Book Title: Jina Shashan Ke Samarth Unnayak
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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जिनशासन के समर्थ उन्नायक आन्दोलित हुए अध्यात्म के बीज जीवन में प्रव्रज्या ग्रहण की इच्छा के रूप में अंकुरित होने लगे.
तेरह वर्ष तक मातृभूमि की पवित्र धूल में पलते-बढ़ते लब्धिचंद की छठी कक्षा तक की पढ़ाई सम्पन्न हुई. शिक्षा का दूसरा चरण प्रारंभ होने जा रहा था. कहा है - 'विद्यार्थीनां कुतः सुखं, सुखार्थीनां कुतो विद्या' अर्थात विद्यार्थी के जीवन में सुख नहीं होता और सुख चाहक विद्यार्थी को विद्या प्राप्त नहीं होती. आगे के अध्ययन के लिए माता श्रीमती भवानीदेवी
और अन्य शुभचिन्तक चाहते थे कि इन्हें किसी उत्तम स्थान में शिक्षा दी जाय. राजा श्री निर्मलकुमारसिंहजी नवलखा के अति आग्रह से शिवपुरी के सुविख्यात श्री वीर तत्त्व प्रकाशक मण्डल द्वारा संचालित जैन विद्यालय में आगे की शिक्षा के लिए भेजना तय हुआ. यतिजी महाराज अपना उत्तरदायित्व समझ कर स्वयं आपको साथ लेकर शिवपुरी गये. वहाँ आपके अध्ययन की सुचारु व्यवस्था की गई. महापुरुषों के जीवन में देवांशी तत्त्व होता है. वे कहीं भी जाएँ उनके पुण्य का प्रभाव सर्वत्र छाया बनकर चलता रहता है. यहाँ भी आपको इतना ही प्रेम और आदरभाव प्राप्त हुआ.
शिवपुरी एक मनोरम्य हराभरा जनपद है. सिन्धिया राजाओं का यहाँ शासन चलता था. लाल पत्थरों से बने उनके ऐतिहासिक प्रासाद आज भी दर्शनीय है. यहाँ की पहाड़ियों से निकले लाल पत्थर भवन और मंदिरों के निर्माण हेतु उत्तम माने जाते हैं. कभी दस्यु सम्राट मानसिंह का यह क्षेत्र रहा था. यहाँ से कुछ दूरी पर चम्बल के बीहड़ जंगल आरंभ होते हैं. एक समय था जब शिवपुरी अंग्रेजों का प्रिय शिकारगाह था. उनके बंगले आज भी मौजूद हैं. पर्वत की सुरम्य गोद में हरी-भरी वनराजि से प्राकृतिक सौन्दर्य बिखेरती हुई शिवपुरी जहाँ पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केन्द्र है, वहीं वीर सेनानी तात्या टोपे का स्मारक हर देशवासी का मस्तक गौरवान्वित कर देता है. इन तमाम विशेषताओं के साथ-साथ शिवपुरी एक प्रसिद्ध जैन तीर्थ और विद्यापीठ भी रहा है. किले पर स्थापित प्राचीन विशालकाय जैन मूर्तियाँ गौरवशाली अतीत की साक्षी हैं.
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