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जैन चित्र कथा
वह मयूर-विमान राजपुरी के शमशान में गिरा, जहां रानी विजयाने एक पुत्र कोजन्म दिया। रानी दुखी होकर सोचने लगी कि इसपुत्रका क्या करूं १ तभी चंपकमालादेवी धायके वेश में
आयी।
यह सेना तो कभी मेरी ही थी। अपने ही लोगों के नरसंहारसेक्या लाभ? धिक है ऐसा राज्य जिसके लिएनरसंहार करना पड़े। मुझे तो सन्यास ले लेना चाहिए।
हेदेवी!इस पुत्रके पालन की चिंता नकरो एक व्यक्ति इसे राजकुमारों की तरह पालेगा।
और इस तरह सत्यंधर ने अपरिग्रह कर सल्लेखनापूर्वक शरीर छोड़ दिया।
विजयाने उस शिशुको राजचिन्हवाली अंगूठी पहनाकरवहीं छोड़ दिया और स्वयं छिप गई।तभी उसनगरीकासेठ गन्धोत्कट वहां अपने शिशु-पुत्रका शव लेकर आया। AVAILP
तो उस निमित्त ज्ञानी ने ठीक कहा था कि तुम्हें श्मशान में एक सुंदर शिशु मिलेगा?
गन्धोत्कट उस शिशु को लेकर पत्नी के पास आया।
अरे सुनंदा। तुमने जीवित पुत्र को मरा कैसे कह दिया? यह
लो अपना पुत्र अरे! मेराबच्चा।
रानी विजया दंडक वन में स्थित तपस्वियों के आश्रम में जाकर रहने लगी।
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