Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 24
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६ कारणव्रत कथा, मु. ज्ञानसागर, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिनवर चौवीसौ नमू; अंति: ब्रह्म ग्यानसागर कहै सार,
गाथा-३४. ४. पे. नाम. आकाशपंचमीव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. १०आ-१४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:आका.व्र.
आकाशपंचमीव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहि., पद्य, वि. १७८५, आदि: नाभिराय कौ नंदवर यशस्वती;
___अंति: पूरन भइ कथा सुखाकर होय, गाथा-७४. ५. पे. नाम. चंदनषष्ठिव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. १४अ-१५आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:चंदन.व. चंदनषष्ठिव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: जिनपद वंदौ दुति ससि जे; अंति: खुस्याल० वीतराग
गुण गाईये, गाथा-२६. ६. पे. नाम. अनंतचतुर्दशीव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. १५आ-१९अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:अनं०.७०.
अनंतव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: परमातम परविष्टवर ताहि नमु; अंति: लै खुस्याल भाखि
करि मानजू.
७. पे. नाम. रतनत्रयव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. १९अ-२४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:रत्न०.७०. रत्नत्रयविधान कथानक-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: चरण जिनेश्वर के नमू; अंति: की कथा भाषा करी
विचार, गाथा-१०६. ८. पे. नाम. निर्दोषसप्तमीव्रत कथा, पृ. २४आ-२६आ, संपूर्ण, पे.वि. हंडी:निर्दो.व्र०.
मु. ज्ञानसागर, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिनचरण कमल अनुसार; अंति: ब्रह्म ग्यानसागर इम कहै, गाथा-४१. ९. पे. नाम. सुंगधदशमीव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. २६आ-३३आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:सुगंध.व. सुगंधदशमीव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: पंच परम गुरु वंदन करूं ता; अंति: सुखित खुस्याल
अपार, गाथा-१४२. १०.पे. नाम. सप्तपरमस्थानव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. ३३आ-३७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पर०.७०. सप्तमपरमस्थानविधान कथानक-पद्यानुवाद, म. खस्याल, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिनवर प्रणमं सुधभाव; अंति: सदा
विनती करै खुस्याल, गाथा-९४. ११. पे. नाम. मुकुटसप्तमीव्रत कथा का पद्यानुवाद, पृ. ३८अ-४१अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:७०.क०. मुकुटसप्तमीव्रत कथा-पद्यानुवाद, मु. खुस्याल, पुहिं., पद्य, वि. १७८३, आदि: श्रीअरहंत नमं चितलाय सरद; अंति::
पूरन भई वुद्धवार पहचान, गाथा-५२. १०६०२४. (+#) षट्पंचाशिका सह प्रश्नप्रकासिका भाषाटीका, अपूर्ण, वि. १९२०, वैशाख कृष्ण, १४, शुक्रवार, मध्यम,
पृ. ३७-१(९)=३६, ले.स्थल. जोधपुर, प्र.वि. हुंडी:षट्पंचा०., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१८, ११-१४४२३-२८).
षट्पंचाशिका, आ. पृथयशा, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य रविं; अंति: जातिश्च लग्नपात्, अध्याय-७, श्लोक-५६, संपूर्ण. षट्पंचाशिका-प्रश्नप्रकासिका भाषाटीका, वा. जीवणदास, मा.गु., गद्य, आदि: गुर गणेश गवरी गिरा वलि; अंति:
___ शनैश्चर संकर भवानां, (अपूर्ण, पू.वि. धातुजीव मूल चिंता विचार अपूर्ण है.) १०६०२९. हनुमान चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, कार्तिक कृष्ण, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ५०, ले.स्थल, चंद्रापुरी, प्र.वि. हुंडी:ह०.च०., प्र.ले.श्लो. (१४२१) जैसी प्रति देखी हती, दे., (२७.५४१८, १२४२८-३३). हनुमान चरित्र, मु. ब्रह्मराय, पुहिं., पद्य, वि. १६१६, आदि: स्वामी सुव्रतनाथ जिनंद; अंति: नमौं सीस जोरे कर दोई,
गाथा-८५४. १०६०३०. आलाप पद्धति सह भावप्रकासिनी टीका, संपूर्ण, वि. १९६०, कार्तिक कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ५९, प्र.वि. हुंडी:नयचक्र०., दे., (२८x१७.५, ११४४९). आलाप पद्धति, आ. देवसेन, सं., पद्य, वि. १०वी, आदि: गुणानां विस्तरं; अंति: यथा जीवस्य शरीरमिति,
अधिकार-१९, सूत्र-२२८.
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