Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 24
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 456
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ साधारणजिन पद, जै.क. द्यानतराय, पुहिं. पद्य वि. १८वी, आदि: प्रभु तुम नैन निगोचर अंति: (-), प्रतिपूर्ण ३४८. पे. नाम. कुंथुजिन पद, पृ. १४१अ, संपूर्ण. जै.. धानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अब मोहि तारि ले कुंधजिनेस, अंतिः द्यानत० मुकतिवधु परमेस, " गाथा - ३. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४९. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १४१अ, संपूर्ण. जै.क. धानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि जाकौ इंद्र अहमिंद भजत चंद, अति आदिनाथ देव द्यानत रखवाल, गाथा-४. ३५०. पे नाम आध्यात्मिक पद, पू. १४९अ संपूर्ण. जै.. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, बि. १८वी, आदि ग्याता सोई सचा वै जिन आतम; अंतिः द्यानत० कहे सदवचाजी, गाथा - ३. ३५९. पे नाम औपदेशिक पद पृ. १४१-१४१ आ. संपूर्ण. जै.. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, बि. १८वी, आदि जग छग मित्र न कोई वैज, अंति द्यानत० साधरमी लोवचो जग, " गाथा-४. ४४१ ३५२. पे नाम औपदेशिक पद, पू. १४१आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-वैराग्य, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: संसार मैं साता नांही वै; अंति: द्यनत० ते सुखदाई वे, गाथा-२. ३५३. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १४१आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: मेरी मेरी करता जनम सब; अंति: विषत्यागी कै जग जीता, गाथा-३. ३५४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १४१आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-साधुसंगत, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: यारी कीयै साधो नाल पारी; अंति: जगावै द्यानत दीनदयाल, गाथा- ३. ३५५. पे नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १४९आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: वै परमादी तै आतम राम न; अंति: द्यानत० पावै समता स्वादी, गाथा - ३. ३५६. पे. नाम साधारणजिन पद, पृ. १४९आ, संपूर्ण. जै.. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, बि. १८वी, आदि भोर उठि तेरो मुख देखो जिन अंति द्यानत० एक हमारी सहेवा, " गाथा-३. י ३५७. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १४१-१४२अ, संपूर्ण. जै. क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: रे नर बिपत्ति मैं धर धीर; अंति: द्यानत० तोर करम जंजीर, गाथा - ३. ३५८. पे. नाम आध्यात्मिक पद, पृ. १४२अ संपूर्ण जै.क. धानतराय, पुहि पद्य वि. १८वी, आदि जिनपद चाहै नांहि कोय; अति द्यानत आप आप समोय, गाथा- ३. " ३५९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १४२अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि लागा आतम रामसी नेला, अंति: धानतः वरसे अनंद मेहरा, गाथा-३. ३६०. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १४२अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अब मोहि तार ले अरु भगवान; अंति: हित कारण द्यानत मेघ समान, गाथा-३. For Private and Personal Use Only ३६१. पे. नाम. जंबुस्वामी पद, पृ. १४२अ, संपूर्ण. जै.क. धानतराय, पुडि., पद्य, वि. १८वी, आदि अरि अरि भज जंबुस्वामी; अति द्यानत० पाकहर पानी रे गाथा-२. ३६२. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १४२अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: भज रे मनवा प्रभु पारस कौं; अंति: चाहै पावै ता रसकौं, गाथा-३. ३६३. पे नाम साधारणजिन पद-गाथा १ से २. पू. १४२-१४२आ, संपूर्ण.

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