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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३० तक टबार्थ लिखा है.) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारंभिक २ गाथा तक लिखा है., वि. चिपके पत्र.) ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ३१आ-३४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-३, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदिः (अपठनीय); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) १०५२१२. (+) चौमासीपर्व देववंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१२, १०४२९). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिदेव अलवेसरू विनीत; अंति: (-), (पू.वि. महावीरजिन देववंदन-स्तवन अपूर्ण तक है.) १०५२१३. (#) सिरिसिरिवालकहा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८०-११(१४,२१,५७ से ६०,६५,६९ से ७२)=६९, प.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१२, ७X४०-४६). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाई झायित; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से ३३ अपूर्ण, ३३४ अपूर्ण से ३५१ अपूर्ण, ९४४ अपूर्ण से १०१० अपूर्ण, १०७९ अपूर्ण से १०९८ अपूर्ण, ११४९ अपूर्ण से १२११ अपूर्ण तक व १३३३ अपूर्ण से नहीं है.) सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतादिक नवपद; अंति: (-). १०५२१४. (#) वंदित्तसूत्र व श्रावकपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४.५४११.५, १२४२६). १. पे. नाम, वंदित्तुसूत्र-गाथा १ से ९, पृ. १अ, संपूर्ण. __वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम, श्रावक अतिचार स्थूल-११ से १२, पृ. १आ, संपूर्ण. श्रावकपाक्षिकअतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., स्थूल-११ से संलेषणा स्थूल अपूर्ण तक लिखा है.) १०५२१५ (+#) मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १३४३२). मानतुंगमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणंद पदांबुजे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३४ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) १०५२१६ (+) पंचांगगणित विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:तिथिपत्र., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, ११-१४४३३-४०). पंचांगगणित विधि, उपा. महिमोदय, मा.ग., पद्य, वि. १७३३, आदि: परम जोति प्रभकं; अंति: (-), (प.वि. गाथा-१३७ अपूर्ण तक है.) १०५२१८. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४१२, ६x४२). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० चंपाए; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., सूत्र-१२ अपूर्ण तक है.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (१)प्रणम्य श्रीमहावीरं, (२)तिर्ण कालि ते चउथै आरइ; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सूत्र-५ अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only
SR No.018070
Book TitleKailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 24
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2018
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size18 MB
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