Book Title: Jina Snatra Vidhi
Author(s): Jivdevsuri, Vadivetalsuri, Lalchandra Pandit
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 187
________________ पृष्ठे [ १२६] ग्रन्थद्वयस्य प्रा. सं. पद्यानां पद्य-प्रारम्भः जिण-मज्जणपीढजिण-वंदणचणजिण-सरीर-पडणुच्छलंत-- जिन-भवन-बिम्ब-पूजाणिम्मलम्मि परिवजियणिव्वत्तिय-मजणततश्च संघं गच्छं वा ततः प्रभृत्येव कृतानुकारं ततो यथास्वं वारेषु तद् यदि कृतानुकार तं नस्थि जं अलंघ तवेश ! निग्रन्थगणाग्रगामिनोतह वि य तुह जाणंतओ तिष्ठतु तावदलंकृतिः तुह संगयंग-संगमदंसण-विसुद्ध-तवदेवी तवोपनयताम् धम्माधम्म-फलमत्थि धूमावलिं नियच्छह नागाः फणा-मणि-मयूखनानावणैर्वर्णकैर्गन्ध-लुब्धपणमह घणकम्म-सेल-वजपतत्पद-परिक्रम-क्रम - ० 0 sms Mr Vrrr १४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214