Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 24
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
१. पे नाम, प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ- ६आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी प्रतिक्रमणसू.
साधु श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह- खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, आदि णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाण; अंति संघस्स समुन्नइ निमित्तं.
२. पे. नाम, प्रव्रज्या प्रकरण, पृ. ६आ-८अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी प्रवृज्याप्रकर.
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प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संसार विसमसायर भवजल; अंति: तरंति ते भवसलिलरासिं, ३. पे. नाम, साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ८अ ११अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: साधुप्रतिक्रम.
पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि चत्तारि मंगलं अरिहंत, अंतिः वंदामि जिणे चडवीसं सूत्र- २१. ४. पे नाम, पार्श्वनाथजिन स्तवन- स्थंभनकतीर्थराज, पू. ११अ १३आ, संपूर्ण, पे. वि. हंडी नमस्कार०. नमस्कार. प्रक.
जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयणवरकप्परुक्ख जय; अंति: अभय ० विन्नवह अणिदिव गाथा - ३०.
५. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १३-१५आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी: श्रार्द्धप्रति.
वंदितुसूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि बंदिनु सव्वसिद्धेः अंतिः वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०.
गाथा - ३४.
६. पे. नाम. राईसंथारा गाथा, पृ. १५आ- १६आ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : संथारा. गा.
संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि निस्सिही निस्सिही; अंतिः वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा- १४. ७. पे. नाम. सीमंधरस्वामिद्वितीया स्तुति, पृ. १६-१७अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी: थूहीपत्र.
बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि महीमंडणं पुन्नसोवन्न, अंति देहि मे सुद्धनाणं, गाथा ४.
८. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. १७अ १७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : थूहीपत्र.
ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि पंचानंतकसुप्रपंच परमानंद अंतिः सा सिद्धायिका नायिका श्लोक-४.
९. पे. नाम. अष्टमी स्तुति, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : थूहीपत्र.
अष्टमीतिथिपर्व स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमुं; अंति: जीवित जनम प्रमाण,
गाथा-४.
१०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति १, पृ. १८अ संपूर्ण, पे. वि. हुंडी धूहीपत्र.
पार्श्वजिन स्तुति पनांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि शमदमोत्तमवस्तुमहापणं अंति: जयतु सा जिनशासनदेवता, श्लोक-४.
११. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति - २, पृ. १८अ - १८आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : थूहीपत्र.
पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञं ज्योतिरूपं; अंतिः बुद्धिं वृद्धिं वैदुष्यम्, श्लोक-४.
१२. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति - ३, पृ. १८-१९अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी : थूहीपत्र.
पार्श्वजिन स्तुति समवसरणभावगभिंत, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि हर्षनतासुरनिर्जरलोकं अंतिः पमज्जन शस्तनिजाय, लोक-४.
१३. पे नाम आदिजिन स्तुति, पृ. १९अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी बूहीपत्र.
सं., पद्य, आदिः युगादि पुरुषेंद्राय अति कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४.
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१४. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. १९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी थूहीपत्र,
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सं., पद्य, आदि: वर्दहिनमनादेव देहिन; अति जनानवतु नित्यममंगलेभ्यः श्लोक-४. १५. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १९अ - १९आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी : थूहीपत्र.
मा.गु., पद्य, आदि: बालपणे डाबो पाय; अंति: मल काम चदै प्रमाणो, गाथा ४. १६. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी: थूहीपत्र.
साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरल कुवल गवल अति देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. १७. पे नाम आदिजिन स्तुति, पृ. २०अ, संपूर्ण, पे. वि. हुंडी बूहीपत्र.
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