Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 24
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: जिनराय कौ पाय सदा सरन; अंति: द्यानत० लागत भागत मरन,
गाथा-२. २९७. पे. नाम, औपदेशिक पद, पृ. १३६आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परमारथ पंथ सदा पकरो रे; अंति: द्यानत सुधा रस पान करो रे, गाथा-२. २९८. पे. नाम. हस्तिनापुरतीर्थ पद, पृ. १३६आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: हथनापुर वंदन जाइ पई; अंति: द्यानत० गुनलौ लहियै हौ, गाथा-२. २९९. पे. नाम. नेमिजिन पद, प. १३६आ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुरनर सुखदाई गिरनारि चलौ; अंति: फलदाता द्यानत सीख बताई,
गाथा-२. ३००.पे. नाम. मुनिध्यान पद, पृ. १३६आ, संपूर्ण..
जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: भाई धनि मुनि ध्यान लगाय; अंति: द्यानत रहै है निज काजै, गाथा-२. ३०१. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३६आ-१३७अ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: निरविकलप जोति प्रकाश रही; अंति: द्यानत० जोरे साधु लही, गाथा-२. ३०२. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३७अ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: अनहद शबद सदा सुन रे; अंति: द्यानत० नांहि करम धुनि रे, गाथा-२. ३०३. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १३७अ, संपूर्ण. ___ जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: गिरिनारि पै नेम विराजत है; अंति: द्यानत० बहुत उपराजत है, गाथा-२. ३०४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १३७अ, संपूर्ण,
जै.क. मानसिंह, पुहिं., पद्य, आदि: मैं तो आपको आप जाना त्याग; अंति: जपत सेवक सेवदह एकमना, गाथा-२. ३०५. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३७अ, संपूर्ण. जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जानौ धनसौ धनसौ धीर वीर; अंति: द्यानत० संत भव उदिधि तीर,
गाथा-३. ३०६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३७अ-१३७आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जिन जपि जिन जप जीवरा; अंति: द्यानत० भक्ति नीर सीयरा, गाथा-३. ३०७. पे. नाम. महावीरजिन पद, प. १३७आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: महावीर महावीर जीवा जीव; अंति: द्यानत भजन० दोष न रहै, गाथा-४. ३०८. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३७आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ग्यान गेय मांहि नांहि गेय; अंति: द्यानत जब आप अप रट है, गाथा-४. ३०९. पे. नाम, आध्यात्मिक पद, पृ. १३७आ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: चाहत है सुखपै न गाहत है; अंति: द्यानत० की चतुराई वतिया, गाथा-४. ३१०. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १३७आ-१३८अ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: देख्यौ नाभिनंदन जगत वंदन; अंति: द्यानत० आन पायन परत, गाथा-४. ३११. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३८अ, संपूर्ण.
औपदेशिक पद-मोह, जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: पिया वैराग लेत है किसमिस; अंति: द्यानत० सो
विधि मोहि बताय, गाथा-२. ३१२. पे. नाम. नेमराजिमति पद, पृ. १३८अ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, आदि: पिया वैराग लेत है किसमिस; अंति: द्यानत० कृपा करे निज ठाउ, गाथा-३. ३१३. पे. नाम, नेमराजिमति पद, पृ. १३८अ, संपूर्ण.
जै.क. द्यानतराय, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: नेम गए किह ठाउं दिल मैं; अंति: द्यानत रहौ प्रभु पाउनिमां, गाथा-३. ३१४. पे. नाम. नेमराजिमति पद, पृ. १३८अ, संपूर्ण.
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