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श्री जीवंधर स्वामी
कुछ समय बाद सुनंदा के एक और पुत्र हुआ। उसका नाम रखा - नन्दाढ्य । पहले पुत्र का नाम रखा था - जीवन्धर । वह तब पाँच वर्ष का था उसका विद्या संस्कार किया गया।
'गुरु आर्यनन्दी महाराज के यहां शिक्षा पाकर जीवघर बड़ा हुआ। एक दिन..
जीवधर । पूर्वजन्म में तुमने मुझे आहार देकर मेरा कष्ट दूर किया था। इसलिए इस जन्म में मैंने तुम्हें शिक्षा दान दिया है। तुम वास्तव में राजा सत्यधर के पुत्र हो । राजा काष्ठागार ने तुम्हारे पिता को
है ।
मार डाला
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तो मैं उससे अवश्य बदला लूंगा।
'नहीं जीवधेर। अभी
तुम व्यस्क नहीं,
हो। मुझे वचन दो कि एक वर्ष तक तुम उससे युद्ध नहीं
करोगे ।
मैं वचन देता हूं।
महाराज
एक दिन.... हम ग्वालों की सभी गौएं भीलों ने छीन ली है। हम तो लुट गए महाराज |
हमारा पशुधन वापस दिलवाइए ।
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चिंता न करो। मैं अभी सेना भेजकर तुम्हारा पशुधन मुक्त कराता हूं।
जनज