Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 24
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४
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नेमराजमति विवाह पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्म, वि. १८वी, आदि ए री सखी नेमजी की मोह, अंति द्यानत० प्रानही साथ दिखावी, गाथा- ३.
३१५. पे. नाम नेमराजिमति पद पू. १३८अ १३८आ, संपूर्ण
जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मूरत पर वारी रै नेमजिनंद, अंति: द्यानत० ग्यानसुधारस इंद्र, गाथा- ३. ३१६. पे नाम नेमराजिमति पद, पृ. १३८आ, संपूर्ण.
जै.क., द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि अब मोहि तार ले तरि लै नेम; अति द्यानत करी जग तेहू निकार,
गाथा - ३.
३१७. पे नाम, नेमिजिन पद, पू. १३८आ, संपूर्ण.
जै.. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: अब मोहि तार० चहू गति; अंति: द्यानत० भव ग्रीषम तप हार, गाथा-२. ३१८. पे. नाम. नेमिजिन आरती, पृ. १३८आ, संपूर्ण.
जै.क., धानतराय, पुर्हि, पद्य, वि. १८वी, आदि नेम मोह आरती तेरी हो; अंति द्यानत० विनती मेरी हौ, गाथा-२. ३१९. पे नाम पार्श्वजिन पद, पृ. १३८आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: मोह तार लै पारसस्वामी; अति कर द्यानत शिवगामी, गाथा-२. ३२०. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. १३८आ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-दान, जै.क. धानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि दीये दान महासुख पावे, अंति द्यानत० विधि कबहू न आवै, गाथा २.
४३९
३२१. पे नाम औपदेशिक पद, पू. १३८आ-१३९अ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: एरे मेरे मीत चित कहा अब; अंति: खवरदार किन होवै रे, गाथा- ३. ३२२. पे. नाम. नेमराजिमति पद, पृ. १३९अ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: पिया रे नेमसुं प्रेम किया; अंति: द्यानत० कोटिक दान दिया रे, गाथा-३. ३२३. पे नाम. साधारणजिन पद, पृ. १३९अ, संपूर्ण
जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: मोहि तारौ जिनसाहिब जी अति चानत० तुम और न तारणहारी,
गाथा - ३.
३२४. पे नाम. साधारणजिन पद, पू. १३९अ, संपूर्ण.
जै.. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८बी, आदि दास तिहारी हूं मोहि तारी; अंति: धानत ० तुम विन कौन उपाय, गाथा-३३२५. पे. नाम गौतमस्वामी पद, पृ. १३९अ संपूर्ण
जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि गौतमस्वामीजी मोह वाणी तनक; अति द्यानत० वाणी सफल सुहाई,
गाथा - ३.
३२६. पे. नाम महावीरजिन पद, पू. १३९अ, संपूर्ण.
महावीरजिन पद-पावापुरी, जै. क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: देखे धन धन आज पावापुर; अंति: ध्यावै मिट जावै भव भीर, गाथा - २.
३२७. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १३९अ १३९आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन पद-काशीमंडन, श्राव. मोतीराम, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: धन धन काशी थानक पारसनाथ; अंतिः मोतीराम ० को दरसन हो है, गाथा- ३.
३२८. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १३९आ, संपूर्ण.
पार्श्वजिन पद-वाराणसी, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: चल पूजा कीजै बनारस मैं; अंति: द्यान वंदे प्रभु के पाई, गाथा ३.
३२९. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पृ. १३९आ, संपूर्ण.
जै.. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि समेदशिखर चल रे जियरा बीस अंति सो पावै सुख अति सियरा गाथा ४. ३३०. पे नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, पू. १३९आ, संपूर्ण,
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