Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 24
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 459
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आत्मगीता, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: आतम महि बूब पार देख्या; अंति: विकार टार आप देख, गाथा-७. ३९३. पे. नाम. देवगुरुशास्त्र की आरती, पृ. १५८अ, संपूर्ण. देवगुरुशास्त्र आरती, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: देव शास्त्र गुर रतन सुभ; अंति: सरधावान अजर अमर सूख भोगवै, गाथा-८. ३९४. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति-८ छंदगणगर्भित, पृ. १५८अ-१५८आ, संपूर्ण.. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: वरधमान सन्मति महावीर आतम; अंति: भेद कहांलौ कहि सकै, गाथा-११. ३९५. पे. नाम. धर्मचाह गीत, पृ. १५८आ-१५९आ, संपूर्ण. आराधना पाठ, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: मैं देव निति अरहंत चाहौं; अंति: द्यानत० चरण की दीजिये, गाथा-८, (वि. गाथाक्रम भिन्न है.) ३९६. पे. नाम, पल्लपचीसी, पृ. १५९आ-१६१अ, संपूर्ण. पल्लपच्चीसी, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: कलप अनंतानंतलौ रूल्यौ जीव; अंति: द्यानत० लीज्यौ संत सुधार, गाथा-२५. ३९७. पे. नाम. षटगुणीहानिवृद्धि दोहा, पृ. १६१अ-१६३अ, संपूर्ण. ६गुण वृद्धिहानि दोहे, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: संख असंख अनंतगुण भाग; अंति: कथन सब कथन निमै सिरदार, गाथा-२०. ३९८. पे. नाम. आदिनाथजी की स्तुति, पृ. १६३अ-१६४अ, संपूर्ण. आदिजिन रेखता, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: तुम आदिनाथ स्वामी; अंति: द्यानत को याद कीजै, गाथा-३६. ३९९. पे. नाम. शिक्षापंचाशिका, पृ. १६४अ-१६५आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: राग विरोध विमोह सब भमै; अंति: द्यानत० सब जन कौं सुखदाय, गाथा-५०. ४००. पे. नाम. सुपार्श्वजिन पद, पृ. १६५आ, संपूर्ण. मु. द्यानत, पुहि., पद्य, आदि: प्रभुजी प्रभु सुपास; अंति: देव हो द्यानत को सुखकार, गाथा-४. ४०१. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी पद, पृ. १६५आ-१६६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: नगर मे होरी हो रही; अंति: जिनस्वामी तुम० सिक्षा दौ, गाथा-३. ४०२. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी पद, पृ. १६६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पहिं., पद्य, आदि: खेलौ गावोरी आए चेतनराय; अंति: द्यानत० सखी भई बहु भाई, गाथा-४. ४०३. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी पद, पृ. १६६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: पिय विन कैसे खेलो होरी; अंति: द्यानत० सुमति कहै कर जोडी, गाथा-३. ४०४. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी पद, पृ. १६६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: भली भइ यह होरी आइ आए; अंति: पायौ सो वरन्यो नहि जाई, गाथा-४. ४०५. पे. नाम. आध्यात्मिक होरी पद, पृ. १६६अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: होरी आई आजि रंग भरी; अंति: द्यानत० प्रभु दया करी हैं, गाथा-४. ४०६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १६६अ, संपूर्ण.. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: दरसन तेरा मैन भावै तुम; अंति: देखै ही वनि आवै, गाथा-४. ४०७. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १६६अ-१६६आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: री मेरे घट ग्यान घना; अंति: द्यानत० पावस मोहि भयो री, गाथा-४. ४०८. पे. नाम. साधारणजिन पद, प. १६६आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पहिं., पद्य, आदि: हो स्वामी जगति जलधि; अंति: भाखै त ही तारन हारौ, गाथा-४. ४०९. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १६६आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: पायो जी सुख आतम लखि कै; अंति: द्यानत० सुधारस चख के, गाथा-४. For Private and Personal Use Only

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