Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
manjih
जैन चित्र
कथा
जीवंधर स्वामी
M
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
सम्पादकीय जीवंन्धर स्वामी की यह चित्र कथा जीवन को झंकृत करती है कि गर्भवस्था में राज्यपद, जन्म श्मसान भूमि में, बाल अवस्था श्रेष्ठीगृह, युवा अवस्था में दर-दर की ठोकरें तत् पश्चात राज्यपद प्राप्त करना। कितना कठिन संघर्ष मय जीवन । सुख-दुःख मय जीवन इन परिस्थितयों में मानव मोह वस ही तो अपनाता है। जब आत्म ज्ञान होता है तो उसे सद्ज्ञान की प्राप्ति होती है तो वह संसार को छोड़ने का प्रयत्न करता है। जीवंधर स्वामी के जीवन कि यही स्थिती रही कि पिता को मारकर काष्टांगर ने राज्य पद प्राप्त किया तथा काष्टांगर को मार कर जीवंधर ने राज्य पद प्राप्त किया तथा यह जानकर के वैराय हुआ कि छीना झपटी में जीवन व्यतीत हो जाता है। मृत्यु के पूर्व आत्म कल्याण करूँ तथा अन्त में जैनेश्वरी दीक्षा धारण कर मोक्ष प्राप्त करते हैं।
जैन चित्र कथाएं
Vikrant patni जैन चित्र कथा JHALRAPATAN
आशीर्वाद
परम पूज्या आर्यिका आदिमति माता जी प्रकाशक ___: आचार्य धर्मश्रुत ग्रन्थ माला कृति
: जीवंधर स्वामी
: सर्वाधिकार सुरक्षित सम्पादक
: ब्र. धर्मचन्द शास्त्री प्रतिष्ठाचार्य शब्दाकन
: ब्र. धर्मचन्द शास्त्री प्रतिष्ठाचार्य पुष्प नं
: 42
20.00 प्राप्ति स्थान
जैन मंदिर गुलाब वाटिका लोनी रोड़ जिला गाजियाबाद' (उ.प्र.) 914-600074 S.T.D. 0575-4600074
मूल्य
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
हेमांगद नामक प्रदेश की | राजधानी राजपुरी एक भव्य और विशाल नगरी थी
1
Vikrant Patni
JHALRAPATAN
श्री जीवंधर स्वामी
चित्रांकन : जी. एस. राजावत - कृष्णा राजावत
इस राजपुरी का राजा था- सत्यंधर। उसकी रानी का नाम था- विजया । सत्यंधर अपनी रानी पर इतने मोहित थे कि राजकाज में उनका मन नहीं लगता था।
000
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
(एक दिज-
जैन चित्र कथा हे मंत्रिगण। इन दिनों राजकाज में (हमने राजा को बहुत समझाया, मेरा मन नहीं लग रहा। अस्तु मैं राजा | किंतु वह नहीं माने। उन्होंने के अपने समस्त अधिकार मंत्री काष्ठांगार आजकाण्ठागारको राज्य शासन को देने पर विचार कर रहाहूं।
दे ही दिया।
नहीं,
महाराज। आप ऐसान करें।यह नीति नहीं है।
नीतिकार कहते हैं कि जो भावी होती है, मनुष्य की बुदि भीवैसी हीहोजाती है।
(एक रात्रि को रानी विजयाने तीन स्वप्न देखे।
रक
UILLA
Morforg
@OORD
GOC
OODoor
(अगले दिन रानीने राजा सत्यधर से उन स्वप्नों के अर्थ पूछे।
रानी, मुकुट सहित अशोक वृक्ष का अर्थ है कि तुम्हारे एक सुन्दर पुत्र होगा। आठ मालाओं का अर्थ है कि उसपुत्रके
आठ पत्नियां होंगी।
5050
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
किन्तु महाराज ! आपने पहले स्वप्न का अर्थ नहीं बताया।
वह स्वप्न भविष्य में
मेरे अनिष्ट की सूचना देता है।
कुछ समय बाद रानी गर्भवती हुई।
हे रानी! मैंने मयूर की आकृति का यह विमान आपके लिए बनवाया है आप इस पर बैठकर उड़ने का अभ्यास कीजिए ।
राजा काष्ठागार का दरबार - हे मंत्रिगण । एक देव मुझे आकर सता रहा है, और कहता है कि तुम राजा सत्यंधर को मार कर | स्वयं राजा बनो । बताइए मैं क्या करूं ?
यह धूर्त
स्वयं राजा बना रहने के लिए सोध रहा है और देव का
बहाना बना रहा
हैं।
Ooo
श्री जीवंधर स्वामी
ಸಿದ
हे महाराज, यह आपने क्या
कहा ? मैं कहां जाऊंगी
6
3
दुखी न हो रानी
दुख को छोडकर धर्म पालन
करो जिससे आने वाली विपत्ति दूर हो जाय।
मंत्रियों है, समजाने पर भी काष्ठांगार नही माना र उपने सत्यंधर को मारने के लिए सेना भेज दी।
महाराजा काय रागार का सेना से मैं निपट लूगा। आप तत्काल इस विमान से उड़कर कहीं ओर चली जाइए।
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन चित्र कथा
वह मयूर-विमान राजपुरी के शमशान में गिरा, जहां रानी विजयाने एक पुत्र कोजन्म दिया। रानी दुखी होकर सोचने लगी कि इसपुत्रका क्या करूं १ तभी चंपकमालादेवी धायके वेश में
आयी।
यह सेना तो कभी मेरी ही थी। अपने ही लोगों के नरसंहारसेक्या लाभ? धिक है ऐसा राज्य जिसके लिएनरसंहार करना पड़े। मुझे तो सन्यास ले लेना चाहिए।
हेदेवी!इस पुत्रके पालन की चिंता नकरो एक व्यक्ति इसे राजकुमारों की तरह पालेगा।
और इस तरह सत्यंधर ने अपरिग्रह कर सल्लेखनापूर्वक शरीर छोड़ दिया।
विजयाने उस शिशुको राजचिन्हवाली अंगूठी पहनाकरवहीं छोड़ दिया और स्वयं छिप गई।तभी उसनगरीकासेठ गन्धोत्कट वहां अपने शिशु-पुत्रका शव लेकर आया। AVAILP
तो उस निमित्त ज्ञानी ने ठीक कहा था कि तुम्हें श्मशान में एक सुंदर शिशु मिलेगा?
गन्धोत्कट उस शिशु को लेकर पत्नी के पास आया।
अरे सुनंदा। तुमने जीवित पुत्र को मरा कैसे कह दिया? यह
लो अपना पुत्र अरे! मेराबच्चा।
रानी विजया दंडक वन में स्थित तपस्वियों के आश्रम में जाकर रहने लगी।
KHE
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री जीवंधर स्वामी
कुछ समय बाद सुनंदा के एक और पुत्र हुआ। उसका नाम रखा - नन्दाढ्य । पहले पुत्र का नाम रखा था - जीवन्धर । वह तब पाँच वर्ष का था उसका विद्या संस्कार किया गया।
'गुरु आर्यनन्दी महाराज के यहां शिक्षा पाकर जीवघर बड़ा हुआ। एक दिन..
जीवधर । पूर्वजन्म में तुमने मुझे आहार देकर मेरा कष्ट दूर किया था। इसलिए इस जन्म में मैंने तुम्हें शिक्षा दान दिया है। तुम वास्तव में राजा सत्यधर के पुत्र हो । राजा काष्ठागार ने तुम्हारे पिता को
है ।
मार डाला
lates
Clover
तो मैं उससे अवश्य बदला लूंगा।
'नहीं जीवधेर। अभी
तुम व्यस्क नहीं,
हो। मुझे वचन दो कि एक वर्ष तक तुम उससे युद्ध नहीं
करोगे ।
मैं वचन देता हूं।
महाराज
एक दिन.... हम ग्वालों की सभी गौएं भीलों ने छीन ली है। हम तो लुट गए महाराज |
हमारा पशुधन वापस दिलवाइए ।
5
चिंता न करो। मैं अभी सेना भेजकर तुम्हारा पशुधन मुक्त कराता हूं।
जनज
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन चित्र कथा जीवंधर तरंत वन में गए और भीलों को परास्त करके गोधन छुड़ा लाए।
जीवंधर कुमार की जय।
लेकिन सेना उन भीलों को नहरा सकी और खाली हाथ लौट आयी। तब ग्वालों के प्रमुख नन्द गोप ने घोषणा की। जिसे जीवंधर ने भी सुना। जो व्यक्ति भीलों से हमारा गो- धन छडा लावेगा, उसे सुवर्ण की सात पुतलिया दहेज में देकर अपनी पुत्री गोविन्दा भी ब्याह
दूंगा।
/
D
Aala
मुझे आपका पुरस्कार नही चाहिए। पुत्री गोविन्दा का ब्याह मेरे उत्तम मित्र पद्मास्य से कर दीजिए।
हे भद्र पुरुष। आप मुझे इस पर्वत पर क्यों लाए
राजपुरी का श्रीदत्त नामक व्यापारी धन कमाने विदेश गया था। लौटते समय उसकी नौका तूफान में फंसकर टूट गयी। श्रीदत्त एक लकड़ी के सहारे तैरकर किनारे लगा।
हे श्रीदत्त तुम्हारी करूण कथा सुनकर मुझे भी दुख है। आओ मेरे साथ | सब ठीक हो जाएगा । हम, विजया पर्वत पर चले।
wall
COM
मैं धर नामक विद्याधर हूं। आपके मित्र राजा गरूड़वेग मेरे स्वामी हैं। उन्हें अपनी कन्या के विवाह के मामले में आपकी जरूरत है। मैं आपको लेने आया हूं। आप चिंता न करें आपकी नौका,धन आदि सब सुरक्षित है ।वह
घटना केवल एक मायाजाल थी। आइए चलें।
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
राज के पास पंहुचने पर...
I
हे मित्र पंडितों ने कहा है मेरी पुत्री गंधर्वदत्ता का विवाह उसी से होगा जो इसे वीणावादन | में हराएगा। इसलिए आप इसका स्वयंवर रचाने के लिए इसे राजपुरी ले जाइए।
तब जीवंधर कुमार अपनी घोषवती वीणा लेकर आए और उन्होंने अपने वीणावादन से गंधर्वदत्ता को पराजित किया। गंधर्वदत्ता ने वरमाला जीवंधर कुमार के गले में डाल दी । Purogalley Quugu
Ed
252
श्री जीवंधर स्वामी
93
MARI
राजपुरी आकर श्रीदत्त ने गंधर्वदत्ता के विवाह के लिए स्वयंवर रचा। अनेक वीणावादक आए और उन्हें गंधर्वदत्ता ने परास्त कर दिया।
जीवंधर कुमार की विजय, स्वयंवर में बैठे राजागण सहन न कर सके। वहां उपस्थित काष्ठांगार ने उन्हें भड़का दिया और वे जीवंधर से युद्ध करने लगे ।
Mivale
अंत में जीवंधर कुमार विजयी हुआ और गधर्वदत्ता से उसका विवाह हो गया।
7
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन चित्र कथा एक बार वसंत ऋतु आने पर जीवंधर जल-कीड़ा के लिए अपने मित्रों के साथ गए। वहां हवन सामग्री झूठी कर देने के कारण बाह्मणों ने एक कुत्ते को मार- मारकर घायल कर दिया था।
कितने दुख की बात है। इस निरीह प्राणी को अब 1000 उपचार द्वारा बचाना भी संभव नहीं। अब इसे णमोकार मंत्र सुनाना चाहिए ।
'झूठ मेरा चूर्ण अच्छा
है।
23
| वहीं दो सहेलियां झगड़ रही थीं ।
सुरमंजरी स्नान ( का चूर्ण मेरा सबसे उत्तम है।
SNZRU
Hili
PREETSFER MOT
10000020010
नहीं गुणमाला! मेरा चूर्ण बहुत अच्छा है।
नहीं मेरा चूर्ण अच्छा है।
Ge
w
हे स्वामी! कुत्ते के रूप में प्राण छोड़ने के बाद मंत्र के प्रभाव से मैं यक्षेन्द्र हुआ हूं। मैं आपका सेवक हूं। जब कोई विपत्ति आए मेरा स्मरण करना। मैं उसी समय आकर आपकी रक्षा करूंगा।
अंत में वे दोनों निर्णय कराने के लिए जीवधर कुमार के पास पहुंची।
गुणमाला का चूर्ण सबसे उत्तम है।
8
अन्य विद्वानों की तरह आप भी पक्षपात करके गुणमाला के चूर्ण को उत्तम कह रहे हैं।
मैं प्रतिज्ञा करती हूं कि जीवंधर को छोड़कर किसी पुरुष को देखूंगी भी नहीं ।
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
गुणमाला जबरी. रही थी कि काष्ठीगार | उधर आ गया। उसके परिजन उसे अकेला छोड़कर भाग गए।
श्री जीवंधर स्वामी
• अपने परिजनों के साथ घर की ओर लौट हाथी
का पागल,
****
गुणमाला और जीवंधर कुमार में. इस घटना के बाद प्रेम हो गया।
डरने की कोई बात नहीं। चलिए आपको घर छोड़ आऊं ।
OLL
AMAVAS
आज आपने मेरी रक्षा की है।
और जीवंधर तथा गुणमाला विवाह बंधन में बंध गए।
जीवंधर द्वारा मार खाने के बाद उस हाथी ने खाना-पीना छोड़ दिया। यह बात काष्ठांगार तक पहुंची।
9
तभी जीवंधर कुमार ने आकर उस हाथी को मुष्टिका प्रहार से भगा दिया।
1000
3
इस दुष्ट जीवंधर से मुझे और भी हिसाब चुकाना है। उसे तुरंत पकड़ कर ले आओ। आवश्यक हो तो सेना ले जाओ।
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन चित्रकथा
सेना के आने का समाचार सुनकर ...
पिताजी। आप चिंता न करें। मैं काष्ठागार कीसेना
को अभी धूल में कमिला दूंगा।
नहीं बेटे। युद मत करो। राजा से दुश्मनी अच्छी नहीं होती। तुम उसके पास चले
जाओ।
AALI
और सेनापति, जीवधर के हाथ बांधकर काष्ठागारके दरबार में ले आया।
इस दुष्ट ने हमें बहुत तंग किया है। इसे ले जाओ और वध कर दो। यहीं। इसका सर्वोत्तमदंङहै।
यक्षेन्द्र तत्काल आया और अपनी मायावी शक्ति से जीवधर कुमार को वहां से अदृश्य बनाकर उठा ले गया। उधर जीवधर के मातापिता और जनता इस समाचार सेदुखी हो उठे।
निरपराध जीवधर की हत्या कराकर काष्ठांगार ने कैसी निर्दयता और अन्याय किया है। इस धरती पर पहले ऐसा कभी नहीं हुआ।
हाय,मैने स्वय अपने बेटे को मौत के मुह में भेज दिया।
हाय मेरा बच्चा ।
हेयक्षेन्द्र । मेरी (सहायता के लिए आओ।
वह यक्षेन्द्र जीवधर कुमार को चन्द्रोदयपर्वत पर अपने घर लेगया औरवहां उनका अभिषेक
किया। हे स्वामी।
| आज से आपका पुण्योदय हो रहा है। आप एक वर्ष मेंही राजा बनकर राज्य सुख भोगेंगे,और मोक्ष प्राप्त करेंगे।
110
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री जीवंधर स्वामी जीवधर कुमार अकेले घूमते हुए एक वन में पहुंचे जहां आग लगी थी और उसके बीच हाथियों का समूह फंसा हुआ था।जीवंधर ने सोचा-दया ही धर्म का मूल है, इसलिए इन्हें बचाना चाहिए। इतना सोचते ही आकाशसे बादल जल वर्षा करने लगे और हाथी बच गए।
मैं अब देश भ्रमण के लिए जाना चाहता हूं।
14
OM
य
आप देश भ्रमण करना चाहते है तो सहर्ष जाइए। मैं आपको यहा
से जाने का मार्ग बताता हूं। आगे चलकर जीवंधर कुमार चंद्राभा नगरी में आए। अरे। तुम्हें नहीं मालूम? इसनगरी के राजाधनपति की सुपुत्री पद्मा को सपने काट लिया है। कोई उपचार अपना प्रभाव नहीं दिखा रहा है।
MAAL
जीवधर कुमार ने जाकर विष नाशक मंत्र से राजकुमारी पद्मा को ठीक कर दिया। हे भद्र। मेरा नाम लोकपाल तुम मुझे हर प्रकार है। मेरी बहन को आपके सेपद्मा के लिए योग्य उपचार से नया जीवन मिला है. वर लगते हो। मैं में आपका सम्मान करता हूं। तुम्हारे साथ उसका
विवाह करनाचाहता
चलो।मैं उपचार करूंगा। मुझे वहां ले चलो।
समाकागामाया
और फिर जीवंधर कुमार का विवाह राजकुमारी यया से होगया।
11
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन चित्र कथा कुछ समय राजकुमारी पद्मा के साथ बिताने के बाद जीवंधर स्वामी यात्रा करते हुए पल्लव देश में स्थित जीवधर कुमार वहां से चल दिए, किंतु किसी को चित्रकुट पर्वत पर स्थित साधुओं के मठ में पहुंचे जहांवे बताया नहीं लोकपाल ने उन्हें खोजने के लिएदूत भेजे। यचाग्नि ताय रहे थे। युवराज!हमने बहुत खोजा, दूर-दूर तक जाकर देखा,किंतु कुमार का कुछ भी पता न चला।
HaANAA
QAAQ
हे तपस्वियों। जिसमें जीवों को क्लेशन हो वहीसच्चातप है। सम्यकज्ञान,सम्यकदर्शन और सम्यकचरित्र-तीनों ही साक्षात मुक्ति के उपाय हैं।
हे स्वामी । आप जो भी हो। आपने जो ज्ञान हमें दिया है, उसे ग्रहण करके हम धन्य हो गए। हम आज से जिनधर्म स्वीकार करते हैं।
इसके बाद जीवंधर कुमार दक्षिण की ओर गए, जहां एक जिनालय के कपाट बन्द थे। जीवधर कुमार नेवहीं खड़े होकर स्तुति की तो वे कपाट अपने आप खुल गए।
AVAY
THUL
112
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
जिस महापुरुष के आने पर इस जिनालय के कपाट खुलें, उसे देखने के लिए सुभद्र नामक सेठ ने गुणभद्र नामक नौकर वहां नियुक्त किया था ।
हे स्वामी! मैं सेठ सुभद्र का नौकर हूं। किसी निमित्त ज्ञानी ने कहा था कि सेठ-पुत्री क्षेमश्री का विवाह उस महापुरुष से होगा जिसके आने से जिनालय के कपाट खुलेंगे। इसलिए मेरी प्रार्थना है कि आप सेठ सुभद्र के घर चलने के लिए तैयार रहें। मैं उन्हें लेकर अभी आता हूं ।
'कहां चले गए मेरे स्वामी पिताजी उन्हें
बेटी। मैंने चारों दिशाओं में खोज की है। किन्तु उनका कहीं पता नहीं मिला ।
श्री जीवंधर स्वामी
सेठ सुभद्र तुरंत आया और आदर सहित जीवधर को अपने घर ले गया। फिर जीवंधर की स्वीकृति लेकर क्षेमश्री का विवाह' उनके साथ कर दिया।
KTE
बहुत दिनों तक क्षेम श्री के साथ सुख भोगकर जीवंधर कुमार क्षेमपुरी नगरी से, किसी को सूचना दिए बिना ही चल दिए ।
मुझसे कहकर तो जाते। खोजिए ।
301
URB
13
M
जीवंधर कुमार जिन आभूषणों को पहन कर आए थे, उन्हें त्यागने का विचार उन्होने किया। उसी समय एक किसान उनके पास आया।
हे किसान तुम कहां से आए हो, कहाँ जा रहे हो और तुम्हें किसी बात का दुख तो नहीं है?
हे पूज्य !
आप महान
हैं। क्योंकि
आपने मेरे विषय में जिज्ञासा की है?
श्र
Spee
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
हे स्वामी! मैं खेती करता हूं और | सपरिवार सुखी हूं ।
जैन चित्र कथा
हे किसान ! खेती आदि से प्राप्त सुख तो नश्वर है। सच्चा सुख तो मोक्ष प्राप्त होने पर ही
प्राप्त हो सकता
है
तब जीवंधर स्वामी ने उसे अपने समस्त आभूषण तथा मूल्यवान वस्त्र दान में दे दिए।
आगे चल | कर जीवधर
आत्मा का उत्तम सुख सम्यग्दर्शन, सम्यक्ज्ञान और सम्यक्चरित्र के पूर्ण होने पर ही मिलता है। इसलिए | हे कृषक ! तू नश्वर वस्तुओं का मोह त्यागकर आत्मा का सुख प्राप्त कर। गृहस्थ धर्म को स्वीकार करके भी यह सुख किचित प्राप्त हो सकत है। ऐसे लोग व्रत
वृक्ष
| कुमार एक उपवन में पहुंचे, जिसके। फलों से लदे थे। वहां एक राजकुमार धनुषबाण से आम का एक भी फल नहीं गिरा सका था। किंतु जीवंधर कुमार ने एक ही बाण से उस फल को गिरा दिया ।
Bre
हे धर्नुधारी महापुरूष मैं और मेरे ये भाई, हेमाभा नगरी के राजा दृढ़मित्र के पुत्र हैं। हम सब मूर्ख हैं। हमारे पिता हमें शिक्षा देने के लिए एक धनुर्धारी की खोज कर रहें है । क्या | आप उनसे मिलने का कष्ट करेंगे ?
14
धारण करते हैं
और श्रावक
जीवंधर स्वामी के इन उपदेशों को सुनकर कृषक ने गृहस्थ धर्म स्वीकार कर लिया |
कहलाते है।
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री जीवंधर स्वामी जीवंधर कुमार ने उन राजकुमारों को बड़ी ही लगन राजकुमारी कनकमाला से विवाह के पश्चात जीवधर कुमार से शिक्षा दी, जिससे वे गुरु के समान विद्वान हो । एक वर्ष तक हेमाभा नगरी में रहे। एक दिन एक सुन्दर गए। हे जीवधर कुमार आपने मेरे
स्त्री उनके पास आई। राजकुमारों को शिक्षा देकर जो उपकार किया है,
हे भद्रपुरुष। यह कैसी विचित्र बात है उसके बदले मैं अपनी कन्या का विवाह आपसे
कि मैंने आपको यहा और आयुधशाला करना चाहता हूं।
में- एक ही समय में दोनों स्थानों
पर देखा है।
(GOKCEIOG
महाराज दृढमित्र आप की आज्ञा मुझे स्वीकार है।
इसका अभिप्राय कहीं नंदादय से तो नहीं है? संभव है वह यहा आ गया
हो?
IP
ELOK
APPE
जीवंधर कुमार तुंरत ही आयुधशाला पहुंचे। वहा सचमुच नन्दादय से भेट होगई।दोनों भाई मिलकर अत्यंत प्रसन्न हुए।
CICION
हे बंधु तुम यहां कैसे आए?
TIMINA
हे अग्रज। मैं आपके वियोग में दुखी रहताथा। एक दिन भाभी गंधर्वदत्ता के पास गया। उन्होंने कहा-दुखी मत हो, तुम्हारे भाई अत्यंत सुखपूर्वक हैं। तुम कहो तो मैं तुम्हें अपनी विद्या से उनके पास पहुंचा दूं ? और इस तरह उन्होंने मुझे यहां भेज दिया। उन्होंने आपके लिए पत्र
भी दिया है।
न
CAL
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
पत्र में लिखा था- हे स्वामी। आपके वियोग का दुख अब नहीं सहा जाता । गुणमाला का यह निवेदन आप स्वीकार करें।
Sa
00
६
17
गंधर्वदत्ता ने कितनी कुशलता से अपना दुख, गुणमाला का नाम लेकर व्यक्त किया है !
५
Mo
10)
जैन चित्र कथा
एक दिन राजा दृढ़मित्र के महल के सामने, नगर के ग्वाले आकर रोने लगे।
16
हे महाराज । चोरों ने हमारे गोधन को चुरा लिया है। हम तो
Sel
लुट गए महाराज. अब हम क्या करें ?
जीवंधर कुमार ने राजा दृढ़मित्र को रोक दिया और स्वयं चोरों से निपटने चले। किंतु जब वे वन में पहुंचे तो चोरों को देखकर चकित रह गए।
आश्चर्य है। मेरे ही सेवक, बंधुबांधव, वे चोर हैं जो गोधन ले आए हैं? ये सब राजपुरी से यहां क्यों आए हैं।, Pool
कुमार। गोधन पुराना तो केवल आपको यहां बुलाने का बहाना था। हम तो आपसे मिलने आए हैं। हमें गोधन नहीं चाहिए।
R
16
1111111111113)
र
ठीक है। तुम लोग चिंता न करो। मैं उन धोरो से तुम्हारा गोधन वापस लाकर दूंगा।
718
अपने मित्रों और सेवकों से मिलकर जीवंधर कुमार को अत्यंत प्रसन्नता हुई।
हे स्वामी । हम तो आपके वियोग में मृतप्राय हो चुके थे। किंतु देवी गंधवदत्ता ने मार्ग बताया और हम अनेक वनों में भटकते हुए यहां आ पहुंचे हैं। हमने एक वन में तपस्वियों के आश्रम में एक माता,
को देखा ।
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
तपस्वी - आश्रम में....
Mantle
4
Cadets
Cable
랄
तुम लोग कौन हो ? कहां से आए हो ?
ヘッ
Mengat
2200
श्री जीवंधर स्वामी
nil
MOMANTIC
हे माता। हम राजपुरी से आए हैं। हम जीवंधर कुमार के सेवक हैं। हमारे दुष्ट राजा काष्ठागार में तो "जीवंधर कुमार को मारने के लिए...
11
यह सुनते ही वह माता मूर्च्छित हो गयीं। फिर हमसे यह सुनकर कि जीवंधर कुमार जीवित है.. वह माता चेतना में आ गयी और विलाप करने लगीं 1
फिर उस माता से आपका चरित्र सुनकर हमें विश्वास हो गया कि आपको अपना
17
राज्य अवश्य
मिल जाएगा।
इसका अर्थ है कि मेरी माता जीवित हैं। मैं भी कैसा अभागा कि उन्हें मृत समझ 'कर मैंने उनकी खोज तक न की । हे मां तुम कहाँ हो ?
!
Ganya
592512
अब जीवधर कुमार माता के दर्शन शीघ्रातिशीघ्र करने के लिए व्याकुल हो उठे।
हे कनकमाला, कितने हर्ष का विषय है कि जिस माता को मैंने जन्म को ही नहीं देखा, वह जीवित है। मैं उनके दर्शन करने जा रहा हूं। मैं इसी क्षण प्रस्थान
कर रहा
हूं।
आप माता के दर्शनों के लिए अवश्य
जाएं महाराज ।
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन चित्रकथा दंडक वन में पहुंचकर माता विजया और जीवधरकुमार-दोनो हे पुत्र क्या तेरे मन में) एक दूसरे को देखकर प्रसन्नता से विहवल हो उठे।
अपने पिता के राजपदको राणा गरमा
पाने की इच्छा नहीं है? तेरेपासन धन है,न सेना। इसलिए मुझे संदेहहो
रहा है।
माताजी। आप चिंता न करें। मैं अपने पिता के राजपद को अवश्य प्राप्त करूगा।
PELDM
NA
TAM
हे माता । अब आपने मुझे राज्यपद प्राप्त करने का स्मरण करा दिया है सो' मुझे युध्द के लिए तैयार होना पड़ेगा। तब तक आप यह आश्रम छोड़कर मामाके यहां रहें। वहा आपको भेजने PRG
की व्यवस्था में कर देता हूं।
ठीक है पुत्र। जो उचित है,वही मैं करूंगी।
300
अब जीवधरकुमार राजपुरी गए और उसके निकट एक उपवन में ठहर गए।
छाएका बयर
DO
18
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री जीवंधर स्वामी एक दिन जीवंधर कुमार राजपुरी नगरी में घूम
जीवंधर कुमार उस महल के अंदर गये और ऊपर चढ़ गए। रहे थे कि एक गेंद ऊपर से उनके पैरों पर आकर हे भद्र पुरुष। आवका स्वागत है। मैं सेठ सागरदत्त हूं। गिरी। ऊपर देरवा तो उस गेंद को खेलने वाली और यह मेरी पुत्री विमला है। आज मेरे बहुत से आभूषण एक सुंदर कन्या रखड़ी थी। जीवधर कुमार उसे जो बिक्री के लिए लके हुए थे-बिक गए। यह आपके पुण्य देखते ही उसपर मोहित हो गए।
प्रताप से हुआ है। अस्तु में आपके साथ अपनी पुत्री का विवाह करना चाहता हूं।
LE
प्रता
बुदिषेण ! तू मुझे चुनौती दे रहा है ? अरे विदूषक। मैं वह भी करके दिखा दूंगा।
जीवंधर कुमार ने विमलासे विवाह किया किंतु वहां अधिक समय नरहकर अपने मित्रों केवास उपवन में आ गए।
जानते हो? सुरमंजरी ने अपने महल के चारों और वीर नारियों का पहरा लगा रखा है। तुम वहां जाही नहीं
सकते। विवाह
क्या करोगे?
A
लगता है, कुमारने किसी सुंदरी से विवाह किया है।
बधाई हो।
Se
22 ऐसेतो कोई कितनी ही नारियों से विवाह करले। उससे क्या होता है ? मैं तो तब मान जब ये सुरमंजरी से विवाह करके दिखाए। उसने प्रतिज्ञा कर रखी है कि वह किसी) पुरुष को देखेगी भी नहीं,
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन चित्र कथा जीवंधर कुमार ने यक्षेन्द्र द्वारा दी हुई विद्या-'कामरूप का स्मरण करके अपना वृध्द रुप बनाया और सुरमंजरी के महल पर जा पहुचा।
कुमारीतीर्थ? हा.. ह..हा..हा.. मूर्ख है... जाने दो.. अभी लौट आएगा...इस
नामकातीर्थ भला यहां कहां?
हा..हा.. सुरमंजरी को इससे भला क्या इर १ बेचारा बुढा... उसकी डाट खाकर लौट आएगा।
ऐ।बुढढ़े। यहा क्या लेने आया
है?
PERTAL
मैं कुमारी तीर्थ खोजने निकलाहूं।
और वृहद वेशधारी जीवधर,सुरमंजरी के पास पहुंच गया।सुरमंजरी ने उसका स्वागत किया और उसे भोजन कराया।
भोजन कराने के बाद... महापरुष। आप मुझे जानी लगते हैं। कृपया बताएं कि मेरा
मनोरथकब सिहद यदि तुम मंदिर चलकर
होगा? कामदेव की पूजा करोतो
तुम्हारा मनोरथ शीघ ही पूरा होगा। मेरे साथ चलो, मैं वह पूजा करादूंगा।
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री जीवंधर स्वामी सुरमंजरी पूजा के लिए तैयार हुई और वृद्ध बने जीवंधर के साथ मंदिर गई ।
हे कुमारी पूजन हो चुका है। अब तुम अपना अभीष्ट मांगो। कामदेव प्रसन्न होकर वर देगें।
और सुरमंजरी ने जैसे ही पलटकर उस वृद्ध को देखा तो जीवंधर अपने असली रूप आकर मुस्करा रहे थे
में
1
Gov
हे देव आपकी कृपा से मुझे जीवंधर पति रूप में प्राप्त हो ।
21
उस समय वह विदूषक बुध्दिषेण मंदिर में कामदेव की मूर्ति के पीछे पहले ही छिप गया था। उसने कामदेव की ओर से कहा।
इसके बाद सुरमंजरी के पिता कुबेरदत्त ने उन दोनों का बड़ी धूमधाम से विवाह कर दिया।
G
हे पुत्री । तुझे अभीष्ट वर प्राप्त ) हो चुका है। तेरे साथ आया यह व्यक्ति ही जीवंधर है।
B
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
विवाह के बाद जीवधर कुमार अपने मित्रों के साथ पितागंधोत्कट के पास आकर रहने लगे ।
जैन चित्र कथा
हे पुत्र तुम काष्ठांगार के चंगुल से बच निकले और सुरक्षित हो, यह देखकर मुझे परम आनंद हो रहा है।
12 107
किंतु अब मैं शांत न बैठूंगा में राज्य वापल लेने के लिए सेना आदि की व्यवस्था करने जा रहा हूं। यह बात गुप्त रहे ।
मैं हर तरह से तुम्हारी सहायता करुगा।
राजपुरी नगरी से चलकर जीवंधर कुमार अपने मामा राजा गोविन्दराज के राज्य विदेह नगर में पहुंचे।
मैं अपने पिता का खोया हुआ राज्य वापस लेना चाहता हूं और काष्ठांगार को उसके किए की सजा दूंगा, इस कार्य में मैं आपकी सहायता चाहता हूं।
22
आओ भांजे, जीवंधर। तुम्हारा स्वागत है !
Orac
उधर गुप्तचरों ने काष्ठागार को सूचना दी कि राजा गोविन्दराज को विश्वास हो गया है कि महाराज सत्यंधर का वध आपने किया है। इसका बदला लेने के लिए वह आप पर चढ़ाई करने वाले हैं।
इस समय मुझे कूटनीति से काम लेना होगा। सबसे पहले पत्र लिखकर गोविन्दराज़ के सामने स्थिति स्पष्ट कर देनी चाहिए ।
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री जीवंधर स्वामी काण्ठागार का पत्र गोविन्दराज को मिला तो उन्होंने मंत्रियो के साथ विचार किया।
मंत्रिगण । काठठांगार ने इस पत्र में लिखा है कि वास्तव में महाराजसत्यंधरको बागीचे में क्रीड़ा करते समय एक मदोन्मत्त हाथी ने मारा है। यह तो मेरादुर्भाग्य है कि उनकी हत्या करने का कलंक मेरे माथे पर लगाया जा रहा है। आप तो विचारवान व्यक्ति हैं,अस्तु इस गलत प्रचार को आप स्वीकार न करें। महापुरुषों के सत्संग से अपयश शीघ्र नष्ट हो जाता है। अस्तु आप मेरे अतिथि बनकर पधारें। मैं हर तरह से
आपका स्वागत करुगा।
S
EAUPAY IITrainRITERATE
T
13
महाराज । काष्ठांगार ने झूठ लिखा है कि सत्यंधर महाराज की हत्या हाथी ने की है। साथ ही आपको अतिथि बनाकर बुलाने के पीछे भी कोई चाल है।
फिर भी, जिस छल से उसने बुलाया है, मैं भी उसी छल से राजपुरी जाऊंगा। मेरी सेना मेरे पीछे-पीछे थोड़ी दूर पर रहेगी। बस मैं उसे संदेश भेजता हूं कि एक मित्र के निमत्रण पर मैं राजपुरी आ रहा हूं।
आप ठीक कहते हैं,मंनिवर।मैं इस दुष्ट से मित्रता करने की बजाय युद ही करना उचित समझता हूं।
अगले दिन पूरे नगर में ढिंढोरा पीटा गया ताकि काष्ठागार तक शीघ्र समाचार पहुंच जाय।
सुनो सुनो सुनो । महाराज गोविन्दराज और राजा कावठागार में मिलता हो गई है। दोनों मित्र शीघ ही राजपुरी में मिलने वाले हैं।
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन चित्रकथा अपने शत्रु को अत्यंत शक्तिशाली मानकर राजा गोविन्दराज विशाल फिर दोनों ओर सेदूत भेजे गए जो मेंट आदि सेनालेकर चले और राजपुरी से बाहर एक उपवन में ठहर गए। लेकर गए और एक दूसरे के राजा के प्रति
सम्मान प्रकट किया।
महाराजकी जय हो!महाराज AAR
काष्ठांगार ने आपकी सेवा में भेंट भेजी है।
HTRA
06
3
Com
हे महाराज हमारे महाराजा गोविन्दराजने आपके लिए भेट भेजी है-सो आप स्वीकार करें।
SON
M
अनेक राजा आए,किंतु वह चंद्रक यंत्र न भेद सके।
राजपुरी के निवासिया यों सुनों! महाराजा ( गोविन्दराज ने घोषणाकीहे< किजोव्यक्ति चंद्रक यंत्र का भेदन करेगा, उसे में अपनी कन्या ब्याह दूंगा।
Dila
-
24
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री जीवंधर स्वामी अंत में जीवधर ने आकर चंद्रक यंत्र भेद दिया।
हेराजाओं। इस चंद्रक यंत्र को भेदने वाले जीवंधरकुमार, राजपुरीके पूर्व राजा सत्यंधरके सुपुत्र
आपने ठीक कहा ।इस महापुरुषको देख कर ही हमइस की उच्यकुलीनता को समझ गएथे।
इस सत्य को जानकर काष्ठांगार को मानो लकवा मार गया।
मैंने तोइसे मृत्युदंड दिया था। पर लगता है,मृत्युदंड देने वालों ने इसे जीवितही छोड़ दिया था। यदि मुझे पता चल जाता तो मैं इसे कभी न
छोड़ता।
Ans
०००
यदि सचमुच ही यह सत्य-ज धर का पुत्रहेत. तो मुझे अपने को मरा हुआसमझना वाहिए। इसके होते हुए अब मेरा राज्य करना असंभव है।
25
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
यह जीवंधर इतना वीर है कि यह अकेले ही मुझे राज्य से हटा देगा। फिर इसे गोविन्दराज की सहायता भी प्राप्त है। इसलिए मेरे अब विपत्ति के, दिन आ गए।
1000
और तब युद्ध आरंभ हो गया। कुछ छोटे-छोटे राजा काष्ठांगार की सहायता के लिए आ गए। दोनों ओर की सेनाओं में युद्ध शुरू हो गया।
जैन चित्र कथा
गया ।
लेकिन जीवंधर के मित्रों ने व्यंग्य करके काष्ठागार को चिढ़ा दिया। इससे उसकी क्रोधाग्नि भड़क उठी। वह युद्ध के लिए तैयार हो यह जीवंधर अपने को बड़ा वीर कहता है- पर मैं नहीं मानता। यह सब झूठ है। अगर ये सचमुच वीर है तो युद्ध भूमि में आकर निपट ले ।
| कुछ ही देर के युद्ध के पश्चात् जीवंधर ने काष्ठांगार को यमलोक पहुंचा दिया।
26
Wr
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री जीवंधर स्वामी
अब जीवधर कुमार राज्याभिषिक्त होने के लिए जिन मंदिर गए।
इसके बाद अभिषेक मण्डप में राजा गोविन्दराज आदि ने जीवंधर कुमार का अभिषेक किया।
RCMOKOS
H
)
ooooo
मनGESexo
प्रक इसके बाद जीवंधर कुमार ने सब लोगों को यथायोग्य महाराज जीवंधर की जय हो।यह दान-मान दिया।
बड़ी प्रसन्नता की बात है कि हमार सुखके दिन फिर लौट आए।
जीवंधर के राज्य में जैसा सुखहे,वैसा पहले कभी नहीं रहा।
27
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन चित्र कथा
101QIQIRICON
TTITr
एक दिन राज्यसभा में...
हे मंत्रिगण। आप सबको साक्षी
बनाकर मैं अपने छोटे भाई युवराज नन्दाढ्य को इस राज्य का नदाट्य युवराज बनाता हूं।
की
जय।
900
Cor
तत्पश्चात जीवंधर कुमार ने, गोविन्दराज की पुत्री लक्ष्मणा से विवाह किया।
7 और विजयामाता तथा
सुनंदा माता-दोनों को Abd'राजमाता'के पद से
विभूषित करता
राजमाता विजयादेवी कीजय... राजमाता सुनंदादेवी कीजय...
हे मंत्रिगण। आप आज ही नगर में ढिंढोरा पिटवा दे कि प्रजा का कष्ट दूर करने के उद्देश्य से, बारह वर्ष तक कोई कर नहीं वसूल किया जायगा।
10THA
महाराजजीवंधर की जय।
928
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री जीवंधर स्वामी
जीवंधर कुमार ने अपने पद्मास्य आदि अनेक मित्रों तथा राजाओं को भी 'महामात्य' आदि पदों से विभूषित किया।
इस प्रकार जीवंधर कुमार सुख शांति एवं न्यायपूर्वक शासन करने लगे।
उनके मन में वैराग्य - भावना आ गयी।
29
CSS
एक दिन विजयामाता ने सोचा ।
a
LIN
मैने जीते जी अपने सुपुत्र जीवंधर कुमार को राजा बनते हुए देख लिया है। जिन पद्मास्य आदि ने मेरा उपकार किया उनको भी यथायोग्य पद मिल गए। इस प्रकार में सर्वथा निश्चिंत हूं ।
इसलिए अब मुझे पुत्रप्रेम का परित्याग
कर तपश्चर्या करनी चाहिए।
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन चित्र कथा तब सेठ गन्धोत्कट और सुनंदा माता विजयाके पास | आपके इस निर्णयका आए।
अनुकरण हमदोनों भी करेगें-क्योंकि हमें भी अब इस संसार के प्रति कोई रूचि नहीं है।
DOI
महारानी।
आपने शुभाशुभ कर्मफल से
मुक्तहोने का जो निर्णय लिया है। वह अत्यंत वंदनीय
ത്രത
CSCCS
OCOCCOCC
है
।
SHTE
इस प्रकार विजया,सुनंदा और सेठ गंधोत्कट-तीनों नेदीक्षालेली।
TER
ROIGT
SP
जीवधर कुमार का मन इस निर्णय से दरखी था-क्योकि उनके तीनो प्रियजन उनसे अलग हो रहे थे। तब पद्मा नामक आर्यिका ने उन्हें समझाया।
हे राजन्, जिस प्रकार अपने आप आकाश से हो रहीरत्नवर्षाको कोई नहीं रोकता,उसी प्रकार जिन
दीक्षा ग्रहण करने में कोई विवेकी मनुष्य दुखी
नहीं होता।
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री जीवंधर स्वामी
एक दिन जीवंधर कुमार अपनी आठों रानियों के साथ जलक्रीड़ा के लिए गए।
ONNER
इस प्रकार जीवधर कुमार शांत होकर शासन करने लगे।
5
41.
.
AN
MINS
वहां जीवंधर कुमार ने बंदरों के एक समूह में देखा कि बंदरी के न मानने पर वह बंदर मरे हुए के समान बन एक बंदर अपनी पत्नी को छोड़कर दूसरी बंदरी के साथ कर लेट गया । तब वह बंदरी उसबंदर को मरा समझ क्रीड़ा करने लगा। इससे उसकी पत्नीबंदरीनाराज हो । कर उसकी स्तुशामद करने लगी। गई।वह बंदर उसे आकर मनाने लगा कितुं सफल न हुआ।
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________
जैन चित्र कथा तब उस बंदर ने प्रसन्न होकर बंदरी को कटहल का | लेकिन तभी माली आया और उसने डंडा मारकर एक फल दिया।
कटहल काकल छीन लिया।
AAAAA
raamlndianMudr
यह देखकर जीवधर महाराज को वैराग्य हो गया।
जिस प्रकार इस बंदर ने कटहलका फल तोड़कर बानरी को दिया और फिर माली ने डंडा मारकर छीन लिया, इसी प्रकार मेरे पिता ने जोराज्य काष्ठांगार को दिया था, वह मैंनेवापस छीन लिया है। अतः मुझे यह राज्य छोड़ देना चाहिए।
जब मैं अनेक शुभाशुभकाँका भोक्ता हूं, उनका नाशक भी हूं तो मुझे कर्मो को छोड़कर मुक्ति प्राप्ति की चेष्टा करनी
चाहिए।
2007
32
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________
महाराज जीवंधर विचार करते हुए, जलक्रीड़ा से लौटे और जिनालय में जाकर जिनेन्द्र भगवान | की पूजा की।
ASINOOR
Mar
Jt0
u
94
एक समय तुम किसी राजहस के बच्चे को खेलने के लिए उठा लाए पिता ने उसे छोड़ने के लिए तुम्हें जब बहुत समझाया, तो तुम संसार से उदासीन हो गए। और दिगंबर मुनि बन गए। फिर तुम्हारी 'आंठों पत्नियों ने भी आर्थिका व्रत ग्रहण किए। फिर तुमने यहां जन्म लिया और वे आठों पत्नियां भी तुम्हें मिल गई।
122
श्री जीवंधर स्वामी
फिर वहां किसी ऋद्धिधारक मुनिराज से धर्मोपदेश सुना ।
हे मुनिराज कृपया मुझे मेरे पूर्वभव के बारे में बताइए!
33
हे राजन् ! तुम पूर्व भव में राजा यशोधर के पुत्र थे ।
जीवंधर महाराज वापस अपने राजमहल में पहुंचे और गंधर्वदत्ता के पुत्र को राज्य सौंपकर आठों पत्नियों सहित भगवान महावीर के समवसरण में जा पहुंचे।
हे भगवन । मैं इस संसार में जन्म और मरण रूपी
रोग से भयभीत मेरी इस पीड़ा को दूर करें।
Ly
((IN
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________
Vikrant Patni JHALRAPATAN
जैन चित्र कथा
भगवान महावीर ने उन्हें दीक्षा लेने की अनुमति दे दी तब उन जीवधर महाराज ने श्री महावीर स्वामी के निकट घोर तपश्चरण किया।
और अन्त में केवलज्ञान प्राप्त करके श्रीजीवंधर स्वामी ने मोक्ष प्राप्त किया।
-36
M
VE
IN
MM
SIL
-
34
इति शुभम्
Page #37
--------------------------------------------------------------------------
________________
अरेराहुल,क्यों लड़ रहे हो?
तुम लोग लड़ाई का घर
क्यों लाते हो?
राहुल और दीपू लड़ाई का घर
मम्मी ।
दीपू ने मेरी कॉमिक्स हीनली
मम्मी। मुझे लो। मेरे दोस्त ने
वापिस करदो उसे लड़ाई पापाका प्रवशोले। मिट जायेगी
यह जैन कॉमिक्स
जिससे कुछ नहीं, पहले
ज्ञान हो। मैं उसे पूरी पढूंगा)
पापा! मम्मी तो नहीं बेटा! जैन कहती है कि कॉमिक्स पढने से कॉमिक्स लड़ाई लड़ाई मिटती का घर है।
है ।
VI
पाया!) 242
कॉमिक्स
पढने
सेलड़ाई कैसे मिटती है?
V
बेटा! जैनधर्म लड़ना नहीं प्रेम करना सिस्वाता तबतो हम जैन कॉमिक्स )
है।इसका जैन कॉमिक्स/रोज पढेंगे पापा जी ।
मैं वर्णन है।
T રિટે.
सरल शिक्षा का एक विचार, जैन कॉमिक्स का हो प्रचार
Page #38
--------------------------------------------------------------------------
________________
दीपू
हल शिक्षा किस
5 और अ
क्यों यह तो निर्जीव है ?
Vikrant Patni
JHALRAPATAN
मालूम
देख इस जैन कॉमिक्स 'आटे का मुर्गा 'में
राहुल! देखो मैं
गोली खा रहा हूं
अरे! यह तो बतख के
आकार की है (इसे मत खा
नहीं, इसे खाने से पाप लगता है
क्या मेरी बतख पर तुम्हारी जीभ में भी पानी आ गया ?
यह तुमने कहां से पढ़ लिया ?
नहीं, किसी प्राणी के आकार वाली वस्तु नहीं खाना चाहिए ।
आर्द्र
सुनो, एक राजा ने निर्जीव आटे का मुर्गा बली में चढ़ाया था उसे बहुत दुःख उठाने पड़े ।
तब तो हम भी जीवों के आकार वाली वस्तुऐं नहीं खायेंगे
तभी तो फायदा है 'जैन कॉमिक्स पढ़ने
का ।
सरल शिक्षा का एक विचारजैन कॉमिक्स
का हो प्रचार
Page #39
--------------------------------------------------------------------------
________________
Vikrant Patni
JHALRAPATAN आचार्य धर्मश्रुत ग्रन्थमाला से प्रकाशित साहित्य आपके परिवार के लिए अति ही उपयोगी साहित्य एवं जैन चित्र कथा | क्र. ग्रन्थ का नाम मूल्य | क्र० ग्रन्थ का नाम
मूल्य 1. तीन दिन में 20.00-33. मंत्र महाविज्ञान
60.00 भाग्य की परीक्षा 20.00- 34. ज्योतिष विज्ञान
60.00 3. आटे का मुगा 20.00 35. कर विज्ञान
30.00 4. जो करो सो भरे 20.0036.| साधु परिचय
50.00. कवि रत्नाकर 20.0037 वरांग चरित्र
50.00 चमत्कार 20.00 बोलती माटी
250.00 प्रद्युमन हरण 20.00 | आखन देखी आत्मा
60.00 सत्यघोस
20.00 जैन ज्योतिष महाविज्ञान 160.00 | सात कोड़ियों में
20.00 भक्तामर सचित्र हिन्दी, टीले बाबा की 20.00 | अंग्रेजी, गुजराती
750.00 11. चन्दनवाला 20.00 42. | अभय कुमार
20.00 12. ताली एक हाथ से बजती रही | 20.00
43. भजन रत्नाकर
35.00 13. सिकन्दर और कल्याण मुनि 20.00 रत्नाकर की लहरें
250.00 14. चारित्र चक्रवर्ति
20.00 45. दर्शन विधि
5.00 15. रुप जो बदलता नहीं जाता 20.00
जिन पूजा
5.00 16. राजुल-हिन्दी-अंग्रेजी
20.00 47. विमल भक्ति
10.00 17. स्वर्ग की सीढ़ी
20.00
48. आचार्य धर्मसागर पूजाञ्जलि 31.00 18. मुनि रक्षा
20.00 49. सज्जन चित्त बल्लभ
10.00 19. मुक्ति का राही
20.00 50. कमल श्री नाटक
10.00 20. महादानी भामाशाह
20.00 पंचकल्याणक
20.00 21. प्रतिशोध
20.00 समोसरण विधान
35.00 22 | अभय कुमार
20.00 23. चेलना की विजय
53. अनासक्त योगी
30.00 20.00 54. गेटवे ऑफ जैन धर्म
30.00 24. पद्मावती देवी
20.00 25. गाये जा गीत अपन के
बाल भाग 1-2-3-4-5 25.00
20.00 26. बाहुबली
20.00
56. अनोखी कथाऐं 1 से 10 तक 20.00 27. पारसनाथ
20.00 छह ढाला
10.00 28. भावना का फल
20.00 58. शान्ति विधान
25.00 29. भगवान राम
25.00 | नवग्रह विधान
20.00 30. आओ बच्चों गाये गीत 20.00 | वास्तु विधान
20.00 साधना और सिद्धि 70.00 मृत्युंजय विधान
20.00 32. ज्ञान विज्ञान 30.0062. दश लक्षण विधान
20.00 प्राप्ति स्थान :- जैन मन्दिर गलाब वाटिका लोनी रोड, दिल्ली फोन :- 0575-4600074
Page #40
--------------------------------------------------------------------------
________________ स्व. जगाती लक्ष्मीचंद जैन व ब्र० धर्मचंद शास्त्री सहयोगी स्व. श्री जगाती लखमीचंद जैन टड़ा (के०) सागर म०प्र० Processed & Printed by: Shiva Enterprises. Tel.: 2128692