Book Title: Jina Shashan Ke Samarth Unnayak
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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जिनशासन के समर्थ उन्नायक जंगम युग प्रधान जैनाचार्यों की याद दिलाने वाले तेजस्वी आचार्यश्री के प्रवचनों के संदर्भ में लोग कहते हैं कि आप जादूगर हैं. प्रवचन में लोगों को बांधे रखने के आपके सामर्थ्य की होड़ नहीं हो सकती. आप अमोघ देशनाकार व बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं. भाषा की सरलता, स्पष्ट वक्तृत्व, अभिप्राय की गंभीरता, विचारों की व्यापकता व प्रस्तुति की मौलिकता आचार्यश्री के प्रवचनों की विशेषताएँ हैं. __ आपके प्रवचनों को सुनने के लिए जैनेतर संप्रदायों के भी असंख्य लोग सम्मिलित होते हैं. आपके प्रवचनों ने जनता जनार्दन में अद्भुत लोकप्रियता प्राप्त की है. जैन शासन को आप पर नाज़ है. आपके ओजस्वी प्रवचनों से व्यक्ति और समाज में आए परिवर्तन तो बेहिसाब हैं.
भारत में जब पहली बार इमर्जन्सी लगी थी उस समय सारे देश में प्रशासन की ओर से एक तरह से दहशत छाई हुई थी. सरकार अपने इस कदम को उचित ठहराने पर तुली हुई थी. अनेक धर्मगुरुओं के इस हेतु इन्टरव्यु लेकर प्रसारित करवा रही थी. इसी सिलसिले में सरकार की ओर से शेठ श्री कस्तूरभाई का संपर्क करने पर, विचक्षण कस्तूरभाई को एक मात्र पूज्यश्री का ही नाम ध्यान में आया और पूज्यश्री ने भी अपनी अप्रतिम कुशलता का परिचय दिया. इसके लिए श्रीसंघ में सर्वत्र खूब ही सराहना की गई. यशस्वी काम : भारी बहुमान
आचार्य बनने के बाद सन् १९७७ में भावनगर (गुज.) के अपने प्रथम चातुर्मास में दादागुरुदेव व गुरुदेव के सान्निध्य में पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज ने दो महत्वपूर्ण काम किये. उस समय बाल-दीक्षा के अनुचित विरोध ने पूरे समाज की शान्ति का भंग कर रक्खा था. भावनगर के जैन संघ ने भी अविचारी बाल-दीक्षा प्रतिबंध प्रस्ताव को पास कर दिया था. आपने अपनी अपार लोकप्रियता एवं कुशलता के आधार पर इसे परिवर्तित करवाकर भव्य समारोह में एक बाल मुमुक्षु को समग्र संघ की सहमति से दीक्षा प्रदान करवाई. इतना ही नहीं, संघ की भावनाओं को देखते हुए सात दशकों की अवधि के बाद प्रथम बार भावनगर-संघ में उपधान का
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