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महाराज जीवंधर विचार करते हुए, जलक्रीड़ा से लौटे और जिनालय में जाकर जिनेन्द्र भगवान | की पूजा की।
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एक समय तुम किसी राजहस के बच्चे को खेलने के लिए उठा लाए पिता ने उसे छोड़ने के लिए तुम्हें जब बहुत समझाया, तो तुम संसार से उदासीन हो गए। और दिगंबर मुनि बन गए। फिर तुम्हारी 'आंठों पत्नियों ने भी आर्थिका व्रत ग्रहण किए। फिर तुमने यहां जन्म लिया और वे आठों पत्नियां भी तुम्हें मिल गई।
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श्री जीवंधर स्वामी
फिर वहां किसी ऋद्धिधारक मुनिराज से धर्मोपदेश सुना ।
हे मुनिराज कृपया मुझे मेरे पूर्वभव के बारे में बताइए!
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हे राजन् ! तुम पूर्व भव में राजा यशोधर के पुत्र थे ।
जीवंधर महाराज वापस अपने राजमहल में पहुंचे और गंधर्वदत्ता के पुत्र को राज्य सौंपकर आठों पत्नियों सहित भगवान महावीर के समवसरण में जा पहुंचे।
हे भगवन । मैं इस संसार में जन्म और मरण रूपी
रोग से भयभीत मेरी इस पीड़ा को दूर करें।
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