Book Title: Jina Shashan Ke Samarth Unnayak
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 60
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५४ www.kobatirth.org जिनशासन के समर्थ उन्नायक अगर आप का आचार उत्तम है तो जगत का कोई उपसर्ग आप को डिगा नहीं सकता. * कच्चा मन और कच्चा पारा जीवन का नाश कर देते हैं. * उपासना में वासना को खत्म करने की शक्ति है. * आध्यात्मिक मार्केट में ज्ञान रहित व्यक्ति चलेगा पर आचार शून्य नहीं चलेगा. * आत्मबल ही मनुष्य की शक्ति का मूल स्रोत है. आत्मप्रशंसा अपने आप में एक मानसिक बीमारी है. अशान्ति का मूल कारण हमारे विचारों की दुर्बलता है. अभिमान जीवन का पूर्ण विराम है. ** इच्छा और तृष्णा से केवल कर्म-बन्ध ही होगा. * जैसा संग करोगे, वैसा रंग भरोगे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * जो अन्तर्शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की इच्छा नहीं करता, वह सही अर्थों में जैन नहीं है. * जो पाप की कमाई से सुखी होने की कामना करते हैं, वे अपने गले में पत्थर बाँध कर तैरने का प्रयत्न करते हैं. * दान मोक्ष का बीज है. * जो क्रोध करता है, उसमें विचार नहीं होता और जिसमें विचार होता है, उसमें क्रोध नहीं होता. * धर्म का सार यदि तीन अक्षरों में प्रकट करना हो तो हम कहेंगे अहिंसा. * धर्म में आचरण देखा जाता है, * प्रलोभन पाप का बाप है. ** भोजन के साथ पाचन, धन के साथ वितरण एवं पठन के साथ चिन्तन चाहिए. * मनुष्य भव बिना चारित्र, चारित्र बिना केवलज्ञान और केवलज्ञान बिना मुक्ति संभव नहीं. योग मन की तालीम है. विचार की पवित्रता आप को सद्गति तक पहुँचाती है. बहुमत नहीं. For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68