Book Title: Jinabhashita 2006 09
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 25
________________ मुनि का परिचय, जिनका यह छायाचित्र है, मुझ तक भेज | geographic.com है। यह पत्रिका निम्नांकित पते से प्राप्त सकें, तो कृपा होगी। हो सकती है - National Geographic Society, इसी आलेख के प्रथम एवं द्वितीय भाग क्रमशः "The | PO.Box No.60399 Adventures of Marco Polo" "Marco Polo in | Tsat Tsz Mui Post Office, China" के नाम से क्रमशः इसी पत्रिका के मई एवं जून, Hong Kong 2001 के अंकों में प्रकाशित किए गए है। 30, निशात कालोनी, नेशनल ज्योग्रेफिक की बेबसाईट www.national भोपाल, म.प्र. 362 003 दूरभाष 0755 2555533 और बीमारी नहीं मिटी पं. बसन्त कुमार जैन, शास्त्री चार मरीज एक डॉक्टर के पास गये। ज्यों ही डॉक्टर | कहा - मैं बड़े-बड़े पोस्टर छपवाकर आपकी प्रशंसा के के कक्ष में पहुँचे, डॉक्टर ने उन सबसे आत्मीयता के साथ | प्रचार में मीटिंगें करता रहा और दवा लेने का समय ही नहीं बातें की, उन्हें तुरन्त स्वस्थ हो जाने का आश्वासन मीठे-मीठे | मिला। शब्दों से दिया और प्रत्येक को अलग-अलग दवाएँ देकर डॉक्टर साहब गम्भीर हो गये और बोले- भले समय पर खाने की प्रक्रिया बता दी और कहा कि एक माह | आदमियो! बीमारी मिटाने के लिये दवा का भली प्रकार पश्चात् आकर पुनः बीमारी की जाँच करा लेना। चारों प्रसन्न प्रयोग किया जाता है, उसे खाया जाता है। मेरा प्रचार, मेरी मन से अपने अपने घर चले गये। प्रशंसा, मेरी पुस्तकें छपवाने से बीमारी नहीं जाने वाली। एक माह बाद वे चारों पुनः जाँच कराने आये।डाँक्टर | चारों अपनी मूर्खता पर रोने लगे। ने उनको देखा तो चकित रह गया। डॉक्टर बोला - तुम तो कहीं ऐसी ही मूर्खता हम तो नहीं कर रहे ? हमें पहले से भी ज्यादा बीमार हो गये---ऐसा क्यों हुआ ? | सांसारिक काम, क्रोध, लोभ, मोह और मायाचारी की बीमारी डॉक्टर ने प्रत्येक से पूछा - आपने दवा किस प्रकार ली ?| लगी है और हम भी समय पाकर, हमारा सही इलाज करने पहला मरीज कहने लगा - डॉक्टर साहब! मैं तो आपसे उस | वाले डॉक्टर - महान सन्तजनों के पास जाते हैं और उनका दिन ऐसा प्रभावित हुआ कि रोजाना माला हाथ में लेकर - | उपदेश, प्रवचन सुनकर वे वचनामृत आचरण में लाभ के "ऊँ डॉक्टराय नमः" की ग्यारह ग्यारह मालाएँ फेरने लगा | बजाय - केवल प्रसार-प्रचार तक ही सीमित रख देते है। और इस प्रकार एक माह पूरा हो गया। डॉक्टर ने पूछा-तो तब बताइये हमारी भी यह सांसारिक भौतिकी बीमारियाँ उस दवा का क्या हुआ? मरीज ने उत्तर दिया-डॉक्टर साहब। मिटेंगी कैसे ? प्रवचन सुनते-सुनते, उपदेश सुनते-सुनते किन्हीं दवा लेने का तो समय ही नहीं मिला। भक्तों की तो उम्र साठ-सत्तर वर्ष तक की भी हो गई और __ डॉक्टर के द्वारा दसरे मरीज से दवा न लेने का कारण | बीमारी मिटी ही नहीं। सन्तजनों के प्रवचनों के लिये आकर्षक पूछा गया तो उसने विनम्र होकर उत्तर दिया - डॉक्टर साहब! पाण्डाल भी सजाये, ध्वनि प्रसारक यंत्र भी अनेक लगाये, आप धन्य है. आप जैसा व्यवहारिक प्रभावक डॉक्टर मैंने | जय जयकारे भी बहुत किये, पोस्टर ओर पुस्तकें, कैसेट, कभी देखा ही नहीं था। आपको देखा तो आपके बारे में | सी.डी. भी बहुत बनवाईं, किन्तु बीमारी मिटी ही नहीं। आपके गुणों से भरी पुस्तकें छपवाईं, उनको वितरित किया | लोभ, लालच, काम-वासनाओं की लिप्सा, अनैतिक व्यवहार, और इस प्रकार एक महिना पूरा हो गया। सच मानिये डॉक्टर आपसी मनमुटाव, अधिकारों का अभिमान ये सारी बीमारियाँ साहब ! दवा लेने का तो समय ही नहीं मिला। घर कर गईं और बढ़ती ही जा रही हैं। शायद पर्युषण पर्व के डॉक्टर के द्वारा तीसरे और चौथे मरीज से भी जब उपासना भरे वातावरण, संयमाचरण और सन्तजनों के सान्निध्य दवा न लेने का कारण पूछा तो एक ने कहा- डॉक्टर साहब! | से मिट सकें। इसी का इन्तजार है। घर जाकर आपके गुणों का प्रचार करने में लगा रहा। दूसरे ने शिवाड़ (राज.) सितम्बर 2006 जिनभाषित 23 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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