिखावट के आधार पर प्रत १८वी की प्रतीत होती है, संभव है कि संवत् १५०८ में लिखी प्रत की प्रतिलिपि की गई हो., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२४) भग्न पृष्टिं कटी ग्रीवा, जैदे., (३४.५४१३.५, २०-२२४६५-७०).
पंचदंड कथा-विक्रमचरित्रे, आ. रामचंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १४९०, आदि: प्रणम्य जगदानंद दायक; अंति: चित्ते चिरं
__ नंदतात्, श्लोक-२५५२. १०४४३८. (+) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, संपूर्ण, वि. १५१२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. ५७, ले.स्थल. अर्कपल्ली,
प्रले. ग. नयचंद्र गणि (गुरु आ. हेमसमुद्रसूरि, तपागच्छ); गुपि. आ. हेमसमुद्रसूरि (परंपरा भट्टा. हेमहंससूरि, तपागच्छ); आ. हेमहंससूरि (गुरु आ. पूर्णचंद्रसूरि, नागपुरीय-तपागच्छ); आ. पूर्णचंद्रसूरि (गुरु आ. हेमचंद्रसूरि, नागपुरीय-तपागच्छ); आ. रत्नशेखरसूरि (गुरु आ. हेमतिलकसूरि*, बृहद्गच्छ(वडग.-ना.तपा.)); अन्य. आ. रत्नसागरसूरि; राज्यकालरा. कुंभकर्ण नृपति, प्र.ले.प. विस्तृत, प्र.वि. लिखावट के आधार पर प्रत १८वी की प्रतीत होती है, संभव है कि संवत् १५१२ में लिखी प्रत की प्रतिलिपि की गई हो., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (३४.५४१३.५, २०४६५-७०). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र का हिस्सा पर्व-८ नेमिजिन चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:
ॐ नमो विश्वनाथाय; अंति: विस्मयाय त्रिलोक्यम्, सर्ग-१२, ग्रं. ४७८८. १०४४४१ (#) पाक्षिकसूत्र सह यशोदेवीय टीका, अपूर्ण, वि. १५वी, मध्यम, पृ. १८-५(१,६,८ से ९,१३)=१३, पृ.वि. बीच-बीच के
पत्र हैं., प्र.वि. ताडपत्र शैली की भाँति पत्र के दोनों ओर हासिया के मध्य में पत्रांक है. सभी पत्र पर एक व एकाधिक अक्षर को अनुक्रम से पढने पर प्रतिलेखन पुष्पिका श्लोक बनता है किन्तु पत्रांकभाग खंडित है तथा कुछ पत्र अनुपलब्ध होने से अनुसंधान नहीं मिल रहा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३४४१३, ३०४७९-८१). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-२ से क्षामणकसूत्र तक है व बीच-बीच के पाठांश
नहीं हैं.) पाक्षिकसूत्र-टीका, आ. यशोदेवसरि, सं., गद्य, वि. ११८०, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. सूत्र-१ की टीका अपूर्ण से
क्षामणकसूत्र की टीका अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०४४४४. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र अध्याय-२ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (३१.५४१४, १७४५५).
तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.
तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. १०४४४५. सप्तव्यसन कथासमुच्चय, संपूर्ण, वि. १८५६, कार्तिक कृष्ण, १४, रविवार, मध्यम, पृ. ५२+१(४५)=५३, ले.स्थल. पीपलदाग्राम, प्रले. मु. माणिकनंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सप्तव्यसन चरित्रं., जैदे., (३१.५४१४, १४४४५). सप्तव्यसन कथासमुच्चय, मु. सोमकीर्ति, सं., पद्य, वि. १५२६, आदि: प्रणम्य श्रीजिनान्; अंति: ग्रंथो भव्यजनार्चितः,
सर्ग-७, श्लोक-६७७, ग्रं. २०६७. १०४४४७. (+#) परीक्षामुखसूत्र सह प्रमेयकमलमार्तंड वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३२४१४, २१४६९). परीक्षामखसूत्र, आ. माणिक्यनंदि, सं., गद्य, वि. ५६९, आदि: प्रमाणादर्थसंसिद्धिस्तदा; अंति: (-), (पू.वि. लिंग भेद
वर्णन अपूर्ण तक है.) परीक्षामुखसूत्र-प्रमेयकमलमार्तंड वृत्ति, आ. प्रभाचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १०वी-११वी, आदि: सिद्धेर्धाम महारिमोह;
अंति: (-).
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