Book Title: Jinabhashita 2006 09
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 4
________________ सम्पादकीय पुरातत्त्व कानून और अल्पसंख्यक जैन भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता का सिद्धान्त मानते हुए कहा गया है कि अल्पसंख्यकों को अपने धर्म का पालन करने तथा आराध्य की पूजा अर्चना करने, अपनी परम्परा दर्शन को जीवन में परिणत करने, उनकी पूज्यता अक्षुण्ण बनाये रखने में शासन साथ देगा, सहयोग करेगा। उनकी न्यायप्रियता पर विश्वास कर वे स्वतंत्रता से, निर्बाध, बगैर धर्मान्धता के अपने धर्म, धर्मायतनों, मंदिरों, तीर्थक्षेत्रों का संरक्षण, संवर्धन एवं पूज्यता सुरक्षित रख सकेंगे। उनका सरकारीकरण न होगा। किन्तु स्थिति विपरीत है। जैन समाज के अनेकानेक प्रकरण आज भी विचाराधीन हैं, जिनमें शासन मौन है। बहुसंख्यक समाज ने हमारे धर्मायतनों पर अतिक्रमण किये, कब्जा किया तथा हमारी अपनी धार्मिक मान्यता पूजापरम्परा में न केवल बाधा डाली, अपितु आराधना में भी विघ्न उपस्थित किए, आक्रमण किये। हमने इतिहास में बहुत भोगा और रोया है। अब हमें सजग होकर, सामाजिक एकता से सम्पन्न होकर कुछ कर सकने की क्षमता से ऐसी कानून-व्यवस्था बनाने के लिए प्रयत्न करना होगा, ताकि भविष्य में आगामी पीढ़ियाँ अपनी धार्मिक आस्था-पद्धति-परंपरा का निर्बाध पालन कर सकें। आज भारतीय शासन अपने को धर्मनिरपेक्ष राज्य कहता है, जिसका अर्थ सर्वधर्म समभाव है। अल्पसंख्यक होने के कारण यदि हमें धर्मक्षेत्र में पूर्ण सुरक्षा का कवच मिला है, तो हमें अपने धर्मपालन की पूर्ण स्वतंत्रता हो, हम अपनी संस्कृति की रक्षा कर सकें, अपने धर्मायतनों मंदिरों मूर्तियों का स्वयं संरक्षण कर अपनी पूजापद्धति, परंपरा का निर्बाध पालन कर सकें, हमें हमारा संवैधानिक अधिकार (जो भारतीय अनुच्छेद 25 से 30 में दिये हैं) मिले। हमें कानून प्रदत्त संरक्षणों द्वारा अपनी धार्मिक संस्थाओं, मंदिरों एवं तीर्थस्थलों पर कानूनी प्रक्रिया द्वारा अधिकार प्राप्त करना एवं नियंत्रण करना तथा उनके सुरक्षित रख-रखाव हेतु प्रयासरत रहना है। म.प्र. में जैन अल्पसंख्यक हैं, उन्हें संविधान से प्राप्त अधिकारों में कहा गया है कि - 1. जैनधर्मावलंबी अपनी प्राचीन संस्कृति, पुरातत्त्व एवं धर्मायतनों का संरक्षण कर सकेंगे। 2. जैन मंदिरों, तीर्थस्थलों इत्यादि के प्रबंध की जिम्मेदारी जैन समुदाय के हाथ में होगी। 3. कानून द्वारा प्रदत्त संरक्षणों द्वारा अपनी धार्मिक संस्थाओं, ट्रस्टों, तीर्थस्थलों पर कानूनी प्रक्रिया द्वारा अधिकार प्राप्त करना, नियंत्रण करना तथा उसके सुरक्षित रखरखाव हेतु प्रयासरत रहना । 4. जैन धर्मावलंबियों के धार्मिक स्थल, संस्थाओं, मंदिरों, तीर्थक्षेत्रों एवं ट्रस्टों का सरकारीकरण या अधिग्रहण आदि नहीं किया जा सकेगा, अपितु धार्मिक स्थलों का समुचित विकास एवं सुरक्षा के व्यापक प्रबंध शासन द्वारा भी किए जायेंगे । 5. जैन धर्मावलंबी को बहुसंख्यक समुदाय के द्वारा प्रताड़ित किए जाने की स्थिति में सरकार जैन धर्मावलंबियों की रक्षा करेगी। भारत वर्ष में पुरातत्व विभाग के गठन के 50 वर्षों बाद 1904 में पहला पुरातत्त्वसंबंधी कानून बना, जिसे स्वतंत्रता के बाद भी स्वीकार किया गया, जिसमें बाद में कुछ संशोधन आदि भी हुए। आज ये कानून अल्पसंख्यकों को संविधान के अंतर्गत दिये गये कानूनी अधिकारों का हनन कर रहे हैं। ऐसा लगता है मानो हमारी संस्कृति, धर्मायतनों, मंदिरों एवं तीर्थ स्थानों का सरकारीकरण हो गया है। धर्मनिरपेक्ष राज्य में ये सब कानून संविधान से प्राप्त मौलिक अधिकारों के विरूद्ध जा रहे हैं - अल्पसंख्यक जैन समाज के लिए। अपनी पुरातन संस्कृति, मंदिरों एवं तीर्थों की चिन्ता, प्रबंध, रखरखाव, पूजा हम प्राचीनकाल से करते आ रहे हैं, कर रहे हैं और करते रहेंगे। आज हमें अल्पसंख्यक होने से शासन द्वारा जो विभिन्न प्रकार के संरक्षण दिये हैं, उसमें पुरातत्त्व कानून विरोधभासी है, सहयोगी नहीं विरोधी है । इनका सरकारी नियंत्रण धर्म निरपेक्षता के सिद्धान्त पर कुठाराघात है । या तो धार्मिक स्वतंत्रता हो या धर्म पर सरकारी नियंत्रण । यह कैसी दोमुखी नीति शासन की, यह समझना होगा। वर्तमान पुरातत्त्व में संरक्षण कानून की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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