Book Title: Jina Shashan Ke Samarth Unnayak
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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जिनशासन के समर्थ उन्नायक दक्षिण की यात्रा पर ___ आचार्य प्रवर की दक्षिण भारत की प्रथम यात्रा ने तो सचमुच ही आपको राष्ट्रसन्त बना दिया. दक्षिण की अपनी ऐतिहासिक यात्रा के दौरान आपने लोक-कल्याण, धर्म-जागरण और स्थानीय जनता की आध्यात्मिक चेतना के विकास व पोषण के लिये अभूतपूर्व कार्य किए.
आपश्री की प्रेरणा से बेंगलोर में जैन संस्कारों से युक्त अंग्रेजी माध्यमवाली स्कूल की स्थापना की गई. दक्षिण भारत ने अनेक महान् साधु-सन्तों का पावन सान्निध्य पाया है. आगे भी उसे विरल प्रतिभाओं का संयोग मिलेगा, परन्तु आचार्यश्री पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज और उनके कार्य अपने आप में विशिष्टताओं से भरे हैं. युगद्रष्टा, प्रखर प्रवचनकार, आचार्यश्री के आगमन ने दक्षिण भारत को नई दिशा दी. उसे परम आलोक की अनुभूति करायी. आपश्री का दक्षिण भारत का प्रवास जैन संघ की चेतना में प्राणों का संचार करता अनोखा घटनाक्रम है.
आपके मधुर व्यवहार से अनेक जैन संघों में अनुशासनप्रियता का जन्म हुआ. आचार्यश्री के सौजन्यशील व शालीन उपदेशों से वर्षों से चले आ रहे अनेक विवाद सरलता से हल हो गए. संघ एक जुट हुआ. बरसों बाद दक्षिण भारत के जैन संघों में धर्मजिज्ञासु जनता को सफल-कुशल नेतृत्व का अनुभव हुआ. दक्षिण भारत में धर्म आराधना व ज्ञान की मंद धारा एक बार फिर तेज गति से बहने लगी.
प्रथम बार दक्षिण भारत की भूमि पर सात-सात मुमुक्षुओं ने संसार से विरक्त हो कर आपके चरणों में भागवती दीक्षा ग्रहण की. बेंगलोर, चैन्नेई, मैसूर, दावणगेरे, हुबली, बल्लारी, निपाणी, मड़गाँव, कोल्हापुर प्रमुख जैन संघों में आपके उपकार चिरस्मरणीय रहे हैं. आज भी समस्त दक्षिण भारत के जैन संघ आपके मार्गदर्शन में शासन प्रभावना के अनेकविध कार्य करते आ रहे हैं. कभी भी कार्य-बाधा उत्पन्न होने पर आपके आदेश को शिरोधार्य मानते हैं. __ आपकी दिगन्तव्यापी कीर्ति और साधुता की महक से आकर्षित हो श्रीमती इन्दिरा गाँधी बेलगाँव में आपके दर्शनार्थ आई थी. इस शासन
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