Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 24
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 402
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ www.kobatirth.org ३८७ जिनचतुर्विंशतिका टीका, जै.क. आशाधर भट्ट, सं., गद्य, आदि (-); अति: र्यस्य धिन्वंति वाचः, (वि. लेशमात्र टीका है.) " १०५७८० (+) पाक्षिक अतिचार व चित्रसंभूत सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पू. ६, कुल पे. २, प्रले. पं. हेतसागर गणि पठ. मु. मनोहरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५.५४११, १५४४५) १. पे. नाम. पाक्षिक अतिचार, पृ. १अ- ६अ, संपूर्ण. साधुपाक्षिकअतिचार-मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि चरणं; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २. पे. नाम. चित्रसंभूत सज्झाय, पृ. ६अ -६आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चित्र कहे ब्रह्मराय; अंति: भणै ते सीवपद वरसी हो, गाथा-२०. १०५७८४ (+) गुणकरंडकगुणावली चरित्र, संपूर्ण, वि. १८३८, पौष शुक्ल, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १९, ले. स्थल. खीचंद, प्र. सा. नाथया (गुरु सा. गुमानाजी): गुपि. सा. गुमानाजी (गुरु सा. चनणा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी : गुणकरसेठ.. संशोधित., जैदे., (२५X११, १६x४१). गुणकरंडकगुणावलि चौपाई, मु. दीपचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७५७, आदि संपति सुखदायक सरस अंति आवै थिर संपत जस थावै जी, ढाल २८, गाथा- १६०३. १०५७८५. माधवानल चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १७, जैये. (२५x११, १०x२८-३१). माधवानल चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६१६, आदि देवि सरसति देवि, अंति (अपठनीय), गाथा - ५५२. १०५७८६. (१) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र सह भावार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३०-७ (१ से ५, १८, २९) २३. पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे. (२४.५x१०.५, १३३०-३६). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक "" देववंदन - पुक्खरवरदी सूत्र से देसावगासिक पचक्खाण अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय- भावार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १०५७८७ (#) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २८-२४ (१ से २२, २६ से २७) = ४, प्र. वि. हुंडी : उत्तराधिन ०., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६ १०.५, ९४३९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि (-) अति (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. अध्ययन- १४ गाथा-३६ अपूर्ण से अध्ययन १७ गाथा-४ तक व गाथा - ११ अपूर्ण से १३ अपूर्ण तक हैं.) १०५७९३. षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., । (२८x१३, ९४४५). , आवकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाण; अति: (-). (पू.वि. संसारदावानल स्तुति-गाथा- २ तक है.) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय का बालावबोध, पं. हेमहंस गणि, मा.गु., गद्य, वि. १५०१, आदि (१) श्रेयांसि श्रीमहावीर, (२) नमो अर्हद्भ्यः; अंति: (-). , १०५७९४. (+) १२ भावना सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पू. ५. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६.५X१३, ११X३१). १२ भावना सज्झाय-बृहत्, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पासजिणेसर पाय नमी, अंति: (-), (पू.वि. ढाल ७ दोहा १ अपूर्ण तक है.) १०५७९५ (+) श्रीपाल चरित्र, अपूर्ण वि. १९११ माघ कृष्ण ७, श्रेष्ठ, पृ. ८७-३ (२ से ४)=८४, ले.स्थल. भीलैडानगर, प्रले. पंन्या. दोलतसोभाग्य; अन्य. श्राव. चुनीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. वे., (२७४१२.५, ९४३४). For Private and Personal Use Only श्रीपाल चरित्र, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीरप्रभु देव रच्यौ; अंति: सिद्धचक्र को अधिकार जाणवौ, (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. धर्म उपवेश प्रसंग अपूर्ण से मयणासुंदरी विवाह प्रसंग अपूर्ण तक है.)

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