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श्री जीवंधर स्वामी काण्ठागार का पत्र गोविन्दराज को मिला तो उन्होंने मंत्रियो के साथ विचार किया।
मंत्रिगण । काठठांगार ने इस पत्र में लिखा है कि वास्तव में महाराजसत्यंधरको बागीचे में क्रीड़ा करते समय एक मदोन्मत्त हाथी ने मारा है। यह तो मेरादुर्भाग्य है कि उनकी हत्या करने का कलंक मेरे माथे पर लगाया जा रहा है। आप तो विचारवान व्यक्ति हैं,अस्तु इस गलत प्रचार को आप स्वीकार न करें। महापुरुषों के सत्संग से अपयश शीघ्र नष्ट हो जाता है। अस्तु आप मेरे अतिथि बनकर पधारें। मैं हर तरह से
आपका स्वागत करुगा।
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महाराज । काष्ठांगार ने झूठ लिखा है कि सत्यंधर महाराज की हत्या हाथी ने की है। साथ ही आपको अतिथि बनाकर बुलाने के पीछे भी कोई चाल है।
फिर भी, जिस छल से उसने बुलाया है, मैं भी उसी छल से राजपुरी जाऊंगा। मेरी सेना मेरे पीछे-पीछे थोड़ी दूर पर रहेगी। बस मैं उसे संदेश भेजता हूं कि एक मित्र के निमत्रण पर मैं राजपुरी आ रहा हूं।
आप ठीक कहते हैं,मंनिवर।मैं इस दुष्ट से मित्रता करने की बजाय युद ही करना उचित समझता हूं।
अगले दिन पूरे नगर में ढिंढोरा पीटा गया ताकि काष्ठागार तक शीघ्र समाचार पहुंच जाय।
सुनो सुनो सुनो । महाराज गोविन्दराज और राजा कावठागार में मिलता हो गई है। दोनों मित्र शीघ ही राजपुरी में मिलने वाले हैं।