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पर तनिक भी बोझा नहीं था ।
* आज का दिन पवित्र है । आज भारत के विभिन्न गांवोतीर्थों में प्रतिष्ठाएं-अंजनशलाकाएं हैं । पंन्यास कीर्तिचन्द्रविजयजी की निश्रा में समेतशिखरजी में अंजनशलाका है ।
आचार्यश्री अरिहंतसिद्धसूरिजी म. की प्रेरणा से समेतशिखरजी में जिनालय का निर्माण हुआ है, परन्तु अंजन करायेंगे पंन्यास कीर्तिचन्द्रविजयजी ।
ऐसे मंगल मुहूर्त पर यह पदवी हुई है । आप पद की गरिमा के अनुरूप पद को उज्जवल करें, स्व के श्रेय के साथ सर्व का श्रेय करें ।
लोक-व्यवहार अलग है, आत्म- जागृति अलग है । आत्मजागृति रख कर ही लोक व्यवहार करें । यह कदापि न भूलें । चाहे जितने मान-अपमान हो, निन्दा - स्तुति हो, परन्तु दोनों के प्रति सन्तुलित रहें, प्रेम- मैत्री - करुणा बनाये रखें, जैसी मैं रख सका हूं ।
इस पद से गौरव नहीं लेना है, परन्तु चतुर्विध संघ का सेवक बनना है ।
चतुर्विध संघ को मेरी सलाह है कि आप जिस दृष्टि से मुझे देखते हैं, उसी दृष्टि से नूतन आचार्य को देखना ।
जितने भी शासन - प्रभावक गणधर भगवन् हो चुके हैं, उन सबकी शक्ति, उन सबका सामर्थ्य इन नूतन आचार्य में उतरे, ऐसे यहां विधि-विधान हुए हैं । विधि के समय उछाले गये चावल (अक्षत) केवल चावल (अक्षत) नहीं थे, हृदय में उद्वेलित भाव थे । वि. संवत् २०२९ में भद्रेश्वर में आचार्य पद-प्रदान के पावन प्रसंग पर चावल नहीं, परन्तु मैं उनमें चतुर्विध संघ के शुभ भाव निहार रहा था ।
जिन जिन को जो जो पद प्राप्त हुए हैं, उन सबको गौरवान्वित करें, शास्त्रों के स्वाध्याय को प्राण बनायें । विनय से विद्या की, विद्या से विवेक की और विवेक से वैराग्य की अभिवृद्धि करे, ताकि चारित्र की सुगन्ध बढ़े तथा वीतरागता की प्राप्ति हो । ये
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कहे कलापूर्णसूरि