________________
पत्र में लिखा था- हे स्वामी। आपके वियोग का दुख अब नहीं सहा जाता । गुणमाला का यह निवेदन आप स्वीकार करें।
Sa
00
६
17
गंधर्वदत्ता ने कितनी कुशलता से अपना दुख, गुणमाला का नाम लेकर व्यक्त किया है !
५
Mo
10)
जैन चित्र कथा
एक दिन राजा दृढ़मित्र के महल के सामने, नगर के ग्वाले आकर रोने लगे।
16
हे महाराज । चोरों ने हमारे गोधन को चुरा लिया है। हम तो
Sel
लुट गए महाराज. अब हम क्या करें ?
जीवंधर कुमार ने राजा दृढ़मित्र को रोक दिया और स्वयं चोरों से निपटने चले। किंतु जब वे वन में पहुंचे तो चोरों को देखकर चकित रह गए।
आश्चर्य है। मेरे ही सेवक, बंधुबांधव, वे चोर हैं जो गोधन ले आए हैं? ये सब राजपुरी से यहां क्यों आए हैं।, Pool
कुमार। गोधन पुराना तो केवल आपको यहां बुलाने का बहाना था। हम तो आपसे मिलने आए हैं। हमें गोधन नहीं चाहिए।
R
16
1111111111113)
र
ठीक है। तुम लोग चिंता न करो। मैं उन धोरो से तुम्हारा गोधन वापस लाकर दूंगा।
718
अपने मित्रों और सेवकों से मिलकर जीवंधर कुमार को अत्यंत प्रसन्नता हुई।
हे स्वामी । हम तो आपके वियोग में मृतप्राय हो चुके थे। किंतु देवी गंधवदत्ता ने मार्ग बताया और हम अनेक वनों में भटकते हुए यहां आ पहुंचे हैं। हमने एक वन में तपस्वियों के आश्रम में एक माता,
को देखा ।