Book Title: Jina Shashan Ke Samarth Unnayak
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 61
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री पद्मसागरसूरि * विनय को नष्ट कर देनेवाला जो दुर्गुण है, उसे अभिमान कहते * विवेक के सो जाने पर ही मनोविकार हावी होते हैं. * सदाचार जीवन की आधारशिला है. * सद्गुणों के ढेर से भी त्याग अकेला वजनदार है. * समस्त दुःख हिंसा से उत्पन्न होते हैं. * स्वयं को शुद्ध करो, सिद्ध स्वतः बन जाओगे. * सारा ही जीवन मृत्यु के वर्तुल पर उपस्थित है. साहित्यिक अवदानः साधारण वाणी वचन और उत्कृष्ट या प्रकृष्ट वाणी प्रवचन कहलाती है. वचन का सम्बन्ध सांसारिक व्यवहार से है और प्रवचन का सम्बन्ध आध्यात्मिक जगत से. वचन से कर्म-बन्ध प्ररोहित होता है तो आध्यात्मिक वचन कर्म बीज को तीरोहित करता है. लोग भले ही आचार्यश्री को राष्ट्रसन्त से सम्बोधित करते है, परन्तु आपकी वाणी आन्तरराष्ट्रीयता की पहचान कराती है. वे भाषां, जाति, फिरके, धर्म, संप्रदायों व देशों की सीमाओं से परे हम सबके हैं. मानवता के प्रकाशस्तम्भ हैं. __ आचार्य पद्मसागरसूरिजी महाराज जिस प्रकार सहज साधु पुरुष है उसी प्रकार उनमें प्रवचन कला भी सहज विद्यमान है. आचार्यश्री के प्रवचनों ने स्वयं सिद्धान्त ग्रन्थों का स्वरूप ग्रहण किया है. आपके प्रवचनों से संकलित पुस्तकें आज के आधिभौतिक युग में सर्च-लाइट का काम देती हैं. वाचकों की सुविधा हेतु सूची दी जा रही है. १. हे नवकार महान् २. प्रतिबोध ३. मोक्ष मार्ग में बीस कदम ४. जीवन दृष्टि ५. संवाद की खोज ६. संशय सब दूर भये ७. गुरुवाणी ८. देवनार कतलखाना ९. मन का धन १०. पद्म पराग ११. प्रवचन पराग १२. प्रतिबोध For Private And Personal Use Only

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