Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 24
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 461
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: तुम चेतन हो जिन विषयन संग; अंति: द्यानत० परसौ हेत न हो, गाथा-४. ४२९. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १६८अ, संपूर्ण. नेमराजिमति पद, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: ते कहूं देखे देखे नेम; अंति: द्यानत० धन्नि दिवस धनिवार, गाथा-४. ४३०. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १६८अ-१६८आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद-आत्मनिंदा, जै.क. द्यानतराय, पहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: कौन काम मैने कीनो अब लीनो; अंति: द्यानत० जोति प्रकाश हौ, गाथा-४. ४३१. पे. नाम. नेमराजिमति होरी पद, पृ. १६८आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पहिं., पद्य, आदि: नेमीश्वर खेलन चले रंग हो; अंति: बनाय रंग हो हो होरी, गाथा-४. ४३२. पे. नाम. नेमराजिमति होरी पद, पृ. १६८आ, संपूर्ण.. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ग्यान गुलाल सुहावना रंग; अंति: द्यानत० रंग हो हो होरी, गाथा-६. ४३३. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १६८आ, संपूर्ण.. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: सोई ग्यान सुधारस पीवै; अंति: द्यानत० चेतन जोति निहारी, गाथा-६. ४३४. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १६८आ-१६९अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: हो आतम अनुभौ कीजिये यह; अंति: द्यानत० मुकति मझार हौ, गाथा-८. ४३५. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १६९अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जानौ पूरा ग्याता सौई रागी; अंति: द्यानत० ताही सौं लौ लाई, गाथा-४. ४३६. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १६९अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रभु जी का मोह फिकर अपार; अंति: है ज्यौं बने त्यौं त्यार, गाथा-४. ४३७. पे. नाम, बाणी संख्या दोहा, पृ. १६९अ-१७३अ, संपूर्ण. जिनवाणीसंख्या दोहा, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: वंदौ वाणी बरन युग बरग; अंति: द्यानत० घट पट धोखा नाहि, दोहा-११२. ४३८. पे. नाम. आचार्य आरती-३६ गणगर्भित, पृ. १७३अ-१७३आ, संपूर्ण. आचार्यपद आरती-३६ गुणगर्भित, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: पंचाचार छत्तीस गुन सात; अंति: द्यानत० मोह धूर जर जाय, गाथा-११. ४३९. पे. नाम. उपाध्याय आरती-२५ गुणगर्भित, पृ. १७३आ-१७४अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: ग्यारै अंग वखान चौदे पूरव; अंति: द्यानत० ग्यान भ्रम नाही, गाथा-२०. ४४०. पे. नाम. विरागछत्तीसी, पृ. १७४अ-१७५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: अजितनाथ पद वंदि कै कहुं; अंति: द्यानतराय पढो सबनि सुखरास, गाथा-३६. ४४१. पे. नाम. सहजसिद्ध अष्टक, पृ. १७५आ, संपूर्ण. ___ सहजसिद्धाष्टक, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: परम पूज परमातमा पूजक चेतन; अंति: सेव सब द्यानत एक समाध, गाथा-११. ४४२. पे. नाम. सिद्धपद आरती, पृ. १७५आ-१७६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आठ करम विन सिद्ध है आठौं; अंति: द्यानत० एकमेक सेहो रहे, गाथा-९. ४४३. पे. नाम. पूर्णपंचाशिका, पृ. १७६आ-१८१अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only

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