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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक लावणी-तप, श्राव. चंपाराम दीवान, पहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: सजन तप नह● करि तपना देह; अंति:
चंपाराम० इष्ट नाम जपना, गाथा-४. १६. पे. नाम. भावमहिमा लावणी, पृ. १०आ, संपूर्ण.
औपदेशिक लावणी-भावमहिमा, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: सुज्ञानी जब लग मन गंधा
तव; अंति: चंपाराम० भवसागर तरना, गाथा-३. १७. पे. नाम. कुमतिसरूप लावणी, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण..
औपदेशिक लावणी-कुमतिस्वरूप, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: सजन तेरी जानी चतुराई
कुमत; अंति: चंपाराम०मानै सौ पीछे रोवै, गाथा-५. १८. पे. नाम. सुमतिसरूप लावणी, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण.
औपदेशिक लावणी-समतिस्वरूप, श्राव. चंपाराम दीवान, पहि., पद्य, वि. १९वी, आदि: सजन तेरी देखी चतुराई
सुमत; अंति: चंपा० अविचल यह नीकै जानी, गाथा-४. १९. पे. नाम. क्रोधफल लावणी, पृ. ११आ, संपूर्ण.
औपदेशिक लावणी-क्रोधफल, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: क्रोध नहि करना रे सजन सुन;
अंति: चंपाराम०भोगै ना को ज टारे, गाथा-३. २०. पे. नाम. मानफल लावणी, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण.
औपदेशिक लावणी-मानपरिहार, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., गद्य, वि. १९वी, आदि: सजन सुनि मान वेगि त्यागौ;
अंति: चंपा०आगमसुत्र सबकू समझावै, गाथा-३. २१. पे. नाम. मायाफल लावणी, पृ. १२अ, संपूर्ण.
औपदेशिक लावणी-मायापरिहार, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: सजन सुनि माया दुखदाता;
अंति: चंपाराम० गति जनम जनम डोलै, गाथा-४. २२. पे. नाम. लोभफल लावणी, पृ. १२आ, संपूर्ण. __ औपदेशिक लावणी-लोभपरिहार, श्राव. चंपाराम दीवान, पुहि., पद्य, वि. १९वी, आदि: सजन सुनि लोभ दुष्ट भारी;
अंति: चंपाराम० जो याकू त्यागे, गाथा-३. २३. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १२आ, संपूर्ण. श्राव. चंपाराम दीवान, पुहि., पद्य, वि. १९वी, आदि: जगतमैं जीवना थोरा रे; अंति: चंपाराम०ममता फंद कटै तोरा,
गाथा-३. २४. पे. नाम. ७ व्यसननिवारण लावणी, पृ. १३अ, संपूर्ण.
श्राव. चंपाराम दीवान, पुहि., पद्य, वि. १९वी, आदि: तजो ए सातौ दुखदाई कुविसन; अंति: चंपाराम दिवान० सजनू
__ मनभाई, गाथा-५. २५. पे. नाम, औपदेशिक पद-फकीरी, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: फकीरी या विधि तै साची; अंति: चंपाराम०पलमै लाभ काज जावै,
गाथा-६. २६. पे. नाम. औपदेशिक लावणी-इंद्रिय, पृ. १४अ, संपूर्ण. श्राव. चंपाराम दीवान, पुहि., पद्य, वि. १९वी, आदि: वृंदावन पाप कहा कीनू रे; अंति: चंपाराम सफल भयो जीन,
गाथा-३. २७. पे. नाम, औपदेशिक लावणी, पृ. १४अ-१५आ, संपूर्ण. श्राव. चंपाराम दीवान, पुहिं., पद्य, वि. १९वी, आदि: सुरतिनै सुघर पार कीना; अंति: चंपाराम० वाटि सव न दीने,
गाथा-१७. २८. पे. नाम. औपदेशिक लावणी-गुरुज्ञान, पृ. १५आ, संपूर्ण.
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