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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१३. पे नाम, औपदेशिक पद, पृ. १२२अ संपूर्ण. औपदेशिक पद-पुण्यपाप, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: करुणा जान रे जान रे जान; अंति: द्यानत वहू सुख होहि, गाथा-४. २१४. पे नाम, नेमिजिन पद, पृ. १२२अ संपूर्ण. नेमराजिमती विवाह पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: कहूं दीठा नेमकुमारनी; अंति: द्यानत० देख्यौ नैंन निहार, गाथा-४. २१५. पे नाम, गुरुगुण पद, पू. १२२अ संपूर्ण जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: गुरु समान दाता नही कोई; अंति: राखो गुरु पद पंकज दोई, गाथा-४. २१६. पे. नाम. रामभरत पद, पृ. १२२आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: राम भरतसुं कहे राज भोगवो; अंति: तात वचन पालौ नरनाथ, गाथा-४. २१७. पे नाम, रामभरत पद, प्र. १२२आ, संपूर्ण. जै.क. धानतराय, पु.ि, पद्य, आदि कहै भरतजी सुन हौ राम: अति द्यानत सेवक सुख कर धीर, गाथा- ७. २१८. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १२२आ- १२३अ, संपूर्ण. 9 " जै.क. धानतराय, पुहि., पद्म, आदि मेरी वार क्युं ढील करी जी अति चानत० वैराग दशा हमरी जी गाथा ४. २१९. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १२३अ- १२३आ, संपूर्ण. जै.क. धानतराय, पुहिं., पद्य, आदि श्रीजिनदेव न छांड ही सेवो; अंतिः मैं द्यानत भक्त उपाय ही, गाथा-८. २२०. पे नाम, आध्यात्मिक पद, पू. १२३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: मानुष भव पानी दियो जिन; अंति: निपटन जी कहै लख चेतन वाना, गाथा-८. २२१. पे नाम, आध्यात्मिक पद, पू. १२३आ-१२४अ संपूर्ण " जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि अब मैं जान्यी आतमराम सी अंतिः सो कर लिया द्यानतनि दियो, गाधा-८. २२२. पे नाम उपदेश धमाल, पू. १२४अ संपूर्ण. औपदेशिक पद, जै. क. धानतराय, पुहिं, पद्य, आदि: चेतन प्राणी चेतिये हौ अहो; अति आपकों हो चानत कहत पुकार, गाधा-८. २२३. पे नाम, नेमराजिमति पद पू. १२४-१२४आ, संपूर्ण. 9 जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: भज मन प्रभु श्रीनेम कौं; अंति: स्वामी की कीजिये बलिहारी, गाथा-८. २२४. पे नाम, औपदेशिक पद, पू. १२४आ, संपूर्ण, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि प्राणी लाल छांडी मन चपलाई अंतिः धानत० फिर पाछे पिछाइ, गाथा ८. २२५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १२५अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं, पद्य, आदि रे भाई ग्यान विना दुख; अंति: अमर होय तजि काया रे, गाथा ८. २२६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १२५अ - १२५आ, संपूर्ण. जै.क. धानतराय, पुहिं., पद्म, आदि काहे देखी गरवाना रे महि; अति जो चाहे कल्याणा रे, गाथा-८. २२७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १२५आ, संपूर्ण. ४३३ जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: कर मन निज आज आतम चितौन; अंति: द्यानत सौ गहि मनवचकाय, गाथा- ८. २२८. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १२५आ-१२६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि जानी पुगल न्यारा रे भाई, अंति द्यानत लहे भव पारा रे भाई, गाथा-४. " २२९. पे नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १२६अ, संपूर्ण जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: रे जिय भजौ आतमदेव जातै; अंतिः समै द्यानत करौ अमृत पान, गाथा-७. २३०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १२६अ - १२६आ, संपूर्ण. जै.क. धानतराय, पुहिं., पद्य, आदि ब्रह्मज्ञान नहीं जाना रे; अंति: धानत अजर अमर पद थाना रे, गाथा-८. २३१. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १२६ आ-१२७अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only
SR No.018070
Book TitleKailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 24
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2018
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size18 MB
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