Book Title: Jina Snatra Vidhi
Author(s): Jivdevsuri, Vadivetalsuri, Lalchandra Pandit
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal
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परिशिष्टम् [५] विक्रमीयचतुर्दशशताब्द्या उत्तरार्धे * श्रीजिनप्रभसूरिणोपदर्शिते देवाधिदेव-पूजाविधी
निर्दिष्टानि प्रस्तुतग्रन्थ-पद्यानि ।
**पूया य दुविहा-[१] निच्चा, [२] नेमित्तिया य। तत्थ निच्चा पइदिण-करणिज्जा सा य भणिया। नेमित्तिया पुण अट्ठमिचउद्दसि-कल्लाणतिहि-अठ्ठाहिया-संवच्छ रियाइ-पव-भाविणी । सा य ण्हवण-पहाणा । अओ संपयं ण्हवण-विही दंसिजइ । सा ग सकय भासा-बद्ध-गीइ-कव्व-अज्जया बद्ध-वित्तबहुल त्ति सकयभासाए चेव लिहिज्जइ
तत्र प्रथमं पूर्वोक्तस्नानादिक्रमेण देवगृहं प्रविश्य धौतपोतिकां परिधाय, देवस्य धूपवेलां धूमावली-पुष्पांजलि-लवण-जलारात्रि. कावतारण-मंगलदीपोद्भाबनारूपां कृत्वा, शक्रस्तव भणित्वा, साधूनभिवन्द्य, स्नपन-पीठं प्रक्षाल्य, चन्दनेन तत्र स्वस्तिकं विधाय, पुष्प-वासादिभिश्च संपूज्य, प्रतिमाया अग्रत: स्थित्ग, सविशेषकृत-मुखकोशो 'नमोऽहत्-सिद्धाचार्योपाध्याय-सर्वसाधुभ्यः ' इति भणन-पूर्व ' श्रीमत् पुण्य पवित्रं' [अर्हदभिषेकविधि प. ४१-४८] इत्यादि वृत्त-पंचकं पठित्वा, स्नपनपीठस्योपरि कुसुमांजलिं स्नपनकारः क्षिपेत् । स्नपन काराश्च द्वयादयो द्वात्रिंश दन्ता अधिकाः
जश्रीजिनप्रभसूरि-परिचयो द्रष्टव्योऽस्मत्संकलिते 'श्रीजिनप्रभसूरि अने सुलतान महम्मद ' संज्ञके ग्रन्थे-ला. भ.
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