Book Title: Jina Shashan Ke Samarth Unnayak
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 34
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८ जिनशासन के समर्थ उन्नायक है. तब आप राजस्थान की धरती पर विचरण कर रहे थे. सन् १९६५ के आसपास का समय था. हिन्दुस्तान पाकिस्तान का युद्ध चल रहा था. उस समय हस्तलिखित ग्रन्थों को बेचने वाले बहुत आया करते थे, आपने सोचा कि अपने पूर्वजों की महान् सांस्कृतिक धरोहर बाहर चली जाय और विदेश में बिकें यह बात तो अच्छी नहीं है. अपनी विरासत अपना साहित्य हम क्यों न रक्खे? इसे दूसरों के हाथ में क्यों पड़ने दें? मुनिश्री ने जहाँ से मिला जैसा भी मिला सारा का सारा पाण्डुलिपिबद्ध साहित्य इकट्ठा करवा के उसे एल. डी. इन्स्टीट्यूट, अहमदाबाद में भेज दिया. इसी प्रकार शिल्प स्थापत्य की चीजें आप खोज खोज कर भेजते रहे. मुनि श्री पुण्यविजयजी महाराज उन दिनों एल. डी. संस्था से जुड़े हुए थे और कस्तूरभाई शेठ संस्था के संरक्षक थे, उन दोनों ने आपके इस स्तुत्य प्रयास और योगदान की बड़ी प्रशंसा की. आगे भी अधिक से अधिक संग्रहणीय वस्तुओं का सहयोग करने की लेखित अपील की थी. पूज्य दादा गुरुदेव की निश्रा में शेठ श्री कस्तूरभाई लालभाई के साथ शासन के प्रश्नों पर विमर्श से पूर्व For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68