Book Title: Jina Snatra Vidhi
Author(s): Jivdevsuri, Vadivetalsuri, Lalchandra Pandit
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 193
________________ [१२] इतिहासोपयोगि विशेषनाम पृष्ठे। विशेषनाम जिन-यात्रा १०० पांडुशिला जिन-स्नात्र | पुं(पौ)हरीक (हृद) ८१,८२,८७ जिनाभिषेक ८६-८९ पूर्व विदेह जीवदेव(आचार्य) ७,४१ पूर्वाभोधि (पूर्व समुद्र) तत्त्वादित्य ७६-७९,८८ तिगिछि(महाहृद) ७९-८१,८५ पौंडरीकिणी (बुद्धि देवी) ८६ दधि-जलधि ७३,७४ | प्रभास तीर्थ दिकाल ५५,६४,१०९-११० ब्रह्मा (दिक्पाल) ८०,८१ धवलपुरी ४१ बलि-विधान धृति(विधृति)देवी १०४-१८५,१०९-११० नरकान्ता(नदी) ८१,८२ भारत नाग(दिक्पाल) ५५,६३ मन्दर(मेरु) नारीकान्ता(नदी) ८१.८२ महापद्म (ह्रद) नित(ति) ५५,५६,५९ ७८,७९,८४ निग्रन्थगणाग्रगामिन: (अभिषेक, महापुंडरीक (हृद) ८३ गन्ध, धूप, माल्यादि, भवन,) महाहिमवत् (गिरि) अलंकृति-समर्थन, ९६-१८३ मागध तीर्थ निषध (कुलपर्वत) ७९,८०,८५ यम (समवर्तिन् दिक्पाल) नील (कुलपर्बत) ८०,८१,८६ ५५,५६,५८ पद्म (महाह्रद)७६.७७.८३-८४ रक्ता (नदी) ८२,८३ पद्मा(श्री)देवा ८३-८४ रक्तोदा (नदी) ८२,८३ पश्चिमसमुद्र ८८ | रम्यक (क्षेत्र) ८१,८२ पाणिनीय प्राकृतलक्षण २६ रुक्मि (कुलपर्वत) ८१,८२,८६ ८८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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