Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 24
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४
४५५ चमत्कारचिंतामणि-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जन्मपत्रीने विषे जो ग्रह; अंति: गुह्य स्थानक पीडा सदा करइ. १०६१६४. विवाहपडल का पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., अ., (२९.५४१५.५, १५४३९-४५).
विवाहपडल-पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी पद वंदी करी; अंति: (-), (पू.वि. वरवधु गुण
मेलापक विचार अपूर्ण तक है.) १०६१७०. भक्तामर स्तोत्र सह यंत्र व मंत्राम्नाय विधि, संपूर्ण, वि. २०वी कृष्ण, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. ४८, ले.स्थल. गढडा, प्रले. श्राव. पोपट खीमचंद शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:भक्ताम., अ., (२७.५४१५, १२-१५४२२-५०).
भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४८. भक्तामर स्तोत्र-यंत्र, अज्ञा., यं., आदिः (-); अंति: (-), अज्ञात-४८.
भक्तामर स्तोत्र-मंत्राम्नाय, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं अहणमो; अंति: उपरि ऋद्धि मंत्रवेष्टतो. १०६१७१. () हरिवंशपराण की भाषाटीका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४९-३४(१ से २४,२६,४० से ४८)=१५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी:ह.भा., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१६.५, १०x२६-३०). हरिवंशपुराण-भाषा, श्राव. खुशालचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७८०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. संधि-६ गाथा-२२
अपूर्ण से संधि-९ गाथा-७९ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) १०६१७२. पंचकल्याणक पूजा-२४ जिन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२०.५४१६.५, १०x१६-१९). पंचकल्याणक पूजा-२४ जिन, जै.क. वृंदावन धर्मचंद अग्रवाल, पुहिं., पद्य, वि. १८७५, आदि: बंदौ पांचो परमगुरु;
अंति: (-), (पू.वि. पार्श्वनाथ सप्तमोक्षकल्याणक की जयमाला छंद का दोहा-९ अपूर्ण तक है.) १०६१७८. (#) श्रीपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. १८२५, श्रावण कृष्ण, १२ अधिकतिथि, सोमवार, मध्यम, पृ. ६७-३६(१ से ३६)=३१,
ले.स्थल. मोरा, प्रले. मु. रामचंद ऋषि (गुरु मु. रत्नसिंहजी ऋषि, विजयगच्छ); पठ. मु. हरचंद (गुरु मु. रामचंद ऋषि, विजयगच्छ); गुपि. मु. रत्नसिंहजी ऋषि (गुरु मु. लीलापति ऋषि, विजयगच्छ); मु. लीलापति ऋषि (गुरु मु. जसराज ऋषि, विजयगच्छ); मु. जसराज ऋषि (गुरु भट्टा. कल्याणसागरसूरि, विजयगच्छ); भट्टा. कल्याणसागरसूरि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. हुंडी:श्रीपाल च०. श्रीमगरधूजजी विराजयेत्., मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (४२६) यादृशं पुस्तकं दष्टं, (६१८) जलाद रक्षेत् स्थलाद रक्षेत्, जैदे., (३१x१४.५, १८४३९).
श्रीपाल चरित्र, जै.क. परिमल्ल रामदास, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२०५ अपूर्ण से है.) १०६१८३. (+) नपपद पूजा, अपूर्ण, वि. १९३१, माघ शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, ले.स्थल. उजमणा, प्रले. वसंतराम माणकचंद
भोजक; लिख. श्राव. गोकलभाई मूलचंद पारेख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीकल्याणपार्श्व प्रसादे. श्रीशांतिनाथ प्रसादे., संशोधित., दे., (२८x१५, १३४३७-४०). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: कोई नये न अधूरी रे, पूजा-९,
(पू.वि. प्रथम अरिहंत पूजा ढाल-गाथा २ अपूर्ण से हैं.) १०६१८५ (+) चौइसतिर्थंकर पूजन विधान, संपूर्ण, वि. १९०८, भाद्रपद शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. १२२, ले.स्थल. बुंदी, प्रले. जमनालाल ब्राह्मण, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:चौ०. श्रीसांतनाथ०., संशोधित., दे., (२७X१५, ७X३१). २४ जिन पूजा, श्राव. रामचंद्र चौधरी, पुहिं., पद्य, वि. १८५४, आदि: सिद्धि बुद्धि दायक; अंति: उनमानसुं येकसैं सषष्ट
जान, पूजा-२४, ग्रं. १६००. १०६१८७. (+#) हरिवंशपुराण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३३८-३२३(१ से ३०८,३१० से ३२१,३२८ से ३२९,३३३)=१५, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८x१४.५, ९४२०-२५).
हरिवंशपुराण, मु. जिनदास ब्रह्मचारी, सं., पद्य, वि. १६वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. सर्ग-२५ व २६ अपूर्ण हैं.) १०६१९०. प्रश्नोत्तर माला, संपूर्ण, वि. १९५७, पौष कृष्ण, ३, रविवार, मध्यम, पृ. ३४, अन्य. श्राव. नीहालचंद नेमिचंद (पिता
श्राव. जडावबाई नेमिचंद); श्राव. जडावबाई नेमिचंद; श्राव. हीरालाल चौहौडी साहा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२८x१४.५, १२४४२).
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