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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४
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४. पे. नाम. जिनरात्रिव्रत कथा, पृ. १३आ-१५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.
म. ललितकीर्ति, सं., पद्य, आदि: ०वंधुरं पंचकल्यानसिध्यर्थ; अंति: (-), (पृ.वि. श्लोक-४३ अपूर्ण तक है.) १०६४४० (+#) रघुवंश की विशेषार्थबोधिका वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४६-२५(१ से १३,१६ से २२,२९,३४ से
३६,४३)=२१, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. हंडी:राघवीवृत्तिपत्रं., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८.५४१३, २१४४१-४८). रघुवंश-विशेषार्थबोधिका वृत्ति, पं. गुणविनय गणि, सं., गद्य, वि. १६४६, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-१
श्लोक-९७ की टीका अपूर्ण से सर्ग-६ श्लोक-४३ की टीका अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०६४४१ (+) हंसराज वच्छराज चरित्र, संपूर्ण, वि. १९४८, आश्विन शुक्ल, १२, बुधवार, मध्यम, पृ. ३१, ले.स्थल. दिल्ली,
प्रले. मु. चंदनविजय (गुरु मु. बुद्धविजय, तपागच्छ); गुपि. मु. बुद्धविजय (गुरु मु. मणिविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:हंसराजवच्छ., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२९.५४१३, १५४४०-४५). हंसराज वत्सराज चरित्र, आ. सर्वसुंदरसूरि, सं., पद्य, ई. १५१०, आदि: स्मृत्वा श्रीभारती देवीं; अंति:
नित्यमत्यांतानंदपूरिता, सर्ग-५, श्लोक-८८४.. १०६४४७. (+) बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २९-१(२५)+१(१६)=२९, प्र.वि. हुंडी:वृहत्कल्प०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२९x१३, ५४४०). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पइ निग्गंथाण; अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व
प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सूत्र-१० अपूर्ण से १६ अपूर्ण तक नहीं है व उद्देशक-६ अपूर्ण तक लिखा है.) बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नो क० न कल्पै नि०; अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण. १०६४४९ (+) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र सह सर्वार्थसिद्धिवृत्ति की भाषाटीका, अपूर्ण, वि. १८४६, माघ शुक्ल, १३, गुरुवार, श्रेष्ठ,
पृ. १८३-२(११३*,१३२*)+५(१,११०,११२,१३१,१७८)=१८६, प्रले. श्राव. माणिकचंद मालु; अन्य. श्राव. मोतिलाल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. यह प्रत १८४२ आषाढ़ सुद-७ मंगलवार मोतिलालजी के द्वारा लिखित प्रत की प्रतिलिपि है., संशोधित., जैदे., (२७.५४१४, १२-१६५३०-३५).
तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: मोक्षमार्गस्य नेतारं; अंति: बहुतत्त्वतः साध्याः, अध्याय-१०, संपूर्ण. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-सर्वार्थसिद्धिवृत्ति की भाषाटीका, श्राव. देवीदास खंडेलवाल, पुहि., गद्य, आदि: अहं
उमास्वाति मुनिश्वर; अंति: सरधान अंगीकार किया, संपूर्ण. १०६४५० (+) योगचिंतामणि सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९५५, वैशाख शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १६९-७(१५३ से १५९)=१६२,
ले.स्थल. सुजानगढ, प्रले. मु. चुन्नीलाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४१३.५, ७४२९-३३).
योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: यत्र वित्रासमायांति; अंति: योगचिंतामणिश्चिरम, __ अध्याय-८, (पू.वि. कर्मविपाक प्रकरण के प्रारंभ का पाठ अपूर्ण लिखकर छोड दिया है.)
योगचिंतामणि-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम ग्रंथकर्ता ईश्वर को; अंति: प्रकर्ण नाम अष्टमोध्याय. १०६४५१ (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२०+१(१०६)=१२१, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. हुंडी:ज्ञा०.८०., संशोधित., जैदे., (२६४१४, ७-८४३६).
ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ ___ अध्याय-८ सूत्र-८२ अपूर्ण तक है.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: (-).
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