Book Title: Jina Shashan Ke Samarth Unnayak
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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जिनशासन के समर्थ उन्नायक जीवन-शिल्पी की खोज
परिभ्रमण के दौरान लब्धिचंद पालिताणा महातीर्थ की यात्रार्थ लालायित हुए. शिवपुरी के अध्ययन काल के एक सहपाठी मित्र का घर अहमदाबाद में था. आप उनके घर महेमान बने. बाद में उन्हीं के साथ शत्रुजय महातीर्थ की यात्रा कर अपने जीवन को धन्यता प्रदान की. पालिताणा से अहमदाबाद लौट आने के बाद अपने एक परिचित मित्र की प्रेरणा से निकटवर्ती साणंद नगर में चातुर्मास विराजित परम श्रद्धेय, शासन-प्रभावक, सिद्धान्तवेत्ता, युगद्रष्टा, महान संयमी, अजातशत्रु, गच्छाधिपति आचार्यदेव श्रीमत् कैलाससागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब (उस वक्त पंन्यास श्री कैलाससागरजी म. सा.) के दर्शन करने की उत्सुकता जागृत हुई. आप तुरंत साणंद रवाना हुए. लब्धिचंद के जीवन इतिहास में यह दिन स्वर्णिम अध्याय के रूप में अंकित हुआ. ___आचार्यश्री के दर्शन पाकर जीवन में पहली बार आपको जिज्ञासाओं
और समस्याओं का सम्यक् समाधान मिला. वे आचार्यश्री के दर्शन, तेजस्विता, स्वभाव और योग महात्म्य से बहुत प्रभावित हुए. आचार्यश्री की सत्प्रेरणा और उपदेश से संयम की रुचि पैदा हुई. उन्हें लगा कि मेरी दिव्य खोज का यही विराम स्थल है. यही वह सही राह है जिसकी मुझे इतने दिनों से खोज थी. __ आचार्यश्री की दिव्यवाणी ने लब्धिचंद की मनोभूमि पर अंकुरित वैराग्य वृक्ष का सिंचन किया. वह लहलहा उठा. उसमें लक्ष्यानुसंधान के फल लगे. आचार्यश्री का परम सान्निध्य और वात्सल्यपूर्ण मार्गदर्शन आपके यात्रा पथ का महत्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुआ. लब्धिचंद वीतराग के बतलाए अमर प्रव्रज्या-पथ पर चलने को तत्पर हो उठे. सचमुच मुनि प्रवर का पावन सान्निध्य लब्धिचन्द की अभूतपूर्व उपलब्धि थी. मन ही मन आचार्यश्री के समक्ष भागवती दीक्षा ग्रहण करने का शुभ संकल्प कर अहमदाबाद चले आए. लब्धिचन्द के कानों में आचार्यश्री के निस्पृही वचन बार-बार गूंज रहे थे- 'सेवा भाव से किसी अच्छे साधु के पास संयम ले लो तो तुम्हारे जीवन का जैसा चाहो वैसा विकास हो सकता है'. इस प्रसंग पर से चारित्र्यमूर्ति आचार्यश्री की चरम निःस्पृहता के दर्शन होते हैं.
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