Book Title: Jina Shashan Ke Samarth Unnayak
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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आचार्य श्री पदासागरसूरि लिया और कुशल व्यक्तियों की देखरेख में उसे पुनर्जीवित कराके संस्था में सुरक्षित कराया. इतना ही नहीं परन्तु भारतीय कला स्थापत्य और खासकर जैन शिल्प स्थापत्य के जाज्वल्यमान नमूने संगृहीत कर इसी संस्था में एक भव्य संग्रहालय भी स्थापित किया. जो सम्राट् सम्प्रति संग्रहालय के नाम से जाना जाता है.
आप ने अपनी सुविधा-दुविधा को हमेशा नजर-अंदाज ही किया है किन्तु जैन शासन की शान बढ़ाने के कार्यों को सदैव अग्रिम स्थान दिया है. आपका व्यक्तित्व जितना प्रभावपूर्ण है, उतना ही गौरवपूर्ण है आपका कृतित्व. सम्यग्ज्ञान और आध्यात्मिक साधना के संगम के रूप में जैन शासन को समर्पित यह केन्द्र आचार्यप्रवर का अमर सृजन है.
सच कहा जाय तो सैकड़ों वर्षों के बाद इतने विशाल पैमाने पर जैन साहित्य की प्रभावना अगर किसी जैनाचार्य ने की है तो आचार्यश्री का सम्मानित नाम सदियों तक अग्र पंक्तियों में अंकित रहेगा. आपके सत्प्रयासों से आज इस संस्था में हस्तप्रत, ताड़पत्र व पुस्तकों का करीबन तीन लाख से उपर विशाल संग्रह, अनेकों स्वर्णलिखित ग्रन्थ, बेशकीमती सचित्र प्रतें, सैकड़ों मूर्तियाँ, शिल्प-स्थापत्य इत्यादि बहुमूल्य पुरातन सामग्री, जैन शासन की अमूल्य निधि व धरोहर विद्यमान है. जिसका लाभ चतुर्विध संघ और देशी-विदेशी विद्वानो को निरन्तर मिल रहा है. इतना ही नहीं यहाँ पर विकसित आधुनिक सुविधाओं के कारण संशोधन के क्षेत्र में कार्य कर रहे विद्वानों के लिए यह ज्ञानमन्दिर आशीर्वादरूप सिद्ध हुआ है.
कई तीर्थभूमियों में तथा संघीय मन्दिरों के निर्माण कार्य में आपका मार्गदर्शन और प्रेरणा रही है. आपके मात्र अंगुलि निर्देश से चाहे लाखों-करोड़ों का कार्य क्यों न हो, पलभर में ही हो जाता है. आज भी आपकी सत्प्रेरणा से व्यक्तिगत रूप में भी करोड़ों की लागत से जिन मन्दिरादि निर्मित हो रहे हैं. अपने सामर्थ्य के आधार पर ऐसे छोटे-बड़े सैकड़ों सत्कार्य करवाकर आचार्यश्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. ने एक ओर जैन शासन की महान् प्रभावना की तो दूसरी ओर लोककल्याण का मार्ग भी प्रशस्त किया.
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