Book Title: Jina Shashan Ke Samarth Unnayak
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 35
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९ आचार्य श्री पद्मसागरसूरि इसी दौरान पूज्यश्री ने आगम प्रभाकर मुनि श्री पुण्यविजयजी को महोपाध्याय श्री यशोविजयजी के स्वयं के हस्ताक्षरों से लिखित पाण्डुलिपियाँ भेजी तो पुण्यविजयजी के उद्गार थे कि यदि तुमने मुझे पूज्य उपाध्यायजी के हस्ताक्षरों के दर्शन मात्र ही करवाए होते तो भी मैं अपने आप को धन्यभाग समझता, जब कि तुमने तो मुझे ये हस्तप्रतें भेंट ही भेज दी है. इस प्रकार लगभग आठ हजार बहुमूल्य हस्तलिखित ग्रन्थों का विशिष्ट योगदान करके आचार्य पद्मसागरसूरीश्वरजी ने संस्थान को गौरवान्वित किया. और भारतीय संस्कृति की मूल्यवान निधि को नष्ट होने से बचाया. अमर कृतित्व सम्यग् ज्ञानयज्ञ के इस भगीरथ कार्य के दौरान एक बार मुरब्बी शेठ श्री कस्तूरभाई लालभाई और गुजरात के उप मुख्यमन्त्री श्री कान्तिलालजी घीया का आचार्यश्री से समयोचित मिलना हुआ. दोनों महानुभावों ने आपको निवेदन किया कि महाराजजी आप जो कार्य कर रहे हैं वह संघ के लिए बहुमूल्य है, परन्तु अब यह कार्य संपूर्ण श्रीसंघीय व्यवस्थापन के तहत किया जाय तो अत्युत्तम रहेगा. आचार्यश्री ने इस बात पर बड़ी गंभीरता से गौर किया और आपके सृजनशील विचारों ने आज के विश्व प्रसिद्ध श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र - कोबा जैसी आन्तर्राष्ट्रीय संस्थान को मानस-जन्म दिया. आचार्यश्री का पुण्य ही ऐसा जागरित है कि एक ओर संकल्प किया तो दूसरी ओर सहायक सामग्रियाँ एक-एक करके जुड़ने लगी. महान् योगीराज दादागुरुदेव की प्रेरणा और आशीर्वाद तो मानो पुरुषार्थ और सिद्धि की तरह साथ ही थे, गच्छाधिपति आचार्यदेव की सत्प्रेरणा से कोबा चौराहे के आसपास की मौके की जमीन इस पुण्य कार्य हेतु भेंट मिल गई. आचार्यश्री चाहते थे कि इसी जगह पर जिन मन्दिर, उपाश्रय और अध्ययन केन्द्र हो. महापुरुषों की इच्छा ही कुदरत की इच्छा बन जाती है. सन् १९८० के २६ दिसम्बर के शुभ दिन संस्था की विधिवत् स्थापना हुई. For Private And Personal Use Only

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