Book Title: Jeevandhar Swami
Author(s): Dharmchand Shastri
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 28
________________ यह जीवंधर इतना वीर है कि यह अकेले ही मुझे राज्य से हटा देगा। फिर इसे गोविन्दराज की सहायता भी प्राप्त है। इसलिए मेरे अब विपत्ति के, दिन आ गए। 1000 और तब युद्ध आरंभ हो गया। कुछ छोटे-छोटे राजा काष्ठांगार की सहायता के लिए आ गए। दोनों ओर की सेनाओं में युद्ध शुरू हो गया। जैन चित्र कथा गया । लेकिन जीवंधर के मित्रों ने व्यंग्य करके काष्ठागार को चिढ़ा दिया। इससे उसकी क्रोधाग्नि भड़क उठी। वह युद्ध के लिए तैयार हो यह जीवंधर अपने को बड़ा वीर कहता है- पर मैं नहीं मानता। यह सब झूठ है। अगर ये सचमुच वीर है तो युद्ध भूमि में आकर निपट ले । | कुछ ही देर के युद्ध के पश्चात् जीवंधर ने काष्ठांगार को यमलोक पहुंचा दिया। 26 Wr

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