Book Title: Jinabhashita 2006 04 05 06 Author(s): Ratanchand Jain Publisher: Sarvoday Jain Vidyapith Agra View full book textPage 3
________________ रजि. नं.UPHIN/2006/16750 अप्रैल, मई, जून 2006 मासिक जिनभाषित वर्ष 5, अङ्क.15 सम्पादक प्रो. रतनचन्द्र जैन अन्तस्तत्त्व पृष्ठ कार्यालय , ए/2, मानसरोवर, शाहपुरा भोपाल-462 039 (म.प्र.) फोन नं. 0755-2424666 सहयोगी सम्पादक पं. मूलचन्द्र लुहाड़िया, (मदनगंज किशनगढ़) पं. रतनलाल बैनाड़ा, आगरा डॉ. शीतलचन्द्र जैन, जयपुर डॉ. श्रेयांस कुमार जैन, बड़ौत. प्रो. वृषभ प्रसाद जैन, लखनऊ डॉ. सुरेन्द्र जैन 'भारती', बुरहानपुर शिरोमणि संरक्षक श्री रतनलाल कंवरलाल पाटनी (आर.के. मार्बल) किशनगढ़ (राज.) आचार्य श्री विद्यासागर जी के दोहे आ.पृ. 2 • वृषभनाथस्तवन, अजितनाथ स्तुति आ.पृ. 3 : मुनि श्री योगसागर जी • मुनि श्री क्षमासागर जी की कविताएँ आ.पृ. 4 अन्तस्तत्त्व • सम्पादकीय : कुण्डलपुर-घटनाक्रम • लेख • कुण्डलपुर में बड़े बाबा और छोटे बाबा : मुनि श्री समतासागर जी • कुण्डलपुर-स्पष्टीकरण : पं. मूलचन्द लुहाड़िया • कुण्डलपुर का करिश्मा : नजीर/ओमप्रकाश • पुरावैभव के सच्चे रक्षक : डॉ. स्नेहरानी जैन • कुण्डलपुर के बड़े बाबा का मूलस्थान..... : ब्र. अमरचन्द्र जैन • बडे बाबा की प्रतिमा का संस्थापन : सुरेश जैन आई.ए.एस. जातिमद सम्यक्त्व का बाधक : स्व. बाबू सूरजभान जी वकील • उद्दिष्ट-मीमांसा : पं. छोटेलाल बरैया • जैन परम्परा में वर्षावास : डॉ. फूलचन्द्र जैन 'प्रेमी' • क्या साकांक्ष पूजा मिथ्यात्व है ? : एक विवेचन : पं. सुनीलकुमार शस्त्री • श्री शान्तिनाथ दि. जैन अतिशय क्षेत्र बजरंगढ़ • जिज्ञासा-समाधान : पं. रतनलाल बैनाड़ा • कविताएँ • भील भोली भावना के गीत गाते : मनोज जैन मधुर • आचार्यश्री विद्यासागर-पूजनम् : मुनि श्री प्रणम्यसागर जी . सिन्धुं क्षमायाः शिरसा नताहम् : डॉ. कुसुम पटोरिया समाचार 45-48 श्री गणेश कुमार राणा, जयपुर प्रकाशक सर्वोदय जैन विद्यापीठ 1/205, प्रोफेसर्स कॉलोनी, आगरा-282002 (उ.प्र.) फोन : 0562-2851428,2852278 सदस्यता शुल्क शिरोमणि संरक्षक 5,00,000 रु. परम संरक्षक 51,000 रु. संरक्षक 5,000 रु. आजीवन 500 रु. वार्षिक 100 रु. एक प्रति 10 रु. सदस्यता शुल्क प्रकाशक को भेजें। 44 लेखक के विचारों से सम्पादक का सहमत होना आवश्यक नहीं है। जिनभाषित से सम्बन्धित समस्त विवादों के लिए न्याय क्षेत्र भोपाल ही मान्य होगा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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