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विवाह के बाद जीवधर कुमार अपने मित्रों के साथ पितागंधोत्कट के पास आकर रहने लगे ।
जैन चित्र कथा
हे पुत्र तुम काष्ठांगार के चंगुल से बच निकले और सुरक्षित हो, यह देखकर मुझे परम आनंद हो रहा है।
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किंतु अब मैं शांत न बैठूंगा में राज्य वापल लेने के लिए सेना आदि की व्यवस्था करने जा रहा हूं। यह बात गुप्त रहे ।
मैं हर तरह से तुम्हारी सहायता करुगा।
राजपुरी नगरी से चलकर जीवंधर कुमार अपने मामा राजा गोविन्दराज के राज्य विदेह नगर में पहुंचे।
मैं अपने पिता का खोया हुआ राज्य वापस लेना चाहता हूं और काष्ठांगार को उसके किए की सजा दूंगा, इस कार्य में मैं आपकी सहायता चाहता हूं।
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आओ भांजे, जीवंधर। तुम्हारा स्वागत है !
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उधर गुप्तचरों ने काष्ठागार को सूचना दी कि राजा गोविन्दराज को विश्वास हो गया है कि महाराज सत्यंधर का वध आपने किया है। इसका बदला लेने के लिए वह आप पर चढ़ाई करने वाले हैं।
इस समय मुझे कूटनीति से काम लेना होगा। सबसे पहले पत्र लिखकर गोविन्दराज़ के सामने स्थिति स्पष्ट कर देनी चाहिए ।