Book Title: Jinabhashita 2006 09
Author(s): Ratanchand Jain
Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra

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Page 7
________________ नहीं है। अगर हमें जो प्राप्त है हम उसमें सन्तुष्ट होंगे और जो हमें प्राप्त नहीं है उसके लिए सत्प्रयास करेंगे तो हमारी प्रगति नहीं रुकेगी। टॉलस्टॉय ने एक कहानी लिखी है, बहुत प्रसिद्ध है'हाउ मच लैण्ड डज ए मैन रिक्वायर'? बहुत प्रसिद्ध कथा है, हिन्दी में भी ट्रान्सलेशन (अनुवाद) किया है उसका, आपने भी पढ़ी होगी एक व्यक्ति को किसी ने वरदान दिया कि तुम एक दिन सुबह सूरज उगने से लेकर अस्त होने तक जितनी दूरी तय कर वापस लौटोगे, उतनी जगह / ज़मीन तुम्हारी हो जायेगीजाओ तुम्हें वरदान देता हूँ। तो उसने सूरज की पहली किरण साथ दोड़ना शुरू किया और बेतहाशा दौड़ता रहा। जहाँ से प्रारम्भ किया था वहीं पर लौटना था शाम ढलने से पहले। जहाँ लाइन खींची थी ( जहाँ से प्रारम्भ किया था) उससे मुश्किल से दो-चार कदम पहले वह इतना थक गया कि निढाल होकर गिर पड़ा। गिरा तो फिर उठ नहीं सका। वहीं प्राणान्त हो गया उसका। उसकी क़ब्र पर लिखा गया कि'हाउ मच लैण्ड डज ए मैन रिक्वायर' (एक व्यक्ति को कितनी ज़मीन अपेक्षित है? ) कितना चाहिये उसको और कितना है? आखिरी समय इतनी ही (दो गज) ज़मीन तो चाहिये, जब कि वह इस बात के लिए इतना भागता रहा कि उसे सब कुछ मिल जाय लेकिन चाहिये कितना सा ! हमें ये ध्यान में आ जाये कि चाहिये कितना - सा और हम जो प्राप्त करें उसमें आनन्द लें तो हमारे जीवन में निर्मलता आये बिना नहीं रहेगी। थूक दिया। एकनाथ कुछ न बोले। चुपचाप दोबारा नहाने को चले गये। लौटे तो फिर उसने थूक दिया। एकनाथ चुपचाप फिर नहाकर आ गये। उस व्यक्ति ने फिर थूक दिया। ऐसा सौ दफे हुआ । अपने साथ एक-आध दफ़े भी हो जाये तो अपने मन के साथ क्या गुज़रती है? कितना जल्दी मलिन हो जाता हमाना मन, हो जाता कि नहीं! हो जाता है। विचार करना है अपने को। किसी ने जरा-सी कोई बात कह दी कि बस! कई बार तो ऐसे लगने लगता है कि अपन चाबी के खिलौने न हों कि जैसी जितनी चाबी भरी उतने चलने लगे। जैसे ही किसी ने कोई खराब बात कह दी, मन गन्दा हो गया; किसी ने जरा-सी अपने मन की बात कह दी, मन प्रसन्न हो गया, मानो हम दूसरों की भरी हुई चाबी के अनुसार अपना जीवन जीते हैं। क्या ऐसा है? विचार करना चाहिये। एकनाथ फिर भी बिल्कुल शान्त रहे, सौ दफ़े स्नान किया उन्होंने । जिसने थूका था अब उसे तक़लीफ होने लगी। वह एकनाथ से क्षमा माँगने लगा- 'बहुत गलती हो गई, मुझे क्षमा करें।' Jain Education International 'नहीं - नहीं ! मैं तो तुम्हें धन्यवाद देनेवाला था। मैं तो एक ही बार नहाता, फिर इतनी निर्मलता नहीं आती। तुम्हारी वजह से मुझे सौ बार नहाने को मिला। और इतना ही नहीं, मैंने आज समझ लिया कि कोई कितना भी करे, मेरा मन कलुषित नहीं होगा, मलिन नहीं होगा, ऐसा चमकीला बना रहेगा।' एकनाथ ने कहा । क्या हम अपने मन को इस तरह मलिनता से बचाकर चमकीला बनाये रख सकते हैं? दिनभर में ऐसे सैंकड़ों अवसर आते हैं, मानिए एक-आध किसी अवसर पर ही सही, सौ अवसरों पर नहीं, एक अवसर पर तो मन को मलिन नहीं होने दिया, चमकीला बनाये रखा - ऐसा हम कर सकते हैं? जीवन में निर्मलता निर्मलता क्या चीज है? निर्मलता के मायने है- जीवन का चमकीला होना । निर्मलता के मायने है- मन का भीगा होना । निर्मलता के मायने है- जीवन का शुद्ध होना । निर्मलता का मायने है- जीवन का सारगर्भित होना । निर्मलता के मन भीगना मायने है- जीवन का निखालिस होना। इतने सारे मायने हैं पवित्रता के, निर्मलता के । एक-एक को समझ लें, छोटेछोटे उदाहरण से समझ लें तो बात समझ में आ जायेगी कि निर्मल किस तरह होगा ! जब निर्मल होता है तो कितना आनन्द आता है। जब मुझे मलिनताएँ घेरने लगें तो मैं उन्हें नियन्त्रित करूँ- इतना ही करना है हमें । दिनभर में कितने ही मौके आयेंगे जब मुझे लोभ घेरेगा पर मुझे अपने जीवन को चमकीला बनाना है। जीवन कैसे बनता है चमकीला ? सन्त एकनाथ के बारे में मालूम होगा सबको। वे नदी से नहाकर लौट रहे थे, रास्ते में ऊपर से किसी ने उन पर मन का भीग जाना क्या है? इससे भी हमारा मन निर्मल होता है । जितना भीग जाता है उतना निर्मल होता है। हमारा मन । जैनेन्द्रकुमार के जीवन का एक उदाहरण है। जानते हैं जैनेन्द्रकुमार कौन थे? बहुत बड़े साहित्यकार थे 1 अब यंग जनरेशन (युवा पीढ़ी) तो उनको मुश्किल से ही जानती होगी! वे अपने नाम के साथ जैन नहीं लगाते थे, बंद कर दिया था उन्होंने जैन लिखना । फिर भी उन्होंने जीवनभर धर्म को जिया । जीवन के आखिरी समय जब वे पैरालाइज ( लकवे से ग्रस्त ) हो गये, बोलना भी उनको मुश्किल हो गया, तब जो भी उनके पास आता, उसे देखकर उनकी सितम्बर 2006 जिनभाषित 5 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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