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जैन चित्रकथा
सेना के आने का समाचार सुनकर ...
पिताजी। आप चिंता न करें। मैं काष्ठागार कीसेना
को अभी धूल में कमिला दूंगा।
नहीं बेटे। युद मत करो। राजा से दुश्मनी अच्छी नहीं होती। तुम उसके पास चले
जाओ।
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और सेनापति, जीवधर के हाथ बांधकर काष्ठागारके दरबार में ले आया।
इस दुष्ट ने हमें बहुत तंग किया है। इसे ले जाओ और वध कर दो। यहीं। इसका सर्वोत्तमदंङहै।
यक्षेन्द्र तत्काल आया और अपनी मायावी शक्ति से जीवधर कुमार को वहां से अदृश्य बनाकर उठा ले गया। उधर जीवधर के मातापिता और जनता इस समाचार सेदुखी हो उठे।
निरपराध जीवधर की हत्या कराकर काष्ठांगार ने कैसी निर्दयता और अन्याय किया है। इस धरती पर पहले ऐसा कभी नहीं हुआ।
हाय,मैने स्वय अपने बेटे को मौत के मुह में भेज दिया।
हाय मेरा बच्चा ।
हेयक्षेन्द्र । मेरी (सहायता के लिए आओ।
वह यक्षेन्द्र जीवधर कुमार को चन्द्रोदयपर्वत पर अपने घर लेगया औरवहां उनका अभिषेक
किया। हे स्वामी।
| आज से आपका पुण्योदय हो रहा है। आप एक वर्ष मेंही राजा बनकर राज्य सुख भोगेंगे,और मोक्ष प्राप्त करेंगे।
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