Book Title: Jina Snatra Vidhi
Author(s): Jivdevsuri, Vadivetalsuri, Lalchandra Pandit
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 185
________________ १२४] ग्रन्थद्वयम्य प्रा. सं. पद्यानां पृष्ठे क्रमांक: u w V30 MY V V पद्य-प्रारम्भः [पं.] आचार्यजीवदेवस्य आयण्ण-आयण्ण-विसजिया वि आयात किन्नर-नरामरआरत्तिअं निअच्छह आलिंगिओ विरायसि आ स्नात्रपरिसमाप्तेः इति दिगधिप-कीर्तनाभिरक्षा-- इति धन-रत्न-सुवर्ण-स्रग्इति विहत-विपत्-पराक्रम इति शस्त-समस्त-सरित्इदं जितजगत्त्रयइन्द्रमग्नि यमं चैव उअह जिणे मलअंमि व उचितमभिषेककाले उदाररशनागुण उपनयतु भगवंस्ते [पं.] उपमानेन यत् तत्त्वम् उयह कणअच्छविहरे उयह पडिभग्गपसरंउवणेउ मंगलं वो उवणेउ वो सुहाई [पं.] उवमाए य संजुत्तं ___ एवमाघोषणं कृत्वा V my or 20 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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