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जैन चित्रकथा अपने शत्रु को अत्यंत शक्तिशाली मानकर राजा गोविन्दराज विशाल फिर दोनों ओर सेदूत भेजे गए जो मेंट आदि सेनालेकर चले और राजपुरी से बाहर एक उपवन में ठहर गए। लेकर गए और एक दूसरे के राजा के प्रति
सम्मान प्रकट किया।
महाराजकी जय हो!महाराज AAR
काष्ठांगार ने आपकी सेवा में भेंट भेजी है।
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हे महाराज हमारे महाराजा गोविन्दराजने आपके लिए भेट भेजी है-सो आप स्वीकार करें।
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अनेक राजा आए,किंतु वह चंद्रक यंत्र न भेद सके।
राजपुरी के निवासिया यों सुनों! महाराजा ( गोविन्दराज ने घोषणाकीहे< किजोव्यक्ति चंद्रक यंत्र का भेदन करेगा, उसे में अपनी कन्या ब्याह दूंगा।
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