Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 24
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 320
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.२४ ३०५ १०४९५०. भक्तामर स्तोत्र सह जिनचरित्र भाषावचनिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९३, प्र.वि. हुंडी:भक्ता०च०., जैदे., (३०.५४१७.५, १३४३४-३८). भक्तामर स्तोत्र-टीका व कथा का पद्यानुवाद, श्राव. विनोदीलाल, पुहिं., पद्य, वि. १७४८, आदि: प्रथमपद अरिहंतवरकुं; अंति: विनोदीलाल० कथा सुहावनी, कथा-३८, का.-४८. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: समुपैति लक्ष्मी. १०४९७२. (+) ५६३ जीवभेद, संपूर्ण, वि. १९३५, वैशाख शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. मुमाई, प्रले. पं. हीरचंद्र, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (३१४१५, १४४३८). ५६३ जीवभेद विचार, पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: देवतोका १९८ भेद मनुष्य; अंति: भेद हुवै हां गुरुजी हुवै. १०४९७३. तपउच्चारण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (३१४१४, १२४३०). तपउच्चारण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नाहाण मंडाके नहाण; अंति: गुरु मुखसे पच्चखाण करे. १०४९८६ (+) शारदा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९३५, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. अराईनगर, पठ. विहारीलाल, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:सा०., संशोधित., दे., (३२.५४१४, १०४३९). सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. हेमाचार्य, सं., पद्य, वि. १५२७, आदि: कमलभूतनया मुखपंकजे; अंति: विबुध सुमतिर्हरि, श्लोक-१३. १०४९९० (-#) सेवपचिसी, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (३०x१४, १४४३४). शिवपच्चीसी, जै.क. बनारसीदास, पहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: ब्रभाविलसा विकासधरि; अंति: वानारसी स्वेमहमा स्वेराती, गाथा-२६, (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण से २१ अपूर्ण तक नहीं है.) १०४९९७. (+) पोरसीमान गाथा व पच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (३०x१४, १७४४३). १. पे. नाम, पोरसीमान गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रतिलेखनादि कालमान गाथा, प्रा., पद्य, आदि: आसाढे मासे दपया पोस; अंति: पएपए पुरिमड्ढो होई, गाथा-६. २.पे. नाम, पच्चक्खाण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति पेटांक-१ के बीच में लिखी गई है. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सूरे उग्गए साढपोरिसियं; अंति: गारेणं वोसिरामि, (वि. अंत में १आ पर पोरिसी कालमान कोष्टक दिया गया है.) १०५००२. (+) ऋषभजिन विनति, अपर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, प. ३-२(१ से २)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, ११४२५). आदिजिनविनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदिः (-); अंति: विनय करीने विनवे ए, गाथा-५८, (पू.वि. गाथा-४१ अपूर्ण से है.) १०५००४. (+) आत्मप्रबोध ग्रंथ, अपूर्ण, वि. १८५६, श्रावण शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. १९०-६८(१ से ६८)=१२२, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. पं. शिवचंद्र; पठ. मु. विजयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हुंडी:आत्म०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १२४४६-५०). आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, सं., प+ग., वि. १८३३, आदि: (-); अंति: सद्बोधभक्तिभृता, प्रकाश-४, (पू.वि. प्रकाश-२ से है.) १०५००८. (+#) विषापहार स्तवन, एकीभाव स्तोत्र व २४ जिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. ३, प्रले. मु. मोहन (गुरु मु. जसवंतजी); गुपि. मु. जसवंतजी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १५४४७-५१). १.पे. नाम. विषापहार स्तवन सह अन्वय, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण, वि. १७२५, फाल्गुन शुक्ल, ११, मंगलवार. विषापहार स्तोत्र, जै.क. धनंजय कवि, सं., पद्य, ई. ७वी, आदि: स्वात्मस्थितः सर्वगत; अंति: सुखानि यशोधनंजयं च, __ श्लोक-४०. विषापहार स्तोत्र-अन्वय, सं., गद्य, आदि: पुराण पुरुष युगादिदेव; अंति: एतादृशी भक्तिः ममास्तु. For Private and Personal Use Only

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