Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 24
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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४३५
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४
जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: किसही की भगति कियै हित; अंति: द्यानत० कहा कीधो नभ शूल, गाथा-११. २४७. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३१अ-१३१आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: परमेसर की कैसी रीति मोहि; अंति: दर पर न ज्यौ चिद्रूप, गाथा-६. २४८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३१आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: एक ब्रह्म तिहूं लोक मझार; अंति: द्यानत करम कट शिव जाहि, गाथा-६. २४९. पे. नाम. दोष कौतुक पद, पृ. १३१आ, संपूर्ण.. साधारणजिन पद-दोषकौतुक, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: त्रिभवन मैं नामिकर करुना; अंति: द्यानत० सरन
तिहारी पामी, गाथा-३. २५०. पे. नाम. नेमराजिमति पद, पृ. १३१आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: सुन री सखी जहाँ नेम गए; अंति: द्यानत० आताप वुझावो री, गाथा-३. २५१. पे. नाम. नेमराजिमति पद, पृ. १३१आ-१३२अ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: तजि जुग ए पिय मोहि अनाहक; अंति: द्यानत० चलाय करो रे री, गाथा-५. २५२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद-गाथा १ से २, पृ. १३२अ, संपूर्ण.
आध्यात्मिक पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: हमारे इह दिन यौँ ही गए; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २५३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३२अ, संपूर्ण..
जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: द्यानत जे करिहैं करुना; अंति: द्यानत० भवन डोलन हारा, गाथा-४. २५४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १३२अ-१३२आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी
औपदेशिक सज्झाय-शिक्षा, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: जीवा ते मेरी सार न जानी; अंति: करियौ द्यानत
शिक्षा, गाथा-६. २५५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३२आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: मैंनू भावे जी प्रभु चेतन; अंति: द्यानत० पुद्गलसौं कछु हेत, गाथा-२. २५६. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १३२आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: मैं वंदा स्वामी तेरा भव; अंति: द्यानत० दीजै शिवपुर डेरा, गाथा-३. २५७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३२आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: त्यागी त्यागो चेत जी; अंति: तातै भाजै जेहै हाल, गाथा-३. २५८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३२आ-१३३अ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: मानौ मानौ जी चेतन एह विषै; अंति: ज्ञानदिष्ट धर देख चंतिय, गाथा-४. २५९. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३३अ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: दुरगति गमन निवारियौ घरि; अंति: द्यानत० जिह मग चलत है सार, गाथा-३. २६०. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १३३अ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: स्वामी नाभिकुमार हम क्यौ; अंति: द्यानत० अब सरन हमार, गाथा-३. २६१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३३अ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: चेतन मान असाडी वतिया यह; अंति: द्यानत० करुणा आनो छतिया, गाथा-२. २६२. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३३अ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: कब हो मुनवर को व्रतधर हो; अंति: द्यानत० दधि पार उतार हो, गाथा-२. २६३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३३अ-१३३आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आतम अनुभव सार हौ अब जीय; अंति: द्यानत अमर होहि भव पार हौ,
गाथा-२. २६४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३३आ, संपूर्ण.
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